प्रचार

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

मनुवादी छुवाछुत ढोंग पाखंड तंत्र मंत्र

Khoj123
आज भी इस देश में करिब साड़े सात हजार ऐसी भाषा बोली जाती है,जिसकी कोई लिपी नही है|इसलिये उसे सिर्फ वेद(आवाज) बोली अथवा मुँह से बातचीत के जरिये ही व्यवहार में लाई जाती है|जैसे कि जब लिखाई पढ़ाई की खोज अथवा आविष्कार नही हुए थे, तो वेद (आवाज) पुराण (दिखलाई देने वाला चित्र वगैरा) ही ज्ञान बांटने का माध्यम था|जिसका भंडारन सुन देखकर पिड़ी दर पिड़ि सिर्फ याद करके इंसान की दिमाक में की जाती थी|जिस ज्ञान भंडारन से ही गुरु अथवा शिक्षको के द्वारा वेद पुराण का ज्ञान बांटा जाता था|जो वेद पुराण मंदिरो अथवा वेद पुराण के विद्यालयो में होती थी,जिसमे मनुवादियो ने कब्जा करके शुद्रो के लिए वेद पुराण का ज्ञान लेने में रोक लगा दिया था|जिसके लिए मनुवादियो का संविधान मनुस्मृती लागू होने के बाद ये नियम कानून लागू किए गए कि शुद्र यदि वेद सुने तो उसके कान में गर्म पिघला लोहा डाल दिया जाय और वेद बोले तो उसका जीभ काट दिया जाय|जिस तरह के इंसानियत कायम थी मनुवादियो की संविधान लागू होकर|साथ साथ ये भी नियम कानून लागू थी कि शुद्र अमिर नही बन सकता अथवा सारा धन दौलत पर मनुवादियो का अधिकार होगा|शुद्र सिर्फ सेवा करेगा मनुवादियो की|आज जनता को मालिक और शासक को सेवक कहा जाता है,मनुस्मृती लागु होने पर शुद्र प्रजा मालिक नही बल्कि प्रजा का सेवा करने वाली गद्दी पर बैठने वाला  राजा अपनी प्रजा का मालिक होता था|जिसकी सेवा शुद्र जनता करती थी|जिस तरह की शासन में कान में गर्म पिघला लोहा डालने और जीभ काटने का कानून बनाने वाले जन्म से विद्वान पंडित और कान में गर्म पीघला लोहा डालने वाले जन्म से वीर रक्षक क्षत्रिय और शुद्र जनता का धन को लुटने वाले जन्म से धन्ना वैश्य कहलाते थे|जिस तरह की शासन को श्रेष्ट शासन कहा जाता था|खैर ये सारी बाते उस समय वेद पुराणो में अपडेट होकर समय के साथ दर्ज होती जा रही थी|जिसके बारे में ज्ञान वेद पुराण मंदिरो में दी जाती थी|जिसमे मनुवादि खुदको उच्च और श्रेष्ट कहलवाने के लिए वेद पुराणो में मिलावट और बदलाव करके नायक को खलनायक और खलनायक को नायक बतलाने कि कोशिष किया|जो वेद पुराण आने वाले नई पिड़ि के लिए भी ज्ञान का भंडार होता था,जिसे गुरु अथवा शिक्षक अपने दिमाक में भंडारन करके रखते थे|जैसे कि आज भी कोई गुरु या छात्र अपने दिमाक में ज्ञान भंडारन रोज रोज करता रहता है|जो बिना किताब कॉपी के भी किया जाता है|जिसके जरिये कोई भी ऐसे सवाल का जवाब दिया जा सकता है,जिसका जवाब दिमाक में सुन देखकर भंडारन किया जा चुका है|जिसे वह अपनी यादाश्त के जरिये बिना किताब कॉपी के मुँह से बोलकर अथवा आवाज जिसका मतलब वेद होता है,उसके जरिये दे सकता है|जो अपने दिमाक में मौजुद भंडारन को