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मंगलवार, 25 जून 2019

भविष्य में मनुवादि शासन समाप्त होने के बाद मतदान में होनेवाली गड़बड़ी को कैसे सुधार करनी चाहिए इसपर मेरी अपनी राय

भविष्य में मनुवादि शासन समाप्त होने के बाद मतदान में होनेवाली गड़बड़ी को कैसे सुधार करनी चाहिए इसपर मेरी अपनी राय !
गोरो की गुलामी से अजादी मिलने के बाद क्या वाकई में फिर से मनुवादियो की गुलामी का दौर वापस चल पड़ी है ? और अगर नही तो फिर अजाद भारत का संविधान लागू होने के बाद भी चुनाव प्रक्रिया में अबतक ऐसी क्या सबसे बड़ी कमी रही है , जिसकी वजह से मतदान करने और मतदान परिणाम आने में सबसे अधिक गड़बड़ घोटाला  हो रहा है ? जिस गड़बड़ घोटाला को कैसे दुर किया जा सकता है , इस बारे में फिलहाल तो सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है , यह भाषन अश्वाशन देकर टाल दिया जाता आ रहा है | या हो सकता है गड़बड़ी कैसे दुर किया जाय इसके बारे में जो खोजे हो रही है वह दरसल पैदल प्रयोग ही साबित हो रही है | जिसके चलते चुनाव में लाख शिकायत आने के बावजुद भी मनुवादियो के शासन में कभी भी मतदान प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी को दुर करने की बाते नही हो रही है | हलांकि मेरे विचार से तो मनुवादि शासन में यदि गड़बड़ी दुर करने की कभी कोशिष भी होगी तो भी दुर नही हो सकती ! क्योंकि जिस तरह मनुवादियो के शासन में भेदभाव शोषन अत्याचार कभी भी दुर नही हो सकती , उसी तरह चुनाव में भी गड़बड़ घोटाला कभी रुक नही सकती | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि मनुवादि जबतक मनुस्मृति सोच से अपने बुद्धी को भ्रष्ट करते रहेंगे तबतक लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मौजुद मनुवादियो का दबदबा का गलत इस्तेमाल करके शोषन अत्याचार और छल कपट से सत्ता हासिल करने का इतिहास ही अपडेट होती रहेगी | रही बात जिनको भी बहुत बड़ा यह भ्रम है कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो का शोषन अत्याचार करने वाली मनुवादि शासन अब अजाद भारत का संविधान लागू होने के बाद कभी कायम हो ही नही सकती है , तो इसके बारे में चूँकि मेरा मानना है कि मनुवादियो के डर और ढोंग पाखंड के साये में कभी भी इमानदारी से चुनाव हो ही नही सकते , चाहे पुराने तरिके से मत पत्र से हो या फिर क्यों न ईवीएम मशीन से हो !जैसे की गोरो के शासन में भी ईमानदारी से चुनाव कभी भी नही हो सकते थे | क्योंकि इस बात को तो सभी मुलनिवासी जरुर मानेंगे की लोकतंत्र के चार प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो का ही दबदबा कायम है ! इसलिए मेरे विचार से तो यह बात पुरी तरह से झुठ ही साबित होती है कि मनुवादियो की सरकार को इस देश के दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले ज्यादेतर मुलनिवासी ही बार बार अपनी मर्जी से चुन रहे होंगे | अथवा भाजपा कांग्रेस पार्टी द्वारा भारी बहुमत से ऐतिहासिक जीत दर्ज करने की जो चुनाव परिणाम पेश किये जा रहे हैं , वह दरसल मनुवादियो का अपडेट छल कपट से सत्ता प्राप्त करने की खास हुनर का ही आधुनिक डीजिटल अपडेट है | जिसे उन्होने समय समय पर सिर्फ अपडेट किया है | क्योंकि दरसल ये मनुवादि लोग चूँकि मुल रुप से अपने उन पुर्वजो को ही सुबह शाम आरती उतारकर अबतक फोलो कर रहे हैं , जिनकी जिवन में इस देश के मुलनिवासियो को दास बनाकर और अपनी आरती उतरवाने की संस्कार कुट कुटकर भरी हुई थी | जिनकी मनुस्मृती सोच की जिवन को वर्तमान के भी अपडेट मनुवादि शासन द्वारा सबसे उच्च जिवन माना जाता है | जिसमे मुल रुप से न तो इंसानियत को माना जाता है , और न ही प्रकृति को ज्यादे महत्व दिया जाता हैं | जिसके चलते ही तो मनुवादि खुदको सबसे बड़ा जन्म से धार्मिक विद्वान पंडित , वीर क्षत्रिय और धन्ना वैश्य घोषित करके भी प्रयोगिक तौर से ज्यादेतर तो ढोंगि पाखंडी और अन्याय अत्याचारी , दुसरो के हक अधिकार को लुटने वाला लंगटा लुचा सोच की हरकते ही किया करते हैं | जिस तरह का संस्कार दरसल उन्हे मनुस्मृति रचना करके शासन करने वाले उनके पूर्वजो ने विरासत के रुप में सौंप रखा है | जिसे अबतक भी फोलो करते आ रहे हैं | जिसके बारे में सबसे बड़ी अप्रकृति और अन्याय अत्याचारी सोच मनुस्मृती में ही मिल जाती हैं | जिसमे मनुवादि खुदको पुरुष के मुँह छाती जंघा वगैरा से अप्रकृतिक रुप से पैदा हुआ मानते हैं | और शोषन अत्याचार  करते हुए मिल जाते हैं | जो छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से शासक बनकर प्रजा सेवा करने के बजाय अपने द्वारा रची संविधान मनुस्मृती लागू करके यह नियम कानून बनाया गया था कि मनुवादियो के अलावे कोई दुसरा यदि वेद सुने तो गर्म लोहा पिघलाकर उसे कान में डालने और वेद बोले तो जिभ काटने , अँगुठा काटने , हक अधिकार छिनने जैसी भक्षक हरकते करके खुदको रक्षक क्षत्रिय विद्वान पंडित हो जाता है | जिन मनुवादियो के शासन में चुनाव बिल्कुल ही ठीक ठाक से हो रहा है यह बात सत्य तभी हो सकता था जब इस देश में अजाद भारत का संविधान ठीक से लागू हुआ रहता | और साथ साथ उसकी रक्षा भी ठीक से हो रही होती | जिसकी रक्षा कोर्ट समेत लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो द्वारा भारी भेदभाव के जरिये भ्रष्टराज कायम करके कभी हो ही नही सकती | और अगर भ्रमित लोगो की नजर में हो रही होगी तो मानो भष्म मनुस्मृती का भूत को इस समय इस देश का संविधान और इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासियो की रक्षा करने के लिए तैनात किया गया है | जो मनुस्मृती उस अजाद भारत का संविधान की रक्षा बेहत्तर तरिके से कर ही नही सकता जिसे संविधान की रचना करने वाले ने खुद भष्म इसलिए किया था ताकि उसका साया इस देश के मुलनिवासियो के जिवन में फिर से भेदभाव के रुप में पिच्छा न करे | जबकि मनुस्मृती का भूत आज भी ग्राम शहर सभी जगह रुप बदल बदलकर मंडरा रहा है | चाहे सरकारी कार्यालय हो या फिर धार्मिक स्थल हो सभी जगह किसी न किसी तरिके से मनुवादि अपनी मनुस्मृती गंदी सोच को अपडेट करते ही रहते हैं | जाहिर है चूँकि अब भी मनुस्मृति का भुत इस देश में मंडरा रहा है इसलिए वर्तमान में मनुवादियो द्वारा सवैंधानिक वोटतंत्र को भ्रष्टतंत्र में तब्दील करके दरसल फर्जी तरिके से ही वोट गिनती की जा रही है | जिससे वोटरो के सवैंधानिक गुप्त वोट उसी तरह ज्यादेतर बेकार साबित हो रहे होंगे जैसे कि बहुत से जगहो में नौकरी के लिए इंटरव्यू लेने वालो द्वारा घुस लेकर या फिर किसी की पैरवी द्वारा किसे रखना है पहले से ही जब फिक्स कर ली जाती है, तब सिर्फ दिखावे के लिए अनगिनत बेरोजगारो की कतार लगवाकर इंटरव्यू लिये जाते हैं | जबकि पिच्छे के दरवाजे से