इतनी बड़ी साक्षात दुनियाँ बनाकर वह खुद छिपा हुआ क्यों है ?
इंसान और जानवर वगैरा ही बलात्कारी हो सकते हैं भगवान नही | और देव दानव दोनो ही इंसान थे न की देव भगवान थे की उनकी पुजा की जाय | क्योंकि यदि देव दानव दोनो ही अलग अलग प्राणी थे फिर अहिल्या का बलात्कारी इंद्रदेव का लिंग इंसान के लिंग जितना और दानव का बरगद का पेड़ जितना होने से देव दानव आपस में शारिरिक रिस्ता कैसे जोड़ते थे ? क्योंकि दानव असुर के दांत और शरिर यदि विशाल विशाल होते थे , जैसा की भक्ती धारावाहिको और फिल्मो में दिखलाया जाता रहा है , तो फिर उनके लिंग तो बरगद के पेड़ जितने होते होंगे और योनी दरवाजा जितने ! और यदि वाकई में ऐसा होता होगा फिर इंसान योनी से पैदा हुआ भीम आखिर दानव घटोत्कक्ष का पिता कैसे बना ? जबकि वह अपने शरिर और लिंग के आकार से दानव कन्या से संभोग करने के काबिल ही नही हो सकता था ? देव दानव जब एक दुसरे से पारिवारिक रिस्ता जोड़ते थे फिर दानव असुरो को देवो के आकार से कई गुणा बड़ा क्यों बतलाया और दिखलाया जाता रहा है ? क्योंकि दानव असुरो के दांत यदि बड़े बड़े और शरिर विशाल होते थे , फिर तो उनके लिंग भी मोटे बरगद के पेड़ जितने होते होंगे , और महिलाओ के योनी भी दरवाजे जितने लंबे चौड़े होते होंगे ! जिन्हे ढकने के लिए उनके वस्त्र आभुषण भी विशाल विशाल होते होंगे | और यदि दानव असुर बल्कि देव भी अपना शरिर को छोटा बड़ा कर सकते थे , फिर आखिर देव दानव की वर्तमान नई पिड़ी अपने पुर्वजो के जैसा खुदको और अपने लिंग योनी को छोटा बड़ा क्यों नही कर पाते हैं ? वे भी अपने लिंग योनी को अपनी इच्छा अनुसार छोटा बड़ा करके संभोग करते ! जो न करके वे क्यों मात्र चंद इंच अपना लिंग को बड़ा करने के लिए भी विभिन्न तरह का उपचार करते रहते हैं | और साथ ही खुब सारा धन खर्च करके चमत्कारी तेल लगाते रहते हैं | जबकि उनके पुर्वज अपनी इच्छा से जब चाहे अपना लिंग को बरगद के पेड़ से भी ज्यादे मोटा और सुई जितना भी पतला कर सकते थे !
दरसल दानव असुरो को अपने से अलग प्राणी बतलाने के लिए मनुवादीयों ने यह सब झुठी और काल्पनिक अप्रकृति जानकारियाँ तैयार किया है |
क्योंकि प्रकृति प्रमाणित सच्चाई तो यही है कि दानव असुर के लिंग योनी वैसे ही थे जैसे की वर्तमान में इंसानो के लिंग योनी के आकार होते हैं | देव दानव दोनो ही आपस में संभोग कर सकते थे | जैसे की इंद्रदेव ने पुलोमा दानव कन्या शचि से संभोग करके जयंत का पिता बना था | और मय दानव का भी विवाह हेमा अप्सरा से हुआ था | जिससे मन्दोदरी का जन्म हुआ था | जो कि अप्सराओं का योनी वर्तमान के इंसानो के योनी जितने आकार का और दानव का लिंग बरगद का पेड़ जितने मोटे आकार का होने से मुमकिन नही था | और न ही दानव कन्याओं का योनी दरवाजे जितने चौड़े होने से महाभारत के भीम द्वारा दानव घटोत्कक्ष का पिता बन पाना मुमकिन हो पाता | जैसा कि ढोंगी पाखंडी मनुवादी लोग दानवो को विशाल पहाड़ो जैसा बतलाते रहते हैं | और ढोंग पाखंड से ब्रेनवाश हुए लोग आँख मुँदकर विश्वास करते रहते हैं | वैसे घटोत्कक्ष के शरिर में यदि भीम का DNA दौड़ रहा था तो वह दानव कैसे हुआ ? और अगर इसका कारन कोई यह बतलाना चाहता है कि घटोत्कक्ष चूँकि दानव कन्या के गर्भ से जन्मा था , इसलिए दानव कहलाया | फिर तो रामायण में दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी के गर्भ से जन्मा रावण को भी दैत्य कहा जाना चाहिए | क्यों उसे ब्रह्मण कहा जाता है ? उसी तरह क्षत्रिय भीम का पुत्र घटोत्कक्ष को भी क्षत्रिय कहा जाता | बल्कि यदि भीम का पुत्र घटोत्कक्ष का जन्म को आधार मानकर किसी की पहचान तय किया जाय फिर तो दानव कन्या के गर्भ से जन्मे सभी कथित उच्च जाति की औलादे दानव कहलायेंगे | वेदकाल से लेकर रामायण और महाभारत काल बल्कि वर्तमान काल में भी मौजुद सारे कथित ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य कहलाने वाली उच्च जाती सभी दैत्य दानव असुर कहलायेंगे | क्योंकि DNA रिपोर्ट से ये प्रमाणित हो चुका है कि कथित उच्च जाती कहलाने वालो की माँओं के भितर भी इस देश के मुलनिवासि महिलाओं का ही M DNA मौजुद है | अथवा चाहे कथित उच्च जाती की महिला हो या फिर निच जाती की महिला , दोनो ही के भितर वही M DNA दौड़ रहा है , जो की घटोत्कक्ष की माँ के अंदर दौड़ रहा था | क्योंकि मनुवादी अबतक भी घटोत्कक्ष को दानव और घटोत्कक्ष के पिता भीम को उच्च जाति का इंसान बतलाते आ रहे हैं | जिसका मतलब साफ है कि मनुवादीयों ने इसी देश की जिन महिलाओं से अपना वंशवृक्ष बड़ाने की सुरुवात करके मनुस्मृति लागु करके उन्हे उच्च जाती की महिला घोषित कर रखा है , वह महिला यदि मनुवादीयों के DNA वाले बच्चो को जन्म देती आ रही है , तो वह बच्चा उच्च जाती का कहलाता आ रहा है | और मनुवादीयों ने जिन महिलाओं को निच जाती व राक्षसनी दानव घोषित कर रखा है , वह नारी यदि किसी मनुवादी का DNA का बच्चा को भी जन्म देती है , तो वह बच्चा ज्यादेतर निच जाती व दानव असुर कहलाता है | जैसा की कथित उच्च जाति का क्षत्रिय भीम डीएनए का बच्चा घटोत्कक्ष को दानव कहा जाता है | जबकि उसका पिता भीम तो दानव नही था | जिसका ही DNA का घटोत्कक्ष पैदा हुआ था | और चलो मान भी लेते हैं कि उस समय चूँकि DNA के बारे में कोई भी इंसान नही जानता था , इसलिए भीम का पुत्र घटोत्कक्ष को दानव कहा गया | पर तब भी क्या हम ये समझें की भीम को ये पता नही था कि जब भी कोई पुरुष किसी महिला से संभोग करके उसे गर्भवती करता है , तो गर्भ में पल रहे बच्चे के अंदर उसके माता पिता दोनो का ही अंश दौड़ रहा होता है | और यदि पता था तो फिर यह भी जरुर पता होगा कि किसी के खानदान का वंशवृक्ष में उसका पुत्र का नाम जरुर जुड़ता है | जैसे कि भीम के खानदान का वंशवृक्ष में घटोत्कक्ष का नाम जरुर जुड़ा है | और जब भीम के खानदान का वंशवृक्ष में घटोत्कक्ष का नाम जुड़ा है , तो निश्चित तौर पर घटोत्कक्ष पांडव खानदान का वंशज कहलायेगा | और जब घटोत्कक्ष पांडव खानदान का वंशज कहलायेगा तो निश्चित तौर पर उसका पिता भीम यदि इंसान था तो उसका बेटा घटोत्कक्ष भी इंसान ही जन्म लेगा , न की भीम इंसान तो उसके वीर्य से जन्मा बच्चा दानव जन्म लेगा | जैसा कि महाभारत में घटोत्कक्ष को दानव कहा गया है | जबकि वहीं रामायण में दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी के गर्भ से जन्मा रावण को ब्रह्मण कहा गया है | जिसमे तर्क दिया जाता है कि रावण ब्रह्मण विश्रवा का पुत्र था , इसलिए उसे ब्रह्मण कहा जाता है | जबकि महाभारत में क्षत्रिय भीम का पुत्र घटोत्कक्ष को दानव कहा जाता है | मनुवादी वेद पुराणो के साथ छेड़छाड़ और मिलावट करके इस तरह की दोगला ज्ञान बांटकर दरसल यही साबित करते आ रहे हैं कि चूँकि वे दोगला औलादे हैं , जिनका जन्म यूरेशिया के पुरुष और इस देश की नारी के संभोग से हुआ है , इसलिये ऐसी दोगला ज्ञान बांटते आ रहे हैं | जो कड़वा सत्य उन्हे स्वीकारनी ही पड़ेगी , तभी उनसे दोगला ज्ञान नही बटेगी | हलांकि जो दोगला औलाद है उसकी पहचान तो दोगला ही बना रहेगा | जैसे कि इस देश में जन्मे मनुवादीयों की जन्म पहचान दोगला औलाद बना रहेगा | पर मनुवादीयों के पुर्वज दोगला नही थे यह भी ध्यान रखा जायेगा , अथवा सुरुवात में प्रवेश करने वाले यूरेशियन देव दोगला औलादें नही थे | क्योंकि वे यूरेशिया के ही पुरुष स्त्री से जन्मे बच्चे थे , जो इस देश में पुरुष झुंड बनाकर आए और इस देश की नारी से अपना दोगला वंशवृक्ष बड़ाये | क्योंकि DNA प्रमाणित हो चुका है कि इस देश में जन्मे मनुवादी यूरेशिया के पुरुष और इस देश की नारी के संभोग से जन्म लिये सभी दोगला बच्चे हैं | इसलिए दोगला ज्ञान ही उनके भितर भरी पड़ी है | जिसे वे अपने लाभ और जरुरत के मुताबिक बांटते रहते हैं | सत्य ज्ञान बांटने से जहाँ बहुत हानि होता है वहाँ पर दोगला ज्ञान बांटी जाती हैं | और जहाँ उन्हे हानि होती है वहाँ पर मिलावटी झुठी ज्ञान बांटी जाती है | जैसे की महाभारत में क्षत्रिय भीम का पुत्र घटोत्कक्ष को दानव पुत्र कहा जाता है , तो रामायण में ब्रह्मण विश्रवा का पुत्र रावण को ब्रह्मण कहा जाता है | जबकि दोनो पुत्र जब दैत्य दानव की पुत्रियों के गर्भ से जन्मे थे तो दोनो को या तो महिला प्रधान वंशवृक्ष जैसे कि दैत्य कन्या के गर्भ से जन्मे बच्चे को दैत्य और दानव कन्या के गर्भ से जन्मे बच्चे को दानव कहो या फिर पुरुष प्रधान वंशवृक्ष ब्रह्मण पुरुष के वीर्य से जन्मे बच्चे को ब्रह्मण और क्षत्रिय पुरुष के वीर्य से जन्मे बच्चे को क्षत्रिय कहो | और यदि ज्ञान बांटते समय ठीक है मान लेते हैं छोटी बड़ी गलती सबसे होती है , पर किसी गलती के बारे में जैसे ही पता चले तो उसे सुधार लो | पर सैकड़ो हजारो सालो से इन गलतियों में सुधार अबतक क्यों नही हुआ है ? क्योंकि दोगला मनुवादीयो ने मनुस्मृति लागु करके जबसे उच्च निच भेदभाव की सुरुवात किया है , तबसे उच्च निच भेदभाव के बावजुद भी यदि प्रेम विवाह वगैरा के माध्यम से आपस में दोगला रिस्ते जुड़ भी जाते हैं , तो भी मनुवादीयों का भेदभाव नजरिया दोगला सोच होने की वजह से कायम रहता है | जिसके चलते ही तो वेदकाल में जो इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वज दानव और मनुवादीयों के पुर्वज देव कहलाते थे , वे आपस में रिस्ता जोड़ने के बाद आज उनकी नई पिड़ि को किसी को उच्च तो किसी को निच जाती कहा जाता हैं | जबकि दोनो के साथ वेदकाल में पारिवारिक रिस्ता यदि जुड़ता आ रहा है , तो या तो दोनो के रिस्तेदारी से जन्मे बच्चे को शुद्र कहो या फिर उच्च कहो | उच्च निच में भी दोगलापन क्यों ? ठीक है इसी देश का पुरुष और इसी देश की नारी की रिस्तेदारी से जन्मे सभी बच्चे को मनुवादीयों द्वारा निच कहा जाता है यह तो खैर दोगलापन ज्ञान नही है , बल्कि भेदभाव है | पर यूरेशिया से आए हुए पुरुष और इस देश की नारी का रिस्ता जुड़कर जो बच्चे जन्म लेते हैं , उसे यदि उच्च निच बताकर अलग अलग दो पहचान दिया जाता है तो साफ मनुवादीयों की दोगलापन ज्ञान नजर आता है |
