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गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

बहुत से लोग अधुरी बात कर रहे हैं की वर्तमान का प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है

 


बहुत से लोग अधुरी बात कर रहे हैं की वर्तमान का प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है

बहुत से लोग अधुरी बात कर रहे हैं की वर्तमान का प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है



दरसल मैं बहुत दिनो के बाद आज यह पोस्ट एक गाना youtube में देखकर लिख रहा हूँ | वैसे तो हर समय कुछ न कुछ लिखता रहता हूँ , पर उसे मैं सभी को नही डालता हूँ , क्योंकि जो पहले से ही डला हुआ है , उसे ही पढ़ने वालो का इंतजार है तो बाकि को डालकर क्या गूगल को पढ़ाता रहूँगा , जिसके पास पहले से ही दुनियाँ की सबसे अधिक लेखन मौजुद है | लेकिन आज का लिखा पोस्ट को डाल इसलिए रहा हूँ , क्योंकि अली बाबा चलीस चोर की पुरी गैंग चोरी और लुट में दिन रात लगी हुई है , और चोरी के बारे में यह प्रचार प्रसार किया जा रहा है कि सिर्फ एक चोर पुरे देश को बेच रहा है | हलांकि जिस तरह किसी विद्वान ने बहुत सोच समझकर भी यह अधुरी बात कही है कि " जिस देश का राजा हो व्यापारी ( विक्रेता ) वहाँ की प्रजा हो जाती है भिखारी ! " उसी तरह आज भी बहुत से लोग सोच समझकर ही यह अधुरी बात कह रहे हैं की वर्तमान का चाय बेचनेवाला प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है | क्योंकि सिर्फ एक व्यक्ती इस समय पुरा देश बेचकर मालामाल हो रहा है , यह कहना वैसा हि है जैसे कि सरकार में मौजुद प्रधानमंत्री छोड़कर बाकि सब मांसिक तौर पर इतने विकृत हैं कि उन्हे समझ ही नही आ रहा है कि क्या बुरा हो रहा है , और उस बुरा को रोकने के लिए उस एक व्यक्ती के खिलाफ सब एकजुट होकर ऐसी कौन सी कदम उठानी चाहिए कि वह व्यक्ती देश बेचना तो दुर बिना बाकियो के मर्जी के चाय भी बेच नही पायेगा ! क्योंकि संविधान की शपथ क्या उस एक व्यक्ती ने लेकर खुदको शक्ती प्रदान किया है कि सरकार में मौजुद सभी शपथ लेने वालो को खास शक्ती मिला हुआ है ? क्योंकि संविधान सभी शपथ लेने वालो को विशेष शक्ती और अधिकार देता है | लेकिन सिर्फ एक व्यक्ती को बिलेन बनाकर ऐसा पेश किया जा रहा है , जैसे बाकि सब सरकार में शपथ लेकर नंगे होकर चूपचाप लेटे हुए हैं , और वह एक व्यक्ती अकेला चुपचाप देश बेचकर मोटामाल बटोरता जा रहा है | और अकेला जो धन इकठा कर रहा है वह मरने के बाद किसके लिए छोड़कर जाएगा ? क्योंकि न तो उसकी माँ से वह साथ में रह रहा है , और न ही अपनी पत्नी के साथ रह रहा है , जिन्हे उससे कुछ धन चाहिए भी नही ! और सबसे बड़ी बात इन सबकी उम्र इतनी अधिक हो चूकी है की यदि इस देश के नागरिको की औसतन उम्र 70 को सही मानकर चला जाय तो फिर तो ये सभी उस उम्र को पार कर चुके हैं | पर चूँकि गरिबी भुखमरी में भी इनकी आर्थिक स्थिति उतनी खराब नही थी की ये कुपोषित होकर समय से पहले मर सकते थे , और अभी तो इनकी स्थिति क्या है , पुरी दुनियाँ को पता है , खासकर देश विक्रेता