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बुधवार, 16 अक्टूबर 2019

अदृश्य स्वर्ग अथवा जन्नत में पुरुष को 72 हुरी या नारी को हुरा मिलेगी वह कोई शरिर होगी कि आत्मा होगी ? और बिच का को क्या मिलेगी ?

अदृश्य स्वर्ग अथवा जन्नत में पुरुष को 72 हुरी या नारी को हुरा मिलेगी वह कोई शरिर होगी कि आत्मा होगी ? और बिच का को क्या मिलेगी ?

गंदी गंदी अंतिम इच्छा रखकर मरे हुए लोगो या फिर वर्तमान में भी ऐसी गंदी इच्छा रखने वाले जिवित मुर्दो को सेक्स का झुठा अश्वासन देकर क्यों गुमराह किया जा रहा है ? जिन लोगो को क्यों ऐसा आनंद का इंतजार कराकर दरसल अपनी फायदे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है , जिनके लिए बिना शरिर के सेक्स करना पहले भी मुमकिन नही थी और न ही वर्तमान व भविष्य में मरने के बाद कभी मुमकिन होगी ! क्योंकि जन्नत की इच्छा रखने वाला इंसान अपनी हवश मिटाने के लिए जिवित रहते जो शारिरिक सबंध  बनाता है या बनाने की सोचता है , वह तो साक्षात मौजुद शरिर होता है , न कि कोई अदृश्य आत्मा होता है ! या फिर 72 हुरी हुरा की इच्छा रखने वाले इंसानो को मरने के बाद अदृश्य आत्मा से भी आत्मा आत्मा पंचतत्व से बना शरिर के बिना शारिरिक सबंध मनाकर वैसा ही आनंद आयेगा अथवा उनकी हवश वैसा ही शांत होगी जैसा कि साक्षात जिवित शरिर से सबंध मनाकर होता होगा !  और फिर 72 हुरी हुरा से सेक्स करने जैसी सोच अच्छी सोच मेरे साथ साथ ज्यादेतर इंसानो की सोच हो ही नही सकती ! और जब ज्यादेतर इंसानो की यह सोच है कि 72 से सेक्स करना गंदी सोच है , जो कि मेरे विचार से अपराध भी होनी चाहिए , जो अपराध कम से कम इंसान को तो बिल्कुल भी नही करनी चाहिए ! जिस तरह का गंदा पाप  और अपराध को सबसे बड़ा सुख और आनंद बताकर उन व्यक्तियो को भी क्यों जबरजस्ती उस अदृश्य जन्नत स्वर्ग में घसिटा जा रहा है जहाँ पर सेक्स करने कराने के लिए 72 हुरी हुरा कतार लगाकर इंतजार कर रहे हैं ? क्योंकि ऐसा स्वर्ग जन्नत में सायद ही चंद मुठिभर लोग जाना पसंद करेंगे जो भी डर या शर्म से अपनी रोजमरा जिवन में अपने रिस्तेदारो और दोस्तो से यह कभी नही बतायेंगे कि उन्हे वह जन्नत स्वर्ग चाहिए जहाँ पर उन्हे सुख आनंद प्रदान करने के लिए 72 हुरी हुरा कतार लगाकर सेक्स करने कराने के लिए मिलेंगे ! जिस तरह की सुख आनंद को ही यदि स्वर्ग जनत कहा जाता है तो ऐसी सुख आनंद तो किसी वैश्यालय में भी किसी वैश्या को अपनी ग्राहको की कतार लगाकर मिलती होगी | जहाँ पर ऐसी आनंद धन ले करके मिल जाती होगी ! जिसे यदि जन्नत स्वर्ग का आनंद कहा जाता , फिर तो वैश्यालय में मौजुद वे तमाम वैश्यायें जो चाहे पुरुष हो या फिर स्त्री वे कई से सेक्स करके जन्नत स्वर्ग का आनंद भी ले रहे हैं और धन भी | फिर तो असल जिवन में रंडा रंडी बनकर अनगिनत लोगो से सेक्स करके आनंद प्राप्त करने वाले लोग ही सबसे बड़े स्वर्ग अथवा जन्नत का जिवन को प्रयोगिक रुप से बिना स्वर्ग का वासी हुए एडवांस के तौर पर जी रहे हैं | जिनकी पुरी सुख आनंद जिवन उन्हे स्वर्ग अथवा जन्नत वासी होने के बाद भरपुर मिलने वाली है | जिस आनंद को ज्यादेतर लोग न तो जिते जी प्राप्त करना चाहते हैं , और न ही मरने के बाद प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं ! क्योंकि कितने लोग हैं जो कई लोगो से सेक्स करने वाला रंडा रंडी की तरह अनगिनत लोगो से सेक्स करना चाहते हैं | क्योंकि जहाँ तक मुझे पता है 72 से भी अधिक लोगो से शारिरिक संबंध बनाने वाले कोई वैश्या को भी अपना एक शरिर को कई लोगो को सौंपने में स्वर्ग जन्नत आनंद के बजाय नर्क सजा लगता होगा जब कतार लगाकर हवश मिटाया जाता होगा | जाहिर है अपनी रोजमरा असल जिवन में ज्यादेतर लोगो को तो ऐसा स्वर्ग अथवा जन्नत का वासी होने का ही इच्छा नही होगी जहाँ पर हवश मिटाने के लिए कतार लगाकर भिड़ लगा हुआ हो ! जिस तरह के स्वर्ग अथवा जन्नत में 72 हुरी हुरा एक से आनंद प्राप्त करेंगे कि 72 को अपने आप को सौपनेवाला आनंद प्राप्त करेंगे | और वैसे भी चाहे जन्नत स्वर्ग में जैसा सुख आनंद मौजुद हो ज्यादेतर इंसान स्वर्ग जाना ही पसंद नही करेंगे यदि वे हमेशा सेहतमंद पुर्वक जिवित रहे ऐसा इंतजाम हो जाय ! यकिन न आये तो किसी से भी पुच्छ लेना कि यदि उसे एक तरफ जन्नत स्वर्ग मिलेगी और दुसरी तरफ यही जिवन अमरता प्राप्त करके हमेशा के लिए मिल जायेगी तो तुम किसे चुनना पसंद करोगे तो वह जरुर अपनी इसी साक्षात शारिरिक जिवन अथवा अमरता को ही चुनेगा ! जो यदि सत्य नही होता तो ज्यादेतर लोग स्वर्ग वासी होने की बातो से दुःखी नही होते ! जिन ज्यादेतर लोगो में इसे पढ़ने वालो में कितने लोग हैं खुद ही तय कर लो किधर हो ? जिते जी साक्षात मौजुद प्राकृति भगवान  की इस साक्षात जन्नत स्वर्ग नर्क में की उस अदृश्य और विवादित स्वर्ग अथवा जन्नत या नर्क में जहाँ पर आत्मा जायेगी न कि शरिर !

