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सोमवार, 21 मई 2018

कर्नाटक में चाहे कांग्रेस की सरकार बने या फिर भाजपा की दोनो एक दुसरे के लिए सबसे भ्रष्ट पार्टी है

Khoj123
कर्नाटक में चाहे कांग्रेस की सरकार बने या फिर भाजपा की दोनो एक दुसरे के लिए सबसे भ्रष्ट पार्टी है:
अजादी के समय से ही कांग्रेस सरकार के द्वारा अजाद देश का पहला प्रधान सेवक नेहरु के नेतृत्व में आधुनिक भारत का नारा देते हुए साठ सालो तक शासन किया गया है|जिस कांग्रेस सरकार की विकाश नीति से गरिबी हटाओ का नारा देने के बाद 2014 ई. का लोकसभा चुनाव आते आते अजादी के समय की अबादी जितनी बीपीएल अबादी हो गई है|और अब साठ साल बनाम साठ महिने का अवसर मांगकर भाजपा सरकार के शासन में भी साठ महिना साईनिंग इंडिया के बाद साठ महिना डीजिटल इंडिया के लिए अवसर मांगकर आधुनिक बीपीएल भारत के बाद डीजिटल बीपीएल इंडिया होने जा रही है|जिसके साथ साथ नशे का व्यापार में भी विकाश मानो बीड़ी का आधुनिक अपडेट होकर डीजिटल सिगरेट हो गई है|ऐसी आधुनिक और डीजिटल विकाश सफर में चाहे कांग्रेस सरकार आये या फिर भाजपा सरकार आये,इन दोनो ही पार्टी की सरकार देश के सबसे अधिक राज्यो में भी है,और केन्द्र में भी जनता ने इन्हे ही एक एक बार तो भारी बहुमत से भी जिताया है|जिस तरह की भारी बहुमत से लोकसभा चुनाव जीत किसी अन्य पार्टी को अजादी से अबतक नसीब ही कहाँ हुआ है?बहुत सी पार्टियाँ तो नोटबंदी की कतार लगाये अपने नेतृत्व में केंद्र सरकार बानाने का अवसर आने का लंबी इंतजार कर रही है| और ये भाजपा कांग्रेस है कि अपनी विशेष प्रकार का अमिरी और गरिबी का विकाश करके बार बार मानो नोटबंदी लाईन में सबसे आगे रहकर नोट बदलने की तरह सिर्फ सत्ता की कुर्सी अदला बदली करते रहना चाहती है|जो बाकियो को कतार में ही लंबे समय से खड़ा कराके सिर्फ सबके अच्छे दिन लाने का वादा करते रहना चाहती है|जिस कतार में जिस तरह सौ से अधिक लोगो की मौत नोटबंदी में हुई थी,उसी तरह ये भाजपा कांग्रेस की बनने वाली सरकार एक से अधिक बार सत्ता में वापसी करके अपनी सरकार बनाने की कतार में लगी न जाने कितने ही पार्टियो को या तो खुद से विलय करा रही है,या फिर गठबंधन करा रही है|जिनके लिए भाजपा कांग्रेस को आगे की कतार से हटते हुए जनता भी अबतक देखना सायद पसंद नही कर रही है|जिसके चलते ही तो केन्द्र के साथ साथ बहुत से राज्यो में भी भाजपा कांग्रेस को ही बार बार सबसे अधिक वोट देकर सिर्फ अदला बदली कांग्रेस भाजपा करके सबसे आगे की कतार में लंबे समय से इन दोनो ही पार्टियो को अदला बदली करके लगाई हुई है|जो दोनो पार्टी एक दुसरे को देश की सबसे बड़ी भ्रष्ट पार्टी का आरोप लगाकर बार बार जनता से सबसे अधिक राज्यो में सबसे अधिक वोट भी हासिल करते आ रही है|इसलिए जाहिर है कर्नाटक में चाहे कांग्रेस की सरकार बने या फिर भाजपा की सरकार बने,जनता ने ही इन दोनो को सबसे अधिक वोट दिया है|जो पहले भी देती रही है इसमे आश्चर्य होने की कोई ऐसी बात नही की भारी बदलाव आ गया है वोटिंग या सरकार बनने को लेकर|इसलिए यह जानकर कभी कभी तो आश्चर्य जरुर लगता है कि जो भी सरकार बनने जा रही है,वह सरका उसी जनता की चुनी हुई है,जिसकी भिड़ सड़को में हर रोज विरोध प्रदर्शन करते हुए भी कांग्रेस भाजपा के खिलाफ ही दिखती रहती है|जिसके बाद अगली चुनाव में कांग्रेस भाजपा को ही फिर से सरकार की अगली कतार में खड़ी भी कर देती है|जिस एक ही खबर को बार बार वायरल करके कतार लगा लगाकर हर रोज पढ़ना पढ़ाना भी मानो कांग्रेस भाजपा को ही इस तरह की खबरो में वायरल करके भाजपा कांग्रेस का प्रचार प्रसार भी फ्री में हर रोज करते रहना है|जिसे ही रोज देख सुन और पढ़कर मैने भी ये पोस्ट लिखना जरुरी समझा और अपने विचार रखे हैं कि भाजपा कांग्रेस दरसल एक दुजे के लिए ही बनी है और एक दुसरे का पूरक भी हैं|जिसमे से एक मुक्त तो दोनो ही केन्द्र से ही नही कई राज्यो से भी मुक्त हो जायेगी यदि सभी राज्यो की स्थानीय जनता ने कई स्थानीय पार्टी में किसी एक को भारी बहुमत से राज्य में जीताया और केन्द्र में सभी स्थानीय पार्टीयो ने आपस में गठबंधन करके केन्द्र में चुनाव लड़कर भाजपा और कांग्रेस दोनो के हीसाथ हमे धोखा हुआ है और दोनो ही पार्टी की सरकार जब बनती है केंद्र में तो ये दोनो पार्टी अपने केन्द्रीय शक्ती का इस्तेमाल करके सीबीआई का डंडा उन सभी पार्टियो पर चलाना सुरु कर देती है जो कि इन दोनो कांग्रेस भाजपा पार्टी के खिलाफ मजबुती से लड़ने की तैयारी कर रही होती है|क्योंकि मेरी मंथन तो यह बतलाती है कि भाजपा कांग्रेस बाकि पार्टियो को सीबीआई से डराती नही है बल्कि वह खुद ही चूँकि भविष्य को लेकर डरी हुई है कि कांग्रेस भाजपा दोनो की सत्ता केन्द्र से चली जाने के बाद क्या होगा उन बड़े बड़े आरोपो का जो कि भाजपा कांग्रेस दोनो एक दुसरे को देश का सबसे भ्रष्ट पार्टी बतलाकर भी एक दुसरे को एक ख्रोंच भी नही लगाते रहे हैं इन दोनो की सरकार के रहते हुए बस चुनाव से पहले एक दुसरे को जेल में डालेंगे कहते हैं और चुनाव जीतने के बाद कह देते हैं मामला कोर्ट में है|या तो सचमुच में कोर्ट ही इन दोनो को सजा देने के लिए नही बल्कि बचाने के लिए सबसे बेहत्तर विकल्प साबित हो रही है सबसे बड़ी बड़ी भ्रष्टाचार का आरोप लगते हुए भी|जबकि रोजमरा जिवन में आम आदमी के उपर यदि हजारो या लाखो रुपये की चोरी बल्कि पोकेट मार को भी कभी कभी तो अदालत में तुरंत सजा तो मिलती ही है,पर उससे पहले थाना में पुलिस के डेडे भी पड़ते हैं और उससे भी पहले जनता भी कभी कभार किसी पॉकेटमार पर एक साथ टुट पड़कर लात घुसा जुता चप्पल से ये बतलाती है कि उसने बहुत बुरा काम किया है|जबकि कांग्रेस भाजपा के उपर हजारो लाखो की नही,बल्कि हजारो लाखो करोड़ की भ्रष्टाचार करने का आरोप है पर जनता उसे केंद्र में ताज तो भारी बहुमत से पहनाती ही है,पर सबसे अधिक राज्यो में भी कांग्रेस भाजपा को ही वोट करके सबसे अधिक राज्यो में कांग्रेस भाजपा को ही सर में सत्ता का ताज पहनाती है|जैसे कि इस समय कर्नाटक में भी भाजपा कांग्रेस ही जनता का लाडला बनी हुई है|और देश में भी यही दोनो पार्टी ही लाडला बनी हुई है|फिर कांग्रेस भाजपा के विरोध में जो आंदोलन प्रदर्शन और अनशन होते रहते हैं वह किसलिए कि जाती है और अजादी से लेकर कांग्रेस के उपर बड़े बड़े भ्रष्टाचार का केश क्यों चल रहे हैं साथ ही भाजपा में भी बड़े बड़े भ्रष्टाचार के केश क्यों चल रहे हैं?सिर्फ ये सब दिखावे के लिए कि सिर्फ ये दोनो सबसे बड़े भ्रष्ट पार्टी और सबसे अधिक मुल्य का चोरी करने की आरोपी हैं,जो असल में जनता का लाडले हैं|दोनो कोई ऐसा कार्य नही करते जिससे की देश और प्रजा का भारी नुकसान हुआ है|

रविवार, 13 मई 2018

संवर्ण सायद मनुस्मृती सोच की अहंकार में चुर होकर खुदको जन्म से उच्च विद्वान पंडित और सबसे अधिक talented समझकर आरक्षण मुक्त की बाते कर रहे हैं!

