कथित स्वर्ग नर्क में इंसानो की अबादी कितनी है ?

कथित स्वर्ग नर्क में इंसानो की अबादी कितनी है ?


इस पृथ्वी में पहला इंसान जन्म से लेकर अबतक कितने मरे हुए इंसानी आत्माओ की अबादी कथित स्वर्ग नर्क में बसी होगी ? और स्वर्ग नर्क में जो अबादी तेजी से बड़ रही है , वह घटती है कि सिधे बड़ती जा रही है ? क्योंकि स्वर्गवासी होने वाले लोग यदि वाकई में इस प्रकृति दुनियाँ को छोड़कर कथित इस प्रकृति से बाहर किसी दुसरी दुनियाँ स्वर्ग का वासी होते जा रहे हैं , तो फिर अबतक जितने लोग स्वर्गवासी अथवा मर गए उन सबको जोड़कर जो अबादी स्वर्ग में होगी वह कितनी होगी ? जिस सवाल का जवाब किसी के पास नही है | पर मेरे पास इसका जवाब यही है कि स्वर्ग नर्क और कहीं नही बल्कि इसी प्रकृति में मौजुद है | सुख और खुशी का पल स्वर्ग है तो दुःख और गम का पल नर्क है | जिस स्वर्ग नर्क का यात्रा इसी प्रकृति में ही मौजुद है | पाप करने वालो को जीते जी इसी प्रकृति में सजा मिलती है | और जिन्हे उनके जिते जी सजा नही मिलती उनकी नई पिड़ी या फिर उनके सबसे अधिक करिबी को सजा मिलती है | और जहाँ तक स्वर्ग का मजा तो पुण्य करने वालो को उनके जिते जी विभिन्न रुपो में सुख और खुशी मिलती है , चाहे वह गरिब हो या फिर अमिर | और जिन पुण्य करने वाले को जिते जी सुख और खुशी नही मिलती उनके नई पिड़ी को या फिर उनके सबसे अधिक करिबी को सुख और खुशी मिलती है | जैसे की वर्तमान की नई पिड़ी द्वारा मनुवादीयों के खिलाफ चलाये जा रहे अजादी का संघर्ष में जिन वीरो को जीते जी अजादी का सुख और खुशी देखने को नही मिलेगी वह उनकी नई पिड़ी और उनके सबसे अधिक चाहने वालो को मिलेगी | और सजा या मजा के लिए जरुरी नही की कोई अमिर गरिब या फिर खास और आम रहे , सजा गरिब को भी मिलता है और अमिर को भी | ये बिल्कुल नही की अमिर को सजा ही नही मिलता है | सारी अमिरी सुख सुविधा का भोग विलाश करने वाले भी धन दौलत का भंडार भरकर भी सुख और खुशी की तलाश में मरे जाते हैं | मसलन कहा जाता है किसी गरिब को खुला जमिन में भी भरपुर चैन की निंद आती है , जबकि अमिर को मुलायम बिस्तर में भी चैन की निंद नही आती है | जाहिर है सुख दुःख तो अमिर गरिब सभी के जिवन में मौजुद है , पर न्याय अन्याय के लिए जो संघर्ष चल रहा है , उसके लिए दरसल जिवन संतुलित होना जरुरी है | क्योंकि इसी न्याय अन्याय की पलड़ा से ही पाप पुण्य का पलड़ा भी जुड़ा हुआ है | जो पाप पुण्य करके मरने के बाद कोई प्रकृति छोड़कर किसी दुसरी दुनियाँ में नही जाता बल्कि प्रकृति में ही अपना रंग रुप बदलकर मौजुद रहता है | जो बात यदि सत्य नही होती तो किसी के मरने के बाद उसे लोग इसी प्रकृति भूमि में दफन नही करते , और न ही उसे इसी प्रकृति में मौजुद लकड़ी से जलाकर उनके अवशेषो को पानी में बहाते | बल्कि यदि लोग मरने के बाद स्वर्ग नर्क जाते तो वे मरने के बाद सिधे गायब हो जाते | अपना शरिर इसी प्रकृति में छोड़कर कथित स्वर्ग नर्क नही जाते | क्योंकि उनकी पहचान शरिर से जुड़ा हुआ रहता है |  जिस शरिर का हुनर गुण और शरिर के दिमाक में मौजुद सोच से लोग प्यार या नफरत करते हैं | मसलन कोई पुरुष या नारी जब भी किसी से प्यार करते हैं तो उसकी आत्मा से करते हैं न कि प्यार करने के लिए किसी आत्मा को तलाशते रहते हैं | दरसल प्रकृति से बाहर दुसरी दुनियाँ में कथित सिर्फ आत्मा को ले जाकर बसाने वाला स्वर्ग नर्क है यह मात्र एक कल्पना है | क्योंकि नास्तिक हो या फिर कोई भी धर्म को मानने वाले कथित आस्तिक सभी ये मानते