इस देश के मुलनिवासी अपने सर मैं मैला तक ढोकर मनुवादियो के सर में सत्ता ताज पहना रखा है , फिर भी मनुवादियो को किमती जुता चप्पल तक में जलन

इस देश के मुलनिवासी अपने सर मैं मैला तक ढोकर मनुवादियो के सर में सत्ता ताज पहना रखा है , फिर भी मनुवादियो को किमती जुता चप्पल तक में जलन


जबकि किमती जुता चप्पल गाड़ी बंगला वगैरा को देखकर मनुवादियो को जलने के बजाय खुश होना चाहिए था कि उनकी छुवा छुत शासन में अभी भी कम से कम चंद मुलनिवासी तो अमिरी जिवन जी रहे हैं | क्योंकि अगर इस देश के मुलनिवासियो को हजारो सालो तक लुटा नही जाता , और विदेशी मुल के कबिलई द्वारा बार बार लंबे समय तक उनकी सत्ता पर कब्जा किया नही जाता , तो निश्चित तौर पर मनुवादियो से अधिक अमिर इस देश के मुलनिवासी होते | मनुवादियो से ज्यादे धन किमती गाड़ी बंगला वगैरा इस देश के मुलनिवासियो के पास सबसे अधिक होती | जिससे इस देश के मुलनिवासियो की असली औकात मनुवादियो और अन्य उन विदेशि मुल के लोगो को भी पता चल जाता जिनके द्वारा इस देश में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियो के हक अधिकारो को लंबे समय तक लुटा गया है | और जिनके द्वारा लुटने से पहले उनकी भी औकात क्या थी सारी दुनियाँ को आज के समय में भी  प्रयोगिक तौर पर पता चल जाती | अथवा जिसके बारे में वर्तमान के भी झुठी शान के नशे में डुबे मनुवादियो को प्रयोगिक तौर पर पता चलने के साथ साथ सत्ता नेतृत्व और उस विकसित सोच के बारे में भी पता चल जाता कि इस देश के मुलनिवासी हजारो साल पहले उस समय भी आधुनिक विकसित सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करके हजारो हुनरो से शासन व्यवस्था को शांती पुर्वक चलाते हुए  बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर खुशियो का मेला कैसे लगाते थे , जब वर्तमान मनुवादियो के पुर्वज संभवता कपड़ा पहनना और परिवार समाज के बारे में भी नही जानते थे | जिसके बारे में उन्हे संभवता इस कृषी प्रधान देश में बिना परिवार के पुरुष झुंड बनाकर प्रवेश करके पता चला होगा | क्योंकि मनुवादियो के परिवार में मौजुद महिलाओ की भी डीएनए इस देश के मुलनिवासियो से ही मिलती है | जो बात एक विश्व स्तरीय डीएनए से साबित हो चुका है | जिसका मतलब यह हुआ कि मनुवादि के पुर्वज इस देश में प्रवेश करने से पहले किसी स्थिर परिवार समाज में नही जि रहे थे | जिसे वैज्ञानिक प्रमाण मिल चुका यह माना जा सकता है | क्योंकि मनुवादि गोरो की तरह वापस अपने पुर्वजो की भूमि में नही लौटे हैं | बल्कि उस मुल भुमि का पता भी आजतक नही बता पाये हैं जहाँ पर उनके पुर्वज इस देश की नारी नही बल्कि अपने जैसा विदेशी डीएनए की नारी के साथ ही परिवार बसाकर रहते थे | जबकि उस समय इस देश के मुलनिवासी विकसित समाज परिवार और गणतंत्र जिवन जी रहे थे इसका विज्ञान प्रमाणित सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति है | और सबसे बड़ा प्रमाण तो साक्षात मौजुद सागर जैसा स्थिर इतना बड़ा देश है | जिस देश में मौजुद लाखो ग्रामो में एक ग्राम तक का भी निर्माण करना इस देश में प्रवेश करने से पहले नही जानते थे