पहले से ही तय किया हुआ रहता है कि किसे काम पर रखना है और किसे नही रखना है | जैसे की सुबह से शाम तक कतार लगाकर सिर्फ सवैंधानिक चुनाव हो रहे हैं यह दिखावे के लिए वोटरो से वोट लिए जा रहे होंगे | जिस वोट की शक्ति को ज्यादेतर तो बेकार कर दिया जा रहा है | जो न होकर चुनाव कैसे बेहत्तर हो इसपर मेरी अपनी राय है कि मनुवादि शासन समाप्त होने के बाद यदि चुनाव प्रणाली में भी बैंक खाते की तरह ही वोटर और पार्टियो के भी एक एक वोट खाते बना दिए जाए , और वोट देनेवाले मतदाता और वोट लेनेवाले पार्टियो के खाते में वोट ट्रांजेक्सन चहड़ने के साथ साथ सभी वोटर को वोट देने के बाद  एटीएम से पर्ची निकलने जैसा पर्ची  सिधे सभी वोटर के हाथ में मिले , जिसमे पुरा डिटेल लिखे हुए हो , जो जानकारी सिर्फ मतदाता और मत किसे गया उस पार्टी के अलावे सिर्फ चुनाव आयोग को ही हो | जो कि किसी बैंक की तरह वोटर और सभी पार्टियो के वोट खाते को सुरक्षित संचालित करे | जाहिर है ऐसी चुनाव प्रक्रिया रहने पर वोट घोटाला करने वाला आसानी से पकड़ा जाएगा और एक एक वोट का भी हिसाब अच्छे तरिके से होगी |  जिससे यदि किसी वोटर का वोट किसी और पार्टी को जाएगा या न जाए तो दोनो ही हालात में मतदाता को पता चल जाएगा कि वोट डालने के बाद उसके वोट का क्या हुआ ? जैसे की यदि कोई व्यक्ती अपने बैंक खाते से किसी दुसरे व्यक्ती के बैंक खाते में धन भेजता है तो लेने और देने वाले दोनो ही बैंक धारको को बल्कि बैंक के पास भी मानो लेन देन के बारे में लाईव जानकारी मिल जाती है | जिससे की लेने और देने वाले के साथ साथ बैंक को भी लेन देन की सारी जानकारी प्रमाणित तौर पर उपलब्ध लाईव हो जाती है | जिस तरह की जानकारी वोट के मामले में क्या वोट लेने और देने वाले को वर्तमान में उपलब्ध हो पा रही है ? जवाब मिलेगा वोटो की जानकारी सिर्फ चुनाव आयोग के पास ही उपलब्ध है | वह भी गुप्त तरिके से मानो वोट देने और लेने वाले दोनो को ही अँधेरे में रखकर वोट सुरक्षित है यह झुठी अश्वासन देकर दरसल एक तरफा फैशला लिया जा रहा है | क्योंकि वोट का सही लेन देन हुआ है इसके बारे में प्रमाणित डाटा न तो किसी वोटर के पास उपलब्ध है , और न ही किसी पार्टी के पास उपलब्ध है | यदि वोट देने और वोट लेने वाली कोई पार्टी चुनाव परिणाम पर विश्वास न करके वोट लेन देन का प्रमाण देखना चाहे तो क्या उसके पास कोई अपनी खुदकी पर्ची या बैंक पासबुक की तरह ट्रांजेक्सन सुविधा उपलब्ध है , जिसमे की वह सारी वोट लेन देन की जानकारी उपलब्ध रहता हो जो कि चुनाव आयोग के पास वोट डालने के बाद उपलब्ध हो जाती है ? निश्चित तौर पर इसका जवाब यही होगा कि ऐसी सुविधा फिलहाल न तो वोटर को उपलब्ध है , और न ही किसी पार्टी को उपलब्ध है  | सिर्फ  चुनाव आयोग के पास उपलब्ध है जिसपर सिर्फ विश्वास करके चुनाव परिणाम को सही या गलत माना जाता आ रहा है | यदि कोई मतदाता या पार्टी अपने वोट के बारे में पुरी जानकारी खुदकी खाते से लेना चाहे तो वह नही ले सकता | भले क्यों न मतदाता या कोई पार्टी सड़को में चिकता चिल्लाता रहे कि उसके वोट देने का सवैंधानिक अधिकार के साथ गलत हुआ है | अथवा वोट का लेन देन में घोटाला हुआ है | क्योंकि न किसी वोटर के पास ऐसी जानकारी उपलब्ध वाला खाता है और न ही किसी पार्टी के पास है | इसलिए मेरा तो साफ तौर पर यह मानना है कि वर्तमान और पहले