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रविवार, 29 सितंबर 2019

मेरी राय में सबकी गरिबी भुखमरी एक झटके में दुर करके उनकी ही बुद्धी बल से वापस सोने की चिड़ियाँ को अपडेट कैसे करें

 मेरी राय में सबकी गरिबी भुखमरी एक झटके में दुर करके उनकी ही बुद्धी बल से वापस सोने की चिड़ियाँ को अपडेट कैसे करें


अब इस देश के मुलनिवासी पहले जैसा कमजोर नही बल्कि ताकतवर हो चुका है , जो अब महंगी महंगी सुट बुट पहनने लगा हैं " वगैरा वगैरा प्रतिक्रिया क्या वाकई गरिब बीपीएल परिवार के उन लोगो में लागू होती है , जिनकी मौत इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला देश में अन्न धन का भंडार होते हुए भी गरिबी भुखमरी से हो रही है ? क्योंकि इस देश के मुलनिवासी बुद्धी और शारिरिक बल से कमजोर तो हजारो लाखो साल पहले भी नही था , जिसका ऐतिहासिक प्रमाण हजारो साल पहले निर्माण की गई प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति और नालंदा जैसे कई विश्वविद्यालय है , पर मनुवादि शासन में भी अमिरी सुख सुविधा का लाभ उठा रहे गिने चुने ताकतवर मुलनिवासियो को यह बात भी जरुर हमेशा याद रखनी चाहिए कि सुट बुट पहनने वाले शोषित पिड़ितो से कई गुणा अबादी लंबे समय से जिवित रहने के लिए ताकतवर और सहनशील संघर्क सबसे अधिक करते हुए भी हजारो साल बाद विकसित से और अधिक विकसित होने के बजाय इस मनुवादि शासन में भुखा नंगा जिवन जिने को मजबुर क्यों हैं | जिनके पास महंगी महंगी सुट बुट और गाड़ी बंगला तो दुर रोज पेटभर खाने और पक्के घर में रहने सोने के लिए भी कड़ा संघर्ष करना क्यों पड़ रहा है | क्योंकि गोरो के जाने के बाद वापस मनुवादियो की सत्ता कायम हो गई है | जिस मजबुरी को कमजोरी कहा जाता है | जिस कमजोरी के बारे में प्रयोगिक तौर पर वही जान सकता है या जान चूका है , जिसने कभी गोरो की गुलामी से भी दर्दनाक मनुवादियो की छुवा छुत गुलामी को मजबूरी से झेलते हुए गरिबी भुखमरी से लंबे समय तक संघर्ष किया है | और अमिर बनने के बाद कभी भी वापस उस गरिबी भुखमरी और छुवा छुत जिवन में वापस लौटना नही चाहता है , जिस जिवन को वर्तमान में करोड़ो लोग आज भी इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले देश में जिने के लिए मजबूर हैं | क्योंकि आज भी इस देश में मनुवादियो का ही दबदबा है | जिसके चलते इस देश के करोड़ो मुलनिवासियो की जिवन में अमिरी आजतक न तो कोई आधुनिक शाईनिंग और डीजिटल सरकार ला पायी है , और न ही कोई धन्ना कुबेर अपने धन से करोड़ो लोगो कि गरिबी भुखमरी को दुर कर पाया है | क्योंकि आजतक कोई सरकार या धन्ना कुबेर पैदा नही लिया जो देश तो क्या एक जिले की भी गरिबी भुखमरी को दुर कर सके | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि इतनी भारी अबादी को कौन गरिबी भुखमरी से छुटकारा दिला पायेगा सिवाय उस भारी बदलाव के जो कि मनुवादि शासन का अंत होने के बाद आयेगा | जैसे कि यदि मैं इस समय इस देश का शासक बनता तो जिस तरह से अजादी से लेकर अबतक मनुवादि सरकार धन्ना कुबेरो को हर साल माफी और छुट के नाम से धन की बारिस करते आई है , उस तरह कि एक एक धन्ना को हजारो करोड़ की धन बारिस सभी गरिबो के जिवन में न सही पर सबकी गरिबी भुखमरी एक झटके में दुर हो जाती उतनी धन जरुर देता | पर चूँकि उतनी की धन छपाई तो मुमकिन नही है पर उतनी की ही कोई अन्य किमती खनिज संपदा जमिन वगैरा जो की इस प्राकृति खनिज संपदा समृद्ध देश में भरा पड़ा है , जिसे हजारो सालो से कई कबिलई लुटेरे आते रहे हैं , उसकी बारिस करके सबकी गरिबी भुखमरी एक झटके में दुर करके उनकी ही बुद्धी बल से वापस सोने की चिड़ियाँ को अपडेट करता | जो कि इस देश के मुलनिवासियो के जिवन से बिना गरिबी भुखमरी दुर किए मुमकिन नही है | जिसे दुर करने के बजाय हर साल अमिर को ही और अधिक अमिर बनाने के लिए सबसे अधिक धन धन्ना कुबेरो को छुट और माफी देकर लुटाया जा रहा है | क्योंकि मनुवादि सरकार को पता है कि सबसे अधिक धन्ना कुबेर कौन लोग इस समय बनकर इस सोने की चिड़ियाँ का प्राकृति खनिज संपदा का भी खुदाई जमकर करा रहे हैं | जिस प्राकृति खनिज संपदा और मजबुत सत्ता का बेहत्तर नेतृत्व से ही सबकि गरिबी भुखमरी समाप्त होना मुमकिन है | जिसके बगैर इस देश के करोड़ो मुलनिवासियो की गरिबी भुखमरी कभी भी समाप्त नही हो सकती | महंगी महंगी सुटबुट गाड़ी बंगला के साथ फोटो खिचवाने वाले तो अपनी जिवन को मनुवादि शासन में भी आधुनिक डिजीटल और साईनिंग करके मानो मनुवादियो की शासन को उनका विकाश करने वाला शासन साबित करके चले जायेंगे , जिनमे अमिर बने कुछ मुलनिवासी भी मनुवादियो को शोसल मीडिया में जलन जैसी भ्रष्ट व्यवहार का जवाब देकर अपनी अमिरी शोसल मीडिया में दिखाकर चले जायेंगे , पर उन करोड़ो गरिब बीपीएल मुलनिवासियो बल्कि सायद हो सके तो कुछ कथित उच्च जाति के लोग भी जो गरिब बीपीएल जिवन जिते जिते अपनी जिवनलीला गरिबी भुखमरी में पैदा लेकर गरिबी भुखमरी में ही मर जायेंगे उनका क्या ? जिनकी नई पिड़ी को भी मनुवादि शासन में परजिवी सोच द्वारा हर रोज शोषन अत्याचार करके मानो जिस तरह मच्छड़ खटमल और जू दुसरो का खुन चुसते हैं , वैसे ही उनके हक अधिकारो को चुसा जायेगा और वर्तमान में भी चुसा जा रहा हैं | जिसे चुसने के लिए ही तो उच्च निच छुवा छुत की परंपरा सुरु करके हजारो जातियो में भी बांटा है | क्योंकि छुवा छुत शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादियो की सोच ही परजिवी है , जिसमे दुसरो का चुसकर खुदका भरते रहो और जिसका चुसा है उसे तड़प तड़पकर मरते हुए देखते रहो ! जैसे कि शिकारी जानवर अपने लहू लुहान शिकार की बोटी नोचते और आपस में बांटते समय बार बार दर्द से तड़पते हुए देखते हुए यह नही सोचता होगा , कि शिकार होने वाला प्राणी को तकलीफ हो रहा होगा | छुवा छुत करने वाले मनुवादि भी इस देश के मुलनिवासियो का शोषन अत्याचार करते समय यह नही सोचते होंगे कि मुलनिवासियो को तकलिफ हो रहा होगा | जिस मनुवादि शासन को समाप्त करने में मजबुत एकलव्य लक्ष होनी चाहिए | क्योंकि मनुवादि शासन के समाप्त होने से पहले इस देश के मुलनिवासी मनुवादियो को जुता चप्पल के रुप में चाहे जितना कठोर जवाब दें , लेकिन भी हर रोज करोड़ो मुलनिवासियो के साथ मनुवादि शोषन अत्याचार करके उन्हे कमजोर और दबे कुचले लोग साबित करते रहेंगे | जिन्हे दबाने कुचलने से शोसल मीडिया में जुता चप्पल का अभियान सारी जिवन भी चलाकर नही रोका जा सकता | क्योंकि इस समय मनुवादियो के हाथो सबसे बड़ा गणतंत्र का ताकतवर सत्ता मौजुद है | जिसे मनुवादि दबाने कुचलने और शोषन अत्याचार करने का सबसे बड़ा हथियार बनाये हुए हैं | जैसे की कभी गोरो ने इस देश की सत्ता को शोषन अत्याचार और लुटपाट करने का हथियार बनाकर राज किया था | जो सत्ता अब मनुवादियो के पाले में आ गई है | जिसका इस्तेमाल करके मनुवादि उस तरह के भी मुलनिवासियो को दबाने कुचलने में सक्षम हैं , जो कि कमजोर दबे कुचले लोगो को न्याय और उचित हक अधिकार मिलनी चाहिए इसकी आवाज संसद और सड़क तक मजबुति से उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट तक में भी केश लड़ने में सक्षम हैं | लेकिन भी दबे कुचले लोगो को न्याय मिलनी चाहिए ये आवाज उठाते उठाते खुद भी अपना ये दुःख सुनाते रहते हैं कि मनुवादि सत्ता द्वारा वे भी दबाये कुचले जा रहे हैं |  जैसे कि लालू और मायावती , जिनके द्वारा भी यह कहते हुए सुनी देखी जाती है कि सत्ता का गलत इस्तेमाल करके उन्हे भी दबाया जा रहा है | जिनको दबाये कुचले जाने से कौन रोकेगा ? क्योंकि  बाकि मुलनिवासी तो उनके सामने उनसे भी कई गुणा पिड़ित और कमजोर लोग हैं |

सबसे उचित हक अधिकार दरसल सबसे पहले इस देश के मुलनिवासियो को मास्टर चाभि कहे जानेवाली सत्ता में उचित अवसर मिलना है



सबसे उचित हक अधिकार दरसल सबसे पहले इस देश के मुलनिवासियो को मास्टर चाभि कहे जानेवाली सत्ता में उचित अवसर मिलना है 

जिस सत्ता में इस समय मनुवादियो की दबदबा मौजुद है | जिनकी दबदबावाली सत्ता में लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में इस देश के मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो उनके हक अधिकारो की अँगुठा काटकर उच्च पदो में सबसे अधिक बहाली मनुवादियो की होना स्वभाविक है | क्योंकि हमे यह कभी नही भुलना चाहिए की गोरो द्वारा गुलाम भारत में भी गुलाम करने वाले गोरे की ही बहाली न्यायालय तक में भी जज के रुप में सबसे अधिक होती थी | क्योंकि मुठिभर अबादी के होते हुए भी उनके हाथो देश की सत्ता मौजुद थी | जिसके रहते वे अजादी का आंदोलन करने वालो को सबसे बड़ा अपराधी और गुलाम करने वालो को निर्दोश साबित करके न्याय करने वाला सबसे बड़ा जज खुद ही खुदको सबसे अधिक बना सकते थे | जैसे की इस समय मनुवादि सबसे अधिक जज उस न्यायालय में भी बने और बनाए हुए हैं , जिसे अजाद भारत संविधान की रक्षा और उसे बेहत्तर तरिके से लागू करने की जिम्मेवारी आरक्षण मुक्त करके दी गई है | जिस संविधान की रचना करने वाले अंबेडकर ने पहले मनुस्मृती को जलाया फिर जाके अजाद भारत का संविधान रचना किया था | जिसने कभी भी यह कल्पना नही कि होगी कि अजाद भारत का संविधान की रक्षा और उसे बेहत्तर तरिके से लागू करने वाले न्यायालय का जज बहाल कथित उसी उच्च जाति के लोग सबसे अधिक होंगे जिनके द्वारा मनुस्मृती की रचना की गई थी | जिन मनुवादियो की उच्च निच छुवा छुत शोषन अत्याचार आज भी अजाद भारत का संविधान लागू होने के बावजुद भी बरकरार है | जो कथित उच्च जाति के लोग मनुस्मृती लागू करके इस देश के मुलनिवासियो को निच जाति घोषित करके वेद सुनने पर कान में गर्म पिघला लोहा डालना , वेद का उच्चारण करने पर जीभ काटना , अँगुठा काटना , कमर में झाड़ू टांगना , गले में थुक हांडी टांगना , जैसे न्याय करते थे | जो आज सबसे अधिक संख्या में न्यायालय में भी सबसे अधिक जज बनने कि काबिल खुदको साबित करके अजाद भारत का संविधान की रक्षा और उसे बेहत्तर तरिके से लागू करने की जिम्मेवारी निभा रहे हैं | जिसकी झांकी पुर्व लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा की रिपोर्ट 2000 ई० के बारे में जानकर देख लिया जाय | जिसमे सबसे पहले देश की राजधानी दिल्ली से ही सुरुवात की जाय!
(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC जात के 35 जज ,SC जात के 15 जज ,ST जात के 5 जज शामिल हैं | हलांकि इस रिपोर्ट में अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासियो की संख्या मौजुद है कि नही इसका जवाब तो रिपोर्ट बनाने वाले ही बेहत्तर बता सकते हैं | जिस रिपोर्ट में यदि वाकई में अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासियो की संख्या हाईकोर्ट में 0 हुई तो फिर तो अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासियो की हालत मनुवादि सत्ता में और भी अधिक खराब है |

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

इस देश के मुलनिवासी अपने सर मैं मैला तक ढोकर मनुवादियो के सर में सत्ता ताज पहना रखा है , फिर भी मनुवादियो को किमती जुता चप्पल तक में जलन

इस देश के मुलनिवासी अपने सर मैं मैला तक ढोकर मनुवादियो के सर में सत्ता ताज पहना रखा है , फिर भी मनुवादियो को किमती जुता चप्पल तक में जलन


