मृत देवो को अब इस धरती पर जिवित विचरन करते हुए देखने की बाते करना दरसल भुत प्रेत की बाते करना है
मृत देवो को अब इस धरती पर जिवित विचरन करते हुए देखने की बाते करना दरसल भुत प्रेत की बाते करना है |
मनुवादियो की शासन को आनेवाली इस देश की नई पिड़ी अँधकारयुग ही मानेगी | जिसमे लगभग आधी अबादी बीपीएल और आधी अशिक्षित जिवन जिने को मजबूर है | क्योंकि मनुवादि सरकार के पास वह लक्ष ही नही जिसमे की प्रजा की बेहत्तर सेवा करके बेहत्तर शासन का इतिहास रचा जा सके | जिनके पास तो मनुस्मृती सोच से खुदगी सेवा कराने और बाकियो की शोषन अत्याचार करने में इतिहास रचने का लक्ष मौजुद रहती है | हलांकि वर्तमान के मनुवादि शासन में मनुवादियो के जिवन में भी असली खुशियाली मौजुद है कि नही यह तो उनकी आनेवाली नई पिड़ी तय करेगी | जैसे की गोरो की नई पिड़ी तय कर रही है कि गोरो के द्वारा कई देशो को गुलाम करके और करोड़ो लोगो का शोषन अत्याचार करके उनकी हक अधिकारो को छिनकर खुदकी सेवा कराने में सबसे अधिक खुशहाली जिवन थी की वर्तमान में खुशहाली जिवन है | वैसे मनुवादियो का सबसे आदर्श रामराज में भी सबसे अधिक दिल से खुशहाली जिवन मौजुद थी कि आत्महत्या करने वाली दुःखभरी जिवन थी , ये तो उस समय के हालात बयान करता है जब राजा राम ने खुदकी नेतृत्व रामराज में इस कृषी प्रधान देश के मुलनिवासी शंभुक के साथ उच्च निच भेदभाव करते हुए उसकी हत्या कर दिया था | जो खुदको सबका बेड़ा पार करने वाला भगवान बतलाकर और प्रजा से अपनी खुदकी पुजा कराके न तो खुद ही सुखी रह सका और न ही उसका परिवार सुखी रहा | जो खुदकी रामराज में अति दुःखी होकर जिते जी सरयू नदी में डुबकर अपनी रामलीला समाप्त कर ली ! और रानी सीता भी अति दुःखी होकर जिते जी धरती में समा गई | जिस तरह की रामराज समाप्त होने के बाद रामराज को अपना आदर्श मानने वालो का ही तो शासन अबतक चल रहा है | जिनको भी निर्दोश लोगो की शोषन अत्याचार करने की भगवान द्वारा सजा के तौर पर खुदकी शासन में ही खुदकी बेड़ा पार हो जायेगी | जिसके बाद इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासी वर्तमान की भ्रष्ट शासन व्यवस्था और ढोंग पाखंड का मिलावट किए गए वेद पुराणो को भी अपडेट करेंगे | जिसमे सारी सृष्टि और प्राकृतिक से लेकर इस देश की कृषि सभ्यता संस्कृति और यहाँ के मुलनिवासियो के बारे में ज्ञान का सागर मौजुद है | जो दरसल असली हिन्दु सभ्यता संस्कृति हैं | जिन वेद पुराणो के असली रचनाकार इस देश के मुलनिवासी ही हैं | जो असली हिन्दु हैं | क्योंकि हिन्दु शब्द प्राकृति सिंधु नदी से जुड़ी सिंधु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृती से ही जन्मा है | जो कृषि सभ्यता संस्कृति कबिलई मनुवादियो के द्वारा निर्माण नही बल्कि इस देश के मुलनिवासियो के द्वारा किया गया है | जिन मुलनिवासियो के पास हजारो साल पहले भी हजारो विकसित हुनर मौजुद थी | जिसे मनुवादियो ने जन्म से ही मिलने वाली जाति पहचान के रुप में घोषित करके , हजारो हुनरो को हजारो निच जातियो के रुप में बांट दिया है | और खुदको जन्म से ही उच्च जाति घोषित किया हुआ है | क्योंकि मनुस्मृति रचना करके मनुवादि शासन स्थापित करने के बाद