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सोमवार, 31 अगस्त 2020

यूरेशिया से आए हुए मनुवादी जिन्हे देव भी कहा जाता है ,वे कोई हिंदु भगवान नही हैं


यूरेशिया से आए हुए मनुवादी  जिन्हे देव भी कहा जाता है वे कोई हिंदु भगवान नही हैं 



यानी अब उत्तर प्रदेश में होली ,दिवाली रक्षाबंधन , मकर संक्रांती वगैरा पर्व त्योहार मनाते हुए कोई नही दिखेगा ? झुठ की भी हद होती है | हिंदु धर्म विश्व में तीसरा सबसे बड़ा धर्म है ,जो मनुवादीयों की मुठीभर अबादी से तीसरा बड़ा धर्म नही है | बल्कि इस देश का घर जमाई मनुवादी को परिवार का ज्ञान प्रदान करने वाली बहुजन डीएनए की ही नारी की वजह से मनुवादी हिंदु कहलाता है | मनुवादी तो असल में बारह माह प्रकृतिक पर्व त्योहार मनाने वाला हिंदु है ही नही ! बल्कि वह तो इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश से पहले परिवार समाज के बारे में भी नही जानता था | उसे हिंदू धर्म की इतनी समझ घर जमाई बनने के बाद हुआ है | लेकिन भी न जाने कबसे बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिये क्या क्या ब्रेनवाश करने की कोशिष नही की जा रही है ! चीन में मौजुद धर्म की अबादी बौद्ध धर्म से भी ज्यादे है ,पर बार बार ये कहा जाता है जैसे चीन में सबसे बड़ा धर्म बौद्ध धर्म है | एक बात निश्चित है कि हिंदु धर्म को कमजोर और बेकार साबित करने के लिये चाहे कोई जितना छल कपट करके अपना भ्रष्ट बुद्धी लगायेगा , हजारो सालो से हिंदु धर्म की अबादी विश्व में हिंदु धर्म की बुराई करने वालो को पिड़ी दर पिड़ी निराश करता आया है और आगे भी पिड़ी दर पिड़ी निराश करता रहेगा | जो लोग हिंदु धर्म की बुराई करते रहते हैं वे अपने बच्चो को भी हिंदु धर्म की बुराई करने की ट्रेनिंग जरुर देकर जायें अपनी यह भड़ास निकालने के लिये कि हिंदु धर्म आखिर इतनी बुराई सुनकर भी विश्व का तीसरा बड़ा धर्म आखिर कैसे बना हुआ है ? बौद्ध धर्म वालो को दरसल हिंदु पर्व त्योहार से जलन होती है ! इसलिए जब भी हिंदु पर्व त्योहार आते हैं , जैसे की अभी रक्षाबंधन आया हुआ है , तो हिंदुओं को पर्व त्योहार मनाते हुए देखकर निराशा में अंड संड बड़बड़ाते हुए हिंदुओ को ब्रेनवाश करने की कोशिष करते रहते हैं | इनसे अच्छा तो मुस्लिम , ईसाई धर्म के लोग हैं जो कि हिंदुओ से मिल जुलकर पर्व त्योहार मनाते हुए देखे जा सकते हैं | मैं तो कहता हूँ जो हिंदु बौद्ध बनकर हिंदु पर्व त्योहार आते ही अपने पुराने दिनो को याद करके निराश हताश होते हैं कि अब वे होली दिवाली ,मकर सक्रांती ,रक्षाबंधन वगैरा नही मना सकते वे वापस मन में यह ठानकर अपने पुर्वजो का धर्म में वापस आ जाय कि यूरेशिया से आए हुए मनुवादी  जिन्हे देव भी कहा जाता है ,वे कोई हिंदु भगवान नही हैं | बल्कि हिंदु भगवान को बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति  पर्व त्योहार के साथ प्राकृति की पुजा मसलन छठ पुजा वगैरा जो हिंदू पुजा जो होती है ,वह कोई कबिलई लुटेरे देवो की नही होती है | वह तो घुमकड़ कबिलई मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद घर के भेदियो की सहायता और छल कपट से इस देश  की सत्ता में कब्जा करके खुदको भगवान बनाये हुए है | जैसे गुलाम बनाने वाला कोई क्रुर शासक अपने गुलामो का भगवान बना रहता है | कम से कम तबतक जबतक की उसकी क्रुर सत्ता का अंत नही हो जाता |