जबकि किमती जुता चप्पल गाड़ी बंगला वगैरा को देखकर मनुवादियो को जलने के बजाय खुश होना चाहिए था कि उनकी छुवा छुत शासन में अभी भी कम से कम चंद मुलनिवासी तो अमिरी जिवन जी रहे हैं | क्योंकि अगर इस देश के मुलनिवासियो को हजारो सालो तक लुटा नही जाता , और विदेशी मुल के कबिलई द्वारा बार बार लंबे समय तक उनकी सत्ता पर कब्जा किया नही जाता , तो निश्चित तौर पर मनुवादियो से अधिक अमिर इस देश के मुलनिवासी होते | मनुवादियो से ज्यादे धन किमती गाड़ी बंगला वगैरा इस देश के मुलनिवासियो के पास सबसे अधिक होती | जिससे इस देश के मुलनिवासियो की असली औकात मनुवादियो और अन्य उन विदेशि मुल के लोगो को भी पता चल जाता जिनके द्वारा इस देश में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियो के हक अधिकारो को लंबे समय तक लुटा गया है | और जिनके द्वारा लुटने से पहले उनकी भी औकात क्या थी सारी दुनियाँ को आज के समय में भी  प्रयोगिक तौर पर पता चल जाती | अथवा जिसके बारे में वर्तमान के भी झुठी शान के नशे में डुबे मनुवादियो को प्रयोगिक तौर पर पता चलने के साथ साथ सत्ता नेतृत्व और उस विकसित सोच के बारे में भी पता चल जाता कि इस देश के मुलनिवासी हजारो साल पहले उस समय भी आधुनिक विकसित सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करके हजारो हुनरो से शासन व्यवस्था को शांती पुर्वक चलाते हुए  बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर खुशियो का मेला कैसे लगाते थे , जब वर्तमान मनुवादियो के पुर्वज संभवता कपड़ा पहनना और परिवार समाज के बारे में भी नही जानते थे | जिसके बारे में उन्हे संभवता इस कृषी प्रधान देश में बिना परिवार के पुरुष झुंड बनाकर प्रवेश करके पता चला होगा | क्योंकि मनुवादियो के परिवार में मौजुद महिलाओ की भी डीएनए इस देश के मुलनिवासियो से ही मिलती है | जो बात एक विश्व स्तरीय डीएनए से साबित हो चुका है | जिसका मतलब यह हुआ कि मनुवादि के पुर्वज इस देश में प्रवेश करने से पहले किसी स्थिर परिवार समाज में नही जि रहे थे | जिसे वैज्ञानिक प्रमाण मिल चुका यह माना जा सकता है | क्योंकि मनुवादि गोरो की तरह वापस अपने पुर्वजो की भूमि में नही लौटे हैं | बल्कि उस मुल भुमि का पता भी आजतक नही बता पाये हैं जहाँ पर उनके पुर्वज इस देश की नारी नही बल्कि अपने जैसा विदेशी डीएनए की नारी के साथ ही परिवार बसाकर रहते थे | जबकि उस समय इस देश के मुलनिवासी विकसित समाज परिवार और गणतंत्र जिवन जी रहे थे इसका विज्ञान प्रमाणित सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति है | और सबसे बड़ा प्रमाण तो साक्षात मौजुद सागर जैसा स्थिर इतना बड़ा देश है | जिस देश में मौजुद लाखो ग्रामो में एक ग्राम तक का भी निर्माण करना इस देश में प्रवेश करने से पहले नही जानते थे मनुवादि ! यानी देखा जाय तो मनुवादि का बुद्धी शिकारी जानवर सोच से भी जब बाहर नही निकला था उस समय इस देश के मुलनिवासी विकसित कृषि सभ्यता संस्कृति जिवन जी रहे थे | यू ही इस देश को सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु पहचान नही मिली है ! जो कोई मनुवादियो द्वारा छुवा छुत और गुलाम दास बनाके नही मिली है | जो छुवा छुत और जानवरपन यदि इस देश के मुलनिवासी करते तो फिर तो मनुवादि इस देश में प्रवेश कभी कर ही नही पाते | बाद में प्रवेश करने वाले अत्याचारी तो वैसे भी इस देश में तब प्रवेश किए थे जब वे उस शैतान सिकंदर को विश्व विजेता सबसे ताकतवर महान सिकंदर कहकर मानो उसके जैसा ताकतवर बनने की सपने देखते हुए यहाँ आए थे जिसे इस देश की ताकत के बारे में सिर्फ पुरु झांकी देखकर अधमरा हालत में किनारे से ही उल्टे पांव दुम दबाकर भागना पड़ा था | हलांकि यह बात अलग है कि उस समय भी मनुवादि परजिवी शिकारी जानवर की तरह इस देश के मुलनिवासियो का हक अधिकारो को चुसकर हजारो सालो से अपना पेट भर रहे थे | क्योंकि यह देश ही सागर जैसा इतना विशाल और स्थिर है जहाँ पर सबसे शक्तीशाली शासक होते हुए भी भिख में अपनी ताज तक गवा दी जाती है | जिस तरह कि असली औकात में जिसदिन भी आ गए इस देश के मुलनिवासी तो निश्चित तौर पर मनुवादि वापस फिर से वामन बनकर हाथ में कटोरा लेकर जिवन गुजारा के लिए दान दक्षिणा मांगेंगे | जैसे कि वेद पुराण काल में मनुवादियो के पुर्वज वामन के नेतृत्व में सारे देव मिलकर बलि दानव से मांगे थे | जिसके बाद फिर से अपनी मनुस्मृती सोच और छल कपट नीति से बलि को बंधक बनाकर सत्ता में कब्जा कर लिया गया था | पर इसबार उनकी ऐसी छल कपट निती नही चलने वाली है जिसे उन्होने वेद पुराण काल में बार बार प्रयोग किया है | हलांकि मनुवादि आज भी अपनी मनुस्मृति सोच और छल कपट का सहारा लेकर ही अबतक सत्ता में कायम रहकर इस देश के मुलनिवासियो के साथ शोषन अत्याचार करना जारी रखे हुए हैं | क्योंकि दरसल मनुवादि वैसे घर के भेदियो की सहायता से इस देश की सत्ता में अबतक भी कब्जा करके सत्ता ताकत का भरपुर इस्तेमाल करते हुए अपने पुर्वजो की मनुवादि सोच को ही अपडेट करने में लगे हुए हैं , जो की न अपनो के लिए जिते हैं और न ही दुसरो के लिए जिते हैं | वे सिर्फ अपनी झुठी शान के लिए जिते हैं | जिनको जिधर झुठी शान का जिवन गुजारा के लिए सुख सुविधा उपलब्ध होगी उधर गिरगिट की तरह रंग बदल लेंगे | जिस तरह की घर के भेदियो की सहायता से ही तो मनुवादि इस देश में बाहर से आकर खुदको हिन्दु धर्म का ठिकेदार बनाकर वेद पुराणो में भी मिलावट और छेड़छाड़ करने के बाद ढोंग पाखंड का नंगा नाच सुरु किया है | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासियो को राक्षस दानव असुर निच शुद्र वगैरा कहकर मानो लंगटा लुचा से खुदको उच्चा घोषित किए हुए है | जो सब होने के बाद भी मनुवादि इस देश के मुलनिवासियो को पुरी तरह से दबा नही पा रहे हैं तो जलन के मारे अबतक भी यह बात नही भुला पा रहे हैं कि मनुवादियो की औकात इस देश के मुलनिवासियो की सत्ता फिर से स्थापित होने के बाद कैसी हो जायेगी | जिसकी चिंता मनुवादियो को दिन रात सताती रहती है कि जब मनुवादियो की शासन में इस देश के मुलनिवासी इतने किमती किमती सुख सुविधाओ का इस्तेमाल करना अबतक नही भुल पा रहे हैं तो इस देश के मुलनिवासियो की सत्ता पुरी तरह से वापिस स्थापित हो जायेगी तो क्या होगा ! कहीं फिर से इस देश के मुलनिवासी कई कई किलो का सोना चाँदी हिरे मोती पहनकर सोने चाँदी के बर्तनो में खाने और सोने की महलो में न रहने लगे | जिसके बाद तो मनुवादियो को इस देश में जिवन गुजारा करने के लिए सचमुच में फिर से वामन बनकर कटोरा लिए अपडेट बलि दानव से दान दक्षिना मांगनी न पड़ जायेगी | जिसके बारे में सोच सोचकर अपनी उधार की अमिरी पर दिन रात इतराने वाले मनुवादियो की सुख चैन धिरे धिरे गायब होते जा रही है | क्योंकि मनुवादियो की उच्च सिंघासन डोल रही है , जैसे की वेद पुराण काल में दानव असुर और राक्षसो की तप बल से इंद्रदेव की सिंघासन डोलती थी | जिस वेद पुराण काल में तो  मनुवादि अपनी जलन को कम करने और अपने बड़े बड़े पापो को छिपाने के लिए इस देश के मुलनिवासियो को मायावी विशाल शरिर व बड़े बड़े दांतोवाला , मानव भक्षन करने वाला राक्षस राक्षसनी असुर दानव वगैरा झुठ कहकर इस सच्चाई से ध्यान भटकाने की कोशिष करते थे कि मनुवादि दरसल वेद पुराण काल में भी इस देश के मुलनिवासियो की हक अधिकारो को छिनकर ही उधार की लंगटा लुचा कुबेर से धन्ना कुबेर और इतने बड़े देश की शक्तिशाली सत्ता पर कब्जा जमाकर ताकतवर जिवन जी रहे थे | पर अब चूँकि इस देश के मुलनिवासियो पर मानव भक्षण करके जिवन यापन करने का आरोप लगाकर मनुवादि रंगेहाथ खुद ही गलत साबित हो जायेंगे इसलिए उन्होने फिर से वही मनुस्मृती वाली फुट डालो और राज करो की भ्रष्ट नीति को ही अपनाकर इस देश के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांटने के बाद राजनीति में भी अलग अलग बांटकर अपनी पुरानी सोच को ही नया अपडेट करने का प्रयाश किया है | जैसे कि हजारो साल पहले हजारो हुनरो को जानने वाले इस देश के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांटकर उच्च निच छुवा छुत भेदभाव करके सत्ता स्थापित किया गया था | जिस दौरान जो उच्च निच परंपरा की सुरुवात करके इस देश के मुलनिवासियों को हजारो जातियो में बांटा गया था , उन हजारो जातियो को मनुवादियो के खिलाफ एकजुट होता देखकर आपस में लड़ाने भिड़ाने का फुट डालो राज करो नीति राजनीति में भी सुरु कर दि गयी है | जो राजनीति गोरो की गुलामी के समय सिर्फ गोरो के लिए सबसे अधिक प्रभावी थी | पर गोरो का शासन समाप्त होकर मनुवादि सत्ता कायम होने के बाद चूँकि मनुवादियो का शोषन अत्याचार फिर से मजबुती से कायम हो गयी है , इसलिए मनुवादियो के लिए सबसे अधिक प्रभावी साबित हो रही है | जिस प्रभाव को हमेशा कायम रखने के लिए उन्होने सबसे खास नीति के तौर पर घर का भेदि पैदा करके एक ही डीएनए के मुलनिवासियो को जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , उन्हे आपस में लड़ाने भिड़ाने में ज्यादे ध्यान दिया जा रहा है | जो मनुवादि सत्ता बने रहने के लिए मनुवादियो के लिए सबसे आसान रास्ता भी है | क्योंकि घर का भेदि मनुवादियो की झुठी शान को असली शान समझकर मनुवादियो की तरह की जिवन जिने की झुठी लालच में पड़कर जरा सी बोटी फैंकने पर आसानी से मनुवादियो की चमचई करने लगते हैं | पर अब चूँकि मनुवादियो की झुठी उच्च और पुज्यनीय शान में कमी आ रही है | इसलिए घर का भेदि भी मनुवादियो के खिलाफ पुरी अजादी पाने के लिए छिड़ी कड़ी संघर्ष में शामिल होने के लिए मानो बोटी वापस कर रहे हैं | खासकर आरक्षित सिटो से चुनकर आने वाले वैसे घर के भेदि जिन्हे मनुवादि  आरक्षित सिटो को भी किसी न किसी तरिके से सरकार बनाने में इस्तेमाल करने के लिए ही आरक्षित सीट से अपने लिए मजबूरी वश बलि का बकरा के रुप में खड़ा किए थे | क्योंकि मनुवादि अक्सर वैसे घर के भेदियो को अपने लिए खड़ा करते हैं , जिन्हे मनुवादियो की तरह झुठी शान की जिवन जिने की इच्छा होती है | जिसके चलते वे मनुवादियो की चमचई करके आरक्षित सीट का टिकट हासिल करने के लिए यह भुल जाते हैं कि मनुवादियो की दबदबा वाली पार्टी से उनके चुने जाने के बाद चाहे वे जितने बड़े पदो में बैठेंगे लेकिन आदेश तो मनुवादियो का ही पालन करेंगे | जैसे की तमाशा दिखलाते समय बंदर भालू अपने आका मदाड़ी के इसारे पर नाचते हैं | हलांकि मनुवादियो के इसारे का पालन कर करके उब रहे घर के भेदि यदि वाकई में बोटी वापस करके मनुवादियो के खिलाफ संघर्ष करने की मन में ठान लें तो निश्चित तौर पर इस देश के सभी मुलनिवासी मिल जुलकर एकता बनाकर मनुवादियो की सत्ता को एक झटके में किसी खरपतवार की तरह उखाड़कर फैंक सकते हैं | क्योंकि हमे यह बात खास तौर पर प्रत्येक चुनाव के समय याद रखनी चाहिए कि मनुस्मृति को जलाकर जो अजाद भारत का संविधान रचना किया गया है , उसमे सांसद सीट में भी आरक्षण लागू है | जिन सिटो में मनुवादि तो चुनाव नही लड़ सकते पर किसी मुलनिवासी को ही अपना बलि का बकरा बनाकर खड़ा जरुर करते हैं | जिसके चलते मनुवादि सरकार यदि बार बार चुनाव घोटाला करके भी चुनकर आ रही होगी तो भी आरक्षित सीटो से संसद में मुलनिवासी ही भारी तादार में चुनाकर मनुवादियो की सरकार बनाते जा रहे हैं | जो अगर एकजुट हो जाय तो मनुवादि सरकार एक झटके में समाप्त हो सकती है | बल्कि मनुवादियो द्वारा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में हक अधिकारो की अँगुठा काटने के बावजुद भी आरक्षित सरकारी नौकरियो और संसद सीटो में मनुवादि सरकार इस देश के मुलनिवासियो को चुने जाने से नही रोक सकती | और न ही मनुवादि अपनी ढोंग पाखंड छुवा छुत की मिलावट वेद पुराणो में करके इस कृषी प्रधान देश में बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहारो को कभी समाप्त कर सकते हैं | बल्कि मनुवादियो की नई पिड़ी भी अब घुमकड़ कबिलई सोच को त्यागकर इस देश के मुलनिवासियो की ही सागर जैसा स्थिर कृषि प्रधान जिवनशैली को कई मामलो में अपना आदर्श बनाने की कोशिष में लगा हुआ है | जिसके चलते नई पिड़ी में उच्च निच का भेदभाव छोड़कर प्रेम विवाह का भी प्रचलन बड़ गया है | साथ साथ अमिरी गरिबी की खाई बड़ने के बावजुद भी इस देश में अब मुलनिवासियो द्वारा भी करोड़पति अरबपति बनने का रफ्तार तेज होता जा रहा है | वह भी मनुवादि सत्ता में ! जिसके कारन मनुवादियो की जलन प्रक्रिया में और भी अधिक बड़ौतरी होना स्वभाविक है | खासकर तब भी जबकि मनुवादियो की दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम है | जहाँ पर इस देश के मुलनिवासियो की भागीदारी न के बराबर है | जिसके बावजुद भी चूँकि मनुस्मृति के जगह अजाद भारत का संविधान लागू है , जिसमे आरक्षन लागू है , इसलिए चुनाव घोटाला करके भी मनुवादि आरक्षित सीट और आरक्षित सरकारी पदो में भी कब्जा करके खुदको स्थापित नही कर सकते | जिसके चलते मनुवादि शासन द्वारा न चाहते हुए भी इस देश के मुलनिवासियो को आरक्षण की वजह से संसद और सरकारी नौकरियो में भागीदारी देनी ही होती है | क्योंकि आरक्षित सीट पर मनुवादि किसी भी हालत में कब्जा नही कर सकते | बल्कि सरकारी नौकरियो में मिली आरक्षण की तरह आरक्षण कोटा बड़ाकर पिछड़ी जातियो को भी सांसद विधायक सिटो में आरक्षण मिलनी चाहिए | क्योंकि पिछड़ी जातियो का भी तो डीएनए मुलनिवासी डीएनए है | न कि पिछड़ी जाति मनुवादियो की तरह विदेशी डीएनए के लोग हैं | बल्कि मनुवादियो के परिवार में मौजुद नारियो का डीएनए भी इस देश के मुलनिवासियो से ही मिलता है | जो बात भी अमेरिका में हुए एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से साबित हो चुका है | इसलिए उन्हे भी आरक्षण देने में संकोच नही करनी चाहिए | इतना ही नही अपने पुर्वजो का धर्म परिवर्तन करने वाले इस देश के मुलनिवासी भी चूँकि मनुवादियो वगैरा विदेशियो से पिड़ित लोग ही हैं , जो न तो विदेशी मुल के यहूदि हैं , न विदेशी मुल के मुस्लिम हैं , और न ही विदेशी मुल के ईसाई हैं , इसलिए जाहिर हैं यदि वे अपने पुर्वजो के हक अधिकारो को अनदेखा नही करना चाहते हैं , तो निश्चित तौर पर उन्हे भी आरक्षण का लाभ मिलनी चाहिए | बाकि बौद्ध जैन सिख धर्म तो इसी देश में ही जन्मे हैं | जैसे कि यहूदि मुस्लिम ईसाई धर्म विदेशो में एक ही स्थान में जन्मे हैं | जिस स्थान को तिनो धर्म अपना पवित्र स्थान मानते हैं | हलांकि ये बात अलग है कि इन तिनो धर्मो में हजारो सालो से जितनी खुन खराबा हुई है , उतनी आजतक किसी भी धर्म में नही हुई है | जिसकी झांकी आज भी अरब में लगी आपसी दुश्मनी की जलती आग के बारे में देख सुन और पढ़कर जाना जा सकता है | बल्कि हिन्दु धर्म में भी सबसे अधिक खुन खराबा का आरोप जिन देवो पर लगता है , उन देवो के वंशज कहे जाने वाले मनुवादियो का भी डीएनए विदेशी यहूदियो से ही मिलता है | जाहिर है मनुवादि यदि इस देश में प्रवेश नही करते तो वे न तो हिन्दु कहलाते और न ही हिन्दु धर्म के छुवा छुत करने वाले पुजारी बनते | लेकिन चूँकि दुनियाँ का कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना सकता है , इसलिए जाहिर है मनुवादियो की तरह कोई विदेशी डीएनए मुल का अन्य व्यक्ती भी हिन्दु धर्म में हो सकता है | बल्कि हिन्दु धर्म के अलावे बौद्ध जैन धर्म में भी विदेशी डीएनए के लोग हो सकते हैं | जिस बात से इंकार नही किया जा सकता | इसलिए आरक्षण का कोटा बड़ाकर मुलनिवासि डीएनए के लोगो को ही आरक्षण मिले इसपर भी ध्यान दिया जाय | जिसके लिए मेरी तो नीजि राय है कि धर्म और जात के नाम से आरक्षण मिलने के बजाय मुलनिवासी डीएनए जाँच से आरक्षण मिलनी चाहिए | जिससे कि दुध का दुध और पानी का पानी करके आनुवांसिक तरिके अथवा हजारो सालो की पीड़ा में जड़ से सुधार लाया जा सके | क्योंकि जरुरी नही कि मनुवादियो के बिच सभी विदेशी डीएनए के लोग ही मौजुद होंगे ! जिनके बिच ऐसे नकली मनुवादि भी हो सकते हैं , जिन्हे पता न हो कि उनके रगो में भी शोषित पिड़ित का डीएनए दौड़ रहा है | जिनको भी डीएनए जाँच करके आरक्षण का लाभ मिलनी चाहिए | जो इस देश के सभी मुलनिवासियो के मुल हक अधिकारो को पुरी तरह से प्राप्त करने के लिए बहुत जरुरी भी है | क्योंकि मनुवादियो के बिच भी जो लोग गरिबी भुखमरी जिवन जि रहे हैं , और जिन्हे शोषन अत्याचार करना कतई भी अच्छा नही लगता है , वे मुलनिवासी डीएनए के ही हो सकते हैं | जिन्हे भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए | क्योंकि वर्तमान में मनुवादि सत्ता कायम रहकर भी आरक्षण की वजह से इस देश के वैसे मुलनिवासी जो आरक्षण का भरपुर लाभ ले रहे हैं , वे कम से कम आरक्षित पदो और सीटो के जरिये  एक तरह से पिड़ी दर पिड़ी अपनी आर्थिक शैक्षनिक और अन्य महत्वपुर्ण स्थिती में तेजी से सुधार करते जा रहे हैं | जिनके लिए भी सांसद बनने पर प्रत्येक माह लाखो का पेंशन भी आरक्षित हो गई है | जिसपर मनुवादि कब्जा कभी नही कर सकते | जिससे स्वभाविक तौर पर मनुवादियो द्वारा चुनाव घोटाला करने की हालात में भी आरक्षण की वजह से इस देश के मुलनिवासी सत्ता और शासन व्यवस्था तक पहुँचकर महंगी महंगी सरकारी सुख सुविधा प्राप्त करना जारी रखते हुए आर्थिक शैक्षनिक और अन्य महत्वपुर्ण क्षेत्रो में तेजी से मजबुत होते जा रहे हैं | जिससे जलकर भी तो मनुवादि सरकार द्वारा आरक्षण का प्रभाव कम करने के लिए निजीकरन को बड़ावा दिया जा रहा है | हलांकि मनुवादियो द्वारा भले क्यों न लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मिली भरपुर ताकतो का गलत उपयोग करके नीजिकरन को बड़ावा दिया जा रहा हो , और साथ साथ निजी कंपनियो द्वारा सांठगांठ करके चुनाव घोटाला जैसा पाप भी किया जा रहा हो , पर फिर भी वह आरक्षण को कभी भी पुरी तरह से समाप्त नही कर सकते | जैसे कि लाख कोशिष करके भी मनुवादि पार्टी कभी भी अकेले सरकार नही बना सकती | क्योंकि आरक्षित सिट ही इतनी है कि वहाँ से यदि मनुवादि अपना उम्मीदवार खड़ा नही किए तो निश्चित तौर पर मनुवादियो की सरकार कभी बन ही नही सकती | और आरक्षित सीट का मदत लेकर आरक्षित सीट से चुने गए सांसदो को बिना कोई एक भी उच्च पद दिए मनुवादि सरकार चल नही सकती | जिन्हे भी हर महिने लाखो की पेंशन देनी होगी चाहे जितने समय तक मनुवादि शासन चलता रहे | यानी किसी भी हालत में अब मनुवादि मनुस्मृती में मौजुद अपनी पसंद के नियम कानून की सरकार पुरी तरह से कायम नही कर सकते | जिसके चलते मनुवादि सरकार में भी इस देश के मुलनिवासी उच्च पदो में बैठकर वे भी मंत्री राष्ट्रपति प्रधानमंत्री  बनते रहेंगे | इसलिए जाहिर है वर्तमान में तो मनुवादियो की मनुवादि सोच की झुठी शान जलकर राख जरुर हो रही होगी | क्योंकि वर्तमान में मनुवादि बार बार लोकसभा चुनाव जितकर इस देश में कई दसक से शासन तो कर रहे हैं , पर फिर भी अपनी मनुस्मृती को लागू करना तो दुर खुलकर यह कह भी नही सकते की उनके मन में संविधान के रुप में मनुस्मृती को लागू करने का विचार है | जिस भ्रष्ट मन में ही दिन रात ये सवाल जरुर आती होगी कि इतनी छिना झपटी के बाद भी इस देश के मुलनिवासियो के पास उच्च पद और इतना सारा धन अबतक कैसे मौजुद है ? बल्कि उसमे बड़ौतरी भी कैसे होते जा रही है , जिस बात से मनुवादि बहुत चिंतित हैं | क्योंकि मनुवादियो की मनुस्मृती सोच अनुसार इस देश के मुलनिवासियो को शासक और अमिर होना ही नही चाहिए था | जबकि बार बार जलने के बजाय मनुवादियो को अबतक स्वीकार कर लेनी चाहिए था कि इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले समृद्ध कृषी प्रधान देश के मुलनिवासियो के पुर्वज जब हजारो साल पहले भी कई कई किलो के सोने चाँदी हिरे मोती वगैरा के जेवर पहनते थे तो उनकी आज की नई पिड़ी अवसर मिलने पर क्या हजारो लाखो रुपये की चुते चप्पल कपड़े वगैरा नही पहन सकते ! जिनके पुर्वजो के रहन सहन में हजारो साल पहले भी सोने चाँदी के आभुषन और बर्तन शामिल थी | जाहिर है वर्तमान में भी मौका मिलने पर इस देश के मुलनिवासियो को अमिर वेश भुषा की मनोकामना होना स्वभाविक है | और मौका मिलने पर उस मनोकामना को पुरा करना भी स्वभाविक है | जिसपर मनुवादियो को जलने के बजाय खुश होना चाहिए कि उनकी शासन में अभी भी कम से कम चंद मुलनिवासी तो अमिरी जिवन जी रहे हैं | नही तो फिर उनके पुर्वज तो शैतानीपन का भी हद पार करके इस देश के मुलनिवासियो को सिर्फ दास दासी बनाकर गले में थुक हांडी और कमर में झाड़ु टांगकर अपनी झुठी शान में आरती उतरवाते रहना चाहते थे | जिस तरह की शासन उनकी नई पिड़ी भी यदि लाने का प्रयाश कर रही हैं तो ऐसा अब चाहकर भी कभी भी मुमकिन नही हो सकता है | क्योंकि इस देश के मुलनिवासी अब संसद में भी अच्छी खासी संख्या में भागिदार हैं | जिसके बगैर मनुवादियो की सरकार  नही चल सकती | हलांकि यह बात अलग है कि मनुवादियो की सरकार में शामिल मुलनिवासियो में ज्यादेतर घर के भेदि हैं | जो मनुवादियो का साथ देकर अपने ही लोगो का शोषन अत्याचार कराने में लगे हुए हैं | जिनके द्वारा सरकार में शामिल होने के बावजुद भी इस सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाने वाला देश में आधी अबादी गरिब बीपीएल और आधी अबादी अशिक्षित जिवन जिने को मजबुर है | हलांकि क्या पता उन घर के भेदियो में भी कई मनुवादियो का ही डीएनए निकलें , जिनको उनका अपना डीएनए आर्कषित करता हो और मनुवादियो का साथ जेनेटिक आर्कषण की वजह से हो रहा हो | जैसे कि मनुवादियो के भी बिच में कुछ मुलनिवासी डीएनए जो होंगे उन्हे भी इस देश के मुलनिवासियो की पीड़ा संघर्ष करने के लिए मुलनिवासी डीएनए आर्कषित करता हो ! जिन सबकी प्रयोगिक पहचान भविष्य में आसानी से तब तय हो पायेगी जब डीएनए प्रयोग सुगर प्रयोग की तरह सस्ता और आसान हो जायेगा | 