जिसे कहा जा रहा है , उसके लिए तो सारी सुख सुविधा और सुरक्षा इतना खास इंतजाम मौजुद है कि जबतक उसका शरिर सुटबूट लगाकर चल फिर रहा है , तबतक हर रोज भले देश की बहुत से सरकारी क्षेत्र को बेचने से बहुत से जवान किसान और जवान रक्षक भी दवाई और भोजन की अभाव में मरेंगे या मर भी रहे हैं यह इतिहास भी दर्ज होता रहेगा पर बुढ़े प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति और कोई मंत्री सांसद भी दवाई और भोजन की अभाव से मर गए जिसके लिए देश की संसद में दो मिनट का मौन रखा जाएगा यह घटना कभी घटित हो ही नही सकती | न देश बेचकर और न ही बिना बेचे भी | और यदि होती तो फिर अबतक के संसद इतिहास में एक भी उदाहरन खोजकर बताया जाय कि किसी प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मंत्री सांसद की मौत दवाई और भोजन की अभाव में हुआ जिसके चलते मौन रखा गया था ! क्योंकि इतिहास गवाह है कि गोरो से आजादी मिलने के बाद से लेकर अबतक जितने भी संसद सत्र चले हैं , एक में भी ऐसी मौन वर्त नही रखा गया है | क्योंकि संसदीय चुनाव प्रक्रिया का स्वरुप और शासन ही चौपट है | जिसमे प्रजा भले हर रोज दवाई और भोजन के अभाव में अनगिनत संख्या में मर सकती है , पर देश के सरकार में मौजुद प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मंत्री सांसद कभी दवाई और भोजन के अभाव में मर ही नही सकते , क्योंकि उनके लिए आर्थिक से लेकर सेहत तक खास इंतजाम संसदीय चुनाव प्रक्रिया पुरी करके सरकार बनने के बाद रहता है | वह भी तब खास तौर पर और भी अधिक रहेगा जब देश आजादी मिलने के बाद उन लोगो के हाथो ही लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में प्रमुखता से दबदबा कायम है , जिनका हजारो सालो का इतिहास इस देश में गुलाम बनाने छुवाछूत शोषण अत्याचार करने का रहा है | जिनकी दबदबा में इस देश की हालत तो वैसे भी हजारो सालो से गुलामी से आजादी पाने के लिए संघर्ष करने से कम नही है | और गुलामी हालत में देश की प्रजा के लिए सुरक्षा पहले किमती सरकारी सुख सुविधा बाद में सोच सरकार का है ये तो वही हुआ जैसे की गुलामी के समय गुलाम करने वाले खुदको भुखा प्यासा रखकर अपनी प्रजा को पेटभर खिलायेंगे | हलांकि न तो सरकार को भुखो मरना चाहिए और न ही प्रजा को भुखो मरना चाहिए | बल्कि दुसरो का खुन चुसकर कालाधन का भंडार इकठा करने वाले परजिवि सोच रखने वालो को भुखो मरना चाहिए | क्योंकि वे पाप करके इकठा किए कालाधन से खा खाकर मर रहे हैं , इससे अच्छा तो भुखो मरकर कम से कम पुरी दुनियाँ की नजर में ही नही बल्कि इतिहास में वे भी निर्दोश लोगो में गिने जाते ! पर अभी तो वे अपना जिस तरह का पाप इतिहास दर्ज कर रहे हैं , उसे तो भविष्य में कतई नही यह कहा जाएगा कि इस समय जो अँधा विकाश का दौर चल रहा है , उसमे एक भी व्यक्ती सौ प्रतिशत साफ सुथरा कमाई से धन्ना बन रहा है |क्योंकि जितने भी लोग धन्ना बन रहे हैं , सभी इस अँधी विकाश का दौर में न चाहकर भी भ्रष्टाचार में किसी न किसी रुप में शामिल होकर ही धन्ना बन रहे हैं | जिसके बाद उल्टा सिधा खा पीकर मर रहे हैं | सायद ही कोई अमिर होगा जिसके उपर भ्रष्टाचार करने का आरोप नही है | और भ्रष्टाचार के सारे आरोप जिसका लंबी लिस्ट देश विदेश दोनो जगह मौजुद है वह सभी फर्जी आरोप है इसपर विश्वास विरले लोग करेंगे | क्योंकि कड़वा सत्य यही है कि ज्यादेतर तो यही इतिहास दर्ज हो रहा है कि इस समय का दौर में कालाधन को छिपाकर कौन कितना बड़ा इमानदार धन्ना बनेगा यह प्रतियोगिता चल रहा है | जिस प्रतियोगिता में शामिल कोई भी व्यक्ती गरिबी भुखमरी से कभी मर ही नही सकता | जैसे की इस कोरोनाकाल में भी मौत किसी प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मंत्री सांसद का काल बनकर नही आ सकता , भले अनगिनत नागरिको के लिए कब्र और चिता के लिए भी जगह नही मिल रहा हो ! हलांकि फिर भी मौत तो एकदिन सुर्य चाँद तारो की भी निश्चित होती है , जो प्राकृति का नियम कानून है , जिसे दुनियाँ की कोई भी नियम कानून नही बदल सकती ! इसलिए देश विक्रेता जिसे कहा जा रहा है , उसकी भी मौत एकदिन निश्चित समय आने पर होगी ही , और उसके लिए भी मौन व्रत जरुर रखे जाएँगे , भले हर रोज अनगिनत संख्या में मरने वाले नागरिको की मौत पर संसद में मौन व्रत सायद ही विरले कभी होता है | जिनके लिए मौन व्रत न रखने वाले प्रधानमंत्री राष्ट्रपति मंत्री सांसद के लिए कब रखा जाएगा यह तो वह भगवान जाने जिसकी मर्जी से सबको जिवन मिलता है , और जिसकी मर्जी से साँसे भी चलता है | और वैसे पिछले कई सालो से जिस तरह बुड़े बुजुर्गो की मौते तेजी से हो रही है चाहे जिस क्षेत्र से हो , उसे जानकर तो यही लगता है कि प्राकृति पुरानी पिड़ी को अब बहुत जल्द समाप्त करके नई पिड़ी के हाथ में मानवता और पर्यावरण सुधार का नेतृत्व सौपना चाहती है | ताकि जो सुधार पिछली पिड़ी जवानी से बुढ़ापा तक नही कर सकी या नही कर पा रही है , उसे नई पिड़ी कर सके ! जैसे कि अबतक जितनी भी पिछली पिड़ी आई किसी ने भी गरिबी भुखमरी दुर करना तो दुर जो लोग गरिबी भुखमरी जिवन से बाहर हैं , उनके लिए भी इतनी बदहाली जिवन मौजुद है कि वे गरिबी भुखमरी से तो नही मर रहे हैं पर उल्टा सिधा या फिर ज्यादे खा खाकर मर रहे हैं | क्योंकि उनके नेतृत्व में गरिब अमिर के बिच इतना खराब असामानता मौजुद है कि इसका अनुमान इसी बात को जानकर लगाया जा सकता है कि सिर्फ एक प्रतिशत नागरिक के पास 75-80% धन दौलत मौजुद है | यानि सौ व्यक्तियो को यदि सौ रोटी देकर आपस में बांटकर खाने के लिए दिया जाय तो 99 लोग 15-20 रोटी को छोटा छोटा टुकड़ा टुकड़ा करके आपस में बांटकर किसी तरह जिवन यापन कर रहे हैं , और बाकि 1 व्यक्ती 75-80 रोटी को अकेला खाने के लिए धरे हुए है | पर चूँकि वह भी इंसान ही है , इसलिए वह इतना रोटी अकेला पुरा नही खा सकता , जिसके चलते उसका ज्यादेतर रोटी पड़ा का पड़ा हुआ है | बल्कि उसकी रोटी में और अधिक बड़ौतरी हो रही है | जिसे कहा जाता है अमिर और अधिक अमिर बनता जा रहा है , और गरिब और अधिक गरिब बनता जा रहा है | क्योंकि अमिर का धन से जो ब्याज अपनेआप बड़ रहा है , उससे उसका धन अपने आप दोगुना होता जा रहा है | इसलिए यदि वह कुछ कमाई न भी करे तो