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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

आखिर क्यों कोरोना बच्चे बुढ़े जवान नर नारी सबको अपना शिकार बना रहा है

 

आखिर क्यों कोरोना बच्चे बुढ़े जवान नर नारी सबको अपना शिकार बना रहा है ?



पुरी दुनियाँ में कोरोना फैलने से पहले पुरी दुनियाँ से पाप का सम्राज्य समाप्त करने की भिड़ जुटने का दौर इतना तेजी से फैल रहा था कि यदि और कुछ समय उसी तरह एकजुटता देखने को मिलती तो निश्चित तौर पर पहले तो इस देश से पाप का सम्राज्य को किसी खरपतवार की तरह उखाड़कर फैंका जाता , उसके बाद इस देश में पुर्ण आजादी न्याय कायम होने के बाद पुरी दुनियाँ में भी बाकि देशो के उन लोगो को पुर्ण आजादी न्याय मिलने सुरु हो जाते जिन्हे भी अबतक पुर्ण आजादी जिवन जिने का अवसर नही मिल पाया है , और आज भी वे धन संपदाओ से संपन्न देश का मुलनिवासि होते हुए भी गरिबी भुखमरी जिवन जिने को मजबूर हैं | क्योंकि उनके देशो में भी गुलाम करने वाले पापियो का गैंग अब भी जोंक की तरह चिपककर उनका खुन चुसने में लगा हुआ है | और खुन चुसने का ये भ्रष्ट संस्कार हजारो सालो से उन लोगो के परिवारो में बांटा जाता रहा है , जिनके लिए विकाश का मतलब मुठीभर आबादी के पास सारी धन संपदा हो , और बहुसंख्यक आबादी सिर्फ किसी तरह जिन्दा रहे ताकि मुठीभर आबादी की गुलामी कर सके | जो विकृत सोच अबतक कबिलई लुटेरो के नए वंसजो के भितर से पुरी तरह समाप्त नही हुआ है | बल्कि अपडेट होकर किसी बेहरुबिया की तरह नया नया रुप बदलता रहा है | क्योंकि उनसे पुरी दुनियाँ को मुक्त किया जा सके यह तैयारी और नेतृत्व बाकि देश नही कर सकते , चाहे वे जितना शक्तीशाली और विकसित देश कहलाते हो ! कर पाते तो पुरी दुनियाँ में अब भी अधुरी आजादी लेकर बहुसंख्यक आबादी अपने खनिज संपदा से भरपुर देश में भी गरिबी भुखमरी जिवन नही जी रहे होते , बल्कि पुरी दुनियाँ से गरिबी भुखमरी कबका समाप्त हो चुका होता | जो न होकर आज अँधेर नगरी चौपट राजा शासन में अँधी विकाश से सिर्फ मुठिभर लोगो के पास धन दौलत इतना अधिक जमा हो गया है कि दुनियाँ की सिर्फ एक प्रतिशत आबादी के पास इतना धन दौलत जमा है जितना की 99% के पास भी नही है | जिसके चलते बहुसंख्यक आबादी गरिबी भुखमरी से तो पहले से ही अधुरी आजादी पाकर मर रही है , पर इस कोरोना काल में अब दवा और ऑक्सिजन के आभाव में भी वही सबसे अधिक मर रहा है | जबकि एक प्रतिशत आबादी इस कोरोना काल में भी  कई कई सालो तक बिना बाहर निकले घर में बैठकर छप्पन भोग खा पी सकता है | जैसा की इस समय इस देश में जिनके पास आपार दौलत है वे लोग इस देश में लॉकडाउन लगने पर भी घर बैठे छप्पन भोग खा पीकर सिर्फ कोरोना से मरने वालो की आँकड़ो और खबरो को देखते रहते हैं | जिन्हे गरिबी भुखमरी से हो रहे मौत के आँकड़ो से कोई मतलब नही है , क्योंकि वह खुद गरिब रहते तब तो वे उसी गरिबी भुखमरी से संघर्ष करने वाली आबादी में खुदको भी जोड़कर  उससे जुड़ी खबर देखते सुनते और पढ़ते | पर चूँकि कोरोना से तो क्या गरिब क्या अमिर दोनो मर रहे हैं , इसलिए कोरोना से ही मरने वालो की आँकड़ो में उसकी नजर घर बैठे रह रही है | हलांकि चूँकि कोरोना से भी गरिब ही सबसे अधिक मर रहा है , इसलिए ऐसे लोगो को न चाहते हुए भी कोरोना की खबरो में किसी न किसी रुप में गरिबो की पीड़ा वाली खबर मिल ही जाती है | क्योंकि कोरोना से भी मरने वालो में गरिब की ही संख्या ज्यादे है | जो गरिब न चाहकर भी भिड़ में शामिल होकर कोरोना से पिड़ित होकर उसका ईलाज समय से पहले नही हो पा रहा है | और न ही उसे दवा और ऑक्सीजन ठीक से मिल पा रहा है | जिसे दवाई भी मिलता और ऑक्सिजन भी मिलता यदि वह इतना अमिर होता की नोटबंदी में भी बिना लाईन में लगे घर बैठे उसके सारे पुराने नोट बैंक और सरकार द्वारा बदलवा दिए जाते | क्योंकि अभी जो अधुरी आजादी मिलकर जो बुरे हालात मौजुद है , उसमे गरिबी भुखमरी जिवन जी रहे लोगो की हालत सबसे खराब है | जिसे सुधारने