मीलावटी सेवा देने और किमती टाईम पास करनेवाली सरकार

अजादी के सत्तर सालो तक  मंत्री पद की शपथ लेने के बाद आजतक किसी भी मंत्री की मौत अपने सेवा कार्यकाल के दौरान खुदको सरकारी नौकर और जनता को मालिक बतलाकर गरिबी भुखमरी से नही हुई है|चुनाव के समय वोट लेते समय सुख दुःख में साथ देने की बड़ी बड़ी बाते करने वाली सरकार मालिक प्रजा और देश की गरिबी भुखमरी दुर करने की इतनी बड़ी बड़ी बाते करने और इतनी बड़ी बड़ी जिम्मेवारी लेकर भी एक भी मंत्री और उच्च अधिकारी की मौत गरिबी भुखमरी से होना तो दुर हर रोज गरिबी भुखमरी से मर रहे गरिबो की सेवा करने में भी मिलावटी सेवा परोसी जा रही है|जबकि यदि जनता मालिक है,और सरकार के मंत्री नौकर हैं तो निश्चित तौर पर यदि मालिक की मौत गरिबी भुखमरी से हो रही है,तो मंत्री और उच्च अधिकारी जनता सेवक बंगला और तमाम तरह की सुख सुविधा पाकर सेवा करने की शपथ लेकर और सेवा की मोटी रकम वसूलकर भी अपने मालिको की सेवा ठीक से नही कर पा रहे हैं|क्योंकि ऐ कैसी बेहत्तर सेवा जिसमे सिर्फ मालिक की गरिबी भुखमरी से मौत हो रही हो और नौकर मालिक की सेवा के बदले गाड़ी बंगला की सारी सुख सुविधा ली जा रही है?मीठा मीठा गप गप और कड़वा कड़वा थू थू!क्योंकि गरिबी भुखमरी का कभी यहसास ही न हो इसके लिए सेवा के बदले खुदकी बेहत्तर सेवा कराने के साथ साथ जेड सुरक्षा लेकर लाल बत्ती काफिला में चलने वाली ऐसी खास सेवा ली जा रही है,जिसे पाकर उनकी कभी गरिबी भुखमरी से मौत होगी ही नही!जिस तरह की गाड़ी बंगला सेवा जनता मालिक को भी मिले ये भले न सही पर गरिबी भुखमरी मुक्त सेवा तो कम से कम ठीक से की जाती,जिसमे कोई मिलावटी सेवा न होती|ताकि जो जनता मालिक की सरकारी राशन और सब्सिडी में भी मिलावटी सेवा करके गरिबी भुखमरी से असमय मौत हो रही है,वह नही होती|ऐ कैसी बेहत्तर सेवा जिसमे मालिक की गरिबी भुखमरी से मौत हो जाय और नौकर अच्छा खासा खा पीकर सिर्फ जनता मालिक को गरिबी भुखमरी दुर करने की भाषन और अश्वासन ही परोसता रहे?जबकि गरिबी और भुखमरी से होनेवाली मौत के बारे में सरकार को भी पता है, और प्रजा को भी पता है|और साथ साथ गरिबी भुखमरी का शिकार न होनेवाले उन धन्ना कुबेरो को भी पता है,जिन्हे भी इस देश से गरिबी भुखमरी के गुजरने का इंतजार सायद बाहर से तो है पर भितर से सायद इसलिए नही है,क्योंकि वर्तमान में जिस तरह की मिलावटी सेवा और किमती टाईम पास की सरकार चल रही है,उसमे सभी गरिब के अमिर हो जाने के बाद गरिब को भी हजारो करोड़ की सरकारी छुट और सब्सिडी मिलने लगेगी,जो अभी फिलहाल गरिब बीपीएल को हजार बजार की सरकारी सब्सिडी मिलती है|जिस तरह की सब्सिडी के साथ साथ यदि सभी सरकारी राशन लेने वालो को बल्कि सभी नागरिको को भी एक एक धन्ना कुबरो को जो हर साल हजारो करोड़ की छुट और माफी मिलती है,उतनी न सही क्योंकि सबको हजारो करोड़ देना मुमकिन भी नही है,लेकिन यदि सबको कम से कम पंद्रह बीस लाख भी न सही सिर्फ एक एक लाख भी यदि उनके खाते में मिल जाती तो सायद इस देश से पाँच