बुधवार, 25 सितंबर 2019

निश्चित तौर पर एक बलात्कारी भी दुसरे बलात्कारी का पुजा करना कभी नही चाहेगा

निश्चित तौर पर एक बलात्कारी भी दुसरे बलात्कारी का पुजा करना कभी नही चाहेगा

जलन की वजह से ही तो मनुवादि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद वेद पुराण में भी कब्जा करके उसमे ढोंग पाखंड की मिलावट किया है | जिसके बाद ढोंग पाखंड द्वारा सच्चाई को छिपाकर इंद्रदेव जैसे बलात्कारियो की भी पुजा ऐसे की जानी सुरु हुई है , जैसे कि उच्च ज्ञान की भाषा में बलात्कारी होना पुज्यनीय होना है | जबकि सच्चाई ये है कि खुद किसी बलात्कारी के भी परिवार में यदि उसके माँ बहन के साथ कोई बलात्कार कर दे तो निश्चित तौर पर एक बलात्कारी भी दुसरे बलात्कारी का पुजा करना कभी नही चाहेगा | लेकिन शर्म की भी हद होती है कि अति बेशर्मी से इंद्रदेव जैसे बलात्कारियो की पुजा कराई जाती है | मनुवादि तो खैर इंद्रदेव को अपने पुज्यनीय पूर्वज कहकर पुजा करते हैं , पर वे इस देश के बहुत से मुलनिवासियो से भी इंद्रदेव जैसे बलात्कारियो की पुजा हिन्दु पुजा बताकर करा रहे हैं | जबकि इंद्रदेव तो सिर्फ झांकी है पुरी गंदी फिल्म तो वेद पुराणो में भरे पड़े हैं | जैसे कि आधुनिक इतिहास में भी कबिलई लुटेरो , गुलाम दास बनाने वालो और बड़े बड़े क्रुर शासको इत्यादि की हैवानियत भरे पड़े हैं | वेद पुराण में भी तो ऐसी ही अनगिनत अपराधिक जानकारी भरे पड़े हैं | जिसमे मनुवादियो ने छेड़छाड़ करके बहुत सी सच्चाई को छिपाने का प्रयाश किया है | जिस सच्चाई के बारे में जानने के बाद मनुवादियो की वर्तमान नई पिड़ि खासकर वे जो अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए बड़े बड़े पापो और अपराधो का प्राश्चित करने के बारे में विचार कर रहे हैं , वे भी अपने पुर्वज इंद्रदेव जैसे देवो को पुज्यनीय और उच्च स्वीकार नही करेंगे यदि वे बलात्कारी को बलात्कारी मानकर आरती उतारने के बजाय उनकी पुजा का विरोध करेंगे | लेकिन फिलहाल तो लंबे समय से कड़वी सच्चाई को छुपाने के लिए मनुवादि अपनी झुठी उच्च शान को बरकरार रखने के लिए मानो मल मुत्र से भरा टोकरी को भी किसी किमती गिप्ट की तरह सजा सवारकर उसमे झुठी तारिफो का सुगंध छिड़ककर बलात्कारियो की आरती उतारने वालो को गिप्ट करते आ रहे हैं | जिस तरह की कुकर्म करना एक तरह से मनुवादियो की मजबूरी भी बन गई है | क्योंकि सच्चाई को छुपाकर अपनी ढोंग पाखंड के जरिये ही तो मनुवादि अबतक भी अपने पुर्वज देव और खुदको भी पुज्यनीय व उच्च बनाये हुए हैं | जिसके बलबुते ही तो खुदको सबसे उच्च घोषित करके प्रकृति भगवान की पुजा स्थलो का धार्मिक ठिकेदार बनाकर मनुवादियो ने अपने पुर्वज देवो को सृष्टी का रचिता और संचालक तक बताकर उनकी मुर्तियो को बिठाकर पुजा कराना सुरु किया है | जिनकी किमती गिप्ट की सच्चाई को खोलकर जो भी पुरी तरह से मनुवादियो की ढोंग पाखंड को समझ लेगा , वह निश्चित तौर पर मनुवादियो के पुर्वजो की आरती कभी नही उतारेगा | बल्कि सिर्फ प्राकृति भगवान की पुजा करेगा | जिस प्राकृति भगवान पुजा में भी मनुवादि अपना ढोंग पाखंड की मिलावट करने का प्रयाश लंबे समय से कर रहे हैं | क्योंकि मनुवादि प्रकृति भगवान से भी जलते हैं , जिसके चलते ही तो उन्होने प्राकृति भगवान से भी खुदको ज्यादे ताकतवर घोषित करते हुए खुदको प्राकृति भगवान को निर्माण और संचालन करने वाला घोषित किया हुआ है | मनुस्मृति की रचना करके प्राकृति भगवान के बजाय  खुदकी पुजा कराना सुरु किया है | जिसके बाद मनुवादियो ने आम धारना यह बनाकर पुरी दुनियाँ को भ्रमित करके रखा हुआ है कि हिन्दु भगवान पुजा का मतलब देव पुजा होता है | जबकि हिन्दुओ का भगवान पुजा साक्षात प्राकृति की पुजा है | जो कि सृष्टी के कण कण में साक्षात विज्ञान प्रमाणित मौजुद है | जिसे बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहार के दिन मंदिरो के बाहर भी प्राकृतिक भगवान की पुजा करते हुए देखा जा सकता है | जैसे की छठ पुजा , करमा पुजा , दिवाली होली वगैरा जो की प्राकृति से ही जुड़े हुए पर्व त्योहार है | बल्कि सत्य का प्रतिक शिव लिंग योनी पुजा जो की पत्थर के रुप में दरसल चारो ओर सृष्टी के कण कण में साक्षात मौजुद प्राकृति की पुजा है | जिसे भी मनुवादि अपनी ढोंग पाखंड की मिलावट करके देव पुजा साबित करने की कोशिष करते रहते हैं | हलांकि सत्य का प्रतिक शिव को भी मनुवादि महादेव बताकर देवो से जोड़ते हैं | जबकि उसके साथ भी भेदभाव करते हैं , जैसे कि इस देश के मुलनिवासियो के साथ हजारो सालो से करते आ रहे हैं | जिस महादेव के बारे में ये कथा प्रचलित है कि महादेव को जब देवो ने भेदभाव करके यज्ञ में नही बुलाया तो महादेव की पत्नी सती महादेव के मना करने पर भी बिन बुलाये यज्ञ में भाग लेने चली गयी , क्योंकि यज्ञ का आयोजन उसके पिता यक्ष ने किया था | जिस यक्ष ने जब अपनी बेटी के सामने महादेव के बारे में बुराई और अपमान करना सुरु कर दिया तो सती अपने पति महादेव की बुराई और अपमान सह नही सकी और यज्ञ में कुदकर खुदको भष्म कर ली | जिसके बाद महादेव को जब इस घटना के बारे में पता चला तो वे गुस्से से लाल होकर यक्ष का सर उसके गर्दन से अलग करके तांडव करने लगे | जिसका गुस्सा को देखकर सारे देव अपनी जान बचाकर यज्ञ स्थल से भागे और महादेव का तांडव को शांत करने का उपाय तलाशने लगे | वैसे सत्य शिव की एक और कथा खास प्रचलित है कि शिव ने ब्रह्मा का भी सर उसके गर्दन से तब अलग कर दिया था जब उसकी बेटी ने अपने ही पिता ब्रह्मा के खिलाफ शिव के पास शिकायत लेके गयी कि ब्रह्मा उसके साथ गलत किया है | जिस ब्रह्मा की मुँह छाती जाँघ से मनुवादि अपने पुर्वजो को जन्मा हुआ बतलाते हैं | बजाय इसके की नारी योनी से जन्मा हुआ बतलाते तो मनुवादियो की मुँह से भी भारत माता सुनने में अच्छा लगता ! खैर सत्य शिव की पुजा हर साल सावन आते ही विशेष तौर पर देखा जा सकता है | जो सत्य शिव लिंग योनी के रुप में साक्षात प्राकृति भगवान को पुजा जाता है | जो कि जिव निर्जिव सबकी रचना भी करता है | और सबका विनाश भी करता है | जो पत्थर का शिव लिंग योनी कोई मुर्ति नही बल्कि  साक्षात प्राकृति द्वारा निर्मित होता है | जिस प्राकृतिक भगवान की मौजुदगी पत्थर पहाड़ पेड़ पौधा आग हवा पानी वगैरा तमाम जिव निर्जिव कहे जाने वाले बल्कि कण कण में मौजुद है | जिसकी मौजुदगी सभी के अंदर है | जिनको मनुवादियो ने नही रचा है बल्कि पत्थर पहाड़ पेड़ पौधा वगैरा के भितर मौजुद प्राकृति भगवान ने खुद ही खुदको अनेको रुपो में रचा है | जिस प्राकृति भगवान ने सारी सृष्टि को रचा है | मनुवादि तो एक मच्छड़ भी नही रच सकते तो प्राकृति की रचना और उसका संचालन कैसे करेंगे ! जिस प्राकृतिक भगवान से जुड़े पुजा स्थल जहाँ पर भी प्राकृतिक द्वारा मौजुद मिलती है , वहाँ पर शिव लिंग योनी पुजा की आड़ लेकर मनुवादि अपने पुर्वज देवो की मूर्ति बिठाकर उसके नाम का भव्य मंदिर बनाने सुरु कर देते हैं | जिस तरह के मंदिर उस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती की खुदाई में कहीं नही मिले हैं जिस सिंधु से हिन्दु धर्म का नाम जोड़ा गया है | जिस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति के निर्माता मुल हिन्दु हजारो साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती का निर्माण करते समय एक भी देवता मंदिर क्यों नही बनाये थे ? जबकि आज पुरे देश में देवता के नाम से लाखो हिन्दु मंदिर मौजुद हैं | जिन लाखो हिन्दु मंदिरो का निर्माण होने के बाद मनुवादियो ने उसमे अपने पुर्वज देवताओ की मुर्ति बिठा रखा है | बल्कि सत्य का प्रतिक शिव लिंग को भी मूर्ति रुप देकर उसका भी मंदिर बनाकर वहाँ पर भी खुदको जन्म से पुजारी घोषित करके शिव के नाम से ढोंग पाखंड का धँधा जमकर चल रहा है | जिस ढोंग पाखंड धँधा से शिव भक्तो को सत्य शिव की पुजा करने में काफी परेशानी होती है | बल्कि सावन के मौसम में होनेवाली विशेष कांवड़ यात्रा करने के बाद सत्य शिव की पुजा करते समय कई भक्तो की जान तक ढोंग पाखंड और भेदभाव व्यवस्था के चलते चली जाती है | क्योंकि ढोंग पाखंड भेदभाव व्यवस्था के चलते भक्तो में पुजा करते समय अपमानित करके डंडे भी बरसाये जाते हैं | जो ढोंग पाखंड भेदभाव व्यवस्था सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती के समय मौजुद नही थी | क्योंकि तब मनुवादि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश नही किये थे | जिन मनुवादियो के प्रवेश करने के बाद ही ढोंग पाखंड और छुवा छुत जैसे भेदभाव व्यवस्था की सुरुवात हुई है | जैसे कि गोरो के प्रवेश के बाद ही इस देश में कोर्ट द्वारा न्याय की व्यवस्था कायम हुई है | मनुवादि सोच प्रवेश के बाद ही प्राकृतिक भगवान की पुजा बड़े बड़े मंदिरो का निर्माण कराकर उसमे भी शिव लिंग योनी की मूर्ति स्थापित करके किया जाने लगा है | जिस तरह की पुजा व्यवस्था मनुवादियो के आने के बाद ही कायम हुई है | जिन मंदिरो में आज भी कई जगह इस देश के मुलनिवासियो का प्रवेश मना है | जिस ढोंग पाखंड भेदभाव का पोल खुल न जाय इसके लिए मनुवादियो ने बहुत से शिव पुजा स्थलो में मनुवादि सोच से भेदभाव नियम कानून बनाकर रखे हैं | जिस भेदभाव नियम कानून के चलते इस देश के मुलनिवासियो द्वारा बहुत से शिव मंदिरो में प्रवेश करते समय अपमानित होना पड़ता है | दरसल मनुवादि भेदभाव नियम कानून के जरिये इस देश के मुलनिवासियो को ही परेशान करते रहना चाहते हैं | बल्कि प्राकृति हवा पानी सुर्य इत्यादि प्राकृति से जुड़े नामो से भी अपने पुर्वज देवो का नाम जोड़कर खुदको जिवन मरन संचालित करनेवाला बतलाकर मनुवादियो द्वारा डराया धमकाया भी जाता है | जबकि डराने धमकाने वाले मनुवादि खुद भी प्राकृति भगवान के रहमो करम पर निर्भर हैं | जो यदि नही रहते तो आज जो बार बार करोड़ो देवताओ के बारे में चर्चा होती रहती है , वे सारे देवता डायनासोर की तरह लुप्त नही होते | बल्कि अब भी अपनी मर्जी से धरती और अंतरिक्ष में विचरन कर रहे होते | जैसे की मनोरंजन के लिए बनने वाली धारावाहिको में जिवित लोगो द्वारा  देवताओ का अभिनय करके विचरन करता हुआ दिखाया जाता है | जिन लुप्त देवताओ के बारे में वेद पुराण में बहुत सारी अपराधिक जानकारी भरे पड़े हैं | जिसे छुपाने या फिर झुठी शान के लिए मनुवादियो के पुर्वज देवता द्वारा किए गए बड़े बड़े अपराधो को वीरता वाला कार्य बतलाकर दरसल वेद पुराण में मिलावट करके हेर फेर कि गई है | ताकि मनुवादियो के द्वारा किए गए बड़े बड़े पापो को छिपाया जा सके | बल्कि आगे भी वेद पुराणो में मिलावट करना जारी रखने और उसकी सत्य ज्ञान को इस देश के मुलनिवासियो से छुपाये रखने के लिए मनुस्मृति रचना करके मनुवादियो ने ये नियम कानून भी बनाया कि इस देश के मुलनिवासी वेद सुने तो कान में गर्म पिघला लोहा डाल दिया जाय , और वेद बोले तो उसकी जीभ काट लिया जाय | जिस तरह की अनगिनत हैवानियत नियम कानून बनाने के बाद भी खुदको उच्च विद्वान पंडित और हजारो साल पहले भी हजारो हुनरो को जानने वाले इस देश के मुलनिवासियो को जन्म से ही हजारो निच जाति घोषित करके मनुवादियो ने जन्म से उच्च निच परंपरा की सुरुवात किया है | जिनकी भ्रष्ट बुद्धी अनुसार छुवा छुत करने वाले और कान में गर्म पिघला लोहा डालने वाले , जीभ काटने वाले , अँगुठा काटने वाले , कमर में झाड़ु टंगवाने वाले , गले में थुक दानी टंगवाने वाले सभी उच्च सोच वाले होते हैं | जो दरसल उच्च सोच वाले नही बल्की दिमाक में शौच वाले लोग होते हैं | जिसके चलते उनको तो पहले अपने दिमाक की गंदगी को साफ करनी चाहिए , फिर कभी उच्च सत्यकर्म करके उच्च बनने के बारे में सोचनी चाहिए | मल मूत्र की टोकरी को किमती गिप्ट बताकर दुसरो को निच कहकर छुवा छुत जैसे निचकर्म करके मनुवादि कभी भी सचमुच का उच्च नही बन सकते | सिर्फ अपनी शौच बुद्धी से खुदको ही उच्च घोषित करके जबरजस्ती झुठा उच्च बन सकते हैं | जैसे कि बलात्कारी इंद्रदेव अपनी शौच बुद्धी से जबरजस्ती अपना हवश मिटाकर पुज्यनीय बना हुआ है | जिस तरह के जबरजस्ती करके खुदको झुठा उच्च बनाना मानो किसी का शोषन अत्याचार करके पिड़ित से ही खुदकी आरती उतरवाना है | जो कि गुलाम और दास बनाने की शौच बुद्धी रखने वाले ही कर सकते हैं | जिनकी शौच बुद्धी विकसित होने से भेदभाव गंदगी फैलती है | और शौच बुद्धी में कमी आने पर उच्च विचारो का सत्य ज्ञान फैलती है | जैसे की अब कई देशो को गुलाम बनाने वाले गोरो की नई पिड़ी में सत्य ज्ञान फैल रही है | जो सत्य ज्ञान इस कृषी प्रधान देश में तब से मौजुद है जबसे यहाँ पर प्राकृति भगवान पुजा की सुरुवात हुई है | जिस सत्य का प्रतिक के रुप में शिव लिंग योनी की पुजा होती है | जो सत्य शिव लिंग योनी को जो लोग पत्थर कहकर यह कहते हैं कि पत्थर बात नही करता है , और वह निर्जिव है उनका प्राकृति भगवान के बारे में क्या विचार है कि प्राकृति भगवान बात नही कर सकता इसलिए वह न किसी को जिवन दे सकता है , और न ही किसी के जिवन को समाप्त कर सकता है | जो बात यदि वाकई में सत्य होती तो फिर तो कोई न साँस लेता और अन्न जल ग्रहण करता | और न ही कभी इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो द्वारा बारह माह प्राकृति पर्व त्योहार मनाकर प्राकृति की पुजा की जाती | क्योंकि हवा पानी वगैरा तो बातचीत ही नही करते हैं | बल्कि बातचीत न करने वाले प्राकृति भगवान में मौजुद सत्य ज्ञान से तो उस भेदभाव गंदगी की भी सफाई कि जा सकती है जो किसी नाली और गटर की गंदगी से भी ज्यादे खतरनाक होती है | क्योंकि नाली की गंदगी से फैलने वाली बिमारी का इलाज दवा से मुमकिन है , पर मन की गंदगी से फैलने वाली भेदभाव बिमारी का इलाज मानो नामुमकिन है | हलांकि दवा से न सहि पर प्राकृति भगवान से की जानेवाली दुवा से मुमकिन जरुर है | जिसके चलते जब भी किसी कि बिमारी ठीक होना नामुमकिन सा हो जाता है , अथवा डॉक्टरी इलाज जबाब दे जाता है , तो अक्सर यह कहा जाता है कि अब भगवान ही कुछ चमत्कार कर सकते हैं | जिस तरह के अनेको प्राकृतिक चमत्कार भरे पड़े हैं | जिसके बारे में ही तो अनेको चमत्कारो की खोज इंसानो द्वारा भी होती रहती है | और यदि कहीं पर एलियन वाकई में मौजुद होंगे तो निश्चित तौर पर उनके द्वारा भी प्राकृतिक के रहस्यो के बारे में जानने का प्रयाश जारी होगा | जैसे की एलियन इस सृष्टी में कहाँ पर रहते हैं , इस रहस्य की खोज करने में इंसान भी लगा हुआ है | जैसे की कुछ इंसान प्राकृति में मौजुद चमत्कारी रहस्यो से ही हजारो लाखो सालो की लंबी आयु वाली दवा बल्कि कुछ तो कभी भी मृत्यु न हो इसके लिए अमृत की भी खोज करने में लगे हुए हैं | हलांकि इंसान द्वारा खोजा गया दवा से भी सारी बिमारी का इलाज मुमकिन नही है | खासकर भ्रष्ट मन की बिमारी तो वाकई में दवा से नामुमकिन है | क्योंकि दवा से यदि मुमकिन होता तो मनुवादि दवा खा पिकर आजतक छुवा छुत करना पुरी तरह से कबका छोड़ चुके होते | इसलिए समाज में शौच वाली बुद्धी जिसके मन में भी मौजुद होती है , वह इंसान या तो खुदका इलाज खुद ही अपने किये कुकर्मो को स्वीकार करके खुदको सुधार लें , या फिर उनकी नई पिड़ी उनके ढोंग पाखंड और छुवा छुत परंपरा को आगे बड़ाने से इंकार करके मनुवादियो की झुठी शान परंपरा को समाप्त कर दे | वैसे तो प्रत्येक छुवा छुत करने वाले को भी एकदिन अपना भ्रष्ट तन मन को त्यागकर नया तन मन धारन करने के लिए अँतिम यात्रा करनी ही है | हलांकि चूँकि शौच बुद्धी वाले अपनी गंदी सोच अपने नई पिड़ि को संक्रमित करके ही अँतिम साँस लेते हैं , इसलिए धरती में जबतक एक भी शौच सोच रखने वाला इंसान समाज में शोषन अत्याचार गंदगी फैलाता रहेगा , तबतक भेदभाव पुरी तरह से समाप्त होना लगभग नामुमकिन ही है | हलांकि प्राकृति भगवान के लिए नामुमकिन नही है | जो चाहे तो मनुवादियो के शौच बुद्धी में अचानक से क्रांतीकारी परिवर्तन करके मनुवादि सोच को जड़ से ही समाप्त कर सकते हैं | इसलिए मनुवादियो की शोषन अत्याचार से छुटकारा पाने की दुवा प्राकृति भगवान से करते समय मनुवादियो की शौच बुद्धी में सुधार हो इसकी भी दुवा प्राकृति भगवान से जरुर करनी चाहिए | क्योंकि सायद मनुवादियो को यकिन हो चला कि वे अपनी भ्रष्ट मनुवादि सोच से कभी भी छुटकारा नही पा सकते ! जैसे कि हजारो साल पहले जब मनुवादि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके यहाँ की सभ्यता संस्कृति और यहाँ की शासन व्यवस्था परिवार समाज गणतंत्र को अचानक से सुना देखा होगा तो उनको यकिन हो चला होगा कि वे इस देश के मुलनिवासियो की तरह बिना भेदभाव अथवा आपसी मेल मेलाप वाली अपना खुदका आधुनिक कृषी सभ्यता संस्कृती और परिवार समाज गणतंत्र विकसित कभी नही कर सकते , इसलिए अपनी गंदी सोच से इस कृषी प्रधान देश में ही कब्जा करने के बाद इस देश की विकसित कृषि सभ्यता संस्कृती और परिवार समाज गणतंत्र से जलकर मनुवादियो ने इस देश की सभ्यता संस्कृती को अपने ढोंग पाखंड उच्च निच का भ्रष्ट संक्रमण देकर बार बार अविकसित और अपनी मनुवादि सोच को विकसित साबित करने की कोशिष किया है | क्योंकि मनुवादि इस देश की कृषी सभ्यता संस्कृति और इस देश के मुलनिवासियो से भी जलते हैं | तभी तो इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो द्वारा जो बारह माह प्राकृति पर्व त्योहार मनाये जाते हैं उसमे भी देव पुजा मिलावट करने की कोशिष हो रही है | क्योंकि बिना कोई भेदभाव के मिल जुलकर प्राकृति से जुड़े पर्व त्योहार मनाये जाने के बाद मिलने वाली सुख शांती से भी मनुवादियो को जलन होती है | जिसके लिए भी उन्होने वेद पुराणो में ढोंग पाखंड की मिलावट मनुस्मृति को आदर्श मानकर ही किया है | जिसकी झांकी दुर्गा पुजा के पंडालो में भी देखी जा सकती है | जहाँ पर देवो को महान बताकर उनकी पुजा की और कराई जाती है | और असुरो को मानव भक्षक बताकर उन्हे मुख्य बिलेन के तौर पर प्रदर्शित कि जाती है | जिसके चलते मनुवादियो के शौच बुद्धी को समझने वाले बहुत से मुलनिवासियो द्वारा हर साल विरोध प्रदर्शन भी किया जाता है | जो हर साल बड़ता ही जा रहा है | बल्कि शोषन अत्याचार का शिकार होने वाले बहुत से मुलनिवासी तो पिड़ी दर पिड़ी बिना कोई विरोध प्रदर्शन किए भी शौच बुद्धी वाले लोगो से खुदको दुर रखकर प्राकृति भगवान द्वारा किया जानेवाला उस न्यायपुर्ण दिन का इंतजार कर रहें हैं , जब सभी शौच बुद्धी वाले पाप करना छोड़कर अपना नया शरिर धारन कर लेंगे ! जिसके बाद उनकी नई पिड़ी उनकी भ्रष्ट परंपरा को और आगे ले जाने से मना कर देगी | तबतक बहुत से पिड़ित लोग देव असुर विवादो से खुदको दुर रखें हुए हैं |

शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

मनुवादि पार्टी की रैली में जाकर मानो नर्क प्रवेश के लिए प्रवेश पत्र मांगा जा रहा था कहकर दुःखी होना हास्यस्पद लगती है

मनुवादि पार्टी की रैली में जाकर मानो नर्क प्रवेश के लिए प्रवेश पत्र मांगा जा रहा था कहकर दुःखी होना हास्यस्पद लगती है

आज दिनांक 12 सितंबर 2019 का पोस्ट वर्तमान की राजनैतिक हलचल पर लिखना इसलिए जरुरी समझा क्योंकि आज मुझे मानो एक हास्यस्पद जानकारी मिली की भाजपा द्वारा आज जो झारखंड की राजधानी रांची में रैली आयोजित की गई है , वहाँ पर खुद भाजपा के ही उन भक्तो को घुसने के लिए प्रवेश पत्र मांगा जा रहा था जिन्हे अब भी मनुवादि शासन में अच्छे दिन आने का इंतजार है | जिसे सुनकर मैने तो पहले अपने मन में यह विचार किया कि आखिर ऐसी नर्क में भी घुसने के लिए क्यों जाते हैं कुछ पिड़ित मुलनिवासी जिनकी जिवन को मनुवादि सत्ता पिड़ी दर पिड़ी खोखला बना रही है | जिसके बावजुद भी मनुवादि पार्टी की रैली में जाकर मानो नर्क प्रवेश के लिए प्रवेश पत्र मांगा जा रहा था कहकर दुःखी होना हास्यस्पद लगती है | जिन पिड़ित मुलनिवासियो को अबतक यह बात समझ जानी चाहिए थी की यदि मनुवादि शासन में मुलनिवासियो को लाभ पहुँचाने के लिए अनगिनत योजनायें बनाई भी जा रही है तो भी उससे ज्यादेतर लाभ मनुवादियो को ही हो रहा है | जैसे कि गोरे शासन द्वारा प्रजा को लाभ पहुँचाने के नाम से भी ज्यादेतर तो गोरे अपनी ही सुख सुविधा और खनिज संपदा को लुटपाट चोरी करने के लिए रेल पटरी बिछाते थे | जिस तरह मनुवादि भी गोरो के जाने के बाद इस देश और प्रजा को लाभ पहुँचाने के नाम से ज्यादेतर अपनी सुख सुविधा और खनिज संपदा लुटपाट चोरी के लिए चौड़ी चौड़ी सड़क वगैरा बिछा और बने हुए को ही बार बार बना रहे हैं | जिसकी एक छोटी सी झांकी है देश को लगभग अकेला आधा खनिज संपदा प्रदान करने वाला प्राकृति समृद्ध राज्य झारखंड की राजधानी रांची में आज जो वर्तमान की मनुवादी सरकार द्वारा मल्टीमॉडल बंदरगाह बनाने की लुट योजना बनाई जा रही है , वह दरसल बंदरगाह के जरिये झारखंड की खनिज संपदा को देश विदेश में और भी अधिक सुविधा पूर्वक लुटाया जाने की योजना बनाई जा रही है | क्योंकि मनुवादि शासन में सिर्फ नाम मात्र के लिए इस तरह की योजनाओ से मुलनिवासी प्रजा को लाभ हो रहा है | जैसे की गोरो की शासन में भी प्रजा सेवा के नाम से बनाई जानेवाली योजनाओ से नाम मात्र का लाभ हो रहा था | जिसमे कितनी सच्चाई है इसे प्रयोगिक और उदाहरन के तौर पर इतिहास में दर्ज गोरो की शासन से अजादी पाने का संघर्ष आंदोलन है , और वर्तमान में भी जो मनुवादि शासन कायम है , उससे भी छुटकारा पाने का संघर्ष आंदोलन दर्ज हो रहा है | रही बात गोरो से अजादी पाने के बाद देश में कितनी खुशहाली आई है वह खुद मनुवादि शासन का बुराई मनुवादि पार्टी के ही नेता किस तरह से करते रहते हैं , इसकी झांकी वर्तमान के प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया पुराना भाषन है , जो कि उसी रांची के प्रभातारा मैदान में ही दिया गया था जहाँ पर आज फिर से भाषन दिया गया है | अंतर सिर्फ इतना है कि उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी जिसकी बुराई में भाषन दी जा रही थी और वर्तमान में चूँकि भाजपा सरकार है इसलिए स्वभाविक है कि खुदकी बड़ाई में भाषनबाजी हुई है | 


