आरक्षण का विरोध कहीं खुदको सबसे अधिक talented अथवा प्रतिभावान,कौशल,बुद्धिमान,गुणवान,शक्तीमान क्षमता संपन्न मनुष्य अपडेट करने के लिए तो नही होता है?


Khoj123
आरक्षण का विरोध यदि खुदको सबसे अधिक talented अथवा प्रतिभावान,कौशल,बुद्धिमान,गुणवान,शक्तीमान क्षमता संपन्न मनुष्य अपडेट करने के लिए करते हैं तो पहले वे छुवा छुत जैसे भारी भेदभाव का जड़ को पुर्ण समाप्त करे,तब खुदको सबसे अधिक talented अथवा प्रतिभावान,कौशल,बुद्धिमान,गुणवान,शक्तीमान क्षमता संपन्न मनुष्य घोषित करे|क्योंकि आरक्षण पानेवालो के पुर्वजो ने इस देश को कृषी प्रधान घोषित करने की talent को हजारो साल पहले ही सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती का स्थापना करके अपने हजारो विकसित हुनरो का भी प्रयोगिक प्रमाण दे दिया है,जिसे संवर्ण द्वारा भारी भेदभाव की मनुस्मृती व्यवस्था करके हजारो शुद्र जातियो के रुप में पहचान दे दिया गया है|जिस हजारो हुनरो की असली पहचान दरसल किसी विकसित गणतंत्र की पहचान होती है,जिससे की विकसित सभ्यता संस्कृती की नीव पड़ती है|जिसे कमजोर करने के लिए हजारो हुनरो को हजारो शुद्र जाती के रुप में बांटकर संवर्णो ने खुदको जन्म से ही उच्च घोषित किया हुआ है|जिसकी बोर्ड भी लगाई जाती है आज भी कहीं कहीं पुजा स्थलो के बाहर कि अंदर शुद्रो का प्रवेश मना है|1901 जनगणा के अनुसार भारत में 2000 जातीयाँ मौजुद है|हिंदू धर्म को चार वर्णो में समाजिक विभाजन किया गया है,ब्रह्मण,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र|बहुत से विद्वानो का मत है कि वर्ण व्यवस्था सुरु में कर्म पर अधारित था जो कि बाद में जन्म पर अधारित हो गया है|यानि कर्म पर जब वर्ण व्यवस्था अधारित रहा होगा उस समय जैसा कर्म वैसा फल के आधार पर हुआ होगा जो कि आज भी प्रयोगिक हुनर के आधार पर डॉक्टर का कर्म करने वालो को डॉक्टर और सेना कार्य करने वालो को सैनिक और शिक्षण कार्य करने वालो को शिक्षक और व्यापार कार्य करने वालो को व्यापारी कहा जाता है|और अपराध कार्य करने वालो को अपराधी कहा जाता है|जिस तरह कि डिग्री यदि कर्म के आधार पर दी जाती रही होगी मनुस्मृती रचणा करने से पहले तक,तब तो इस देश के मुलनिवासियो ने हजारो साल पहले ही उस समय ही वर्तमान 21वीं सदी का अपडेट कर्म के आधार का जिवनशैली को अपनाकर जी रहे होंगे जब खुदको आर्य अथवा उत्तम कहने वाली आज के समय की उच्च जाती माने जाने वाले लोगो के पुर्वज जब इस कृषी प्रधान देश में प्रवेश भी नही किए होंगे,और न ही कृषी सभ्यता संस्कृती के बारे में उन्हे कुछ हजारो हुनरो की सुझ बुझ होगी|जिस समय हजारो साल पहले भी इस अखंड देश में आधुनिक सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती व्यवस्था कर्म पर अधारित थी,जैसे कि आज आधुनिक समाज पर कर्म पर ही ज्यादे फोकस किया जाता है|कहीं भी रोजगार अर्जी करते समय कर्म के आधार पर ही उससे उसकी खास हुनर के बारे में जानकारी मांगी जाती है|जिसे ही हजारो साल पहले ही इस कृषी प्रधान देश में आधुनिक गणतंत्र व्यवस्था के रुप से पहचाना जाता है|जो कि इस देश में कथित आर्यो के प्रवेश से पहले ही मौजुद थी|जो कि कर्म पर अधारित थी,जिसे विज्ञान और प्राकृत पर अधारित भी