मनुवादियो ने खुदको उच्च घोषित किया हुआ है | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासियो के साथ छुवा छुत शोषन अत्याचार करने का भ्रष्ट परंपरा मनुवादियो द्वारा चलाई जा रही है | जिस भ्रष्ट परंपरा कि सुरुवात मनुस्मृति लागू करके उस समय हुई है , जिस समय वेद सुनने पर कान में गर्म पिघला लोहा डालना , वेद का उच्चारण करने पर जिभ काटना , अँगुठा काटना , गले में थुकदानी टांगना , कमर में झाड़ू टांगना जैसे अति निच कुकर्म मनुवादियो द्वारा किये गए | बल्कि निच और क्रुरता भरी कुकर्म और पाप करने वाले खुदको उच्च घोषित भी किए गए | जिस तरह कि निच हरकत कई देशो को गुलाम बनाने वाले गोरो ने भी नही किए होंगे | जैसा कि मनुवादियो ने कान में गर्म पिघला लोहा डालना और जीभ काटना वगैरा शोषन अत्याचार करने का नियम कानून बनाकर किए हैं | जिस तरह के नियम कानूनो के द्वारा मनुवादियो ने प्रजा सेवा के नाम से मनुस्मृति लागू करके गोरो के आने से हजारो साल पहले ही बड़े से बड़े पाप किए गए हैं | हजारो साल पहले भी हजारो विकसित हुनरो को जानने और विकसित सिंधु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृती का निर्माण व गणतंत्र का निर्माण करने वाले इस देश के मुलनिवासी निच घोषित किए गए हैं | जाहिर है बाहर से आए मनुवादियो ने इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर छुवा छुत शोषन अत्याचार जैसे सबसे निच कुकर्म हजारो सालो से करके भी खुदको उच्च घोषित करके ऐसा पाप किया हैं , जिसकी सजा प्रकृति भगवान द्वारा उन्हे किसी न किसी रुप में पिड़ी दर पिड़ी मिल ही रही होगी | जिस प्रकृति भगवान पुजा में भी मनुवादियो ने ढोंग पाखंड की मिलावट किया है | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासी अथवा इस देश के मुल हिन्दुओ से छुवा छुत करने वाले मनुवादि बेशर्मी की सारी हदे पार करके खुदको गर्व से हिन्दु भी कहते हैं | क्या प्रकृती भगवान की पुजा करते हुए बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाने और आपस में मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाने वाले इस कृषी प्रधान देश के मुलनिवासियो जैसा संस्कार मनुवादियो में मौजुद है जो वे खुदको गर्व से हिन्दु कहते हैं | क्योंकि मुल हिन्दु छुवा छुत नही करता है | जो इस देश की मुल सिंधु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृति जिसे बारह माह मनाई जानेवाली मिल जुलकर प्रकृति पर्व त्योहारो के रुप में देखा जा सकता है | जिसे इस देश के मुलनिवासी मिल जुलकर हजारो सालो से मनाते आ रहे हैं | जिन प्रकृति पर्व त्योहारो को मनाने वाले छुवा छुत नही करते बल्कि देव पुजा करने वाले मनुवादि मिल जुलकर छुवा छुत करते हैं | जो मिल जुलकर छुवा छुत करने वाले मुल हिन्दु हो ही नही सकते | दरसल यहूदि डीएनए का मनुवादि घुमकड़ कबिला ने इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके खुदको हिन्दु तो बना लिया हैं , पर वह हिन्दुओ की मुल सभ्यता संस्कृति को आजतक मुल रुप से अपना ही नही सका हैं | जो इस तरह तो छुवा छुत शोषन अत्याचार करके कभी भी नही अपना सकेगा | क्योंकि अपने किए गए कुकर्मो को स्वीकार करने के बजाय जबतक