मनुवादि ! यानी देखा जाय तो मनुवादि का बुद्धी शिकारी जानवर सोच से भी जब बाहर नही निकला था उस समय इस देश के मुलनिवासी विकसित कृषि सभ्यता संस्कृति जिवन जी रहे थे | यू ही इस देश को सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु पहचान नही मिली है ! जो कोई मनुवादियो द्वारा छुवा छुत और गुलाम दास बनाके नही मिली है | जो छुवा छुत और जानवरपन यदि इस देश के मुलनिवासी करते तो फिर तो मनुवादि इस देश में प्रवेश कभी कर ही नही पाते | बाद में प्रवेश करने वाले अत्याचारी तो वैसे भी इस देश में तब प्रवेश किए थे जब वे उस शैतान सिकंदर को विश्व विजेता सबसे ताकतवर महान सिकंदर कहकर मानो उसके जैसा ताकतवर बनने की सपने देखते हुए यहाँ आए थे जिसे इस देश की ताकत के बारे में सिर्फ पुरु झांकी देखकर अधमरा हालत में किनारे से ही उल्टे पांव दुम दबाकर भागना पड़ा था | हलांकि यह बात अलग है कि उस समय भी मनुवादि परजिवी शिकारी जानवर की तरह इस देश के मुलनिवासियो का हक अधिकारो को चुसकर हजारो सालो से अपना पेट भर रहे थे | क्योंकि यह देश ही सागर जैसा इतना विशाल और स्थिर है जहाँ पर सबसे शक्तीशाली शासक होते हुए भी भिख में अपनी ताज तक गवा दी जाती है | जिस तरह कि असली औकात में जिसदिन भी आ गए इस देश के मुलनिवासी तो निश्चित तौर पर मनुवादि वापस फिर से वामन बनकर हाथ में कटोरा लेकर जिवन गुजारा के लिए दान दक्षिणा मांगेंगे | जैसे कि वेद पुराण काल में मनुवादियो के पुर्वज वामन के नेतृत्व में सारे देव मिलकर बलि दानव से मांगे थे | जिसके बाद फिर से अपनी मनुस्मृती सोच और छल कपट नीति से बलि को बंधक बनाकर सत्ता में कब्जा कर लिया गया था | पर इसबार उनकी ऐसी छल कपट निती नही चलने वाली है जिसे उन्होने वेद पुराण काल में बार बार प्रयोग किया है | हलांकि मनुवादि आज भी अपनी मनुस्मृति सोच और छल कपट का सहारा लेकर ही अबतक सत्ता में कायम रहकर इस देश के मुलनिवासियो के साथ शोषन अत्याचार करना जारी रखे हुए हैं | क्योंकि दरसल मनुवादि वैसे घर के भेदियो की सहायता से इस देश की सत्ता में अबतक भी कब्जा करके सत्ता ताकत का भरपुर इस्तेमाल करते हुए अपने पुर्वजो की मनुवादि सोच को ही अपडेट करने में लगे हुए हैं , जो की न अपनो के लिए जिते हैं और न ही दुसरो के लिए जिते हैं | वे सिर्फ अपनी झुठी शान के लिए जिते हैं | जिनको जिधर झुठी शान का जिवन गुजारा के लिए सुख सुविधा उपलब्ध होगी उधर गिरगिट की तरह रंग बदल लेंगे | जिस तरह की घर के भेदियो की सहायता से ही तो मनुवादि इस देश में बाहर से आकर खुदको हिन्दु धर्म का ठिकेदार बनाकर वेद पुराणो में भी मिलावट और छेड़छाड़ करने के बाद ढोंग पाखंड का नंगा नाच सुरु किया है | जिसके बाद इस देश के मुलनिवासियो को राक्षस दानव असुर निच शुद्र वगैरा कहकर मानो लंगटा लुचा से खुदको उच्चा घोषित किए हुए है | जो सब होने के बाद भी मनुवादि इस देश के मुलनिवासियो को पुरी तरह से दबा नही पा रहे हैं तो जलन के मारे अबतक भी यह बात नही भुला पा रहे हैं कि मनुवादियो की औकात इस देश के मुलनिवासियो की सत्ता फिर से स्थापित होने के बाद कैसी हो जायेगी | जिसकी चिंता मनुवादियो