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बुधवार, 26 जून 2019

सरायकेला हिंसक घटना के बारे में मेरी अपनी राय

लंका दहन के समय हनुमान ने बहुत से बच्चे बुढ़े जवान नर नारी सभी को जिंदा जला दिया था | बल्कि बहुत से पशु पक्षी और पेड़ पौधे भी लंका दहन में जल गए होंगे |जितनी बड़ी आतंक और हिंसा की घटना जिसमे निंद में ही बहुत से जगे हुए आतंकित बच्चे बुढ़े नर नारी जिनमे से कुछ तो निंद में ही जलकर खाक हो गए होंगे | बल्कि यदि सीता को लंका के रक्षको ने नही बचाया होता तो सायद सीता भी जिते जी अग्नी परीक्षा से पहले ही लंका दहन आग के हवाले हो जाती | क्योंकि सीता भी भष्म लंका में मौजुद थी | राम भक्त हनुमान तो अपनी पुंछ को बुझाकर चुपके से निकल लिया था | जिस हनुमान द्वारा लंका दहन करने की इतनी बड़ी हिंसक घटना की याद में हर साल जस्न मनाई जाती है | और राम द्वारा भी न जाने कितने नर ( मनुवादियो के कथन अनुसार राक्षस) नारी ( मनुवादियो के कथन अनुसार राक्षसनी ) की हत्या करके कितना हिंसक खुन बहाया है ये तो खुद रामायण सुनाने लिखने और दिखाने वाले मनुवादि और उनके भक्त रचनाकार अभी भी प्रचारित प्रसारित करते रहते हैं | जिन दोनो की हिंसा पर जस्न मनाने वाले राम और हनुमान भक्त बनाकर कितने ब्रेनवाश किये गए हैं , यह सरायकेला जैसी अनगिनत घटना से प्रमाणित हो जाता है कि रामभक्तो में राम और हनुमान के द्वारा किया गया हिंसा का क्या असर है | जिनकी हिंसा को सेंसर बोर्ड भी मानो जस्न मनाकर पास कर देती है | क्योंकि सेंसर बोर्ट में भी मनुवादियो का कब्जा है | तभी तो राम और हनुमान के द्वारा किये गये भारी हिंसा और आतंक को कई धारावाहिक फिल्म और न जाने कितने माध्यम से प्रचारित प्रसारित करके इस देश के मुलनिवासियो को इतना ज्यादे ब्रेनवाश किया गया है कि ब्रेनवाश हुए लोगो की बुद्धी में सत्य झुठ को परखने की ताकत इतनी कमजोर हो चुकि है कि वे पिड़ि दर पिड़ि किसी अनुवांसिक ब्रेनवाश भक्त बनते चले आ रहे हैं | जिनमे वही लोग सबसे पहले ब्रेनवाश किये जा रहे हैं , जो रामायण को ढोंगी पाखंडियो की नजरिये से ही जान समझकर अँधभक्त बने हुए हैं | जो राम को सबसे उत्तम पुरुष और रामराज को उत्तम राज मानकर राम ने शंभुक प्रजा के अलावे अपनो तक के साथ भी कितने अन्याय अत्याचार और हिंसक अपराध किया है , उसे कभी जानने की कोशिष ही नही किये हैं | जिनके ब्रेनवाश के बाद उनसे हनुमान और राम के नाम से सरायकेला जैसी हिंसा करने की मांसिकता आना स्वभाविक है | क्योंकि जिस हनुमान और राम ने हिंसा से मानो खुन की नदियाँ बहायी हो उसके भक्तो के लिए तो हिंसक रामायण के तुलना में दो चार हत्या समान्य बात कहलायेगी | जिस बारे में विश्वभर के विद्वान विचार करे कि हनुमान और राम पर हिंसा करने के कितने अपराधिक मामले दर्ज होते यदि राम हनुमान के उपर भी केश करने का नियम कानून होता | और हनुमान द्वारा भी लंका दहन में कितने सारे हिंसा और नुकसान हुआ होगा | जिसके अपराधिक मामले की न्याय फैशले में बिना भेदभाव न्याय पर न जाने कितने  सजा होते | राम को तो अपने विरोधियो के साथ साथ अपने सबसे करिबियो से भी अपराधिक मामले दर्ज होते | जाहिर है राम हनुमान ने इतने सारे हिंसा किए हैं कि उसके भक्तो को हिंसा करते समय लंका दहन हिंसा के जस्न मनाने जैसा राम हनुमान के नाम से सरायकेला जैसी हिंसा की घटना तो रामभक्तो के लिए समान्य बात लगती होगी | जिस घटना के बाद हिन्दु मुस्लिम के नाम से यदि दंगा भी भड़क जाय और लंका दहन कि तरह बहुत सारे घरो का दहन होना सुरु हो जाय तो इसमे आश्चर्य नही करनी चाहिए | क्योंकि कहीं पर खबर पढ़ रहा था कि अजादी से लेकर अबतक पचास हजार से अधिक दंगे हो चुके हैं | बल्कि मुझे तो सबसे आश्चर्य उन मुलनिवासियो पर होता है जो इतने ब्रेनवाश हो चुके हैं कि उस राम के नाम से मरने मारने पर उतर आते हैं , जिस राम ने भारी भेदभाव करते हुए वेद ज्ञान लेने पर मुलनिवासियो के ही वंशज शंभुक की हत्या करने के साथ साथ वर्तमान समय में भी आए दिन उच्च निच भेदभाव करके अनेको और भी हत्यायें करके हिंसा से खुन की नदियाँ बहाया है | जिन ब्रेनवाश मुलनिवासियो को कोई अबतक ये क्यों नही समझा पाया  है कि न तो राम से उनका सबसे अधिक भला हुआ है और न ही राम उनके पुर्वज हैं | खासकर जब उच्च निच भेदभाव करके शोषित पिड़ितो के घर और शोषित पिड़ित भी जिंदा जला दिए जाते हैं , उस समय क्या ये बात समझ में प्रयोगिग तौर पर समझ में नही आती है कि राम मनुवादियो के पुर्वज है, जिन्हे मनुस्मृति में उच्च जाति और शंभुक को निच जाति कहा गया है | राम ने भी तो निच जाति को वेद ज्ञान लेना मना है कहकर शंभुक की हत्या किया था | बल्कि धर्म परिवर्तन किये हुए लोग भी मुलनिवासियो के ही डीएनए के हैं  , न कि राम के डीएनए हैं | हो सकता है धर्म परिवर्तन करने वालो में न के बराबर कुछ राम डीएनए के भी हो | पर लगभग सभी धर्म परिवर्तन करने वाले इस देश के मुलनिवासियो का ही डीएनए के एक ही पुर्वजो के वंशज हैं | जिनके साथ मनुवादियो ने आपस में फूट डालकर और एक दुसरे को लड़ाकर और खुनी हिंसा करवाकर खुन की नदियाँ बहवाया है | क्योंकि राम द्वारा पिठ पिच्छे वार करके जिस बालि की हत्या हुई थी उसकी वानर सेना का भी डीएनए राम का डीएनए नही था | जिसे राम ने बाद में खुनी हिंसा के लिए उनके परिवार को छोड़वाकर दूर ले जाकर जमकर इस्तेमाल किया था | जो चाहे तो मूल रुप से मनुस्मृती को मानने वाले कथित उच्च जाति के उन ढोंगी पाखंडियो से भी पुच्छ लो जो आज भी आरएसएस जैसी संगठन बनाकर मानो उसमे अपडेट वानर सेना बहाली करके जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं | जिस आरएसएस में अबतक लगातार चुने जा रहे अध्यक्षो के पूर्वज और इस देश के मुलनिवासियो का पुर्वज एक हैं क्या ? जिसपर भी यदि शक हो रहा हो तो एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट की खबर एक अंग्रेजी अखबार टाईम्स ऑफ इंडिया में 21 मई 2001 को छपी थी , उसके बारे में भी जरुर जान लें | जिस रिपोर्ट में इस देश के मुलनिवासियो का डीएनए और कथित उच्च  जाति के कहलाने वालो का डीएनए अलग है | जिसके बारे में पता करके अच्छी तरह से सोच समझकर अपने भितर जरुर झांके ब्रेनवाश हुए वे सभी मुलनिवासी जो राम के नाम से मानो अपडेट वानर सेना बनकर मरने मारने के लिए उछल कुद करते रहते हैं ! बल्कि मैं तो कहूँगा वे शांत मन से अपने पुर्वजो का इतिहास को सबसे पहले अच्छी तरह से जाने और समझे | जिसे जो नही जान सका वह चाहे कितना ही बड़ा कागजी डिग्री ज्ञान पाया हो , असल में जो लोग अपने पुर्वजो बल्कि अपने मुल देश का इतिहास को ठीक से नही जानते उन्ही को ही सबसे असानी से ढोंगी पाखंडि ब्रेनवाश करके अपने इस्तेमाल के लायक बनाते हैं | जिसके बाद सरायकेला घटना की तरह और भी न जाने कितने हिंसा की घटना राम के नाम से होना स्वभाविक है | जिसे रोकने के लिए इस देश की शंभुक प्रजा को अपने पुर्वजो की उस इतिहास को जानना जरुरी है कि किस तरह से कथित उच्च जाति कहलाने वालो द्वारा मनुस्मृति रचना करके इस देश के मुलनिवासियो के साथ हजारो सालो से अन्याय अत्याचार होता आ रहा है | जिस मनुस्मृति को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना किया गया तो भी उच्च निच्च भेदभाव के बाद धर्म के नाम से भी ब्रेनवाश करके एक ही डीएनए के इस देश के मुलनिवासियो का ही खुन आपस में लड़ाकर बहाया जा रहा है | जिसके बारे में ताजा उदाहरन सरायकेला घटना है , जिसमे इस देश के मुलनिवासी ही उच्च जाति के पुर्वज राम के नाम से एक दुसरे को मारकर खुन की नदियाँ बहाने के लिए उतारु हैं | जिससे बचने का सबसे आसान और हलांकि सबसे मुश्किल भी रास्ता है कि इस देश के मुलनिवासियो के सभी परिवारो में सभी सदस्य न सही पर कम से कम एक दो सदस्य मांसाहारी जिवन को त्यागकर शाकाहारी बने | जैसा कि मेरे परिवार में मैने बहुत सी समस्याओ का समाधान किशोर अवस्था में ही शकाहारी बनकर अपने आप निकाल लिया था | शकाहारी बनने से शराबियो की शराबी जिवन भी समाप्त होगी और जो लोग शबाब के पिच्छे भागते हैं वे भी शकाहारी बनकर निश्चित तौर पर अपने जिवन में इतनी भारी बदलाव बिना दवा और दुवा  के भी खुदकी सिर्फ आत्मविश्वाश के जरिये इतना ज्यादे महसुश करेंगे कि सारी जिवन दुसरो के लिए भी खास हो जायेंगे | जिसके बाद उनका ब्रेनवाश होना भी रुक जायेगा और हिंसा भी रुक जायेगा | जबतक घर के भेदि पैदा होते रहेंगे तबतक आपसी विवाद में थोड़ी बहुत हिंसा तो वैसे कभी भी नही रुकेगी पर आज जो ब्रेनवाश होकर और मांसाहारी शराबी शबाबी जिवन की वजह से भी जितनी सारी हिंसा रोजमरा जिवन में हो रही है वह निश्चित तौर पर समाप्त जरुर हो जायेगी | मैं शाकाहारी बनने का मतलब वैसे ढोंगी पाखंडी बनने नही कह रहा हुँ जो खुदको शाकाहारी बनाकर भी धर्म के नाम से सबसे अधिक हिंसा करवाने की सुपारी देते रहते हो | क्योंकि ऐसे लोगो को पशु हत्या से भी ज्यादा आसान किसी शोषित पिड़ित निर्दोश की हत्या उच्च निच और धर्म के नाम से कराना लगता है | जैसे की सरायकेला में एक निर्दोश की हत्या हुई नही बल्कि कराई गई होगी ब्रेनवाश करने वालो द्वारा | जो ब्रेनवाश नही होते यदि वे मांस मदिरा का सेवन त्याग देते | यकिन न आए तो पता करके देख लेना घटना में शामिल राम हनुमान बोलवाने वाले मांस मदिरा का सेवन करते हैं कि नही ? हलांकि शराब शबाब और कबाब से दुरी बनाना सबकी वश की बात नही है ! जिनमे से मेरी जिवन में वैसे तो शराब शबाब पहले से ही दुर था पर कबाब अथवा मांसाहारी जिवन से दुरी किशोर अवस्था में हुआ | जिसके बाद से लेकर अबतक मेरे जिवन में इतने सारे भारी बदलाव आए हैं कि मेरी रोजमरा जिवन से प्रभावित होकर कई और ने भी शकाहारी जिवन को अपना लिया है | जिस शाकाहारी जिवन से एक बहुत बड़ा फायदा किसी के परिवार में किस तरह से हो सकता है , इसका एक खास उदाहरन एक घटना की चर्चा मैं अक्सर करता रहता हूँ | जिस घटना में एक पति ने अपनी पत्नी की हत्या कुल्हाड़ी से काटकर सिर्फ इसलिए कर दिया था कि उसकी पत्नी ने खुद ज्यादे मांस खाकर अपने पति के लिए कटोरा में कम मांस रख दिया था | वैसे मांस के लिए इतिहास में भी पशु लुटपाट की घटना और हिंसा कितने हुए हैं यह भी कभी हो सके तो जरुर जान लेना | खैर मैं मांस के बारे में भी इतने ज्यादे चर्चा क्यों किया हूँ इस पोस्ट में यह सवाल किसी के मन में हो तो बता दूँ कि सरायकेला की घटना के जड़ में कहीं न कहीं पशु मांस से भी जुड़ा हुआ मामला लगता है | वैसे ब्रेनवाश किये हुए सभी मुलनिवासी निश्चित तौर पर मांशाहारी ही होंगे यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ | किसी शाकाहारी का इतना ज्यादे ब्रेनवाश तभी हो सकता है जब उसे मांस के अलावे किसी और चीज का लत हो | जिन ब्रेनवाश हुए मुलनिवासियो के ही डिएनए के लोगो को जब निच कहकर जिन्दा जला दिए जाते हैं या उनके घरो को जला दिया जाता है , नंगा करके मारा पीटा जाता है , विवाह के समय घोड़ी पर नही चहड़ने दिया जाता है , बहुत से जगहो में प्रवेश वर्जित किया जाता है , उनके साथ बहुत से जगहो में शादी विवाह वगैरा में खाने पिने में भी भेदभाव किया जाता है , यह सब जानकर भी ब्रेनवाश होकर राम के नाम से खुनी हिंसा करके गर्व करने वालो को तो इतिहास में अपडेट वानर सेना के रुप में ही दर्ज करनी चाहिए | जिस वानर सेना में शामिल होने का मतलब उपर जिस शोषन अत्याचार  के बारे में उदाहरन दिए गए हैं , उसको नजर अंदाज करना है | जिसे नजर अंदाज करने वाले मुलनिवासियो की वजह से ही आजतक इस देश में मनुवादियो का शासन कायम होकर शोषन अत्याचार जारी है | साथ साथ ब्रेनवाश किए गए अपडेट वानर सेनाओ द्वारा राम के नाम से सरायकेला जैसी खुनी हिंसा भी जारी है | जिसका मैं पुर्ण रुप से विरोध करता हूँ | बल्कि सरायकेला घटना में जिसकी हत्या राम हनुमान का गुणगान जबरजस्ती करवाकर की गयी है , वह आरोपी व्यक्ति यदि सचमुच का चोर साबित भी हुआ तो क्या वही ब्रेनवाश किये हुए लोगो में इतनी हिम्मत और एकता मौजुद है कि हजारो लाखो करोड़ की चोरी करके विदेश भागने वालो और बड़े बड़े पनामा नदी जैसा भ्रष्टाचार का देशी विदेशी में लिस्ट में शामिल लोगो को भी उसी तरह बांधकर उनसे राम हनुमान बोलवाकर मारने कि हिम्मत और एकता ब्रेनवाश किए लोगो में हैं ? मुझे पता है ये ब्रेनवाश किए हुए लोग ऐसा कभी कर ही नही सकते | और करना भी नही चाहिए बल्कि सारा पोल खोलकर अथवा गलती कबूल कराकर उसके भितर सुधार करने की कोशिष होनी चाहिए | जैसे की मनुवादियो को सुधारने की कोशिष हजारो सालो से इस देश में हो रही है | पर मानो गोरे किसी को गुलाम करके जज बनकर न्याय करना सही नही है यह बात जानकर बहुत हद तक सुधर गए , पर ये मनुवादि आजतक भी नही सुधरे हैं | जो आज भी भारी भेदभाव शोषन अत्याचार के साथ साथ ब्रेनवाश करना भी जारी रखे हुए हैं |

