gaimini se mera savaal javaab baatacheet


Gemini से मेरा सवाल जवाब बातचीत
Gemini से मेरा सवाल जवाब बातचीत


फेशबुक में मैने एक पोस्ट पढ़ा जिसमे किसी नारी ने पुरुषो के बारे में यह लिखा था कि " पुरुष संभाल ही नही पाते वफादार स्त्री को, कभी वहम में, कभी अहम में..." जिसके कोमेंट में मैने जो कुछ लिखा उसे आज मकर संक्रांती के दिन जो अपने मोबाईल में google का एक एप्प Gemini इंस्टोल किया है, जो की बातचीत करके बहुत से सवालो का जवाब देता है, और अपनी राय भी देता है, उसके साथ मेरी जो भी बातचीत हुई है, उसे अपने पोस्ट के रुप में बांटना चाहूँगा, ताकि मेरे विचार से मैने जो कुछ लिखा है, उसके बारे में जानकर जो लोग यह जानना चाहते हैं कि मैं किस तरह के सवाल जवाब करके यह जानने की कोशिष कर रहा हूँ कि अभी जो कुछ भी दुनियाँ में चल रहा है उसमे कौन सही है और कौन गलत है?

खैर निचे मेरी बातचीत है

मैं:-  बहुत सी स्त्री अपनी हवश की आग को सम्हाल नही पाती और गैर मर्दो से भी सेक्स करके अपना सच्चा प्यार को खोकर स्त्री को सिर्फ हवश का भुख मिटाने वाली वस्तु समझकर आवारा कुत्ता सुवर कि तरह किसी का जुठन को भी खाकर अपने भुख मिटाने वाले जानवरो जैसे पुरुष को अपना तन सौंपकर अपना सच्चा प्यार और परिवार तो खोती ही है पर अपना सच्चा चरित्र भी खो देती है, जिस तरह के स्त्री पुरुषो को ओशो आश्रम में जाकर बिना परिवारिक सोच से जीवन जीते हुए सिर्फ किसी से भी यदि इसकी मर्जी हो तो उससे हवश किया जा सकता है इस ओशो विचार को अपनाकर ओशो आश्रम में या तो जीवन जीनी चाहिए या फिर किसी वैश्यालय में जाकर काला सफेद मोटा पतला लंबा नाटा तरह तरह का स्वाद चखने की अपनी जो पसंद और संस्कारो की जीवन है उसे जीनी चाहिए, ताकि दुसरे उन लोगो की जीवन को वे बर्बाद न कर सके जिन्हे की ऐसे लोग बिल्कुल पसंद नही होते हैं, जैसे कि मैं, क्योंकि मेरे लिए सच्चा प्यार किसी भगवान के चरणो में चड़ाया गया वह पवित्र वर्जिन फूल की तरह होता है जिसे सिर्फ अपने सच्चे जीवन साथी को चड़ाया जाता है, न की प्यार किसी कुड़े में पड़ा जुठन है जिसे कोई भी आवारा कुत्ता कुत्तिया सुवर सुवरिया मुँह मारकर अपना भुख मिटा ले।