निचे है 29 दिसंबर 2013 को वर्तमान के प्रधानमंत्री का दिया गया भाषन का अंश



"क्या देश में नही हो सकता हैं ? हो सकता हैं, इरादे चाहिए सिर्फ वादे नही, और इरादे भी नेक चाहिए, नेक इरादे तब जा करके होता हैं | लेकिन न इनके पास इरादे हैं,न इनके पास इरादो में नैतिकता हैं |"भाइयों बहनो पुराने जमाने में हम कथा सुनते थे, पुराने जो अपने पुराण है , उसमे आता था कि ऐसी ऐसी घटना घट रही थी, और अचानक एक आकाशवाणी हुई ! 
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और उस आकाशवाणी से ये ये संदेश सुनने को मिला, ऐसा हमारे पुराणो में बहुत कथा आती हैं|भाइयो बहनो इन दिनों अगर हम गौर से देखें, ऐसा ही चल रहा हैं! जो खुद जिम्मेवार हैं, ऐ परिस्थिति पैदा करने के लिए जो जिम्मेदार हैं, परिस्थिति से बाहर निकालने की जिनकी जिम्मेवारी हैं, देश की जनता ने जिनको बागडोर दी हैं,
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वे भी जैसे पुराने जमाने में आकाशवाणी हुआ करती थी, वैसे आकाशवाणी की तरह शब्दो को छोड़ देते हैं, कोई दाइत्व निभाने नही हैं, पत्रकारो को बुलाते हैं, 
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और जैसे उनका कोई लेना देना नही, महंगाई से जिम्मेवारी नही, भ्रष्टाचार से उनकी जिम्मेवारी नही, अचानक आकाशवाणी करके छुप जाते हैं!
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भाइयों बहनो पुराणो में आकाशवाणी लोगो को सोचने के लिए मजबूर करती थी, आज के जमाने में आपकी आकाशवाणी, आपके छल कपट को प्रर्दशित करती हैं| जनता की आँख में धुल झोंकने का आपका प्रयास, साफ साफ दिखता हैं! 
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आप मुझे बताये भाइयो बहनो,मंहगाई कम होनी चाहिए की नही होनी चाहिए? गरीब के घर में चुल्हा जलना चाहिए की नही जलना चाहिए? गरीब के बच्चो को रात को खाना मिलना चाहिए की नही मिलना चाहिए? क्या ऐ जिम्मेवारी सरकार की हैं की नही हैं? ऐ जिम्मेवारी दिल्ली सरकार की हैं की नही हैं?
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 लेकिन ऐसे कह रहे हैं जैसे उनकी जिम्मेवारी नही हैं! और अभी तो कह दिया कि हमने मुख्यमंत्रियो को कह दिया हैं!
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 मैं आज राँची की धरती पर मीडिया के मित्र गौर करें देश में महंगाई को लेकरके तूफान खड़ा हुआ, प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्रियो की मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा, तीन साल पहले मुख्यमंत्रियों की मीटिंग बुलाई गयी, उस मीटिंग में चर्चा हुई, आखिरकार प्रधानमंत्री ने कुछ कमीटियाँ बनाई, महंगाई कम करने के उपाय खोजने के लिए, एक कमीटि का चेयरमैन मुझे बनाया, मेरे साथ तीन और चीफ मिनिस्टर लगाये, वो तीनो चीफ मिनिस्टर यूपीए के और कांग्रेस के थे, हमने रिपोर्ट बनाई, रिपोर्ट दी, उनको रिपोर्ट दिए भी ढाई साल हो गए, और हमने कहा महंगाई कम करने के लिए ऐ 20 इनिसिटिप (पहल) लेनी चाहिए, और हमने उनको 62 एक्सट्रेबल (सुझाव) पोंइन्ट बताऐ, वो ड्राप मैं खुद प्रधानमंत्री को जा करके दे आया, प्रधानमंत्री जी ने कहा बहुत अच्छा काम हुआ हैं, 
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लेकिन भाइयों बहनो ढाई साल हो जाए दिल्ली की सरकार जिसको लकवा मार गया हैं, महंगाई के उपायो के लिए अनेक सुझाव देने के बाद भी कोई काम नही किया उसने! कोई काम नही किया और आज आकाशवाणी हो रही हैं!मुख्यमंत्री ऐ करेंगे, मुख्यमंत्री वो करेंगे, भाइयों बहनो जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, भ्रष्टाचार के उनको इतने दाग लगे हैं|
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अगर विश्व के सामने झारखंड के पास,जो प्राकृतिक सम्पदा है,भू सम्पदा है,सामर्थवान मानव बल है,उसका व्यौरा दुनियाँ के आर्थिक पंडितो को दिया जाय,और अगर उनको पुछा जाय कि जिस राज्य के पाश इतनी अपार सम्पत्ती हो,उस राज्य की आर्थिक स्थिती क्या होगी,भाइयो बहनो मैं विश्वास से कहता हूँ,दुनियाँ के किसि भी पंडित के सामने,ये जानकारियाँ रखी जाय,तो जवाब एक ही आ जायेगा कि ये राज्य दुनियाँ के समृद्ध देशो की बराबरी में हो सकता हैं!दुनियाँ के समृद्ध देशो की बराबरी में हो सकता है,इतनी सम्पदा का ये राज्य गरिब क्यों है?अमिर राज्य की गोद में गरिबि क्यों पल रही है?  भाइयो बहनो इतना सारा होने के बावजुद भी,झारखंड की गरिबी बड़ते ही जा रही है कारण क्या है?
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भाइयों बहनो मैं हैरान हूँ ,झारखंड में इतनी वर्षा होती हैं, इतना पानी आता हैं परमात्मा की कृपा से,लेकिन झारखंड के लोगो को पीने का पानी उपलब्ध न होता हो,भाइयो बहनो इससे बड़ी दर्दनाक बात क्या हो सकती है?इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है?
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आप मुझे कहिए भाइयों अजादी के इतने सालो के बाद आपको पीने का पानी मिलना चाहिए की नही मिलना चाहिए?जितना पानी पिने के लिए चाहिए उतना मिलना चाहिए की नही मिलना चाहिए?जो सरकारें आपको पीने का पानी तक न दे, किसान को खेत में पानी न मिले,वो सरकार और क्या भला कर सकती है भाइयों बहनो,भाइयो बहनो मेरे गुजरात में इतनी वर्षा नही होती हैं, मेरे यहाँ नदियाँ भी नही हैं, लेकिन क्या उन गरीब लोगो को पानी के लिए तरसते रखेंगे हमने रास्ता खोजा, हमने छोटे छोटे चेक डेम बनाये, लाखो की तादार में बनाये, बरसात की बूंद बुंद रोकने की कोशिश की, जलस्तर उपर लाये,पाइप लाइन से पानी ले जाने की व्यवस्थायें की,
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 थैंक्यू दोस्तों थैंक्यू, और भाइयों बहनो गुजरात के हजारों गाँवो में कभी टैंकर से पानी जाता था,आज नलके में पानी पीने का मिल रहा हैं,ऐ झारखंड में भी हो सकता है,ऐ झारखंड में भी हो सकता है दोस्तों,और इसलिए मैं कहने आया हूँ  कि भाइयों बहनो अगर हम निर्धार  करें तो समस्याओं का समाधान कर सकते हैं,और मुझे याद हैं,यहाँ से हमारी एक कार्यकर्ता ने मुझे प्रभात खबर इस अखबार की कॉपियाँ भेजी थी,और सायद हफ्ते भर बहुत बारिकी से गुजरात में पानी का प्रबंधन कैसे हो रहा हैं,पानी बचाने की योजना कैसे हो रही हैं,उसका विस्तार से रिपोर्ट झारखंड की जनता की चरनो में रखा था,लेकिन भाइयो बहनो यहाँ की सरकारो को,कांग्रेस पार्टी को,दिल्ली में बैठी हुई सरकार को,लोगो की भलाई के लिए कुछ करना नही है,और उसी का परिणाम हैं की आज विकाश की स्थिति को स्वीकार नही करते,न ही उस दिशा में जाने का प्रयास करते हैं|
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भाइयो बहनो मैं हैरान हुँ,क्या कारन हैं की जिस धरती पर एच०ई०सी०(हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन)का कारखाना,जो कभी बहुत गर्व किया जाता था,विकाश की धरोहर के रुप में माना जाता था,क्या कारन हुआ वो भी लड़खड़ा गया?बेरोजगारी का मंजर मंडराने लगा,क्यों?मुल कारण ये हैं भाईयों बहनो!न इनको विकाश की चिंता है,न इनको सुशासन की चिंता है|"
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वैसे तो कांग्रेस भाजपा एक ही मनुवादि सिक्के के बस दो अलग अलग पहलू है | जिन दोनो पार्टियो की ही सरकार बारी बारी से इस देश में शासन कर रही है | क्योंकि यदि अबतक हुए तमाम लोकसभा चुनाव को इमानदारी से हुआ चुनाव माना जाय तो निश्चित तौर पर कांग्रेस भाजपा दोनो ही पार्टी को इस देश की पिड़ित मुलनिवासी प्रजा भारी संख्या में वोट करके बार बार अदला बदली करके चुन रही है | सायद कांग्रेस भाजपा को बार बार सरकार चुनने वाले मुलनिवासी वोटरो को यकिन है कि कांग्रेस या भाजपा ही उनकी जिवन में खुशहाली लायेगी | जो खुशहाली पिछली पुरानी पिड़ी तो नही देख सकी इसलिए अब भाजपा कांग्रेस को वोट करने वाली पिड़ित मुलनिवासियो की नई पिड़ी भी यह तय कर ले कि दोनो पार्टी में आखिर किसका शासन उनकी जिवन में बुढ़ापा आने से पहले वह खुशहाली लायेगी जो अबतक नही आई है | कांग्रेस साठ सालो में नही ला सकी और उनकी पुरानी पिड़ी को गरिबी हटाओ और आधुनिक भारत का नारा देकर बीपीएल भारत और बेघर भारत छोड़कर खुद अमिर से और अमिर बन गयी है | जिस नक्से कदम पर ही भाजपा भी शाईनिंग इंडिया डीजिटल इंडिया का नारा देकर गरिबी भुखमरी की खाई में ही ले जा रही है | जिसका प्रमाण खुद दोनो पार्टी एक दुसरे की बुराई के रुप में देती रहती है | जो दरसल एक दुसरे की कुकर्मो का पोल खोलती रहती है | क्योंकि दोनो पार्टियो के पास एक दुसरे के बड़े बड़े कुकर्मो की फाईले मौजुद है | जो कि दोनो पार्टी की पाप घड़ा के रुप में भी मौजुद है |

बुधवार, 4 सितंबर 2019

मृत देवो को अब इस धरती पर जिवित विचरन करते हुए देखने की बाते करना दरसल भुत प्रेत की बाते करना है

मृत देवो को अब इस धरती पर जिवित विचरन करते हुए देखने की बाते करना दरसल भुत प्रेत की बाते करना है |