 संवर्ण सायद मनुस्मृती सोच की अहंकार में चुर होकर खुदको जन्म से उच्च विद्वान पंडित और सबसे अधिक talented समझकर आरक्षण मुक्त की बाते कर रहे हैं!
Khoj123
जबकि आरक्षण का विरोध करने वालो को जरुर पता होना चाहिए कि सिर्फ उच्च Degree प्राप्त करना और उच्च पद प्राप्त करना ही सबसे talented होना नही होता है|बल्कि उच्च ज्ञान की Degree या फिर उच्च पद प्राप्त करके उसे अमल पर लाना सबसे अधिक telent अथवा सबसे गुणवाण होने का प्रदर्शन प्रयोगिक रुप से होता है|जैसे कि डिग्री से तो अर्जुन भी विश्व का सबसे बेहत्तर लक्ष साधने अथवा सबसे बेहत्तर Aim रखने वाला टैलेंट रखता था,पर बिना डिग्री और बिना गुरु अथवा Teacher के भी एकलव्य अर्जुन से ज्यादे लक्ष साधने वाला प्रयोगिक रुप से ऐसा हुनरमंद वीर था,जिसे बिना लक्ष का ज्ञान दिए ही अर्जुन का गुरु भी उसके प्रयोगिक टैलेंट को देखकर ये स्वीकार कर लिया था कि एकलव्य बिना गुरु और बिना डिग्री के भी अर्जुन से ज्यादे सटिक लक्ष अथवा Aim साधने वाला हुनरमंद वीर है!जिस एकलव्य से ज्यादे लक्ष अर्जुन कभी भी नही साध सकता,जो बात मनुस्मृती टैलेंट रखने वाले संवर्णो को अच्छी नही लगती है|जिसके चलते द्रोणाचार्य द्वारा बिना गुरु ज्ञान दिए ही गुरु दक्षिणा के रुप में एकलव्य से उसका अँगुठा मांगा गया था|ताकि एकलव्य को कोई ऐसा अवसर ही नही मिले,जिससे कि वह पुरी दुनियाँ के सामने अपना लक्ष साधने की हुनर को दिखला सके|ताकि उसकी हुनर भारी भेदभाव के बिच छुपा रहे,और दुनियाँ ये सोचती रहे कि अर्जुन से ज्यादे लक्ष अथवा Aim को साधने वाला पुरी दुनियाँ में और कोई है ही नही!क्योंकि अवसर मिलने पर एकलव्य अर्जुन से आगे निकल सकता था|जैसे कि बाबा अंबेडकर को अवसर मिलने के बाद उन्होने संवर्णो को बतला दिया है कि उसके पास मनुस्मृती से भी बेहत्तर रचना अजाद भारत का संविधान रचना करने की टैलेंट मौजुद है|और साथ साथ देश विदेश की बड़ी बड़ी उच्च डिग्री हासिल करने का भी हुनर है|पर चूँकि एकलव्य को अवसर न देना दरसल भेदभाव करने वाली मनुस्मृती टैलेंट ही सबसे बड़ी वजह बनी थी,जैसे कि अभी भी भष्म मनुस्मृती का भुत सवार होकर ही आरक्षण का विरोध कराके अजाद भारत का संविधान में मिले हक अधिकार अँगुठा को  कटवाने का कोशिष किया जा रहा है|जिस मनुस्मृती सोच के लोगो का आरक्षण को दिलवाने में को योगदान भी नही रहा है|जैसे कि अर्जुन का गुरु द्रोणाचार्य द्वारा भी एकलव्य को लक्ष साधने की हुनर सिखलाने में कोई खास योगदान नही दिया गया था|पर फिर भी अपने मनुस्मृती विचार के टैलेंट हुनर का प्रदर्शन करते हुए बिना ज्ञान दिए ही गुरु दक्षिणा के रुप में एकलव्य से उसका अँगुठा कटवा लिया था|और उसके बाद ही इस बात पर निश्चित हो सका कि अपने सिखाये हुए शिष्य को विश्व का सबसे बेहत्तर लक्ष साधने वाला हुनरमंद कहलाने का बेहत्तर श्रेय अब मिल गया है|जो विश्व का सबसे बेहत्तर लक्ष साधने वाला श्रेय का इनाम दिया भी तो भी समझने वाले समझ जायेंगे कि द्रोणाचार्य को अपने दिए गए ज्ञान में पुर्ण विशावास नही था जिसके चलते ही उसने एकलव्य के साथ भारी भेदभाव तो किया ही पर बिना गुरु ज्ञान दिए ही गुरु दक्षिणा के रुप में एकलव्य का अँगुठा भी माँग लिया|जो अंगुठा अर्जून से क्या मांगा जा सकता था सबसे बेहत्तर शिष्य बतलाकर?जिस तरह का भेदभाव लक्ष अथवा भेदभाव Aim को साधकर ही आरक्षण का विरोध संवर्णो द्वारा किया जा रहा हैं|क्योंकि उनको पता है कि उनका जबतक लोकतंत्र के चारो स्तंभो में हाउसफुल दबदबा रहेगी तबतक दबदबा में कोई कमी न आ जाय इसके लिए बाकियो को तो उच्च डिग्री भी ठीक से हासिल करने नही देंगे और न ही उच्च डिग्री हासिल करने के लिए आर्थिक रुप से मजबूत होने देंगे,क्योंकि मनुस्मृती जैसे अप्राकृतिक संविधान में यह भी नियम कानून बनाया गया था कि ज्ञान मंदिर में शोषित पिड़ितो को घुसने न दिया जाय,जिस तरह के नियम कानून आज भी कई मंदिरो में लागू है,जहां पर बाहर ये बोर्ड लिखा मिल जाता है कि अंदर शुद्र का प्रवेश मना है|भले ही क्यों न आज मनुस्मृती को भष्म करके अजाद भारत का संविधान रचना करके वह लागू हो पर छुवा छुत करने वालो के मन में भष्म मनुस्मृती का भुत जरुर सवार होकर आज भी भारी भेदभाव विभिन्न तरह की अपडेट के साथ भारी भेदभाव किया जाना जारी है|जैसे कि मनुस्मृती अनुसार उच्च जाति छोड़कर कोई और के द्वारा वेद सुनने पर कान में गर्म लोहा डालना और वेद बोलने पर जीभ काटना जैसे शोषन अत्याचार किया जाना है|जिसे नया अपडेट करके ही छुवा छुत करने वालो की नजर में सबसे अधिक टैलेंटेड होना माना जाता है|जिस तरह के टैलेंट हुनर के बारे में मनुस्मृती के अलावे और कई छुवा छुत ग्रंथो में भी लिखा गया है|और साथ साथ किसी शुद्र को कभी अमिर नही बनना चाहिए बल्कि उसे हमेशा गरिब बनकर उच्च जाती के लोगो की सेवा करते रहना चाहिए,ये भी लिखा है|जिसे ही ध्यान में रखकर नया डीजिटल अपडेट करने की सपने देखी जा रही है|जिसके लिए सायद Digital Update के रुप में एक नई प्रकार का Skill India अभियान अलग से खास चलाया जा रहा है|जिसके बारे में मैं तो आरक्षण का विरोध करने वालो का विरोध में यही कहुँगा कि चूँकि इस कृषी प्रधान देश में जिसकी सबसे बडी हुनर ही कृषी सभ्यता संस्कृती रही है,जिस कृषि तप से ही हजारो साल पहले ही हजारो हुनर अथवा Skill वरदान खोज Khoj करके उस हजारो हुनर जिसे आज हजारो जाती के रुप में जाना जाता है,उसके जरिये ही सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती की स्थापना अथवा हजारो साल पहले ही इस अखंड कृषी प्रधान देश में विकसित गणतंत्र और पंचायत की स्थापना करके विकसित आधुनिक व्यवस्था आधुनिक समाज परिवार सुख शांती और समृद्धी कायम की गई थी,जिन हजारो हुनरो को आज आरक्षण का विरोध करके कोई मनुस्मृती टैलेंट की मांसिकता रखने वाली भ्रष्ट सोच शोषित पिड़ितो को क्या उच्च डिग्री टैलेंट के बारे में सिखलायेगा,जिनके पुर्वजो के पास हजारो साल पहले भी हजारो हुनरो कि प्रयोगिक टैलेंट मौजुद थी|जो कि आज भी हजारो शुद्र निच जाती के रुप में हजारो हुनर मौजुद मौजुद है|जिसे अनदेखा करके वर्तमान की भाजपा सरकार Skill India ऐसी चला रही है,जैसे कि इस देश के लोगो को नया स्किल सिखला रही है|जो यदि इस देश की Skill in India की सत्ता कुर्सी में बैठकर स्किल इंडिया योजना बनाकर पहले से ही हजारो हुनर को जानने वाले लोगो को बिना रोजगार दिए हुनरमंद बना भी रही है तो वह सिर्फ अपने हिसाब से विकाश अपडेट कर रही है,जिसे हर देश की सरकार अपने अपने तरिके से करती है|इसमे कोई नई बात नही है,बल्कि नई बात तब होती जब ये सरकार बनने के बाद सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु अपडेट करने की कृषी प्रधान प्रयोगिक Skill अथवा हुनर सिख पाती|जो कि न सिखकर ये सरकार पुरी दुनियाँ घुम घुमकर मानो सिर्फ दुसरे की अपडेट पुँच्छ पकड़कर कृषी प्रधान देश विश्वगुरु का नेतृत्व करके गुरु नही बल्कि गुरुघंटाल बनने निकली हो|जो अपने हिसाब से कृषी प्रधान देश में कबिलई प्रधान टैलेंट का प्रदर्शन करते हुए पुरी दुनियाँ घुम घुमकर एफडीआई विकाश ऐसी कर रही है,जैसे कि कभी कांग्रेस सरकार भी आधुनिक भारत गरिबी हटाओ का नारा देकर की थी|जिस तरह कि विकाश में निजि विकाश ज्यादे होता है|और सरकारी विकाश कम होता है|जिस तरह कि निजि विकाश के लिए भी आरक्षण का विरोध हो रहा है|क्योंकि अब निजि क्षेत्रो में भी आरक्षण की मांग जोर सोर से उठ रही है|जो कि स्वभाविक है,चूँकि ये मुमकिन है कि ईस्ट इंडिया कंपनी कि तरह एफडीआई के जरिये निजि कंपनी खोलकर भी इस कृषी प्रधान देश के कृषको की बहुत सी उपजाउ जमिने और प्राकृतीक धन संपदा अंग्रेजो की हड़प निति को अपडेट करके हड़पी जा रही है|जैसे कि कांग्रेस सरकार के समय में कोयला घोटाला जैसे बड़े बड़े घोटाले हुए हैं,उसे करने के लिए ज्यादेतर आरक्षण मुक्त निजि कंपनियो के साथ ही सांठगांठ करके हुए हैं|जिन निजि कंपनियो में कोई भी आरक्षण नही होती है,बल्कि ज्यादेतर काम निजि ठिके पर ही लिये जाते हैं|जिसमे वर्करो की हालत कैसी होती है इसे जानने के लिए ठिके पर लिए गए गरिब मजदूरो कि रोजमरा जिवन को विस्तार पूर्वक जानकर पता चल जाता है कि उनके साथ क्या क्या जुल्म और सितम हर रोज हो रहे हैं|बस वे सभी गरिब मजदूर मजबूर होकर उज्वल भविष्य का इंजार करते हुए अपना बदहाल जिवन किसी तरह जी रहे हैं|जो कभी कभी अति जुल्म सितम होने पर अपने हक इधिकारो को पाने के लिए सड़को में भी उतर जाते हैं,यह अवाज बुलंद करते हुए कि हम मेहनत करने वाले मजदूर हैं,किसी की गुलामी जैसे बुरे हालात में काम करने के लिए मजबूर नही हैं!जो कि स्वभाविक है ,क्योंकि अजाद भारत में भी उन्हे दिन रात खराब से खराब बुरे हालात में काम कराकर उन्हे उनका उचित श्रममोल अथवा काम के पैसे भी कम दिए जाते हैं,और उनसे जिवन जोखिम से भरा काम ऐसे कराये जाते हैं,जैसे उनके जिवन का कोई मोल ही नही है|जैसे कि गुलामो से काम कराते समय उनके जिवन का बस काम करने लायक जिंदा रहने तक मोल होता है,उसके बाद उनका भविष्य जाय अँधकार में, मानो उनकी जिवन को आम खाकर गुठली कि तरह चुसकर फैंक दी जाती है|जिन ठिके पर लिए गए मजदूरो के लिए ठीक से सुरक्षा इंतजाम और सेहत ख्याल भी नही रखा जाता है|और कई बार तो बहुत से मजदूरो को कोयले की खानो में जिंदा दफन तक कर दिया जाता है|जो निजि क्षेत्रो में यदि आरक्षण लागू हो जाय तो उनपर भी विशेष नियम कानून लागू होकर और विशेष नजर रखकर उनका जिवन मोल और उनका हक अधिकार भी कोयले की खानो से निकलने वाले किमती हीरे की तरह बड़ जायेंगे,साथ ही निजि क्षेत्रो में भी आरक्षण लागु होने पर बहुत सी शोषन अत्याचार की घटनाये भी रुकेगी जो बाते सोचकर भी निजि क्षेत्रो में भी उसी तरह की आरक्षण मांग उठ रही है,जैसे कि अभी सरकारी क्षेत्रो में आरक्षण लागु है|क्योंकि अजाद भारत का संविधान में विशेष अधिकार के साथ साथ आरक्षण भी इसलिए प्राप्त है,ताकि इस इस सोने कि चिड़ियाँ को प्रयोगिक नया अपडेट करने का बेहत्तर मालिकाना अवसर भी मिल सके,न कि कोई ईस्ट इंडिया गुलाम बनाने वाली कंपनी फिर से अपडेट होकर देश फिर से गुलाम दास हो जाय|क्योंकि मनुस्मृती टैलेंट रखकर खुदको जन्म से विद्वान पंडित,वीर क्षत्रिय और धन्ना वैश्य सिर्फ डिग्री दिखलाकर प्रयोगिक रुप से भी खुदको टैलेंटेड समझकर आरक्षण का विरोध गरने वाले लोगो की छुवा छुत जैसे टैलेंट से ये देश विश्वगुरु और सोने की चिड़ियाँ नही कहलाया है|बल्कि हजारो हुनरो के जरिये जो प्रयोगिक विकाश बेहत्तर तरिके से नेतृत्व करने से होता है,उसके जरिये ही ये देश विश्वगुरु और सोने की चिड़ियाँ कहलाया है|जिन हजारो हुनरो को हजारो निच जाती घोषित करने की मनुस्मृती रचना संवर्णो द्वारा बहुत पहले ही करके इस देश को पिच्छे ढकलने कि कोशिष हजारो सालो से जारी है|जिसके चलते ही तो ये देश दुबारा आजतक विश्वगुरु और सोने की चिड़ियाँ अपडेट नही हो पा रहा है|क्योंकि गोरे चले गए लेकिन इस देश में आज भी छुवा छुत जैसे टैलेंट कायम है|जो कि स्वभाविक है,क्योंकि गोरे गए हैं,लेकिन छुवा छुत कराने वाले भष्म मनुस्मृती का भुत अब भी देश में ही मौजुद कोने कोने में मंडरा रहा है|जिसके चलते ये देश सोने की चिड़ियाँ होते हुए भी Poor India अथवा गरिब बीपीएल है|जहाँ पर विश्व का सबसे बड़ा झुगी झोपड़ी मौजुद है|और विश्वगुरु होते हुए भी आज विश्व के टॉप दो सौ विश्वविद्यालयो में भी अपना नाम दर्ज नही करा पा रहा है|जिस तरह के बुरे हालात क्या तब भी मौजुद थी जब इस देश में विश्व के कोने कोने से नालंदा विश्वविद्यालय जैसे कई प्राचिन विश्वविद्यालय में दुमियाँभर के छात्र पढ़ने के लिए आते थे?जहाँ से आज इस देश के सेवक मंत्री और उच्च अधिकारी भी अपनी सेवा में बेहत्तर शिक्षा सेवा न रहने कि मानो कबूल करके कोने कोने से अपने बच्चो को विदेशो में पढ़ाने के लिए भेज रहे हैं|और कई तो खुद भी पढ़कर आए हैं|क्या ऐसी गरिब बीपीएल बुरे हालात तब भी मौजुद थे जब ये देश सोने कि चिड़ियाँ प्रयोगिक रुप से कही जाती थी,जब इस देश के ग्राम में भी इस देश की जनता मालिक सोने चाँदी के जेवरो से लदी रहती थी,और सोने चाँदी के बरतनो में खाना खाते थे,और सोने की मुद्रा भी चला करती थी,और इस उत्तम कृषी प्रधान देश की अन्न धान धन फसल सोने की फसले मानी जाती थी,जो कि सबकी जिवन में गरिबी भुखमरी दुर करके सुख शांती और समृद्धी लाकर कई और देशो की अनगिनत जनता को भी पालती थी|जिसका चिन्ह और उदाहरन आज भी देखने को मिलते हैं|क्योंकि लुटपाट करते समय भी चोर लुटेरे सबकुछ लुटकर नही ले जा पाते हैं|जैसे कि गोरे भी तो इस देश में कभी लुटपाट करने इस देश की अमिरी देखकर ही तो आए थे,न कि गरिबी भुखमरी देखकर शान से पलने आए थे|बल्कि इस देश की अमिरी में उससे पहले भी कई घुमकड़ विदेशी कबिलई पल रहे थे,जिनसे सांठगांठ करके बाद में गोरो ने आपस में ही गैंगवार करके अपना वर्चस्व कायम किया था|क्योंकि इतिहास गवाह है कि गोरो के आने से बहुत पहले से ही अथवा हजारो साल पहले से ही कई कबिलई देशो से घुमकड़ कबिलई इस स्थिर कृषी प्रधान देश में ऐसे समाते जाते रहे हैं,जैसे स्थिर सागर में अनगिनत नदी नाले समाते हैं|नदी उन्हे मान लिया जाय जिन्होने इस देश को कोई नुकसान नही किया और नाला उसे मान लिया जाय जो इस देश को हजारो सालो से लुटकर काफी नुकसान किए हैं|जैसे कि गोरो ने दो सौ सालो से भी अधिक समय तक इस देश को लुटा|और गोरो से अजादी मिलने के बाद आजतक भी इस देश में गरिबी भुखमरी और बदहाली कायम रहना वर्तमान का मुल कारन जैसा कि मैने पहले भी बतलाया इस देश में छुवा छुत उच्च निच जैसे भारी भेदभाव कायम अब भी रहना मानता हुँ|जिसे यदि आरक्षण का विरोध करने वाले संवर्ण ठीक से समझ ले तो उनको अच्छी तरह से पता चल जायेगा कि आरक्षण किसलिए जरुरी होता है?

आरक्षण का विरोध कहीं खुदको सबसे अधिक talented अथवा प्रतिभावान,कौशल,बुद्धिमान,गुणवान,शक्तीमान क्षमता संपन्न मनुष्य अपडेट करने के लिए तो नही होता है?