Gemini:- आपका यह कमेंट कई कारणों से समस्याग्रस्त है।
* आक्रामक भाषा: आपने स्त्रियों के लिए बहुत आक्रामक और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया है।
* आरोप: आपने सभी स्त्रियों को एक जैसा मानते हुए उन पर आरोप लगाए हैं।
* ओशो के विचारों का गलत प्रतिनिधित्व: आपने ओशो के विचारों का गलत अर्थ लगाया है और उन्हें अपने दृष्टिकोण को सही साबित करने के लिए इस्तेमाल किया है।
* सामान्यीकरण: आपने सभी पुरुषों को भी एक जैसा मानते हुए उन पर आरोप लगाए हैं।
* असहिष्णुता: आपने उन लोगों के प्रति असहिष्णुता दिखाई है जो आपके विचारों से सहमत नहीं हैं।
यदि आप अपनी राय व्यक्त करना चाहते हैं तो आप ये बातें ध्यान में रख सकते हैं:
* सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें: सभी के प्रति सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें।
* विशिष्ट उदाहरण दें: सामान्यीकरण करने के बजाय विशिष्ट उदाहरण दें।
* दूसरों के विचारों का सम्मान करें: भले ही आप किसी के विचारों से सहमत न हों, लेकिन उन्हें सम्मान दें।
* खुले मन से बात करें: दूसरों के विचारों को सुनने के लिए तैयार रहें।
यदि आप अपनी पोस्ट को संशोधित करना चाहते हैं तो आप निम्नलिखित बातें कर सकते हैं:
* अपनी भावनाओं को व्यक्त करें: आप अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को अपमानित किए बिना।
* अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करें: आप अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को गलत साबित करने की कोशिश न करें।
* सकारात्मक संदेश दें: आप एक सकारात्मक संदेश दें।
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
यदि आप चाहते हैं कि मैं आपके लिए एक नया कमेंट तैयार करूं तो आप मुझे बता सकते हैं।
कृपया ध्यान दें कि मैं किसी भी धर्म या संप्रदाय का समर्थन नहीं करता हूँ।



मैं:- कोई स्त्री यदि सभी पुरुष को हवश का पुजारी समझकर पोस्ट डाली है तो उसका जवाब में क्या मैं उसे सम्मानपूर्वक यह कहूँ की मैं भी हवश का पूजारी पुरुष हूँ, जबकि आजतक मुझे कई स्त्री अपनी मर्जी से सेक्स करने के लिए  अपना तन सौंप रही थी तब भी मैं इंकार करते हुए वर्जिन जीवन जी रहा हूँ यह सोचकर की मैं गंदा पुरुष नही हूँ बल्कि मैं वह पुरुष हूँ जो सिर्फ अपने जीवन साथी से ही सेक्स करुँगा यदि भगवान ने मेरे लिए भी यदि कोई जीवन साथी पैदा किया है, जो भी मेरी तरह साफ सुथरी वर्जिन है, न की वह ओशो आश्रम में रहकर कई से सेक्स कर रही हो

Gemini:- नहीं, यह उत्तर देने का तरीका उचित नहीं है।
आपकी यह प्रतिक्रिया उस महिला के प्रति अत्यधिक आक्रामक और अपमानजनक होगी। इससे स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है और एक विवाद पैदा हो सकता है।
आपको इस स्थिति में क्या करना चाहिए:
* शांत रहें: गुस्से में आने के बजाय शांत रहने की कोशिश करें।
* सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें: भले ही आप उस महिला की बातों से सहमत न हों, लेकिन सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें।
* अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करें: आप अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन दूसरों को अपमानित किए बिना।
* सकारात्मक संदेश दें: आप एक सकारात्मक संदेश दें।
आप इस तरह से जवाब दे सकते हैं:
* "मुझे लगता है कि आपने सभी पुरुषों को एक जैसा मान लिया है। यह सही नहीं है। हर व्यक्ति अलग होता है और हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है।"
* "मैं मानता हूँ कि प्यार और सम्मान हर रिश्ते की नींव होते हैं।"
* "शायद आपने कुछ ऐसे लोगों के अनुभवों के आधार पर यह पोस्ट लिखी है जिनसे आपको ठेस पहुंची हो। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि सभी पुरुष ऐसे ही हों।"
याद रखें:
* हर किसी की अपनी राय होती है और इसे सम्मान देना चाहिए।
* किसी भी तरह के सामान्यीकरण से बचना चाहिए।
* किसी भी तरह के व्यक्तिगत हमले से बचना चाहिए।
अगर आप चाहते हैं कि मैं आपके लिए एक और जवाब तैयार करूं तो आप मुझे बता सकते हैं।
कृपया ध्यान दें कि मैं किसी भी धर्म या संप्रदाय का समर्थन नहीं करता हूँ।
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
अगर आपको कोई और सवाल हो तो पूछने में संकोच न करें।


