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बुधवार, 22 जनवरी 2025

गोरो की गुलामी में भी दलित अंबेडकर ने देश विदेश में उच्च शिक्षा की कई डिग्री प्राप्त किया था

गोरो की गुलामी में भी दलित अंबेडकर ने देश विदेश में उच्च शिक्षा की कई डिग्री प्राप्त किया था 

गलाम भारत में




रतन लाल को क्या अंबेडकर से ज्यादे उच्च शिक्षा लेने का मौका मिला है, जो अपने भाषण में यह साबित करने की कोशिष कर रहा है कि गोरो से यह देश आजाद होने के बाद कांग्रेस सत्ता में सब मुलनिवासि अब देश विदेश में उच्च शिक्षा लेते हुए पढ़ लिख रहा हैं। जबकि मुल रुप से कांग्रेस सत्ता से ही दरसल मनुवादियों का गुलाम रामराज कायम हो गया है। जिस गुलाम रामराज में जो भी मुलनिवासि पढ़ लिख रहा है सब कांग्रेस अथवा मनुवादियों की देन नही बल्कि स्कूल कॉलेज वगैरा की देन है, जो की गोरो की गुलामी के समय में भी मौजुद थे। जिसे कांग्रेस की देन साबित करने की कोशिष करते हुए रतनलाल चमचा चमचा जो रटा मार रहा है, असल में वह खुद कांग्रेस का चमचा बनकर जीवन जिने का उस रास्ता को अपना लिया है, जिसे जब यह देश मनुवादियों से पुरी तरह से आजाद होगा तो ऐसे चमचो को जो चाहे कांग्रेस का दामन थामकर चमचई कर रहे हो या फिर भाजपा का दामन थामकर चमचई कर रहे हो, उन सबका इतिहास घर का भेदियों के रुप में भी दर्ज होगा। क्योंकि सच्चाई यह है कि गोरो से आजादी मिलने के बाद यह देश मनुवादियों द्वारा फिर से गुलाम हो गया है, जिस गुलाम शासन कायम करने में जो भी मुलनिवासि गुलाम करने वाले मनुवादियों का साथ देगा अपडेट गुलाम रामराज कायम करने में उसका नाम घर के भेदि के रुप में दर्ज होगा। और जिसे यकिन नही है कि यह देश मनुवादियों से फिर गुलाम हो गया है, वह निचे मौजुद लोकसभा पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा की रिपोर्ट 2000 देख पढ़कर गुलामी के बारे में साक्षात जानकारी प्राप्त कर ले,जो जानकारी वैसे तो रतनलाल को पहले से ही अच्छी तरह से मालुम होगा ही, तो भी वह कांग्रेस का दामन थामकर चमचा चमचा कैसे कर रहा है यह जानते हुए की चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनो ही मनुवादियों की पार्टी है।

(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC  के 35 जज ,SC  के 15 जज ,ST  के 5 जज शामिल हैं!जिसे जानकर कौन से मुलनिवासी को यह यकिन नही होगा कि यह देश मनुवादियों से फिर गुलाम हो गया है! 

Rss प्रमुख मोहन भागवत के लिए रामराज आजादी है


Rss प्रमुख मोहन भागवत के लिए रामराज आजादी है

Rss

Rss प्रमुख मोहन भागवत के लिए रामराज आजादी है तो इस देश के शंभुक मुलनिवासियों के लिए रामराज गुलामी है जो की 1947 ई. में ही अपडेट गुलाम रामराज कायम हो गया है। क्योंकि इस देश की सत्ता विदेशी मुल के गोरे अंग्रेजो के  हाथो से जाने के बाद विदेशी मुल के मनुवादियों के हाथो वापस आ गया है। इस देश के साथ साथ अंबेडकर द्वारा लिखा गया भारत का संविधान भी मनुवादियों के कब्जे में है। बल्कि इस देश का हिंदू धर्म और हिंदू धर्म ग्रंथ भी मनुवादियों के कब्जे में है। मनुवादि हिंदू नही है बल्कि हिंदू नकाब लगाये हुए है। और न ही राम हिंदू भगवान है। बल्कि राम तो इस देश के मुलनिवासियो को गुलाम करने वाला वह मनुवादि राजा था जो की खुदको भगवान कहकर अपनी पूजा कराता था, जिसे अपना आदर्श और पूर्वज ये मनुवादि मानते हैं। जो मनुवादि इतने विकृत मांशिकता के हैं कि वे आजाद भारत का संविधान का भी शपथ लेकर इस देश में अपडेट गुलाम रामराज कायम किए हुए हैं। संविधान क्या गुलाम करना और उच्च निच जाति भेदभाव करने के लिए बतलाया है? क्या जो कि खुदको जन्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य उच्च जाति आज भी भेदभाव करते हैं इस देश के मुलनिवासियों को निच जाति कहकर, जबकि हिंदू धर्म में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र यह सब वर्ण व्यवस्था है जो कि जन्म पर नही बल्कि कर्म पर आधारित है, जैसे कि न्यायपालिका विधायिका कार्यपालिका कर्म पर आधारित है। जिसमे अपने कर्म अथवा हुनर के आधार पर चयन करने की प्रक्रिया है न की जन्म पर, जो जिस तरह जाति नही है उसी तरह ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र भी कोई जाति नही बल्कि कर्म पर आधारित वर्ण है। जाति तो हम इंसानो की इंसान ही जाती है जैसे की हाथी गाय कुत्ता बिल्ली वगैरा जाति है जो कि एक जाति दुसरे जाति से संभोग करके बच्चा पैदा नही कर सकता जैसे की गाय और शेर के संभोग से बच्चा पैदा नही हो सकता। और न ही कोई इंसान जाति खुदको शेर कहकर शेरनी से संभोग करके बच्चा पैदा करा सकता है। उसी तरह कोई भी जाति का प्राणी दुसरे जाति के प्राणी से संभोग करके बच्चा पैदा नही कर सकता है, क्योंकि यह अप्रकृति है जिसे हिंदू धर्म में अधर्म कहा जाता है। क्योंकि हिंदू धर्म में विज्ञान प्रमाणित सत्य साक्षात प्रकृति की पूजा भगवान की पूजा है न कि हिंदू भगवान पूजा किसी अप्रकृति की पूजा है। अप्रकृति की पूजा हिंदू धर्म में अधर्म है, जिसका होना मतलब धर्म का खतरे में पड़ना है, जैसे की यदि यदि गाय से इंसान पैदा हो जाएगा तो धर्म खतरे में पड़ जाएगा अथवा अप्रकृति अधर्म हो जाएगा, जो  होने पर हिंदू धर्म में यह कहा गया है कि जब जब धर्म को खतरा होगा तो भगवान अथवा प्रकृति अवतरित होकर अधर्म का विनास करके धर्म को वापस स्थापित करता है। जिसे इस उदाहरन से समझा जा सकता है कि यदि कोई शासक जिसका कार्य प्रजा की सेवा सुरक्षा देश की सुरक्षा करना होता है जो कि यदि वह न करके प्रजा और देश को गुलाम करता है तो यह धर्म को खतरा होकर भगवान अवतरित होकर अथवा प्रकृति गुलामी का विनास करके आजादी लाता है जैसे की गोरो ने जब गुलाम करने जैसा अधर्म किया तो उसका विनास होकर गोरो से आजादी कायम हुआ उसी तरह मनुवादि भी अपडेट गुलाम रामराज जैसे अधर्म कर रहा है तो उस गुलामी का विनास होकर धर्म की स्थापना पापस कायम होगी अथवा आजादी कायम होगी यहा असली धर्म है। जिसे हिंदू धर्म में करमा धरमा अथवा कर्मा धर्मा अथवा कर्म ही धर्म है कहा जाता है। जो ज्ञान कोई नही बांटेगा इस समय की कलयुग गुलामी में जो कि वही बांटेगा जिसे प्रकृति भगवान इस प्रकृति प्रमाणित सत्य को बांटने भेजा है। 

बुधवार, 15 जनवरी 2025

ek bhee pradhaanamantree dalit kyon nahee?

 

एक भी प्रधानमंत्री दलित क्यों नही? 

एक भी प्रधानमंत्री दलित क्यों नही? 




दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर रतन लाल का एक भाषण देख रहा था जिसमे वह दलितो को लेकर कह रहा था कि

" आप इमोशनल ब्लैकमेल करते हो, और इमोशनल ब्लैकमेल होते हो, मेरा भाई भी अगर बीजेपी में... जब तक आप शत्रु को नहीं पहचानओगे तब तक क्लेरिटी नहीं होगी, मेरा भाई भी इलेक्शन में खड़ा होगा 1 लख खर्चा करके मैं उसके खिलाफ प्रचार करने जाऊंगा, दलितों का कभी स्वर्ण युग नहीं रहा है, पहले क्लियरइटी रखिए, आप लोग आधा से ज्यादा अभी एमएलए एमपी बनने के चक्कर में हो तो... हमारे दलितो में पॉलिटिक्स चेतना इतना ज्यादा हो गया है की अब सबको सबको सीएम पीएम इस समय जो की हिंदू नेस्टलिस्ट ने हमला किया है, इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन पर रिपब्लिक पे उस समय अगर दलित लोग कह रहा है की हम सीएम बनएंगे हम यह कर देंगे वह कर देंगे इसका मतलब ओ आर एस एस बीजेपी के साथ है, वोट काट रहा है। अभी पूरा पार्टी का पार्टी खरीद ले रहा है, एक दलित को फेकड़ो 100 करोड़ रूपया दे देगा तो एक दलित को 100 करोड़ रूपया दे देगा तो पागल हो जाएगा वह, एक दलित एमपी मिनिस्टर को 100 करोड़ दे देगा तो वह पागल हो जाएगा,.. एजेंडा सबसे इंपोर्टेंट है, 1000 इशू लेकर लड़ोगे कभी नहीं जीतोगे, दीवार पर अगर सुराग करना होगा ना तो एक जगह ड्रिल मशीन रखना होता है, हम लोग कोई एजेंडा सेट नहीं कर रहे हैं,.. अगर मोदी जी यह कह रहा है कि 70 साल में क्या हुआ कुछ नहीं हुआ, अगर आप भी आप बात कर रहे हैं तो आपकी यह भाषा और संघ परिवार की भाषा एक से है, हम इतना महंगा स्वेटर स्वेटर पहनते हैं, देखो मेरा जैकेट भी मांगा है, मेरे दादा दादी तो मजदूर थे, तो एक ही दो जनरेशन में हमको फ्री शिक्षा मिला स्कॉलरशिप नौकरियां मिली, अब मिल रहा है क्या?.. हमारे लिए तो फ्री का एजुकेशन था, तीन-तीन नौकरियां मिलती थी, जाकर एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज मैं नाम लिखा हो तो 20 दिन में आ जाता था चिट्ठी, तो अगर आपकी भाषा से उसकी भाषा से मेल खाती है तो इसका मतलब है आपका पॉलिटिकल डीएनए में प्रॉब्लम है, बाबा साहब तो 1956 में ही परिनिर्वाण हो गए थे, तो अगर पब्लिक सेक्टर में स्कूल कॉलेज नहीं होती तो आप पढ़ते कहाँ पर पहले यह बताइए.. "