शनिवार, 8 अगस्त 2020

1947 ई० से लेकर अबतक दो तीन को छोड़ दिया जाय तो सारे प्रधामंत्री और राष्ट्रपति बल्कि जजो का प्रमुख भी विदेशी DNA के लोग बनते आए हैं



1947 ई० से लेकर अबतक दो तीन को छोड़ दिया जाय तो सारे प्रधामंत्री और राष्ट्रपति बल्कि जजो का प्रमुख भी विदेशी DNA के लोग बनते आए हैं 


विडंबना है कि इस देश में बहुसंख्यक अबादी इस देश के मुलनिवासियों की होते हुए भी अल्पसंख्यक विदेशी मुल का शासन चल रहा है | जो लोग छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से लोकतंत्र के चारो स्तंभो में कब्जा करके अल्पसंख्यक होने के बावजुद भी राज कर रहे हैं | जैसे की कभी गोरे अल्पसंख्यक होते हुए भी इस देश में राज कर रहे थे | उसी तरह विदेशी DNA मुल के लोगो द्वारा आज भी मंत्री और उच्च अधिकारी पदो में कब्जा करके राज किया जा रहा है | दरसल मैं बात कर रहा हूँ यूरेशिया से आए उन मनुवादीयों का जिनके पुर्वज हजारो साल पहले इस देश में आकर इस देश की महिलाओं के साथ परिवार बसाकर घर जमाई बनकर अपने पुर्वजो की धरती जहाँ से वे इस कृषि प्रधान देश में आए हैं , उसे मानो भुलाकर या फिर अपने पुर्वजो की धरती को भी पहचानने से इंकार करके दुसरो के उपर नजरे गड़ाकर दुसरो के हक अधिकार को लुटकर राज करने के लिए यहीं पर बस गए हैं | हो सकता है सायद उनका कोई अपना शासन व्यवस्था और अपना परिवार समाज स्थिर ठिकाना नही था , इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं | क्योंकि हमे यह बात नही भुलनी चाहिए कि मनुवादीयों के परिवार में मौजुद महिला मनुवादीयों के साथ यूरेशिया से नही आई है , बल्कि उसका M DNA इसी देश की महिला से मिलता है | जिससे एक बात साफ हो जाता है कि मनुवादीयों का कोई परिवार ही मौजुद नही था इस कृषि प्रधान देश में आने से पहले  | बल्कि मनुवादी इस देश में आने से पहले परिवार समाज को ही नही जानते थे | जिसके चलते वे अपने परिवार के पास वापस गोरो की तरह कभी नही गए | क्योंकि विशाल सागर की तरह स्थिर इस कृषि प्रधान देश में कबिलई मनुवादी प्रवेश से पहले पुरुष झुंड में वे सिर्फ घुम घुमकर अपना पेट पालते थे , न कि अपने साथ अपने परिवार का भी पेट पालते थे  | क्योंकि यदि पालते तो वापस अपने परिवार के पास यूरेशिया जरुर जाते | कम से कम हाल समाचार तो जरुर लेते रहते कि उनके आने के बाद उनके परिवार के सदस्य जिन्दा हैं कि मर गए | जाहिर है उनके परिवार का कोई जानकारी होता तो वे भी गोरो की तरह अपने परिवार के पास वापस चले जाते जहाँ से आए थे | पर चूँकि उनका किसी शिकारी जानवरो की तरह अपना क्षेत्र तो था पर उस समय मनुवादियों के लिये अपने क्षेत्र में भी कोई स्थिर ठिकाना और परिवार की भी सुझ बुझ नही थी , इसलिए जाहिर है वे यूरेशिया वापस नही लौट सके | जाहिर है यदि लौटते तो फिर उन्हे इस कृषि प्रधान देश की महिलाओं के साथ परिवार