हैं कि प्रकृति जिवन के कण कण में मौजुद है | इसलिए चाहे आस्तिक हो या नास्तिक सभी कहीं न कहीं ये स्वीकार करते हैं कि इस सृष्टि में जहाँ कहीं भी जिवन मौजुद है , वहाँ पर प्रकृति मौजुद है | जाहिर है कथित स्वर्ग नर्क दुसरी दुनियाँ में मौजुद नही बल्कि स्वर्ग नर्क इसी दुनियाँ में मौजुद है | और जिवन मौजुदगी का मतलब वहाँ भी प्राण वायु जल वगैरा प्रकृति मौजुद है | और जैसा की हमे पता है कि हिंदू धर्म मुलता अन्न , जल , भूमि , पत्थर , पहाड़ , पेड़ पौधा वगैरा प्रतिक के रुप में साक्षात और प्रमाणित तौर पर मौजुद प्रकृति भगवान की पूजा करता है | बल्कि जो कथित अदृश्य परमात्मा की पुजा करता है उसे भी चूँकि प्रयोगिक जिवन में प्रकृति से बाहर किसी दुसरी दुनियाँ के बारे में पता नही है , इसलिए वह भी दुसरी दुनियाँ के बारे में जानकारी देते समय प्रकृति की जरुरत कथित स्वर्ग नर्क में भी होते हुए बतलाया है | जिस प्रकृति पुजा मान्यता के बारे में जानकारी हजारो साल पहले विकसित आधुनिक सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई में भी मिले हैं | जिस सभ्यता संस्कृति का निर्माण के समय इस कृषि प्रधान देश में ही नही बल्कि दुनियाँ के किसी भी देश में कोई भी मानव निर्मित धर्म मौजुद नही थे | जैसे की सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति में भी कोई मानव निर्मित धर्म मौजुद नही था | वह तो बहुत बाद में जब इस कृषि प्रधान देश में विदेशी कबिलई का घुसपैठ होना सुरु हुआ और पुरी दुनियाँ में कई अलग अलग नामो से धर्म बनने का सिलसिला भी जब सुरु हुआ उसके बाद ही विदेशियों ने सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति में मौजुद मुलनिवासियों को जो कि प्रकृति भगवान पुजा करते थे , उनकी भी प्रकृति भगवान पुजा मान्यता को सिन्धु से जोड़कर हिन्दु धर्म कहकर धर्म की लिस्ट में एक नया नाम हिन्दु धर्म दे दिया  | जैसे की यदि तब माया सभ्यता में मौजुद पुजा पाठ पद्धती को कोई बाहर से आए हुए कबिलई माया धर्म कहता और अमेरिका में आज माया धर्म नाम से भी यदि एक और धर्म होता तो इसमे मुझे आश्चर्य नही होती | जैसा कि कभी विदेशियो द्वारा सिन्धु के मुलनिवासियों को हिन्दु कहकर हिन्दु धर्म नाम का उदय हुआ इसपर मुझे आश्चर्य नही होती है | हाँ मुझे तब जरुर आश्चर्य होती है जब अच्छे खासे पढ़े लिखे विद्वान लोग भी यूरेशिया से आए यहूदि DNA के मनुवादीयों को कट्टर हिन्दु बताते हैं | बल्कि मनुवादीयों के पुर्वज देवो को मुल हिन्दु भगवान तक बताते हैं | जबकि यह सब झुठ बतलाने से पहले उन्हे हिन्दु और सिन्धु शब्द के बारे में इतिहास और सही जानकारी पढ़कर ही सत्य समझ जानी चाहिए थी की सिन्धु और हिन्दु शब्द यूरेशिया और वहाँ के लोगो के लिए नही कहा गया है | बल्कि यह भी समझनी चाहिए थी कि जिस हिन्दू शब्द का उच्चारण सिन्धु से हुआ है , उस सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का नाम हजारो साल पहले सिन्धु नदी के नाम से हुआ है | क्योंकि सिन्धु नदी के किनारे ही आधुनिक कृषि सभ्यता संस्कृति का निर्माण हुआ है | जिस सिन्धु नदी के नाम से ही आधुनिक सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण इस कृषि प्रधान देश में हुआ है | जिस सिन्धु नदी के नाम से ही इस देश में प्रकृति भगवान पुजा मान्यता का हिन्दु धर्म नाम विदेशियों द्वारा अपनी बोली भाषा अनुसार रखा गया है | जैसे की अरब और फारस के लोग सिन्धु नदी के नाम से हिन्दु शब्द कहा तो यूनान के लोगो ने सिन्धु नदी