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मंगलवार, 29 सितंबर 2020

गांधी सूट बूट जिवन

 

गांधी सूट बूट जिवन

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गांधी की सूट बूट मूर्ति आखिर क्यों नही बनती है ? जबकि उसकी लगभग आधी जिवन सूट बूट में ही कटी है | क्योंकि सायद सूट बूट गांधी की मूर्ति देखने सुनने और बोलने से गांधी के तीन बंदर इंकार कर देंगे | बल्कि उसे पहचानने से भी सायद इंकार कर देंगे | इसलिए सायद अबतक जितनी भी गांधी मूर्ति बनती आ रही है , सभी धोती पहने हुए रहती है | और धोती ग्रामीण भारत की खास पहचान है | जो ग्रामीण जिवन सूट बूट गांधी ने धोती को इस कृषी प्रधान देश की खास मानकर कभी अपनाया ही नही | गांधी ने ग्रामीण धोती जिवन की खास सुरुवात तब किया जब गोरो के साथ रेल सफर करते समय उसे सूट बूट पहने गोरो ने लात मारकर रेल से निचे फैंक दिया | जिसके बाद गांधी को इतना झटका लगा कि उसने सूट बूट उतारकर धोती कपड़ा पहनकर विदेशी बहिष्कार का आंदोलन चलाना सुरु कर दिया | जिसके आंदोलन में बहुत से लोग सहयोग करके वे भी विदेशी कपड़ो को जलाने लगे  | जो आंदोलन चलाने के बारे में गांधी ने आधी जिवन सूट बूट पहनकर कभी सोचा भी नही होगा | क्योंकि उससे पहले दरसल गांधी भी सूट बूट धारन करके खुदको खास समझता होगा | जिसके चलते उसने गोरो की बराबरी का खास रेल टिकट लेकर खास बोगी में गोरो के साथ रेल सफर कर रहा था | वह भी उन सूट बूट वाले गोरो के साथ जिन्होने कई देशो को गुलाम किया हुआ था | हो सकता है गांधी को तब सायद पुरा यकिन था कि कई देशो को गुलाम करने वाले गोरे और गुलाम हुए दुसरे लोग भले रेल सफर खास बोगी में नही कर सकते हैं , पर सूट बूट गांधी को गुलाम न समझकर कोई सूट बूट पहना गोरा उससे भेदभाव नही करेगा | क्योंकि गांधी उस उच्च जाति से आता था , जिसका खुद ही गुलाम करके भेदभाव करने का गोरो से भी ज्यादे पुराना और लंबा इतिहास रहा है | जिसके बारे में मनुस्मृति और अन्य भी कई पुस्तके जिसमे कथित उच्च जातियों के द्वारा गुलाम करके भेदभाव करने का इतिहास के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी है | उदाहरन के तौर पर इस कृषि प्रधान देश को गुलाम करके मनुस्मृति लागू करके जिन यूरेशियन मूल के लोगो ने खुदको कथित उच्च जाति घोषित किया हुआ है , उस उच्च जाति से गांधी भी आता है , जो जाति इस देश के मुलनिवासियों को गोरो से भी पहले गुलाम करके मनुस्मृति लागू करके , और गुलामो को निच घोषित करके यह नियम कानून बनाया था कि यदि निच जाती वेद ज्ञान बोले तो उसकी जीभ काट दिया जायेगा | और वेद ज्ञान सुने तो उसके कानो में गर्म पिघला लोहा डाल दिया जायेगा | जिस तरह के नियम कानून लागू करने के साथ साथ मनुवादीयों ने विशेष भेदभाव सफाई अभियान भी चलाया कि निच जाति यदि सड़को पर चले तो वह अपने कमर में झाड़ू टांगकर चले ताकि उसके अपने ही देश में चलने से जो अशुद्धीकरण आयेगी वह झाड़ू के साथ साफ हो जाय | जो अशुद्धीकरन यूरेशिया से आए विदेशी मुल के मनुवादीयों के द्वारा अपनी अशुद्ध भ्रष्ठ दिमाक से किसी के देश को गुलाम बनाकर चलने से नही आती थी | इतना ही नही गुलाम गले में थुक हांडी टांगकर चले जिसमे वह थुकेगा | और तो और यदि निच जाति खुद बिना किसी गुरु के भी रक्षक हुनर सिख ले तो मनुवादी इतने बेशर्मी की हदे पार कर चुके हैं कि वे किसी को बिना ज्ञान बांटे भी गुरु दक्षिणा लेते हैं | जैसे की एकलव्य ने अर्जुन से भी बेहत्तर लक्ष साधने वाली कला बिना गुरु के सीख लिया था | क्योंकि एकलव्य को निच जाति कहकर पांडवो का गुरु द्रोणाचार्य ने लड़ाकू कला अथवा तीर धनुष चलाने की कला सिखाने से मना कर दिया था | जिसके चलते एकलव्य बिना गुरु के ही खुद ही अकेले अभ्यास करते करते युद्ध कला में इतना आगे निकल गया कि द्रोणाचार्य को एकलव्य की युद्ध कला झांकी मात्र देखकर अपने युद्ध कला ज्ञान से सिखाये हुए शिष्यो पर शक ही नही बल्कि यकिन हो गया कि कथित विश्व का न० 1 योद्धा अर्जुन भी एकलव्य की युद्ध कला के सामने कुछ नही है | जिसके कारन वह बेशर्मी की सारी हदे पार करके बिना ज्ञान दिये भी एकलव्य से गुरु दक्षिणा के तौर पर अँगुठा मांग लिया | जबकि उसने एकलव्य को निच जाति कहकर अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था | लेकिन भी उसने एकलव्य से गुरु दक्षिणा भी मांगा तो अँगुठा काटकर | जिस तरह तो अँगुलीमार डाकू भी अँगुठा काटकर नही मांगता था | क्योंकि वह स्वीकारता था कि वह अपराध कर रहा है लोगो का अँगुठा काटकर | लेकिन मनुवादी तो आज भी स्वीकार नही करता है कि द्रोणाचार्य ने गलत किया था | तभी तो मनुवादी शासन में द्रोणाचार्य को खास गुरु का दर्जा देकर उसके नाम से गुरुग्राम बनाया है | जिस तरह के बेशर्म इतिहास कथित उच्च जातियों की रही है | जिस उच्च जाति से चूँकि गाँधी भी आता था , जिसके भितर भी यूरेशिया से आए उन्ही गुलाम करके मनुस्मृति लागु करने वाले मनुवादीयों का DNA दौड़ रहा था , इसलिए सायद गांधी ने गोरो के साथ रेल सफर करते समय यह उम्मीद लगाये हुए था कि चूँकि उनके पुर्वजो का गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार करने का इतिहास गोरो से कहीं ज्यादे पुराना है , इसलिए निश्चित तौर पर गुलाम बनाकर भेदभाव शोषण अत्याचार करने का अनुभव में उनके पुर्वज गोरो से कहीं आगे रहे हैं | जिसके बारे में गोरे जरुर जानते होंगे और उन्हे अपने से उच्च मानते होंगे | जिसके चलते ही सायद गांधी ने एकबार गोरो को यह कहा था कि उसके लिए अलग से प्रवेश द्वार बनाया जाय | दक्षिण अफ्रीका के लोगो अथवा जिन्हे काला अफ्रीकन कहा जाता था , उनके साथ ही प्रवेश न करया जाय | दरसल गोरे इस देश को गुलाम करके जिस तरह भेदभाव की मकसद से गेट में यह लिखते थे कि कुत्तो और इंडियनो का अंदर आना मना है , उसी तरह गोरे अफ्रीका को भी गुलाम बनाकर वहाँ पर भी भेदभाव की मकसद से दो गेट बनाये थे , जिसमे से एक गेट से गुलाम करने वाले गोरे प्रवेश करते थे , और दुसरे से गुलाम प्रवेश करते थे | जिसके बारे में ही जानकर गांधी ने गोरो को अपने लिए अलग से गेट बनाने की मांग किया था | क्योंकि गांधी गुलाम अफ्रीकनो के साथ में प्रवेश करना नही चाहता था | जिस घटना के बारे में ही जानकर बहुत से अफ्रीकन आज भी गांधी को महात्मा नही मानते हैं | जैसे कि भारत में भी बहुत से लोग गांधी को महात्मा नही मानते हैं | जिनमे एक वामन मेश्राम भी खास है | जिनकी एक बात मुझे खास लगती है कि वे खुले मंच से कहते हैं कि जिसदिन भी मनुवादी शासन से अजादी मिलकर मुलनिवासियों का शासन आयेगा गांधी के सारी मूर्तियों को धसाकर पानी में बहा देंगे | क्योंकि वे गांधी को बहुत बड़ा बिलेन समझते हैं इस देश के मुलनिवासियों को फिर से मनुवादी गुलामी में ढकलने के लिए | और चूँकि मैं भी मानता हूँ कि गांधी कोई महात्मा वात्मा नही है , बल्कि देखा जाय तो गांधी ने भले ही मनुवादीयों के लिए वाकई में महात्मा जैसा कार्य किया है , जिसके चलते ही मनुवादीयों ने उसे महात्मा का दर्जा दे रखा है | क्योंकि गांधी ने ही मनुवादीयों को गोरो से अजादी मिलने के बाद फिर से सत्ता दिलवाया है | जो सत्ता जा सकती थी यदि गांधी भुख हड़ताल करके बाबा अंबेडकर की मांगो को खारिज करने के लिए अंबेडकर को मजबूर करके गोवा समझौता नही करता | जिस समझौता का विरोध आज भी बहुत से मुलनिवासी करते हैं | क्योंकि यदि अंबेडकर के मन मुताबिक गोवा समझौता हो जाता तो चुनाव में जो अलग से निर्वाचन का समझौता हो रहा था , वह समझौता 85% मुलनिवासियों का विक्राल रुप धारन करके मनुवादियों के लिए मात्र 15% वोट से चुनाव जितने का चुनौती बनकर आता | और मनुवादी कभी भी सरकार बनाना तो दुर सांसद भी नही बन पाते | जिसके बारे में गांधी को पता था , क्योंकि उसकी वकालत बुद्धी के साथ साथ अपने पुर्वजो की छल कपट बुद्धी भी काम करती थी | जिसका इस्तेमाल करके उसने आखिरकार भूख हड़ताल करके बाबा अंबेडकर को मानो इमोशनल ब्लेकमैल करके मजबूर कर ही दिया | हलांकि बाबा अंबेडकर को तब अपनी रोजमरा जिवन में ही हर रोज जो करोड़ो मुलनिवासी भुखमरी जिवन गुजारकर कई तो हर रोज गुजर भी रहे हैं , उसके बारे में गांधी और उसकी पत्नी को पुछना चाहिए था कि इनका क्या ? पर चूँकि वे जानते थे कि मनुवादी की समझ इस देश के मुलनिवासियों के प्रति भेदभाव शोषण अत्याचार की रही है , इसलिए सायद बाबा अंबेडकर ने गांधी से यह सोचकर समझौता किया होगा कि गाँधी के द्वारा लिया गया सारे वचन को अजाद भारत का संविधान लागू होते ही कम से कम संवैधानिक तौर पर तो मनुवादी जरुर निभायेंगे | पर समझौता करते समय लिया गया खास वचनो को नही निभाया गया और मनुवादी आजतक भी हर बार के चुनावो में उन वचनो को निभाने की बाते करके दोहराते तो जरुर हैं पर सरकार बनने के बाद निभाते नही हैं | खैर मुझे तो गांधी के जिवन में ब्रह्मचर्या का प्रयोग के बारे में जानकर भी गांधी को महात्मा बतलाने वालो का रुप ढोंग पाखंड वाला ही दिखलाई देता है , जैसा कि वेद पुराणो में छेड़छाड़ और बदलाव करके देवो को भगवान बताकर आरती उतरवाने वालो का ढोंगी पाखंडी रुप दिखलाई देता है | और वैसे भी गांधी को ब्रह्मचर्या का प्रयोग वाकई में तब करना चाहिए था जब वह जवानी में वैवाहिक जिवन जिते हुए बच्चो की लाईन लगा दिया था | पर उस समय नही किया और तब किया जब उसकी जवानी की मोमबत्ती वैसे भी बुझ रही थी | गांधी जो किशोरियो को नंगा होने के लिए कहकर खुद भी नंगा होकर उसके साथ सोकर ब्रह्मचर्या का प्रयोग करता था उस तरह का प्रयोग वह युवाओ को करने के लिए क्यों नही कहता था ? क्यों युवाओ को लड़कियों से नंगा होकर सोना मना किया था | और गांधी खुद नंगा होकर नंगी किशोरियों से क्यों सोकर ब्रह्मचर्य का प्रयोग करता था ? जिस तरह का प्रयोग कितने गांधी भक्त अपने जिवन में करना चाहेंगे किशोरियों को नंगा करके उसके साथ खुद भी नंगा सोकर ? मुझे नही लगता कोई गांधी भक्त कभी ऐसा प्रयोग करता होगा या किया होगा ! और वैसे भी अभी यदि इस तरह के प्रयोग कोई करते हुए पकड़ा गया तो मेरे ख्याल से उसके ब्रह्मचर्या का प्रयोगशाला में वैसा ही छापा पड़ जायेगी जैसे की मासुम लड़कियों के साथ यौन शोषन करने की शिकायत सुनकर ढोंगी पाखंडी बाबाओ के आश्रम में छापा पड़ती है | जहाँ से बहुत सारी ऐसी ऐसी शोषण अत्याचार की गुप्त बाते सामने आती है , जिसे लंबे समय तक छिपाकर ढोंगी पाखंडी बाबाओ को भगवान का भेजा गया विशेष चमत्कारी बाबा माना जाता है | पर जैसे ही उसके बारे में पुरा गुप्त भोग विलाशी इतिहास खुलती है , तो उसके भक्तो की संख्या में भी लगातार ऐसी कमी आती है , जैसे की अचानक से पाप का घड़ा फुटने से घड़े में भरा पानी में कमी आती है | मनुवादीयों की भी पाप का घड़ा जिसदिन भी पुरी तरह से फुटेगा उसदिन उनकी ढोंग पाखंड में ऐसी कमी आयेगी कि वे दुबारा से उस कमी को कभी पुरा ही नही कर पायेंगे | क्योंकि उनकी नई पिड़ी उस पाप घड़ा को ढोने के लिए अब उस तरह से सामने आनेवाली नही है , जैसे की हजारो सालो से पिड़ी दर पिड़ी आती रही है | और यदि अपने पुर्वजो की किमती खजाना मानकर आयेगी भी तो उन्हे उन नई पिड़ियों का सामना करना पड़ेगा , जो अब यह जानने और मानने लगी है कि यदि छिने गए अपने हक अधिकारो को वापस लेनी है तो मनुवादी गुलामी से अजादी ही सबसे बड़ा लक्ष रखनी चाहिए | जिसके बगैर चाहे जितने बड़े उच्च पदो को प्राप्त कर लो , मनुवादी गुलामी में कभी भी वह कामयाबी महसुश नही करोगे जो कि मनुवादी शोषण अत्याचार से पुर्ण अजादी के बाद महसुश करोगे |


क्योंकि गोरो से अजादी मिलकर मनुवादी से फिर से गुलामी मिली है |




जिस तरह वीर जवान जब कोई खास लक्ष में रहता है , उस समय जिन्दा रहने के लिए विभिन्न प्रकार का कीड़ा मकौड़ा और गंदा पानी तक भी खाता पीता है , उसी तरह बहुसंख्यक शोषित पिड़ित मुलनिवासी भी अजादी का लक्ष को हासिल करने के लिए गंदा भोजन और गंदा पानी भी पी रहे हैं | जिनकी वीरता पर गर्व है |


शोषित पिड़ित को जब भी अपनी गरिबी भुखमरी जिवन से निराशा हो , और खुदकी अभावग्रस्त जिवन से शर्मिंदगी महसुश होने लगे तो मन में सिर्फ एक ही बात सोचें की देश मनुवादीयों से गुलाम है,जिससे अजादी मिले बगैर वह खुशी कभी हासिल ही नही हो सकती जिसकी तलाश प्रत्येक अजादी के वीर जवानो को होती है|


सोमवार, 28 सितंबर 2020

हिंदू धर्म में भगवान पूजा का मतलब देव पूजा नहीं है, देव छुवा छुत शोषण अत्याचार करने वाले मनुवादीयों के पुर्वज हैं , जो अब मर चुके हैं



हिंदू धर्म में भगवान पूजा का मतलब देव पूजा नहीं है, देव छुवा छुत शोषण अत्याचार करने वाले मनुवादीयों के पुर्वज हैं , जो अब मर चुके हैं


