निश्चित तौर पर एक बलात्कारी भी दुसरे बलात्कारी का पुजा करना कभी नही चाहेगा
निश्चित तौर पर एक बलात्कारी भी दुसरे बलात्कारी का पुजा करना कभी नही चाहेगा
जलन की वजह से ही तो मनुवादि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद वेद पुराण में भी कब्जा करके उसमे ढोंग पाखंड की मिलावट किया है | जिसके बाद ढोंग पाखंड द्वारा सच्चाई को छिपाकर इंद्रदेव जैसे बलात्कारियो की भी पुजा ऐसे की जानी सुरु हुई है , जैसे कि उच्च ज्ञान की भाषा में बलात्कारी होना पुज्यनीय होना है | जबकि सच्चाई ये है कि खुद किसी बलात्कारी के भी परिवार में यदि उसके माँ बहन के साथ कोई बलात्कार कर दे तो निश्चित तौर पर एक बलात्कारी भी दुसरे बलात्कारी का पुजा करना कभी नही चाहेगा | लेकिन शर्म की भी हद होती है कि अति बेशर्मी से इंद्रदेव जैसे बलात्कारियो की पुजा कराई जाती है | मनुवादि तो खैर इंद्रदेव को अपने पुज्यनीय पूर्वज कहकर पुजा करते हैं , पर वे इस देश के बहुत से मुलनिवासियो से भी इंद्रदेव जैसे बलात्कारियो की पुजा हिन्दु पुजा बताकर करा रहे हैं | जबकि इंद्रदेव तो सिर्फ झांकी है पुरी गंदी फिल्म तो वेद पुराणो में भरे पड़े हैं | जैसे कि आधुनिक इतिहास में भी कबिलई लुटेरो , गुलाम दास बनाने वालो और बड़े बड़े क्रुर शासको इत्यादि की हैवानियत भरे पड़े हैं | वेद पुराण में भी तो ऐसी ही अनगिनत अपराधिक जानकारी भरे पड़े हैं | जिसमे मनुवादियो ने छेड़छाड़ करके बहुत सी सच्चाई को छिपाने का प्रयाश किया है | जिस सच्चाई के बारे में जानने के बाद मनुवादियो की वर्तमान नई पिड़ि खासकर वे जो अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए बड़े बड़े पापो और अपराधो का प्राश्चित करने के बारे में विचार कर रहे हैं , वे भी अपने पुर्वज इंद्रदेव जैसे देवो को पुज्यनीय और उच्च स्वीकार नही करेंगे यदि वे बलात्कारी को बलात्कारी मानकर आरती उतारने के बजाय उनकी पुजा का विरोध करेंगे | लेकिन फिलहाल तो लंबे समय से कड़वी सच्चाई को छुपाने के लिए मनुवादि अपनी झुठी उच्च शान को बरकरार रखने के लिए मानो मल मुत्र से भरा टोकरी को भी किसी किमती गिप्ट की तरह सजा सवारकर उसमे झुठी तारिफो का सुगंध छिड़ककर बलात्कारियो की आरती उतारने वालो को गिप्ट करते आ रहे हैं | जिस तरह की कुकर्म करना एक तरह से मनुवादियो की मजबूरी भी बन गई है | क्योंकि सच्चाई को छुपाकर अपनी ढोंग पाखंड के जरिये ही तो मनुवादि अबतक भी अपने पुर्वज देव और खुदको भी पुज्यनीय व उच्च बनाये हुए हैं | जिसके बलबुते ही तो खुदको सबसे उच्च घोषित करके प्रकृति भगवान की पुजा स्थलो का धार्मिक ठिकेदार बनाकर मनुवादियो ने अपने पुर्वज देवो को सृष्टी का रचिता और संचालक तक बताकर उनकी मुर्तियो को बिठाकर पुजा कराना सुरु किया है | जिनकी किमती गिप्ट की सच्चाई को खोलकर जो भी पुरी तरह से मनुवादियो की ढोंग पाखंड को समझ लेगा , वह निश्चित तौर पर मनुवादियो के पुर्वजो की आरती कभी नही उतारेगा | बल्कि सिर्फ प्राकृति भगवान की पुजा करेगा | जिस प्राकृति भगवान पुजा में भी मनुवादि अपना ढोंग पाखंड की