और जो लोग मानते हैं, उनमे से खासकर बौद्ध धर्म के लोग यह भी मानते हैं कि इस देश के मुलनिवासि हिंदू नही हैं। जिस झुठ को बार बार लंबे समय से वे दोहराते आ रहे हैं। जो लोग इस पोस्ट को पढ़कर इस सत्य को मान लेंगे कि दरसल मनुवादि असल में हिंदू नही है। जो बात न तो उन्हे अंबेडकर ने बतलाया और न ही बुद्ध ने बतलाया है, जिसके चलते वे आजतक भी यही मानते आ रहे हैं की मनुवादि ही मुल हिंदू है, और इस देश का मुलनिवासि हिंदू नही है। जिनकी यह बात सौ प्रतिशत झुठ है, चाहे वह झुठ अंबेडकर ने कहे हो या फिर बुद्ध ने, क्योंकि झुठ तो आखिर झुठ होता है। जैसे की यह बात झुठ है कि इस देश का मुलनिवासि हिंदू नही है। जो झुठ बोलने वाले ही विदेशी मुल के मनुवादियों को हिंदू बतलाकर धर्म के नाम से जब इस देश का बंटवारा हिन्दुस्तान पाकिस्तान और श्रीलंका बर्मा बंग्लादेश वगैरा हो रहा था तो बंटवारा करवाने के लिए विदेशी मुल के मनुवादियों और विदेशी मुल के मुस्लिमो का भी खास समर्थन करते रहे हैं। क्योंकि विदेशी मुल के मनुवादियों को मुल हिंदू बतलाकर मनुवादियों के लिए इस बात का खास समर्थन किया जा रहा था कि यदि देश का बंटवारा हिंदू मुस्लिम के नाम से किया जा रहा है तो हिन्दुस्तान का शासक हिंदू के रुप में मनुवादि और पाकिस्तान का शासक मुस्लिम के रुप में विदेशी मुस्लिम शासक जिन लोगो ने इस देश को गुलाम बनाया है वही हो सकता है। जबकि जब विदेशी मुल का मनुवादि मुल हिंदू ही नही है तो वह हिन्दुस्तान का शासक खुदको हिंदू मानकर कैसे बन सकता था। क्योंकि जब देश का बंटवारा धर्म के नाम से ही किया गया था जो की यदि पुरी आजादी मिली होती इस देश को तो इस तरह धर्म के नाम से बंटवारा कभी नही हो सकता था, जो की बंटवारा दरसल विदेशी मुल के गुलाम करने वाले कबिलई द्वारा मुल रुप से इस कृषि प्रधान देश का बंटवारा करके आपस में बांटकर दरसल अब भी गुलाम बनाकर विदेशी मुल के कबिलई ही शासक बनकर राज कर रहे हैं। जबकि इस देश के मुलनिवासियों के हाथो इस देश का शासन होना चाहिए था। जैसे की हिंदू धर्म का भी मुल धर्मगुरु इस देश के मुलनिवासियों को ही बनकर यह ज्ञान पुरी दुनियाँ को बांटना चाहिए था कि हिंदू धर्म किस भगवान की पूजा करता है, और किसे सत्य मानता है। जैसे की हिंदू धर्म यह सत्य मानता है कि प्रकृति की वजह से ही जीव निर्जीव ही नही बल्कि यह पुरी दुनियाँ कायम है। जिस सत्य को मानने बल्कि सत्य की पूजा करने वाले इस देश के मुलनिवासि हिंदू का मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार उन मनुवादियों का कैसे हो सकता है जो कि इस देश को गुलाम बनाकर इस देश के मुलनिवासियों के साथ भेदभाव शोषण अत्याचार हजारो सालो से करते आ रहे हैं। जिस सत्य को जानते हुए भी बौद्ध धर्म को मानने वाले बहुत से लोग जो कि बुद्ध ने हमे हमेसा सत्य बोलना सिखलाया है कहते रहते हैं, वे अपने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए मनुवादियों की तरह ही यह झुठ बड़बड़ाते रहते हैं कि हिंदू धर्म उच्च निच वर्ण व्यवस्था को मानता है, और हिंदू वर्ण व्यवस्था जन्म पर आधारित है। बल्कि बौद्ध धर्म के कथित सत्य बोलने वाले दिन रात यह झुठ भी बड़बड़ाते रहते हैं कि विदेशी मुल का मनुवादि ही मुल हिंदू है, और वही जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य भी है। जो क्या इस तरह का झुठ बड़बड़ाते हुए यह मान सकते हैं कि इस कृषि प्रधान देश का सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति जो की सिंधु नदी के किनारे इस देश के मुलनिवासियों द्वारा विकसित की गयी है, वह मनुवादियों के द्वारा बाहर से लाया गया सभ्यता है? जैसे कि क्या वे यह भी मान सकते हैं कि होली