वर्तमान की न्याय व्यवस्था
झुठी शान में डुबे हुए कुछ
सेखी लोग अपनी नकामी या हार को मानो किसी भोदु की तरह सिर्फ कॉपी का पेज बर्बाद कर करके उसे अंतिम में अपनी भोदुपन को छिपाने के लिए फाड़ते मिटाते रहते हैं|जैसे की कई बुरे लोग अपने एक अपराध और एक झुठ को छिपाने के लिए दस झुठ और दस अपराध करते रहते हैं |क्योंकि उन्हे खुदके द्वारा किए गए कुकर्मो से इतनी शर्म या फिर डर महसुस होती है, कि बिना अपने गलतियो को छुपाये या मिटाये उन्हे दिन रात मानो निंद के साथ साथ चैन भी नही आती है|बजाय इसके कि वे अपनी पहली गलती पर ही उसे कबूल करके उसका प्राश्चित करते या फिर सजा काटते|उसके बाद शांती पुर्वक निश्चित होकर चैन की निंद सोते|पर चुँकि उनके द्वारा जान बुझकर की गई अपराध होती है,इसलिए उन्हे कबूल करके सजा पाने या फिर प्राश्चित करने के बाद भी ये डर और बेचैनी दिन रात सताती रहती है कि बिना कोई कसूर के उन्होने जिस निर्दोश को भी हानि पहुँचाया होगा या तकलिफ दिया होगा वे उनसे जरुर बदला ले सकते हैं, भले वे अपनी पाप करके गंगा में डुबकी मारे या फिर जेल में सजा काटे|जिसके चलते ऐसे मामले में ज्यादेतर लोग कोर्ट कचहरी का सरन लेकर और अपना वकिल खड़ा करके अपनी गलती कबूल न करके कोई न कोई बहाना करके या फिर छल कपट तरकिब निकालके केश को ज्यादे से ज्यादे खिचवाते रहते हैं|या फिर सजा से बचने के लिए तरह तरह कि अपराधिक तरकिबे अपनाते हैं|जिन पेशेवर भ्रष्टाचारियो और ढोंगी पाखंडियो के लिए तो कोर्ट कचहरी मेरे ख्याल से सजा पाने के लिए कम और अपने किए गए अपराधो से बचने के लिए और बड़ी अपराध बड़ाने के लिए ज्यादे इस्तेमाल में लाई जा रही है|जो यदि झुठ होती तो फिर गोरो के द्वारा जज बनकर देश गुलाम करने की न्याय सुनाकर न्यायालय की जो गठन हुई है,उसकी न्याय प्रणाली को गोरो से अजादी मिलने के बाद भी अँग्रेजी अदालत में न्याय सुनवाई के बाद अपराध का आंकड़ दिन रात उपर नही जाती बल्कि निचे जाते हुए अबतक अपराध का आंकड़ा न के बराबर हो गई होती,जो की इसी बात से अभी के अपराध घटना का अंदाजा लगाया जा सकता है कि करोड़ो केश तो कोर्ट कचहरी में पड़े पड़े फाईलो में धुल फांक रही है|जिनमे से कई का तो फैशला सुनाया ही नही जा सका और सजा पाने या छुटने वाले कई तो कोर्ट कचहरी का चक्कर काटने के बाद जवानी से लेकर बुढ़ापा जिवन भी कोर्ट कचहरी का ही चक्कर काटते काटते अंतिम में या तो नर्क में सजा पा रहे होते हैं या फिर स्वर्ग में इनाम पा रहे होते हैं,यदि इंसानो के मरने के बाद वाकई में स्वर्ग नर्क नाम की भी एक सबसे बड़ी सत्य न्याय प्रणाली होती होगी,जहाँ पर गुनेहगार और निर्दोश दोनो के लिए अलग अलग जगह तय की गयी होती है मरने के बाद की न्याय व्यवस्था में|जहाँ पर सबकी जिवनलिला का पुरी विवरण दर्ज हो रही है,उसके आधार पर ही उन्हे सजा