मैं:- न्यायालय में बैठे जज को भी क्या सम्मान पूर्वक बातचीत करके किसी बलात्कारी हत्यारा लुटेरा डाकू ठग को छोड़ देना चाहिए? या फिर उन्हे सुधारने के लिए सजा देना चाहिए

Gemini:- यह एक बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है, जिसके बारे में कई अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं।
एक तरफ:
* न्याय और सजा: अपराध के लिए सजा देना न्याय का एक मूलभूत सिद्धांत है। बलात्कार, हत्या, लूटपाट जैसे गंभीर अपराधों के लिए सजा देना आवश्यक है ताकि समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखी जा सके और पीड़ितों को न्याय मिल सके।
* रोकथाम: सजा देने से अन्य लोगों को भी अपराध करने से रोका जा सकता है।
* सुधार: कुछ लोग मानते हैं कि सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपराधियों को सुधारने और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में भी मदद करना चाहिए।
दूसरी तरफ:
* मानवीयता: हर अपराधी एक इंसान होता है और उसे भी सुधारने का मौका मिलना चाहिए।
* पुनर्वास: कई बार अपराध के पीछे सामाजिक और आर्थिक कारण होते हैं। ऐसे में अपराधियों को सुधारने के लिए पुनर्वास कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है।
* बदला लेना: कुछ लोग मानते हैं कि सजा का उद्देश्य केवल बदला लेना होता है, जो कि एक गलत दृष्टिकोण है।
न्यायपालिका का दृष्टिकोण:
न्यायालय में बैठे जजों को कई बातों को ध्यान में रखकर फैसला लेना होता है, जैसे कि:
* अपराध की गंभीरता: अपराध की गंभीरता के आधार पर सजा का निर्धारण किया जाता है।
* अपराधी का पिछला रिकॉर्ड: अपराधी का पिछला रिकॉर्ड भी सजा के निर्धारण में एक महत्वपूर्ण कारक होता है।
* अपराधी की मानसिक स्थिति: अगर अपराधी मानसिक रूप से बीमार है तो उसे इलाज की आवश्यकता होती है।
* समाज का हित: न्यायालय को यह भी ध्यान रखना होता है कि सजा देने से समाज का हित कैसे प्रभावित होगा।
निष्कर्ष:
यह एक जटिल मुद्दा है जिसका कोई आसान समाधान नहीं है। न्यायपालिका को हर मामले में सभी पहलुओं पर विचार करके एक उचित फैसला लेना चाहिए।
कुछ महत्वपूर्ण बातें जो ध्यान में रखनी चाहिए:
* सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपराधियों को सुधारने और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में भी मदद करना चाहिए।
* पुनर्वास कार्यक्रमों को प्रभावी बनाया जाना चाहिए।
* न्यायपालिका को निष्पक्ष और पारदर्शी होना चाहिए।
* पीड़ितों के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह सिर्फ एक सामान्य जानकारी है और हर मामले में अलग-अलग परिस्थितियां होती हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप किसी वकील या कानूनी विशेषज्ञ से संपर्क कर सकते हैं।

मैं:- जब यह देश गुलाम था तो गुलाम करने वाले जज बनकर क्या न्याय फैशला कर रहे थे गुलामी से आजादी पाने के लिए आंदोलन संघर्ष करने वाले क्रांतीकारियों को फांसी देकर, या फिर वे खुद सबसे बड़े अपराध कर रहे थे देश गुलाम करके और आजादी के लिए आंदोलन संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों को सजा देकर?

