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सरायकेला हिंसक घटना के बारे में मेरी अपनी राय

लंका दहन के समय हनुमान ने बहुत से बच्चे बुढ़े जवान नर नारी सभी को जिंदा जला दिया था | बल्कि बहुत से पशु पक्षी और पेड़ पौधे भी लंका दहन में जल गए होंगे |जितनी बड़ी आतंक और हिंसा की घटना जिसमे निंद में ही बहुत से जगे हुए आतंकित बच्चे बुढ़े नर नारी जिनमे से कुछ तो निंद में ही जलकर खाक हो गए होंगे | बल्कि यदि सीता को लंका के रक्षको ने नही बचाया होता तो सायद सीता भी जिते जी अग्नी परीक्षा से पहले ही लंका दहन आग के हवाले हो जाती | क्योंकि सीता भी भष्म लंका में मौजुद थी | राम भक्त हनुमान तो अपनी पुंछ को बुझाकर चुपके से निकल लिया था | जिस हनुमान द्वारा लंका दहन करने की इतनी बड़ी हिंसक घटना की याद में हर साल जस्न मनाई जाती है | और राम द्वारा भी न जाने कितने नर ( मनुवादियो के कथन अनुसार राक्षस) नारी ( मनुवादियो के कथन अनुसार राक्षसनी ) की हत्या करके कितना हिंसक खुन बहाया है ये तो खुद रामायण सुनाने लिखने और दिखाने वाले मनुवादि और उनके भक्त रचनाकार अभी भी प्रचारित प्रसारित करते रहते हैं | जिन दोनो की हिंसा पर जस्न मनाने वाले राम और हनुमान भक्त बनाकर कितने ब्रेनवाश किये गए हैं , यह सरायक

भविष्य में मनुवादि शासन समाप्त होने के बाद मतदान में होनेवाली गड़बड़ी को कैसे सुधार करनी चाहिए इसपर मेरी अपनी राय

भविष्य में मनुवादि शासन समाप्त होने के बाद मतदान में होनेवाली गड़बड़ी को कैसे सुधार करनी चाहिए इसपर मेरी अपनी राय ! गोरो की गुलामी से अजादी मिलने के बाद क्या वाकई में फिर से मनुवादियो की गुलामी का दौर वापस चल पड़ी है ? और अगर नही तो फिर अजाद भारत का संविधान लागू होने के बाद भी चुनाव प्रक्रिया में अबतक ऐसी क्या सबसे बड़ी कमी रही है , जिसकी वजह से मतदान करने और मतदान परिणाम आने में सबसे अधिक गड़बड़ घोटाला  हो रहा है ? जिस गड़बड़ घोटाला को कैसे दुर किया जा सकता है , इस बारे में फिलहाल तो सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है , यह भाषन अश्वाशन देकर टाल दिया जाता आ रहा है | या हो सकता है गड़बड़ी कैसे दुर किया जाय इसके बारे में जो खोजे हो रही है वह दरसल पैदल प्रयोग ही साबित हो रही है | जिसके चलते चुनाव में लाख शिकायत आने के बावजुद भी मनुवादियो के शासन में कभी भी मतदान प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी को दुर करने की बाते नही हो रही है | हलांकि मेरे विचार से तो मनुवादि शासन में यदि गड़बड़ी दुर करने की कभी कोशिष भी होगी तो भी दुर नही हो सकती ! क्योंकि जिस तरह मनुवादियो के शासन में भेदभाव शोषन अत्याचार कभी भी द

अन्याय अत्याचार का इतिहास को भुल जाय वैसे लोगो को कभी भी अपनी सेवा सुरक्षा में नही लगाना चाहिए