मंगलवार, 25 जून 2019

भविष्य में मनुवादि शासन समाप्त होने के बाद मतदान में होनेवाली गड़बड़ी को कैसे सुधार करनी चाहिए इसपर मेरी अपनी राय

भविष्य में मनुवादि शासन समाप्त होने के बाद मतदान में होनेवाली गड़बड़ी को कैसे सुधार करनी चाहिए इसपर मेरी अपनी राय !
गोरो की गुलामी से अजादी मिलने के बाद क्या वाकई में फिर से मनुवादियो की गुलामी का दौर वापस चल पड़ी है ? और अगर नही तो फिर अजाद भारत का संविधान लागू होने के बाद भी चुनाव प्रक्रिया में अबतक ऐसी क्या सबसे बड़ी कमी रही है , जिसकी वजह से मतदान करने और मतदान परिणाम आने में सबसे अधिक गड़बड़ घोटाला  हो रहा है ? जिस गड़बड़ घोटाला को कैसे दुर किया जा सकता है , इस बारे में फिलहाल तो सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है , यह भाषन अश्वाशन देकर टाल दिया जाता आ रहा है | या हो सकता है गड़बड़ी कैसे दुर किया जाय इसके बारे में जो खोजे हो रही है वह दरसल पैदल प्रयोग ही साबित हो रही है | जिसके चलते चुनाव में लाख शिकायत आने के बावजुद भी मनुवादियो के शासन में कभी भी मतदान प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी को दुर करने की बाते नही हो रही है | हलांकि मेरे विचार से तो मनुवादि शासन में यदि गड़बड़ी दुर करने की कभी कोशिष भी होगी तो भी दुर नही हो सकती ! क्योंकि जिस तरह मनुवादियो के शासन में भेदभाव शोषन अत्याचार कभी भी दुर नही हो सकती , उसी तरह चुनाव में भी गड़बड़ घोटाला कभी रुक नही सकती | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि मनुवादि जबतक मनुस्मृति सोच से अपने बुद्धी को भ्रष्ट करते रहेंगे तबतक लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मौजुद मनुवादियो का दबदबा का गलत इस्तेमाल करके शोषन अत्याचार और छल कपट से सत्ता हासिल करने का इतिहास ही अपडेट होती रहेगी | रही बात जिनको भी बहुत बड़ा यह भ्रम है कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो का शोषन अत्याचार करने वाली मनुवादि शासन अब अजाद भारत का संविधान लागू होने के बाद कभी कायम हो ही नही सकती है , तो इसके बारे में चूँकि मेरा मानना है कि मनुवादियो के डर और ढोंग पाखंड के साये में कभी भी इमानदारी से चुनाव हो ही नही सकते , चाहे पुराने तरिके से मत पत्र से हो या फिर क्यों न ईवीएम मशीन से हो !जैसे की गोरो के शासन में भी ईमानदारी से चुनाव कभी भी नही हो सकते थे | क्योंकि इस बात को तो सभी मुलनिवासी जरुर मानेंगे की लोकतंत्र के चार प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो का ही दबदबा कायम है ! इसलिए मेरे विचार से तो यह बात पुरी तरह से झुठ ही साबित होती है कि मनुवादियो की सरकार को इस देश के दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले ज्यादेतर मुलनिवासी ही बार बार अपनी मर्जी से चुन रहे होंगे | अथवा भाजपा कांग्रेस पार्टी द्वारा भारी बहुमत से ऐतिहासिक जीत दर्ज करने की जो चुनाव परिणाम पेश किये जा रहे हैं , वह दरसल मनुवादियो का अपडेट छल कपट से सत्ता प्राप्त करने की खास हुनर का ही आधुनिक डीजिटल अपडेट है | जिसे उन्होने समय समय पर सिर्फ अपडेट किया है | क्योंकि दरसल ये मनुवादि लोग चूँकि मुल रुप से अपने उन पुर्वजो को ही सुबह शाम आरती उतारकर अबतक फोलो कर रहे हैं , जिनकी जिवन में इस देश के मुलनिवासियो को दास बनाकर और अपनी आरती उतरवाने की संस्कार कुट कुटकर भरी हुई थी | जिनकी मनुस्मृती सोच की जिवन को वर्तमान के भी अपडेट मनुवादि शासन द्वारा सबसे उच्च जिवन माना जाता है | जिसमे मुल रुप से न तो इंसानियत को माना जाता है , और न ही प्रकृति को ज्यादे महत्व दिया जाता हैं | जिसके चलते ही तो मनुवादि खुदको सबसे बड़ा जन्म से धार्मिक विद्वान पंडित , वीर क्षत्रिय और धन्ना वैश्य घोषित करके भी प्रयोगिक तौर से ज्यादेतर तो ढोंगि पाखंडी और अन्याय अत्याचारी , दुसरो के हक अधिकार को लुटने वाला लंगटा लुचा सोच की हरकते ही किया करते हैं | जिस तरह का संस्कार दरसल उन्हे मनुस्मृति रचना करके शासन करने वाले उनके पूर्वजो ने विरासत के रुप में सौंप रखा है | जिसे अबतक भी फोलो करते आ रहे हैं | जिसके बारे में सबसे बड़ी अप्रकृति और अन्याय अत्याचारी सोच मनुस्मृती में ही मिल जाती हैं | जिसमे मनुवादि खुदको पुरुष के मुँह छाती जंघा वगैरा से अप्रकृतिक रुप से पैदा हुआ मानते हैं | और शोषन अत्याचार  करते हुए मिल जाते हैं | जो छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से शासक बनकर प्रजा सेवा करने के बजाय अपने द्वारा रची संविधान मनुस्मृती लागू करके यह नियम कानून बनाया गया था कि मनुवादियो के अलावे कोई दुसरा यदि वेद सुने तो गर्म लोहा पिघलाकर उसे कान में डालने और वेद बोले तो जिभ काटने , अँगुठा काटने , हक अधिकार छिनने जैसी भक्षक हरकते करके खुदको रक्षक क्षत्रिय विद्वान पंडित हो जाता है | जिन मनुवादियो के शासन में चुनाव बिल्कुल ही ठीक ठाक से हो रहा है यह बात सत्य तभी हो सकता था जब इस देश में अजाद भारत का संविधान ठीक से लागू हुआ रहता | और साथ साथ उसकी रक्षा भी ठीक से हो रही होती | जिसकी रक्षा कोर्ट समेत लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो द्वारा भारी भेदभाव के जरिये भ्रष्टराज कायम करके कभी हो ही नही सकती | और अगर भ्रमित लोगो की नजर में हो रही होगी तो मानो भष्म मनुस्मृती का भूत को इस समय इस देश का संविधान और इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासियो की रक्षा करने के लिए तैनात किया गया है | जो मनुस्मृती उस अजाद भारत का संविधान की रक्षा बेहत्तर तरिके से कर ही नही सकता जिसे संविधान की रचना करने वाले ने खुद भष्म इसलिए किया था ताकि उसका साया इस देश के मुलनिवासियो के जिवन में फिर से भेदभाव के रुप में पिच्छा न करे | जबकि मनुस्मृती का भूत आज भी ग्राम शहर सभी जगह रुप बदल बदलकर मंडरा रहा है | चाहे सरकारी कार्यालय हो या फिर धार्मिक स्थल हो सभी जगह किसी न किसी तरिके से मनुवादि अपनी मनुस्मृती गंदी सोच को अपडेट करते ही रहते हैं | जाहिर है चूँकि अब भी मनुस्मृति का भुत इस देश में मंडरा रहा है इसलिए वर्तमान में मनुवादियो द्वारा सवैंधानिक वोटतंत्र को भ्रष्टतंत्र में तब्दील करके दरसल फर्जी तरिके से ही वोट गिनती की जा रही है | जिससे वोटरो के सवैंधानिक गुप्त वोट उसी तरह ज्यादेतर बेकार साबित हो रहे होंगे जैसे कि बहुत से जगहो में नौकरी के लिए इंटरव्यू लेने वालो द्वारा घुस लेकर या फिर किसी की पैरवी द्वारा किसे रखना है पहले से ही जब फिक्स कर ली जाती है, तब सिर्फ दिखावे के लिए अनगिनत बेरोजगारो की कतार लगवाकर इंटरव्यू लिये जाते हैं | जबकि पिच्छे के दरवाजे से पहले से ही तय किया हुआ रहता है कि किसे काम पर रखना है और किसे नही रखना है | जैसे की सुबह से शाम तक कतार लगाकर सिर्फ सवैंधानिक चुनाव हो रहे हैं यह दिखावे के लिए वोटरो से वोट लिए जा रहे होंगे | जिस वोट की शक्ति को ज्यादेतर तो बेकार कर दिया जा रहा है | जो न होकर चुनाव कैसे बेहत्तर हो इसपर मेरी अपनी राय है कि मनुवादि शासन समाप्त होने के बाद यदि चुनाव प्रणाली में भी बैंक खाते की तरह ही वोटर और पार्टियो के भी एक एक वोट खाते बना दिए जाए , और वोट देनेवाले मतदाता और वोट लेनेवाले पार्टियो के खाते में वोट ट्रांजेक्सन चहड़ने के साथ साथ सभी वोटर को वोट देने के बाद  एटीएम से पर्ची निकलने जैसा पर्ची  सिधे सभी वोटर के हाथ में मिले , जिसमे पुरा डिटेल लिखे हुए हो , जो जानकारी सिर्फ मतदाता और मत किसे गया उस पार्टी के अलावे सिर्फ चुनाव आयोग को ही हो | जो कि किसी बैंक की तरह वोटर और सभी पार्टियो के वोट खाते को सुरक्षित संचालित करे | जाहिर है ऐसी चुनाव प्रक्रिया रहने पर वोट घोटाला करने वाला आसानी से पकड़ा जाएगा और एक एक वोट का भी हिसाब अच्छे तरिके से होगी |  जिससे यदि किसी वोटर का वोट किसी और पार्टी को जाएगा या न जाए तो दोनो ही हालात में मतदाता को पता चल जाएगा कि वोट डालने के बाद उसके वोट का क्या हुआ ? जैसे की यदि कोई व्यक्ती अपने बैंक खाते से किसी दुसरे व्यक्ती के बैंक खाते में धन भेजता है तो लेने और देने वाले दोनो ही बैंक धारको को बल्कि बैंक के पास भी मानो लेन देन के बारे में लाईव जानकारी मिल जाती है | जिससे की लेने और देने वाले के साथ साथ बैंक को भी लेन देन की सारी जानकारी प्रमाणित तौर पर उपलब्ध लाईव हो जाती है | जिस तरह की जानकारी वोट के मामले में क्या वोट लेने और देने वाले को वर्तमान में उपलब्ध हो पा रही है ? जवाब मिलेगा वोटो की जानकारी सिर्फ चुनाव आयोग के पास ही उपलब्ध है | वह भी गुप्त तरिके से मानो वोट देने और लेने वाले दोनो को ही अँधेरे में रखकर वोट सुरक्षित है यह झुठी अश्वासन देकर दरसल एक तरफा फैशला लिया जा रहा है | क्योंकि वोट का सही लेन देन हुआ है इसके बारे में प्रमाणित डाटा न तो किसी वोटर के पास उपलब्ध है , और न ही किसी पार्टी के पास उपलब्ध है | यदि वोट देने और वोट लेने वाली कोई पार्टी चुनाव परिणाम पर विश्वास न करके वोट लेन देन का प्रमाण देखना चाहे तो क्या उसके पास कोई अपनी खुदकी पर्ची या बैंक पासबुक की तरह ट्रांजेक्सन सुविधा उपलब्ध है , जिसमे की वह सारी वोट लेन देन की जानकारी उपलब्ध रहता हो जो कि चुनाव आयोग के पास वोट डालने के बाद उपलब्ध हो जाती है ? निश्चित तौर पर इसका जवाब यही होगा कि ऐसी सुविधा फिलहाल न तो वोटर को उपलब्ध है , और न ही किसी पार्टी को उपलब्ध है  | सिर्फ  चुनाव आयोग के पास उपलब्ध है जिसपर सिर्फ विश्वास करके चुनाव परिणाम को सही या गलत माना जाता आ रहा है | यदि कोई मतदाता या पार्टी अपने वोट के बारे में पुरी जानकारी खुदकी खाते से लेना चाहे तो वह नही ले सकता | भले क्यों न मतदाता या कोई पार्टी सड़को में चिकता चिल्लाता रहे कि उसके वोट देने का सवैंधानिक अधिकार के साथ गलत हुआ है | अथवा वोट का लेन देन में घोटाला हुआ है | क्योंकि न किसी वोटर के पास ऐसी जानकारी उपलब्ध वाला खाता है और न ही किसी पार्टी के पास है | इसलिए मेरा तो साफ तौर पर यह मानना है कि वर्तमान और पहले की भी चुनाव प्रक्रिया में जान. बुझकर छल कपट का सहारा लेकर गड़बड़ी होती आ रही है | जबकि इस देश के ज्यादेतर मुलनिवासी दरसल यही चाहते होंगे की गोरो से अजादी मिलने के बाद अब मनुवादियो का शोषन से भी जल्दी से जल्दी अजादी मिले | अथवा जल्दी से जल्दी मनुवादियो का शासन समाप्त हो , और इस देश में मुलनिवासियो का शासन जल्द से जल्द  कायम हो जाय | जिसके लिए वे लगातार मनुवादियो के विरोध में संघर्ष आंदोलन भी कर रहे हैं | और वोट भी मनुवादियो के विरोध में ही सबसे अधिक कर रहे होंगे , लेकिन उनके वोट का अधिकार को गुप्त तरिके से छिनकर दरसल फर्जी चुनाव परिणाम ही पेश किये जा रहे हैं | जिसका सबसे बड़ा प्रमाण तो खुद मनुस्मृति सोच से ग्रसित मनुवादि सरकार है | जिसके शासन में इस विरोध में भी लगातार आंदोलन होते रहे हैं कि मनुवादि सरकार गुप्त तरिके से आरक्षण को भी समाप्त करने में लगी हुई है | ताकि फर्जी तरिके से सबसे अधिक सीटो पर भी कथित उच्च जातियो का ही कब्जा हो सके | लेकिन चूँकि अजाद भारत का संविधान में जिस तरह का आरक्षण मौजुद है , उसके रहते मनुवादि चाहे जितनी मनुस्मृती बुद्धी लगाकर फर्जी तरिके से सभी सीटो पर अपनी सबसे अधिक भागीदारी पेश करने की कोशिष करे जबतक आरक्षण मौजुद है , तबतक आरक्षित सीट पर उनकी मौजुदगी तो दुर उन्हे टिकट भी नही मिल सकती | क्योंकि आरक्षित सिट जिन लोगो के लिए आरक्षित होती है , उसी को ही उस सीट पर सवैधानिक तौर पर चुनाव लड़ने का अधिकार है | जिसकी वजह से जहाँ जहाँ भी आरक्षण नही है , वहाँ वहाँ ही उच्च जाति के लोग ज्यादे से ज्यादे संख्या में मौजुद हैं | जैसे कि संसदीय सीटो पर आरक्षण मौजुद है , इसलिए वहाँ पर उनकी संख्या कम है | क्योंकि आरक्षित सीट पर चूँकि उच्च जाति के लोग चुनाव नही लड़ सकते इसलिए उन सीटो को किसी भी तरिके से छिन नही सकते | हलांकि फिर भी मनुवादि पार्टी आरक्षित सीटो पर किसी घर का भेदी या फिर जी हुजूरी करने वाला किसी मुलनिवासी को टिकट देकर मनुवादि सरकार बनाने के लिए बलि का बकरा बनाते आ रहे हैं | जिन बली का बकरा बनने वालो का चेहरा दिखलाकर वोट और समर्थन ली जाती है | हलांकि बलि का बकरा बनाने में भी मनुवादि कामयाब नही होंगे यदि आरक्षित सीटो में दलित आदिवासियो को ही सिर्फ आरक्षण का लाभ मिलने के बजाय पिछड़ी जाती और धर्म परिवर्तन किये उन लोगो को भी  चिन्हित करके आरक्षण का लाभ मिलनी चाहिए , जिनके भी रगो में इस देश के दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासियो का ही डीएनए मौजुद है | न कि किसी मनुवादि या गोरो का डीएनए मौजुद है | बल्कि इस देश के दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासियो का डीएनए मनुवादियो के घरो में मौजुद महिलाओ में भी मौजुद है , जो बात एक विश्व स्तरीय डीएनए प्रयोग से साबित भी हो चुका है कि कथित उच्च जाती के परिवार में मौजुद सिर्फ पुरुषो के ही डीएनए से उन मनुवादियो का डीएनए मिलता है जो इस देश में बाहर से आए हैं | न कि उच्च जाती के परिवार में मौजुद महिला भी मनुवादियो के साथ में आई थी | क्योंकि उच्च जाती के घरो में मौजुद महिलाओ के डीएनए से इस देश के दलित आदिवासी और पिछड़ी जाती के महिलाओ के डीएनए से मिलान किया गया तो पाया गया कि दोनो का डीएनए एक है | जो स्वभाविक है क्योंकि इतिहास गवाह है कि बाहर से आने वाले कबिलई लुटेरे जो चाहे गोरे हो या फिर लुटेरा सिकंदर दोनो ही लुटेरी पुरुष टोली बनाकर इस देश में प्रवेश किए थे | जिस तरह मनुवादियो की भी पुरुष टोली ही इस देश में प्रवेश की होगी और बाद में इस देश में छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से सत्ता स्थापित करके और इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर अपने वंशवृक्ष तैयार इसी देश के लोगो के सहयोग से किया होगा | जिसे जोर जबरजस्ती से दास दासी बनाना कहा जाय कि मजबूर होकर अपनी मर्जी से कोई दास दासी बन रहा है कहा जाय यह बात तो दास दासी बनने वाले लोगो की हालात पर निर्भर करता है | मुझे तो मनुवादि जोर जबरजस्ती से दास दासी भी बनाते आ रहे हैं , और इस देश में जोर जबरजस्ती राज भी कर रहे हैं यह बात ज्यादे सत्य लगता है | जैसे की मुझ जैसे लोगो द्वारा बार बार यह कहा जा रहा है कि चुनाव घोटाला हुआ है या हो रहा है , लेकिन भी मुझ जैसे करोड़ो नागरिको की बातो को नजरअंदाज करके जोर जबरजस्ती से मनुवादी सरकार घोषित की जा रही है | जो बात सत्य नही तो क्या सभी नागरिको की खुशी से मनुवादि सत्ता कायम कि जा रही है इसे सत्य माना जाय ? फिर क्या लाखो करोड़ो नागरिक यू ही सड़को या ग्राम शहर सभी जगह चुनाव घोटाला और शोषन अत्याचार के खिलाफ आंदोलन संघर्ष कर रहे हैं ! क्या सभी नाच गाकर  खुशी से आंदोलन और विरोध प्रदर्शन कर रहें हैं ?  