प्रचार

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

The chains of slavery

 The chains of slavery


The chains of slavery



The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slavery that have bound this country for thousands of years by the Manuists. Because such people are blinded by the Manuists due to excessive infection, they cannot see the humiliation of this country being enslaved by the Manuists, who have been occupying the four main pillars of democracy by considering themselves superior by birth, and who have been insulting it. Those people who spend millions of rupees to go to America and see a dignified and free America, and who see complete freedom and dignity in the 5 kg of government ration in the country, and not the slavery. Can such blind people not see the slavery of this country, who never discuss why the Manuists have kept this country in chains of slavery till now? When will the humanity to give freedom come in those people like the whites, accepting that enslaving a country and calling its indigenous people Shudras and occupying the power and occupying the four main pillars of democracy and maintaining slavery is a very big sin and evil deed for humanity and the environment as well. Accepting this sinful and evil deed, when will the Manuists be able to think of giving freedom to this country and handing over the power of this country to the indigenous people of this country?
People who have spent millions of rupees to go to America, who have been brought in chains from that country, are being sent back by the American government to the same country. They consider America as their first choice for a better life and spend millions of rupees to live illegally according to American law. They do not consider the country from which they went to America as their first choice, even after spending millions of rupees. Because of this, they are ready to live illegally in America even after spending millions of rupees. It is being said that most of the people who are illegally residing in America and who are brought in chains in this country are from the western states like Gujarat and Punjab. If these things are true, then it is also true that since the tribal looters who enslaved this country entered from the west, naturally the western states have been more infected by the enslavers. Due to this, obviously, such a bad effect of slavery has fallen in the west that people in the western states, wherever the influence of the enslavers has been greater, are so much afflicted by the slavery mentality that they go to other countries even after spending millions of rupees to find their most পছন্দ life. Because this agricultural country is still enslaved by the tribal people of foreign origin, in which the Manuist tribe is the first enslaver tribe, whose rule has been restored after the independence from the whites. Which slavery has been there for thousands of years by the Manuists, but since the power of this country was snatched from the hands of the Manuists by the other tribal looters of foreign origin, when this country was enslaved by the whites and their rule was established, the Manuist Bal Gangadhar Tilak, while saying that freedom is my birthright, introduced his Manuist perverted wisdom to re-establish his Manuist rule, as the Manuists themselves, by calling themselves born high caste Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas, have been saying till now that their eternal existence in the power of this country is their birthright. Due to which the Manuist Tilak also said about the indigenous people of this country that what will these people do in the parliament? Which clearly meant that only the Manuists can become the ruler of this country. वैसे तो in the rule of Manuists, whether it is the parliament or any major pillar of democracy, the occupation of this country by the indigenous people is like being enslaved under the rule of the whites. And the Manuists who have kept this country in the chains of slavery for thousands of years, why have they not freed this country till now and called the indigenous people of this country Shudras and low castes, who have been occupying the four major pillars of democracy and still keeping this country in the chains of slavery, those indigenous MPs who do not discuss this in the parliament or all those people who consider this country free from the Manuists and sit in high positions and oppose the insults sent by America in chains to bake their political bread or feel insulted, but never discuss against the slavery of the Manuists that when will these Manuists free this country from the chains of slavery? When will this country get freedom from the Manuists after getting freedom from the whites? Those indigenous MPs who never discuss this or those indigenous people sitting in the special major pillars of democracy who enjoy the wealth, luxury and facilities of the country like the Manuists in the Manuist rule, never even discuss about the country being enslaved by the Manuists. Whom I consider as special partners in keeping this country enslaved by the Manuists. Who, like the Manuists in the Manuist rule, while sitting in the power of this country as MPs, ministers and high officials, enjoy the luxury and facilities of wealth and say that this country has become independent. Which independence is actually fake, whenever the real independence will be found, then the people who consider this country independent and consider the rule of the Manuists as the rule of a free country after the independence from the white slavery, will be able to see the complete freedom and know what is called complete freedom and what is the dignity of freedom?