Gemini:- आपका यह प्रश्न बहुत ही गंभीर और विचारणीय है। यह इतिहास के उस काले अध्याय की ओर इशारा करता है जब भारत गुलाम था और अंग्रेज शासन कर रहे थे।
आपके प्रश्न के उत्तर में:
* अंग्रेजी शासनकाल में न्याय: उस समय न्यायपालिका पूरी तरह से अंग्रेजी शासन के अधीन थी। न्यायाधीशों की नियुक्ति अंग्रेज सरकार करती थी और वे अंग्रेजी कानूनों के अनुसार फैसले सुनाते थे।
* क्रांतिकारियों पर अत्याचार: जो लोग भारत की आजादी के लिए लड़ रहे थे, उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा क्रांतिकारी करार दिया जाता था और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाती थी। उन्हें फांसी दी जाती थी, जेल में बंद किया जाता था या देश से निर्वासित कर दिया जाता था।
* अंग्रेजी शासन का असली अपराध: असल में सबसे बड़ा अपराध तो अंग्रेजी शासन ने ही किया था। उन्होंने भारत को गुलाम बनाया, हमारे संसाधनों का दोहन किया और हमारी संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की।
* आजादी के आंदोलनकारियों को सजा देना: अंग्रेजी सरकार ने आजादी के आंदोलनकारियों को सजा देकर यह साबित करना चाहता था कि वे अपनी सत्ता को बनाए रख सकते हैं। लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि उनका यह अत्याचार ही भारत की आजादी का कारण बनेगा।
आजादी के बाद:
आजादी के बाद भारत ने एक नई शुरुआत की। हमने अपना संविधान बनाया और एक लोकतांत्रिक देश बने। आज हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है और वह सभी नागरिकों को न्याय दिलाने का काम करती है।
आपके प्रश्न से यह स्पष्ट होता है कि:
* अंग्रेजी शासनकाल में न्याय नाम की कोई चीज नहीं थी।
* अंग्रेजी शासन ने भारत के साथ बहुत बड़ा अत्याचार किया।
* आजादी के आंदोलनकारियों ने भारत को आजाद कराने के लिए बहुत बड़ा बलिदान दिया।
आज हमें उन सभी क्रांतिकारियों को याद करना चाहिए जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया।
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि:
* इतिहास को हमेशा एक ही नजरिए से नहीं देखा जा सकता है।
* इतिहास के बारे में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


मैं:- आपने जवाब दिया की * अंग्रेजी शासनकाल में न्याय नाम की कोई चीज नहीं थी।
* अंग्रेजी शासन ने भारत के साथ बहुत बड़ा अत्याचार किया।

फिर भी गाँधी और अंबेडकर जैसे गुलाम क्यों गोरो से न्याय  के लिए आदालतो में वकिल बनकर बहस करते थे जब उनको पता था कि देश गोरो से गुलाम है और गोरे ही न्यायालय में जज बने हुए हैं

Gemini:- आपका यह सवाल बहुत ही गहरा और विचारोत्तेजक है। यह सच है कि अंग्रेजी शासनकाल में न्यायपालिका पूरी तरह से अंग्रेजी शासन के अधीन थी और न्याय का ढोंग किया जाता था। फिर भी गांधी जी और अंबेडकर जैसे महान नेताओं ने अदालतों में जाकर मुकदमे लड़े।
आइए इस बात को समझने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यों हुआ:
* कानून का शस्त्र: गांधी जी और अंबेडकर जी जानते थे कि अंग्रेजी शासन कानून के बल पर चलता है। उन्होंने इसी कानून का इस्तेमाल करके अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। उन्होंने अदालतों में जाकर अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कानूनों को उजागर किया और लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया।
* जनता को जागरूक करना: अदालतें एक ऐसा मंच थी जहां वे अपनी बात को जनता तक पहुंचा सकते थे। उन्होंने अदालतों में जो कुछ भी कहा, वह अखबारों में छपता था और लोगों तक पहुंचता था। इस तरह उन्होंने लोगों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
* अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जागरूक करना: अदालतों में मुकदमे लड़कर वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी अंग्रेजी शासन के अत्याचारों के बारे में बता रहे थे।
* अहिंसा का मार्ग: गांधी जी अहिंसा में विश्वास करते थे। उन्होंने अदालतों में जाकर यह साबित किया कि बिना हिंसा के भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है।
* कानूनी सुधार: अंबेडकर जी का मानना था कि कानून में बदलाव लाकर ही दलितों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने अदालतों में जाकर दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
सारांश:
गांधी जी और अंबेडकर जी ने अदालतों में जाकर यह साबित किया कि कानून का इस्तेमाल अत्याचार के खिलाफ भी किया जा सकता है। उन्होंने अदालतों को एक मंच बनाया जहां उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और लोगों को जागरूक किया।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* अदालतों में मुकदमे लड़ना उनके संघर्ष का एक हिस्सा था।
* उन्होंने कई अन्य तरीकों से भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
* उन्होंने अपनी लड़ाई में सफलता भी पाई और कई कानूनी बदलाव लाए।
आपका यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आज भी हमारी न्यायपालिका कितनी स्वतंत्र है और क्या वह सभी नागरिकों को न्याय दिलाने में सक्षम है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