वाला कोई भी देश नही है , क्योंकि उनके पास पुरी आजादी दिलाने के लिए नेतृत्व करने की सोच नही है | और न ही गुलाम बनाने वालो को जड़ से उखाड़ फैकने की ताकत है | और इस देश के पास है भी तो चूँकि यह देश खुद पुर्ण आजाद नही है , इसलिए पुर्ण आजादी प्राप्त किए अभी तो पुरी दुनियाँ में इसी तरह का ही खतरनाक स्थिति कायम रहेगी | लेकिन चूँकि अब गुलाम बनाने वाला कबिलई लुटेरी गैंग का कोई भी बेहरुबिया रुप को पकड़ना मुश्किल नही रह गया है , इसलिए धिरे धिरे इस गुलामी हालत में भी उसके खिलाफ सड़को में भिड़ जुटने की रफ्तार इतनी तेजी से बड़ने लगी थी कि और ज्यादे दिन उसका पाप का सम्राज्य कायम नही रह पाता | जिसके चलते उसने मौका का फायदा उठाते हुए कोरोना को अपना ऐसा हथियार बना लिया है कि जबतक कोरोना का दौर चलता रहेगा वह कोरोना को अपनी ढाल बनाकर अपना पाप का सम्राज्य को सुरक्षित रखते हुए चारो तरफ मौत का आलम में भी झुठी शान की जिवन जिता रहेगा | क्योंकि उसने आँखो में धुल झौंकने की तरह पुरी आजादी के लिए सड़को में उतरने वालो पर कोरोना झौंक दिया है | हलांकि भगवान ने यदि उसका पाप का सम्राज्य का खात्मा इसी दौर में तय करके रखा है तो वह चाहे जितना शैतान बुद्धी खर्च कर ले , अगर उसका जाना तय है तो निश्चित तौर पर जाएगा ही ! और फिर उसकी भ्रष्ट परंपरा का आचानक से किसी पागल कुत्ते की तरह हो जाना यही बतलाता है कि पाप का सम्राज्य का अंत बहुत जल्द होनेवाला है | क्योंकि जिस तरह कोई पागल कुत्ता पगलाकर मरने से पहले मौत से डरते हुए घुम घुमकर निर्दोश लोगो को काटता फिरता है , उसी तरह वर्तमान के समय में भी कोरोना का दौर किसी पागल इंसानो द्वारा पगलाकर मरने से पहले घुम घुमकर अनगिनत लोगो को काटने का चल रहा है | जो दौर तब खत्म होगा जब वह पागल कुत्तो का गैंग खत्म होगा | पर अफसोस उससे पहले वे न जाने कितनो को काटकर कोरोना देकर मार चुके होंगे | जैसे कि कोई पागल कुत्ता मरने से पहले पगलाकर न जाने कितनो को काटकर मरता है | क्योंकि पगलाने के बाद वह मौत का डर को अपने भितर इतना अधिक आतंकित महसुश करता है कि किसी बच्चे से भी उसे डर भय आतंक लगने लगता है कि वह भी उसे मार सकता है | जिसके चलते वह बच्चे को भी बिना कोई गलती के काटता फिरता है | क्योंकि उसे लगता है कि अगर वह अपनी बचाव में उस बच्चे को नही काटेगा तो वह बच्चा उसे मार डालेगा | जिस तरह पागल कुत्ता कि तरह पगलाये हुए लोग सारी जिवन मौत से डर डरकर ही तो ज्यादेतर अपराध करते हैं | जैसे कि इस समय मौत से डरकर ही तो कोरोना की आड़ में बड़े बड़े आतंकवादियो की गैंग निश्चित तौर पर कोरोना झौंक करके बच्चे बुढ़े नर नारी सभी में मौत बांटने और मौत का आतंक फैलाने में लगे हुए होंगे | और एक पागल कुत्ता जब पुरे गली मोहल्ले बल्कि कई गली मोहल्ले  के लोगो को आतंकित किए रहता है तो पागल कुत्तो की पूरी गैंग तो निश्चित तौर पर कोरोना वायरस का लहर पुरी दुनियाँ में फैलायेगा ही | हलांकि चूँकि जिस तरह बुढ़ापा में ही ज्यादेतर कुत्ता पगलाते हैं , क्योंकि बुढ़ापा में उनके भितर बिमारियो से लड़ने की क्षमता बहुत कम हो जाती है , इसलिए निश्चित तौर पर इस समय कोई अगर पगलाकर कोरोना झौंकवा रहा है तो वह भी कोई बुढ़ा व्यक्ती के द्वारा ही निर्देश दिया जा रहा है | जिसके चलते उसकी प्राकृति मौत भी बुढ़ापा की वजह से धिरे धिरे आगे बड़ रही है | जिससे डरकर ही तो वह पगलाकर मरने की बुरे हालात में खुद जुझ रहा है | जिन सब बुरे हालातो से बचने के लिए ही तो बुढ़ापा में समझदार इंसान मौत से बिना डरे खुदको रोजमरा जिवन में मानो बहुत कुछ त्यागकर जिवन का लौ बुझने से पहले अंतिम बार वापस बच्चा बनकर अपने बच्चो या अपने करिबियो से लालन पालन करवाकर बच्चो की तरह छोटी मोटी शैतानी हरकते करने लगते हैं | जैसे की खाने पिने में फुटानी करना , छोटी मोटी बातो पर लड़ना झगड़ना वगैरा ! न की पगलाकर पागल कुत्ता की तरह ऐसी बड़ी शैतानी हरकत करते हैं , जिससे कई निर्दोशो की जान जाती है |