होली दिवाली और मकर संक्राती जैसे दर्जनो प्रकृति पर्व त्योहार बारह माह मनाकर प्राकृति भगवान की पुजा करने वाले इस देश के मुलनिवासियों को उन मंदिर में प्रवेश नही करना चाहिए , जहाँ पर मनुवादी अपने मरे हुए पुर्वज देवो की पुजा करवाते हैं | बल्कि सिर्फ उन मंदिरो में जायें जहाँ पर सबको जिवन प्रदान करने वाले चारो ओर साक्षात मौजुद प्रकृति के प्रतिक की पुजा होती है | जैसे की प्रकृति सुर्य प्रकृति पत्थर वगैरा | जो पत्थर न रहे तो पृथ्वी एक पल भी नही टिक सकता | और सुर्य के बगैर पृथ्वी में मौजुद जिवन नही टिक सकता | बल्कि प्रकृति वायु जल के बगैर  तो इंसान एक पल भी नही टिक सकता | जिसके बगैर रहकर वह चाहे जिसकी पुजा कर ले | जिस प्रकृति की कृपा के बदले उसके आगे माथा टेककर उसकी प्रमाणित ताकतो को सत्य स्वीकारने में क्या हर्ज है | जिसकी पुजा करने के लिए धन दौलत और मंदिर की भी जरुरत नही है | जिस प्रकृति भगवान की पुजा करने के साथ साथ प्रकृति की ताकत को भी स्वीकारो | न की उन देवो की ताकत को सर्वशक्तीमान समझो जिन देवो को असुर दैत्य दानवो ने चौदह देव असुर संग्राम में दस से अधिक बार हराया है | और वैसे भी मनुवादियों के पुर्वज मरे हुए देवताओं कि पुजा करना उन भुत प्रेतो की पुजा करना है , जिन्होने जिते जी इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वज दैत्य दानव असुरो की छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से नरसंहार किया है | और साथ ही उनके सम्राज्य को लुटकर उनका विनाश किया है | बल्कि कई देवो ने तो असुर दैत्य दानवो की बहु बेटियों की इज्जत भी लुटा है | जैसे की इंद्रदेव ने अहिल्या की इज्जत लुटा है | विष्णु ने वृत्तासुर की पत्नी तुलसी की इज्जत लुटा है | और ब्रह्मा ने सरस्वती की इज्जत लुटा है | जिसकी सजा भी तीनो को मिला था | इंद्रदेव को हजार योनी को किसी घुंघरु की तरह लटकाये रहने की सजा मिला था , विष्णु को पत्थर बन जाने की सजा मिला था , और ब्रह्मा को तो शिव ने उसका गर्दन काटकर सजा दिया था | जिसके बारे में जानकारी वेद पुराणो में भरे पड़े हैं | जिसमे छेड़छाड़ और मिलावट करके मनुवादियों ने वेद पुराणो में इन बलात्कारियो को भगवान और दानव असुरो को बड़े बड़े दांतो वाले पहाड़ो जैसा विशाल शरिर वाले मानव भक्षी बताकर यह दर्शाने की कोशिष किया है कि वेद पुराण में मौजुद सारे देव मानव रक्षक हैं , और सारे दानव असुर दैत्य मानव भक्षक हैं | इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वजो को आकार में इतना बड़ा बतलाया जाता है कि मानो उनके लिंग योनी बरगद के पेड़ जितने मोटे और असुर कन्याओं की योनी कोई बड़ी गुफा जैसी हुआ करती थी | मनुवादीयों की बातो को यदि सत्य मान लिया जाय तो फिर तो दानव असुर पुराने बरगद के पेड़ जितने मोटे मोटे और लंबे लंबे लिंग लेकर दानव असुर तप किया करते थे | जिन्हे इंद्रदेव दानव असुरो का तप भंग करने के लिए स्वर्ग की अप्सराओं को उन्हे मोहित करने के लिए भेजा करते थे |  हलांकि नाच गाकर तप भंग करने के बाद भी सायद ही कोई अप्सरा के साथ दानव असुरो को संभोग करते बतलाया जाता है | और यदि किया भी होगा तो मनुवादियों के अनुसार तो विशालकाय दानव असुर के तो बड़े बड़े दांत और आंत के साथ साथ इतने बड़े बड़े लिंग योनी होते थे कि अगर वे एक साथ पेशाब भी करते होंगे तो देवो का स्वर्ग में बाढ़ आ जाता होगा | जिस पेड़ जितने मोटे लिंग से दानव असुर कोई तप भंग करने वाली अप्सराओं से कैसे संभोग करते और कैसे विवाह करते यदि तप भंग होने के बाद अप्सराओं से मोहित होकर उनके साथ सेक्स करते ? मानो हाथी कोई चिट्टी से सेक्स कैसे करता ? जिन मनुवादियों की माने तो दानव असुर चूँकि बलात्कारी थे , जो घुम घुमकर बलात्कार करते फिरते थे , इसलिए दानव असुरो के बारे में यदि रामायण महाभारत में दानव असुरो के मानव भक्षी जिवन के साथ साथ उनकी सेक्स जिवन को भी मनुवादीयों की सोच के अनुसार दिखलाया जाय तो चारो तरफ बड़े बड़े लिंग और योनी लिये राक्षस राक्षणी असुर दानव की सेक्स जिवन का विडियो से तो रामायण महाभारत भरे पड़े रहेंगे | क्योंकि दानव असुरो मानव भक्षण और हत्या करते जिस तरह से दिखलाया जाता है , उस तरह दानव असुरो के बारे में ये मनुवादी जरुर यह भी बतलाने की कोशिष करते होंगे की दानव असुर दिनभर घुम घुमकर खुले में सेक्स भी करते रहते होंगे | मैं यह सब बाते इसलिए भी कर रहा हूँ , क्योंकि राम मंदिर बनने से पहले राम के प्रति भक्तीमय माहौल बनाने के लिए लोकडाउन करके मजबुरी वश भी मानो इस देश की प्रजा को रामायण देखने के लिए बाहर कोरोना वायरस है , इसलिए चुपचाप घर में बैठकर रामायण देखो कहकर रामायण धारावाहिक को फिर से जो प्रसारित किया गया है , उसपर एक टी० वी० अभिनेत्री के द्वारा किया गया एक ट्वीट बहुत ज्यादे वायरल हुआ था , जिसमे लिखा गया था कि खुद तो संसद में सेक्स विडियों देखते हैं , और हमे रामायण देखने को कह रहे हैं | हलांकि यदि ट्वीट करनेवाली अभिनेत्री के द्वारा रामायण को बहुत ही भक्तीमय माना जाता है , जिसपर की बहुत से लोग भी यदि रामायण महाभारत को भक्ती धारावाहिक में मर चुके देवो की जिवन को धरती और आकाश में विचरन करते दिखाये जाने की वजह से यदि भक्तीमय माना जाता है तो यह दरसल बहुत बड़ी गलतफेमी है | क्योंकि रामायण महाभारत को यदि सेक्स की दृष्टी से देखे तो धारावाहिक में स्वर्ग जिवन में तो सिर्फ सेक्स ही सेक्स भरे पड़े हैं | और निचे धरती पर भी मानो सेक्स यज्ञ से माहौल भरे पड़े हैं | खासकर जब एक एक यज्ञ करने वाले देवो के वंशजो को बुढ़ापा में भी कई कई किशोरी से लेकर जवान देवदासियाँ सेक्स करने के लिए दान कर दिया जाता था | बल्कि दानव असुर के तप को भंग करने के लिए तो स्वर्ग की अप्सराओं को अपनी यौवन का जलवा दिखलाने के लिए इंद्र द्वारा खास भेजा जाता था | जिन जलवा दिखलाने वाली अप्सराओं के साथ यदि निचे धरती पर खुले में सेक्स होता होगा तो कैसा नजारा होता होगा ? जिस धरती पर सेक्स करने के लिए इंद्रदेव भी स्वर्ग छोड़कर धरती पर लार टपकाते हुए भ्रमण करता रहता था | जिसे स्वर्ग की अप्सराओं से भी ज्यादे आर्कषण धरती की नारियाँ आर्कषक लगती थी | जिसके चलते इंद्रदेव ने स्वर्ग की अप्सराओं से भी ज्यादे आर्कषक धरती की नारी साबित करते हुए धरती पर उतरकर अहिल्या का बलात्कार किया था | जबकि दानव असुरो को स्वर्ग में जाकर बलात्कार करते हुए मनुवादियों द्वारा भी नही बतलाया जाता है | देवता निचे धरती पर उतरकर बलात्कार भी करे तो वे भगवान और दानव असुर उपर स्वर्ग के देवो को निचे धरती पर कई बार कैद करके छोड़ दे तो शैतान ! जो दानव असुर अप्सराओं के साथ तो बलात्कार करना तो दुर खुद अप्सरा दानव असुरो के तप भंग करने के लिए नाचती गाती थी पर दानव असुर लंबे समय तक तप करते रहते थे | और तप वरदान भी पाते थे ऐसा मनुवादी भी बतलाते हैं , तो भी दानव असुरो को बलात्कारी हत्यारा और मानवभक्षी बतलाया जाता है | जबकि किस दानव असुर ने किस अप्सरा से रेप किया था , और किस देव मानव को खाया था ये नही बताया जाता है | बल्कि दानव असुरो का तप भंग करने के लिए अप्सराओं को बहुत बार स्वर्ग से भेजते जरुर बतलाया गया है | जिन अप्सराओं से यदि दानव असुर वाकई में तप भंग होने के बाद प्रेम प्रसंग करके विश्वामित्र की तरह सेक्स करते तो आखिर कैसे करते मनुवादियों के मान्यता अनुसार , क्योंकि दानव असुरो का लिंग बरगद का पेड़ से भी मोटा मोटा रहता था | जो दानव यदि मनुवादियों की माने तो टनो टन किमती सोने चाँदी वगैरा के आभुषण पहननते थे | पर फिर भी कई तो कपड़ा नही पहननते थे | जो यदि अपना बरगद से भी मोटा लिंग लहराते हुए युद्ध लड़ते या तप करते तो फिर किस तरह की सेक्सी माहौल दिखती यदि रामायण महाभारत में दानव असुरो की सेक्स विडियो बनती | बल्कि दान में मिली किशोरी और जवान कन्याओं के साथ कुटिया में देव दासियाँ रखकर जंगल में मंगल करने वालो की भी यदि सेक्स विडियो बनती तो कैसी रामायण महाभारत बनती !  जाहिर है यदि ये सभी कई कई देवदासियों से सेक्स करने वाले बुढ़े लोगो को दिखलाया जायेगा चाहे स्वर्ग हो या जंगल में मंगल करते कुटिया जहाँ पर शौचालय भी नही रहता था , लेकिन चूँकि सेक्स करने का कमरा जरुर होता होगा तो निश्चित तौर पर सेक्स विडियो का अंबार लग जायेगा यदि उनकी सेक्स जिवन के बारे में भी विडियो बनाई जायेगी  | क्योंकि एक एक कुटियाँ में कहीं कहीं तो एक एक दर्जन देवदासियाँ भी रखी जाती थी | जिनके साथ आजकल पकड़ाते बलात्कारी बाबाओं की तरह जबरजस्ती रेप किये जाते थे कि प्रेमभरी गाना गाकर सेक्स की जाती थी ये तो समझने वाले खुद ही उस समय के हालात का विश्लेषण करके समझें जब मासुम किशोरियों को पढ़ाई करने की उम्र में बुढ़े दाड़ीवालो को कई कई दान कर दिये जाते थे | हलांकि स्वर्ग या कुटिया में चाहे जबरजस्ती होता था कि प्यार से सेक्स होता था , पर चारो तरफ इतने सेक्स तो जरुर होते थे रामायण महाभारत में भी की यदि उन तमाम घटनाओं की सेक्स विडियों भी बने तो खुद तो संसद में सेक्स विडियों देखते हैं , और हमे रामायण देखने को को कह रहें हैं कहते समय एकबार फिर से जरुर सोचना पड़ेगा | क्योंकि महाभारत में भी तो पांडवो में एक एक के पास कितनी पत्नीयाँ हुआ करती थी ये जानकारी जुटाई जाय तो सेक्स ही सेक्स मौजुद है | यू ही युधिष्ठिर छोड़ बाकि सबको नर्क नही मिला था | बल्कि महाभारत में भिम ने तो दानव कन्या से भी संभोग करके पहाड़ से भी बड़ा घटोतक्ष पुत्र का पिता बना था | जिसकी सेक्स विडियो यदि मनुवादियों की मनुस्मृति बुद्धी से बनाया जाय तो फिर चूँकि इंसान की समान्य लिंग की लंबाई मोटाई से भले कुछ ज्यादा मोटा लिंग भीम का लिंग होगा , पर इतना नही होगा कि वह दानव कन्या से सेक्स करके उससे दानव कन्या को गर्भवती कर देता | जिसे यदि विशाल दानव असुर कन्या से  सेक्स करते मनुवादियों की बुद्धी अनुसार दिखाया जायेगा तो कैसा लगेगा भीम और दानव कन्या का संभोग विडियो ? कैसे भीम की सेक्स कामयाब हो पायेगी जबकि भीम का लिंग दानव कन्या के योनी के मुकाबले मानो कोई चिट्टी किसी हाथनी से संभोग करके हथनी के बच्चे का पिता कैसे बनता ? जो भीम भी जरासंघ को धोखे और छल कपट से मारकर नर्क गया था |  वैसे महाभारत रामायण की स्वर्ग में भी कौन सी सुख शांती मौजुद थी , जहाँ पर देव असुर के द्वारा तप करने से हमेशा इंद्र अपनी सिंघाषण के डोलने से आतंकित रहता था | आज भी तो मनुवादि अपनी सत्ता सिंघाषण को डोलता हुआ महसुश करके दिन रात आतंकित होकर हमेशा ही सत्ता कैसे बनी रहे इसके लिए छल कपट जाल बुनते रहते हैं |

अंबेडकर हिंदू परिवार की सफलता की कहानी


अंबेडकर हिंदू परिवार की सफलता की कहानी

ambedakar hindoo parivaar kee saphalata kee kahaanee

अंबेडकर ने तीस से अधिक उच्च डिग्री और हिन्दू कोड बिल समेत अजाद भारत का संविधान रचना हिंदू रहते किये थे |