की भी चुनाव प्रक्रिया में जान. बुझकर छल कपट का सहारा लेकर गड़बड़ी होती आ रही है | जबकि इस देश के ज्यादेतर मुलनिवासी दरसल यही चाहते होंगे की गोरो से अजादी मिलने के बाद अब मनुवादियो का शोषन से भी जल्दी से जल्दी अजादी मिले | अथवा जल्दी से जल्दी मनुवादियो का शासन समाप्त हो , और इस देश में मुलनिवासियो का शासन जल्द से जल्द  कायम हो जाय | जिसके लिए वे लगातार मनुवादियो के विरोध में संघर्ष आंदोलन भी कर रहे हैं | और वोट भी मनुवादियो के विरोध में ही सबसे अधिक कर रहे होंगे , लेकिन उनके वोट का अधिकार को गुप्त तरिके से छिनकर दरसल फर्जी चुनाव परिणाम ही पेश किये जा रहे हैं | जिसका सबसे बड़ा प्रमाण तो खुद मनुस्मृति सोच से ग्रसित मनुवादि सरकार है | जिसके शासन में इस विरोध में भी लगातार आंदोलन होते रहे हैं कि मनुवादि सरकार गुप्त तरिके से आरक्षण को भी समाप्त करने में लगी हुई है | ताकि फर्जी तरिके से सबसे अधिक सीटो पर भी कथित उच्च जातियो का ही कब्जा हो सके | लेकिन चूँकि अजाद भारत का संविधान में जिस तरह का आरक्षण मौजुद है , उसके रहते मनुवादि चाहे जितनी मनुस्मृती बुद्धी लगाकर फर्जी तरिके से सभी सीटो पर अपनी सबसे अधिक भागीदारी पेश करने की कोशिष करे जबतक आरक्षण मौजुद है , तबतक आरक्षित सीट पर उनकी मौजुदगी तो दुर उन्हे टिकट भी नही मिल सकती | क्योंकि आरक्षित सिट जिन लोगो के लिए आरक्षित होती है , उसी को ही उस सीट पर सवैधानिक तौर पर चुनाव लड़ने का अधिकार है | जिसकी वजह से जहाँ जहाँ भी आरक्षण नही है , वहाँ वहाँ ही उच्च जाति के लोग ज्यादे से ज्यादे संख्या में मौजुद हैं | जैसे कि संसदीय सीटो पर आरक्षण मौजुद है , इसलिए वहाँ पर उनकी संख्या कम है | क्योंकि आरक्षित सीट पर चूँकि उच्च जाति के लोग चुनाव नही लड़ सकते इसलिए उन सीटो को किसी भी तरिके से छिन नही सकते | हलांकि फिर भी मनुवादि पार्टी आरक्षित सीटो पर किसी घर का भेदी या फिर जी हुजूरी करने वाला किसी मुलनिवासी को टिकट देकर मनुवादि सरकार बनाने के लिए बलि का बकरा बनाते आ रहे हैं | जिन बली का बकरा बनने वालो का चेहरा दिखलाकर वोट और समर्थन ली जाती है | हलांकि बलि का बकरा बनाने में भी मनुवादि कामयाब नही होंगे यदि आरक्षित सीटो में दलित आदिवासियो को ही सिर्फ आरक्षण का लाभ मिलने के बजाय पिछड़ी जाती और धर्म परिवर्तन किये उन लोगो को भी  चिन्हित करके आरक्षण का लाभ मिलनी चाहिए , जिनके भी रगो में इस देश के दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासियो का ही डीएनए मौजुद है | न कि किसी मनुवादि या गोरो का डीएनए मौजुद है | बल्कि इस देश के दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासियो का डीएनए मनुवादियो के घरो में मौजुद महिलाओ में भी मौजुद है , जो बात एक विश्व स्तरीय डीएनए प्रयोग से साबित भी हो चुका है कि कथित उच्च जाती के परिवार में मौजुद सिर्फ पुरुषो के ही डीएनए से उन मनुवादियो का डीएनए मिलता है जो इस देश में बाहर से आए हैं | न कि उच्च जाती के परिवार में मौजुद महिला भी मनुवादियो के साथ में आई थी | क्योंकि उच्च जाती के घरो में मौजुद महिलाओ के डीएनए से इस देश के दलित आदिवासी और पिछड़ी जाती के महिलाओ के डीएनए से मिलान किया गया तो पाया गया कि दोनो का डीएनए एक है | जो स्वभाविक है क्योंकि इतिहास गवाह है कि बाहर से आने वाले कबिलई लुटेरे जो