Khoj123
आरक्षण का विरोध यदि खुदको सबसे अधिक talented अथवा प्रतिभावान,कौशल,बुद्धिमान,गुणवान,शक्तीमान क्षमता संपन्न मनुष्य अपडेट करने के लिए करते हैं तो पहले वे छुवा छुत जैसे भारी भेदभाव का जड़ को पुर्ण समाप्त करे,तब खुदको सबसे अधिक talented अथवा प्रतिभावान,कौशल,बुद्धिमान,गुणवान,शक्तीमान क्षमता संपन्न मनुष्य घोषित करे|क्योंकि आरक्षण पानेवालो के पुर्वजो ने इस देश को कृषी प्रधान घोषित करने की talent को हजारो साल पहले ही सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती का स्थापना करके अपने हजारो विकसित हुनरो का भी प्रयोगिक प्रमाण दे दिया है,जिसे संवर्ण द्वारा भारी भेदभाव की मनुस्मृती व्यवस्था करके हजारो शुद्र जातियो के रुप में पहचान दे दिया गया है|जिस हजारो हुनरो की असली पहचान दरसल किसी विकसित गणतंत्र की पहचान होती है,जिससे की विकसित सभ्यता संस्कृती की नीव पड़ती है|जिसे कमजोर करने के लिए हजारो हुनरो को हजारो शुद्र जाती के रुप में बांटकर संवर्णो ने खुदको जन्म से ही उच्च घोषित किया हुआ है|जिसकी बोर्ड भी लगाई जाती है आज भी कहीं कहीं पुजा स्थलो के बाहर कि अंदर शुद्रो का प्रवेश मना है|1901 जनगणा के अनुसार भारत में 2000 जातीयाँ मौजुद है|हिंदू धर्म को चार वर्णो में समाजिक विभाजन किया गया है,ब्रह्मण,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र|बहुत से विद्वानो का मत है कि वर्ण व्यवस्था सुरु में कर्म पर अधारित था जो कि बाद में जन्म पर अधारित हो गया है|यानि कर्म पर जब वर्ण व्यवस्था अधारित रहा होगा उस समय जैसा कर्म वैसा फल के आधार पर हुआ होगा जो कि आज भी प्रयोगिक हुनर के आधार पर डॉक्टर का कर्म करने वालो को डॉक्टर और सेना कार्य करने वालो को सैनिक और शिक्षण कार्य करने वालो को शिक्षक और व्यापार कार्य करने वालो को व्यापारी कहा जाता है|और अपराध कार्य करने वालो को अपराधी कहा जाता है|जिस तरह कि डिग्री यदि कर्म के आधार पर दी जाती रही होगी मनुस्मृती रचणा करने से पहले तक,तब तो इस देश के मुलनिवासियो ने हजारो साल पहले ही उस समय ही वर्तमान 21वीं सदी का अपडेट कर्म के आधार का जिवनशैली को अपनाकर जी रहे होंगे जब खुदको आर्य अथवा उत्तम कहने वाली आज के समय की उच्च जाती माने जाने वाले लोगो के पुर्वज जब इस कृषी प्रधान देश में प्रवेश भी नही किए होंगे,और न ही कृषी सभ्यता संस्कृती के बारे में उन्हे कुछ हजारो हुनरो की सुझ बुझ होगी|जिस समय हजारो साल पहले भी इस अखंड देश में आधुनिक सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती व्यवस्था कर्म पर अधारित थी,जैसे कि आज आधुनिक समाज पर कर्म पर ही ज्यादे फोकस किया जाता है|कहीं भी रोजगार अर्जी करते समय कर्म के आधार पर ही उससे उसकी खास हुनर के बारे में जानकारी मांगी जाती है|जिसे ही हजारो साल पहले ही इस कृषी प्रधान देश में आधुनिक गणतंत्र व्यवस्था के रुप से पहचाना जाता है|जो कि इस देश में कथित आर्यो के प्रवेश से पहले ही मौजुद थी|जो कि कर्म पर अधारित थी,जिसे विज्ञान और प्राकृत पर अधारित भी कहा जा सकता है|जैसे कि आज भी कहा जाता है इंसान की जैसी सोच और जैसी हुनर मौजुद होता है,वैसा ही कामो पर वह कामयाबी पाता है|तो क्या संवर्णो ने मनुस्मृती रचणा करके वर्ण व्यवस्था अपनी सोच के अनुसार छुवा छुत करके वर्ण व्यवस्था में खुदको उच्च जाती और बाकियो को निच अथवा शूद्र जाति का मांसिकता सोच रखकर ब्रह्मण पंडितगिरी अथवा जन्म से विद्वान बनने वीर क्षत्रिय रक्षक बनने और धन्ना वैश्य धनवान बनने का लक्ष को सचमुच में बाहर भितर दोनो से भी हासिल कर लिया है? क्योंकि मुझे नही लगता की कर्म के आधार पर यदि फिर से इस देश का प्रयोगिक विकाश पहिया वापस घुम जाय तो मनुस्मृती सोच वालो को विद्वान पंडित और शोषन अत्याचार करने वालो को वीर रक्षक की डिग्री मिल जायेगी|और यदि आर्य सचमुच में बाहर से आए और अपने फायदे और सोच अनुसार कर्म व्यवस्था को जन्म व्यवस्था बनाकर खुदको जन्म से उच्च मानकर और इस देश के मुलवासियो को निच घोषित करके मनुस्मृती रचना करके उसे भगवान का भेजा गया संविधान कहकर खुदकी पुजा और सेवा कराने के लिए मनुस्मृती लागू करके यदि दुसरे कि हक अधिकारो को छिनकर उसपर कब्जा किये होंगे तो मुझे नही लगता कि संवर्णो को इस हरकत को करने के बाद सबसे धनवान अथवा वैश्य का भी डिग्री मिलेगा कर्म के आधार पर|जैसे कि सायद कुबेर को भी कर्म के आधार पर सोने की लंका को छिनकर धन्ना कुबेर का डिग्री सत्य कर्म के आधार पर कभी नही मिलेगा|क्योंकि सोने की लंका तो लंका के उन रक्षको की थी जिन्हे सोने की बर्तन में इंसानो को खाने वाला राक्षस कहकर उनसे लंका छिन लिया गया था|जिसके चलते माली सुमाली और माल्यवान को अपनी सोने कि लंका गवानी पड़ी थी| जिसे बाद में माली सुमाली और माल्यवान के नाती रावण ने मानो इस विचार के साथ कि हक अधिकार मांगने से नही छिनने से मिलता है रणनीति अपनाकर छिनी गई लंका को दुबारा से हासिल कर लिया था धन्ना कुबेर से जोर जबरजस्ती छिनकर!जैसे कि मेरे ख्याल से गोरो से भी अजादी छिनी गई है,क्योंकि मांगने पर तो गोरे डंडे भी बरसाते थे और गोलियाँ भी चलवाते थे,जैसे कि जालियावाला बाग में गोली चली थी|जिस समय कि शोषन सोच अनुसार न्याय करने का न्यायालय बनाकर उसपर जज बनकर अजादी कि मांग करने वालो को गोरे फांसी पर भी चड़ाते थे|जिस तरह कि हरकत करके किसी इंसान ही नही कई कई देशो को लुटने वाले गोरो को कर्म के आधार पर क्या धनवान कहा जाता यदि उन्हे कई देशो को गुलाम करके दुसरो का धन को लुटपाट करके धनवान बनने पर सबसे धनवान होने का प्रमाण दिया जाता?उसी तरह से यदि संवर्ण लोग कर्म के आधार पर ये साबित हो जाय कि उन्होने दुसरो की भुमि पर कब्जा करके धनवान बने हैं,तो क्या संवर्णो को धन्ना वैश्य अथवा धनवान का डिग्री मिल जायेगी कर्म के आधार पर?जिसके बाद यदि इस देश के मुलवासियो को निच दर्जा अपने लाभ और मनुस्मृती बुद्धी के हिसाब से शूद्र का दर्जा दिया है,जिसका समय का पहिया घुमकर कर्म के हिसाब से इस देश के मुलवासियो को क्या इस देश में हजारो हुनर के कर्म के आधार पर विकसित स्थिर कृषी प्रधान देश पर गणतंत्र व्यवस्था और ग्राम पंचायत कायम करने के लिये निच और अपराधी का डिग्री मिलेगी क्या?जाहिर है यदि वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधार पर यदि पहिया उल्टा घुम जाय तो फिर आज भी अपने सर से मानो ताज खोकर शूद्र कहलाकर शोषन अत्याचार हजारो सालो से झेलते हुए सर में मैला तक ढोने का कार्य पिड़ि दर पिड़ि करते आने वालो को कोई अपराध करने वाला अपराधी नही बल्कि मनुस्मृती की रचना करके छुवा छुत संविधान मनुस्मृती लागु करके हजारो सालो से भारी भेदभाव करने वालो को ही कर्म के अधार पर अपराधी माना जायेगा यदि समय का पहिया वापस कर्म के आधार पर आ जाय जन्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था को समाप्त करके छुवा छुत से पुरी अजादी मिलकर|जो जबतक पुर्ण अजादी नही मिलेगी तबतक जन्म से वर्ण व्यवस्था कायम रहेगी और छुवा छुत भी कायम रहेगी चाहे जितनी तरक्की कर ले ये देश!जैसे कि अमेरिका जापान इंगलैंड आदि देशो में भी सबसे आधुनिक विकसत और अमिर देश कहलाते हुए भी वहाँ पर भी अस्पृश्यता अथवा  untouchability जड़ से समाप्त नही हुई है|सबसे विकसित संपन्न देशो में अमेरिका को भी माना जाता है,पर वहाँ पर भी गोरा काला का जंग आये दिन चलती ही रहती है|आज इस कृषी प्रधान देश में वर्तमान की सरकार सफाई अभियान बाहरी मन की बात करके चला रही है जहाँ पर छुवा छुत की गंदगी मनुस्मृती सोच के लोगो पर उनके भितर मौजुद है|जिसके चलते मनुस्मृती मांसिकता की वर्ण व्यवस्था अनुसार सेवा करने वाले और सफाई करने वाले शूद्र माने जाते हैं|और दुसरो का हक अधिकारो को छिनकर उसपर कब्जा करके मनुस्मृती की रचना करके शोषन अत्याचार करने वाले खुदको जन्म से ही उच्च माने जाते हैं|उच्च निच की भावना आज भी वैसे तो कई विद्वानो द्वारा ये कहा जाता है कि समय के साथ उच्च निच की भावना में परिवर्तन आया है,और आज लोग धन को सबसे उच्च मानकर लोगो को पैसो से ज्यादे आकी जा रही है,जो भी पुरी तरह से सत्य नही है,क्योंकि यदि यह सत्य होती तो मायावती इतनी अमिर बनने के बाद शूद्र की बेटी नही कहलाती और बार बार उसे ये नही सुननी पड़ती कि मायावती नोटो का माला पहनती है|जो कि आज उस बहुजन समाज पार्टी का नेतृत्व कर रही है,जिसकी स्थापना कषी प्रधान देश में 85% जो अबादी बहुजनो की है उनके हक अधिकारो को प्राप्त करने कि लक्ष साधकर की गई थी|जिसे भारी भेदभाव का शिकार होने वाला एकलव्य का लक्ष कहा जाय तो गलत नही होगा यदि ये सत्य मान लिया जाय कि इस कृषी प्रधान देश में 15 % कथित उच्च जाती जिसमे ब्राह्मण जाती 3.5%और क्षत्रिय जाती 5.56% व वैश्य जाती के 6% ने यहां के 85%मूल निवासी बहुजन समाज जो चाहे इस समय जिस धर्म में मौजुद हो,उनको उनके मुल हक अधिकारो से वंचित किया हुआ है|और अपने मूल हक अधिकारो से वंचित लोग चाहे जिस धर्म में जाय अपना धर्म परिवर्तन करके उनके पुर्वजो की डीएनए और इतिहास नही बदलती है|जिनके साथ शोषन अत्याचार बहुत पहले से ही भारी भेदभाव करके लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो सहित तमाम संसाधनो पर उचित भागिदारी से वंचित किया गया है|समाजिक,शैक्षनिक सहित तमाम आधुनिक विकसित की गई क्षेत्रो में निचे दबाकर विकसित मांसिकता का ढोंग पाखंड मनुस्मृती रचना का भारी भेदभाव अपडेट करना अब भी जारी है|भले क्यों न बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा में अपडेट होकर अब संवर्णो को भी बहुजन समाज पार्टी में भागीदारी देकर बहुजन समाज पार्टी का चुनाव लड़ते समय भी भारी संख्या में कथित उच्ची जाती को टिकट दिया जा रहा है,और उन्हे फिर से बड़े बड़े पदो पर मान सम्मान देकर बिठाया भी जा रहा है|जिस बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा कभी तीलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार का नारा देकर 85% बहुजन समाज के लोगो की हक अधिकार को 85% लोगो की वोट से भारी बहुमत की बहुजन सत्ता कायम करके हासिल करने की थी|जो अब 100% लोगो की वोट से हासिल करने की लक्ष हो गई है|जिसके अलावे भी इस देश में कई ऐसे उदाहरन भरे पड़े हैं,जिसमे की भारी भेदभाव का सामना का शिकार आज भी कई पार्टियाँ और पार्टी के खास पहचान वाले नेता हो रहे हैं|जिसमे एक शोषित पिड़ित नागरिक लालू भी एक है,जिसके पास भी आज अमिरी मौजुद है,पर उसे भी बार बार पशु का चारा चुराकर खानेवाला चाराचोर कहकर यू ही नही मामला गर्म होता रहता है|क्योंकि संवर्ण दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम होकर पुरी अजादी संघर्ष जारी है उन लोगो कि जिन्होने अपने जिवन में चाहे दोषी के रुप में या फिर निर्दोश के रुप में न्याय और सजा मिलने में भी भारी भेदभाव का सामना किया है|जो मामला वैसे तो गर्म बहुत समय से होता चला जा रहा है,पर गोरो से अजादी मिलने से पहले जब गोरो के शासन में 1932 ई० में पुना पैक्ट के बाद अस्पृश्य जाती वर्ग का पहचान करके उच्च निच लिस्ट बनाया गया था,जिसके आधार पर 341 अनुसूचित जाती और 342 अनुसूचित जाती घोषित किया गया था जो आगे चलकर 1935 के सरकार अधिनियम लागू हो गया था|जो पूना पैक्ट ही सरकारी नौकरियो में आरक्षण का आधार बना है|जो पूना पैक्ट के नाम से इसलिए जाना जाता है,क्योंकि पैक्ट समझौता बाबा अंबेडकर और गाँधी के बिच पुना में तब तय हुआ था जब गाँधी ने बाबा अंबेडकर की मांग के खिलाफ जेल में अनशन सुरु कर दिया था|क्योंकि बाबा अंबेडकर ने गोरो से पुर्ण अजादी के साथ संवर्णो के द्वारा दी जा रही भारी भेदभाव से भी अजादी मांग करते हुए इस देश के मुलवासियो के साथ जो संवर्ण लंबे समय से करते आ रहे हैं उनकी शोषन अत्याचार से अजादी पाने के लिए 85% लोगो के लिए अलग से निर्वाचन कराने का मांग कर दिया था|जिस मांग के खिलाफ गाँधी ने जब अनशन किया और जेल में उसकी हालत भुख से गंभीर हो गई है ये बाते कही जाने लगी, जिससे कि बुढ़ापा हालत में अनशन पर उसकी जिवन को खतरा को देखते हुए गाँधी की पत्नी बाबा अंबेडकर के पास गई और गाँधी के जिवन के लिए बाबा अंबेडकर को अपनी पीड़ा सुनाई,जिसे सुनकर बाबा अंबेडकर ने अपने हजारो सालो की भारी भेदभाव जख्म की पीड़ा को सहकर गाँधी से पूना में एक समझौता किया और तब जाकर गाँधी को अँग्रेजो द्वारा कैद किए गए जेल में भी जान में जान आयी|हलांकि बाद में अँग्रेजो से अजादी मिलने के बाद गाँधी की जिवन को सबसे खतरा अनसन और अंबेडकर से नही बल्कि किसी संवर्ण द्वारा गाँधी की हत्या करने से हुआ था ये इतिहास भी दर्ज हो गई है|जिन संवर्णो के लिए गाँधी ने बाबा अंबेडकर के खिलाफ जेल में अनशन करके पुना में बाबा अंबेडकर के साथ समझौता किया था|जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है|जिसके अनुसार ही आज सरकारी आरक्षण लागू है|जो आरक्षण यदि उच्च निच के आधार पर हुआ है तो निश्चित तौर पर आरक्षण तभी समाप्त होगा जब कथित उच्च निच के बिच भारी भेदभाव से पुरी अजादी का समझौता होगा|जिसके अनुसार संवर्णो को पुरी तरह से छुवा छुत करना छोड़ना होगा,जैसे की देश को गोरो से पुर्ण अजाद घोषित करने के लिए गोरो द्वारा देश छोड़ना पड़ा था|संवर्णो को तो सिर्फ छुवा छुत करना छोड़ना है,पर वह भी वे उसे भी अबतक हजारो साल बाद भी पुरी तरह से नही छोड़ पा रहे हैं|और आज भी देश में भष्म मनुस्मृती का छुवा छूत भूत चारो तरफ ग्राम और. शहर दोनो जगह ही मंडराना जारी है|जिससे ही तो पुर्ण अजादी पाने के लिए सायद गाँधी ने भी कोशिष किया था अपने ही संवर्ण बिरादरी के लोगो को ये जताते हुए कि वे भी अपने सर में मैला ढोकर अपना मल मूत्र खुद ही साफ करे,जैसे की गाँधी भी कभी कभी अपना मल मूत्र साफ किया करते थे|जो शोषित बस्तियो में जाकर मल मूत्र ढोने की प्रथा को आगे भी जारी रखने के लिए शोषितो का अपने अनुसार हौसला बड़ाते थे|जो मेरे ख्याल से उन्हे सर में मैला ढोने की प्रथा को अपडेट करने से अच्छा था कि सर में मैला ढोने की प्रथा को सरकारी नौकरी घोषित करके उसपर किसी डॉक्टर इंजिनियर की तनख्वा और उचित प्रतिशत में आरक्षण तय करके मल मूत्र की सफाई करने वाले उम्मिदवारो की रोजगार बहाली की जाती|जो न होकर अब भी शोषित पिड़ित को ही मानो मौत का जहरिली कुँवा में उतरकर मल मुत्र की सफाई बिना कोई खास सुरक्षा इंतजाम के लगाया गया है|मानो मनुस्मृती सोच ही अपडेट हुई है|जिसके चलते कितने संवर्ण अपनी अध्यात्मिक सुख पाने के लिए अपने सर में मैला ढोते हैं,इसके बारे में जानकारी पता करके कोई भी ये अच्छी तरह से जान सकता है कि सर में मैला ढोने की प्रथा को मनुस्मृती सोच अनुसार ही किस तरह से अपडेट किया गया है|जिस तरह की भारी भेदभाव सोच से पुर्ण अजादी दिलाने लिए मुझे नही लगता कभी ऐसा समझौता होगा जिससे की संवर्ण पुर्ण रुप से भारी भेदभाव करना छोड़ देंगे,जबतक कि मनुस्मृती सोच एक भी कथित उच्च जाती के लोगो के भितर छुवा छुत की गंदगी के रुप में मौजुद रहेगी|जिसका कोई भी डॉक्टरी और प्राकृतिक इलाज नही है भले क्यों न गंदगी से होनेवाली तरह तरह की बिमारी का इलाज मौजुद है|पर भितर से ही छुवा छुत करने वाली गंदी का पुर्ण इलाज नही है बजाय इसके कि छुवा छुत करने वाला इंसान खुद ही अपने भितर से भष्म मनुस्मृती का भुत को बाहर निकालकर फैंक दे|जो भष्म मनुस्मृती भूत जबतक एक भी संवर्ण के भितर मौजुद रहेगी तबतक देश ही नही बल्कि पुरे विश्व में ही क्यों न सफाई योजना चलाये वर्तमान की सरकार खुदको विश्व की सबसे बड़ी पार्टी घोषित करके,जबतक एक भी संवर्णो के भितर छुवा छुत की गंदगी मौजुद रहेगी तबतक स्वच्छ भारत भी नही होगा और विश्व में भी भारी भेदभाव से मुक्ती का ज्ञान ठीक से नही बटेगा| क्योंकि ऐसी छुवा छुत की गंदगी में कैद होकर ये विश्वगुरु कहलाने वाला कृषी प्रधान देश पुरे विश्व को ऐसी हालत में कैसे वह ज्ञान ठीक से बांट सकता है,जब इस देश के मुलवासियो का ही मुल हक अधिकारो को छिनकर उनके साथ लंबे समय से छुवा छुत किया जा रहा है?