हिंदी अनुवाद : गुलामी की जंजीरें

अमेरिका द्वारा जंजीरों में जकड़कर भेजे गए लोगों की दुर्दशा तो दिखती है, लेकिन उन गुलामी की जंजीरों की नहीं जो इस देश को हजारों सालों से मनुवादियों ने बांध रखा है। क्योंकि ऐसे लोग मनुवादियों द्वारा अति संक्रमण के कारण अंधे बने हुए हैं, वे इस देश के अपमान को नहीं देख सकते जो मनुवादियों द्वारा गुलाम बनाया गया है, जो जन्म से खुद को उच्च मानकर लोकतंत्र के चारों मुख्य स्तंभों पर कब्जा जमाए हुए हैं, और उसका अपमान कर रहे हैं। वे लोग जो लाखों रुपये खर्च करके अमेरिका जाकर एक गरिमापूर्ण और स्वतंत्र अमेरिका देखते हैं, और जो देश में 5 किलो सरकारी राशन में पूरी आज़ादी और सम्मान देखते हैं, गुलामी नहीं देखते। क्या ऐसे अंधे लोग इस देश की गुलामी नहीं देख सकते, जो कभी इस बात पर चर्चा नहीं करते कि मनुवादियों ने इस देश को अब तक गुलामी की जंजीरों में क्यों जकड़ रखा है? उन लोगों में गोरों की तरह आज़ादी देने की इंसानियत कब आएगी, यह स्वीकार करते हुए कि किसी देश को गुलाम बनाना और उसके मूल निवासियों को शूद्र कहना और सत्ता पर कब्जा करना और लोकतंत्र के चारों मुख्य स्तंभों पर कब्जा जमाकर गुलामी को कायम रखना मानवता और पर्यावरण के लिए भी बहुत बड़ा पाप और कुकर्म है। इस पाप और कुकर्म को स्वीकार करते हुए, मनुवादी कब इस देश को आज़ाद करने और इस देश की सत्ता इस देश के मूल निवासियों को सौंपने के बारे में सोचने के काबिल हो पाएंगे? जिन लोगों ने लाखों रुपये खर्च करके अमेरिका जाने के लिए, जिन्हें जंजीरों में जकड़कर उस देश से लाया गया है, उन्हें अमेरिकी सरकार उसी देश में वापस भेज रही है। वे अमेरिका को बेहतर जीवन के लिए अपनी पहली पसंद मानते हैं और अमेरिकी कानून के अनुसार अवैध रूप से रहने के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं। वे उस देश को अपनी पहली पसंद नहीं मानते जहाँ से वे अमेरिका गए थे, भले ही उन्होंने लाखों रुपये खर्च किए हों। इसी वजह से वे अमेरिका में लाखों रुपये खर्च करके भी अवैध रूप से रहने के लिए तैयार रहते हैं। यह कहा जा रहा है कि अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे और जंजीरों में जकड़कर लाए गए ज्यादातर लोग पश्चिमी राज्यों जैसे गुजरात और पंजाब आदि के हैं। यदि ये बातें सत्य हैं, तो यह भी सत्य है कि चूंकि इस देश को गुलाम बनाने वाले कबिलाई लुटेरे पश्चिम से ही प्रवेश करके इस देश को गुलाम बनाए हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से पश्चिमी राज्य गुलाम बनाने वालों से अधिक संक्रमित हुए हैं। इसके चलते, जाहिर है, पश्चिम में गुलामी का इतना बुरा प्रभाव पड़ा है कि पश्चिमी राज्यों में, जहाँ-जहाँ गुलाम बनाने वालों का प्रभाव अधिक पड़ा है, वहाँ के लोग गुलामी मानसिकता से इतने अधिक पीड़ित हैं कि वे लाखों रुपये खर्च करके दूसरे देशों में जाकर अपनी सबसे पसंदीदा जीवन की तलाश में जाते रहे हैं। क्योंकि यह कृषि प्रधान देश अभी भी विदेशी मूल के कबिलाई से गुलाम है, जिसमें मनुवादी कबीला सबसे पहला गुलाम बनाने वाला कबीला है, जिसका शासन गोरों से आजादी मिलने के बाद वापस कायम हो गया है। जो गुलामी वैसे तो हजारों सालों से मनुवादियों द्वारा रही है, पर चूंकि मनुवादियों के हाथों से इस देश की सत्ता विदेशी मूल के दूसरे कबिलाई लुटेरों ने छीन ली थी, जिसके चलते गोरों द्वारा जब यह देश गुलाम होकर उनकी सत्ता कायम थी, तो मनुवादी बाल गंगाधर तिलक ने यह कहते हुए अपनी मनुवादी सत्ता फिर से कायम करने के लिए अपनी मनुवादी विकृत बुद्धि का परिचय दिया था कि "आजादी मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है", जैसे कि मनुवादी खुद को जन्म से उच्च ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य कहकर अब तक यह कहते आ रहे हैं कि इस देश की सत्ता में उनका हमेशा कायम रहना जन्मसिद्ध अधिकार है। जिसके चलते मनुवादी तिलक ने इस देश के मूल निवासियों के बारे में यह भी कहा था कि ये लोग संसद में जाकर क्या हल चलाएंगे? जिसका मतलब साफ था कि मनुवादी ही सिर्फ इस देश का शासक बन सकता है। वैसे तो मनुवादियों के शासन में संसद हो या फिर लोकतंत्र का कोई भी प्रमुख स्तंभ, वहाँ पर इस देश के मूल निवासियों द्वारा काबिज रहना गोरों के शासन में गुलाम बनकर काबिज रहने जैसा ही है। और इस देश को गुलामी की जंजीरों में हजारों सालों से जकड़कर जिन मनुवादियों ने रखा है, उससे आजादी मनुवादी किस लिए अब तक आजाद न करके इस देश के मूल निवासियों को शूद्र, नीच कहकर जो लोकतंत्र के चारों प्रमुख स्तंभों में कब्जा करके आज भी इस देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, उसके बारे में चर्चा संसद में न करने वाले मूलनिवासी सांसद हों या फिर वे तमाम लोग हों जो कि इस देश को मनुवादियों से आजाद मानकर उच्च पदों में बैठकर अमेरिका द्वारा जंजीरों में जकड़कर भेजे गए अपमानों पर तो अपनी राजनीति की रोटी सेंकने के लिए या फिर अपमानित महसूस करके विरोध करते हैं, पर मनुवादियों की गुलामी के खिलाफ कभी चर्चा नहीं करते कि ये मनुवादी इस देश को गुलामी की जंजीरों से आखिर कब आजाद करेंगे? गोरों से तो आजादी मिल गई है, पर मनुवादियों से आजादी कब मिलेगी इस देश को? जिसके बारे में कभी चर्चा न करने वाले मूलनिवासी सांसद हों या फिर लोकतंत्र के खास प्रमुख स्तंभों में बैठे मूलनिवासी जो कि मनुवादी शासन में मनुवादियों की तरह ही देश के धन से अमीरी, सुख, सुविधाओं का लाभ लेते हुए मनुवादियों द्वारा देश गुलाम होने को लेकर कभी चर्चा भी नहीं करते हैं। जिन्हें मैं मनुवादियों द्वारा इस देश को गुलाम बनाए रखने में खास सहयोगी मानता हूँ। जो कि मनुवादी शासन में मनुवादियों की तरह ही इस देश की सत्ता में बैठकर सांसद, मंत्री और उच्च अधिकारी बनकर अमीरी, सुख, सुविधाओं का लाभ लेते हुए यह कहते आ रहे हैं कि यह देश आजाद हो गया है। जो आजादी दरअसल नकली है, जिस दिन भी असली आजादी मिलेगी, उस दिन जो लोग इस देश को आजाद मानकर मनुवादियों के शासन को गोरों की गुलामी से आजादी के बाद आजाद देश का शासन मानते हैं, उनको सत्य बुद्धि साक्षात पूरी आजादी देखकर पता चल जाएगा कि पूरी आजादी किसे कहते हैं और आजादी का मान सम्मान क्या होता है?



बुधवार, 22 जनवरी 2025

गोरो की गुलामी में भी दलित अंबेडकर ने देश विदेश में उच्च शिक्षा की कई डिग्री प्राप्त किया था

गोरो की गुलामी में भी दलित अंबेडकर ने देश विदेश में उच्च शिक्षा की कई डिग्री प्राप्त किया था 

गलाम भारत में




रतन लाल को क्या अंबेडकर से ज्यादे उच्च शिक्षा लेने का मौका मिला है, जो अपने भाषण में यह साबित करने की कोशिष कर रहा है कि गोरो से यह देश आजाद होने के बाद कांग्रेस सत्ता में सब मुलनिवासि अब देश विदेश में उच्च शिक्षा लेते हुए पढ़ लिख रहा हैं। जबकि मुल रुप से कांग्रेस सत्ता से ही दरसल मनुवादियों का गुलाम रामराज कायम हो गया है। जिस गुलाम रामराज में जो भी मुलनिवासि पढ़ लिख रहा है सब कांग्रेस अथवा मनुवादियों की देन नही बल्कि स्कूल कॉलेज वगैरा की देन है, जो की गोरो की गुलामी के समय में भी मौजुद थे। जिसे कांग्रेस की देन साबित करने की कोशिष करते हुए रतनलाल चमचा चमचा जो रटा मार रहा है, असल में वह खुद कांग्रेस का चमचा बनकर जीवन जिने का उस रास्ता को अपना लिया है, जिसे जब यह देश मनुवादियों से पुरी तरह से आजाद होगा तो ऐसे चमचो को जो चाहे कांग्रेस का दामन थामकर चमचई कर रहे हो या फिर भाजपा का दामन थामकर चमचई कर रहे हो, उन सबका इतिहास घर का भेदियों के रुप में भी दर्ज होगा। क्योंकि सच्चाई यह है कि गोरो से आजादी मिलने के बाद यह देश मनुवादियों द्वारा फिर से गुलाम हो गया है, जिस गुलाम शासन कायम करने में जो भी मुलनिवासि गुलाम करने वाले मनुवादियों का साथ देगा अपडेट गुलाम रामराज कायम करने में उसका नाम घर के भेदि के रुप में दर्ज होगा। और जिसे यकिन नही है कि यह देश मनुवादियों से फिर गुलाम हो गया है, वह निचे मौजुद लोकसभा पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा की रिपोर्ट 2000 देख पढ़कर गुलामी के बारे में साक्षात जानकारी प्राप्त कर ले,जो जानकारी वैसे तो रतनलाल को पहले से ही अच्छी तरह से मालुम होगा ही, तो भी वह कांग्रेस का दामन थामकर चमचा चमचा कैसे कर रहा है यह जानते हुए की चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनो ही मनुवादियों की पार्टी है।

(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC  के 35 जज ,SC  के 15 जज ,ST  के 5 जज शामिल हैं!जिसे जानकर कौन से मुलनिवासी को यह यकिन नही होगा कि यह देश मनुवादियों से फिर गुलाम हो गया है! 

