तब जाकर यह देश फिर से सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु अपडेट होगा

परजिवी लुटेरो द्वारा दी गयी गरिबी और भुख ही रोजमरा जिवन की रक्षा प्रणाली को कमजोर करके ज्यादेतर दुःखो को प्रवेश करने का अवसर देता है

जिसके रहते हुए हम कभी भी सुख शांती और समृद्धी सबके जिवन में नही देख सकते | जिसे देखना है तो परजिवी सोच की मनुवादि सत्ता को उखाड़ फैकना होगा  | हलांकि मनुवादि सत्ता में भी कुछ मुलनिवासी लोग भी ताकतवर होने का दावा कर रहे हैं | क्या वाकई में मनुवादियो की शासन में इस देश के कुछ मुलनिवासी अब ताकतवर हो चूके हैं ? और यदि वाकई में ताकतवर हो चुके हैं तो फिर कमजोर पिड़ित लोगो को हमे हक अधिकार मिलना चाहिए कहकर क्यों संसद से सड़क तक आवाज उठाया जा रहा है ! खासकर अब हम ताकतवर हो चुके हैं कहकर मनुवादियो के खिलाफ शोसल मीडिया में जुता चप्पल का अभियान चलाने वाले खुदको यदि वाकई में संसद से सड़क तक शोषित पिड़ित कमजोर लोगो की आवाज उठाने वाले मायावती और लालू से भी ज्यादे ताकतवर समझते हैं , तो फिर सवाल उठता है कि बहुत से ऐसे ताकतवर मुलनिवासी इस सोने की चिड़ियाँ का मालिक होते हुए भी अमिर होने के लिए विदेशो की तरफ क्यों भागते हैं ? क्योंकि दरसल उन्हे पता है कि मनुवादियो की शासन इस सोने की चिड़ियाँ में जबतक चलती रहेगी तबतक उनका मनुवादियो से भी अधिक ताकतवर और धन्ना होने की दाल गलने वाली नही है | क्योंकि वर्तमान के समय में वे यहाँ रहकर चाहे कितना ही धनवान या विद्वान हो जाय मनुवादियो द्वारा उसकी टांग खिची जायेगी और उसके लिए अनेको दुःख पीड़ा देने की कांटे भी बिछाये जायेंगे | जिस बात में यदि सच्चाई नही है तो फिर अमिर से और अधिक अमिर बनने के लिए विदेश गए मुलनिवासि यहीं पर रहकर अपने ही समृद्ध देश की समृद्धी से अमिर से और अधिक अमिर बनकर मनुवादियो के खिलाफ खुलकर संघर्ष क्यों नही करते हैं ? जो यहीं पर रहकर अपने देश और अपने ही डीएनए के मुलनिवासियो के उन हक अधिकारो को लुटने से बचाने के लिए संघर्ष क्यों नही करना चाहते हैं जिनको लुटकर हजारो सालो से न जाने कितने कबिलई लुटेरे धनवान बने और कितने लुटेरो की नई पिड़ी भी अमिर से और अधिक अमिर अब भी इसी देश के धन से बनते जा रहे हैं | जो यदि बन सकते हैं तो इस देश के वैसे मुलनिवासी जो विदेशो में अमिर से और अधिक अमिर बनने गए हैं , वे अपने ही देश की अमिरी से अपने ही देश की कमाई से , अपने ही देश में सुट बुट गाड़ी बंगला समृद्ध जिवन जिते हुए इसी देश की मिट्टी से जुड़कर मनुवादियो के खिलाफ आवाज क्यों नही उठाते हैं ? जो बाकि भी उन करोड़ो मुलनिवासियो की रोजमरा बदहाल जिवन में परिवर्तन क्यों नही करते हैं जिनको लंबे समय से मच्छड़ खटमल और जू की तरह चुस चुसकर कमजोर और पिड़ित किया जा रहा है | जिनके हक अधिकारो को छिने जाने से रोकने के लिए उन्ही के साथ मिल जुलकर मनुवादियो के खिलाफ संघर्ष करते | तकि गरिबी भुखमरी से ऐतिहासिक संघर्ष कर रहे मुलनिवासियो को भी अपने जैसा अमिर न सही