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

झुठा आश्वासन क्यों दिया जा रहा है कि यीशु उन्हे लेने आयेंगे ? क्योंकि तबतक तो वे उपर जा चुके होंगे

झुठा आश्वासन क्यों दिया जा रहा है कि यीशु उन्हे लेने आयेंगे ? क्योंकि तबतक तो वे उपर जा चुके होंगे !

हम आखिरी दिनो में जी रहे हैं से मतलब क्या है ? और यदि आखिरी दिनो का मतलब किसी इंसान के जन्म लेकर मरने के बाद वापस उसके आने का दिन से है तो यीशु कब आयेंगे उसदिन का तारीख बतला दिया जाय जब यीशु धरती पर वापस आयेंगे | जो तारीख यदि सौ साल बाद दो सौ साल बाद चार सौ बाद या फिर उससे भी अधिक साल बाद आयेगा तो फिर वर्तमान में जिवित लोगो को जिनकी जिवन सौ दो सौ सालो तक भी सिमित नही है , उन्हे यह झुठा आश्वासन क्यों दिया जा रहा है कि यीशु उन्हे लेने आयेंगे ? क्योंकि तबतक तो वे उपर जा चुके होंगे ! मसलन जो गाड़ी किसी यात्री को लेने जिस तारीख को आ रही है , उससे पहले ही वर्तमान के यात्री गाड़ी जहाँ पर ले जाने आयेगी वहाँ पर पहुँच जायेंगे , तो फिर उन्हे उस गाड़ी का इंतजार क्यों कराया जा रहा है जो उन्हे लेने उनके जाने के बाद आयेगी | या फिर या तो वर्तमान में जिवित सभी को यीशु का आने का तारीख उनके जिन्दा रहने की उम्र तक ही आ जायेंगे ऐसी तारीख बतला दिया जाय | जो दरसल किसी भी प्रवचन करने वालो के लिए भी मुमकिन नही है , इसलिए  वे कभी भी ये नही कहेंगे कि यीशु वर्तमान के भक्तो के जिवित रहते किसी तारीख को आ जायेंगे | क्योंकि यदि मुमकिन होता तो सैकड़ो हजारो सालो से यीशु का इंतजार कराकर जिन भक्तो को अश्वासन दिया जा रहा था कि यीशु उन्हे लेने आयेंगे , जो कि अबतक नही आये और झुठे अश्वासन सुनने वाले अबतक दुनियाँ में आकर जा चुके , अथवा जन्म लेकर मर चुके लोग तो कभी जिते जी इंतजार करे मुमकिन ही नही था | अब जिनकी लाशो से इंतजार कराया जा रहा है कि यीशु उन्हे लेने आयेंगे | जो जिते जी तो नही आये अब मरने के बाद आयेंगे वह भी कब आयेंगे किसी को सत्य तारीख नही पता | आयेंगे आयेंगे प्रवचन सुनते सुनते तो कई पिड़ी इंतजार करते हुए सैकड़ो हजारो सालो में जा चुकि है | जैसे की वर्तमान की भी जिवित लोगो को आयेंगे आयेंगे कहकर ये लोग भी एकदिन यीशु के आने से पहले जायेंगे इसकी पुरी संभावना नही बल्कि पिछले बिते समय का इतिहास तो यही कहता है कि यीशु नही आते सिर्फ आने की प्रवचन हो रही है | दरसल यीशु आने वाले नही हैं , क्योंकि यीशु खुद भी इंसान ही थे जिनके पास भी दो हाथ दो पैर दो कान एक नाक एक मुँह एक जीभ दांत लिंग वगैरा मौजुद था | जो भी जन्म लेकर मरे और वापस नही आने वाले हैं | जैसे कि बाकि भी जो इंसान मरे वे भी दुबारा नही आने वाले हैं | क्योंकि जिवन में जन्म मरन के बाद क्या होता है , इसी सवाल का जवाब खोजने के लिए ही तो इंसानो द्वारा इतने सारे अलग अलग धर्मो का जन्म हुआ और अलग अलग धर्म ग्रंथ लिखे गए हैं | जिनमे सभी जानकारी एक नही है , क्योंकि इंसानो द्वारा पुर्ण सत्य को जान पाना यदि मुमकिन होता तो फिर इतने धार्मिक ग्रंथ और किताबे क्यों लिखी जाती , और उनमे आपस में कई विवाद भी क्यों होते ? जब सत्य जानकारी पता होता धार्मिक किताब लिखने वाले इंसानो को तो फिर सभी जानकारी बिना विवाद के सत्य होते | यीशु के द्वारा कही गयी बातो में विवाद , मोहम्मद के द्वारा कही गयी बातो में विवाद , वेद पुराणो में विवाद , उसी तरह तमाम ऐसी बातो में विवाद जिसे जाहिर तौर पर किसी इंसान द्वारा ही बतलाया गया है , न कि कोई चमत्कारी ताकत खुद आकर चमत्कार दिखाकर विवादित जानकारी देकर ऐसा चला गया है  , जैसे वह भी इंसानो की तरह मर गया हो , जो वापस कभी नही आयेगा | जो चमत्कारी ताकत साक्षात मौजुद प्राकृति भगवान है , जिसका सत्य को कोई भी झुठला नही सकता | जो यदि जिवन देता है तो जिवन लेता भी है , और किसी का जिवन लेकर वापस से जिवन देता भी है , यह विज्ञान प्रमाणित है | चाहे तो किसी वैज्ञानिक से पता कर लो कि इंसान ही नही जिव निर्जिव सभी का जिवन अथवा इंसान पृथ्वी चाँद तारे वगैरा वे तमाम जन्म लेने वाले जब नष्ट या उनके जिवनकाल का अंत होगा तो उनके भितर मौजुद प्राकृति भगवान अमर जिवन  दुबारा से उन्हे किसी और रुप में जिवन देगा कि नही देगा ये पता कर लो ! जो साक्षात प्रमाणित है | न कि विवादित है !