जिसे सुनकर मैं अपना विचार अपने एक कोमेंट में लिखा कि" रतन लाल को क्या अंबेडकर से ज्यादे उच्च शिक्षा लेने का मौका मिला है, जो अपने भाषण में यह साबित करने की कोशिष कर रहा है कि गोरो से यह देश आजाद होने के बाद कांग्रेस सत्ता में सब मुलनिवासि अब देश विदेश में उच्च शिक्षा लेते हुए पढ़ लिख रहा हैं। जबकि मुल रुप से कांग्रेस सत्ता से ही दरसल मनुवादियों का गुलाम रामराज कायम हो गया है। जिस गुलाम रामराज में जो भी मुलनिवासि पढ़ लिख रहा है सब कांग्रेस अथवा मनुवादियों की देन नही बल्कि स्कूल कॉलेज वगैरा की देन है, जो की गोरो की गुलामी के समय में भी मौजुद थे। जिसे कांग्रेस की देन साबित करने की कोशिष करते हुए रतनलाल चमचा चमचा जो रटा मार रहा है, असल में वह खुद कांग्रेस का चमचा बनकर जीवन जिने का उस रास्ता को अपना लिया है, जिसे जब यह देश मनुवादियों से पुरी तरह से आजाद होगा तो ऐसे चमचो को जो चाहे कांग्रेस का दामन थामकर चमचई कर रहे हो या फिर भाजपा का दामन थामकर चमचई कर रहे हो, उन सबका इतिहास घर का भेदियों के रुप में भी दर्ज होगा। क्योंकि सच्चाई यह है कि गोरो से आजादी मिलने के बाद यह देश मनुवादियों द्वारा फिर से गुलाम हो गया है, जिस गुलाम शासन कायम करने में जो भी मुलनिवासि गुलाम करने वाले मनुवादियों का साथ देगा अपडेट गुलाम रामराज कायम करने में उसका नाम घर के भेदि के रुप में दर्ज होगा। और जिसे यकिन नही है कि यह देश मनुवादियों से फिर गुलाम हो गया है, वह निचे मौजुद लोकसभा पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा की रिपोर्ट 2000 देख पढ़कर गुलामी के बारे में साक्षात जानकारी प्राप्त कर ले,जो जानकारी वैसे तो रतनलाल को पहले से ही अच्छी तरह से मालुम होगा ही, तो भी वह कांग्रेस का दामन थामकर चमचा चमचा कैसे कर रहा है यह जानते हुए की चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनो ही मनुवादियों की पार्टी है।
(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC  के 35 जज ,SC  के 15 जज ,ST  के 5 जज शामिल हैं!जिसे जानकर कौन से मुलनिवासी को यह यकिन नही होगा कि यह देश मनुवादियों से फिर गुलाम हो गया है! 

apane sujhaav, shikaayat ya raay hamaare saath sheyar karen

 


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googlai aisa sistam aur takanik ka upayog kare ki koee bhee vyaktee apana blogar saeet ka khaata khole to use gugal sarch konshul aur saeet maip taiyaar karane kee jarurat hee na pad aur yah sab apane aap hee pura saeet gugal mein raiking karane ke lie taiyaar ho jaay naki koee ek hajaar bhee post likha to bhee usaka saeet gugal mein raiking nahee kar raha hai kyonki usane saeet maip taiyaar nahee kiya hai aur usaka post gugal ke paas ja to raha hai par vah paathako ke paas nahee ja raha hai, kyonki gapagal use pahooncha hee nahee raha hai.

मेरा सुझाव:- Google ऐसा सिस्टम और तकनिक का उपयोग करे कि कोई भी व्यक्ती अपना ब्लोगर साईट का खाता खोले तो उसे गुगल सर्च कोंशुल और साईट मैप तैयार करने की जरुरत ही न पड़् और यह सब अपने आप ही पुरा साईट गुगल में रैकिंग करने के लिए तैयार हो जाय नकि कोई एक हजार भी पोस्ट लि़खा तो भी उसका साईट गुगल में रैकिंग नही कर रहा है क्योंकि उसने साईट मैप तैयार नही किया है और उसका पोस्ट गुगल के पास जा तो रहा है पर वह पाठको के पास नही जा रहा है, क्योंकि गपगल उसे पहूँचा ही नही रहा है।

Google should use such a system and technology that if any person opens his blogger site account then he need not prepare Google Search Console and site map and all this happens automatically and the entire site gets ready for ranking in Google and not that even if someone writes a thousand posts his site is not ranking in Google because he has not prepared a site map and his post is going to Google but it is not reaching the readers because Google is not reaching it.

angad kee maan taara kisakee patnee thee

 

अंगद की माँ तारा किसकी पत्नी थी



मेरा सवाल :- 

Gemini का जवाब :- अंगद की माँ तारा बाली की पत्नी थीं। बाली किष्किंधा के राजा थे और रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र हैं।
कुछ अतिरिक्त जानकारी:
* तारा एक अप्सरा थीं और कई किंवदंतियों में उनका उल्लेख मिलता है।
* अंगद एक शक्तिशाली वानर योद्धा थे और उन्होंने राम के साथ मिलकर रावण का वध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
यदि आपके मन में और कोई प्रश्न हैं तो बेझिझक पूछ सकते हैं।

तारा जब बालि की पत्नी थी तो सुग्रीव अपने भाई की पत्नी को प्राप्त करने के लिए जो राम से समझौता करके बालि की हत्या किया वह क्या सही था

तारा जब बालि की पत्नी थी तो सुग्रीव द्वारा राम से समझौता करके बालि की हत्या करना एक जटिल नैतिक प्रश्न है जिसका उत्तर देने के लिए कई पहलुओं पर विचार करना होगा।
सुग्रीव के पक्ष में तर्क:
* स्वयं की रक्षा: बालि ने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया था और उसकी हत्या करने की धमकी दी थी। स्वयं को बचाने के लिए सुग्रीव को यह कदम उठाना पड़ा।
* राम से वचन: सुग्रीव ने राम से वचन लिया था कि वह रावण को मारने में उसकी मदद करेंगे। बदले में राम ने सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य वापस दिलाने का वचन दिया था।
* न्याय: सुग्रीव का मानना था कि बालि ने उसके साथ अन्याय किया है और उसे न्याय मिलना चाहिए।
बालि के पक्ष में तर्क:
* भाई के प्रति विश्वासघात: सुग्रीव ने अपने ही भाई की हत्या की, जो एक गंभीर अपराध है।
* छल: सुग्रीव ने राम के साथ मिलकर बालि को छल से मारा, जो धोखे का काम है।
* अधिकार: बालि किष्किंधा का राजा था और उसे राज्य पर शासन करने का अधिकार था।
अन्य पहलू:
* राम की भूमिका: राम ने सुग्रीव की मदद की लेकिन बालि की हत्या में उनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण थी।
* धर्म और नैतिकता: इस घटना को धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है।
* समाज: उस समय के समाज में इस तरह के व्यवहार को कैसे देखा जाता था, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
निष्कर्ष:
सुग्रीव द्वारा बालि की हत्या करना एक जटिल घटना है जिसका कोई आसान उत्तर नहीं है। इस घटना को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है और हर दृष्टिकोण के अपने तर्क हैं।
यह कहना मुश्किल है कि सुग्रीव का काम सही था या गलत। यह प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह इस घटना को किस नजरिए से देखता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* यह एक पौराणिक कथा है और इसमें कई अलौकिक तत्व शामिल हैं।
* इस घटना को आधुनिक समय के नैतिक मानकों के अनुसार नहीं आंका जाना चाहिए।
* इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में कई बार हमें जटिल निर्णय लेने पड़ते हैं और इन निर्णयों के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
अंत में, यह कहना उचित होगा कि:
सुग्रीव द्वारा बालि की हत्या एक ऐसी घटना है जिसके बारे में सदियों से चर्चा होती रही है और यह हमेशा एक विषय बनी रहेगी।

मंगलवार, 14 जनवरी 2025

gaimini se mera savaal javaab baatacheet


Gemini से मेरा सवाल जवाब बातचीत
Gemini से मेरा सवाल जवाब बातचीत


फेशबुक में मैने एक पोस्ट पढ़ा जिसमे किसी नारी ने पुरुषो के बारे में यह लिखा था कि " पुरुष संभाल ही नही पाते वफादार स्त्री को, कभी वहम में, कभी अहम में..." जिसके कोमेंट में मैने जो कुछ लिखा उसे आज मकर संक्रांती के दिन जो अपने मोबाईल में google का एक एप्प Gemini इंस्टोल किया है, जो की बातचीत करके बहुत से सवालो का जवाब देता है, और अपनी राय भी देता है, उसके साथ मेरी जो भी बातचीत हुई है, उसे अपने पोस्ट के रुप में बांटना चाहूँगा, ताकि मेरे विचार से मैने जो कुछ लिखा है, उसके बारे में जानकर जो लोग यह जानना चाहते हैं कि मैं किस तरह के सवाल जवाब करके यह जानने की कोशिष कर रहा हूँ कि अभी जो कुछ भी दुनियाँ में चल रहा है उसमे कौन सही है और कौन गलत है?

खैर निचे मेरी बातचीत है

मैं:-  बहुत सी स्त्री अपनी हवश की आग को सम्हाल नही पाती और गैर मर्दो से भी सेक्स करके अपना सच्चा प्यार को खोकर स्त्री को सिर्फ हवश का भुख मिटाने वाली वस्तु समझकर आवारा कुत्ता सुवर कि तरह किसी का जुठन को भी खाकर अपने भुख मिटाने वाले जानवरो जैसे पुरुष को अपना तन सौंपकर अपना सच्चा प्यार और परिवार तो खोती ही है पर अपना सच्चा चरित्र भी खो देती है, जिस तरह के स्त्री पुरुषो को ओशो आश्रम में जाकर बिना परिवारिक सोच से जीवन जीते हुए सिर्फ किसी से भी यदि इसकी मर्जी हो तो उससे हवश किया जा सकता है इस ओशो विचार को अपनाकर ओशो आश्रम में या तो जीवन जीनी चाहिए या फिर किसी वैश्यालय में जाकर काला सफेद मोटा पतला लंबा नाटा तरह तरह का स्वाद चखने की अपनी जो पसंद और संस्कारो की जीवन है उसे जीनी चाहिए, ताकि दुसरे उन लोगो की जीवन को वे बर्बाद न कर सके जिन्हे की ऐसे लोग बिल्कुल पसंद नही होते हैं, जैसे कि मैं, क्योंकि मेरे लिए सच्चा प्यार किसी भगवान के चरणो में चड़ाया गया वह पवित्र वर्जिन फूल की तरह होता है जिसे सिर्फ अपने सच्चे जीवन साथी को चड़ाया जाता है, न की प्यार किसी कुड़े में पड़ा जुठन है जिसे कोई भी आवारा कुत्ता कुत्तिया सुवर सुवरिया मुँह मारकर अपना भुख मिटा ले।