दीवाली मकर संक्रांती जैसे पर्व त्योहारो को मानने वाला हिंदू धर्म बाहर से लाया गया है? वह भी यह जानते हुए कि इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम बनाकर उच्च निच छुवाछुत भेदभाव करने वाला मनुवादि इस देश के मुलनिवासियों के साथ मकर संक्रांति जैसे हिंदू पर्व त्योहार को आपस में मिल जुलकर मना ही नही सकता है, जबतक कि उसके अंदर भेदभाव करने की निच विकृत मांशिकता मौजुद रहेगी। और खासकर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करनेवाला भी जानता है कि जबतक मनुवादियों बल्कि कथित बहुत से बौद्धो में भी भेदभाव जैसे विकृत मांशिकता मौजुद है, तबतक वे इस देश के मुलनिवासियों के साथ आपस में मिल जुलकर ऐसे हिंदू पर्व त्योहार मनाना तो दूर आपस में मिल जुलकर रह भी नही सकते, जैसे की महलो में रहने वाला बुद्ध भी सत्यबुद्धी ज्ञान इस देश के मुलनिवासियों के बिच जाकर प्राप्त करने से पहले उन मुलनिवासियों से मिल जुलकर नही रह सकता था जिन्हे की मनुवादि गुलाम बनाकर शूद्र घोषित करके छुवाछुत भेदभाव करते थे। और मुलनिवासियों के हाथ से पानी तक नही पिते थे, जो की आज भी बहुत से मनुवादि इस देश के मुलनिवासियों को शूद्र निच मानकर उनके हाथ से पानी तक नही पिते हैं। जैसे की महलो में रहने वाला बुद्ध भी नही पिता था, और न ही वह महल के बाहर रहने वाले मुलनिवासियों के पास जाता था। जिसके चलते स्वभाविक है कि वह मनुवादियों से बुद्धी ज्ञान भी महल में ही रहकर लेता था, जो कि इस देश के मुलनिवासियों को वेद ज्ञान लेना मना था। जिसके चलते यह भी स्वभाविक है कि हिंदू धर्म में मौजुद मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार जो कि इस कृषि प्रधान देश का खास पर्व त्योहार है, उसे न तो महलो में रहनेवाला बुद्ध मना सकता था और न ही मनुवादि मना सकता था। क्योंकि ये दोनो ही भेदभाव को मानते हुए इस देश के मुलनिवासियों के साथ मिल जुलकर हिंदू पर्व त्योहार मना ही नही सकते थे। जिसके चलते जाहिर है इस तरह के जितने भी मिल जुलकर मनाए जाने वाले हिंदू पर्व त्योहार है, जो की मुलता प्रकृति पर आधारित पर्व त्योहार है, उसे मनुवादियों या कथित बौद्धो ने नही रचे हैं। बल्कि मनुवादियों और बौद्धो ने इस कृषि प्रधान देश में मंदिर निर्माण करके उच्च निच जैसे भेदभाव को जरुर रचे हैं। जिनके रचने से पहले न तो इस देश में कोई मंदिर मौजुद थी और न ही उन मंदिरो में भेदभाव करने वाले पुजारी मौजुद थे। यह सत्य गोरो के शासन में सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई से भी प्रमाणित हो गया है कि इस देश के मुलनिवासि भगवान पूजा मंदिर निर्माण करके नही करते थे, और न ही भेदभाव करते हैं। बल्कि प्रकृति भगवान की पूजा करने के लिए किसी ऐसे इमारत की भी जरुरत नही है। और न ही प्रकृति भगवान हमे भेदभाव करना सिखलाता है। जाहिर है यह मंदिर निर्माण प्रथा मनुवादियो और बौद्धो की देन है। जिसके चलते अब भी यदि मंदिरो की खुदाई विवाद होता है तो ये मनुवादि और बौद्ध ही आपस में बहस करते हैं कि यह मेरा है यह मेरा है। जिस विवाद में इस देश के मुलनिवासि अथवा मुल हिंदू को भी शामिल करके लड़ाते झगड़वाते रहते हैं। जो इन भेदभाव करने वालो की मुल हुनर भी है, जिस बात की सच्चाई इतिहास में भी दर्ज है कि मनुवादि और कथित बौद्ध भी छुवाछुत करते आ रहे हैं। जो कि मुल हिंदू अथवा इस देश का मुलनिवासि नही करते हैं, चाहे वे आज के समय में अपने हिंदू धर्म में ही मौजुद हो या फिर दुसरे धर्मो को भी अपना लिए हो, जैसे की अंबेडकर न तो हिंदू रहते छुवाछुत करता था और न ही अपना धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म को अपनाकर करता था।
