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सोमवार, 28 सितंबर 2020

अंबेडकर हिंदू परिवार की सफलता की कहानी


अंबेडकर हिंदू परिवार की सफलता की कहानी

ambedakar hindoo parivaar kee saphalata kee kahaanee

अंबेडकर ने तीस से अधिक उच्च डिग्री और हिन्दू कोड बिल समेत अजाद भारत का संविधान रचना हिंदू रहते किये थे |

अंबेडकर का जन्म हिंदू परिवार में हुआ था | और उन्होने हिंदू मंदिरो में प्रवेश पर रोक हटवाने के लिए मनुवादीयों के खिलाफ आंदोलन चलाया था | क्योंकि यहूदि DNA के मनुवादीयो ने खुदको हिंदू धर्म का पुजारी और हिंदू धर्म का सबसे बड़े ठिकेदार समझकर बहुत से हिंदू पुजा पाठ स्थलो में इस देश के उन मुल हिंदूओं को प्रवेश करने से रोक लगा रखा था , जिनकी तादार मनुवादीयों से अधिक है | इतना अधिक की मुलनिवासि हिंदूओ की अबादी के चलते ही हिंदू धर्म विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म कहलाता है | जो पहला कहलाता यदि यहूदि DNA के मनुवादीयों के द्वारा हिंदू बनकर मुल हिंदूओं के साथ छुवा छुत जैसे शोषण अन्याय अत्याचार करके दुसरे धर्मो में जाने के लिये बहुत से मुलनिवासियों के जिवन में अति बुरे हालात न पैदा किया जाता | जैसे की मनुवादीयो ने मनुस्मृति लागु करके कभी किये थे | जिस मनुस्मृति को अंबेडकर ने जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना तो कर दिये हैं , पर फिर भी मनुस्मृति का भुत अब भी इस देश में मंडराना जारी है | क्योंकि अब भी छुवाछुत के साथ साथ विभिन्न तरह के शोषण अत्याचार मनुवादीयो द्वारा किया जाना जारी है | जैसे की आजतक भी कहीं कहीं मंदिरो के बाहर शुद्र का प्रवेश मना है बोर्ड लगा मिल जाता है | जिस भेदभाव के खिलाफ अंबेडकर ने भी आंदोलन चलाये थे | हलांकि जब हिंदू मंदिरो का सबसे पहले निर्माण सुरु हुआ था तो वहाँ पर वेद ज्ञान बांटी और ली जाती थी , न की देवी देवताओं की पुजा होती थी | अथवा आज जो हिंदू मंदिर के नाम से देवी देवताओं की मंदिर है , उन मंदिरो का निर्माण सबसे पहले ज्ञान मंदिर के रुप में हुआ था | क्योंकि उस समय लिखाई पढ़ाई की सुरुवात दुनियाँ में कहीं नही हुआ था | इसलिए सिर्फ वेद ज्ञान अथवा मुँह से बोलकर आवाज के जरिये ही ज्ञान बांटा जाता था | और कान से सुनकर वेद ज्ञान लिया जाता था | जिस वेद ज्ञान को ही लेने और बांटने से मनुवादियों ने मनुस्मृति लागू करके इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित करके रोक लगा दिया था | जिसके लिये उन्होने यह नियम कानून बनाया कि शुद्र यदि वेद ज्ञान सुनेगा तो उसके कान में गर्म पिघला लोहा डालकर उसे बहरा कर दिया जायेगा | ताकि वह फिर कभी वेद ज्ञान सुन ही न सके | और यदि वेद बोलेगा तो उसका जीभ काटकर उसे गुंगा बना दिया जायेगा | ताकि वह फिर कभी वेद बोल ही न सके | बल्कि रामराज में तो शंभुक प्रजा के द्वारा छिपकर वेद ज्ञान लेने पर राजा राम ने उसकी हत्या तक कर दिया था | जिस तरह की प्रजा सेवा मनुवादीयों द्वारा इस देश के मुलनिवासियों के साथ हजारो सालो से होना समय समय पर जारी है | बल्कि ऐसी प्रजा सेवा करते करते मनुवादियो ने अपने पुर्वजो