मनुवादियो के अंदर मनुस्मृती छुवा छुत शोषन अत्याचार करने की निच सोच कायम रहेगी , तबतक मनुवादि उच्च से उच्च पदो में भी बैठकर न तो उच्च कहलाने का लायक है , और न ही हिन्दु कहलाने का लायक हैं | हलांकि बहुत से कथित उच्च जाति के लोग उच्च निच छुवा छुत को छोड़कर मानो अपने पुर्वजो के द्वारा की गई पापो की प्राश्चित करने का प्रयाश कर रहे हैं | जो समय समय पर छुवा छुत शोषन अत्याचार का विरोध भी करते रहते हैं | पर उनकी कोशिष मानो बड़ा सा छेद घड़ा में पानी भरने के जैसा है | क्योंकि उनके द्वारा जितनी कोशिष कि जाती है , उससे कहीं अधिक पाप अबतक भी नही सुधरे मनुवादि और अधिक पाप करते हुए छेद करते जाते हैं | जो अपने पुर्वजो की शोषन अत्याचार करने की मनुस्मृती विरासत को ही पिड़ी दर पिड़ी और आगे बड़ाने में लगे हुए हैं | जिस मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करके बाबा अंबेडकर ने मनुवादियो की छुवा छुत भ्रष्ट परंपरा को समाप्त करने की कोशिष किया था | जिसमे कुछ मनुवादि परिवारो के लोग भी शामिल थे | जो अपने पुर्वजो की रचना मनुस्मृति का विरोध करके बाबा अंबेडकर द्वारा मनुस्मती जलाने का समर्थन भी किये थे | जो मनुस्मृति को जलाते समय शामिल होकर खुदको मनुवादियो के लिए मानो घर का भेदि साबित हो रहे थे | जैसे कि जब ब्रह्मण नेहरु ने अपने पुर्वजो को विदेशी मुल का बताते हुए डिस्कवरी ऑफ इंडिया किताब लिखा , जिसमे उन्होने लिखा कि उनके कबिलई पुर्वज इस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति कृषि प्रधान देश में हजारो साल पहले कबिलई झुंड बनाकर बाहर से प्रवेश किये थे | जिसपर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मनुस्मृती को अपना आदर्श मानने वाले मनुवादियो ने आग बबुला होकर नेहरु को अफगानी मुस्लिम कहकर ब्रह्मण मानने से इंकार कर दिया | जिसके चलते आज भी मनुवादियो द्वारा आपस में विवाद छिड़ी हुई है कि नेहरु अफगानी मुस्लिम है कि कश्मिरी ब्रह्मण है ? जिनका तर्क है कि नेहरु गोत्र और किसी दुसरे ब्रह्मण का क्यों नही है ? और जब करोड़ो साल पहले लुप्त हुए डायनासोर का भी हड्डियां मिल रही है तो फिर नेहरु खानदान का चंद सौ सालो का प्रमाणित इतिहास अबतक भी कश्मिर में क्यों नही मिल रही है ? जिस तरह का सवाल करके आपसी वाद विवाद मनुवादियो में आये दिन होती रहती है | जैसे की दुसरे विदेशी मुल के कबिलई भी कभी इस देश में प्रवेश करके आपस में गैंगवार करते रहते थे | मसलन रोम यूनान और ब्रिटिस फ्रांसिसी के द्वारा इस देश में प्रवेश करके शोसन अन्याय अत्याचार करते समय आपसी लड़ाई होती ही रहती थी | जिस तरह का विवाद वर्तमान में भी मौजुद एक ही सिक्के के दो अलग अलग पहलू भाजपा कांग्रेस के बिच भी होती ही रहती है | जिसपर चर्चा करने से अच्छा इस बारे में विचार करनी चाहिए कि जिन देवो को मनुवादि अपना असली पुर्वज मानते हैं , वे इस धरती में उतरने से पहले कहाँ के वासी हुवा करते थे ? हलांकि इस धरती पर विचरण करने वाले देव तो खैर अब लापता हो गए हैं | जिनकी अब दिन रात लाउडस्पिकर लगाकर हरे रामा भजन किर्तन करने पर भी एक भी झलक देखने को नही मिलती है | जो अब सिर्फ नाटक , टी० वी० धारावाहिको और फिल्मो