कहा जा सकता है|जैसे कि आज भी कहा जाता है इंसान की जैसी सोच और जैसी हुनर मौजुद होता है,वैसा ही कामो पर वह कामयाबी पाता है|तो क्या संवर्णो ने मनुस्मृती रचणा करके वर्ण व्यवस्था अपनी सोच के अनुसार छुवा छुत करके वर्ण व्यवस्था में खुदको उच्च जाती और बाकियो को निच अथवा शूद्र जाति का मांसिकता सोच रखकर ब्रह्मण पंडितगिरी अथवा जन्म से विद्वान बनने वीर क्षत्रिय रक्षक बनने और धन्ना वैश्य धनवान बनने का लक्ष को सचमुच में बाहर भितर दोनो से भी हासिल कर लिया है? क्योंकि मुझे नही लगता की कर्म के आधार पर यदि फिर से इस देश का प्रयोगिक विकाश पहिया वापस घुम जाय तो मनुस्मृती सोच वालो को विद्वान पंडित और शोषन अत्याचार करने वालो को वीर रक्षक की डिग्री मिल जायेगी|और यदि आर्य सचमुच में बाहर से आए और अपने फायदे और सोच अनुसार कर्म व्यवस्था को जन्म व्यवस्था बनाकर खुदको जन्म से उच्च मानकर और इस देश के मुलवासियो को निच घोषित करके मनुस्मृती रचना करके उसे भगवान का भेजा गया संविधान कहकर खुदकी पुजा और सेवा कराने के लिए मनुस्मृती लागू करके यदि दुसरे कि हक अधिकारो को छिनकर उसपर कब्जा किये होंगे तो मुझे नही लगता कि संवर्णो को इस हरकत को करने के बाद सबसे धनवान अथवा वैश्य का भी डिग्री मिलेगा कर्म के आधार पर|जैसे कि सायद कुबेर को भी कर्म के आधार पर सोने की लंका को छिनकर धन्ना कुबेर का डिग्री सत्य कर्म के आधार पर कभी नही मिलेगा|क्योंकि सोने की लंका तो लंका के उन रक्षको की थी जिन्हे सोने की बर्तन में इंसानो को खाने वाला राक्षस कहकर उनसे लंका छिन लिया गया था|जिसके चलते माली सुमाली और माल्यवान को अपनी सोने कि लंका गवानी पड़ी थी| जिसे बाद में माली सुमाली और माल्यवान के नाती रावण ने मानो इस विचार के साथ कि हक अधिकार मांगने से नही छिनने से मिलता है रणनीति अपनाकर छिनी गई लंका को दुबारा से हासिल कर लिया था धन्ना कुबेर से जोर जबरजस्ती छिनकर!जैसे कि मेरे ख्याल से गोरो से भी अजादी छिनी गई है,क्योंकि मांगने पर तो गोरे डंडे भी बरसाते थे और गोलियाँ भी चलवाते थे,जैसे कि जालियावाला बाग में गोली चली थी|जिस समय कि शोषन सोच अनुसार न्याय करने का न्यायालय बनाकर उसपर जज बनकर अजादी कि मांग करने वालो को गोरे फांसी पर भी चड़ाते थे|जिस तरह कि हरकत करके किसी इंसान ही नही कई कई देशो को लुटने वाले गोरो को कर्म के आधार पर क्या धनवान कहा जाता यदि उन्हे कई देशो को गुलाम करके दुसरो का धन को लुटपाट करके धनवान बनने पर सबसे धनवान होने का प्रमाण दिया जाता?उसी तरह से यदि संवर्ण लोग कर्म के आधार पर ये साबित हो जाय कि उन्होने दुसरो की भुमि पर कब्जा करके धनवान बने हैं,तो क्या संवर्णो को धन्ना वैश्य अथवा धनवान का डिग्री मिल जायेगी कर्म के आधार पर?जिसके बाद यदि इस देश के मुलवासियो को निच दर्जा अपने लाभ और मनुस्मृती बुद्धी के हिसाब से शूद्र का दर्जा दिया है,जिसका समय का पहिया घुमकर कर्म के हिसाब से इस देश के मुलवासियो को क्या इस देश में हजारो हुनर के कर्म के आधार पर विकसित स्थिर कृषी प्रधान देश पर गणतंत्र व्यवस्था और ग्राम पंचायत कायम करने के लिये निच और अपराधी का डिग्री मिलेगी क्या?