जिनकी जायज मांगो पर अभी चर्चा तो किया जाता है कि संघर्ष कर रहे लोग खासकर वे लोग जो मनुवादियो के शिकार सबसे अधिक हो रहे हैं , वे मनुवादि सरकार से काफी दुःखी पिड़ित हैं , लेकिन दुःख और पीड़ा देने वाले कारनो के बारे में सब कुछ जानकर भी कारवाई नही की जाती है , क्योंकि कारवाई करने और न्याय करने वाले उच्च पदो में मनुवादियो का जो दबदबा कायम है | जिनकी दबदबा कायम रहते हुए यह देश और इस देश के मुलनिवासियो के जिवन में तेजी से सुधार आएगा इस बात पर यकिन करना मानो बहुत सारे छेद घड़ा के भरने का इंतजार करना है | बल्कि मुलनिवासियो के ही डीएनए के धर्म परिवर्तन किए हुए जिन नागरिको को अल्पसंख्यक कहकर आरक्षण का लाभ संसद में मौजुद नही है , उनकी भी हालत दलित आदिवासियो की तरह ही गरिबी भुखमरी में ज्यादेतर अबादी जिवन गुजारा कर रही हैं , जो कि स्वभाविक है | क्योंकि उनके पुर्वज भी तो हजारो सालो से संघर्ष करते हुए धर्म परिवर्तन किये हैं | दलित आदिवासी और पिछड़ी बल्कि धर्म परिवर्तन किये हुए दलित आदिवासी और पिछड़ी जाती के एक ही डीएनए के मुलनिवासियो के बिच आपस में  फुट डालकर मनुवादि अपने दबदबा की सरकार बनाने में कामयाब होते आ रहे है | जबकी इस देश के मुलनिवासियो की वोट तादार सबसे अधिक है , लेकिन भी आजतक मुलनिवासियो की अपनी सरकार नही बन पाई है | सिर्फ मनुवादी पार्टी ही भारी बहुमत से जितती आ रही है | जिस जित को यदि सही चुनाव परिणाम मान लिया जाय की मनुवादि सरकार चुनाव घोटाला अथवा भ्रष्ट यज्ञ के द्वारा नही बल्कि वाकई में इस देश के शोषित पिड़ितो के वोटो से ही चुनी जा रही है , तो भी तो हमे इस बात पर क्या आश्चर्य नही होना चाहिए की हजारो सालो से शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादियो को इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासी ही जिताते आ रहे हैं ? जो मनुवादि गुलाम और दास बनाकर शोषन अत्याचार करता है उसकी ही जी हुजूरी करना आश्चर्य नही है ? हलांकि गुलाम होकर गोरो की भी जी हुजूरी की जाती थी अब मनुवादियो की जी हुजूरी की जा रही है | क्योंकि हमे यह बात भी तो नही भुलनी चाहिए कि मनुस्मृती सोच फुट डालकर राज करने के हुनर में गोरो से कहीं ज्यादे समय से निपुन हैं | तभी तो वे हजारो साल पहले ही इस देश के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांट दिया है | जबकि बड़ई , नाई , धोबी चमार वगैरा जो दरसल हजारो हुनरे हैं , जिसके जरिये इस देश के मुलनिवासि हजारो साल पहले ही जब संभवता मनुवादि कपड़ा पहना और कृषि कार्य करना भी नही जानते होंगे उस समय भी इस देश के मुलनिवासी हजारो हुनरो में निपुन थे | जिन हजारो हुनरो के सहयोग से ही तो प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का आधुनिक विकाश हजारो साल पहले तब विकसित हुआ था जिस समय संभवता मनुवादी लोग कहीं देश से बाहर बिना घर और कपड़ो के घुमंतु लंगटा लुचा जिवन जि रहे होंगे | जो घुमंतु जिवन जिते हुए शिकारी झुंड बनाकर इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले कृषि प्रधान देश में आए | जो इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके पहले तो उन्होने गोरो की तरह पेट पालने के लिए थोड़ी सी जगह मांगा होगा , उसके बाद धिरे धिरे अपनी कपटी सोच का प्रयोग करके और खासकर घर के भेदियो की सहायता से सत्ता में कब्जा करके वेद पुराणो में भी कब्जा किया होगा , उसके बाद ही वेद पुराणो में भी भारी मिलावट करके नायक को खलनायक और खलनायक को नायक बताकर अपने विशेष लाभ और झुठी शान के लिए ही मनुस्मृती रचना किया होगा | जैसे की जब गोरे इस देश की सत्ता में कायम हुए उसके बाद ही उन्होने बहुत सारे ऐसे नियम कानून बनाये और इतिहास में भी मिलावट किए जो उनके पक्ष में थे | जिनसे उन्हे कोई खास खतरा और हानि नही था | जैसे कि मनुवादियो द्वारा मनुस्मृती रचना करने के बाद इस देश के मुलनिवासियो को  हजारो जातियो में बांटकर जो छुवा छुत जैसे नियम कानून बने थे उससे मनुवादियो को कोई खास खतरा और हानि नही था | क्योंकि मनुवादि एक दुसरे से छुवा छुत नही करते हैं | बल्कि मनुस्मृती रचना करके एक ही डीएनए के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांटकर उन्हे अलग थलग और कमजोर करके आपस में फुट डालकर आजतक आसानी से राज करते आ रहे हैं | गोरे तो इस कृषि प्रधान देश में पेट पालने के नाम से सबसे पहले तो व्यापार करने के लिए इस विशाल देश के किसी कोने में ईस्ट इंडिया कंपनी स्थापित किया , उसके बाद धिरे धिरे उसे लुट इंडिया कंपनी में तब्दील करके फुट डालकर दो सौ सालो तक राज किया | पर मनुवादि तो इस देश के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांटकर हजारो सालो से छुवा छुत राज करते आ रहे हैं | भले कुछ समय तक एक बाहरी डीएनए के साथ दुसरे बाहरी डीएनए का गैंगवार होने के कारन गोरे जैसे दुसरे विदेशी डीएनए के लोगो ने भी इस देश में राज किया है | जिसकी जानकारी इतिहास में भरे पड़े हैं कि इस कृषि प्रधान प्राकृति समृद्ध देश में हजारो सालो से अनगिनत कबिलई हमलावर लुटपाट करने के लिए किस तरह से और कब कब आते रहे हैं | जिनमे से कई तो अपना पेट पालने के लिए लुटेरी झुंड बनाकर इस कृषि प्रधान देश में आकर किसी नदि नालो की तरह इस एक जगह स्थिर विशाल सागर देश में समा भी गये हैं | क्योंकि इतिहास गवाह है कि भेदभाव करने वाले सिर्फ गोरे इस देश में प्रवेश नही किये थे | जिन्होने अपने द्वार पर ये बोर्ड लगाया हुआ रहता था कि अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है | क्योंकि इतिहास इस बात के लिए भी गवाह है कि छुवा छुत की सुरुवात अथवा आविष्कार करने वाले मनुवादि सबसे पहले प्रवेश करके और सबसे अधिक समय तक इस देश के मुलनिवासियो पर राज किये हैं | जिन्होने मनुस्मृति रचना करके इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो के साथ शोषन अत्याचार करके अबतक भी मनुवादी शासन स्थापित किये हुए हैं | जो मनुवादि अपनी मनुस्मृती सोच से शोषन अत्याचार करके भी यह झुठ फैलाने में कामयाब होने की कोशिष में लगे हुए हैं कि मनुवादि भारी बहुमत से शोषित पिड़ितो के द्वारा ही चुने जा रहे हैं | और शोषित पिड़ितो की सेवा करके फिर से उसी तरह की सेवा करने के लिए मनुवादी सरकार दोहराई गयी है | जिसका चुनाव परिणाम भी भारी बहुमत से जीत का दिखलाया जा रहा है | जो दरसल पुरी सच्चाई को न दिखलाकर फर्जी जानकारी ही दी जा रही है | जैसे की रामराज सबसे श्रेष्ट शासन था इसका प्रमाण भी राम की आरती उतारकर अबतक फर्जी जानकारी ही बांटा जाता रहा है | जबकि सत्य तो यही है कि न तो रामराज में शंभुक प्रजा की बेहत्तर सेवा और सुरक्षा हो रही थी और न ही वर्तमान की भी अपडेट  मनुवादी शासन में अपडेट शंभुक प्रजा के साथ बेहत्तर सेवा सुरक्षा हो रही है | जिस तरह के बुरे हालात में अच्छे दिन आंऐंगे पर विश्वास करना भी बहुत बड़ा भ्रम का शिकार होना है | क्योंकि मनुवादि शासन में कैसे सत्य मान लिया जाय कि इस देश के शोषित पिड़ित और कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासी ही बार बार उसी मनुवादी शासन को लाना चा रहे होंगे जिससे वे शोषित पिड़ित हैं | दरशल सिर्फ लगातार झुठ फैलाये जा रहे हैं कि छुवा छुत शासन में ही शंभुक प्रजा सबसे अधिक सेवा और सुरक्षा प्राप्त करती आ रही है | इसलिए भेदभाव करने वालो को ही अपना श्रेष्ट सेवक बार बार चुने जा रहे हैं | जिन बातो को जानने वाले मुलनिवासि जाहिर है मेरे विचार से अब भी ज्यादेतर भाजपा कांग्रेस के खिलाफ ही वोट कर रहे होंगे | क्योंकि भले 1950 ई० को संविधान प्रभावी हुआ था , उसके बाद 1951-52 में पहली लोकसभा चुनाव भी हुआ , और उस समय भी भारी बहुमत से मनुवादियो की पार्टी ही मेरे ख्याल से छल कपट और फर्जी तरिके से ही जिती थी | जिसके बाद स्वभाविक तौर पर ब्रह्मण जवाहर लाल नेहरु को देश का पहला प्रधान सेवक बनाया गया था और सभी राज्यो के मुख्यमंत्री भी कथित उच्च जाती के ही थे | क्योंकि इतिहास गवाह है कि इस देश में संविधान लागू होने से पहले ही इस देश में वापस मनुवादियो का दबदबा कायम हो चुका था , और गोरो से अजादी मिलने के बाद  मनुवादि ही यह तय करने लगे थे कि इस देश को अब किसके हाथो और कैसे चलाना है | जिसका सबसे बड़ा उदाहरण पुणे में हुई गाँधी और अंबेडकर के बिच समझौता है , जो दरसल मनुवादियो के द्वारा अपनी मनमर्जी फैशला जबरजस्ती थोपा गया था | जो फैशला अजाद भारत का संविधान लागू होने से पहले ही 1932 ई० में  लिए गए थे | जो दरसल यह तय करना था कि भविष्य में गोरो का शासन समाप्त होने के बाद अब मनुवादियो की मर्जी से क्या क्या होना है ? क्योंकि इतिहास गवाह है कि मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले अंबेडकर तक को भी मनुवादि अपनी मनुस्मृती हुनर से फैशला बदलवाने पर मजबूर कर सकते थे | जिसके चलते ही तो आजतक मनुवादियो को इस देश की शासन से हाथ धोने के लिए मजबूर होना पड़े ऐसी चुनाव परिणाम आजतक भी नही आ पाए हैं | क्योंकि बहुत से फैशले आज भी मनुवादियो द्वारा बदलवाये जा रहे हैं | जिसके चलते ही तो निश्चित तौर पर मनुवादि लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम अपनी दबदबा का भरपुर उपयोग करके चुनाव परिणाम को बदलकर अबतक गलत चुनाव परिणाम ही पेश करते आ रहे हैं | जिसमे जिन मुलनिवासियो ने भाजपा कांग्रेस को वोट नही डाला होगा उसकी भी वोट भाजपा या कांग्रेस के खाते में ही जोड़ ली जाती होगी | जैसे की इस देश के बहुत से मुलनिवासियो की जमिने भी फर्जी और छल कपट का सहारा लेकर अपने नाम किए जाते रहे हैं | जो कुकर्म जाहिर सी बात है कि गोरो से अजादी मिलने के बाद जो दबदबा वापस मनुवादियो के हाथो आई है , वह हमेशा कायम रहे इसके लिए ही तो मनुवादि हर लोकसभा चुनाव में  वोट में बेईमानी करके खुदको जिताते आ रहे हैं | सिर्फ नाम मात्र के लिए चुनाव में ईमानदारी बरती जाती होगी | जैसे की गोरे भी इस देश को गुलाम करके शासन करते समय कई नियम कानून इस देश के लोगो की भलाई और विकाश के लिए भी बनाये होंगे , जिनमे से हजारो नियम कानून तो अब भी लागू हैं | जो गोरे शासन में भी इस देश के लोगो को भागीदारी देकर बहुत से भलाई का कार्य भी करने की दिखावा कर रहे होंगे | जिसे यह भी कहा जा सकता है कि बिड़ी सिगरेट का उद्योग लगाकर एक दो कैंसर का अस्पताल भी खोला जाता रहा होगा | जिसे ईमानदारी कतई नही कही जा सकती | जैसे की मनुवादियो की शासन में भी चुनाव परिणाम में थोड़ी बहुत दिखावे की ईमानदारी बरती जा रही होगी उसे भी ईमानदारी से कराई गई चुनाव कतई नही कही जा सकती है | क्योंकि सत्य झुठ को तौलकर ही ये तय की जाती है कि किसका पलड़ा ज्यादे भारी है | तभी तो न्यायालय में सत्य झुठ को तौलकर फैशला सुनाने वाले जज के पास चिन्ह के तौर पर सत्य न्याय का तराजू को दिखलाया गया है | जिस सत्य न्याय तराजू में जिसका पलड़ा ज्यादे भारी रहता है उसे ही सत्य माना जाता है | जैसे की लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले इस देश के मुलनिवासियो की भागीदारी न के बराबर है | जिसे जानते हुए कोई भी सत्य इंसाफ करने वाला व्यक्ती यह कह सकता है कि वर्तमान में मनुवादियो की शासन कायम है इस बात का पलड़ा भारी है | लेकिन भी जिन लोगो का मानना है कि अजाद भारत का संविधान लागू रहने की वजह से सचमुच में ईमानदारी से चुनाव हो रहे होंगे , क्योंकि गोरो के शासन समाप्ती के बाद यह देश अब संविधान से पुरी तरह से चल रहा है | जिस संविधान में मिले वोट का अधिकार का प्रयोग करके ही भाजपा और कांग्रेस दोनो ही दो दो बार भारी बहुमत से भी लोकसभा चुनाव जित चुके हैं तो उस जित को ईमानदारी से सवैंधानिक जीत मानने वालो को इस बात पर भी विश्वास करना होगा कि भष्म मनुस्मृती का भुत अजाद भारत का संविधान की रक्षा और बेहत्तर तरिके से उसे लागू करते हुए इस देश में इतने अच्छे से चुनाव और शंभुक प्रजा सेवा हो रहे हैं कि अबतक एकबार भी उन पार्टियो की सरकार भारी बहुमत से नही चुनी गई है , जिसका गठन दबे कुचले कमजोर माने जाने वाले मुलनिवासियो के द्वारा हुई है |