वगैरा में किसी जिवित मनुष्य के द्वारा अभिनय कराके नकली चेहरा दिखलाये जाते हैं | या तो फिर अलग अलग काल्पनिक चेहरा पर अधारित मूर्ति तस्वीर वगैरा के रुप में देखे जाते हैं | जो कि स्वभाविक भी है | क्योंकि वर्तमान में मौजुद मनुवादि यदि मनुष्य हैं , जो कि वाकई में मनुष्य हैं भी , तो निश्चित तौर पर मनुवादियो के पुर्वज देव भी मनुष्य ही होंगे ! जो की मनुष्य से ही अपना वंशवृक्ष भी बड़ाये हैं | जिसके बाद मनुष्य की तरह बुढ़े भी हुए होंगे | जिसके बाद उनकी आम मनुष्य की तरह मौत भी हुई होगी | जिन मृत देवो को अब इस धरती पर जिवित विचरन करते हुए देखने की बाते करना दरसल भुत प्रेत की बाते करना है | जैसे कि वर्तमान में मौजुद देवो के वंसजो में भी यदि किसी की मौत हो जाती है और उनके द्वारा फिर से कहीं पर विचरन करने की बाते होगी तो निश्चित तौर पर उसे भुत प्रेत विचरन की बाते ही कही जायेगी | क्योंकि देव और उनके वंसजो में भी बाकि मनुष्यो की तरह ही जन्म लेकर बुढ़ा होनेवाला शरिर मौजुद है | जिनमे बस दुसरो का हक अधिकार चुसकर गुजारा करने कि परजिवी सोच प्रमुखता से मौजुद है | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि मनुवादि चूँकि कृषि से जुड़े हुए लोग नही हैं , बल्कि घुमकड़ कबिलई परजिवी जिवन जिते हुए इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने के बाद ही संभवता पहलीबार अन्न रोटी खाना सिखा होगा | जिससे पहले उनकी सिर्फ घुम घुमकर पशु लुटपाट और पशु चोरी या शिकार करके बोटी पर गुजारा हो रही होगी | बल्कि मनुवादियो ने पहलीबार कपड़ा भी इस देश में ही प्रवेश करके पहनना सिखा होगा | जिससे पहले वे संभवता या तो लंगटा लुचा जिवन जी रहे होंगे या फिर पशु बोटी नोचकर जो चर्म बचती होगी उसे तन में लपेटकर फिर से पशुओ की तलाश में घुम रहे होंगे | जिनका बैंक बैलेंश पशुधन के रुप में होती थी , जिसकी लेन देन वे पशु यज्ञ करके करते थे | किसान अन्न उपजाने में पशुओ की मदत लेते हैं , और पिंक क्रांती लाने वाले कबिलई बोटी के लिए पशु यज्ञ करते हैं | जिन देवो के द्वारा पशु लुटपाट और चोरी के बारे में वेद पुराणो में भी जानकारी भरे पड़े हैं | क्योंकि वर्तमान में भी इस कृषी प्रधान देश में मनुवादि शासन के दौरान कृषि की हालत खराब करके पुरी दुनियाँ में पशु बोटी व्यापार को शीर्ष पर चड़ाकर जिस तरह की पिंक क्रांती लाई गई है , वह प्रमुखता से पशु बोटी से जुड़ी हुई मनुवादियो की कबिलई सोच को ही दर्शाता है | जैसे की मनुवादियो के पुर्वज देव भी कृषि नही बल्कि पशु यज्ञ करने और कराने के लिए सबसे अधिक जाने जाते हैं | और चूँकि मनुष्य की उम्र औसतन सौ साल से भी कम है , इसलिए निश्चित तौर पर देव भी कबका स्वर्ग का वासी हो चुके होंगे | जैसे की वर्तमान में भी मौजुद दुसरो का हक अधिकारो को चुसकर शोषन अत्याचार करके खुदकी आरती उतरवाने वाले मनुवादि धिरे धिरे अपना उम्र पुरा करके स्वर्ग का वासी होते जा रहे हैं | जो कि स्वभाविक है | जिनके नाम का मूर्ति किसी हिन्दु पुजा स्थलो में लगाकर अब वे वापस तो नही आ जायेंगे | जिस तरह अपनी खुदकी पुजा कराने वाले देवो के बारे में चर्चा सबसे प्राचिन ऋग्वेद में भी मौजुद है कि मनुवादियो