चाहे गोरे हो या फिर लुटेरा सिकंदर दोनो ही लुटेरी पुरुष टोली बनाकर इस देश में प्रवेश किए थे | जिस तरह मनुवादियो की भी पुरुष टोली ही इस देश में प्रवेश की होगी और बाद में इस देश में छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से सत्ता स्थापित करके और इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर अपने वंशवृक्ष तैयार इसी देश के लोगो के सहयोग से किया होगा | जिसे जोर जबरजस्ती से दास दासी बनाना कहा जाय कि मजबूर होकर अपनी मर्जी से कोई दास दासी बन रहा है कहा जाय यह बात तो दास दासी बनने वाले लोगो की हालात पर निर्भर करता है | मुझे तो मनुवादि जोर जबरजस्ती से दास दासी भी बनाते आ रहे हैं , और इस देश में जोर जबरजस्ती राज भी कर रहे हैं यह बात ज्यादे सत्य लगता है | जैसे की मुझ जैसे लोगो द्वारा बार बार यह कहा जा रहा है कि चुनाव घोटाला हुआ है या हो रहा है , लेकिन भी मुझ जैसे करोड़ो नागरिको की बातो को नजरअंदाज करके जोर जबरजस्ती से मनुवादी सरकार घोषित की जा रही है | जो बात सत्य नही तो क्या सभी नागरिको की खुशी से मनुवादि सत्ता कायम कि जा रही है इसे सत्य माना जाय ? फिर क्या लाखो करोड़ो नागरिक यू ही सड़को या ग्राम शहर सभी जगह चुनाव घोटाला और शोषन अत्याचार के खिलाफ आंदोलन संघर्ष कर रहे हैं ! क्या सभी नाच गाकर  खुशी से आंदोलन और विरोध प्रदर्शन कर रहें हैं ?  जिनकी जायज मांगो पर अभी चर्चा तो किया जाता है कि संघर्ष कर रहे लोग खासकर वे लोग जो मनुवादियो के शिकार सबसे अधिक हो रहे हैं , वे मनुवादि सरकार से काफी दुःखी पिड़ित हैं , लेकिन दुःख और पीड़ा देने वाले कारनो के बारे में सब कुछ जानकर भी कारवाई नही की जाती है , क्योंकि कारवाई करने और न्याय करने वाले उच्च पदो में मनुवादियो का जो दबदबा कायम है | जिनकी दबदबा कायम रहते हुए यह देश और इस देश के मुलनिवासियो के जिवन में तेजी से सुधार आएगा इस बात पर यकिन करना मानो बहुत सारे छेद घड़ा के भरने का इंतजार करना है | बल्कि मुलनिवासियो के ही डीएनए के धर्म परिवर्तन किए हुए जिन नागरिको को अल्पसंख्यक कहकर आरक्षण का लाभ संसद में मौजुद नही है , उनकी भी हालत दलित आदिवासियो की तरह ही गरिबी भुखमरी में ज्यादेतर अबादी जिवन गुजारा कर रही हैं , जो कि स्वभाविक है | क्योंकि उनके पुर्वज भी तो हजारो सालो से संघर्ष करते हुए धर्म परिवर्तन किये हैं | दलित आदिवासी और पिछड़ी बल्कि धर्म परिवर्तन किये हुए दलित आदिवासी और पिछड़ी जाती के एक ही डीएनए के मुलनिवासियो के बिच आपस में  फुट डालकर मनुवादि अपने दबदबा की सरकार बनाने में कामयाब होते आ रहे है | जबकी इस देश के मुलनिवासियो की वोट तादार सबसे अधिक है , लेकिन भी आजतक मुलनिवासियो की अपनी सरकार नही बन पाई है | सिर्फ मनुवादी पार्टी ही भारी बहुमत से जितती आ रही है | जिस जित को यदि सही चुनाव परिणाम मान लिया जाय की मनुवादि सरकार चुनाव घोटाला अथवा भ्रष्ट यज्ञ के द्वारा नही बल्कि वाकई में इस देश के शोषित पिड़ितो के वोटो से ही चुनी जा रही है , तो भी तो हमे इस बात पर क्या आश्चर्य नही होना चाहिए की हजारो सालो से शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादियो को इस देश के शोषित पिड़ित मुलनिवासी ही जिताते आ रहे हैं ? जो मनुवादि गुलाम और दास बनाकर शोषन अत्याचार करता है उसकी ही जी हुजूरी करना आश्चर्य नही है ? हलांकि