और यह सबकुछ जानते हुए भी छुवाछुत करने वाले मनुवादियों को मुल हिंदू कहना मनुवादियों की झुठी बातो को सत्य मानकर अँधविश्वास में उसी तरह डुबे रहना है जैसे की मनुवादि खुदको जन्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मानकर डुबा हुआ है। जबकि मनुवादि हिंदू ही नही है तो वह हिंदू धर्म में मौजुद वर्ण व्यवस्था को रचने वाला कैसे हो गया? खासकर अब तो विज्ञान प्रमाणित जानकारी भी मौजुद है कि विदेशी मुल के कबिलई यहूदियों का dna और मनुवादियों का dna एक है। यह सबकुछ जानते हुए भी जो लोग यह मानते हैं कि मनुवादि ही मुल हिंदू है, वे तो अब खुदको यह कहना छोड़ दे कि उनको सत्य बुद्धी ज्ञान मौजुद है।जिस तरह के लोग हिंदू पर्व त्योहार में एक खास पर्व त्योहार मकर संक्रांति को भी मनुवादियों का ही पर्व त्योहार मानते हैं। जबकि हर कोई जानता है कि उच्च निच छुवाछुत करने वाला मनुवादि विदेशी मुल का है, जो की वैसे भी छुवाछुत को मानते हुए मिल जुलकर मनाई जानेवाली मकर संक्रांति जैसे हिंदू पर्व त्योहार मनाना तो दुर, वह तो मिल जुलकर परिवार समाज में उठ बैठ भी नही सकता है। जो सबकुछ ऐतिहासिक रुप से भी यह सत्य दर्ज है कि विदेशी मुल का यहूदि उच्च निच छुवाछुत को मानता है। जो छुवाछुत करने वाला मनुवादि मुल हिंदू नही है, और न ही वह मुल हिंदू धर्म के वेद पुराणो को रचा है। जिसे मुल हिंदू मानने वाले अपनी बुद्धी ज्ञान को अपडेट करके विदेशी मुल के मनुवादियों को यहूदि माने न कि पुरी जीवन यह झुठ बड़बड़ाते हुए मनुवादियों के लिए प्रचार प्रसार करते रहें कि मनुवादि ही मुल हिंदू हैं, और इस देश का मुलनिवासि जो की मकर संक्रांति, होली, दीवाली, ओनम, छठ, करमा, सरहूल, लोहड़ी जैसे अनेको मुलता प्रकृति पर अधारित पर्व त्योहार मनाता है, और प्रकृति को भगवान मानकर उसकी पूजा भी करता है, वह मुल हिंदू नही है। तो क्या छुवाछुत करने वाला मुल हिंदू है?
दरसल यह देश अब भी गुलाम है, और गुलामी में चुनाव से इस देश के मुलनिवासियों को आजाद देश का शासन प्राप्त हो जाएगा इस अँधविश्वास में डुबकर क्यों बहुत से मुलनिवासि खुदको सबसे विद्वान मानकर सुबह शाम मनुवादियों के अँधभक्तो और अँधविश्वास पर बहस करते रहते हैं,जबकि खुद वे आजादी का अँधविश्वास में डुबकर गुलाम करने वालो से न्यायालय में जाकर सत्य न्याय मिलेगा और इस देश के मुलनिवासि जो की गुलाम हैं, वे पुरी तरह से आजाद हो जाएँगे, इस अँधविश्वास में डुबकर बड़बड़ाते रहते हैं।जिस तरह के बड़बड़ाने वाले मुलनिवासियों में बहुत से तो बुढ़े होकर मनुवादियों के ही गुलाम शासन में अथवा मनुवादि गुलामी में ही हमेसा के लिए अलविदा ले चूके हैं, और बहुत से अब भी बुढ़ापा में मनुवादियों के शासन में चुनाव और न्यायालय से पुरा आजाद होने का अँधविश्वास में डुबकर वे भी दरसल उनके ही अँधविश्वास की तरह सब डुबे हुए हैं, जो की यदि इसी तरह वे हमेसा डुबे रहे इस अँधा विश्वास में की हमे मनुवादियों से आजादी मिल गया है, और आजाद देश में अब मनुवादियों द्वारा आजाद भारत का संविधान में नियंत्रण नही है, संविधान लागू होने से मनुवादि अब इस देश के मुलनिवासियों के साथ गुलाम बनाने और भेदभाव करने जैसे पाप कुकर्म नही कर रहा है, तो वे भी मनुवादियों की गुलामी में ही गुलामी का साँस लेते हुए हमेसा के लिए अलविदा लेंगे, जैसे की बहुत से मुलनिवासि अबतक ले चुके हैं, पर नई पिड़ी भी यदि ऐसे ही अँधविश्वास में डुबकर कि चुनाव लड़कर मनुवादियों से हम सत्ता हासिल हो जाएगी और न्यायालय में जाकर हम पुरी आजादी का न्याय हासिल कर लेंगे इस अँधविश्वास में डुबे रहे तो मैं जिस तरह अँधविश्वास में डुबे उन बुढ़े मुलनिवासि लोगो में एक प्रतिशत भी उम्मीद नही कर