मनुस्मृती रचना करने वालो ने खुदको जो जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया हुआ है , वह दरसल फर्जी घोषना है

मनुस्मृती रचना करने वालो ने खुदको जो जन्म से विद्वान पंडित घोषित किया हुआ है , वह दरसल फर्जी घोषना है 
क्योंकि वेद सुनने पर कान में गर्म शीसा डालने वाला और वेद बोलने पर जीभ काटने जैसा अन्याय अत्याचार करने वाले को जन्म से वीर क्षत्रीय अथवा रक्षक घोषित करना फर्जी नही तो क्या है ! लंगटा लुचा कुबेर जिसके पिता के पास अपना एक पक्का मकान तक नही था , वह दुसरे के द्वारा धन प्राप्त करके और सोने की लंका को लुटकर धन्ना कुबेर वैश्य कहलाया वह अमिरी क्या सचमुच की अमिरी है ? जैसे कि अली बाबा और चालिस चोर की कहानी में जो चालिस चोर मिलकर प्रजा की धन दौलत को चोरी करके अपना काला गुफा भरते रहते हैं , वह अमिरी क्या फर्जी अमिरी नही थी ! जिसे खुल जा सिमशिम कहकर चालीस चोर अपना फर्जी अमिरी दिखाकर यदि जिनके धन की चोरी करके वे फर्जी अमिर बने हैं , उन्ही को गरिब करके अपनी फर्जी अमिरी दिखला रहे हैं , तो उसी तरह का अमिर बनने का सपना अपना धन लुटाकर या चोरी होकर गरिब बनी प्रजा को चालीस चोरो की ही तरह अमिर बनने का सपना कभी भी नही देखना चाहिए | न तो खुद देखना चाहिए और न ही अपने बच्चो को चालीस चोर की तरह अमिर बनो यह भ्रष्ट आचरण बांटना चाहिए | बल्कि अपना जो धन चोरी हुआ है या अपने हक अधिकारो की छिना झपटी हुई है , उस असली अमिरी को वापस हासिल करने का सपना देखना चाहिए | जिस अमिरी में न जाने कितने कबिलई लुटेरो की नजर हजारो सालो से टिकी हुई है | जिस असली अमिरी को मिल जुलकर वापस लेने की सोचनी चाहिए | अथवा इस देश के मुलनिवासियो को मनुवादियो से अपनी सत्ता वापस लेकर सोने की चिड़ियाँ की असली अमिरी को वापस लाने की सपना को हकिकत में तब्दील करने की संघर्ष मिलकर करनी चाहिए | क्योंकि दुसरो के हक अधिकारो को लुटकर धन्ना बनने वाले दरसल फर्जी धन्ना होते हैं | सारांश में दरसल मनुवादी लोग मनुस्मृती सोच अथवा छुवा छुत शोषन अत्याचार और दुसरे की हक अधिकारो पर कब्जा करने वाली हुनर से न तो जन्म से असल विद्वान पंडित हो सकते हैं , न जन्म से असल वीर रक्षक हो सकते हैं , और न ही असल धन्ना हो सकते हैं | जो बनने के लिए उन्हे मनुस्मृती में मौजुद गंदी भ्रष्ट सोच को सबसे पहले मल मूत्र की तरह त्यागना होगा | जिसे वे हजारो साल बाद भी आजतक नही त्याग पाये हैं | सायद वे किसी काल्पनिक फिल्म पीकू के एक लाईलाज बिमारी से ग्रसित मरिज की तरह अपनी मनुस्मृती सोच की बिमारी को भी समझ रहे होंगे कि मनुस्मृती सोच को मल मूत्र की तरह त्यागने के बाद मनुवादियो कि जिवन खतरे में पड़ जायेगी | जबकि रिल पीकू का पात्र और रियल मनुवादियो का पात्र में जमिन आसमान का फर्क है | हलांकि मनुस्मृती सोच को भी त्यागकर सचमुच में कथित जन्म से उच्च जाति कहलाने वाले जन्म से न तो विद्वान पंडित हो सकते हैं , न जन्म से वीर क्षत्रिय अथवा रक्षक हो सकते हैं , और न ही जन्म से धन्ना वैश्य हो सकते हैं | जो फिलहाल यदि हो रहे हैं तो ये मनुस्मृती का ढोंग पाखंड