बल्कि आज भी बहुत सारे उदाहरन कथित उच्च निच जाति के साथ दोगला पारिवारिक रिस्ता जुड़ते हुए मिल जायेंगे | लेकिन उन दोगला रिस्तो के रिस्तेदारो के बिच उच्च निच भेदभाव समाप्त नही होता है | जाहिर है अंतरजाती विवाह करने से उच्च निच भेदभाव समाप्त होगा यह विचार दरसल बहुत बड़ा भ्रम है | बल्कि अंतरजाती विवाह करने से बहुत बड़ा मुसिबत की सुरुवात हो जाती है | जैसे कि कभी हजारो साल पहले यूरेशिया से आए पुरुष और इस देश की नारी ने अंतरजाती विवाह करके मुसिबतो का पहाड़ खड़ा कर दिया है | क्योंकि उच्च निच भेदभाव और गुलाम दासप्रथा की सुरुवात यूरेशिया से आए पुरुषो से अंतरजाती विवाह करके ही हुआ है | नही तो मनुवादी कबका गोरो की तरह इस देश को छोड़कर चले जाते अपने उस परिवार के पास जिसे छोड़कर वे हजारो साल पहले इस देश में आकर इस देश की नारी से अंतरजाती विवाह करके यहीं पर बस गये हैं | बल्कि आज भी जो मनुवादी शासन कायम है , उसे कायम रखने में उच्च निच अंतरजातीय विवाह बहुत बड़ा भुमिका अदा कर रहा है | जाहिर है अंतरजातीय विवाह से भेदभाव समाप्त होगा यह दरसल बहुत बड़ा भ्रम है | जैसा की वेद पुराण में मौजुद मनुवादीयों के पुर्वज देवो से रिस्ता जोड़के उनकी पुजा करके उनके आशीर्वाद से शोषण अत्याचार करने वालो से ही उनके द्वारा दिये गए दुःख समाप्त होगा यह भी बहुत बड़ा भ्रम है | क्योंकि मनुवादीयों के पुर्वज देव ही तो इस देश के मुलनिवासियों के साथ शोषण अन्याय अत्याचार की सुरुवात किये हैं | और भारी तादार में हत्या और लुटपाट करके गुलामी और भुख जैसे दुःख देने का भी सुरुवात किये हैं | जैसे की देवो ने माली सुमाली और माल्यवान दानवो का राज्य लंका को लुटकर उसमे कब्जा किया था | जिस लुटपाट और कब्जा होते समय अनगिनत दानवो की हत्या भी हुई थी | और जो बच गए थे उन्हे अपनी जान बचाकर अपनी राजपाट छोड़कर जंगलो में छिपकर लंबे समय तक जिवन बिताना पड़ा था | जबतक की रावण ने दानवो की लंका को देवो से वापस न छिन लिया | जिस तरह की लुटपाट और हत्या के बारे में ढेरो सारी जानकारी वेद पुराणो में भरे पड़े हैं | लेकिन चूँकि मनुवादीयों ने वेद पुराणो पर भी कब्जा करके उसमे मनुवादि सोच से ढोंग पाखंड और अप्रकृति ज्ञान की मिलावट और छेड़छाड़ कर दिया है , बल्कि छेड़छाड़ और मिलावट करके अपने पुर्वजो को बुराई का नाश करनेवाला कथित भगवान का अवतार और दानव असुरो को मानव जाती का नाश करने वाला नरभक्षी बतलाया है , इसलिए जो भी मुलनिवासि मिलावट और छेड़छाड़ किया हुआ वेद पुराणो में बतलाई गई नरभक्षी वगैरा झुठी बातो को सत्य मानकर विश्वास करता हैं , वह दानव असुरो को हैवान समझकर अपने ही पुर्वजो का इतिहास को नरभक्षो का इतिहास और गुलाम करने वाले मनुवादीयों का इतिहास को श्रेष्ठ व उच्च प्राणियों का इतिहास स्वीकारते आ रहा है | जिस तरह की मिलावट और छेड़छाड़ इतिहास के आधार पर ही तो भक्ती किताबे और भक्ती पर अधारित टी०वी० धारावाहिक फिल्मे व गाना वगैरा बनाकर खासकर नई पिड़ी को बचपन से ही ब्रेनवाश करने के लिए सुबह शाम विवादित भ्रष्ट ज्ञान बांटी जाती रही है | जिसके चलते इस देश के बहुत से मुलनिवासि मिलावट और छेड़छाड संक्रमण का शिकार बचपन से ही होते आ रहे हैं | जिससे की वे भितर से पुरी तरह से गुलाम होते चले गये हैं | भले क्यों न वे बाहर से खुदको मनुवादीयों से अजाद समझते हो | खासकर घर के भेदि तो मनुवादीयों का सबसे अधिक भितर से गुलाम बने हुए हैं | क्योंकि उनको सबसे अधिक ब्रेनवाश किया गया है | जिसके चलते उन्हे ठीक से समझ नही आता है कि जिसका साथ वे देते आ रहे हैं , वे लोग उनके परिवार खानदान और गणतंत्र का विनाश की तैयारी उन्हे बली का बकरा अथवा सिड़ी बनाकर कर रहे हैं | बाकि लोग तो ज्यादेतर गरिबी भुखमरी और अशिक्षा की वजह से मनुवादियों की कुसंगत से बाहर नही निकल पा रहे हैं | और कुसंगत के चलते वे यह समझ नही पा रहे हैं कि वेद पुराण में जिन देवो के बारे में बतलाया गया है वे भगवान नही बल्कि इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वजो के लिए हैवान से कम नही थे | क्योंकि देवो ने दानव असुरो के राज्यो में कब्जा करके उनकी धन संपदा की लुटपाट तो किया ही , पर नर नारी सबकी भारी तादार में हत्या भी किया और उनके राज्यो का विनाश भी किया | जिनकी पुजा मुलनिवासियों के द्वारा करने का मतलब अपने पुर्वजो के हत्यारो का पुजा करना है | लेकिन चूँकि मनुवादीयों ने भक्ती फिल्मे , गाने , भक्ती किताबे , और फिर भक्ती धारावाहिक वगैरा के जरिये देवो को नायक और दानव असुरो को खलनायक सुबह शाम बताकर लगातार ब्रेनवाश करके लंबे समय से असत्य और ढोंग पाखंड को बड़ावा देकर बचपन से ही नई पिड़ी को पिड़ी दर पिड़ी भक्ती ज्ञान के नाम से उनकी बुद्धी को भ्रष्ट करके अँधविश्वास में ढकेला जाता आ रहा है , इसलिए बहुत से मुलनिवासी भ्रम में आकर अपने पुर्वजो के हत्यारे देवो की पुजा उन्हे भगवान समझकर करते आ रहे हैं | जिस भ्रम से छुटकारा पाने के लिए खासकर आधुनिक नई पिड़ी को सबसे पहले तो यह पता रहना चाहिए कि मनुवादीयों के पुर्वजो की पुजा भगवान पुजा नही है | जिस बात की सत्यता को कोई भी समझदार व्यक्ती यह जानकर खुद ही सोच विचार सकता है कि आखिर अहिल्या का बलात्कारी इंद्रदेव , तुलसी का बलात्कारी विष्णुदेव , और सरस्वती का बलात्कारी ब्रह्मदेव जैसे देवो की पुजा किसी भले इंसानो द्वारा क्या देख सुन और पढ़कर किया जायेगा ? जिन बलात्कारी देवो को पालनहार भगवान बतलाकर आज भी हिन्दु भक्ती किताबे लिखी जाती है | और भक्ती टी०वी धारावाहिक व फिल्मे गाने वगैरा में भी बलात्कारी ब्रह्मा विष्णु और इंद्र को सृष्टी का पालनहार भगवान बतलाया जाता है | जिन कथित देव भगवानो का मंदिर सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति में एक भी क्यों नही मिले हैं ? कैसे मिलते क्योंकि जब इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासि आधुनिक सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति में गणतंत्र का विकाश करके बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाते हुए प्रकृति भगवान की पुजा करते हुए सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे थे , उस समय कबिलई मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में जन्मे ही नही थे | क्योंकि उनके पुर्वज उस समय यूरेशिया में संभवता बिना वस्त्र के नंगा जिवन जी रहे थे | जो इस कृषी प्रधान देश में घुमकड़ जिवन जिते हुए आकर कपड़ा पहनना भी सिखे और इस देश की नारियों के साथ दोगला रिस्ता जोड़कर परिवार समाज के बारे में भी जाने | हलांकी चूँकि वे मुलता इस कृषि प्रधान देश के जमिन से जुड़े हुए लोग नही हैं , इसलिए कृषि कार्यो के बारे में अब भी उन्हे कोई खास दिलचस्पी नही है | क्योंकि उनके भितर उनके कबिलई पुर्वजो का खास उच्च छुवा छुत हुनर दौड़ रहा है | जिस खास उच्च हुनर के जरिये ही तो किसी को गुलाम बनाकर उसके साथ शोषण अत्याचार किया जाता है | जिस उच्च छुवा छुत हुनर को मनुवादी बचपन से ही अपने बच्चो को सिखलाना सुरु कर देते हैं | जिसके चलते ही तो देवो के वंशज बाल गंगाधर तिलक जैसे मनुवादीयों को अपनी यह विचार इतिहास में दर्ज करना पड़ता है कि “ तेली ,तंबोली, कुंभट ,खाती , कूर्मी और पाटीदार , विधिमंडल में जाकर, क्या हल चलाएँगे ? ” जिस तरह की भेदभाव सोच विचारकर ही तो मनुवादीयों ने गोरो के हाथो से वापस अपने हाथो में इस कृषि प्रधान देश की सत्ता लेकर अपनी मनुवादी सोच के जरिये शोषण अत्याचार छुवा छुत को डीजिटल शाईनिंग अपडेट किया है | जिन्होने इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों को गुलाम करके छुवाछुत शोषण अत्याचार करने वाली अपने पुर्वजो की परंपरा को गोरो से अजाद देश में भी आगे इसलिए बड़ाया है , क्योंकि मनुवादीयों के भितर अब भी इंसानियत का विकाश इतना भी नही हो सका है कि वे शोषण अत्याचार छुवा छुत जैसे सड़ी गली भ्रष्ट परंपरा को भी पुरी तरह से छोड़ सके | जिस तरह की परंपरा को अपनाकर कोई आधुनिक इंसान बनना तो दुर आधुनिक जानवर जैसा भी सोच