मैं:- यदि गांधी जी अहिंसा में विश्वास करते थे तो वे उस राम को अपना आदर्श क्यों मानते थे जिसने की अपने भक्त उस हनुमान को शाबासी दिया था जिसने की लंका को जलाकर  भष्म कर दिया था यह जानते हुए की लंका में आग लगाने से वहाँ पर मौजुद सारे घर महल  और उसमे रह रहे निर्दोष बच्चे बुढ़े जवान गर्भवती स्त्री समेत जानवर पशु पक्षी पेड़ पौधा सब जलकर राख हो सकता है जिससे की सबसे बड़ी हिंसा होगी और सभी मारे जायेंगे, बल्कि लंका में जो सीता कैद होकर रह रही थी जिसे की रावण ने अपनी विधवा बहन का नाक लक्ष्मण द्वारा काटे जाने पर बदले की कारवाई में हरण करके लाकर उसे सुरक्षित रखा था वह भी हनुमान के द्वारा लगाये गये आग से भष्म लंका में जीते जी भष्म हो सकती है, जो यदि सचमुच में लंका के साथ सीता भी यदि जल गयी होती तो भी क्या लंका दहन करने वाले हनुमान को शाबासी देता राम और उस राम को अपना आदर्श मानने वाला गाँधी सचमुच में अहिंसा को मानता है कि ऐषे हिंसा का समर्थन करने वाले राम और हनुमान की आरती उतारकर अहिंसावादी होने का ढोंग करता था गाँधी!

Gemini:- आपका यह प्रश्न बहुत ही गहरा और विचारोत्तेजक है। यह रामचरितमानस के एक ऐसे पहलू को उठाता है जिस पर अक्सर बहस होती है।
आपके प्रश्न के उत्तर में:
* रामायण की व्याख्या: रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है और इसकी व्याख्या कई तरह से की जा सकती है। कुछ लोग राम को आदर्श पुरुष मानते हैं तो कुछ लोग उनकी कुछ कार्यों पर सवाल उठाते हैं।
* अहिंसा का व्यापक अर्थ: गांधी जी के लिए अहिंसा का मतलब सिर्फ शारीरिक हिंसा न करना नहीं था, बल्कि मन में किसी के प्रति द्वेष न रखना भी था। उन्होंने हमेशा कहा था कि सत्य और अहिंसा उनके दो सबसे बड़े हथियार हैं।
* रावण और लंका: रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है जिसने सीता का अपहरण किया था। लंका को राक्षसों का राज्य बताया गया है। हालांकि, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रामायण एक काव्य है और इसमें काव्य की भाषा का प्रयोग किया गया है।
* हनुमान और लंका दहन: हनुमान ने लंका को इसलिए जलाया था क्योंकि सीता को बचाना था। उन्होंने यह भी जानते थे कि लंका में कई निर्दोष लोग भी रहते हैं। लेकिन उन्होंने सोचा कि सीता को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है।
* गांधी जी का दृष्टिकोण: गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने हनुमान को एक भक्त के रूप में देखा था जिसने अपने भगवान के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया था।
* आधुनिक समय और व्याख्या: आज के समय में हम रामायण को एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं और उसमें कई तर्कहीन बातें भी लगती हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह एक पौराणिक ग्रंथ है और इसे उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में समझना चाहिए।
निष्कर्ष:
गांधी जी ने राम को अपना आदर्श इसलिए माना क्योंकि उन्होंने राम में कई ऐसे गुण देखे थे जो उनके लिए महत्वपूर्ण थे। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी।
हालांकि, यह मानना भी जरूरी है कि रामायण की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है और हर व्यक्ति की अपनी अलग राय हो सकती है।
आपका यह सवाल बहुत ही गहरा है और इस पर लंबी चर्चा की जा सकती है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।