अंबेडकर का जन्म हिंदू परिवार में हुआ था | और उन्होने हिंदू मंदिरो में प्रवेश पर रोक हटवाने के लिए मनुवादीयों के खिलाफ आंदोलन चलाया था | क्योंकि यहूदि DNA के मनुवादीयो ने खुदको हिंदू धर्म का पुजारी और हिंदू धर्म का सबसे बड़े ठिकेदार समझकर बहुत से हिंदू पुजा पाठ स्थलो में इस देश के उन मुल हिंदूओं को प्रवेश करने से रोक लगा रखा था , जिनकी तादार मनुवादीयों से अधिक है | इतना अधिक की मुलनिवासि हिंदूओ की अबादी के चलते ही हिंदू धर्म विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म कहलाता है | जो पहला कहलाता यदि यहूदि DNA के मनुवादीयों के द्वारा हिंदू बनकर मुल हिंदूओं के साथ छुवा छुत जैसे शोषण अन्याय अत्याचार करके दुसरे धर्मो में जाने के लिये बहुत से मुलनिवासियों के जिवन में अति बुरे हालात न पैदा किया जाता | जैसे की मनुवादीयो ने मनुस्मृति लागु करके कभी किये थे | जिस मनुस्मृति को अंबेडकर ने जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना तो कर दिये हैं , पर फिर भी मनुस्मृति का भुत अब भी इस देश में मंडराना जारी है | क्योंकि अब भी छुवाछुत के साथ साथ विभिन्न तरह के शोषण अत्याचार मनुवादीयो द्वारा किया जाना जारी है | जैसे की आजतक भी कहीं कहीं मंदिरो के बाहर शुद्र का प्रवेश मना है बोर्ड लगा मिल जाता है | जिस भेदभाव के खिलाफ अंबेडकर ने भी आंदोलन चलाये थे | हलांकि जब हिंदू मंदिरो का सबसे पहले निर्माण सुरु हुआ था तो वहाँ पर वेद ज्ञान बांटी और ली जाती थी , न की देवी देवताओं की पुजा होती थी | अथवा आज जो हिंदू मंदिर के नाम से देवी देवताओं की मंदिर है , उन मंदिरो का निर्माण सबसे पहले ज्ञान मंदिर के रुप में हुआ था | क्योंकि उस समय लिखाई पढ़ाई की सुरुवात दुनियाँ में कहीं नही हुआ था | इसलिए सिर्फ वेद ज्ञान अथवा मुँह से बोलकर आवाज के जरिये ही ज्ञान बांटा जाता था | और कान से सुनकर वेद ज्ञान लिया जाता था | जिस वेद ज्ञान को ही लेने और बांटने से मनुवादियों ने मनुस्मृति लागू करके इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित करके रोक लगा दिया था | जिसके लिये उन्होने यह नियम कानून बनाया कि शुद्र यदि वेद ज्ञान सुनेगा तो उसके कान में गर्म पिघला लोहा डालकर उसे बहरा कर दिया जायेगा | ताकि वह फिर कभी वेद ज्ञान सुन ही न सके | और यदि वेद बोलेगा तो उसका जीभ काटकर उसे गुंगा बना दिया जायेगा | ताकि वह फिर कभी वेद बोल ही न सके | बल्कि रामराज में तो शंभुक प्रजा के द्वारा छिपकर वेद ज्ञान लेने पर राजा राम ने उसकी हत्या तक कर दिया था | जिस तरह की प्रजा सेवा मनुवादीयों द्वारा इस देश के मुलनिवासियों के साथ हजारो सालो से होना समय समय पर जारी है | बल्कि ऐसी प्रजा सेवा करते करते मनुवादियो ने अपने पुर्वजो को भगवान बताकर वेद ज्ञान मंदिरो में उनकी मुर्ति बिठाकर बाहर यह बोर्ड लगाने सुरु कर दिये कि मंदिर में शुद्र का प्रवेश मना है | जिनका वश चले तो मनुस्मृति लागु करके संसद में भी सिर्फ खुदको सांसद घोषित करके संसद के बाहर भी ये बोर्ड लगा देंगे कि अंदर शुद्र का प्रवेश मना है | तभी तो ब्रह्मण बाल गंगाधर तिलक ने इस देश के मुलनिवासियों के बारे में अपने विचार व्यक्त किया था कि “ तेली, तंबोली, कुंभट, खाती, कूर्मी और पाटीदार, ये सभी विधिमंडल में जाकर क्या हल चलायेंगे ? जो हल न चला पाने की वजह से ही तो मनुवादी घुमकड़ जिवन जिते हुए लुटपाट से अपना पेट पालने इस कृषि प्रधान देश में हजारो साल पहले प्रेवेश किये थे | जो इस तरह से लुटपाट की मकसद से प्रवेश नही करते यदि वे उस समय खेती करना जानते और एक जगह सागर की तरह स्थिर होकर अन्न की खेती करके अपना पेट पालना जानते | जो कृषि कार्य न सिख पाने कि वजह से वे इस कृषि प्रधान देश में आकर कृषि में मदत करने वाले पशुओं की लुटपाट और चोरी करने लगे | क्योंकि इस देश में प्रवेश करने से पहले वे भले अन्न की रोटी पकाना नही जानते थे पर पशु बोटी नोचना जरुर जानते थे | जिसके बारे में वेद पुराणो में भी जानकारी भरे पड़े हैं कि इंद्रदेव द्वारा पशुओं की चोरी और लुट करके किस तरह से पशुओं को बांटने के लिए यज्ञ हुआ करते थे | बल्कि आज भी मनुवादी सत्ता में यूँ ही बोटी की पिंक क्रांती नही आई है | खैर ये तो मनुवादीयों के पास खेती करने की हुनर मौजुद न रहने की वजह से क्या खास खराबी और खास हुनर भी अबतक भी उनके अंदर कायम है , इसकी सिर्फ झांकी है | पर इसकी वजह से मनुवादी प्राकृति से भी चूँकि कोई खास जुड़ा हुआ नही रहता है , इसलिए उसकी अप्राकृति ढोंग पाखंड के बारे में भी वेद पुराण में मिलावट और छेड़छाड़ भरे पड़े हैं | जिस अप्राकृति मान्यताओं की पुजा देवता पुजा भी है | जो की भगवान पुजा नही है | क्योंकि भगवान पुजा साक्षात प्राकृति और विज्ञान प्रमाणित पुजा है | जो न तो भेदभाव करना सिखाता है , और न ही अँधविश्वासी होना सिखाता है | जिस प्राकृति का ज्ञान सभी धर्मो के साथ साथ नास्तिक लोग भी अपने बुद्धी का विकाश करने के लिए लेते हैं | जबकि ये मनुवादी प्राकृति भगवान पुजा में भी भेदभाव करते हैं | और अँधविश्वासी बनने के लिए झुठे ज्ञान भी बांटते हैं | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि ये मनुवादी उस मनुस्मृती बुद्धी को उच्च मानते हैं , जिसमे इंसान का जन्म मुँह छाती जँघा और चरणो से हुआ था ऐसी अप्राकृति ज्ञान इनके भ्रष्ठ बुद्धी में भरे पड़े हैं | जिस बुद्धी से मनुवादीयों ने हिंदू वेद पुराणो में भी छेड़छाड़ और मिलावट किया है | जिस छेड़छाड़ और मिलावट की वजह से ही तो मनुवादी अपने पुर्वज देव को भगवान कहकर उनकी मुर्तियों की पुजा आजतक भी आँख मुँदकर अपने बच्चो और इस देश के मुलनिवासियों के भी बच्चो को करवाते आ रहे हैं | जिन देवो की मुर्ति भी छुवाछुत और भेदभाव करता है | तभी तो आजतक भी कहीं कहीं मंदिरो के बाहर ये बोर्ड लगा मिल जाता है कि अंदर शुद्र प्रवेश न करें | जो बोर्ड हिंदू पुजा स्थलो में तब से लगनी सुरु हुई जबसे मनुवादियों ने हिंदू भगवान अपने पुर्वज देवो को घोषित करके हिंदू पुजा स्थलो में भी देवो की मूर्ति को लगाना सुरु किया होगा | जिसके बाद से हिंदू पुजा स्थलो को देव मंदिरो में अपडेट करके भेदभाव का बोर्ड लगाना सुरु हुआ | जिस तरह के भेदभाव के खिलाफ बहुत सारे आंदोलन हुए हैं | जिन आंदोलनो में अंबेडकर द्वारा मनुवादीयों के विरोध में मनुस्मृति को जलाया गया था | क्योंकि मनुस्मृति छुवाछुत शोषण अत्याचार और ढोंग पाखंड को बड़ावा देता है | जिसके खिलाफ आंदोलन चलाने और मनुस्मृति को जलाने के बावजुद भी जब मनुवादी अपनी भेदभाव विरासत को नही छोड़े तो जिवन के अंतिम छनो में अंबेडकर ने अपने पुर्वजो की मुल विरासत हिन्दू धर्म को मनुवादियों का धर्म कहकर उस बौद्ध धर्म को अपना लिया जिसमे भी मनुवादीयों की तरह ही ढोंगी पाखंडी मौजुद हैं | जो अपना ढोंग पाखंड का व्यापार करने के लिए सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की बाते करके खुब सारा दान इकठा करके और उससे सार्वजनिक मंदिरो का तो निर्माण करते हैं , पर वे भी मनुवादीयों की तरह ही कई बौद्ध मंदिरो में भेदभाव करते हैं | वैसे तो बौद्ध धर्म भी प्राकृति प्रमाणित बुद्धी की बात करता है , पर बौद्ध धर्म में भी अँधविश्वास का ढोंग पाखंड किस तरह से चल रहा है रोजमरा जिवन में छिपी नही है | लेकिन भी अपने बौद्ध धर्म में दुसरे धर्मो के लोगो को जोड़ने के लिए बौद्ध धर्म के बहुत से प्रचारक ये कहते फिरते हैं कि बौद्ध धर्म में भेदभाव नही होता है | मूर्ति पुजा नही होता है | और कोई भी बौद्ध धर्मगुरु भेदभाव नही करता है | जिस तरह का सफेद झुठ से ही पता चल जाता है कि बौद्ध धर्म में भी कपटी और झुठे मनुवादी भरे पड़े हैं | जो स्वभाविक है , क्योंकि बौद्ध धर्म का जन्म हिन्दू धर्म में मनुवादीयो द्वारा कब्जा किये जाने के बाद हुआ है | जिसके चलते बुद्ध को हिन्दू अवतार में एक माना जाता है | जो मनुवादी किसी मुलनिवासी को अवतार घोषित नही कर सकते , क्योंकि मनुवादी के लिए इस देश के मुलनिवासी शुद्र और निच हैं | जो शुद्र और निच बुद्ध को नही माना गया हैं | और बौद्ध धर्म के खास अवतार माने जाने वाले बुद्ध का जन्म वाकई में क्षत्रिय परिवार में ही हुआ था | क्योंकि बुद्ध जन्म के समय मनुवादी ढोंगी पाखंडीयों का दबदबा बुद्ध के परिवार में भी मौजुद था | जिसके चलते वे बुद्ध को वेद पुराण की बुद्धी देने के लिए बुद्ध के महलो में कई कई ब्रह्मण पंडित आते जाते थे | क्योंकि क्षत्रिय परिवार में जन्मे बुद्ध शुद्र नही थे कि वे उससे छुवाछुत करते ! जाहिर है यदि बुद्ध वाकई में शुद्र होते तो उन्हे वेद पुराणो की बुद्धी देने के लिए मनुवादी ब्रह्मण पंडितो की लाईन उनके महलो में नही लगती , बल्कि बुद्ध के साथ भी वही भेदभाव व्यवहार होता जैसा कि अंबेडकर समेत बाकि भी मुलनिवासियों के साथ निच शुद्र अच्छुत कहकर होता था | बल्कि आज भी बहुत से जगहो में होता है | हलांकि चूँकि बुद्ध के माता पिता विवाह करने के लंबे समय बाद भी औलाद से वंचित थे , अथवा उनका कोई औलाद नही हो रहा था जो कि बहुत बाद में जंगलो में एक शाल पेड़ के निचे बुद्ध का जन्म हुआ था बतलाया जाता है , इसलिए क्या पता वाकई में बुद्ध का जन्म शाल वृक्ष के जंगलो में रहने वाले मुलनिवासियों के परिवार में ही हुआ हो ! जो शाल वृक्ष का जंगल अखंड मगध में भरे पड़े हैं | और मगध से बुद्ध का खास रिस्ता है | और जिस तरह की बाते बतलाया जाता है कि  बुद्ध का जन्म शाल वृक्ष के निचे हुआ था वह भी महलो में रहने वाली रानी ने शाल पेड़ के निचे बच्चे को जन्म दिया था यह बाते तर्क संगत नही लगती है | क्योंकि प्रयोगिक जिवन में मैने भले कई उदाहरन जंगलो में पेड़ के निचे बच्चा होने के बारे में सुना है , बल्कि मेरे एक रिस्तेदार जो की गांव में रहता है , उसने एकबार मुझे बताया था की उसकी एक दोस्त की पत्नी ने भी शाल वृक्ष के जंगलो में गर्भवती अवस्था में भी लकड़ी चुनने जब गई हुई थी और लकड़ी का बोझा ढोकर अपनी सहेलियों के साथ आ रही थी तो जंगल में ही माँ बन गयी थी | अथवा अपने बच्चे को जन्म दी थी | जैसे की अक्सर खबरे भी दर्ज होती रहती है कि गरिब महिलायें कई बार गरिबी की वजह से ठीक से इंतजाम न होने की वजह से रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे देती है | लेकिन भी ज्यादेतर गरिब परिवार में भी बच्चे घरो में ही जन्म लेते हैं | जिसके चलते मेरे विचार से तो आज के समय में भी यदि किसी मध्यम परिवार की महिला भी गर्भवती होगी तो उसे ऐसी गर्भवती अवस्था में या तो बहुत पहले ही मायके भेज दिया जायेगा या फिर उसे अपने ससुराल में ही सुरक्षित बच्चे को जन्म देने तक खास ख्याल रखा जायेगा | न कि बहुत बड़ी लापरवाही करते हुए उसके लिए जंगल में पेड़ के निचे बच्चे को जन्म देने जैसे बुरे हालात बनाये जायेंगे  | और फिर बुद्ध के माता पिता तो वैसे राजा रानी थे जो उस महल में रहते थे जहाँ पर सारी सुख सुविधा और सुरक्षा उपलब्ध थी ऐसा बतलाया जाता है | हलांकि रामायण का राजा राम की पत्नी सीता ने भी अपने दो बच्चे लव कुश को जंगलो में ही जन्म दि थी | और जैसा कि हमे पता है कि राम को भी क्षत्रिय माना जाता है | जो अपनी पत्नी को एक धोबी के कहने पर कि तुम्हारी पत्नी के पेट में रावण का नाजायज औलाद पल रहा है ऐसी शकभरी बातो को भी बाकि लोगो की बातो से और यहाँ तक की अपनी उस पत्नी की भी बातो से ज्यादा महत्व दिया जिस पत्नी को उसने अग्नि परीक्षा तक लेके रावणराज से अजाद कराकर रामराज में प्रवेश कराया था | जिस सीता को राम ने गर्भवती अवस्था में भी जंगलो में भेज दिया था | जहाँ पर सीता ने वाल्मीकी के कुटिया में लव कुश को जन्म दि थी | जो लव कुश रामराज राजधानी अथवा शहरी अयोध्या महलो के वारिस होते हुए भी जंगली बच्चा बनकर जंगली जिवन जीये थे | जिन्हे अपने पिता राम के साथ अपनी माँ सीता के साथ रहने का कभी नसीब ही नही हुआ था | बुद्ध तो जंगल में जन्म लेकर महलो में ही जवानी तक का वैवाहिक जिवन जीया और वेद पुराणो का ज्ञान भी हासिल किया | जिसके बाद वापस जंगलो में जाकर तप करके कई कई विद्वान पंडितो के द्वारा ज्ञान डिग्री से भी ज्यादा बड़ी बुद्धी हासिल किया | जिसे हासिल करने के बाद ही तो यह कहा जाता है कि बुद्ध को बिना गुरु के पेड़ के निचे उस बुद्धी की प्राप्ति हुई थी जिसके सामने बड़े बड़े महंगे विद्यालयो में प्राप्त बड़े बड़े उच्च ज्ञान की डिग्री फेल है | मेरा तो मानना है बुद्ध को इस देश के मुलनिवासियों के संपर्क में आकर इस देश की मुल सभ्यता संस्कृति और मानवता प्राकृति पर्यावरण पर अधारित मुल हिन्दू धर्म का ही अंश ज्ञान प्राप्त हुआ था | जिसके बल पर बाद में बौद्ध धर्म का जन्म हुआ है | जिसमे मौजुद प्राकृति विज्ञान प्रमाणित ज्ञान हिन्दू धर्म में मौजुद मानो सागर ज्ञान का ही कुछ बुंदे है | जिसे बुद्ध ने मुल हिन्दूओं से इसलिए प्राप्त किया था , क्योंकि बुद्ध को मनुवादीयों ने हिन्दू वेद पुराण का ज्ञान देते समय मुल हिन्दू ज्ञान में मिलावट और छेड़छाड़ करके दिया था | जिसके चलते बुद्ध को अपने महलो से बाहर निकलकर ही मुल हिन्दूओं से इंसान का प्रयोगिक जिवन मरन ज्ञान और पर्यावरण और मानवता का ज्ञान को जमिनी स्तर से उस साक्षात प्रमाणित प्राकृति के बिच में जाकर सिखने को मिला , जिस प्राकृति की पुजा हिंदू धर्म में भगवान के रुप में होता है |  जिसे और भी अधिक बेहत्तर तरिके से हासिल करने के लिए बुद्ध को उन जंगलो में ही जाना पड़ा जहाँ से जन्म से लेकर मरन तक का खास रिस्ता सिर्फ इस देश के मुलनिवासियों का ही जुड़ा रहता है | वैसे बुद्ध का भी जन्म शाल पेड़ के निचे जंगलो में ही हुआ था यह बतलाया जाता है | जिसके चलते मुमकिन है बुद्ध के असली माता पिता इस अखंड देश के मुलनिवासी ही हो , जिनके बच्चे को महलो में रहने वाले उस राजा रानी ने गोद लिया हो जो जवानी से अधेड़ होने तक भी माता पिता नही बन पा रहे थे |  जिसके चलते हो सकता है अपना वारिस के तौर पर उन्होने किसी जंगली या ग्रामीण बच्चे को गोद लेकर महलो में तो पाला पोसा और पढ़ाया भी पर चूँकि डीएनए का भी आखिर कोई रिस्ता होता है , इसलिए बुद्ध को डीएनए की ओर खास आर्कषण की वजह से जंगलो और मुलनिवासियों की ओर खास झुकाव हुआ और उस क्षत्रिय परिवार के प्रति लगाव कम होता गया जिसने बुद्ध को जिवन मरन का ज्ञान भी देना जरुरी नही समझा और बुद्ध को बाल बच्चेदार होने तक भी महलो में मानो कैद रखकर बाहरी उस गुलामी जिवन से दुर रखा जहाँ पर हो सकता है बुद्ध के असली माता पिता मनुवादीयों के द्वारा गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार किये जा रहे थे | जिसके बारे में जब बुद्ध को चोरी छुपे महलो से बाहर जाकर ज्ञान हुआ तो उन्होने मनुवादीयों के द्वारा किये जा रहे ढोंग पाखंड और भेदभाव का विरोध भी करना सुरु करके ये साबित करना सुरु कर दिया था कि उसे इस देश के मुलनिवासियों की जिवनशैली में ही असल में मानवता और पर्यावरण नजर आता है | न की मनुवादीयों की जिवनशैली में | जिसके चलते मुझे भी लगता है बुद्ध क्षत्रिय नही बल्कि वाकई में मुलनिवासी परिवार में जन्मा होगा | जिसका अवशेष यदि अब भी मौजुद होगा तो मेरे विचार से तो उसका डीएनए से मनुवादीयों का डीएनए से मिलान किया जाना चाहिए , ताकि पुर्ण रुप से पता चल सके कि बुद्ध क्षत्रिय थे की शुद्र ? मुमकिन है बुद्ध का डीएनए भी इस देश के मुलनिवासियों से ही मिलेगा |

इतनी बड़ी साक्षात दुनियाँ बनाकर वह खुद छिपा हुआ क्यों है ?

इतनी बड़ी साक्षात दुनियाँ बनाकर वह खुद छिपा हुआ क्यों है ? 

इंसान और जानवर वगैरा ही बलात्कारी हो सकते हैं भगवान नही | और देव दानव दोनो ही इंसान थे न की देव भगवान थे की उनकी पुजा की जाय | क्योंकि यदि देव दानव दोनो ही अलग अलग प्राणी थे फिर अहिल्या का बलात्कारी इंद्रदेव का लिंग इंसान के लिंग जितना और दानव का बरगद का पेड़ जितना होने से देव दानव आपस में शारिरिक रिस्ता कैसे जोड़ते थे ? क्योंकि दानव असुर के दांत और शरिर यदि विशाल विशाल होते थे , जैसा की भक्ती धारावाहिको और फिल्मो में दिखलाया जाता रहा है , तो फिर उनके लिंग तो बरगद के पेड़ जितने होते होंगे और योनी दरवाजा जितने ! और यदि वाकई में ऐसा होता होगा फिर इंसान योनी से पैदा हुआ भीम आखिर दानव घटोत्कक्ष का पिता कैसे बना ? जबकि वह अपने शरिर और लिंग के आकार से दानव कन्या से संभोग करने के काबिल ही नही हो सकता था ? देव दानव जब एक दुसरे से पारिवारिक रिस्ता जोड़ते थे फिर दानव असुरो को देवो के आकार से कई गुणा बड़ा क्यों बतलाया और दिखलाया जाता रहा है ? क्योंकि दानव असुरो के दांत यदि बड़े बड़े और शरिर विशाल होते थे , फिर तो उनके लिंग भी मोटे बरगद के पेड़ जितने होते होंगे , और महिलाओ के योनी भी दरवाजे जितने लंबे चौड़े होते होंगे ! जिन्हे ढकने के लिए उनके वस्त्र आभुषण भी विशाल विशाल होते होंगे | और यदि दानव असुर बल्कि देव भी अपना शरिर को छोटा बड़ा कर सकते थे , फिर आखिर देव दानव की वर्तमान नई पिड़ी अपने पुर्वजो के जैसा खुदको और अपने लिंग योनी को छोटा बड़ा क्यों नही कर पाते हैं ? वे भी अपने लिंग योनी को अपनी इच्छा अनुसार छोटा बड़ा करके संभोग करते ! जो न करके वे क्यों मात्र चंद इंच अपना लिंग को बड़ा करने के लिए भी विभिन्न तरह का उपचार करते रहते हैं | और साथ ही खुब सारा धन खर्च करके चमत्कारी तेल लगाते रहते हैं | जबकि उनके पुर्वज अपनी इच्छा से जब चाहे अपना लिंग को बरगद के पेड़ से भी ज्यादे मोटा और सुई जितना भी पतला कर सकते थे ! 