सकता जो कि जवानी से लेकर बुढ़ापा तक इस अँधविश्वास में डुबे हुए हैं कि अंबेडकर का संविधान लागु होकर पुरी तरह से हम आजाद हो गए हैं,और संविधान के लागू होने से पुरी आजादी हमे मिल गयी है। जिस तरह की अँधविश्वासी मांशिकता में डुबकर बुढ़े हुए मुलनिवासियों पर अब कोई बदलाव नही होनेवाला है। जो अब बुढ़ापा तक भी ऐसी अँधविश्वास में डुबे रहने के बावजुद भी उनमे यह सुझबुझ आ जाएगी की मनुवादियों से यह देश फिर से गुलाम हो गया है, और आजादी के लिए वे सिधे आंदोलन करेंगे जो उम्मीद उनसे एक प्रतिशत भी मैं नही करता हूँ। क्योंकि चुनाव से आजादी मिलेगी और न्यायालय में जाकर आजादी मिलेगी इस अँधविश्वास से वे बाहर अब बुढ़ापा में कभी नही निकलने वाले हैं। बल्कि मुझे उन नई पिड़ि से उम्मीद है जो की अपने पुराने पिड़ी की तरह देश आजाद हो गया है, क्योंकि देश में अंबेडकर का लिखा आजाद भारत का संविधान लागु हो गया है, अब मनुवादि हमे गुलाम नही बना सकता इसलिए हम चुनाव से इस देश की सत्ता मनुवादियों से प्राप्त कर सकते हैं, और न्यायालय से भी हमे गुलाम बनाने और भेदभाव करने वालो से न्याय मिल जायेगा ऐसी अँधविश्वास में नई पिड़ी भी न डुबकर वह मनुवादियों से पुरी आजादी के लिए सिधे तौर पर आंदोलन संघर्ष करेगी इसका मुझे विश्वास है। बल्कि बहुत से उन मुलनिवासि बुढ़ा बुजुर्गो में भी विश्वास है जो की इस बात पर विश्वास करते हैं कि जिस तरह गोरो की गुलामी में हमे बिना आजादी का आंदोलन संघर्ष किए आजादी प्राप्त नही हो सकती थी, उसी तरह हमे मनुवादियों के द्वारा इस देश को फिर से गुलाम किए जाने के बाद आजादी के लिए बिनाआंदोलन संघर्ष किये मनुवादियों से हमे पुरी आजादी प्राप्त कभी नही हो सकती।
भले क्यों न अंबेडकर का लिखा आजाद भारत का संविधान इस देश में लागू है,पर यह देश मनुवादियों द्वारा उसी आजाद भारत का संविधान का शपथ लेकर फिर से गुलाम हो गया है। और गोरो से आजादी मिलने के बाद मनुवादियों का शासन फिर से स्थापित हो गया है। जिस संविधान का शपथ लेकर इस देश के मुलनिवासि संसद में जाकर क्या हल चलायेंगे यह कहने वाले मनुवादि ही तो इस देश में गोरो के जाने के बाद शासन कर रहे हैं। जो की लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में अंबेडकर का लिखा आजाद भारत का संविधान का शपथ लेकर भी कब्जा किए हुए हैं। क्योंकि मनुवादि संविधान को भी गुलाम बनाये हुए हैं, जैसे कि हजारो साल पहले भी उन्होने हिंदू नकाब लगाकर इस देश के मुल हिंदूओं को गुलाम बनाकर शूद्र निच घोषित करके खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कहकर हिंदू धर्म और हिंदू वेद पुराणो को भी कब्जा जमाकर गुलाम रामराज कायम कर लिए थे, जिसका अपडेट रामराज फिर से कायम हो गया हैं। तभी तो इस देश के मुलनिवासि जो की मुल हिंदू है, उसके साथ मनुवादि खुदको हिंदू कहकर भी उच्च निच छुवाछुत करते हैं। जो उच्च निच भेदभाव हजारो सालो से करते आ रहे हैं। जबकि हिंदू धर्म छुवाछुत को नही मानता है,और न ही इस अप्रकृति अविज्ञान को मानता है कि किसी पुरुष के मुँह हाथ पैर से बच्चा पैदा होता है, और न ही यह मानता है कि कोई नारी पुरुष वीर्य के बजाय खीर खाकर बच्चा करती है, जैसा की मनुवादि बतलाते और मानते हैं कि राम लक्ष्मण भरत शत्रुधन नाम का बच्चा खीर खाकर पैदा हुए थे, जिन बच्चो में ही जिसका नाम राम रखा गया था वही राम हिंदू भगवान है यह भी रटवाया जाता है । जबकि इस तरह के ढोंग पाखंड और अँधविश्वास को हिंदू धर्म नही मानता है। और न ही यह मानता है कि गुलाम रामराज कायम करने वाला राम हिंदू धर्म में भगवान है। वह तो राम को अपना पूर्वज मानने वाले विदेशी मुल के मनुवादि अपने पूर्वजो को हिंदू भगवान