गांधी सूट बूट जिवन

 

गांधी सूट बूट जिवन

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गांधी की सूट बूट मूर्ति आखिर क्यों नही बनती है ? जबकि उसकी लगभग आधी जिवन सूट बूट में ही कटी है | क्योंकि सायद सूट बूट गांधी की मूर्ति देखने सुनने और बोलने से गांधी के तीन बंदर इंकार कर देंगे | बल्कि उसे पहचानने से भी सायद इंकार कर देंगे | इसलिए सायद अबतक जितनी भी गांधी मूर्ति बनती आ रही है , सभी धोती पहने हुए रहती है | और धोती ग्रामीण भारत की खास पहचान है | जो ग्रामीण जिवन सूट बूट गांधी ने धोती को इस कृषी प्रधान देश की खास मानकर कभी अपनाया ही नही | गांधी ने ग्रामीण धोती जिवन की खास सुरुवात तब किया जब गोरो के साथ रेल सफर करते समय उसे सूट बूट पहने गोरो ने लात मारकर रेल से निचे फैंक दिया | जिसके बाद गांधी को इतना झटका लगा कि उसने सूट बूट उतारकर धोती कपड़ा पहनकर विदेशी बहिष्कार का आंदोलन चलाना सुरु कर दिया | जिसके आंदोलन में बहुत से लोग सहयोग करके वे भी विदेशी कपड़ो को जलाने लगे  | जो आंदोलन चलाने के बारे में गांधी ने आधी जिवन सूट बूट पहनकर कभी सोचा भी नही होगा | क्योंकि उससे पहले दरसल गांधी भी सूट बूट धारन करके खुदको खास समझता होगा | जिसके चलते उसने गोरो की बराबरी का खास रेल टिकट लेकर खास बोगी में गोरो के साथ रेल सफर कर रहा था | वह भी उन सूट बूट वाले गोरो के साथ जिन्होने कई देशो को गुलाम किया हुआ था | हो सकता है गांधी को तब सायद पुरा यकिन था कि कई देशो को गुलाम करने वाले गोरे और गुलाम हुए दुसरे लोग भले रेल सफर खास बोगी में नही कर सकते हैं , पर सूट बूट गांधी को गुलाम न समझकर कोई सूट बूट पहना गोरा उससे भेदभाव नही करेगा | क्योंकि गांधी उस उच्च जाति से आता था , जिसका खुद ही गुलाम करके भेदभाव करने का गोरो से भी ज्यादे पुराना और लंबा इतिहास रहा है | जिसके बारे में मनुस्मृति और अन्य भी कई पुस्तके जिसमे कथित उच्च जातियों के द्वारा गुलाम करके भेदभाव करने का इतिहास के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी है | उदाहरन के तौर पर इस कृषि प्रधान देश को गुलाम करके मनुस्मृति लागू करके जिन यूरेशियन मूल के लोगो ने खुदको कथित उच्च जाति घोषित किया हुआ है , उस उच्च जाति से गांधी भी आता है , जो जाति इस देश के मुलनिवासियों को गोरो से भी पहले गुलाम करके मनुस्मृति लागू करके , और गुलामो को निच घोषित करके यह नियम कानून बनाया था कि यदि निच जाती वेद ज्ञान बोले तो उसकी जीभ काट दिया जायेगा | और वेद ज्ञान सुने तो उसके कानो में गर्म पिघला लोहा डाल दिया जायेगा | जिस तरह के नियम कानून लागू करने के साथ साथ मनुवादीयों ने विशेष भेदभाव सफाई अभियान भी चलाया कि निच जाति यदि सड़को पर चले तो वह अपने कमर में झाड़ू टांगकर चले ताकि उसके अपने ही देश में चलने से जो अशुद्धीकरण आयेगी वह झाड़ू के साथ साफ हो जाय | जो अशुद्धीकरन यूरेशिया से आए विदेशी मुल के मनुवादीयों के द्वारा अपनी अशुद्ध भ्रष्ठ दिमाक से किसी के देश को गुलाम बनाकर चलने से नही आती थी | इतना ही नही गुलाम गले में थुक हांडी टांगकर चले जिसमे वह थुकेगा | और तो और यदि निच जाति खुद बिना किसी गुरु के भी रक्षक हुनर सिख ले तो मनुवादी इतने बेशर्मी की हदे पार कर चुके हैं कि वे किसी को बिना ज्ञान बांटे भी गुरु दक्षिणा लेते हैं | जैसे की एकलव्य ने अर्जुन से भी बेहत्तर लक्ष साधने वाली कला बिना गुरु के सीख लिया था | क्योंकि एकलव्य को निच जाति कहकर पांडवो का गुरु द्रोणाचार्य ने लड़ाकू कला अथवा तीर धनुष चलाने की कला सिखाने से मना कर दिया था | जिसके चलते एकलव्य बिना गुरु के ही खुद ही अकेले अभ्यास करते करते युद्ध कला में इतना आगे निकल गया कि द्रोणाचार्य को एकलव्य की युद्ध कला झांकी मात्र देखकर अपने युद्ध कला ज्ञान से सिखाये हुए शिष्यो पर शक ही नही बल्कि यकिन हो गया कि कथित विश्व का न० 1 योद्धा अर्जुन भी एकलव्य की युद्ध कला के सामने कुछ नही है | जिसके कारन वह बेशर्मी की सारी हदे पार करके बिना ज्ञान दिये भी एकलव्य से गुरु दक्षिणा के तौर पर अँगुठा मांग लिया | जबकि उसने एकलव्य को निच जाति कहकर अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था | लेकिन भी उसने एकलव्य से गुरु दक्षिणा भी मांगा तो अँगुठा काटकर | जिस तरह तो अँगुलीमार डाकू भी अँगुठा काटकर नही मांगता था | क्योंकि वह स्वीकारता था कि वह अपराध कर रहा है लोगो का अँगुठा काटकर | लेकिन मनुवादी तो आज भी स्वीकार नही करता है कि द्रोणाचार्य ने गलत किया था | तभी तो मनुवादी शासन में द्रोणाचार्य को खास गुरु का दर्जा देकर उसके नाम से गुरुग्राम बनाया है | जिस तरह के बेशर्म इतिहास कथित उच्च जातियों की रही है | जिस उच्च जाति से चूँकि गाँधी भी आता था , जिसके भितर भी यूरेशिया से आए उन्ही गुलाम करके मनुस्मृति लागु करने वाले मनुवादीयों का DNA दौड़ रहा था , इसलिए सायद गांधी ने गोरो के साथ रेल सफर करते समय यह उम्मीद लगाये हुए था कि चूँकि उनके पुर्वजो का गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार करने का इतिहास गोरो से कहीं ज्यादे पुराना है , इसलिए निश्चित तौर पर गुलाम बनाकर भेदभाव शोषण अत्याचार करने का अनुभव में उनके पुर्वज गोरो से कहीं आगे रहे हैं | जिसके बारे में गोरे जरुर जानते होंगे और उन्हे अपने से उच्च मानते होंगे | जिसके चलते ही सायद गांधी ने एकबार गोरो को यह कहा था कि उसके लिए अलग से प्रवेश द्वार बनाया जाय | दक्षिण अफ्रीका के लोगो अथवा जिन्हे काला अफ्रीकन कहा जाता था , उनके साथ ही प्रवेश न करया जाय | दरसल गोरे इस देश को गुलाम करके जिस तरह भेदभाव की मकसद से गेट में यह लिखते थे कि कुत्तो और इंडियनो का अंदर आना मना है , उसी तरह गोरे अफ्रीका को भी गुलाम बनाकर वहाँ पर भी भेदभाव की मकसद से दो गेट बनाये थे , जिसमे से एक गेट से गुलाम करने वाले गोरे प्रवेश करते थे , और दुसरे से गुलाम प्रवेश करते थे | जिसके बारे में ही जानकर गांधी ने गोरो को अपने लिए अलग से गेट बनाने की मांग किया था | क्योंकि गांधी गुलाम अफ्रीकनो के साथ में प्रवेश करना नही चाहता था | जिस