एकजुट होकर अपकीबार 85% मुलनिवासी सरकार मन में ठान लें चाहे जिस भी धर्म में मौजुद हो शोषित पिड़ित संघर्ष कर रहे मुलनिवासी

इस देश के मुलवासियो द्वारा चाहे वे जिस भी धर्म में मौजुद हो उनके द्वारा भाजपा कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़कर या फिर भाजपा कांग्रेस को वोट डालकर कभी भी इस देश में मनुवादियो की दबदबा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो से समाप्त नही हो सकती|जो बात सिर्फ मैं ही नही बल्कि भाजपा और कांग्रेस की सरन में जाने वाले मुलनिवासी नेता और मंत्री खुद तब कहते हैं जब भारी भेदभाव के चलते उनकी कुर्सी चली जाती है या फिर टिकट न मिलने का डर उन्हे सताता रहता है|जिससे पहले तक वे मनुवादियो के खिलाफ न खुलकर बोलते सुनते हैं,और न ही देखते हैं|जिस तरह के लोगो को मुलता अपने उपर बिल्कुल भी यकिन नही है कि वे कभी कांग्रेस भाजपा को हरा भी सकते हैं|वह भी ये जानते हुए कि यदि इस देश के मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में भी मौजुद हो, जिनकी अबादी 85% है वे यदि एकबार भी यदि एकजुट होकर भाजपा कांग्रेस पार्टी छोड़कर किसी ऐसी पार्टी को वोट कर दे जिसका जन्म किसी मुलवासि के द्वारा हुआ है,और नेतृत्व भी मुलनिवासी के द्वारा ही हो रहा है,तो ये बात सौ प्रतिशत तय है कि अपने एग्जिट पोल में भाजपा कांग्रेस को पहला और दुसरा बतलाने वाले मनुवादी मीडिया को ये बात भी समझ में आ जायेगी कि इन दोनो पार्टियो की वजह से ही लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का नेतृत्व करने का खास मौका मिलने के बावजुद भी वह अपना सही काम ठीक से नही कर पा रही है|और क्रांतीकारी युग में भी लोकतंत्र का आईना में ढोंग पाखंड जादुगरी खबर को ज्यादे दिखलाने में लगी हुई है|बजाय इसके कि वह इसका जवाब तलाशने की कोशिष में दिन रात लगी रहती कि खुदको जन्म से सबसे अधिक टैलेंटेड बतलाने वाले मनुवादियो की दबदबा में यह सोने की चिड़िसाँ कहलाने वाला कृषी प्रधान देश होने के बावजुद भी आखिर उतनी अबादी आज भी बीपीएल भारत क्यों है जितनी की अजादी के समय पुरे देश की अबादी थी?जितनी अबादी आज गरिबी रेखा से भी निचे का जिवन जिने को मजबुर है|और भाजपा कांग्रेस बार बार चुनाव में भाषन देते समय देश का बहुत विकाश कर दिया है कहकर आधुनिक भारत गरिबी हटाओ शाईनिंग इंडिया डीजिटल इंडिया करके मानो मनुवादी मीडिया से मिलकर इस देश में हो रहे शोषन अन्याय अत्याचार बदहाली को छिपाने में लगी हुई है|कुछ विकाश तो गोरे भी कर रहे थे देश का जब वे देश गुलाम किये हुए थे|इसका मतलब ये नही कि भारी भेदभाव करते हुए वे बेहत्तर सेवा कर रहे थे|बेहत्तर सेवा क्या होती है ये बात छुवा छुत करने वाले मनुवादियो को इस देश के मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो उनकी दबदबा जब लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में हो जायेगी तब समझ में पुरी दुनियाँ को भी अच्छी तरह से आ जायेगी कि आखिर ये देश सोने की चिड़ियाँ होते हुए भी अबतक गरिब क्यों है?

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