गर्मी के मौसम में उगने वाले ये केंद फल जीवन अमृत है और उसी फल का केंदू पत्ता का इस्तेमाल करके हर साल मौत का बरसात लाई जा रही है


Khoj123
तंबाकू धुम्रपान निषेध दिवस सरकार पुरे देश में मनाती है, और साथ साथ जनता भी मनाती है|
पर फिर भी सरकार बिड़ी सिगरेट का उद्योग को आसानी से ही लाईसेंश दे देती है|जिसमे बनने वाले बिड़ी सिगरेट को पीकर हर साल लाखो लोगो की मौत मुँह का कैंसर अथवा ओरल कैंसर की वजह से हो जाती है|क्योंकि नशा से देश की जीडीपी तो बड़ती है,पर जिवन की जीडीपी घटती है|जिसकी वजह से एक रिपोर्ट के अनुसार सेहत को छोड़कर पैसे को ज्यादे महत्व देते हुए 2010 में 605 अरब बिड़ीयाँ बनाई गई थी|जिसे खपाने के लिए भारत में जो साठ प्रतिशत से भी अधिक युवा हैं,जिसके चलते इस देश को युवा देश कहा जाता है,जिसकी वोट की ताकत किसी भी सरकार को बना और बिगाड़ सकता है,उस युवा को ही नशे कि लत देकर खुब सारा धन बिड़ी सिगरेट बेचकर मुठिभर लोगो के द्वारा कमाया जा रहा है|वह युवा सबसे अधिक बुढ़ापा का शिकार बीड़ी सिगरेट तंबाकू से ही हो रहा है|जिसकी मौत भी इसी की वजह से सबसे अधिक हो रही है|जिसके बारे में सिर्फ यह जानकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत का युवा किस तरह से नशे की जंजिरो में कैद होकर धिरे धिरे जवानी में ही बुढ़ापा का शिकार बनते जा रहा है|एक रिपोर्ट के अनुसार नशे की वजह से  35 साल से कम उम्र के लोगो की मौत भारत में 1910 से 2010 तक दस करोड़ से अधिक हो चुकि है|जितनी जनसंख्या अरब यूरोप के कई देशो को मिलाकर भी नही होगी उतनी अबादी भारत में बिड़ी सिगरेट पिकर मौत का शिकार होते जा रही है|जिस तरह की नशे से हुई मौते को रोकने के लिए माता पिता से लेकर सरकार भी युवा बुजुर्ग सभी नागरिको को सलाह देते हैं नशा मुक्त की पर ये भुल जाते हैं कि नशे में क्या युवा र्या बुजुर्ग,क्या सेवक सरकार क्या जनता मालिक अथवा नागरिक,सभी क्षेत्र में नशा कि संक्रमण हो चुका है|क्योंकि माता पिता भी पहले बच्चे थे और सरकार भी कभी वोट मांगने वाला उम्मीदवार और नागरिक!जिसके चलते जिस तरह सरकार द्वारा नशा मुक्त सरकारी मोहर मारकर तेंदु पत्ता बेचवाकर और पिड़ी पिलवाकर कैंसर से लाखो लोगो को मौत देकर गरिबी हटाओ आधुनिक भारत हो गया था,उसी तरह अब बिड़ी सिगरेट कुटिर और लघु उद्योग सरकारी मोहर लगार बिड़ी छोड़वाकर अब सिगरेट अपनवाकर डीजिटल इंडिया अपडेट हो गया है|क्योंकि विकाश तेजी से हो रहा है,जो कि आधुनिक भारत का गरिबी दुर होते ही अब बहुत से नागरिक और सरकार के बहुत से नेता समेत देश के बहुत से माता पिता बच्चे बुढ़े  बिड़ी पिना छोड़कर डीजिटल सिगरेट पिने लगे हैं|हलांकि जो लोग गरिब हैं वे अब भी आधुनिक भारत की बीड़ी ही पिते हैं|पर जो थोड़ा अमिर हो जाते हैं तो बिड़ी पिना छोड़कर डीजिटल सिगरेट अपडेट करते हैं|हलांकि साथ साथ सरकार और नागरिक माता पिता और बच्चे सभी मिल जुलकर एक दुसरे की मदत से मन में तसली के लिए नशा मुक्त का अभियान भी चलता रहता है|यदि माता पिता बिड़ी सिगरेट पिते हैं,तो बच्चे सिखलाते हैं अपने माता पिता को की बिड़ी पिना सेहत के लिए हानिकारक है|जिससे दुसरो को भी नुकसान पहुँचता है| और सरकारी सेवक यदि बिड़ी सिगरेट की लाईसेंस देते हैं, और खुद भी पिते हैं तो उसे देखकर सरकार को नागरिक ये बात सिखलाते हैं कि बिड़ी सिगरेट बेचने की कुटिर और लघु उद्योग को लाईसेंस देकर और बिड़ी सिगरेट पिलवाकर और युवा बुजुर्ग सभी को नशे की लत में लगवाकर देश नशे में डुब सकता है|और लाखो करोड़ो लोग अबतक तो मर ही चूके हैं बिड़ी सिगरेट पी पीकर,पर आगे भी लाखो लोग असमय ही बीड़ि सिगरेट पिकर मर सकते हैं|जो बाते सरकार भी जानती है और जनता भी जानती है|लेकिन जान बुझकर बिड़ी सिगरेट का व्यापार उद्योग लगाना जारी है|और उसमे मानो बँधुवा मजदूर लगाकर कुछ लोग तो बिड़ी सिगरेट पिलवाकर खुब सारा धन तो कमा रहे हैं,जिससे कि वे धन्ना कुबेर बन रहे हैं,पर ज्यादेतर लोग बिड़ी सिगरेट बनाने की उद्योग में काम करके दो वक्त की अन्न रोटी का जुगाड़ तो किसी तरह से हो रहा है, पर इससे लाखो करोड़ो लोगो की बिड़ी सिगरेट पिलाकर मौत की भी जुगाड़ हो रहा है|जबकि मेरे ख्याल से बिड़ी सिगरेट के अलावे अन्य भी बहुत सारे रास्ते हैं अन्न रोटी के लिए धन कमाने की,जिसके जरिये सरकार भी अमिर बन सकती है,जिससे कि ये देश गरिब देश से अमिर देशो कि लिस्ट में आ जाय,और जनता भी सिर्फ मुठिभर लोगो के अमिर बनने के बजाय ज्यादेतर लोग अमिर बन सकते हैं|वह भी बिना बिड़ी सिगरेट बेचे कोई दुसरा अच्छा सा धँधा जिससे की देश और जनता स्वस्थ के साथ साथ आर्थिक रुप से भी ताकतवर हो सकता है उसे अपनाकर|पर देश की सरकार और जनता का बिड़ी सिगरेट बल्कि अन्य भी नशे का व्यापार करके मौत का ही विकाश तेजी से हो रहा है|जिस विकाश को रोकने के लिए यदि नागरिक बिड़ी सिगरेट पिना नही छोड़ता है,तो सरकार नशा मुक्त की सलाह के साथ किस गुरु घंटाल से सरकार ये सिखकर आती है कि नशे की व्यापार से जीडीपी जल्दी जल्दी बड़ाई जा सकती है|और इसकी वजह से सरकार नशा मुक्त के साथ साथ बिड़ी सिगरेट का उद्योग लाईसेंस भी देती है|और साथ में जनता को नशा मुक्त का सलाह भी देती है|जिस सरकार को मैं नशा मुक्त का समर्थन करने वाली जनता की ओर से सरकार को ही सलाह देना चाहुँगा कि जिस तरह स्कूल में शिक्षक कागज पेन के बजाय बम बारुद और हथियार से लैश होकर छात्र को सही से ज्ञान नही बांट सकते,उसी तरह ये सरकार भी नशा मुक्त ज्ञान बिड़ी सिगरेट उद्योग की लाईसेंस से लैश होकर नशा मुक्त का प्रवचन काम ठीक से नही करेगी|इसलिए पहले जरुरी है कि नशा मुक्त करने के लिए सरकार पहले सारे बिड़ी सिगरेट उद्योग को बंद करें यह निश्चित होकर की नोटबंदी से ज्यादे विरोध नशा उद्योग की बंदी से नही होगा|क्योंकि देश और दुनियाँ में ज्यादेतर लोग नशा मुक्त का समर्थक हैं,और बहुत कम लोग ही इसका समर्थन करके रोज बिड़ि सिगरेट पियो और खुलकर जियो प्रचार करके लाखो करोड़ो लोगो को मौत का ज्ञान खुब सारा धन लेकर प्रचार द्वारा बांट रहे हैं|हलांकि मैं ये जरुर मानता हुँ कि बिड़ी सिगरेट की उद्योग बंद होने से लाखो लोगो कि रोजी रोटी प्रभावित होगी,पर वह तो वोट होने से भी लाखो करोड़ो लोगो कि रोजी रोटी प्रभावित होती है,पर क्या इस देश में  बारह माह वोट होना बंद हो जाता है?मेरी राय में तो जिस तरह नशा मुक्त होकर कोई परिवार अपने घर में सबसे अधिक सुख चैन की जिवन नशा युक्त के बजाय ज्यादे बल्कि बहुत ज्यादे बेहत्तर जिवन जी सकता है|उसी तरह देश को नशा में डुबोने वाली नशा देनेवाली उद्योगो को बंद करके ये देश परिवार ज्यादे सुख चैन से जी सकता है,जो अभी मानो नशा के सिवाय और कोई दुसरा रास्ता ही नही है पैसे कमाने कि यैसी डर जनता और सरकार दोनो में ही समाकर एक तरफ तो नशा फैक्ट्री को लाईसेंस देना भी चालू है और दुसरी तरफ नशा मुक्त का प्रवचन भी चालू है|लाखो करोड़ो लोगो को बिड़ी सिगरेट से धिमा मौत देना तो चैलू है ही पर जो लोग बिड़ी सिगरेट नही पिते उन्हे भी मानो जबरजस्ती बिड़ी सिगरेट की धुँवा सुँघाया जा रहा है|मानो ये कहते हुए कि वे बिड़ि सिगरेट पियेंगे तो ही जियेंगे पर बाकि लोग जिनकी अबादी सबसे अधिक है,जैसे कि हर घर परिवार में यदि पाँच सात सदस्य रहता है तो उसमे से ज्यादेतर परिवारो में सिर्फ एक दो लोग ही बीड़ि सिगरेट पिते हैं,जिन्हे भी हर रोज ज्यादेतर घर से बाहर ही बिड़ी सिगरेट पिने की लत ज्यादे होती है,जो लोग ही मानो हर रोज बिड़ी पिते समय बाकि लोगो को ये कहते हो कि इसकी धुँवा को सिर्फ सुंघने से बाकि लोग मर नही जायेंगे!जबकि हमे पता है कि बिड़ी सिगरेट पिनेवालो के साथ साथ उसकी धुवाँ को सुँघने वालो की भी मौत हो सकती है बिड़ि सिगरेट का धुँवा रोज रोज सुँघकर|और जैसा कि हमे पता है सुँघने वालो की तादार ज्यादा है देश में,फिर क्या बिड़ी सिगरेट का उद्योग सिर्फ इसलिये चालू रखा गया है कि कम लोग बिड़ी सिगरेट पि पिकर और पिला पिलाकर अपना जिवन बेहत्तर बना सके और ज्यादेतर लोग अपने जिवन को बिड़ी सिगरेट की धुँवा सुँघकर यह सोचकर उसे रोज सुँघते रहे की इससे देश की जीडीपी बड़ती है,इसलिए इसे चालू रखा जाय आधुनिक डीजिटल विकाश के लिए!खैर इस तरह की उलट पुलट जिन्दगी के साथ प्राकृती में भी उलट पुलट गुणो के साथ बहुत सारे खाने पिने के फल फुल साग सब्जी मौजुद है|जैसे कि एक फल अंगूर जो की बच्चे बुढ़े और जवान सभी का सेहत भी बनाता है,और वही अंगूर अंगूरी बनकर उसे अगर अंगुरी शराब के रुप में पीया जाय तो सेहत को खराब भी करता है!जिस तरह का एक जंगली फल के बारे में भी मैं थोड़ा बहुत विस्तार से बतलाना चाहुँगा ! जो फल वैसे तो बहुत से राज्यो के घने जंगलो में काफी मात्रा में उगता है, पर इसके फल और पत्ते ग्राम के साथ साथ शहरो में भी बहुत मंगाये जाते हैं|जिसका अभी चूँकि खास गर्मी का मौसम चल रहा है,क्योंकि उस फल का मौसम गर्मियो में ही आता है,इसलिए अभी वह फल बाजार में भारी मात्रा में उपलब्ध है|जिसे शहर के लोग भले कम खाते हो पर ग्राम में तो इसकी अभी बहार है|जिसे क्या बच्चे क्या बुढ़े जवान सभी चाव से खाते हैं|जिसमे गुण भी इतने सारे मौजुद है कि लगता ही नही है कि ये जो फल है उसका पत्ता से बनने वाली बिड़ी से लाखो लोग हर साल मौत का शिकार बनते हैं,और उसके फल से उससे कई गुना लोग सेहतमंद बनते हैं|जिस फल को कई नामो से दाना जाता है जिसे तेंदु,तेला,केंद,तिड़ैल,तिरील जैसे नामो से जाना जाता है|जो गर्मियो में फलता है और गर्मी में लू लगने से बचाता है|जो हल्का पीला रहता है और इसका स्वाद मीठा के साथ थोड़ा कशैला भी होता है|जिस फल के पकते समय उसके पत्ते लगभग झड़ जाते हैं और यह फल एक साथ इकठे मौजुद इतने सुंदर दिखते हैं डाल पर गोल गोल टमाटर के आकार में कि उसे देखकर कोई भी व्यक्ती जिसे कि ताजा फल पेड़ से खुद तोड़ या तोड़वाकर खाने की इच्छा बहुत होते रहती है वह ललचा सकता है|जिसका स्वाद मुझे तो इतना पसंद है कि इस फल का मौसम आते ही हमेशा पता करता रहता हुँ कि बाजार में वह फल आई है कि नही आई है?