भी उसको इतना ब्याज धन मिलता रहेगा कि उसकी नई पिड़ी भी बिना कुछ किये कम से कम गरिबी भुखमरी से तो कभी नही मरेगा | हाँ यदि इसी तरह एक व्यक्ती 75-80 रोटी धरकर खाता रहा तो गरिबी भुखमरी से तो नही पर उल्टा सिधा खा खाकर जरुर मरता रहेगा | इसलिए मानवता और पर्यावरण को यदि संतुलित करना है तो गरिब अमिर के बिच में असंतुलित असामानता पैदा करने वाली संसदीय चुनाव प्रणाली को अपडेट करके ऐसी विकसित प्रणाली विकसित करना चाहिए जिसमे सरकार का चुनाव होने के बाद सरकार और प्रजा दोनो को कम से कम इतनी तो सुख सुविधा और सुरक्षा में समानता मिले की कोई नागरिक की न तो गरिबी भुखमरी से मौत हो और न ही अँधी विकाश से उल्टा सिधा खा पीकर मरने जैसे बुरे हालात पैदा हो सके | जो संतुलित मानवता और पर्यावरण इस समय की बुरे दौर में फिलहाल तो चाहकर भी नहीं होंगे | हाँ पुराणी पिड़ियो के जाने के बाद सायद नई पिड़ि अपना तालमेल अपडेट करके सुधार करके अँधी विकाश के जगह आँख खोलकर विकाश करेगा और सायद किसी नागरिक की गरिबी भुखमरी से मौत होने से पहले ही उसके पास दवाई और भोजन वैसा ही पहुँच जाएगा जैसे कि किसी घर में कोई सदस्य बिमार होने पर यदि घर में सक्षम अभिभावक हो तो उसे दवाई ही नही विटामिन युक्त खास खाना पिना व्यवस्था करना सुरु कर देता है | जो इस समय इस देश का अभिभावक बने सरकार खुद छोड़कर बाकि नागरिको के लिए खासकर मध्यम और गरिब परिवारो के लिए क्या ऐसी व्यवस्था बनाकर रखी हुई है कि किसी कि मौत गरिबी भुखमरी और बदहाली से न हो ? एक सरकार आकर गरिबी हटाओ और दुसरी सरकार अच्छे दिन आनेवाले हैं , अश्वासन भाषण देकर इतिहास दर्ज हो रहा है कि कोरोनाकाल जैसे बुरे दिन भी देखने पड़े इस समय मौजुद नागरिक और सरकार को भी ! जिन बुरे दिनो के लिए प्रमुखता से कबिलई सोच से प्रजा सेवा करने की प्रणाली स्थापित हो गई है | और कबिलई सोच के लिए इतिहास गवाह है कि कबिलई सोच सेवा के लिए नही ज्यादेतर लुटमार गुलाम बनाने के लिए मशहुर है | जो कबिलई सोच इस कृषि प्रधान देश में भी कायम हो गया है | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश को पुरी आजादी अबतक नही मिला है | और इसे जबतक पुरी आजादी नही मिल जाती तबतक इसमे कोई शक नही कि पुरी दुनियाँ में भयावह स्थिति और अधिक कायम होती रहेगी | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश को विश्वगुरु यू ही नही कहा जाता है | जिस विश्वगुरु को ही कैद करके मनुस्मृति सोच वाली दबदबा अब विश्वगुरु बनना चाह रहा है तो जाहिर है पुरे विश्व में तो भयावह स्थिति रहेगी ही | जैसे की भष्मासुर खास वरदान पाकर सत्य शिव बनने की सोचकर जब अपने मिले खास वरदान शक्ती का गलत इस्तेमाल करने लगा तो भयावह नजारा चारो ओर मौजुद था | जिसके खुदके द्वारा भष्म होने तक जितने भी निर्दोश लोग मारे गए वे तो खुशियाँ कभी मना नही सके पर जो बचे होंगे वे निश्चित तौर पर इतना खुश हुए होंगे कि मानो सारी दुःखो का पहाड़ सिर्फ एक खबर सुनकर चकनाचूर हो गया होगा कि भष्मासुर भी खुद अपनी वरदान शक्ती से भष्म हो गया ! जिससे पहले उनकी जिवन में क्या होली