बसाकर उनको अपने साथ यूरेशिया ले जाकर घुम घुमकर पालने पोसने में बिना समाज गणतंत्र शासन व्यवस्था और कृषि व्यवस्था में घोर संकट होती , जैसे की मनुवादीयों के उन पुर्वजो को हो रहे थे जो घुमकड़ जिवन जिते हुए पहलीबार इस कृषी प्रधान देश में आए थे | जिनके साथ कोई महिला नही थी , क्योंकि या तो तब वे कृषि के साथ साथ परिवार समाज क्या होता है यह भी नही जानते थे , जिसके बारे में भी इस देश में आकर सिखे या फिर वे अपने परिवार को बोझ समझकर न तो अपने साथ लाए और न ही हाल समाचार जानने के लिए भी उसके पास वापस गए | क्योंकि उन्होने सोचा होगा यदि वे यूरेशिया वापस जाते तो उनका परिवार तो वहाँ पर अकेले भुखो मर ही रहे होंगे पर वापस जाकर वे भी भुखो मरेंगे | जिस बात को जानकर इस देश की महिलाओं ने भी यूरेशिया से आए मनुवादीयों के साथ यूरेशिया जाने के बजाय उनको यहीं पर घर जमाई बनकर रहने के लिए राजी किया होगा | बल्कि राजी करने की जरुरत भी नही हुई होगी | क्योंकि मनुवादी खुद ही युरेशिया से अपना पेट पालने के लिए इस कृषि प्रधान देश में घुमकड़ कबिलई जिवन जिते हुए संभवता नंगा पुंगा प्रवेश किये थे | जिन्होने पहलीबार इस कृषि प्रधान देश में कपड़ा पहनना भी सीखा होगा और अन्न खाना भी | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले उन्हे खेती करना नही आता था | जिसके चलते वे तो वैसे भी किसी शिकारी नजर से ही अपने ससुराल की धन संपदा जायदात पर कब्जा जमाने के लिए सुरु से ही ताक पर रहे होंगे | जिसके लिये उन्होने इस देश की महिलाओ को चारे या फंदा की तरह विशेष इस्तेमाल किया इस देश और इस देश की धन संपदा में कब्जा करने के लिए | जो की उनके लिये सबसे आसान रास्ता भी था | क्योंकि अक्सर कोई भी भारतीय महिला एकबार अपना परिवार बसाने के बाद चाहे उसका पति चोर गुंडा और सबसे बड़ा बेवड़ा ही क्यों न हो तब भी उसका साथ जिवनभर सायद ही कभी साथ छोड़ना चाहती है | जो स्वभाविक है , क्योंकि इस कृषि प्रधान देश के परिवार समाज में ऐसा संस्कार मौजुद नही है जिससे कि किसी महिला पुरुष को कई कई से वैवाहिक रिस्ता जोड़ना चाहिए | बल्कि वैवाहिक रिस्ता जोड़ने से पहले कई कई से सेक्स करना चाहिए ऐसे भी संस्कार नही है | जिसके चलते आज भी यदि माना जाय की कृषि सभ्यता संस्कृति से अलग बाहरी संस्कार मसलन कबिलई मनुवादीयों के मनुवादी संस्कार जिसके बारे में वेद पुराण भरे पड़े हैं , उसका संक्रमण होने के बाद इस देश की महिला पुरुष यदि विवाह से पहले या बाद में भी आज कई से सेक्स करते भी होंगे तो भी वे उस बात को गुप्त ही रखते हैं | और विवाह के समय ऐसा पुरुष स्त्री से ही विवाह करने की इच्छा जाहिर करते हैं जिसने किसी के साथ सेक्स न मनाया गया हो | जाहिर है इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस तरह के संस्कारो के बारे में जानकर कबिलई मनुवादीयों ने यह सुनिश्चित कर लिया होगा कि वे जब इस कृषि प्रधान देश की महिलाओं से परिवार बसा लेंगे तो उन्हे सबकुछ मुफ्त में आसानी से बिना रिस्ता टुटे अपनी पत्नी की ही सहायता या इस्तेमाल से आसानी से मिलता चला जायेगा | जैसा कि इतिहास