जो आते ही भले ही क्यों न कितना महंगा सुरु सुरु में बिकता है कम उपलब्ध की वजह से पर मैं कम ही मंगाकर पर जरुर इसे जल्दी से मानो इंतजार का फल मीठा होता है कहकर खरिद या खरिदवाकर खा लेता हुँ|जिस फल को बेचने वाले ज्यादेतर ग्रामीण लोग होते हैं,क्योंकि ये फल ज्यादेतर इस देश में उन्ही राज्यो में मिलती है जहाँ पर प्राकृतीक खनिज संपदा के साथ साथ प्राकृत वन संपदा भी भारी मात्रा में उपलब्ध है|यह फल वीर्य वर्धक भी है|इसमे बिटामीन  Abc तीनो ही प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है|फल चूँकि मीठा के साथ साथ थोड़ा कसैला भी होता है,इसलिए इसे ज्यादे मात्रा में खाने से मुँह कसैला हो जाता है|यह फल पाचन के लिये भी लाभ दायक है और स्कीन के लिए भी लाभ दायक है|क्योंकि इसमे पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है|इसमे एंटीऑक्सिडेंट भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है|जिसके चलते त्वाचा कोमल और जवान रहता है|साथ साथ दिल कि बिमारियो के लिए भी लाभ दायक होता है|और चूँकि इसमे कार्बोहाईड्रेड प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, इसलिए ताकत भी प्रदान करता है|जैसे की चावल ताकत प्रदान करता है,जिसकी गाड़ा से चाईना दिवार की मजबूती भी आजतक बरकरार है|इस केंद फल में फाईवर प्रचुर मात्रा में होने की वजह से कब्ज भी दुर होता है,और इस फल में पेट के किड़े भी दुर रहते हैं|इसे सुखाकर भी लंबे समय तक मेवा की तरह खाया जाता है|जो फल चूँकि ग्राम के स्थानीय बजारो से लेकर शहरो के बाजारो में भी उपलब्ध हो जाता है गर्मियो के दिनो में,जिसके चलते इसे ग्राम शहर दोनो ही जगह उसका स्वाद के दिवाने इसका इंतजार सालभर करते हैं|जिसके बाद ये सालोभर गायब रहता है|हाँ इस फल के पत्तो से बनने वाली बिड़ी सालोभर जरुर उपलब्ध रहती है|पर वह सेहत के लिए नही बल्कि सेहत खराब करने के लिए हमेशा मसाला भर भरकर धुम्रपान  सेवा में मौजुद रहती है|जाहिर है अबतक आप समझ ही चुके होंगे कि मैं किस खास फल की बात कर रहा हुँ|और यदि अबतक भी जिस किसी को समझ में न आया हो तो दुबारा मैं बतला देना चाहुँगा नाम से कि तेंदू पत्ता के नाम से मशहुर बिड़ी पत्ते का पेड़ में ही लगने वाले केंद फल का बात कर रहा हुँ,जो अभी गर्मियो का मौशम में लंबी जिवन की अमृत देगा और बरसात में उसी का पेड़ में उगने वाला तेंदू पत्ता मौत की बरसात लानेवाली बिड़ी देगी|जिसे पी पीकर हर साल लाखो लोगो की मौते हो जाती है|एक बुजूर्ग तो बिड़ी पिते पिते बिस्तर में ही मानो रेडियो में बिड़ी जलाईले फिल्मी गाना सुनते हुए बिड़ि पिते पिते बिड़ी जलाये ही उसे पिते पिते और गाना सुनते सुनते सो गया और उसकी बिड़ी ने उसे ही सुबह तक जला दिया|जिसके चलते सुबह उसकी अधजली शरिर को अस्पताल ले जाया गया पर उसकी जान नही बचाई जा सकी|हलांकि बीड़ि पि पिकर भी वह धिरे धिरे मौत को ही पी रहा था|जिसके चलते कुछ लोग तो ये भी कहकर बीड़ि सिगरेट पिते हैं कि मरना तो एकदिन सबको है,फिर पी पीकर क्यों नही मरा जाय|जिनको तो मैं जरुर कहना चाहुँगा कि स्वर्गवाशी होना तो एकदिन सभी को है फिर क्यों जिवनभर मंदिर मस्जिद और चर्च वगैरा जाकर स्वर्ग की कामना करते रहते हो,सिधे जिते जी एक झटके में आत्महत्या करके तुरंत स्वर्ग वाशी हो जाओ!हलांकि आत्महत्या करने कि सलाह तो मैं कोई जनवर और मछली मुर्गा को भी नही दुँगा जो की किसी इंसान के द्वारा भी रोज खाये जाते हैं|क्योंकि जब किसी की मौत भगवान के हाथ लिखी हुई रहती है तो फिर वह भगवान के कार्यो में दखल देकर आखिर क्यों आत्महत्या करे?जिसे बचना होगा बच जायेगा और मरना होगा मर जायेगा|उसकी हत्या करने वाला यदि गुनेहगार होगा तो जिते जी निचे तो उसे मौत सजा किसी के द्वारा मिल गई पर उपर सायद मरने के बाद स्वर्ग इनाम मिले!क्योंकि निचे धरती में जो जिवन चल रहा है उसमे सच्चाई तो यही है कि इंसान बोलता कुछ और है और उसके मन में होता कुछ और है|जिसके चलते बहुत से इंसानो के माता पिता अपने बच्चे को तो नशा मुक्त की सलाह देते रहते हैं,पर खुद छिप छिपकर नशा पिते रहते हैं|जैसे कि मैं रोजमरा जिवन में शाकाहारी के साथ नशा मुक्त जिवन भी जी रहा हुँ,पर मेरे पिता बचपन से जैसा कि मैं देखता आ रहा हुँ कि वे पहले नशा के आदि थे जिसके चलते माँ के साथ साथ मेरे नाना नानी दादा दादी और बाकि लोगो से भी उसकी अक्सर नशा करके लड़ाई होते रहती थी ये बात अपनी माँ से भी सुनता आ रहा हुँ और खुद भी अपनी आँखो से देखा व कानो से सुना हुँ|पर मेरे किशोर अवस्था की सुरुवात से लेकर अबतक उसकी नशा की आदतो में इतना सारा सुधार हो चुका है कि अब मैं उसे दारु पिता हुआ अंतिम बार कब देखा था अभी याद नही कर पा रहा हुँ|जिसका मुख्य कारन मेरे द्वारा उसे कई बार तो समझा बुझाकर भी और कई बार तो बकझप करके भी अब उसके दिमाक में नशा के प्रति इतना नफरत और घर में नशा मुक्त सदस्यो के प्रति प्रेम की भावना भर दिया हुँ कि वे अब जहाँ भी जाते हैं या कोई हमारे घर आता है,तो वे हमारे बारे में ही तारिफो का पुल बांधना सुरु कर देते हैं,कि हम सभी भाई शाकाहारी हैं,और कोई भी नशा नही करता है,सिर्फ मैं अब कभी कभार होली या मेहमान नवाजी वगैरा में दो बुंद नशा कर लिया करता हुँ कहकर बेवड़ो को थोड़ा बहुत मौका अब भी दे देते हैं|हलांकि मैने उसकी धुम्रपान की नशा को पुरी तरह से नही छुड़ा सका हुँ,जो कि निश्चित तौर पर उसे भी छुड़ा देता यदि वे रिटायर के बाद इधर उधर अपने कुछ नसेड़ी दोस्तो की बुरी संगत में आकर एकबार फिर से दुबारा से नशे की संक्रमण थोड़ी बहुत बुरी संगतो द्वारा कराकर इस बहाने को बार बार नही दोहराते कि मुँह का स्वाद के लिए कभी कभार इसे पी लेता हुँ|क्योंकि नशा करने वालो को भी ये अच्छी तरह से पता होता है कि दारु सिगरेट और बिड़ि का स्वाद मुँह का स्वाद देता है की मौत का स्वाद देता है|जिसका प्रयोगिक जवाब नशा करने वालो को तब मिल जाता है जब वे नशे कि वजह से कैंसर का शिकार हो जाते हैं|जिसकी सुरुवाती मुँह का कैंसर लक्षण मेरे पिताजी में भी मुँह में आना सुरु हो गया था पर जबसे वे नशा को न के बराबर करते हैं,तबसे अब वे सेहतमंद हैं|जिसके चलते अब वे दिनभर कुछ न कुछ इतना सारा खाते रहते हैं,खासकर सलाद वगैरा कि घर के कुछ सदस्य उसकी थाली के देखकर ये कहते हैं कि इतना ज्यादा उम्र में भी वे इतना सारा कैसे पचा लेते हैं?जिसके बारे में मैं तो सिधे तौर पर यही कहुँगा कि चूँकि वे अब लगभग नशा मुक्त हो गए हैं,जिसके चलते उसका शरिर अब इतना स्वस्थ है कि खाने पीने कि सारे चीजो की जायका को अच्छी तरह से स्वीकार रहा है|नही तो नशा करने वालो को तो अक्सर मैं महसुश किया हुँ कि मांसाहारी व्यंजन ही उन्हे ज्यादे पसंद आती है,जिसके चलते वे रोजमरा जिवन में अन्न रोटी के जगह बोटी की डिमांड अधिक करते रहते हैं|जिसके बगैर वे मानो चिड़चिड़े हो डाते हैं,और अक्सर साग सब्जी को देखकर ऐसा बर्ताव करते हैं,जैसे खाते पिते समय बिमार मरिज करते हैं|खैर सारांश में मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि नशा छोड़ना या छुड़वाना मेरे ख्याल से नशा करने और नशा छुड़वाने की ज्ञान बांटने वालो पर सबसे ज्यादा निर्भर करता है|जिसके चलते यदि कोई नशेड़ी ये ठान ले कि वह अब नशा नही करेगा तो वह उसे बिल्कूल से छोड़ सकता है,और यदि मन में ही उसका नशा करना बैठा हुआ है तो वह चाहे जितना किमती किमती दवा और नशा मुक्त ज्ञान बांटने वालो की संगत में रहे उसका नशा नही छुटेगा और वह नशा छुड़वाने वाला अस्पताल में भी ब्लेक में नशा मंगवाकर उसे दवा के साथ पियेगा|युवा नशेड़ी तो सायद नशा करके जबतक अपने मुँह का कैंसर कराकर अपने प्रेमी प्रेमिका को उसी कैंसर मुँह से नही चुमेगा या चुमवायेगा तबतक सायद उसे ये यहसाश नही होगा कि एकदिन नशा उसकी जिवन में कैसी बुरे बदलाव ला सकती है|जिसके चलते कई नशेड़ी तो नशे में दुर्घटना होने के साथ साथ आत्महत्या तक कर लेते हैं|जिस नशा से बलात्कार जैसी घटना होना आम बात है|बल्कि मुझे तो पुरा विश्वास है कि पुरी दुनियाँ में सबसे अधिक अपराध और बर्बादी नशे की वजह से ही हो रही है|चाहे वह शराब का नशा हो या फिर शबाब का नशा हो,बल्कि मैं तो कहुँगा यदि किसी को कबाब का भी नशा हो तो भी उसकी जिवन में बहुत कुछ गड़बड़ चलता रहता है|खासकर यदि वह कम पैसेवाला है तो मांस मछली की जुगाड़ न होने के चलते भले घर के बच्चे पैसे की कमी की वजह से ठीक से पढ़ न सके पर वह अपनी गरिबी को नशा में हावी होने नही देता है|जिसके कारन बच्चो की पढ़ाई खर्च और सेहतमंद साग सब्जी फल वगैरा का खर्च जितना धन वह नशापुर्ती के लिए खर्च कर देता है|जिस तरह की बुरे हालात बहुत से नशेड़ियो के जिवन में देखी जा सकती है|जोकिसी के द्वारा गरिब से अमिर बनकर भी नशा करना जारी रहता है|अंतर सिर्फ इतना रहता है कि नशे का अपडेट हो जाता है|देशी दारु के साथ सस्ता चना मिक्चर चखना अथवा गरिबी में कम किमत वाला देशी ज्यादे चलता है,और अमिरी में महंगी महंगी विदेशी बोतल के साथ मीट मुर्गा खस्सी वगैरा हावी हो जाता है|बल्कि कई बड़े बड़े होटलो में शराब कबाब के साथ साथ शबाब अथवा वैश्या भी परोसी जाती है,कई अलग तरह के नशेडियो को इसकी भी जानकारी खुब मिलती रहती है रोजमरा जिवन में|जिस तरह की अपडेट आधुनिक डीजिटल जिवन को देखकर तो यही लगता है कि शराब शबाब और कबाब ये तीनो ही तरह की नशा कभी समाप्त नही हो सकती है|जो बात बिल्कुल मुमकिन है ये मैं भी जरुर मानता हुँ|पर नशा को ऐसे नसेड़ियो के जिवन में अचार और चटनी की तरह यदि सिर्फ चाटा जाय तो धिरे धिरे  नसेड़ियो की जिवन से नशा जरुर समाप्त हो सकता है,बजाय इसके कि नशा उनकी जिवन को ही धिरे धिरे समाप्त कर रहा है|जिसे असमय समाप्त होने से रोका जा सकता है|खासकर यदि नशा को सिधे भोजन के रुप में न लेकर चटनी अचार के रुप में रोजमरा जिवन में कभी कभार ही चाटा जाय नशेड़ियो द्वारा तो भी नशामुक्त जिवन की तरह ही प्रयोगिक भारी बदलाव हो सकता है|नही तो फिर रोजमरा जिवन में नशेड़ियो के लिए नशा ही मानो वह ऐसा भोजन है,जिससे कि पेट भरा जाता है,और उसी भोजन की इंतजाम के लिये पुरी दुनियाँ हर रोज अपने घरो से बाहर निकलकर और कई तो घर बैठे ही धन कमाने में लग जाते हैं|जबकि नशेड़ी मेरे ख्याल से पीकर ही रोज नशा युक्त जिवन जीने के लिए ही ज्यादे कमाते हैं|क्योंकि मैने प्रयोगिक रुप से देखा है कई रिस्तेदारो के यहाँ मेहमान जाने पर कि वे भुखे मेहमानो को खाना नही नशा परोसते हैं|बल्कि मेरे यहाँ भी ऐसे कई लोग मेहमान के रुप में भी आए हैं जो कि सुबह सुबह दतवन अथवा बरस ही नशा से करते हैं,अथवा अपना दाँत मुँह साफ करते हैं नशा से|जो सुबह सुबह घर में चाय नास्ता भोजन वगैरा करने से पहले ही थोड़ा सा बाहर से घुमकर आते हैं कहकर सुबह सुबह कहीं से नशा करके घर आकर ही बरस दतवन वगैरा करते थे|क्या पता ऐसे लोग मल मुत्र भी शराब को हि निकालकर करते होंगे|जो यदि अपना नशे की लत को छोड़ दें तो उनको लगता होगा सायद मल मुत्र भी निकलना छोड़ दे|जिसके चलते उनकी प्राण पिच्छे से या फिर कैंसर आगे मुँह से निकल नही जाती तबतक नशा करना उनकी जिवन का सबसे महत्वपुर्ण हिस्सा माना जाता है|जो सोते,खाते,हगते,मुतते हर वक्त नशा को ही अपने जिवन का खास अंग बना लेते हैं|जिससे उनको अलग करना मानो उनके सबसे अधिक करिबि को उनसे अलग कर देना है|

