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शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

दरसल हिन्दु धर्म की बुराई इस देश के मुलनिवासियो को अपना धर्म परिवर्तन कराने के लिए सोची समझी रणनिती के तहत किया जा रहा है

दरसल हिन्दु धर्म की बुराई इस देश के मुलनिवासियो को अपना धर्म परिवर्तन कराने के लिए सोची समझी रणनिती के तहत किया जा रहा है 

इसलिए भी इस देश के खासकर उन मुलनिवासियो को हिन्दु धर्म का बुराई सुनते पढ़ते और देखते समय धर्म परिवर्तन करने से पहले एकबार इस बारे में विचार जरुर कर लेनी चाहिए कि जिन मनुवादियो के द्वारा ढोंग पाखंड और छुवा छुत करके हिन्दु धर्म की बुराई करने का अवसर दिया जा रहा है , उन मनुवादियो का डीएनए यहूदियो से क्यों मिलता है | बल्कि यहूदियो के पूर्वज और मुस्लिम तथा ईसाई धर्म को जन्म देने वालो का पूर्वज भी एक माने जाते हैं | क्योंकि अब्राहम को यहूदी, मुस्लिम और ईसाई ये तीनो धर्मों के लोग अपना पितामह मानते हैं | जिन तीनो धर्मो में अपना धर्म परिवर्तन करके जाने वाले इस देश के मुलनिवासी अपना पितामह किसे मानते हैं ? क्योंकि इन तीनो धर्मो का जन्म इस देश में नही हुआ है | और जहाँ पर भी हुआ है वहाँ के मुलनिवासियो ने ही यहूदि ईसाई और मुस्लिम धर्म को जन्म दिया है | जिनके डीएनए से इस देश के मुलनिवासियो का डीएनए नही मिलता है | बल्कि यहूदियो का डीएनए से इस देश में बाहर से आए मनुवादियो का डीएनए जरुर मिलता है | वह भी सिर्फ मनुवादियो के परिवार में मौजुद पुरुषो का डीएनए यहूदियो से मिलता है | जिन यहूदियो के मूल पूर्वज अब्राहम माने जाते हैं | जो कि मुस्लिम और ईसाई के भी मूल पूर्वज माने जाते हैं | बल्कि तीनो धर्मो के अवतार भी आदम से लेकर मूसा तक एक ही माने जाते हैं | जिन तीनो धर्मो का संगम स्थल विदेश में मौजुद जेरुशलम है | जो कि यहूदियो का मातृभूमि , ईसाईयो का कर्मभूमि और मुस्लिमो के लिए भी जेरुशलम खास माना जाता है | चूँकि मुस्लिमो का ऐसा मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने स्वर्ग प्रस्थान जेरुशलम से ही किया था | इसलिए जेरुशलम यहूदि ईसाई और मुस्लिम तिनो धर्मो का सबसे खास स्थल है | जिन तीनो धर्मो के मुल पुर्वज अब्राहम माने जाते हैं | फिर भी दुनियाँ में सबसे अधिक धार्मिक खुन खराबा वाद विवाद इन्ही तीन धर्मो के बिच सैकड़ो हजारो सालो से चल रहा है | जो आपसी खुन खराबा विवाद आजतक भी नही सुलझा है | बल्कि आपस में खुन खराबा विवाद करते करते हिन्दुस्तान में भी घुसकर और अपने धर्मो से इस देश के मुलनिवासियो को भी जोड़कर उन्हे भी आपसी खुन खराबा विवाद में शामिल करना जारी हैं | जिस आपसी खुन खराबा विवाद के आग में जो कि हजारो सालो से इन तीनो धर्मो के बिच लगी हुई है , उसमे घी डालने का काम यहूदि डीएनए के ही मनुवादि खुदको कट्टर हिन्दु कहकर करते आ रहे हैं | जो कि स्वभाविक भी है | क्योंकि बाहर से प्रवेश करने वाले मनुवादियो और बाहर से प्रवेश करने वाले धर्मो के आपसी विवाद की वजह से ही तो इस देश के मुलनिवासी आपस में बंटकर कभी नही खत्म होनेवाली खुन खराबा विवाद में खुदको भी शामिल करते जा रहे हैं | जबकि इस कृषि प्रधान देश में मनुवादियो और कई धर्मो के प्रवेश करने से पहले कोई भी धार्मिक विवाद और छुवा छुत शोषन अत्याचार , गुलाम दास दासी बनने जैसी बुरे हालात कभी नही थे | यू ही इस देश को विश्वगुरु नही कहा जाता है ! तब इस देश के मुलनिवासी बिना कोई धार्मिक खुन खराबा वाद विवाद और उच्च निच छुवा छुत ढोंग पाखंड के आपस में मिल जुलकर सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे थे | जो आज कई धर्मो और जातियो में बंटकर आपस में ही लड़ मर रहे हैं | जो स्वभाविक है , क्योंकि आपस में लड़ने मरने वाले लोगो की आपसी खुन खराबा कभी न सुलझने वाला विवाद में खुदको भी शामिल जो कर लिये हैं | जाहिर है सिंधु से जुड़ा शब्द हिन्दु बाहर से आए उन कबिलई मनुवादियो का नही है जिनका डीएनए यहूदियो से मिलता है | जिस बात पर इस देश के मुलनिवासी जिन्होने अपना धर्म परिवर्तन किया है , या करने की सोच रहे हैं , वे पहले गंभिरता पूर्वक विचार जरुर करें तब मनुवादियो को कट्टर हिन्दु कहें | क्योंकि जो यहूदि अपना मातृभूमि जेरुशलम को मानते हैं , उन यहूदियो का डीएनए से ही मनुवादियो का डीएनए मिलता है | हलांकि इस देश के मुलनिवासियो का ही डीएनए की नारी से परिवारिक रिस्ता जोड़ने वाले मनुवादि अपना मातृभूमि इस देश को मानते हैं , इसलिए यहूदियो और मनुवादियो की मातृभूमि अलग अलग होना स्वभाविक है | क्योंकि विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से यह बात साबित हो चुका है कि यहूदि डीएनए के ही विदेशी मनुवादि सिर्फ पुरुष झुंड बनाकर  हजारो साल पहले इस देश में प्रवेश तो किए थे , पर उसके बाद इस देश की नारी के साथ रिस्ता जोड़कर और इस देश को भारत माता और वंदे मातरम् कहकर इस धरती को अपना मातृभूमि कहना भी सुरु किया है | हलांकि उसी माता के साथ ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी कहना भी सुरु करके उसके साथ छुवा छुत शोषन अत्याचार करना भी सुरु किया | जो भी स्वभाविक है , क्योंकि भारत माता के डीएनए से मनुवादियो का डीएनए नही मिलता है | और वैसे भी बाहर से आनेवाले विदेशि पुरुषो द्वारा इस देश की महिला से परिवार बसाने के बाद जन्मे मनुवादियो का डीएनए इस देश के मुलनिवासियो का डीएनए से मेल कैसे खा सकता है ? हलांकि विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट आने से पहले भी इस देश के मुलनिवासी बल्कि पुरी दुनियाँ जानती थी कि इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर छुवा छुत शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादि इस देश के मुलनिवासी नही हैं | जैसे कि इस देश को गुलाम करने वाले गोरे इस देश के मुलनिवासी नही थे | जिन गोरो की तरह मनुवादि भी भेदभाव करते हैं | जो मनुवादि दरसल हिन्दु चादर ओड़कर और असली हिन्दु खुदको घोषित करके इस देश के मुलनिवासियो को उसी तरह खदेड़ना चाहते हैं , जैसे कि वेद पुराणो में कब्जा करके और उसमे अपनी मनुस्मृति बुद्धी से भारी मिलावट करके असली हिन्दुओ को उनके अपने ही हिन्दु धर्म से खदेड़ रहे हैं | बजाय इसके की शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादियो के छुवा छुत और ढोंग पाखंड मान्यता को ही हिन्दु धर्म से यह कहकर खदेड़ना चाहिए की हिन्दु धर्म छुवा छुत करना ढोंग पाखंड करना नही सिखाता है | क्योंकि जिन मुलनिवासियो ने अपनी हिन्दु पहचान देकर और इस देश में मनुवादियो को गोद लेकर हजारो सालो से अपने सर में मैला तक ढोकर विदेशी मुल के मनुवादियो के सर में समय समय पर सत्ता ताज भी पहनाया है , उसी मुलनिवासियो के साथ मनुवादियो द्वारा छुवा छुत ढोंग पाखंड शोषन अत्याचार  अबतक भी करते रहना , और मानो जिस थाली में खाये उसी में छेद करके खुदको कट्टर हिन्दु भी घोषित करना , यह तो मनुस्मृति सोच ही सिखलाती है | इस देश के मुल हिन्दु जो आपस में मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाकर बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाते हैं , वे कभी भी आपस में छुवा छुत नही करते हैं | जिन मुलनिवासियो के साथ मनुवादि पहले शोषन अत्याचार करना छोड़े | या तो फिर खुदको हिन्दु कहना छोड़ दें और मनुस्मृति को अपना पवित्र धार्मिक ग्रंथ मानकर छुवा छुत ढोंग पाखंड  को अपना मुल आदर्श मानने वाला अलग से कोई मनुवादि धर्म बना ले ! जिस मनुस्मृती को ही अपना आदर्श मानकर बुद्धी भ्रष्ट करके मनुवादियो द्वारा इस देश के वेद पुराणो में भी ढोंग पाखंड और छुवा छुत की मिलावट की गई है | वेद पुराणो में मनुस्मृति सोच की मिलावट करके , और इस हिन्द देश के असली हिन्दुओ के साथ छुवा छुत ढोंग पाखंड करके , लंबे समय से धर्म परिवर्तन करने का गंदा माहौल बनाया जाता आ रहा हैं | जो दरसल मनुवादियो के साजिश का बहुत बड़ा छल कपट फूट डालो कबिलई शिकारी नीति है | जिस कबिलई शिकारी सोच से मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में हजारो साल तक रहने के बावजुद भी अबतक परजिवी सोच से खुदको बाहर नही निकाल पाये हैं | जिसके चलते ही तो मनुवादि खुदको हिन्दु धर्म का भगवान घोषित करके मरने के बाद भी खुदकी पुजा कराने की ढोंग पाखंड रचना करके हिन्दु धर्म को बदनाम कर रहे हैं | हिन्दु धर्म जिन देवताओ की वजह से ज्यादे बदनाम है उन लापता या फिर स्वर्ग का वासी देवताओ को दरसल सिर्फ मनुवादि अपना पूर्वज मानते हैं | जिनकी आरती उतारकर पुजा कराने का विचार वेद पुराणो में मिलावट करने वाले मनुवादियो की है | क्योंकि इस देश के मुलनिवासि जो असली हिन्दु हैं , वे मूल रुप से भेदभाव करने वाले मनुवादियो की पुजा नही बल्कि मूल रुप से बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाकर उस साक्षात प्रकृति भगवान की पुजा करते हैं , जिससे सबका जिवन मरन जुड़ा हुआ है | जैसे कि सत्य का प्रतिक शिव लिंग योनी के रुप में जिस पत्थर की पुजा हिन्दु धर्म में होती है वह प्राकृति के कण कण में साक्षात मौजुद हैं | बल्कि खुद सभी धर्मो के भक्तो में भी प्रकृति साक्षात मौजुद है | जिसके बगैर कोई धर्म और धर्म भक्त ही नही बल्कि जिव निर्जिव का भी मौजुदगी नामुमकिन है | जिस प्रकृति भगवान के बारे में ज्ञान देने वाले वेद पुराण यह नही सिखलाता कि मनुवादि छोड़ कोई दुसरा वेद सुने तो उसके कान में गर्म लोहा पिघलाकर डाल दो | और वेद बोले तो उसका जीभ काट दो | जो सब बाते मनुस्मृति रचना करने वाले मनुवादियो की भ्रष्ट बुद्धी ही सिखलाती है | जिसकी मिलावट उन वेद पुराणो में की गई है , जिसकी रचना इस देश के मुलनिवासियो ने किया है | वेद पुराण अथवा जो सुनाई दे वेद ध्वनि और जो दिखाई दे पुराण | जिसे बाद में लिखाई पढ़ाई की सुरुवात होने के बाद वेद पुराणो की रचना लिखित की गई है | जिस समय ही वेद पुराणो में भारी मिलावट की गई है | जिस मिलावट की वजह से साक्षात प्रकृति भगवान की पुजा को अदृश्य और लापता देवता पुजा बतलाकर हिन्दु धर्म को मनुवादियो का धर्म बतलाया जा रहा है | हलांकि हिन्दु धर्म को मनुवादियो का धर्म बतलाकर बुराई करने वालो को यह बात कभी नही भुलनी चाहिए कि दुनियाँ का कोई भी धर्म खुदको ये साबित नही कर सकता कि उसमे एक भी बुराई और भेदभाव मिलावट मौजुद नही है | जो यदि नही होती तो सायद सभी धर्मो के धार्मिक विषयो को आपसी भाईचारे और सुख शांती जिवन जिने की ज्ञान बड़ाने के लिए विद्यालयो और महाविद्यालयो में पढ़ाई जाती | जैसे कि बाकि विषय पढ़ाई जाती है | 

छुवा छुत करने वाले असली हिन्दु हैं कि मिल जुलकर बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाते हुए छुवा छुत का शिकार होने वाले असली हिन्दु हैं ?