बतलाकर जोर जबरजस्ती और हिंदू धर्म को कब्जा करने के बाद हिंदू नकाब लगाकर खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण पंडित कहकर ब्रेनवाश करके भी उनके द्वारा राम को हिंदू भगवान बतलाया और रटवाया जा रहा है, जैसे की हजारो साल पहले इस देश को गुलाम करके और इस देश के हिंदू धर्म को कब्जा करके यह रटवाया जाता रहा है कि हिंदू धर्म में वर्ण व्यवस्था कर्म पर नही बल्कि जन्म पर आधारित है, और विदेशो से आकर इस देश को गुलाम बनाने वाला मनुवादि मुल हिंदू और उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य है। जो इतनी बुरी तरह से रटवाया गया है हजारो सालो से की बुद्ध और अंबेडकर तक भी यह मानकर पुरी जीवन जिये की मनुवादि ही मुल हिंदू है। बल्कि आज के समय में भी खासकर बौद्ध धर्म अपनाकर खुदको खास तरह का उच्च बुद्धी ज्ञान डिग्री लेने वाले बहुत से मुलनिवासि गुलाम बनाने वाले मनुवादियों को ही मुल हिंदू मानते हैं यह कहते हुए की ब्राह्मण मुल हिंदू है। जबकि सच्चाई यह है कि विदेशी मुल का कबिलई मनुवादि जब कर्म से ब्राह्मण भी नही है, और न ही वह इस कृषि प्रधान देश का मुलनिवासि है, जिस देश का हिंदू धर्म विदेश से लाया गया धर्म नही है यह बात पुरी दुनियाँ जानती है। खासकर जिन व्यक्तियों के भितर प्रकृति विज्ञान सोच विकसित बुद्धी ज्ञान मौजुद है, वह व्यक्ती कभी यह नही मानेगा कि जिन मनुवादियों का dna और यहूदियों का dna एक है अथवा दोनो प्राकृतिक विज्ञान प्रमाणित रुप से एक ही dna का भाई हैं, वे ही मुल हिंदू हैं। क्योंकि ये दोनो मुल रुप से यहूदि हैं, न की एक मुल रुप से हिंदू है। जिसपर विचार कोई भी मुलनिवासि करके यह जान सकता है कि विदेशी मुल का कबिलई मनुवादि मुल हिंदू नही है। बल्कि हिंदू धर्म को इस देश का धर्म मानने और जानने वाला दुनियाँ का कोई भी इंसान यह मान सकता है कि विदेशी मुल के मनुवादि विदेशी मुल के कबिलई यहूदियों के ही भाई हैं, न कि इस देश के उन मुल हिंदूओं के भाई हैं, जिन्हे वे गुलाम बनाकर शूद्र घोषित किए हुए हैं।क्योंकि यह जानते हुए की यहूदियों और मनुवादियों का dna एक है, क्या यह बात पुरी दुनियाँ मानेगी की इस देश के मुलनिवासियों का बाप और मनुवादियों का बाप अथवा पूर्वज एक है? जिसका जवाब प्रकृति विज्ञान प्रमाणित सत्यबुद्धी ज्ञान जिनके अंदर भी मौजुद है, वह कभी यह नही मानेगा कि विदेशी मुल का मनुवादि और इस देश के मुलनिवासियों का बाप एक है। जैसे की वह कभी यह नही मानेगा की गोरो का बाप और इस देश के मुलनिवासियों का बाप एक है। जो बात जिसे भी अबतक समझ में नही आया है, उसे पुरी तरह से समझ में मेरी इस बुद्धी ज्ञान को लेकर आ जाएगा की इस देश के मुलनिवासी और विदेशी मुल के मनुवादियों का बाप एक नही है, और विदेशी मुल का मनुवादि हिंदू नही है, बल्कि इस देश का मुलनिवासि मुल हिंदू है। और बिना छुवाछुत किए आपस में मिल जुलकर प्रकृति पर अधारित हिंदू कलैंडर अनुसार मनाई जानेवाली होली दीवाली मकर संक्रांति, छठ ओनम करमा सरहूल जैसे प्राकृतिक पर्व त्योहार इस देश के मुलनिवासियों का पर्व त्योहार है, न कि विदेशी मुल के कबिलई मनुवादियों का पर्व त्योहार है, जो कि छुवाछुत करते हैं, वे होली दीवाली वैसे भी मना नही सकते छुवाछुत का पालन करते हुए खुदको हिंदू नकाब लगाकर भी वे होली दीवाली कभी नही मिल जुलकर मना सकते। क्योंकि होली दीवाली में हम एक दुसरे से गले भी मिलते जुलते हैं और एक दुसरे के घरो में जाकर खाते पिते भी हैं, जो की छुवाछुत को मानने वाला मनुवादि जो की हिंदू नही है, वह न तो मिल जुलकर होली दीवाली जैसे हिंदू पर्व को मना सकता, और न ही हिंदूओं के घरो में जाकर खा पी सकता है। जो बात बुद्ध को भी पता