आवाज अथवा वेद और पुराण अथवा साक्षात चित्र के साथ साथ आज लिपी की खोज होने की वजह से लिखाई पढ़ाई के रुप में भी इस्तेमाल और भंडारन कर रहा है|जो उस समय ज्ञान मंदिरो में भी नही कर पाता था,जब कोई भाषा लिपी की खोज नही हुई थी| और सिर्फ वेद पुराण ही ज्ञान बांटने और बोलचाल का माध्यम बना हुआ था|जैसे की आज भी इस देश में हजारो बोली भाषा मौजुद है,जिसकी कोई लिपी मौजुद नही है|
हलांकि वर्तमान में कई बोली भाषा लिपी का आविष्कार हो चुका है|जिसके चलते किसी भी ऐसी बोली भाषा को जानने वाला इंसान जिसकी आज भी कोई लिपी उपलब्ध नही है,वह किसी दुसरी भाषा  जिसकी लिपी का खोज हो चुका है,उस भाषा में पढ़ाई लिखाई शिक्षा लेकर अपनी बोली भाषा का ज्ञान को लिखित तौर पर बांट सकता है|जो पहले लीपि न होने की वजह से ज्ञान बांटने का कार्य सिर्फ वेद पुराण के जरिये ही उस समय होता था,जब हजारो साल पहले इस देश के मुलनिवासियो द्वारा हजारो भाषा तो बोली जाती थी पर उन हजारो भाषाओ में किसी की भी लिपी मौजुद नही थी|जिस समय संभवता पुरे विश्व में भी किसी भी बोली भाषा की कोई लिपी मौजुद नही थी|जिसके चलते विश्व के अलग अलग क्षेत्रो में मौजुद सभी इंसानो द्वारा सिर्फ बोलकर और दिखाकर अथवा वेद पुराण के जरिये ही ज्ञान बांटी जाती थी|क्योंकि उस समय किसी भी बोली भाषा की लिपी  की खोज नही हुई थी|जो की सुरुवात में इस देश में भी कोई बोली भाषा की लिपी मौजुद नही थी|सिर्फ वेद पुराण के जरिये ज्ञान बांटी जाती थी|जो बाद में संस्कृत हिन्दी वगैरा भाषा लिपी की खोज जैसे जैसे होती चली गई तो वेद पुराण की रचना लिखित रुप से भी की जाने लगी|जिसकी उदाहरन किसी इंसान को बोलते और उसके द्वारा बोले गए ज्ञान को लिखते हुए देखकर जाना जा सकता है|हलांकि हो सकता है संस्कृत हिन्दी के अलावे अन्य भी कई भारतीय भाषाओ की लिपी जब खोजी गई,उससे पहले भी इस देश में कोई भारतीय भाषा की लिपी मौजुद थी,जिस लिपि भाषा में भारत के वेद पुराणो में जो लिखी गई बाते जो आज मौजुद है उससे भी पहले की बाते दर्ज होगी जब मनुवादि इस देश में प्रवेश ही नही किये थे|क्योंकि हमे ये नही भुलनी चाहिए की प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती के पुराने अवशोषो में मौजुद भाषा को अबतक समझी नही गयी है|जहाँ पर कोई मनुवादियो का मौजुदगी भी नही थी|क्योंकि यदि उस समय मनुवादी होते तो प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता में भी अनगिनत देवताओ की मंदिर मौजुद होती|जैसे की आज लाखो मंदिर मौजुद हैं|जो मंदिर दरसल वेद पुराण ज्ञान का मंदिर होगा जिसपर मनुवादियो का कब्जा होने के बाद वहाँ पर अपने पुर्वजो की मुर्ती लगाकर उसकी और अपनी भी पुजा सुरु कर दिया होगा|जिसके बाद चूँकि वेद पुराण के रचनाकार गुलाम बनाये जा चुके थे इसलिए सुरु में उनके ही द्वारा मानो सोने की