अन्याय अत्याचार का इतिहास को भुल जाय वैसे लोगो को कभी भी अपनी सेवा सुरक्षा में नही लगाना चाहिए

अन्याय अत्याचार का इतिहास को भुल जाय वैसे लोगो को कभी भी अपनी सेवा सुरक्षा में नही लगाना चाहिए

यदि सत्य झुठ का पलड़ा में रखते हुए सत्य मान भी लिया जाय कि लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो की कब्जा हालत में भी चुनाव इमानदारी से हो रहे हैं या इसबार भी हुए हैं , जिसका चुनाव परिणाम दुध का धुला हुआ है , तो भी यह साबित होता है कि दरसल इस देश के ज्यादेतर मुलनिवासी वोटर अपने सर में मैला तक ढोकर अबतक मनुवादियो के ही सर में सत्ता ताज उनकी गुलामी की वजह से सौंपते आ रहे हैं | जो सत्य झुठ के पलड़े में तौलकर तो कहीं से भी सही फैशला नही लगता है | क्योंकि मनुवादियो की शोषन अत्याचार से छुटकारा पाने के लिए इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासी अपनी शासन न लाकर बार बार मनुवादी शासन को ही स्वीकारे ये तो और बुरे दिन दर्शाता है | क्योंकि हमारे अपने ही डीएनए के लोगो द्वारा बार बार मनुवादि सत्ता को चुनकर मानो शोषन अत्याचार करने के लिए बड़ावा देना दरसल इस देश के अपने ही डीएनए के उन संघर्ष कर रहे मुलनिवासियो के साथ भारी अन्याय करना है जिन्हे इस बात पर पुरा विश्वास है कि इस देश और उनकी जिवन में सुख शांती और समृद्धी तब आयेगी जब इस देश से मनुवादी सत्ता जायेगी | जिस मनुवादी शासन को समाप्त होने में हमारे अपने ही डीएनए के लोग विरोध में वोट डाल रहे हैं तो निश्चित तौर पर हम ये कह सकते हैं कि हमे तो अपनो ने लुटवाया है , गैरो में कहाँ दम है कि वे अपने मुठीभर वोट से भारी बहुमत की मनुवादी सत्ता ला सके , हमारी सत्ता की किस्ती डुबी है वहाँ , जहाँ पानी ही कम है | क्योंकि सच्चाई तो यही है कि  इस देश के मुलनिवासियो का वोट संख्या इतना है कि मनुवादी कभी चुनाव ही नही जितते यदि सभी मुलनिवासी सिर्फ अपने ही डीएनए के लोगो द्वारा बनाई गयी उस पार्टी को ही वोट देते जिसमे मनुवादियो की दबदबा कायम न होती | जबकि हो रहा है उल्टा क्योंकि जिस भाजपा कांग्रेस को मनुवादियो की पार्टी के रुप में जाना जाता है , उसका बार बार बल्कि चार बार तो भारी बहुमत से भी जिताना मतलब अपने ही पाँव में कुल्हाड़ी मारकर मनुवादियो की शासन फले फुले इसके लिए मनुवादियो की ही पार्टी को वोट करना है | जो और भी ज्यादे शर्मनाक खासकर तब मानी जायेगी जबकि इस कृषि प्रधान देश के लोकसभा में कथित दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले ही आरक्षण कोटा से भी और जी हुजूरी करके भी मनुवादी पार्टी भाजपा कांग्रेस में ही शामिल होकर और चुनाव लड़कर सबसे अधिक मौजुदगी संसद में दर्ज करने के बावजुद भी मनुवादियो की जी हुजूरी करते रहते हैं | क्योंकि वे उन मनुवादियो की पार्टी से चुनकर गए हैं , जिस पार्टी में कम संख्या में चुनाकर आए कथित ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य के पुर्वजो ने ही कभी इस देश के मुलनिवासियो को निच घोषित करके और सत्ता से वंचित करके मनुस्मृती रचना करके खुदको जन्म से ही उच्च घोषित किये हुए हैं | इसलिए मनुवादियो की पार्टी में कथित उच्च जाती के कहलाने वालो की सांसद संख्या कम रहने के बावजुद भी हम इस सत्य को ही जानते और मानते हैं कि भले उच्च जाती के कहलाने वाले सांसद कम चुना रहे हो पर शासन में दबदबा तो उच्च जाती का ही है | जिसके चलते ही तो यह कहा जाता है कि इस देश में मनुवादियो का शासन चल रहा है , भले संसद में सबसे अधिक संख्या इस देश के दलित आदिवासी और पिछड़ी जाति कहलाने वाले मुलनिवासियो का है | बल्कि इस देश में जिन दलित आदिवासि और पिछड़ी जाती ने अपना धर्म परिवर्तन किया है , वे भी बहुसंख्यक डीएनए के होते हुए भी अल्पसंख्यक क्यों कहे जाते हैं | जबकि असल में इस देश में दरसल मनुवादी अल्पसंख्यक हैं , जैसे की गोरे अल्पसंख्यक थे | लेकिन भी वे इस देश के बहुसंख्यको पर राज कर रहे थे | जैसे कि गोरो के जाने के बाद अल्पसंख्यक मनुवादी बहुसंख्यक दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासियो पर राज कर रहे हैं | जिनके राज करने पर खास मदत करने वाले घर के भेदियो और जी हुजूरी करने वालो का इतिहास उसी तरह भविष्य में दर्ज हो रहा है जैसे कि गोरो से अजादी मिलने के बाद आरएसएस का दर्ज हुआ है | जिसमे खास अंतर यह होगा कि मनुवादियो का विशेष साथ देनेवालो का दिखावटी सच्चाई का भांडाफोड़ होकर भविष्य में उनसे दिखावटी शान को छिन ली जायेगी | अभी तो मनुवादियो की सत्ता है इसलिए चूँकि वे अपना आका मनुवादियो को मानते हैं , इसलिए मनुवादियो की तरह  झुठी शान में डुबे रहेंगे कि उनके द्वारा बहुत बड़ी क्रांतीकारी कार्य किये जा रहे हैं | जैसे की गोरो की गुलामी समय गोरो का साथ देने वालो द्वारा बहुत बड़े क्रांतीकारी कार्य किये जा रहे थे | वैसे घर के भेदि इसी तरह के मनुवादि सत्ता को बहुत विकसित सोच मानते हैं | जहाँ सिर्फ मुठिभर लोगो के जिवन में सारी सुख सुविधा उपलब्ध होती है , और भारी तादार में चारो तरफ शोषन अत्याचार गरिबी भुखमरी और बदहाली छाई हुई रहती है | ज्यादेतर नागरिको की जिवन गरिबी और बदहाली में सुरु होती है और गरिबी में ही खत्म हो जाती है | सिर्फ नाम मात्र के लिए जनता मालिक होते हैं , असल जिवन में तो खुदको जनता का नौकर कहने वाले मंत्री और प्रधान सेवक के नौकरो से भी बुरा हाल रहता है | क्योंकि शोषन अत्याचार करने वाले और उनका साथ देने वाले खोटे सिक्के घर के भेदियो में वह हुनर ही मौजुद नही होती है कि मौका मिलने पर वे महान क्रांतीकारी बन सके | जिन्हे सिर्फ ढोंगी पाखंडी और मांसिक विकृत लोग ही महान उपाधि देकर कभी कभी तो उनकी आरती तक उतारते हैं | जो सारी बाते भविष्य में तब साबित हो जायेगी जब मनुवादियो का शासन गोरो का शासन की तरह समाप्त होने के बाद इस देश के मुलनिवासियो का शासन वापस आ जायेगी | जिसके लिए ही तो लंबे समय से संघर्ष की जा रही है उन लोगो द्वारा जिन्होने अपने पुर्वजो के साथ हुए मनुवादियो द्वारा अन्याय अत्याचार , बल्कि वर्तमान में भी जो अन्याय अत्याचार हो रहे हैं उसे कभी नही भुले हैं | और न ही कभी इतिहास भी भुला पायेगी कि मनुवादियो ने इस देश के मुलनिवासियो के साथ क्या क्या जुल्म किये हैं ! जिसे जो भुल जाय वैसे लोगो को कभी भी अपनी सेवा सुरक्षा में नही लगाना चाहिए |

रविवार, 23 जून 2019

इस देश के मुलनिवासियो की वोट संख्या मनुवादियो की वोट संख्या से ज्यादे है , फिर भी मनुवादियो का शासन अबतक कायम क्यों है ?