Gemini:- आपका यह कमेंट कई कारणों से समस्याग्रस्त है।
* आक्रामक भाषा: आपने स्त्रियों के लिए बहुत आक्रामक और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया है।
* आरोप: आपने सभी स्त्रियों को एक जैसा मानते हुए उन पर आरोप लगाए हैं।
* ओशो के विचारों का गलत प्रतिनिधित्व: आपने ओशो के विचारों का गलत अर्थ लगाया है और उन्हें अपने दृष्टिकोण को सही साबित करने के लिए इस्तेमाल किया है।
* सामान्यीकरण: आपने सभी पुरुषों को भी एक जैसा मानते हुए उन पर आरोप लगाए हैं।
* असहिष्णुता: आपने उन लोगों के प्रति असहिष्णुता दिखाई है जो आपके विचारों से सहमत नहीं हैं।
यदि आप अपनी राय व्यक्त करना चाहते हैं तो आप ये बातें ध्यान में रख सकते हैं:
* सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें: सभी के प्रति सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें।
* विशिष्ट उदाहरण दें: सामान्यीकरण करने के बजाय विशिष्ट उदाहरण दें।
* दूसरों के विचारों का सम्मान करें: भले ही आप किसी के विचारों से सहमत न हों, लेकिन उन्हें सम्मान दें।
* खुले मन से बात करें: दूसरों के विचारों को सुनने के लिए तैयार रहें।
यदि आप अपनी पोस्ट को संशोधित करना चाहते हैं तो आप निम्नलिखित बातें कर सकते हैं:
* अपनी भावनाओं को व्यक्त करें: आप अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को अपमानित किए बिना।
* अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करें: आप अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को गलत साबित करने की कोशिश न करें।
* सकारात्मक संदेश दें: आप एक सकारात्मक संदेश दें।
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
यदि आप चाहते हैं कि मैं आपके लिए एक नया कमेंट तैयार करूं तो आप मुझे बता सकते हैं।
कृपया ध्यान दें कि मैं किसी भी धर्म या संप्रदाय का समर्थन नहीं करता हूँ।



मैं:- कोई स्त्री यदि सभी पुरुष को हवश का पुजारी समझकर पोस्ट डाली है तो उसका जवाब में क्या मैं उसे सम्मानपूर्वक यह कहूँ की मैं भी हवश का पूजारी पुरुष हूँ, जबकि आजतक मुझे कई स्त्री अपनी मर्जी से सेक्स करने के लिए  अपना तन सौंप रही थी तब भी मैं इंकार करते हुए वर्जिन जीवन जी रहा हूँ यह सोचकर की मैं गंदा पुरुष नही हूँ बल्कि मैं वह पुरुष हूँ जो सिर्फ अपने जीवन साथी से ही सेक्स करुँगा यदि भगवान ने मेरे लिए भी यदि कोई जीवन साथी पैदा किया है, जो भी मेरी तरह साफ सुथरी वर्जिन है, न की वह ओशो आश्रम में रहकर कई से सेक्स कर रही हो

Gemini:- नहीं, यह उत्तर देने का तरीका उचित नहीं है।
आपकी यह प्रतिक्रिया उस महिला के प्रति अत्यधिक आक्रामक और अपमानजनक होगी। इससे स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है और एक विवाद पैदा हो सकता है।
आपको इस स्थिति में क्या करना चाहिए:
* शांत रहें: गुस्से में आने के बजाय शांत रहने की कोशिश करें।
* सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें: भले ही आप उस महिला की बातों से सहमत न हों, लेकिन सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें।
* अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करें: आप अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को अपमानित किए बिना।
* सकारात्मक संदेश दें: आप एक सकारात्मक संदेश दें।
आप इस तरह से जवाब दे सकते हैं:
* "मुझे लगता है कि आपने सभी पुरुषों को एक जैसा मान लिया है। यह सही नहीं है। हर व्यक्ति अलग होता है और हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है।"
* "मैं मानता हूँ कि प्यार और सम्मान हर रिश्ते की नींव होते हैं।"
* "शायद आपने कुछ ऐसे लोगों के अनुभवों के आधार पर यह पोस्ट लिखी है जिनसे आपको ठेस पहुंची हो। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि सभी पुरुष ऐसे ही हों।"
याद रखें:
* हर किसी की अपनी राय होती है और इसे सम्मान देना चाहिए।
* किसी भी तरह के सामान्यीकरण से बचना चाहिए।
* किसी भी तरह के व्यक्तिगत हमले से बचना चाहिए।
अगर आप चाहते हैं कि मैं आपके लिए एक और जवाब तैयार करूं तो आप मुझे बता सकते हैं।
कृपया ध्यान दें कि मैं किसी भी धर्म या संप्रदाय का समर्थन नहीं करता हूँ।
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
अगर आपको कोई और सवाल हो तो पूछने में संकोच न करें।


मैं:- न्यायालय में बैठे जज को भी क्या सम्मान पूर्वक बातचीत करके किसी बलात्कारी हत्यारा लुटेरा डाकू ठग को छोड़ देना चाहिए? या फिर उन्हे सुधारने के लिए सजा देना चाहिए

Gemini:- यह एक बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है, जिसके बारे में कई अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं।
एक तरफ:
* न्याय और सजा: अपराध के लिए सजा देना न्याय का एक मूलभूत सिद्धांत है। बलात्कार, हत्या, लूटपाट जैसे गंभीर अपराधों के लिए सजा देना आवश्यक है ताकि समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखी जा सके और पीड़ितों को न्याय मिल सके।
* रोकथाम: सजा देने से अन्य लोगों को भी अपराध करने से रोका जा सकता है।
* सुधार: कुछ लोग मानते हैं कि सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपराधियों को सुधारने और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में भी मदद करना चाहिए।
दूसरी तरफ:
* मानवीयता: हर अपराधी एक इंसान होता है और उसे भी सुधारने का मौका मिलना चाहिए।
* पुनर्वास: कई बार अपराध के पीछे सामाजिक और आर्थिक कारण होते हैं। ऐसे में अपराधियों को सुधारने के लिए पुनर्वास कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है।
* बदला लेना: कुछ लोग मानते हैं कि सजा का उद्देश्य केवल बदला लेना होता है, जो कि एक गलत दृष्टिकोण है।
न्यायपालिका का दृष्टिकोण:
न्यायालय में बैठे जजों को कई बातों को ध्यान में रखकर फैसला लेना होता है, जैसे कि:
* अपराध की गंभीरता: अपराध की गंभीरता के आधार पर सजा का निर्धारण किया जाता है।
* अपराधी का पिछला रिकॉर्ड: अपराधी का पिछला रिकॉर्ड भी सजा के निर्धारण में एक महत्वपूर्ण कारक होता है।
* अपराधी की मानसिक स्थिति: अगर अपराधी मानसिक रूप से बीमार है तो उसे इलाज की आवश्यकता होती है।
* समाज का हित: न्यायालय को यह भी ध्यान रखना होता है कि सजा देने से समाज का हित कैसे प्रभावित होगा।
निष्कर्ष:
यह एक जटिल मुद्दा है जिसका कोई आसान समाधान नहीं है। न्यायपालिका को हर मामले में सभी पहलुओं पर विचार करके एक उचित फैसला लेना चाहिए।
कुछ महत्वपूर्ण बातें जो ध्यान में रखनी चाहिए:
* सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपराधियों को सुधारने और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में भी मदद करना चाहिए।
* पुनर्वास कार्यक्रमों को प्रभावी बनाया जाना चाहिए।
* न्यायपालिका को निष्पक्ष और पारदर्शी होना चाहिए।
* पीड़ितों के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह सिर्फ एक सामान्य जानकारी है और हर मामले में अलग-अलग परिस्थितियां होती हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप किसी वकील या कानूनी विशेषज्ञ से संपर्क कर सकते हैं।

मैं:- जब यह देश गुलाम था तो गुलाम करने वाले जज बनकर क्या न्याय फैशला कर रहे थे गुलामी से आजादी पाने के लिए आंदोलन संघर्ष करने वाले क्रांतीकारियों को फांसी देकर, या फिर वे खुद सबसे बड़े अपराध कर रहे थे देश गुलाम करके और आजादी के लिए आंदोलन संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों को सजा देकर?

Gemini:- आपका यह प्रश्न बहुत ही गंभीर और विचारणीय है। यह इतिहास के उस काले अध्याय की ओर इशारा करता है जब भारत गुलाम था और अंग्रेज शासन कर रहे थे।
आपके प्रश्न के उत्तर में:
* अंग्रेजी शासनकाल में न्याय: उस समय न्यायपालिका पूरी तरह से अंग्रेजी शासन के अधीन थी। न्यायाधीशों की नियुक्ति अंग्रेज सरकार करती थी और वे अंग्रेजी कानूनों के अनुसार फैसले सुनाते थे।
* क्रांतिकारियों पर अत्याचार: जो लोग भारत की आजादी के लिए लड़ रहे थे, उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा क्रांतिकारी करार दिया जाता था और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाती थी। उन्हें फांसी दी जाती थी, जेल में बंद किया जाता था या देश से निर्वासित कर दिया जाता था।
* अंग्रेजी शासन का असली अपराध: असल में सबसे बड़ा अपराध तो अंग्रेजी शासन ने ही किया था। उन्होंने भारत को गुलाम बनाया, हमारे संसाधनों का दोहन किया और हमारी संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की।
* आजादी के आंदोलनकारियों को सजा देना: अंग्रेजी सरकार ने आजादी के आंदोलनकारियों को सजा देकर यह साबित करना चाहता था कि वे अपनी सत्ता को बनाए रख सकते हैं। लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि उनका यह अत्याचार ही भारत की आजादी का कारण बनेगा।
आजादी के बाद:
आजादी के बाद भारत ने एक नई शुरुआत की। हमने अपना संविधान बनाया और एक लोकतांत्रिक देश बने। आज हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है और वह सभी नागरिकों को न्याय दिलाने का काम करती है।
आपके प्रश्न से यह स्पष्ट होता है कि:
* अंग्रेजी शासनकाल में न्याय नाम की कोई चीज नहीं थी।
* अंग्रेजी शासन ने भारत के साथ बहुत बड़ा अत्याचार किया।
* आजादी के आंदोलनकारियों ने भारत को आजाद कराने के लिए बहुत बड़ा बलिदान दिया।
आज हमें उन सभी क्रांतिकारियों को याद करना चाहिए जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया।
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि:
* इतिहास को हमेशा एक ही नजरिए से नहीं देखा जा सकता है।
* इतिहास के बारे में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


मैं:- आपने जवाब दिया की * अंग्रेजी शासनकाल में न्याय नाम की कोई चीज नहीं थी।
* अंग्रेजी शासन ने भारत के साथ बहुत बड़ा अत्याचार किया।

फिर भी गाँधी और अंबेडकर जैसे गुलाम क्यों गोरो से न्याय  के लिए आदालतो में वकिल बनकर बहस करते थे जब उनको पता था कि देश गोरो से गुलाम है और गोरे ही न्यायालय में जज बने हुए हैं