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

भारत माता शेर में सवार होकर शेर से अपने बच्चो की सुरक्षा करा रही है कि भक्षण करा रही है


भारत माता शेर में सवार होकर शेर से अपने बच्चो की सुरक्षा करा रही है कि भक्षण करा रही है ?

poor india



इस देश की मातृभूमि शेर पर नही बल्कि नंदी पर सवार होकर खुदको कृषि प्रधान देश घोषित किया है | जिस मातृभूमि की रक्षक और सेवक कबिलई शिकारी शेर को बनाने का परंपरा तब से सुरु हुआ है , जबसे इस देश में कबिलई हमलावरो का प्रवेश होकर इस मातृभूमि में कबिलई लुटेरो का भी वंशृक्ष बड़ना सुरु हुआ है | जिनमे सबसे पहला कबिलई हमलावर मनुवादि का वंशवृक्ष सबसे प्रमुख है | जिसके द्वारा इस देश में सत्ता कायम करने के बाद ही इस कृषि प्रधान देश में शेर को राजा और रक्षक बनाने की परंपरा सुरु किया गया है | जबकि शिकारी शेर दुसरो की बोटी नोचकर पलनेवाला वह प्राणी है , जिसे सेवक राजा बनाना तो दूर कोई अपना रक्षक भी नही बनाएगा , बजाय इसके कि यदि शेर किसी ग्राम मोहल्ला या शहर में गलती से भी यदि आ जाय तो उसे शेर राजा आया है , उसकी चरण धोकर गद्दी में बैठाओ कहने के बजाय उसे मार पीटकर भगाओ कहना ज्यादे पसंद करेंगे | न कि शेर जंगल का राजा है जो जंगल की प्रजा की सेवा करता है सिर्फ इस गलतफेमी में रहकर लोग शेर का स्वागत करेंगे | क्योंकि असल जिवन में शिकारी शेर न तो जंगल का राजा बनने का काबिल है , और न ही रक्षक बनने का काबिल है | क्योंकि राजा और रक्षक उसी को बनाया जाना बुद्धीमानी है जो कि प्रजा की सेवा करना और रक्षा करना दोनो अच्छी तरह से जानता है | जबकि शिकारी शेर तो प्रजा की भक्षण करके अपना पेट भरना जानता है | जिसे राजा बनाना मानो प्रजा को खुनी पंजो से दबोचवाकर खुंखार जबड़ो के जरिये किसी शिकारी की पेट में सुरक्षा कराना है | जिस तरह की सेवा और सुरक्षा जिसे करानी है वह अपना राजा शेर को बनाकर अपनी जान को खतरे में तो डालता ही है पर अपने परिवार और समाज को भी खतरे में डालता है | जैसे कि मनुवादियो को शासक बनाकर इस देश के मुलनिवासि खुदको और खुदके परिवार समाज को खतरे में डाले हुए हैं , यदि वाकई में वे मनुवादियो को शासक अपनी मर्जी से बनाये हैं | क्योंकि मनुवादि भी किसी शिकारी जानवर की तरह ही शिकार करके पलनेवाला प्राणी है | जिसके चलते जब भी उसकी सत्ता कायम होती है तो वह प्रजा की सेवा और सुरक्षा के बजाय उसका शोषण अत्याचार करने में ही लगा रहता है | जैसे की गोरो से आजादी मिलने के बाद मनुवादियो की सत्ता वापस कायम होने के बाद मनुवादि फिर से इस देश के मुलनिवासियो का शोषण अत्याचार करने में लग गया हैं | क्योंकि शोषण अत्याचार करने वाला प्राणी विकाश प्रक्रिया में सबसे कमजोर और बुजदिल होता है | जिसके चलते वह लंबे समय तक ज्ञान का भारी बस्ता ढोकर भी विकसित इंसान बनने के बजाय अविकसित बुद्धीवाला विकृत हैवान बनने में ही लगा रहता है | लेकिन भी जिस तरह जंगल का राजा बताकर शिकारी शेर को सबसे ताकतवर प्रचारित किया जाता है , उसी तरह इस देश के मुलनिवासियो को कमजोर बताकर यह प्रचारित किया जाता है कि मनुवादि सबसे ताकतवर प्राणी है | जबकि मनुवादि दुसरो के टुकड़ो में पलनेवाला वह परजिवी है , जो यदि इस देश को छोड़ दे तो उसे अपना वह ठिकाना भी नही मिलेगा जहाँ पर उसे अपने पूर्वजो की खुदकी अपनी खास वसियत मिल जाएगी | क्योंकि उनके पूर्वज जब इस देश में आए थे उस समय उनके पास पहनने के लिए कपड़ा तक नही था तो वे अपने पूर्वजो कि खुदकी वसियत में क्या धन संपदा हासिल करेंगे | उनके पास तो कपड़ा भी इस देश में आने के बाद प्राप्त हुआ है | बल्कि मनुवादियो को तो परिवार समाज का ज्ञान भी इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके हुआ है | जिन सब जानकारियो को सबसे पुराना ऋंग्वेद से हासिल किया जा सकता है | जिसमे भी मनुवादियो ने मिलावट और छेड़छाड़ किया है , जैसे कि गोरो ने इतिहास में छेड़छाड़ किया है | पर चूँकि छेड़छाड़ और मिलावट करके सत्य को मिटाया नही जा सकता है , इसलिए वेद पुराणो में भी भले मनुवादियो ने छेड़छाड़ और मिलावट किया है , पर उसमे जो सत्य है उसे नही मिटा पाया है | जिसे वेद पुराणो में वही व्यक्ती तलाश सकता है जो कि सत्य प्रमाणित बातो को समझ बुझ सकता है | जिसे समझना कठिन नही है , बस वेद पुराणो को प्राकृतिक प्रमाणित सत्य से जोड़कर जाना समझा जाय , न कि उसे मनुवादियो की भ्रष्ट बुद्धी द्वारा रचे अप्राकृति ढोंग पाखंड की नजरिये से जाना समझा जाय | क्योंकि ढोंग पाखंड की नजरिये से वेद पुराणो को समझने से सबसे ताकतवर भगवान मनुवादियो के पूर्वज देवो को समझने में देर नही लगती है | जबकि मनुवादियो के पूर्वजो ने इस देश के मुलनिवासियों के साथ जो जुल्म सितम किए हैं , उससे मनुवादि विकाश प्रक्रिया में ताकतवर नही बल्कि सबसे बुजदिल और कमजोर साबित होते हैं | क्योंकि विकाश प्रक्रिया में वे लोग सबसे बुजदिल कमजोर और डरपोक होते हैं , जो बदहाल शोषित पिड़ितो को मौत बांटते फिरते हैं | जिनमे खासकर वे लोग होते हैं , जो खुद बदहाली और शोषण अत्याचार के लिए जिम्मेवार होते हैं | जो विरले ही खुद अपनी गुनाह कबूल करते हैं कि उनकी वजह से बदहाली कायम हुई है , और उनकी वजह से शोषण अत्याचार हो रहे हैं | भले ही उनके परिवार समाज में मौजुद उनके बहुत से करिबी उनको गुनेहगार मानते हुए उसे सारी जिवन शोषण अत्याचार बंद करके सुधरने के लिए कहते रहते हैं | पर वे दुसरो की तो दुर