इस देश के मुलनिवासियो की वोट संख्या मनुवादियो की वोट संख्या से ज्यादे है , फिर भी मनुवादियो का शासन अबतक कायम क्यों है ?
इस कृषि प्रधान देश में गोरो का शासन समाप्त होने के बाद आई मनुवादियो की शासन में किसकी वोट संख्या हर बार के चुनाव परिणाम में सबसे अधिक शामिल हो रहे हैं ? जाहिर है इस ताकतवर देश के दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासियो का ही वोट चूँकि सबसे अधिक है , इसलिए निश्चित तौर पर सिर्फ कथित उच्च जाती का वोट से तो मनुवादी सरकार बार बार जितकर नही आ रही होगी | और यदि इस देश में वाकई में भारी भेदभाव करने वाले मनुवादियो को ही बार बार चुनाव जितवाकर इस देश के दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासियो के द्वारा ही भारी तादार में वोट करके मनुवादियो का शासन को दोहराया जा रहा है , फिर तो जरुर सवाल उठता है कि दबे कुचले कमजोर लोगो में कौन लोग मनुवादियो की पार्टियो को अपना किमती वोट देकर भारी बहुमत से अबतक चुनाव जिताते आ रहे हैं ? क्योंकि गोरो के जाने के बाद अजाद भारत का संविधान में वोट देने का अधिकार मिलने के बाद क्या वाकई में इस देश के मुलनिवासी अपने सर में मैला तक ढोकर मनुवादियो के ही सर में सत्ता ताज लगातार सौंपते आ रहे हैं ? मेरे ख्याल से तो मनुवादि इस देश के मुलनिवासी और उनके वोट शक्ती के साथ भारी भेदभाव करके चुनाव जित रहे हैं | क्योंकि हमे ये नही भुलना चाहिए कि संविधान में एक मैला ढोनेवाला और मैला ढुलवानेवाला दोनो का ही वोट मोल एक बराबर माना गया है | और इस देश के दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासियो की वोट संख्या इस देश में कथित उच्च जाती के कहलाने वाले मनुवादियो की वोट संख्या से ज्यादा है | अथवा दोनो की वोट संख्या में बहुत बड़ा अंतर है | मनुवादि यदि जाति से खुदको उच्च समझते हैं , तो इस देश के मुलनिवासी वोट संख्या के मामले से मनुवादियो से उपर हैं | और जैसा कि जाहिर है कि इस देश के मुलनिवासियो की वोट संख्या कथित उच्च जाति के वोटो के अपेक्षा जितनी है , उस अंतर से तो मनुवादी कभी भी इस देश में  भारी बहुमत से चुनाव जितना तो दुर एक सीट भी नही जित सकते | खासकर यदि इस देश के मुलनिवासी यह मानकर चले कि हजारो सालो से उच्च निच भेदभाव शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादियो की पार्टी को चुनाव नही जिताना है | जो वाकई में भी मनुवादियो की पार्टी को ज्यादेतर मुलनिवासी वोट नही कर रहे होंगे | या तो फिर लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कथित उच्च जातियो का कब्जा किये हुए इस मनुवादि शासन में उन्हे विश्वास ही नही हो पा रहा है की ऐसे भारी भेदभाव हालात में ईमानदारी से चुनाव होंगे और उस चुनाव से मनुवादियो के द्वारा दिए गए जख्म भर जायेंगे , जिससे की उनकी जिवन में भारी बदलाव आ जायेगी | जिसके चलते मतदान के दिन वे कभी वोट ही नही कर रहे होंगे | जाहिर है ऐसे में बहुत सारे मुलनिवासि वोटरो की वोट चुनाव में कभी शामिल ही नही हो पा रही होगी | और शामिल न होने के बाद उनके वोट शक्ती का लाभ हानि में बदल रहा होगा | जैसे कि इस कृषि प्रधान देश में सबसे अधिक जमिन मुलनिवासियो के नाम से मौजुद है लेकिन उसका सबसे अधिक लाभ किन लोगो को मिल रहा है और किन लोगो के कब्जे में है ? जिस तरह ही सबसे अधिक वोट मुलनिवासियो का है फिर भी वोट पर भी कब्जा किसी और का है | जिसके चलते  बिना किसी के द्वारा वोट मारे भी उनके वोट से फर्जी वोट संख्या जोड़कर ये मनुवादी सरकार चुनकर आ रही होगी | जैसे कि  भ्रष्ट लोग फर्जी तरिके से परीक्षा पास करके या टॉपर बनकर उच्च ज्ञान की डिग्री को हासिल कर लेते हैं | उसके बाद उसका गलत उपयोग करके झुठी शान दिखाने के लिए , और फर्जी पास होने में जो खर्च हुआ रहता है , उसे ब्याज समेत वापस करने के लिए बड़े बड़े भ्रष्टाचार करके जाहिर है देश और प्रजा के लिए भष्मासुर हि साबित होते हैं | क्योंकि उच्च ज्ञान की डिग्री वरदान लेकर उच्च पदो में बैठकर वे ऐसी कोई भी कार्य करके नही दिखला पाते हैं , जिसकी हुनर डिग्री वे फर्जी तरिके से लिए हुए रहते हैं | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि वे उस कार्य के लिए निपुन नही रहते हैं | जिसकी वे फर्जी तरिके से उच्च डिग्री लिए हुए रहते हैं | जैसे की भष्मासुर बुराई को भष्म करने के लिए निपुन नही था | बल्कि सत्य को भी भष्म करने में निपुन नही था , जिसके चलते वह सत्य को भष्म करते समय खुशी से नाच नाचकर खुद ही भष्म हो गया | इस कृषि प्रधान देश में सबसे अधिक जमिन इस देश के मुलनिवासियो के नाम है , लेकिन ज्यादेतर पर कब्जा भ्रष्ट तरिके से जिन लोगो का है , उनके भितर भी चूँकि मूल रुप से कृषी नही बल्कि कुछ और ही हुनर मुल रुप से निपुन होकर मौजुद है , इसलिए फिलहाल यह कृषि प्रधान देश कृषी सोच के बजाय किसी और सोच से चलकर किसानो की जमिन भी बंजर और उनकी जिवन भी बंजर होता जा रहा है |

मनुस्मृती रचना करने वालो ने खुदको जो जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया हुआ है , वह दरसल फर्जी घोषना है