पर कम से कम भुखमरी और बेघर जिवन से छुटकारा मिल जाती ! जिसके बाद इस देश के गरिब बीपीएल भी हजारो लाखो की किमती जुता चप्पल न सही पर अपने अपने पक्के घरो की फोटो शोसल मीडिया में डालकर ये आवाज बुलंद जरुर कर पाते की वे भी अब धन्ना कुबेर बने गिने चुने अपने ही डीएनए के मुलनिवासियो की खास सहायता से अपनी गरिबी भुखमरी जिवन में मजबुती प्रदान करके मनुवादियो के खिलाफ शोसल मीडिया में भी कड़ी संघर्ष करने के लिए तैयार हैं | जिन्हे अभी इसी देश की मिट्टी से जुड़कर दिनभर कड़ी मेहनत मजदुरी करके भी ये चिंता होती रहती है कि उनके बच्चे भी कहीं उनके जैसा ही गरिबी भुखमरी में सारी जिवन संघर्ष करते हुए न बिता दे ! गरिब और अमिर मुलनिवासी यदि दोनो मिल जुलकर मनुवादियो के खिलाफ आवाज बुलंद कर पाते तो निश्चित तौर पर मनुवादि सत्ता के जाने का समय बहुत जल्द आती | बल्कि विदेशो में रहने वाले अमिर और देश में रहने वाले गरिब अमिर सभी मुलनिवासी संसद से सड़क तक मिल जुलकर मनुवादियो के खिलाफ संघर्ष करते ! क्योंकि वैसे भी अजादी की लड़ाई विदेश जाकर लड़ने से अच्छा अपने ही देश की मिट्टी से जुड़कर लड़ना ज्यादे बेहत्तर होता है | जिसपर विचार करके विदेशो में रह रहे मुलनिवासियो द्वारा अपने वतन लौटकर मिल जुलकर मनुवादियो के खिलाफ खास संघर्ष करना रियल जिवन में मुमकिन है क्या ? रिल जिवन में तो मुलनिवासी अभिनेता रजनीकांत का शिवाजी द बॉश जैसे कई काल्पनिक तौर पर भारी बदलाव लाने वाली फिल्मे भारी परिवर्तन कराने वाले काल्पनिक नायक का अभिनय करके आती जाती रहती है | जिसमे अक्सर किसी कार्टून धारावाहिको में एक भी चोट न लगने वाली लड़ाई की तरह लड़ते हुए काल्पनिक नायक बिना कोई खरोंच के भी कई कई बिलेनो को उनके खतरनाक हथियारो और उनके ताकतवर शरिर के रहते हुए भी आसानी से पिटते हुए दिखाया जाता है | पर असल जिवन में ऐसी लड़ाई कहीं देखने को मिलती है क्या ? मिलती भी होगी तो कोई व्यक्ती अकेले में बहुत हुआ तो दो चार की पिटाई करके भी इतना बड़ा परेशानी और मुसिबत अकेले ले लेता है कि कभी कभी तो उसके पुरे परिवार को भी अकेले कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते लगाते अपना सब जमा पुंजी खोने के बाद में उसके निर्दोश बच्चे भी थक हारकर गुनेहगार बन जाते हैं | वैसे शिवाजी द बॉश में भी फिल्म का नायक कानून का पालन करते करते कानून की नजर में गुनेहगार बन गया था | जिस शिवाजी द बॉश काल्पनिक फिल्म में भी काल्पनिक नायक भले विदेश जाकर अमिर बनता है , पर उसका मन अपने देश में हो रहे अन्याय अत्याचार भ्रष्टाचार और गरिबी भुखमरी अपने वतन वापस लौटने के लिए कहता है | जिसके बाद अभिनेता रजनीकांत द्वारा निभाया गया काल्पनिक नायक अपने देश के गरिब लोगो की गरिबी भुखमरी और बदहाली को अपने ही देश में छिपाकर रखा गया कालाधन से दुर करने का विकल्प चुनता है | क्योंकि उसे भी यह सवाल मन में कचोटता रहता है कि यह सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला देश जड़ से अमिर है , फिर