Rss प्रमुख मोहन भागवत के लिए रामराज आजादी है


Rss प्रमुख मोहन भागवत के लिए रामराज आजादी है

Rss

Rss प्रमुख मोहन भागवत के लिए रामराज आजादी है तो इस देश के शंभुक मुलनिवासियों के लिए रामराज गुलामी है जो की 1947 ई. में ही अपडेट गुलाम रामराज कायम हो गया है। क्योंकि इस देश की सत्ता विदेशी मुल के गोरे अंग्रेजो के  हाथो से जाने के बाद विदेशी मुल के मनुवादियों के हाथो वापस आ गया है। इस देश के साथ साथ अंबेडकर द्वारा लिखा गया भारत का संविधान भी मनुवादियों के कब्जे में है। बल्कि इस देश का हिंदू धर्म और हिंदू धर्म ग्रंथ भी मनुवादियों के कब्जे में है। मनुवादि हिंदू नही है बल्कि हिंदू नकाब लगाये हुए है। और न ही राम हिंदू भगवान है। बल्कि राम तो इस देश के मुलनिवासियो को गुलाम करने वाला वह मनुवादि राजा था जो की खुदको भगवान कहकर अपनी पूजा कराता था, जिसे अपना आदर्श और पूर्वज ये मनुवादि मानते हैं। जो मनुवादि इतने विकृत मांशिकता के हैं कि वे आजाद भारत का संविधान का भी शपथ लेकर इस देश में अपडेट गुलाम रामराज कायम किए हुए हैं। संविधान क्या गुलाम करना और उच्च निच जाति भेदभाव करने के लिए बतलाया है? क्या जो कि खुदको जन्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य उच्च जाति आज भी भेदभाव करते हैं इस देश के मुलनिवासियों को निच जाति कहकर, जबकि हिंदू धर्म में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र यह सब वर्ण व्यवस्था है जो कि जन्म पर नही बल्कि कर्म पर आधारित है, जैसे कि न्यायपालिका विधायिका कार्यपालिका कर्म पर आधारित है। जिसमे अपने कर्म अथवा हुनर के आधार पर चयन करने की प्रक्रिया है न की जन्म पर, जो जिस तरह जाति नही है उसी तरह ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र भी कोई जाति नही बल्कि कर्म पर आधारित वर्ण है। जाति तो हम इंसानो की इंसान ही जाती है जैसे की हाथी गाय कुत्ता बिल्ली वगैरा जाति है जो कि एक जाति दुसरे जाति से संभोग करके बच्चा पैदा नही कर सकता जैसे की गाय और शेर के संभोग से बच्चा पैदा नही हो सकता। और न ही कोई इंसान जाति खुदको शेर कहकर शेरनी से संभोग करके बच्चा पैदा करा सकता है। उसी तरह कोई भी जाति का प्राणी दुसरे जाति के प्राणी से संभोग करके बच्चा पैदा नही कर सकता है, क्योंकि यह अप्रकृति है जिसे हिंदू धर्म में अधर्म कहा जाता है। क्योंकि हिंदू धर्म में विज्ञान प्रमाणित सत्य साक्षात प्रकृति की पूजा भगवान की पूजा है न कि हिंदू भगवान पूजा किसी अप्रकृति की पूजा है। अप्रकृति की पूजा हिंदू धर्म में अधर्म है, जिसका होना मतलब धर्म का खतरे में पड़ना है, जैसे की यदि यदि गाय से इंसान पैदा हो जाएगा तो धर्म खतरे में पड़ जाएगा अथवा अप्रकृति अधर्म हो जाएगा, जो  होने पर हिंदू धर्म में यह कहा गया है कि जब जब धर्म को खतरा होगा तो भगवान अथवा प्रकृति अवतरित होकर अधर्म का विनास करके धर्म को वापस स्थापित करता है। जिसे इस उदाहरन से समझा जा सकता है कि यदि कोई शासक जिसका कार्य प्रजा की सेवा सुरक्षा देश की सुरक्षा करना होता है जो कि यदि वह न करके प्रजा और देश को गुलाम करता है तो यह धर्म को खतरा होकर भगवान अवतरित होकर अथवा प्रकृति गुलामी का विनास करके आजादी लाता है जैसे की गोरो ने जब गुलाम करने जैसा अधर्म किया तो उसका विनास होकर गोरो से आजादी कायम हुआ उसी तरह मनुवादि भी अपडेट गुलाम रामराज जैसे अधर्म कर रहा है तो उस गुलामी का विनास होकर धर्म की स्थापना पापस कायम होगी अथवा आजादी कायम होगी यहा असली धर्म है। जिसे हिंदू धर्म में करमा धरमा अथवा कर्मा धर्मा अथवा कर्म ही धर्म है कहा जाता है। जो ज्ञान कोई नही बांटेगा इस समय की कलयुग गुलामी में जो कि वही बांटेगा जिसे प्रकृति भगवान इस प्रकृति प्रमाणित सत्य को बांटने भेजा है। 

बुधवार, 15 जनवरी 2025

ek bhee pradhaanamantree dalit kyon nahee?

 

एक भी प्रधानमंत्री दलित क्यों नही? 

एक भी प्रधानमंत्री दलित क्यों नही? 




दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर रतन लाल का एक भाषण देख रहा था जिसमे वह दलितो को लेकर कह रहा था कि

" आप इमोशनल ब्लैकमेल करते हो, और इमोशनल ब्लैकमेल होते हो, मेरा भाई भी अगर बीजेपी में... जब तक आप शत्रु को नहीं पहचानओगे तब तक क्लेरिटी नहीं होगी, मेरा भाई भी इलेक्शन में खड़ा होगा 1 लख खर्चा करके मैं उसके खिलाफ प्रचार करने जाऊंगा, दलितों का कभी स्वर्ण युग नहीं रहा है, पहले क्लियरइटी रखिए, आप लोग आधा से ज्यादा अभी एमएलए एमपी बनने के चक्कर में हो तो... हमारे दलितो में पॉलिटिक्स चेतना इतना ज्यादा हो गया है की अब सबको सबको सीएम पीएम इस समय जो की हिंदू नेस्टलिस्ट ने हमला किया है, इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन पर रिपब्लिक पे उस समय अगर दलित लोग कह रहा है की हम सीएम बनएंगे हम यह कर देंगे वह कर देंगे इसका मतलब ओ आर एस एस बीजेपी के साथ है, वोट काट रहा है। अभी पूरा पार्टी का पार्टी खरीद ले रहा है, एक दलित को फेकड़ो 100 करोड़ रूपया दे देगा तो एक दलित को 100 करोड़ रूपया दे देगा तो पागल हो जाएगा वह, एक दलित एमपी मिनिस्टर को 100 करोड़ दे देगा तो वह पागल हो जाएगा,.. एजेंडा सबसे इंपोर्टेंट है, 1000 इशू लेकर लड़ोगे कभी नहीं जीतोगे, दीवार पर अगर सुराग करना होगा ना तो एक जगह ड्रिल मशीन रखना होता है, हम लोग कोई एजेंडा सेट नहीं कर रहे हैं,.. अगर मोदी जी यह कह रहा है कि 70 साल में क्या हुआ कुछ नहीं हुआ, अगर आप भी आप बात कर रहे हैं तो आपकी यह भाषा और संघ परिवार की भाषा एक से है, हम इतना महंगा स्वेटर स्वेटर पहनते हैं, देखो मेरा जैकेट भी मांगा है, मेरे दादा दादी तो मजदूर थे, तो एक ही दो जनरेशन में हमको फ्री शिक्षा मिला स्कॉलरशिप नौकरियां मिली, अब मिल रहा है क्या?.. हमारे लिए तो फ्री का एजुकेशन था, तीन-तीन नौकरियां मिलती थी, जाकर एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज मैं नाम लिखा हो तो 20 दिन में आ जाता था चिट्ठी, तो अगर आपकी भाषा से उसकी भाषा से मेल खाती है तो इसका मतलब है आपका पॉलिटिकल डीएनए में प्रॉब्लम है, बाबा साहब तो 1956 में ही परिनिर्वाण हो गए थे, तो अगर पब्लिक सेक्टर में स्कूल कॉलेज नहीं होती तो आप पढ़ते कहाँ पर पहले यह बताइए.. "