क्या दीवाली क्या क्रिसमस ईद और बाकि भी ऐसे पर्व त्योहार जिसे मनाते समय सभी मिल जुलकर सबसे अधिक खुशीयाँ मनाते हए आपस में खुशी बांटते हैं | इस देश में तो खुशी बांटने की इतने सारे पर्व त्योहार मौजुद है कि दुःख देने वाले लोग यदि मौजुद न हो तो उन पर्व त्योहारो को मनाने वाले सभी लोग पुरी जिवन ही खुशीयाँ बांटते हुए बितायेंगे | क्योंकि एक पर्व त्योहार समाप्त हुआ नही कि दुसरा पर्व त्योहार खुशी लेकर आ जाती है | जो मुलता हिन्दु कलैंडर जो की प्राकृति पर अधारित है उसके अनुसार ही मनाई जाती है | क्योंकि ये सारे पर्व त्योहार मुलता प्राकृति पर ही अधारित होता है | हर बदलते ऋतु और महिना पर पर्व त्योहार मौजुद है | जिन पर्व त्योहारो में गिने चुने कुछ इतने खास हैं , जिसके आने पर खास छुटियाँ मनाई जाती है | बाकि सब मानो खुशियों की झांकी अथवा ट्रेलर है | जो चंद सेकेंट दिखकर पुरी फिल्म के बारे में मानो प्रचार प्रसार करती रहती है | जो सारे पर्व त्योहार तब अपनी सही रुप में पुरी दुनियाँ को ठीक से दिखेगी जब यह देश पुर्ण रुप से आजाद होगा | जिससे पहले तो मानो इन तमाम पर्व त्योहारो में किसी भष्मासुर द्वारा भय आतंक माहौल बना रहता है | सिर्फ नाम मात्र का खुशी दिखती है , ज्यादेतर तो चारो तरफ दुःख पसरी हुई रहती है | इसलिए मैं अब जबसे यह जाना हूँ कि यह देश पुर्ण रुप से आजाद नही हुआ है , तब से पर्व त्योहार विरले ही मनाता हूँ | हलांकि बाकि लोग भी न मनाये यह मैं कतई नही चाहता , क्योंकि दुःख में भी यह कभी नही भुलनी चाहिए कि पुर्ण आजादी के समय आखिर हमारे पुरखे किस तरह आपस में मिल जुलकर बिना भेदभाव किए खुशियाँ मनाते थे ? तब सभी की जिवन पर्व त्योहारो को मनाने के लिए आर्थिक रुप से भी सक्षम थी | और पूर्ण आजाद हालात में मांसिक रुप से भी पुरी तरह खुश रहते थे | अभी तो चूँकि गुलामी हालात मौजुद है , इसलिए गुलामी झेल रहे दुःखी पिड़ित लोग आर्थिक और मांसिक तौर पर पर्व त्योहार मनाते समय भी पूर्ण रुप से खुश नही रह सकते | जिसके लिए विश्वगुरु को आजाद करना होगा उन कबिलई सोच से जिनकी मन मर्जी से गुलामी कायम है |

खैर यह पोस्ट पढ़ने वालो में जिसे भी ज्ञानयुक्त लगा हो , वे इसे बांटकर मुमकिन हो तो मेरा बाकि पोस्ट भी जरुर पढ़े और बांटे | क्योंकि ज्ञान बांटने से बड़ता है , और छिपाने से घटता है | मैने तो जो ज्ञान बांटा है , उसे सौ लोग भी नही पढ़ते हैं | क्योंकि वर्तमान का दौर जैसा कि बतलाया जिस अँधी विकाश का दौर चल रहा है , उसमे यदि सेक्स के बारे में या तड़क भड़क झुट और ठगी वाला लेख मिर्च मसाला डालकर लिखो तो भिड़ लग जाती है , नही तो मेरा पोस्ट जैसा ही हाल होता है , जिसे पढ़कर सायद कोई अपना वह किमती समय बर्बाद नही करना चाहता है , जिससे उसे भी अँधी विकाश दौड़ में शामिल होना है | भले उनके पास अपने माता पिता और बच्चो वगैरा के लिए समय नही है , पर अँधी विकाश का दौड़ में वह रात में भी भोग विलाश पार्टी वगैरा में हजारो लाखो फिजूल खर्च करके भी शामिल समय से पहले हो जाता है |

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