चिड़ियां मनुवादियो द्वारा हाईजेक होकर वेद पुराणो में भी मिलावट सुरु हो गया होगा|जिन मंदिरो को आज भी कहीं कहीं मनुवादियो के द्वारा हाईजेक किया गया है इसकी झांकी दिख जाती है|जिसके चलते आज भी कहीं कहीं मंदिर के बाहर शुद्र का अंदर प्रवेश मना है ये बाते लिखी रहती है|और चूँकि वेद पुराण का संग्रह कोई ऑडियो विडियो रिकॉर्डिंग मशीन के जरिये नही किया गया है,क्योंकि हजारो साल पहले ऑडियो विडियो रिकार्डिंग का आविष्कार नही हुआ था,नही तो फिर सारे बिना मिलावट वाला वेद पुराण का मुल संग्रह ऑडियो विडियो के रुप में आज मुल ऑडियो विडियो मौजुद रहती उन मुलनिवासियो की आवाज में जिन्होने वेद पुराण की  रचना किताब के रुप में होने से पहले ही ऑडियो विडियो के रुप में की थी|जो होने के बाद उसमे मिलावट जैसी गड़बड़ी होने की संभावना भी न के बराबर होती यदि मुल वेद पुराण की प्रथम संग्रह करने वाले गुरु की बिना रुके ऑडियो विडियो वेद पुराण ज्ञान बांटने समय रिकॉर्ड करके उसे संग्रहित की जाती|जैसे की आज तमाम ज्ञान की बाते जिन्होने उस ज्ञान की खोज की है उसे संग्रहित जरुर की जानी चाहिए|ताकि भविष्य में उसमे कोई भी मिलावट और बदलाव न किया जा सके|और मुल प्रति में यदि समय के साथ अपडेट अथवा बदलाव भी हो तो उसमे ये जानकारी अपडेट हो कि अपडेट किसके द्वारा हुआ?जैसे की आज यदि अजाद भारत का संविधान में अपडेट हो रहा है तो ऑडियो विडियो रिकार्डिंग के जरिये जानकारी में भी अपडेट हो रहा है कि किसके द्वारा अपडेट हो रहा है|जिस तरह कि सुविधा हजारो साल पहले उपलब्ध न होने की वजह से वेद पुराण में आज बहुत से बदलाव और मिलावट समय के साथ हो चुकी है,इसकी पुरी संभावना तो है,पर मुल ऑडियो विडियो रिकार्डिंग मौजुद नही है|
हलांकि वेद पुराण की कथनी करनी में मेल करते समय मुल सच्चाई तब पता चल जाती है,जब कोई चाल चरित्र का नायक को खलनायक और चाल चरित्र का खलनायक को नायक बतलाने की कोशिष करते हुए मिलावट और बदलाव साफ नजर आती है|जैसे की वेद पुराणो में अहिल्या का बलात्कार करने वाला इंद्रदेव को पुजने की ज्ञान बाते की जाती है तो वेद पुराण में साफ मिलावट और बदलाव नजर आती है|जिस तरह की मिलावट आगे अपडेट होने के बाद वेद सुनने पर कान में गर्म पिघला लोहा डालने,और वेद बोलने पर जीभ काटने का नियम कानून मनुस्मृती वगैरा संविधान लिखने वालो को जन्म से विद्वान पंडित कहना,और शोषन अत्याचार करने वालो को जन्म से वीर रक्षक क्षत्रिय कहना,और दुसरे का धन लुटने वालो को जन्म से धन्ना वैश्य कहना भी वेद पुराण में मिलावट का ही बुरे परिणाम है|जिस तरह कि मिलावट मनुवादियो ने इसलिए किया है,क्योंकि उन्होने इस देश में बाहर से आकर इस देश के मुलनिवासियो को गुलाम बनाकर छुवा छुत शोषन अत्याचार को किसी अपराधी के द्वारा सबूत छिपाने की भांती सत्य को छुपाने की कोशिष किया