दरसल दानव असुरो को अपने से अलग प्राणी बतलाने के लिए मनुवादीयों ने यह सब झुठी और काल्पनिक अप्रकृति जानकारियाँ तैयार किया है | 
क्योंकि प्रकृति प्रमाणित सच्चाई तो यही है कि दानव असुर के लिंग योनी वैसे ही थे जैसे की वर्तमान में इंसानो के लिंग योनी के आकार होते हैं | देव दानव दोनो ही आपस में संभोग कर सकते थे | जैसे की इंद्रदेव ने पुलोमा दानव कन्या शचि से संभोग करके जयंत का पिता बना था | और मय दानव का भी विवाह हेमा अप्सरा से हुआ था | जिससे मन्दोदरी का जन्म हुआ था | जो कि अप्सराओं का योनी वर्तमान के इंसानो के योनी जितने आकार का और दानव का लिंग बरगद का पेड़ जितने मोटे आकार का होने से मुमकिन नही था | और न ही दानव कन्याओं का योनी दरवाजे जितने चौड़े होने से महाभारत के भीम द्वारा दानव घटोत्कक्ष का पिता बन पाना मुमकिन हो पाता | जैसा कि ढोंगी पाखंडी मनुवादी लोग दानवो को विशाल पहाड़ो जैसा बतलाते रहते हैं | और ढोंग पाखंड से ब्रेनवाश हुए लोग आँख मुँदकर विश्वास करते रहते हैं | वैसे घटोत्कक्ष के शरिर में यदि भीम का DNA दौड़ रहा था तो वह दानव कैसे हुआ ? और अगर इसका कारन कोई यह बतलाना चाहता है कि घटोत्कक्ष चूँकि दानव कन्या के गर्भ से जन्मा था , इसलिए दानव कहलाया | फिर तो रामायण में दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी के गर्भ से जन्मा रावण को भी दैत्य कहा जाना चाहिए | क्यों उसे ब्रह्मण कहा जाता है ? उसी तरह क्षत्रिय भीम का पुत्र घटोत्कक्ष को भी क्षत्रिय कहा जाता | बल्कि यदि भीम का पुत्र घटोत्कक्ष का जन्म को आधार मानकर किसी की पहचान तय किया जाय फिर तो दानव कन्या के गर्भ से जन्मे सभी कथित उच्च जाति की औलादे दानव कहलायेंगे | वेदकाल से लेकर रामायण और महाभारत काल बल्कि वर्तमान काल में भी मौजुद सारे कथित ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य कहलाने वाली उच्च जाती सभी दैत्य दानव असुर कहलायेंगे | क्योंकि DNA रिपोर्ट से ये प्रमाणित हो चुका है कि कथित उच्च जाती कहलाने वालो की माँओं के भितर भी इस देश के मुलनिवासि महिलाओं का ही M DNA मौजुद है | अथवा चाहे कथित उच्च जाती की महिला हो या फिर निच जाती की महिला , दोनो ही के भितर वही M DNA दौड़ रहा है , जो की घटोत्कक्ष की माँ के अंदर दौड़ रहा था | क्योंकि मनुवादी अबतक भी घटोत्कक्ष को दानव और घटोत्कक्ष के पिता भीम को उच्च जाति का इंसान बतलाते आ रहे हैं | जिसका मतलब साफ है कि मनुवादीयों ने इसी देश की जिन महिलाओं से अपना वंशवृक्ष बड़ाने की सुरुवात करके मनुस्मृति लागु करके उन्हे उच्च जाती की महिला घोषित कर रखा है , वह महिला यदि मनुवादीयों के DNA वाले बच्चो को जन्म देती आ रही है , तो वह बच्चा उच्च जाती का कहलाता आ रहा है | और मनुवादीयों ने जिन महिलाओं को निच जाती व राक्षसनी दानव घोषित कर रखा है , वह नारी यदि किसी मनुवादी का DNA का बच्चा को भी जन्म देती है , तो वह बच्चा ज्यादेतर निच जाती व दानव असुर कहलाता है | जैसा की कथित उच्च जाति का क्षत्रिय भीम डीएनए का बच्चा घटोत्कक्ष को दानव कहा जाता है | जबकि उसका पिता भीम तो दानव नही था | जिसका ही DNA का घटोत्कक्ष पैदा हुआ था | और चलो मान भी लेते हैं कि उस समय चूँकि DNA के बारे में कोई भी इंसान नही जानता था , इसलिए भीम का पुत्र घटोत्कक्ष को दानव कहा गया | पर तब भी क्या हम ये समझें की भीम को ये पता नही था कि जब भी कोई पुरुष किसी महिला से संभोग करके उसे गर्भवती करता है , तो गर्भ में पल रहे बच्चे के अंदर उसके माता पिता दोनो का ही अंश दौड़ रहा होता है | और यदि पता था तो फिर यह भी जरुर पता होगा कि किसी के खानदान का वंशवृक्ष में उसका पुत्र का नाम जरुर जुड़ता है | जैसे कि भीम के खानदान का वंशवृक्ष में घटोत्कक्ष का नाम जरुर जुड़ा है | और जब भीम के खानदान का वंशवृक्ष में घटोत्कक्ष का नाम जुड़ा है , तो निश्चित तौर पर घटोत्कक्ष पांडव खानदान का वंशज कहलायेगा | और जब घटोत्कक्ष पांडव खानदान का वंशज कहलायेगा तो निश्चित तौर पर उसका पिता भीम यदि इंसान था तो उसका बेटा घटोत्कक्ष भी इंसान ही जन्म लेगा , न की भीम इंसान तो उसके वीर्य से जन्मा बच्चा दानव जन्म लेगा | जैसा कि महाभारत में घटोत्कक्ष को दानव कहा गया है | जबकि वहीं रामायण में दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी के गर्भ से जन्मा रावण को ब्रह्मण कहा गया है | जिसमे तर्क दिया जाता है कि रावण ब्रह्मण विश्रवा का पुत्र था , इसलिए उसे ब्रह्मण कहा जाता है | जबकि महाभारत में क्षत्रिय भीम का पुत्र घटोत्कक्ष को दानव कहा जाता है | मनुवादी वेद पुराणो के साथ छेड़छाड़ और मिलावट करके इस तरह की दोगला ज्ञान बांटकर दरसल यही साबित करते आ रहे हैं कि चूँकि वे दोगला औलादे हैं , जिनका जन्म यूरेशिया के पुरुष और इस देश की नारी के संभोग से हुआ है , इसलिये ऐसी दोगला ज्ञान बांटते आ रहे हैं | जो कड़वा सत्य उन्हे स्वीकारनी ही पड़ेगी , तभी उनसे दोगला ज्ञान नही बटेगी | हलांकि जो दोगला औलाद है उसकी पहचान तो दोगला ही बना रहेगा | जैसे कि इस देश में जन्मे मनुवादीयों की जन्म पहचान दोगला औलाद बना रहेगा | पर मनुवादीयों के पुर्वज दोगला नही थे यह भी ध्यान रखा जायेगा , अथवा सुरुवात में प्रवेश करने वाले यूरेशियन देव दोगला औलादें नही थे | क्योंकि वे यूरेशिया के ही पुरुष स्त्री से जन्मे बच्चे थे , जो इस देश में पुरुष झुंड बनाकर आए और इस देश की नारी से अपना दोगला वंशवृक्ष बड़ाये | क्योंकि DNA प्रमाणित हो चुका है कि इस देश में जन्मे मनुवादी यूरेशिया के पुरुष और इस देश की नारी के संभोग से जन्म लिये सभी दोगला बच्चे हैं | इसलिए दोगला ज्ञान ही उनके भितर भरी पड़ी है | जिसे वे अपने लाभ और जरुरत के मुताबिक बांटते रहते हैं | सत्य ज्ञान बांटने से जहाँ बहुत हानि होता है वहाँ पर दोगला ज्ञान बांटी जाती हैं | और जहाँ उन्हे हानि होती है वहाँ पर मिलावटी झुठी ज्ञान बांटी जाती है | जैसे की महाभारत में क्षत्रिय भीम का पुत्र घटोत्कक्ष को दानव पुत्र कहा जाता है , तो रामायण में ब्रह्मण विश्रवा का पुत्र रावण को ब्रह्मण कहा जाता है | जबकि दोनो पुत्र जब दैत्य दानव की पुत्रियों के गर्भ से जन्मे थे तो दोनो को या तो महिला प्रधान वंशवृक्ष जैसे कि दैत्य कन्या के गर्भ से जन्मे बच्चे को दैत्य और दानव कन्या के गर्भ से जन्मे बच्चे को दानव कहो या फिर पुरुष प्रधान वंशवृक्ष ब्रह्मण पुरुष के वीर्य से जन्मे बच्चे को ब्रह्मण और क्षत्रिय पुरुष के वीर्य से जन्मे बच्चे को क्षत्रिय कहो | और यदि ज्ञान बांटते समय ठीक है मान लेते हैं छोटी बड़ी गलती सबसे होती है , पर किसी गलती के बारे में जैसे ही पता चले तो उसे सुधार लो | पर सैकड़ो हजारो सालो से इन गलतियों में सुधार अबतक क्यों नही हुआ है ? क्योंकि दोगला मनुवादीयो ने मनुस्मृति लागु करके जबसे उच्च निच भेदभाव की सुरुवात किया है , तबसे उच्च निच भेदभाव के बावजुद भी यदि प्रेम विवाह वगैरा के माध्यम से आपस में दोगला रिस्ते जुड़ भी जाते हैं , तो भी मनुवादीयों का भेदभाव नजरिया दोगला सोच होने की वजह से कायम रहता है | जिसके चलते ही तो वेदकाल में जो इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वज दानव और मनुवादीयों के पुर्वज देव कहलाते थे , वे आपस में रिस्ता जोड़ने के बाद आज उनकी नई पिड़ि को किसी को उच्च तो किसी को निच जाती कहा जाता हैं | जबकि दोनो के साथ वेदकाल में पारिवारिक रिस्ता यदि जुड़ता आ रहा है , तो या तो दोनो के रिस्तेदारी से जन्मे बच्चे को शुद्र कहो या फिर उच्च कहो | उच्च निच में भी दोगलापन क्यों ? ठीक है इसी देश का पुरुष और इसी देश की नारी की रिस्तेदारी से जन्मे सभी बच्चे को मनुवादीयों द्वारा निच कहा जाता है यह तो खैर दोगलापन ज्ञान नही है , बल्कि भेदभाव है | पर यूरेशिया से आए हुए पुरुष और इस देश की नारी का रिस्ता जुड़कर जो बच्चे जन्म लेते हैं , उसे यदि उच्च निच बताकर अलग अलग दो पहचान दिया जाता है तो साफ मनुवादीयों की दोगलापन ज्ञान नजर आता है | 