को दिन रात सताती रहती है कि जब मनुवादियो की शासन में इस देश के मुलनिवासी इतने किमती किमती सुख सुविधाओ का इस्तेमाल करना अबतक नही भुल पा रहे हैं तो इस देश के मुलनिवासियो की सत्ता पुरी तरह से वापिस स्थापित हो जायेगी तो क्या होगा ! कहीं फिर से इस देश के मुलनिवासी कई कई किलो का सोना चाँदी हिरे मोती पहनकर सोने चाँदी के बर्तनो में खाने और सोने की महलो में न रहने लगे | जिसके बाद तो मनुवादियो को इस देश में जिवन गुजारा करने के लिए सचमुच में फिर से वामन बनकर कटोरा लिए अपडेट बलि दानव से दान दक्षिना मांगनी न पड़ जायेगी | जिसके बारे में सोच सोचकर अपनी उधार की अमिरी पर दिन रात इतराने वाले मनुवादियो की सुख चैन धिरे धिरे गायब होते जा रही है | क्योंकि मनुवादियो की उच्च सिंघासन डोल रही है , जैसे की वेद पुराण काल में दानव असुर और राक्षसो की तप बल से इंद्रदेव की सिंघासन डोलती थी | जिस वेद पुराण काल में तो  मनुवादि अपनी जलन को कम करने और अपने बड़े बड़े पापो को छिपाने के लिए इस देश के मुलनिवासियो को मायावी विशाल शरिर व बड़े बड़े दांतोवाला , मानव भक्षन करने वाला राक्षस राक्षसनी असुर दानव वगैरा झुठ कहकर इस सच्चाई से ध्यान भटकाने की कोशिष करते थे कि मनुवादि दरसल वेद पुराण काल में भी इस देश के मुलनिवासियो की हक अधिकारो को छिनकर ही उधार की लंगटा लुचा कुबेर से धन्ना कुबेर और इतने बड़े देश की शक्तिशाली सत्ता पर कब्जा जमाकर ताकतवर जिवन जी रहे थे | पर अब चूँकि इस देश के मुलनिवासियो पर मानव भक्षण करके जिवन यापन करने का आरोप लगाकर मनुवादि रंगेहाथ खुद ही गलत साबित हो जायेंगे इसलिए उन्होने फिर से वही मनुस्मृती वाली फुट डालो और राज करो की भ्रष्ट नीति को ही अपनाकर इस देश के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांटने के बाद राजनीति में भी अलग अलग बांटकर अपनी पुरानी सोच को ही नया अपडेट करने का प्रयाश किया है | जैसे कि हजारो साल पहले हजारो हुनरो को जानने वाले इस देश के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांटकर उच्च निच छुवा छुत भेदभाव करके सत्ता स्थापित किया गया था | जिस दौरान जो उच्च निच परंपरा की सुरुवात करके इस देश के मुलनिवासियों को हजारो जातियो में बांटा गया था , उन हजारो जातियो को मनुवादियो के खिलाफ एकजुट होता देखकर आपस में लड़ाने भिड़ाने का फुट डालो राज करो नीति राजनीति में भी सुरु कर दि गयी है | जो राजनीति गोरो की गुलामी के समय सिर्फ गोरो के लिए सबसे अधिक प्रभावी थी | पर गोरो का शासन समाप्त होकर मनुवादि सत्ता कायम होने के बाद चूँकि मनुवादियो का शोषन अत्याचार फिर से मजबुती से कायम हो गयी है , इसलिए मनुवादियो के लिए सबसे अधिक प्रभावी साबित हो रही है | जिस प्रभाव को हमेशा कायम रखने के लिए उन्होने सबसे खास नीति के तौर पर घर का भेदि पैदा करके एक ही डीएनए के मुलनिवासियो को जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , उन्हे आपस में लड़ाने भिड़ाने में ज्यादे ध्यान दिया जा रहा है | जो मनुवादि सत्ता बने रहने के लिए मनुवादियो के लिए सबसे आसान रास्ता भी है | क्योंकि घर का भेदि