और अँधविश्वास से भरे पड़े नियम कानून द्वारा ही फर्जी उपाधि उन्हे लगातार मिल रही है | जिसके चलते मनुवादि सोच को वे मल मूत्र की तरह कभी नही त्यागेंगे भले उन्हे मल मूत्र को लंबे समय से न त्यागने से होनेवाली बहुत बड़ी हानि से भी बड़ा हानि मनुस्मृति सोच से होता रहे | जिस मनुस्मृती फर्जी सोच की वजह से इस कृषी प्रधान देश की भूमि को और इस देश के मुलनिवासियो की जिवन को भी छुवा छुत जैसी भ्रष्ट बिमारी आज भी मानो बंजर करते जा रही है | और चूँकि मनुवादि सरकार  की भी चुनाव परिणाम डिग्री फर्जी है , जिसके चलते जाहिर है कि मनुवादी सरकार भी देश और प्रजा सेवा में निपुन न रहने की वजह से फर्जी अथवा भ्रष्ट  कार्य ही ज्यादा करेगी और कर भी रही है | क्योंकि मनुवादी सोच ही इतना बड़ा भ्रष्ट सोच है कि मनुवादि आजतक भी छुवा छुत की मांसिकता से पुरी तरह से बाहर नही निकल पाए हैं | जिनको छुवा छुत की भ्रष्ट सोच से बाहर कैसे निकाला जाय इसका प्रयोग आज भी इस देश के साथ साथ पुरी दुनियाँ में जारी है | जिसके लिए विश्व स्तरीय डीएनए जाँच तक भी करके मनुवादियो की छुवा छुत जैसे भ्रष्ट मांसिकता के बारे में वैज्ञानिक तरिके से पता करने की कोशिष हो चुकि है कि आखिर कथित उच्च जाती के कहलाने वाले ही इस कृषी प्रधान देश में इस देश के मुलनिवासियो के साथ हजारो सालो से छुवा छुत क्यों करते आ रहे हैं ? जाहिर है मनुवादियो के भ्रष्ट बुद्धी से भेदभाव की मनुस्मृती गंदगी बाहर निकलने से पहले वे अपनी मनुवादि सोच की सरकार से देश और दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासी प्रजा की सेवा बेहत्तर तरिके से कभी नही कर सकते | जैसे की मानो गोरे इस देश को गुलाम करके न्यायालय में जज बनकर कभी बेहत्तर न्याय कर पाते | जो गोरे बेहत्तर न्याय फैशला सुनाते हुए ही दो सौ सालो तक इस देश में न्याय पूर्वक शासन किए इस बात पर यकिन करना वैसा ही है जैसे की गोरो के जाने के बाद जो मनुवादी शासन कर रहे हैं वे इस देश के मुलनिवासियो के साथ भारी भेदभाव शोषन अत्याचार करके भी उनके ही भारी वोटो से दुबारा से न्याय पूर्वक चुनकर आ रहे हैं | और अजाद भारत का संविधान की रक्षा और उस संविधान में इस देश के मुलनिवासियो को मिले विशेष हक अधिकारो मान सम्मान की रक्षा करने के लिए न्यायालय में सबसे अधिक जज भी बन रहे हैं | जिस बात पर विश्वास करना भी बहुत बड़ा अँधविश्वास है | क्योंकि हम यह कतई नही कह सकते कि इस देश के मुलनिवासियो में जो भी वोटर मनुवादियो द्वारा शोषन अत्याचार का शिकार होकर खुदको भितर से अब भी दबे कुचले और कमजोर समझते हैं , वही लोग ही बहुत बड़ी इस भ्रम में पड़कर मनुवादि सरकार चुन रहे होंगे कि मनुवादियो की पार्टी को ही चुनकर सबसे ताकतवर सरकार बनेगी , जो दबे कुचले कमजोर लोगो का सबसे बड़ा रक्षक बनेगी और उन्हे न्यायालय में सबसे अधिक जज भी चुनकर अन्याय अत्याचार कम होगा | जो भ्रम वाकई में यदि होगी भी तो दरसल हजारो सालो से मनुवादियो के द्वारा दबाये और कुचले जाने की वजह से ही होगी | जैसे की अभी की अपडेट शंभुक प्रजा द्वारा भी यदि वाकई में यह विश्वास कर