मनुस्मृती रचना करने वालो ने खुदको जो जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया हुआ है , वह दरसल फर्जी घोषना है 
क्योंकि वेद सुनने पर कान में गर्म शीसा डालने वाला और वेद बोलने पर जीभ काटने जैसा अन्याय अत्याचार करने वाले को जन्म से वीर क्षत्रीय अथवा रक्षक घोषित करना फर्जी नही तो क्या है ! लंगटा लुचा कुबेर जिसके पिता के पास अपना एक पक्का मकान तक नही था , वह दुसरे के द्वारा धन प्राप्त करके और सोने की लंका को लुटकर धन्ना कुबेर वैश्य कहलाया वह अमिरी क्या सचमुच की अमिरी है ? जैसे कि अली बाबा और चालिस चोर की कहानी में जो चालिस चोर मिलकर प्रजा की धन दौलत को चोरी करके अपना काला गुफा भरते रहते हैं , वह अमिरी क्या फर्जी अमिरी नही थी ! जिसे खुल जा सिमशिम कहकर चालीस चोर अपना फर्जी अमिरी दिखाकर यदि जिनके धन की चोरी करके वे फर्जी अमिर बने हैं , उन्ही को गरिब करके अपनी फर्जी अमिरी दिखला रहे हैं , तो उसी तरह का अमिर बनने का सपना अपना धन लुटाकर या चोरी होकर गरिब बनी प्रजा को चालीस चोरो की ही तरह अमिर बनने का सपना कभी भी नही देखना चाहिए | न तो खुद देखना चाहिए और न ही अपने बच्चो को चालीस चोर की तरह अमिर बनो यह भ्रष्ट आचरण बांटना चाहिए | बल्कि अपना जो धन चोरी हुआ है या अपने हक अधिकारो की छिना झपटी हुई है , उस असली अमिरी को वापस हासिल करने का सपना देखना चाहिए | जिस अमिरी में न जाने कितने कबिलई लुटेरो की नजर हजारो सालो से टिकी हुई है | जिस असली अमिरी को मिल जुलकर वापस लेने की सोचनी चाहिए | अथवा इस देश के मुलनिवासियो को मनुवादियो से अपनी सत्ता वापस लेकर सोने की चिड़ियाँ की असली अमिरी को वापस लाने की सपना को हकिकत में तब्दील करने की संघर्ष मिलकर करनी चाहिए | क्योंकि दुसरो के हक अधिकारो को लुटकर धन्ना बनने वाले दरसल फर्जी धन्ना होते हैं | सारांश में दरसल मनुवादी लोग मनुस्मृती सोच अथवा छुवा छुत शोषन अत्याचार और दुसरे की हक अधिकारो पर कब्जा करने वाली हुनर से न तो जन्म से असल विद्वान पंडित हो सकते हैं , न जन्म से असल वीर रक्षक हो सकते हैं , और न ही असल धन्ना हो सकते हैं | जो बनने के लिए उन्हे मनुस्मृती में मौजुद गंदी भ्रष्ट सोच को सबसे पहले मल मूत्र की तरह त्यागना होगा | जिसे वे हजारो साल बाद भी आजतक नही त्याग पाये हैं | सायद वे किसी काल्पनिक फिल्म पीकू के एक लाईलाज बिमारी से ग्रसित मरिज की तरह अपनी मनुस्मृती सोच की बिमारी को भी समझ रहे होंगे कि मनुस्मृती सोच को मल मूत्र की तरह त्यागने के बाद मनुवादियो कि जिवन खतरे में पड़ जायेगी | जबकि रिल पीकू का पात्र और रियल मनुवादियो का पात्र में जमिन आसमान का फर्क है | हलांकि मनुस्मृती सोच को भी त्यागकर सचमुच में कथित जन्म से उच्च जाति कहलाने वाले जन्म से न तो विद्वान पंडित हो सकते हैं , न जन्म से वीर क्षत्रिय अथवा रक्षक हो सकते हैं , और न ही जन्म से धन्ना वैश्य हो सकते हैं | जो फिलहाल यदि हो रहे हैं तो ये मनुस्मृती का ढोंग पाखंड और अँधविश्वास से भरे पड़े नियम कानून द्वारा ही फर्जी उपाधि उन्हे लगातार मिल रही है | जिसके चलते मनुवादि सोच को वे मल मूत्र की तरह कभी नही त्यागेंगे भले उन्हे मल मूत्र को लंबे समय से न त्यागने से होनेवाली बहुत बड़ी हानि से भी बड़ा हानि मनुस्मृति सोच से होता रहे | जिस मनुस्मृती फर्जी सोच की वजह से इस कृषी प्रधान देश की भूमि को और इस देश के मुलनिवासियो की जिवन को भी छुवा छुत जैसी भ्रष्ट बिमारी आज भी मानो बंजर करते जा रही है | और चूँकि मनुवादि सरकार  की भी चुनाव परिणाम डिग्री फर्जी है , जिसके चलते जाहिर है कि मनुवादी सरकार भी देश और प्रजा सेवा में निपुन न रहने की वजह से फर्जी अथवा भ्रष्ट  कार्य ही ज्यादा करेगी और कर भी रही है | क्योंकि मनुवादी सोच ही इतना बड़ा भ्रष्ट सोच है कि मनुवादि आजतक भी छुवा छुत की मांसिकता से पुरी तरह से बाहर नही निकल पाए हैं | जिनको छुवा छुत की भ्रष्ट सोच से बाहर कैसे निकाला जाय इसका प्रयोग आज भी इस देश के साथ साथ पुरी दुनियाँ में जारी है | जिसके लिए विश्व स्तरीय डीएनए जाँच तक भी करके मनुवादियो की छुवा छुत जैसे भ्रष्ट मांसिकता के बारे में वैज्ञानिक तरिके से पता करने की कोशिष हो चुकि है कि आखिर कथित उच्च जाती के कहलाने वाले ही इस कृषी प्रधान देश में इस देश के मुलनिवासियो के साथ हजारो सालो से छुवा छुत क्यों करते आ रहे हैं ? जाहिर है मनुवादियो के भ्रष्ट बुद्धी से भेदभाव की मनुस्मृती गंदगी बाहर निकलने से पहले वे अपनी मनुवादि सोच की सरकार से देश और दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासी प्रजा की सेवा बेहत्तर तरिके से कभी नही कर सकते | जैसे की मानो गोरे इस देश को गुलाम करके न्यायालय में जज बनकर कभी बेहत्तर न्याय कर पाते | जो गोरे बेहत्तर न्याय फैशला सुनाते हुए ही दो सौ सालो तक इस देश में न्याय पूर्वक शासन किए इस बात पर यकिन करना वैसा ही है जैसे की गोरो के जाने के बाद जो मनुवादी शासन कर रहे हैं वे इस देश के मुलनिवासियो के साथ भारी भेदभाव शोषन अत्याचार करके भी उनके ही भारी वोटो से दुबारा से न्याय पूर्वक चुनकर आ रहे हैं | और अजाद भारत का संविधान की रक्षा और उस संविधान में इस देश के मुलनिवासियो को मिले विशेष हक अधिकारो मान सम्मान की रक्षा करने के लिए न्यायालय में सबसे अधिक जज भी बन रहे हैं | जिस बात पर विश्वास करना भी बहुत बड़ा अँधविश्वास है | क्योंकि हम यह कतई नही कह सकते कि इस देश के मुलनिवासियो में जो भी वोटर मनुवादियो द्वारा शोषन अत्याचार का शिकार होकर खुदको भितर से अब भी दबे कुचले और कमजोर समझते हैं , वही लोग ही बहुत बड़ी इस भ्रम में पड़कर मनुवादि सरकार चुन रहे होंगे कि मनुवादियो की पार्टी को ही चुनकर सबसे ताकतवर सरकार बनेगी , जो दबे कुचले कमजोर लोगो का सबसे बड़ा रक्षक बनेगी और उन्हे न्यायालय में सबसे अधिक जज भी चुनकर अन्याय अत्याचार कम होगा | जो भ्रम वाकई में यदि होगी भी तो दरसल हजारो सालो से मनुवादियो के द्वारा दबाये और कुचले जाने की वजह से ही होगी | जैसे की अभी की अपडेट शंभुक प्रजा द्वारा भी यदि वाकई में यह विश्वास कर लिया जाता है कि रामराज दुनियाँ का सबसे श्रेष्ट रक्षक शासन है | जिस बात पर विश्वास करना भी असल में बहुत बड़ा भ्रम ही है | लेकिन भी यदि दबे कुचले और कमजोर कहे जाने वाले वर्तमान की भी अपडेट शंभुक प्रजा मनुवादियो के द्वारा फैलाई गई ढोंग पाखंड से भ्रमित होकर रामराज लाने के लिए जय श्री राम कहकर मनुवादियो की पार्टी को ही भारी तादार में वोट कर रहे होंगे तो निश्चित तौर पर मनुवादियो की पार्टी को जिताने वाले दरसल अँधविश्वास के नशे में इतने डुब चुके हैं कि उनको खुद होश नही है कि मानो जो शिकारी शेर अपने खुनी पंजो से उन्हे दबोचकर अपने खुंखार जबड़ो के जरिये अपने पेट में भक्षन करने ले जा रहा है , उसे ही वे बार बार अपना सेवक और रक्षक चुन रहे हैं | जो दरसल शंभुक प्रजा का भक्षन करके सेवा नही बल्कि शंभुक प्रजा से ही खुदकी खास सेवा कराकर मेवा खाना जारी रहेगा | कई दसक तक कांग्रेस बार बार चुनाकर राज करते आई , उसके बाद अब कई दसक तक भाजपा  राज करेगी | या फिर से कांग्रेस राज करेगी इसकी तैयारी मनुवादियो ने भ्रष्ट यज्ञ करके तय कर लिया है | दोनो ही पार्टी मनुवादियो की खास पार्टी है | जिन दोनो में जो भी चुनाव जिते मनुवादी सरकार ही कायम होती है | बल्कि रामराज का अपडेट कांग्रेस भाजपा राज भी नई सदी का सबसे श्रेष्ट राज था यह झुठ फैलाकर वर्तमान के भी अपडेट मनुवादि शासक और उनके शासन में शामिल खास सहयोगी घर का भेदि इन सभी का भी आरती उतरवाने की तैयारी चल रही हैं | हलांकि भविष्य में घर के भेदियो का आरती उतारी जायेगी की मनुवादियो से अजादी पाने की लड़ाई में उन्हे गद्दार घोषित करके उनकी इज्जत उतारी जायेगी यह तो भविष्य की वह नई पिड़ी तय करेगी जिसके नेतृत्व में मनुवादी सरकार नही बल्कि मुलनिवासियो की सरकार बनेगी | जो फिलहाल तो मनुवादियो की शासन में भेदभाव भ्रष्ट यज्ञ में घोषित होता आ रहा है कि कौन लोग इस देश में शासन करने और संविधान की रक्षा करने के लिए भी सबसे अधिक काबिल हैं | जिस भ्रष्ट यज्ञ के जरिए मनुवादि शासन में क्या क्या और कितने सारे कुकर्म हो रहे हैं , उसकी सच्चाई सामने लाने के बजाय उससे ध्यान भटकाने के लिए बहुत सारे यैसी ऐसी घटनायें भी दोहराई जाती है , और जा रही है जिसकी सिर्फ चर्चा करके मानो पहली चिख पुकार की आवाज को दुसरी चिख पुकार से दबा दी जाती है | चिख पुकार किसलिए आ रही है उसके निवारण पर कभी भी इस मनुवादि शासन में समाधान नही निकलेगा | जिस चिख पुकार में बड़ौतरी के लिए सबसे अधिक मनुवादी मीडिया और ढोंगि पाखंडियो का इस्तेमाल होगा बल्कि हो रहा है | जो बहुत सारी झुठ फैलाकर मनुवादि शासन को मानो स्वर्णकाल साबित करने में लगी हुई है | जैसे की रामराज में भी झुठ फैलाकर आज भी शंभुक प्रजा द्वारा उस राजा राम की आरती उतरवाई जाती है जिसने शंभुक प्रजा की हत्या इसलिए किया था , क्योंकि रामराज में वेद ज्ञान शुद्रो के लिए मना रहने के बावजुद भी शंभुक ने वेद ज्ञान ले लिया था | जिसके कारन जैसे ही राम को पता चला कि इस देश के मुलनिवासियो को वेद ज्ञान में पाबंदी है , इसके के बावजुद भी शंभुक ने वेद ज्ञान हासिल कर लिया है , तो उसे मौत की सजा दे दिया गया था | वैसे जिस राम ने अपने बिवी बच्चो के साथ भी अन्याय किया हो उससे शंभुक प्रजा को न्याय मिलता यह सोचना ही बेकार है | जिस रामराज को अपना आदर्श मानने वाले मनुवादियो को शंभुक प्रजा के द्वारा जय श्री राम कहकर अपना रक्षक चुनना अँधभक्ती ही तो है | खासकर वर्तमान में भी यदि वाकई में मनुवादी सरकार दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासियो द्वारा चुनी जा रही होगी | हलांकि रामराज में खुद राजा राम भी सुरक्षित नही था | जिसके कारन वह भी अति दुःखी होकर प्रजा और राजगद्दी को छोड़कर जिते जी सरयू नदी में डूबा और रानी सीता भी अति दुःखि होकर जिते जी धरती पर समा गयी थी | बल्कि सबका संकट मोचन और सबसे अधिक बलशाली कहलाने वाला रामभक्त हनुमान भी अपनी संकट मोचन और सबसे अधिक बलशाली दावो को सही साबित नही कर सका | जिसने राजा राम और रानी सीता दोनो को घोर संकटो से बाहर नही निकाल सका और स्वयं राम सीता समेत उसके दोनो बच्चे लव कुश भी अपने माता पिता के साथ सुख शांती से कभी रह नही पाये | जाहिर है हनुमान भी रामराज में प्रयोगिक तौर पर खुदको संकट मोचन साबित करके नही दिखला पाया | लेकिन भी आज दबे कुचले कमजोर कहलाने वाली शंभुक प्रजा के बिच जाकर सुबह शाम झुठे प्रवचन और प्रचार करके और विभिन्न माध्यम से सबसे श्रेष्ट रामराज और संकट मोचन हनुमान ये सफेद झुठ फैलाने में कामयाब होकर राजा राम की आरती उतरवाई जाती है | बल्कि रामराज को अपना आदर्श मानने वालो की भी भविष्य में आरती उतरवाने की तैयारी भरपुर चल रही है | जाहिर है मनुस्मृती रचना करके खुदको ताकतवर और उच्च बनाने वाले उच्च जातियो की कथित सबसे बड़ी ताकतवर पार्टी को ही वोट देकर ताकतवर सरकार बनानी चाहिए इस गुलामी सोच से ही दबे कुचले कमजोर माने जाने वाले ज्यादेतर वोटर दरसल मनुवादि मीडिया और ढोंगी पाखंडियो की झुठे बातो में आकर और अँधविश्वास में डुबकर अबतक मनुवादियो की पार्टियो को ही जय श्री राम कहकर चुनते आ रहे हैं | क्योंकि ऐसे गुलाम लोग जो मनुवादियो के द्वारा लंबे समय तक दबाये और कुचले जाने की वजह से भितर से बिल्कुल ही हार चुके रहते हैं , और अंदर का उनका यह विश्वास खत्म हो चुका रहता है कि कभी अपनी सरकार बना पायेंगे , वे ही दरसल अँधविश्वास में डुबकर मानो जान बची तो लाखो उपाय सोचकर अपने आप को हमेशा जी हूजुरी करने में सबसे अधिक खुशी महसुश करने लगते हैं | जैसे कि काल्पनिक फिल्म शोले का गब्बर को अपना अन्न धान धन वगैरा वही लोग दे रहे थे जो गब्बर को सबसे ताकतवर समझकर जान बची तो लाखो उपाय सोचकर जी हुजूरी कर रहे थे | अथवा जी हुजूरी करने वाले लोग ही दरसल जिससे गुलाम रहते हैं , उन्ही को सबसे ताकतवर समझकर मानो जी हुजूरी के बहाने अपनी वफादारी पेश करते रहते हैं | जैसे की मनुवादियो की सरकार को जो भी मुलनिवासी जी हुजूरी करके चुन रहे हैं , वे दरसल मनुवादियो को अपना वफादारी पेश कर रहे हैं | हलांकि इस तरह की बात पर हम इस समय कैसे विश्वास कर लें यह जानते हुए की गोरो के जाने के बाद इस देश में जो अजाद भारत का संविधान रचना किया गया है , उसकी रचना किसी कमजोर दबे कुचले कहलाने वाले किसी ऐसे मुलनिवासी ने ही किया है , जिसने मनुवादियो की रचना मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना किया था | जिस अजाद भारत का संविधान में दबे कुचले कमजोर लोगो को विशेष अधिकार दिया गया है | जो विशेष अधिकार यदि सभी मुलनिवासियो को सही सही मिल जाय तो अभी जो वे अपनी मूल जरुरतो को भी पुरा करने के लिए  इस देश की धन संपदा का उपयोग सबसे कम कर पा रहे हैं , या कर ही नही पा रहे हैं , उसका उपयोग मनुवादियो के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल होने के बजाय संतुलित होने लगेगी यदि संविधान में मिले विशेष अधिकार को ठीक से लागू कर दिया जाय | जिसे ठीक से लागू सरकार और कोर्ट ही करा सकती है | जिस सरकार और कोर्ट में मनुवादियो का दबदबा है | जिसे जानते हुए भी यदि वही दबे कुचले कमजोर लोग दबाने कुचलने और भेदभाव करने वालो को ही जान बुझकर अपनी सरकार चुनने के लिए अपने ताकतवर वोट का प्रयोग जी हूजूरी के लिए कर रहे हैं तो भी इस बात पर विश्वाश करने का साफ मतलब होता है कि कथित दबे कुचले कमजोर लोगो में जो भी लोग मनुवादियो की पार्टी को जान बुझकर वोट कर रहें हैं , वे दरसल गोरो की गुलामी से अजाद होने के लिए संघर्ष करने वालो से भी कहीं अधिक गुलामी मनुवादियो की कर रहे हैं | क्योंकि अजादी के लिए संघर्ष करने वालो से भी ज्यादा गुलाम दरसल वे लोग होते हैं , जो अपने आप को इतने कमजोर समझते हैं कि खुदको कभी अजाद कराना ही नही चाहते हैं | सिर्फ सारी जिवन जी हुजूरी करना चाहते हैं | जिस तरह की गुलामी वर्तमान में अजाद भारत का संविधान लागू होकर भी कैसे हो सकती है | जो अगर गलती से हो भी रही होगी तो उसमे तो दो ही सबसे बड़ी खास वजह हो सकती है , और वह है डर और गरिबी | जो जिसे भी जकड़ लेता है तो वह व्यक्ती अपनी मर्जी से कम और दुसरो की मर्जी से ज्यादे चलने लगता है | जो डर और गरिबी मनुवादियो की शासन में जबतक कायम रहेगी तबतक दबे कुचले कमजोर और गरिब लोगो में जो लोग मनुवादियो को सबसे ताकतवर मानकर उनकी जी हुजूरी करके उनकी पार्टी को वोट करके अपना वफादारी पेश करना चाहते हैं , वे काल्पनिक फिल्म का गब्बर को अन्न धान धन दान करने जैसा अपना वोट दान करते रहेंगे , न कि अपनी खुदकी सरकार बनायेंगे | हलांकि इस तरह के बुरे से भी बुरे हालात में जिस तरह की जी हुजूरी करने वाले लोग अपना किमती वोट जान बुझकर अपनी मर्जी से दे रहे होंगे इस बात पर यकिन करना वैसा ही है जैसे कि कोई दास या गरिब बंधुवा मजदूर अपनी मर्जी से सारी जिवन दास और बंधुवा मजदूरी करते रहना चाहता है | क्योंकि दास और गुलामी करना उसकी ऐसी मजबुरी बन जाती है , जिससे की उसे भ्रम होने लगती है कि जी हुजूरी करके उनकी जिवन बहुत सुरक्षित है ,  मानो अँधभक्ति करके उनकी जिवन ऐसी सुरक्षित बनी रहती है , जैसे की जंगलराज में राजा शेर के खुनी पंजो से दबोचवाकर खुंखार जबड़ो के जरिये शिकारी के पेट में शिकार की प्राण सुरक्षित रहती है | ऐसा भ्रम दरसल अँधभक्ती की वजह से हर समय गुलामी करते समय किसी बलि का बकरा बने शिकार को ही होती रहती है | जो मानो शिकारी शेर को अपना ताकतवर राजा सोचकर चुनते रहता है | जिस तरह के दास और गुलाम महसुश करके यदि ज्यादेतर मुलनिवासी  बार बार मनुवादियो की सरकार चुन रहे हैं , फिर तो चुनाव में मनुवादियो का डर और खौफ पैदा करने के साथ साथ शंभुक प्रजा को सबसे सुरक्षित रखने का झुठी लालच भी खुब बांटा जा रहा होगा | यानी झुठे लालच देकर भी वोट लिए जा रहे होंगे और दबे कुचले कमजोर हिम्मत हारे हुए लोग कथित ताकतवर कहे जाने वाले मनुवादियो की पार्टी को ही सबसे ताकतवर कहकर उसे ही चुन रहे होंगे | और मनुवादि लोग बार बार तुम कमजोर दबे कुचले लोग शासक बनकर इस देश में शासन नही बल्कि मनुवादियो की जी हूजूरी सेवा करो तभी सबसे अधिक सुरक्षित रहोगे यही भावना हर बार के चुनाव में प्रचार प्रसार करके मनुवादी मीडिया और ढोंगी पाखंडियो के जरिये इस देश के ज्यादेतर मुलनिवासियो के बिच फैलाया जा रहा होगा | अथवा बार बार मनुवादि भ्रमित करने में कामयाब होते रहे होंगे | जिसके बाद जी हूजुरी करते हुए मुलनिवासी जी मालिक जी मालिक करते हुए अपना वोट मनुवादियो की पार्टी को देकर अपना वफादारी साबित कर रहे होंगे | वैसे जग जाहिर है कि बलि का बकरा और बकरी भी कसाई द्वारा दिए गए हरी हरी पत्ती घांस वगैरा से लालचाकर बकरे और बकरी दोनो ही हरी हरी घांस को पेटभर चरने के बाद भी आसानी से खुदको बली दे देते हैं | बल्कि उससे भी बुरे हालात के बारे में मैने बुजूर्गो से पुरानी बाते सुना और पढ़ा भी है कि इस कृषी प्रधान देश में बाहर से आए मनुवादियो ने अँधविश्वास और ढोंग पाखंड को इतनी गहराई तक घुसा दिया हैं कि पहले तो दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासी डीएनए के ही मासुम बच्चियो को ढोंगि पाखंडियो द्वारा इतना अधिक ब्रेनवाश किया जाता था कि वे अँधविश्वास में डुबकर अपना प्राण तक देने के लिए खुद सज धजकर रुप श्रृंगार करके खुदको बलि दिलवाने के लिए ढोंगी पाखंडियो द्वारा तय किया हुआ बलि स्थान में चली जाती थी | जिसे भी बहुत तरह की लालच दी जाती थी | बल्कि आज भी कहीं कहीं पढ़ने सुनने को मिलती है कि कुँवारी कन्याओ की बलि देने की प्रथा अभी भी लुका छिपी जारी है | जिसके बारे में चर्चा होती रहती है | हलांकि पहले तो अँधविश्वास में डुबकर देवदासी बनना भी आम बात मानी जाती थी | बल्कि आज भी अँधविश्वास और ढोंग पाखंड डीजिटल रुप से अपडेट होकर मनुवादि मीडिया के रुप में भी नया रुप ले चुका है | जहाँ पर देवदासी बनाने और कुँवारी कन्याओ की बलि देने की प्रथा नया अपडेट होकर डीजिटल तरिके से ब्रेनवाश करके ढोंग पाखंड और शोषन अत्याचार को बड़ावा दी जा रही है | जाहिर है जमाना बदल गया है कहकर भी दुसरे तरिके से बलि ली जा रही है | जैसे कि अँधविश्वास में डुबोकर और फिर दासी बनाकर बहुत सी लालच देकर बलि ली जाती है | और बलि लेने वालो को जान बुझकर अपनी बलि देकर कथित डीजिटल देवो की आरती उतारना अति गुलामी ही तो है | जैसे की देवो को अपना पुर्वज मानने वाले मनुवादियो की पार्टी को वोट देना भी गुलामी ही है |