था और अंबेडकर को भी, लेकिन भी वे छुवाछुत भेदभाव करने वाले मनुवादियों को मुल हिंदू मानकर क्यों खुदको इतिहास में इस बात पर झुठे साबित किये की मनुवादि हिंदू हैं, और इस देश के मुलनिवासी हिंदू नही है। सायद इसलिए क्योंकि वे बुद्धी ज्ञान लेने के बावजुद भी मनुवादियों के विकृत बुद्धी ज्ञान का शिकार होकर उनसे संक्रमित होकर मनुवादियों के द्वारा कही गयी बातो पर ही विश्वास करते हुए इस अँधविश्वास का शिकार हो गए की मनुवादि जो कहता है वही सत्य है कि वह हिंदू है, और राम हिंदू भगवान है और वर्ण व्यवस्था किसी पुरुष के मुँह हाथ पैर पेट से जन्मे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र जन्म पर आधारित जाति व्यवस्था है। जो की सरासर झुठ है। जैसे की मनुवादि हिंदू है यह भी सफेद झुठ है, जिसे न बुद्ध समझ सका और न ही अंबेडकर समझ सका, वह भी बुद्ध द्वारा खुदको इतना बुद्धी ज्ञान का गुरु बल्कि खुदको भगवान तक कहकर और अंबेडकर द्वारा देश विदेश में कई उच्च ज्ञान की डिग्री हासिल करके भी उनको पुरी जीवन यह समझ नही आया कि मुल हिंदू धर्म इस देश का धर्म है, और मुल हिंदू इस देश का मुलनिवासि है। जिस धर्म को देश विदेश के लोग चाहे जिस नाम से अभी जानते हो, जैसे की इस देश को पुरी दुनियाँ के लोग अपनी बोली भाषा से अभी चाहे जिस नाम से जानते हो पर यह स्थिर सत्य है कि इस देश के मुलनिवासि जो की मुलता प्राकृति को भगवान मानकर उसकी पूजा करता है, जिसे की आज के समय में हिंदू धर्म माना जाता है, उस धर्म और इस कृषि प्रधान देश का मुल पहचान और जुड़ाव इस देश की सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति से है, जो कि सिंधु नदी के किनारे विकसित होकर सिंधु नाम से ही सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति बल्कि हिंदू, हिंदी, हिंद महासागर, हिंदू कलैंडर, हिंदुस्तान यह नाम सब सिंधु से ही जुड़ा नाम है। और चूँकि सिंधु नदी को पश्चिम से आये कबिलई इंडस नदी भी कहते थे, इसलिए इंडस से ही उन्होने इस देश का नाम इंडिया कहा है। जिसे की अंबेडकर ने अपने अंग्रेजी में रचे संविधान में इस देश का अंग्रेजी में नाम इंडिया लिखा है। जो की उसने चूँकि अंग्रेजी में ही संविधान लिखा है, इसलिए इस देश का नाम अंग्रेजी में ही इंडिया रखा है, और विदेशी मुस्लिमो ने इस देश का नाम हिन्दुस्तान कहा है, और इस देश के मुलनिवासियों को हिंदू कहकर हिंदू मुस्लिम भाई भाई कहकर आजादी का लड़ाई भी छेड़ा है। जिस हिंदू शब्द को मुस्लिम यदि गाली मानते तो वे हिंदू मुस्लिम भाई भाई नही कहते, क्योंकि वे इस देश के मुलनिवासियों को गाली देकर हिंदू मुस्लिम भाई भाई नही कहते। और यदि मान भी लेते हैं कि जिन लोगो को लगता है कि हिंदू विदेशी मुस्लिम शासको द्वारा दिया गया गाली है तो वह तो गोरे भी ब्लेक इंडियन जो कहते थे इंडियन को वह काला इंडियन गाली से कम थी क्या? जैसे कि जो विदेशी मुस्लिम भी इस देश को गुलाम बनाकर हिंदूओं से जजिया कर लेते थे वह हिंदू शब्द उनके लिए किसी गाली से कम थी क्या, जिसे की वे कर वशुली करते थे। जबकि वे मनुवादियों को हिंदूओं की तरह जजिया कर वशुली नही करते थे, बाद के मुस्लिम शासक जजिया कर मनुवादियों को भी हिंदू मानकर वशुली करने लगे थे।