आज अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस है,जिसे अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के नाम से भी जाना जाता है,जिसे पुरे विश्व के 80 देशो में मनाया जाता है|हलांकि पुरे विश्व के सभी देशो में मजदूर हैं,जिनके दम पर हवा महल से लेकर ताजमहल तक खड़ा किया गया है|अथवा पुरे विश्व के तमाम अमिर जिनके पास आज वह सब कुछ मौजुद है,जिससे कि वे यह कहने में संकोच नही करते कि मेरे पास खुदका अपना कमाया हुआ धन मौजुद है,और जैसा कि हमे पता है कि पुरे विश्व में श्रम करने वालो की अबादी सबसे अधिक है,पर सिर्फ मुठीभर लोग ही पुरे विश्व में आज सबसे अमिर लोग कहलाते हैं,जिनके पास पुरे विश्व का इतना धन है,जितना कि पुरे विश्व की 99% अबादी के पास भी मौजुद नही है|यानि यदि लेन देन के रुप में धन की मुद्रा खोज न करके अन्न को न खाकर धन को ही खाया जाता तो फिर मानो अभी क्या 99 लोगो के पास जितना अन्न रोटी मौजुद नही रहती जितना कि 1 के पास मौजुद रहती|मतलब साफ है कि धन की खोज करके लोग अन्न और रोटी खाने के लिए सबसे अमिर नही बनते जा रहे हैं,बल्कि सबसे अधिक पैसे कमाने के लिए धनवान बनते जा रहे हैं|और जो लोग पैसे के लिए सबसे अधिक अमिर बनना पसंद नही करते,वे अपने पास जरुरत का धन रखकर बाकि अपना सारा धन उन्हे दान करते जा रहे हैं या कर देते हैं,जिनको पैसे की कमी होती है|क्योंकि सायद जो अमिर जिते जी दान नही करते वे भी अपने साथ न तो सारा धन मरने के बाद ले जा पाते हैं,और न ही उसे अपनी मर्जी के मुताबिक कई बार अपनो को भी दे पाते हैं|जिनमे से बहुतो का तो धन का सही बंटवारा करने से पहले ही उनकी मौत हो जाती है|और उनके मरने के बाद उनका धन उनके हकदारो में कई बार उनकी मर्जी के विपरित भी बांट ली जाती है|क्योंकि कई बार सबसे अधिक करिबी होने पर भी किसी धनवान के धन का सही हकदार किसे होना चाहिए विचार आपस में नही मिलते हैं|इसलिए मेरे ख्याल से विश्वभर में जितने भी 1%लोगो के पास जो इतना धन मौजुद है,जितना की 99% लोगो के पास मौजुद नही है,उसे उनके मरने के बाद उनके मर्जी के मुताबिक यदि जो भी अमिर सहमत हो तो उनका 99% धन को गरिब मजदूर में उनका बकाया श्रममोल के रुप में बांट देनी चाहिए| खासकर यदि उन 1% अमिर लोगो में जो भी अमिर मरने से पहले मेरी इस बात से सहमत होकर मरने से पहले ही उसे गरिब मजदूर में बकाया श्रममोल के रुप में बांटने का मन बना ले यह सत्य मानकर कि उनके द्वारा उठाये गए जिवन के उस फैशले से मेरे ख्याल से पुरे विश्व में उचित श्रममोल न मिलकर जो अमिरी गरिबी के बीच असंतुलन आया है,उसमे संतुलन आने में ज्यादे देरी भी नही लगेगी और बकाया श्रममोल के रुप में दान करने वाले सभी अमिरो के प्रति इतिहास में एक नया इतिहास भी रचा जायेगा कि अमिरो ने पुरे विश्व के गरिब मजदूरो के जिवन के साथ साथ मानवता और पर्यावरण में भी संतुलन कायम करने व सुख शांती और समृद्धी लाने के लिए क्या सबसे सही काम किया है?