Gemini:- आपका यह सवाल बहुत ही गहरा और विचारोत्तेजक है। यह सच है कि अंग्रेजी शासनकाल में न्यायपालिका पूरी तरह से अंग्रेजी शासन के अधीन थी और न्याय का ढोंग किया जाता था। फिर भी गांधी जी और अंबेडकर जैसे महान नेताओं ने अदालतों में जाकर मुकदमे लड़े।
आइए इस बात को समझने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यों हुआ:
* कानून का शस्त्र: गांधी जी और अंबेडकर जी जानते थे कि अंग्रेजी शासन कानून के बल पर चलता है। उन्होंने इसी कानून का इस्तेमाल करके अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। उन्होंने अदालतों में जाकर अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कानूनों को उजागर किया और लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया।
* जनता को जागरूक करना: अदालतें एक ऐसा मंच थी जहां वे अपनी बात को जनता तक पहुंचा सकते थे। उन्होंने अदालतों में जो कुछ भी कहा, वह अखबारों में छपता था और लोगों तक पहुंचता था। इस तरह उन्होंने लोगों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
* अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जागरूक करना: अदालतों में मुकदमे लड़कर वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी अंग्रेजी शासन के अत्याचारों के बारे में बता रहे थे।
* अहिंसा का मार्ग: गांधी जी अहिंसा में विश्वास करते थे। उन्होंने अदालतों में जाकर यह साबित किया कि बिना हिंसा के भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है।
* कानूनी सुधार: अंबेडकर जी का मानना था कि कानून में बदलाव लाकर ही दलितों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने अदालतों में जाकर दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
सारांश:
गांधी जी और अंबेडकर जी ने अदालतों में जाकर यह साबित किया कि कानून का इस्तेमाल अत्याचार के खिलाफ भी किया जा सकता है। उन्होंने अदालतों को एक मंच बनाया जहां उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और लोगों को जागरूक किया।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* अदालतों में मुकदमे लड़ना उनके संघर्ष का एक हिस्सा था।
* उन्होंने कई अन्य तरीकों से भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
* उन्होंने अपनी लड़ाई में सफलता भी पाई और कई कानूनी बदलाव लाए।
आपका यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आज भी हमारी न्यायपालिका कितनी स्वतंत्र है और क्या वह सभी नागरिकों को न्याय दिलाने में सक्षम है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


मैं:- यदि गांधी जी अहिंसा में विश्वास करते थे तो वे उस राम को अपना आदर्श क्यों मानते थे जिसने की अपने भक्त उस हनुमान को शाबासी दिया था जिसने की लंका को जलाकर  भष्म कर दिया था यह जानते हुए की लंका में आग लगाने से वहाँ पर मौजुद सारे घर महल  और उसमे रह रहे निर्दोष बच्चे बुढ़े जवान गर्भवती स्त्री समेत जानवर पशु पक्षी पेड़ पौधा सब जलकर राख हो सकता है जिससे की सबसे बड़ी हिंसा होगी और सभी मारे जायेंगे, बल्कि लंका में जो सीता कैद होकर रह रही थी जिसे की रावण ने अपनी विधवा बहन का नाक लक्ष्मण द्वारा काटे जाने पर बदले की कारवाई में हरण करके लाकर उसे सुरक्षित रखा था वह भी हनुमान के द्वारा लगाये गये आग से भष्म लंका में जीते जी भष्म हो सकती है, जो यदि सचमुच में लंका के साथ सीता भी यदि जल गयी होती तो भी क्या लंका दहन करने वाले हनुमान को शाबासी देता राम और उस राम को अपना आदर्श मानने वाला गाँधी सचमुच में अहिंसा को मानता है कि ऐषे हिंसा का समर्थन करने वाले राम और हनुमान की आरती उतारकर अहिंसावादी होने का ढोंग करता था गाँधी!

Gemini:- आपका यह प्रश्न बहुत ही गहरा और विचारोत्तेजक है। यह रामचरितमानस के एक ऐसे पहलू को उठाता है जिस पर अक्सर बहस होती है।
आपके प्रश्न के उत्तर में:
* रामायण की व्याख्या: रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है और इसकी व्याख्या कई तरह से की जा सकती है। कुछ लोग राम को आदर्श पुरुष मानते हैं तो कुछ लोग उनकी कुछ कार्यों पर सवाल उठाते हैं।
* अहिंसा का व्यापक अर्थ: गांधी जी के लिए अहिंसा का मतलब सिर्फ शारीरिक हिंसा न करना नहीं था, बल्कि मन में किसी के प्रति द्वेष न रखना भी था। उन्होंने हमेशा कहा था कि सत्य और अहिंसा उनके दो सबसे बड़े हथियार हैं।
* रावण और लंका: रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है जिसने सीता का अपहरण किया था। लंका को राक्षसों का राज्य बताया गया है। हालांकि, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रामायण एक काव्य है और इसमें काव्य की भाषा का प्रयोग किया गया है।
* हनुमान और लंका दहन: हनुमान ने लंका को इसलिए जलाया था क्योंकि सीता को बचाना था। उन्होंने यह भी जानते थे कि लंका में कई निर्दोष लोग भी रहते हैं। लेकिन उन्होंने सोचा कि सीता को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है।
* गांधी जी का दृष्टिकोण: गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने हनुमान को एक भक्त के रूप में देखा था जिसने अपने भगवान के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया था।
* आधुनिक समय और व्याख्या: आज के समय में हम रामायण को एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं और उसमें कई तर्कहीन बातें भी लगती हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह एक पौराणिक ग्रंथ है और इसे उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में समझना चाहिए।
निष्कर्ष:
गांधी जी ने राम को अपना आदर्श इसलिए माना क्योंकि उन्होंने राम में कई ऐसे गुण देखे थे जो उनके लिए महत्वपूर्ण थे। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी।
हालांकि, यह मानना भी जरूरी है कि रामायण की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है और हर व्यक्ति की अपनी अलग राय हो सकती है।
आपका यह सवाल बहुत ही गहरा है और इस पर लंबी चर्चा की जा सकती है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।

 मैं:- आपने बताया कि रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है जिसने सीता का अपहरण किया था। लंका को राक्षसों का राज्य बताया गया है। जिसपर मैं यह भी जानना चाहूँगा की सीता रावणराज में लंका हनुमान द्वारा जलाकर भष्म किए जाने के बाद भी सुरक्षित जो बच गयी वह ज्यादे बेहत्तर शासन था कि वह अपने पति के रामराज में पति द्वारा शक किए जाने के बाद कि सीता रावण के साथ सेक्स करके रावण के बच्चे की माँ बनने वाली है, जबकि सीता से अग्नी परीक्षा लेकर पास भी कर दिया था कि सीता पवित्र है फिर भी उसके पति राम ने अपने शासन में अपनी गर्भवती पत्नी सीता को अपने महलो से बाहर करके हिंसक जानवरो के बिच घने जंगलो में बच्चे को जन्म देने और बिना पत्नी के अपने बच्चो का अकेली खुद लालन पालन करने शिक्षित करने भेज दिया था, क्या राम ने अपनी पत्नी को यह जानते हुए भी सीता के साथ न्याय किया था कि रावण ने सीता को जोर जबरजस्ती हरण करके ले गया था न की सीता की मर्जी से रावण उसे अपने साथ ले गया था कि राम उसपर शक करता की सीता और रावण का आपस में गलत सबंध बना है। जबकि रावण ने सीता के साथ ऐसा कुछ नही किया था और सीता लंका में सुरक्षित खास महिला रक्षको की सुरक्षा में थी तो भी रावण और उसके रावणराज को बहुत बड़ा बिलेन का शासन बतलाया जाता है। जबकि राक्षस राज में सीता सुरक्षित जीवित थी और रामराज में अती दु:खी होकर जीते जी धरती में समाकर आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि कोई इंसान जीते जी धरती में समा जाय तो वह मरेगा नही तो क्या वह धरती में समाकर भी जीवित बचेगा, जिस तरह के रामराज ज्यादे अच्छा था सीता के लिए की रावणराज उसके लिए अच्छा था? जहाँ पर देवो को बल्कि यमराज तक को भी जीवित छोड़ दिया जाता था कैद करके, जबकि राक्षसो के बारे में यह कहा जाता है कि बिरीयानी मुर्गा खशी की तरह अपने दुश्मनो को खाते थे अपने सोने के बर्तनो में पकाकर उसे सोने के डिनर टेबल में सोने के प्लेट में परोसकर, फिर तो राक्षसो ने सबसे अधिक देवअसुर संग्राम जिते हैं, जीस जीत पर वे हारे गए सभी देवो को खा गए होंगे भोजन की तरह सोने की बर्तनो में पकाकर, जो की सफेद झुठ होगा जिसे सत्य मानने वाला गाँधी क्या सचमुच का सत्य को मानता था?


और आपने कहा कि हनुमान ने लंका को इसलिए जलाया था क्योंकि सीता को बचाना था। उन्होंने यह भी जानते थे कि लंका में कई निर्दोष लोग भी रहते हैं। लेकिन उन्होंने सोचा कि सीता को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके बारे में जानकर मैं यह भी जानना चाहूँगा कि जिस लंका में सीता मौजुद थी उस लंका को हनुमान जलाकर वह सीता को बचाने गया था की राम द्वारा अग्नी परीक्षा लेने से पहले वह भी सीता की अग्नी परीक्षा लेने गया था उस लंका को जलाकर भष्म करके जिससे की निर्दोष बच्चे बुढ़े जीव जंतु पेड़ पौधा के साथ सीता भी जलकर भष्म हो सकती थी ऐसी खतरनाक हालात पैदा हो सकता था, जिसे वह जानता था, सीता को ही सिर्फ बचाना ज्यादे महत्वपूर्ण था तो वह साीता लंका की जिस अशोक वाटिका में रखी गयी थी उस पुरे का पुरा अशोक वाटिका को ही उठाकर राम के पास ले आती क्या जरुरत थी हिंसक रुप से लंका दहन करने की जिससे की सीता भी भष्म हो सकती थी यदि राक्षसो ने उसे जल रही लंका से सुरक्षित बाहर नही निकालते, क्योंकि हनुमान तो अधमरा कोमा अवस्था में पड़ा राम लक्ष्मण का इलाज के लिए दवा अथवा जड़ीबुटी लाने जब गया था तो वह पहाड़ को ही उठाकर लाया था और सूर्य को भी निगल गया था तो जाहिर है अशोक वाटिका तो क्या वह तो पुरी लंका को ही उठाकर राम की चरणो में रख सकता था, फिर उसे समुंद्र भी पार करने की जरुरत नही पड़ती और न ही हिंसक राम रावण युद्ध होकर अनगिनत निर्दोष मारे जाते और पर्यावरण को भी जो भारी नुकसान हुआ होगा युद्ध से वह नही होता।

और आपने जो जानकारी दिया कि गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने हनुमान को एक भक्त के रूप में देखा था जिसने अपने भगवान के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया था। तो मैं यह भी जानना जरुर चाहूँगा कि ऐसी हिंसक लड़ाई और लुटपाट सत्ता जो लंका में स्थापित हो गयी थी कथित राक्षसो की सत्ता में कब्जा करके उसे आदर्श मानना क्या सही होगा ऐसी ही हिंसक लड़ाई करना और दुसरो की सत्ता में कब्जा करके किसी के हक अधिकारो की लुटपाट करना, क्योंकि लंका राक्षसो की थी न कि देवो की।