जाहिर है यदि वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधार पर यदि पहिया उल्टा घुम जाय तो फिर आज भी अपने सर से मानो ताज खोकर शूद्र कहलाकर शोषन अत्याचार हजारो सालो से झेलते हुए सर में मैला तक ढोने का कार्य पिड़ि दर पिड़ि करते आने वालो को कोई अपराध करने वाला अपराधी नही बल्कि मनुस्मृती की रचना करके छुवा छुत संविधान मनुस्मृती लागु करके हजारो सालो से भारी भेदभाव करने वालो को ही कर्म के अधार पर अपराधी माना जायेगा यदि समय का पहिया वापस कर्म के आधार पर आ जाय जन्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था को समाप्त करके छुवा छुत से पुरी अजादी मिलकर|जो जबतक पुर्ण अजादी नही मिलेगी तबतक जन्म से वर्ण व्यवस्था कायम रहेगी और छुवा छुत भी कायम रहेगी चाहे जितनी तरक्की कर ले ये देश!जैसे कि अमेरिका जापान इंगलैंड आदि देशो में भी सबसे आधुनिक विकसत और अमिर देश कहलाते हुए भी वहाँ पर भी अस्पृश्यता अथवा  untouchability जड़ से समाप्त नही हुई है|सबसे विकसित संपन्न देशो में अमेरिका को भी माना जाता है,पर वहाँ पर भी गोरा काला का जंग आये दिन चलती ही रहती है|आज इस कृषी प्रधान देश में वर्तमान की सरकार सफाई अभियान बाहरी मन की बात करके चला रही है जहाँ पर छुवा छुत की गंदगी मनुस्मृती सोच के लोगो पर उनके भितर मौजुद है|जिसके चलते मनुस्मृती मांसिकता की वर्ण व्यवस्था अनुसार सेवा करने वाले और सफाई करने वाले शूद्र माने जाते हैं|और दुसरो का हक अधिकारो को छिनकर उसपर कब्जा करके मनुस्मृती की रचना करके शोषन अत्याचार करने वाले खुदको जन्म से ही उच्च माने जाते हैं|उच्च निच की भावना आज भी वैसे तो कई विद्वानो द्वारा ये कहा जाता है कि समय के साथ उच्च निच की भावना में परिवर्तन आया है,और आज लोग धन को सबसे उच्च मानकर लोगो को पैसो से ज्यादे आकी जा रही है,जो भी पुरी तरह से सत्य नही है,क्योंकि यदि यह सत्य होती तो मायावती इतनी अमिर बनने के बाद शूद्र की बेटी नही कहलाती और बार बार उसे ये नही सुननी पड़ती कि मायावती नोटो का माला पहनती है|जो कि आज उस बहुजन समाज पार्टी का नेतृत्व कर रही है,जिसकी स्थापना कषी प्रधान देश में 85% जो अबादी बहुजनो की है उनके हक अधिकारो को प्राप्त करने कि लक्ष साधकर की गई थी|जिसे भारी भेदभाव का शिकार होने वाला एकलव्य का लक्ष कहा जाय तो गलत नही होगा यदि ये सत्य मान लिया जाय कि इस कृषी प्रधान देश में 15 % कथित उच्च जाती जिसमे ब्राह्मण जाती 3.5%और क्षत्रिय जाती 5.56% व वैश्य जाती के 6% ने यहां के 85%मूल निवासी बहुजन समाज जो चाहे इस समय जिस धर्म में मौजुद हो,उनको उनके मुल हक अधिकारो से वंचित किया हुआ है|और अपने मूल हक अधिकारो से वंचित लोग चाहे जिस धर्म में जाय अपना धर्म परिवर्तन करके उनके पुर्वजो की डीएनए और इतिहास नही बदलती है|जिनके साथ शोषन अत्याचार बहुत पहले से ही भारी भेदभाव करके लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो सहित तमाम संसाधनो पर उचित भागिदारी से वंचित किया गया है|समाजिक,शैक्षनिक सहित तमाम आधुनिक विकसित की गई क्षेत्रो में निचे दबाकर विकसित मांसिकता का ढोंग पाखंड मनुस्मृती रचना का भारी भेदभाव अपडेट करना अब भी जारी है|भले क्यों न बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा में अपडेट होकर अब संवर्णो