गुलाम होकर गोरो की भी जी हुजूरी की जाती थी अब मनुवादियो की जी हुजूरी की जा रही है | क्योंकि हमे यह बात भी तो नही भुलनी चाहिए कि मनुस्मृती सोच फुट डालकर राज करने के हुनर में गोरो से कहीं ज्यादे समय से निपुन हैं | तभी तो वे हजारो साल पहले ही इस देश के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांट दिया है | जबकि बड़ई , नाई , धोबी चमार वगैरा जो दरसल हजारो हुनरे हैं , जिसके जरिये इस देश के मुलनिवासि हजारो साल पहले ही जब संभवता मनुवादि कपड़ा पहना और कृषि कार्य करना भी नही जानते होंगे उस समय भी इस देश के मुलनिवासी हजारो हुनरो में निपुन थे | जिन हजारो हुनरो के सहयोग से ही तो प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का आधुनिक विकाश हजारो साल पहले तब विकसित हुआ था जिस समय संभवता मनुवादी लोग कहीं देश से बाहर बिना घर और कपड़ो के घुमंतु लंगटा लुचा जिवन जि रहे होंगे | जो घुमंतु जिवन जिते हुए शिकारी झुंड बनाकर इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाले कृषि प्रधान देश में आए | जो इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके पहले तो उन्होने गोरो की तरह पेट पालने के लिए थोड़ी सी जगह मांगा होगा , उसके बाद धिरे धिरे अपनी कपटी सोच का प्रयोग करके और खासकर घर के भेदियो की सहायता से सत्ता में कब्जा करके वेद पुराणो में भी कब्जा किया होगा , उसके बाद ही वेद पुराणो में भी भारी मिलावट करके नायक को खलनायक और खलनायक को नायक बताकर अपने विशेष लाभ और झुठी शान के लिए ही मनुस्मृती रचना किया होगा | जैसे की जब गोरे इस देश की सत्ता में कायम हुए उसके बाद ही उन्होने बहुत सारे ऐसे नियम कानून बनाये और इतिहास में भी मिलावट किए जो उनके पक्ष में थे | जिनसे उन्हे कोई खास खतरा और हानि नही था | जैसे कि मनुवादियो द्वारा मनुस्मृती रचना करने के बाद इस देश के मुलनिवासियो को  हजारो जातियो में बांटकर जो छुवा छुत जैसे नियम कानून बने थे उससे मनुवादियो को कोई खास खतरा और हानि नही था | क्योंकि मनुवादि एक दुसरे से छुवा छुत नही करते हैं | बल्कि मनुस्मृती रचना करके एक ही डीएनए के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांटकर उन्हे अलग थलग और कमजोर करके आपस में फुट डालकर आजतक आसानी से राज करते आ रहे हैं | गोरे तो इस कृषि प्रधान देश में पेट पालने के नाम से सबसे पहले तो व्यापार करने के लिए इस विशाल देश के किसी कोने में ईस्ट इंडिया कंपनी स्थापित किया , उसके बाद धिरे धिरे उसे लुट इंडिया कंपनी में तब्दील करके फुट डालकर दो सौ सालो तक राज किया | पर मनुवादि तो इस देश के मुलनिवासियो को हजारो जातियो में बांटकर हजारो सालो से छुवा छुत राज करते आ रहे हैं | भले कुछ समय तक एक बाहरी डीएनए के साथ दुसरे बाहरी डीएनए का गैंगवार होने के कारन गोरे जैसे दुसरे विदेशी डीएनए के लोगो ने भी इस देश में राज किया है | जिसकी जानकारी इतिहास में भरे पड़े हैं कि इस कृषि प्रधान प्राकृति समृद्ध देश में हजारो सालो से अनगिनत कबिलई हमलावर लुटपाट करने के लिए किस तरह से और कब कब आते रहे हैं | जिनमे से कई तो अपना पेट पालने के लिए लुटेरी झुंड बनाकर इस कृषि प्रधान देश में आकर किसी नदि नालो की तरह इस एक जगह स्थिर विशाल सागर देश में समा भी गये हैं | क्योंकि इतिहास गवाह है कि भेदभाव करने वाले सिर्फ गोरे इस