मिलावट करने का प्रयाश लंबे समय से कर रहे हैं | क्योंकि मनुवादि प्रकृति भगवान से भी जलते हैं , जिसके चलते ही तो उन्होने प्राकृति भगवान से भी खुदको ज्यादे ताकतवर घोषित करते हुए खुदको प्राकृति भगवान को निर्माण और संचालन करने वाला घोषित किया हुआ है | मनुस्मृति की रचना करके प्राकृति भगवान के बजाय खुदकी पुजा कराना सुरु किया है | जिसके बाद मनुवादियो ने आम धारना यह बनाकर पुरी दुनियाँ को भ्रमित करके रखा हुआ है कि हिन्दु भगवान पुजा का मतलब देव पुजा होता है | जबकि हिन्दुओ का भगवान पुजा साक्षात प्राकृति की पुजा है | जो कि सृष्टी के कण कण में साक्षात विज्ञान प्रमाणित मौजुद है | जिसे बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहार के दिन मंदिरो के बाहर भी प्राकृतिक भगवान की पुजा करते हुए देखा जा सकता है | जैसे की छठ पुजा , करमा पुजा , दिवाली होली वगैरा जो की प्राकृति से ही जुड़े हुए पर्व त्योहार है | बल्कि सत्य का प्रतिक शिव लिंग योनी पुजा जो की पत्थर के रुप में दरसल चारो ओर सृष्टी के कण कण में साक्षात मौजुद प्राकृति की पुजा है | जिसे भी मनुवादि अपनी ढोंग पाखंड की मिलावट करके देव पुजा साबित करने की कोशिष करते रहते हैं | हलांकि सत्य का प्रतिक शिव को भी मनुवादि महादेव बताकर देवो से जोड़ते हैं | जबकि उसके साथ भी भेदभाव करते हैं , जैसे कि इस देश के मुलनिवासियो के साथ हजारो सालो से करते आ रहे हैं | जिस महादेव के बारे में ये कथा प्रचलित है कि महादेव को जब देवो ने भेदभाव करके यज्ञ में नही बुलाया तो महादेव की पत्नी सती महादेव के मना करने पर भी बिन बुलाये यज्ञ में भाग लेने चली गयी , क्योंकि यज्ञ का आयोजन उसके पिता यक्ष ने किया था | जिस यक्ष ने जब अपनी बेटी के सामने महादेव के बारे में बुराई और अपमान करना सुरु कर दिया तो सती अपने पति महादेव की बुराई और अपमान सह नही सकी और यज्ञ में कुदकर खुदको भष्म कर ली | जिसके बाद महादेव को जब इस घटना के बारे में पता चला तो वे गुस्से से लाल होकर यक्ष का सर उसके गर्दन से अलग करके तांडव करने लगे | जिसका गुस्सा को देखकर सारे देव अपनी जान बचाकर यज्ञ स्थल से भागे और महादेव का तांडव को शांत करने का उपाय तलाशने लगे | वैसे सत्य शिव की एक और कथा खास प्रचलित है कि शिव ने ब्रह्मा का भी सर उसके गर्दन से तब अलग कर दिया था जब उसकी बेटी ने अपने ही पिता ब्रह्मा के खिलाफ शिव के पास शिकायत लेके गयी कि ब्रह्मा उसके साथ गलत किया है | जिस ब्रह्मा की मुँह छाती जाँघ से मनुवादि अपने पुर्वजो को जन्मा हुआ बतलाते हैं | बजाय इसके की नारी योनी से जन्मा हुआ बतलाते तो मनुवादियो की मुँह से भी भारत माता सुनने में अच्छा लगता ! खैर सत्य शिव की पुजा हर साल सावन आते ही विशेष तौर पर देखा जा सकता है | जो सत्य शिव लिंग योनी के रुप में साक्षात प्राकृति भगवान को पुजा जाता है | जो कि जिव निर्जिव सबकी रचना भी करता है | और सबका विनाश भी करता है | जो पत्थर का शिव लिंग योनी कोई मुर्ति नही बल्कि साक्षात प्राकृति द्वारा निर्मित होता है | जिस प्राकृतिक भगवान की