 मैं:- आपने बताया कि रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है जिसने सीता का अपहरण किया था। लंका को राक्षसों का राज्य बताया गया है। जिसपर मैं यह भी जानना चाहूँगा की सीता रावणराज में लंका हनुमान द्वारा जलाकर भष्म किए जाने के बाद भी सुरक्षित जो बच गयी वह ज्यादे बेहत्तर शासन था कि वह अपने पति के रामराज में पति द्वारा शक किए जाने के बाद कि सीता रावण के साथ सेक्स करके रावण के बच्चे की माँ बनने वाली है, जबकि सीता से अग्नी परीक्षा लेकर पास भी कर दिया था कि सीता पवित्र है फिर भी उसके पति राम ने अपने शासन में अपनी गर्भवती पत्नी सीता को अपने महलो से बाहर करके हिंसक जानवरो के बिच घने जंगलो में बच्चे को जन्म देने और बिना पत्नी के अपने बच्चो का अकेली खुद लालन पालन करने शिक्षित करने भेज दिया था, क्या राम ने अपनी पत्नी को यह जानते हुए भी सीता के साथ न्याय किया था कि रावण ने सीता को जोर जबरजस्ती हरण करके ले गया था न की सीता की मर्जी से रावण उसे अपने साथ ले गया था कि राम उसपर शक करता की सीता और रावण का आपस में गलत सबंध बना है। जबकि रावण ने सीता के साथ ऐसा कुछ नही किया था और सीता लंका में सुरक्षित खास महिला रक्षको की सुरक्षा में थी तो भी रावण और उसके रावणराज को बहुत बड़ा बिलेन का शासन बतलाया जाता है। जबकि राक्षस राज में सीता सुरक्षित जीवित थी और रामराज में अती दु:खी होकर जीते जी धरती में समाकर आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि कोई इंसान जीते जी धरती में समा जाय तो वह मरेगा नही तो क्या वह धरती में समाकर भी जीवित बचेगा, जिस तरह के रामराज ज्यादे अच्छा था सीता के लिए की रावणराज उसके लिए अच्छा था? जहाँ पर देवो को बल्कि यमराज तक को भी जीवित छोड़ दिया जाता था कैद करके, जबकि राक्षसो के बारे में यह कहा जाता है कि बिरीयानी मुर्गा खशी की तरह अपने दुश्मनो को खाते थे अपने सोने के बर्तनो में पकाकर उसे सोने के डिनर टेबल में सोने के प्लेट में परोसकर, फिर तो राक्षसो ने सबसे अधिक देवअसुर संग्राम जिते हैं, जीस जीत पर वे हारे गए सभी देवो को खा गए होंगे भोजन की तरह सोने की बर्तनो में पकाकर, जो की सफेद झुठ होगा जिसे सत्य मानने वाला गाँधी क्या सचमुच का सत्य को मानता था?