को भी बहुजन समाज पार्टी में भागीदारी देकर बहुजन समाज पार्टी का चुनाव लड़ते समय भी भारी संख्या में कथित उच्ची जाती को टिकट दिया जा रहा है,और उन्हे फिर से बड़े बड़े पदो पर मान सम्मान देकर बिठाया भी जा रहा है|जिस बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा कभी तीलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार का नारा देकर 85% बहुजन समाज के लोगो की हक अधिकार को 85% लोगो की वोट से भारी बहुमत की बहुजन सत्ता कायम करके हासिल करने की थी|जो अब 100% लोगो की वोट से हासिल करने की लक्ष हो गई है|जिसके अलावे भी इस देश में कई ऐसे उदाहरन भरे पड़े हैं,जिसमे की भारी भेदभाव का सामना का शिकार आज भी कई पार्टियाँ और पार्टी के खास पहचान वाले नेता हो रहे हैं|जिसमे एक शोषित पिड़ित नागरिक लालू भी एक है,जिसके पास भी आज अमिरी मौजुद है,पर उसे भी बार बार पशु का चारा चुराकर खानेवाला चाराचोर कहकर यू ही नही मामला गर्म होता रहता है|क्योंकि संवर्ण दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम होकर पुरी अजादी संघर्ष जारी है उन लोगो कि जिन्होने अपने जिवन में चाहे दोषी के रुप में या फिर निर्दोश के रुप में न्याय और सजा मिलने में भी भारी भेदभाव का सामना किया है|जो मामला वैसे तो गर्म बहुत समय से होता चला जा रहा है,पर गोरो से अजादी मिलने से पहले जब गोरो के शासन में 1932 ई० में पुना पैक्ट के बाद अस्पृश्य जाती वर्ग का पहचान करके उच्च निच लिस्ट बनाया गया था,जिसके आधार पर 341 अनुसूचित जाती और 342 अनुसूचित जाती घोषित किया गया था जो आगे चलकर 1935 के सरकार अधिनियम लागू हो गया था|जो पूना पैक्ट ही सरकारी नौकरियो में आरक्षण का आधार बना है|जो पूना पैक्ट के नाम से इसलिए जाना जाता है,क्योंकि पैक्ट समझौता बाबा अंबेडकर और गाँधी के बिच पुना में तब तय हुआ था जब गाँधी ने बाबा अंबेडकर की मांग के खिलाफ जेल में अनशन सुरु कर दिया था|क्योंकि बाबा अंबेडकर ने गोरो से पुर्ण अजादी के साथ संवर्णो के द्वारा दी जा रही भारी भेदभाव से भी अजादी मांग करते हुए इस देश के मुलवासियो के साथ जो संवर्ण लंबे समय से करते आ रहे हैं उनकी शोषन अत्याचार से अजादी पाने के लिए 85% लोगो के लिए अलग से निर्वाचन कराने का मांग कर दिया था|जिस मांग के खिलाफ गाँधी ने जब अनशन किया और जेल में उसकी हालत भुख से गंभीर हो गई है ये बाते कही जाने लगी, जिससे कि बुढ़ापा हालत में अनशन पर उसकी जिवन को खतरा को देखते हुए गाँधी की पत्नी बाबा अंबेडकर के पास गई और गाँधी के जिवन के लिए बाबा अंबेडकर को अपनी पीड़ा सुनाई,जिसे सुनकर बाबा अंबेडकर ने अपने हजारो सालो की भारी भेदभाव जख्म की पीड़ा को सहकर गाँधी से पूना में एक समझौता किया और तब जाकर गाँधी को अँग्रेजो द्वारा कैद किए गए जेल में भी जान में जान आयी|हलांकि बाद में अँग्रेजो से अजादी मिलने के बाद गाँधी की जिवन को सबसे खतरा अनसन और अंबेडकर से नही बल्कि किसी संवर्ण द्वारा गाँधी की हत्या करने से हुआ था ये इतिहास भी दर्ज हो गई है|जिन संवर्णो के लिए गाँधी ने बाबा अंबेडकर के खिलाफ जेल में अनशन करके पुना में बाबा अंबेडकर के साथ समझौता किया था|जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है|जिसके