और आपने जो निष्कर्ष में यह बतलाया कि
गांधी जी ने राम को अपना आदर्श इसलिए माना क्योंकि उन्होंने राम में कई ऐसे गुण देखे थे जो उनके लिए महत्वपूर्ण थे। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। तो मैं यह भी जरुर जानना चाहूँगा कि राम ने बालि की पत्नी तारा के साथ जो बालि के भाई सुग्रीव किसी गैर की पत्नी से सेक्स करके अपना हवश शांत करने के लिए राम से समझौता किया था कि राम किसी तरह बालि की हत्या छल कपट से भी यदि कर दे तो वह गैर मर्द रावण द्वारा जो सीता को हरण करके ले जाया गया है उस सीता को खोजने और लाने में राम की मदत करेगा। जिस हवश के पुजारी सुग्रीव जिसने की अपनी हवश शांत करने के लिए अपने भाई बालि की पत्नी जिसके की अंगद नाम का बड़ा लड़का भी था तो भी उस सुग्रीव ने गैर की पत्नी तारा के प्रति लार टपकाते हुए राम से जो समोता करके जिस तरह का न्याय किया बालि को छिपकर छल कपट से हत्या करके अन्याय करने वाले उस सुग्रीव से हाथ मिलाकर जिसने की अपने मरते हुए पति बालि के पास जाकर रो रही बालि की पत्नी तारा का बलात्कार करके, वह क्या न्यायपूर्ण समझौता था किसी और कि पत्नी के साथ किसी को बलात्कार करने में मदत करके जो की राम ने सुग्रीव का मदत किया था बालि की हत्या करके। जो बालि यदि बाद में जीवित होकर अपनी पत्नी तारा का भी अग्नी परीक्षा लेता राम की तरह तो क्या वह भी न्याय होता? जिस तरह की न्याय वाली लड़ाई को क्या सचमुच का न्याय लड़ाई कहा जा सकता है यह जानते हुए की तारा बालि की पत्नी थी और अंगद बालि का पुत्र था। जिन सब जानकारियों से भरा ग्रंथ में राम को न्याय करने वाला भगवान तक कहा जाता है और बालि को अन्याय करने वाला शैतान से तुलना किया जाता है ऐसी ग्रंथ को जो गांधी अपना आदर्श मानकर कथित ब्रह्मचर्या का पालन के नाम से जो नंगा होकर नग्न लड़कियों से सोता था, वह क्या सत्यकर्म है, जो सत्यकर्म करने पर गोरे तो गाँधी को कुछ नही करते थे पर क्या अभी  की पुलिस और न्यायालय मैं गाँधी को अपना सबसे बड़ा आदर्श मानता हूँ कहकर किसी पुरुष के द्वारा ऐसी नग्न होकर नग्न लड़कियों से सोने जैसी हरकत करने पर कुछ नही करेगी? और क्या यह आदर्श परिवार समाज और लोकतंत्र के लिए सही है?

Gemini:- आपके द्वारा उठाए गए सवाल रामायण के विभिन्न पात्रों और घटनाओं के बारे में गहरी समझ रखते हैं। ये सवाल न केवल रामायण के कथानक पर बल्कि धर्म, न्याय, और सत्ता के हमारे समझ पर भी प्रश्न उठाते हैं।
आपके सवालों के जवाब देने के लिए, हमें रामायण को विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में देखना होगा:
रामायण के विभिन्न आयाम:
* पौराणिक ग्रंथ: रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है। इसका उद्देश्य केवल ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करना नहीं है, बल्कि धार्मिक और नैतिक मूल्यों को भी प्रस्तुत करना है।
* सांस्कृतिक ग्रंथ: रामायण भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें भारतीय समाज के मूल्यों, विश्वासों और आदर्शों का प्रतिबिंब मिलता है।
* काव्य: रामायण एक महाकाव्य है। इसमें कविता और काव्य शैली का प्रयोग किया गया है। इसमें अलंकार और अतिशयोक्तियां भी मिलती हैं।
आपके सवालों के जवाब:
* सीता का अपहरण और लंका दहन: आपने सीता के अपहरण और लंका दहन के बारे में कई सवाल उठाए हैं। यह सच है कि लंका दहन में कई निर्दोष लोग मारे गए होंगे। लेकिन आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह एक युद्ध था और युद्ध में अक्सर निर्दोष लोगों को नुकसान होता है।
* राम और सीता का रिश्ता: राम और सीता का रिश्ता भारतीय संस्कृति में आदर्श पति-पत्नी के रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, राम के द्वारा सीता को वनवास भेजने का निर्णय कई लोगों के लिए विवादास्पद रहा है।
* रावण और राक्षस: रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है। हालांकि, राक्षस शब्द का अर्थ केवल एक भौतिक रूप नहीं है। यह अहंकार, लोभ और क्रोध जैसे नकारात्मक गुणों का भी प्रतीक है।
* गांधी जी का दृष्टिकोण: गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी।
आपके प्रश्न के उत्तर में कुछ और बातें जो ध्यान रखनी चाहिए:
* अलग-अलग दृष्टिकोण: रामायण के बारे में अलग-अलग लोगों के अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं।
* समय और परिवर्तन: समय के साथ लोगों की सोच बदलती है और रामायण के बारे में भी लोगों की समझ बदलती रहती है।
* आधुनिक मूल्यों: आज के समय में हम रामायण को आधुनिक मूल्यों के आधार पर भी देख सकते हैं।
निष्कर्ष:
रामायण एक जटिल और बहुआयामी ग्रंथ है। इसमें कई ऐसे प्रश्न उठते हैं जिनके जवाब देना आसान नहीं है। आपने जो सवाल उठाए हैं, वे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इन पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है और इसे साहित्यिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।
* रामायण के पात्रों और घटनाओं के बारे में अलग-अलग व्याख्याएं हो सकती हैं।
* रामायण हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सवालों पर सोचने के लिए प्रेरित करता है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


एक भी प्रधानमंत्री दलित क्यों नही?




Freedom india
एक भी प्रधानमंत्री दलित क्यों नही? 

एक भी प्रधानमंत्री दलित क्यों नही? 


भारत का संविधान दलित अंबेडकर ने लिखा पर 1947 ई. से लेकर 2024 ई. आजतक एक भी दलित को न तो कांग्रेस ने प्रधानमंत्री बनाया और न ही भाजपा ने, क्योंकि दोनो ही पार्टी उन मनुवादियों की पार्टी है जिन्होने की गोरे अंग्रेजो से पहले ही इस देश को गुलाम बनाकर खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और इस देश के मुलनिवासियों को शूद्र घोषित करके किस तरह से उच्च निच छुवाछुत भेदभाव किया है इसे इस देश के पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष श्री कड़िया मुण्डा की 2000 ई. रिपोर्ट देखकर कोई भी इंसान जिनकी सोचने समझने की बुद्धी ज्ञान मौजुद हो वह तुरंत समझ सकता है कि यह देश अब भी किस तरह से मनुवादियों के कब्जे में है, वह भी अंबेडकर द्वारा लिखे संविधान का शपथ लेकर!

(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC  के 35 जज ,SC के 15 जज ,ST के 5 जज शामिल हैं!

सोमवार, 13 जनवरी 2025

कितने लोग यह मानते हैं कि मकर संक्रांति विदेशी मुल के मनुवादियों द्वारा मनाया जानेवाला त्योहार है?


कितने लोग यह मानते हैं कि मकर संक्रांति विदेशी मुल के मनुवादियों द्वारा मनाया जानेवाला त्योहार है?