जिसे सुनकर मैं अपना विचार अपने एक कोमेंट में लिखा कि" रतन लाल को क्या अंबेडकर से ज्यादे उच्च शिक्षा लेने का मौका मिला है, जो अपने भाषण में यह साबित करने की कोशिष कर रहा है कि गोरो से यह देश आजाद होने के बाद कांग्रेस सत्ता में सब मुलनिवासि अब देश विदेश में उच्च शिक्षा लेते हुए पढ़ लिख रहा हैं। जबकि मुल रुप से कांग्रेस सत्ता से ही दरसल मनुवादियों का गुलाम रामराज कायम हो गया है। जिस गुलाम रामराज में जो भी मुलनिवासि पढ़ लिख रहा है सब कांग्रेस अथवा मनुवादियों की देन नही बल्कि स्कूल कॉलेज वगैरा की देन है, जो की गोरो की गुलामी के समय में भी मौजुद थे। जिसे कांग्रेस की देन साबित करने की कोशिष करते हुए रतनलाल चमचा चमचा जो रटा मार रहा है, असल में वह खुद कांग्रेस का चमचा बनकर जीवन जिने का उस रास्ता को अपना लिया है, जिसे जब यह देश मनुवादियों से पुरी तरह से आजाद होगा तो ऐसे चमचो को जो चाहे कांग्रेस का दामन थामकर चमचई कर रहे हो या फिर भाजपा का दामन थामकर चमचई कर रहे हो, उन सबका इतिहास घर का भेदियों के रुप में भी दर्ज होगा। क्योंकि सच्चाई यह है कि गोरो से आजादी मिलने के बाद यह देश मनुवादियों द्वारा फिर से गुलाम हो गया है, जिस गुलाम शासन कायम करने में जो भी मुलनिवासि गुलाम करने वाले मनुवादियों का साथ देगा अपडेट गुलाम रामराज कायम करने में उसका नाम घर के भेदि के रुप में दर्ज होगा। और जिसे यकिन नही है कि यह देश मनुवादियों से फिर गुलाम हो गया है, वह निचे मौजुद लोकसभा पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा की रिपोर्ट 2000 देख पढ़कर गुलामी के बारे में साक्षात जानकारी प्राप्त कर ले,जो जानकारी वैसे तो रतनलाल को पहले से ही अच्छी तरह से मालुम होगा ही, तो भी वह कांग्रेस का दामन थामकर चमचा चमचा कैसे कर रहा है यह जानते हुए की चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनो ही मनुवादियों की पार्टी है।
(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC  के 35 जज ,SC  के 15 जज ,ST  के 5 जज शामिल हैं!जिसे जानकर कौन से मुलनिवासी को यह यकिन नही होगा कि यह देश मनुवादियों से फिर गुलाम हो गया है! 

apane sujhaav, shikaayat ya raay hamaare saath sheyar karen

 


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googlai aisa sistam aur takanik ka upayog kare ki koee bhee vyaktee apana blogar saeet ka khaata khole to use gugal sarch konshul aur saeet maip taiyaar karane kee jarurat hee na pad aur yah sab apane aap hee pura saeet gugal mein raiking karane ke lie taiyaar ho jaay naki koee ek hajaar bhee post likha to bhee usaka saeet gugal mein raiking nahee kar raha hai kyonki usane saeet maip taiyaar nahee kiya hai aur usaka post gugal ke paas ja to raha hai par vah paathako ke paas nahee ja raha hai, kyonki gapagal use pahooncha hee nahee raha hai.

मेरा सुझाव:- Google ऐसा सिस्टम और तकनिक का उपयोग करे कि कोई भी व्यक्ती अपना ब्लोगर साईट का खाता खोले तो उसे गुगल सर्च कोंशुल और साईट मैप तैयार करने की जरुरत ही न पड़् और यह सब अपने आप ही पुरा साईट गुगल में रैकिंग करने के लिए तैयार हो जाय नकि कोई एक हजार भी पोस्ट लि़खा तो भी उसका साईट गुगल में रैकिंग नही कर रहा है क्योंकि उसने साईट मैप तैयार नही किया है और उसका पोस्ट गुगल के पास जा तो रहा है पर वह पाठको के पास नही जा रहा है, क्योंकि गपगल उसे पहूँचा ही नही रहा है।

Google should use such a system and technology that if any person opens his blogger site account then he need not prepare Google Search Console and site map and all this happens automatically and the entire site gets ready for ranking in Google and not that even if someone writes a thousand posts his site is not ranking in Google because he has not prepared a site map and his post is going to Google but it is not reaching the readers because Google is not reaching it.

angad kee maan taara kisakee patnee thee

 

अंगद की माँ तारा किसकी पत्नी थी



मेरा सवाल :- 

Gemini का जवाब :- अंगद की माँ तारा बाली की पत्नी थीं। बाली किष्किंधा के राजा थे और रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र हैं।
कुछ अतिरिक्त जानकारी:
* तारा एक अप्सरा थीं और कई किंवदंतियों में उनका उल्लेख मिलता है।
* अंगद एक शक्तिशाली वानर योद्धा थे और उन्होंने राम के साथ मिलकर रावण का वध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
यदि आपके मन में और कोई प्रश्न हैं तो बेझिझक पूछ सकते हैं।

तारा जब बालि की पत्नी थी तो सुग्रीव अपने भाई की पत्नी को प्राप्त करने के लिए जो राम से समझौता करके बालि की हत्या किया वह क्या सही था

तारा जब बालि की पत्नी थी तो सुग्रीव द्वारा राम से समझौता करके बालि की हत्या करना एक जटिल नैतिक प्रश्न है जिसका उत्तर देने के लिए कई पहलुओं पर विचार करना होगा।
सुग्रीव के पक्ष में तर्क:
* स्वयं की रक्षा: बालि ने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया था और उसकी हत्या करने की धमकी दी थी। स्वयं को बचाने के लिए सुग्रीव को यह कदम उठाना पड़ा।
* राम से वचन: सुग्रीव ने राम से वचन लिया था कि वह रावण को मारने में उसकी मदद करेंगे। बदले में राम ने सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य वापस दिलाने का वचन दिया था।
* न्याय: सुग्रीव का मानना था कि बालि ने उसके साथ अन्याय किया है और उसे न्याय मिलना चाहिए।
बालि के पक्ष में तर्क:
* भाई के प्रति विश्वासघात: सुग्रीव ने अपने ही भाई की हत्या की, जो एक गंभीर अपराध है।
* छल: सुग्रीव ने राम के साथ मिलकर बालि को छल से मारा, जो धोखे का काम है।
* अधिकार: बालि किष्किंधा का राजा था और उसे राज्य पर शासन करने का अधिकार था।
अन्य पहलू:
* राम की भूमिका: राम ने सुग्रीव की मदद की लेकिन बालि की हत्या में उनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण थी।
* धर्म और नैतिकता: इस घटना को धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है।
* समाज: उस समय के समाज में इस तरह के व्यवहार को कैसे देखा जाता था, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
निष्कर्ष:
सुग्रीव द्वारा बालि की हत्या करना एक जटिल घटना है जिसका कोई आसान उत्तर नहीं है। इस घटना को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है और हर दृष्टिकोण के अपने तर्क हैं।
यह कहना मुश्किल है कि सुग्रीव का काम सही था या गलत। यह प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह इस घटना को किस नजरिए से देखता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* यह एक पौराणिक कथा है और इसमें कई अलौकिक तत्व शामिल हैं।
* इस घटना को आधुनिक समय के नैतिक मानकों के अनुसार नहीं आंका जाना चाहिए।
* इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में कई बार हमें जटिल निर्णय लेने पड़ते हैं और इन निर्णयों के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
अंत में, यह कहना उचित होगा कि:
सुग्रीव द्वारा बालि की हत्या एक ऐसी घटना है जिसके बारे में सदियों से चर्चा होती रही है और यह हमेशा एक विषय बनी रहेगी।

मंगलवार, 14 जनवरी 2025

gaimini se mera savaal javaab baatacheet


Gemini से मेरा सवाल जवाब बातचीत
Gemini से मेरा सवाल जवाब बातचीत


फेशबुक में मैने एक पोस्ट पढ़ा जिसमे किसी नारी ने पुरुषो के बारे में यह लिखा था कि " पुरुष संभाल ही नही पाते वफादार स्त्री को, कभी वहम में, कभी अहम में..." जिसके कोमेंट में मैने जो कुछ लिखा उसे आज मकर संक्रांती के दिन जो अपने मोबाईल में google का एक एप्प Gemini इंस्टोल किया है, जो की बातचीत करके बहुत से सवालो का जवाब देता है, और अपनी राय भी देता है, उसके साथ मेरी जो भी बातचीत हुई है, उसे अपने पोस्ट के रुप में बांटना चाहूँगा, ताकि मेरे विचार से मैने जो कुछ लिखा है, उसके बारे में जानकर जो लोग यह जानना चाहते हैं कि मैं किस तरह के सवाल जवाब करके यह जानने की कोशिष कर रहा हूँ कि अभी जो कुछ भी दुनियाँ में चल रहा है उसमे कौन सही है और कौन गलत है?