मनुवादियो की झुठी शान को असली शान समझकर मनुवादियो की तरह की जिवन जिने की झुठी लालच में पड़कर जरा सी बोटी फैंकने पर आसानी से मनुवादियो की चमचई करने लगते हैं | पर अब चूँकि मनुवादियो की झुठी उच्च और पुज्यनीय शान में कमी आ रही है | इसलिए घर का भेदि भी मनुवादियो के खिलाफ पुरी अजादी पाने के लिए छिड़ी कड़ी संघर्ष में शामिल होने के लिए मानो बोटी वापस कर रहे हैं | खासकर आरक्षित सिटो से चुनकर आने वाले वैसे घर के भेदि जिन्हे मनुवादि  आरक्षित सिटो को भी किसी न किसी तरिके से सरकार बनाने में इस्तेमाल करने के लिए ही आरक्षित सीट से अपने लिए मजबूरी वश बलि का बकरा के रुप में खड़ा किए थे | क्योंकि मनुवादि अक्सर वैसे घर के भेदियो को अपने लिए खड़ा करते हैं , जिन्हे मनुवादियो की तरह झुठी शान की जिवन जिने की इच्छा होती है | जिसके चलते वे मनुवादियो की चमचई करके आरक्षित सीट का टिकट हासिल करने के लिए यह भुल जाते हैं कि मनुवादियो की दबदबा वाली पार्टी से उनके चुने जाने के बाद चाहे वे जितने बड़े पदो में बैठेंगे लेकिन आदेश तो मनुवादियो का ही पालन करेंगे | जैसे की तमाशा दिखलाते समय बंदर भालू अपने आका मदाड़ी के इसारे पर नाचते हैं | हलांकि मनुवादियो के इसारे का पालन कर करके उब रहे घर के भेदि यदि वाकई में बोटी वापस करके मनुवादियो के खिलाफ संघर्ष करने की मन में ठान लें तो निश्चित तौर पर इस देश के सभी मुलनिवासी मिल जुलकर एकता बनाकर मनुवादियो की सत्ता को एक झटके में किसी खरपतवार की तरह उखाड़कर फैंक सकते हैं | क्योंकि हमे यह बात खास तौर पर प्रत्येक चुनाव के समय याद रखनी चाहिए कि मनुस्मृति को जलाकर जो अजाद भारत का संविधान रचना किया गया है , उसमे सांसद सीट में भी आरक्षण लागू है | जिन सिटो में मनुवादि तो चुनाव नही लड़ सकते पर किसी मुलनिवासी को ही अपना बलि का बकरा बनाकर खड़ा जरुर करते हैं | जिसके चलते मनुवादि सरकार यदि बार बार चुनाव घोटाला करके भी चुनकर आ रही होगी तो भी आरक्षित सीटो से संसद में मुलनिवासी ही भारी तादार में चुनाकर मनुवादियो की सरकार बनाते जा रहे हैं | जो अगर एकजुट हो जाय तो मनुवादि सरकार एक झटके में समाप्त हो सकती है | बल्कि मनुवादियो द्वारा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में हक अधिकारो की अँगुठा काटने के बावजुद भी आरक्षित सरकारी नौकरियो और संसद सीटो में मनुवादि सरकार इस देश के मुलनिवासियो को चुने जाने से नही रोक सकती | और न ही मनुवादि अपनी ढोंग पाखंड छुवा छुत की मिलावट वेद पुराणो में करके इस कृषी प्रधान देश में बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहारो को कभी समाप्त कर सकते हैं | बल्कि मनुवादियो की नई पिड़ी भी अब घुमकड़ कबिलई सोच को त्यागकर इस देश के मुलनिवासियो की ही सागर जैसा स्थिर कृषि प्रधान जिवनशैली को कई मामलो में अपना आदर्श बनाने की कोशिष में लगा हुआ है | जिसके चलते नई पिड़ी में उच्च निच का भेदभाव छोड़कर प्रेम विवाह का भी प्रचलन बड़ गया है | साथ साथ अमिरी गरिबी की खाई बड़ने के बावजुद भी इस देश में अब मुलनिवासियो द्वारा भी करोड़पति अरबपति बनने का रफ्तार तेज