साल में ही गरिबी भुखमरी दुर हो जाती सरकार का सेवा कार्यकाल पुरा होते ही|जो कि कथित गरिबो की सरकार सभी नागरिक को नही दे सकती क्योंकि सभी नागरिक धन्ना कुबेरो की तरह अमिर नही हैं|हलांकि इस सोने की चिड़ियाँ कहे जाने वाले कृषि प्रधान देश में वर्तमान के धन्ना कुबेर भी अमिर देश का नागरिक नही बल्कि फिलहाल तो गरिब देश का नागरिक ही कहलाते हैं|बावजूद इसके कि वे हर साल हजारो करोड़ की सरकारी छुट और माफी सरकार से बिन मांगे कर्ज लेकर उसे न चुकाने के बाद सरकार द्वारा भगोड़ा घोषित होकर भी विशेष छुट पाते हैं|हजारो करोड़ की विशेष सरकारी छुट और माफी लेने वाले ऐसे करोड़पति और अरबपती खरबपती गरिब भी मौजुद होते हैं,जिन्हे अपनी गुप्त गरिबी को दुर करने के लिए हजारो करोड़ की सरकारी छुट और माफी पाने के लिए किसी सरकारी राशन दुकानो पर लाईन लगानी नही पड़ती है,बल्कि बिना मांगे ही मिल जाती है|क्योंकि उनको मिलने वाली छुट और माफी राशि  बहुत बड़ी होती है,जिसे वे अपने साथ अकेले नही ले जा पायेंगे|सिर्फ छोटी मोटी राशि को ही लाईन लगाकर सरकारी सब्सिडी के रुप में दी जा सकती है|जैसे की बीपीएल कार्ड से जो सरकारी सब्सिडी राशन उठाने के लिए लाईन लगवाई जाती है,वैसी लाईन लगाने की आवश्यकता इसलिए भी पड़ती है,क्योंकि उनकी सब्सिडी हजार बजार की होती है|जिस तरह की हजार बजार रकम के मुकाबले धन्ना कुबेरो को हजारो करोड़ मोल की छुट और माफी दी जाती है,जिसे लेने के लिए लाईन लगाने की भी आवश्यकता नही पड़ती है,और न ही धन्ना कुबेरो को नोटबंदी जैसे लाईनो में भी लाईन लगाकर नोट जमा करने की आवश्यकता पड़ती है,बल्कि उनके लिए उनतक डायरेक्ट डीजिटल और आधुनिक लाईन लगाकर सरकार खुद पहुँच जाती है भर भरकर या फिर खास इंतजाम करवाकर पहुँचवा देती है!जैसे की नोटबंदी कतार में सौ से अधिक लोगो की जान चली गई पर धन्ना कुबेरो के लिए बड़ी नोट गाड़ी में भर भरकर लाने ले जाने की विशेष इंतजाम कराई गई थी|क्योंकि धन्ना कुबेरो को सरकार लाईन में खड़े होकर धक्का मुकी खाते हुए मरते देखना नही चाहती है|भले बाकि लोग नोटबंदी लाईन लगाकर मर जाय|अमिरो के लिए तो उनके घर तक भी सारी अमिरी सुविधा पहुँचाती है|बल्कि कई धन्ना कुबेर तो जन्म से ही अपने धन्ना परिवार का वसियत से धन्ना कुबेर होकर कभी भी गरिबी भुखमरी को नही झेले होते हैं|जिनके लिए गरिबी को समझना मानो चुनौती बन जाता है|खासकर तब जब उन्हे गरिब होने का यहसास उनके पसंद के अमिर देशो के धन्ना कुबेरो के द्वारा कराई जाती है ये बतलाकर कि वे जिस देश में रहते हैं वह एक गरिब देश है,जिसके मुकाबले उसका देश ज्यादे अमिर हैं|जिसे सुन देख और पढ़कर ही वे इस देश की गरिबी भुखमरी को मांसिक रुप से समझ पाते हैं|फिर भी उन्हे कैसे हर साल हजारो करोड़ की छुट और माफी किस गुप्त गरिबी को दुर करने के लिए दी जाती है,ये तो अमिरो को खास छुट और माफी देनेवाली मिलावटी सेवा और किमती टाईम पास सरकार ही जाने!