भलाई के प्रति नही रख सकता है | जैसे की मनुवादी नही रखते हैं | जो इस देश के मुलनिवासियों का कभी भी भला नही कर सकते | जिसके चलते ही तो इस कृषि प्रधान देश में इस देश के जागरुक मुलनिवासियों को मनुवादीयों से पुर्ण अजादी चाहिए | जिसके लिए वे हजारो सालो से पिड़ी दर पिड़ी संघर्ष कर रहे हैं | क्योंकि मनुवादी इस देश के मुलनिवासियों के साथ जानवरो से भी ज्यादा बुरा व्यवहार लंबे समय से करते आ रहे हैं | जानवरो के भी कान में गर्म पिघला लोहा नही डाला जाता है | और न ही जीभ और अँगुठा काटा जाता है | बल्कि जानवरो से मैला भी नही ढुलवलाया जाता है | पर मनुवादीयों ने ये सब भी किया है इस देश के मुलनिवासियों के साथ | जाहिर है मनुवादीयों के भितर इंसानियत का विकाश इस देश में आए हुए हजारो साल बितने के बाद भी अबतक ठीक से नही हुआ है | जिसके बावजुद भी मनुवादी खुदको उच्च और दुसरो को निच कहकर अपने पुर्वजो की पुजा भी करते और करवाते हैं | क्योंकि अबतक भी वे भितर से यह स्वीकार नही कर पाये हैं कि उनके पुर्वजो ने जो मनुस्मृति लागु करके घोर काले कुकर्म किये हैं , वह इंसानियत नही बल्कि हैवानियत थी | जिस तरह के हैवानियत से प्रत्येक भले इंसान को छुटकारा चाहिए रहता है | जैसे की इस देश के लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो को मनुवादीयों की हैवानियत से छुटकारा चाहिए | तभी इस देश में सुख शांती और समृद्धी वापस आयेगी | क्योंकि मनुवादीयों के चलते ही इस देश और इस देश के मुलनिवासियों का अति बुरे दिन चल रहे हैं | जो बुरे दिन मनुवादी सत्ता कायम रहने तक अच्छे दिन में परिवर्तन कभी होंगे ही नही | क्योंकि इतिहास रहा है कि गुलाम करने वाले अपने गुलामो का शोषण अत्याचार करते हैं | जिसके चलते ही तो कबिलई मनुवादी भी आजतक इतने लंबे समय तक इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले कृषि प्रधान देश की सत्ता में रहकर भी सुख शांती और समृद्धी शासन लाना तो दुर गरिबी भुखमरी बेरोजगारी और अशिक्षा को भी दुर नही कर पाये हैं | फिर भी वे खुदको इस कृषि प्रधान देश का सबसे बेहत्तर शासक ही नही , बल्कि दिन रात अपने कबिलई पुर्वजो को तो पुरे सृष्टी का संचालन करने वाला भगवान तक बतलाते रहे हैं | ढोंगी पाखंडी मनुवादी अपने पुर्वज अन्याय अत्याचारी और बलात्कारी देवो को हिन्दु भगवान बतलाकर खुब प्रचार प्रसार करते रहते हैं | जबकि सच्चाई तो ये है कि देवो ने ही तो इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वजो से उनकी सत्ता छिनकर इस देश की धन संपदा में कब्जा करके बड़े पैमाने पर लुटमार हत्या की सुरुवात किया है | जिनके काले कुकर्मो का इतिहास वेद पुराणो में भरे पड़े हैं | जिन वेद पुराणो को बस फिल्टर करके समझने की जरुरत है | गोरे और बाकि लुटेरे तो इस कृषि प्रधान देश में बहुत बाद में आए हैं | पर मनुवादीयों ने तो घर के भेदियों की सहायता से इस देश को हजारो साल पहले ही गुलाम करने के बाद मनुस्मृति लागु करके खुदको जन्म से उच्च विद्वान पंडित और इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित किया हुआ है | जिसके बाद ही तो मनुवादीयों ने हिन्दु वेद पुराणो में कब्जा करके उसमे मनुवादी सोच की मिलावट और छेड़छाड़ किया है | जिसके बारे में जानकारी खासकर उन मुलनिवासियों को जरुर होनी चाहिए जिन्हे अबतक भी मनुवादीयों के पुर्वज देव पालनहार भगवान लगते हैं | तभी तो मनुवादीयों के द्वारा बतलाई गई झुठी बातो में विश्वास करके बहुत से मुलनिवासि अब भी अँधभक्त बनकर तुलसी , सरस्वती और अहिल्या के बलात्कारियो की अपराध को नजरअंदाज करके उन्हे हिन्दुओं का भगवान समझकर आँख मुँदकर सुबह शाम उनकी आरती उतारते रहते हैं | जबकि जैसा की हमे पता है कि कोई भी भला इंसान , किसी के द्वारा किया गया बलात्कार जैसे अपराध को आदर्श मानकर उसे अपने जिवन में कभी भी अपनाना नही चाहेगा | हलांकि जिसदिन मनुवादीयों से पुर्ण अजादी मिल जायेगी उसदिन से कोई भी मुललनिवासी मनुवादीयों के पुर्वज देवो को हिन्दुओं का भगवान मानकर आरती कभी नही उतारेगा | वर्तमान में इसलिए उतारी जा रही है क्योंकि मनुवादीयों द्वारा गुलाम शासन में मनुवादीयों द्वारा विभिन्न माध्यमो से सुबह शाम ब्रेनवाश चलाने का ढोंग पाखंड अभियान चल रहा है | जिसके जरिये इस देश के मुलनिवासियों को हमेशा गुलाम बने रहने के लिए बचपन से ही ब्रेनवाश किया जा रहा है | क्योंकि मनुवादीयों को पता है कि जब कोई किसी का बुरी तरह से गुलाम हो जाता है तो उसके द्वारा किसी बलात्कारी की पुजा करना भी मुमकिन हो जाता है | क्योंकि गुलाम करने वाले की बुरी संगत में आकर ब्रेनवाश की वजह से किसी की बुद्धी गुलाम करने वालो से बुरी तरह से संक्रमित होकर वश में चुकि रहती है | जैसे की नशेड़ियों के संगत में रहकर बहुत से नशा न करने वाले भी ब्रेनवाश होकर वश में आकर नशेड़ी बन जाते हैं , और वे भी नशा में डुब जाते हैं | मनुवादीयों की बुरी संगत में आने वाले मुलनिवासियों के भितर भी ब्रेनवाश होकर धिरे धिरे गुलाम करने वालो के प्रति अँधभक्ती बड़ने लगती है | और वे भी अँधभक्ती में डुब जाते हैं | जिस अँधभक्ती को और अधिक बड़ाने के लिए ही तो दिन रात मनुवादी अपने पुर्वजो को भगवान बताकर ढोंग पाखंड नशा और झुठ का प्रचार प्रसार करके ब्रेनवाश करने में लगे रहते हैं | जिसके चलते ब्रेनवाश होकर अँधभक्ती में डुबे बहुत से मुलनिवासियों को ढोंग पाखंड का नशा करने और कराने वाले मनुवादीयों के बुरी संगत में रहकर सायद पता ही नही चल पाता है की मनुवादीयों के पुर्वज देवो ने उनके पुर्वजो के साथ क्या क्या अन्याय अत्याचार किया है | बल्कि वर्तमान में भी देवो की नई पिड़ी क्या क्या अन्याय अत्याचार लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कब्जा करके कर रही है , जिसके बारे में भी बहुत से मुलनिवासियों को मानो पता ही नही है ! जबकि वर्तमान के मनुवादीयों के द्वारा किये गए अन्याय अत्याचार के बारे में सभी मुलनिवासियों को पता होना चाहिए था | और साथ साथ मनुवादीयों के पुर्वजो के द्वारा किये गए शोषण अन्याय अत्याचार के बारे में भी पता होना चाहिए था कि ब्रह्मा विष्णु और इंद्रदेव जो की मनुवादी के पुर्वज हैं , उन्होने इस देश के मुलनिवासियों के हाथो से उनकी सत्ता छिनकर धन संपदा ही नही बल्कि उनकी बहु बेटियों का आबरु भी छिना है | और जैसा की हमे पता है कि बलात्कार करने वाले इंसान और जानवर वगैरा ही हो सकते हैं भगवान नही | जिन बलात्कारियों के कुकर्मो के बारे में अँधभक्तो को ज्ञान प्रदान करने के लिए तो देव मंदिरो में बलात्कारी ब्रह्मा विष्णु और इंद्रदेव की मूर्ति उनके द्वारा बलात्कार करते हुए आकार में बनाकर स्थापित करना चाहिए | तथा जितने भी देवताओ की फोटो बनाकर उसे बेचकर मनुवादी घर घर में देवो को हिन्दु भगवान बतलाकर ब्रेनवाश करके उनकी पुजा करा रहे हैं , उन देवो में जो भी देव बलात्कारी है , उनका फोटो भी उनके द्वारा बलात्कार करते हुए बनाकर बिकनी चाहिए | ताकि अँधभक्तो को आँख बंद करके पुजा करने के बाद आँख खुलते ही बलात्कार करते हुए फोटो या मूर्ति को देखकर मन की आँख खुल जाय और वे बलात्कारी देवो की पुजा करना छोड़ सके | क्योंकि बहुत से मुलनिवासियों के लिये देवो की अँधभक्ती छोड़ना उनके लिए मानो किसी खतरनाक ड्रक्स नशा छोड़ने से भी ज्यादे मुश्किल हो गया है | जिस अँधभक्ती नशे में डुबे रहने के कारन ही तो उन्हे बलात्कारी भी भगवान नजर आता है | जबकि उन्हे अब तो साफ नजर आना चाहिए था की बलात्कारी देव भगवान नही हो सकते | क्योंकि नारी का अपहरण करने वाले रावण को याद करके जब उनके द्वारा ही हर साल उसका पुतला जलाया जाता है फिर बलात्कारी ब्रह्मा विष्णु और इंद्रदेव का पुजा उनके द्वारा ही क्यों किया जाता है ? जबकि सबको पता है कि नारी का अपहरण से भी ज्यादे बड़ा अपराध नारी का बलात्कार करना होता है | हलांकि नारी का अपहरण हो या बलात्कार हो दोनो ही कुकर्म है | जिसे करने वाले भगवान तो क्या सही इंसान भी नही कहलाते | और वैसे भी इस देश में चाहे वेदकाल हो या फिर वर्तमान काल हो , जिस भी महिला के साथ गलत हुआ या हो रहा है , या फिर हसी खुशी पारिवारिक रिस्ता जोड़कर सही हो रहा है , वे सभी महिलायें इस देश की मुलनिवासि हैं | क्योंकि डीएनए रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादीयों के घरो में मौजुद महिलायें और इस देश के मुलसनिवासियों के घरो में मौजुद महिलाओं का M DNA एक है | अथवा यह बात साबित हो चुका है कि यूरेशिया से आए विदेशियों ने इस देश की महिलाओ के साथ शारिरिक संबंध बनाकर अपना दोगला वंशवृक्ष बड़ाया है | न कि वे अपने साथ किसी महिला को भी इस देश में लाये थे | बल्कि वे पुरुष झुंड में इस देश में प्रवेश करके इस देश की महिलाओं से ही अपना वंशवृक्ष बड़ाये हैं | चाहे जोर जबरजस्ती से उन्हे दासी बनाकर "ढोल,गंवार,शुद्र,पशु ,नारी | सकल ताड़ना के अधिकारी ||" कहकर बड़ाये हो या फिर राजी खुशी से बड़ाये हो | क्योंकि यूरेशिया से आए पुरुष झुंड इस देश की जिन महिलाओं से अपना वंशवृक्ष