मौजुदगी पत्थर पहाड़ पेड़ पौधा आग हवा पानी वगैरा तमाम जिव निर्जिव कहे जाने वाले बल्कि कण कण में मौजुद है | जिसकी मौजुदगी सभी के अंदर है | जिनको मनुवादियो ने नही रचा है बल्कि पत्थर पहाड़ पेड़ पौधा वगैरा के भितर मौजुद प्राकृति भगवान ने खुद ही खुदको अनेको रुपो में रचा है | जिस प्राकृति भगवान ने सारी सृष्टि को रचा है | मनुवादि तो एक मच्छड़ भी नही रच सकते तो प्राकृति की रचना और उसका संचालन कैसे करेंगे ! जिस प्राकृतिक भगवान से जुड़े पुजा स्थल जहाँ पर भी प्राकृतिक द्वारा मौजुद मिलती है , वहाँ पर शिव लिंग योनी पुजा की आड़ लेकर मनुवादि अपने पुर्वज देवो की मूर्ति बिठाकर उसके नाम का भव्य मंदिर बनाने सुरु कर देते हैं | जिस तरह के मंदिर उस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती की खुदाई में कहीं नही मिले हैं जिस सिंधु से हिन्दु धर्म का नाम जोड़ा गया है | जिस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति के निर्माता मुल हिन्दु हजारो साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती का निर्माण करते समय एक भी देवता मंदिर क्यों नही बनाये थे ? जबकि आज पुरे देश में देवता के नाम से लाखो हिन्दु मंदिर मौजुद हैं | जिन लाखो हिन्दु मंदिरो का निर्माण होने के बाद मनुवादियो ने उसमे अपने पुर्वज देवताओ की मुर्ति बिठा रखा है | बल्कि सत्य का प्रतिक शिव लिंग को भी मूर्ति रुप देकर उसका भी मंदिर बनाकर वहाँ पर भी खुदको जन्म से पुजारी घोषित करके शिव के नाम से ढोंग पाखंड का धँधा जमकर चल रहा है | जिस ढोंग पाखंड धँधा से शिव भक्तो को सत्य शिव की पुजा करने में काफी परेशानी होती है | बल्कि सावन के मौसम में होनेवाली विशेष कांवड़ यात्रा करने के बाद सत्य शिव की पुजा करते समय कई भक्तो की जान तक ढोंग पाखंड और भेदभाव व्यवस्था के चलते चली जाती है | क्योंकि ढोंग पाखंड भेदभाव व्यवस्था के चलते भक्तो में पुजा करते समय अपमानित करके डंडे भी बरसाये जाते हैं | जो ढोंग पाखंड भेदभाव व्यवस्था सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती के समय मौजुद नही थी | क्योंकि तब मनुवादि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश नही किये थे | जिन मनुवादियो के प्रवेश करने के बाद ही ढोंग पाखंड और छुवा छुत जैसे भेदभाव व्यवस्था की सुरुवात हुई है | जैसे कि गोरो के प्रवेश के बाद ही इस देश में कोर्ट द्वारा न्याय की व्यवस्था कायम हुई है | मनुवादि सोच प्रवेश के बाद ही प्राकृतिक भगवान की पुजा बड़े बड़े मंदिरो का निर्माण कराकर उसमे भी शिव लिंग योनी की मूर्ति स्थापित करके किया जाने लगा है | जिस तरह की पुजा व्यवस्था मनुवादियो के आने के बाद ही कायम हुई है | जिन मंदिरो में आज भी कई जगह इस देश के मुलनिवासियो का प्रवेश मना है | जिस ढोंग पाखंड भेदभाव का पोल खुल न जाय इसके लिए मनुवादियो ने बहुत से शिव पुजा स्थलो में मनुवादि सोच से भेदभाव नियम कानून बनाकर रखे हैं | जिस भेदभाव नियम कानून के चलते इस देश के मुलनिवासियो द्वारा बहुत से शिव मंदिरो में प्रवेश करते समय अपमानित होना