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

जो यदि झुठ है तो जिस धर्म में जुड़ने को कहोगे जुड़ुँगा

जो यदि झुठ है तो जिस धर्म में जुड़ने को कहोगे जुड़ुँगा

इतने धर्म और उनके रक्षक होते हुए भी महिलाएँ और पुरुष ही नही बाकि प्राणी भी पुरी दुनियाँ में मात्र एक इंसान से भी सुरक्षित क्यों नही है ? हिन्दु धर्म क्यों कोई भी धर्म के भक्त पुजा करके बार बार सुरक्षा की फरियाद करके भी असुरक्षित है ! जो यदि झुठ है तो जिस धर्म में जुड़ने को कहोगे जुड़ुँगा ! लेकिन अगर मेरी बात सत्य हुई तो जो व्यक्ति मेरी चैलेंज कबूल कर लेगा उसके बाद यह असत्य साबित हुआ कि उसके धर्म में भी पुरुष महिलाएँ असुरक्षित हैं , तो वह अपना धर्म परिवर्तन करके जिस तरह कुत्ता कुतिया सेक्स करते करते जुड़ जाते हैं , वैसा ही किसी आवारा कुत्ता से जुड़कर भिड़ भाड़ सड़को पर घुमेगा वह व्यक्ती जो दावा करता है कि उसके धर्म में सारे पुरुष महिलाएँ सुरक्षित हैं ! मुझे पता है चूँकि आजतक कोई धर्म ऐसा नही बना जिससे जुड़कर सभी इंसान सुरक्षित रह सकते हैं , इसलिए कोई भक्त क्या स्वंय उसके आका भी यह दावा करके चैलेंज कबूल नही कर सकते कि उसके धर्म में सारी महिलाएँ ही क्यों सभी पुरुष भी सुरक्षित है | जैसे कि हिन्दु धर्म भी यह धावा नही करता कि उससे जुड़ोगे तो सुरक्षा की सौ प्रतिशत भक्तो को गारंटी है ! जिसकी वह गारंटी कार्ड से भी किमती धर्मग्रंथ देगा ! वैसे धर्म का मतलब क्या होता है ? धर्म का मतलब धारन करना होता है ! मैने तो प्राकृति भगवान पुजा को धारन किया हुआ है , जिसे इंसानो द्वारा जिस धर्म का नाम दिया जाय ! जैसा कि इंसानो द्वारा ही हिन्दु नाम दिया गया है ! या फिर किसी जानवर द्वारा दिया गया है ? और हिन्दु पुजा में यदि प्राकृति भगवान पुजा होता है , तो बाकि धर्मो के भी नाम को जिन इंसानो ने फलाना धर्म का नाम दिया है , उन्ही इंसानो को कह सकता हुँ कि हाँ मैं हिन्दु हुँ ! जो होने पर मुझे गर्व है कि मैं उस प्राकृतिक भगवान की पुजा करता हूँ , जिससे सारे धर्मो के भक्तो की साँसे कोई कल्पना या विवादित नही बल्कि साक्षात प्राकृतिक हवा द्वारा चल रहि है | जिस प्रमाणित प्राकृति भगवान से जुड़कर उसकी पुजा करता हुँ , जिसपर गर्व है कि जिसकी कृपा से इंसान ही नही बल्कि सारी सृष्टी साक्षात प्रमाणित कायम है ! उसकी पुजा साक्षात प्राकृति भगवान को अपने भितर और चारो ओर मौजुद प्रमाणित देख सुन और पढ़कर गर्व होता है | मुझे गर्व है कि मैं जिस प्राकृति भगवान कि पुजा और विश्वास करता हुँ , वह साक्षात प्रमाणित मौजुद है ! जिसे तलाशने की जरुरत नही है | जहाँ भी रहो प्राकृति भगवान साथ है | जिसके साथ जिवन सफर करते हुए कई धर्म परिवर्तन करके भगवान की तलाश करना मुझे आवश्यकता भी नही है | क्योंकि उसे जन्म से पहले से ही धारन किया हुआ हुँ ! जिस प्राकृति भगवान में ही मरन के बाद भी मिल जाता है इंसान , चाहे वह किसी भी धर्म का भक्त हो ! जो प्राकृति भगवान हवा पानी में भी मौजुद है ! जो हवा प्राकृति भगवान की ही कृपा से सारे धर्मो के भक्तो को मिल रही है | बल्कि हवा ही क्यों बहुत कुछ प्राकृति भगवान से मिल रही है , जो कोई विवादित नही है कि उसपर बहस हो कि प्राकृतिक भगवान को ऐसा होना चाहिए था , ऐसा नही होना चाहिए था | क्योंकि प्राकृति भगवान के सामने हम इंसानो की औकात प्राकृति भगवान के द्वारा ही रचे मात्र एक उस प्राणी का है जो प्राकृति भगवान से ही दिन रात बहुत कुछ खोजता और सिखता रहता है ! जैसे की उन्होने धर्म बनाना और मंदिर मस्जिद चर्च वगैरा बनाना भी सिखा है ! जो प्राणी प्राकृति भगवान से ही बहुत कुछ सिखकर और खोजकर भले खुदको सबसे श्रेष्ट मानकर उसी के दिए बुद्धी बल का गलत उपयोग करके धरती और इंसानियत को सबसे ज्यादे नुकसान पहुचाने वाला प्राणी भी बन बैठा है | जो यदि  प्राकृति भगवान द्वारा बुद्धी बल का मानो वरदान पाकर यदि उसका गलत उपयोग करके किसी दिन अपने ही गलतियो द्वारा किसी भस्मासुर की तरह खुदमे हाथ रखकर डायनासोर की तरह लुप्त होगा तो भी प्राकृति भगवान अमर रहेगा यह बात याद रखनी चाहिए , जो कोई विवादित नही है ! जैसे की प्राकृति भगवान ने ही जो परमाणु दिया है , उसकी खोज वरदान पाकर परमाणु बम बनाकर इंसान खुदको ही मारेगा तो गलती किसकी होगी ? चाहे तो इसे विवाद बनाकर प्राकृति भगवान द्वारा ही डायनासोर के लुप्त होने के जैसा अंजाम होने तक बहस किया जा सकता है  ! प्राकृति भगवान को समय या लुप्त होने की चिंता नही है | इंसान को तो सौ साल भी जि पायेगा कि नही जी पायेगा इसकी चिंता न जाने कितने धर्म और धर्म स्थल पुजा स्थल बनाकर दिन रात माथा टेककर भी होती रहती है | जो चिंता दिन रात करके भी कोई एक इंसान ही कह रहा था कि 84 करोड़ देवी देताओ के होते हुए भी हिन्दु धर्म में महिलाएँ सुरक्षित क्यों नही है ! कहाँ सुरक्षित है बतला दो ताकि उस धर्म की असुरक्षित महिलाएँ जिनके साथ अन्याय अत्याचार हुई है , वह साक्षात बतला सके कि उनके धर्म में भी महिलाएँ असुरक्षित है ! और हाँ हिन्दु धर्म प्राकृति भगवान पुजा है न कि बलात्कारी इंद्रदेव की पुजा है | और आर्य मतलब उत्तम होता है ! यदि मनुस्मृति जैसी रचना करके  ये नियम कानून बनाने वाले कि वेद सुनने पर कान में गर्म पिघला लोहा डालना , वेद बोलने पर जीभ काटना , गले में थुक हांडी टांगना , कमर में झाड़ु टांगना , अँगुठा काटना जैसे नियम कानून रचना करने वाले बुद्धी बल को आर्य जिन लोगो द्वारा कहा जाता है , उनको अब अपनी जानकारी में अपडेट करनी चाहिए कि ये सब करने वाले आर्य नही हैं | भले कभी जिस तरह गोरे कई देशो को गुलाम करके न्याय करने वाला जज बनकर खुदको सबसे बड़ा नियम कानून के रक्षक घोषित किए हुए थे , उसी तरह जबतक मनुवादियो की दबदबा इस देश में रहेगी जिसे मनुवादियो की गुलामी भी कहा जा सकता है वह जबतक रहेगी तबतक ही मनुवादि आर्य और उच्च है यह बात सत्य के रुप में भी बहुतो के द्वारा स्वीकारी जाती रहेगी , जैसे की गोरो की गुलामी में गोरे जज न्याय करते थे , यह स्वीकार करके कई गुलाम भी वकिल बनते थे यह विश्वास करके की उनके साथ गुलाम करने वाले गोरे जज बनकर न्याय करेंगे ! जो हो सकता है कुछ गोरे करते भी हो , और गोरे जज से न्याय मिलता भी हो , जैसा कि वर्तमान में भी हो सकता है कुछ मनुवादि वाकई में आर्य और उच्च कहलाने के लायक हो ! पर इसका मतलब ये नही कि इतिहास में यह रचा जायेगा कि मनुवादि शासक बनकर इस देश के मुलनिवासियो का बहुत उच्च और उत्तम सेवा किये ! जैसे कि इतिहास में यह नही रचा गया कि गोरे कई देशो को गुलाम करके वहाँ के गुलामो की बहुत उत्तम और उच्च सेवा किये जिसके लिए उन्हे जन्म से ही उत्तम और उच्च नवाजकर पुरुष्कार देनी चाहिए !

बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

हिन्दु भगवान पुजा और पर्व त्योहार वेद पुराणो को मनुवादियो का बतलाने वाले ये मांशीक रोगी भगोड़े लोग

हिन्दु भगवान पुजा और पर्व त्योहार वेद पुराणो को मनुवादियो का बतलाने वाले ये मांशीक रोगी भगोड़े लोग
हिन्दु भगवान पुजा और हिन्दु पर्व त्योहार वेद पुराणो को मनुवादियो का बतलाने वाले ये मांशीक रोगी भगोड़े लोग या तो मनुवादियो द्वारा ब्रेनवाश होकर अपनी खोटे सिक्के वाली कमजोरी को स्वीकार न करने वाले घर के भेदी लोग बार बार यह साबित करने कि कोशिष में लगे हुए हैं कि इस देश में बारह माह मनाई जानेवाली पर्व त्योहारो और सागर जैसा विशाल ज्ञान का भंडार वेद पुराणो का रचनाकार और भगवान पुजा के निर्माता वे मनुवादि हैं जिन्हे इस देश में प्रवेश करने से पहले संभवता न तो परिवार समाज का पता था , और न ही वे कपड़े पहनना जानते होंगे | कृषि और वे तमाम हजारो हुनर जिन्हे आज हजारो निच जाति  कहा जाता है , जो दरसल कपड़ा धोने फर्नीचर का कार्य करने से लेकर ऐसे ही हजारो विकसित हुनर जिससे की विकसित गणतंत्र व्यवस्थित रुप से चलती है , उन सबका निर्माता ये मनुवादि हैं , ये सायद कहना चाहते हैं वे मांसिक विकृत या ब्रेनवाश किये हुए लोग जो दरसल वे भगोड़े हैं , जिन्हे अपने पुर्वजो की उन विरासत को लड़कर या संघर्ष करके वापस नही लेनी है , जिसपर कब्जा करके मनुवादि कुंडली मारकर बैठे हुए हैं | जैसे कि कभी गोरे इस देश और इस देश की धन संपदा पर कब्जा जमाकर कुंडली मारकर बैठे हुए थे | जिन्होने इस देश के पर्व त्योहार और वेद पुराणो की रचना नही किया था जैसा कि मनुवादि भी नही किये हैं | बस उसमे अपने फायदे और अपने अपराधो को छिपाया जा सके उसे ध्यान में रखकर वेद पुराणो और पर्व त्योहारो इस कृषि प्रधान देश की परंपराओ पर अपनी मनुवादि अप्राकृति सोच की मिलावट की है | जो मिलावट हटाई जायेगी और वेद पुराणो में भी सुधार के साथ साथ उसकी सत्य ज्ञान जो की विशाल सागर जैसा भरा हुआ है , उसी को अपडेट करके विश्वगुरु का ज्ञान अपडेट होगी | जिस ज्ञान से ही बहुत से ही उन मांसिक विकृत लोगो को भी थोड़ी बहुत अपडेट ज्ञान हासिल हो गई है किसी अमृत की तरह तो वे उछल कुद करते हुए बार बार मनुवादियो का हिन्दु धर्म और सारे वेद पुराण है कहकर ये मांसिक रोगी दरसल मनुवादियो को अपने पुर्वजो की उसी मुल विरासत को सौपने की खुली छुट देते रहते हैं जिससे ही उन्हे थोड़ी बहुत अपडेट ज्ञान हासिल हुई है | पर सुक्र है इन मांसिक रोगियो के जिम्मे में मनुवादियो से अपने पुर्वजो की वेद पुराण पर्व त्योहार जैसी सारी विरासत जिसपर कब्जा करके मनुवादियो ने मिलावट और छेड़छाड़ किया है , उसे वापस लेने या छिनने की मुल जिम्मेवारी उन्ही वीर मुलनिवासि हिन्दुओ में है , जो मनुवादियो द्वारा हजारो सालो से लाख शोषन अत्याचार और ढोंग द्वारा ब्रेनवाश किये जाने के बावजुद भी मानो जंग के मैदान में डटे हुए हैं | जो एकदिन मनुवादियो द्वारा कब्जा किया हुआ विरासत को लेकर या छिनकर रहेंगे | भले इसमे हजारो साल का समय लग रहा है | जिनपर गर्व है ! बाकि भगोड़े और ब्रेनवाश किये हुए लोग जो की मनुवादियो से डरकर भागकर उन वीर मुलनिवासियो पर अपना गुस्सा झाड़ते रहते हैं जो कि मैदान में डटे हुए हैं | जो मनुवादियो के खिलाफ हजारो सालो से चल रही संघर्ष में बिना वजह ध्यान भी भटका रहे हैं | या फिर मनुवादियो के पक्ष में बाते करके किमती समय बर्बाद कर रहे हैं | जिनको इससे अच्छा अपने मांसिक विकृत दिमाक को खुद ही आत्मज्ञान से ठिक करने के लिए मैं एक सुझाव के रुप में मानो दवा देता हुँ , जो कि सारे हिन्दु वेद पुराण और पर्व त्योहार जिनको बारह माह मनाया जाता है , वह यदि मनुवादियो का है जिसे वे अपने साथ कहाँ से लाये हैं उस जगह का मुल रुप से था ये साबित करके दिखलाये | जो सुझाव या दवा उनके किसी भी आका या पुज्यनीय लोगो ने सायद दी है | जिसके चलते अबतक उल्टी दिशा में अपनी बुद्धी की शक्ती को खर्च करके यह साबित करने में लगे हुए हैं कि हिन्दु पर्व त्योहार वेद पुराण विदेशी मुल के मनुवादियो द्वारा रचे और निर्माण किये गए हैं | जैसे कि मानो गोरो ने भी रचे और निर्माण किये कहा जाता | जिनका वश चले तो ये मांसिक विकृत और भगोड़े लोग मनुवादियो को देश भी सौंप देंगे ये कहकर कि हिन्दु धर्म वेद पुराण पर्व त्योहार और संस्कृत समेत अनेक