बड़ा रहे थे वह महिला किनकी औलादे थी इस बात के लिए वेद पुराण और इतिहास भी गवाह है , और DNA रिपोर्ट से भी साबित हो चुका है | जाहिर है वेदकाल में कथित सभी उच्च जाति कहलाने वाले भी दानव घटोत्कक्ष की तरह दानव कन्याओं की ही गर्भ से जन्मे हैं | क्योंकि वेद पुराण और इतिहास गवाह है कि जब मनुवादी इस देश को और इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए देव असुर संग्राम करके कब्जा करते हुए इस देश की महिलाओं को देवदासी बना रहे थे उस समय उन महिलाओ के माता पिता कौन थे | वेदकाल में चाहे लक्ष्मी सरस्वती ही क्यों न हो ये दोनो दानव कन्यायें थी | जिस समय जितनी भी महिलाओ के साथ मनुवादीयों के पुर्वज देवो ने बलात्कार किया है , या फिर देव असुर संग्राम जीतकर उन्हे देवदासी बनाकर पारिवारिक रिस्ता जोड़ा है , वे सभी इस देश की महिलायें थी , न कि मनुवादीयों की तरह वह भी उनके साथ यूरेशिया से आई थी | चाहे वेदकाल में लक्ष्मी सरस्वती और अहिल्या हो या फिर वर्तमान के समय में इस देश की महिला हो सभी के अंदर इस देश की मुलनिवासि महिलाओ का M DNA दौड़ रहा है | जो कि DNA रिपोर्ट से साबित हो चुका है | और जैसा कि हमे पता है कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासि हजारो सालो से मनुवादीयों की गुलामी से पुर्ण रुप से अजाद अबतक नही हो पाये हैं | जिस गुलामी से पुर्ण अजादी मिले बगैर बलात्कारी देवो की पुजा बहुत से मुलनिवासियों द्वारा तबतक जारी रहेगी जबतक की बलात्कारी की पुजा करने वाला मुलनिवासी के भितर उस बुद्धी का विकाश न हो जाय जिससे की उसे गुलाम करने वालो से अजाद होने का क्रांतीकारी दीया उसके भितर जल उठे | जो क्रांतीकारी दीया जिनके अंदर जलती है वे लोग ही तो अजादी पाने का संघर्ष विशेष तौर पर कर रहे हैं | जो लोग मनुवादीयों की ढोंग पाखंड संक्रमणो से खुदको भितर से अजाद करके मनुवादीयों के खिलाफ आवाज बुलंद करते आ रहे हैं | हलांकी बहुत बड़ी अबादी को मनुवादीयों की गुलामी से अजादी पाने का संघर्ष से कोई खास लगाव नही हो पा रहा है | क्योंकि उन्हे गुलामी के साथ साथ गरिबी भुखमरी और अशिक्षा ने भी बुरी तरह से जकड़ रखा है | जिसकी वजह से भले वे भेदभाव का शिकार होकर यह जानते हैं की मनुवादीयों ने ही इस देश के मुलनिवासियों को हजारो सालो से गुलाम कर रखा है तो भी वे मानो मजबुर या डरे सहमे भी मनुवादीयों की आरती उतारते आ रहे हैं | जो मजबुर इसलिए हैं क्योंकि गरिबी भुखमरी की वजह से वे खुदको मनुवादीयों से लड़ने में बहुत ज्यादे कमजोर महसुश करते हैं | और डरे सहमे इसलिए हैं क्योंकि उनके परिवार में ही मनुवादीयों का शासन का मनहुश छाया दिन रात सबसे अधिक मंडरा रहा होता है | जैसे की शिकारी जानवर की नजर सबसे अधिक कमजोर शिकार पर ही होती है | मनुवादीयों की शिकारी नजर भी कमजोर कहे जाने वाले गरिबी भुखमरी जिवन जी रहे मुलनिवासियों पर ही ज्यादे होती है | जिसकी वजह से उनके परिवार में ही हर रोज सबसे अधिक मौते हो रही है | चाहे गरिबी भुखमरी से हो या फिर मनुवादीयों द्वारा मार पीटकर शोषण अत्याचार से हो रहा हो | जबकि वहीं मुठीभर ऐसे गुलाम लोग भी हैं जो अमिरी और सुख सुविधा भोगने के बाद खुदको मनुवादीयों से अजाद समझकर और मनुवादी शासन को बेहत्तर समझकर मनुवादीयों की विशेष मदत कर रहे हैं | जैसे की गोरो की शासन में भी मुठीभर लोग गोरो की शासन कायम रखने में विशेष सहायता कर रहे थे | क्योंकि वे गोरो की शासन में गोरो की विशेष लाभ से अमिरी सुख सुविधा का लाभ लेकर गोरो के द्वारा दिये गए विशेष उपहार से सबसे अधिक प्रभावित भी थे | जिस तरह की विशेष उपहार लेकर बहुत ज्यादे विशेष लाभ भोगने वाले लोग वर्तमान में भी मनुवादी शासन में मौजुद हैं | जो कि मनुवादी शासन कायम रहने के लिए विशेष मदत कर रहे हैं | जिन्हे मनुवादीयों से विशेष उपहार मिलकर विशेष लाभ मिल रहा है | जिस लाभ के आगे अपने ही DNA के बहुसंख्यक मुलनिवासियों की अजादी उनके लिए घाटे का सौदा है | जिस तरह के लोग ही अपने परिवार समाज का सौदा करने वाले असल घर के भेदी होते हैं | जो विरोधियों से अपने घर और घर परिवार के सदस्यो की जिवन का भी सौदा कर सकते हैं | और जो गुलाम लोग मनुवादियों के द्वारा बिछाये गए जाल ढोंग पाखंड में फंसकर मनुवादीयों के बलात्कारी पुर्वजो की पुजा गरिबी भुखमरी जिवन जिते हुए डरे सहमे भी करते आ रहे हैं , उन्हे तो गरिबी भुखमरी और अशिक्षा जैसी कमजोरी ने मनुवादीयों का संक्रमण को अबतक कामयाब बनाया हुआ है | जिन्हे गरिबी भुखमरी और अशिक्षा में जकड़े रहने की वजह से इस बात का मंथन करने का ठीक से समय नही मिल पा रहा है कि जिस मनुवादीयों की गुलामी इस देश के मुलनिवासि कर रहे हैं , उन मनुवादीयों ने ही मुलनिवासियों के पुर्वजो की राजपाट छिनकर उनकी भारी तादार में हत्या किया है | जिस सच्चाई को जानकर उन्हे खुद ही जल्द से जल्द समझना होगा कि हिन्दु मान्यता अनुसार साक्षात और प्रमाणित प्राकृति की पुजा ही भगवान पुजा है | जिसके प्रमाण इस कृषि प्रधान देश में बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहार और नदी तालाव पेड़ पौधे वगैरा प्राकृति की पुजा को देख जानकर समझा जा जा सकता है | क्योंकि हिन्दु धर्म में होली दिवाली मकर संक्राती वगैरा जितने भी प्रकृति पर्व त्योहार बारह माह मनाई जाती है , वह सब प्रकृति पर अधारित हिन्दु कलैंडर के अनुसार मनाई जाती है | हिन्दु धर्म में विरले ही पर्व त्योहार होगा जो की हिन्दु कलैंडर अनुसार नही मनाई जाती है | और हमे जैसा की पता है कि प्रकृति सबकी जिवनदाता के रुप में चारो ओर कण कण में साक्षात और प्रमाणित मौजुद है | इसके बावजुद भी आखिर हिन्दू भगवान बताकर उन मरे हुए देवो की मूर्ति पुजा क्यों होती है , जिसे मनुवादी अपना पुर्वज बतलाते हैं ? जवाब साफ है ,क्योंकि गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार करने वाले खुदको भगवान समझने लगते हैं | जिसके चलते इतिहास रहा है कि गुलाम बनाने वाले कबिलई लुटेरे किसी को गुलाम बनाकर अक्सर अपने आप को पालनहार बताकर गुलामो से अपनी सेवा कराने के साथ साथ पुजा भी कराते रहे हैं | मनुवादी भी देवो की पुजा कराकर अपने पुर्वजो को भगवान के बराबर बतलाते आ रहें हैं | जबकि छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से दानव असुरो के राज्यो को लुटने और कब्जा करने वाले देवता चूँकि इंसान ही थे , इसलिए वे इंसानो की तरह इंसानो से संभोग करके कबका मर चुके हैं | जिनके पास भी इंसान जैसा ही लिंग मौजुद था , जिससे कि वे इस देश की नारी से संभोग करके मनुवादी इंसान को जन्म दिये हैं | जिसके चलते ही तो इसी देश की नारी के गर्भ से जन्मे मनुवादी यूरेशिया से आए देवो को अपना पुर्वज बतलाते हैं | और वाकई में वे थे भी यह बात DNA रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है | क्योंकि मनुवादीयों के अंदर यूरेशिया से आए विदेशियों का DNA मौजुद है न कि इस देश के मुलनिवासियों का DNA मौजुद है | और यदि देवता इंसान नही होते तो कथित अप्सराओं से घिरे रहने वाले देवो के राजा कहे जानेवाले इंद्रदेव इंसान अहिल्या पर लार टपकाते हुए उसका बलात्कार नही करता , और न ही वह पुलोमा दानव की हत्या करके उसकी कन्या शचि को अपनी पत्नी बनाता | जो दानव कन्या भी इंसान ही थी | जिसने इंद्रदेव से संभोग करके जयंत को जन्म दी थी | अथवा देव दानव आपस में वैवाहिक रिस्ते भी जोड़ते थे और उससे दोगला वंशवृक्ष भी बड़ा होता था | जो दोगला वंशवृक्ष बड़ना मुमकिन नही हो पाता यदि देव दानव अलग अलग प्राणी होते | क्योंकि यदि दानव असुर का लिंग बरगद जितने मोटे मोटे और उनकी पुत्रियों की किसी बड़े दरवाजे जैसे योनी होती तो भीम दानव कन्या से संभोग करके घटोत्कक्ष को पैदा कराने के बजाय दानव पुत्री हिडिम्बा की योनी में समा जाता इतना विशाल शरिर दानवो का बतलाया जाता है | जाहिर है देव दानव इंसानो की तरह जन्म लेकर इंसानो की तरह ही अपनी उम्र पुरा करने के बाद अंतिम साँस लेकर कबका मर चुके हैं | जिसके चलते ही तो अब कोई नारद मुनी भी धरती पर नारायण नारायण कहते और सुनते जिवित विचरण करते दिखाई नही देता है | फिर भी देवो की निर्जिव मुर्ति पुजा वेद पाठ होने वाले ज्ञान मंदिरो में क्यों होती है ? जिसका जवाब यदि मान भी लेते हैं कि चूँकि पुरी दुनियाँ में बहुत से लोग अपने पुर्वजो के सम्मान में उनकी पुजा जिस तरह करते हैं , उसी तरह मनुवादी भी अपने पुर्वजो की मूर्ति पुजा करते हैं , तो भी आखिर प्रकृति की कृपा से इस धरती में इंसान के रुप में जन्मे देवो को मनुवादी सबका भगवान बताकर क्यों पुजा करते और करवाते हैं ? क्यों उनके पुर्वजो ने इस धरती बल्कि पुरे ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाले भगवान है यह बताकर ढोंग पाखंड को बड़ावा देते आ रहे हैं ? जबकि वेद पुराणो में जिन देवो के बारे में बतलाया गया है , उनके साथ साथ जिन दानवो असुरो दैत्यो के बारे में बतलाया गया है , उन्हे अपना पुर्वज मानने वाले इस देश के मुलनिवासि तो दैत्य दानव असुरो की पुजा उन्हे भगवान बताकर