लिया जाता है कि रामराज दुनियाँ का सबसे श्रेष्ट रक्षक शासन है | जिस बात पर विश्वास करना भी असल में बहुत बड़ा भ्रम ही है | लेकिन भी यदि दबे कुचले और कमजोर कहे जाने वाले वर्तमान की भी अपडेट शंभुक प्रजा मनुवादियो के द्वारा फैलाई गई ढोंग पाखंड से भ्रमित होकर रामराज लाने के लिए जय श्री राम कहकर मनुवादियो की पार्टी को ही भारी तादार में वोट कर रहे होंगे तो निश्चित तौर पर मनुवादियो की पार्टी को जिताने वाले दरसल अँधविश्वास के नशे में इतने डुब चुके हैं कि उनको खुद होश नही है कि मानो जो शिकारी शेर अपने खुनी पंजो से उन्हे दबोचकर अपने खुंखार जबड़ो के जरिये अपने पेट में भक्षन करने ले जा रहा है , उसे ही वे बार बार अपना सेवक और रक्षक चुन रहे हैं | जो दरसल शंभुक प्रजा का भक्षन करके सेवा नही बल्कि शंभुक प्रजा से ही खुदकी खास सेवा कराकर मेवा खाना जारी रहेगा | कई दसक तक कांग्रेस बार बार चुनाकर राज करते आई , उसके बाद अब कई दसक तक भाजपा  राज करेगी | या फिर से कांग्रेस राज करेगी इसकी तैयारी मनुवादियो ने भ्रष्ट यज्ञ करके तय कर लिया है | दोनो ही पार्टी मनुवादियो की खास पार्टी है | जिन दोनो में जो भी चुनाव जिते मनुवादी सरकार ही कायम होती है | बल्कि रामराज का अपडेट कांग्रेस भाजपा राज भी नई सदी का सबसे श्रेष्ट राज था यह झुठ फैलाकर वर्तमान के भी अपडेट मनुवादि शासक और उनके शासन में शामिल खास सहयोगी घर का भेदि इन सभी का भी आरती उतरवाने की तैयारी चल रही हैं | हलांकि भविष्य में घर के भेदियो का आरती उतारी जायेगी की मनुवादियो से अजादी पाने की लड़ाई में उन्हे गद्दार घोषित करके उनकी इज्जत उतारी जायेगी यह तो भविष्य की वह नई पिड़ी तय करेगी जिसके नेतृत्व में मनुवादी सरकार नही बल्कि मुलनिवासियो की सरकार बनेगी | जो फिलहाल तो मनुवादियो की शासन में भेदभाव भ्रष्ट यज्ञ में घोषित होता आ रहा है कि कौन लोग इस देश में शासन करने और संविधान की रक्षा करने के लिए भी सबसे अधिक काबिल हैं | जिस भ्रष्ट यज्ञ के जरिए मनुवादि शासन में क्या क्या और कितने सारे कुकर्म हो रहे हैं , उसकी सच्चाई सामने लाने के बजाय उससे ध्यान भटकाने के लिए बहुत सारे यैसी ऐसी घटनायें भी दोहराई जाती है , और जा रही है जिसकी सिर्फ चर्चा करके मानो पहली चिख पुकार की आवाज को दुसरी चिख पुकार से दबा दी जाती है | चिख पुकार किसलिए आ रही है उसके निवारण पर कभी भी इस मनुवादि शासन में समाधान नही निकलेगा | जिस चिख पुकार में बड़ौतरी के लिए सबसे अधिक मनुवादी मीडिया और ढोंगि पाखंडियो का इस्तेमाल होगा बल्कि हो रहा है | जो बहुत सारी झुठ फैलाकर मनुवादि शासन को मानो स्वर्णकाल साबित करने में लगी हुई है | जैसे की रामराज में भी झुठ फैलाकर आज भी शंभुक प्रजा द्वारा उस राजा राम की आरती उतरवाई जाती है जिसने शंभुक प्रजा की हत्या इसलिए किया था , क्योंकि रामराज में वेद ज्ञान शुद्रो के लिए मना रहने के बावजुद भी शंभुक ने वेद ज्ञान ले लिया था | जिसके कारन जैसे ही राम को पता चला कि इस देश के मुलनिवासियो को वेद ज्ञान में पाबंदी है , इसके के बावजुद भी शंभुक ने वेद ज्ञान हासिल