भाषायें और हजारो हुनर जिन्हे आज शुद्र निच जाति के रुप में जाना जाता है , ये सभी मनुवादियो का है कहकर हिन्दुस्तान भी विदेशी मुल विदेशी डीएनए के मनुवादियो का है कहकर सौंप देंगे | फिर लंगटा लुचा जिवन व्यक्तीत करते हुए इस सागर जैसा विशाल कृषि सभ्यता संस्कृति वाला देश में समाकर झुठे उच्चा और आर्य अथवा उत्तम बनने वाले मनुवादि लोग सचमुच का खुदको उच्चा और उत्तम साबित कर देंगे यह कहकर कि विश्वगुरु और सोने की चिड़ियाँ का निर्माता ही वाकई में पुरे विश्व में आर्य अथवा उत्तम और उच्च कहलाने का काबिल है | हलांकि मनुवादियो की मनुस्मृती रचना करके शोषन अत्याचार करने वाली बुद्धी बल उत्तम और उच्च तभी साबित हो पायेगी जब मनुवादि प्राकृति भगवान से भी ज्यादे उत्तम और उच्च होकर हिन्दु पर्व त्योहार प्राकृति भगवान पुजा को कमजोर साबित कर देंगे | जबकि सच्चाई ये है की विज्ञान भी प्राकृति की वजह से ही कायम है , जो प्राकृति की ही ताकत और प्राकृति में ही मौजुद ज्ञान और तकनिक को हासिल करके उसे विज्ञान के रुप में अपनी झोली भरता रहता है | जैसे कि इंसान के बनाये धर्मो ने भी प्राकृति भगवान से ही बहुत कुछ लिया है | लेकिन भी अभी तो वे प्राकृति भगवान का एक छोटा अंश ग्रह तारो और सागर समेत उसमे मौजुद जिव निर्जिव दुनियाँ के बारे में भी विस्तार पुर्वक नही जान सका है तो प्राकृति में मौजुद विशाल ज्ञान का सागर के बारे में पुरा जान पाना तो नामुमकिन है | जिस प्राकृति भगवान की पुजा हिन्दु करता है | न कि वह मुल रुप से मनुवादियो के पुर्वज देवताओ की पुजा करता है | हाँ अभी मनुवादियो का दबदबा और कब्जा है इसलिए बहुत कुछ उल्टा पुल्टा भी जरुर हो रहा होगा जैसे की गोरो के भी दबदबा में हो रहा था | जिसके कारन इतिहास में भी छेड़छाड़ हुआ था | इसका मतलब ये नही कि सत्य को गोरो ने निगल लिया | उसी तरह मनुवादि भी वेद पुराण पर्व त्योहार या फिर इन सबका जड़ सत्य प्राकृति भगवान को ही नही निगल जायेंगे | मनुवादि अपनी मनुस्मृती सोच से प्राकृति निर्मित सुर्य को हनुमान ने निगल लिया था ये कह तो देते हैं पर इससे क्या सचमुच में प्रमाणित साक्षात मौजुद प्राकृति भगवान असत्य साबित हो जायेगी ! बल्कि सबको सत्य पता है कि प्राकृति भगवान ही सबको जन्म देकर बाद में निगलता भी है | जैसे की हनुमान और राम समेत तमाम उन लोगो को भी निगला जिनका जन्म हुआ था | और वे अब धरती या सृष्टी में कहीं पर भी अपने जन्म हुए उसी रुप में विचरण या मौजुद नही हैं | मौजुद है तो एक उदाहरन के तौर पर हनुमान को ही वापस उसी रुप में बुलाकर मनुवादि उसके सामने साक्षात उसकी आरती उतारते हुए बाकि भी निगले गए को उसी रुप में बुलवाये | जिसकी पुजा भगवान पुजा नही बल्कि भगवान पुजा साक्षात मौजुद प्राकृति पुजा है | जिस प्राकृति भगवान की साक्षात प्रमाणित तौर से मौजुद शक्ति और ज्ञान का भंडार को सबसे बड़कर मानकर उसकी पुजा यदि कि जाती है तो क्या गलत की जाती है | कुछ लोग तो सिर्फ यदि कोई एक हुनर या चमत्कार देखकर किसी इंसान की भी पुजा करने लगते हैं | जबकि प्राकृति भगवान में निराकार हुनर चमत्कार मौजुद है | जिसकी न कोई गिनती और मापी ले सकता कि प्राकृति भगवान में कितनी हुनर चमत्कार और कितना बड़ा रुप मौजुद है ? हलांकि चूँकि सबमे प्राकृति भगवान का अंश मौजुद है , इसलिए यदि किसी में चमत्कारी शक्ती या हुनर का अंश प्रकट हो जाय जिसकी भी पुजा होने लगे तो इसमे आश्चर्य नही होनी चाहिए ! मगर यह ध्यान जरुर रहे की प्राकृति भगवान का चमत्कार साक्षात प्रमाणित वह सत्य है जो अपने जगह स्थिर कायम है | जैसे की प्राकृति भगवान का एक सत्य यह भी स्थिर मौजुद है कि प्राकृति भगवान यदि जिवन देता है तो जिवन लेता भी है | जो एकदिन चाँद और पृथ्वी समेत जन्म लेने वाले तमाम इंसानो का भी जिवन लेगा ! जिसके बाद वापस भी नये रुप में जन्म देगा और दे रहा है | जो सत्य प्रमाणित है न की ढोंग पाखंड या विवादित है | जिसे ढोंग पाखंड और विवाद कहने वाले खुद दरसल विवादो का भारी बस्ता ढोकर दिन रात प्राकृति भगवान पुजा को ढोंग पाखंड साबित करने में लगे हुए हैं | जिनको प्राकृति भगवान को असत्य साबित करते करते एकदिन सायद प्राकृति भगवान की ही कृपा से सत्य बुद्धी आ जाय की हिन्दु धर्म पर्व त्योहार वेद पुराण मनुवादियो का नही बल्कि इस देश के ही मुलनिवासियो के द्वारा रचे और निर्माण किए गए हैं |