नही करते और करवाते हैं | जबकि वे भी यदि उनकी पुजा चाहते तो उन्हे चमत्कारी और मयावी भगवान मानकर कर सकते थे | जो कि नही करते हैं , क्योंकि उन्हे पता है कि जिस तरह प्रकृति की कृपा से उनका इंसान जन्म हुआ है , उसी तरह उनके पुर्वज भी प्रकृति की कृपा से ही इंसान के रुप में ही इस धरती पर जन्मे थे | जिसकी जानकारी जिस भी मुलनिवासी को है वह देव की पुजा नही बल्कि प्रकृति भगवान की पुजा करते हैं | जिस प्रकृति भगवान की पुजा करने वाले मुलनिवासियों के पुर्वजो के बारे में वेद पुराणो में सबसे अधिक जानकारी मौजुद है | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि वेद पुराण इस देश के मुलनिवासियों ने रचे हैं | मनुवादीयों ने तो वेद पुराण को कब्जा करके उसमे छेड़छाड़ और मिलावट किया है | जैसे की गोरो ने भी इस देश का इतिहास में मिलावट करने की कोशिष किया है | जिन गोरो का इतिहास इस देश का इतिहास में भी जिस प्रकार मौजुद है उसी तरह यूरेशिया से आए देवके बारे में जानकारी भी इस देश के वेद पुराणो में मौजुद है | जिस वेद पुराणो में मौजुद देव दानव की सारी जानकारी तब के इंसानो का इतिहास ही है | जिसमे छेड़छाड़ और मिलावट करके उसे काल्पनिक और अप्रकृतिक घटना का शक्ल दिया गया है | जिसमे फिल्टर करके विज्ञान प्रमाणित जानकारी जुटाने पर तब के इंसानो का प्रमाणित इतिहास सामने आने लगता है | क्योंकि वेद पुराण में मौजुद देवो की तरह दानव भी इंसान ही थे , न कि पहाड़ जैसे विशाल शरिर वाले मायावी थे , जिनका लिंग बरगद जितने मोटे मोटे और उनकी पुत्रियों की दरवाजे जितने योनी नही थे | जो यदि होते तो महाभारत का भीम किसी दानव कन्या हिडिम्बा से सेक्स करके घटोत्कक्ष दानव का पिता कभी नही बनता | और न ही इंद्रदेव और विष्णुदेव भी दानव कन्या से संभोग करके उनको गर्भवती करके उनके गर्भ में पल रहे बच्चे का पिता बनते | क्योंकि इंद्रदेव ने भी पुलोमा दानव की हत्या करके उसकी बेटी शचि को गर्भवती करके जयंत का पिता बना था | जैसे की महाभारत में भीम ने भी दानव की हत्या करके दानव कन्या हिडिम्बा को गर्भवती करके घटोत्कक्ष का पिता बना था | जो मुमकिन नही होता यदि भीम और दानव कन्या के शरिर का आकार में चिट्टी और हाथी जैसा अंतर होता | बल्कि भीम दानव कन्या हिडिम्बा की योनी में समा जाता इतनी बड़ी योनी हिडिम्बा की होती | या फिर भीम को ऐसा कोई चमत्कारी तेल लगाकर अपना लिंग को दानव कन्या से सेक्स करने के लिए किसी बरगद पेड़ जैसा मोटा करना पड़ता जो की जापानी तेल हो या फिर कोई और देश का तेल व दवा हो भीम का लिंग अपने शरिर से भी ज्यादे मोटे आकार का हो ही नही सकता था | और यदि मान भी लेते हैं वह किसी चमत्कारी तेल लगाकर हो भी जाता तो भीम उसे उठाकर कैसे किसी दानव कन्या के योनी में डालता जबतक की उसका शरिर भी हिडिम्बा जितना बड़ा होकर इस लायक नही बन जाता कि वह दानव कन्या से संभोग कर सके | जो कि प्राकृति और वैज्ञानिक रुप से मुमकिन नही है | फिर भी महाभारत में घटोत्कक्ष का शरिर को पहाड़ जितना दिखाकर यह भ्रम और ढोंग पाखंड फैलाने की कोशिष होती रहती है कि दानव असुर पहाड़ जितने विशाल होते थे और देव सामान्य इंसानो के आकार के होते थे | जिस तरह का झुठी ज्ञान ढोंगी पाखंडी मनुवादी अपने बच्चो को बचपन से ही देकर उनकी बुद्धी को तो भ्रष्ट करके उन्हे ढोंगी पाखंडी बनने में मदत करते ही हैं ,पर साथ साथ इस देश के उन मुलनिवासियों को भी बचपन से ब्रेनवाश करके अँधविश्वास और ढोंग पाखंड पर विश्वास करने के लिए मजबुर करते आ रहे हैं , जिनके पुर्वज भगवान पुजा के रुप में विज्ञान प्रमाणित साक्षात प्राकृति की पुजा करते आ रहे हैं | जिसके बगैर इंसान ही नही बल्कि यह पुरी सृष्टी का ही जिवन एक पल में समाप्त हो सकता है | यकिन न आये तो कोई चाहे जिस धर्म को मानने वाला व्यक्ति हो ,वह चाहे दिन में जितनी पुजा करता हो ,अपने ईश्वर को याद करके कभी बिना हवा पानी के जिवित रहने के लिए अपनी साँस और अन्न जल को कुछ समय के लिए त्याग दे पता चल जायेगा की किसकी वजह से उसकी जिवन के साथ साथ पुरी दुनियाँ कायम हैं |
रही बात तो फिर विज्ञान की नजर में चमत्कारी अदृश्य ईश्वर क्या सिर्फ भ्रम है ? जिसके चलते इस सृष्टी को रचनेवाला एक ईश्वर बताकर इंसानो ने भ्रम में आकर एक ईश्वर के कई अलग अलग नाम से कई अलग अलग धर्म बना डाले हैं ! क्योंकि किसी को प्रमाणित रुप से पता ही नही है कि आखिर चमत्कारी ईश्वर का मुल नाम क्या है ? और वह कहाँ पर मौजुद है ? सभी मानो नाम और पता को अँधेरे में टटोल रहे हैं | और टटोलते टटोलते मुझे ईश्वर का नाम और पता मिल गया कहकर कई इंसानो द्वारा सिर्फ विश्वास और आस्था से अलग अलग कई धर्म बनते जा रहे हैं | जिस अदृश्य ईश्वर के चमत्कार का दर्शन पुर्ण प्रमाणित रुप से करने के लिए इंसानो द्वारा हजारो सालो से न जाने क्या क्या नही किये जा रहे हैं | पर आजतक किसी को भी ऐसा पुर्ण प्रमाणित दर्शन उस अदृश्य ईश्वर का नही हुआ है कि विज्ञान उसे प्रमाण पत्र दे दे | जिसके चलते लाखो करोड़ो इंसान अंतिम में निराश होकर धर्म बदल बदलकर भी उस अदृश्य ईश्वर को इस उम्मीद से टटोलने में लगे हुए हैं कि सायद उन्हे पुर्ण प्रमाणित रुप से मिल जाय और अदृश्य ईश्वर को ढुंडने का सफर समाप्त होकर धर्म बदलने का सिलसिला समाप्त होकर एक स्थिरता प्रदान हो जाय | जो स्थिरता आजतक पुर्ण प्रमाणित रुप से नही आई है | और धर्म बदल बदलकर टटोलने का सफर जारी है | जिस तरह के अँधेरे में टटोलने वाले सफरो को देखकर प्रत्येक निराश भक्त जरुर मन में पुछता होगा कि आखिर इतनी बड़ी दुनियाँ साक्षात रुप में बनाकर वह खुद छिपा हुआ क्यों है ? तो इस सवाल का प्रयोगिक और प्रमाणित जवाब है चमत्कारी अदृश्य ईश्वर और कोई नही बल्कि हमारे चारो ओर साक्षात मौजुद प्रकृति ही है | जिसे अँधेरे में टटोलने की जरुरत नही है | क्योंकि वह हमारे चारो ओर साक्षात रुप में मौजुद है , बल्कि सबके अंदर भी विज्ञान प्रमाणित मौजुद है | और चूँकि जिवन की सुरुवात में इंसानो को भुकंप , ज्वलामुखी , सुनामी वगैरा प्रकृति घटना भी चमत्कार लगती थी , जिसकी ताकते साक्षात प्रमाणित होने के बावजुद भी चूँकि इंसानो की नजर में तब छिपी हुई थी , इसलिए उन्होने प्रकृति की उस छिपी हुई ताकत को कोई अलग चमत्कारी ताकत समझकर मानो अँधेरे में टटोलना सुरु कर दिया | पर जैसे जैसे इंसानो की चमत्कारी बुद्धी का विकाश होता गया और उनकी ज्ञान की आँखे खुलने लगी , वैसे वैसे उन्होने प्रकृति की अदृश्य ताकतो को प्रमाणित रुप से करिब से समझना सुरु कर दिया | जिसके बाद जैसे ही इंसानो को प्रकृति और विज्ञान की बहुत सी जानकारी प्रयोगिक और प्रमाणित तौर पर पता चलते गया और यह बात पता चला कि सबकी जिवन की साँसे प्रकृति के जरिये ही चल रही है , बल्कि पुरी दुनियाँ प्रकृति पर ही निर्भर है , जिस प्रकृति की कृपा बगैर एक पत्ता भी नही हिल सकता , उसी समय उन्होने प्रकृति को सर्वशक्तीमान और पालनहार मानकर उसकी पुजा करना सुरु किया | जिस समय मंदिर मस्जिद चर्च पुरी दुनियाँ में कहीं नही थे , बल्कि न तो हिन्दु नाम का कोई धर्म था और न ही बाकि भी कोई धर्म था | हिन्दु धर्म नाम तो सिन्धु को अपनी बोली भाषा अनुसार हिन्दु कहकर विदेशियो ने कहा है | जिन्होने ने ही इस कृषि प्रधान देश में किया जानेवाला प्रकृति भगवान पुजा को हिन्दु पुजा कहा है | जो इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दु कहा है | मनुवादी तो यूरेशिया से आए यहूदि DNA के लोग हैं | जो बात DNA रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है | बल्कि कई मुस्लिम शासक तो हिन्दु नही हैं यह जानकर मनुवादीयों से जजिया कर भी नही लेते थे | जो अरब से आए मुस्लिम शासक और फारस के लोग सुरुवात में सिन्धु नदी के किनारे सिन्धु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृति के बारे में जानकारी जुटाकर अपनी बोली भाषा अनुसार सिन्धु को हिन्दु कहा है | जिन्होने ही सिन्धु नदी के किनारे सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों को हिन्दु कहा | जैसे की यूनान से आए विदेशियो ने सिन्धु नदी को इंडस नदी कहकर इस देश के लोगो को इंडियन कहा है | और आम को मैंगो कहा है | जो मैंगो शब्द इस देश का नही है , इसका मतलब यह नही की आम को विदेशियों ने पैदा किया है | जाहिर है प्रकृति भगवान की पुजा पाठ पद्धति को हिन्दु धर्म सिन्धु के नाम से ही कहा गया है | न कि हिन्दु धर्म को विदेशियो ने पैदा किया है | क्योंकि जिस तरह अपनी अपनी भाषा बोली से नाम बदल देने से आम फल को मैंगो कहने से अमरुद नही हो जाता , उसी तरह सिन्धु को हिन्दु कहने से हिन्दु धर्म विदेशियो के द्वारा जन्माया गया नही हो जाता | और न ही हिन्दुस्तान को इंडिया कहने से हिन्दुस्तान गोरो का दिया देश हो जायेगा | उसी तरह मनुवादी भी खुदको हिन्दु भगवान पुजा पाठ करने वाले जन्म से ही विद्वान पंडित और पुजारी हैं कहकर चाहे जितना दोहरा लें , लेकिन कभी भी वे यह प्रमाणित नही कर पायेंगे की इस कृषि प्रधान देश में जो बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर प्रकृति भगवान की पुजा की जाती है , वह परंपरा मनुवादीयों द्वारा यूरेशिया से लाया गया है | बल्कि प्रकृति भगवान पुजा इस कृषि प्रधान देश में मनुवादीयों के आने से पहले से ही मौजुद है | जिस प्रकृति भगवान पुजा को ही अरब फारस के लोगो ने सिन्धु से जोड़कर हिन्दु धर्म कहा है | जो प्रकृति भगवान पुजा आज भी इस कृषि प्रधान देश में बारह माह प्रकृति कलैंडर के अनुसार होली दिवाली मकर संक्रांती वगैरा प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर की जाती है | जो कि तब भी की जाती थी जब इस कृषि प्रधान देश में प्रकृति भगवान की पुजा पाठ पद्धती को हिन्दु धर्म नही कहा गया था | और न ही बारह माह का प्रकृति अधारित इस देश के कलैंडर को हिन्दु कलैंडर कहा जाता था | बल्कि तब पुरी दुनियाँ में प्रकृति पुजा ही की जाती थी | क्योंकि पुरी दुनियाँ में जितने भी कृषि सभ्यता संस्कृति का विकाश हुआ क्षेत्र है , उन तमाम क्षेत्रो में प्रकृति पुजा के प्रमाण मिले हैं | जिस पुजा में प्रकृति के द्वारा कराया गया कर्म ही धर्म माना जाता है | और जैसा कि हमे पता है दुनियाँ में जितने भी जिव निर्जिव प्रकृति की कृपा से मौजुद हैं , वे सभी कोई न कोई कर्म कर रहे हैं | जो ही उनका मुल धर्म है | पुरी दुनियाँ में सभी ने अपने अपने कर्म को धारन किये हुए हैं , जो की उनका मुल धर्म है | क्योंकि धारन करना ही धर्म है | और सभी ने प्रकृति को अपने अंदर और अपने जिवन में धारन किया हुआ है | जिस प्रकृति कि पुजा अब भी दुनियाँ के कोने कोने में किसी न किसी रुप में की जाती है | पर चूँकि प्रकृति में मौजुद सारी शक्तीयो और गुणो को इंसानो ने आजतक एक प्रतिशत भी ठीक से नही जान सका है ,और न कभी प्रकृति की सारी शक्तीयों और गुणो को इंसान पुरी तरह से कभी जान पायेगा , इसलिए प्रकृति में घटित बहुत सारी घटना इंसानो को अब भी चमत्कार ही लगता रहा है | जिसे बहुत से इंसान किसी अदृश्य ताकत का चमत्कार मानकर मानो अँधेरे में टटोलने लगते हैं | और फिर यदि कोई इंसान टटोलते टटोलते कह देता है कि मुझे अदृश्य ईश्वर मिल गया तो फिर उसके द्वारा कही गई बातो पर सिर्फ आस्था और विश्वास के आधार पर यकिन करने वाले लोग आँख मुँदकर विश्वास करने लगते हैं | जबकि उन्हे पहले इस सवाल का जवाब पुर्ण रुप से खोजने की कोशिष करनी चाहिए थी कि अदृश्य ईश्वर कई इंसानो को मिल गया और उन इंसानो के द्वारा कही गई बातो में विश्वास करके कई धर्म भी बन गये हैं ,लेकिन भी आजतक धर्म बदल बदलकर अँधेरे में टटोलना क्यों जारी है ? क्योंकि उस अदृश्य ईश्वर के बारे में सभी के अंदर अनगिनत भ्रम है | जिसके चलते ही तो अलग अलग समय के साथ अलग अलग इंसानो द्वारा अलग अलग सोच विचारकर अलग अलग कई धर्म पुरी दुनियाँ में बनाये गये हैं | और बिल्कुल मुमकिन है कि भविष्य में भी यदि इसी तरह भ्रमित होकर अँधेरे में टटोलना जारी रहा तो फिर और कई मानव निर्मित धर्म बनते चले जायेंगे | क्योंकि इंसानो द्वारा प्राकृति में मौजुद शक्ती और गुणो को ज्यादेतर अबतक खोजा ही नही जा सका है | जिसके चलते आज भी प्रकृति का प्रयोगिक और प्रमाणित घटना बहुत से इंसानो को किसी अदृश्य शक्ती का चमत्कार ही लगता है |
रही बात किसी अदृश्य शक्ती द्वारा इंसानो से मुलाकात करने की तो पुरी दुनियाँ जानती है कि ऐसी भ्रमित बातो में सिर्फ वही लोग विश्वास करते हैं , जो ऐसी बाते कहने वाले लोगो की बातो में आँख मुँदकर विश्वास कर लेते हैं | जिनके पास न तो कोई सौ प्रतिशत प्रमाण रहता है , और न ही उनकी विश्वास पर विज्ञान उन्हे प्रमाण पत्र दिया हुआ है | क्योंकि यदि ऐसी बातो को सत्य का प्रमाण पत्र मिलता तो इतने सारे अलग अलग धर्म कभी भी नही बनते | और न ही इतने सारे अलग अलग धर्मो के अलग अलग पुजा स्थल बनते | जबकि इतिहास गवाह है कि एक ही प्रकृति दुनियाँ में रहने वाले एक ही इंसान द्वारा अलग अलग समय में अलग अलग विश्वास और आस्था की वजह से अलग अलग कई धर्म और अलग अलग धर्म के अलग अलग लाखो पुजा स्थल बनते चले गये हैं | जिन्हे जिस धर्म पर विश्वास है वह उसी धर्म से जुड़कर उस धर्म के द्वारा बतलाई गई पुजा स्थलो में जाकर पुजा पाठ करता है | और सभी धर्मो के लोग अपनी अपनी धर्म पुस्तको में लिखी हुई बातो पर विश्वास करके अपनी अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार पुजा पाठ करते हैं | हलांकि सबकी जिवन की साँस को विज्ञान प्रमाणित चलाने वाली शक्ति कौन है ,और उन्होने इंसानो के लिए क्या क्या संदेश दिया है , इसके बारे में अनेको विवाद है | क्योंकि सभी अपने अपने धर्म पुस्तको में बतलाई गई बातो पर विश्वास करके उसी को ही असली जिवनदाता का संदेश मानते हैं | जिसे दुसरे धर्मो के लोग अपने धार्मिक पुस्तको से अलग मानकर उसे अपनी धार्मिक पुस्तक नही मानते | जाहिर है सभी इंसानो को तो किसी एक ही शक्ती ने रचा है , पर आजतक किसी एक खास धर्म के व्यक्ती को वह एक ईश्वर विज्ञान प्रमाणित मिल गया है इस तरह का प्रमाण पत्र और सत्य विश्वास किसी भी धर्म के प्रति नही है ? जिसके चलते आपस में कई विवाद करते हुए सभी अपने अपने धर्म को बेहत्तर बतलाते हैं | वह भी कम से कम धर्म परिवर्तन करने का ख्याल आने तक ! क्योंकि आजतक किसी भी धर्म में सभी इंसानो का विश्वास एक साथ कायम नही हुआ है | और न कभी होगा | क्योंकि इंसान द्वारा अनेको विवाद और भ्रम के साथ अलग अलग कई धर्मो का उदय करके अलग अलग रास्तो में चलकर उस एक शक्ती को तलाशा जा रहा हैं , जिन्होने आजतक एक भी धर्म सबके लिए ऐसा नही भेजा है जिसपर सभी धर्मो के लोगो के साथ साथ नास्तिक भी विश्वास करके उससे जुड़ सके | सिवाय इसके कि चाहे इंसान हो या फिर दुसरे जिव , बल्कि जिव निर्जिव सभी प्रमाणित तौर पर प्रकृति से जुड़े हुए हैं | जिस प्रकृति भगवान पुजा में प्रकृति के द्वारा कराया गया कर्म ही जिव निर्जिव सभी का धर्म है | क्योंकि प्रकृति का दिया गया कर्म को जिव निर्जिव सभी ने प्रमाणित धारन किया हुआ है | जबकि मानव निर्मित धर्म को इंसान खुद ही कई धर्म बनाकर खुद ही मात्र उसे धारन किये हुए हैं | जिसके चलते इंसानो द्वारा बनाया गया कई धर्मो में कोई भी एक धर्म ऐसा मौजुद नही है जो की प्रमाणित तौर पर सबके लिए अनिवार्य माना जा सके और सभी धर्मो के लोग उसपर यकिन करके अपने अपने धर्मो को त्यागकर उसे स्थिर अपना लें | क्योंकि किसी को भी ऐसा एक रास्ता मालुम नही जिसे सभी धर्मो के लोग सही रास्ता मानकर उसे एक ईश्वर का एक धार्मिक रास्ता मान ले | जिसके चलते ही तो हर रोज धर्म बदलकर रास्ता बदलने का भी दौर चल रहा है | क्योंकि ऐसा रास्ता आजतक कोई भी मानव निर्मित धर्म नही बतला सका है जिसपर सभी धर्मो के लोग जुड़कर सिर्फ उसी एक धार्मिक रास्ते पर विश्वास करके उसपर जिवनभर चल सके | और यदि कोई भक्त जिवनभर किसी धर्म से जुड़कर चलता भी है तो वह सिर्फ उसकी जिवन की ही यात्रा बिना कोई धर्म बदले होती है | पर चूँकि मुल हिंन्दु धर्म की आस्था और विश्वास प्रकृति भगवान पर है , इसलिए मनुवादीयों के आने से पहले हिन्दुओ का पुजा स्थल देव मंदिर के रुप में कहीं नही था | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश में इंसानो द्वारा बनाया गया मंदिर बनने से पहले से ही नदी तालाव पेड़ पौधा पहाड़ पर्वत वगैरा प्रकृति की पुजा की जाती रही है | जो कि अब भी बिना मंदिर बनाये की जाती है , और बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार भी मनाई जाती है | हलांकि बाद में मनुवादीयों द्वारा देश गुलाम करके मनुस्मृति लागु करके मनुवादीयों ने अपने पुर्वज देवो को भगवान बताकर उसकी मुर्ति पुजा को भी हिन्दु धर्म से जोड़ दिया है | जो की मनुवादीयों द्वारा वेद पुराणो में कब्जा करके उसमे छेड़छाड़ और मिलावट करके जोड़ा गया है | बल्कि मनुवादी अपनी कपटी सोच से प्रकृति पुजा से भी देव पुजा को जोड़ने का प्रयाश लंबे समय से कर रहे हैं | जैसे की प्रकृति पुजा छठ के साथ भी सुर्यदेव पुजा कहकर प्रचार प्रसार करके प्रकृति सुर्य पुजा को सुर्यदेव पुजा कहकर छठ पुजा को देव पुजा बनाने की कोशिष हो रही है | जो की वैसे भी प्रयोगिक और प्रमाणित तौर पर मनुवादीयों का ऐसी अप्रकृति कोशिष कामयाब हो जाय यह मुमकिन नही है | क्योंकि छठ पुजा साक्षात मौजुद प्रकृति का ही एक रुप उस सुर्य शक्ती की पुजा होती है , जो कि विज्ञान प्रमाणित है | न कि छठ पुजा समेत तमाम प्रकृति पर्व त्योहारो के दिन उन अप्रकृति और अप्रमाणित ताकतो की पुजा हिन्दु धर्म में मुलता होती है जिनके बारे में सिर्फ आस्था और विश्वास से पुजा की जाती है | जैसे कि मनुवादीयों की आस्था और विश्वस है कि उनके मरे हुए अदृश्य देवता जो की अब निर्जिव मूर्ति के रुप में देव मंदिरो में स्थिर पड़े रहते हैं, उनके प्रति मनुवादीयों की आस्था और विश्वास है कि वे ही सारी सृष्टी का संचालन कर रहे हैं | जो कि खुद इस पृथ्वी में प्रकृति की कृपा से इंसान के रुप में जन्म लिये और अपनी जिवन यात्रा पुरी करके प्रकृति में ही मिल गए | बल्कि प्रकृति की ही कृपा से उनकी मूर्ति