जैसे की गोरे भी मनुवादि और इस देश के मुलनिवासि दोनो को ब्लेक इंडियन कहकर गेट में यह लिखते थे कि अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश करना मना है। जबकि मनुवादि भी इस देश को गुलाम बनाकर खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मानकर खुद भी यह लिखते रहे हैं कि अंदर शूद्र का प्रवेश मना है। जाहिर है यह गुलाम करने वाले चाहे विदेशी मुल के गोरे कबिलई हो या फिर मनुवादि कबिलई हो, दोनो ही भेदभाव करने वाले ऐसे अविकसित इंसान हैं जिनके अंदर विकृत मांशिकता होने की वजह से वे गुलाम करने भेदभाव करने जैसे सबसे बड़े पाप कुकर्म करते आ रहे हैं। जो गुलाम बनाने वाले विकृत लोग आज भी मुलता कबिलई लुटेरा सभ्यता संस्कृति को ही अपना सबसे आदर्श सोच मानते हैं। जिन कबिलई में मनुवादि भी विदेशी कबिलई लुटेरा ही है जो कि इस कृषि प्रधान देश में आकर हिंदू नकाब लगाये हुए है। वैसे अभी के समय में अब तो प्रकृति विज्ञान द्वारा भी यह प्रमाणित हो गया है कि कबिलई यहूदियो और कबिलई मनुवादियों का dna एक है,अथवा मनुवादि भी यहूदि है। क्योंकि जिस तरह किसी एक ही बाप के सभी औलादो का dna एक होता है, उसी तरह ये एक ही dna के मनुवादि और यहूदि दोनो का धर्म भी मुल रुप से यहूदि है। जैसे की इस देश के मुलनिवासि चाहे वे अपने पूर्वजो का हिंदू धर्म को छोड़कर जिस भी धर्म को अपनाये हो, जैसा की अंबेडकर ने भी बुढ़ापा में अपने पूर्वजो का हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया हो तो भी वे मुल रुप से हिंदू ही कहलायेंगे इतिहास में जैसे की यदि कोई अपने माता पिता से पैदा होकर चाहे अपने माता पिता को छोड़कर जिसे भी अपना माता पिता बना ले पर मुल माता पिता तो उसका वही कहलायेगा जिसने की उसे जन्म दिया है। बाकि कोई दुसरा माता पिता का तो वह गोद लिया बच्चा ही कहलायेगा, जैसे कि यदि मनुवादि खुदको हिंदू मानकर हिंदू बने रहना ही यदि चाहेगा तो वह हिंदू धर्म का गोद लिया हिंदू कहलायेगा। मुल रुप से तो वह यहूदि ही कहलायेगा। क्योंकि जब विदेशी मुल का मनुवादि अपने dna अनुसार भी यहूदि है तो वह मुल हिंदू कैसे हुआ? और वैसे भी हिंदू धर्म और मुल हिंदू छुवाछुत को नही मानता है। जैसे कि मुल हिंदू अंबेडकर समेत इस देश के कोई भी मुलनिवासि जो की मुल हिंदू हैं, वे सब उच्च निच छुवाछुत को नही मानते है़ं। और हिंदू धर्म भी छुवाछुत को नही मानता है। बल्कि छुवाछुत को विदेशी मुल का मनुवादि मानता है, जोकि हिंदू का नकाब लगाकर इस देश में खुदको जन्म से उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कहता है, जो कि असल में वह वही यहूदि कबूला है जो कि पूरब की ओर आकर इस कृषि प्रधान देश में गुम हुआ कबिला है। जो कि यहूदियों का वह बड़ा कबिला कहलाता रहा है, जो कि यहूदियों का इतिहास में गुम हुआ सबसे बड़ा कबिला है, और छोटा कबिला जो पश्चिम की तरफ गया था वह छोटा कबिला वर्तमान में जो इजराईल अमेरिका वगैरा में यहूदि के रुप में मौजुद है वह है। छोटा कबिला तो पुरी दुनियाँ के सामने अपना असली रुप दिखला दिया है कि वह यहूदि है, पर पूरब की ओर आकर गुम हुआ सबसे बड़ा कबिला इस देश में आकर हिंदू नकाब लगाकर अब भी खुदको छिपाया हुआ है उन लोगो से जो कि उसे हिंदू मानते हैं, जो की वह नही है। क्योंकि ये यहूदि और मनुवादि दोनो एक ही dna के दरसल कबिलई यहूदि ही हैं, जिसे यहूदियो के इतिहास में दो कबिला के रुप में जाना जाता है। जो दोनो कबिलई भेदभाव को मानते हैं, और दोनो ही खुदको दुनियाँ में सबसे बुद्धी ज्ञान वाले इंसान भी मानते हैं।
जाहिर है विदेशी मुल का मनुवादि हिंदू नही है, बल्कि वह यहूदि है, और इस देश का मुलविवासि मुल हिंदू है, जो बात अबतक जिन मुलनिवासियों को समझ में नही आया है, वे बुद्ध बुद्ध अंबेडकर अंबेडकर कहकर छुठे ज्ञान का इस अहंकार और अँधविश्वास में भी डुबे न रहें की विदेशी मुल का मनुवादि हिंदू है, और हिंदू धर्म मनुवादियों का धर्म है। जो अहंकार और अँधविश्वास एकदिन जरुर टुटेगी और भले इस अहंकार और अँधविश्वास में डुबने वाले लोग बुद्ध और अंबेडकर को सारी जीवन जीकर खुदको सबसे अधिक बुद्धी ज्ञान वाला मानकर