को इंडस नदी कहा , जिसके कारन इस देश को इंडिया भी कहा जाता है | जो इंडिया नाम इस देश के मुलनिवासियों की दी हुई नही है | जैसे कि हिन्दु नाम इस देश के मुलनिवासियों के द्वारा दी हुई नही है | दोनो नाम विदेशियों द्वारा दी हुई है | वह भी वह विदेशी जिन्हे सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति के बारे में पता था | क्योंकि सिन्धु नदी यूरेशिया में मौजुद नही है कि मनुवादी उसके बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी रख सके | और सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति के बारे में जानकारी यूरेशिया से आए कबिलई मनुवादीयों को जब थी ही नही तो वे उस वेद पुराण के रचनाकार कैसे हुए जिसमे इस देश के बारे में विस्तार पुर्वक भौगोलिक जानकारी मौजुद है | जो जानकारी दरसल इस देश के मुलनिवासियों के द्वारा वेद पुराणो के रुप में हजारो साल पहले इकठा की गई है | जिसे जब इकठा की जा रही थी उस समय तो मनुवादी इस देश में मौजुद भी नही होगा | जाहिर है तब प्रकृति भगवान पुजा करते समय खुदको भगवान बताकर अपनी पुजा कराने वाले देव और उनकी मनुवादी पिड़ी भी इस देश में मौजुद नही होंगे | और जब वे मौजुद ही नही होंगे तो उनके नाम से मंदिर बनना तो वैसे भी तब मुमकिन नही था | बल्कि वे तब किसी भी धर्म के हिस्सा नही थे | क्योंकि जब वे इस देश में प्रवेश किये थे उस समय दुनियाँ में एक भी मानव निर्मित धर्म नही था | और जब कोई मानव निर्मित धर्म मौजुद ही नही था तो जाहिर है मनुवादीयों के पुर्वज देवो के नाम से मंदिर बनना कैसे मुमकिन हो पाता | बल्कि देव के नाम से सिन्धु घाटी में मंदिर बनना तो दुर उनके नाम से तो एक घर भी मौजुद नही था | जिसका प्रमाण सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई में मिल चुका है कि सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति में छुवा छुत करने वाले लोग नही रहते थे | रही बात फिर इस देश के मुलनिवासी उस समय भगवान पुजा कहाँ पर करते थे तो उसका जवाब आज भी इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासियों को भगवान पुजा करते हुए मंदिर के बाहर देखकर पता किया जा सकता है | क्योंकि प्रकृति भगवान की पुजा करने के लिए किसी मंदिर मस्जिद और चर्च जैसे मानव निर्मित इमारत की जरुरत नही होती है | और न ही बारह माह जो इस कृषि प्रधान देश के बहुसंख्यक मुलनिवासियों द्वारा प्रकृति पर्व त्योहार मनाई जाती है , उसके लिए जरुरत होती है | बल्कि आज जो लाखो मंदिर देवो के नाम से बनाये गए हैं , वह सब मनुवादीयों के प्रवेश के बाद तब से बनने सुरु हुए हैं , जब छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से इस कृषि प्रधान देश में कबिलई मनुवादीयों की सत्ता स्थापित हो चुकी थी | जिसके बाद उन्होने जहाँ कहीं भी किसी प्रकृति भगवान का प्रतिक के रुप में पत्थर वगैरा को इस देश के मुलनिवासियों को पुजा करते हुए देखा वहाँ पर मनुवादीयों ने अपने पुर्वज देवो की मूर्ति बिठाकर देव मंदिर का निर्माण कराया | और साथ में इस देश में पुरुष झुंड बनाकर प्रवेश करने के बाद इस देश की जिन महिलाओं से अपना वंशवृक्ष बड़ा किया या अपनी मनुवादी सत्ता कायम करने में उनसे विशेष सहयोग लिया उन महिलाओं की भी मूर्ति देवी के रुप में बिठाया | खासकर उन जगहो में जहाँ पर पहले से प्रकृति का प्रतिक के रुप में पत्थर वगैरा की पुजा होती है | जहाँ पर इस देश के मुलनिवासी प्रकृति अन्न जल फल फुल वगैरा लेकर पुजा करने जाते हैं | धन लेकर नही !