भी यहाँ के करोड़ो लोग अब भी गरिब क्यों हैं ? पर चूँकि हर साल बनने वाली हजारो काल्पनि फिल्मो में बहुत सारे फिल्मे गरिबी भुखमरी दुर करने वाले काल्पनिक भारी बदलाव  के रुप में बन तो रही है , पर रियल जिवन में ऐसे फिल्मो में मौजुद काल्पनिक नायक आजतक पैदा नही लिये हैं | क्योंकि विडंबना यह है कि रिल जिवन में अक्सर गरिबी से संघर्ष करके अमिर बनने वाले गरिब के घर जाना भुल जाते हैं ! और कोई गरिब यदि अमिर बन जाता है तो उसके करिबी दुसरे गरिब भी उससे संपर्क करने में हिचकिचाते हैं | क्योंकि पता नही सुट बुट गाड़ी बंगला के बिच उसका सम्मान पहले जैसा होगा कि दुसरे अमिरो के सामने उसकी गरिबी भुखमरी को देखकर अपमान किया जायेगा | जैसे कि अभी जो गरिबी भुखमरी से संघर्ष कर रहे मुलनिवासियो के बारे में अनदेखा करके यह बयान दी जा रही है कि समय अब बदल चुका है , इस देश के मुलनिवासी अब सुट बुट गाड़ी बंगला वाला हो गया है | क्योंकि ऐसे सुट बुट लगाने वाले मुलनिवासी अब गरिबी की खाई से निकलकर वापस गरिबो के बिच जाना लगभग भुल चूके हैं | उन्हे गरिबी भुखमरी का मंजर याद नही रहा और न वे गरिबो के घरो या फुटपाथो में जाकर उसे याद करने के लिए गरिबो के पास जाना चाहते हैं | जैसे की खुद वर्तमान के प्रधानमंत्री जो कि हर चुनाव में अपने आप को प्रधान सेवक बताकर अपने गरिबी भुखमरी के बुरे दिनो के बारे में बताते हुए सुट बुट लगाकर गरिबी के नाम से सायद वोट तो बटोर रहे होंगे पर चुनाव जितने के बाद अपने कार्यकाल में इस देश की गरिबी भुखमरी का मंजर अब भी है उसके बारे में गरिबो के करिब जाकर बताने और उसमे सुधार करने के बजाय लगभग सारा समय देश विदेशो के अमिरो से हि मिलते हुए अपना किमती समय बिताकर आखिर क्या साबित किया जा रहा है कि वाकई में अब उनकी तरह सबके सुट बुट वाला अच्छे दिन आ गए हैं ! इसलिए देश विदेश दौरा में गरिबी भुखमरी से मुलाकात कभी दिखती ही नही है | चारो ओर मानो अमिरी ही अमिरी दिखती है | जैसे कि हाल ही में जुता चप्पल का अभियान चलाने वालो से अब हम कमजोर नही सुट बुट वाले हो गए हैं उत्साह और जोश पुर्वक किसी मुलनिवासी के हि विचारो को देखकर एक पल के लिए तो वाकई में ऐसा लगता है मानो सभी मुलनिवासी अब सुट बुट गाड़ी बंगला वाला हो गया है , और वाकई में समय बदल गया है ! पर अगले ही पल मुलनिवासियो की भारी अबादी गरिबी भुखमरी की खाई में चिखती चिलाती है तो ऐसी बाते सुनते देखते और पढ़ते हुए यह सोचकर तकलिफ होती है कि मनुवादियो के शासन की मानो कोई मुलनिवासी ही यह कहकर झुठी तारिफ कर रहा है कि मनुवादियो के शासन में उनकी गरिबी भुखमरी दुर हो गई है ! अथवा वाकई में मनुवादि शासन में मानो डीजिटल आधुनिक शाईनिंग बदलाव आ चूका है | हलांकि अमिर बनने वाले मुलनिवासियो के लिए तो वाकई में आधुनिक शाईनिंग डीजिटल शासन में बदलाव आ चुका है | पर इस तरह के थोड़े बहुत बदलाव तो गोरो के शासन में भी मौजुद थी , क्योंकि उस समय भी कुछ गिने चुने मुलनिवासी सुट बुट पहनकर अमिरी जिवन जि रहे