पलटने पर पता भी चलता है कि मनुवादी घर जमाई बनने के बाद अपनी पत्नी को देवी का दर्जा देकर उन्हे अपने बहुत से कुकर्मो में शामिल करके मिल जुलकर अपनी आरती तक उतरवाते आ रहे हैं | और अपनी पत्नियों के साथ मिलकर खुदको देवी देवता घोषित करके  अपने ससुराल के बाकि लोगो को निच अच्छुत शुद्र कहकर कान में गर्म पीघला लोहा डालते और जीभ काटते आ रहे हैं | जिसका विरोध मनुवादीयों की पत्नी जो की इसी देश की ही मुलनिवासी महिला है , न कि वह भी यूरेशिया से आई है , उसके दिमाक में पारिवारिक रिस्ता के प्रति ऐसी कटुता पैदा कभी नही हुई कि वह मनुवादी से रिस्ता तोड़कर उनका विरोध करते हुए मुलनिवासियों की सत्ता वापस आने में मदत कर सके सिवाय छिटपुट उदाहरन के | बल्कि अक्सर उल्टा हुआ और जो भी महिला मनुवादी के परिवार में देवी बनी वह भी खुदको वैसा ही व्यवहार में लानी सुरु कर दी जैसा की मनुवादी हजारो सालो से छुवा छुत करके इस देश के मुलनिवासियों के प्रति भेदभाव का व्यवहार लाते रहे हैं | बल्कि मनुवादी भी इस तरह का विशेष लाभ को देखते हुए अपनी मनुवादी सत्ता कायम रखने के लिए अपने परिवार की महिलाओ को खास इस्तेमाल करते चले गए हैं | मसलन इतिहास में विषकन्या और तप भंग करने वाले ऐसे अप्सराओ के बारे में जानकारी भरे पड़े हैं , जिनका इस्तेमाल मनुवादी सत्ता लाने या कायम करने में हुआ है | जो प्रक्रिया आज भी जारी है | जिसका प्रयोगिक उदाहरन आज भी मनुवादीयों के घरो में मौजुद ऐसी बहुत सारी महिला मिल जायेगी जो कि मनुवादीयों की तरह इस देश के मुलनिवासियों के प्रति जहर उगलते या भेदभाव शोषण अत्याचार करते मिल जायेगी | जिस खास कमजोरी की वजह से इस देश के जिन मुलनिवासियो ने जिन्हे पनाह देकर कपड़ा पहनाकर और अन्न खिलाकर पाला पोसा उनका ही शोषण अत्याचार करना आज भी जारी है | मनुवादी आज भी इस देश के मुलनिवासियों का धन संपदा पर कब्जा जमाकर उन्हे गरिबी भुखमरी देकर उनका शोषण अत्याचार कर रहे हैं मानो कोई भिखारी भिख देनेवाले को ही लुटकर धन्ना बना हुआ है | क्योंकि भारत ऐसा देश है , जहाँ पर कोई भी विदेशी मुल का पुरुष घर जमाई बनकर सांसद , मंत्री , प्रधानमंत्री , राष्ट्रपति और जजो का प्रमुख भी बन सकता है | बल्कि वह इस देश का सबसे बड़ा पार्टी बनाकर सबसे बड़ा सत्ताधारी भी बन सकता है | लेकिन यदि कोई विदेशी मुल की महिला ऐसा करना चाहेगी भी तो वह कभी भी शासक नही बन सकती | क्योंकि इस देश की महिला किसी विदेशी मुल का पुरुष को शासक तो बना सकती है , लेकिन इस देश का न तो पुरुष किसी विदेशी मुल की महिला को शासक बना सकते हैं और न ही इस देश की महिला किसी विदेशी मुल की महिला को शासक बना सकती है | हाँ विदेशी पुरुषो को इस देश के महिला पुरुष  दोनो ही शासक बना सकते हैं | मसलन यूरेशिया से आए विदेशी मुल के मनुवादी इस देश का घर जमाई बनकर इस देश की महिलाओ से अपना वंशवृक्ष पैदा करके इस देश के पुरुष और महिलाओं की ही मर्जी से हजारो सालो से शासक बने हुए हैं , सिवाय यदि बिच का कुछ समय छोड़ दिया जाय | मसलन आज भी जिस पार्टी का शासन चल रहा है उसमे विदेशी मुल के पुरुषो का दबदबा है , पर फिर