पड़ता है | दरसल मनुवादि भेदभाव नियम कानून के जरिये इस देश के मुलनिवासियो को ही परेशान करते रहना चाहते हैं | बल्कि प्राकृति हवा पानी सुर्य इत्यादि प्राकृति से जुड़े नामो से भी अपने पुर्वज देवो का नाम जोड़कर खुदको जिवन मरन संचालित करनेवाला बतलाकर मनुवादियो द्वारा डराया धमकाया भी जाता है | जबकि डराने धमकाने वाले मनुवादि खुद भी प्राकृति भगवान के रहमो करम पर निर्भर हैं | जो यदि नही रहते तो आज जो बार बार करोड़ो देवताओ के बारे में चर्चा होती रहती है , वे सारे देवता डायनासोर की तरह लुप्त नही होते | बल्कि अब भी अपनी मर्जी से धरती और अंतरिक्ष में विचरन कर रहे होते | जैसे की मनोरंजन के लिए बनने वाली धारावाहिको में जिवित लोगो द्वारा देवताओ का अभिनय करके विचरन करता हुआ दिखाया जाता है | जिन लुप्त देवताओ के बारे में वेद पुराण में बहुत सारी अपराधिक जानकारी भरे पड़े हैं | जिसे छुपाने या फिर झुठी शान के लिए मनुवादियो के पुर्वज देवता द्वारा किए गए बड़े बड़े अपराधो को वीरता वाला कार्य बतलाकर दरसल वेद पुराण में मिलावट करके हेर फेर कि गई है | ताकि मनुवादियो के द्वारा किए गए बड़े बड़े पापो को छिपाया जा सके | बल्कि आगे भी वेद पुराणो में मिलावट करना जारी रखने और उसकी सत्य ज्ञान को इस देश के मुलनिवासियो से छुपाये रखने के लिए मनुस्मृति रचना करके मनुवादियो ने ये नियम कानून भी बनाया कि इस देश के मुलनिवासी वेद सुने तो कान में गर्म पिघला लोहा डाल दिया जाय , और वेद बोले तो उसकी जीभ काट लिया जाय | जिस तरह की अनगिनत हैवानियत नियम कानून बनाने के बाद भी खुदको उच्च विद्वान पंडित और हजारो साल पहले भी हजारो हुनरो को जानने वाले इस देश के मुलनिवासियो को जन्म से ही हजारो निच जाति घोषित करके मनुवादियो ने जन्म से उच्च निच परंपरा की सुरुवात किया है | जिनकी भ्रष्ट बुद्धी अनुसार छुवा छुत करने वाले और कान में गर्म पिघला लोहा डालने वाले , जीभ काटने वाले , अँगुठा काटने वाले , कमर में झाड़ु टंगवाने वाले , गले में थुक दानी टंगवाने वाले सभी उच्च सोच वाले होते हैं | जो दरसल उच्च सोच वाले नही बल्की दिमाक में शौच वाले लोग होते हैं | जिसके चलते उनको तो पहले अपने दिमाक की गंदगी को साफ करनी चाहिए , फिर कभी उच्च सत्यकर्म करके उच्च बनने के बारे में सोचनी चाहिए | मल मूत्र की टोकरी को किमती गिप्ट बताकर दुसरो को निच कहकर छुवा छुत जैसे निचकर्म करके मनुवादि कभी भी सचमुच का उच्च नही बन सकते | सिर्फ अपनी शौच बुद्धी से खुदको ही उच्च घोषित करके जबरजस्ती झुठा उच्च बन सकते हैं | जैसे कि बलात्कारी इंद्रदेव अपनी शौच बुद्धी से जबरजस्ती अपना हवश मिटाकर पुज्यनीय बना हुआ है | जिस तरह के जबरजस्ती करके खुदको झुठा उच्च बनाना मानो किसी का शोषन अत्याचार करके पिड़ित से ही खुदकी आरती उतरवाना है | जो कि गुलाम और दास बनाने की शौच बुद्धी रखने वाले ही कर सकते हैं | जिनकी शौच बुद्धी विकसित होने से भेदभाव गंदगी फैलती है | और शौच बुद्धी में कमी आने पर उच्च विचारो का सत्य ज्ञान फैलती है | जैसे की अब कई देशो को गुलाम बनाने वाले