अन्याय अत्याचार का इतिहास को भुल जाय वैसे लोगो को कभी भी अपनी सेवा सुरक्षा में नही लगाना चाहिए यदि सत्य झुठ का पलड़ा में रखते हुए सत्य मान भी लिया जाय कि लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो की कब्जा हालत में भी चुनाव इमानदारी से हो रहे हैं या इसबार भी हुए हैं , जिसका चुनाव परिणाम दुध का धुला हुआ है , तो भी यह साबित होता है कि दरसल इस देश के ज्यादेतर मुलनिवासी वोटर अपने सर में मैला तक ढोकर अबतक मनुवादियो के ही सर में सत्ता ताज उनकी गुलामी की वजह से सौंपते आ रहे हैं | जो सत्य झुठ के पलड़े में तौलकर तो कहीं से भी सही फैशला नही लगता है | क्योंकि मनुवादियो की शोषन अत्याचार से छुटकारा पाने के लिए इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासी अपनी शासन न लाकर बार बार मनुवादी शासन को ही स्वीकारे ये तो और बुरे दिन दर्शाता है | क्योंकि हमारे अपने ही डीएनए के लोगो द्वारा बार बार मनुवादि सत्ता को चुनकर मानो शोषन अत्याचार करने के लिए बड़ावा देना दरसल इस देश के अपने ही डीएनए के उन संघर्ष कर रहे मुलनिवासियो के साथ भारी अन्याय करना है जिन्हे इस बात पर पुरा विश्वास है कि इस देश और उनकी जिवन में सुख

इस देश के मुलनिवासियो की वोट संख्या मनुवादियो की वोट संख्या से ज्यादे है , फिर भी मनुवादियो का शासन अबतक कायम क्यों है ?

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इस देश के मुलनिवासियो की वोट संख्या मनुवादियो की वोट संख्या से ज्यादे है , फिर भी मनुवादियो का शासन अबतक कायम क्यों है ? इस कृषि प्रधान देश में गोरो का शासन समाप्त होने के बाद आई मनुवादियो की शासन में किसकी वोट संख्या हर बार के चुनाव परिणाम में सबसे अधिक शामिल हो रहे हैं ? जाहिर है इस ताकतवर देश के दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासियो का ही वोट चूँकि सबसे अधिक है , इसलिए निश्चित तौर पर सिर्फ कथित उच्च जाती का वोट से तो मनुवादी सरकार बार बार जितकर नही आ रही होगी | और यदि इस देश में वाकई में भारी भेदभाव करने वाले मनुवादियो को ही बार बार चुनाव जितवाकर इस देश के दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासियो के द्वारा ही भारी तादार में वोट करके मनुवादियो का शासन को दोहराया जा रहा है , फिर तो जरुर सवाल उठता है कि दबे कुचले कमजोर लोगो में कौन लोग मनुवादियो की पार्टियो को अपना किमती वोट देकर भारी बहुमत से अबतक चुनाव जिताते आ रहे हैं ? क्योंकि गोरो के जाने के बाद अजाद भारत का संविधान में वोट देने का अधिकार मिलने के बाद क्या वाकई में इस देश के मुलनिवासी अपने सर में मैला तक ढोकर

मनुस्मृती रचना करने वालो ने खुदको जो जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया हुआ है , वह दरसल फर्जी घोषना है

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मनुस्मृती रचना करने वालो ने खुदको जो जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया हुआ है , वह दरसल फर्जी घोषना है  क्योंकि वेद सुनने पर कान में गर्म शीसा डालने वाला और वेद बोलने पर जीभ काटने जैसा अन्याय अत्याचार करने वाले को जन्म से वीर क्षत्रीय अथवा रक्षक घोषित करना फर्जी नही तो क्या है ! लंगटा लुचा कुबेर जिसके पिता के पास अपना एक पक्का मकान तक नही था , वह दुसरे के द्वारा धन प्राप्त करके और सोने की लंका को लुटकर धन्ना कुबेर वैश्य कहलाया वह अमिरी क्या सचमुच की अमिरी है ? जैसे कि अली बाबा और चालिस चोर की कहानी में जो चालिस चोर मिलकर प्रजा की धन दौलत को चोरी करके अपना काला गुफा भरते रहते हैं , वह अमिरी क्या फर्जी अमिरी नही थी ! जिसे खुल जा सिमशिम कहकर चालीस चोर अपना फर्जी अमिरी दिखाकर यदि जिनके धन की चोरी करके वे फर्जी अमिर बने हैं , उन्ही को गरिब करके अपनी फर्जी अमिरी दिखला रहे हैं , तो उसी तरह का अमिर बनने का सपना अपना धन लुटाकर या चोरी होकर गरिब बनी प्रजा को चालीस चोरो की ही तरह अमिर बनने का सपना कभी भी नही देखना चाहिए | न तो खुद देखना चाहिए और न ही अपने बच्चो को चालीस चोर की तरह