रविवार, 6 मई 2018

गोरो से अजादी मिलने से पहले और बाद में भी अखंड सोने की चिड़ियाँ विश्वगुरु धर्म के नाम से कई टुकड़ों में बंटने से अच्छा होता कि..

Khoj123
गोरो से अजादी मिलने से पहले और बाद में भी अखंड सोने की चिड़ियाँ विश्वगुरु धर्म के नाम से कई टुकड़ों में बंटने से अच्छा होता कि,भारी भेदभाव करने वाले इस समय चाहे जिस धर्म में मौजुद हो,उनको ही अलग से स्थान देकर यह कृषी प्रधान देश सिर्फ दो अलग देश के रुप में खंड होती|दुसरा में भारी भेदभाव करने वाले रहते और पहला में हजारो सालो से भारी भेदभाव का शिकार होते आ रहे नागरिक चाहे इस समय जिस धर्म में मौजुद हो वे सभी भेदभाव से पुर्ण अजादी पाने के लिए उनसे अलग होकर रहते|बजाय इसके कि गोरो से अजादी के पहले और बाद भी धर्म के नाम से कई देश का बंटवारा होता|क्योंकि पुरी दुनियाँ के किसी भी देश में एक साथ इतने सारे धर्म एक जगह मौजुद नही है,जितना की धर्म के नाम से कई देश का बंटवारा एक ही अखंड सोने की चिड़ियाँ विश्वगुरु को करने के बावजुद भी सभी धर्म हिन्दुस्तान में मौजुद है|जहाँ पर अब भी मुठिभर लोग छुवा छुत भारी भेदभाव करने वाले भ्रष्ट शक्तियो द्वारा हजारो सालो से इस अखंड कृषी प्रधान देश के उन बहुसंख्यक मुलवासियो को दबाते आ रहे हैं,जिसकी झांकी तुलसीदास के एक श्लोक में मिलती है,जिसमे लिखा हुआ है "ढोल,गंवार,शूद्र,पशु नारी,शकल ताड़न के अधिकारी"जिसे पढ़कर कोई भी व्यक्ती जिनके पुर्वजो को शुद्र कहा गया है,भारी भेदभाव किया गया है,या फिर मदर इंडिया हो उसे समझ में आ जायेगा कि कौन लोग इस देश की मदर इंडिया और मुलवासी को ताड़ते हुए दबाते आ रहे हैं?जैसे कि अपनी मनुस्मृती मांसिकता से जन्म से उच्च घोषित करके दुसरो को निच घोषित करके ताड़कर हजारो सालो से छुवा छुत करना जारी है!जिस मनुस्मृती मांसिकता की वजह से ही मेरे ख्याल से अबतक इस देश में सबसे अधिक शोषन अत्याचार सबसे अधिक समय से होते आ रहा है|संवर्ण से मेरा मतलब पुरुष संवर्ण से है जो कि हजारो सालो से नारी और इस देश के मुलवासियो के साथ छुवा छुत भारी भेदभाव शोषन अत्याचार करते आ रहे हैं|जिनका डीएनए मदर इंडिया और फादर इंडिया से नही मिलता है,ये बात एक विश्वस्तरिय डीएनए रिपोर्ट में साबित हो चूका है|जो रिपोर्ट यदि सही नही होती तो फिर सायद भारी भेदभाव और छुवाछुत समाप्त होने की पुरी संभावना मौजुद थी,जो कि हजारो सालो कि छुवा छुत भारी भेदभाव इतिहास की झांकी के बारे में जानकर सौ प्रतिशत मैं ये दावे के साथ लिख सकता हुँ कि जिस तरह हाथी को चाहे जितना बोटी खिला खिलाकर उसके साथ मांसाहारी जिवन जिने की कोशिष करो वह मांसाहारी नही कहला सकता और भेड़िया को चाहे जितना चावल गेहूँ दुध दही खिलाओ वह शाकाहारी नही कहला सकता, उसी तरह संवर्णो से चाहे जितना उम्मीद करो कि ये लोग इस देश के मुलवासियो से छुवा छुत करना भारी भेदभाव करना छोड़ देंगे,ये सिर्फ गलतफेमी और झुठी उम्मीद ही होगी,जो कि हजारो सालो से इस देश के मुलवासियो के द्वारा की जा रही है|उससे तो अच्छा है चूँकि छुवा छुत करने वाले संवर्ण शुद्र को देव नही मानते हैं,जिसके चलते देव दास दासी बनाकर ताड़ते आ रहे हैं, इसलिए मेरे ख्याल से छुवा छुत करने वाले संवर्णो को अलग पाकिस्तान कि तरह अलग देवस्थान दे देना चाहिए था, जहाँ पर ये संवर्ण मनुस्मृती को संविधान बनाकर अपने छुवा छुत मांसिकता के साथ इंद्रदेव बनकर स्वर्ग की दुनियाँ धरती पर बसाकर खुद भी अपनी छुवा छुत मर्जी से जिये,और इस देश के शुद्र कहे गए मुलवासी भी चाहे जिस धर्म में मौजुद हो वे सभी आपस में मिल जुलकर बिना छुवा छुत और बिना भेदभाव के जिये|बल्कि इसके अलावे भी इस अखंड कृषी प्रधान देश में बाहर से आए चाहे कोई धर्म हो,जिसे सबसे बेहत्तर समझकर यदि इस देश के मुलवासी अपना धर्म परिवर्तन करके वहाँ भी छुवा छुत और भारी भेदभाव का शिकार हो रहे हैं,तो फिर मैं तो ये भी कहना जरुर चाहुँगा कि उस धर्म में भी यदि जो लोग भी छुवा छुत और भारी भेदभाव कर रहे हैं,उनको भी डीएनए जाँच कराके दुसरे डीएनए के छुवा छुत और भारी भेदभाव करने वाले लोग साबित  कराके, जो कि होंगे भी जैसे की संवर्ण पुरुष हैं,अथवा उन्हे भी अलग से भारी भेदभाव और छुवा छुत जिवन यापन करने के लिए अलग से स्थान छुवा छुत भारी भेदभाव करने वालो के साथ ही दे देना चाहिए|मेरा कहने का मतलब साफ है कि यदि एक ही सोने की चिड़ियाँ से अखंड आठ दस देश का बंटवारा होना ही था तो छुवा छुत और भारी भेदभाव करने वालो की डीएनए जाँच कराकर जिन भी लोगो की भी डीएनए मदर इंडिया और फादर इंडिया की डीएनए से नही मिलती है,उन्हे और छुवा छुत भारी भेदभाव करने वाले लोग चाहे इस समय जिस धर्म में मौजुद हो इस अखंड सोने की चिड़ियाँ देश कि नागरिकता लेकर,उन सबके लिए अलग से स्थान दे देना चाहिए था,न कि पाकिस्तान और बाकि आठ दस देशो का बंटवारा अखंड सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु से खंड खंड करके होना चाहिए था|क्योंकि पाकिस्तान बंगलादेश से अधिक मुस्लिम अभी भी भारत में ही मौजुद है,न कि पाकिस्तान बंग्लादेश में मौजुद हैं|और सायद बौद्ध जैन भी भारत में ही ज्यादे मौजुद होंगे न कि भारत से अलग हुए श्रीलंका बर्मा वगैरा में मौजुद होंगे|बल्कि मुझे पुरा विश्वास है कि अखंड सोने कि चिड़ियाँ को खंड खंड आठ दस टुकड़ो में करके इसी देश से खंड हुए कोई भी देश की वह जनता जो कि छुवा छुत भारी भेदभाव का शिकार लंबे समय से होते आ रहे हैं,और जिनका डीएनए अखंड मदर इंडिया फादर इंडिया की डीएनए से  मिलता है,जिनके पुर्वज एक ही अखंड सोने की चिड़ियाँ में रहते थे वे सभी अभी खंड खंड होकर उतनी सुख शांती और समृद्धी जिवन नही जि रहे होंगे एक दुसरे से अलग होकर जितने की सायद सभी इस समय यदि एकजुट होकर जीते तो ये देश सुख शांती और समृद्धी सोने कि चिड़ियाँ और विश्वगुरु को अबतक अपडेट करने में कामयाब भी हो जाता!पर सर्त है जैसा कि मैने अपने राय दिये है,जिसे मैं पुर्ण सत्य भी मानता हुँ कि यदि छुवा छुत भारी भेदभाव करने वाले चाहे जिस धर्म में मौजुद हो,और जिनका डीएनए इस देश के मुलवासी अखंड मदर इंडिया फादर इंडिया से नही मिलता है,उन सबको अलग स्थान देकर उनकी छुवा छुत शोषन अत्याचार की दुनियाँ बसाने के लिए अलग से एक ही देश दे दिया जाय जो कि सायद अभी जितना देश बंटा है,उतना भी बंटवारा करने की आवश्यकता नही पड़ेगी और न ही छुवा छुत भारी भेदभाव शोषन अत्याचार से पुर्ण अजादी पाने के लिए इतनी कठिन संघर्ष और कुर्बानी देनी पड़ेगी,वह भी किमती समय बर्बाद करके जिसे की उस सोने की चिड़ियाँ विश्वगुरु अपडेट करने में लगानी चाहिए थी हम सभी मुलवासियो को जिनके पुर्वजो ने कभी भी छुवा छुत और भारी भेदभाव कभी भी एक दुसरे के साथ नही किया है|और न ही किसी को गुलाम बनाकर भारी भेदभाव शोषन अत्याचार किया है|बल्कि विश्व के सारे देशो के मुलवासी जिन्होने भी कभी किसी के साथ भारी भेदभाव नही किया है,वे सभी भी यदि मेरे बातो से सहमत हो और साथ साथ मेरा वश चले तो इस देश का नेतृत्व करके विश्वगुरु अपडेट करके,पुरे विश्व में जो लोग भी भारी भेदभाव करके जिवन यापन करने को सबसे आधुनिक जिवन मानकर,आजतक भी भारी भेदभाव नही छोड़ पाये हैं,उन सबके लिए पुरे विश्व के सभी देशो के उन मुलवासियो से जो कि कभी भी किसी के साथ भारी भेदभाव नही किए हैं,उनसे आपसी सहमती बनाकर सारे भेदभाव करने वालो के लिए एक अलग से देश दे दिया जाता,जहाँ पर पुरे विश्व में कोने कोने में रह रहे जितने भी भारी भेदभाव करने वाले लोग रह रहे हैं,जो कि भारी भेदभाव करके जिवन यापन करने वाली जिवन को ही सबसे विकसित मांसिकता की जिवन बतलाकर आजतक भी भेदभाव करना नही छोड़े हैं,वे सभी आपस में मिल जुलकर भारी भेदभाव की जिवन जिते उन तमाम भेदभाव का शिकार हो रहे लोगो से अलग होकर जिनके पुर्वज और वे भी किसी के साथ भेदभाव  नही किए हैं|जाहिर है विश्व के कई देशो को गोरो की गुलामी से अजादी मिलना तो सिर्फ झांकी है,इस अखंड कृषी प्रधान विश्वगुरु और सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले देश को छुवा छुत भारी भेदभाव से पुरी अजादी मिलना अभी बाकी है|और चूँकि जिस तरह नदी नाले सागर में समाकर वापस जहाँ से जिस रुप में बहकर आए थे उसी रुप में नही जा सकते, उसी तरह इस हिंद सागर अखंड उत्तम कृषी प्रधान देश में जो भी छुवा छुत और भारी भेदभाव करने वाले समाये हुए हैं, वे गोरो कि तरह अलग होकर वापस नही जा सकते|क्योंकि वे इसी अखंड सोने की चिड़ियाँ विश्वगुरु में सायद अपना छुवा छुत और भारी भेदभाव मांसिकता का पुर्ण इलाज कराने के लिए मानो अंतिम उपाय तलाशते हुए इस हिंद सागर देश के आईसीयू में समा चुके हैं|जिनका इलाज हजारो सालो बाद भी अबतक क्यों नही हो सका है,उसका अपडेट मुल कारन जैसा कि मैने बतला दिया है कि हाथी और भेड़िया की प्रमुख जिवनशैली अलग अलग होती है,चाहे उसे जितना एक करने कि कोशिष करो|इससे अच्छा है दोनो को अपना अपना स्थान दे दिया जाय जहाँ पर वे अपनी तरह कि जिवनशैली जिसे वे कभी भी भितर से पुरी तरह से छोड़ नही सकते,वह खुशी खुशी जी सके|जैसे कि मनुस्मृती को संविधान बनाकर उसे लागू करके जिने में जिन्हे स्वर्ग की दुनियाँ धरती पर उतरने की अनुभूती होती है,तो उन्हे उनका अलग से स्वर्ग स्थान दे दिया जाय,न कि धर्म के नाम से अलग से पाक स्थान दे दिया जाय|जहाँ पर अब भी नपाक हत्या बलात्कार और हक अधिकारो की छिना झपटी होती आ रही है,जो कि पुरी दुनियाँ के देशो में हो रही है|क्योंकि इंसानो कि मांसिकता पाक स्थान से नही बल्कि कर्म से होती है|जैसा वह कर्म करता है,उसी तरह का उसकी पहचान बनती है|स्थान नपाक नही होती बल्कि कुकर्म करने वाले नपाक होते हैं|जैसे कि छुवा छुत भारी भेदभाव करने वालो की असली आधुनिक पहचान छुवा छुत करने वालो के हिसाब से मनुस्मृती सुख शांती और समृद्ध जिवन देनेवाला संविधान बनती है|मेरे लिए तो सबसे अधिक सुख शांती और समृद्धी जिवन छुवा छुत करने वालो से पुर्ण अजादी संघर्ष करने से अच्छा है कि अपडेट सोने की चिड़ियाँ करके,मनुस्मृती की अपनी दुनियाँ बसाने के लिए छुवा छुत करने वालो को अलग से पाकिस्तान के बजाय अलग से भेदभाव स्थान दे देनी चाहिए|क्योंकि ढोल,गंवार,शूद्र,पशु नारी,शकल ताड़न के अधिकारी श्लोक में ताड़ने की बाते जिन मुलवासियो के लिए भी कही गई है,वे खुदको छुवा छुत करने वालो से तड़वाते रहने और उससे अजादी का संघर्ष हजारो सालो से करते रहने के बजाय अच्छा होगा कि उनको खुदसे अलग कर देनी चाहिए|जैसे की गोरो को अलग अपनी विकसित दुनियाँ बसाने के लिए इस देश से अलग कर दिया गया|चूँकि गोरो कि अलग दुनियाँ पहले से ही बसी बसाई मौजुद थी|इसलिए भले मदर इंडिया और फादर इंडिया से छुवा छुत भारी भेदभाव करने वालो की डीएनए भी गोरो कि तरह नही मिलती है,पर वे गोरो की तरह बाहर जाना कभी भी स्वीकार नही करेंगे|क्योंकि जैसा कि मैने इससे पहले बतलाया कि सागर में मिले नदी नाले जिस तरह वापस जहाँ से आये थे वहाँ पर उसी रुप में नही जा सकते उसी तरह इस विशाल सागर देश अखंड सोने कि चिड़ियाँ विश्वगुरु में समाकर वापस उसी रुप में नही जा सकते जिस छुवा छुत रुप में जज्ब हुए हैं|बजाय इसके कि एक अलग स्थान देकर उन्हे अपनी छुवा छुत भारी भेदभाव का लहर मारने दिया जाय,चाहे जिस धर्म में छुवा छुत भारी भेदभाव करने वाले मौजुद हो|उन सभी को अपने छुवा छुत भारी भेदभाव कि मांसिकता पर छोड़ दिया जाय यदि वे उसी में ही सबसे अधिक सुख शांती और समृद्ध विकसित जिवन महसुश करते हैं|जिसके चलते आजतक भी छुवा छुत भारी भेदभाव को न छोड़कर पिड़ि दर पिड़ी किसी जेनेटिक विशेषता की तरह आगे बड़ाते चले जा रहे हैं|जिन्हे उनकी छुवा छुत विरासत को अपने छुवा छुत भारी भेदभाव करने वाले पुर्वजो की खास विरासत समझकर सम्हालने दिया जाय|और वैसे भी जैसा कि मैने बतलाया छुवा छुत और भारी भेदभाव करने वाले कभी भी उसे जड़ से नही छोड़ेंगे|इसलिए मैने ये ऐतिहासिक विचार जो कि सायद आजतक का सबसे नया अपडेट विचार है,जो कि कभी आजतक हुआ ही नही था सिवाय छुवा छुत और भारी भेदभाव करने वालो की छुवा छुत समाप्त हो जायेगी सोचकर हजारो सालो से छुवा छुत से पुर्ण अजादी पाने की संघर्ष भारी शोषन अत्याचार सहते हुए और मरते हुए छुवा छुत करने वाले और छुवा छुत का शिकार होने वाले दोनो ही एक साथ रहते हुए अपडेट करते रहने कि,जिसकी वजह से शोषन अत्याचार और सबसे अधिक मौते भी जारी है|क्योंकि मेरा ये भी मानना है कि ये भारी भेदभाव और छुवा छुत करने वालो के साथ रहकर ही अबतक ये सोने कि चिड़ियाँ विश्वगुरु अपडेट होने में जो देरी हो रही है,उसके चलते ही सबसे ज्यादा मौते छुवा छुत भारी भेदभाव का शिकार होने वालो का ही हो रही है|जैसे कि शिकारी और शिकार यदि जंगल राज की तरह एक साथ रहे तो फिर शिकार की ही मौत ज्यादे तादार में होगी शिकार होते समय|न कि शिकारी की मौत ज्यादे होगी|हलांकि बहुत सारे शिकार करने वाले ही जिस तरह लुप्त होते जा रहे हैं,उसी तरह छुवा छुत भारी भेदभाव करने वालो की भी तादार छुवा छुत भारी भेदभाव का शिकार करते खुद ही अपने अलग तरह की जिवन शैली का शिकार बनते जा रहे हैं|जिसके चलते मुझे पुरा विश्वास है कि जिस तरह लुप्त प्रजाती को एक जगह विशेष स्थान देकर उन्हे बचाने के लिए विशेष व्यवस्था कि जाती है,उस तरह यदि छुवा छुत भारी भेदभाव करने वालो को भी यदि अलग से स्थान देकर नही बसाया गया तो ये दुसरो को छुवा छुत भारी भेदभाव करके शोषन अत्याचार शिकार करके समाप्त करने के बजाय