थे | पर गोरो से अजादी पाने के बाद क्या हम मनुवादि गुलामी और बहुसंख्यक अबादी की गरिबी भुखमरी को अनदेखा कहकर यह स्वीकार कर लें की अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं इसलिए गोरो से अजादी पाने के बाद मनुवादियो की शोषण अत्याचार से अजादी पाने की जरुरत नही है ! मनुवादि शासन को इसी तरह चलने दो जैसे की कई दशक से चल रहा है | फिर गोरो की गुलामी के समय अजादी संघर्ष सभी राज्यो में क्यों चल रही थी ? जैसे की इस समय भी सभी राज्यो में मनुवादियो के शोषन अत्याचारो के खिलाफ संघर्ष चल रही है | जो संघर्ष भी भारी अबादी कि बदहाल जिवन में सुधार के लिए चल रही है , जिनकी जिवन में सुट बुट गाड़ी बंगला नही बल्कि गरिबी भुखमरी है | जो लोग मनुवादियो के द्वारा सबसे अधिक सताये और मारे जा रहे हैं ! जिन्हे मैं मनुवादियो के खिलाफ चलाई जा रही ऐतिहासिक आंदोलन का सबसे खास वीर नायक और गरिबी भुखमरी से मरने वालो को शहिद मानता हुँ ! जो कि इन ऐतिहासिक बुरे दिनो में सबसे अधिक दुःख तकलिफो का सामना भी कर रहे हैं | और मेरे ख्याल से कम मेहनताना लेकर सबसे अधिक खुन पशिना भी बहा रहे हैं | जिनकी गरिबी भुखमरी को उनके घरो या फुटपाथो में देखने नही जाते हैं | और न उन्हे सुट बुट जुता चप्पल पहनने वाले भरपेट खाना खिलाने के लिए किमती सम्हारोह का कार्ड देने जाते हैं | इसलिए इस देश के मुलनिवासि अब किमती सुट बुट जुता चप्पल पहनने लगा है यह बात कहते समय यह भी हमेशा ध्यान में रखा जाय कि हर रोज बहुसंख्यक अबादी गरिबी भुखमरी से संघर्ष कर रहे हैं | बल्कि कई तो भुख और गरिबी से हररोज मर भी रहे हैं | जिन मुलनिवासियो के पास किमती गाड़ी बंगला तो दुर भरपेट खाना भी नसीब नही हो पा रही है | क्योंकि इतिहास गवाह है कि शोसन अत्याचार करने वालो की शासन में अमिरी बड़ने से गरिबी बड़ने की भी रफ्तार तेज हो जाती है | जिसमे संतुलन लाने का सबसे बेहत्तर उपाय अपनी खुदकी सत्ता स्थापित हो और परजिवी मनुवादि सत्ता का विनाश होनी चाहिए | क्योंकि मनुवादि शासन में खुदको बहुत ताकतवर महसुश करने वाले गिने चुने मुलनिवासियो की लाख कोशिष के बावजुद भी जबतक मनुवादियो से पुरी अजादी मिल नही जाती तबतक मनुवादि बहुसंख्यक अबादि को अपनी सत्ता पावर का गलत इस्तेमाल करके दबाते कुचलते रहेंगे , चाहे जितना खुदको ताकतवर समझ लो | क्योंकि मनुवादियो से पुरी अजादि मिलने से पहले ही अब इस देश के मुलनिवासी पहले की तरह कमजोर नही रह गया यह बात वाकई में सत्य तभी होती जब किसी भी शोषित पिड़ित नेताओ या अन्य समाज सेवको द्वारा मंच पर चहड़कर कभी भी यह अवाज नही उठाई जाती कि " शोषित कमजोर दबे कुचले लोगो को उचित हक अधिकार और विशेष लाभ मिलनी चाहिए " | जिस तरह की बाते खुद अमिर बनकर " समय बदल गया है " कहने वाले भी निश्चित तौर पर कभी न कभी जरुर कहते होंगे ! और वैसे भी हमे यह बात कभी नही भुलना चाहिए की गरिबी और भुख से बड़ा दुःख नही | क्योंकि गरिबी और भुख ही रोजमरा जिवन की रक्षा प्रणाली को कमजोर करके  ज्यादेतर