खैर निचे मेरी बातचीत है

मैं:-  बहुत सी स्त्री अपनी हवश की आग को सम्हाल नही पाती और गैर मर्दो से भी सेक्स करके अपना सच्चा प्यार को खोकर स्त्री को सिर्फ हवश का भुख मिटाने वाली वस्तु समझकर आवारा कुत्ता सुवर कि तरह किसी का जुठन को भी खाकर अपने भुख मिटाने वाले जानवरो जैसे पुरुष को अपना तन सौंपकर अपना सच्चा प्यार और परिवार तो खोती ही है पर अपना सच्चा चरित्र भी खो देती है, जिस तरह के स्त्री पुरुषो को ओशो आश्रम में जाकर बिना परिवारिक सोच से जीवन जीते हुए सिर्फ किसी से भी यदि इसकी मर्जी हो तो उससे हवश किया जा सकता है इस ओशो विचार को अपनाकर ओशो आश्रम में या तो जीवन जीनी चाहिए या फिर किसी वैश्यालय में जाकर काला सफेद मोटा पतला लंबा नाटा तरह तरह का स्वाद चखने की अपनी जो पसंद और संस्कारो की जीवन है उसे जीनी चाहिए, ताकि दुसरे उन लोगो की जीवन को वे बर्बाद न कर सके जिन्हे की ऐसे लोग बिल्कुल पसंद नही होते हैं, जैसे कि मैं, क्योंकि मेरे लिए सच्चा प्यार किसी भगवान के चरणो में चड़ाया गया वह पवित्र वर्जिन फूल की तरह होता है जिसे सिर्फ अपने सच्चे जीवन साथी को चड़ाया जाता है, न की प्यार किसी कुड़े में पड़ा जुठन है जिसे कोई भी आवारा कुत्ता कुत्तिया सुवर सुवरिया मुँह मारकर अपना भुख मिटा ले।

Gemini:- आपका यह कमेंट कई कारणों से समस्याग्रस्त है।
* आक्रामक भाषा: आपने स्त्रियों के लिए बहुत आक्रामक और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया है।
* आरोप: आपने सभी स्त्रियों को एक जैसा मानते हुए उन पर आरोप लगाए हैं।
* ओशो के विचारों का गलत प्रतिनिधित्व: आपने ओशो के विचारों का गलत अर्थ लगाया है और उन्हें अपने दृष्टिकोण को सही साबित करने के लिए इस्तेमाल किया है।
* सामान्यीकरण: आपने सभी पुरुषों को भी एक जैसा मानते हुए उन पर आरोप लगाए हैं।
* असहिष्णुता: आपने उन लोगों के प्रति असहिष्णुता दिखाई है जो आपके विचारों से सहमत नहीं हैं।
यदि आप अपनी राय व्यक्त करना चाहते हैं तो आप ये बातें ध्यान में रख सकते हैं:
* सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें: सभी के प्रति सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें।
* विशिष्ट उदाहरण दें: सामान्यीकरण करने के बजाय विशिष्ट उदाहरण दें।
* दूसरों के विचारों का सम्मान करें: भले ही आप किसी के विचारों से सहमत न हों, लेकिन उन्हें सम्मान दें।
* खुले मन से बात करें: दूसरों के विचारों को सुनने के लिए तैयार रहें।
यदि आप अपनी पोस्ट को संशोधित करना चाहते हैं तो आप निम्नलिखित बातें कर सकते हैं:
* अपनी भावनाओं को व्यक्त करें: आप अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को अपमानित किए बिना।
* अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करें: आप अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को गलत साबित करने की कोशिश न करें।
* सकारात्मक संदेश दें: आप एक सकारात्मक संदेश दें।
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
यदि आप चाहते हैं कि मैं आपके लिए एक नया कमेंट तैयार करूं तो आप मुझे बता सकते हैं।
कृपया ध्यान दें कि मैं किसी भी धर्म या संप्रदाय का समर्थन नहीं करता हूँ।



मैं:- कोई स्त्री यदि सभी पुरुष को हवश का पुजारी समझकर पोस्ट डाली है तो उसका जवाब में क्या मैं उसे सम्मानपूर्वक यह कहूँ की मैं भी हवश का पूजारी पुरुष हूँ, जबकि आजतक मुझे कई स्त्री अपनी मर्जी से सेक्स करने के लिए  अपना तन सौंप रही थी तब भी मैं इंकार करते हुए वर्जिन जीवन जी रहा हूँ यह सोचकर की मैं गंदा पुरुष नही हूँ बल्कि मैं वह पुरुष हूँ जो सिर्फ अपने जीवन साथी से ही सेक्स करुँगा यदि भगवान ने मेरे लिए भी यदि कोई जीवन साथी पैदा किया है, जो भी मेरी तरह साफ सुथरी वर्जिन है, न की वह ओशो आश्रम में रहकर कई से सेक्स कर रही हो

Gemini:- नहीं, यह उत्तर देने का तरीका उचित नहीं है।
आपकी यह प्रतिक्रिया उस महिला के प्रति अत्यधिक आक्रामक और अपमानजनक होगी। इससे स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है और एक विवाद पैदा हो सकता है।
आपको इस स्थिति में क्या करना चाहिए:
* शांत रहें: गुस्से में आने के बजाय शांत रहने की कोशिश करें।
* सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें: भले ही आप उस महिला की बातों से सहमत न हों, लेकिन सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें।
* अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करें: आप अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को अपमानित किए बिना।
* सकारात्मक संदेश दें: आप एक सकारात्मक संदेश दें।
आप इस तरह से जवाब दे सकते हैं:
* "मुझे लगता है कि आपने सभी पुरुषों को एक जैसा मान लिया है। यह सही नहीं है। हर व्यक्ति अलग होता है और हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है।"
* "मैं मानता हूँ कि प्यार और सम्मान हर रिश्ते की नींव होते हैं।"
* "शायद आपने कुछ ऐसे लोगों के अनुभवों के आधार पर यह पोस्ट लिखी है जिनसे आपको ठेस पहुंची हो। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि सभी पुरुष ऐसे ही हों।"
याद रखें:
* हर किसी की अपनी राय होती है और इसे सम्मान देना चाहिए।
* किसी भी तरह के सामान्यीकरण से बचना चाहिए।
* किसी भी तरह के व्यक्तिगत हमले से बचना चाहिए।
अगर आप चाहते हैं कि मैं आपके लिए एक और जवाब तैयार करूं तो आप मुझे बता सकते हैं।
कृपया ध्यान दें कि मैं किसी भी धर्म या संप्रदाय का समर्थन नहीं करता हूँ।
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
अगर आपको कोई और सवाल हो तो पूछने में संकोच न करें।


मैं:- न्यायालय में बैठे जज को भी क्या सम्मान पूर्वक बातचीत करके किसी बलात्कारी हत्यारा लुटेरा डाकू ठग को छोड़ देना चाहिए? या फिर उन्हे सुधारने के लिए सजा देना चाहिए