और आपने कहा कि हनुमान ने लंका को इसलिए जलाया था क्योंकि सीता को बचाना था। उन्होंने यह भी जानते थे कि लंका में कई निर्दोष लोग भी रहते हैं। लेकिन उन्होंने सोचा कि सीता को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके बारे में जानकर मैं यह भी जानना चाहूँगा कि जिस लंका में सीता मौजुद थी उस लंका को हनुमान जलाकर वह सीता को बचाने गया था की राम द्वारा अग्नी परीक्षा लेने से पहले वह भी सीता की अग्नी परीक्षा लेने गया था उस लंका को जलाकर भष्म करके जिससे की निर्दोष बच्चे बुढ़े जीव जंतु पेड़ पौधा के साथ सीता भी जलकर भष्म हो सकती थी ऐसी खतरनाक हालात पैदा हो सकता था, जिसे वह जानता था, सीता को ही सिर्फ बचाना ज्यादे महत्वपूर्ण था तो वह साीता लंका की जिस अशोक वाटिका में रखी गयी थी उस पुरे का पुरा अशोक वाटिका को ही उठाकर राम के पास ले आती क्या जरुरत थी हिंसक रुप से लंका दहन करने की जिससे की सीता भी भष्म हो सकती थी यदि राक्षसो ने उसे जल रही लंका से सुरक्षित बाहर नही निकालते, क्योंकि हनुमान तो अधमरा कोमा अवस्था में पड़ा राम लक्ष्मण का इलाज के लिए दवा अथवा जड़ीबुटी लाने जब गया था तो वह पहाड़ को ही उठाकर लाया था और सूर्य को भी निगल गया था तो जाहिर है अशोक वाटिका तो क्या वह तो पुरी लंका को ही उठाकर राम की चरणो में रख सकता था, फिर उसे समुंद्र भी पार करने की जरुरत नही पड़ती और न ही हिंसक राम रावण युद्ध होकर अनगिनत निर्दोष मारे जाते और पर्यावरण को भी जो भारी नुकसान हुआ होगा युद्ध से वह नही होता।

और आपने जो जानकारी दिया कि गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने हनुमान को एक भक्त के रूप में देखा था जिसने अपने भगवान के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया था। तो मैं यह भी जानना जरुर चाहूँगा कि ऐसी हिंसक लड़ाई और लुटपाट सत्ता जो लंका में स्थापित हो गयी थी कथित राक्षसो की सत्ता में कब्जा करके उसे आदर्श मानना क्या सही होगा ऐसी ही हिंसक लड़ाई करना और दुसरो की सत्ता में कब्जा करके किसी के हक अधिकारो की लुटपाट करना, क्योंकि लंका राक्षसो की थी न कि देवो की।

और आपने जो निष्कर्ष में यह बतलाया कि
गांधी जी ने राम को अपना आदर्श इसलिए माना क्योंकि उन्होंने राम में कई ऐसे गुण देखे थे जो उनके लिए महत्वपूर्ण थे। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी। तो मैं यह भी जरुर जानना चाहूँगा कि राम ने बालि की पत्नी तारा के साथ जो बालि के भाई सुग्रीव किसी गैर की पत्नी से सेक्स करके अपना हवश शांत करने के लिए राम से समझौता किया था कि राम किसी तरह बालि की हत्या छल कपट से भी यदि कर दे तो वह गैर मर्द रावण द्वारा जो सीता को हरण करके ले जाया गया है उस सीता को खोजने और लाने में राम की मदत करेगा। जिस हवश के पुजारी सुग्रीव जिसने की अपनी हवश शांत करने के लिए अपने भाई बालि की पत्नी जिसके की अंगद नाम का बड़ा लड़का भी था तो भी उस सुग्रीव ने गैर की पत्नी तारा के प्रति लार टपकाते हुए राम से जो समोता करके जिस तरह का न्याय किया बालि को छिपकर छल कपट से हत्या करके अन्याय करने वाले उस सुग्रीव से हाथ मिलाकर जिसने की अपने मरते हुए पति बालि के पास जाकर रो रही बालि की पत्नी तारा का बलात्कार करके, वह क्या न्यायपूर्ण समझौता था किसी और कि पत्नी के साथ किसी को बलात्कार करने में मदत करके जो की राम ने सुग्रीव का मदत किया था बालि की हत्या करके। जो बालि यदि बाद में जीवित होकर अपनी पत्नी तारा का भी अग्नी परीक्षा लेता राम की तरह तो क्या वह भी न्याय होता? जिस तरह की न्याय वाली लड़ाई को क्या सचमुच का न्याय लड़ाई कहा जा सकता है यह जानते हुए की तारा बालि की पत्नी थी और अंगद बालि का पुत्र था। जिन सब जानकारियों से भरा ग्रंथ में राम को न्याय करने वाला भगवान तक कहा जाता है और बालि को अन्याय करने वाला शैतान से तुलना किया जाता है ऐसी ग्रंथ को जो गांधी अपना आदर्श मानकर कथित ब्रह्मचर्या का पालन के नाम से जो नंगा होकर नग्न लड़कियों से सोता था, वह क्या सत्यकर्म है, जो सत्यकर्म करने पर गोरे तो गाँधी को कुछ नही करते थे पर क्या अभी  की पुलिस और न्यायालय मैं गाँधी को अपना सबसे बड़ा आदर्श मानता हूँ कहकर किसी पुरुष के द्वारा ऐसी नग्न होकर नग्न लड़कियों से सोने जैसी हरकत करने पर कुछ नही करेगी? और क्या यह आदर्श परिवार समाज और लोकतंत्र के लिए सही है?