गोरो की नई पिड़ी में सत्य ज्ञान फैल रही है | जो सत्य ज्ञान इस कृषी प्रधान देश में तब से मौजुद है जबसे यहाँ पर प्राकृति भगवान पुजा की सुरुवात हुई है | जिस सत्य का प्रतिक के रुप में शिव लिंग योनी की पुजा होती है | जो सत्य शिव लिंग योनी को जो लोग पत्थर कहकर यह कहते हैं कि पत्थर बात नही करता है , और वह निर्जिव है उनका प्राकृति भगवान के बारे में क्या विचार है कि प्राकृति भगवान बात नही कर सकता इसलिए वह न किसी को जिवन दे सकता है , और न ही किसी के जिवन को समाप्त कर सकता है | जो बात यदि वाकई में सत्य होती तो फिर तो कोई न साँस लेता और अन्न जल ग्रहण करता | और न ही कभी इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो द्वारा बारह माह प्राकृति पर्व त्योहार मनाकर प्राकृति की पुजा की जाती | क्योंकि हवा पानी वगैरा तो बातचीत ही नही करते हैं | बल्कि बातचीत न करने वाले प्राकृति भगवान में मौजुद सत्य ज्ञान से तो उस भेदभाव गंदगी की भी सफाई कि जा सकती है जो किसी नाली और गटर की गंदगी से भी ज्यादे खतरनाक होती है | क्योंकि नाली की गंदगी से फैलने वाली बिमारी का इलाज दवा से मुमकिन है , पर मन की गंदगी से फैलने वाली भेदभाव बिमारी का इलाज मानो नामुमकिन है | हलांकि दवा से न सहि पर प्राकृति भगवान से की जानेवाली दुवा से मुमकिन जरुर है | जिसके चलते जब भी किसी कि बिमारी ठीक होना नामुमकिन सा हो जाता है , अथवा डॉक्टरी इलाज जबाब दे जाता है , तो अक्सर यह कहा जाता है कि अब भगवान ही कुछ चमत्कार कर सकते हैं | जिस तरह के अनेको प्राकृतिक चमत्कार भरे पड़े हैं | जिसके बारे में ही तो अनेको चमत्कारो की खोज इंसानो द्वारा भी होती रहती है | और यदि कहीं पर एलियन वाकई में मौजुद होंगे तो निश्चित तौर पर उनके द्वारा भी प्राकृतिक के रहस्यो के बारे में जानने का प्रयाश जारी होगा | जैसे की एलियन इस सृष्टी में कहाँ पर रहते हैं , इस रहस्य की खोज करने में इंसान भी लगा हुआ है | जैसे की कुछ इंसान प्राकृति में मौजुद चमत्कारी रहस्यो से ही हजारो लाखो सालो की लंबी आयु वाली दवा बल्कि कुछ तो कभी भी मृत्यु न हो इसके लिए अमृत की भी खोज करने में लगे हुए हैं | हलांकि इंसान द्वारा खोजा गया दवा से भी सारी बिमारी का इलाज मुमकिन नही है | खासकर भ्रष्ट मन की बिमारी तो वाकई में दवा से नामुमकिन है | क्योंकि दवा से यदि मुमकिन होता तो मनुवादि दवा खा पिकर आजतक छुवा छुत करना पुरी तरह से कबका छोड़ चुके होते | इसलिए समाज में शौच वाली बुद्धी जिसके मन में भी मौजुद होती है , वह इंसान या तो खुदका इलाज खुद ही अपने किये कुकर्मो को स्वीकार करके खुदको सुधार लें , या फिर उनकी नई पिड़ी उनके ढोंग पाखंड और छुवा छुत परंपरा को आगे बड़ाने से इंकार करके मनुवादियो की झुठी शान परंपरा को समाप्त कर दे | वैसे तो प्रत्येक छुवा छुत करने वाले को भी एकदिन अपना भ्रष्ट तन मन को त्यागकर नया तन मन धारन करने के लिए अँतिम यात्रा करनी ही है | हलांकि चूँकि शौच बुद्धी वाले अपनी गंदी सोच अपने नई पिड़ि को संक्रमित करके ही अँतिम साँस लेते हैं , इसलिए