मिलती है यैसा माना जाता है|और चुँकि इससे पहले का जिवन विवरण इंसान द्वारा जो इतिहास और थानो में दर्ज हो रही है वह छिपाई भी जा रही है इसलिए जाहिर है सत्य न्याय होने में चुँकि अपराधी या निर्दोश को ही पता रहता है कि वाकई में वह रेप किया है कि नही किया है,जिसे अदालत में सिद्ध किये बगैर उस निर्दोश या अपराधी के द्वारा सिर्फ कहे जाने से फैशला नही हो जाता है,क्योंकि इंसान की बुद्धी झुठ बोलने में भी महारत हासिल कर लिया है और सत्य की राह में भी चलने में महारत हासिल कर लिया है|पर चुँकि कौन सी बुद्धी झुठा अथवा भ्रष्ट बुद्धी है इसकी भी खोज कोर्ट कचहरी में की जाती रहती है|क्योंकि इंसान का पुरी जिवन विवरण कर्म कुकर्म तो एक एक पल की हिसाब किताब स्वर्ग नर्क में जाने से पहले भगवान के खाते में दर्ज मानी जाती है,पर इंसानो की बनाई कोर्ट कचहरी में किसी इंसान की पुरी जिवण दर्ज नही होती है कि सुबह से लेकर सुबह तक उसकी पुरी दिनचर्या हर रोज कैसी रही या रहती है|जिसके चलते कोई बलात्कारी या घोटालेबाज,ठग,ढोंगी,पाखंडी,चोर लुटेरे भ्रष्टाचारी इत्यादि में बहुत से अपराधी अपराध करके भी कोर्ट कचहरी में झुठ बोलकर बच निकलने की फिरात में ही केश लड़ते हैं|जो अंतिम में कई बार तो अपराध सिद्ध हो जाने के बाद हारकर कबूल करते हुए सबको ये बतलाने की कोशिष करते हैं कि मानो उन्होने जो अपराध किया है, उसके बारे में केश हारे जाने तक उन्हे तो पता ही नही था कि वाकई में उन्होने ने ही रेप किया था|जो किसी मांसिक रोगी या पागल की तरह बलात्कार या बाकि भी गंभीर से गंभीर अपराध को वे कब कर रहे थे और जिससे बच निकलने की फिरात में कोर्ट कचहरी में भी सजा से बचने के लिए क्या क्या अपराध कर रहे थे उसके बारे में तो उन्हे और उनके वकिल और बाकि भी करिबियो को कुछ पता ही नही था सजा सुनाये जाने और कबूल करने से पहले तक|जो मेरे ख्याल से सबसे बड़ी कमजोरी कड़ी है अदालत का जिसे मजबुत करने के लिए मैं तो एक नागरिक होने के नाते यही राय दुँगा कि जिस अपराधि को कोई ऐसा अपराध की सजा मिला हो,जिसे करते हुए कोई व्यक्ती अच्छी तरह से पुरी जिवन भी चाहे तो याद करके रख सकता है अपनी दिमाक में कि उसने क्या किया है,उस अपराध को खुद सोच समझकर जान बुझकर अपराध करके यदि कोई अपराधी कोर्ट कचहरी में झुठ बोलकर खुदको निर्दोश साबित करने के लिए केश लड़ते हुए अंतिम में सजा पाता है तो उसके करिबियो और उसके केश में मदत करने वाले वकिल और बाकियो को भी सजा जरुर मिलनी चाहिए, भले ही उनसे कम मिले पर मिले जरुर|क्योंकि मुझे पुरा यकिन है कि इस तरह की अपराध और अपराधी के बारे में केश लड़ते समय उसके वकिल और उसके सबसे खास करिबियो को उस अपराधी का बहुत कुछ अपराध के बारे में पता रहता है, लेकिन फिर भी सभी उसे बचाने में लगे रहते हैं अंतिम तक|और चुँकि मेरी