Gemini:- यह एक बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है, जिसके बारे में कई अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं।
एक तरफ:
* न्याय और सजा: अपराध के लिए सजा देना न्याय का एक मूलभूत सिद्धांत है। बलात्कार, हत्या, लूटपाट जैसे गंभीर अपराधों के लिए सजा देना आवश्यक है ताकि समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखी जा सके और पीड़ितों को न्याय मिल सके।
* रोकथाम: सजा देने से अन्य लोगों को भी अपराध करने से रोका जा सकता है।
* सुधार: कुछ लोग मानते हैं कि सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपराधियों को सुधारने और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में भी मदद करना चाहिए।
दूसरी तरफ:
* मानवीयता: हर अपराधी एक इंसान होता है और उसे भी सुधारने का मौका मिलना चाहिए।
* पुनर्वास: कई बार अपराध के पीछे सामाजिक और आर्थिक कारण होते हैं। ऐसे में अपराधियों को सुधारने के लिए पुनर्वास कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है।
* बदला लेना: कुछ लोग मानते हैं कि सजा का उद्देश्य केवल बदला लेना होता है, जो कि एक गलत दृष्टिकोण है।
न्यायपालिका का दृष्टिकोण:
न्यायालय में बैठे जजों को कई बातों को ध्यान में रखकर फैसला लेना होता है, जैसे कि:
* अपराध की गंभीरता: अपराध की गंभीरता के आधार पर सजा का निर्धारण किया जाता है।
* अपराधी का पिछला रिकॉर्ड: अपराधी का पिछला रिकॉर्ड भी सजा के निर्धारण में एक महत्वपूर्ण कारक होता है।
* अपराधी की मानसिक स्थिति: अगर अपराधी मानसिक रूप से बीमार है तो उसे इलाज की आवश्यकता होती है।
* समाज का हित: न्यायालय को यह भी ध्यान रखना होता है कि सजा देने से समाज का हित कैसे प्रभावित होगा।
निष्कर्ष:
यह एक जटिल मुद्दा है जिसका कोई आसान समाधान नहीं है। न्यायपालिका को हर मामले में सभी पहलुओं पर विचार करके एक उचित फैसला लेना चाहिए।
कुछ महत्वपूर्ण बातें जो ध्यान में रखनी चाहिए:
* सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपराधियों को सुधारने और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में भी मदद करना चाहिए।
* पुनर्वास कार्यक्रमों को प्रभावी बनाया जाना चाहिए।
* न्यायपालिका को निष्पक्ष और पारदर्शी होना चाहिए।
* पीड़ितों के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह सिर्फ एक सामान्य जानकारी है और हर मामले में अलग-अलग परिस्थितियां होती हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप किसी वकील या कानूनी विशेषज्ञ से संपर्क कर सकते हैं।

मैं:- जब यह देश गुलाम था तो गुलाम करने वाले जज बनकर क्या न्याय फैशला कर रहे थे गुलामी से आजादी पाने के लिए आंदोलन संघर्ष करने वाले क्रांतीकारियों को फांसी देकर, या फिर वे खुद सबसे बड़े अपराध कर रहे थे देश गुलाम करके और आजादी के लिए आंदोलन संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों को सजा देकर?

Gemini:- आपका यह प्रश्न बहुत ही गंभीर और विचारणीय है। यह इतिहास के उस काले अध्याय की ओर इशारा करता है जब भारत गुलाम था और अंग्रेज शासन कर रहे थे।
आपके प्रश्न के उत्तर में:
* अंग्रेजी शासनकाल में न्याय: उस समय न्यायपालिका पूरी तरह से अंग्रेजी शासन के अधीन थी। न्यायाधीशों की नियुक्ति अंग्रेज सरकार करती थी और वे अंग्रेजी कानूनों के अनुसार फैसले सुनाते थे।
* क्रांतिकारियों पर अत्याचार: जो लोग भारत की आजादी के लिए लड़ रहे थे, उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा क्रांतिकारी करार दिया जाता था और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाती थी। उन्हें फांसी दी जाती थी, जेल में बंद किया जाता था या देश से निर्वासित कर दिया जाता था।
* अंग्रेजी शासन का असली अपराध: असल में सबसे बड़ा अपराध तो अंग्रेजी शासन ने ही किया था। उन्होंने भारत को गुलाम बनाया, हमारे संसाधनों का दोहन किया और हमारी संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की।
* आजादी के आंदोलनकारियों को सजा देना: अंग्रेजी सरकार ने आजादी के आंदोलनकारियों को सजा देकर यह साबित करना चाहता था कि वे अपनी सत्ता को बनाए रख सकते हैं। लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि उनका यह अत्याचार ही भारत की आजादी का कारण बनेगा।
आजादी के बाद:
आजादी के बाद भारत ने एक नई शुरुआत की। हमने अपना संविधान बनाया और एक लोकतांत्रिक देश बने। आज हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है और वह सभी नागरिकों को न्याय दिलाने का काम करती है।
आपके प्रश्न से यह स्पष्ट होता है कि:
* अंग्रेजी शासनकाल में न्याय नाम की कोई चीज नहीं थी।
* अंग्रेजी शासन ने भारत के साथ बहुत बड़ा अत्याचार किया।
* आजादी के आंदोलनकारियों ने भारत को आजाद कराने के लिए बहुत बड़ा बलिदान दिया।
आज हमें उन सभी क्रांतिकारियों को याद करना चाहिए जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया।
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि:
* इतिहास को हमेशा एक ही नजरिए से नहीं देखा जा सकता है।
* इतिहास के बारे में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


मैं:- आपने जवाब दिया की * अंग्रेजी शासनकाल में न्याय नाम की कोई चीज नहीं थी।
* अंग्रेजी शासन ने भारत के साथ बहुत बड़ा अत्याचार किया।

फिर भी गाँधी और अंबेडकर जैसे गुलाम क्यों गोरो से न्याय  के लिए आदालतो में वकिल बनकर बहस करते थे जब उनको पता था कि देश गोरो से गुलाम है और गोरे ही न्यायालय में जज बने हुए हैं

Gemini:- आपका यह सवाल बहुत ही गहरा और विचारोत्तेजक है। यह सच है कि अंग्रेजी शासनकाल में न्यायपालिका पूरी तरह से अंग्रेजी शासन के अधीन थी और न्याय का ढोंग किया जाता था। फिर भी गांधी जी और अंबेडकर जैसे महान नेताओं ने अदालतों में जाकर मुकदमे लड़े।
आइए इस बात को समझने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यों हुआ:
* कानून का शस्त्र: गांधी जी और अंबेडकर जी जानते थे कि अंग्रेजी शासन कानून के बल पर चलता है। उन्होंने इसी कानून का इस्तेमाल करके अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। उन्होंने अदालतों में जाकर अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कानूनों को उजागर किया और लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया।
* जनता को जागरूक करना: अदालतें एक ऐसा मंच थी जहां वे अपनी बात को जनता तक पहुंचा सकते थे। उन्होंने अदालतों में जो कुछ भी कहा, वह अखबारों में छपता था और लोगों तक पहुंचता था। इस तरह उन्होंने लोगों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
* अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जागरूक करना: अदालतों में मुकदमे लड़कर वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी अंग्रेजी शासन के अत्याचारों के बारे में बता रहे थे।
* अहिंसा का मार्ग: गांधी जी अहिंसा में विश्वास करते थे। उन्होंने अदालतों में जाकर यह साबित किया कि बिना हिंसा के भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है।
* कानूनी सुधार: अंबेडकर जी का मानना था कि कानून में बदलाव लाकर ही दलितों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने अदालतों में जाकर दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
सारांश:
गांधी जी और अंबेडकर जी ने अदालतों में जाकर यह साबित किया कि कानून का इस्तेमाल अत्याचार के खिलाफ भी किया जा सकता है। उन्होंने अदालतों को एक मंच बनाया जहां उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और लोगों को जागरूक किया।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* अदालतों में मुकदमे लड़ना उनके संघर्ष का एक हिस्सा था।
* उन्होंने कई अन्य तरीकों से भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
* उन्होंने अपनी लड़ाई में सफलता भी पाई और कई कानूनी बदलाव लाए।
आपका यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आज भी हमारी न्यायपालिका कितनी स्वतंत्र है और क्या वह सभी नागरिकों को न्याय दिलाने में सक्षम है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