अनुसार ही आज सरकारी आरक्षण लागू है|जो आरक्षण यदि उच्च निच के आधार पर हुआ है तो निश्चित तौर पर आरक्षण तभी समाप्त होगा जब कथित उच्च निच के बिच भारी भेदभाव से पुरी अजादी का समझौता होगा|जिसके अनुसार संवर्णो को पुरी तरह से छुवा छुत करना छोड़ना होगा,जैसे की देश को गोरो से पुर्ण अजाद घोषित करने के लिए गोरो द्वारा देश छोड़ना पड़ा था|संवर्णो को तो सिर्फ छुवा छुत करना छोड़ना है,पर वह भी वे उसे भी अबतक हजारो साल बाद भी पुरी तरह से नही छोड़ पा रहे हैं|और आज भी देश में भष्म मनुस्मृती का छुवा छूत भूत चारो तरफ ग्राम और. शहर दोनो जगह ही मंडराना जारी है|जिससे ही तो पुर्ण अजादी पाने के लिए सायद गाँधी ने भी कोशिष किया था अपने ही संवर्ण बिरादरी के लोगो को ये जताते हुए कि वे भी अपने सर में मैला ढोकर अपना मल मूत्र खुद ही साफ करे,जैसे की गाँधी भी कभी कभी अपना मल मूत्र साफ किया करते थे|जो शोषित बस्तियो में जाकर मल मूत्र ढोने की प्रथा को आगे भी जारी रखने के लिए शोषितो का अपने अनुसार हौसला बड़ाते थे|जो मेरे ख्याल से उन्हे सर में मैला ढोने की प्रथा को अपडेट करने से अच्छा था कि सर में मैला ढोने की प्रथा को सरकारी नौकरी घोषित करके उसपर किसी डॉक्टर इंजिनियर की तनख्वा और उचित प्रतिशत में आरक्षण तय करके मल मूत्र की सफाई करने वाले उम्मिदवारो की रोजगार बहाली की जाती|जो न होकर अब भी शोषित पिड़ित को ही मानो मौत का जहरिली कुँवा में उतरकर मल मुत्र की सफाई बिना कोई खास सुरक्षा इंतजाम के लगाया गया है|मानो मनुस्मृती सोच ही अपडेट हुई है|जिसके चलते कितने संवर्ण अपनी अध्यात्मिक सुख पाने के लिए अपने सर में मैला ढोते हैं,इसके बारे में जानकारी पता करके कोई भी ये अच्छी तरह से जान सकता है कि सर में मैला ढोने की प्रथा को मनुस्मृती सोच अनुसार ही किस तरह से अपडेट किया गया है|जिस तरह की भारी भेदभाव सोच से पुर्ण अजादी दिलाने लिए मुझे नही लगता कभी ऐसा समझौता होगा जिससे की संवर्ण पुर्ण रुप से भारी भेदभाव करना छोड़ देंगे,जबतक कि मनुस्मृती सोच एक भी कथित उच्च जाती के लोगो के भितर छुवा छुत की गंदगी के रुप में मौजुद रहेगी|जिसका कोई भी डॉक्टरी और प्राकृतिक इलाज नही है भले क्यों न गंदगी से होनेवाली तरह तरह की बिमारी का इलाज मौजुद है|पर भितर से ही छुवा छुत करने वाली गंदी का पुर्ण इलाज नही है बजाय इसके कि छुवा छुत करने वाला इंसान खुद ही अपने भितर से भष्म मनुस्मृती का भुत को बाहर निकालकर फैंक दे|जो भष्म मनुस्मृती भूत जबतक एक भी संवर्ण के भितर मौजुद रहेगी तबतक देश ही नही बल्कि पुरे विश्व में ही क्यों न सफाई योजना चलाये वर्तमान की सरकार खुदको विश्व की सबसे बड़ी पार्टी घोषित करके,जबतक एक भी संवर्णो के भितर छुवा छुत की गंदगी मौजुद रहेगी तबतक स्वच्छ भारत भी नही होगा और विश्व में भी भारी भेदभाव से मुक्ती का ज्ञान ठीक से नही बटेगा| क्योंकि ऐसी छुवा छुत की गंदगी में कैद होकर ये विश्वगुरु कहलाने वाला कृषी प्रधान देश पुरे विश्व को ऐसी हालत में कैसे वह ज्ञान ठीक से बांट सकता है,जब इस देश के मुलवासियो का ही मुल हक अधिकारो को छिनकर उनके साथ लंबे समय से छुवा छुत किया जा रहा है?

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