क्योंकि कोई गुप्त गरिबी को दुर करने के लिए इस तरह की अमिरी सत्कार कराने की आखिर क्या ऐसी जरुरी आवश्यकता पड़ती जिससे की उनको हर साल हजारो करोड़ की छुट और माफी देनी पड़ जाती है?बाकियो को गरिबी भुखमरी से मरते हुए देखकर बस भाषन अश्वासन और सरकारी राशन देते जाओ और मुठिभर के लिए एक एक कोहजारो करोड़ की छुट और माफी देते जाओ!जबकि गरिबी भुखमरी से हर साल जो मौते होती है उसे दुर करने के लिए यदि धन्ना कुबेरो को बड़ी छुट और माफी को न देकर उसे यदि गरिबी भुखमरी को दुर करने के लिए गरिब बीपीएल के खाते में सिधे पहुँचा दिया जाय तो सायद उस राशि से गरिबी भुखमरी दुर करके भुख और कुपोषन को रोकी जा सकती थी|जिसे सत्य मानकर यदि निश्चित तौर पर जन्म से ही जो लोग धन्ना कुबेर की जिवन व्यक्तीत कर रहे हैं,उनके मन में गैस सब्सिडी वापस करने के जैसा यदि हर साल मिलने वाली देश का बजट का एक तिहाई राशि कि सरकारी छुट और माफी को वापस कर दे,और जिसे जिसको ज्यादे इसकी आवश्यकता है उसके खाते में सिधे डाल दिया जाय तो भी इस देश से गरिबी भुखमरी बहुत जल्द ही दुर की जासकती है|जो करनी सरकार कभी करेगी ही नही,क्योंकि धन्ना कुबेरो को हजारो करोड़ की छुट और माफी तो दे देगी पर बाकियो को गरिबी भुखमरी से छुटकारा पाने की राशि भी प्रदान नही करेगी!बल्कि हजार लाख की कर्ज में डुबकर मरने वालो पर भी कोई खास ध्यान नही देगी|जो यदि देती तो हर रोज अनगिनत नागरिको की गरिबी भुखमरी से मौते क्यों होती?जिसके बारे में उन धन्ना कुबेरो को भी पता है जो हर साल हजारो करोड़ की सरकारी छुट और माफी लेते हैं|जिस तरह की जानकारी होते हुए भी कई धन्ना कुबेर तो विदेश में भी जाकर वहाँ से भी मानो ऑनलाईन हजारो करोड़ की सरकारी छुट और माफी लेकर और विदेशी घी पीकर खुदको खुशकिस्मत समझते हैं|जिनको यदि इस देश और प्रजा की गरिबी भुखमरी दुर न हो पाने की पीड़ा यदि सचमुच में होती तो हर साल जो हजारो करोड़ की सरकारी छुट और माफी लेने की इतनी जरुरत महसुस होती है कि आजतक विदेशी कर्ज लेकर भी धन्ना कुबेरो को छुट और माफी दी जाती है,वह छुट और माफी किसी गैस सब्सिडी छोड़ने की तरह छोड़ दी जाती |क्योंकि सरकार जितना विदेशी कर्ज  ब्याज देती है उतनी राशि वह धन्ना कुबेरो को हर साल छुट और माफी देने में खर्च कर रही है|जिसे धन्ना कुबेर ठुकरा सकते थे ताकि हर साल जितना विदेशी कर्ज का ब्याज चुकाकर या लेकर ये कथित गरिबो की सरकार चल रही है,उतना ही लगभग का पाँच दस लाख करोड़ की राशि धन्ना कुबेरो को जो हर साल सरकारी छुट और माफी के रुप में मिलती है,उसकी बचत से देश की गरिबी और कर्ज दुर हो जाय|क्योंकि आखिर ऐसी कौन सी इतनी बड़ी गरिबी भुखमरी धन्ना कुबेरो को है जिसे दुर करने के लिए हर साल विदेशी कर्ज में डुबी सरकार को एक एक धन्ना कुबेरो को हर साल एक छोटे मोटे राज्य का सालभर का बजट बन जाय इतनी मोल की सरकारी छुट और माफी देती आ रही है|क्योंकि इतिहास दर्ज हो चुकि है कि अबतक की चुनी गई सरकारो के द्वारा देश का बजट बनाते समय लगभग एक तिहाई राशि तो धन्ना कुबेरो को छुट व माफी देने में ही चली जाती है|इतनी बड़ी राशी की