होता जा रहा है | वह भी मनुवादि सत्ता में ! जिसके कारन मनुवादियो की जलन प्रक्रिया में और भी अधिक बड़ौतरी होना स्वभाविक है | खासकर तब भी जबकि मनुवादियो की दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम है | जहाँ पर इस देश के मुलनिवासियो की भागीदारी न के बराबर है | जिसके बावजुद भी चूँकि मनुस्मृति के जगह अजाद भारत का संविधान लागू है , जिसमे आरक्षन लागू है , इसलिए चुनाव घोटाला करके भी मनुवादि आरक्षित सीट और आरक्षित सरकारी पदो में भी कब्जा करके खुदको स्थापित नही कर सकते | जिसके चलते मनुवादि शासन द्वारा न चाहते हुए भी इस देश के मुलनिवासियो को आरक्षण की वजह से संसद और सरकारी नौकरियो में भागीदारी देनी ही होती है | क्योंकि आरक्षित सीट पर मनुवादि किसी भी हालत में कब्जा नही कर सकते | बल्कि सरकारी नौकरियो में मिली आरक्षण की तरह आरक्षण कोटा बड़ाकर पिछड़ी जातियो को भी सांसद विधायक सिटो में आरक्षण मिलनी चाहिए | क्योंकि पिछड़ी जातियो का भी तो डीएनए मुलनिवासी डीएनए है | न कि पिछड़ी जाति मनुवादियो की तरह विदेशी डीएनए के लोग हैं | बल्कि मनुवादियो के परिवार में मौजुद नारियो का डीएनए भी इस देश के मुलनिवासियो से ही मिलता है | जो बात भी अमेरिका में हुए एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से साबित हो चुका है | इसलिए उन्हे भी आरक्षण देने में संकोच नही करनी चाहिए | इतना ही नही अपने पुर्वजो का धर्म परिवर्तन करने वाले इस देश के मुलनिवासी भी चूँकि मनुवादियो वगैरा विदेशियो से पिड़ित लोग ही हैं , जो न तो विदेशी मुल के यहूदि हैं , न विदेशी मुल के मुस्लिम हैं , और न ही विदेशी मुल के ईसाई हैं , इसलिए जाहिर हैं यदि वे अपने पुर्वजो के हक अधिकारो को अनदेखा नही करना चाहते हैं , तो निश्चित तौर पर उन्हे भी आरक्षण का लाभ मिलनी चाहिए | बाकि बौद्ध जैन सिख धर्म तो इसी देश में ही जन्मे हैं | जैसे कि यहूदि मुस्लिम ईसाई धर्म विदेशो में एक ही स्थान में जन्मे हैं | जिस स्थान को तिनो धर्म अपना पवित्र स्थान मानते हैं | हलांकि ये बात अलग है कि इन तिनो धर्मो में हजारो सालो से जितनी खुन खराबा हुई है , उतनी आजतक किसी भी धर्म में नही हुई है | जिसकी झांकी आज भी अरब में लगी आपसी दुश्मनी की जलती आग के बारे में देख सुन और पढ़कर जाना जा सकता है | बल्कि हिन्दु धर्म में भी सबसे अधिक खुन खराबा का आरोप जिन देवो पर लगता है , उन देवो के वंशज कहे जाने वाले मनुवादियो का भी डीएनए विदेशी यहूदियो से ही मिलता है | जाहिर है मनुवादि यदि इस देश में प्रवेश नही करते तो वे न तो हिन्दु कहलाते और न ही हिन्दु धर्म के छुवा छुत करने वाले पुजारी बनते | लेकिन चूँकि दुनियाँ का कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना सकता है , इसलिए जाहिर है मनुवादियो की तरह कोई विदेशी डीएनए मुल का अन्य व्यक्ती भी हिन्दु धर्म में हो सकता है | बल्कि हिन्दु धर्म के अलावे बौद्ध जैन धर्म में भी विदेशी डीएनए के लोग हो सकते हैं | जिस बात से इंकार नही किया जा सकता | इसलिए आरक्षण का कोटा बड़ाकर मुलनिवासि डीएनए के लोगो को ही आरक्षण मिले इसपर भी