खुदको ही किसी भस्मासुर कि तरह समाप्त कर लेंगे|जिससे अच्छा है कि छुवा छुत भारी भेदभाव करने वाले और छुवा छुत भारी भेदभाव का शिकार होनेवाले दोनो ही अपनी अपनी सोच की खुशहाल दुनियाँ बसाकर बिना एक दुसरे को तकलिफ दिए ही सुरक्षित रह सके|जो कि मेरे ख्याल से अभी एक साथ रहकर उतना सुरक्षित नही हैं,जितना की अलग अलग रहकर,बजाय कि इतने सारे देश बिना खास कारन के अखंड सोने कि चिड़ियाँ विश्वगुरु से खंड खंड कर दिया गया है|जो पहले सभी प्राचीन अखंड हिन्दुस्तान में एकजुट थे|जिसका मैं कभी भी समर्थन नही करता यदि धर्म के नाम से देश का बंटवारा करने की मुझसे राय ली जाती|क्योंकि यदि धर्म के नाम से देश बंटे तो फिर तो पुरे विश्व में मात्र जितने धर्म उतने देश आज बंटे रहते|जो की देश बंटवारा की खास वजह कभी बन ही नही सकती जबतक कि धर्म परिवर्तन करना देश परिवर्तन करना नही समझा जायेगा|जबकि अभी तो मैं इतना खास कारन बतला रहा हुँ कि उससे जुड़ी हुई समस्या को दुर करने के लिए न जाने अबतक कितने ही लोग छुवा छुत भारी भेदभाव समाप्त करने के लिए एक साथ ही रहकर विचार किए और अपना छुवा छुत भारी भेदभाव का सपना अधुरा रखकर चले गए,जो कि उन सभी का अधुरा सपना छुवा छुत भारी भेदभाव मुक्त करके पुरा करने के साथ साथ छुवा छुत भारी भेदभाव का शिकार होकर भारी शोषन अत्याचार हजारो सालो से सहते आ रहे अखंड हिन्दुस्तान के मुलवासियो का भी सपना पुरा हो जायेगा,यदि जो कदम मैने उठाने के लिए कहा है उसे उठाकर इस सोने की चिड़ियाँ विश्वगुरु को अपडेट किया जाय|बजाय इसके कि इसे धर्म के नाम से खंड खंड करके कई देश बनाकर ये विचार किया जाय कि छुवा छुत भारी भेदभाव करने वालो को जो कि किसी भी धर्म में मौजुद हो सकते हैं,उन्हे सिर्फ एक खंड करके अलग से छुवा छुत भारी भेदभाव कि दुनियाँ अलग से बसाने के लिए देने कि बात कर रहा हुँ|जिससे की सोने की चिड़ियाँ विश्वगुरु सिर्फ दो खंड में बंटती न कि आठ दस टुकड़ो में बटती|और न ही छुवा छुत भारी भेदभाव की वजह से छुवा छुत भारी भेदभाव करने वाले भी लंबे समय से शोषण अत्याचार सहते हुए भी बदनाम होते इस तरह जैसे कि उन्होने हि छुवा छुत को जन्म दिया है|जो यदि छुवा छुत भारी भेदभाव को इसी देश के ही मुलवासी जन्म देते तो फिर छुवा छुत भारी भेदभाव उच्च निच जाती के रुप में उच्च जाती के कहलाने वाले ही क्यों छुवा छुत करते वह भी पुजा स्थलो में भी छुवा छुत का बोर्ड लगाकर?जिस तरह की बोर्ड सभी शुद्र जाती के कहलाने वाले नागरिको की परिवारो में भी लगती?खैर यह अपडेट विचार व्यक्त करके सबको अपनी अपडेट ज्ञान बांटकर अब इस बारे में मेरे ख्याल से ज्यादे मंथन करने की जरुरत नही कि छुवा छुत भारी भेदभाव आखिर किसलिए दोनो तरह के लोग एक साथ रहकर हजारो सालो से समाप्त नही हो रहा है?क्योंकि ये बात विश्व स्तरीय एक डीएनए रिपोर्ट से भी साबित हो चूकि है कि छुवा छुत भारी भेदभाव करने वाले और छुवा छुत भारी भेदभाव शोषन अत्याचार का शिकार होने वाले दोनो ही अलग अलग डीएनए के लोग हैं|जिसे पुरी दुनियाँ सत्य मानती है|जिस विज्ञान प्रमाणित सत्य को मैने अपडेट दोनो तरह की लोगो के खुशियो को मंथन करके वह सुख अमृत निकाला है जिसे यदि जबतक भेदभाव करने वाले और भेदभाव का शिकार होने वाले मिलकर बांटने कि कोशिष करने का प्रयाश जारी रहेगा तबतक न तो सुख अमृत ठीक से बंटेगी और न ही वेद पुराण अनुसार उपर निचे स्वर्ग में भी शांती रहेगी!क्योंकि दोनो की सुख शांती और समृद्ध दुनियाँ अलग है|जिसे एक साथ मिलाकर सिर्फ सागर मंथन की तरह मंथन में बल तो दोनो तरफ से एक साथ लगेगा पर उस बल से निकला अमृत छुवा छुत भेदभाव करके सिर्फ एक तरफ ही बंटेगी!जैसे की वर्तमान में भी सिर्फ मुठीभर लोगो के लिए ही पुरे विश्व का समृद्धी बंट रही है,जिसके चलते जितना धन अभी सिर्फ 1% लोगो के पास सबके मिल जुलकर श्रम मंथन करने से बंट गई है,उतना धन 99% लोगो के पास भी सभी मिलकर श्रम मंथन करके भी नही बंटी है|जिस तरह का भारी अंतर इस देश के लोकतंत्र का चार प्रमुख स्तंभो में पदो की भागीदारी में भी भारी भेदभाव के रुप में देखा जा सकता है|जो भारी भेदभाव जड़ से ही समाप्त हो जायेगा यदि मेरे अपडेट बातो को माना जायेगा|जिसे न मानने पर चाहे जितना धर्म बदलो या फिर देश की नागरिकता बदलो,खुदको सबसे आधुनिक विकसित कहलाने वाले देश अमेरिका में भी गोरा काला के रुप में भारी भेदभाव मौजुद है|और हिन्दुस्तान में भी उच्च निच के रुप में भारी भेदभाव मौजुद है|जिस तरह के भारी भेदभाव से सबसे ज्यादे सुखी या फिर दुःखी वे लोग हैं,जो की गोरा काला और उच्च निच के बिच शारिरिक रिस्ता जोड़कर और परिवार बसाकर न तो इधर के न तो उधर के अथवा बिच का जिवन जी रहे हैं|जिस तरह की रिस्ता बनाकर यदि सबसे अधिक सुखमय जिवन जी जाती है तो फिर निश्चित रुप से सबको ऐसी ही जिवन को अपनानी चाहिए एक साथ रहकर संतुलित सुख शांती और समृद्धी जिवन की दुनियाँ बसाने की उम्मिद आगे भी हजारो सालो तक करते हुए!और यदि इस तरह कि रिस्ता बनाकर एक साथ रहकर सबसे अधिक कठिनाई और दुःखो का सामना भविष्य में भी होती रहती है,तो फिर छुवा छुत भारी भेदभाव को जड़ से समाप्त करने के लिए मेरे ही अपडेट विचार को दोनो तरह के लोगो को अपना लेना चाहिए|जिसमे दोनो को ही सबसे अधिक अपनी पसंद की दुनियाँ जिने को मिलेगी,जैसी दुनियाँ मुझे इस समय छुवा छुत भारी भेदभाव करने वालो के साथ रहकर सुख शांती और समृद्धी जिवन जिने को नही मिल पा रही है|जिसमे भारी बदलाव के लिए मैं ये केश दर्ज यदि कर भी दुँ भारी भेदभाव करने वालो की जन्म से उच्च जाती को बहुत बड़ा अपराधी जाती मानकर कि जिनके द्वारा छुवा छुत जैसे भारी भेदभाव इस देश में हो रहा है,जिन्हे अपराधी घोषित करके सुधार घर में डाला जाय उस जन्म से उच्च जाती कहलाने वालो के भितर मौजुद भ्रष्ट बुद्धी में सुधार करने के लिए,तो क्या सभी उच्च जाती के कहलाने वाले छुवा छुत भारी भेदभाव शोषन अत्याचार जो कि पुरे देश में ही निच जाती कहलाने वालो के साथ लंबे समय से हो रहा है,जिनके साथ भारी भेदभाव करने वाले सजा पाने के लिए उस न्यायालय द्वारा सजा दिये जा सकते हैं?जहाँ पर आरक्षण मुक्त करके खुद ऐसी भेदभाव करके न्याय रक्षको कि बहाली हुई है,जो कि कभी नही होती यदि सभी भारी भेदभाव करने वाले सुधार घर में डाले जाते!जिसकी सिर्फ झांकी से ही पता चल जाता है कि मुझे ये सब अपडेट बाते करने की जरुरत ज्यादे सत्य मार्ग क्यों लग रही है?जो सत्य बाते मैं भारी भेदभाव करने वाले और भेदभाव का शिकार होनेवाले दोनो की भला के लिए लिख रहा हुँ|जिसे की मैं सौ प्रतिशत सत्य भी मानता हुँ|और साथ साथ मैं रिपोर्ट में मौजुद सबसे अधिक भागीदारी के काबिल जजो की बहाली को भी संवर्णो के सुख शांती और समृद्ध बहाली के लिए बेहत्तर तरिके से सोच समझकर हुआ है ये भी सत्य ही मानता हुँ|पर उनकी उस मनुस्मृती संविधान की दुनियाँ अनुसार जिसे बाबा अंबेडकर ने रोमराज से तुलना करने के बाद उसे भष्म करके अजाद भारत का संविधान लिखे हैं|जिसकी रक्षा और उसे ठीक से लागू करने की जिम्मेवारी उस न्यायायल को दिया गया है जहाँ पर न्याय रक्षक बहाली हाई कोर्ट जजो की झांकि 2000 ई० लोकसभा उपाध्यक्ष श्री कड़िया मुंडा की रिपोर्ट निचे है|जो कि मेरे अपडेट विचार को यदि अपनाई नही गई तो फिर आगे भी भारी भेदभाव होनी ही होनी है|जिसमे सबसे पहले देश की राजधानी दिल्ली से ही सुरुवात की जाय!
(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC जात के 35 जज ,SC जात के 15 जज ,ST जात के 5 जज शामिल हैं! जाहिर है बोये पेड़ बबूल का तो आम कहां से होगा?चाहे जितना भारी भेदभाव के खिलाफ केश किया जाय!
खैर मेरा अपडेट बात फिलहाल तो अनमोल के बजाय बिना कोई मोल के है इसलिए मेरे इस ब्लॉग की मकसद के बारे में कुछ जानकारी: के तौर पर मैं आगे ये बतलाना जरुर चाहुँगा कि यह ब्लॉग मैने मानवता और पर्यावरण में कैसे संतुलन बना रहे,और पुरे विश्व के सभी लोग कैसे सुख शांती और समृद्धी खुशहाल जिवन एक दुसरे की सुख दुःख में शामिल होकर व्यक्तीत कर सके,इसकी Khoj करने कराने  के लिए तैयार किया है|न कि एक दुसरे को दुःख देने के लिए ही दुसरो कि जिवन में शामिल होने के लिए तैयार किया है|जैसे कि मेरे जिवन में भारी भेदभाव शामिल है इस समय|जिसकी वजह से उससे खुदको रोजमरा जिवन में भारी भेदभाव देश दुनियाँ में महसुश करके मैने ऐसी ज्ञान बांटने कि कोशिष किया है,जिससे की पुरी दुनियाँ के लोगो को मेरे विचार अनुसार क्या क्या Khoj और बदलाव सबसे पहले करनी चाहिए,उसके बारे में उचित ज्ञान बांटने कि कोशिष किया है|जिसे यदि मेरे विचार अनुसार पुरी दुनियाँ में बांटकर मेरे बांटे हुए ज्ञान को पुरी दुनियाँ न सही पर यदि सिर्फ ये विश्वगुरु और सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला देश के सभी नागरिक भी यदि मेरे द्वारा बांटे गए ज्ञान को गंभीरता से ले तो भी मुझे पुरा विश्वास है कि पुरी दुनियाँ में सबसे बेहत्तर सुख शांती और समृद्धी कायम हो जायेगी,साथ साथ असंतुलित हुई मानवता और पर्यावरण भी संतुलित हो जायेगी|जो कि मेरे ख्याल से स्वभाविक है यदि यह देश वाकई में कभी विश्वगुरु माना गया है|जहाँ पर बारह माह अनगिनत प्राकृती पर्व त्योहार के रुप में पर्यावरण की पुजा की जाती है|क्योंकि विश्वगुरु जबतक छुवा छुत जैसे भारी भेदभाव का दुःख अशांती और गरिबी भुखमरी से संघर्ष करता रहेगा तबतक पुरा विश्व भी कैसे सुख शांती और समृद्ध खुशहाल हो सकता है?जाहिर है मेरे द्वारा बांटे ज्ञान को यदि इस देश में भी सुख शांती और समृद्धी कायम करने के लिए गंभीरता से लेकर और उसपर अमल करते हुए इस देश में सुख शांती और समृद्धी वापस लौट आई,जैसे कि इस देश में सायद विश्वगुरु और सोने कि चिड़ियाँ रोजमरा जिवन में प्रयोगिक पहचान लेते समय मौजुद थी,तो भी पुरे विश्व में सुख शांती और समृद्धी कायम हो जायेगी|क्योंकि यदि विश्वगुरु सुख शांती और समृद्धी खुशहाल जिवन तो पुरे विश्व में भी खुशहाल जिवन|और चूँकि मेरा ये भी मानना है कि सबमे कोई न कोई छोटी बुराई जरुर मौजुद होती है,जो मुझमे भी हो सकती है,इसलिए ये जरुरी नही कि मेरे द्वारा बांटे गए ज्ञान में सारी बाते अच्छी हो,जिसे भी मैं सुधारने की प्रयाश करता ही रहता हुँ,और आगे भी मुझे जैसे जैसे ज्ञान अपडेट होती रहेगी मैं उन बुरी चीजो में सुधार करता रहुँगा, जिससे अच्छी कोई हो सकती है|जैसे की प्राकृती ने भी इंसान के लिए पुँछ वाला इंसान से बिना पुँच्छ वाला इंसान के रुप में अच्छी से अच्छी अपडेट बदलाव किए हैं,जो कि अब भी प्राकृती द्वारा किसी न किसी में बदलाव होना जारी है|बल्कि यदि भगवान से भी उपर कोई और बड़ी शक्ती मौजुद है तो भी मैं उससे भी दुवा करने की अपडेट दुवा करना चाहुँगा कि इस पृथ्वी और सृष्टी को रचने वाले भगवान में भी यदि कोई भेजे गए सृष्टी की रचना करने वाले में बुराई मौजुद हो तो भगवान को भी बनाने वाले द्वारा उसमे भी अपडेट जरुर होनी चाहिए,खासकर इंसानो के लिए एक भगवान की मान्यता के लिए खास सुधार जल्दी से करें,क्योंकि इस पृथ्वी में इंसान के लिए एक भगवान तो सारे धर्मो में मौजुद है,पर एक ही इंसान कई अलग अलग धर्मो को बनाकर आपस में ही धर्म के नाम से लड़ मर रहे हैं!इसलिए यदि भगवान से भी उपर कोई और बड़ा भगवान मौजुद है,तो जल्दी से ऐसा कोई सुधार जरुर हो जिससे की इंसान एक ही भगवान की पुजा करने के लिए कई अलग अलग धर्मो का उदय करके जो लड़ मर रहे हैं,वह बंद हो सके!और चुँकि इंसानो द्वारा खुद अलग अलग रचे गए सारे धर्मो के अनुसार भगवान से उपर कोई और मौजुद नही है,जिसे की सारे धर्मो के लोग अपना अपना धर्म छोड़कर एक साथ स्थिर अपना लें ,इसलिए सारे धर्मो में जिसे पुजा जाता है,और जिससे दुवा मांगी जाती है उस एक भगवान से ही मेरी दुवा है कि मानवता और पर्यावरण में संतुलन कायम हो,और साथ साथ मेरी वह तमाम दुवा भी कबूल हो जो कबूल न होने कि वजह से इस ब्लॉग के जरिए मैं उस संतुलित सुख की Khoj कर रहा हुँ,जिसकी सायद पुरे विश्व को सबसे अधिक तलाश है!जो अबतक न मिल पाने की वजह से पुरी दुनियाँ में सुख शांती और समृद्धी की कामना करने वाले लोगो की भिड़ मंदिर मस्जिद चर्च वगैरा पुजा स्थलो में भी बड़ती ही जा रही है|साथ साथ मेरा तो ये भी मानना है कि Khoj अधुरी होने पर निराश होकर लोग अपना धर्म भी बदल बदलकर एक धर्म से दुसरे धर्म फिर दुसरे से तीसरे धर्म बदल बदलकर उसकी Khoj कर रहे हैं,जिसकी सबको तलाश है!जो Khoj यदि आप मेरा ब्लॉग में आकर करना चाहते हैं,तो आप सभी का स्वागत है|और यदि मेरे द्वारा बांटे गए मेरे लिए तो अनमोल ज्ञान को मुफ्त में लेकर उसके बदले किसी पाठक को कोई दान दक्षिना के रुप में मुझे सहायता करने की जरुरत महशुस हो रही हो,तो वह मेरे इस पोस्ट को पुरे विश्व में ज्यादे से ज्यादे लोगो तक पहुँचाने के लिए अपनी इच्छा और क्षमता अनुसार योगदान दे सकते हैं|जिससे की मेरा इस ज्ञान को लेने के लिए जितने ज्यादे लोग मेरे इस ब्लॉगर पते में मौजुद पोस्ट को पढ़ने के लिए प्रवेश करते नजर आयेंगे जो कि ब्लॉगर द्वारा दिए गए विशेष आंकड़ो के जरिये भी मुझे नजर आयेगी,उसे देखकर हर रोज ही इस सहायता के लिए मैं आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद जरुर करना चाहुँगा!जो धिरे धिरे बड़ रही है,जिसके लिए फिर से एकबार तन मन दोनो से यही दुवा करना चाहुँगा कि मानवता और पर्यावरण संतुलित हो और पुरे विश्व में सुख शांती और समृद्धी खुशहाली जल्दी से कायम हो!"धन्यवाद"