है|जिसके चलते ही तो मनुवादी खुदको देव का वंसज नायक के रुप में पेश करते हैं,और इस देश के मुलनिवासी जिसे मनुस्मृती में शुद्र कहा गया है,उसे राक्षस कहकर खलनायक बतलाते आ रहे हैं|जिसकी सच्चाई वेद पुराण को सिधा करके पढ़ने पर मुल अपडेट सुरु हो जाती है|जैसे की रक्षक का कार्य करने वाले को नायक और भक्षक का काम करने वाले को खलनायक चूँकि माना जाता है,इसे ध्यान में रखते हुए जब वेद पुराण का सत्य मंथन किया जाता है,तो देव खलनायक और राक्षस नायक नजर आते हैं,जो कि सच्चाई है|इसका मतलब ये बिल्कुल नही की वेद पुराण में मौजुद सभी देव खलनायक और सभी राक्षस नायक नजर आयेंगे,जैसे कि सभी गोरे भी खलनायक और सभी गोरो के द्वारा हुए गुलाम भी नायक नजर नही आयेंगे|लेकिन जिस तरह कुछ गोरे सही होने के बावजुद भी गुलाम होने के बाद सभी गोरो से अजादी पाने की लड़ाई लड़ी जा रही थी,उसी प्रकार सभी देव खलनायक नही होने के बावजुद भी खुदको देव का वंसज कहने वाले छुवा छुत शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादियो से अजादी पाने की लड़ाई आज लड़ी जा रही है|जिससे उन कथित देव के ही वंसजो को जिनके अंदर देव का ही डीएनए दौड़ रहा है,लेकिन वे मनुवादी होना अब बिल्कुल भी पसंद नही करते हैं,और छुवा छुत उच्च निच को भी नही मानते हैं,उनको अपने ही डीएनए का मनुवादियो की वजह से चूलुभर पानी में शर्म से डुब मरने की जरुरत बिल्कुल भी नही है,क्योंकि हजारो सालो तक इस देश में रहते रहते उनके भितर इस देश के मुलनिवासियो का सभ्यता संस्कृती का बहुत सारा ज्ञान हो चुका है|हाँ ये ख्याल जुरुर रहे कि भले अपने मनुवादी पुर्वज और इंद्रदेव बुरे हो उस समय और आज भी,पर इस समय उनकी आरती न उतारकर और उनकी गलतियो को सार्वजनिक तौर पर सबके सामने कबूल करके उन्हे खलनायक स्वीकारने के बाद अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए गलतियो को भुलाकर और वेद पुराण की ज्ञान में सुधार करके उसे सही रुप से बांटकर अपने नई पिड़ी को छुवा छुत न करने के लिए सुधारा जा सकता है|जिससे की भविष्य में सुधरे हुए मनुवादियो के द्वारा इंसानियत कायम करने में भी काफी महत्वपुर्ण भूमिका अदा की जायेगी|नही तो फिर आगे भी मनुवादियो की नई पिड़ी भी मानो अँधा होकर झुठी शान में डुबकर गर्व से छुवा छुत का भ्रष्ट संस्कार को किसी किमती खजाना कि तरह खानदानी पुर्वजो की विरासत और वसियत की तरह पिड़ी दर पिड़ी और भी आगे न जाने और कितने समय तक ले जाती रहेगी|जो की आने वाले नई पिड़ी के लिए भी बहुत से ऐसी कुकर्म को जन्म देती रहेगी जिस बड़ी गलती को छिपाने की कोशिष में भी मनुवादी आज भी ढोंग पाखंड के जरिये दिन रात लगा रहता है|जैसे की इस समय भी बड़े बड़े भ्रष्टाचारी अपनी गलती को छिपाने में लगे हुए हैं|ताकि उनकी झुठी शान बरकरार रह सके और वे सजा पाने से भी बचे रहे|जो