को भगवान बताकर वेद ज्ञान मंदिरो में उनकी मुर्ति बिठाकर बाहर यह बोर्ड लगाने सुरु कर दिये कि मंदिर में शुद्र का प्रवेश मना है | जिनका वश चले तो मनुस्मृति लागु करके संसद में भी सिर्फ खुदको सांसद घोषित करके संसद के बाहर भी ये बोर्ड लगा देंगे कि अंदर शुद्र का प्रवेश मना है | तभी तो ब्रह्मण बाल गंगाधर तिलक ने इस देश के मुलनिवासियों के बारे में अपने विचार व्यक्त किया था कि “ तेली, तंबोली, कुंभट, खाती, कूर्मी और पाटीदार, ये सभी विधिमंडल में जाकर क्या हल चलायेंगे ? जो हल न चला पाने की वजह से ही तो मनुवादी घुमकड़ जिवन जिते हुए लुटपाट से अपना पेट पालने इस कृषि प्रधान देश में हजारो साल पहले प्रेवेश किये थे | जो इस तरह से लुटपाट की मकसद से प्रवेश नही करते यदि वे उस समय खेती करना जानते और एक जगह सागर की तरह स्थिर होकर अन्न की खेती करके अपना पेट पालना जानते | जो कृषि कार्य न सिख पाने कि वजह से वे इस कृषि प्रधान देश में आकर कृषि में मदत करने वाले पशुओं की लुटपाट और चोरी करने लगे | क्योंकि इस देश में प्रवेश करने से पहले वे भले अन्न की रोटी पकाना नही जानते थे पर पशु बोटी नोचना जरुर जानते थे | जिसके बारे में वेद पुराणो में भी जानकारी भरे पड़े हैं कि इंद्रदेव द्वारा पशुओं की चोरी और लुट करके किस तरह से पशुओं को बांटने के लिए यज्ञ हुआ करते थे | बल्कि आज भी मनुवादी सत्ता में यूँ ही बोटी की पिंक क्रांती नही आई है | खैर ये तो मनुवादीयों के पास खेती करने की हुनर मौजुद न रहने की वजह से क्या खास खराबी और खास हुनर भी अबतक भी उनके अंदर कायम है , इसकी सिर्फ झांकी है | पर इसकी वजह से मनुवादी प्राकृति से भी चूँकि कोई खास जुड़ा हुआ नही रहता है , इसलिए उसकी अप्राकृति ढोंग पाखंड के बारे में भी वेद पुराण में मिलावट और छेड़छाड़ भरे पड़े हैं | जिस अप्राकृति मान्यताओं की पुजा देवता पुजा भी है | जो की भगवान पुजा नही है | क्योंकि भगवान पुजा साक्षात प्राकृति और विज्ञान प्रमाणित पुजा है | जो न तो भेदभाव करना सिखाता है , और न ही अँधविश्वासी होना सिखाता है | जिस प्राकृति का ज्ञान सभी धर्मो के साथ साथ नास्तिक लोग भी अपने बुद्धी का विकाश करने के लिए लेते हैं | जबकि ये मनुवादी प्राकृति भगवान पुजा में भी भेदभाव करते हैं | और अँधविश्वासी बनने के लिए झुठे ज्ञान भी बांटते हैं | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि ये मनुवादी उस मनुस्मृती बुद्धी को उच्च मानते हैं , जिसमे इंसान का जन्म मुँह छाती जँघा और चरणो से हुआ था ऐसी अप्राकृति ज्ञान इनके भ्रष्ठ बुद्धी में भरे पड़े हैं | जिस बुद्धी से मनुवादीयों ने हिंदू वेद पुराणो में भी छेड़छाड़ और मिलावट किया है | जिस छेड़छाड़ और मिलावट की वजह से ही तो मनुवादी अपने पुर्वज देव को भगवान कहकर उनकी मुर्तियों की पुजा आजतक भी आँख मुँदकर अपने बच्चो और इस देश के मुलनिवासियों के भी बच्चो को करवाते आ रहे हैं | जिन देवो की मुर्ति भी छुवाछुत और भेदभाव करता है | तभी तो आजतक भी कहीं कहीं मंदिरो के बाहर ये बोर्ड लगा मिल जाता है कि अंदर शुद्र प्रवेश न करें | जो बोर्ड हिंदू पुजा स्थलो में तब से लगनी