मनुवादियो की शासन को आनेवाली इस देश की नई पिड़ी अँधकारयुग ही मानेगी | जिसमे लगभग आधी अबादी बीपीएल और आधी अशिक्षित जिवन जिने को मजबूर है | क्योंकि मनुवादि सरकार के पास वह लक्ष ही नही जिसमे की प्रजा की बेहत्तर सेवा करके बेहत्तर शासन का इतिहास रचा जा सके | जिनके पास तो मनुस्मृती सोच से खुदगी सेवा कराने और बाकियो की शोषन अत्याचार करने में इतिहास रचने का लक्ष मौजुद रहती है | हलांकि वर्तमान के मनुवादि शासन में मनुवादियो के जिवन में भी असली खुशियाली मौजुद है कि नही यह तो उनकी आनेवाली नई पिड़ी तय करेगी | जैसे की गोरो की नई पिड़ी तय कर रही है कि गोरो के द्वारा कई देशो को गुलाम करके और करोड़ो लोगो का शोषन अत्याचार करके उनकी हक अधिकारो को छिनकर खुदकी सेवा कराने में सबसे अधिक खुशहाली जिवन थी की वर्तमान में खुशहाली जिवन है | वैसे मनुवादियो का सबसे आदर्श रामराज में भी सबसे अधिक दिल से खुशहाली जिवन मौजुद थी कि आत्महत्या करने वाली दुःखभरी जिवन थी , ये तो उस समय के हालात बयान करता है जब राजा राम ने खुदकी नेतृत्व रामराज में इस कृषी प्रधान देश के मुलनिवासी शंभुक के साथ उच्च निच भेदभाव करते हुए उसकी हत्या कर दिया था | जो खुदको सबका बेड़ा पार करने वाला भगवान बतलाकर और प्रजा से अपनी खुदकी पुजा कराके न तो खुद ही सुखी रह सका और न ही उसका परिवार सुखी रहा | जो खुदकी रामराज में अति दुःखी होकर जिते जी सरयू नदी में डुबकर अपनी रामलीला समाप्त कर ली ! और रानी सीता भी अति दुःखी होकर जिते जी धरती में समा गई | जिस तरह की रामराज समाप्त होने के बाद रामराज को अपना आदर्श मानने वालो का ही तो शासन अबतक चल रहा है | जिनको भी निर्दोश लोगो की शोषन अत्याचार करने की भगवान द्वारा सजा के तौर पर खुदकी शासन में ही खुदकी बेड़ा पार हो जायेगी | जिसके बाद इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासी वर्तमान की भ्रष्ट शासन व्यवस्था और ढोंग पाखंड का मिलावट किए गए वेद पुराणो को भी अपडेट करेंगे | जिसमे सारी सृष्टि और प्राकृतिक से लेकर इस देश की कृषि सभ्यता संस्कृति और यहाँ के मुलनिवासियो के बारे में ज्ञान का सागर मौजुद है | जो दरसल असली हिन्दु सभ्यता संस्कृति हैं | जिन वेद पुराणो के असली रचनाकार इस देश के मुलनिवासी ही हैं | जो असली हिन्दु हैं | क्योंकि हिन्दु शब्द प्राकृति सिंधु नदी से जुड़ी सिंधु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृती से ही जन्मा है | जो कृषि सभ्यता संस्कृति कबिलई मनुवादियो के द्वारा निर्माण नही बल्कि इस देश के मुलनिवासियो के द्वारा किया गया है | जिन मुलनिवासियो के पास हजारो साल पहले भी हजारो विकसित हुनर मौजुद थी | जिसे मनुवादियो ने जन्म से ही मिलने वाली जाति पहचान के रुप में घोषित करके , हजारो हुनरो को हजारो निच जातियो के रुप में बांट दिया है | और खुदको जन्म से ही उच्च जाति घोषित किया हुआ है | क्योंकि मनुस्मृति रचना करके मनुवादि शासन स्थापित करने के बाद मनुवादियो ने खुदको उच्च घोषित किया हुआ है | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासियो के साथ छुवा छुत शोषन अत्याचार करने का भ्रष्ट परंपरा मनुवादियो द्वारा चलाई जा रही है | जिस भ्रष्ट परंपरा कि सुरुवात मनुस्मृति लागू करके उस समय हुई है , जिस समय वेद सुनने पर कान में गर्म पिघला लोहा डालना , वेद का उच्चारण करने पर जिभ काटना , अँगुठा काटना , गले में थुकदानी टांगना , कमर में झाड़ू टांगना जैसे अति निच कुकर्म मनुवादियो द्वारा किये गए | बल्कि निच और क्रुरता भरी कुकर्म और पाप करने वाले खुदको उच्च घोषित भी किए गए | जिस तरह कि निच हरकत कई देशो को गुलाम बनाने वाले गोरो ने भी नही किए होंगे | जैसा कि मनुवादियो ने कान में गर्म पिघला लोहा डालना और जीभ काटना वगैरा शोषन अत्याचार करने का नियम कानून बनाकर किए हैं | जिस तरह के नियम कानूनो के द्वारा मनुवादियो ने प्रजा सेवा के नाम से मनुस्मृति लागू करके गोरो के आने से हजारो साल पहले ही बड़े से बड़े पाप किए गए हैं | हजारो साल पहले भी हजारो विकसित हुनरो को जानने और विकसित सिंधु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृती का निर्माण व गणतंत्र का निर्माण करने वाले इस देश के मुलनिवासी निच घोषित किए गए हैं | जाहिर है बाहर से आए मनुवादियो ने इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर छुवा छुत शोषन अत्याचार जैसे सबसे निच कुकर्म हजारो सालो से करके भी खुदको उच्च घोषित करके ऐसा पाप किया हैं , जिसकी सजा प्रकृति भगवान द्वारा उन्हे किसी न किसी रुप में पिड़ी दर पिड़ी मिल ही रही होगी | जिस प्रकृति भगवान पुजा में भी मनुवादियो ने ढोंग पाखंड की मिलावट किया है | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासी अथवा इस देश के मुल हिन्दुओ से छुवा छुत करने वाले मनुवादि बेशर्मी की सारी हदे पार करके खुदको गर्व से हिन्दु भी कहते हैं | क्या प्रकृती भगवान की पुजा करते हुए बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाने और आपस में मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाने वाले इस कृषी प्रधान देश के मुलनिवासियो जैसा संस्कार मनुवादियो में मौजुद है जो वे खुदको गर्व से हिन्दु कहते हैं | क्योंकि मुल हिन्दु छुवा छुत नही करता है | जो इस देश की मुल सिंधु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृति जिसे बारह माह मनाई जानेवाली मिल जुलकर प्रकृति पर्व त्योहारो के रुप में देखा जा सकता है | जिसे इस देश के मुलनिवासी मिल जुलकर हजारो सालो से मनाते आ रहे हैं | जिन प्रकृति पर्व त्योहारो को मनाने वाले छुवा छुत नही करते बल्कि देव पुजा करने वाले मनुवादि मिल जुलकर छुवा छुत  करते हैं | जो मिल जुलकर छुवा छुत करने वाले मुल हिन्दु हो ही नही सकते | दरसल यहूदि डीएनए का मनुवादि घुमकड़ कबिला ने इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके खुदको हिन्दु तो बना लिया हैं , पर वह हिन्दुओ की मुल सभ्यता संस्कृति को आजतक मुल रुप से अपना ही नही सका हैं | जो इस तरह तो छुवा छुत शोषन अत्याचार करके कभी भी नही अपना सकेगा | क्योंकि अपने किए गए कुकर्मो को स्वीकार करने के बजाय जबतक मनुवादियो के अंदर मनुस्मृती छुवा छुत शोषन अत्याचार करने की निच सोच कायम रहेगी , तबतक मनुवादि उच्च से उच्च पदो में भी बैठकर न तो उच्च कहलाने का लायक है , और न ही हिन्दु कहलाने का लायक हैं | हलांकि बहुत से कथित उच्च जाति के लोग उच्च निच छुवा छुत को छोड़कर मानो अपने पुर्वजो के द्वारा की गई पापो की प्राश्चित करने का प्रयाश कर रहे हैं | जो समय समय पर छुवा छुत शोषन अत्याचार का विरोध भी करते रहते हैं | पर उनकी कोशिष मानो बड़ा सा छेद घड़ा में पानी भरने के जैसा है | क्योंकि उनके द्वारा जितनी कोशिष कि जाती है , उससे कहीं अधिक पाप अबतक भी नही सुधरे मनुवादि और अधिक पाप करते हुए छेद करते जाते हैं | जो अपने पुर्वजो की शोषन अत्याचार करने की मनुस्मृती विरासत को ही पिड़ी दर पिड़ी और आगे बड़ाने में लगे हुए हैं | जिस मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करके बाबा अंबेडकर ने मनुवादियो की छुवा छुत भ्रष्ट परंपरा को समाप्त करने की कोशिष किया था | जिसमे कुछ मनुवादि परिवारो के लोग भी शामिल थे | जो अपने पुर्वजो की रचना मनुस्मृति का विरोध करके बाबा अंबेडकर द्वारा मनुस्मती जलाने का समर्थन भी किये थे | जो मनुस्मृति को जलाते समय शामिल होकर खुदको मनुवादियो के लिए मानो घर का भेदि साबित हो रहे थे | जैसे कि जब ब्रह्मण नेहरु ने अपने पुर्वजो को विदेशी मुल का बताते हुए डिस्कवरी ऑफ इंडिया किताब लिखा , जिसमे उन्होने लिखा कि उनके कबिलई पुर्वज इस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति कृषि प्रधान देश में हजारो साल पहले कबिलई झुंड बनाकर बाहर से प्रवेश किये थे | जिसपर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मनुस्मृती को अपना आदर्श मानने वाले मनुवादियो ने आग बबुला होकर नेहरु को अफगानी मुस्लिम कहकर ब्रह्मण मानने से इंकार कर दिया | जिसके चलते आज भी मनुवादियो द्वारा आपस में विवाद छिड़ी हुई है कि नेहरु अफगानी मुस्लिम है कि कश्मिरी ब्रह्मण है ? जिनका तर्क है कि नेहरु गोत्र और किसी दुसरे ब्रह्मण का क्यों नही है ? और जब करोड़ो साल पहले लुप्त हुए डायनासोर का भी हड्डियां मिल रही है तो फिर नेहरु खानदान का चंद सौ सालो का प्रमाणित इतिहास अबतक भी कश्मिर में क्यों नही मिल रही है ? जिस तरह का सवाल करके आपसी वाद विवाद मनुवादियो में आये दिन होती रहती है | जैसे की दुसरे विदेशी मुल के कबिलई भी कभी इस देश में प्रवेश करके आपस में गैंगवार करते रहते थे | मसलन रोम यूनान और ब्रिटिस फ्रांसिसी के द्वारा इस देश में प्रवेश करके शोसन अन्याय अत्याचार करते समय आपसी लड़ाई होती ही रहती थी | जिस तरह का विवाद वर्तमान में भी मौजुद एक ही सिक्के के दो अलग अलग पहलू भाजपा कांग्रेस के बिच भी होती ही रहती है | जिसपर चर्चा करने से अच्छा इस बारे में विचार करनी चाहिए कि जिन देवो को मनुवादि अपना असली पुर्वज मानते हैं , वे इस धरती में उतरने से पहले कहाँ के वासी हुवा करते थे ? हलांकि इस धरती पर विचरण करने वाले देव तो खैर अब लापता हो गए हैं | जिनकी अब दिन रात लाउडस्पिकर लगाकर हरे रामा भजन किर्तन करने पर भी एक भी झलक देखने को नही मिलती है | जो अब सिर्फ नाटक , टी० वी० धारावाहिको और फिल्मो वगैरा में किसी जिवित मनुष्य के द्वारा अभिनय कराके नकली चेहरा दिखलाये जाते हैं | या तो फिर अलग अलग काल्पनिक चेहरा पर अधारित मूर्ति तस्वीर वगैरा के रुप में देखे जाते हैं | जो कि स्वभाविक भी है | क्योंकि वर्तमान में मौजुद मनुवादि यदि मनुष्य हैं , जो कि वाकई में मनुष्य हैं भी , तो निश्चित तौर पर मनुवादियो के पुर्वज देव भी मनुष्य ही होंगे ! जो की मनुष्य से ही अपना वंशवृक्ष भी बड़ाये हैं | जिसके बाद मनुष्य की तरह बुढ़े भी हुए होंगे | जिसके बाद उनकी आम मनुष्य की तरह मौत भी हुई होगी | जिन मृत देवो को अब इस धरती पर जिवित विचरन करते हुए देखने की बाते करना दरसल भुत प्रेत की बाते करना है | जैसे कि वर्तमान में मौजुद देवो के वंसजो में भी यदि किसी की मौत हो जाती है और उनके द्वारा फिर से कहीं पर विचरन करने की बाते होगी तो निश्चित तौर पर उसे भुत प्रेत विचरन की बाते ही कही जायेगी | क्योंकि देव और उनके वंसजो में भी बाकि मनुष्यो की तरह ही जन्म लेकर बुढ़ा होनेवाला शरिर मौजुद है | जिनमे बस दुसरो का हक अधिकार चुसकर गुजारा करने कि परजिवी सोच प्रमुखता से मौजुद है | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि मनुवादि चूँकि कृषि से जुड़े हुए लोग नही हैं , बल्कि घुमकड़ कबिलई परजिवी जिवन जिते हुए इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद ही संभवता पहलीबार अन्न रोटी खाना सिखा होगा | जिससे पहले उनकी सिर्फ घुम घुमकर पशु लुटपाट और पशु चोरी या शिकार करके बोटी पर गुजारा हो रही होगी | बल्कि मनुवादियो ने पहलीबार कपड़ा भी इस देश में ही प्रवेश करके पहनना सिखा होगा | जिससे पहले वे संभवता