https://zipansion.com/GD73

मंगलवार, 1 मई 2018

आज अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस अथवा 1 मई मजदूर दिवस के बारे में ये पोस्ट लिखते समय मुझे मिला है विशेष श्रममोल

https://khoj123.blogspot.com
आज अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस है,जिसे अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के नाम से भी जाना जाता है,जिसे पुरे विश्व के 80 देशो में मनाया जाता है|हलांकि पुरे विश्व के सभी देशो में मजदूर हैं,जिनके दम पर हवा महल से लेकर ताजमहल तक खड़ा किया गया है|अथवा पुरे विश्व के तमाम अमिर जिनके पास आज वह सब कुछ मौजुद है,जिससे कि वे यह कहने में संकोच नही करते कि मेरे पास खुदका अपना कमाया हुआ धन मौजुद है,और जैसा कि हमे पता है कि पुरे विश्व में श्रम करने वालो की अबादी सबसे अधिक है,पर सिर्फ मुठीभर लोग ही पुरे विश्व में आज सबसे अमिर लोग कहलाते हैं,जिनके पास पुरे विश्व का इतना धन है,जितना कि पुरे विश्व की 99% अबादी के पास भी मौजुद नही है|यानि यदि लेन देन के रुप में धन की मुद्रा खोज न करके अन्न को न खाकर धन को ही खाया जाता तो फिर मानो अभी क्या 99 लोगो के पास जितना अन्न रोटी मौजुद नही रहती जितना कि 1 के पास मौजुद रहती|मतलब साफ है कि धन की खोज करके लोग अन्न और रोटी खाने के लिए सबसे अमिर नही बनते जा रहे हैं,बल्कि सबसे अधिक पैसे कमाने के लिए धनवान बनते जा रहे हैं|और जो लोग पैसे के लिए सबसे अधिक अमिर बनना पसंद नही करते,वे अपने पास जरुरत का धन रखकर बाकि अपना सारा धन उन्हे दान करते जा रहे हैं या कर देते हैं,जिनको पैसे की कमी होती है|क्योंकि सायद जो अमिर जिते जी दान नही करते वे भी अपने साथ न तो सारा धन मरने के बाद ले जा पाते हैं,और न ही उसे अपनी मर्जी के मुताबिक कई बार अपनो को भी दे पाते हैं|जिनमे से बहुतो का तो धन का सही बंटवारा करने से पहले ही उनकी मौत हो जाती है|और उनके मरने के बाद उनका धन उनके हकदारो में कई बार उनकी मर्जी के विपरित भी बांट ली जाती है|क्योंकि कई बार सबसे अधिक करिबी होने पर भी किसी धनवान के धन का सही हकदार किसे होना चाहिए विचार आपस में नही मिलते हैं|इसलिए मेरे ख्याल से विश्वभर में जितने भी 1%लोगो के पास जो इतना धन मौजुद है,जितना की 99% लोगो के पास मौजुद नही है,उसे उनके मरने के बाद उनके मर्जी के मुताबिक यदि जो भी अमिर  सहमत हो तो उनका 99% धन को गरिब मजदूर में उनका बकाया श्रममोल के रुप में बांट देनी चाहिए| खासकर यदि उन 1% अमिर लोगो में जो भी अमिर मरने से पहले मेरी इस बात से सहमत होकर मरने से पहले ही उसे गरिब मजदूर में बकाया श्रममोल के रुप में बांटने का मन बना ले यह सत्य मानकर कि उनके द्वारा उठाये गए जिवन के उस फैशले से मेरे ख्याल से पुरे विश्व में उचित श्रममोल न मिलकर जो अमिरी गरिबी के बीच असंतुलन आया है,उसमे संतुलन आने में ज्यादे देरी भी नही लगेगी और बकाया श्रममोल के रुप में दान करने वाले सभी अमिरो के प्रति इतिहास में एक नया इतिहास भी रचा जायेगा कि अमिरो ने पुरे विश्व के गरिब मजदूरो के जिवन के साथ साथ मानवता और पर्यावरण में भी संतुलन कायम करने व सुख शांती और समृद्धी लाने के लिए क्या सबसे सही काम  किया है?अभी तो सिर्फ सबसे अमिर लोगो के नाम यही इतिहास दर्ज हो रही है कि सबसे अमिर लोग अपनी सुख शांती और समृद्धी के लिए गरिब मजदूर से जो काम कराया है उसमे वे कम से कम अमिर बनने में तो कामयाब हो गए हैं|जैसे कि सायद दुनियाँ के सबसे अमिर व्यक्ती बिल गेट्स कामयाब हो गए हैं|जिसके सबसे अमिर बनने में जो धन इकठा हुआ है उसमे कहीं न कहीं किसी गरिब मजदूर का साथ जरुर रहा है,जो कि खुद भी बिल गेट्स के विचारो को सही मानकर उनके ही तरह श्रम करके अमिर जरुर बने होंगे|पर साथ साथ मैं ये भी मानता हुँ कि पुरे विश्व में जो गरिब मजदूर आजतक भी अमिर नही बन सके हैं,उनके गरिब रहने में भी कहीं न कहीं बिल गेट्स जैसे ही दुनियाँ के उन सबसे अमिर लोग ही प्रमुख कारन हैं,जिन सभी 1% के पास इतना धन मौजुद है,जितना कि पुरे विश्व के 99% लोगो के पास धन मौजुद नही है|क्योंकि 99% लोग भी तो कठिन श्रम कर रहे हैं,जिनमे कि गरिब मजदूर सभी सामिल हैं,पर सिर्फ 1% लोगो के पास दुनियाँ के सारे बाकि 99% के पास मौजुद जितना धन किस सत्य का श्रममोल के जरिये आ गया है|जिसे कमाने में भी तो कहीं न कहीं गरिब मजदूर का पसिना जरुर बहा होगा|बल्कि खुन भी बहा होगा जैसे कि आज जो मजदूर दिवस मनाया जाता है 1 मई 1886 को उसकी सुरुवात कैसे हुई थी इसके बारे में जानकर पता किया जा सकता है कि पुरे विश्व के सबसे अमिर लोगो को अमिर बनाने में गरिब मजदूर अपना खुन भी कैसे बहाते आ रहे हैं इतिहास में|पर उन सभी मजदूरो में आज भी ज्यादेतर गरिब क्यों है?जबकि वे भी तो दिन रात खुन पसिना बहाने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं!जैसे कि आज पुरे विश्व में जो मजदूर दिवस मनाया जाता है उसकी सुरुवात मजदूरो की पसिना और खुन से हुई थी जब अमेरिका के मजदूरो ने 8 घंटे से काम न करने की मांगो को पुरा करने के लिए हड़ताल कर दिया था,जिस हड़ताल में कई मजदूरो की पसिने के साथ साथ खुन भी बही थी|जिसके बाद मजदूर दिवस की सुरुवात हुई,और आज भारत समेत 80 देशो में आठ घंटे से अधिक काम न कराने का कानून लागू है|सिर्फ 80 देशो में ये कानून लागू है इसका मतलब ये नही कि बाकि देशो के लोग खुन बहाये गए उन मजदूरो को आज के दिन मजदूर दिवस में याद नही कर रहे होंगे या फिर उनका सम्मान नही कर रहे होंगे!बल्कि जिस अमेरिका में विश्व का सबसे अमिर व्यक्ती बिल गेट्स आज के दिन में मौजुद हैं उनके द्वारा गरिब मजदूर के सम्मान के प्रति यदि देखा जाय तो मैं उनके इस विचार से सहमत नही हुँ कि "गरीब पैदा होना गलती नही है,पर गरीब मरना गलती है" क्योंकि बिल गेट्स का गरिबी में मरना गलती है यदि सभी उन गरिब मजदूरो में भी लागू होती है,जो कि सारी जिवन मजदूरी करते हुए भी अपना गरिबी दुर नही कर सके और मर गए या फिर भविष्य में पुरे विश्व में न जाने और कितने बिल गेट्स जैसे लोगो को अपनी पसिना बहाकर और सबसे अमिर बनाकर खुद अमिर नही बन पायेंगे और गरीबी में ही मर जायेंगे,तो फिर मैं कहुँगा बिल गेट्स का वह विचार ही गलत है जिसके अनुसार गरिबी में मरना गलत है|बल्कि ऐसे विचार रखने वाले अमिरो को मैं उन्ही के की भाषा में उन गरिबो कि ओर से जरुर लिखना चाहुँगा जो कि गरिबी में मरे या फिर आगे भी ऐसे अमिरो के दुनियाँ में पैदा होते रहते हुए भी मरते रहेंगे,कि दुनियाँ में ऐसे अमिर का पैदा होना गलती नही है,पर उनके जैसो के अमिर होते हुए भी पुरे विश्व में गरिबी मौजुद रहना उनकी गलती है|क्योंकि 1 मई मजदूर दिवस के दिन जो अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया जाता हैं, मजदूरो की सम्मान के लिए वह क्या उन मजदूरो के लिए सही नही है,जो कि पहले भी कठिन श्रम करने के बावजूद भी गरिबी में मरे और भविष्य में भी कठिन श्रम करके भी गरिब ही मर जायेंगे?जिनके प्रति क्या मजदूर दिवस नही है?बल्कि मेरे लिए तो मजदूर दिवस के दिन मेरा ये पोस्ट के जरिये विश्व के उन तमाम लोगो के प्रति भी सम्मान है,जो कि भले श्रममोल भी न लेते हो पर फिर भी सत्य के लिए दिन रात कठिन श्रम कर रहे हैं,जिससे कि उनका खुन पसिना के साथ साथ बुद्धी भी खुब बह रहा है सत्य कामो में,जिन सभी को सम्मान है!और जो लोग अपना खुन पसिना और बुद्धी भी असत्य का धन कमाने में दिन रात सबसे ज्यादे लगे रहते हैं,उनको मेरा यही ज्ञान बांटना है कि अपना खुन पसिना और बुद्धी यदि असत्य का धन इकठा करने में ज्यादे बह रही है तो उसे सत्य बनाने के लिए मेरा ये ज्ञान मिलते ही आज से ही सत्य इस्तेमाल किया जाय|क्योंकि मेरी नजर में उन्ही लोगो का सम्मान सबसे अधिक है जिनके पास अमिर बनने का धन भले न हो,पर वे खुन पसिना और अपना बुद्धी बहाकर सत़्य श्रम के लिए करते हैं|न कि ऐसे झुठ कामो के लिए करते हैं जिससे कि किसी गरिब मजदूर का प्राकृत हक अधिकार छिना जाता है|बल्कि जो लोग सत्य काम भी यदि किसी गरिब मजदूर का हक अधिकार छिनकर अमिर बनते हैं,तो भी मैं उनका सम्मान नही करना चाहुँगा ये कहकर कि  वे गरिब मजदूर का हक अधिकार छिनकर ज्यादे सम्मान पाने लायक हैं!क्योंकि वरदान तो भस्मासुर ने भी कठिन सत्य तप करके  सत्य से वरदान पा लिया था,पर चूँकि वह उस वरदान का गलत उपयोग किया और उल्टे सत्य को ही भष्म करने के लिए वरदान देने वाले सत्य के ही पिच्छे पड़कर दरसल  सत्य वरदान का गलत उपयोग किया!इसलिए भस्मासुर का मैं दिल से सम्मान नही करुँगा|बल्कि अपना ये ज्ञान दुँगा कि अपने मिले वरदान का सत्य उपयोग गरिब मजदूरो की गरीबी दुर करने के लिए ऐसा करे जिससे कि भले वह खुद गरिब बन जाय पर दुनियाँ के सारे धन वाले अमिर उसके सामने इतिहास में छोटे पड़ जाय|जिस काम को करने के लिए यदि बिल गेट्स जैसे अमिर भी करने में लगे हैं तो मैं उनका भी सम्मान जरुर करुँगा|पर तब जबकि वे गरिबी में मरना किसी गरिब की गलती न मानते हो या फिर ऐसे विचार को ही अपनी गलती मानकर अपना वह विचार बदलकर गरिब मजदूरो कि सेवा इस भावना से करते हो कि उनके जैसे अमिरो के रहते जबतक एक भी व्यक्ती दुनियाँ में गरिबी में जी रहा हो तो कहीं न कहीं उन अमिरो से गलती हो रही है जो कि गरिब मजदूर के श्रम सहयोग से खुद तो सबसे अमिर बन गए हैं पर जिनके सहयोग से वे सबसे अमिर बने हैं उनमे आज भी बहुत से गरिब मजदूर अपना श्रमोल पाकर भी अमिर नही बन पाये हैं|जिनका गरिबी में मरना गलती नही माना जायेगा|और न ही अमिरी को उन गरिबी से ज्यादा सही माना जायेगा|जो बात यदी सत्य नही होती तो फिर सायद कोई भी अपना धन गरिबो को दान नही करता|बल्कि विश्व में तो ऐसे भी महान महात्मा लोग इंसान के रुप में जन्म लिये हैं जो कि अपना सबकुछ त्यागकर बिना धन के भिख मांगकर भी जिवन जिये हैं|जैसे कि कभी महलो और कई विद्वान गुरुओ का ज्ञान डिग्री मान्यता की भारी बस्ता त्यागकर राजकुमार सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध कहलाये|जिनसे महान और महात्मा दुनियाँ के सबसे अमिर लोग भी नही कहलाते हैं|और न ही कोई महान महात्मा लोग इस बात से सहमत होते होंगे कि गरिबी में मरना गलती है|बल्कि बुद्ध तो गरिब से भी निचे की जिवन जिये थे!जिनके द्वारा राजकुमार सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बनने का सफर भिक्षा मांगकर पुरा किया गया है|जिन्हे भी मैं पुरे विश्व के लिए बिना श्रममोल के भी श्रम करने वाला एक ऐसा श्रमिक मानता हुँ जो कि बिना कोई धन मोल लिये ही भिक्षा का अन्न खाकर सुख शांती और समृद्धी कायम करने का अनमोल ज्ञान एक पीपल पेड़ के निचे कठिन तप श्रम करके पुरे विश्व को बुद्धी के शरन में जाने का ज्ञान बांटे हैं|जिसके तप योग को मैं श्रम भी इसलिए मानता हुँ क्योंकि ऐसे तपस्वी भी मेरी नजर में मानवता और पर्यावरण को संतुलित करने के लिए ऐसे श्रमिक हैं जो कि इंसानो द्वारा बनाये गए मुद्रा को लिए बगैर अथवा बिना धन के भी कठिन श्रम उस भगवान के द्वारा विशेष श्रम कराने के लिए विशेष चुनकर भेजे गए होते हैं,जिन्होने इंसानो की धनवान बनने की मुद्रा नही बल्कि सारी सृष्टी को बनाया है|और जिस तरह के सत्य के लिए श्रम करने वाले चाहे श्रममोल लेकर श्रम करते हो या फिर बिना श्रममोल लिए ही करते हो,यदि उन्होने किसी गरिब मजदूर का हक अधिकार को न छिना हो तो उनके लिए मेरे भितर सबसे अधिक सम्मान है|जिस सम्मान को देते हुए साथ में मुझे इस बात पर गर्व भी है कि मैं भी सत्य के लिए ही दिन रात सबसे अधिक श्रम कर रहा हुँ|जैसे कि यह ज्ञान बांटने का श्रम भी दिन रात कर रहा हुँ जिसका मुझे आजतक एक रुपया भी इंसानो के द्वारा बनाया गया मुद्रा के रुप में श्रममोल नही मिला है|इसका मतलब ये नही कि मुझे कुछ मोल नही मिला है ये सत्य कर्म करके,बल्कि मुझे सत्य के लिए संघर्ष करने में सबसे अनमोल आज के दिन ये पोस्ट लिखते समय मेरी माँ के द्वारा दिया गया दस रुपया का सिक्का मिला है!जिसे मैं खास के श्रममोल के रुप में उसकी तस्वीर मैं आज पहली बार अपनी खुद के द्वारा खिची गई तस्वीर के रुप में भी पोस्ट में डाल रहा हुँ|जिसे मैं आज अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के दिन मिला अनमोल श्रममोल कहुँ तो मेरे लिए कोई बुरा नही होगा| "धन्यवाद"

The chains of slavery

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