अपनो की भी बात नही मानते और अपनी भ्रष्ट बुद्धी को अपडेट करके पाप कुकर्मो में ही लगे रहते हैं | जैसे कि जिन मनुवादियो ने आजतक कबूल ही नही किया कि उनके द्वारा मनुवादि शासन स्थापित होने के बाद इस देश के मुलनिवासियो के साथ लगातार शोषण अत्याचार होता रहा है , और शोषित पिड़ितो के जिवन में बदहाली भी कायम होता आ रहा है | जिस बदहाली और शोषण अत्याचार को दुर करने के बजाय अपडेट होता आ रहा है | क्योंकि बदहाली और शोषण अत्याचार के लिए सबसे अधिक जिम्मेवार लोगो को दिन रात यह डर सताता रहता है कि जिन लोगो को उनकी वजह से बदहाली और शोषण अत्याचार का सामना करना पड़ता है , उन लोगो के जिवन में जिसदिन भी हालात सुधरेंगे उनको ईट का जवाब पत्थर लोहा सबसे मिलेगा | जिसके चलते वे बदहाल शोषित पिड़ित जिवन जी रहे निर्दोश लोगो की जिवन में सुधार होने देने से पहले ही उन्हे गरिबी भुखमरी हालात पैदा करके भी और शोषण अत्याचार करके भी दबाने बल्कि मारने का पापी सोच लंबे समय से अपडेट होता चला आ रहा है | भेदभाव शोषण अत्याचार जैसी अपराधी सोच मनुवादियो के भ्रष्ट बुद्धी में अपडेट होता चला आ रहा है | जिस तरह की अपराधी सोच उन कमजोर और बुजदिल लोगो की होती है , जिन्हे दुनियाँ का सबसे कमजोर इंसान कहा जा सकता है | जो अपनी शक्तियो का उपयोग रक्षा करने के बजाय शोषण अत्याचार करने में करते हैं | अथवा रक्षक वीर जवान के बजाय भक्षक हैवान बनने में ही उन्हे मानो गर्व महसुश होता है | जिसके चलते वे गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार करने जैसे पापो में गर्व से लिप्त होते रहे हैं | पर गर्व वे जिस पाप कुकर्मो को करते हैं , उस पाप कुकर्मो को ही करके भितर से वे इतना कमजोर और बुजदिल हो जाते हैं कि अपने द्वारा किये और करवाये गए पाप कुकर्मो को कबूल कभी विरले ही कर पाते हैं | बल्कि अपने पाप कुकर्मो का सबूत मिटाने या छिपाने के लिए वे सबसे अधिक समय बर्बाद करते रहते हैं | जैसे की मनुवादियो ने वेद पुराणो में भी छेड़छाड़ और मिलावट करके अपने पूर्वजो के पाप कुकर्मो को छिपाने और मिटाने की कोशिष किया है | क्योंकि उनके द्वारा किये गए पाप कुकर्मो का लिस्ट इतनी लंबी रहती है कि यदि नर्क में भी आदालती कारवाई की तरह ही कारवाई होकर उन्हे सजा मिलता होगा तो वहाँ भी सायद उनके द्वारा किये गए पाप कुकर्मो की जानकारी को जमा करते करते वे नर्क में भी सजा काटने से पहले फिर से मर जाते होंगे | जैसे की इस देश में जो मनुवादि शासन में आदालती कारवाई हो रही है , उसमे बड़े बड़े पाप कुकर्म करने वालो की लिस्ट इतनी लंबी है कि उसको जमा करते करते पापी सजा काटने से पहले ही अपनी जिवन जिकर बुढ़ा होकर मरता जा रहा है | बल्कि सजा देनेवाला जज भी बुढ़ा होकर मरते जा रहे हैं | पर पाप कुकर्मो की लंबी लिस्टो पर सायद ही किसी पापी को सजा मिल पा रहा है | जो लिस्ट नर्क में ट्रांसफर होने के बाद सायद वहाँ भी आदालती कारवाई की तरह पापियो को सजा नही मिल पा रहा है | जिसके चलते पापियो की गैंग मरने के बाद अपनी पापी जिवन को बदलकर नया जिवन जिने के बजाय दुसरा जन्म में भी वही पुराना पाप कुकर्मो की पोटली लेकर फिर से पाप कुकर्मो में पिड़ि दर पिड़ी मोक्ष प्राप्ति के लिए लगे रहते हैं | जो उन्हे अपने द्वारा किये गए पाप कुकर्मो को खुद कबूल करके सजा काटे बगैर प्राप्त कभी भी नही होनेवाला है | क्योंकि जिन पापियो को बिना अपराध को छिपाये या किसी पाप को दुबारा किए बगैर एकदिन के लिए भी जिवित रह पाने में हर रोज मानो साँस लेने में भी दिक्कत होती रहती है , वे आखिर कैसे मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं | बल्कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए भी मानो वे अपराध में अपराध करते रहते हैं | जो अपनी जिवन में मौत का डर को सबसे अधिक दिन रात झेलते हैं | क्योंकि उन्हे मानो कई जन्मो से सजा न मिल पाने की वजह से अपने पाप कुकर्मो की पोटली को अपने पिठ में लादे उसके बोझ तले एक साथ उसे सारे पाप कुकर्मो की सजा छपर फाड़कर मिलेगा इस डर से भी डर डरकर जिवन जिते रहते हैं | जिसके लिये मोक्ष मिलना तो मानो किसी कोरोना को किसी इंसान के द्वारा विवाह रिस्ता के लिए प्रस्ताव मिलने जैसा लगता है | जिसके चलते हर जन्म में वे जन्म लेकर सारी जिवन पाप कुकर्मो की पोटली लिये कोरोना की तरह दुसरो को भय आतंक देकर खुद भी मौत से भयभीत और आतंकित रहते हैं | जिस आतंक को कम करने के लिए जिस तरह बहुत से अँधविश्वासी लोग जब कोई उपाय नही सुझता है तो ढोंगी पाखंडी ठग वगैरा की चंगुल में फंसकर अपनी समस्याओ का सामाधान खोजते फिरते हैं , उसी तरह ये मनुवादि भी अपने ही रचे ढोंग पाखंड का सहारा लेकर मोक्ष प्राप्त करने की कोशिष में लगे रहते हैं , बजाय इसके कि उन्हे अपनी गलती स्वीकार करके अपने और अपने पूर्वजो के पाप कुकर्मो को किसी मल मूत्र की तरह त्याग देना चाहिए था | न कि उसे अपडेट करते रहना चाहिए यह बताकर कि उनके पूर्वजो ने बुराई का विनाश किया था | क्योंकि बुराई यदि वे इस देश के मुलनिवासियो के पूर्वजो को बतलाकर खुदके पूर्वजो को अच्छाई का प्रतिक समझते हैं , तो वे खुद ही अपने पाप कुकर्मो को और अधिक बड़ाने में अपनी नई पिड़ी को भी गलत जानकारी देकर उनके द्वारा पापी बनने में मदत करते आ रहे हैं | जिसके चलते मनुवादि आजतक भी भेदभाव शोषण अत्याचार को पुरी तरह से नही छोड़ पाया है | और पिड़ि दर पिड़ि अपने पाप कुकर्मो को अपडेट करने में ही लगा रहा है |