अभी तो सिर्फ सबसे अमिर लोगो के नाम यही इतिहास दर्ज हो रही है कि सबसे अमिर लोग अपनी सुख शांती और समृद्धी के लिए गरिब मजदूर से जो काम कराया है उसमे वे कम से कम अमिर बनने में तो कामयाब हो गए हैं|जैसे कि सायद दुनियाँ के सबसे अमिर व्यक्ती बिल गेट्स कामयाब हो गए हैं|जिसके सबसे अमिर बनने में जो धन इकठा हुआ है उसमे कहीं न कहीं किसी गरिब मजदूर का साथ जरुर रहा है,जो कि खुद भी बिल गेट्स के विचारो को सही मानकर उनके ही तरह श्रम करके अमिर जरुर बने होंगे|पर साथ साथ मैं ये भी मानता हुँ कि पुरे विश्व में जो गरिब मजदूर आजतक भी अमिर नही बन सके हैं,उनके गरिब रहने में भी कहीं न कहीं बिल गेट्स जैसे ही दुनियाँ के उन सबसे अमिर लोग ही प्रमुख कारन हैं,जिन सभी 1% के पास इतना धन मौजुद है,जितना कि पुरे विश्व के 99% लोगो के पास धन मौजुद नही है|क्योंकि 99% लोग भी तो कठिन श्रम कर रहे हैं,जिनमे कि गरिब मजदूर सभी सामिल हैं,पर सिर्फ 1% लोगो के पास दुनियाँ के सारे बाकि 99% के पास मौजुद जितना धन किस सत्य का श्रममोल के जरिये आ गया है|जिसे कमाने में भी तो कहीं न कहीं गरिब मजदूर का पसिना जरुर बहा होगा|बल्कि खुन भी बहा होगा जैसे कि आज जो मजदूर दिवस मनाया जाता है 1 मई 1886 को उसकी सुरुवात कैसे हुई थी इसके बारे में जानकर पता किया जा सकता है कि पुरे विश्व के सबसे अमिर लोगो को अमिर बनाने में गरिब मजदूर अपना खुन भी कैसे बहाते आ रहे हैं इतिहास में|पर उन सभी मजदूरो में आज भी ज्यादेतर गरिब क्यों है?जबकि वे भी तो दिन रात खुन पसिना बहाने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं!जैसे कि आज पुरे विश्व में जो मजदूर दिवस मनाया जाता है उसकी सुरुवात मजदूरो की पसिना और खुन से हुई थी जब अमेरिका के मजदूरो ने 8 घंटे से काम न करने की मांगो को पुरा करने के लिए हड़ताल कर दिया था,जिस हड़ताल में कई मजदूरो की पसिने के साथ साथ खुन भी बही थी|जिसके बाद मजदूर दिवस की सुरुवात हुई,और आज भारत समेत 80 देशो में आठ घंटे से अधिक काम न कराने का कानून लागू है|सिर्फ 80 देशो में ये कानून लागू है इसका मतलब ये नही कि बाकि देशो के लोग खुन बहाये गए उन मजदूरो को आज के दिन मजदूर दिवस में याद नही कर रहे होंगे या फिर उनका सम्मान नही कर रहे होंगे!बल्कि जिस अमेरिका में विश्व का सबसे अमिर व्यक्ती बिल गेट्स आज के दिन में मौजुद हैं उनके द्वारा गरिब मजदूर के सम्मान के प्रति यदि देखा जाय तो मैं उनके इस विचार से सहमत नही हुँ कि "गरीब पैदा होना गलती नही है,पर गरीब मरना गलती है" क्योंकि बिल गेट्स का गरिबी में मरना गलती है यदि सभी उन गरिब मजदूरो में भी लागू होती है,जो कि सारी जिवन मजदूरी करते हुए भी अपना गरिबी दुर नही कर सके और मर गए या फिर भविष्य में पुरे विश्व में न जाने और कितने बिल गेट्स जैसे लोगो को अपनी पसिना बहाकर और सबसे अमिर बनाकर खुद अमिर नही बन पायेंगे और गरीबी में ही मर जायेंगे,तो फिर मैं कहुँगा बिल गेट्स का वह विचार ही गलत है जिसके अनुसार गरिबी में मरना गलत है|बल्कि ऐसे विचार रखने वाले अमिरो को मैं उन्ही के की भाषा में उन गरिबो कि ओर से जरुर लिखना चाहुँगा जो कि गरिबी में मरे या फिर आगे भी ऐसे अमिरो के दुनियाँ में पैदा होते रहते हुए भी मरते रहेंगे,कि दुनियाँ में ऐसे अमिर का पैदा होना गलती नही है,पर उनके जैसो के अमिर होते हुए भी पुरे विश्व में गरिबी मौजुद रहना उनकी गलती है|क्योंकि 1 मई मजदूर दिवस के दिन जो अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया जाता हैं, मजदूरो की सम्मान के लिए वह क्या उन मजदूरो के लिए सही नही है,जो कि पहले भी कठिन श्रम करने के बावजूद भी गरिबी में मरे और भविष्य में भी कठिन श्रम करके भी गरिब ही मर जायेंगे?