सुरु हुई जबसे मनुवादियों ने हिंदू भगवान अपने पुर्वज देवो को घोषित करके हिंदू पुजा स्थलो में भी देवो की मूर्ति को लगाना सुरु किया होगा | जिसके बाद से हिंदू पुजा स्थलो को देव मंदिरो में अपडेट करके भेदभाव का बोर्ड लगाना सुरु हुआ | जिस तरह के भेदभाव के खिलाफ बहुत सारे आंदोलन हुए हैं | जिन आंदोलनो में अंबेडकर द्वारा मनुवादीयों के विरोध में मनुस्मृति को जलाया गया था | क्योंकि मनुस्मृति छुवाछुत शोषण अत्याचार और ढोंग पाखंड को बड़ावा देता है | जिसके खिलाफ आंदोलन चलाने और मनुस्मृति को जलाने के बावजुद भी जब मनुवादी अपनी भेदभाव विरासत को नही छोड़े तो जिवन के अंतिम छनो में अंबेडकर ने अपने पुर्वजो की मुल विरासत हिन्दू धर्म को मनुवादियों का धर्म कहकर उस बौद्ध धर्म को अपना लिया जिसमे भी मनुवादीयों की तरह ही ढोंगी पाखंडी मौजुद हैं | जो अपना ढोंग पाखंड का व्यापार करने के लिए सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की बाते करके खुब सारा दान इकठा करके और उससे सार्वजनिक मंदिरो का तो निर्माण करते हैं , पर वे भी मनुवादीयों की तरह ही कई बौद्ध मंदिरो में भेदभाव करते हैं | वैसे तो बौद्ध धर्म भी प्राकृति प्रमाणित बुद्धी की बात करता है , पर बौद्ध धर्म में भी अँधविश्वास का ढोंग पाखंड किस तरह से चल रहा है रोजमरा जिवन में छिपी नही है | लेकिन भी अपने बौद्ध धर्म में दुसरे धर्मो के लोगो को जोड़ने के लिए बौद्ध धर्म के बहुत से प्रचारक ये कहते फिरते हैं कि बौद्ध धर्म में भेदभाव नही होता है | मूर्ति पुजा नही होता है | और कोई भी बौद्ध धर्मगुरु भेदभाव नही करता है | जिस तरह का सफेद झुठ से ही पता चल जाता है कि बौद्ध धर्म में भी कपटी और झुठे मनुवादी भरे पड़े हैं | जो स्वभाविक है , क्योंकि बौद्ध धर्म का जन्म हिन्दू धर्म में मनुवादीयो द्वारा कब्जा किये जाने के बाद हुआ है | जिसके चलते बुद्ध को हिन्दू अवतार में एक माना जाता है | जो मनुवादी किसी मुलनिवासी को अवतार घोषित नही कर सकते , क्योंकि मनुवादी के लिए इस देश के मुलनिवासी शुद्र और निच हैं | जो शुद्र और निच बुद्ध को नही माना गया हैं | और बौद्ध धर्म के खास अवतार माने जाने वाले बुद्ध का जन्म वाकई में क्षत्रिय परिवार में ही हुआ था | क्योंकि बुद्ध जन्म के समय मनुवादी ढोंगी पाखंडीयों का दबदबा बुद्ध के परिवार में भी मौजुद था | जिसके चलते वे बुद्ध को वेद पुराण की बुद्धी देने के लिए बुद्ध के महलो में कई कई ब्रह्मण पंडित आते जाते थे | क्योंकि क्षत्रिय परिवार में जन्मे बुद्ध शुद्र नही थे कि वे उससे छुवाछुत करते ! जाहिर है यदि बुद्ध वाकई में शुद्र होते तो उन्हे वेद पुराणो की बुद्धी देने के लिए मनुवादी ब्रह्मण पंडितो की लाईन उनके महलो में नही लगती , बल्कि बुद्ध के साथ भी वही भेदभाव व्यवहार होता जैसा कि अंबेडकर समेत बाकि भी मुलनिवासियों के साथ निच शुद्र अच्छुत कहकर होता था | बल्कि आज भी बहुत से जगहो में होता है | हलांकि चूँकि बुद्ध के माता पिता विवाह करने के लंबे समय बाद भी औलाद से वंचित थे , अथवा उनका कोई औलाद नही हो रहा था जो कि बहुत बाद में जंगलो में एक शाल पेड़ के निचे बुद्ध