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

तब जाकर यह देश फिर से सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु अपडेट होगा

परजिवी लुटेरो द्वारा दी गयी गरिबी और भुख ही रोजमरा जिवन की रक्षा प्रणाली को कमजोर करके ज्यादेतर दुःखो को प्रवेश करने का अवसर देता है

जिसके रहते हुए हम कभी भी सुख शांती और समृद्धी सबके जिवन में नही देख सकते | जिसे देखना है तो परजिवी सोच की मनुवादि सत्ता को उखाड़ फैकना होगा  | हलांकि मनुवादि सत्ता में भी कुछ मुलनिवासी लोग भी ताकतवर होने का दावा कर रहे हैं | क्या वाकई में मनुवादियो की शासन में इस देश के कुछ मुलनिवासी अब ताकतवर हो चूके हैं ? और यदि वाकई में ताकतवर हो चुके हैं तो फिर कमजोर पिड़ित लोगो को हमे हक अधिकार मिलना चाहिए कहकर क्यों संसद से सड़क तक आवाज उठाया जा रहा है ! खासकर अब हम ताकतवर हो चुके हैं कहकर मनुवादियो के खिलाफ शोसल मीडिया में जुता चप्पल का अभियान चलाने वाले खुदको यदि वाकई में संसद से सड़क तक शोषित पिड़ित कमजोर लोगो की आवाज उठाने वाले मायावती और लालू से भी ज्यादे ताकतवर समझते हैं , तो फिर सवाल उठता है कि बहुत से ऐसे ताकतवर मुलनिवासी इस सोने की चिड़ियाँ का मालिक होते हुए भी अमिर होने के लिए विदेशो की तरफ क्यों भागते हैं ? क्योंकि दरसल उन्हे पता है कि मनुवादियो की शासन इस सोने की चिड़ियाँ में जबतक चलती रहेगी तबतक उनका मनुवादियो से भी अधिक ताकतवर और धन्ना होने की दाल गलने वाली नही है | क्योंकि वर्तमान के समय में वे यहाँ रहकर चाहे कितना ही धनवान या विद्वान हो जाय मनुवादियो द्वारा उसकी टांग खिची जायेगी और उसके लिए अनेको दुःख पीड़ा देने की कांटे भी बिछाये जायेंगे | जिस बात में यदि सच्चाई नही है तो फिर अमिर से और अधिक अमिर बनने के लिए विदेश गए मुलनिवासि यहीं पर रहकर अपने ही समृद्ध देश की समृद्धी से अमिर से और अधिक अमिर बनकर मनुवादियो के खिलाफ खुलकर संघर्ष क्यों नही करते हैं ? जो यहीं पर रहकर अपने देश और अपने ही डीएनए के मुलनिवासियो के उन हक अधिकारो को लुटने से बचाने के लिए संघर्ष क्यों नही करना चाहते हैं जिनको लुटकर हजारो सालो से न जाने कितने कबिलई लुटेरे धनवान बने और कितने लुटेरो की नई पिड़ी भी अमिर से और अधिक अमिर अब भी इसी देश के धन से बनते जा रहे हैं | जो यदि बन सकते हैं तो इस देश के वैसे मुलनिवासी जो विदेशो में अमिर से और अधिक अमिर बनने गए हैं , वे अपने ही देश की अमिरी से अपने ही देश की कमाई से , अपने ही देश में सुट बुट गाड़ी बंगला समृद्ध जिवन जिते हुए इसी देश की मिट्टी से जुड़कर मनुवादियो के खिलाफ आवाज क्यों नही उठाते हैं ? जो बाकि भी उन करोड़ो मुलनिवासियो की रोजमरा बदहाल जिवन में परिवर्तन क्यों नही करते हैं जिनको लंबे समय से मच्छड़ खटमल और जू की तरह चुस चुसकर कमजोर और पिड़ित किया जा रहा है | जिनके हक अधिकारो को छिने जाने से रोकने के लिए उन्ही के साथ मिल जुलकर मनुवादियो के खिलाफ संघर्ष करते | तकि गरिबी भुखमरी से ऐतिहासिक संघर्ष कर रहे मुलनिवासियो को भी अपने जैसा अमिर न सही पर कम से कम भुखमरी और बेघर जिवन से छुटकारा मिल जाती ! जिसके बाद इस देश के गरिब बीपीएल भी हजारो लाखो की किमती जुता चप्पल न सही पर अपने अपने पक्के घरो की फोटो शोसल मीडिया में डालकर ये आवाज बुलंद जरुर कर पाते की वे भी अब धन्ना कुबेर बने गिने चुने अपने ही डीएनए के मुलनिवासियो की खास सहायता से अपनी गरिबी भुखमरी जिवन में मजबुती प्रदान करके मनुवादियो के खिलाफ शोसल मीडिया में भी कड़ी संघर्ष करने के लिए तैयार हैं | जिन्हे अभी इसी देश की मिट्टी से जुड़कर दिनभर कड़ी मेहनत मजदुरी करके भी ये चिंता होती रहती है कि उनके बच्चे भी कहीं उनके जैसा ही गरिबी भुखमरी में सारी जिवन संघर्ष करते हुए न बिता दे ! गरिब और अमिर मुलनिवासी यदि दोनो मिल जुलकर मनुवादियो के खिलाफ आवाज बुलंद कर पाते तो निश्चित तौर पर मनुवादि सत्ता के जाने का समय बहुत जल्द आती | बल्कि विदेशो में रहने वाले अमिर और देश में रहने वाले गरिब अमिर सभी मुलनिवासी संसद से सड़क तक मिल जुलकर मनुवादियो के खिलाफ संघर्ष करते ! क्योंकि वैसे भी अजादी की लड़ाई विदेश जाकर लड़ने से अच्छा अपने ही देश की मिट्टी से जुड़कर लड़ना ज्यादे बेहत्तर होता है | जिसपर विचार करके विदेशो में रह रहे मुलनिवासियो द्वारा अपने वतन लौटकर मिल जुलकर मनुवादियो के खिलाफ खास संघर्ष करना रियल जिवन में मुमकिन है क्या ? रिल जिवन में तो मुलनिवासी अभिनेता रजनीकांत का शिवाजी द बॉश जैसे कई काल्पनिक तौर पर भारी बदलाव लाने वाली फिल्मे भारी परिवर्तन कराने वाले काल्पनिक नायक का अभिनय करके आती जाती रहती है | जिसमे अक्सर किसी कार्टून धारावाहिको में एक भी चोट न लगने वाली लड़ाई की तरह लड़ते हुए काल्पनिक नायक बिना कोई खरोंच के भी कई कई बिलेनो को उनके खतरनाक हथियारो और उनके ताकतवर शरिर के रहते हुए भी आसानी से पिटते हुए दिखाया जाता है | पर असल जिवन में ऐसी लड़ाई कहीं देखने को मिलती है क्या ? मिलती भी होगी तो कोई व्यक्ती अकेले में बहुत