या तो लंगटा लुचा जिवन जी रहे होंगे या फिर पशु बोटी नोचकर जो चर्म बचती होगी उसे तन में लपेटकर फिर से पशुओ की तलाश में घुम रहे होंगे | जिनका बैंक बैलेंश पशुधन के रुप में होती थी , जिसकी लेन देन वे पशु यज्ञ करके करते थे | किसान अन्न उपजाने में पशुओ की मदत लेते हैं , और पिंक क्रांती लाने वाले कबिलई बोटी के लिए पशु यज्ञ करते हैं | जिन देवो के द्वारा पशु लुटपाट और चोरी के बारे में वेद पुराणो में भी जानकारी भरे पड़े हैं | क्योंकि वर्तमान में भी इस कृषी प्रधान देश में मनुवादि शासन के दौरान कृषि की हालत खराब करके पुरी दुनियाँ में पशु बोटी व्यापार को शीर्ष पर चड़ाकर जिस तरह की पिंक क्रांती लाई गई है , वह प्रमुखता से पशु बोटी से जुड़ी हुई मनुवादियो की कबिलई सोच को ही दर्शाता है | जैसे की मनुवादियो के पुर्वज देव भी कृषि नही बल्कि पशु यज्ञ करने और कराने के लिए सबसे अधिक जाने जाते हैं | और चूँकि मनुष्य की उम्र औसतन सौ साल से भी कम है , इसलिए निश्चित तौर पर देव भी कबका स्वर्ग का वासी हो चुके होंगे | जैसे की वर्तमान में भी मौजुद दुसरो का हक अधिकारो को चुसकर शोषन अत्याचार करके खुदकी आरती उतरवाने वाले मनुवादि धिरे धिरे अपना उम्र पुरा करके स्वर्ग का वासी होते जा रहे हैं | जो कि स्वभाविक है | जिनके नाम का मूर्ति किसी हिन्दु पुजा स्थलो में लगाकर अब वे वापस तो नही आ जायेंगे | जिस तरह अपनी खुदकी पुजा कराने वाले देवो के बारे में चर्चा सबसे प्राचिन ऋग्वेद में भी मौजुद है कि मनुवादियो के पुर्वज देव इस कृषि प्रधान देश में बाहर से प्रवेश करके इस देश की शासन व्यवस्था में कब्जा किए थे | मनुवादियो के साथ साथ अलग अलग समय पर कई अन्य घुमकड़ कबिला भी कब्जा करके लुटपाट शोषन अत्याचार करने के लिए इस देश में कबिलई झुंड बनाकर प्रवेश किए हैं | बल्कि हजारो साल पहले यहूदियो का कबिला भी इस देश में प्रवेश किया था | जिन यहूदियो और मनुवादियो का डीएनए एक है | पर यहूदि अलग और मनुवादि अलग धर्म को मानते हैं | जिसमे आश्चर्य की बात नही है , क्योंकि खुद इस देश के मुलनिवासी भी एक ही डीएनए और एक ही पुर्वजो के होते हुए भी वर्तमान में कई अलग अलग धर्म को अपनाये हुए हैं | जिन सभी को अपने धर्म से जुड़ी बाते पता है कि वे अपने पुर्वजो द्वारा  सुरु से मानने वाले धर्म को ही मान रहे हैं कि अपने पुर्वजो का धर्म परिवर्तन करके किसी दुसरे का धर्म को अपना लिये हैं | क्योंकि इस देश के करोड़ो मुलनिवासियो ने अपने पुर्वजो के द्वारा सुरु से मानते चले आ रहे हिन्दु धर्म को छोड़कर इस देश में बाहर से आए मुस्लिम ईसाई धर्म और इस देश में ही हिन्दु धर्म के बाद में जन्मा जैन बुद्ध वगैरा धर्म को अपना लिये हैं | जिनको पता है कि उन्होने या उनके बुजुर्गो ने कब अपना धर्म परिवर्तन किया था | जो लोग अपना धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम ईसाई बौद्ध जैन वगैरा बनने वाले कहलाते हैं | बल्कि बहुत से अन्य देशो के मुलनिवासी भी एक ही डीएनए के होते हुए भी अलग अलग कई धर्मो को अपनाये हुए हैं | पर खुदको हिन्दु कहने पर गर्व करने वाले बाहर से आए मनुवादि जिनका डीएनए यहूदियो से मिलता है , उन्होने कब अपना धर्म परिवर्तन करके खुदको हिन्दु बना लिया है , इसके बारे में वे आजतक भी किसी को नही बतलाया गया हैं | जबकि इस देश के मुलनिवासी अपने पुर्वजो का धर्म कब परिवर्तन किये हैं , या कर रहे हैं , ये बाते परिवार रिस्तेदार समेत दोस्तो और अजनबियो को भी सुरुवात में ही पता चल जाता है कि फलाना डिमका ने अपना धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्म को अपना लिया है | हलांकि जो लोग चुपके से अपना धर्म परिवर्तन करते हैं , उनके बारे में लोगो को पता होने में थोड़ी देर जरुर होती है | धर्म परिवर्तन को लेकर सबसे बड़ा आश्चर्य यह लगता है कि दुनियाँ में अपने माता पिता को बदलना लगभग नामुमकिन है , पर अपना धर्म बदलना आसान ही नही बल्कि मन में संतुष्ठी न मिलने पर कई धर्म बदलकर सारे धर्मो की चक्कर लगाया जा सकता है | वह भी उस भगवान की खोज में जो सारे धर्मो और भक्तो समेत सृष्टी के कण कण में मौजुद है | फिर भी धर्म परिवर्तन का दौर इसलिए जारी है , क्योंकि सारे धर्मो के भक्तो को सायद उस भगवान की तलास अब भी है , जो सभी धर्मो के भक्तो के जिवन में सुख शांती और समृद्धी कायम कर दे | जिसके लिए वे दिन रात बड़े बड़े मंदिर मस्जिद और चर्च बनाने में खुब सारा चड़ावा भी चड़ाते हैं | और वहाँ जाकर अपने अपने तरिके से पुजा पाठ करने में लगे भी रहते हैं | फिर भी चाहे जिस धर्म का भक्त हो चारो तरफ दुःख और भुख नजर आता है | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि सुख शांती और समृद्धी कायम मेरे विचार से  तबतक नही होगी जबतक की ढोंग पाखंड छुवा छुत गुलाम दास दासी बनाने की मांसिकता वाले लोग धरती पर जन्म लेते रहेंगे और किसी न किसी धर्म का आड़ लेकर अपना ढोंग पाखंड का व्यापार चलाते रहेंगे | इस कृषी प्रधान देश में तो हिन्दु वेद पुराणो से मनुवादियो के ढोंग पाखंड छुवा छुत मिलावट को अलग कर देने पर ही हिन्दु धर्म  में पहले जैसी सुख शांती वापस लौट आयेगी | बल्कि मनुवादि के परिवार में मौजुद जो भी सदस्य छुवा छुत ढोंग पाखंड को छोड़कर सुधरने की कोशिष में खुलकर मनुस्मृती का विरोध करेंगे उनकी नई पिड़ी भी खुदको वाकई में हिन्दु कहने पर गर्व करेंगे | और मुलनिवासियो की सत्ता स्थापित के बाद भी जो मनुवादि नही सुधरेंगे अथवा झुठी उच्च शान बरकरार रखने के लिए छुवा छुत ढोंग पाखंड को नही छोड़ेंगे वे हो सके तो अपनी मनुस्मृती को लेकर अलग से अपना मनुवादि धर्म बनाकर जोखिम लेकर अपनी नई पिड़ी को आगे भी छुवा छुत ढोंग पाखंड कराने के लिए ब्रेनवाश करते रहेंगे | जिस तरह के ढोंगी पाखंडी लोग हिन्दु धर्म को छोड़कर अपनी अलग से कहीं पर छुवा छुत दुनयाँ बनाकर अपने छुवा छुत और ढोंग पाखंड धर्म का प्रचार प्रसार सिर्फ खुदके मनुवादि परिवारो में ही करेंगे तो ज्यादे सुखी रहेंगे | जैसे की ड्रक्स के नसेड़ी लोग अपनी अलग से ड्रक्स दुनियाँ कायम कर लें तो सायद खुलकर ड्रक्स करके जितने दिन भी जिवन गुजारा करेंगे ज्यादे सुखी रहेंगे | उसी तरह ढोंग पाखंड की नशे में डुबे मनुवादि अपना अलग से मनुवादि धर्म बनाकर छुवा छुत ढोंग पाखंड नशा करते हुए जितने दिन भी जिवन गुजारा करेंगे सायद ज्यादे सुखी रह पायेंगे | न कि मुलनिवासी सत्ता स्थापित होने के बाद भी इस कृषी प्रधान देश में छुवा छुत करते रहने से ज्यादे सुखी रह पायेंगे | क्योंकि हिन्दु धर्म साक्षात प्राकृतिक की पुजा और आपस में बिना भेदभाव के समाजिक जिवन जिना सिखलाता है | न कि छुवा छुत और ढोंग पाखंड करना सिखलाता है | जिसके चलते इस कृषी प्रधान देश के मुलवासी बिना कोई भेदभाव के शांती पूर्वक आपस में मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाते हुए बारह माह प्रकृतिक पर्व त्योहार मनाते हैं | जिनके बिच मनुवादि खुदको हिन्दु कहके और छुवा छुत ढोंग पाखंड करके हिन्दु धर्म को बदनाम करके कभी नही सुखी रह पायेंगे | क्योंकि अदृश्य देवो की पुजा करने की परंपरा तो उपर आसमान से किसी एलियन की तरह पृथ्वी पर उतरे देवो को अपना वंसज कहने वाले खुद मनुवादियो की है | जिनके जैसे ढोंगी पाखंडी अपनी दबदबा जबतक किसी धर्म में बनाए रहेंगे तबतक मेरा पुजा पाठ पद्धति सबसे बेहत्तर है कहकर आपस में लड़ने मरने और दुसरे धर्मो के भक्तो को ठगने ललचाने और बहलाने फुसलाने , डराने और बुराई करने का भी सिलसिला जारी रहेगा | जिससे अच्छा तो यह होनी चाहिए कि जिसके पुर्वज अपनी आस्था और विश्वास से जिसकी भी पुजा बिना किसी को भारी नुकसान पहुँचाये दुसरे धर्मो को अपनाने से पहले करके सबसे अधिक सुख शांती और सुरक्षित जिवन जी रहे थे , उसी की पुजा को उनकी नई पिड़ी को भी जारी रखना चाहिए था | बल्कि अगर उसमे थोड़ी भी बुराई है , जिससे की इंसानियत और प्राकृतिक को इतनी भारी नुकसान होता है कि इंसान समेत पुरे पृथ्वी खतरे में पड़ सकती है , तो उस बुराई को खत्म करके खुदके अथवा अपने पुर्वजो के ही धर्म को अपडेट करके उसी पर कायम रहना चाहिए था | क्योंकि बुराई मेरे ख्याल से सभी धर्मो में मौजुद है | क्योंकि यदि एक भगवान यदि सबमे है तो निश्चित तौर पर उस एक भगवान की पुजा एक ही परिवार अथवा एक ही देश के लोग अलग अलग धर्म अपनाकर पुजने से आपसी लड़ाई और दंगा फसाद होने की पुरी संभावना होती है | जैसे कि वर्तमान में पुरी दुनियाँ में अलग अलग धर्म आपस में वाद विवाद करके इसलिए भी लड़ झगड़ रहे हैं क्योंकि सभी धर्म खुदको सबसे सच्चा और अच्छा धर्म साबित करने में लगे हुए हैं | जबकि सभी धर्मो के भक्तो को एक दुसरे के धर्मो की बुराई करने से पहले एक बात हमेशा  याद रखनी चाहिए थी कि यदि किसी के धर्म में शैतान मौजुद है तो वह भी सभी धर्मो में मौजुद है | बल्कि बुराई करने वालो में बहुत से लोग तो हिन्दु धर्म को कोई धर्म ही नही मानते हैं | बल्कि हिन्दु दरसल सभ्यता संस्कृती है यैसी भी मान्यता हो गई हैं | सायद इसलिए भी क्योंकि इस देश के मुलनिवासी पुरी दुनियाँ में सबसे अधिक उस प्राकृतिक पर्व त्योहारो को आज भी मानते हैं , जिसे इस देश के मुलनिवासी सारी सृष्टी का रचनाकार और पालनहार मानकर पुजते भी हैं | जिसमे मनुवादियो द्वारा देव पुजा के रुप में ढोंग पाखंड नशे की मिलावट करने और एक ही डीएनए के मुलनिवासियो द्वारा कई अलग अलग धर्म को अपनाने से पहले कोई धार्मिक दंगा फसाद और लड़ाई नही होती थी | जो कि अब भी नही होगी यदि इस देश के सभी मुलनिवासी जो इस समय चाहे जिस भी धर्म में मौजुद हैं , वे सभी अपने पुर्वजो की प्रकृति भगवान पुजा करना और आपस में मिल जुलकर प्रकृति पर्व त्योगहार मनाना फिर से सुरु कर दे | क्योंकि साक्षात प्राकृति भगवान सभी धर्मो के भक्तो समेत नास्तिको बल्कि सृष्टी में मौजुद जिव निर्जिव सबके लिए प्रमाणित तौर पर जिवन वरदान है | जिसके बगैर न तो पहले कोई इंसान जिवित था और न ही भविष्य में भी कभी जिवित बचेगा | क्योंकि विज्ञान प्रमाणित भी है कि इंसानो का जन्म प्रकृति की वजह से ही मुमकिन हो पाया है , और इंसान का अंत भी प्राकृतिक ही करेगा | क्योंकि इंसान के अलावे कोई एलियन भी यदि पृथ्वी का विनाश भविष्य में करेगा तो उसे विनाश करने की शक्ती प्राकृतिक से ही मिलेगी | जैसे की पुरी दुनियाँ के ढोंगी पाखंडियों और विनाशकारी पापियो को भी यदि वर्तमान में शक्ती मिल रही है तो वह किसी भष्मासुर को मिली वरदान की तरह साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान से ही मिल रही है | जिसे सत्य का प्रतिक शिव लिंग पत्थर के रुप में भी पुजा जाता है | जिसके भितर मौजुद प्रकृति भगवान की प्रमाणिकता पर विश्वास न करने वाले प्राकृतिक से प्राप्त सांस लेना पानी पिना हगना मुतना और खाना छोड़ दे , चंद सेकेंड में ही उसे पता लग जायेगा कि प्रकृति भगवान में सच्चाई मौजुद है कि नही | जिसकी पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाले का भी शरिर एकदिन प्राकृतिक में ही विलिन होकर नया रुप लेगा न कि मरते ही वह गायब होकर दुसरी दुनियाँ में चला जायेगा |