मैं:- यदि गांधी जी अहिंसा में विश्वास करते थे तो वे उस राम को अपना आदर्श क्यों मानते थे जिसने की अपने भक्त उस हनुमान को शाबासी दिया था जिसने की लंका को जलाकर  भष्म कर दिया था यह जानते हुए की लंका में आग लगाने से वहाँ पर मौजुद सारे घर महल  और उसमे रह रहे निर्दोष बच्चे बुढ़े जवान गर्भवती स्त्री समेत जानवर पशु पक्षी पेड़ पौधा सब जलकर राख हो सकता है जिससे की सबसे बड़ी हिंसा होगी और सभी मारे जायेंगे, बल्कि लंका में जो सीता कैद होकर रह रही थी जिसे की रावण ने अपनी विधवा बहन का नाक लक्ष्मण द्वारा काटे जाने पर बदले की कारवाई में हरण करके लाकर उसे सुरक्षित रखा था वह भी हनुमान के द्वारा लगाये गये आग से भष्म लंका में जीते जी भष्म हो सकती है, जो यदि सचमुच में लंका के साथ सीता भी यदि जल गयी होती तो भी क्या लंका दहन करने वाले हनुमान को शाबासी देता राम और उस राम को अपना आदर्श मानने वाला गाँधी सचमुच में अहिंसा को मानता है कि ऐषे हिंसा का समर्थन करने वाले राम और हनुमान की आरती उतारकर अहिंसावादी होने का ढोंग करता था गाँधी!

Gemini:- आपका यह प्रश्न बहुत ही गहरा और विचारोत्तेजक है। यह रामचरितमानस के एक ऐसे पहलू को उठाता है जिस पर अक्सर बहस होती है।
आपके प्रश्न के उत्तर में:
* रामायण की व्याख्या: रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है और इसकी व्याख्या कई तरह से की जा सकती है। कुछ लोग राम को आदर्श पुरुष मानते हैं तो कुछ लोग उनकी कुछ कार्यों पर सवाल उठाते हैं।
* अहिंसा का व्यापक अर्थ: गांधी जी के लिए अहिंसा का मतलब सिर्फ शारीरिक हिंसा न करना नहीं था, बल्कि मन में किसी के प्रति द्वेष न रखना भी था। उन्होंने हमेशा कहा था कि सत्य और अहिंसा उनके दो सबसे बड़े हथियार हैं।
* रावण और लंका: रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है जिसने सीता का अपहरण किया था। लंका को राक्षसों का राज्य बताया गया है। हालांकि, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रामायण एक काव्य है और इसमें काव्य की भाषा का प्रयोग किया गया है।
* हनुमान और लंका दहन: हनुमान ने लंका को इसलिए जलाया था क्योंकि सीता को बचाना था। उन्होंने यह भी जानते थे कि लंका में कई निर्दोष लोग भी रहते हैं। लेकिन उन्होंने सोचा कि सीता को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है।
* गांधी जी का दृष्टिकोण: गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने हनुमान को एक भक्त के रूप में देखा था जिसने अपने भगवान के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया था।
* आधुनिक समय और व्याख्या: आज के समय में हम रामायण को एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं और उसमें कई तर्कहीन बातें भी लगती हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह एक पौराणिक ग्रंथ है और इसे उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में समझना चाहिए।
निष्कर्ष:
गांधी जी ने राम को अपना आदर्श इसलिए माना क्योंकि उन्होंने राम में कई ऐसे गुण देखे थे जो उनके लिए महत्वपूर्ण थे। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी।
हालांकि, यह मानना भी जरूरी है कि रामायण की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है और हर व्यक्ति की अपनी अलग राय हो सकती है।
आपका यह सवाल बहुत ही गहरा है और इस पर लंबी चर्चा की जा सकती है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।

 मैं:- आपने बताया कि रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है जिसने सीता का अपहरण किया था। लंका को राक्षसों का राज्य बताया गया है। जिसपर मैं यह भी जानना चाहूँगा की सीता रावणराज में लंका हनुमान द्वारा जलाकर भष्म किए जाने के बाद भी सुरक्षित जो बच गयी वह ज्यादे बेहत्तर शासन था कि वह अपने पति के रामराज में पति द्वारा शक किए जाने के बाद कि सीता रावण के साथ सेक्स करके रावण के बच्चे की माँ बनने वाली है, जबकि सीता से अग्नी परीक्षा लेकर पास भी कर दिया था कि सीता पवित्र है फिर भी उसके पति राम ने अपने शासन में अपनी गर्भवती पत्नी सीता को अपने महलो से बाहर करके हिंसक जानवरो के बिच घने जंगलो में बच्चे को जन्म देने और बिना पत्नी के अपने बच्चो का अकेली खुद लालन पालन करने शिक्षित करने भेज दिया था, क्या राम ने अपनी पत्नी को यह जानते हुए भी सीता के साथ न्याय किया था कि रावण ने सीता को जोर जबरजस्ती हरण करके ले गया था न की सीता की मर्जी से रावण उसे अपने साथ ले गया था कि राम उसपर शक करता की सीता और रावण का आपस में गलत सबंध बना है। जबकि रावण ने सीता के साथ ऐसा कुछ नही किया था और सीता लंका में सुरक्षित खास महिला रक्षको की सुरक्षा में थी तो भी रावण और उसके रावणराज को बहुत बड़ा बिलेन का शासन बतलाया जाता है। जबकि राक्षस राज में सीता सुरक्षित जीवित थी और रामराज में अती दु:खी होकर जीते जी धरती में समाकर आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि कोई इंसान जीते जी धरती में समा जाय तो वह मरेगा नही तो क्या वह धरती में समाकर भी जीवित बचेगा, जिस तरह के रामराज ज्यादे अच्छा था सीता के लिए की रावणराज उसके लिए अच्छा था? जहाँ पर देवो को बल्कि यमराज तक को भी जीवित छोड़ दिया जाता था कैद करके, जबकि राक्षसो के बारे में यह कहा जाता है कि बिरीयानी मुर्गा खशी की तरह अपने दुश्मनो को खाते थे अपने सोने के बर्तनो में पकाकर उसे सोने के डिनर टेबल में सोने के प्लेट में परोसकर, फिर तो राक्षसो ने सबसे अधिक देवअसुर संग्राम जिते हैं, जीस जीत पर वे हारे गए सभी देवो को खा गए होंगे भोजन की तरह सोने की बर्तनो में पकाकर, जो की सफेद झुठ होगा जिसे सत्य मानने वाला गाँधी क्या सचमुच का सत्य को मानता था?