मंगलवार, 11 जून 2019

मनुवादियो की खास हुनर ही भेदभाव करना छुवा छुत करना शोषन अत्याचार करना है

मनुवादियो की खास हुनर ही भेदभाव करना छुवा छुत करना शोषन अत्याचार करना है |

सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला इस कृषि प्रधान देश को गोरो की गुलामी से अजादी मिलने के बाद आई शासन में लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो के उच्च पदो में जिन लोगो को इस देश और इस देश के नागरिको की सेवा सुरक्षा करने के लिए खास जिम्मेवारी दी जाती रही है , उन खास पदो में ज्यादेतर वही मनुवादी लोग बैठे हुए हैं , जिनके पूर्वजो ने इस देश के मुलनिवासियो का शोषन अत्याचार गोरो के आने से भी हजारो साल पहले से ही पिड़ी दर पिड़ी  करते आ रहे हैं | जिनके पास भेदभाव करने का खास हुनर उपलब्ध है | भले उस खास हुनर का मानो ढोंगी पाखंडी उच्च डिग्री मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान लिखा जा चुका है | जिस संविधान की सुरक्षा और उसे अच्छे से लागु करने की जिम्मेवारी जिस न्यायालय को सौंपा गया है वहाँ पर भी किन लोगो का कब्जा है यह जग जाहिर है | जाहिर है भ्रष्ट सोच की मनुवादी सरकार आज भी कायम है | जिसके चलते मनुवादी सरकार सिर्फ मुठीभर लोगो की ही सुख सुविधाओ को ध्यान में रखते हुए भेदभाव विकाश का दौड़ लगाना जारी रखे हुए हैं | क्योंकि वही उनकी सबसे बड़ी हुनर है जिसका उन्हे हजारो सालो का अनुभव है | सिर्फ कहने को यह कह दिया जाता है कि मनुवादियो ने अब भेदभाव करना छोड़ दिया है | जो यदि छुटा होता तो आज लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में इस देश के मुलनिवासियो का हक अधिकार को भेदभाव करके नही छिना जाता | मनुवादि अपनी झुठी शान के लिए जिस तरह बेशर्मी की सारी हदे पार करके कभी बिना ज्ञान दिए भी एकलव्य का अंगुठा गुरु दक्षिणा में मांगकर अपनी मनुवादी सोच का परिचय दिया था , उसी तरह गोरो के जाने के बाद फिर से आई मनुवादियो की शासन में इस देश के मुलनिवासियो का हक अधिकार छिने जाने की घटना फिर से अपडेट हुई है | जो कि स्वभाविक भी है | क्योंकि मनुवादियो की खास हुनर ही भेदभाव करना छुवा छुत करना शोषन अत्याचार करना है | जिसमे वे पुरे विश्व में खास चर्चित हैं | जिसके चलते गोरो के जाने के बाद इस देश की सत्ता आधुनिक भारत , गरिबी हटाओ और शाईनिंग इंडिया , डीजिटल इंडिया  का नारा देनेवाली मनुवादी सरकार के नेतृत्व में छुवा छुत जैसे खास हुनर नया अपडेट होकर वापस आ गयी है |मनुवादी फिर से अपनी भष्म मनुस्मृती का भुत को ही इस देश और इस देश के मुलनिवासियो की सेवा सुरक्षा में लगा दीये है | जिस मनुवादि शासन में ही तो इस देश के मुलनिवासी निच घोषित करके लंबे समय तक छुवा छुत जैसे शोषन अत्याचार किये जाते रहे हैं | छुवा छुत करने वालो ने वर्तमान में भी भारी भेदभाव के जरिये इस देश के लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कब्जा जमाये हुए हैं | भारी भेदभाव के जरिये चयन प्रक्रिया करके खुदको सबसे टैलेंटेड दिखलाया जा रहा है | जिस तरह की टैलेंट मनुस्मृती रचना करके भी दिखलाई गई थी | जो मनुवादि गोरो से अजादी मिलने के बाद से लेकर अबतक अजाद भारत का संविधान लागू के बाद भी एक इंसान का औसतन उम्र के लगभग शासन कर चुके हैं | जिसके बावजुद भी अपनी मनुवादी मांसिकता से बाहर नही निकल पाये हैं | जो कभी निकलेंगे भी नही , क्योंकि जो मनुवादि हजारो साल बाद भी अबतक छुवा छुत और ढोंग पाखंड को नही छोड़ पाये हो , वे गोरो के जाने के बांद सौ साल से भी कम समय में कैसे निकलेंगे | बल्कि इस देश के मुलनिवासियो को ही मनुवादियो के हाथो से अपने हक अधिकार को वापस छिनकर लेना होगा | जैसे की गोरो से अजादी छिनकर लिया गया था |  जिस तरह की गुलामी और छुवा छुत करने वाले विदेशी डीएनए के लोगो ने ही तो इस सोने की चिड़िसाँ कहलाने वाला समृद्ध देश को पुरी दुनियाँ में गरिब और भ्रष्ट देशो की गिनती में ला खड़ा कर दिया है | जिस दाग को मिटाने का सिर्फ और सिर्फ एक ही रास्ता है कि इस देश के मुलनिवासी चाहे जिस धर्म से जुड़े हुए हो , सभी मिलकर संघर्ष आंदोलन करते हुए मनुवादियो के शासन से इस देश को अजाद कराना होगा | जो सौ प्रतिशत मुमकिन भी है , और यही होगा भी , न कि चुनाव से मनुवादि सत्ता कभी समाप्त होनेवाली है | जैसे की चुनाव से गोरो की दबदबावाली सत्ता समाप्त नही हुई थी | इस देश के मुलनिवासियो की अबादी मनुवादियो की अबादी के मुकाबले इतनी अधिक है कि सभी मिलकर यदि मनुवादियो के खिलाफ खड़े हो जाय तो मनुवादी अपने आप ही घुटने टेककर गोरो की तरह ही इस देश का शासन को इस देश के मुलनिवासियो के हाथो सौंप देंगे | अन्यथा चुनाव के जरिये मनुवादियो को हराकर इस देश में मुलनिवासियो की सरकार आयेगी इस झुठी उम्मीद में वर्तमान की भी नई पिड़ी मनुवादियो की शासन को देखते देखते बुढ़ा होकर आँख मुँदेगी | जैसे की ज्यादेतर पुरानी पिड़ी कई चुनाव में आधुनिक भारत ,गरिबी हटाओ भाषन अश्वाशन सुनते देखते आँख मुँद चुकि है | और जो बचे हैं वे भी शाईनिंग इंडिया , डीजिटल इंडिया देखते सुनते मनुवादियो की शासन में ही आँख मुँद लेगी यदि मनुवादियो का शासन को चुनाव में हराकर समाप्त करने की झुठे सपने फिर से देखने का सिलसिला जारी रहा | क्योंकि जिस तरह गोरे जज के सामने केश लड़कर गोरो से अजादी फैशला का उम्मीद करके बेकार में अजादी का केश लड़ना है , उसी तरह  मनुवादी चुनाव आयोग समेत लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो के सामने चुनाव लड़कर मनुवादियो का शासन समाप्त करने की सिर्फ झुठी उम्मीद करते रहना है |

सतीश चंद्र मिश्रा के आने से पहले बसपा मजबूत थी की अब है ?

सतीश चंद्र मिश्रा के आने से पहले बसपा मजबूत थी की अब है ?

तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जुते चार का नारा देते समय बसपा मजबुत थी कि तिलक सतीश चंद्र मिश्रा को शामिल करके उच्च पद देकर मजबुत हुई है ?
दरसल ब्रह्मण सतीश चंद्र मिश्रा को बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बिच आई दरार के लिए मुख्य कारन बतलाया जा रहा है | जो बहस तेज हो गयी है कि सतीश चंद्र मिश्रा को खास महत्व देकर बसपा कमजोर हुई है | और बहुत सारी दरारे भी आ रही है | जिस सत्य बात का मैं समर्थन करता हूँ | बल्कि ज्यादेतर  मुलनिवासी समर्थन करेंगे इस बात में कि बसपा में बहुत सारे गलत फैसले सतीश चंद्र मिश्रा जैसे ब्रह्मणो को पार्टी में उच्च पद या टिकट देने की वजह से ही लिये जा रहे हैं | हो सकता है बसपा को मनुवादियो की खाल ओड़ाने की भितर भितर तैयारी चल रही हो , बल्कि तैयारी हो चूकि है | जिससे कि मुलनिवासियो के बिच एकता में दरार पैदा हो रही है | साथ साथ मनुवादियो के खिलाफ चल रही मुमेन्ट में भी कमजोरी और दरार पैदा हो रही है | जिसका फायदा उठाकर मनुवादि खुद तो बड़े बड़े पाप और अपराध करके बच निकलने में कामयाब हो रहे हैं , पर मनुवादियो द्वारा सत्ता पावर का गलत उपयोग करके मुलनिवासियो को कमजोर कहकर दबाये जा रहे हैं | बल्कि मुझे तो इस बात पर भी पुरा यकिन है कि बसपा और सपा समेत और भी कई पार्टी जिनका गठन किसी मुलनिवासी द्वारा हुआ है , उसके खास माने जाने वाले नेताओ को भी लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो का गलत उपयोग करके और खासकर संविधान की रक्षा करने और उसे ठीक से लागू करने की जिम्मेवारी जिस न्यायालय को दिया गया है , वहाँ पर भी मनुवादियो की दबदबा कायम करके और न्यायालय के उच्च पदो का गलत उपयोग करके , उन्हे सजा होने की बाते करके दबाया या धमकाया जा रहा है | और धमकाने वाले लोग निश्चित तौर पर मनुवादि या फिर उनके समर्थक ही होंगे | जिस धमकी से भितर से डरने वाले संघर्ष कर रहे मुलनिवासी नेताओ को तो मैं यही कहना चाहूँगा कि कभी संघर्ष कर रहे ऐतिहासिक वीर क्रांतीकारी मंडेला को भी लंबे समय तक जेल में डाला गया था , पर आज के दिन में जेल जानेवाले मंडेला इतिहास में वीर क्रांतीकारी नायक हैं कि जेल में डालने वाले नायक कहलाते हैं ? क्योंकि इतिहास में शोषन अत्याचार करने वाले नायक नही ऐसे नालायक लोग माने जाते हैं , जो दुसरो का हक अधिकारो को छिनकर और कब्जा जमाकर किसी परजिवी की तरह दुसरो के हक अधिकारो पर हराम का पल रहे होते हैं | जिनके उपर बड़े बड़े भ्रष्टाचार करने , छुवा छुत जैसे भारी भेदभाव करने , यहाँ तक की खुन खराबा आतंक फैलाने का भी कई कई केश दर्ज होते हैं , पर उन्हे सायद ही कभी सजा मिलती है | क्योंकि लोकतंत्र के चारो स्तंभो में उनके ही लोगो का  कब्जा रहता है | चाहे तो बड़े बड़े भ्रष्टाचार करने वालो और खुन खराबा आतंक फैलाने वालो का लिस्ट देख लिया जाय कितनो को जेल हुई है ? और विदेश से भी आए बड़े बड़े अंतराष्ट्रीय भ्रष्टाचारियो का लिस्ट निकालकर पता कर लिया जाय कि उनमे से कितने लोग जेल गए हैं | एक पोकेटमार को तुरंत सजा हो जाती है , पर इन्हे अबतक जेल क्यों नही हो रही है ? क्योंकि उनमे से सायद ही कोई गिने चुने मुलनिवासियो का नाम होगा , और जैसा कि मैने बतलाया कि न्यायालय में जिन मनुवादियो का दबदबा है , ज्यादेतर तो वे अपनी मनुस्मृती सोच से ही भेदभाव फैशले ले रहे हैं | न्याय करते समय उच्च जाती का कौन और निच जाती का कौन इसका फैशला मनुस्मृती को साक्षी मानकर पहले किया जाता है | बल्कि जज बनाते समय भी भेदभाव किया जाता है इसकी झांकि पुर्व लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा की रिपोर्ट 2000 ई० के बारे में जानकर मनुवादियो के द्वारा किये जा रहे भेदभाव के बारे में जाना समझा जा सकता है | बल्कि दुनियाँ में कोई भी इंसान जिसे भेदभाव के बारे में प्रयोगिक अनुभव हो , वह यह अच्छी तरह से जान सकता है कि मनुवादि इस देश में इस देश के मुलनिवासियो के साथ जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो उनके साथ भेदभाव कर रहे हैं कि नही कर रहे हैं ? जिस भेदभाव बहाली की रिपोर्ट में सबसे पहले देश की राजधानी दिल्ली से ही सुरुवात की जाय !
(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC जात के 35 जज ,SC जात के 15 जज ,ST जात के 5 जज शामिल हैं!
जिस रिपोर्ट के बारे में ही नही बल्कि इससे पहले भी मनुवादियो द्वारा भारी भेदभाव बहाली करने का ऐतिहासिक रिपोर्ट भरे पड़े हैं | जैसे कि हजारो सालो से मनुवादी किस तरह का भेदभाव करते आ रहे हैं इसकी रिपोर्ट इतिहासो में दर्ज है  | जो लोग हजारो सालो बाद भी आजतक भेदभाव मांसिकता से बाहर नही निकल पाये हैं | जिसकी झांकी ये रिपोर्ट भी बतलाती है कि मनुवादि अपनी मनुस्मृती टैलेंट से किस तरह से इस देश के मुलनिवासियो के हक अधिकारो को छल कपट से छिनकर  लोकतंत्र के चारो स्तंभो में कब्जा जमाये हुए हैं | जिस बारे में  पुरे विश्व के वे तमाम लोग जिनके पुर्वज या खुद भी कभी भेदभाव का शिकार हुए हैं , वे सभी भी जरुर जान रहे होंगे कि मनुवादि आज भी इस देश के मुलनिवासियो के साथ न्यायालय तक में भी भारी भेदभाव कर रहे हैं | बल्कि इतिहास इस बात के लिए भी गवाह बन गया है कि बड़े बड़े भ्रष्टाचारियो का जो राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय लिस्ट तैयार होकर दर्ज हुआ है , उनमे भी मनुवादियो का ही नाम कुकूरमुतो की तरह भरे पड़े हैं | जिनमे से कितनो को सजा मिली और कितने निर्दोश शोषित पिड़ित या छोटे अपराध करने वाले जेल में सजा काट रहे हैं , इसका भी इतिहास दर्ज हो चूका है | और जेल में सबसे अधिक किन्हे रखा गया है यह बात भी किसी से नही छिपी है | हलांकि थोड़े बहुत मुलनिवासी भी मनुवादियो के गलत संगत में आकर या अति शोषन अत्याचार का शिकार होकर हो सकता है लोहा लोहा को काटता है इसका गलत प्रयोग करके खुद भी बहुत बड़े बड़े भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए हो , पर इसपर भी मैं कह सकता हूँ वे मास्टरमाईंड निश्चित तौर पर नही होंगे | अथवा वे ही सबसे पहले ये नही कहे होंगे कि चलो मिलकर सैकड़ो हजारो करोड़ का भ्रष्टाचार करते हैं | बल्कि उन्हे मानो किसी मनुवादि ने ही भ्रष्टाचार करने का सुपारी जरुर दिया होगा यह कहकर कि हमारी तरह बड़े बड़े भ्रष्टाचार करके  तुम भी हमारे जैसा उच्च जिवन जिने लगोगे | तुम्हे भी उच्च का उस मनुस्मृती वाला दर्जा मिल जायेगा जिसे जलाकर अजाद भारत का संविधान लिखा गया है | जो मनुवादि इस देश के मुलनिवासियो के हक अधिकारो को किसी परजिवी की तरह हजारो सालो से पिड़ी दर पिड़ी हराम का चुस रहे हैं | जिन हक अधिकारो को चुसने वाले मनुवादियो के द्वारा किये जा रहे शोषन अन्याय अत्याचार से अजादी पाने का बहुत बड़े बदलाव अथवा क्रांती का दौर चल रहा है | जिस तरह के दौर में मुलता दो प्रकार के लोग शामिल हैं , एक मनुवादियो के पक्ष में फैशले लेकर इस देश के मुलनिवासियो को लंबे समय तक शोषन अत्याचार करने में मदत करने वाले , और दुसरे वे लोग हैं जो मनुवादियो के द्वारा इस देश की सत्ता समेत लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में जो कब्जा बनाकर उसका गलत उपयोग करके शोषन अन्याय अत्याचार करना जारी है , उससे अजादी दिलाने के लिए मदत करने के साथ साथ खुद भी संघर्ष कर रहे हैं | जिन वीरो को मनुवादियो के द्वारा दी जाने वाली जेल की धमकी से कभी भी नही डरना चाहिए , और न हि उन्हे किसी मनुवादि को अपने संघर्ष कर रहे संगठन में उच्च पद देनी चाहिए | बल्कि मैं तो कहूँगा कि यदि किसी मनुवादि का ही डीएनए का व्यक्ती गरिब बीपीएल या मनुवादियो का विरोधी भी क्यों न हो तो भी उन्हे संघर्ष कर रहे संगठन में उच्च पद नही देनी चाहिए | जैसे की गोरो की गुलामी से अजादी पाने का संघर्ष करते समय किसी गरिब बीपीएल गोरा या गोरो की गुलामी का विरोध करने वाले किसी गोरे को भी अजादी संघर्ष में खास पद नही देनी चाहिए | मनुवादि के खिलाफ चल रहे संघर्ष में भी कथित किसी उच्च जाती कहलाने वालो को उच्च पद नही देनी चाहिए | सतीश चंद्र मिश्रा तो न गरिब बीपीएल है , और न ही मेरे ख्याल से मनुवादियो के बहुत बड़े विरोधी है | जिनके बारे में एक रिपोर्ट पढ़ रहा था कि 2010 ई० में मिश्रा के पास 24 करोड़ थी जो 2016 ई० में बड़कर 193 करोड़ हो गई थी | यानि मिश्रा तब भी करोड़पति और आज भी करोड़पति बल्कि अब तो सायद अरबपति है | जिस करोड़पति मिश्रा द्वारा बसपा पार्टी के खास नेताओ को जेल से बचाने में बहुत बड़ी भुमिका हैं , इसलिए उसे बसपा में अबतक खास पदो में रखकर खास महत्व दिया जा रहा है ऐसी भी बाते कही जा रही है | इतना खास की कहीं पर एक और रिपोर्ट पढ़ रहा था कि बसपा प्रमुख से सिर्फ दो लोग बिना चेकिंग के मिलने जा सकते हैं एक मिश्रा है और दुसरा मिश्रा का दमाद | यानी दोनो ब्रह्मणो को इतना ज्यादे महत्व दिया जा रहा है जितना कि मुलनिवासी को नही दिया जा रहा है | जिसके बारे में तो यही कहना चाहुँगा कि यदि बसपा पार्टी मिश्रा को अबतक सिर्फ बसपा प्रमुख को जेल न हो इसके लिए उच्च पद देकर पार्टी में खास महत्व देकर रखे हुए है तो मैं एक बात यहाँ पर जरुर जानना चाहूँगा कि क्या मिश्रा से भी अच्छे वकिल या फिर पार्टी के महासचिव जैसे उच्च पद सम्हालने वाले नेता करोड़ो मुलनिवासियो में एक भी नही मिले हैं बसपा को जो ब्रह्मण मिश्रा को ये जिम्मेवारी दिया गया है | और यदि मिश्रा उच्च जाती के हैं इसलिए सजा से बचाने में उन्हे खास सुविधा उपलब्ध है न्यायालय में यह सोचकर सजा की डर से पार्टी में मिश्रा को खास बनाकर रखा गया है तो यह बात कभी नही भुलनी चाहिए कि जेल से भी बड़ी सजा किसी ब्रह्मण को अपनी संघर्ष कर रही पार्टी में शामिल करके उसके साथ में खड़े होकर मनुवादियो की शासन से मुलनिवासियो को पिड़ित होते हुए देखना है | जिसके लिए कोई ब्रह्मण केश लड़कर मनुवादियो से छुटकारा दिलवाने नही आनेवाला है | बल्कि मुलनिवासियो को ही एकजुट होकर मनुवादियो की शोषन अत्याचार से अजादी पाना है | क्योंकि मनुवादि इस देश के लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कब्जा जमाकर इस देश में शासन करके इस देश के मुलनिवासियो का शोषन अन्याय अत्याचार कर रहे हैं , इससे बड़ी सजा क्या हो सकती है | जिन मनुवादियो के अन्याय अत्याचार से अजाद कराने के लिए ही तो बसपा में तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जुते चार जैसे नारे देकर बसपा देश की न० तीन की पार्टी बनी है , जो अब मिश्रा के आने के बाद टुटने के कागार पर है | इसलिए जाहिर है मिश्रा के बारे में मुलनिवासियो की राय ज्यादेतर तो बसपा को कमजोर करने वाले ब्रह्मण के  रुप में ही  इतिहास दर्ज हो रही है | जिस ब्रह्मण मिश्रा से मिलकर और उन्हे उच्च पद देकर मनुवादियो के खिलाफ मजबुती से संघर्ष नही की जा सकती है , बल्कि इस देश के मुलनिवासियो के साथ मिलकर और उन्हे उच्च पद देकर मनुवादियो को मजबूती से जवाब भी दिया जा सकता है | जिन्हे जवाब देते समय यदि मिश्रा जैसे ब्रह्मण नेता अपने ही पार्टी में उच्च पद लेकर साथ में हो तो मुझे नही लगता मनुवादियो को उतनी मजबुती से जवाब किसी पार्टी द्वारा मिल पायेगी | साफ बात मनुवादियो से लड़ने के लिए उच्च जाती कहलाने वाले ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्यो को एकजुट करके संघर्ष करने के बजाय मुलनिवासी जिन्हे ये कथित उच्च जाति के लोग निच कहकर हजारो सालो से भेदभाव करते आ रहे हैं , उन हजारो सालो से शोषन अत्याचार का शिकार हुए लोगो को उच्च पदो में भी बिठानी चाहिए और टिकट भी उन्ही को ही देनी चाहिए | हलांकि जबतक इस देश में मनुवादियो की सत्ता कायम रहेगी अथवा उनके द्वारा खास पदो पर बैठकर भेदभाव बहाली करके देखरेख करते हुए जबतक सरकार का चुनाव होगी तबतक चुनाव का मतलब मेरे लिए तो मनुवादियो की दो पार्टि में किसे पसंद करते हैं मुलनिवासी ऐसी मनुवादी चुनाव परिणाम ही बार बार आना है | क्योंकि वोट चाहे जिसे करो शासन तो मनुवादियो को ही तय करना है | क्योंकि लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में उन्ही का कब्जा है , जैसे की चुनाव आयोग में भी कब्जा है | इसलिए चुनाव में ध्यान देने के बजाय पिड़ित वीर नायक नाईकाओ को एकजुट करके संघर्ष करने में ज्यादे जल्दी मनुवादियो की भेदभाव सत्ता से छुटकारा पाया जा सकता है | जैसे की गोरो की गुलामी से छुटकारा चुनाव से नही बल्कि गोरो के खिलाफ अजादी का आंदोलन और संघर्ष करके पाया गया था | न कि जेल जाने की डर से संघर्ष कर रहे वीर नायक नाईकाओ के बिच दरार पैदा करके उनमे भितर से कमजोरी पैदा करनी चाहिए | और यदि संघर्ष करते करते जेल में भी डाले जाते हैं तो उन्हे इतिहास वीर अजादी के नायक नाईकाओ में दर्ज करेगा | बल्कि जेल में भी वे संघर्ष कर रहे नायक नाईका ही कहलायेंगे और पिड़ितो द्वारा पहले से भी ज्यादे सम्मानित नजर से देखे जायेंगे | क्योंकि यदि मनुवादियो के खिलाफ संघर्ष करते हुए वे जेल भी जायेंगे तो मनुवादियो के विरोध में खासकर युवाओ में और अधिक संघर्ष की ज्वालामुखी फट पड़ेगी | क्योंकि यह बात कभी नही भुलनी चाहिए कि जेल में सजा काट रहे कैदी से भी खराब सजा जेल से बाहर करोड़ो शोषित पिड़ित हर रोज भेदभाव द्वारा अपमानित होकर सजा ही तो काट रहे हैं | जिन शोषित पिड़ितो का खास जेलर मनुवादि बनकर दिन रात यातना दे रहें हैं | और साथ साथ इस मनुवादियो की गुलामी के चलते करोड़ो मुलनिवासी अपने जमिन जायदाद जैसे हक अधिकारो को लुटवाकर गरिबी भुखमरी से भी तो संघर्ष करते मर भी रहे हैं | जिन्हे मैं अजादी संघर्ष करते हुए शहिद वीर जवान मानता हूँ |

रविवार, 9 जून 2019

रामराज और आधुनिक भारत गरिबी हटाओ शाईनिंग इंडिया डीजिटल इंडिया राज

"देश में आत्महत्यायें बड़ रही है इस तरह के बुरे से भी बुरे हालात में यह झुठ फैलाया जा रहा है कि सबके अच्छे दिन आ गए हैं , इसलिए देश की जनता खुशी के मारे बार बार ऐसी आधुनिक डीजिटल सरकार को चुन रही है | जो अच्छे दिन वाकई में आते तो क्या जनता खुशी से नाच गाकर आत्महत्या कर रहें हैं ?
क्या अच्छे दिन आ गए हैं इसलिए आत्महत्यायें बड़ रही है ? सायद रामराज में वाकई में इसी तरह के सबके अच्छे दिन आ गए थे , इसलिए खुशी से नाच गाकर राजा राम जिते जी सरयू नदी में डुबे थे ,और रानी सीता जिते जी रोते हुए धरती में समाई थी | जिस तरह का शासन भुलकर भी किसी और देश में कभी न आए !

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...