के पुर्वज देव इस कृषि प्रधान देश में बाहर से प्रवेश करके इस देश की शासन व्यवस्था में कब्जा किए थे | मनुवादियो के साथ साथ अलग अलग समय पर कई अन्य घुमकड़ कबिला भी कब्जा करके लुटपाट शोषन अत्याचार करने के लिए इस देश में कबिलई झुंड बनाकर प्रवेश किए हैं | बल्कि हजारो साल पहले यहूदियो का कबिला भी इस देश में प्रवेश किया था | जिन यहूदियो और मनुवादियो का डीएनए एक है | पर यहूदि अलग और मनुवादि अलग धर्म को मानते हैं | जिसमे आश्चर्य की बात नही है , क्योंकि खुद इस देश के मुलनिवासी भी एक ही डीएनए और एक ही पुर्वजो के होते हुए भी वर्तमान में कई अलग अलग धर्म को अपनाये हुए हैं | जिन सभी को अपने धर्म से जुड़ी बाते पता है कि वे अपने पुर्वजो द्वारा सुरु से मानने वाले धर्म को ही मान रहे हैं कि अपने पुर्वजो का धर्म परिवर्तन करके किसी दुसरे का धर्म को अपना लिये हैं | क्योंकि इस देश के करोड़ो मुलनिवासियो ने अपने पुर्वजो के द्वारा सुरु से मानते चले आ रहे हिन्दु धर्म को छोड़कर इस देश में बाहर से आए मुस्लिम ईसाई धर्म और इस देश में ही हिन्दु धर्म के बाद में जन्मा जैन बुद्ध वगैरा धर्म को अपना लिये हैं | जिनको पता है कि उन्होने या उनके बुजुर्गो ने कब अपना धर्म परिवर्तन किया था | जो लोग अपना धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम ईसाई बौद्ध जैन वगैरा बनने वाले कहलाते हैं | बल्कि बहुत से अन्य देशो के मुलनिवासी भी एक ही डीएनए के होते हुए भी अलग अलग कई धर्मो को अपनाये हुए हैं | पर खुदको हिन्दु कहने पर गर्व करने वाले बाहर से आए मनुवादि जिनका डीएनए यहूदियो से मिलता है , उन्होने कब अपना धर्म परिवर्तन करके खुदको हिन्दु बना लिया है , इसके बारे में वे आजतक भी किसी को नही बतलाया गया हैं | जबकि इस देश के मुलनिवासी अपने पुर्वजो का धर्म कब परिवर्तन किये हैं , या कर रहे हैं , ये बाते परिवार रिस्तेदार समेत दोस्तो और अजनबियो को भी सुरुवात में ही पता चल जाता है कि फलाना डिमका ने अपना धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्म को अपना लिया है | हलांकि जो लोग चुपके से अपना धर्म परिवर्तन करते हैं , उनके बारे में लोगो को पता होने में थोड़ी देर जरुर होती है | धर्म परिवर्तन को लेकर सबसे बड़ा आश्चर्य यह लगता है कि दुनियाँ में अपने माता पिता को बदलना लगभग नामुमकिन है , पर अपना धर्म बदलना आसान ही नही बल्कि मन में संतुष्ठी न मिलने पर कई धर्म बदलकर सारे धर्मो की चक्कर लगाया जा सकता है | वह भी उस भगवान की खोज में जो सारे धर्मो और भक्तो समेत सृष्टी के कण कण में मौजुद है | फिर भी धर्म परिवर्तन का दौर इसलिए जारी है , क्योंकि सारे धर्मो के भक्तो को सायद उस भगवान की तलास अब भी है , जो सभी धर्मो के भक्तो के जिवन में सुख शांती और समृद्धी कायम कर दे | जिसके लिए वे दिन रात बड़े बड़े मंदिर मस्जिद और चर्च बनाने में खुब सारा चड़ावा भी चड़ाते हैं | और वहाँ जाकर अपने अपने तरिके से पुजा पाठ करने में लगे भी रहते हैं | फिर भी चाहे जिस धर्म का भक्त हो चारो तरफ दुःख और भुख नजर आता है | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि सुख शांती और समृद्धी कायम मेरे विचार से तबतक