मनुवादियो की खास हुनर ही भेदभाव करना छुवा छुत करना शोषन अत्याचार करना है

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मनुवादियो की खास हुनर ही भेदभाव करना छुवा छुत करना शोषन अत्याचार करना है | सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला इस कृषि प्रधान देश को गोरो की गुलामी से अजादी मिलने के बाद आई शासन में लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो के उच्च पदो में जिन लोगो को इस देश और इस देश के नागरिको की सेवा सुरक्षा करने के लिए खास जिम्मेवारी दी जाती रही है , उन खास पदो में ज्यादेतर वही मनुवादी लोग बैठे हुए हैं , जिनके पूर्वजो ने इस देश के मुलनिवासियो का शोषन अत्याचार गोरो के आने से भी हजारो साल पहले से ही पिड़ी दर पिड़ी  करते आ रहे हैं | जिनके पास भेदभाव करने का खास हुनर उपलब्ध है | भले उस खास हुनर का मानो ढोंगी पाखंडी उच्च डिग्री मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान लिखा जा चुका है | जिस संविधान की सुरक्षा और उसे अच्छे से लागु करने की जिम्मेवारी जिस न्यायालय को सौंपा गया है वहाँ पर भी किन लोगो का कब्जा है यह जग जाहिर है | जाहिर है भ्रष्ट सोच की मनुवादी सरकार आज भी कायम है | जिसके चलते मनुवादी सरकार सिर्फ मुठीभर लोगो की ही सुख सुविधाओ को ध्यान में रखते हुए भेदभाव विकाश का दौड़ लगाना जारी रखे हुए हैं |

सतीश चंद्र मिश्रा के आने से पहले बसपा मजबूत थी की अब है ?

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सतीश चंद्र मिश्रा के आने से पहले बसपा मजबूत थी की अब है ? तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जुते चार का नारा देते समय बसपा मजबुत थी कि तिलक सतीश चंद्र मिश्रा को शामिल करके उच्च पद देकर मजबुत हुई है ? दरसल ब्रह्मण सतीश चंद्र मिश्रा को बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बिच आई दरार के लिए मुख्य कारन बतलाया जा रहा है | जो बहस तेज हो गयी है कि सतीश चंद्र मिश्रा को खास महत्व देकर बसपा कमजोर हुई है | और बहुत सारी दरारे भी आ रही है | जिस सत्य बात का मैं समर्थन करता हूँ | बल्कि ज्यादेतर  मुलनिवासी समर्थन करेंगे इस बात में कि बसपा में बहुत सारे गलत फैसले सतीश चंद्र मिश्रा जैसे ब्रह्मणो को पार्टी में उच्च पद या टिकट देने की वजह से ही लिये जा रहे हैं | हो सकता है बसपा को मनुवादियो की खाल ओड़ाने की भितर भितर तैयारी चल रही हो , बल्कि तैयारी हो चूकि है | जिससे कि मुलनिवासियो के बिच एकता में दरार पैदा हो रही है | साथ साथ मनुवादियो के खिलाफ चल रही मुमेन्ट में भी कमजोरी और दरार पैदा हो रही है | जिसका फायदा उठाकर मनुवादि खुद तो बड़े बड़े पाप और अपराध करके बच निकलने में का

रामराज और आधुनिक भारत गरिबी हटाओ शाईनिंग इंडिया डीजिटल इंडिया राज

"देश में आत्महत्यायें बड़ रही है इस तरह के बुरे से भी बुरे हालात में यह झुठ फैलाया जा रहा है कि सबके अच्छे दिन आ गए हैं , इसलिए देश की जनता खुशी के मारे बार बार ऐसी आधुनिक डीजिटल सरकार को चुन रही है | जो अच्छे दिन वाकई में आते तो क्या जनता खुशी से नाच गाकर आत्महत्या कर रहें हैं ? क्या अच्छे दिन आ गए हैं इसलिए आत्महत्यायें बड़ रही है ? सायद रामराज में वाकई में इसी तरह के सबके अच्छे दिन आ गए थे , इसलिए खुशी से नाच गाकर राजा राम जिते जी सरयू नदी में डुबे थे ,और रानी सीता जिते जी रोते हुए धरती में समाई थी | जिस तरह का शासन भुलकर भी किसी और देश में कभी न आए !