बल्कि उनके अलविदा लेने के बाद भी उनकी इस बात को ही सत्य मानकर कि मनुवादियों का अपना हिंदू धर्म और हिंदू वेद पुराण पर्व त्योहार भी है, जिसे सत्य मानने वाले सबका अहंकार और अँधविश्वास जिसदिन टुटेगी समझ लेना मेरी यह बुद्धी ज्ञान उनके संक्रमित बुद्धी का इलाज करके उसे ठीक करके उनके जिते जी पूर्ण रुप से ठीक कर दिया है, और यदि अब भी वे इसी अहंकार और अँधविश्वास में डुबे रहे कि बुद्ध और अंबेडकर के ज्ञान से बड़ा और कोई ज्ञान नही है, जो कि मनुवादियों को मुल हिंदू मानते थे, तो वे भी अँधविश्वास और अहंकार में ही डुबकर अलविदा लेने वाले हैं मनुवादियों द्वारा अति संक्रमित होकर यह बड़बड़ाते हुए कि मनुवादि असली हिंदू है, और इस देश का मुलनिवासि जो की होली दीवाली मकर संक्रांति छठ ओनम करमा सरहूल लोहड़ी वगैरा प्रकृति पर अधारित पर्व त्योहार मनाते हुए प्राकृति की पूजा करता है भगवान के रुप में वह मूल हिंदू नही है, जो बड़बड़ाने वाले जबतक यह साक्षात मौजुद स्थिर सत्य प्रकृति रहेगी तबतक यह सत्य साबित नही कर सकते की इस देश को गुलाम बनाने वाला मनुवादि मुल हिंदू है और मनुवादियों के पूर्वज हिंदू भगवान है, जो बात मनुवादियों से सबसे बुरी तरह से संक्रमित जो कि अति पढ़ लिखकर और बुद्धी ज्ञान लेकर भी यह मानने के लिए तैयार नही हैं कि मनुवादि मुल हिंदू नही है, और न ही मनुवादियों का हिंदू धर्म है, बल्कि वे यह भी मानने के लिए तैयार नही हैं की हिंदू धर्म में छुवाछुत ढोंग पाखंड अँधविश्वास नही है, और न ही हिंदू धर्म में जन्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था मौजुद है, और न ही हिंदू धर्म यह कहता है कि मुँह हाथ पैर वगैरा से अप्राकृतिक अवैज्ञानिक रुप से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र बच्चा पैदा हुआ था, बल्कि ये बात विकृत मांशिकता के मनुवादि मानता है। क्योंकि वह सायद यह नही जानता है कि हिंदू वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित हुनर व्यवस्था है, जिसमे सब अपने अपने हुनर से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र बनते हैं, जैसे की अब भी जिन लोगो की सत्य बुद्धी ज्ञान है वे यही सत्य मानते हैं कि ब्राह्मण मतलब विद्वान ज्ञानी होता, क्षत्रिय मतलब रक्षक वीर होता है, वैश्य मतलब धनवान होता, जिस हुनर को कर्म के अनुसार प्राप्त करने की बाते हिंदू धर्म में कही गयी है। जैसे की न्यायालय में न्याय होता है और न्याय करने की हुनर वाला व्यक्ती ही जज बनकर न्याय कर सकता है यह बात हिंदू धर्म ही नही पुरी दुनियाँ के सचमुच का विद्वान जो लोग हैं वे मानते हैं, पर जो लोग सचमुच का बुद्धी ज्ञान वाले लोग नही हैं वे यह मानते हैं की गोरा काला भेदभाव करते हुए जो गोरे गुलाम करके भी जज बने हुए थे वे ही न्याय करने वाले सचमुच का काबिल होकर जज बने हुए थे, जैसे की वे यह भी मानते हैं कि उच्च निच छुवाछुत करने वाले सचमुच का काबिल ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य बने हुए हैं, जो की सचमुच का वही असली विद्वान पंडित रक्षक वीर और धनवान हैं, वह भी जन्म से ये गुलाम करने वाले विद्वान बलवान और धनवान हैं, जो ही असली हिंदू हैं, यह मानने वाले ही असल में सबसे अँधविश्वास और अज्ञान अहंकार में डुबे हुए लोग हैं, वह भी अति पढ़ लिखकर खुदको सबसे अधिक बुद्धी ज्ञान वाला समझदार इंसान भी मानकर सबसे नासमझ बने हुए हैं। जो की मेरे द्वारा बांटे गए बुद्धी ज्ञान से अपने संक्रमित बुद्धी को मनुवादियों की संक्रमण से यदि मुक्त कर सकते हैं तो जरुर कर लें। अन्यथा प्रकृति भगवान ही उनकी संक्रमण को मुक्त कर सकता है।
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