जिनके प्रति क्या मजदूर दिवस नही है?बल्कि मेरे लिए तो मजदूर दिवस के दिन मेरा ये पोस्ट के जरिये विश्व के उन तमाम लोगो के प्रति भी सम्मान है,जो कि भले श्रममोल भी न लेते हो पर फिर भी सत्य के लिए दिन रात कठिन श्रम कर रहे हैं,जिससे कि उनका खुन पसिना के साथ साथ बुद्धी भी खुब बह रहा है सत्य कामो में,जिन सभी को सम्मान है!और जो लोग अपना खुन पसिना और बुद्धी भी असत्य का धन कमाने में दिन रात सबसे ज्यादे लगे रहते हैं,उनको मेरा यही ज्ञान बांटना है कि अपना खुन पसिना और बुद्धी यदि असत्य का धन इकठा करने में ज्यादे बह रही है तो उसे सत्य बनाने के लिए मेरा ये ज्ञान मिलते ही आज से ही सत्य इस्तेमाल किया जाय|क्योंकि मेरी नजर में उन्ही लोगो का सम्मान सबसे अधिक है जिनके पास अमिर बनने का धन भले न हो,पर वे खुन पसिना और अपना बुद्धी बहाकर सत़्य श्रम के लिए करते हैं|न कि ऐसे झुठ कामो के लिए करते हैं जिससे कि किसी गरिब मजदूर का प्राकृत हक अधिकार छिना जाता है|बल्कि जो लोग सत्य काम भी यदि किसी गरिब मजदूर का हक अधिकार छिनकर अमिर बनते हैं,तो भी मैं उनका सम्मान नही करना चाहुँगा ये कहकर कि वे गरिब मजदूर का हक अधिकार छिनकर ज्यादे सम्मान पाने लायक हैं!क्योंकि वरदान तो भस्मासुर ने भी कठिन सत्य तप करके सत्य से वरदान पा लिया था,पर चूँकि वह उस वरदान का गलत उपयोग किया और उल्टे सत्य को ही भष्म करने के लिए वरदान देने वाले सत्य के ही पिच्छे पड़कर दरसल सत्य वरदान का गलत उपयोग किया!इसलिए भस्मासुर का मैं दिल से सम्मान नही करुँगा|बल्कि अपना ये ज्ञान दुँगा कि अपने मिले वरदान का सत्य उपयोग गरिब मजदूरो की गरीबी दुर करने के लिए ऐसा करे जिससे कि भले वह खुद गरिब बन जाय पर दुनियाँ के सारे धन वाले अमिर उसके सामने इतिहास में छोटे पड़ जाय|जिस काम को करने के लिए यदि बिल गेट्स जैसे अमिर भी करने में लगे हैं तो मैं उनका भी सम्मान जरुर करुँगा|पर तब जबकि वे गरिबी में मरना किसी गरिब की गलती न मानते हो या फिर ऐसे विचार को ही अपनी गलती मानकर अपना वह विचार बदलकर गरिब मजदूरो कि सेवा इस भावना से करते हो कि उनके जैसे अमिरो के रहते जबतक एक भी व्यक्ती दुनियाँ में गरिबी में जी रहा हो तो कहीं न कहीं उन अमिरो से गलती हो रही है जो कि गरिब मजदूर के श्रम सहयोग से खुद तो सबसे अमिर बन गए हैं पर जिनके सहयोग से वे सबसे अमिर बने हैं उनमे आज भी बहुत से गरिब मजदूर अपना श्रमोल पाकर भी अमिर नही बन पाये हैं|जिनका गरिबी में मरना गलती नही माना जायेगा|और न ही अमिरी को उन गरिबी से ज्यादा सही माना जायेगा|जो बात यदी सत्य नही होती तो फिर सायद कोई भी अपना धन गरिबो को दान नही करता|बल्कि विश्व में तो ऐसे भी महान महात्मा लोग इंसान के रुप में जन्म