कर लिया है , तो उसे मौत की सजा दे दिया गया था | वैसे जिस राम ने अपने बिवी बच्चो के साथ भी अन्याय किया हो उससे शंभुक प्रजा को न्याय मिलता यह सोचना ही बेकार है | जिस रामराज को अपना आदर्श मानने वाले मनुवादियो को शंभुक प्रजा के द्वारा जय श्री राम कहकर अपना रक्षक चुनना अँधभक्ती ही तो है | खासकर वर्तमान में भी यदि वाकई में मनुवादी सरकार दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासियो द्वारा चुनी जा रही होगी | हलांकि रामराज में खुद राजा राम भी सुरक्षित नही था | जिसके कारन वह भी अति दुःखी होकर प्रजा और राजगद्दी को छोड़कर जिते जी सरयू नदी में डूबा और रानी सीता भी अति दुःखि होकर जिते जी धरती पर समा गयी थी | बल्कि सबका संकट मोचन और सबसे अधिक बलशाली कहलाने वाला रामभक्त हनुमान भी अपनी संकट मोचन और सबसे अधिक बलशाली दावो को सही साबित नही कर सका | जिसने राजा राम और रानी सीता दोनो को घोर संकटो से बाहर नही निकाल सका और स्वयं राम सीता समेत उसके दोनो बच्चे लव कुश भी अपने माता पिता के साथ सुख शांती से कभी रह नही पाये | जाहिर है हनुमान भी रामराज में प्रयोगिक तौर पर खुदको संकट मोचन साबित करके नही दिखला पाया | लेकिन भी आज दबे कुचले कमजोर कहलाने वाली शंभुक प्रजा के बिच जाकर सुबह शाम झुठे प्रवचन और प्रचार करके और विभिन्न माध्यम से सबसे श्रेष्ट रामराज और संकट मोचन हनुमान ये सफेद झुठ फैलाने में कामयाब होकर राजा राम की आरती उतरवाई जाती है | बल्कि रामराज को अपना आदर्श मानने वालो की भी भविष्य में आरती उतरवाने की तैयारी भरपुर चल रही है | जाहिर है मनुस्मृती रचना करके खुदको ताकतवर और उच्च बनाने वाले उच्च जातियो की कथित सबसे बड़ी ताकतवर पार्टी को ही वोट देकर ताकतवर सरकार बनानी चाहिए इस गुलामी सोच से ही दबे कुचले कमजोर माने जाने वाले ज्यादेतर वोटर दरसल मनुवादि मीडिया और ढोंगी पाखंडियो की झुठे बातो में आकर और अँधविश्वास में डुबकर अबतक मनुवादियो की पार्टियो को ही जय श्री राम कहकर चुनते आ रहे हैं | क्योंकि ऐसे गुलाम लोग जो मनुवादियो के द्वारा लंबे समय तक दबाये और कुचले जाने की वजह से भितर से बिल्कुल ही हार चुके रहते हैं , और अंदर का उनका यह विश्वास खत्म हो चुका रहता है कि कभी अपनी सरकार बना पायेंगे , वे ही दरसल अँधविश्वास में डुबकर मानो जान बची तो लाखो उपाय सोचकर अपने आप को हमेशा जी हूजुरी करने में सबसे अधिक खुशी महसुश करने लगते हैं | जैसे कि काल्पनिक फिल्म शोले का गब्बर को अपना अन्न धान धन वगैरा वही लोग दे रहे थे जो गब्बर को सबसे ताकतवर समझकर जान बची तो लाखो उपाय सोचकर जी हुजूरी कर रहे थे | अथवा जी हुजूरी करने वाले लोग ही दरसल जिससे गुलाम रहते हैं , उन्ही को सबसे ताकतवर समझकर मानो जी हुजूरी के बहाने अपनी वफादारी पेश करते रहते हैं | जैसे की मनुवादियो की सरकार को जो भी मुलनिवासी जी हुजूरी करके चुन रहे हैं , वे दरसल मनुवादियो को अपना वफादारी पेश कर रहे हैं | हलांकि इस तरह की बात पर हम इस समय कैसे विश्वास कर लें यह जानते हुए की गोरो के जाने के बाद इस देश में जो अजाद भारत का संविधान रचना