का जन्म हुआ था बतलाया जाता है , इसलिए क्या पता वाकई में बुद्ध का जन्म शाल वृक्ष के जंगलो में रहने वाले मुलनिवासियों के परिवार में ही हुआ हो ! जो शाल वृक्ष का जंगल अखंड मगध में भरे पड़े हैं | और मगध से बुद्ध का खास रिस्ता है | और जिस तरह की बाते बतलाया जाता है कि  बुद्ध का जन्म शाल वृक्ष के निचे हुआ था वह भी महलो में रहने वाली रानी ने शाल पेड़ के निचे बच्चे को जन्म दिया था यह बाते तर्क संगत नही लगती है | क्योंकि प्रयोगिक जिवन में मैने भले कई उदाहरन जंगलो में पेड़ के निचे बच्चा होने के बारे में सुना है , बल्कि मेरे एक रिस्तेदार जो की गांव में रहता है , उसने एकबार मुझे बताया था की उसकी एक दोस्त की पत्नी ने भी शाल वृक्ष के जंगलो में गर्भवती अवस्था में भी लकड़ी चुनने जब गई हुई थी और लकड़ी का बोझा ढोकर अपनी सहेलियों के साथ आ रही थी तो जंगल में ही माँ बन गयी थी | अथवा अपने बच्चे को जन्म दी थी | जैसे की अक्सर खबरे भी दर्ज होती रहती है कि गरिब महिलायें कई बार गरिबी की वजह से ठीक से इंतजाम न होने की वजह से रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे देती है | लेकिन भी ज्यादेतर गरिब परिवार में भी बच्चे घरो में ही जन्म लेते हैं | जिसके चलते मेरे विचार से तो आज के समय में भी यदि किसी मध्यम परिवार की महिला भी गर्भवती होगी तो उसे ऐसी गर्भवती अवस्था में या तो बहुत पहले ही मायके भेज दिया जायेगा या फिर उसे अपने ससुराल में ही सुरक्षित बच्चे को जन्म देने तक खास ख्याल रखा जायेगा | न कि बहुत बड़ी लापरवाही करते हुए उसके लिए जंगल में पेड़ के निचे बच्चे को जन्म देने जैसे बुरे हालात बनाये जायेंगे  | और फिर बुद्ध के माता पिता तो वैसे राजा रानी थे जो उस महल में रहते थे जहाँ पर सारी सुख सुविधा और सुरक्षा उपलब्ध थी ऐसा बतलाया जाता है | हलांकि रामायण का राजा राम की पत्नी सीता ने भी अपने दो बच्चे लव कुश को जंगलो में ही जन्म दि थी | और जैसा कि हमे पता है कि राम को भी क्षत्रिय माना जाता है | जो अपनी पत्नी को एक धोबी के कहने पर कि तुम्हारी पत्नी के पेट में रावण का नाजायज औलाद पल रहा है ऐसी शकभरी बातो को भी बाकि लोगो की बातो से और यहाँ तक की अपनी उस पत्नी की भी बातो से ज्यादा महत्व दिया जिस पत्नी को उसने अग्नि परीक्षा तक लेके रावणराज से अजाद कराकर रामराज में प्रवेश कराया था | जिस सीता को राम ने गर्भवती अवस्था में भी जंगलो में भेज दिया था | जहाँ पर सीता ने वाल्मीकी के कुटिया में लव कुश को जन्म दि थी | जो लव कुश रामराज राजधानी अथवा शहरी अयोध्या महलो के वारिस होते हुए भी जंगली बच्चा बनकर जंगली जिवन जीये थे | जिन्हे अपने पिता राम के साथ अपनी माँ सीता के साथ रहने का कभी नसीब ही नही हुआ था | बुद्ध तो जंगल में जन्म लेकर महलो में ही जवानी तक का वैवाहिक जिवन जीया और वेद पुराणो का ज्ञान भी हासिल किया | जिसके बाद वापस जंगलो में जाकर तप करके कई कई विद्वान पंडितो के द्वारा ज्ञान डिग्री से भी ज्यादा बड़ी बुद्धी हासिल किया | जिसे हासिल करने के बाद ही तो यह कहा जाता है कि बुद्ध को बिना गुरु के पेड़ के निचे उस बुद्धी की प्राप्ति