नही होगी जबतक की ढोंग पाखंड छुवा छुत गुलाम दास दासी बनाने की मांसिकता वाले लोग धरती पर जन्म लेते रहेंगे और किसी न किसी धर्म का आड़ लेकर अपना ढोंग पाखंड का व्यापार चलाते रहेंगे | इस कृषी प्रधान देश में तो हिन्दु वेद पुराणो से मनुवादियो के ढोंग पाखंड छुवा छुत मिलावट को अलग कर देने पर ही हिन्दु धर्म में पहले जैसी सुख शांती वापस लौट आयेगी | बल्कि मनुवादि के परिवार में मौजुद जो भी सदस्य छुवा छुत ढोंग पाखंड को छोड़कर सुधरने की कोशिष में खुलकर मनुस्मृती का विरोध करेंगे उनकी नई पिड़ी भी खुदको वाकई में हिन्दु कहने पर गर्व करेंगे | और मुलनिवासियो की सत्ता स्थापित के बाद भी जो मनुवादि नही सुधरेंगे अथवा झुठी उच्च शान बरकरार रखने के लिए छुवा छुत ढोंग पाखंड को नही छोड़ेंगे वे हो सके तो अपनी मनुस्मृती को लेकर अलग से अपना मनुवादि धर्म बनाकर जोखिम लेकर अपनी नई पिड़ी को आगे भी छुवा छुत ढोंग पाखंड कराने के लिए ब्रेनवाश करते रहेंगे | जिस तरह के ढोंगी पाखंडी लोग हिन्दु धर्म को छोड़कर अपनी अलग से कहीं पर छुवा छुत दुनयाँ बनाकर अपने छुवा छुत और ढोंग पाखंड धर्म का प्रचार प्रसार सिर्फ खुदके मनुवादि परिवारो में ही करेंगे तो ज्यादे सुखी रहेंगे | जैसे की ड्रक्स के नसेड़ी लोग अपनी अलग से ड्रक्स दुनियाँ कायम कर लें तो सायद खुलकर ड्रक्स करके जितने दिन भी जिवन गुजारा करेंगे ज्यादे सुखी रहेंगे | उसी तरह ढोंग पाखंड की नशे में डुबे मनुवादि अपना अलग से मनुवादि धर्म बनाकर छुवा छुत ढोंग पाखंड नशा करते हुए जितने दिन भी जिवन गुजारा करेंगे सायद ज्यादे सुखी रह पायेंगे | न कि मुलनिवासी सत्ता स्थापित होने के बाद भी इस कृषी प्रधान देश में छुवा छुत करते रहने से ज्यादे सुखी रह पायेंगे | क्योंकि हिन्दु धर्म साक्षात प्राकृतिक की पुजा और आपस में बिना भेदभाव के समाजिक जिवन जिना सिखलाता है | न कि छुवा छुत और ढोंग पाखंड करना सिखलाता है | जिसके चलते इस कृषी प्रधान देश के मुलवासी बिना कोई भेदभाव के शांती पूर्वक आपस में मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाते हुए बारह माह प्रकृतिक पर्व त्योहार मनाते हैं | जिनके बिच मनुवादि खुदको हिन्दु कहके और छुवा छुत ढोंग पाखंड करके हिन्दु धर्म को बदनाम करके कभी नही सुखी रह पायेंगे | क्योंकि अदृश्य देवो की पुजा करने की परंपरा तो उपर आसमान से किसी एलियन की तरह पृथ्वी पर उतरे देवो को अपना वंसज कहने वाले खुद मनुवादियो की है | जिनके जैसे ढोंगी पाखंडी अपनी दबदबा जबतक किसी धर्म में बनाए रहेंगे तबतक मेरा पुजा पाठ पद्धति सबसे बेहत्तर है कहकर आपस में लड़ने मरने और दुसरे धर्मो के भक्तो को ठगने ललचाने और बहलाने फुसलाने , डराने और बुराई करने का भी सिलसिला जारी रहेगा | जिससे अच्छा तो यह होनी चाहिए कि जिसके पुर्वज अपनी आस्था और विश्वास से जिसकी भी पुजा बिना किसी को भारी नुकसान पहुँचाये दुसरे धर्मो को अपनाने से पहले करके सबसे अधिक सुख शांती और सुरक्षित जिवन जी रहे थे , उसी की पुजा को उनकी नई पिड़ी को भी जारी रखना चाहिए था | बल्कि अगर उसमे थोड़ी भी बुराई है , जिससे की इंसानियत और प्राकृतिक को इतनी भारी नुकसान होता है कि इंसान समेत पुरे पृथ्वी खतरे में पड़ सकती है , तो उस बुराई को खत्म करके खुदके अथवा अपने पुर्वजो के ही धर्म को अपडेट करके उसी पर कायम रहना चाहिए था | क्योंकि बुराई मेरे ख्याल से सभी धर्मो में मौजुद है | क्योंकि यदि एक भगवान यदि सबमे है तो निश्चित तौर पर उस एक भगवान की पुजा एक ही परिवार अथवा एक ही देश के लोग अलग अलग धर्म अपनाकर पुजने से आपसी लड़ाई और दंगा फसाद होने की पुरी संभावना होती है | जैसे कि वर्तमान में पुरी दुनियाँ में अलग अलग धर्म आपस में वाद विवाद करके इसलिए भी लड़ झगड़ रहे हैं क्योंकि सभी धर्म खुदको सबसे सच्चा और अच्छा धर्म साबित करने में लगे हुए हैं | जबकि सभी धर्मो के भक्तो को एक दुसरे के धर्मो की बुराई करने से पहले एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए थी कि यदि किसी के धर्म में शैतान मौजुद है तो वह भी सभी धर्मो में मौजुद है | बल्कि बुराई करने वालो में बहुत से लोग तो हिन्दु धर्म को कोई धर्म ही नही मानते हैं | बल्कि हिन्दु दरसल सभ्यता संस्कृती है यैसी भी मान्यता हो गई हैं | सायद इसलिए भी क्योंकि इस देश के मुलनिवासी पुरी दुनियाँ में सबसे अधिक उस प्राकृतिक पर्व त्योहारो को आज भी मानते हैं , जिसे इस देश के मुलनिवासी सारी सृष्टी का रचनाकार और पालनहार मानकर पुजते भी हैं | जिसमे मनुवादियो द्वारा देव पुजा के रुप में ढोंग पाखंड नशे की मिलावट करने और एक ही डीएनए के मुलनिवासियो द्वारा कई अलग अलग धर्म को अपनाने से पहले कोई धार्मिक दंगा फसाद और लड़ाई नही होती थी | जो कि अब भी नही होगी यदि इस देश के सभी मुलनिवासी जो इस समय चाहे जिस भी धर्म में मौजुद हैं , वे सभी अपने पुर्वजो की प्रकृति भगवान पुजा करना और आपस में मिल जुलकर प्रकृति पर्व त्योगहार मनाना फिर से सुरु कर दे | क्योंकि साक्षात प्राकृति भगवान सभी धर्मो के भक्तो समेत नास्तिको बल्कि सृष्टी में मौजुद जिव निर्जिव सबके लिए प्रमाणित तौर पर जिवन वरदान है | जिसके बगैर न तो पहले कोई इंसान जिवित था और न ही भविष्य में भी कभी जिवित बचेगा | क्योंकि विज्ञान प्रमाणित भी है कि इंसानो का जन्म प्रकृति की वजह से ही मुमकिन हो पाया है , और इंसान का अंत भी प्राकृतिक ही करेगा | क्योंकि इंसान के अलावे कोई एलियन भी यदि पृथ्वी का विनाश भविष्य में करेगा तो उसे विनाश करने की शक्ती प्राकृतिक से ही मिलेगी | जैसे की पुरी दुनियाँ के ढोंगी पाखंडियों और विनाशकारी पापियो को भी यदि वर्तमान में शक्ती मिल रही है तो वह किसी भष्मासुर को मिली वरदान की तरह साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान से ही मिल रही है | जिसे सत्य का प्रतिक शिव लिंग पत्थर के रुप में भी पुजा जाता है | जिसके भितर मौजुद प्रकृति भगवान की प्रमाणिकता पर विश्वास न करने वाले प्राकृतिक से प्राप्त सांस लेना पानी पिना हगना मुतना और खाना छोड़ दे , चंद सेकेंड में ही उसे पता लग जायेगा कि प्रकृति भगवान में सच्चाई मौजुद है कि नही | जिसकी पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाले का भी शरिर एकदिन प्राकृतिक में ही विलिन होकर नया रुप लेगा न कि मरते ही वह गायब होकर दुसरी दुनियाँ में चला जायेगा |
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