लिये हैं जो कि अपना सबकुछ त्यागकर बिना धन के भिख मांगकर भी जिवन जिये हैं|जैसे कि कभी महलो और कई विद्वान गुरुओ का ज्ञान डिग्री मान्यता की भारी बस्ता त्यागकर राजकुमार सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध कहलाये|जिनसे महान और महात्मा दुनियाँ के सबसे अमिर लोग भी नही कहलाते हैं|और न ही कोई महान महात्मा लोग इस बात से सहमत होते होंगे कि गरिबी में मरना गलती है|बल्कि बुद्ध तो गरिब से भी निचे की जिवन जिये थे!जिनके द्वारा राजकुमार सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बनने का सफर भिक्षा मांगकर पुरा किया गया है|जिन्हे भी मैं पुरे विश्व के लिए बिना श्रममोल के भी श्रम करने वाला एक ऐसा श्रमिक मानता हुँ जो कि बिना कोई धन मोल लिये ही भिक्षा का अन्न खाकर सुख शांती और समृद्धी कायम करने का अनमोल ज्ञान एक पीपल पेड़ के निचे कठिन तप श्रम करके पुरे विश्व को बुद्धी के शरन में जाने का ज्ञान बांटे हैं|जिसके तप योग को मैं श्रम भी इसलिए मानता हुँ क्योंकि ऐसे तपस्वी भी मेरी नजर में मानवता और पर्यावरण को संतुलित करने के लिए ऐसे श्रमिक हैं जो कि इंसानो द्वारा बनाये गए मुद्रा को लिए बगैर अथवा बिना धन के भी कठिन श्रम उस भगवान के द्वारा विशेष श्रम कराने के लिए विशेष चुनकर भेजे गए होते हैं,जिन्होने इंसानो की धनवान बनने की मुद्रा नही बल्कि सारी सृष्टी को बनाया है|और जिस तरह के सत्य के लिए श्रम करने वाले चाहे श्रममोल लेकर श्रम करते हो या फिर बिना श्रममोल लिए ही करते हो,यदि उन्होने किसी गरिब मजदूर का हक अधिकार को न छिना हो तो उनके लिए मेरे भितर सबसे अधिक सम्मान है|जिस सम्मान को देते हुए साथ में मुझे इस बात पर गर्व भी है कि मैं भी सत्य के लिए ही दिन रात सबसे अधिक श्रम कर रहा हुँ|जैसे कि यह ज्ञान बांटने का श्रम भी दिन रात कर रहा हुँ जिसका मुझे आजतक एक रुपया भी इंसानो के द्वारा बनाया गया मुद्रा के रुप में श्रममोल नही मिला है|इसका मतलब ये नही कि मुझे कुछ मोल नही मिला है ये सत्य कर्म करके,बल्कि मुझे सत्य के लिए संघर्ष करने में सबसे अनमोल आज के दिन ये पोस्ट लिखते समय मेरी माँ के द्वारा दिया गया दस रुपया का सिक्का मिला है!जिसे मैं खास के श्रममोल के रुप में उसकी तस्वीर मैं आज पहली बार अपनी खुद के द्वारा खिची गई तस्वीर के रुप में भी पोस्ट में डाल रहा हुँ|जिसे मैं आज अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के दिन मिला अनमोल श्रममोल कहुँ तो मेरे लिए कोई बुरा नही होगा| "धन्यवाद"
In order to bring about a balanced change in the humanity and environment of the whole world, I have given my views about politics, religion, Chunav Vagaira. पूरी दुनिया की मानवता और पर्यावरण में एक संतुलित बदलाव लाने के लिए, मैंने राजनीति, धर्म, सरकार चूनाव वगैरा के बारे में अपने विचार दिए हैं। pooree duniya kee maanavata aur paryaavaran mein ek santulit badalaav laane ke lie, mainne raajaneeti, dharm, choonav vagaira ke baare mein apane vichaar die hain.
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