रविवार, 1 सितंबर 2019

मनुवादियो की दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम बनी रहे इसके लिए मनुवादि सरकार द्रोणाचार्य बनने का कार्य कर रही है

मनुवादियो की दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम बनी रहे इसके लिए मनुवादि सरकार द्रोणाचार्य बनने का कार्य कर रही है

इस कृषि प्रधान देश के बहुसंख्यक मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , सबके पुर्वज एक हैं | चाहे वे वर्तमान में जिस धर्म से जुड़े हुए हो | क्योंकि धर्म परिवर्तन करने से अपने पुर्वजो के डीएनए परिवर्तन नही हो जाते | जिनकी अबादी बहुसंख्यक है | जिन सबकी हक अधिकार अँगुठा काटा या कटवाया जा रहा है | जिसके चलते लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो के उच्च पदो में मनुवादि ही भारी तादार में बहाल किए गए हैं | बहुसंख्यक मुलनिवासी जो चाहे तो जिस धर्म में भी मौजुद हो उनकी मौजुदगी न के बराबर है | बल्कि न्यायालय में भी मनुवादियो का ही दबदबा है | मुलनिवासि तो गिने चुने बहाल किए जा रहे हैं | जो चाहे तो वोट से या मिल जुलकर एकता द्वारा किए गए कड़ी संघर्षो की चोट से एक झटके में मनुवादियो की सत्ता को उखाड़ फैंककर अपने छिने हुए हक अधिकारो को वापस पा सकते हैं | पर फिलहाल तो इस कृषि प्रधान देश में मनुवादियो की सत्ता सिर्फ कायम ही नही बल्कि हर रोज हक अधिकारो की छिना झपटी द्वारा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो की दबदबा कायम है | जो दबदबा निश्चित तौर पर मनुवादि सत्ता द्वारा हक अधिकारो की अँगुठा काट या कटवाये जाने की वजह से ही कायम है | क्योंकि मनुवादियो की दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम बनी रहे इसके लिए मनुवादि सरकार द्रोणाचार्य बनने का कार्य कर रही है | जो इस देश के एकलव्य मुलनिवासियो का हक अधिकारो का अँगुठा काट और कटवाकर मनुवादियो की दबदबा कायम करने में विशेष सहयोग कर रही है | जिसका सहयोग मुलनिवासी परिवारो में मौजुद घर के भेदि कर रहे हैं | इसलिए जाहिर है घर के भेदियो के द्वारा ही मनुवादि सरकार की सेवा से खुश होकर बार बार सहयोग करके यदि वाकई में मनुवादि सरकार चुनी जा रही है , तो निश्चित तौर पर मानो मनुवादियो के कुकर्मो को देखने और मनुवादि सत्ता को उखाड़ फैकने के बजाय आँख मुँदकर अपने ही पांव में बार बार कुल्हाड़ी मारने की गलति की जा रही है | जो गलति जिन मुलनिवासियो द्वारा भी की जा रही है , उनकी भले वर्तमान में मनुवादियो की कुसंगती की वजह से आँख कान सब बंद हो गए हो पर निश्चित तौर पर उनकी भी आने वाली नई पिड़ी मनुवादियो की सरकार चुनने को लेकर भविष्य में शर्म और पछतावा महसुश करेगी | खासकर उस समय जब उन्हे वर्तमान में चल रही मनुवादियो के द्वारा किए गए बड़े बड़े कुकर्मो के बारे में जानकर इस बात पर पुरा यकिन हो जायेगा कि लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो की दबदबा कायम रहने की वजह से ही इस कृषी प्रधान देश को अबतक मानो पुरी अजादी नही मिली है | और जो मुलनिवासी मनुवादि शासन को उखाड़ फैकने के लिए लंबे समय से कड़ा संघर्ष कर रहे हैं , उनकी नई पिड़ी उनपर गर्व करेगी | जिनपर मुझे भी गर्व है ! बल्कि तमाम उन मुलनिवासियो को गर्व होनी चाहिए जो मनुवादियो के शोषन अत्याचार से पुर्ण अजादी चाहते हैं | जिसके लिए मनुवादियो द्वारा अन्याय शोषन अत्याचार का मुख्य जड़ मनुवादि सरकार को उखाड़ फैकना प्रमुख लक्ष होनी चाहिए जो जरुरी भी है | जाहिर है गोरो से अजादी मिलकर अजाद भारत का संविधान लागू होने के बाद भी शोषन अत्याचार और घोर बदहाली का दिन शासन में मनुवादियो की मनुस्मृति मांसिकता की वजह से ही देखनी पड़ रही है | जिस शोषन अत्याचार मांसिकता और बदहाली को स्वीकार न करने वाले ही मनुवादि शासन को सिंचने का कुकर्म कर रहे हैं | दरसल शोषित पिड़ित परिवारो में मौजुद अपने ही घर के भेदि लोग वर्तमान में मनुवादि शासन की मदत करके  इस देश के मुलनिवासियो की सत्ता नही आने दे रहे हैं | जिसका सबसे बड़ा ऐतिहासिक प्रमाण मनुवादियो की पार्टी से आरक्षित सीटो से चुनाव जीतकर मनुवादी सरकार बनाने में सबसे महत्वपुर्ण भुमिका अदा करने वाले नेता | जिन्हे घर का भेदि कहा जा सकता है | जो कि मनुवादि शासन बरकरार रहने में खुलकर मनुवादियो का साथ दे रहे हैं | बजाय इसके कि उन्हे मनुवादियो के अन्याय शोषन अत्याचार से अजादी पाने के लिए मुलनिवासी सत्ता स्थापित होने में साथ देनी चाहिए थी | हलांकि मेरा मानना है कि गोरो का शासन समाप्त होने के बाद आई मनुवादी शासन में अबतक जितने भी लोकसभा चुनाव हुए हैं , वह सब इमानदारी से नही बल्कि मनुवादियो द्वारा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो का नेतृत्व करते हुए बेईमानी से हुए हैं | जैसे की 2019 ई० का लोकसभा चुनाव भी बेईमानी से हुआ हैं | जो न होती तो आरक्षित सीटो में मनुवादि पार्टी से चुनाव लड़ने वाले घर के भेदियो को भी जीत हासिल नही होती | क्योंकि निश्चित तौर पर मनुवादियो के साथ साथ घर के भेदियो को भी जित के लिए वोट नही मिल रहा होगा | पर चूँकि मनुवादि पार्टी द्वारा आरक्षित सीट में न चाहते हुए भी मनुवादियो को किसी न किसी आरक्षित उम्मीदवार को तो खड़ा करना ही करना है  , इसलिए मनुवादि पार्टी अपनी पसंद का चाटुकार उम्मीदवार चुनकर उन्हे किसी ढाल की तरह मनुवादि शासन की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं | और घर के भेदि भी चुनाव घोटाला द्वारा चुनाव जितकर सरकार बनाने के लिए सीटो का आंकड़ा जुटाने में सहयोग कर रहे हैं | जो कि मनुवादि दबदबा कायम रहने में सबसे महत्वपुर्ण भुमिका अदा कर रहे हैं | यानि चुनाव घोटाला और शोषन अत्याचार करने में घर का भेदि भी अपनी इच्छा से ही शामिल हैं | न कि मनुवादि कोई ढोंग पाखंड मंत्र मारकर घर के भेदियो को अपने वश में करके उन्हे अपने पार्टियो से चुनाव लड़ा रहे हैं | यानि घर का भेदि और मनुवादियो की मिली भगत से ही दुनियाँ का ऐसा अपराध हो रहा है जिसे करने वालो पर लोकतंत्र की हत्या करने तक का आरोप लग रहे हैं | जिस बेईमानी का भाण्डाफोड़ न हो जाय और बेईमानी का सजा न मिले इसके लिए चुनाव घोटाला करने वालो को लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो का भारी सहयोग मिल रहा है | जिस सहयोग के बिना मनुवादि सरकार बार बार चुनकर आना तो दुर किसी एक राज्य में भी मनुवादियो की शासन कायम नही रहेगी | पर फिलहाल तो देश और सबसे अधिक राज्यो में भी मनुवादियो की ही सरकार चल रही है | जिसे कायम रखने में लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो का खुलकर गलत उपयोग हो रहा है | क्योंकि मनुवादी कभी नही चाहते कि उनका देवराज शासन समाप्त हो जाय और इस देश के मुलनिवासि बलि दानव का शासन फिर से स्थापित हो जाय | जिसमे मनुवादियो को फिर से अपनी मनुवादी शासन बेईमानी से लाने और इस देश के मुलनिवासियो को छल कपट से वापस बंधक बनाने के लिए कटोरा धरकर बलिराज से भिख मांगनी पड़े | और भिख मिलने पर मौका देखकर छल कपट से वापस बंधक बनाकर मानो लंगटा लुचा सबसे उच्चा बनकर झुठी शान की उच्च जिवन वापस आ जाय | जैसे की गोरो का शासन समाप्त होने के बाद गाँधी के नेतृत्व में भी मानो सुटबुट गाँधी ने अपना सुटबुट उतारकर नये युग का आधा नंगा पुंगा वामन बनकर अंबेडकर के आगे हाथ फैलाकर वापस मनुवादियो की छुवा छुत शासन स्थापित कर दिया है | वैसे सुटबुट गाँधी के बाद कथित उच्च जातियो की दबदबा वाली मनुवादि पार्टी भी इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासियो से मानो हाथ में कटोरा लिए वोट की भिख ही तो मांग रही हैं | बाकि पार्टियाँ तो अपने मुलनिवासी वोटरो से खुदकी शासन वापस स्थापित करने के लिए वोट मांग रही है | जिन्हे न चुनकर मनुवादि पार्टी को ही बार बार सबसे अधिक वोट देकर छल कपट की मनुवादि सरकार बनाकर आधुनिक भारत शाईनिंग इंडिया डीजिटल इंडिया झुठी उच्च शान की जिवन कायम होती चली गई है | जिस तरह की परिस्थिती अथवा मनुवादियो की झुठी शान की उच्च जिवन फिलहाल तबतक रहेगी जबतक की इस देश में मुलनिवासियो की सत्ता वापस स्थापित नही हो जाती | जिसे स्थापित होने में सबसे बड़ी बाधा घर का भेदि बने हुए हैं | जो मनुवादियो का ढाल बनकर हर चुनाव में मनुवादि पार्टी से खड़े हो जाते हैं | जिनके जैसा बेशर्म घर के भेदियो को पुरी अजादी का संघर्ष इतिहास कभी माफ नही करेगी |

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...