और आपने कहा कि हनुमान ने लंका को इसलिए जलाया था क्योंकि सीता को बचाना था। उन्होंने यह भी जानते थे कि लंका में कई निर्दोष लोग भी रहते हैं। लेकिन उन्होंने सोचा कि सीता को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके बारे में जानकर मैं यह भी जानना चाहूँगा कि जिस लंका में सीता मौजुद थी उस लंका को हनुमान जलाकर वह सीता को बचाने गया था की राम द्वारा अग्नी परीक्षा लेने से पहले वह भी सीता की अग्नी परीक्षा लेने गया था उस लंका को जलाकर भष्म करके जिससे की निर्दोष बच्चे बुढ़े जीव जंतु पेड़ पौधा के साथ सीता भी जलकर भष्म हो सकती थी ऐसी खतरनाक हालात पैदा हो सकता था, जिसे वह जानता था, सीता को ही सिर्फ बचाना ज्यादे महत्वपूर्ण था तो वह साीता लंका की जिस अशोक वाटिका में रखी गयी थी उस पुरे का पुरा अशोक वाटिका को ही उठाकर राम के पास ले आती क्या जरुरत थी हिंसक रुप से लंका दहन करने की जिससे की सीता भी भष्म हो सकती थी यदि राक्षसो ने उसे जल रही लंका से सुरक्षित बाहर नही निकालते, क्योंकि हनुमान तो अधमरा कोमा अवस्था में पड़ा राम लक्ष्मण का इलाज के लिए दवा अथवा जड़ीबुटी लाने जब गया था तो वह पहाड़ को ही उठाकर लाया था और सूर्य को भी निगल गया था तो जाहिर है अशोक वाटिका तो क्या वह तो पुरी लंका को ही उठाकर राम की चरणो में रख सकता था, फिर उसे समुंद्र भी पार करने की जरुरत नही पड़ती और न ही हिंसक राम रावण युद्ध होकर अनगिनत निर्दोष मारे जाते और पर्यावरण को भी जो भारी नुकसान हुआ होगा युद्ध से वह नही होता।

और आपने जो जानकारी दिया कि गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने हनुमान को एक भक्त के रूप में देखा था जिसने अपने भगवान के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया था। तो मैं यह भी जानना जरुर चाहूँगा कि ऐसी हिंसक लड़ाई और लुटपाट सत्ता जो लंका में स्थापित हो गयी थी कथित राक्षसो की सत्ता में कब्जा करके उसे आदर्श मानना क्या सही होगा ऐसी ही हिंसक लड़ाई करना और दुसरो की सत्ता में कब्जा करके किसी के हक अधिकारो की लुटपाट करना, क्योंकि लंका राक्षसो की थी न कि देवो की।

और आपने जो निष्कर्ष में यह बतलाया कि
गांधी जी ने राम को अपना आदर्श इसलिए माना क्योंकि उन्होंने राम में कई ऐसे गुण देखे थे जो उनके लिए महत्वपूर्ण थे। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। तो मैं यह भी जरुर जानना चाहूँगा कि राम ने बालि की पत्नी तारा के साथ जो बालि के भाई सुग्रीव किसी गैर की पत्नी से सेक्स करके अपना हवश शांत करने के लिए राम से समझौता किया था कि राम किसी तरह बालि की हत्या छल कपट से भी यदि कर दे तो वह गैर मर्द रावण द्वारा जो सीता को हरण करके ले जाया गया है उस सीता को खोजने और लाने में राम की मदत करेगा। जिस हवश के पुजारी सुग्रीव जिसने की अपनी हवश शांत करने के लिए अपने भाई बालि की पत्नी जिसके की अंगद नाम का बड़ा लड़का भी था तो भी उस सुग्रीव ने गैर की पत्नी तारा के प्रति लार टपकाते हुए राम से जो समोता करके जिस तरह का न्याय किया बालि को छिपकर छल कपट से हत्या करके अन्याय करने वाले उस सुग्रीव से हाथ मिलाकर जिसने की अपने मरते हुए पति बालि के पास जाकर रो रही बालि की पत्नी तारा का बलात्कार करके, वह क्या न्यायपूर्ण समझौता था किसी और कि पत्नी के साथ किसी को बलात्कार करने में मदत करके जो की राम ने सुग्रीव का मदत किया था बालि की हत्या करके। जो बालि यदि बाद में जीवित होकर अपनी पत्नी तारा का भी अग्नी परीक्षा लेता राम की तरह तो क्या वह भी न्याय होता? जिस तरह की न्याय वाली लड़ाई को क्या सचमुच का न्याय लड़ाई कहा जा सकता है यह जानते हुए की तारा बालि की पत्नी थी और अंगद बालि का पुत्र था। जिन सब जानकारियों से भरा ग्रंथ में राम को न्याय करने वाला भगवान तक कहा जाता है और बालि को अन्याय करने वाला शैतान से तुलना किया जाता है ऐसी ग्रंथ को जो गांधी अपना आदर्श मानकर कथित ब्रह्मचर्या का पालन के नाम से जो नंगा होकर नग्न लड़कियों से सोता था, वह क्या सत्यकर्म है, जो सत्यकर्म करने पर गोरे तो गाँधी को कुछ नही करते थे पर क्या अभी  की पुलिस और न्यायालय मैं गाँधी को अपना सबसे बड़ा आदर्श मानता हूँ कहकर किसी पुरुष के द्वारा ऐसी नग्न होकर नग्न लड़कियों से सोने जैसी हरकत करने पर कुछ नही करेगी? और क्या यह आदर्श परिवार समाज और लोकतंत्र के लिए सही है?

Gemini:- आपके द्वारा उठाए गए सवाल रामायण के विभिन्न पात्रों और घटनाओं के बारे में गहरी समझ रखते हैं। ये सवाल न केवल रामायण के कथानक पर बल्कि धर्म, न्याय, और सत्ता के हमारे समझ पर भी प्रश्न उठाते हैं।
आपके सवालों के जवाब देने के लिए, हमें रामायण को विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में देखना होगा:
रामायण के विभिन्न आयाम:
* पौराणिक ग्रंथ: रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है। इसका उद्देश्य केवल ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करना नहीं है, बल्कि धार्मिक और नैतिक मूल्यों को भी प्रस्तुत करना है।
* सांस्कृतिक ग्रंथ: रामायण भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें भारतीय समाज के मूल्यों, विश्वासों और आदर्शों का प्रतिबिंब मिलता है।
* काव्य: रामायण एक महाकाव्य है। इसमें कविता और काव्य शैली का प्रयोग किया गया है। इसमें अलंकार और अतिशयोक्तियां भी मिलती हैं।
आपके सवालों के जवाब:
* सीता का अपहरण और लंका दहन: आपने सीता के अपहरण और लंका दहन के बारे में कई सवाल उठाए हैं। यह सच है कि लंका दहन में कई निर्दोष लोग मारे गए होंगे। लेकिन आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह एक युद्ध था और युद्ध में अक्सर निर्दोष लोगों को नुकसान होता है।
* राम और सीता का रिश्ता: राम और सीता का रिश्ता भारतीय संस्कृति में आदर्श पति-पत्नी के रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, राम के द्वारा सीता को वनवास भेजने का निर्णय कई लोगों के लिए विवादास्पद रहा है।
* रावण और राक्षस: रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है। हालांकि, राक्षस शब्द का अर्थ केवल एक भौतिक रूप नहीं है। यह अहंकार, लोभ और क्रोध जैसे नकारात्मक गुणों का भी प्रतीक है।
* गांधी जी का दृष्टिकोण: गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी।
आपके प्रश्न के उत्तर में कुछ और बातें जो ध्यान रखनी चाहिए:
* अलग-अलग दृष्टिकोण: रामायण के बारे में अलग-अलग लोगों के अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं।
* समय और परिवर्तन: समय के साथ लोगों की सोच बदलती है और रामायण के बारे में भी लोगों की समझ बदलती रहती है।
* आधुनिक मूल्यों: आज के समय में हम रामायण को आधुनिक मूल्यों के आधार पर भी देख सकते हैं।
निष्कर्ष:
रामायण एक जटिल और बहुआयामी ग्रंथ है। इसमें कई ऐसे प्रश्न उठते हैं जिनके जवाब देना आसान नहीं है। आपने जो सवाल उठाए हैं, वे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इन पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है और इसे साहित्यिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।
* रामायण के पात्रों और घटनाओं के बारे में अलग-अलग व्याख्याएं हो सकती हैं।
* रामायण हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सवालों पर सोचने के लिए प्रेरित करता है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


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