और मंदिर बनाये जाते हैं | क्योंकि उनका शरिर बाकि दुसरे मरे हुए प्राणियों की तरह ही मिट्टी में मिलकर कबका नष्ट हो चुका हैं | जो कि प्रकृति का संचालन के जरिये जन्मे और समय पुरा होने पर कबका नष्ट भी हो चुके हैं | न कि अपने संचालन से खुद जन्मे और अपने संचालन से नष्ट हो गए हैं | बल्कि प्रकृति की कृपा से वे जन्मे और प्रकृति द्वारा नष्ट भी हो गए हैं | तभी तो अब धरती में विचरण करते एक भी देव नही दिखते हैं | जिन मरे हुए देवो की मूर्ति स्थापित करने की सुरुवात मनुवादीयों के द्वारा ही की गई है | ताकि अपने पुर्वजो को भगवान बताकर खुदको उच्च और बाकियों को निच घोषित कर सके | और साथ साथ अपने पुर्वजो की पुजा कराकर उनके नाम से खुब सारा धन भी इकठा कर सके | जिनकी मूर्ति स्थापित मंदिरो में मनुवादी खुदको जन्म से विद्वान पंडित कहकर कुंडली मारकर पिड़ी दर पिड़ी बैठ भी सके | जो देव मूर्ति स्थापित मंदिर दरसल पहले वेद ज्ञान मंदिर था , जिसमे वेद ज्ञान बांटी जाती थी | जैसे की आज विद्यालयो में ज्ञान बांटी जाती है | क्योंकि जब पुरी दुनियाँ में लिखाई पढ़ाई की सुरुवात भी नही हुई थी उस समय वेदो अथवा मुँह से निकली आवाज अथवा सिर्फ बोली के जरिये ही ज्ञान ली और बांटी जाती थी | क्योंकि तब लिखाई पढ़ाई की सुरुवात नही हुई थी | जिस वेद मंदिरो में ही मनुवादीयों ने इस देश के मुलनिवासियों को प्रवेश मना करके वेद ज्ञान लेना बंद कर दिया था | जिसके लिये उन्होने मनुस्मृति लागु करके उच्च निच भेदभाव को संवैधानिक घोषित करके यह नियम कानुन बनाया कि वेद मंदिरो में निच जाती प्रवेश नही कर सकता , और न ही वह किसी भी तरह वेद ज्ञान ले सकता है | जो यदि लिया तो वेद बोलने वाले निच जाती का जीभ काट दिया जायेगा और वेद ज्ञान सुना तो उसके कान में गर्म पिघला लोहा डाल दिया जायेगा | जिस तरह के नियम कानुन बनाकर मनुवादीयों ने इस देश के तमाम वेद ज्ञान मंदिरो में कब्जा करके खुदको जन्म से उच्च विद्वान पंडित घोषित करके इस देश के मुलनिवासियों को हमेशा हमेशा के लिए गुलाम बनाये रखने के लिए ढोंग पाखंड और अँधविश्वास फैलाकर ब्रेनवाश करना सुरु किया | जिसके लिए उन्होने तमाम ज्ञान मंदिरो में मिलावटी और छेड़छाड़ किया गया वेद पाठ करने के साथ साथ अपने पुर्वजो की मूर्ति स्थापित करके उसकी गुणगान करके उसे भगवान बताकर पुजा भी करने लगा | जिसके बाद देश के तमाम ज्ञान मंदिरो को अपने कब्जे में लेकर उन्हे वेद मंदिरो के साथ साथ देव मंदिर भी बनाये गए | जिनमे वेद पाठ के साथ साथ देव पुजा भी होने लगे | बल्कि देवो ने देव असुर संग्राम जितकर असुरो के जिन कन्याओं के साथ दोगला रिस्ता जोड़कर उनसे अपना वंशवृक्ष बड़ाया था , उनकी भी पुजा उन्हे देवी कहकर उन देव मंदिरो में होने लगी | जिसके बाद तो ढोंग पाखंड का सिलसिला चल पड़ा और समय के साथ साथ जितने भी ज्ञान मंदिर बने सभी में देवो और उनकी देवियों की मूर्ति स्थापित करके उसे भगवान का मंदिर कहा जाने लगा | और बाद में जब समय बदलाव के साथ इंसानो द्वारा लिखाई पढ़ाई की सुरुवात हुआ तो इस देश में भी लिखाई पढ़ाई का ज्ञान मंदिर अलग से बनने लगे | जो कि स्वभाविक था क्योंकि तबतक सारे वेद ज्ञान मंदिर देव मंदिर में परिवर्तित हो चुके थे | जिन्हे वेद ज्ञान मंदिर से लिखाई पढ़ाई मंदिर अपडेट करना तभी मुमकिन हो सकता था जब उन वेद ज्ञान मंदिरो को मनुवादीयों से पुर्ण अजादी मिल जाती | जो की आजतक भी उन वेद मंदिरो को मनुवादीयों से पुर्ण अजादी नही मिली है | हलांकि अब वेद ज्ञान मंदिरो में प्रवेश पाबंदी हटने के बाद इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासी तो जाते हैं , पर वेद ज्ञान लेने नही बल्कि मंदिरो में स्थापित देवी देवताओं की मूर्तियों के आगे अपना सर झुकाकर उसकी पुजा करने जाते हैं | जिस तरह के देवी देवताओ की पुजा होनेवाली मंदिर आज के समय में लाखो की तादार में निर्माण हो गए हैं | जिनकी संख्या इस समय जितने ग्राम देश में मौजुद है , उतने ही लगभग देवी देवता मंदिर यानी लगभग छः लाख से अधिक मंदिर हो गए हैं | यानी औसतन प्रत्येक ग्राम में एक मंदिर का निर्माण हो चुका है | भले क्यों न विद्यालय और अस्पताल का निर्माण प्रत्येक ग्राम पंचायत में भी न हुआ हो | जिसके बारे में ज्ञान बांटते समय याद आया कि इंटरनेट पर कहीं पर एक व्यक्ती जानकारी दे रहा था कि गोरो ने जब इस देश को गुलाम किया था तो इस देश की सभ्यता संस्कृति को मिटाने के लिए प्रमुख जड़ तलाशने के लिए उन्होने अपने सर्वे में यह पाया कि इस देश की सबसे बड़ी ताकत इस देश में मौजुद ज्ञान बांटने और लेने की खास व्यवस्था है | जो कि प्रत्येक ग्राम में मौजुद है | जिसे ध्वस्त किये बगैर इस देश की सभ्यता संस्कृति को कभी नही मिटाया जा सकता | जिस तरह का ही ध्वस्त करने का कार्य मनुवादी द्वारा भी प्रत्येक ग्राम और शहर में विद्यालय और अस्पताल को बड़ावा देने के बजाय देवी देवताओं का मंदिर बनाने का कार्य को सबसे अधिक बड़ावा दिया जा रहा है | ताकि इस देश की मुल कृषि सभ्यता संस्कृति को ध्वस्त किया जा सके | जबकि इतिहास गवाह है कि कितने विदेशी इस कृषि प्रधान देश की सभ्यता संस्कृति को ध्वस्त करने आए और खुद ही ध्वस्त होकर चले गए हैं | बल्कि मनुवादी के पुर्वज भी ध्वस्त होकर चले गए होते यदि वे इस देश की नारी को देव दासी बनाकर दोगला रिस्ता न जोड़कर अपना दोगला वंशवृक्ष न बड़ाते | क्योंकि हिंदू धर्म पुस्तको की मान्यता अनुसार भी देव दानव आपस में देव असुर संग्राम के साथ साथ आपस में रिस्ता जोड़े और आपस में सागर मंथन भी किये , जो जानकारी भी प्रमाणित करता है कि आपस में रिस्ता जोड़ने वाले सभी देव दानव इंसान ही थे | और इंसानो की तरह पारिवारिक जिवन भी जी रहे थे | क्योंकि यदि वाकई में देव दानव दैत्य असुर कोई इंसान नही होते फिर तो न दानव कन्या से मनुवादी के पुर्वज सेक्स कर पाते और न ही कोई दानव असुर कथित स्वर्ग की अप्सराओं से सेक्स कर पाते | क्योंकि वेद पुराणो में दोनो ही अपनी रोजमरा जिवन में इंसानो की तरह ही खाते पिते हगते मुतते नहाते और सेक्स भी करते थे | देव लोग दानव कन्या से सेक्स करते हुए और कथित स्वर्ग की अप्सरा के द्वारा अपनी यौवन से दानवो का तप भंग करते हुए बतलाये गए हैं | बल्कि कई दानवो ने अप्सराओ के साथ विवाह करके उसके साथ संभोग करके उसके बच्चे का पिता भी बने हैं | जैसा की इससे पहले बतलाया कि मय दानव हेमा अप्सरा से विवाह करके मन्दोदरी का पिता बना था | बाद में मन्दोदरी के साथ रावण का विवाह हुआ था | जाहिर है देव दानव के परिवार में मौजुद सभी लोग इंसान ही थे | जिनके शरिर के अंग इंसान की तरह ही थे | क्योंकि यदि कथित स्वर्ग की अप्सराओ की योनी समान्य नही होती और दानवो का भी लिंग यदि इंसानो की तरह समान्य नही होता तो फिर देव दानव एक दुसरे से शारिरिक रिस्ता कैसे जोड़ते ? इंद्र द्वारा किसी दानव का तप भंग करने के लिए किसी अप्सरा को अपनी यौवन का जादु चलाने क्यों भेजा जाता , बल्कि इंद्र या तो खुद श्राप में मिले हजार योनियों को किसी घुंघरु की तरह टांगकर जाता , या फिर किसी दानव असुर कन्या को भेजता | जो न होकर कथित स्वर्ग की अप्सरा अपनी यौवन का रुप रंग जलवा दिखाकर नाच गान करके दानव के भितर सेक्स का हवश पैदा करके तप भंग करने की कोशिष क्यों करती थी ? जिन अप्सराओं को दानवो का तप भंग करने के लिए भेजने का विचार इंद्रदेव के कपटी दिमाक में कभी नही आता यदि दानवो के लिंग बरगद के पेड़ जितने मोटे होते | फिर तो अप्सरा को दानव असुर का तप भंग करने के लिए सायद उनके बरगद के पेड़ जितने मोटे लिंग पर नृत्य करके दानवो का जोश को बड़ाना पड़ता | असल में देव दानव और अप्सरा ये सभी इंसान ही थे जिनका लिंग योनी इंसानो की तरह ही थे | जिस लिंग योनी के साथ अब वे मरके नष्ट हो चुके हैं | जैसा की अब भी इंसान बुढ़ा होकर अपने बुड़े लिंग योनी के साथ अपनी उम्र पुरा करके मरता है | हलांकि सभी देव दानव भले अब इस धरती पर विचरण करने के लिए जिवित मौजुद नही हैं , पर उनकी नई पिड़ी आज भी अपने अपने लिंग योनी के साथ मौजुद है | क्योंकि जैसा कि हमे पता है कि मनुवादी खुदको देवो का वंशज कहता है , और इस देश का मुलनिवासी खुदको दानव असुरो का वंशज कहता है | न कि मनुवादी और इस देश के मुलनिवासी दोनो के पुर्वज एक माने जाते हैं | क्योंकि यदि एक माने जाते तो मनुवादी इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम बनाकर उनके साथ हजारो सालो तक छुवाछुत जैसे भेदभाव कभी नही करते | जो छुवाछुत आज भी जारी है | बल्कि मनुस्मृति जब लागु किया गया था उस समय तो इस देश के मुलनिवासियों को वेद ज्ञान मंदिरो में प्रवेश करने पर रोक लगा दिया गया था | क्योंकि मनुवादीयों ने खुदको जन्म से उच्च और इस देश के मुलनिवासियों को निच घोषित करके वेद ज्ञान मंदिरो में निच जाति का प्रवेश पर रोक लगा दिये थे | हलांकि अब रोक हटा दी गई हैं , जिसके चलते अब देव दानव दोनो ही के वंशज आज के समय में उन वेद मंदिरो में जाते हैं | पर अब उन वेद मंदिरो में वेद पाठ होने के साथ साथ भगवान