बल्कि आज भी बहुत सारे उदाहरन कथित उच्च निच जाति के साथ दोगला पारिवारिक रिस्ता जुड़ते हुए मिल जायेंगे | लेकिन उन दोगला रिस्तो के रिस्तेदारो के बिच उच्च निच भेदभाव समाप्त नही होता है | जाहिर है अंतरजाती विवाह करने से उच्च निच भेदभाव समाप्त होगा यह विचार दरसल बहुत बड़ा भ्रम है | बल्कि अंतरजाती विवाह करने से बहुत बड़ा मुसिबत की सुरुवात हो जाती है | जैसे कि कभी हजारो साल पहले यूरेशिया से आए पुरुष और इस देश की नारी ने अंतरजाती विवाह करके मुसिबतो का पहाड़ खड़ा कर दिया है | क्योंकि उच्च निच भेदभाव और गुलाम दासप्रथा की सुरुवात यूरेशिया से आए पुरुषो से अंतरजाती विवाह करके ही हुआ है | नही तो मनुवादी कबका गोरो की तरह इस देश को छोड़कर चले जाते अपने उस परिवार के पास जिसे छोड़कर वे हजारो साल पहले इस देश में आकर इस देश की नारी से अंतरजाती विवाह करके यहीं पर बस गये हैं | बल्कि आज भी जो मनुवादी शासन कायम है , उसे कायम रखने में उच्च निच अंतरजातीय विवाह बहुत बड़ा भुमिका अदा कर रहा है | जाहिर है अंतरजातीय विवाह से भेदभाव समाप्त होगा यह दरसल बहुत बड़ा भ्रम है | जैसा की वेद पुराण में मौजुद मनुवादीयों के पुर्वज देवो से रिस्ता जोड़के उनकी पुजा करके उनके आशीर्वाद से शोषण अत्याचार करने वालो से ही उनके द्वारा दिये गए दुःख समाप्त होगा यह भी बहुत बड़ा भ्रम है | क्योंकि मनुवादीयों के पुर्वज देव ही तो इस देश के मुलनिवासियों के साथ शोषण अन्याय अत्याचार की सुरुवात किये हैं | और भारी तादार में हत्या और लुटपाट करके गुलामी और भुख जैसे दुःख देने का भी सुरुवात किये हैं | जैसे की देवो ने माली सुमाली और माल्यवान दानवो का राज्य लंका को लुटकर उसमे कब्जा किया था | जिस लुटपाट और कब्जा होते समय अनगिनत दानवो की हत्या भी हुई थी | और जो बच गए थे उन्हे अपनी जान बचाकर अपनी राजपाट छोड़कर जंगलो में छिपकर लंबे समय तक जिवन बिताना पड़ा था | जबतक की रावण ने दानवो की लंका को देवो से वापस न छिन लिया | जिस तरह की लुटपाट और हत्या के बारे में ढेरो सारी जानकारी वेद पुराणो में भरे पड़े हैं | लेकिन  चूँकि मनुवादीयों ने वेद पुराणो पर भी कब्जा करके उसमे मनुवादि सोच से ढोंग पाखंड और अप्रकृति ज्ञान की मिलावट और छेड़छाड़ कर दिया है , बल्कि छेड़छाड़ और मिलावट करके अपने पुर्वजो को बुराई का नाश करनेवाला कथित भगवान का अवतार और दानव असुरो को मानव जाती का नाश करने वाला नरभक्षी बतलाया है , इसलिए जो भी मुलनिवासि मिलावट और छेड़छाड़ किया हुआ वेद पुराणो में बतलाई गई नरभक्षी वगैरा झुठी बातो को सत्य मानकर विश्वास करता हैं , वह दानव असुरो को हैवान समझकर अपने ही पुर्वजो का इतिहास को नरभक्षो का इतिहास और गुलाम करने वाले मनुवादीयों का इतिहास को श्रेष्ठ व उच्च प्राणियों का इतिहास स्वीकारते आ रहा है | जिस तरह की मिलावट और छेड़छाड़ इतिहास के आधार पर ही तो भक्ती किताबे और भक्ती पर अधारित टी०वी० धारावाहिक फिल्मे व गाना वगैरा बनाकर खासकर नई पिड़ी को बचपन से ही ब्रेनवाश करने के लिए सुबह शाम विवादित भ्रष्ट ज्ञान बांटी जाती रही है | जिसके चलते इस देश के बहुत से मुलनिवासि मिलावट और छेड़छाड संक्रमण का शिकार बचपन से ही होते आ रहे हैं | जिससे की वे भितर से पुरी तरह से गुलाम होते चले गये हैं | भले क्यों न वे बाहर से खुदको मनुवादीयों से अजाद समझते हो | खासकर घर के भेदि तो मनुवादीयों का सबसे अधिक भितर से गुलाम बने हुए हैं | क्योंकि उनको सबसे अधिक ब्रेनवाश किया गया है | जिसके चलते उन्हे ठीक से समझ नही आता है कि जिसका साथ वे देते आ रहे हैं , वे लोग उनके परिवार खानदान और गणतंत्र का विनाश की तैयारी उन्हे बली का बकरा अथवा सिड़ी बनाकर कर रहे हैं | बाकि लोग तो ज्यादेतर गरिबी भुखमरी और अशिक्षा की वजह से मनुवादियों की कुसंगत से बाहर नही निकल पा रहे हैं | और कुसंगत के चलते वे यह समझ नही पा रहे हैं कि वेद पुराण में जिन देवो के बारे में बतलाया गया है वे भगवान नही बल्कि इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वजो के लिए हैवान से कम नही थे | क्योंकि देवो ने दानव असुरो के राज्यो में कब्जा करके उनकी धन संपदा की लुटपाट तो किया ही , पर नर नारी सबकी भारी तादार में हत्या भी किया और उनके राज्यो का विनाश भी किया | जिनकी पुजा मुलनिवासियों के द्वारा करने का मतलब अपने पुर्वजो के हत्यारो का पुजा करना है | लेकिन चूँकि मनुवादीयों ने भक्ती  फिल्मे , गाने , भक्ती किताबे , और फिर भक्ती धारावाहिक वगैरा के जरिये देवो को नायक और दानव असुरो को खलनायक सुबह शाम बताकर लगातार ब्रेनवाश करके लंबे समय से असत्य और ढोंग पाखंड को बड़ावा देकर बचपन से ही नई पिड़ी को पिड़ी दर पिड़ी भक्ती ज्ञान के नाम से उनकी बुद्धी को भ्रष्ट करके अँधविश्वास में ढकेला जाता आ रहा है , इसलिए बहुत से मुलनिवासी भ्रम में आकर अपने पुर्वजो के हत्यारे देवो की पुजा उन्हे भगवान समझकर करते आ रहे हैं | जिस भ्रम से छुटकारा पाने के लिए खासकर आधुनिक नई पिड़ी को सबसे पहले तो यह पता रहना चाहिए कि मनुवादीयों के पुर्वजो की पुजा भगवान पुजा नही है | जिस बात की सत्यता को कोई भी समझदार व्यक्ती यह जानकर खुद ही सोच विचार सकता है कि आखिर अहिल्या का बलात्कारी इंद्रदेव , तुलसी का बलात्कारी विष्णुदेव , और सरस्वती का बलात्कारी ब्रह्मदेव जैसे देवो की पुजा किसी भले इंसानो द्वारा क्या देख सुन और पढ़कर किया जायेगा ? जिन बलात्कारी देवो को पालनहार भगवान बतलाकर आज भी हिन्दु भक्ती किताबे लिखी जाती है | और भक्ती टी०वी धारावाहिक व फिल्मे गाने वगैरा में भी बलात्कारी ब्रह्मा विष्णु और इंद्र को सृष्टी का पालनहार भगवान बतलाया जाता है | जिन कथित देव भगवानो का मंदिर सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति में एक भी क्यों नही मिले हैं ? कैसे मिलते क्योंकि जब इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासि आधुनिक सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति में गणतंत्र का विकाश करके बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाते हुए प्रकृति भगवान की पुजा करते हुए सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे थे , उस समय कबिलई मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में जन्मे ही नही थे | क्योंकि उनके पुर्वज उस समय यूरेशिया में संभवता बिना वस्त्र के नंगा जिवन जी रहे थे | जो इस कृषी प्रधान देश में घुमकड़ जिवन जिते हुए आकर कपड़ा पहनना भी सिखे और इस देश की नारियों के साथ दोगला रिस्ता जोड़कर परिवार समाज के बारे में भी जाने | हलांकी चूँकि वे मुलता इस कृषि प्रधान देश के जमिन से जुड़े हुए लोग नही हैं , इसलिए कृषि कार्यो के बारे में अब भी उन्हे कोई खास दिलचस्पी नही है | क्योंकि उनके भितर उनके कबिलई पुर्वजो का खास उच्च छुवा छुत हुनर दौड़ रहा है | जिस खास उच्च हुनर के जरिये ही तो किसी को गुलाम बनाकर उसके साथ शोषण अत्याचार किया जाता है | जिस उच्च छुवा छुत हुनर को मनुवादी बचपन से ही अपने बच्चो को सिखलाना सुरु कर देते हैं | जिसके चलते ही तो देवो के वंशज बाल गंगाधर तिलक जैसे मनुवादीयों को अपनी यह विचार इतिहास में दर्ज करना पड़ता है कि “ तेली ,तंबोली, कुंभट ,खाती , कूर्मी और पाटीदार , विधिमंडल में जाकर, क्या हल चलाएँगे ? ” जिस तरह की भेदभाव सोच विचारकर ही तो मनुवादीयों ने गोरो के हाथो से वापस अपने हाथो में इस कृषि प्रधान देश की सत्ता लेकर अपनी मनुवादी सोच के जरिये शोषण अत्याचार छुवा छुत को डीजिटल शाईनिंग अपडेट किया है | जिन्होने इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों को गुलाम करके छुवाछुत शोषण अत्याचार करने वाली अपने पुर्वजो की परंपरा को गोरो से अजाद देश में भी आगे इसलिए बड़ाया है , क्योंकि मनुवादीयों के भितर अब भी इंसानियत का विकाश इतना भी नही हो सका है कि वे शोषण अत्याचार छुवा छुत जैसे सड़ी गली भ्रष्ट परंपरा को भी पुरी तरह से छोड़ सके | जिस तरह की परंपरा को अपनाकर कोई आधुनिक इंसान बनना तो दुर आधुनिक जानवर जैसा भी सोच भलाई के प्रति नही रख सकता है | जैसे की मनुवादी नही रखते हैं | जो इस देश के मुलनिवासियों का कभी भी भला नही कर सकते | जिसके चलते ही तो इस कृषि प्रधान देश में इस देश के जागरुक मुलनिवासियों को मनुवादीयों से पुर्ण अजादी चाहिए | जिसके लिए वे हजारो सालो से पिड़ी दर पिड़ी संघर्ष कर रहे हैं | क्योंकि मनुवादी इस देश के मुलनिवासियों के साथ जानवरो से भी ज्यादा बुरा व्यवहार लंबे समय से करते आ रहे हैं | जानवरो के भी कान में गर्म पिघला लोहा नही डाला जाता है | और न ही जीभ और अँगुठा काटा जाता है | बल्कि जानवरो से मैला भी नही ढुलवलाया जाता है | पर मनुवादीयों ने ये सब भी किया है इस देश के मुलनिवासियों के साथ | जाहिर है मनुवादीयों के भितर इंसानियत का विकाश इस देश में आए हुए हजारो साल बितने के बाद भी अबतक ठीक से नही हुआ है | जिसके बावजुद भी मनुवादी खुदको उच्च और दुसरो को निच कहकर अपने पुर्वजो की पुजा भी करते और करवाते हैं | क्योंकि अबतक भी वे भितर से यह स्वीकार नही कर पाये हैं कि उनके पुर्वजो ने जो मनुस्मृति लागु करके घोर काले कुकर्म किये हैं , वह इंसानियत नही बल्कि हैवानियत थी | जिस तरह के हैवानियत से प्रत्येक भले इंसान को छुटकारा चाहिए रहता है | जैसे की इस देश के लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो को मनुवादीयों की हैवानियत से छुटकारा चाहिए | तभी इस देश में सुख शांती और समृद्धी वापस आयेगी | क्योंकि मनुवादीयों के चलते ही इस देश और इस देश के मुलनिवासियों का अति बुरे दिन चल रहे हैं | जो बुरे दिन मनुवादी सत्ता कायम रहने तक अच्छे दिन में परिवर्तन कभी होंगे ही नही | क्योंकि इतिहास रहा है कि गुलाम करने वाले अपने गुलामो का शोषण अत्याचार करते हैं | जिसके चलते ही तो कबिलई मनुवादी भी आजतक इतने लंबे समय तक इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले कृषि प्रधान देश की सत्ता में रहकर भी सुख शांती और समृद्धी शासन लाना तो दुर गरिबी भुखमरी बेरोजगारी और अशिक्षा को भी दुर नही कर पाये हैं | फिर भी वे खुदको इस कृषि प्रधान देश का सबसे बेहत्तर शासक ही नही , बल्कि दिन रात अपने कबिलई पुर्वजो को तो पुरे सृष्टी का संचालन करने वाला भगवान तक बतलाते रहे हैं | ढोंगी पाखंडी मनुवादी अपने पुर्वज अन्याय अत्याचारी और बलात्कारी देवो को हिन्दु भगवान बतलाकर खुब प्रचार प्रसार करते रहते हैं | जबकि सच्चाई तो ये है कि देवो ने ही तो इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वजो से उनकी सत्ता छिनकर इस देश की धन संपदा में कब्जा करके बड़े पैमाने पर लुटमार हत्या की सुरुवात किया है | जिनके काले कुकर्मो का इतिहास वेद पुराणो में भरे पड़े हैं | जिन वेद पुराणो को बस फिल्टर करके समझने की जरुरत है | गोरे और बाकि लुटेरे तो इस कृषि प्रधान देश में बहुत बाद में आए हैं | पर मनुवादीयों ने तो घर के भेदियों की सहायता से  इस देश को हजारो साल पहले ही गुलाम करने के बाद मनुस्मृति लागु करके खुदको जन्म से उच्च विद्वान पंडित और इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित किया हुआ है | जिसके बाद ही तो मनुवादीयों ने हिन्दु वेद पुराणो में कब्जा करके उसमे मनुवादी सोच की मिलावट और छेड़छाड़ किया है | जिसके बारे में जानकारी खासकर उन मुलनिवासियों को जरुर होनी चाहिए जिन्हे अबतक भी मनुवादीयों के पुर्वज देव पालनहार भगवान लगते हैं | तभी तो मनुवादीयों के द्वारा बतलाई गई झुठी बातो में विश्वास करके बहुत से मुलनिवासि अब भी अँधभक्त बनकर तुलसी , सरस्वती और अहिल्या के बलात्कारियो की अपराध को नजरअंदाज करके उन्हे हिन्दुओं का भगवान समझकर आँख मुँदकर सुबह शाम उनकी आरती उतारते रहते हैं | जबकि जैसा की हमे पता है कि कोई भी भला इंसान , किसी के द्वारा किया गया बलात्कार जैसे अपराध को आदर्श मानकर उसे अपने जिवन में  कभी भी अपनाना नही चाहेगा | हलांकि जिसदिन मनुवादीयों से पुर्ण अजादी मिल जायेगी उसदिन से कोई भी मुललनिवासी मनुवादीयों के पुर्वज देवो को हिन्दुओं का भगवान मानकर आरती कभी नही उतारेगा | वर्तमान में इसलिए उतारी जा रही है क्योंकि मनुवादीयों द्वारा गुलाम शासन में मनुवादीयों द्वारा विभिन्न माध्यमो से सुबह शाम ब्रेनवाश चलाने का ढोंग पाखंड अभियान चल रहा है | जिसके जरिये इस देश के मुलनिवासियों को हमेशा गुलाम बने रहने के लिए बचपन से ही ब्रेनवाश किया जा रहा है | क्योंकि मनुवादीयों को पता है कि जब कोई किसी का बुरी तरह से गुलाम हो जाता है तो उसके द्वारा किसी बलात्कारी की पुजा करना भी मुमकिन हो जाता है | क्योंकि गुलाम करने वाले की बुरी संगत में आकर ब्रेनवाश की वजह से किसी की बुद्धी गुलाम करने वालो से बुरी तरह से संक्रमित होकर वश में चुकि रहती है | जैसे की नशेड़ियों के संगत में रहकर बहुत से नशा न करने वाले भी ब्रेनवाश होकर वश में आकर नशेड़ी बन जाते हैं , और वे भी नशा में डुब जाते हैं | मनुवादीयों की बुरी संगत में आने वाले मुलनिवासियों के भितर भी ब्रेनवाश होकर धिरे धिरे गुलाम करने वालो के प्रति अँधभक्ती बड़ने लगती है | और वे भी अँधभक्ती में डुब जाते हैं | जिस अँधभक्ती को और अधिक बड़ाने के लिए ही तो दिन रात मनुवादी अपने पुर्वजो को भगवान बताकर ढोंग पाखंड नशा और झुठ का प्रचार प्रसार करके ब्रेनवाश करने में लगे रहते हैं | जिसके चलते ब्रेनवाश होकर अँधभक्ती में डुबे बहुत से मुलनिवासियों को ढोंग पाखंड का नशा करने और कराने वाले मनुवादीयों के बुरी संगत में रहकर सायद पता ही नही चल पाता है की मनुवादीयों के पुर्वज देवो ने उनके पुर्वजो के साथ क्या क्या अन्याय अत्याचार किया है | बल्कि वर्तमान में भी देवो की नई पिड़ी क्या क्या अन्याय अत्याचार लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कब्जा करके कर रही है , जिसके बारे में भी बहुत से मुलनिवासियों को मानो पता ही नही है ! जबकि वर्तमान के मनुवादीयों के द्वारा किये गए अन्याय अत्याचार के बारे में सभी मुलनिवासियों को पता होना चाहिए था | और साथ साथ मनुवादीयों के पुर्वजो के द्वारा किये गए शोषण अन्याय अत्याचार के बारे में भी पता होना चाहिए था कि ब्रह्मा विष्णु और इंद्रदेव जो की मनुवादी के पुर्वज हैं , उन्होने इस देश के मुलनिवासियों के हाथो से उनकी सत्ता छिनकर धन संपदा ही नही बल्कि उनकी बहु बेटियों का आबरु भी छिना है | और जैसा की हमे पता है कि बलात्कार करने वाले इंसान और जानवर वगैरा ही हो सकते हैं भगवान नही | जिन बलात्कारियों के कुकर्मो के बारे में अँधभक्तो को ज्ञान प्रदान करने के लिए तो देव मंदिरो में बलात्कारी ब्रह्मा विष्णु और इंद्रदेव की मूर्ति उनके द्वारा बलात्कार करते हुए आकार में बनाकर स्थापित करना चाहिए | तथा जितने भी देवताओ की फोटो बनाकर उसे बेचकर मनुवादी घर घर में देवो को हिन्दु भगवान बतलाकर ब्रेनवाश करके उनकी पुजा करा रहे हैं , उन देवो में जो भी देव बलात्कारी है , उनका फोटो भी उनके द्वारा बलात्कार करते हुए बनाकर बिकनी चाहिए | ताकि अँधभक्तो को आँख बंद करके पुजा करने के बाद आँख खुलते ही बलात्कार करते हुए फोटो या मूर्ति को देखकर मन की आँख खुल जाय और वे बलात्कारी देवो की पुजा करना छोड़ सके | क्योंकि बहुत से मुलनिवासियों के लिये देवो की अँधभक्ती छोड़ना उनके लिए मानो किसी खतरनाक ड्रक्स नशा छोड़ने से भी ज्यादे मुश्किल हो गया है | जिस अँधभक्ती नशे में डुबे रहने के कारन ही तो उन्हे बलात्कारी भी भगवान नजर आता है | जबकि उन्हे अब तो साफ नजर आना चाहिए था की बलात्कारी देव भगवान नही हो सकते | क्योंकि नारी का अपहरण करने वाले रावण को याद करके जब उनके द्वारा ही हर साल उसका पुतला जलाया जाता है फिर बलात्कारी ब्रह्मा विष्णु और इंद्रदेव का पुजा उनके द्वारा ही क्यों किया जाता है ? जबकि सबको पता है कि नारी का अपहरण से भी ज्यादे बड़ा अपराध नारी का बलात्कार करना होता है | हलांकि नारी का अपहरण हो या बलात्कार हो दोनो ही कुकर्म है | जिसे करने वाले भगवान तो क्या सही इंसान भी नही कहलाते | और वैसे भी इस देश में चाहे वेदकाल हो या फिर वर्तमान काल हो , जिस भी महिला के साथ गलत हुआ या हो रहा है , या फिर हसी खुशी पारिवारिक रिस्ता जोड़कर सही हो रहा है , वे सभी महिलायें इस देश की मुलनिवासि हैं | क्योंकि डीएनए रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादीयों के घरो में मौजुद महिलायें और इस देश के मुलसनिवासियों के घरो में मौजुद महिलाओं का M DNA एक है | अथवा यह बात साबित हो चुका है कि यूरेशिया से आए विदेशियों ने इस देश की महिलाओ के साथ शारिरिक संबंध बनाकर अपना दोगला वंशवृक्ष बड़ाया है | न कि वे अपने साथ किसी महिला को भी इस देश में लाये थे | बल्कि वे पुरुष झुंड में इस देश में प्रवेश करके इस देश की महिलाओं से ही अपना वंशवृक्ष बड़ाये हैं | चाहे जोर जबरजस्ती से उन्हे दासी बनाकर "ढोल,गंवार,शुद्र,पशु ,नारी | सकल ताड़ना के अधिकारी ||" कहकर बड़ाये हो या फिर राजी खुशी से बड़ाये हो | क्योंकि यूरेशिया से आए पुरुष झुंड इस देश की जिन महिलाओं से अपना वंशवृक्ष बड़ा रहे थे वह महिला  किनकी औलादे थी इस बात के लिए वेद पुराण और इतिहास भी गवाह है , और DNA रिपोर्ट से भी साबित हो चुका है | जाहिर है वेदकाल में कथित सभी उच्च जाति कहलाने वाले भी दानव घटोत्कक्ष की तरह दानव कन्याओं की ही गर्भ से जन्मे हैं | क्योंकि वेद पुराण और इतिहास गवाह है कि जब मनुवादी इस देश को और इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए देव असुर संग्राम करके कब्जा करते हुए इस देश की महिलाओं को देवदासी बना रहे थे उस समय उन महिलाओ के माता पिता कौन थे | वेदकाल में चाहे लक्ष्मी सरस्वती ही क्यों न हो ये दोनो दानव कन्यायें थी | जिस समय जितनी भी महिलाओ के साथ मनुवादीयों के पुर्वज देवो ने बलात्कार किया है , या फिर देव असुर संग्राम जीतकर उन्हे देवदासी बनाकर पारिवारिक रिस्ता जोड़ा है , वे सभी इस देश की महिलायें थी , न कि मनुवादीयों की तरह वह भी उनके साथ यूरेशिया से आई थी | चाहे वेदकाल में लक्ष्मी सरस्वती और अहिल्या हो या फिर वर्तमान के समय में इस देश की महिला हो सभी के अंदर इस देश की मुलनिवासि महिलाओ का M DNA दौड़ रहा है | जो कि DNA रिपोर्ट से साबित हो चुका है | और जैसा कि हमे पता है कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासि हजारो सालो से मनुवादीयों की गुलामी से पुर्ण रुप से अजाद अबतक नही हो पाये हैं | जिस गुलामी से पुर्ण अजादी मिले बगैर बलात्कारी देवो की पुजा बहुत से मुलनिवासियों द्वारा तबतक जारी रहेगी जबतक की बलात्कारी की पुजा करने वाला मुलनिवासी के भितर उस बुद्धी का विकाश न हो जाय जिससे की उसे गुलाम करने वालो से अजाद होने का क्रांतीकारी दीया उसके भितर जल उठे | जो क्रांतीकारी दीया जिनके अंदर जलती है वे लोग ही तो अजादी पाने का संघर्ष विशेष तौर पर कर रहे हैं | जो लोग मनुवादीयों की ढोंग पाखंड संक्रमणो से खुदको भितर से अजाद करके मनुवादीयों के खिलाफ आवाज बुलंद करते आ रहे हैं | हलांकी बहुत बड़ी अबादी को मनुवादीयों की गुलामी से अजादी पाने का संघर्ष से कोई खास लगाव नही हो पा रहा है | क्योंकि उन्हे गुलामी के साथ साथ गरिबी भुखमरी और अशिक्षा ने भी बुरी तरह से जकड़ रखा है | जिसकी वजह से भले वे भेदभाव का शिकार होकर यह जानते हैं की मनुवादीयों ने ही इस देश के मुलनिवासियों को हजारो सालो से गुलाम कर रखा है तो भी वे मानो मजबुर या डरे सहमे भी मनुवादीयों की आरती उतारते आ रहे हैं | जो मजबुर इसलिए हैं क्योंकि गरिबी भुखमरी की वजह से वे खुदको मनुवादीयों से लड़ने में बहुत ज्यादे कमजोर महसुश करते हैं | और डरे सहमे इसलिए हैं क्योंकि उनके परिवार में ही मनुवादीयों का शासन का मनहुश छाया दिन रात सबसे अधिक मंडरा रहा होता है | जैसे की शिकारी जानवर की नजर सबसे अधिक कमजोर शिकार पर ही होती है | मनुवादीयों की शिकारी नजर भी कमजोर कहे जाने वाले गरिबी भुखमरी जिवन जी रहे मुलनिवासियों पर ही ज्यादे होती है | जिसकी वजह से उनके परिवार में ही हर रोज सबसे अधिक मौते हो रही है | चाहे गरिबी भुखमरी से हो या फिर मनुवादीयों द्वारा मार पीटकर शोषण अत्याचार से हो रहा हो | जबकि वहीं मुठीभर ऐसे गुलाम लोग भी हैं जो अमिरी और सुख सुविधा भोगने के बाद खुदको मनुवादीयों से अजाद समझकर और मनुवादी शासन को बेहत्तर समझकर मनुवादीयों की विशेष मदत कर रहे हैं | जैसे की गोरो की शासन में भी मुठीभर लोग गोरो की शासन कायम रखने में विशेष सहायता कर रहे थे | क्योंकि वे गोरो की शासन में गोरो की विशेष लाभ से अमिरी सुख सुविधा का लाभ लेकर गोरो के द्वारा दिये गए विशेष उपहार से सबसे अधिक प्रभावित भी थे | जिस तरह की विशेष उपहार लेकर बहुत ज्यादे विशेष लाभ भोगने वाले लोग वर्तमान में भी मनुवादी शासन में मौजुद हैं | जो कि मनुवादी शासन कायम रहने के लिए विशेष मदत कर रहे हैं | जिन्हे मनुवादीयों से विशेष उपहार मिलकर विशेष लाभ मिल रहा है | जिस लाभ के आगे अपने ही DNA के बहुसंख्यक मुलनिवासियों की अजादी उनके लिए घाटे का सौदा है | जिस तरह के लोग ही अपने परिवार समाज का सौदा करने वाले असल घर के भेदी होते हैं | जो विरोधियों से अपने घर और घर परिवार के सदस्यो की जिवन का भी सौदा कर सकते हैं | और जो गुलाम लोग मनुवादियों के द्वारा बिछाये गए जाल ढोंग पाखंड में फंसकर मनुवादीयों के बलात्कारी पुर्वजो की पुजा गरिबी भुखमरी जिवन जिते हुए डरे सहमे भी करते आ रहे हैं , उन्हे तो गरिबी भुखमरी और अशिक्षा जैसी कमजोरी ने मनुवादीयों का संक्रमण को अबतक कामयाब बनाया हुआ है | जिन्हे गरिबी भुखमरी और अशिक्षा में जकड़े रहने की वजह से इस बात का मंथन करने का ठीक से समय नही मिल पा रहा है कि जिस मनुवादीयों की गुलामी इस देश के मुलनिवासि कर रहे हैं , उन मनुवादीयों ने ही मुलनिवासियों के पुर्वजो की राजपाट छिनकर उनकी भारी तादार में हत्या किया है | जिस सच्चाई को जानकर उन्हे खुद ही जल्द से जल्द समझना होगा कि हिन्दु मान्यता अनुसार साक्षात और प्रमाणित प्राकृति की पुजा ही भगवान पुजा है | जिसके प्रमाण इस कृषि प्रधान देश में बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहार और नदी तालाव पेड़ पौधे वगैरा प्राकृति की पुजा को देख जानकर समझा जा जा सकता है | क्योंकि हिन्दु धर्म में होली दिवाली मकर संक्राती वगैरा जितने भी प्रकृति पर्व त्योहार बारह माह मनाई जाती है , वह सब प्रकृति पर अधारित हिन्दु कलैंडर के अनुसार मनाई जाती है | हिन्दु धर्म में विरले ही पर्व त्योहार होगा जो की हिन्दु कलैंडर अनुसार नही मनाई जाती है | और हमे जैसा की पता है कि प्रकृति सबकी जिवनदाता के रुप में चारो ओर कण कण में साक्षात और प्रमाणित मौजुद है | इसके बावजुद भी आखिर हिन्दू भगवान बताकर उन मरे हुए देवो की मूर्ति पुजा क्यों होती है , जिसे मनुवादी अपना पुर्वज बतलाते हैं ? जवाब साफ है ,क्योंकि गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार करने वाले खुदको भगवान समझने लगते हैं | जिसके चलते इतिहास रहा है कि गुलाम बनाने वाले कबिलई लुटेरे किसी को गुलाम बनाकर अक्सर अपने आप को पालनहार बताकर गुलामो से अपनी सेवा कराने के साथ साथ पुजा भी कराते रहे हैं | मनुवादी भी देवो की पुजा कराकर अपने पुर्वजो को भगवान के बराबर बतलाते आ रहें हैं | जबकि छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से दानव असुरो के राज्यो को लुटने और कब्जा करने वाले देवता चूँकि इंसान ही थे , इसलिए वे इंसानो की तरह इंसानो से संभोग करके कबका मर चुके हैं | जिनके पास भी इंसान जैसा ही लिंग मौजुद था , जिससे कि वे इस देश की नारी से संभोग करके मनुवादी इंसान को जन्म दिये हैं | जिसके चलते ही तो इसी देश की नारी के गर्भ से जन्मे मनुवादी यूरेशिया से आए देवो को अपना पुर्वज बतलाते हैं | और वाकई में वे थे भी यह बात DNA रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है | क्योंकि मनुवादीयों के अंदर यूरेशिया से आए विदेशियों का DNA मौजुद है न कि इस देश के मुलनिवासियों का DNA मौजुद है | और यदि देवता इंसान नही होते तो कथित अप्सराओं से घिरे रहने वाले देवो के राजा कहे जानेवाले इंद्रदेव इंसान अहिल्या पर लार टपकाते हुए उसका बलात्कार नही करता , और न ही वह पुलोमा दानव की हत्या करके उसकी कन्या शचि को अपनी पत्नी बनाता | जो दानव कन्या भी इंसान ही थी | जिसने इंद्रदेव से संभोग करके जयंत को जन्म दी थी | अथवा देव दानव आपस में वैवाहिक रिस्ते भी जोड़ते थे और उससे दोगला वंशवृक्ष भी बड़ा होता था | जो दोगला वंशवृक्ष बड़ना मुमकिन नही हो पाता यदि देव दानव अलग अलग प्राणी होते | क्योंकि यदि दानव असुर का लिंग बरगद जितने मोटे मोटे और उनकी पुत्रियों की किसी बड़े दरवाजे जैसे योनी होती तो भीम दानव कन्या से संभोग करके घटोत्कक्ष को पैदा कराने के बजाय दानव पुत्री हिडिम्बा की योनी में समा जाता इतना विशाल शरिर दानवो का बतलाया जाता है | जाहिर है देव दानव इंसानो की तरह जन्म लेकर इंसानो की तरह ही अपनी उम्र पुरा करने के बाद अंतिम साँस लेकर कबका मर चुके हैं | जिसके चलते ही तो अब कोई नारद मुनी भी धरती पर नारायण नारायण कहते और सुनते जिवित विचरण करते दिखाई नही देता है | फिर भी देवो की निर्जिव मुर्ति पुजा वेद पाठ होने वाले ज्ञान मंदिरो में क्यों होती है ? जिसका जवाब यदि मान भी लेते हैं कि चूँकि पुरी दुनियाँ में बहुत से लोग अपने पुर्वजो के सम्मान में उनकी पुजा जिस तरह करते हैं , उसी तरह मनुवादी भी अपने पुर्वजो की मूर्ति पुजा करते हैं , तो भी आखिर प्रकृति की कृपा से इस धरती में इंसान के रुप में जन्मे देवो को मनुवादी सबका भगवान बताकर क्यों पुजा करते और करवाते हैं ? क्यों उनके पुर्वजो ने इस धरती बल्कि पुरे ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाले भगवान है यह बताकर ढोंग पाखंड को बड़ावा देते आ रहे हैं ? जबकि वेद पुराणो में जिन देवो के बारे में बतलाया गया है , उनके साथ साथ जिन दानवो असुरो दैत्यो के बारे में बतलाया गया है , उन्हे अपना पुर्वज मानने वाले इस देश के मुलनिवासि तो दैत्य दानव असुरो की पुजा उन्हे भगवान बताकर नही करते और करवाते हैं | जबकि वे भी यदि उनकी पुजा चाहते तो उन्हे चमत्कारी और मयावी भगवान मानकर कर सकते थे | जो कि नही करते हैं , क्योंकि उन्हे पता है कि जिस तरह प्रकृति की कृपा से उनका इंसान जन्म हुआ है , उसी तरह उनके पुर्वज भी प्रकृति की कृपा से ही इंसान के रुप में ही इस धरती पर जन्मे थे | जिसकी जानकारी जिस भी मुलनिवासी को है वह देव की पुजा नही बल्कि प्रकृति भगवान की पुजा करते हैं | जिस प्रकृति भगवान की पुजा करने वाले मुलनिवासियों के पुर्वजो के बारे में वेद पुराणो में सबसे अधिक जानकारी मौजुद है | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि वेद पुराण इस देश के मुलनिवासियों ने रचे हैं | मनुवादीयों ने तो वेद पुराण को कब्जा करके उसमे छेड़छाड़ और मिलावट किया है | जैसे की गोरो ने भी इस देश का इतिहास में मिलावट करने की कोशिष किया है | जिन गोरो का इतिहास इस देश का इतिहास में भी जिस प्रकार मौजुद है उसी तरह यूरेशिया से आए देवके बारे में जानकारी भी इस देश के वेद पुराणो में मौजुद है | जिस वेद पुराणो में मौजुद देव दानव की सारी जानकारी तब के इंसानो का इतिहास ही है | जिसमे छेड़छाड़ और मिलावट करके उसे काल्पनिक और अप्रकृतिक घटना का शक्ल दिया गया है | जिसमे फिल्टर करके विज्ञान प्रमाणित जानकारी जुटाने पर तब के इंसानो का प्रमाणित इतिहास सामने आने लगता है | क्योंकि वेद पुराण में मौजुद देवो की तरह दानव भी इंसान ही थे , न कि पहाड़ जैसे विशाल शरिर वाले मायावी थे  , जिनका लिंग बरगद जितने मोटे मोटे और उनकी पुत्रियों की दरवाजे जितने योनी नही थे | जो यदि होते तो महाभारत का भीम किसी दानव कन्या हिडिम्बा से सेक्स करके घटोत्कक्ष दानव का पिता कभी नही बनता | और न ही इंद्रदेव और विष्णुदेव भी दानव कन्या से संभोग करके उनको गर्भवती करके उनके गर्भ में पल रहे बच्चे का  पिता बनते | क्योंकि इंद्रदेव ने भी पुलोमा दानव की हत्या करके उसकी बेटी शचि को गर्भवती करके जयंत का पिता बना था | जैसे की महाभारत में भीम ने भी दानव की हत्या करके दानव कन्या हिडिम्बा को गर्भवती करके घटोत्कक्ष का पिता बना था | जो मुमकिन नही होता यदि भीम और दानव कन्या के शरिर का आकार में चिट्टी और हाथी जैसा अंतर होता | बल्कि भीम दानव कन्या हिडिम्बा की योनी में समा जाता इतनी बड़ी योनी हिडिम्बा की होती | या फिर भीम को ऐसा कोई चमत्कारी तेल लगाकर अपना लिंग को दानव कन्या से सेक्स करने के लिए किसी बरगद पेड़ जैसा मोटा करना पड़ता जो की जापानी तेल हो या फिर कोई और देश का तेल व दवा हो भीम का लिंग अपने शरिर से भी ज्यादे मोटे आकार का हो ही नही सकता था | और यदि मान भी लेते हैं वह किसी चमत्कारी तेल लगाकर हो भी जाता तो भीम उसे उठाकर कैसे किसी दानव कन्या के योनी में डालता जबतक की उसका शरिर भी हिडिम्बा जितना बड़ा होकर इस लायक नही बन जाता कि वह दानव कन्या से संभोग कर सके | जो कि प्राकृति और वैज्ञानिक रुप से मुमकिन नही है | फिर भी महाभारत में घटोत्कक्ष का शरिर को पहाड़ जितना दिखाकर यह भ्रम और ढोंग पाखंड फैलाने की कोशिष होती रहती है कि दानव असुर पहाड़ जितने विशाल होते थे और देव सामान्य इंसानो के आकार के होते थे | जिस तरह का झुठी ज्ञान ढोंगी पाखंडी मनुवादी अपने बच्चो को बचपन से ही देकर उनकी बुद्धी को तो भ्रष्ट करके उन्हे ढोंगी पाखंडी बनने में मदत करते ही हैं ,पर साथ साथ इस देश के उन मुलनिवासियों को भी बचपन से ब्रेनवाश करके अँधविश्वास और ढोंग पाखंड पर विश्वास करने के लिए मजबुर करते आ रहे हैं , जिनके पुर्वज भगवान पुजा के रुप में विज्ञान प्रमाणित साक्षात प्राकृति की पुजा करते आ रहे हैं | जिसके बगैर इंसान ही नही बल्कि यह पुरी सृष्टी का ही जिवन  एक पल में समाप्त हो सकता है | यकिन न आये तो कोई चाहे जिस धर्म को मानने वाला व्यक्ति हो ,वह चाहे दिन में जितनी पुजा करता हो ,अपने ईश्वर को याद करके कभी बिना हवा पानी के जिवित रहने के लिए अपनी साँस और अन्न जल को कुछ समय के लिए त्याग दे पता चल जायेगा की किसकी वजह से उसकी जिवन के साथ साथ पुरी दुनियाँ कायम हैं |