किया गया है , उसकी रचना किसी कमजोर दबे कुचले कहलाने वाले किसी ऐसे मुलनिवासी ने ही किया है , जिसने मनुवादियो की रचना मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना किया था | जिस अजाद भारत का संविधान में दबे कुचले कमजोर लोगो को विशेष अधिकार दिया गया है | जो विशेष अधिकार यदि सभी मुलनिवासियो को सही सही मिल जाय तो अभी जो वे अपनी मूल जरुरतो को भी पुरा करने के लिए  इस देश की धन संपदा का उपयोग सबसे कम कर पा रहे हैं , या कर ही नही पा रहे हैं , उसका उपयोग मनुवादियो के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल होने के बजाय संतुलित होने लगेगी यदि संविधान में मिले विशेष अधिकार को ठीक से लागू कर दिया जाय | जिसे ठीक से लागू सरकार और कोर्ट ही करा सकती है | जिस सरकार और कोर्ट में मनुवादियो का दबदबा है | जिसे जानते हुए भी यदि वही दबे कुचले कमजोर लोग दबाने कुचलने और भेदभाव करने वालो को ही जान बुझकर अपनी सरकार चुनने के लिए अपने ताकतवर वोट का प्रयोग जी हूजूरी के लिए कर रहे हैं तो भी इस बात पर विश्वाश करने का साफ मतलब होता है कि कथित दबे कुचले कमजोर लोगो में जो भी लोग मनुवादियो की पार्टी को जान बुझकर वोट कर रहें हैं , वे दरसल गोरो की गुलामी से अजाद होने के लिए संघर्ष करने वालो से भी कहीं अधिक गुलामी मनुवादियो की कर रहे हैं | क्योंकि अजादी के लिए संघर्ष करने वालो से भी ज्यादा गुलाम दरसल वे लोग होते हैं , जो अपने आप को इतने कमजोर समझते हैं कि खुदको कभी अजाद कराना ही नही चाहते हैं | सिर्फ सारी जिवन जी हुजूरी करना चाहते हैं | जिस तरह की गुलामी वर्तमान में अजाद भारत का संविधान लागू होकर भी कैसे हो सकती है | जो अगर गलती से हो भी रही होगी तो उसमे तो दो ही सबसे बड़ी खास वजह हो सकती है , और वह है डर और गरिबी | जो जिसे भी जकड़ लेता है तो वह व्यक्ती अपनी मर्जी से कम और दुसरो की मर्जी से ज्यादे चलने लगता है | जो डर और गरिबी मनुवादियो की शासन में जबतक कायम रहेगी तबतक दबे कुचले कमजोर और गरिब लोगो में जो लोग मनुवादियो को सबसे ताकतवर मानकर उनकी जी हुजूरी करके उनकी पार्टी को वोट करके अपना वफादारी पेश करना चाहते हैं , वे काल्पनिक फिल्म का गब्बर को अन्न धान धन दान करने जैसा अपना वोट दान करते रहेंगे , न कि अपनी खुदकी सरकार बनायेंगे | हलांकि इस तरह के बुरे से भी बुरे हालात में जिस तरह की जी हुजूरी करने वाले लोग अपना किमती वोट जान बुझकर अपनी मर्जी से दे रहे होंगे इस बात पर यकिन करना वैसा ही है जैसे कि कोई दास या गरिब बंधुवा मजदूर अपनी मर्जी से सारी जिवन दास और बंधुवा मजदूरी करते रहना चाहता है | क्योंकि दास और गुलामी करना उसकी ऐसी मजबुरी बन जाती है , जिससे की उसे भ्रम होने लगती है कि जी हुजूरी करके उनकी जिवन बहुत सुरक्षित है ,  मानो अँधभक्ति करके उनकी जिवन ऐसी सुरक्षित बनी रहती है , जैसे की जंगलराज में राजा शेर के खुनी पंजो से दबोचवाकर खुंखार जबड़ो के जरिये शिकारी के पेट में शिकार की प्राण सुरक्षित रहती है | ऐसा भ्रम दरसल अँधभक्ती की वजह से हर समय गुलामी करते समय किसी बलि का