दुःखो को प्रवेश करने का अवसर देता है | जिसे जड़ से समाप्त करने का सबसे बेहत्तर उपाय मास्टर चाभी सत्ता का नेतृत्व मुलनिवासियो की दबदबा में हो | क्योंकि अपने घर का दुःख तकलिफ को अपने ही घर के लोग बेहत्तर समझ सकते हैं , कोई बाहरी मुल का नही ! वह भी वैसा बाहरी जो घर में घुसकर मनुस्मृती लागू करके हजारो सालो से शोषन अत्याचार किया हो | जिसकी भुख अब भी नही मिटी है इसकी झांकी आज भी कहीं कहीं मनुवादियो द्वारा भेदभाव का आतंक फैलाकर मार पिटाई खुन खराबा हिंसा द्वारा भष्म मनुस्मृति का भुत मंडराने लगता है | जिसकी भटकती आत्मा को सायद सत्य का प्रतिक शिव ही अपनी तीसरी आँख खोलकर भष्म करेगा जिस शिव ने कभी ब्रह्मा का भी सर काटकर सरस्वती को न्याय दिया था | जिस तरह से न्याय करने आज भी यदि शिव आते तो मनुवादि शासन में हर साल पुरे देश में जो हजारो बलात्कार हो रहे हैं , वह या तो रुक जाता या फिर बलात्कार करने वाले ही समाप्त हो जाते | जो आज किसी धारावाहिक की तरह लगातार बलात्कार का एपिसोड बनाकर न्यूज के जरिये सबको शर्मसार करने में लगे हुए हैं | जिसका भी मुल कारन मनुवादि सत्ता है | जो एकदिन प्रमाणित भी हो जायेगा जब इस कृषि प्रधान देश से मनुवादियो की सत्ता समाप्त होगी और साथ साथ इस देश के गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो से भी मनुवादियो की दबदबा समाप्त होने के बाद अचानक से अपराध में इतना बदलाव आयेगा कि पुरी दुनियाँ इस देश की तरह अपने भी देश में भारी बदलाव लाने के लिए इस देश की तरफ ही फिर से नजर दौड़ाकर विश्वगुरु सुख शांती और समृद्धी ज्ञान को अपडेट करेगी | जो वर्तमान की मनुवादि शासन और दबदबा में मानो कैद होकर सही समय का इंतजार हो रहा है | क्योंकि सत्य मन की द्वार और आँख खोलकर हमे यह बात भी याद जरुर रखनी चाहिए कि अमेरिका में भी गरिबी है , और वहाँ भी बलात्कार का रिकार्ड टुट रहा है | जापान में तो सबसे अधिक कर्ज और सबसे अधिक आत्महत्यायें होती हैं | क्या ये सब खुदको सबसे अधिक समृद्ध देश कहने वाले वाकई में सबसे अधिक सुख शांती और समृद्धी से जि रहे हैं इसलिए वहाँ पर ये सब हो रहे हैं ? बिल्कुल नही ! दरसल उनको भी उस सुख शांती और समृद्धी का इंतजार है , जिससे की उनके देशो में अपराध आत्महत्यायें कर्ज गरिबी भुखमरी भेदभाव वगैरा लगभग समाप्त हो जाय | जैसे की इस देश के बारे में बाहर से आनेवाली मुसिबतो से पहले की उन पुराने दिनो की चर्चा की जाती है जब इस देश में इतनी सुख शांती और समृद्धी जिवन जी जा रही थी कि कई देशो के लोग मानो स्वर्ग की कामना की तरह  इस देश में आने की सपने देखते थे | जिसे मनुवादि जैसे विदेशी मुल के अत्याचारियो ने नर्क बनाने की कोशिष मनुस्मृति संक्रमण देकर किया है | जिस संक्रमण युक्त मनुवादि सत्ता से मुक्त होना सबसे बड़ा एकलव्य लक्ष होनी चाहिए | तब जाकर यह देश फिर से सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु अपडेट होगा |

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