हुआ तो दो चार की पिटाई करके भी इतना बड़ा परेशानी और मुसिबत अकेले ले लेता है कि कभी कभी तो उसके पुरे परिवार को भी अकेले कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते लगाते अपना सब जमा पुंजी खोने के बाद में उसके निर्दोश बच्चे भी थक हारकर गुनेहगार बन जाते हैं | वैसे शिवाजी द बॉश में भी फिल्म का नायक कानून का पालन करते करते कानून की नजर में गुनेहगार बन गया था | जिस शिवाजी द बॉश काल्पनिक फिल्म में भी काल्पनिक नायक भले विदेश जाकर अमिर बनता है , पर उसका मन अपने देश में हो रहे अन्याय अत्याचार भ्रष्टाचार और गरिबी भुखमरी अपने वतन वापस लौटने के लिए कहता है | जिसके बाद अभिनेता रजनीकांत द्वारा निभाया गया काल्पनिक नायक अपने देश के गरिब लोगो की गरिबी भुखमरी और बदहाली को अपने ही देश में छिपाकर रखा गया कालाधन से दुर करने का विकल्प चुनता है | क्योंकि उसे भी यह सवाल मन में कचोटता रहता है कि यह सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला देश जड़ से अमिर है , फिर भी यहाँ के करोड़ो लोग अब भी गरिब क्यों हैं ? पर चूँकि हर साल बनने वाली हजारो काल्पनि फिल्मो में बहुत सारे फिल्मे गरिबी भुखमरी दुर करने वाले काल्पनिक भारी बदलाव  के रुप में बन तो रही है , पर रियल जिवन में ऐसे फिल्मो में मौजुद काल्पनिक नायक आजतक पैदा नही लिये हैं | क्योंकि विडंबना यह है कि रिल जिवन में अक्सर गरिबी से संघर्ष करके अमिर बनने वाले गरिब के घर जाना भुल जाते हैं ! और कोई गरिब यदि अमिर बन जाता है तो उसके करिबी दुसरे गरिब भी उससे संपर्क करने में हिचकिचाते हैं | क्योंकि पता नही सुट बुट गाड़ी बंगला के बिच उसका सम्मान पहले जैसा होगा कि दुसरे अमिरो के सामने उसकी गरिबी भुखमरी को देखकर अपमान किया जायेगा | जैसे कि अभी जो गरिबी भुखमरी से संघर्ष कर रहे मुलनिवासियो के बारे में अनदेखा करके यह बयान दी जा रही है कि समय अब बदल चुका है , इस देश के मुलनिवासी अब सुट बुट गाड़ी बंगला वाला हो गया है | क्योंकि ऐसे सुट बुट लगाने वाले मुलनिवासी अब गरिबी की खाई से निकलकर वापस गरिबो के बिच जाना लगभग भुल चूके हैं | उन्हे गरिबी भुखमरी का मंजर याद नही रहा और न वे गरिबो के घरो या फुटपाथो में जाकर उसे याद करने के लिए गरिबो के पास जाना चाहते हैं | जैसे की खुद वर्तमान के प्रधानमंत्री जो कि हर चुनाव में अपने आप को प्रधान सेवक बताकर अपने गरिबी भुखमरी के बुरे दिनो के बारे में बताते हुए सुट बुट लगाकर गरिबी के नाम से सायद वोट तो बटोर रहे होंगे पर चुनाव जितने के बाद अपने कार्यकाल में इस देश की गरिबी भुखमरी का मंजर अब भी है उसके बारे में गरिबो के करिब जाकर बताने और उसमे सुधार करने के बजाय लगभग सारा समय देश विदेशो के अमिरो से हि मिलते हुए अपना किमती समय बिताकर आखिर क्या साबित किया जा रहा है कि वाकई में अब उनकी तरह सबके सुट बुट वाला अच्छे दिन आ गए हैं ! इसलिए देश विदेश दौरा में गरिबी भुखमरी से मुलाकात कभी दिखती ही नही है | चारो ओर मानो अमिरी ही अमिरी दिखती है | जैसे कि हाल ही में जुता चप्पल का अभियान चलाने वालो से अब हम कमजोर नही सुट बुट वाले हो गए हैं उत्साह और जोश पुर्वक किसी मुलनिवासी के हि विचारो को देखकर एक पल के लिए तो वाकई में ऐसा लगता है मानो सभी मुलनिवासी अब सुट बुट गाड़ी बंगला वाला हो गया है , और वाकई में समय बदल गया है ! पर अगले ही पल मुलनिवासियो की भारी अबादी गरिबी भुखमरी की खाई में चिखती चिलाती है तो ऐसी बाते सुनते देखते और पढ़ते हुए यह सोचकर तकलिफ होती है कि मनुवादियो के शासन की मानो कोई मुलनिवासी ही यह कहकर झुठी तारिफ कर रहा है कि मनुवादियो के शासन में उनकी गरिबी भुखमरी दुर हो गई है ! अथवा वाकई में मनुवादि शासन में मानो डीजिटल आधुनिक शाईनिंग बदलाव आ चूका है | हलांकि अमिर बनने वाले मुलनिवासियो के लिए तो वाकई में आधुनिक शाईनिंग डीजिटल शासन में बदलाव आ चुका है | पर इस तरह के थोड़े बहुत बदलाव तो गोरो के शासन में भी मौजुद थी , क्योंकि उस समय भी कुछ गिने चुने मुलनिवासी सुट बुट पहनकर अमिरी जिवन जि रहे थे | पर गोरो से अजादी पाने के बाद क्या हम मनुवादि गुलामी और बहुसंख्यक अबादी की गरिबी भुखमरी को अनदेखा कहकर यह स्वीकार कर लें की अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं इसलिए गोरो से अजादी पाने के बाद मनुवादियो की शोषण अत्याचार से अजादी पाने की जरुरत नही है ! मनुवादि शासन को इसी तरह चलने दो जैसे की कई दशक से चल रहा है | फिर गोरो की गुलामी के समय अजादी संघर्ष सभी राज्यो में क्यों चल रही थी ? जैसे की इस समय भी सभी राज्यो में मनुवादियो के शोषन अत्याचारो के खिलाफ संघर्ष चल रही है | जो संघर्ष भी भारी अबादी कि बदहाल जिवन में सुधार के लिए चल रही है , जिनकी जिवन में सुट बुट गाड़ी बंगला नही बल्कि गरिबी भुखमरी है | जो लोग मनुवादियो के द्वारा सबसे अधिक सताये और मारे जा रहे हैं ! जिन्हे मैं मनुवादियो के खिलाफ चलाई जा रही ऐतिहासिक आंदोलन का सबसे खास वीर नायक और गरिबी भुखमरी से मरने वालो को शहिद मानता हुँ ! जो कि