ध्यान दिया जाय | जिसके लिए मेरी तो नीजि राय है कि धर्म और जात के नाम से आरक्षण मिलने के बजाय मुलनिवासी डीएनए जाँच से आरक्षण मिलनी चाहिए | जिससे कि दुध का दुध और पानी का पानी करके आनुवांसिक तरिके अथवा हजारो सालो की पीड़ा में जड़ से सुधार लाया जा सके | क्योंकि जरुरी नही कि मनुवादियो के बिच सभी विदेशी डीएनए के लोग ही मौजुद होंगे ! जिनके बिच ऐसे नकली मनुवादि भी हो सकते हैं , जिन्हे पता न हो कि उनके रगो में भी शोषित पिड़ित का डीएनए दौड़ रहा है | जिनको भी डीएनए जाँच करके आरक्षण का लाभ मिलनी चाहिए | जो इस देश के सभी मुलनिवासियो के मुल हक अधिकारो को पुरी तरह से प्राप्त करने के लिए बहुत जरुरी भी है | क्योंकि मनुवादियो के बिच भी जो लोग गरिबी भुखमरी जिवन जि रहे हैं , और जिन्हे शोषन अत्याचार करना कतई भी अच्छा नही लगता है , वे मुलनिवासी डीएनए के ही हो सकते हैं | जिन्हे भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए | क्योंकि वर्तमान में मनुवादि सत्ता कायम रहकर भी आरक्षण की वजह से इस देश के वैसे मुलनिवासी जो आरक्षण का भरपुर लाभ ले रहे हैं , वे कम से कम आरक्षित पदो और सीटो के जरिये  एक तरह से पिड़ी दर पिड़ी अपनी आर्थिक शैक्षनिक और अन्य महत्वपुर्ण स्थिती में तेजी से सुधार करते जा रहे हैं | जिनके लिए भी सांसद बनने पर प्रत्येक माह लाखो का पेंशन भी आरक्षित हो गई है | जिसपर मनुवादि कब्जा कभी नही कर सकते | जिससे स्वभाविक तौर पर मनुवादियो द्वारा चुनाव घोटाला करने की हालात में भी आरक्षण की वजह से इस देश के मुलनिवासी सत्ता और शासन व्यवस्था तक पहुँचकर महंगी महंगी सरकारी सुख सुविधा प्राप्त करना जारी रखते हुए आर्थिक शैक्षनिक और अन्य महत्वपुर्ण क्षेत्रो में तेजी से मजबुत होते जा रहे हैं | जिससे जलकर भी तो मनुवादि सरकार द्वारा आरक्षण का प्रभाव कम करने के लिए निजीकरन को बड़ावा दिया जा रहा है | हलांकि मनुवादियो द्वारा भले क्यों न लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मिली भरपुर ताकतो का गलत उपयोग करके नीजिकरन को बड़ावा दिया जा रहा हो , और साथ साथ निजी कंपनियो द्वारा सांठगांठ करके चुनाव घोटाला जैसा पाप भी किया जा रहा हो , पर फिर भी वह आरक्षण को कभी भी पुरी तरह से समाप्त नही कर सकते | जैसे कि लाख कोशिष करके भी मनुवादि पार्टी कभी भी अकेले सरकार नही बना सकती | क्योंकि आरक्षित सिट ही इतनी है कि वहाँ से यदि मनुवादि अपना उम्मीदवार खड़ा नही किए तो निश्चित तौर पर मनुवादियो की सरकार कभी बन ही नही सकती | और आरक्षित सीट का मदत लेकर आरक्षित सीट से चुने गए सांसदो को बिना कोई एक भी उच्च पद दिए मनुवादि सरकार चल नही सकती | जिन्हे भी हर महिने लाखो की पेंशन देनी होगी चाहे जितने समय तक मनुवादि शासन चलता रहे | यानी किसी भी हालत में अब मनुवादि मनुस्मृती में मौजुद अपनी पसंद के नियम कानून की सरकार पुरी तरह से कायम नही कर सकते | जिसके चलते मनुवादि सरकार में भी इस देश के मुलनिवासी उच्च पदो में बैठकर वे भी मंत्री राष्ट्रपति प्रधानमंत्री  बनते रहेंगे | इसलिए जाहिर है वर्तमान में तो मनुवादियो की मनुवादि सोच की झुठी