बहुत से लोग अधुरी बात कर रहे हैं की वर्तमान का प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है

 


बहुत से लोग अधुरी बात कर रहे हैं की वर्तमान का प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है

बहुत से लोग अधुरी बात कर रहे हैं की वर्तमान का प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है



दरसल मैं बहुत दिनो के बाद आज यह पोस्ट एक गाना youtube में देखकर लिख रहा हूँ | वैसे तो हर समय कुछ न कुछ लिखता रहता हूँ , पर उसे मैं सभी को नही डालता हूँ , क्योंकि जो पहले से ही डला हुआ है , उसे ही पढ़ने वालो का इंतजार है तो बाकि को डालकर क्या गूगल को पढ़ाता रहूँगा , जिसके पास पहले से ही दुनियाँ की सबसे अधिक लेखन मौजुद है | लेकिन आज का लिखा पोस्ट को डाल इसलिए रहा हूँ , क्योंकि अली बाबा चलीस चोर की पुरी गैंग चोरी और लुट में दिन रात लगी हुई है , और चोरी के बारे में यह प्रचार प्रसार किया जा रहा है कि सिर्फ एक चोर पुरे देश को बेच रहा है | हलांकि जिस तरह किसी विद्वान ने बहुत सोच समझकर भी यह अधुरी बात कही है कि " जिस देश का राजा हो व्यापारी ( विक्रेता ) वहाँ की प्रजा हो जाती है भिखारी ! " उसी तरह आज भी बहुत से लोग सोच समझकर ही यह अधुरी बात कह रहे हैं की वर्तमान का चाय बेचनेवाला प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है | क्योंकि सिर्फ एक व्यक्ती इस समय पुरा देश बेचकर मालामाल हो रहा है , यह कहना वैसा हि है जैसे कि सरकार में मौजुद प्रधानमंत्री छोड़कर बाकि सब मांसिक तौर पर इतने विकृत हैं कि उन्हे समझ ही नही आ रहा है कि क्या बुरा हो रहा है , और उस बुरा को रोकने के लिए उस एक व्यक्ती के खिलाफ सब एकजुट होकर ऐसी कौन सी कदम उठानी चाहिए कि वह व्यक्ती देश बेचना तो दुर बिना बाकियो के मर्जी के चाय भी बेच नही पायेगा ! क्योंकि संविधान की शपथ क्या उस एक व्यक्ती ने लेकर खुदको शक्ती प्रदान किया है कि सरकार में मौजुद सभी शपथ लेने वालो को खास शक्ती मिला हुआ है ? क्योंकि संविधान सभी शपथ लेने वालो को विशेष शक्ती और अधिकार देता है | लेकिन सिर्फ एक व्यक्ती को बिलेन बनाकर ऐसा पेश किया जा रहा है , जैसे बाकि सब सरकार में शपथ लेकर नंगे होकर चूपचाप लेटे हुए हैं , और वह एक व्यक्ती अकेला चुपचाप देश बेचकर मोटामाल बटोरता जा रहा है | और अकेला जो धन इकठा कर रहा है वह मरने के बाद किसके लिए छोड़कर जाएगा ? क्योंकि न तो उसकी माँ से वह साथ में रह रहा है , और न ही अपनी पत्नी के साथ रह रहा है , जिन्हे उससे कुछ धन चाहिए भी नही ! और सबसे बड़ी बात इन सबकी उम्र इतनी अधिक हो चूकी है की यदि इस देश के नागरिको की औसतन उम्र 70 को सही मानकर चला जाय तो फिर तो ये सभी उस उम्र को पार कर चुके हैं | पर चूँकि गरिबी भुखमरी में भी इनकी आर्थिक स्थिति उतनी खराब नही थी की ये कुपोषित होकर समय से पहले मर सकते थे , और अभी तो इनकी स्थिति क्या है , पुरी दुनियाँ को पता है , खासकर देश विक्रेता जिसे कहा जा रहा है , उसके लिए तो सारी सुख सुविधा और सुरक्षा इतना खास इंतजाम मौजुद है कि जबतक उसका शरिर सुटबूट लगाकर चल फिर रहा है , तबतक हर रोज भले देश की बहुत से सरकारी क्षेत्र को बेचने से बहुत से जवान किसान और जवान रक्षक भी दवाई और भोजन की अभाव में मरेंगे या मर भी रहे हैं यह इतिहास भी दर्ज होता रहेगा पर बुढ़े प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति और कोई मंत्री सांसद भी दवाई और भोजन की अभाव से मर गए जिसके लिए देश की संसद में दो मिनट का मौन रखा जाएगा यह घटना कभी घटित हो ही नही सकती | न देश बेचकर और न ही बिना बेचे भी | और यदि होती तो फिर अबतक के संसद इतिहास में एक भी उदाहरन खोजकर बताया जाय कि किसी प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मंत्री सांसद की मौत दवाई और भोजन की अभाव में हुआ जिसके चलते मौन रखा गया था ! क्योंकि इतिहास गवाह है कि गोरो से आजादी मिलने के बाद से लेकर अबतक जितने भी संसद सत्र चले हैं , एक में भी ऐसी मौन वर्त नही रखा गया है | क्योंकि संसदीय चुनाव प्रक्रिया का स्वरुप और शासन ही चौपट है | जिसमे प्रजा भले हर रोज दवाई और भोजन के अभाव में अनगिनत संख्या में मर सकती है , पर देश के सरकार में मौजुद प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मंत्री सांसद कभी दवाई और भोजन के अभाव में मर ही नही सकते , क्योंकि उनके लिए आर्थिक से लेकर सेहत तक खास इंतजाम संसदीय चुनाव प्रक्रिया पुरी करके सरकार बनने के बाद रहता है | वह भी तब खास तौर पर और भी अधिक रहेगा जब देश आजादी मिलने के बाद उन लोगो के हाथो ही लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में प्रमुखता से दबदबा कायम है , जिनका हजारो सालो का इतिहास इस देश में गुलाम बनाने छुवाछूत शोषण अत्याचार करने का रहा है | जिनकी