Gemini:- आपके द्वारा उठाए गए सवाल रामायण के विभिन्न पात्रों और घटनाओं के बारे में गहरी समझ रखते हैं। ये सवाल न केवल रामायण के कथानक पर बल्कि धर्म, न्याय, और सत्ता के हमारे समझ पर भी प्रश्न उठाते हैं।
आपके सवालों के जवाब देने के लिए, हमें रामायण को विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में देखना होगा:
रामायण के विभिन्न आयाम:
* पौराणिक ग्रंथ: रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है। इसका उद्देश्य केवल ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करना नहीं है, बल्कि धार्मिक और नैतिक मूल्यों को भी प्रस्तुत करना है।
* सांस्कृतिक ग्रंथ: रामायण भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें भारतीय समाज के मूल्यों, विश्वासों और आदर्शों का प्रतिबिंब मिलता है।
* काव्य: रामायण एक महाकाव्य है। इसमें कविता और काव्य शैली का प्रयोग किया गया है। इसमें अलंकार और अतिशयोक्तियां भी मिलती हैं।
आपके सवालों के जवाब:
* सीता का अपहरण और लंका दहन: आपने सीता के अपहरण और लंका दहन के बारे में कई सवाल उठाए हैं। यह सच है कि लंका दहन में कई निर्दोष लोग मारे गए होंगे। लेकिन आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह एक युद्ध था और युद्ध में अक्सर निर्दोष लोगों को नुकसान होता है।
* राम और सीता का रिश्ता: राम और सीता का रिश्ता भारतीय संस्कृति में आदर्श पति-पत्नी के रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, राम के द्वारा सीता को वनवास भेजने का निर्णय कई लोगों के लिए विवादास्पद रहा है।
* रावण और राक्षस: रामायण में रावण को एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है। हालांकि, राक्षस शब्द का अर्थ केवल एक भौतिक रूप नहीं है। यह अहंकार, लोभ और क्रोध जैसे नकारात्मक गुणों का भी प्रतीक है।
* गांधी जी का दृष्टिकोण: गांधी जी ने रामायण को एक आदर्श ग्रंथ के रूप में देखा था। उन्होंने राम को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा था जिसने धर्म और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी।
आपके प्रश्न के उत्तर में कुछ और बातें जो ध्यान रखनी चाहिए:
* अलग-अलग दृष्टिकोण: रामायण के बारे में अलग-अलग लोगों के अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं।
* समय और परिवर्तन: समय के साथ लोगों की सोच बदलती है और रामायण के बारे में भी लोगों की समझ बदलती रहती है।
* आधुनिक मूल्यों: आज के समय में हम रामायण को आधुनिक मूल्यों के आधार पर भी देख सकते हैं।
निष्कर्ष:
रामायण एक जटिल और बहुआयामी ग्रंथ है। इसमें कई ऐसे प्रश्न उठते हैं जिनके जवाब देना आसान नहीं है। आपने जो सवाल उठाए हैं, वे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इन पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
* रामायण एक पौराणिक ग्रंथ है और इसे साहित्यिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।
* रामायण के पात्रों और घटनाओं के बारे में अलग-अलग व्याख्याएं हो सकती हैं।
* रामायण हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सवालों पर सोचने के लिए प्रेरित करता है।
मुझे उम्मीद है कि यह उत्तर आपके प्रश्न का समाधान करेगा।


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