और जो लोग मानते हैं, उनमे से खासकर बौद्ध धर्म के लोग यह भी मानते हैं कि इस देश के मुलनिवासि हिंदू नही हैं। जिस झुठ को बार बार लंबे समय से वे दोहराते आ रहे हैं। जो लोग इस पोस्ट को पढ़कर इस सत्य को मान लेंगे कि दरसल मनुवादि असल में हिंदू नही है। जो बात न तो उन्हे अंबेडकर ने बतलाया और न ही बुद्ध ने बतलाया है, जिसके चलते वे आजतक भी यही मानते आ रहे हैं की मनुवादि ही मुल हिंदू है, और इस देश का मुलनिवासि हिंदू नही है। जिनकी यह बात सौ प्रतिशत झुठ है, चाहे वह झुठ अंबेडकर ने कहे हो या फिर बुद्ध ने, क्योंकि झुठ तो आखिर झुठ होता है। जैसे की यह बात झुठ है कि इस देश का मुलनिवासि हिंदू नही है। जो झुठ बोलने वाले ही विदेशी मुल के मनुवादियों को हिंदू बतलाकर धर्म के नाम से जब इस देश का बंटवारा हिन्दुस्तान पाकिस्तान और श्रीलंका बर्मा बंग्लादेश वगैरा हो रहा था तो बंटवारा करवाने के लिए विदेशी मुल के मनुवादियों और विदेशी मुल के मुस्लिमो का भी खास समर्थन करते रहे हैं। क्योंकि विदेशी मुल के मनुवादियों को मुल हिंदू बतलाकर मनुवादियों के लिए इस बात का खास समर्थन किया जा रहा था कि यदि देश का बंटवारा हिंदू मुस्लिम के नाम से किया जा रहा है तो हिन्दुस्तान का शासक हिंदू के रुप में मनुवादि और पाकिस्तान का शासक मुस्लिम के रुप में विदेशी मुस्लिम शासक जिन लोगो ने इस देश को गुलाम बनाया है वही हो सकता है। जबकि जब विदेशी मुल का मनुवादि मुल हिंदू ही नही है तो वह हिन्दुस्तान का शासक खुदको हिंदू मानकर कैसे बन सकता था। क्योंकि जब देश का बंटवारा धर्म के नाम से ही किया गया था जो की यदि पुरी आजादी मिली होती इस देश को तो इस तरह धर्म के नाम से बंटवारा कभी नही हो सकता था, जो की बंटवारा दरसल विदेशी मुल के गुलाम करने वाले कबिलई द्वारा मुल रुप से इस कृषि प्रधान देश का बंटवारा करके आपस में बांटकर दरसल अब भी गुलाम बनाकर विदेशी मुल के कबिलई ही शासक बनकर राज कर रहे हैं। जबकि इस देश के मुलनिवासियों के हाथो इस देश का शासन होना चाहिए था। जैसे की हिंदू धर्म का भी मुल धर्मगुरु इस देश के मुलनिवासियों को ही बनकर यह ज्ञान पुरी दुनियाँ को बांटना चाहिए था कि हिंदू धर्म किस भगवान की पूजा करता है, और किसे सत्य मानता है। जैसे की हिंदू धर्म यह सत्य मानता है कि प्रकृति की वजह से ही जीव निर्जीव ही नही बल्कि यह पुरी दुनियाँ कायम है। जिस सत्य को मानने बल्कि सत्य की पूजा करने वाले इस देश के मुलनिवासि हिंदू का मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार उन मनुवादियों का कैसे हो सकता है जो कि इस देश को गुलाम बनाकर इस देश के मुलनिवासियों के साथ भेदभाव शोषण अत्याचार हजारो सालो से करते आ रहे हैं। जिस सत्य को जानते हुए भी बौद्ध धर्म को मानने वाले बहुत से लोग जो कि बुद्ध ने हमे हमेसा सत्य बोलना सिखलाया है कहते रहते हैं, वे अपने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए मनुवादियों की तरह ही यह झुठ बड़बड़ाते रहते हैं कि हिंदू धर्म उच्च निच वर्ण व्यवस्था को मानता है, और हिंदू वर्ण व्यवस्था जन्म पर आधारित है। बल्कि बौद्ध धर्म के कथित सत्य बोलने वाले दिन रात यह झुठ भी बड़बड़ाते रहते हैं कि विदेशी मुल का मनुवादि ही मुल हिंदू है, और वही जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य भी है। जो क्या इस तरह का झुठ बड़बड़ाते हुए यह मान सकते हैं कि इस कृषि प्रधान देश का सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति जो की सिंधु नदी के किनारे इस देश के मुलनिवासियों द्वारा विकसित की गयी है, वह मनुवादियों के द्वारा बाहर से लाया गया सभ्यता है? जैसे कि क्या वे यह भी मान सकते हैं कि होली दीवाली मकर संक्रांती जैसे पर्व त्योहारो को मानने वाला हिंदू धर्म बाहर से लाया गया है? वह भी यह जानते हुए कि इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम बनाकर उच्च निच छुवाछुत भेदभाव करने वाला मनुवादि इस देश के मुलनिवासियों के साथ मकर संक्रांति जैसे हिंदू पर्व त्योहार को आपस में मिल जुलकर मना ही नही सकता है, जबतक कि उसके अंदर भेदभाव करने की निच विकृत मांशिकता मौजुद रहेगी। और खासकर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करनेवाला भी जानता है कि जबतक मनुवादियों बल्कि कथित बहुत से बौद्धो में भी भेदभाव जैसे विकृत मांशिकता मौजुद है, तबतक वे इस देश के मुलनिवासियों के साथ आपस में मिल जुलकर ऐसे हिंदू पर्व त्योहार मनाना तो दूर आपस में मिल जुलकर रह भी नही सकते, जैसे की महलो में रहने वाला बुद्ध भी सत्यबुद्धी ज्ञान इस देश के मुलनिवासियों के बिच जाकर प्राप्त करने से पहले उन मुलनिवासियों से मिल जुलकर नही रह सकता था जिन्हे की मनुवादि गुलाम बनाकर शूद्र घोषित करके छुवाछुत भेदभाव करते थे। और मुलनिवासियों के हाथ से पानी तक नही पिते थे, जो की आज भी बहुत से मनुवादि इस देश के मुलनिवासियों को शूद्र निच मानकर उनके हाथ से पानी तक नही पिते हैं। जैसे की महलो में रहने वाला बुद्ध भी नही पिता था, और न ही वह महल के बाहर रहने वाले मुलनिवासियों के पास जाता था। जिसके चलते स्वभाविक है कि वह मनुवादियों से बुद्धी ज्ञान भी महल में ही रहकर लेता था, जो कि इस देश के मुलनिवासियों को वेद ज्ञान लेना मना था। जिसके चलते यह भी स्वभाविक है कि हिंदू धर्म में मौजुद मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार जो कि इस कृषि प्रधान देश का खास पर्व त्योहार है, उसे न तो महलो में रहनेवाला बुद्ध मना सकता था और न ही मनुवादि मना सकता था। क्योंकि ये दोनो ही भेदभाव को मानते हुए इस देश के मुलनिवासियों के साथ मिल जुलकर हिंदू पर्व त्योहार मना ही नही सकते थे। जिसके चलते जाहिर है इस तरह के जितने भी मिल जुलकर मनाए जाने वाले हिंदू पर्व त्योहार है, जो की मुलता प्रकृति पर आधारित पर्व त्योहार है, उसे मनुवादियों या कथित बौद्धो ने नही रचे हैं। बल्कि मनुवादियों और बौद्धो ने इस कृषि प्रधान देश में मंदिर निर्माण करके उच्च निच जैसे भेदभाव को जरुर रचे हैं। जिनके रचने से पहले न तो इस देश में कोई मंदिर मौजुद थी और न ही उन मंदिरो में भेदभाव करने वाले पुजारी मौजुद थे। यह सत्य गोरो के शासन में सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई से भी प्रमाणित हो गया है कि इस देश के मुलनिवासि भगवान पूजा मंदिर निर्माण करके नही करते थे, और न ही भेदभाव करते हैं। बल्कि प्रकृति भगवान की पूजा करने के लिए किसी ऐसे इमारत की भी जरुरत नही है। और न ही प्रकृति भगवान हमे भेदभाव करना सिखलाता है। जाहिर है यह मंदिर निर्माण प्रथा मनुवादियो और बौद्धो की देन है। जिसके चलते अब भी यदि मंदिरो की खुदाई विवाद होता है तो ये मनुवादि और बौद्ध ही आपस में बहस करते हैं कि यह मेरा है यह मेरा है। जिस विवाद में इस देश के मुलनिवासि अथवा मुल हिंदू को भी शामिल करके लड़ाते झगड़वाते रहते हैं। जो इन भेदभाव करने वालो की मुल हुनर भी है, जिस बात की सच्चाई इतिहास में भी दर्ज है कि मनुवादि और कथित बौद्ध भी छुवाछुत करते आ रहे हैं। जो कि मुल हिंदू अथवा इस देश का मुलनिवासि नही करते हैं, चाहे वे आज के समय में अपने हिंदू धर्म में ही मौजुद हो या फिर दुसरे धर्मो को भी अपना लिए हो, जैसे की अंबेडकर न तो हिंदू रहते छुवाछुत करता था और न ही अपना धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म को अपनाकर करता था।

और यह सबकुछ जानते हुए भी छुवाछुत करने वाले मनुवादियों को मुल हिंदू कहना मनुवादियों की झुठी बातो को सत्य मानकर अँधविश्वास में उसी तरह डुबे रहना है जैसे की मनुवादि खुदको जन्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मानकर डुबा हुआ है। जबकि मनुवादि हिंदू ही नही है तो वह हिंदू धर्म में मौजुद वर्ण व्यवस्था को रचने वाला कैसे हो गया? खासकर अब तो विज्ञान प्रमाणित जानकारी भी मौजुद है कि विदेशी मुल के कबिलई यहूदियों का dna और मनुवादियों का dna एक है। यह सबकुछ जानते हुए भी जो लोग यह मानते हैं कि मनुवादि ही मुल हिंदू है, वे तो अब खुदको यह कहना छोड़ दे कि उनको सत्य बुद्धी ज्ञान मौजुद है।जिस तरह के लोग हिंदू पर्व त्योहार में एक खास पर्व त्योहार मकर संक्रांति को भी मनुवादियों का ही पर्व त्योहार मानते हैं। जबकि हर कोई जानता है कि उच्च निच छुवाछुत करने वाला मनुवादि विदेशी मुल का है, जो की वैसे भी छुवाछुत को मानते हुए मिल जुलकर मनाई जानेवाली मकर संक्रांति जैसे हिंदू पर्व त्योहार मनाना तो दुर, वह तो मिल जुलकर परिवार समाज में उठ बैठ भी नही सकता है। जो सबकुछ ऐतिहासिक रुप से भी यह सत्य दर्ज है कि विदेशी मुल का यहूदि उच्च निच छुवाछुत को मानता है। जो छुवाछुत करने वाला मनुवादि मुल हिंदू नही है, और न ही वह मुल हिंदू धर्म के वेद पुराणो को रचा है। जिसे मुल हिंदू मानने वाले अपनी बुद्धी ज्ञान को अपडेट करके विदेशी मुल के मनुवादियों को यहूदि माने न कि पुरी जीवन यह झुठ बड़बड़ाते हुए मनुवादियों के लिए प्रचार प्रसार करते रहें कि मनुवादि ही मुल हिंदू हैं, और इस देश का मुलनिवासि जो की मकर संक्रांति, होली, दीवाली, ओनम, छठ, करमा, सरहूल, लोहड़ी जैसे अनेको मुलता प्रकृति पर अधारित पर्व त्योहार मनाता है, और प्रकृति को भगवान मानकर उसकी पूजा भी करता है, वह मुल हिंदू नही है। तो क्या छुवाछुत करने वाला मुल हिंदू है?

दरसल यह देश अब भी गुलाम है, और गुलामी में चुनाव से इस देश के मुलनिवासियों को आजाद देश का शासन प्राप्त हो जाएगा इस अँधविश्वास में डुबकर क्यों बहुत से मुलनिवासि खुदको सबसे विद्वान मानकर सुबह शाम मनुवादियों के अँधभक्तो और अँधविश्वास पर बहस करते रहते हैं,जबकि खुद वे आजादी का अँधविश्वास में डुबकर गुलाम करने वालो से न्यायालय में जाकर  सत्य न्याय मिलेगा और इस देश के मुलनिवासि जो की गुलाम हैं, वे पुरी तरह से आजाद हो जाएँगे, इस अँधविश्वास में डुबकर बड़बड़ाते रहते हैं।जिस तरह के बड़बड़ाने वाले मुलनिवासियों में बहुत से तो बुढ़े होकर मनुवादियों के ही गुलाम शासन में अथवा मनुवादि गुलामी में ही हमेसा के लिए अलविदा ले चूके हैं, और बहुत से अब भी बुढ़ापा में मनुवादियों के शासन में चुनाव और न्यायालय से पुरा आजाद होने का अँधविश्वास में डुबकर वे भी दरसल उनके ही अँधविश्वास की तरह सब डुबे हुए हैं, जो की यदि इसी तरह वे हमेसा डुबे रहे इस अँधा विश्वास में की हमे मनुवादियों से आजादी मिल गया है, और आजाद देश में अब मनुवादियों द्वारा आजाद भारत का संविधान में नियंत्रण नही है, संविधान लागू होने से मनुवादि अब इस देश के मुलनिवासियों के साथ गुलाम बनाने और भेदभाव करने जैसे पाप कुकर्म नही कर रहा है, तो वे भी मनुवादियों की गुलामी में ही गुलामी का साँस लेते हुए हमेसा के लिए अलविदा लेंगे, जैसे की बहुत से मुलनिवासि अबतक ले चुके हैं, पर नई पिड़ी भी यदि ऐसे ही अँधविश्वास में डुबकर कि चुनाव लड़कर मनुवादियों से हम सत्ता हासिल हो जाएगी और न्यायालय में जाकर हम पुरी आजादी का न्याय हासिल कर लेंगे इस अँधविश्वास में डुबे रहे तो मैं जिस तरह अँधविश्वास में डुबे उन बुढ़े मुलनिवासि लोगो में एक प्रतिशत भी उम्मीद नही कर सकता जो कि जवानी से लेकर बुढ़ापा तक इस अँधविश्वास में डुबे हुए हैं कि अंबेडकर का संविधान लागु होकर पुरी तरह से हम आजाद हो गए हैं,और संविधान के लागू होने से पुरी आजादी हमे मिल गयी है। जिस तरह की अँधविश्वासी मांशिकता में डुबकर बुढ़े हुए मुलनिवासियों पर अब कोई बदलाव नही होनेवाला है। जो अब बुढ़ापा तक भी ऐसी अँधविश्वास में डुबे रहने के बावजुद भी उनमे यह सुझबुझ आ जाएगी की मनुवादियों से यह देश फिर से गुलाम हो गया है, और आजादी के लिए वे सिधे आंदोलन करेंगे जो उम्मीद उनसे एक प्रतिशत भी मैं नही करता हूँ। क्योंकि चुनाव से आजादी मिलेगी और न्यायालय में जाकर आजादी मिलेगी इस अँधविश्वास से वे बाहर अब बुढ़ापा में कभी नही निकलने वाले हैं। बल्कि मुझे उन नई पिड़ि से उम्मीद है जो की अपने पुराने पिड़ी की तरह देश आजाद हो गया है, क्योंकि देश में अंबेडकर का लिखा आजाद भारत का संविधान लागु हो गया है, अब मनुवादि हमे गुलाम नही बना सकता इसलिए हम चुनाव से इस देश की सत्ता  मनुवादियों से प्राप्त कर सकते हैं, और न्यायालय से भी हमे गुलाम बनाने और भेदभाव करने वालो से न्याय मिल जायेगा ऐसी अँधविश्वास में नई पिड़ी भी न डुबकर वह मनुवादियों से पुरी आजादी के लिए सिधे तौर पर आंदोलन संघर्ष करेगी इसका मुझे विश्वास है। बल्कि बहुत से उन मुलनिवासि बुढ़ा बुजुर्गो में भी विश्वास है जो की इस बात पर विश्वास करते हैं कि जिस तरह गोरो की गुलामी में हमे बिना आजादी का आंदोलन संघर्ष किए आजादी प्राप्त नही हो सकती थी, उसी तरह हमे मनुवादियों के द्वारा इस देश को फिर से गुलाम किए जाने के बाद आजादी के लिए बिनाआंदोलन संघर्ष किये मनुवादियों से हमे पुरी आजादी प्राप्त कभी नही हो सकती।