भी उस पार्टी को इस देश के मुलनिवासी पुरुष महिला उस पार्टी से चुनाव लड़कर या उस पार्टी को समर्थन करके उसे सत्ताधारी बनाये हुए हैं | बल्कि उस पार्टी की सबसे प्रमुख विरोधी मानी जानेवाली पार्टी को भी गोरो से अजादी मिलने से लेकर कई दसक तक सत्ताधारी इसी देश के मुलनिवासी पुरुष और महिलाओ ने उस पार्टी से चुनाव लड़कर और समर्थन करके बनाया है | जिस पार्टी से ही लगातार प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति कथित उच्च जाति जिन्हे यूरेशिया से आए विदेशी मुल के लोग कहा जाता है वे बनते आए हैं , सिवाय एक दो को छोड़कर | पर जहाँ तक मुझे पता है इन हजारो सालो में कोई भी विदेशी महिला इस देश का सम्राट नही बनी है और न ही एकात छोड़कर कोई देशी या विदेशी महिला प्रधानमंत्री राष्ट्रपति बनी है | क्योंकि विदेशी मुल के पुरुषो के साथ परिवार बसाकर उन्हे घर जमाई बनाने वाली महिला विदेशी मुल की नही बल्कि इसी देश की महिलाओ की तरह मुलनिवासी महिला है , इसलिए विदेशी मुल के पुरुषो से परिवार बसाने वाली महिलाओ को भी शासक बनाने में परेशानी होती है | हाँ इस देश की जो महिला इस देश के मुलनिवासी पुरुष के साथ परिवार बसाती है उसे शासक बनने में उन महिलाओं से भी ज्यादे कठिनाई जरुर होती है जो की मनुवादी परिवार में मौजुद होती है | जिसके चलते इस देश के मुलनिवासी पुरुषो के साथ रह रही एक भी महिला को आजतक प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति नही बनाया गया है | और जो विदेशी मुल की महिला है वह तो इस देश का शासक कभी बन ही नही सकती | जैसे की वर्तमान में कांग्रेस की सोनिया गाँधी जिसे विदेशी मुल की महिला कहकर प्रधानमंत्री बनने नही दिया गया था , भले 1947 ई० से लेकर अबतक दो चार को छोड़ दिया जाय तो सारे प्रधानंत्री और राष्ट्रपति बल्कि जजो का प्रमुख भी विदेशी मुल के पुरुष बनते आए हैं | क्योंकि विदेशी मुल के पुरुषो का इस देश में आरती उतारकर पुजा तक होती है , उनका सत्ताधारी बनना तो मुश्किल नही है | जैसे कि गोरो से अजादी मिलने के बाद यूरेशिया से आए विदेशी मुल के कथित उच्च जाति के पुरुषो को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनने में दिक्कत नही हुई | बल्कि इन विदेशी मुल के पुरुषो से परिवार बसाने वाली महिलाओ को भी इस देश का शासक बनने में ज्यादे दिक्कत नही होती है यदि वह विदेशी मुल की महिला नही है | जैसे की इंदिरा गाँधी जिसके अंदर चूँकि एम डीएनए और इस देश की मुलनिवासी महिलाओ का एम डीएनए एक है इसलिए उसे प्रधानमंत्री बनने में दिक्कत नही हुई | पर उसी परिवार में मौजुद सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री बनने नही दिया गया क्योंकि वह विदेशी मुल की महिला है | जो यदि आज भी भारी बहुमत से चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनना चाहे तो नही बन सकती क्योंकि वह विदेशी मुल की महिला है | हाँ वह जिस परिवार की बहु है उस परिवार के पुरुषो के अंदर भी भले विदेशी डीएनए दौड़ रहा है , पर उन्हे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनने में दिक्कत नही होगी | मेरे विचार