देश में प्रवेश नही किये थे | जिन्होने अपने द्वार पर ये बोर्ड लगाया हुआ रहता था कि अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है | क्योंकि इतिहास इस बात के लिए भी गवाह है कि छुवा छुत की सुरुवात अथवा आविष्कार करने वाले मनुवादि सबसे पहले प्रवेश करके और सबसे अधिक समय तक इस देश के मुलनिवासियो पर राज किये हैं | जिन्होने मनुस्मृति रचना करके इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो के साथ शोषन अत्याचार करके अबतक भी मनुवादी शासन स्थापित किये हुए हैं | जो मनुवादि अपनी मनुस्मृती सोच से शोषन अत्याचार करके भी यह झुठ फैलाने में कामयाब होने की कोशिष में लगे हुए हैं कि मनुवादि भारी बहुमत से शोषित पिड़ितो के द्वारा ही चुने जा रहे हैं | और शोषित पिड़ितो की सेवा करके फिर से उसी तरह की सेवा करने के लिए मनुवादी सरकार दोहराई गयी है | जिसका चुनाव परिणाम भी भारी बहुमत से जीत का दिखलाया जा रहा है | जो दरसल पुरी सच्चाई को न दिखलाकर फर्जी जानकारी ही दी जा रही है | जैसे की रामराज सबसे श्रेष्ट शासन था इसका प्रमाण भी राम की आरती उतारकर अबतक फर्जी जानकारी ही बांटा जाता रहा है | जबकि सत्य तो यही है कि न तो रामराज में शंभुक प्रजा की बेहत्तर सेवा और सुरक्षा हो रही थी और न ही वर्तमान की भी अपडेट  मनुवादी शासन में अपडेट शंभुक प्रजा के साथ बेहत्तर सेवा सुरक्षा हो रही है | जिस तरह के बुरे हालात में अच्छे दिन आंऐंगे पर विश्वास करना भी बहुत बड़ा भ्रम का शिकार होना है | क्योंकि मनुवादि शासन में कैसे सत्य मान लिया जाय कि इस देश के शोषित पिड़ित और कमजोर कहे जाने वाले मुलनिवासी ही बार बार उसी मनुवादी शासन को लाना चा रहे होंगे जिससे वे शोषित पिड़ित हैं | दरशल सिर्फ लगातार झुठ फैलाये जा रहे हैं कि छुवा छुत शासन में ही शंभुक प्रजा सबसे अधिक सेवा और सुरक्षा प्राप्त करती आ रही है | इसलिए भेदभाव करने वालो को ही अपना श्रेष्ट सेवक बार बार चुने जा रहे हैं | जिन बातो को जानने वाले मुलनिवासि जाहिर है मेरे विचार से अब भी ज्यादेतर भाजपा कांग्रेस के खिलाफ ही वोट कर रहे होंगे | क्योंकि भले 1950 ई० को संविधान प्रभावी हुआ था , उसके बाद 1951-52 में पहली लोकसभा चुनाव भी हुआ , और उस समय भी भारी बहुमत से मनुवादियो की पार्टी ही मेरे ख्याल से छल कपट और फर्जी तरिके से ही जिती थी | जिसके बाद स्वभाविक तौर पर ब्रह्मण जवाहर लाल नेहरु को देश का पहला प्रधान सेवक बनाया गया था और सभी राज्यो के मुख्यमंत्री भी कथित उच्च जाती के ही थे | क्योंकि इतिहास गवाह है कि इस देश में संविधान लागू होने से पहले ही इस देश में वापस मनुवादियो का दबदबा कायम हो चुका था , और गोरो से अजादी मिलने के बाद  मनुवादि ही यह तय करने लगे थे कि इस देश को अब किसके हाथो और कैसे चलाना है | जिसका सबसे बड़ा उदाहरण पुणे में हुई गाँधी और अंबेडकर के बिच समझौता है , जो दरसल मनुवादियो के द्वारा अपनी मनमर्जी फैशला जबरजस्ती थोपा गया था | जो फैशला अजाद भारत का संविधान लागू होने से पहले ही 1932 ई० में  लिए गए थे | जो दरसल यह तय करना था कि भविष्य में गोरो का शासन समाप्त होने के बाद अब मनुवादियो की मर्जी से क्या क्या होना है ? क्योंकि इतिहास गवाह है कि मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले अंबेडकर तक को भी मनुवादि अपनी मनुस्मृती हुनर से फैशला