अगर सचमुच में कुंभकर्ण भोजन कराने की बात की जाय तो ये तो कुंभकर्ण से भी बड़ी इंतजाम हर साल अपने लिए करा रहे हैं|इतना बड़ा इंतजाम कि उससे पुरे देश की एक तिहाई से भी अधिक की बजट राशि इन मुठीभर धन्ना कुबेरो को हर साल सरकारी छुट और माफी के रुप में दी जा रही है|जिससे भी इनका पेट आजतक नही भरा है और न ही कभी भरेगा,क्योंकि उनकी भुख दौलत से कभी नही शांत होगी, बल्कि सिर्फ एक एक गरिब बीपीएल को हजारो करोड़ नही सिर्फ हर महिने एक दो हजार भी यदि उनके खाते में मिल जाय तो उनकी भुखमरी कुपोषन जरुर दुर हो जायेगी,इसकी मैं गारंटी लेता हुँ|पर साथ साथ इसकी भी गारंटी देता हुँ कि धन्ना कुबेरो की तृप्ती के लिए उन्हे जो सरकारी छुट और माफी मिलती है,उससे उनको कभी भी तृप्ती नही मिलने वाली है|हाँ अगर उतनी राशि खर्च करके उनके लिए उसी राशि का भोजन खरिदकर उनको हर साल की बजट बनाते समय यदि खिलाया जाय तो सायद उनको कुंभकर्ण की तरह ऐसी तृप्ती मिलेगी कि कभी  दुबारा हजारो करोड़ मोल की सरकारी छुट और माफी की जरुरत महसूस ही नही होगी|जिसे खिलाने के लिए बजट से पहले जो हर साल इन्हे विदेशी कर्ज लेकर भी एक एक धन्ना कुबेरो को हजारो करोड़ की छुट और माफी देनी पड़ती है,उसे न देकर उस राशि का भोजन उन्हे खिलाया जाय|जो मेरे ख्याल से पुरे देश के गरिब बीपीएल को जो सरकारी राशन से भोजन बनता है,उस मोल से कहीं ज्यादे मोल का भोजन होगी धन्ना कुबेरो को यदि छुट और माफी मोल की राशि का उन्हे हर साल भोजन परोसा जाय|तब सायद उन्हे पता भी चल जायेगा कि वे ज्यादे बड़ा सरकारी मुँह मार रहे हैं कि गरिब बीपीएल मार रहा है,जो गरिबी भुखमरी से मर रहा है|क्योंकि जमिनी हकिकत तो यही है कि इस देश में मुठीभर को देश का बजट का एक तिहाई राशि माफी और छुट में हर साल खर्च की जा रही है|और बाकियो को गरिबी हटाओ के नाम पर एक एक गरिब को सिर्फ हजार बजार की सरकारी सब्सिडी राशि व पीपीएल राशन कार्ड से सरकारी सब्सिडि दी जा रही है|बल्कि सरकारी राशन जैसी सब्सिडी में  भी मुँह मारने वाले उपर से लेकर निचे तक एक दुसरे से पार्टनरशिप बनाकर दुसरो का हक अधिकार को खाने वाले भ्रष्टाचारी सोच वाले सेवा के पदो में भी बैठकर भ्रष्ट सेवक बनकर लुट और चोरी घुसखोरी करके सेवा कम और अपनी खास सेवा कराते रहते हैं|क्योंकि जनता मालिक को सब्सिडी सेवा पहुँचने से पहले ही बिच में ही ज्यादेतर खा ली जाती है जनता के हक अधिकार को इसके बारे में खुद एक प्रधान सेवक ने स्वीकारा था की जनता को जो सेवा भेजी जाती है वह उनतक पहुँचते पहुँचते सौ से घटकर मात्र 15% रह जाती है|यानी साफ है कि सरकारी सेवा में 85%को सरकार द्वारा नेतृत्व करते हुए उसकी खुदकी मुफ्तखोरी सेवा में निचे से उपर तक चली जाती है|क्योंकि सेवक और प्रजा के बिच यदि हक अधिकारो की चोरी और लुट हो रही है तो मेरा ये मानना है कि जो सरकार चोरी को रोक नही सकती उसे ठीक से सेवा करना और जनता के हक अधिकारो की रक्षा करना नही आती है|

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