नजर में उस केश का नेतृत्व अपराधी कर रहा होता है, जो खुदको बचाने के लिए अपनी पुरी टीम लगाए हुए रहता है,जिसमे कि वकिल से लेकर बाकि करिबि और बहुत करिबी परिवार रिस्तेदारो में भी जो लोग उस अपराधी की बात मानकर उसके साथ कोर्ट कचहरी की चक्कर काट रहे होते हैं उसे निर्दोश साबित करने के लिए,वे सब उसके बचाव टीम के ही सदस्य होते हैं,जिसका मुखिया वह अपराधी होता है,इसलिए यदि सजा कप्तान को सुनाया जाता है तो मेरे ख्याल से उस सजा में थोड़ी बहुत हिस्सा तो उसके टीम के सदस्यो में भी आनी ही चाहिए|जैसे कि केश जितने और निर्दोश साबित होने पर उसकी पुरी टीम जस्न मनाती है|बाकि जो लोग इस केश से खुदको अलग रखकर न्याय आने का इंतजार करते रहते हैं उनको मैं सहयोगी नही मान रहा हुँ उस बचाव टीम का सदस्य के रुप में,बल्कि सदस्य उसे मान रहा हुँ जो अपने कप्तान को बचाने के लिए दिन रात एक करके उसके साथ कोर्ट कचहरी से लेकर जेल तक चिपके रहते हैं|बल्कि वे तो अपराधी को सजा मिलने के बाद भी मानो उसकी हौसला बड़ाने के लिए जेल में भी जाकर उन्हे सारी सुख सुविधा प्रदान कराते रहते हैं ये कहकर की इसे अंदर कोई तकलिफ नही होनी चाहिए|जिसका सबसे बड़ी उदाहरन किसी अपराधी को फांसी पर भी चड़ाने से पहले करोड़ो की महंगी सुरक्षा और खाना खजाना और बिरयानी खिलाकर आखिर किस तरह की न्याय केश लड़ी जाती है खासकर उस बुरे हालात में जब इस देश में हर रोज गरिबी भुखमरी से हजारो की संख्या में निर्दोशो की मौते हो रही हो और दुसरी तरफ एक सबसे बड़े अपराधी को भी करोड़ो रुपये की जिवन सुरक्षा देकर बिरयानी खिलाई जा रही हो| जबकि हर रोज जो हजारो निर्दोशो की गरिबी भुखमरी से मौते हो रही है उसकी सुरक्षा की खास जिम्मेवारी क्यों नही निभाई जा रही है,जबकि संविधान में सभी नागरिक को जिने का अधिकार प्राप्त है,जिसे नागरिकता भी प्राप्त नही है उसके लिए जिवन सुरक्षा के नाम पर करोड़ो की इंतजाम और जेल में भी खाना खजाना बिरयानी,पर हर रोज जो हजारो नागरिक की गरिबी भुखमरी से मौते हो रही है उसकी जिम्मेवारी कौन लेगा इतिहास के पन्नो में,खासकर तब जबकि गरिब की सेवा करने के नाम से जनता मालिक की तो हर रोज गरिबी भुखमरी से हजारो की तादार में मौत हो रही है पर गरिब की सेवा करने की शपथ लेने के बाद खुदको जनता मालिक का नौकर बतलाने वाले एक भी मंत्री या उच्च अधिकारी की मौत गरिबी भुखमरी से क्यों नही हो रही है?जबकि यदि मालिक मर रहा है गरिबी भुखमरी से तो उस मालिक की सेवा में कार्यरत मंत्री और उच्च अधिकारी नौकर की भी तो मौत गरिबी और भुखमरी से जरुर होनी चाहिए थी|पर आजतक किसी भी संसद सत्र में किसी मंत्री की भी गरिबी भुखमरी से मौत के बाद दो मिनट की मौन वर्त लेते हुए लाईव खबर देखी सुनी क्यों नही गयी है?
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