पुजा के नाम से देव पुजा भी होने लगा है | यहूदि DNA का मनुवादी खुदको हिंदू कहते हुए हिंदू धर्म का पुजारी बनकर अपने पुर्वज देवो को हिन्दु भगवान बताकर उसकी मूर्ति पुजा कर और करा रहा है | बल्कि जिन पुजा पाठ स्थलो में प्रकृति की पुजा होता है , वहाँ पर भी वह धिरे धिरे देवी देवताओं के नाम से मंदिर का निर्माण करता जा रहा है | जिन प्रकृति पुजा स्थलो में मंदिर निर्माण करके उसके अंदर बाहर देव मुर्ति बिठाकर ढोंग पाखंड का विस्तार तेजी से हुआ है | जबकि तेजी से ज्ञान का विस्तार ज्यादे से ज्यादे ज्ञान मंदिरो का निर्माण करके होना चाहिए था | पर चूँकि मनुवादी इस देश के मुलनिवासियों को शिक्षित होते हुए कभी देखना ही नही चाहते हैं , जैसा की मनुवादीयो द्वारा कभी वेद मंदिरो में इस देश के मुलनिवासियों का प्रवेश पर पाबंदी लगाकर वेद ज्ञान से वंचित कर दिया गया था | जो पाबंदी दरसल वेद मंदिरो में पहली बार उस समय लगाया गया था जब दुनियाँ में लिखाई पढ़ाई की सुरुवात नही हुआ था | जिस समय ज्ञान वेद द्वारा अथवा आवाज के द्वारा मात्र मुँह से बोलकर ही बांटा और लिया जाता था | जिसके लिए वेद ज्ञान मंदिर बनाया जाता था | जैसे की आज लिखाई पढ़ाई का ज्ञान मंदिर विद्यालय बनाया जाता है | जहाँ पर शिक्षा लेने छात्र जाते हैं | वेद ज्ञान मंदिर में भी शिष्य वेद पाठ ज्ञान लेने के लिये वेद सुनने और बोलने जाते थे | जहाँ पर मनुवादीयों ने अपने पुर्वजो की मूर्ति स्थापित करके वेद मंदिरो में इस देश के मुलनिवासियों का प्रवेश पर रोक लगा दिया था | ताकि इस देश के मुलनिवासि ज्ञान से वंचित हो जाय | जिसके लिये मनुवादीयों ने मनुस्मृति लागु करके ये नियम कानून बनाया कि इस देश के मुलनिवासी निच जाती हैं , जिन्हे वेद ज्ञान लेना मना है | जिसके चलते उन्हे वेद मंदिरो में प्रवेश भी मना है | जिसका यदि पालन नही किया गया तो वेद सुनने पर कान में गर्म पीघला लोहा डाला जायेगा और वेद सुनने पर जीभ काटा जायेगा | जो नियम कानुन कथित उच्च जातियों में लागु नही होती थी | सिर्फ इस देश के मुलनिवासियों पर लागु होती थी | जिसके चलते मुलनिवासि यदि वेद ज्ञान गलती या फिर जान बुझकर छिपकर लेता था तो वेद दुबारा से सुन न पाये इसके लिये सजा के तौर पर उसके कान में गर्म पिघला लोहा डालकर उसे बहरा कर दिया जाता था | और वेद बोलने पर वेद दुबारा से बोल न पाये इसके लिए उसका जीभ काटकर उसे गुंगा कर दिया जाता था | बल्कि रामराज में तो जब प्रजा शंभुक ने छिपकर वेद ज्ञान लिया तो राजा राम ने शंभुक की हत्या तक कर दिया था | जिस तरह का प्रजा सेवा मनुवादी के पुर्वज करते थे | जिस तरह की प्रजा सेवा करने वाले पुर्वजो की पुजा को भगवान पुजा कहकर मनुवादी वर्तमान के समय में देवी देवताओं के नाम से भव्य मंदिर बनाते चले जा रहे हैं | भले विद्यालय अस्पताल न बने पर देवी देवताओं का मंदिर जरुर बने इस बात पर खुब ध्यान दिया जा रहा है | क्योंकि अपडेट मनुवादी शासन जो चल रहा है |
बल्कि अब तो कई अलग अलग धर्म बनने के बाद सभी अलग अलग धर्मो के लोग अपने अपने पुजा स्थल बनाकर अलग अलग धर्म के नाम से कई अलग अलग विवाद पैदा करके आपस में एक दुसरे से लड़ने भी लगे हैं | जिस तरह की विवादित लड़ाई की झांकी इस एक जानकारी को देख सुन और पढ़कर ली जा सकती है कि गोरो के जाने से लेकर अबतक एक लाख से अधिक दंगे हो चुके हैं | जो दंगे इसलिए भी होते हैं , क्योंकि सभी धर्मो के लोग अपने अपने धर्म के पुजा स्थल अलग से बनाकर एक दुसरे के पुजा स्थलो में एक साथ पुजा करने नही जाते हैं | क्योंकि सभी धर्मो के लोग अपना अलग अलग धार्मिक पुस्तको के साथ अपने अलग अलग मान्यताओं के साथ पुजा पाठ करते हैं | जिन अलग अलग कई धर्मो के मान्यताओं में अनेको विवाद मौजुद है | जिसके चलते आये दिन दंगा होना स्वभाविक है | जो दंगा कई मानव निर्मित धर्म बनने से पहले नही होता था | पर अब तो धर्म के नाम से सगे भाई भी एक दुसरे को काटते मारते हैं | खासकर जब धर्म के नाम से दंगा भड़कता है | जैसे की धर्म के नाम से इस देश का बंटवारा भारत पाकिस्तान जब हुआ था , उस समय धर्म के नाम से जो दंगा भड़के थे उसमे लाखो लोगो की हत्या एक दुसरे को काट मारकर हुआ था | जिनमे अनगिनत भाई भाई ही एक दुसरे को काटे मारे होंगे | क्योंकि कई धर्म बनने के बाद एक ही परिवार में एक ही DNA के भाई भाई अलग अलग कई धर्म को अपनाने लगे हैं | जिसके चलते धर्म के नाम से दंगा होने पर भाई भाई एक दुसरे को ही काटने मारने भी लगे हैं | जिस मार काट में इस देश के मुलनिवासि ही सबसे अधिक मरते हैं | क्योंकि एक तो इस देश में उनकी तादार सबसे अधिक है , चाहे वे जिस भी धर्म में मौजुद हो , दुसरा उन्हे किसी भी धर्म के धार्मिक उच्च पदो में न के बराबर बैठाया जाता है | क्योंकि इस देश में मौजुद सभी धर्मो में मुलता विदेशी मुल DNA के लोगो का वर्चस्व है | जिसके चलते जब भी धर्म के नाम से दंगा भड़ता है तो वे लोग अपने उच्च पदो के चलते अपने से निचे मौजुद इस देश के मुलनिवासियों को ही आगे करके कटने मरने के लिए भेजा जाता है | मानो उन्हे बलि का बकरा बनाया जाता है | जैसे की यहूदि DNA का मनुवादी भी खुदको हिन्दु धर्म से जोड़े हुए हैं ,पर जब धर्म के नाम से दंगा भड़ककर मार काट होता है तो कितने मनुवादी मारे जाते हैं ? जबकि मनुवादी खुदको हिन्दु धर्म का पुजारी और सबसे बड़ा ठिकेदार बनाये हुए हैं | तभी तो हिन्दु धर्म में पुजा पाठ में भी मनुवादीयों द्वारा भेदभाव किया जा रहा है | मनुवादी खुदको हिन्दु धर्म का ठिकेदार बनाकर अपनी विशेष फायदे के लिए इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दु मंदिरो में पुजारी बनने देना तो दुर मंदिरो में प्रवेश न करने देने के लिए बोर्ड भी लगाता आ रहा है | क्योंकि मनुवादीयों ने जबसे हिन्दु मंदिरो में अपने पुर्वज देवो की मूर्ति स्थापित करना सुरु किया है तब से हिन्दु मंदिरो में इस देश के मुल हिन्दुओं अथवा सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों को उनके अपने ही वेद ज्ञान मंदिरो में प्रवेश करने से रोका जा रहा है | रोक लगाने वाले मनुवादीयों की बुद्धी इतनी भ्रष्ठ है कि उन्हे हिन्दु मंदिरो का पुजारी बनाने के बाद भी आजतक यह बुद्धी पुरी तरह से नही आया है कि मंदिरो में प्रवेश के लिए उच्च निच भेदभाव नही करनी चाहिए | जिस भ्रष्ट बुद्धी अनुसार ही तो देव बलात्कार भी करे तो भगवान और दानव बलात्कारियों को सजा भी न दे , बल्कि मनुवादीयो द्वारा ब्रेनवाश होकर बहुत सारे शोषित पिड़ित दास दासी बनकर बलात्कारी देव की पुजा भी करे तो उनके पुर्वज हैवान | दरसल देव के वंशज मनुवादीयों द्वारा खुदको हिंदू कहकर हिंदू से ही छुवा छुत करते हुए अपने पुर्वज देवताओं की पुजा को हिंदू भगवान पुजा बताकर हिंदू वेद पाठ ज्ञान स्थलो में कब्जा करके वहाँ पर खुदकी पुजा कराने की ढोंग पाखंड की सुरुवात अपने विशेष लाभ के लिए किये हैं | क्योंकि प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई से प्रमाणित हो चुका है कि इस कृषि प्रधान देश में मनुवादीयों के आने से पहले किसी भी देवता की पुजा मंदिरो में नही होती थी | और न ही कथित स्वर्ग में रहने वाले कोई देवता इस देश में रहते थे | जो देवता अभी जिवित रहते तो खुद मंदिरो में प्रेसवर्ता करके सबको बतलाते कि वे इस देश में कहाँ से आए थे और उनका गायब होने और बिना ऑक्सीजन लगाये और बिना कोई पंख लगाये अंतरिक्ष में सैर करने का राज क्या है ? जो चमत्कारी गुण दानव असुरो में भी बतलाया गया है | जो कि देवो को बार बार पराजित भी करते थे और स्वर्ग में भी बिना स्वर्ग का वासी हुए और बिना ऑक्सीजन व पंख लगाये आना जाना करते थे | जो अब इस धरती पर उसी तरह का चमत्कारिक रुप से जिवित विचरन नही करते हैं , जैसे की देव भी अब नही करते हैं | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि सब मर चुके हैं | बल्कि विज्ञान प्रमाणित वे जिन्दा रहते भी उपर अंतरिक्ष में विचरन नही करते थे | क्योंकि वे इंसान ही थे जिन्हे भी दुनियाँ में जिन्दा रहने के लिए प्राण वायु की जरुरत पड़ती थी | लेकिन भी देव मुर्तियों की भगवान से तुलना करके ऐसी पुजा होती है , जैसे कि वे ही दुनियाँ चला रहे हैं | जो कि खुद दुनियाँ में जिवित नही रहे और इंसानो की तरह उनकी भी मौत हो चूकि है | क्योंकि जाहिर है जब वे इंसानो से परिवार बसाकर इंसानो के साथ रह चुके हो और इंसानो जैसा सेक्स करना , हगना मुतना , नहाना धोना सब किये हो तो स्वभाविक सी बात है कि वे भी इंसानो की तरह ही पैदा होकर इंसानो की तरह ही मर भी चुके हैं | न कि वे अमर हैं | और न ही वे किसी एलियन की तरह धरती पर आकर एलियन की तरह गायब हो गए हैं | इसलिए जाहिर सी बात है मनुवादी जो आज ये कहते फिरते हैं की देवता लोग ही दुनियाँ चला रहे हैं , यह सिर्फ ढोंग पाखंड के सिवा कुछ नही है | जिस ढोंग पाखंड को दुर करने के लिए ही तो इस देश में लंबे समय से बहुत सारे आंदोलन हुए हैं | जो कि अब भी मनुस्मृति का विरोध करके चल रहे हैं |
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