दबदबा में इस देश की हालत तो वैसे भी हजारो सालो से गुलामी से आजादी पाने के लिए संघर्ष करने से कम नही है | और गुलामी हालत में देश की प्रजा के लिए सुरक्षा पहले किमती सरकारी सुख सुविधा बाद में सोच सरकार का है ये तो वही हुआ जैसे की गुलामी के समय गुलाम करने वाले खुदको भुखा प्यासा रखकर अपनी प्रजा को पेटभर खिलायेंगे | हलांकि न तो सरकार को भुखो मरना चाहिए और न ही प्रजा को भुखो मरना चाहिए | बल्कि दुसरो का खुन चुसकर कालाधन का भंडार इकठा करने वाले परजिवि सोच रखने वालो को भुखो मरना चाहिए | क्योंकि वे पाप करके इकठा किए कालाधन से खा खाकर मर रहे हैं , इससे अच्छा तो भुखो मरकर कम से कम पुरी दुनियाँ की नजर में ही नही बल्कि इतिहास में वे भी निर्दोश लोगो में गिने जाते ! पर अभी तो वे अपना जिस तरह का पाप इतिहास दर्ज कर रहे हैं , उसे तो भविष्य में कतई नही यह कहा जाएगा कि इस समय जो अँधा विकाश का दौर चल रहा है , उसमे एक भी व्यक्ती सौ प्रतिशत साफ सुथरा कमाई से धन्ना बन रहा है |क्योंकि जितने भी लोग धन्ना बन रहे हैं , सभी इस अँधी विकाश का दौर में न चाहकर भी भ्रष्टाचार में किसी न किसी रुप में शामिल होकर ही धन्ना बन रहे हैं | जिसके बाद उल्टा सिधा खा पीकर मर रहे हैं | सायद ही कोई अमिर होगा जिसके उपर भ्रष्टाचार करने का आरोप नही है | और भ्रष्टाचार के सारे आरोप जिसका लंबी लिस्ट देश विदेश दोनो जगह मौजुद है वह सभी फर्जी आरोप है इसपर विश्वास विरले लोग करेंगे | क्योंकि कड़वा सत्य यही है कि ज्यादेतर तो यही इतिहास दर्ज हो रहा है कि इस समय का दौर में कालाधन को छिपाकर कौन कितना बड़ा इमानदार धन्ना बनेगा यह प्रतियोगिता चल रहा है | जिस प्रतियोगिता में शामिल कोई भी व्यक्ती गरिबी भुखमरी से कभी मर ही नही सकता | जैसे की इस कोरोनाकाल में भी मौत किसी प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मंत्री सांसद का काल बनकर नही आ सकता , भले अनगिनत नागरिको के लिए कब्र और चिता के लिए भी जगह नही मिल रहा हो ! हलांकि फिर भी मौत तो एकदिन सुर्य चाँद तारो की भी निश्चित होती है , जो प्राकृति का नियम कानून है , जिसे दुनियाँ की कोई भी नियम कानून नही बदल सकती ! इसलिए देश विक्रेता जिसे कहा जा रहा है , उसकी भी मौत एकदिन निश्चित समय आने पर होगी ही , और उसके लिए भी मौन व्रत जरुर रखे जाएँगे , भले हर रोज अनगिनत संख्या में मरने वाले नागरिको की मौत पर संसद में मौन व्रत सायद ही विरले कभी होता है | जिनके लिए मौन व्रत न रखने वाले प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मंत्री सांसद के लिए कब रखा जाएगा यह तो वह भगवान जाने जिसकी मर्जी से सबको जिवन मिलता है , और जिसकी मर्जी से साँसे भी चलता है | और वैसे पिछले कई सालो से जिस तरह बुड़े बुजुर्गो की मौते तेजी से हो रही है चाहे जिस क्षेत्र से हो , उसे जानकर तो यही लगता है कि प्राकृति पुरानी पिड़ी को अब बहुत जल्द समाप्त करके नई पिड़ी के हाथ में मानवता और पर्यावरण सुधार का नेतृत्व सौपना चाहती है | ताकि जो सुधार पिछली पिड़ी जवानी से बुढ़ापा तक नही कर सकी या नही कर पा रही है , उसे नई पिड़ी कर सके ! जैसे कि अबतक जितनी भी पिछली पिड़ी आई किसी ने भी गरिबी भुखमरी दुर करना तो दुर जो लोग गरिबी भुखमरी जिवन से बाहर हैं , उनके लिए भी इतनी बदहाली जिवन मौजुद है कि वे गरिबी भुखमरी से तो नही मर रहे हैं पर उल्टा सिधा या फिर ज्यादे खा खाकर मर रहे हैं | क्योंकि उनके नेतृत्व में गरिब अमिर के बिच इतना खराब असामानता मौजुद है कि इसका अनुमान इसी बात को जानकर लगाया जा सकता है कि सिर्फ एक प्रतिशत नागरिक के पास 75-80% धन दौलत मौजुद है | यानि सौ व्यक्तियो को यदि सौ रोटी देकर आपस में बांटकर खाने के लिए दिया जाय तो 99 लोग 15-20 रोटी को छोटा छोटा टुकड़ा टुकड़ा करके आपस में बांटकर किसी तरह जिवन यापन कर रहे हैं , और बाकि 1 व्यक्ती 75-80 रोटी को अकेला खाने के लिए धरे हुए है | पर चूँकि वह भी इंसान ही है , इसलिए वह इतना रोटी अकेला पुरा नही खा सकता , जिसके चलते उसका ज्यादेतर रोटी पड़ा का पड़ा हुआ है | बल्कि उसकी रोटी में और अधिक बड़ौतरी हो रही है | जिसे कहा जाता है अमिर और अधिक अमिर बनता जा रहा है , और गरिब और अधिक गरिब बनता जा रहा है | क्योंकि अमिर का धन से जो ब्याज अपनेआप बड़ रहा है , उससे उसका धन अपने आप दोगुना होता जा रहा है | इसलिए यदि वह कुछ कमाई न भी करे तो भी उसको इतना ब्याज धन मिलता रहेगा कि उसकी नई पिड़ी भी बिना कुछ किये कम से कम गरिबी भुखमरी से तो कभी नही मरेगा | हाँ यदि इसी तरह एक व्यक्ती 75-80 रोटी धरकर खाता रहा तो गरिबी भुखमरी से तो नही पर उल्टा सिधा खा खाकर जरुर मरता रहेगा | इसलिए मानवता और पर्यावरण को यदि संतुलित करना है तो गरिब अमिर के बिच में असंतुलित असामानता पैदा करने वाली संसदीय चुनाव