लोग मेरी नजर में तो उस शिशु की तरह नजर आते हैं,जो पैंट में ही शुशु और टटी करके या तो उसी से खेलते हुए मुस्कुराते रहता है,या फिर रोते रहता है|उसकी सफाई नही करता,क्योंकि उसे सिर्फ हगना मुतना तो आता है,पर वह समय के साथ बड़ा होते होते धिरे धिरे बहुत कुछ सिख रहा होता है|बल्कि अपने पैंट में ही मल मुत्र करने वाले शिशु से भी कई गुणा अधिक मल मुत्र अपने पैंट में करने से ज्यादे खतरनाक गंदगी करने वाले शैतान शिशु होते हैं वे लोग जो बड़े बड़े भ्रष्टाचार की गंदगी करके जान बुझकर उसे छिपाये हुए जिवन जी रहे होते हैं|जिन बड़े बड़े भ्रष्टाचारियो की  बुद्धी का विकाश जिसदिन भी इंसानियत के तौर पर हो जायेगा अपनी बड़ी बड़ी गलती को कबूल करके उसदिन वे सारा कालाधन भी खुद ही सौंप देंगे|जैसे की शिशु जब बड़ा होकर समझदार बच्चा बन जाता है,तो कभी गलती या जान बुझकर पैंट में शुशु और टटी करने पर अपने अभिभावक को तुरंत बतला देता है कि उसने अपने पैंट में ही मल मुत्र किया है|बल्कि ज्यादेतर बच्चे तो समय के साथ खुद ही गंदा पैंट उतारना और  अपना पिछवाड़ा धोना पोछाना जान जाते हैं|जिस तरह की भी समझदार बच्चा तक अभी नही बन पाये हैं बड़े बड़े भ्रष्टाचारी तो वे अपनी जिवन में खासकर क्या मेरे जैसे लोगो की नजर में वे बड़े लोग बन पायेंगे जिनसे नई पिड़ी को सही इंसान बनने की ज्ञान प्राप्त होती है|बल्कि ऐसे बड़े बड़े भ्रष्टाचारियो के बच्चो की भी सही संस्कार तबतक खतरे में पड़ी रहती है, जबतक कि बड़े बड़े भ्रष्टाचारियो के बच्चे उन्हे अपना आदर्श मानने के बजाय उनके कुकर्मो का विरोध करना न सिख लें|जैसे की छुवा छुत करने वाले मनुवादियो के बच्चो को छुवा छुत का विरोध करके छुवा छुत समाप्त करने की ज्ञान सिखनी चाहिए उन लोगो से जो कि किसी से छुवा छुत नही करते हैं|जो सिखाने वाले चाहे इस देश के मुलनिवासी हो या फिर विदेशी हो,पर यदि छुवा छुत करना गलत संस्कार है,ये ज्ञान की बाते छुवा छुत करने वालो के सभी बच्चे सिख लेंगे तो भविष्य में वे कभी भी इस देश के मुलनिवासियो का ही नही,बल्कि किसी भी देश के मुलनिवासियो के साथ बिना कोई भेदभाव किये और हक अधिकारो का अँगुठा काटे बगैर सचमुच का गर्व से जिवन यापन करेंगे|अन्यथा आगे भी चाहे उन्होने जितनी बड़ी बड़ी उच्च ज्ञान डिग्री प्राप्त कर लिये हो तो भी वे छुवा छुत करते हुए झुठी शान में ही डुबे रहेंगे|जिस तरह के लोग ही दरसल आजतक भी छुवा छुत भ्रष्ट संस्कार को कायम किये हुए हैं|जिससे पुरी अजादी जल्द से जल्द पाने के लिए मेरे द्वारा बांटे गए इस ज्ञान को ज्यादे से ज्यादे लोगो तक बांटने का पुन्य कर्म करें!अन्यथा कुकर्म करने वाले और कुकर्म से पिड़ित होने वाले दोनो ही सुख शांती और समृद्धी जिवन ठीक से कभी नही जी पायेंगे| धन्यवाद!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...