से तो दुनियाँ के किसी भी देश में न तो विदेशी मुल के पुरुषो को सत्ताधारी होना चाहिए , और न ही किसी विदेशी मुल की महिला को | क्योंकि किसी भी देश का मुल मालिक उस देश का मुलनिवासी होता है , न की विदेशी मुल के लोग होते हैं | अगर होते तो कोई भी नागरिक किसी देश का मुलनिवासी नही कहलाता | इसलिए विदेशी मुल के लोगो को सत्ताधारी नही बनना चाहिए | जो नियम कानून यदि देश या विश्वस्तर के अदालतो में भी पहले से ही मौजुद है , तो फिर तो आश्चर्य होता है कि इंसान का बुद्धी आज मंगल तक पहुँच गया है , पर फिर भी आजतक इस देश में विदेशी मुल के उन मनुवादीयों का शासन चल रहा है , जो की यूरेशिया से आए थे , जो सत्य डीएनए प्रमाणित भी हो चुका है , और खुद मनुवादी भी मानते हैं कि उनका जन्म इस देश के मुलनिवासियों के बाप दादाओ अथवा शोषित पिड़ितो के उन पुर्वजो से नही हुआ है जिन्हे वे असुर दानव कहते हैं | बल्कि उनका जन्म उन विलुप्त देवो से हुआ है जिनके निर्जिव मुर्तियों की पुजारी बनने का उन्हे जन्म से आरक्षण प्राप्त है | 

राम मंदिर में किनके पुर्वजो की पूजा होगी जिन्हे शुद्र कहा गया है उनके पुर्वजो की या फिर जिन्हे ब्रह्मण , क्षत्रिय , वैश्य कहा गया है उनके पुर्वजो की ?

राम मंदिर में किनके पुर्वजो की पूजा होगी जिन्हे शुद्र कहा गया है उनके पुर्वजो की या फिर जिन्हे ब्रह्मण , क्षत्रिय , वैश्य कहा गया है उनके पुर्वजो की ?
पुरी दुनियाँ जानती है कि राम इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वज नही है | फिर भी आखिर इस देश के मुलनिवासियों जिन्हे देव को अपना पुर्वज मानने वालो ने शुद्र निच घोषित करके हजारो सालो से छुवा छुत भेदभाव शोषण अत्याचार किया हैं , क्यों उन्हे भी राम से जोड़ा जाता है ? जबकि राम ने भी अपने रामराज में जिन्हे शुद्र निच कहा गया है , उस शंभुक की हत्या सिर्फ इसलिए कर दिया था , क्योंकि शंभुक ने शुद्र के लिये वेद ज्ञान मना रहने के बावजुद भी वेद ज्ञान ले लिया था | आखिर ये मनुवादी अपनी बेशर्मी त्यागकर कब इस बात पर शर्म करेंगे कि जिनके साथ वे भेदभाव शोषण अत्याचार हजारो सालो से करते आ रहे हैं , उन्हे भी अब अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये जिन्हे वे शुद्र निच मानते हैं , उन्हे देव पुजक बताकर भी आजतक बेशर्म होकर भेदभाव शोषण अत्याचार क्यों करते रहते हैं | जिसे समझनी हो तो कोई भी अपने मन में एक सवाल करके पता कर सकता है कि मनुवादी जिस तरह खुदको देवो का वंशज मानते हैं , उसी तरह क्या वे उनको भी देवो का वंशज मानते हैं , जिन्हे वे शुद्र निच कहते हैं ? बिल्कुल नही ! क्योंकि मनुवादी जिन्हे शुद्र निच घोषित करके हजारो सालो से उनके साथ छुवा छुत भेदभाव शोषण अत्याचार करते आ रहे हैं उनके पूर्वजो को वे दानव असुर राक्षस कहते हैं | बल्कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों में आज भी बहुत सारे लोग मिल जायेंगे जिन्हे असुर कहा जाता है | जिन असुर दानव राक्षस की कोई बड़ी मंदिर बनाने और उन्हे भी भगवान मानकर मूर्ति स्थापित करके उनकी आरती उतारने के लिये राजि होंगे क्या मनुवादी ? जाहिर