बकरा बने शिकार को ही होती रहती है | जो मानो शिकारी शेर को अपना ताकतवर राजा सोचकर चुनते रहता है | जिस तरह के दास और गुलाम महसुश करके यदि ज्यादेतर मुलनिवासी  बार बार मनुवादियो की सरकार चुन रहे हैं , फिर तो चुनाव में मनुवादियो का डर और खौफ पैदा करने के साथ साथ शंभुक प्रजा को सबसे सुरक्षित रखने का झुठी लालच भी खुब बांटा जा रहा होगा | यानी झुठे लालच देकर भी वोट लिए जा रहे होंगे और दबे कुचले कमजोर हिम्मत हारे हुए लोग कथित ताकतवर कहे जाने वाले मनुवादियो की पार्टी को ही सबसे ताकतवर कहकर उसे ही चुन रहे होंगे | और मनुवादि लोग बार बार तुम कमजोर दबे कुचले लोग शासक बनकर इस देश में शासन नही बल्कि मनुवादियो की जी हूजूरी सेवा करो तभी सबसे अधिक सुरक्षित रहोगे यही भावना हर बार के चुनाव में प्रचार प्रसार करके मनुवादी मीडिया और ढोंगी पाखंडियो के जरिये इस देश के ज्यादेतर मुलनिवासियो के बिच फैलाया जा रहा होगा | अथवा बार बार मनुवादि भ्रमित करने में कामयाब होते रहे होंगे | जिसके बाद जी हूजुरी करते हुए मुलनिवासी जी मालिक जी मालिक करते हुए अपना वोट मनुवादियो की पार्टी को देकर अपना वफादारी साबित कर रहे होंगे | वैसे जग जाहिर है कि बलि का बकरा और बकरी भी कसाई द्वारा दिए गए हरी हरी पत्ती घांस वगैरा से लालचाकर बकरे और बकरी दोनो ही हरी हरी घांस को पेटभर चरने के बाद भी आसानी से खुदको बली दे देते हैं | बल्कि उससे भी बुरे हालात के बारे में मैने बुजूर्गो से पुरानी बाते सुना और पढ़ा भी है कि इस कृषी प्रधान देश में बाहर से आए मनुवादियो ने अँधविश्वास और ढोंग पाखंड को इतनी गहराई तक घुसा दिया हैं कि पहले तो दबे कुचले कमजोर कहलाने वाले मुलनिवासी डीएनए के ही मासुम बच्चियो को ढोंगि पाखंडियो द्वारा इतना अधिक ब्रेनवाश किया जाता था कि वे अँधविश्वास में डुबकर अपना प्राण तक देने के लिए खुद सज धजकर रुप श्रृंगार करके खुदको बलि दिलवाने के लिए ढोंगी पाखंडियो द्वारा तय किया हुआ बलि स्थान में चली जाती थी | जिसे भी बहुत तरह की लालच दी जाती थी | बल्कि आज भी कहीं कहीं पढ़ने सुनने को मिलती है कि कुँवारी कन्याओ की बलि देने की प्रथा अभी भी लुका छिपी जारी है | जिसके बारे में चर्चा होती रहती है | हलांकि पहले तो अँधविश्वास में डुबकर देवदासी बनना भी आम बात मानी जाती थी | बल्कि आज भी अँधविश्वास और ढोंग पाखंड डीजिटल रुप से अपडेट होकर मनुवादि मीडिया के रुप में भी नया रुप ले चुका है | जहाँ पर देवदासी बनाने और कुँवारी कन्याओ की बलि देने की प्रथा नया अपडेट होकर डीजिटल तरिके से ब्रेनवाश करके ढोंग पाखंड और शोषन अत्याचार को बड़ावा दी जा रही है | जाहिर है जमाना बदल गया है कहकर भी दुसरे तरिके से बलि ली जा रही है | जैसे कि अँधविश्वास में डुबोकर और फिर दासी बनाकर बहुत सी लालच देकर बलि ली जाती है | और बलि लेने वालो को जान बुझकर अपनी बलि देकर कथित डीजिटल देवो की आरती उतारना अति गुलामी ही तो है | जैसे की देवो को अपना पुर्वज मानने वाले मनुवादियो की पार्टी को वोट देना भी गुलामी ही है |

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