जिस तरह के उदाहरण आज भी देखने को मिलते हैं जब कोई प्रकृति पत्थर की पुजा किसी खुले आसमान या फिर पेड़ के निचे करते हुए भारी तादार में देख जानकर मनुवादी उस स्थान पर धिरे धिरे कब्जा करके अपने पुर्वज देव की भी मूर्ति बिठाकर मंदिर का निर्माण करते हैं | जो पहले उस प्रकृति पुजा स्थल पर नही रहता है , पर मनुवादी उसकी आड़ में वहाँ पर देव मंदिर का निर्माण कर देते हैं | जिसके बाद वहाँ पर पुजा स्थल पर प्रकृति फल फुल जल वगैरा के साथ साथ धन चड़ाने की सुरुवात हो जाती है | जिस तरह के मंदिर इस देश में अनगिनत भरे पड़े हैं जिसके बनने से पहले कहीं न कहीं प्रकृति का ही कोई साक्षात प्रतिक जैसे की पत्थर जो की इंसानो द्वारा नही बल्कि प्रकृति के द्वारा ही बनता है उसे स्थानीय लोगो द्वारा बैठाकर या फिर पहले से मौजुद रहता है , उस पत्थर को प्रकृति भगवान का प्रतिक मानकर फल फुल जल वगैरा से पुजा की जा रही होती है | जिसकी आड़ में मनुवादीयों ने अनगिनत देव मंदिर का निर्माण किया है , जो आज भी कर रहे हैं | जिन मंदिरो में आज मनुवादीयों के पुर्वज देवो की मूर्ति भरे पड़े रहते हैं | जिनको भगवान कहकर आरती उतारी जाती है और धन भी चड़ाई जाती है | जिसकी सुरुवात करने वाले मनुवादी के पुर्वज देव संभवता यूरेशिया से इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले कपड़ा और अन्न खेती के बारे में भी नही जानते होंगे पर आज उनकी मुर्तियो की भगवान कहकर पुजा होती है | जिनकी इस देश में सुरु से ही पुजा करना तो कहीं से मुमकिन ही नही लगती है | जिन देवो की आज इसी देश में लाखो मंदिर बनकर उनकी मुर्ति पुजा मुमकिन इसलिए हो पाया है , क्योंकि उन्होने इस देश में प्रवेश करके इस देश और इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम बनाकर मानो अपना संविधान मनुस्मृति लागू करके अपने मरे हुए पुर्वज देवो और कोई कोई मनुवादी तो जिवित रहते भी खुदको भगवान घोषित करके अपनी पुजा कराना सुरु किया है | जिन मनुवादीयों के द्वारा प्रवेश करके इस कृषि प्रधान देश और यहाँ के मुलनिवासियों को गुलाम बनाकर छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से उनके राज्यो में कब्जा करके मरने के बाद देव अपनी नई पिड़ी को इस देश की सत्ता सौपने के बाद ही देवो के नाम से उनकी नई पिड़ियों द्वारा उनके नाम से मंदिरो का निर्माण सुरु हुआ होगा | जिससे पहले सिन्धु घाटी में कोई भी देव मंदिर नही थे | सिर्फ प्रकृति पुजा स्थल थे | जाहिर है देवता पुजा हिन्दु भगवान पुजा  नही हैं | क्योंकि हिंदूओं की आस्था और विश्वाश अनुसार बल्कि विज्ञान अनुसार भी यह मान्यता है कि प्रकृति की वजह से ही सभी जन्मे हैं , और प्रकृति हवा पानी वगैरा से ही सभी इंसानो और बाकि जिवो की भी जिवन चल रही है | न की देवो की वजह से जन्मे हैं और सभी लोग देवो की वजह से जिवन यापन कर रहे हैं | प्रकृति को मुल सत्य मानकर मुल हिन्दु हवा पानी पेड़ पौधा वगैरा की पुजा करता है | बल्कि उसकी आस्ता और विश्वास है कि प्रकृति में ही सारी शक्ति और गुण मौजुद है | न कि प्रकृति कुछ है ही नही और जो है ही नही वह सबकुछ है | वैसे तो भगवान पूजा के बारे में विस्तार पूर्वक ज्ञान लेनी है तो इस साईट पर बहुत सारे पोस्ट मौजुद हैं | जैसे  इस पोस्ट में भी प्रकृति भगवान पूजा के बारे में बहुत सी ज्ञान मौजुद है | जिस ज्ञान को जरुर बांटे उन लोगो को जो मनुवादीयों के पुर्वज देवो को हिन्दु भगवान मानते हैं |

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