है मनुवादी अपने आपको भी इसी देश का मुलनिवासि कहलवाने के लिए यदि गलती से मानेंगे भी तो जिन्हे शुद्र निच कहा जाता है , वे सब एक हैं यह बात DNA से गलत साबित हो जायेगा | बल्कि गलत साबित हो चुका है कि जिन्हे शुद्र निच कहकर मनुवादी हजारो सालो से छुवा छुत भेदभाव शोषण अत्याचार करते आ रहे हैं , वे इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासी हैं , न कि यूरेशिया से आए यहूदि DNA के मनुवादी इस देश के मुलनिवासी हैं | क्योंकि साबित भी हो चुका है कि इस देश के मुलनिवासियों के DNA से मनुवादीयों का DNA नही मिलता है | क्योंकि मनुवादी यूरेशिया से आए कबिलई हैं | और जिन्हे मनुवादीयों ने शुद्र निच कहा है वे इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासी कृषक हैं | बल्कि मनुवादीयों का DNA कबिलई यहूदियो का DNA से मिलता है जो की स्वभाविक है | क्योंकि मुलता दोनो कबिलई हैं | फिर क्यों मनुवादी खुदको हिन्दु कहते हैं ? जबकि बहुत से मनुवादीयों को भी पता है कि हिन्दू शब्द उस सिन्धु से जुड़ा हुआ है जो सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति से जुड़ा हुआ है | जबकि मनुवादीयों के अंदर कबिलई यहूदियो का DNA मौजुद है ! जिसके बावजुद भी अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये मनुवादी अपने मरे हुए पुर्वज देवो को हिन्दु भगवान और खुदको हिन्दु बताकर अपने पुर्वज देवो की पुजा छल कपट और ब्रेनवाश करके इस देश के मुलनिवासियों से भी करा रहे हैं जो उनके वंशज नही हैं ? जबकि मनुवादीयों को अपने पुर्वजो की पुजा सिर्फ खुद करनी चाहिए न कि दुसरो को भी करानी चाहिए | क्योंकि पुरे विश्व में बहुत से लोग अपने पुर्वजो की पुजा सिर्फ खुद करते हैं न कि दुसरो को भी यह कहकर करने को कहते हैं कि तुम भी हमारे पुर्वजो की पुजा करो लाभ होगा | भारत में भी बहुत से मुलनिवासी खासकर आदिवासी अपने पुर्वजो की पुजा करते हैं , तो क्या मनुवादी भी आदिवासियों के साथ मिलकर आदिवासियों की पुर्वजो को भी अपनी बाप दादा मानकर उनकी पुजा उसी तरह करेंगे जैसे की वे अपने मरे हुए पुर्वज देवो की पुजा उनसे भी करा रहे हैं जिन्हे शुद्र निच कहकर हजारो सालो से वे छुवा छुत भेदभाव शोषण अत्याचार करते आ रहे हैं ? हलांकि मनुवादी अपने पुर्वज देवो की पुजा इस देश के मुलनिवासियों से करा रहे हैं इससे ज्यादे आश्चर्य नही होनी चाहिए जितना की हमे इस बात पर आश्चर्य होनी चाहिए कि जो कबिलई मनुवादी हजारो सालो से छुवा छुत भेदभाव शोषण अत्याचार करते आये हैं , उनकी पूजा करने के लिये भी कुछ लोग इतने भुखे हैं कि मनुवादीयों की बातो में आकर अपने ही मुलनिवासी परिवार का विनाश करने में लगे हुए हैं | जैसे कि मनुवादीयों की पार्टी से चुनाव लड़कर और समर्थन देकर मनुवादी सरकार बनाकर गोरो के जाने से लेकर अबतक अपने ही मुलनिवासी परिवार का विनाश करा रहे हैं | हलांकि ऐसे लोग इतने ब्रेनवाश किये हुए रहते हैं कि मानो वे भुल चुके हैं कि मनुवादी राज चल रहा है , जिससे इस देश के मुलनिवासियों को अजाद होना है |

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...