भले क्यों न अंबेडकर का लिखा आजाद भारत का संविधान इस देश में लागू है,पर यह देश मनुवादियों द्वारा उसी आजाद भारत का संविधान का शपथ लेकर फिर से गुलाम हो गया है। और गोरो से आजादी मिलने के बाद मनुवादियों का शासन फिर से स्थापित हो गया है। जिस संविधान का शपथ लेकर इस देश के मुलनिवासि संसद में जाकर क्या हल चलायेंगे यह कहने वाले मनुवादि ही तो इस देश में गोरो के जाने के बाद शासन कर रहे हैं। जो की लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में अंबेडकर का लिखा आजाद भारत का संविधान का शपथ लेकर भी कब्जा किए हुए हैं। क्योंकि मनुवादि संविधान को भी गुलाम बनाये हुए हैं, जैसे कि हजारो साल पहले भी उन्होने हिंदू नकाब लगाकर इस देश के मुल हिंदूओं को गुलाम बनाकर शूद्र निच घोषित करके खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कहकर हिंदू धर्म और हिंदू वेद पुराणो को भी कब्जा जमाकर गुलाम रामराज कायम कर लिए थे, जिसका अपडेट रामराज फिर से कायम हो गया हैं। तभी तो इस देश के मुलनिवासि जो की मुल हिंदू है, उसके साथ मनुवादि खुदको हिंदू कहकर भी उच्च निच छुवाछुत करते हैं। जो उच्च निच भेदभाव हजारो सालो से करते आ रहे हैं। जबकि हिंदू धर्म छुवाछुत को नही मानता है,और न ही इस अप्रकृति अविज्ञान को मानता है कि किसी पुरुष के मुँह हाथ पैर से बच्चा पैदा होता है, और न ही यह मानता है कि कोई नारी पुरुष वीर्य के बजाय खीर खाकर बच्चा करती है, जैसा की मनुवादि बतलाते और मानते हैं कि राम लक्ष्मण भरत शत्रुधन नाम का बच्चा खीर खाकर पैदा हुए थे, जिन बच्चो में ही जिसका नाम राम रखा गया था वही राम हिंदू भगवान है यह भी रटवाया जाता है । जबकि इस तरह के ढोंग पाखंड और अँधविश्वास को हिंदू धर्म नही मानता है। और न ही यह मानता है कि गुलाम रामराज कायम करने वाला राम हिंदू धर्म में भगवान है। वह तो राम को अपना पूर्वज मानने वाले विदेशी मुल के मनुवादि अपने पूर्वजो को हिंदू भगवान बतलाकर जोर जबरजस्ती और हिंदू धर्म को कब्जा करने के बाद हिंदू नकाब लगाकर खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण पंडित कहकर ब्रेनवाश करके भी उनके द्वारा राम को हिंदू भगवान बतलाया और रटवाया जा रहा है, जैसे की हजारो साल पहले इस देश को गुलाम करके और इस देश के हिंदू धर्म को कब्जा करके यह रटवाया जाता रहा है कि हिंदू धर्म में वर्ण व्यवस्था कर्म पर नही बल्कि जन्म पर आधारित है, और विदेशो से आकर इस देश को गुलाम बनाने वाला मनुवादि मुल हिंदू और उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य है। जो इतनी बुरी तरह से रटवाया गया है हजारो सालो से की बुद्ध और अंबेडकर तक भी यह मानकर पुरी जीवन जिये की मनुवादि ही मुल हिंदू है। बल्कि आज के समय में भी खासकर बौद्ध धर्म अपनाकर खुदको खास तरह का उच्च बुद्धी ज्ञान डिग्री लेने वाले बहुत से मुलनिवासि गुलाम बनाने वाले मनुवादियों को ही मुल हिंदू मानते हैं यह कहते हुए की ब्राह्मण मुल हिंदू है। जबकि सच्चाई यह है कि विदेशी मुल का कबिलई मनुवादि जब कर्म से ब्राह्मण भी नही है, और न ही वह इस कृषि प्रधान देश का मुलनिवासि है, जिस देश का हिंदू धर्म विदेश से लाया गया धर्म नही है यह बात पुरी दुनियाँ जानती है। खासकर जिन व्यक्तियों के भितर प्रकृति विज्ञान सोच विकसित बुद्धी ज्ञान मौजुद है, वह व्यक्ती कभी यह नही मानेगा कि जिन मनुवादियों का dna और यहूदियों का dna एक है अथवा दोनो प्राकृतिक विज्ञान प्रमाणित रुप से एक ही dna का भाई हैं, वे ही मुल हिंदू हैं। क्योंकि ये दोनो मुल रुप से यहूदि हैं, न की एक मुल रुप से हिंदू है। जिसपर विचार कोई भी मुलनिवासि करके यह जान सकता है कि विदेशी मुल का कबिलई मनुवादि मुल हिंदू नही है। बल्कि हिंदू धर्म को इस देश का धर्म मानने और जानने वाला दुनियाँ का कोई भी इंसान यह मान सकता है कि विदेशी मुल के मनुवादि विदेशी मुल के कबिलई यहूदियों के ही भाई हैं, न कि इस देश के उन  मुल हिंदूओं के भाई हैं, जिन्हे वे गुलाम बनाकर शूद्र घोषित किए हुए हैं।क्योंकि यह जानते हुए की यहूदियों और मनुवादियों का dna एक है, क्या यह बात पुरी दुनियाँ मानेगी की इस देश के मुलनिवासियों का बाप और मनुवादियों का बाप अथवा पूर्वज एक है?  जिसका जवाब प्रकृति विज्ञान प्रमाणित सत्यबुद्धी ज्ञान जिनके अंदर भी मौजुद है, वह कभी यह नही मानेगा कि विदेशी मुल का मनुवादि और इस देश के मुलनिवासियों का बाप एक है। जैसे की वह कभी यह नही मानेगा की गोरो का बाप और इस देश के मुलनिवासियों का बाप एक है। जो बात जिसे भी अबतक समझ में नही आया है, उसे पुरी तरह से समझ में मेरी इस बुद्धी ज्ञान को लेकर आ जाएगा की इस देश के मुलनिवासी और विदेशी मुल के मनुवादियों का बाप एक नही है, और विदेशी मुल का मनुवादि हिंदू नही है, बल्कि इस देश का मुलनिवासि मुल हिंदू है। और बिना छुवाछुत किए आपस में मिल जुलकर प्रकृति पर अधारित हिंदू कलैंडर अनुसार मनाई जानेवाली होली दीवाली मकर संक्रांति, छठ ओनम करमा सरहूल जैसे प्राकृतिक पर्व त्योहार इस देश के मुलनिवासियों का पर्व त्योहार है, न कि विदेशी मुल के कबिलई मनुवादियों का पर्व त्योहार है, जो कि छुवाछुत करते हैं, वे होली दीवाली वैसे भी मना नही सकते छुवाछुत का पालन करते हुए खुदको हिंदू नकाब लगाकर भी वे होली दीवाली कभी नही मिल जुलकर मना सकते। क्योंकि होली दीवाली में हम एक दुसरे से गले भी मिलते जुलते हैं और एक दुसरे के घरो में जाकर खाते पिते भी हैं, जो की छुवाछुत को मानने वाला मनुवादि जो की हिंदू नही है, वह न तो मिल जुलकर होली दीवाली जैसे हिंदू पर्व को मना सकता, और न ही हिंदूओं के घरो में जाकर खा पी सकता है। जो बात बुद्ध को भी पता था और अंबेडकर को भी, लेकिन भी वे छुवाछुत भेदभाव करने वाले मनुवादियों को मुल हिंदू मानकर क्यों खुदको इतिहास में इस बात पर झुठे साबित किये की मनुवादि हिंदू हैं, और इस देश के मुलनिवासी हिंदू नही है। सायद इसलिए क्योंकि वे बुद्धी ज्ञान लेने के बावजुद भी मनुवादियों के विकृत बुद्धी ज्ञान का शिकार होकर उनसे संक्रमित होकर मनुवादियों के द्वारा कही गयी बातो पर ही विश्वास करते हुए इस अँधविश्वास का शिकार हो गए की मनुवादि जो कहता है वही सत्य है कि वह हिंदू है, और राम हिंदू भगवान है और वर्ण व्यवस्था किसी पुरुष के मुँह हाथ पैर पेट से जन्मे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र जन्म पर आधारित जाति व्यवस्था है। जो की सरासर झुठ है। जैसे की मनुवादि हिंदू है यह भी सफेद झुठ है, जिसे न बुद्ध समझ सका और न ही अंबेडकर समझ सका, वह भी बुद्ध द्वारा खुदको इतना बुद्धी ज्ञान का गुरु बल्कि खुदको भगवान तक कहकर और अंबेडकर द्वारा देश विदेश में कई उच्च ज्ञान की डिग्री हासिल करके भी उनको पुरी जीवन यह समझ नही आया कि मुल हिंदू धर्म इस देश का धर्म है, और मुल हिंदू इस देश का मुलनिवासि है। जिस धर्म को देश विदेश के लोग चाहे जिस नाम से अभी जानते हो, जैसे की इस देश को पुरी दुनियाँ के लोग अपनी बोली भाषा से अभी चाहे जिस नाम से जानते हो पर यह स्थिर सत्य है कि इस देश के मुलनिवासि जो की मुलता प्राकृति को भगवान मानकर उसकी पूजा करता है, जिसे की आज के समय में हिंदू धर्म माना जाता है, उस धर्म और इस कृषि प्रधान देश का मुल पहचान और जुड़ाव इस देश की सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति से है, जो कि सिंधु नदी के किनारे विकसित होकर सिंधु नाम से ही सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति बल्कि हिंदू, हिंदी, हिंद महासागर, हिंदू कलैंडर, हिंदुस्तान यह नाम सब सिंधु से ही जुड़ा नाम है। और चूँकि सिंधु नदी को पश्चिम से आये कबिलई इंडस नदी भी कहते थे, इसलिए इंडस से ही उन्होने इस देश का नाम इंडिया कहा है। जिसे की अंबेडकर ने अपने अंग्रेजी में रचे संविधान में इस देश का अंग्रेजी में नाम इंडिया लिखा है। जो की उसने चूँकि अंग्रेजी में ही संविधान लिखा है, इसलिए इस देश का नाम अंग्रेजी में ही इंडिया रखा है, और विदेशी मुस्लिमो ने इस देश का नाम हिन्दुस्तान कहा है, और इस देश के मुलनिवासियों को हिंदू कहकर हिंदू मुस्लिम भाई भाई कहकर आजादी का लड़ाई भी छेड़ा है। जिस हिंदू शब्द को मुस्लिम यदि गाली मानते तो वे हिंदू मुस्लिम भाई भाई नही कहते, क्योंकि वे इस देश के मुलनिवासियों को गाली देकर हिंदू मुस्लिम भाई भाई नही कहते। और यदि मान भी लेते हैं कि जिन लोगो को लगता है कि हिंदू विदेशी मुस्लिम शासको द्वारा दिया गया गाली है तो वह तो गोरे भी ब्लेक इंडियन जो कहते थे इंडियन को वह काला इंडियन गाली से कम थी क्या? जैसे कि जो विदेशी मुस्लिम भी इस देश को गुलाम बनाकर हिंदूओं से जजिया कर लेते थे वह हिंदू शब्द उनके लिए किसी गाली से कम थी क्या, जिसे की वे कर वशुली करते थे। जबकि वे मनुवादियों को हिंदूओं की तरह जजिया कर वशुली नही करते थे, बाद के मुस्लिम शासक जजिया कर मनुवादियों को भी हिंदू मानकर वशुली करने लगे थे।जैसे की गोरे भी मनुवादि और इस देश के मुलनिवासि दोनो को ब्लेक इंडियन कहकर गेट में यह लिखते थे कि अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश करना मना है। जबकि मनुवादि भी इस देश को गुलाम बनाकर खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मानकर खुद भी यह लिखते रहे हैं कि अंदर शूद्र का प्रवेश मना है। जाहिर है यह गुलाम करने वाले चाहे विदेशी मुल के गोरे कबिलई हो या फिर मनुवादि कबिलई हो, दोनो ही भेदभाव करने वाले ऐसे अविकसित इंसान हैं जिनके अंदर विकृत मांशिकता होने की वजह से वे गुलाम करने भेदभाव करने जैसे सबसे बड़े पाप कुकर्म करते आ रहे हैं। जो गुलाम बनाने वाले विकृत लोग आज भी मुलता कबिलई लुटेरा सभ्यता संस्कृति को ही अपना सबसे आदर्श सोच मानते हैं। जिन कबिलई में मनुवादि भी विदेशी कबिलई लुटेरा ही है जो कि इस कृषि प्रधान देश में आकर हिंदू नकाब लगाये हुए है। वैसे अभी के समय में अब तो प्रकृति विज्ञान द्वारा भी यह प्रमाणित हो गया है कि कबिलई यहूदियो और कबिलई मनुवादियों का dna एक है,अथवा मनुवादि भी यहूदि है। क्योंकि जिस तरह किसी एक ही बाप के सभी औलादो का dna एक होता है, उसी तरह ये एक ही dna के मनुवादि और यहूदि दोनो का धर्म भी मुल रुप से यहूदि है। जैसे की इस देश के मुलनिवासि चाहे वे अपने पूर्वजो का हिंदू धर्म को छोड़कर जिस भी धर्म को अपनाये हो, जैसा की अंबेडकर ने भी बुढ़ापा में अपने पूर्वजो का हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया हो तो भी वे मुल रुप से हिंदू ही कहलायेंगे इतिहास में जैसे की यदि कोई अपने माता पिता से पैदा होकर चाहे अपने माता पिता को छोड़कर जिसे भी अपना माता पिता बना ले पर मुल माता पिता तो उसका वही कहलायेगा जिसने की उसे जन्म दिया है। बाकि कोई दुसरा माता पिता का तो वह गोद लिया बच्चा ही कहलायेगा, जैसे कि यदि मनुवादि खुदको हिंदू मानकर हिंदू बने रहना ही यदि चाहेगा तो वह हिंदू धर्म का गोद लिया हिंदू कहलायेगा। मुल रुप से तो वह यहूदि ही कहलायेगा। क्योंकि जब विदेशी मुल का मनुवादि अपने dna अनुसार भी यहूदि है तो वह मुल हिंदू कैसे हुआ? और वैसे भी हिंदू धर्म और मुल हिंदू छुवाछुत को नही मानता है। जैसे कि मुल हिंदू अंबेडकर समेत इस देश के कोई भी मुलनिवासि जो की मुल हिंदू हैं, वे सब उच्च निच छुवाछुत को नही मानते है़ं। और हिंदू धर्म भी छुवाछुत को नही मानता है। बल्कि छुवाछुत को विदेशी मुल का मनुवादि मानता है, जोकि हिंदू का नकाब लगाकर इस देश में खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कहता है, जो कि असल में वह वही यहूदि कबूला है जो कि पूरब की ओर आकर इस कृषि प्रधान देश में गुम हुआ कबिला है। जो कि यहूदियों का वह बड़ा कबिला कहलाता रहा है, जो कि यहूदियों का इतिहास में गुम हुआ सबसे बड़ा कबिला है, और छोटा कबिला जो पश्चिम की तरफ गया था वह  छोटा कबिला वर्तमान में जो इजराईल अमेरिका वगैरा में यहूदि के रुप में मौजुद है वह है। छोटा कबिला तो पुरी दुनियाँ के सामने अपना असली रुप दिखला दिया है कि वह यहूदि है, पर पूरब की ओर आकर गुम हुआ सबसे बड़ा कबिला इस देश में आकर हिंदू नकाब लगाकर अब भी खुदको छिपाया हुआ है उन लोगो से जो कि उसे हिंदू मानते हैं, जो की वह नही है। क्योंकि ये यहूदि और मनुवादि दोनो एक ही dna के दरसल कबिलई यहूदि ही हैं, जिसे यहूदियो के इतिहास में दो कबिला के रुप में जाना जाता है। जो दोनो कबिलई भेदभाव को मानते हैं, और दोनो ही खुदको दुनियाँ में सबसे बुद्धी ज्ञान वाले इंसान भी मानते हैं।