प्रणाली को अपडेट करके ऐसी विकसित प्रणाली विकसित करना चाहिए जिसमे सरकार का चुनाव होने के बाद सरकार और प्रजा दोनो को कम से कम इतनी तो सुख सुविधा और सुरक्षा में समानता मिले की कोई नागरिक की न तो गरिबी भुखमरी से मौत हो और न ही अँधी विकाश से उल्टा सिधा खा पीकर मरने जैसे बुरे हालात पैदा हो सके | जो संतुलित मानवता और पर्यावरण इस समय की बुरे दौर में फिलहाल तो चाहकर भी नहीं होंगे | हाँ पुराणी पिड़ियो के जाने के बाद सायद नई पिड़ि अपना तालमेल अपडेट करके सुधार करके अँधी विकाश के जगह आँख खोलकर विकाश करेगा और सायद किसी नागरिक की गरिबी भुखमरी से मौत होने से पहले ही उसके पास दवाई और भोजन वैसा ही पहुँच जाएगा जैसे कि किसी घर में कोई सदस्य बिमार होने पर यदि घर में सक्षम अभिभावक हो तो उसे दवाई ही नही विटामिन युक्त खास खाना पिना व्यवस्था करना सुरु कर देता है | जो इस समय इस देश का अभिभावक बने सरकार खुद छोड़कर बाकि नागरिको के लिए खासकर मध्यम और गरिब परिवारो के लिए क्या ऐसी व्यवस्था बनाकर रखी हुई है कि किसी कि मौत गरिबी भुखमरी और बदहाली से न हो ? एक सरकार आकर गरिबी हटाओ और दुसरी सरकार अच्छे दिन आनेवाले हैं , अश्वासन भाषण देकर इतिहास दर्ज हो रहा है कि कोरोनाकाल जैसे बुरे दिन भी देखने पड़े इस समय मौजुद नागरिक और सरकार को भी ! जिन बुरे दिनो के लिए प्रमुखता से कबिलई सोच से प्रजा सेवा करने की प्रणाली स्थापित हो गई है | और कबिलई सोच के लिए इतिहास गवाह है कि कबिलई सोच सेवा के लिए नही ज्यादेतर लुटमार गुलाम बनाने के लिए मशहुर है | जो कबिलई सोच इस कृषि प्रधान देश में भी कायम हो गया है | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश को पुरी आजादी अबतक नही मिला है | और इसे जबतक पुरी आजादी नही मिल जाती तबतक इसमे कोई शक नही कि पुरी दुनियाँ में भयावह स्थिति और अधिक कायम होती रहेगी | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश को विश्वगुरु यू ही नही कहा जाता है | जिस विश्वगुरु को ही कैद करके मनुस्मृति सोच वाली दबदबा अब विश्वगुरु बनना चाह रहा है तो जाहिर है पुरे विश्व में तो भयावह स्थिति रहेगी ही | जैसे की भष्मासुर खास वरदान पाकर सत्य शिव बनने की सोचकर जब अपने मिले खास वरदान शक्ती का गलत इस्तेमाल करने लगा तो भयावह नजारा चारो ओर मौजुद था | जिसके खुदके द्वारा भष्म होने तक जितने भी निर्दोश लोग मारे गए वे तो खुशियाँ कभी मना नही सके पर जो बचे होंगे वे निश्चित तौर पर इतना खुश हुए होंगे कि मानो सारी दुःखो का पहाड़ सिर्फ एक खबर सुनकर चकनाचूर हो गया होगा कि भष्मासुर भी खुद अपनी वरदान शक्ती से भष्म हो गया ! जिससे पहले उनकी जिवन में क्या होली क्या दीवाली क्या क्रिसमस ईद और बाकि भी ऐसे पर्व त्योहार जिसे मनाते समय सभी मिल जुलकर सबसे अधिक खुशीयाँ मनाते हए आपस में खुशी बांटते हैं | इस देश में तो खुशी बांटने की इतने सारे पर्व त्योहार मौजुद है कि दुःख देने वाले लोग यदि मौजुद न हो तो उन पर्व त्योहारो को मनाने वाले सभी लोग पुरी जिवन ही खुशीयाँ बांटते हुए बितायेंगे | क्योंकि एक पर्व त्योहार समाप्त हुआ नही कि दुसरा पर्व त्योहार खुशी लेकर आ जाती है | जो मुलता हिन्दु कलैंडर जो की प्राकृति पर अधारित है उसके अनुसार ही मनाई जाती है | क्योंकि ये सारे पर्व त्योहार मुलता प्राकृति पर ही अधारित होता है | हर बदलते ऋतु और महिना पर पर्व त्योहार मौजुद है | जिन पर्व त्योहारो में गिने चुने कुछ इतने खास हैं , जिसके आने पर खास छुटियाँ मनाई जाती है | बाकि सब मानो खुशियों की झांकी अथवा ट्रेलर है | जो चंद सेकेंट दिखकर पुरी फिल्म के बारे में मानो प्रचार प्रसार करती रहती है | जो सारे पर्व त्योहार तब अपनी सही रुप में पुरी दुनियाँ को ठीक से दिखेगी जब यह देश पुर्ण रुप से आजाद होगा | जिससे पहले तो मानो इन तमाम पर्व त्योहारो में किसी भष्मासुर द्वारा भय आतंक माहौल बना रहता है | सिर्फ नाम मात्र का खुशी दिखती है , ज्यादेतर तो चारो तरफ दुःख पसरी हुई रहती है | इसलिए मैं अब जबसे यह जाना हूँ कि यह देश पुर्ण रुप से आजाद नही हुआ है , तब से पर्व त्योहार विरले ही मनाता हूँ | हलांकि बाकि लोग भी न मनाये यह मैं कतई नही चाहता , क्योंकि दुःख में भी यह कभी नही भुलनी चाहिए कि पुर्ण आजादी के समय आखिर हमारे पुरखे किस तरह आपस में मिल जुलकर बिना भेदभाव किए खुशियाँ मनाते थे ? तब सभी की जिवन पर्व त्योहारो को मनाने के लिए आर्थिक रुप से भी सक्षम थी | और पूर्ण आजाद हालात में मांसिक रुप से भी पुरी तरह खुश रहते थे | अभी तो चूँकि गुलामी हालात मौजुद है , इसलिए गुलामी झेल रहे दुःखी पिड़ित लोग आर्थिक और मांसिक तौर पर पर्व त्योहार मनाते समय भी पूर्ण रुप से खुश नही रह सकते | जिसके लिए विश्वगुरु को आजाद करना होगा उन कबिलई सोच से जिनकी मन मर्जी से गुलामी कायम है |