हुई थी जिसके सामने बड़े बड़े महंगे विद्यालयो में प्राप्त बड़े बड़े उच्च ज्ञान की डिग्री फेल है | मेरा तो मानना है बुद्ध को इस देश के मुलनिवासियों के संपर्क में आकर इस देश की मुल सभ्यता संस्कृति और मानवता प्राकृति पर्यावरण पर अधारित मुल हिन्दू धर्म का ही अंश ज्ञान प्राप्त हुआ था | जिसके बल पर बाद में बौद्ध धर्म का जन्म हुआ है | जिसमे मौजुद प्राकृति विज्ञान प्रमाणित ज्ञान हिन्दू धर्म में मौजुद मानो सागर ज्ञान का ही कुछ बुंदे है | जिसे बुद्ध ने मुल हिन्दूओं से इसलिए प्राप्त किया था , क्योंकि बुद्ध को मनुवादीयों ने हिन्दू वेद पुराण का ज्ञान देते समय मुल हिन्दू ज्ञान में मिलावट और छेड़छाड़ करके दिया था | जिसके चलते बुद्ध को अपने महलो से बाहर निकलकर ही मुल हिन्दूओं से इंसान का प्रयोगिक जिवन मरन ज्ञान और पर्यावरण और मानवता का ज्ञान को जमिनी स्तर से उस साक्षात प्रमाणित प्राकृति के बिच में जाकर सिखने को मिला , जिस प्राकृति की पुजा हिंदू धर्म में भगवान के रुप में होता है |  जिसे और भी अधिक बेहत्तर तरिके से हासिल करने के लिए बुद्ध को उन जंगलो में ही जाना पड़ा जहाँ से जन्म से लेकर मरन तक का खास रिस्ता सिर्फ इस देश के मुलनिवासियों का ही जुड़ा रहता है | वैसे बुद्ध का भी जन्म शाल पेड़ के निचे जंगलो में ही हुआ था यह बतलाया जाता है | जिसके चलते मुमकिन है बुद्ध के असली माता पिता इस अखंड देश के मुलनिवासी ही हो , जिनके बच्चे को महलो में रहने वाले उस राजा रानी ने गोद लिया हो जो जवानी से अधेड़ होने तक भी माता पिता नही बन पा रहे थे |  जिसके चलते हो सकता है अपना वारिस के तौर पर उन्होने किसी जंगली या ग्रामीण बच्चे को गोद लेकर महलो में तो पाला पोसा और पढ़ाया भी पर चूँकि डीएनए का भी आखिर कोई रिस्ता होता है , इसलिए बुद्ध को डीएनए की ओर खास आर्कषण की वजह से जंगलो और मुलनिवासियों की ओर खास झुकाव हुआ और उस क्षत्रिय परिवार के प्रति लगाव कम होता गया जिसने बुद्ध को जिवन मरन का ज्ञान भी देना जरुरी नही समझा और बुद्ध को बाल बच्चेदार होने तक भी महलो में मानो कैद रखकर बाहरी उस गुलामी जिवन से दुर रखा जहाँ पर हो सकता है बुद्ध के असली माता पिता मनुवादीयों के द्वारा गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार किये जा रहे थे | जिसके बारे में जब बुद्ध को चोरी छुपे महलो से बाहर जाकर ज्ञान हुआ तो उन्होने मनुवादीयों के द्वारा किये जा रहे ढोंग पाखंड और भेदभाव का विरोध भी करना सुरु करके ये साबित करना सुरु कर दिया था कि उसे इस देश के मुलनिवासियों की जिवनशैली में ही असल में मानवता और पर्यावरण नजर आता है | न की मनुवादीयों की जिवनशैली में | जिसके चलते मुझे भी लगता है बुद्ध क्षत्रिय नही बल्कि वाकई में मुलनिवासी परिवार में जन्मा होगा | जिसका अवशेष यदि अब भी मौजुद होगा तो मेरे विचार से तो उसका डीएनए से मनुवादीयों का डीएनए से मिलान किया जाना चाहिए , ताकि पुर्ण रुप से पता चल सके कि बुद्ध क्षत्रिय थे की शुद्र ? मुमकिन है बुद्ध का डीएनए भी इस देश के मुलनिवासियों से ही मिलेगा |

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