धरती में जबतक एक भी शौच सोच रखने वाला इंसान समाज में शोषन अत्याचार गंदगी फैलाता रहेगा , तबतक भेदभाव पुरी तरह से समाप्त होना लगभग नामुमकिन ही है | हलांकि प्राकृति भगवान के लिए नामुमकिन नही है | जो चाहे तो मनुवादियो के शौच बुद्धी में अचानक से क्रांतीकारी परिवर्तन करके मनुवादि सोच को जड़ से ही समाप्त कर सकते हैं | इसलिए मनुवादियो की शोषन अत्याचार से छुटकारा पाने की दुवा प्राकृति भगवान से करते समय मनुवादियो की शौच बुद्धी में सुधार हो इसकी भी दुवा प्राकृति भगवान से जरुर करनी चाहिए | क्योंकि सायद मनुवादियो को यकिन हो चला कि वे अपनी भ्रष्ट मनुवादि सोच से कभी भी छुटकारा नही पा सकते ! जैसे कि हजारो साल पहले जब मनुवादि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके यहाँ की सभ्यता संस्कृति और यहाँ की शासन व्यवस्था परिवार समाज गणतंत्र को अचानक से सुना देखा होगा तो उनको यकिन हो चला होगा कि वे इस देश के मुलनिवासियो की तरह बिना भेदभाव अथवा आपसी मेल मेलाप वाली अपना खुदका आधुनिक कृषी सभ्यता संस्कृती और परिवार समाज गणतंत्र विकसित कभी नही कर सकते , इसलिए अपनी गंदी सोच से इस कृषी प्रधान देश में ही कब्जा करने के बाद इस देश की विकसित कृषि सभ्यता संस्कृती और परिवार समाज गणतंत्र से जलकर मनुवादियो ने इस देश की सभ्यता संस्कृती को अपने ढोंग पाखंड उच्च निच का भ्रष्ट संक्रमण देकर बार बार अविकसित और अपनी मनुवादि सोच को विकसित साबित करने की कोशिष किया है | क्योंकि मनुवादि इस देश की कृषी सभ्यता संस्कृति और इस देश के मुलनिवासियो से भी जलते हैं | तभी तो इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो द्वारा जो बारह माह प्राकृति पर्व त्योहार मनाये जाते हैं उसमे भी देव पुजा मिलावट करने की कोशिष हो रही है | क्योंकि बिना कोई भेदभाव के मिल जुलकर प्राकृति से जुड़े पर्व त्योहार मनाये जाने के बाद मिलने वाली सुख शांती से भी मनुवादियो को जलन होती है | जिसके लिए भी उन्होने वेद पुराणो में ढोंग पाखंड की मिलावट मनुस्मृति को आदर्श मानकर ही किया है | जिसकी झांकी दुर्गा पुजा के पंडालो में भी देखी जा सकती है | जहाँ पर देवो को महान बताकर उनकी पुजा की और कराई जाती है | और असुरो को मानव भक्षक बताकर उन्हे मुख्य बिलेन के तौर पर प्रदर्शित कि जाती है | जिसके चलते मनुवादियो के शौच बुद्धी को समझने वाले बहुत से मुलनिवासियो द्वारा हर साल विरोध प्रदर्शन भी किया जाता है | जो हर साल बड़ता ही जा रहा है | बल्कि शोषन अत्याचार का शिकार होने वाले बहुत से मुलनिवासी तो पिड़ी दर पिड़ी बिना कोई विरोध प्रदर्शन किए भी शौच बुद्धी वाले लोगो से खुदको दुर रखकर प्राकृति भगवान द्वारा किया जानेवाला उस न्यायपुर्ण दिन का इंतजार कर रहें हैं , जब सभी शौच बुद्धी वाले पाप करना छोड़कर अपना नया शरिर धारन कर लेंगे ! जिसके बाद उनकी नई पिड़ी उनकी भ्रष्ट परंपरा को और आगे ले जाने से मना कर देगी | तबतक बहुत से पिड़ित लोग देव असुर विवादो से खुदको दुर रखें हुए हैं |
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