खैर यह पोस्ट पढ़ने वालो में जिसे भी ज्ञानयुक्त लगा हो , वे इसे बांटकर मुमकिन हो तो मेरा बाकि पोस्ट भी जरुर पढ़े और बांटे | क्योंकि ज्ञान बांटने से बड़ता है , और छिपाने से घटता है | मैने तो जो ज्ञान बांटा है , उसे सौ लोग भी नही पढ़ते हैं | क्योंकि वर्तमान का दौर जैसा कि बतलाया जिस अँधी विकाश का दौर चल रहा है , उसमे यदि सेक्स के बारे में या तड़क भड़क झुट और ठगी वाला लेख मिर्च मसाला डालकर लिखो तो भिड़ लग जाती है , नही तो मेरा पोस्ट जैसा ही हाल होता है , जिसे पढ़कर सायद कोई अपना वह किमती समय बर्बाद नही करना चाहता है , जिससे उसे भी अँधी विकाश दौड़ में शामिल होना है | भले उनके पास अपने माता पिता और बच्चो वगैरा के लिए समय नही है , पर अँधी विकाश का दौड़ में वह रात में भी भोग विलाश पार्टी वगैरा में हजारो लाखो फिजूल खर्च करके भी शामिल समय से पहले हो जाता है |

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...