शान जलकर राख जरुर हो रही होगी | क्योंकि वर्तमान में मनुवादि बार बार लोकसभा चुनाव जितकर इस देश में कई दसक से शासन तो कर रहे हैं , पर फिर भी अपनी मनुस्मृती को लागू करना तो दुर खुलकर यह कह भी नही सकते की उनके मन में संविधान के रुप में मनुस्मृती को लागू करने का विचार है | जिस भ्रष्ट मन में ही दिन रात ये सवाल जरुर आती होगी कि इतनी छिना झपटी के बाद भी इस देश के मुलनिवासियो के पास उच्च पद और इतना सारा धन अबतक कैसे मौजुद है ? बल्कि उसमे बड़ौतरी भी कैसे होते जा रही है , जिस बात से मनुवादि बहुत चिंतित हैं | क्योंकि मनुवादियो की मनुस्मृती सोच अनुसार इस देश के मुलनिवासियो को शासक और अमिर होना ही नही चाहिए था | जबकि बार बार जलने के बजाय मनुवादियो को अबतक स्वीकार कर लेनी चाहिए था कि इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले समृद्ध कृषी प्रधान देश के मुलनिवासियो के पुर्वज जब हजारो साल पहले भी कई कई किलो के सोने चाँदी हिरे मोती वगैरा के जेवर पहनते थे तो उनकी आज की नई पिड़ी अवसर मिलने पर क्या हजारो लाखो रुपये की चुते चप्पल कपड़े वगैरा नही पहन सकते ! जिनके पुर्वजो के रहन सहन में हजारो साल पहले भी सोने चाँदी के आभुषन और बर्तन शामिल थी | जाहिर है वर्तमान में भी मौका मिलने पर इस देश के मुलनिवासियो को अमिर वेश भुषा की मनोकामना होना स्वभाविक है | और मौका मिलने पर उस मनोकामना को पुरा करना भी स्वभाविक है | जिसपर मनुवादियो को जलने के बजाय खुश होना चाहिए कि उनकी शासन में अभी भी कम से कम चंद मुलनिवासी तो अमिरी जिवन जी रहे हैं | नही तो फिर उनके पुर्वज तो शैतानीपन का भी हद पार करके इस देश के मुलनिवासियो को सिर्फ दास दासी बनाकर गले में थुक हांडी और कमर में झाड़ु टांगकर अपनी झुठी शान में आरती उतरवाते रहना चाहते थे | जिस तरह की शासन उनकी नई पिड़ी भी यदि लाने का प्रयाश कर रही हैं तो ऐसा अब चाहकर भी कभी भी मुमकिन नही हो सकता है | क्योंकि इस देश के मुलनिवासी अब संसद में भी अच्छी खासी संख्या में भागिदार हैं | जिसके बगैर मनुवादियो की सरकार  नही चल सकती | हलांकि यह बात अलग है कि मनुवादियो की सरकार में शामिल मुलनिवासियो में ज्यादेतर घर के भेदि हैं | जो मनुवादियो का साथ देकर अपने ही लोगो का शोषन अत्याचार कराने में लगे हुए हैं | जिनके द्वारा सरकार में शामिल होने के बावजुद भी इस सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाने वाला देश में आधी अबादी गरिब बीपीएल और आधी अबादी अशिक्षित जिवन जिने को मजबुर है | हलांकि क्या पता उन घर के भेदियो में भी कई मनुवादियो का ही डीएनए निकलें , जिनको उनका अपना डीएनए आर्कषित करता हो और मनुवादियो का साथ जेनेटिक आर्कषण की वजह से हो रहा हो | जैसे कि मनुवादियो के भी बिच में कुछ मुलनिवासी डीएनए जो होंगे उन्हे भी इस देश के मुलनिवासियो की पीड़ा संघर्ष करने के लिए मुलनिवासी डीएनए आर्कषित करता हो ! जिन सबकी प्रयोगिक पहचान भविष्य में आसानी से तब तय हो पायेगी जब डीएनए प्रयोग सुगर प्रयोग की तरह सस्ता और आसान हो जायेगा | 

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