रही बात तो फिर विज्ञान की नजर में चमत्कारी अदृश्य ईश्वर क्या सिर्फ भ्रम है ? जिसके चलते इस सृष्टी को रचनेवाला एक ईश्वर बताकर इंसानो ने भ्रम में आकर एक ईश्वर के कई अलग अलग नाम से कई अलग अलग धर्म बना डाले हैं ! क्योंकि किसी को प्रमाणित रुप से पता ही नही है कि आखिर चमत्कारी ईश्वर का मुल नाम क्या है ? और वह कहाँ पर मौजुद है ? सभी मानो नाम और पता को अँधेरे में टटोल रहे हैं | और टटोलते टटोलते मुझे ईश्वर का नाम और पता मिल गया कहकर कई इंसानो द्वारा सिर्फ विश्वास और आस्था से अलग अलग कई धर्म बनते जा रहे हैं | जिस अदृश्य ईश्वर के चमत्कार का दर्शन पुर्ण प्रमाणित रुप से करने के लिए इंसानो द्वारा हजारो सालो से न जाने क्या क्या नही किये जा रहे हैं | पर आजतक किसी को भी ऐसा पुर्ण प्रमाणित दर्शन उस अदृश्य ईश्वर का नही हुआ है कि विज्ञान उसे प्रमाण पत्र दे दे | जिसके चलते लाखो करोड़ो इंसान अंतिम में निराश होकर धर्म बदल बदलकर भी उस अदृश्य ईश्वर को इस उम्मीद से टटोलने में लगे हुए हैं कि सायद उन्हे पुर्ण प्रमाणित रुप से मिल जाय और अदृश्य ईश्वर को ढुंडने का सफर समाप्त होकर धर्म बदलने का सिलसिला समाप्त होकर एक स्थिरता प्रदान हो जाय | जो स्थिरता आजतक पुर्ण प्रमाणित रुप से नही आई है | और धर्म बदल बदलकर टटोलने का सफर जारी है | जिस तरह के अँधेरे में टटोलने वाले सफरो को देखकर प्रत्येक निराश भक्त जरुर मन में पुछता होगा कि आखिर इतनी बड़ी दुनियाँ साक्षात रुप में बनाकर वह खुद छिपा हुआ क्यों है ? तो इस सवाल का प्रयोगिक और प्रमाणित जवाब है चमत्कारी अदृश्य ईश्वर और कोई नही बल्कि हमारे चारो ओर साक्षात मौजुद प्रकृति ही है | जिसे अँधेरे में टटोलने की जरुरत नही है | क्योंकि वह हमारे चारो ओर साक्षात रुप में मौजुद है , बल्कि सबके अंदर भी विज्ञान प्रमाणित  मौजुद है | और चूँकि जिवन की सुरुवात में इंसानो को भुकंप , ज्वलामुखी , सुनामी वगैरा प्रकृति घटना भी चमत्कार लगती थी , जिसकी ताकते साक्षात प्रमाणित होने के बावजुद भी चूँकि इंसानो की नजर में तब छिपी हुई थी , इसलिए उन्होने प्रकृति की उस छिपी हुई ताकत को कोई अलग चमत्कारी ताकत समझकर मानो अँधेरे में टटोलना सुरु कर दिया | पर जैसे जैसे इंसानो की चमत्कारी बुद्धी का विकाश होता गया और उनकी ज्ञान की आँखे खुलने लगी , वैसे वैसे उन्होने प्रकृति की अदृश्य ताकतो को प्रमाणित रुप से करिब से समझना सुरु कर दिया | जिसके बाद जैसे ही इंसानो को प्रकृति और विज्ञान की बहुत सी जानकारी प्रयोगिक और प्रमाणित तौर पर पता चलते गया और यह बात पता चला कि सबकी जिवन की साँसे प्रकृति के जरिये ही चल रही है , बल्कि पुरी दुनियाँ प्रकृति पर ही निर्भर है , जिस प्रकृति की कृपा बगैर एक पत्ता भी नही हिल सकता , उसी समय उन्होने प्रकृति को सर्वशक्तीमान और पालनहार मानकर उसकी पुजा करना सुरु किया | जिस समय मंदिर मस्जिद चर्च पुरी दुनियाँ में कहीं नही थे , बल्कि न तो हिन्दु नाम का कोई धर्म था और न ही बाकि भी कोई धर्म था | हिन्दु धर्म नाम तो सिन्धु को अपनी बोली भाषा अनुसार हिन्दु कहकर विदेशियो ने कहा है | जिन्होने ने ही इस कृषि प्रधान देश में किया जानेवाला प्रकृति भगवान पुजा को हिन्दु पुजा कहा है | जो इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दु कहा है | मनुवादी तो यूरेशिया से आए यहूदि DNA के लोग हैं | जो बात DNA रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है | बल्कि कई मुस्लिम शासक तो हिन्दु नही हैं यह जानकर मनुवादीयों से जजिया कर भी नही लेते थे | जो अरब से आए मुस्लिम शासक और फारस के लोग सुरुवात में सिन्धु नदी के किनारे सिन्धु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृति के बारे में जानकारी जुटाकर अपनी बोली भाषा अनुसार सिन्धु को हिन्दु कहा है | जिन्होने ही सिन्धु नदी के किनारे सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों को हिन्दु कहा | जैसे की यूनान से आए विदेशियो ने सिन्धु नदी को इंडस नदी कहकर इस देश के लोगो को इंडियन कहा है | और आम को मैंगो कहा है | जो मैंगो शब्द इस देश का नही है , इसका मतलब यह नही की आम को विदेशियों ने पैदा किया है | जाहिर है प्रकृति भगवान की पुजा पाठ पद्धति को हिन्दु धर्म सिन्धु के नाम से ही कहा गया है | न कि हिन्दु धर्म को विदेशियो ने पैदा किया है | क्योंकि जिस तरह अपनी अपनी भाषा बोली से नाम बदल देने से आम फल को मैंगो कहने से अमरुद नही हो जाता , उसी तरह सिन्धु को हिन्दु कहने से हिन्दु धर्म विदेशियो के द्वारा जन्माया गया नही हो जाता | और न ही हिन्दुस्तान को इंडिया कहने से हिन्दुस्तान गोरो का दिया देश हो जायेगा | उसी तरह मनुवादी भी खुदको हिन्दु भगवान पुजा पाठ करने वाले जन्म से ही विद्वान पंडित और पुजारी हैं कहकर चाहे जितना दोहरा लें , लेकिन कभी भी वे यह प्रमाणित नही कर पायेंगे की इस कृषि प्रधान देश में जो बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर प्रकृति भगवान की पुजा की जाती है , वह परंपरा मनुवादीयों द्वारा यूरेशिया से लाया गया है | बल्कि प्रकृति भगवान पुजा इस कृषि प्रधान देश में मनुवादीयों के आने से पहले से ही मौजुद है | जिस प्रकृति भगवान पुजा को ही अरब फारस के लोगो ने सिन्धु से जोड़कर हिन्दु धर्म कहा है | जो प्रकृति भगवान पुजा आज भी इस कृषि प्रधान देश में बारह माह प्रकृति कलैंडर के अनुसार होली दिवाली मकर संक्रांती वगैरा प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर की जाती है | जो कि तब भी की जाती थी जब इस कृषि प्रधान देश में प्रकृति भगवान की पुजा पाठ पद्धती को हिन्दु धर्म नही कहा गया था | और न ही बारह माह का प्रकृति अधारित इस देश के कलैंडर को हिन्दु कलैंडर कहा जाता था | बल्कि तब पुरी दुनियाँ में प्रकृति पुजा ही की जाती थी | क्योंकि पुरी दुनियाँ में जितने भी कृषि सभ्यता संस्कृति का विकाश हुआ क्षेत्र है , उन तमाम क्षेत्रो में प्रकृति पुजा के प्रमाण मिले हैं | जिस पुजा में प्रकृति के द्वारा कराया गया कर्म ही धर्म माना जाता है | और जैसा कि हमे पता है दुनियाँ में जितने भी जिव निर्जिव प्रकृति की कृपा से मौजुद हैं , वे सभी कोई न कोई कर्म कर रहे हैं | जो ही उनका मुल धर्म है | पुरी दुनियाँ में सभी ने अपने अपने कर्म को धारन किये हुए हैं , जो की उनका मुल धर्म है | क्योंकि धारन करना ही धर्म है | और सभी ने प्रकृति को अपने अंदर और अपने जिवन में धारन किया हुआ है | जिस प्रकृति कि पुजा अब भी दुनियाँ के कोने कोने में किसी न किसी रुप में की जाती है | पर चूँकि प्रकृति में मौजुद सारी शक्तीयो और गुणो को इंसानो ने आजतक एक प्रतिशत भी ठीक से नही जान सका है ,और न कभी प्रकृति की सारी शक्तीयों और गुणो को इंसान पुरी तरह से कभी जान पायेगा , इसलिए प्रकृति में घटित बहुत सारी घटना इंसानो को अब भी चमत्कार ही लगता रहा है | जिसे बहुत से इंसान किसी अदृश्य ताकत का चमत्कार मानकर मानो अँधेरे में टटोलने लगते हैं | और फिर यदि कोई इंसान टटोलते टटोलते कह देता है कि मुझे अदृश्य ईश्वर मिल गया तो फिर उसके द्वारा कही गई बातो पर सिर्फ आस्था और विश्वास के आधार पर यकिन करने वाले लोग आँख मुँदकर विश्वास करने लगते हैं | जबकि उन्हे पहले इस सवाल का जवाब पुर्ण रुप से खोजने की कोशिष करनी चाहिए थी कि अदृश्य ईश्वर कई इंसानो को मिल गया और उन इंसानो के द्वारा कही गई बातो में विश्वास करके कई धर्म भी बन गये हैं ,लेकिन भी आजतक धर्म बदल बदलकर अँधेरे में टटोलना क्यों जारी है ? क्योंकि उस अदृश्य ईश्वर के बारे में सभी के अंदर अनगिनत भ्रम है | जिसके चलते ही तो अलग अलग समय के साथ अलग अलग इंसानो द्वारा अलग अलग सोच विचारकर अलग अलग कई धर्म पुरी दुनियाँ में बनाये गये हैं | और बिल्कुल मुमकिन है कि भविष्य में भी यदि इसी तरह भ्रमित होकर अँधेरे में टटोलना जारी रहा तो फिर और कई मानव निर्मित धर्म बनते चले जायेंगे | क्योंकि इंसानो द्वारा प्राकृति में मौजुद शक्ती और गुणो को ज्यादेतर अबतक खोजा ही नही जा सका है | जिसके चलते आज भी प्रकृति का प्रयोगिक और प्रमाणित घटना बहुत से इंसानो को किसी अदृश्य शक्ती का चमत्कार ही लगता है | 