घटना के बारे में ही जानकर बहुत से अफ्रीकन आज भी गांधी को महात्मा नही मानते हैं | जैसे कि भारत में भी बहुत से लोग गांधी को महात्मा नही मानते हैं | जिनमे एक वामन मेश्राम भी खास है | जिनकी एक बात मुझे खास लगती है कि वे खुले मंच से कहते हैं कि जिसदिन भी मनुवादी शासन से अजादी मिलकर मुलनिवासियों का शासन आयेगा गांधी के सारी मूर्तियों को धसाकर पानी में बहा देंगे | क्योंकि वे गांधी को बहुत बड़ा बिलेन समझते हैं इस देश के मुलनिवासियों को फिर से मनुवादी गुलामी में ढकलने के लिए | और चूँकि मैं भी मानता हूँ कि गांधी कोई महात्मा वात्मा नही है , बल्कि देखा जाय तो गांधी ने भले ही मनुवादीयों के लिए वाकई में महात्मा जैसा कार्य किया है , जिसके चलते ही मनुवादीयों ने उसे महात्मा का दर्जा दे रखा है | क्योंकि गांधी ने ही मनुवादीयों को गोरो से अजादी मिलने के बाद फिर से सत्ता दिलवाया है | जो सत्ता जा सकती थी यदि गांधी भुख हड़ताल करके बाबा अंबेडकर की मांगो को खारिज करने के लिए अंबेडकर को मजबूर करके गोवा समझौता नही करता | जिस समझौता का विरोध आज भी बहुत से मुलनिवासी करते हैं | क्योंकि यदि अंबेडकर के मन मुताबिक गोवा समझौता हो जाता तो चुनाव में जो अलग से निर्वाचन का समझौता हो रहा था , वह समझौता 85% मुलनिवासियों का विक्राल रुप धारन करके मनुवादियों के लिए मात्र 15% वोट से चुनाव जितने का चुनौती बनकर आता | और मनुवादी कभी भी सरकार बनाना तो दुर सांसद भी नही बन पाते | जिसके बारे में गांधी को पता था , क्योंकि उसकी वकालत बुद्धी के साथ साथ अपने पुर्वजो की छल कपट बुद्धी भी काम करती थी | जिसका इस्तेमाल करके उसने आखिरकार भूख हड़ताल करके बाबा अंबेडकर को मानो इमोशनल ब्लेकमैल करके मजबूर कर ही दिया | हलांकि बाबा अंबेडकर को तब अपनी रोजमरा जिवन में ही हर रोज जो करोड़ो मुलनिवासी भुखमरी जिवन गुजारकर कई तो हर रोज गुजर भी रहे हैं , उसके बारे में गांधी और उसकी पत्नी को पुछना चाहिए था कि इनका क्या ? पर चूँकि वे जानते थे कि मनुवादी की समझ इस देश के मुलनिवासियों के प्रति भेदभाव शोषण अत्याचार की रही है , इसलिए सायद बाबा अंबेडकर ने गांधी से यह सोचकर समझौता किया होगा कि गाँधी के द्वारा लिया गया सारे वचन को अजाद भारत का संविधान लागू होते ही कम से कम संवैधानिक तौर पर तो मनुवादी जरुर निभायेंगे | पर समझौता करते समय लिया गया खास वचनो को नही निभाया गया और मनुवादी आजतक भी हर बार के चुनावो में उन वचनो को निभाने की बाते करके दोहराते तो जरुर हैं पर सरकार बनने के बाद निभाते नही हैं | खैर मुझे तो गांधी के जिवन में ब्रह्मचर्या का प्रयोग के बारे में जानकर भी गांधी को महात्मा बतलाने वालो का रुप ढोंग पाखंड वाला ही दिखलाई देता है , जैसा कि वेद पुराणो में छेड़छाड़ और बदलाव करके देवो को भगवान बताकर आरती उतरवाने वालो का ढोंगी पाखंडी रुप दिखलाई देता है | और वैसे भी गांधी को ब्रह्मचर्या का प्रयोग वाकई में तब करना चाहिए था जब वह जवानी में वैवाहिक जिवन जिते हुए बच्चो की लाईन लगा दिया था | पर उस समय नही किया और तब किया जब उसकी जवानी की मोमबत्ती वैसे भी बुझ रही थी | गांधी जो किशोरियो को नंगा होने के लिए कहकर खुद भी नंगा होकर उसके साथ सोकर ब्रह्मचर्या का प्रयोग करता था उस तरह का प्रयोग वह युवाओ को करने के लिए क्यों नही कहता था ? क्यों युवाओ को लड़कियों से नंगा होकर सोना मना किया था | और गांधी खुद नंगा होकर नंगी किशोरियों से क्यों सोकर ब्रह्मचर्य का प्रयोग करता था ? जिस तरह का प्रयोग कितने गांधी भक्त अपने जिवन में करना चाहेंगे किशोरियों को नंगा करके उसके साथ खुद भी नंगा सोकर ? मुझे नही लगता कोई गांधी भक्त कभी ऐसा प्रयोग करता होगा या किया होगा ! और वैसे भी अभी यदि इस तरह के प्रयोग कोई करते हुए पकड़ा गया तो मेरे ख्याल से उसके ब्रह्मचर्या का प्रयोगशाला में वैसा ही छापा पड़ जायेगी जैसे की मासुम लड़कियों के साथ यौन शोषन करने की शिकायत सुनकर ढोंगी पाखंडी बाबाओ के आश्रम में छापा पड़ती है | जहाँ से बहुत सारी ऐसी ऐसी शोषण अत्याचार की गुप्त बाते सामने आती है , जिसे लंबे समय तक छिपाकर ढोंगी पाखंडी बाबाओ को भगवान का भेजा गया विशेष चमत्कारी बाबा माना जाता है | पर जैसे ही उसके बारे में पुरा गुप्त भोग विलाशी इतिहास खुलती है , तो उसके भक्तो की संख्या में भी लगातार ऐसी कमी आती है , जैसे की अचानक से पाप का घड़ा फुटने से घड़े में भरा पानी में कमी आती है | मनुवादीयों की भी पाप का घड़ा जिसदिन भी पुरी तरह से फुटेगा उसदिन उनकी ढोंग पाखंड में ऐसी कमी आयेगी कि वे दुबारा से उस कमी को कभी पुरा ही नही कर पायेंगे | क्योंकि उनकी नई पिड़ी उस पाप घड़ा को ढोने के लिए अब उस तरह से सामने आनेवाली नही है , जैसे की हजारो सालो से पिड़ी दर पिड़ी आती रही है | और यदि अपने पुर्वजो की किमती खजाना मानकर आयेगी भी तो उन्हे उन नई पिड़ियों का सामना करना पड़ेगा , जो अब यह जानने और मानने लगी है कि यदि छिने गए अपने हक अधिकारो को वापस लेनी है तो मनुवादी गुलामी से अजादी ही सबसे बड़ा लक्ष रखनी चाहिए | जिसके बगैर चाहे जितने बड़े उच्च पदो को प्राप्त कर लो , मनुवादी गुलामी में कभी भी वह कामयाबी महसुश नही करोगे जो कि मनुवादी शोषण अत्याचार से पुर्ण अजादी के बाद महसुश करोगे |


क्योंकि गोरो से अजादी मिलकर मनुवादी से फिर से गुलामी मिली है |




जिस तरह वीर जवान जब कोई खास लक्ष में रहता है , उस समय जिन्दा रहने के लिए विभिन्न प्रकार का कीड़ा मकौड़ा और गंदा पानी तक भी खाता पीता है , उसी तरह बहुसंख्यक शोषित पिड़ित मुलनिवासी भी अजादी का लक्ष को हासिल करने के लिए गंदा भोजन और गंदा पानी भी पी रहे हैं | जिनकी वीरता पर गर्व है |


शोषित पिड़ित को जब भी अपनी गरिबी भुखमरी जिवन से निराशा हो , और खुदकी अभावग्रस्त जिवन से शर्मिंदगी महसुश होने लगे तो मन में सिर्फ एक ही बात सोचें की देश मनुवादीयों से गुलाम है,जिससे अजादी मिले बगैर वह खुशी कभी हासिल ही नही हो सकती जिसकी तलाश प्रत्येक अजादी के वीर जवानो को होती है|


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