जाहिर है विदेशी मुल का मनुवादि हिंदू नही है, बल्कि वह यहूदि है, और इस देश का मुलविवासि मुल हिंदू है, जो बात अबतक जिन मुलनिवासियों को समझ में नही आया है, वे बुद्ध बुद्ध अंबेडकर अंबेडकर कहकर छुठे ज्ञान का इस अहंकार और अँधविश्वास में भी डुबे न रहें की विदेशी मुल का मनुवादि हिंदू है, और हिंदू धर्म मनुवादियों का धर्म है। जो अहंकार और अँधविश्वास एकदिन जरुर टुटेगी और भले इस अहंकार और अँधविश्वास में डुबने वाले लोग बुद्ध और अंबेडकर को सारी जीवन जीकर खुदको सबसे अधिक बुद्धी ज्ञान वाला मानकर बल्कि उनके अलविदा लेने के बाद भी उनकी इस बात को ही सत्य मानकर कि मनुवादियों का अपना हिंदू धर्म और हिंदू वेद पुराण पर्व त्योहार भी है, जिसे सत्य मानने वाले सबका अहंकार और अँधविश्वास जिसदिन टुटेगी समझ लेना मेरी यह बुद्धी ज्ञान उनके संक्रमित बुद्धी का इलाज करके उसे ठीक करके उनके जिते जी पूर्ण रुप से ठीक कर दिया है, और यदि अब भी वे इसी अहंकार और अँधविश्वास में डुबे रहे कि बुद्ध और अंबेडकर के ज्ञान से बड़ा और कोई ज्ञान नही है, जो कि मनुवादियों को मुल हिंदू मानते थे, तो वे भी अँधविश्वास और अहंकार में ही डुबकर अलविदा लेने वाले हैं मनुवादियों द्वारा अति संक्रमित होकर यह बड़बड़ाते हुए कि मनुवादि असली हिंदू है, और इस देश का मुलनिवासि जो की होली दीवाली मकर संक्रांति छठ ओनम करमा सरहूल लोहड़ी वगैरा प्रकृति पर अधारित पर्व त्योहार मनाते हुए प्राकृति की पूजा करता है भगवान के रुप में वह मूल हिंदू नही है, जो बड़बड़ाने वाले जबतक यह साक्षात मौजुद स्थिर सत्य प्रकृति रहेगी तबतक यह सत्य साबित नही कर सकते की इस देश को गुलाम बनाने वाला मनुवादि मुल हिंदू है और मनुवादियों के पूर्वज हिंदू भगवान है, जो बात मनुवादियों से सबसे बुरी तरह से संक्रमित जो कि अति पढ़ लिखकर और बुद्धी ज्ञान लेकर भी यह मानने के लिए तैयार नही हैं कि मनुवादि मुल हिंदू नही है, और न ही मनुवादियों का हिंदू धर्म है, बल्कि वे यह भी मानने के लिए तैयार नही हैं की हिंदू धर्म में छुवाछुत ढोंग पाखंड अँधविश्वास नही है, और न ही हिंदू धर्म में जन्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था मौजुद है, और न ही हिंदू धर्म यह कहता है कि मुँह हाथ पैर वगैरा से अप्राकृतिक अवैज्ञानिक रुप से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र बच्चा पैदा हुआ था, बल्कि ये बात विकृत मांशिकता के मनुवादि मानता है। क्योंकि वह सायद यह नही जानता है कि हिंदू वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित हुनर व्यवस्था है, जिसमे सब अपने अपने हुनर से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र बनते हैं, जैसे की अब भी जिन लोगो की सत्य बुद्धी ज्ञान है वे यही सत्य मानते हैं कि ब्राह्मण मतलब विद्वान ज्ञानी होता, क्षत्रिय मतलब रक्षक वीर होता है, वैश्य मतलब धनवान होता, जिस हुनर को कर्म के अनुसार प्राप्त करने की बाते हिंदू धर्म में कही गयी है। जैसे की न्यायालय में न्याय होता है और न्याय करने की हुनर वाला व्यक्ती ही जज बनकर न्याय कर सकता है यह बात हिंदू धर्म ही नही पुरी दुनियाँ के सचमुच का विद्वान जो लोग हैं वे मानते हैं, पर जो लोग सचमुच का बुद्धी ज्ञान वाले लोग नही हैं वे यह मानते हैं की गोरा काला भेदभाव करते हुए जो गोरे गुलाम करके भी जज बने हुए थे वे ही न्याय करने वाले सचमुच का काबिल होकर जज बने हुए थे, जैसे की वे यह भी मानते हैं कि उच्च निच छुवाछुत करने वाले सचमुच का काबिल ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य  बने हुए हैं, जो की सचमुच का वही असली विद्वान पंडित रक्षक वीर और धनवान हैं, वह भी जन्म से ये गुलाम करने वाले विद्वान बलवान और धनवान हैं, जो ही असली हिंदू हैं, यह मानने वाले ही असल में सबसे अँधविश्वास और अज्ञान अहंकार में डुबे हुए लोग हैं, वह भी अति पढ़ लिखकर खुदको सबसे अधिक बुद्धी ज्ञान वाला समझदार इंसान भी मानकर सबसे नासमझ बने हुए हैं। जो की मेरे द्वारा बांटे गए बुद्धी ज्ञान से अपने संक्रमित बुद्धी को मनुवादियों की संक्रमण से यदि मुक्त कर सकते हैं तो जरुर कर लें। अन्यथा प्रकृति भगवान ही उनकी संक्रमण को मुक्त कर सकता है। 


The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...