बदलवाने पर मजबूर कर सकते थे | जिसके चलते ही तो आजतक मनुवादियो को इस देश की शासन से हाथ धोने के लिए मजबूर होना पड़े ऐसी चुनाव परिणाम आजतक भी नही आ पाए हैं | क्योंकि बहुत से फैशले आज भी मनुवादियो द्वारा बदलवाये जा रहे हैं | जिसके चलते ही तो निश्चित तौर पर मनुवादि लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम अपनी दबदबा का भरपुर उपयोग करके चुनाव परिणाम को बदलकर अबतक गलत चुनाव परिणाम ही पेश करते आ रहे हैं | जिसमे जिन मुलनिवासियो ने भाजपा कांग्रेस को वोट नही डाला होगा उसकी भी वोट भाजपा या कांग्रेस के खाते में ही जोड़ ली जाती होगी | जैसे की इस देश के बहुत से मुलनिवासियो की जमिने भी फर्जी और छल कपट का सहारा लेकर अपने नाम किए जाते रहे हैं | जो कुकर्म जाहिर सी बात है कि गोरो से अजादी मिलने के बाद जो दबदबा वापस मनुवादियो के हाथो आई है , वह हमेशा कायम रहे इसके लिए ही तो मनुवादि हर लोकसभा चुनाव में  वोट में बेईमानी करके खुदको जिताते आ रहे हैं | सिर्फ नाम मात्र के लिए चुनाव में ईमानदारी बरती जाती होगी | जैसे की गोरे भी इस देश को गुलाम करके शासन करते समय कई नियम कानून इस देश के लोगो की भलाई और विकाश के लिए भी बनाये होंगे , जिनमे से हजारो नियम कानून तो अब भी लागू हैं | जो गोरे शासन में भी इस देश के लोगो को भागीदारी देकर बहुत से भलाई का कार्य भी करने की दिखावा कर रहे होंगे | जिसे यह भी कहा जा सकता है कि बिड़ी सिगरेट का उद्योग लगाकर एक दो कैंसर का अस्पताल भी खोला जाता रहा होगा | जिसे ईमानदारी कतई नही कही जा सकती | जैसे की मनुवादियो की शासन में भी चुनाव परिणाम में थोड़ी बहुत दिखावे की ईमानदारी बरती जा रही होगी उसे भी ईमानदारी से कराई गई चुनाव कतई नही कही जा सकती है | क्योंकि सत्य झुठ को तौलकर ही ये तय की जाती है कि किसका पलड़ा ज्यादे भारी है | तभी तो न्यायालय में सत्य झुठ को तौलकर फैशला सुनाने वाले जज के पास चिन्ह के तौर पर सत्य न्याय का तराजू को दिखलाया गया है | जिस सत्य न्याय तराजू में जिसका पलड़ा ज्यादे भारी रहता है उसे ही सत्य माना जाता है | जैसे की लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में दबे कुचले कमजोर कहे जाने वाले इस देश के मुलनिवासियो की भागीदारी न के बराबर है | जिसे जानते हुए कोई भी सत्य इंसाफ करने वाला व्यक्ती यह कह सकता है कि वर्तमान में मनुवादियो की शासन कायम है इस बात का पलड़ा भारी है | लेकिन भी जिन लोगो का मानना है कि अजाद भारत का संविधान लागू रहने की वजह से सचमुच में ईमानदारी से चुनाव हो रहे होंगे , क्योंकि गोरो के शासन समाप्ती के बाद यह देश अब संविधान से पुरी तरह से चल रहा है | जिस संविधान में मिले वोट का अधिकार का प्रयोग करके ही भाजपा और कांग्रेस दोनो ही दो दो बार भारी बहुमत से भी लोकसभा चुनाव जित चुके हैं तो उस जित को ईमानदारी से सवैंधानिक जीत मानने वालो को इस बात पर भी विश्वास करना होगा कि भष्म मनुस्मृती का भुत अजाद भारत का संविधान की रक्षा और बेहत्तर तरिके से उसे लागू करते हुए इस देश में इतने अच्छे से चुनाव और शंभुक प्रजा सेवा हो रहे हैं कि अबतक एकबार भी उन पार्टियो की सरकार भारी बहुमत से नही चुनी गई है , जिसका गठन दबे कुचले कमजोर माने जाने वाले मुलनिवासियो के द्वारा हुई है |

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