रही बात किसी अदृश्य शक्ती द्वारा इंसानो से मुलाकात करने की तो पुरी दुनियाँ जानती है कि ऐसी भ्रमित बातो में सिर्फ वही लोग विश्वास करते हैं , जो ऐसी बाते कहने वाले लोगो की बातो में आँख मुँदकर विश्वास कर लेते हैं | जिनके पास न तो कोई सौ प्रतिशत प्रमाण रहता है , और न ही उनकी विश्वास पर विज्ञान उन्हे प्रमाण पत्र दिया हुआ है | क्योंकि यदि ऐसी बातो को सत्य का प्रमाण पत्र मिलता तो इतने सारे अलग अलग धर्म कभी भी नही बनते | और न ही इतने सारे अलग अलग धर्मो के अलग अलग पुजा स्थल बनते | जबकि इतिहास गवाह है कि एक ही प्रकृति दुनियाँ में रहने वाले एक ही इंसान द्वारा अलग अलग समय में अलग अलग विश्वास और आस्था की वजह से अलग अलग कई धर्म और अलग अलग धर्म के अलग अलग लाखो पुजा स्थल बनते चले गये हैं | जिन्हे जिस धर्म पर विश्वास है वह उसी धर्म से जुड़कर उस धर्म के द्वारा बतलाई गई पुजा स्थलो में जाकर पुजा पाठ करता है | और सभी धर्मो के लोग अपनी अपनी धर्म पुस्तको में लिखी हुई बातो पर विश्वास करके अपनी अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार पुजा पाठ करते हैं | हलांकि सबकी जिवन की साँस को विज्ञान प्रमाणित चलाने वाली शक्ति कौन है ,और उन्होने इंसानो के लिए क्या क्या संदेश दिया है , इसके बारे में अनेको विवाद है | क्योंकि सभी अपने अपने धर्म पुस्तको में बतलाई गई बातो पर विश्वास करके उसी को ही असली जिवनदाता का संदेश मानते हैं | जिसे दुसरे धर्मो के लोग अपने धार्मिक पुस्तको से अलग मानकर उसे अपनी धार्मिक पुस्तक नही मानते | जाहिर है सभी इंसानो को तो किसी एक ही शक्ती ने रचा है , पर आजतक किसी एक खास धर्म के व्यक्ती को वह एक ईश्वर विज्ञान प्रमाणित मिल गया है इस तरह का प्रमाण पत्र और सत्य विश्वास किसी भी धर्म के प्रति नही है ? जिसके चलते आपस में कई विवाद करते हुए सभी अपने अपने धर्म को बेहत्तर बतलाते हैं | वह भी कम से कम धर्म परिवर्तन करने का ख्याल आने तक ! क्योंकि आजतक किसी भी धर्म में सभी इंसानो का विश्वास एक साथ कायम नही हुआ है | और न कभी होगा | क्योंकि इंसान द्वारा अनेको विवाद और भ्रम के साथ अलग अलग कई धर्मो का उदय करके अलग अलग रास्तो में चलकर उस एक शक्ती को तलाशा जा रहा हैं , जिन्होने आजतक एक भी धर्म सबके लिए ऐसा नही भेजा है जिसपर सभी धर्मो के लोगो के साथ साथ नास्तिक भी विश्वास करके उससे जुड़ सके | सिवाय इसके कि चाहे इंसान हो या फिर दुसरे जिव , बल्कि जिव निर्जिव सभी प्रमाणित तौर पर प्रकृति से जुड़े हुए हैं | जिस प्रकृति भगवान पुजा में प्रकृति के द्वारा कराया गया कर्म ही जिव निर्जिव सभी का धर्म है | क्योंकि प्रकृति का दिया गया कर्म को जिव निर्जिव सभी ने प्रमाणित धारन किया हुआ है | जबकि मानव निर्मित धर्म को इंसान खुद ही कई धर्म बनाकर खुद ही मात्र उसे धारन किये हुए हैं | जिसके चलते इंसानो द्वारा बनाया गया कई धर्मो में कोई भी एक धर्म ऐसा मौजुद नही है जो की प्रमाणित तौर पर सबके लिए अनिवार्य माना जा सके और सभी धर्मो के लोग उसपर यकिन करके अपने अपने धर्मो को त्यागकर उसे स्थिर अपना लें | क्योंकि किसी को भी ऐसा एक रास्ता मालुम नही जिसे सभी धर्मो के लोग सही रास्ता मानकर उसे एक ईश्वर का एक धार्मिक रास्ता मान ले | जिसके चलते ही तो हर रोज धर्म बदलकर रास्ता बदलने का भी दौर चल रहा है | क्योंकि ऐसा रास्ता आजतक कोई भी मानव निर्मित धर्म नही बतला सका है जिसपर सभी धर्मो के लोग जुड़कर सिर्फ उसी एक धार्मिक रास्ते पर विश्वास करके उसपर जिवनभर चल सके | और यदि कोई भक्त जिवनभर किसी धर्म से जुड़कर चलता भी है तो वह सिर्फ उसकी जिवन की ही यात्रा बिना कोई धर्म बदले होती है | पर चूँकि मुल हिंन्दु धर्म की आस्था और विश्वास प्रकृति भगवान पर है , इसलिए मनुवादीयों के आने से पहले हिन्दुओ का पुजा स्थल देव मंदिर के रुप में कहीं नही था | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश में इंसानो द्वारा बनाया गया मंदिर बनने से पहले से ही नदी तालाव पेड़ पौधा पहाड़ पर्वत वगैरा प्रकृति की पुजा की जाती रही है | जो कि अब भी बिना मंदिर बनाये की जाती है , और बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार भी मनाई जाती है | हलांकि बाद में मनुवादीयों द्वारा देश गुलाम करके मनुस्मृति लागु करके मनुवादीयों ने अपने पुर्वज देवो को भगवान बताकर उसकी मुर्ति पुजा को भी हिन्दु धर्म से जोड़ दिया है | जो की मनुवादीयों द्वारा वेद पुराणो में कब्जा करके उसमे छेड़छाड़ और मिलावट करके जोड़ा गया है | बल्कि मनुवादी अपनी कपटी सोच से प्रकृति पुजा से भी देव पुजा को जोड़ने का प्रयाश लंबे समय से कर रहे हैं | जैसे की प्रकृति पुजा छठ के साथ भी सुर्यदेव पुजा कहकर प्रचार प्रसार करके प्रकृति सुर्य पुजा को सुर्यदेव पुजा कहकर छठ पुजा को देव पुजा बनाने की कोशिष हो रही है | जो की वैसे भी प्रयोगिक और प्रमाणित तौर पर मनुवादीयों का ऐसी अप्रकृति कोशिष कामयाब हो जाय यह मुमकिन नही है | क्योंकि छठ पुजा साक्षात मौजुद प्रकृति का ही एक रुप उस सुर्य शक्ती की पुजा होती है , जो कि विज्ञान प्रमाणित है | न कि छठ पुजा समेत तमाम प्रकृति पर्व त्योहारो के दिन उन अप्रकृति और अप्रमाणित ताकतो की पुजा हिन्दु धर्म में मुलता होती है जिनके बारे में सिर्फ आस्था और विश्वास से पुजा की जाती है | जैसे कि मनुवादीयों की आस्था और विश्वस है कि उनके मरे हुए अदृश्य देवता जो की अब निर्जिव मूर्ति के रुप में देव मंदिरो में स्थिर पड़े रहते हैं, उनके प्रति मनुवादीयों की आस्था और विश्वास है कि वे ही सारी सृष्टी का संचालन कर रहे हैं | जो कि खुद इस पृथ्वी में प्रकृति की कृपा से इंसान के रुप में जन्म लिये और अपनी जिवन यात्रा पुरी करके प्रकृति में ही मिल गए | बल्कि प्रकृति की ही कृपा से उनकी मूर्ति और मंदिर बनाये जाते हैं | क्योंकि उनका शरिर बाकि दुसरे मरे हुए प्राणियों की तरह ही मिट्टी में मिलकर कबका नष्ट हो चुका हैं | जो कि प्रकृति का संचालन के जरिये जन्मे और समय पुरा होने पर कबका नष्ट भी हो चुके हैं | न कि अपने संचालन से खुद जन्मे और अपने संचालन से नष्ट हो गए हैं | बल्कि प्रकृति की कृपा से वे जन्मे और प्रकृति द्वारा नष्ट भी हो गए हैं | तभी तो अब धरती में विचरण करते एक भी देव नही दिखते हैं | जिन मरे हुए देवो की मूर्ति स्थापित करने की सुरुवात मनुवादीयों के द्वारा ही की गई है | ताकि अपने पुर्वजो को भगवान बताकर खुदको उच्च और बाकियों को निच घोषित कर सके | और साथ साथ अपने पुर्वजो की पुजा कराकर उनके नाम से खुब सारा धन भी इकठा कर सके | जिनकी मूर्ति स्थापित मंदिरो में मनुवादी खुदको जन्म से विद्वान पंडित कहकर कुंडली मारकर पिड़ी दर पिड़ी बैठ भी सके | जो देव मूर्ति स्थापित मंदिर दरसल पहले वेद ज्ञान मंदिर था , जिसमे वेद ज्ञान बांटी जाती थी | जैसे की आज विद्यालयो में ज्ञान बांटी जाती है | क्योंकि जब पुरी दुनियाँ में लिखाई पढ़ाई की सुरुवात भी नही हुई थी उस समय वेदो अथवा मुँह से निकली आवाज अथवा सिर्फ बोली के जरिये ही ज्ञान ली और बांटी जाती थी | क्योंकि तब लिखाई पढ़ाई की सुरुवात नही हुई थी | जिस वेद मंदिरो में ही मनुवादीयों ने इस देश के मुलनिवासियों को प्रवेश मना करके वेद ज्ञान लेना बंद कर दिया था | जिसके लिये उन्होने मनुस्मृति लागु करके उच्च निच भेदभाव को संवैधानिक घोषित करके यह नियम कानुन बनाया कि वेद मंदिरो में निच जाती प्रवेश नही कर सकता , और न ही वह किसी भी तरह वेद ज्ञान ले सकता है | जो यदि लिया तो वेद बोलने वाले निच जाती का जीभ काट दिया जायेगा और वेद ज्ञान सुना तो उसके कान में गर्म पिघला लोहा डाल दिया जायेगा | जिस तरह के नियम कानुन बनाकर मनुवादीयों ने इस देश के तमाम वेद ज्ञान मंदिरो में कब्जा करके खुदको जन्म से उच्च विद्वान पंडित घोषित करके इस देश के मुलनिवासियों को हमेशा हमेशा के लिए गुलाम बनाये रखने के लिए ढोंग पाखंड और अँधविश्वास फैलाकर ब्रेनवाश करना सुरु किया | जिसके लिए उन्होने तमाम ज्ञान मंदिरो में मिलावटी और छेड़छाड़ किया गया वेद पाठ करने के साथ साथ अपने पुर्वजो की मूर्ति स्थापित करके उसकी गुणगान करके उसे भगवान बताकर पुजा भी करने लगा | जिसके बाद देश के तमाम ज्ञान मंदिरो को अपने कब्जे में लेकर उन्हे वेद मंदिरो के साथ साथ देव मंदिर भी बनाये गए | जिनमे वेद पाठ के साथ साथ देव पुजा भी होने लगे | बल्कि देवो ने देव असुर संग्राम जितकर असुरो के जिन कन्याओं के साथ दोगला रिस्ता जोड़कर उनसे अपना वंशवृक्ष बड़ाया था , उनकी भी पुजा उन्हे देवी कहकर उन देव मंदिरो में होने लगी | जिसके बाद तो ढोंग पाखंड का सिलसिला चल पड़ा और समय के साथ साथ जितने भी ज्ञान मंदिर बने सभी में देवो और उनकी देवियों की मूर्ति स्थापित करके उसे भगवान का मंदिर कहा जाने लगा | और बाद में जब समय बदलाव के साथ इंसानो द्वारा लिखाई पढ़ाई की सुरुवात हुआ तो इस देश में भी लिखाई पढ़ाई का ज्ञान मंदिर अलग से बनने लगे | जो कि स्वभाविक था क्योंकि तबतक सारे वेद ज्ञान मंदिर देव मंदिर में परिवर्तित हो चुके थे | जिन्हे वेद ज्ञान मंदिर से लिखाई पढ़ाई मंदिर अपडेट करना तभी मुमकिन हो सकता था जब उन वेद ज्ञान मंदिरो को मनुवादीयों से पुर्ण अजादी मिल जाती | जो की आजतक भी उन वेद मंदिरो को मनुवादीयों से पुर्ण अजादी नही मिली है | हलांकि अब वेद ज्ञान मंदिरो में प्रवेश पाबंदी हटने के बाद इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासी तो जाते हैं , पर वेद ज्ञान लेने नही बल्कि मंदिरो में स्थापित देवी देवताओं की मूर्तियों के आगे अपना सर झुकाकर उसकी पुजा करने जाते हैं | जिस तरह के देवी देवताओ की पुजा होनेवाली मंदिर आज के समय में लाखो की तादार में निर्माण हो गए हैं | जिनकी संख्या इस समय जितने ग्राम देश में मौजुद है , उतने ही लगभग देवी देवता मंदिर यानी लगभग छः लाख से अधिक मंदिर हो गए हैं | यानी औसतन प्रत्येक ग्राम में एक मंदिर का निर्माण हो चुका है | भले क्यों न विद्यालय और अस्पताल का निर्माण प्रत्येक ग्राम पंचायत में भी न हुआ हो | जिसके बारे में ज्ञान बांटते समय याद आया कि इंटरनेट पर कहीं पर एक व्यक्ती जानकारी दे रहा था कि गोरो ने जब इस देश को गुलाम किया था तो इस देश की सभ्यता संस्कृति को मिटाने के लिए प्रमुख जड़ तलाशने के लिए उन्होने अपने सर्वे में यह पाया कि इस देश की सबसे बड़ी ताकत इस देश में मौजुद ज्ञान बांटने और लेने की खास व्यवस्था है | जो कि प्रत्येक ग्राम में मौजुद है | जिसे ध्वस्त किये बगैर इस देश की सभ्यता संस्कृति को कभी नही मिटाया जा सकता | जिस तरह का ही ध्वस्त करने का कार्य मनुवादी द्वारा भी प्रत्येक ग्राम और शहर में विद्यालय और अस्पताल को बड़ावा देने के बजाय देवी देवताओं का मंदिर बनाने का कार्य को सबसे अधिक बड़ावा दिया जा रहा है | ताकि इस देश की मुल कृषि सभ्यता संस्कृति को ध्वस्त किया जा सके | जबकि इतिहास गवाह है कि कितने विदेशी इस कृषि प्रधान देश की सभ्यता संस्कृति को ध्वस्त करने आए और खुद ही ध्वस्त होकर चले गए हैं | बल्कि मनुवादी के पुर्वज भी ध्वस्त होकर चले गए होते यदि वे इस देश की नारी को देव दासी बनाकर दोगला रिस्ता न जोड़कर अपना दोगला वंशवृक्ष न बड़ाते | क्योंकि हिंदू धर्म पुस्तको की मान्यता अनुसार भी देव दानव आपस में देव असुर संग्राम के साथ साथ आपस में रिस्ता जोड़े और आपस में सागर मंथन भी किये , जो जानकारी भी प्रमाणित करता है कि आपस में रिस्ता जोड़ने वाले सभी देव दानव इंसान ही थे | और इंसानो की तरह पारिवारिक जिवन भी जी रहे थे | क्योंकि यदि वाकई में  देव दानव दैत्य असुर कोई इंसान नही होते फिर तो न दानव कन्या से मनुवादी के पुर्वज सेक्स कर पाते और न ही कोई दानव असुर कथित स्वर्ग की अप्सराओं से सेक्स कर पाते | क्योंकि वेद पुराणो में दोनो ही अपनी रोजमरा जिवन में इंसानो की तरह ही खाते पिते हगते मुतते नहाते और सेक्स भी करते थे | देव लोग दानव कन्या से सेक्स करते हुए और कथित स्वर्ग की अप्सरा के द्वारा अपनी यौवन से दानवो का तप भंग करते हुए बतलाये गए हैं | बल्कि कई दानवो ने अप्सराओ के साथ विवाह करके उसके साथ संभोग करके उसके बच्चे का पिता भी बने हैं | जैसा की इससे पहले बतलाया कि मय दानव हेमा अप्सरा से विवाह करके मन्दोदरी का पिता बना था | बाद में मन्दोदरी के साथ रावण का विवाह हुआ था | जाहिर है देव दानव के परिवार में मौजुद सभी लोग इंसान ही थे | जिनके शरिर के अंग इंसान की तरह ही थे | क्योंकि यदि कथित स्वर्ग की अप्सराओ की योनी समान्य नही होती और दानवो का भी लिंग यदि इंसानो की तरह समान्य नही होता तो फिर देव दानव एक दुसरे से शारिरिक रिस्ता कैसे जोड़ते ? इंद्र द्वारा किसी दानव का तप भंग करने के लिए किसी अप्सरा को अपनी यौवन का जादु चलाने क्यों भेजा जाता , बल्कि इंद्र या तो खुद श्राप में मिले हजार योनियों को किसी घुंघरु की तरह टांगकर जाता , या फिर किसी दानव असुर कन्या को भेजता | जो न होकर कथित स्वर्ग की अप्सरा अपनी यौवन का रुप रंग जलवा दिखाकर नाच गान करके दानव के भितर सेक्स का हवश पैदा करके तप भंग करने की कोशिष क्यों करती थी ? जिन अप्सराओं को दानवो का तप भंग करने के लिए भेजने का विचार इंद्रदेव के कपटी दिमाक में कभी नही आता यदि दानवो के लिंग बरगद के पेड़ जितने मोटे होते  | फिर तो अप्सरा को दानव असुर का तप भंग करने के लिए सायद उनके बरगद के पेड़ जितने मोटे लिंग पर नृत्य करके दानवो का जोश को बड़ाना पड़ता | असल में देव दानव और अप्सरा ये सभी इंसान ही थे जिनका लिंग योनी इंसानो की तरह ही थे | जिस लिंग योनी के साथ अब वे मरके नष्ट हो चुके हैं | जैसा की अब भी इंसान बुढ़ा होकर अपने बुड़े लिंग योनी के साथ अपनी उम्र पुरा करके मरता है | हलांकि सभी देव दानव भले अब इस धरती पर विचरण करने के लिए जिवित मौजुद नही हैं , पर उनकी नई पिड़ी आज भी अपने अपने लिंग योनी के साथ मौजुद है | क्योंकि जैसा कि हमे पता है कि मनुवादी खुदको देवो का वंशज कहता है , और इस देश का मुलनिवासी खुदको दानव असुरो का वंशज कहता है |  न कि मनुवादी और इस देश के मुलनिवासी दोनो के पुर्वज एक माने जाते हैं | क्योंकि यदि एक माने जाते तो मनुवादी इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम बनाकर उनके साथ हजारो सालो तक छुवाछुत जैसे भेदभाव कभी नही करते | जो छुवाछुत आज भी जारी है | बल्कि मनुस्मृति जब लागु किया गया था उस समय तो इस देश के मुलनिवासियों को वेद ज्ञान मंदिरो में प्रवेश करने पर रोक लगा दिया गया था | क्योंकि मनुवादीयों ने खुदको जन्म से उच्च और इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित करके वेद ज्ञान मंदिरो में निच जाति का प्रवेश पर रोक लगा दिये थे | हलांकि अब रोक हटा दी गई हैं , जिसके चलते अब देव दानव दोनो ही के वंशज आज के समय में उन वेद मंदिरो में जाते हैं | पर अब उन वेद मंदिरो में वेद पाठ होने के साथ साथ भगवान पुजा के नाम से देव पुजा भी होने लगा है | यहूदि DNA का मनुवादी खुदको हिंदू कहते हुए हिंदू धर्म का पुजारी बनकर अपने पुर्वज देवो को हिन्दु भगवान बताकर उसकी मूर्ति पुजा कर और करा रहा है | बल्कि जिन पुजा पाठ स्थलो में प्रकृति की पुजा होता है , वहाँ पर भी वह धिरे धिरे देवी देवताओं के नाम से मंदिर का निर्माण करता जा रहा है | जिन प्रकृति पुजा स्थलो में मंदिर निर्माण करके उसके अंदर बाहर देव मुर्ति बिठाकर ढोंग पाखंड का विस्तार तेजी से हुआ है | जबकि तेजी से ज्ञान का विस्तार ज्यादे से ज्यादे ज्ञान मंदिरो का निर्माण करके होना चाहिए था | पर चूँकि मनुवादी इस देश के मुलनिवासियों को शिक्षित होते हुए कभी देखना ही नही चाहते हैं , जैसा की मनुवादीयो द्वारा कभी वेद मंदिरो में इस देश के मुलनिवासियों का प्रवेश पर पाबंदी लगाकर वेद ज्ञान से वंचित कर दिया गया था | जो पाबंदी दरसल वेद मंदिरो में पहली बार उस समय लगाया गया था जब दुनियाँ में लिखाई पढ़ाई की सुरुवात नही हुआ था | जिस समय ज्ञान वेद द्वारा अथवा आवाज के द्वारा मात्र मुँह से बोलकर ही बांटा और लिया जाता था | जिसके लिए वेद ज्ञान मंदिर बनाया जाता था | जैसे की आज लिखाई पढ़ाई का ज्ञान मंदिर विद्यालय बनाया जाता है | जहाँ पर शिक्षा लेने छात्र जाते हैं | वेद ज्ञान मंदिर में भी शिष्य वेद पाठ ज्ञान लेने के लिये वेद सुनने और बोलने जाते थे | जहाँ पर मनुवादीयों ने अपने पुर्वजो की मूर्ति स्थापित करके वेद मंदिरो में इस देश के मुलनिवासियों का प्रवेश पर रोक लगा दिया था | ताकि इस देश के मुलनिवासि ज्ञान से वंचित हो जाय | जिसके लिये मनुवादीयों ने मनुस्मृति लागु करके ये नियम कानून बनाया कि इस देश के मुलनिवासी निच जाती हैं , जिन्हे वेद ज्ञान लेना मना है | जिसके चलते उन्हे वेद मंदिरो में प्रवेश भी मना है | जिसका यदि पालन नही किया गया तो वेद सुनने पर कान में गर्म पीघला लोहा डाला जायेगा और वेद सुनने पर जीभ काटा जायेगा | जो नियम कानुन कथित उच्च जातियों में लागु नही होती थी | सिर्फ इस देश के मुलनिवासियों पर लागु होती थी | जिसके चलते मुलनिवासि यदि वेद ज्ञान गलती या फिर जान बुझकर छिपकर लेता था तो वेद दुबारा से सुन न पाये इसके लिये सजा के तौर पर उसके कान में गर्म पिघला लोहा डालकर उसे बहरा कर दिया जाता था | और वेद बोलने पर वेद दुबारा से बोल न पाये इसके लिए उसका जीभ काटकर उसे गुंगा कर दिया जाता था | बल्कि रामराज में तो जब प्रजा शंभुक ने छिपकर वेद ज्ञान लिया तो राजा राम ने शंभुक की हत्या तक कर दिया था | जिस तरह का प्रजा सेवा मनुवादी के पुर्वज करते थे | जिस तरह की प्रजा सेवा करने वाले पुर्वजो की पुजा को भगवान पुजा कहकर मनुवादी वर्तमान के समय में देवी देवताओं के नाम से भव्य मंदिर बनाते चले जा रहे हैं | भले विद्यालय अस्पताल न बने पर देवी देवताओं का मंदिर जरुर बने इस बात पर खुब ध्यान दिया जा रहा है | क्योंकि अपडेट मनुवादी शासन जो चल रहा है | 