इन ऐतिहासिक बुरे दिनो में सबसे अधिक दुःख तकलिफो का सामना भी कर रहे हैं | और मेरे ख्याल से कम मेहनताना लेकर सबसे अधिक खुन पशिना भी बहा रहे हैं | जिनकी गरिबी भुखमरी को उनके घरो या फुटपाथो में देखने नही जाते हैं | और न उन्हे सुट बुट जुता चप्पल पहनने वाले भरपेट खाना खिलाने के लिए किमती सम्हारोह का कार्ड देने जाते हैं | इसलिए इस देश के मुलनिवासि अब किमती सुट बुट जुता चप्पल पहनने लगा है यह बात कहते समय यह भी हमेशा ध्यान में रखा जाय कि हर रोज बहुसंख्यक अबादी गरिबी भुखमरी से संघर्ष कर रहे हैं | बल्कि कई तो भुख और गरिबी से हररोज मर भी रहे हैं | जिन मुलनिवासियो के पास किमती गाड़ी बंगला तो दुर भरपेट खाना भी नसीब नही हो पा रही है | क्योंकि इतिहास गवाह है कि शोसन अत्याचार करने वालो की शासन में अमिरी बड़ने से गरिबी बड़ने की भी रफ्तार तेज हो जाती है | जिसमे संतुलन लाने का सबसे बेहत्तर उपाय अपनी खुदकी सत्ता स्थापित हो और परजिवी मनुवादि सत्ता का विनाश होनी चाहिए | क्योंकि मनुवादि शासन में खुदको बहुत ताकतवर महसुश करने वाले गिने चुने मुलनिवासियो की लाख कोशिष के बावजुद भी जबतक मनुवादियो से पुरी अजादी मिल नही जाती तबतक मनुवादि बहुसंख्यक अबादि को अपनी सत्ता पावर का गलत इस्तेमाल करके दबाते कुचलते रहेंगे , चाहे जितना खुदको ताकतवर समझ लो | क्योंकि मनुवादियो से पुरी अजादि मिलने से पहले ही अब इस देश के मुलनिवासी पहले की तरह कमजोर नही रह गया यह बात वाकई में सत्य तभी होती जब किसी भी शोषित पिड़ित नेताओ या अन्य समाज सेवको द्वारा मंच पर चहड़कर कभी भी यह अवाज नही उठाई जाती कि " शोषित कमजोर दबे कुचले लोगो को उचित हक अधिकार और विशेष लाभ मिलनी चाहिए " | जिस तरह की बाते खुद अमिर बनकर " समय बदल गया है " कहने वाले भी निश्चित तौर पर कभी न कभी जरुर कहते होंगे ! और वैसे भी हमे यह बात कभी नही भुलना चाहिए की गरिबी और भुख से बड़ा दुःख नही | क्योंकि गरिबी और भुख ही रोजमरा जिवन की रक्षा प्रणाली को कमजोर करके  ज्यादेतर दुःखो को प्रवेश करने का अवसर देता है | जिसे जड़ से समाप्त करने का सबसे बेहत्तर उपाय मास्टर चाभी सत्ता का नेतृत्व मुलनिवासियो की दबदबा में हो | क्योंकि अपने घर का दुःख तकलिफ को अपने ही घर के लोग बेहत्तर समझ सकते हैं , कोई बाहरी मुल का नही ! वह भी वैसा बाहरी जो घर में घुसकर मनुस्मृती लागू करके हजारो सालो से शोषन अत्याचार किया हो | जिसकी भुख अब भी नही मिटी है इसकी झांकी आज भी कहीं कहीं मनुवादियो द्वारा भेदभाव का आतंक फैलाकर मार पिटाई खुन खराबा हिंसा द्वारा भष्म मनुस्मृति का भुत मंडराने लगता है | जिसकी भटकती आत्मा को सायद सत्य का प्रतिक शिव ही अपनी तीसरी आँख खोलकर भष्म करेगा जिस शिव ने कभी ब्रह्मा का भी सर काटकर सरस्वती को न्याय दिया था | जिस तरह से न्याय करने आज भी यदि शिव आते तो मनुवादि शासन में हर साल पुरे देश में जो हजारो बलात्कार हो रहे हैं , वह या तो रुक जाता या फिर बलात्कार करने वाले ही समाप्त हो जाते | जो आज किसी धारावाहिक की तरह लगातार बलात्कार का एपिसोड बनाकर न्यूज के जरिये सबको शर्मसार करने में लगे हुए हैं | जिसका भी मुल कारन मनुवादि सत्ता है | जो एकदिन प्रमाणित भी हो जायेगा जब इस कृषि प्रधान देश से मनुवादियो की सत्ता समाप्त होगी और साथ साथ इस देश के गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो से भी मनुवादियो की दबदबा समाप्त होने के बाद अचानक से अपराध में इतना बदलाव आयेगा कि पुरी दुनियाँ इस देश की तरह अपने भी देश में भारी बदलाव लाने के लिए इस देश की तरफ ही फिर से नजर दौड़ाकर विश्वगुरु सुख शांती और समृद्धी ज्ञान को अपडेट करेगी | जो वर्तमान की मनुवादि शासन और दबदबा में मानो कैद होकर सही समय का इंतजार हो रहा है | क्योंकि सत्य मन की द्वार और आँख खोलकर हमे यह बात भी याद जरुर रखनी चाहिए कि अमेरिका में भी गरिबी है , और वहाँ भी बलात्कार का रिकार्ड टुट रहा है | जापान में तो सबसे अधिक कर्ज और सबसे अधिक आत्महत्यायें होती हैं | क्या ये सब खुदको सबसे अधिक समृद्ध देश कहने वाले वाकई में सबसे अधिक सुख शांती और समृद्धी से जि रहे हैं इसलिए वहाँ पर ये सब हो रहे हैं ? बिल्कुल नही ! दरसल उनको भी उस सुख शांती और समृद्धी का इंतजार है , जिससे की उनके देशो में अपराध आत्महत्यायें कर्ज गरिबी भुखमरी भेदभाव वगैरा लगभग समाप्त हो जाय | जैसे की इस देश के बारे में बाहर से आनेवाली मुसिबतो से पहले की उन पुराने दिनो की चर्चा की जाती है जब इस देश में इतनी सुख शांती और समृद्धी जिवन जी जा रही थी कि कई देशो के लोग मानो स्वर्ग की कामना की तरह  इस देश में आने की सपने देखते थे | जिसे मनुवादि जैसे विदेशी मुल के अत्याचारियो ने नर्क बनाने की कोशिष मनुस्मृति संक्रमण देकर किया है | जिस संक्रमण युक्त मनुवादि सत्ता से मुक्त होना सबसे बड़ा एकलव्य लक्ष होनी चाहिए | तब जाकर यह देश फिर से सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु अपडेट होगा |

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...