बल्कि अब तो कई अलग अलग धर्म बनने के बाद सभी अलग अलग धर्मो के लोग अपने अपने पुजा स्थल बनाकर अलग अलग धर्म के नाम से कई अलग अलग विवाद पैदा करके आपस में एक दुसरे से लड़ने भी लगे हैं | जिस तरह की विवादित लड़ाई की झांकी इस एक जानकारी को देख सुन और पढ़कर ली जा सकती है कि गोरो के जाने से लेकर अबतक एक लाख से अधिक दंगे हो चुके हैं | जो दंगे इसलिए भी होते हैं , क्योंकि सभी धर्मो के लोग अपने अपने धर्म के पुजा स्थल अलग से बनाकर एक दुसरे के पुजा स्थलो में एक साथ पुजा करने नही जाते हैं | क्योंकि सभी धर्मो के लोग अपना अलग अलग धार्मिक पुस्तको के साथ अपने अलग अलग मान्यताओं के साथ पुजा पाठ करते हैं | जिन अलग अलग कई धर्मो के मान्यताओं में अनेको विवाद मौजुद है | जिसके चलते आये दिन दंगा होना स्वभाविक है | जो दंगा कई मानव निर्मित धर्म बनने से पहले नही होता था | पर अब तो धर्म के नाम से सगे भाई भी एक दुसरे को काटते मारते हैं | खासकर जब धर्म के नाम से दंगा भड़कता है | जैसे की धर्म के नाम से इस देश का बंटवारा भारत पाकिस्तान जब हुआ था , उस समय धर्म के नाम से जो दंगा भड़के थे उसमे लाखो लोगो की हत्या एक दुसरे को काट मारकर हुआ था | जिनमे अनगिनत भाई भाई ही एक दुसरे को काटे मारे होंगे | क्योंकि कई धर्म बनने के बाद एक ही परिवार में एक ही DNA के भाई भाई अलग अलग कई धर्म को अपनाने लगे हैं | जिसके चलते धर्म के नाम से दंगा होने पर भाई भाई एक दुसरे को ही काटने मारने भी लगे हैं | जिस मार काट में इस देश के मुलनिवासि ही सबसे अधिक मरते हैं | क्योंकि एक तो इस देश में उनकी तादार सबसे अधिक है , चाहे वे जिस भी धर्म में मौजुद हो , दुसरा उन्हे किसी भी धर्म के धार्मिक उच्च पदो में न के बराबर बैठाया जाता है | क्योंकि इस देश में मौजुद सभी धर्मो में मुलता विदेशी मुल DNA के लोगो का वर्चस्व है | जिसके चलते जब भी धर्म के नाम से दंगा भड़ता है तो वे लोग अपने उच्च पदो के चलते अपने से निचे मौजुद इस देश के मुलनिवासियों को ही आगे करके कटने मरने के लिए भेजा जाता है | मानो उन्हे बलि का बकरा बनाया जाता है | जैसे की यहूदि DNA का मनुवादी भी खुदको हिन्दु धर्म से जोड़े हुए हैं ,पर जब धर्म के नाम से दंगा भड़ककर मार काट होता है तो कितने मनुवादी मारे जाते हैं ? जबकि मनुवादी खुदको हिन्दु धर्म का पुजारी और सबसे बड़ा ठिकेदार बनाये हुए हैं | तभी तो हिन्दु धर्म में पुजा पाठ में भी मनुवादीयों द्वारा भेदभाव किया जा रहा है | मनुवादी खुदको हिन्दु धर्म का ठिकेदार बनाकर अपनी विशेष फायदे के लिए इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दु मंदिरो में पुजारी बनने देना तो दुर मंदिरो में प्रवेश न करने  देने के लिए बोर्ड भी लगाता आ रहा है | क्योंकि मनुवादीयों ने जबसे हिन्दु मंदिरो में अपने पुर्वज देवो की मूर्ति स्थापित करना सुरु किया है तब से हिन्दु मंदिरो में इस देश के मुल हिन्दुओं अथवा सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों को उनके अपने ही वेद ज्ञान मंदिरो में प्रवेश करने से रोका जा रहा है | रोक लगाने वाले मनुवादीयों की बुद्धी इतनी भ्रष्ठ है कि उन्हे हिन्दु मंदिरो का पुजारी बनाने के बाद भी आजतक यह बुद्धी पुरी तरह से नही आया है कि मंदिरो में प्रवेश के लिए उच्च निच भेदभाव नही करनी चाहिए | जिस भ्रष्ट बुद्धी अनुसार ही तो देव बलात्कार भी करे तो भगवान और दानव बलात्कारियों को सजा भी न दे , बल्कि मनुवादीयो द्वारा ब्रेनवाश होकर बहुत सारे शोषित पिड़ित दास दासी बनकर बलात्कारी देव की पुजा भी करे तो उनके पुर्वज हैवान | दरसल देव के वंशज मनुवादीयों द्वारा खुदको हिंदू कहकर हिंदू से ही छुवा छुत करते हुए अपने पुर्वज देवताओं की पुजा को हिंदू भगवान पुजा बताकर हिंदू वेद पाठ ज्ञान स्थलो में कब्जा करके वहाँ पर खुदकी पुजा कराने की ढोंग पाखंड की सुरुवात अपने विशेष लाभ के लिए किये हैं | क्योंकि प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई से प्रमाणित हो चुका है कि इस कृषि प्रधान देश में मनुवादीयों के आने से पहले किसी भी देवता की पुजा मंदिरो में नही होती थी | और न ही कथित स्वर्ग में रहने वाले कोई देवता इस देश में रहते थे | जो देवता अभी जिवित रहते तो खुद मंदिरो में प्रेसवर्ता करके सबको बतलाते कि वे इस देश में कहाँ से आए थे और उनका गायब होने और बिना ऑक्सीजन लगाये और बिना कोई पंख लगाये अंतरिक्ष में सैर करने का राज क्या है ? जो चमत्कारी गुण दानव असुरो में भी बतलाया गया है | जो कि देवो को बार बार पराजित भी करते थे और स्वर्ग में भी बिना स्वर्ग का वासी हुए और बिना ऑक्सीजन व पंख लगाये आना जाना करते थे | जो अब इस धरती पर उसी तरह का चमत्कारिक रुप से जिवित विचरन नही करते हैं , जैसे की देव भी अब नही करते हैं | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि सब मर चुके हैं | बल्कि विज्ञान प्रमाणित वे जिन्दा रहते भी उपर अंतरिक्ष में विचरन नही करते थे | क्योंकि वे इंसान ही थे जिन्हे भी दुनियाँ में जिन्दा रहने के लिए प्राण वायु की जरुरत पड़ती थी | लेकिन भी देव मुर्तियों की भगवान से तुलना करके ऐसी पुजा होती है , जैसे कि वे ही दुनियाँ चला रहे हैं | जो कि खुद दुनियाँ में जिवित नही रहे और इंसानो की तरह उनकी भी मौत हो चूकि है | क्योंकि जाहिर है जब वे इंसानो से परिवार बसाकर इंसानो के साथ रह चुके हो और इंसानो जैसा सेक्स करना , हगना मुतना , नहाना धोना सब किये हो तो स्वभाविक सी बात है कि वे भी इंसानो की तरह ही पैदा होकर इंसानो की तरह ही मर भी चुके हैं | न कि वे अमर हैं | और न ही वे किसी एलियन की तरह धरती पर आकर एलियन की तरह गायब हो गए हैं | इसलिए जाहिर सी बात है मनुवादी जो आज ये कहते फिरते हैं की देवता लोग ही दुनियाँ चला रहे हैं , यह सिर्फ ढोंग पाखंड के सिवा कुछ नही है | जिस ढोंग पाखंड को दुर करने के लिए ही तो इस देश में लंबे समय से बहुत सारे आंदोलन हुए हैं | जो कि अब भी मनुस्मृति का विरोध करके चल रहे हैं |

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

सभी इंसानो की जिवन प्रकृति या फिर कोई अदृश्य शक्ती की कृपा से चल रही है ?

सभी इंसानो की जिवन प्रकृति या फिर कोई अदृश्य शक्ती की कृपा से चल रही है ?


वैसे तो दुनियाँ के सभी धर्मो के भक्तो समेत नास्तिक कहलाने वाले लोग भी यह मानते हैं कि इंसान का जन्म प्रकृति वीर्य अंडाणु की वजह से होता है , और प्रकृति साँस रुकने से उसकी मौत भी होती है | जिसका प्रयोगिक उदाहरन रोजमरा जिवन में हर पल देखने को मिलती रहती है | क्योंकि चाहे किसी भी धर्म का भक्त हो या फिर कोई नास्तिक इंसान हर कोई के जिवन से प्रकृति हवा पानी वगैरा जुड़ा हुआ रहता है | जिसे खुदसे अलग करने का मतलब उसे पता है कि बिना हवा पानी के कोई इंसान एक पल भी जिवित नही रह सकता | बल्कि बिना हवा पानी के इस दुनियाँ में उसकी वजुद ही कायम नही रह सकती | इतनी कृपा उसपर प्रकृति की रहती है | जबकि बिना धर्म और पुजा पाठ के वह जिवित रहने के साथ साथ आधुनिक विकाश भी कर सकता है | जैसे की इंसानो ने लंबे समय तक बिना मानव निर्मित धर्मो के विकाश किया और कई विकसित सभ्यता संस्कृति का निर्माण किया | जिसका अवशेष आज भी विश्व के कई अलग अलग जगहो में मौजुद है | जिस सभ्यता संस्कृति का विकाश किसी मानव निर्मित धर्म और किसी अदृश्य शक्ति की पुजा करने से नही बल्कि प्रकृति की कृपा से मुमकिन हो पाया है | जिसका प्रमाण इतिहास में मौजुद है कि जितने भी विकसित सभ्यता संस्कृति का निर्माण हुआ है , वे सभी किसी न किसी प्रकृति नदी के किनारे हुआ है | और आज भी यदि विकाश हो रहा है तो वह प्रकृति कृपा की वजह से ही हो रहा है | चाहे ग्राम हो या फिर शहर यदि वहाँ पर प्रकृति जल न हो तो इंसान विकाश करना तो दुर जिवित भी नही रह पायेगा , चाहे वह कितना ही पुजा पाठ कर ले और मंदिर मस्जित चर्च वगैरा में माथा टेक ले | लेकिन भी बहुत से लोगो का तब भी यह मानना है कि इंसान समेत साक्षात मौजुद पृथ्वी चाँद तारे समेत सारे जिव जंतुओं की जिवन कोई ऐसी शक्ती द्वारा संचालित हो रही है , जो न तो दिखता है , और न ही उसका कोई अता पता है | अथवा लापता और गायब होकर कोई शक्ती साक्षात मौजुद सृष्टी को संचालित कर रहा है | जिस तरह की बाते बतलाने वाले अभी तक इस सृष्टी में मौजुद इंसान जैसा दुसरा प्राणी और पृथ्वी जैसा दुसरा ग्रह के बारे में जानकारी भी पता नही कर पाये हैं , वे ये बड़बड़ाते रहते हैं कि उन्होने इस सृष्टी को बनाने वाले अदृश्य शक्ती को खोज लिया गया है | बल्कि सृष्टी रचने वाले खुद उनसे गायब होकर आवाज से संपर्क किया है | और अपनी अवाज के जरिये इंसानो को धर्म पुस्तक के रुप में अपना आदेश और संदेश भी दिया है | जो समय के अनुसार खुद ही विचार करता है और अपनी भाषा में उन विचारो व जानकारियों को खुद ही किताब के रुप में रचता है | जबकि कह देता है उन विचारो और जानकारियों को किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हे प्रदान किया है | जो सारे विचार और जानकारी दरसल इंसान खुद ही अपनी भाषा में अपने उस दिमाक और बुद्धी से रचा है जो प्रकृति की कृपा द्वारा विकसित हुई है | जिस तरह की जानकारी हासिल करने वालो द्वारा ही तो आज अपने विचारो और जानकारियों को किसी अदृश्य शक्ती द्वारा दी गई संदेश बताकर सृष्टी संचालन को लेकर कई अलग अलग विवादित विचार मानव निर्मित कई अलग अलग धर्म पुस्तको में मौजुद है | जिसे विद्यालयो में किसी प्रकृति विज्ञान , समाजिक विज्ञान , गणित वगैरा विषय की तरह छात्रो को नही पढ़ाया जा सकता  | क्योंकि धर्म पुस्तको को इन विषयो की तरह ही यदि विद्यालयो में पढ़ाया गया तो धार्मिक पुस्तको में लिखी गई जानकारी के विवाद से धार्मिक दंगा विद्यालयो में भी सुरु हो जायेगी | जो फिलहाल तो विद्यालयो से बाहर वाद विवाद करके धार्मिक दंगा होती रहती है | जो विवाद आजतक समाप्त नही हुआ है | और अगर इसी तरह सभी धर्म अपने अपने धार्मिक विचारो को खुद ही अपनी भाषा में रचकर किसी अदृश्य शक्ति द्वारा दिए गए जानकारी व संदेश  समझते रहे तो कभी समाप्त भी नही होंगे | क्योंकि सभी धर्मो के लोग अपने अपने धर्म पुस्तको में लिखी हुई बातो को कथित अदृश्य शक्ती की बाते मानकर अपने अपने हट में अड़े हुए हैं | जिनके बिच अपने अपने धार्मिक पुस्तको में अनगिनत ऐसे विवादित बाते लिखी गई है , जिसपर विवाद गहराने पर आयेदिन खुन खराबा होना समान्य बात हो गया है | जिसके बावजुद भी सभी मानव निर्मित धर्मो का मानना है कि उनकी धार्मिक पुस्तको में लिखी हुई सारी बाते और विचार सौ प्रतिशत सत्य है , जिसे अपडेट कभी नही किया जा सकता , भले क्यों न उन विवादो के चलते खुन की नदियाँ बह जाय और हर साल धार्मिक दंगा की वजह से से हजारो लाखो निर्दोश लोग मरते रहें | क्योंकि अपनी अपनी हठ में सभी मानव निर्मित धर्मो का आयेदिन आपस में बहस होता रहता है | क्योंकि धर्म पुस्तको में लिखी बाते उनके अनुसार इंसानो की नही बल्कि किसी अदृश्य शक्ती की है | फिर सभी धर्मो के बिच विवाद क्यों है जब एक ही अदृश्य शक्ती की है | जबकि प्रकृति को लेकर सबका प्रयोगिक प्रमाणित विचार यही होता है कि सभी इंसानो की जिवन प्रकृति हवा पानी वगैरा पर निर्भर है | जिसे विद्यालयो में भी पढ़ाया जाता है | क्योंकि प्रकृति विज्ञान प्रमाणित जानकारी का भंडार है | जिससे हर रोज नई नई जानकारी अपडेट होते रहती है | साथ साथ प्रकृति की कृपा से हर पल जिवन भी अपडेट होती रहती है | जिसके चलते चाहे नास्तिक हो या फिर आस्तिक सभी आजकल पर्यावरण के बारे में बहुत ज्यादे चिंता कर रहे हैं | क्योंकि सबको पता है कि चाहे सभी धर्म जो कहे पर इंसानी जिवन के बारे में प्रयोगिक प्रमाणित सत्य तो यही है कि प्रकृति पर ही सभी इंसानो की जिवन निर्भर है | जिसका असंतुलन होने पर किसी भी धर्म के पुजा स्थलो में जाकर नही बचा जा सकता | क्योंकि धर्म आस्था और विश्वास के उपर निर्भर है , जबकि प्रकृति विज्ञान प्रमाणित सत्य है | जिसकी प्रमाणिकता को हवा पानी लेना बंद करके साक्षात असर देखा जा सकता है कि बिना हवा पानी के इंसान के जिवन में क्या प्रमाणित प्रभाव पड़ता है | जबकि बिना पुजा स्थल और बिना मानव निर्मित धर्म के भी जिवन जिया जा सकता है यह बात नास्तिक और आस्तिक दोनो को पता है | जिसके बावजुद भी जिवन संचालन को लेकर विवादित जानकारी अलग अलग समय में अलग अलग कई इंसानो द्वारा सैकड़ो हजारो साल पहले उस समय रची जा चुकि है , जिस समय इंसान पृथ्वी में मौजुद सभी देश के बारे में भी नही जानता था | तभी तो सोने की चिड़ियां के बारे में जानने और उसकी समृद्धी से खुदको भी समृद्ध करने के लिए सैकड़ो हजारो सालो तक विदेशो से अनगिनत कबिलई झुंड इस देश में आते रहे हैं | विदेश यात्रा करने वाले इसी देश के यात्री या फिर पड़ौसी देश द्वारा इस कृषि प्रधान देश के बारे में तारिफ और चर्चा विदेशो में करने के बाद विदेशियो द्वारा भारत की खोज होती रहती थी | जिस तरह की खोज सैकड़ो हजारो साल तक करने वाले कई इंसानो को लगता है कि प्रकृति उसके द्वारा संचालित हो रही है , जो दिखाई ही नही देता | जिसके बारे में बतलाने वाले को तब पृथ्वी का भूगोल के बारे में यह भी पता नही था कि आखिर पृथ्वी में कहाँ कहाँ विकसित सभ्यता संस्कृति का निर्माण हुआ है , या हो रहा है | असल में सच्चाई यही है कि आज का अपडेट इंसान भी बतला नही सकता की प्रकृति में पृथ्वी जैसा दुसरा ग्रह और इंसान जैसा दुसरा प्राणी इस सृष्टी में और कोई है कि नही है तो सैकड़ो हजार साल पहले का इंसान जो बिना बिजली और बिना इंटरनेट की दुनियाँ में जीता था , वह खुदको सृष्टी रचनाकार और सृष्टी के बाहर दुसरी दुनियाँ के बारे में जानकार बतलाया और उसे सत्य मानकर उस समय मान भी लिया गया यह तो स्वभाविक था , पर आज का भी बहुत से इंसान अबतक ये मानते हैं कि उनकी जिवन प्रकृति के बजाय किसी ऐसी शक्ती द्वारा वजूद में है जो किसी को दिखाई ही नही देता है | जिस तरह के बातो में आज का अपडेट इंसानो द्वारा विश्वास करना मुझे तो अँधविश्वास लगता है | क्योंकि तब के समय में प्रकृति में मौजुद बहुत सी ऐसी जानकारी के बारे में इंसानो को पता नही था जो प्रकृति में विज्ञान प्रमाणित घटित होती थी | जैसे की भुकंप , ज्वालामुखी , सुनामी महामारी वगैरा | जिसे पहले किसी अदृश्य शक्ती का चमत्कार माना जाता था | जिस चमत्कार को आज का अपडेट इंसान कबका पता कर चुका है कि यह विज्ञान प्रमाणित चमत्कार प्रकृति का है , न की कोई अदृश्य शक्ती का है | जिसे समझने के लिए खुद ही एक सवाल का जवाब खोजकर पता किया जाय कि किसी दिन यदि दुनियाँ के सारे धर्म और धार्मिक स्थलो में बने पुजा स्थल  लापता अथवा गायब हो जाय तो क्या ऐसे में सभी इंसानो का जिवन संचालन नामुमकिन हो जायेगा ? बिल्कुल नामुमकिन नही होगा , क्योंकि सारी सृष्टी का प्रमाणित जिवन संचालन प्राकृति द्वारा हो रहा है | इंसानो के द्वारा बनाया गया अलग अलग कई धर्म और मंदिर मस्जिद चर्च वगैरा से नही | बल्कि कई देश और राज्य तो प्रकृति में मौजुद इंसानो के द्वारा निर्माण किया गया है | जिसके बगैर क्या जिवन संचालन पहले नही होती थी ? क्या सुरु से जानवरो और पेड़ पौधे समेत निर्जिवो का भी शरिर और पुरी जिवन ही प्राकृति द्वारा संचालित नही हो रहा है | जिसका जिवन संचालन कोई अदृश्य शक्ति द्वारा हो रहा है यह तो मात्र सैकड़ो हजारो साल पहले मौजुद इंसानो के द्वारा की गई कल्पना है | जबकि प्रकृति द्वारा संचालित जिवन विज्ञान प्रमाणित है |

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...