छुवा छुत करने वाले असली हिन्दु हैं कि मिल जुलकर बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाते हुए छुवा छुत का शिकार होने वाले असली हिन्दु हैं ? 

इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासी आज भी लाखो करोड़ो की संख्या में हर रोज कबिलई मनुवादियो के द्वारा शोषन अत्याचार का शिकार होकर धर्म परिवर्तन के लिए आखिर मजबूर क्यों किए जा रहे हैं | जिनको हिन्दु वेद पुराण का मतलब मनुस्मृती और मुल हिन्दु का मतलब मनुवादि क्यों रटाया जा रहा है | जैसे कि यहूदि का मतलब यीशु को सुली पर चड़ाने वाले और मुस्लिम का मतलब आतंकवादी और ईसाई का मतलब कई देशो को गुलाम करके लुटपाट करने वाले रटाया जाता | जिस तरह के रटा मारने वालो के लिए तो मानो सारे हिन्दु वेद पुराण और बारह माह मनाये जाने वाले हिन्दु पर्व त्योहार हमारे पूर्वजो की रचना नही है | बल्कि उन मनुवादियो की रचना है जिन्होने छुवा छुत मनुस्मृती की रचना की है , जिनके रगो में यहूदियो का डीएनए दौड़ रहा है | यानी उनकी नजर में असली हिन्दु वह है जो छुवा छुत ढोंग पाखंड करता है | और बाकि लोग मनुवादियो द्वारा गुलाम और दास दासी बनाये जाने के लिए बाद में हिन्दु बनाए गए हैं | जिससे पहले मानो वे कोई पुजा पाठ ही नही करते थे | जबकि सच्चाई ये है कि यहूदि डीएनए के मनुवादि इस देश में प्रवेश करने के बाद खुदको हिन्दु घोषित किए हुए हैं | जिसके बाद हिन्दु धर्म को कब्जा करके और मनुस्मृति लागू करके इस देश के मुल हिन्दुओ को हिन्दु वेद पुराण ज्ञान से वंचित करने का सिलसिला सुरु हुआ हैं | जिन मनुवादियो के ढोंग पाखंड और छुवा छुत से हिन्दु धर्म को मुक्त कराना चाहिए , न कि अपने धर्म को छोड़कर दुसरे धर्मो में यह सोचकर चले जाना चाहिए कि हिन्दु धर्म छुवा छुत ढोंग पाखंड करने वाले मनुवादियो का मुल धर्म है | क्योंकि हमे यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि यहूदि डीएनए के मनुवादि बाहर से आकर हिन्दु बने हैं | जिनका डीएनए यहूदियो से मिलता है | इसका मतलब साफ है कि मनुवादि विज्ञान द्वारा भी विदेशी मुल के प्रमाणित हो चुके हैं | जाहिर है चूँकि मनुवादियो का डीएनए इस देश के उन मुलनिवासियो से नही मिलता है , जिनके द्वारा प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती का निर्माण किया गया है | जो कि हजारो सालो से बारह माह मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाते हुए प्रकृति पर्व त्योहार मनाते आ रहे हैं | जिन्हे हिन्दु पर्व त्योहार कहा जाता है | न कि मनुवादियो के द्वारा रचित मनुस्मृती में मौजुद छुवा छुत और ढोंग पाखंड को हिन्दु पर्व त्योहार कहा जाता है | बल्कि विज्ञान द्वारा यह भी प्रमाणित हो गया है कि मनुवादि इस देश के न तो मुलनिवासी हैं , और न ही मुल हिन्दु हैं  | क्योंकि सिंधु नदी से सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति और सिंधु से हि हिन्दु शब्द आया है | जिस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई में मनुवादियो के पुर्वज देवताओ के मंदिर नही मिले हैं | क्योंकि इस कृषि प्रधान देश में हजारो साल पहले भी मुलता बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार और प्रकृति भगवान की पुजा की जाती थी | जिसे यदि विदेशियो द्वारा इस देश में प्रवेश करने के बाद प्रकृति भगवान पुजा को सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की पहचान से जोड़कर हिन्दु धर्म नाम दिया गया है तो इसका मतलब ये तो नही की बाहर से आए विदेशी मुल के मनुवादि असली हिन्दु हैं | हिन्दु धर्म के बारह माह मनाये जाने वाले प्रकृतिक पर्व त्योहार बाहर से आने वाले मनुवादियो का है कि इस देश के मुलनिवासियो का है , इस बारे में विचार करना खासकर इस देश के मुलनिवासियो के लिए अति जरुरी इसलिए हो गया है | क्योंकि हिन्दु धर्म को मनुवादियो का धर्म मानकर करोड़ो मुलनिवासि अपना धर्म परिवर्तन करके अपनी हिन्दु पहचान को मिटाकर दुसरे की पहचान से खुदको जोड़ने के लिए अपने पुर्वजो की रचना वेद पुराणो को भी मनुवादियो की रचना बतला रहे हैं | दरसल विदेशी मुल के लोगो द्वारा इस देश के मुलनिवासियो को विभिन्न धर्म जातियो में बांटकर आपस में लड़ाये जा रहे हैं | जिसपर गंभीरता से इस देश के मुलनिवासियो को विचार करने के बजाय आपस में ही लड़ मर रहे हैं | जबकि उन्हे पता है कि सिंधु से जुड़ा हिन्दु शब्द और हिन्दुस्तान में बारह माह मनाये जाने वाला प्राकृतिक पर्व त्योहार विदेशी मुल के मनुवादियो की देन नही बल्कि इस देश के मुलनिवासियो का देन है | जिसके बारे में सोच विचार करके आपस में ही लड़ने मरने वाले इस देश के मुलनिवासियो को सिधी सी बात अबतक समझ जानी चाहिए थी कि मनुवादि जब विदेशी मुल के हैं , अथवा सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति के मुलनिवासी नही हैं , वे मुल हिन्दु कैसे हो सकते हैं | अथवा जिस सिंधु से हिन्दु शब्द आया है , वह हिन्दु मनुवादि कैसे हो सकते हैं | जैसे कि यदि कोई गोरा इस देश में प्रवेश करके हिन्दु बनेगा या बना होगा तो वह मुल हिन्दु कैसे कहलायेगा ? बल्कि धर्म परिवर्तन करके हिन्दु बना हिन्दु कहलायेगा | जिस धर्म परिवर्तन करके हिन्दु बनने वाले का हिन्दु वेद पुराण रचना कैसे हो जायेगी | निश्चित तौर पर मनुवादि चूँकि मुल हिन्दु नही है , इसलिए हिन्दु वेद पुराण भी मनुवादियो द्वारा नही बल्कि इस देश के मुल हिन्दु अथवा इस देश के मुलनिवासियो द्वारा  रचि गयी है | बल्कि हिन्दु धर्म के वेद पुराणो में मौजुद बहुत सी सत्य जानकारी इसी देश में जन्मे बौद्ध और जैन दोनो धर्मो में भी मौजुद है | जो कि स्वभाविक है , क्योंकि उन दोनो धर्मो को जन्म देने वाले भी हिन्दु थे | जिन्हे भी हिन्दु वेद पुराणो का ज्ञान निश्चित तौर पर होगी ही | जैसे की बौद्ध धर्म और जैन धर्म उदय होने से पहले बुद्ध और महावीर को भी हिन्दु वेद पुराणो और बारह माह मनाई जानेवाली हिन्दु पर्व त्योहारो के बारे में जानकारी जरुर होगी | जिस वेद पुराणो में कब्जा करके मनुवादियो द्वारा उसपर मिलावट और छेड़छाड़ किया गया है | जैसे की गोरो ने इस देश में कब्जा करके इस देश की सभ्यता संस्कृति और इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ करने का प्रयाश किया है | क्योंकि हमे यह कभी नही भुलनी चाहिए की यह देश अब भी गोरो के द्वारा बनाई गई हजारो नियम कानून और मनुवादियो के द्वारा बनाये गए छुवा छुत और ढोंग पाखंड से पुरी तरह से अजाद नही हुआ है | इसलिए जाहिर सी बात है कि चूँकि हिन्दु धर्म के वेद पुराणो में जिन मनुवादियो द्वारा ढोंग पाखंड की मिलावट की गई है , वे अपनी पकड़ बौद्ध और जैन धर्म में भी बनाये हुए हैं , इसलिए बौद्ध और जैन धर्म में भी मनुवादियो का छुवा छुत और ढोंग पाखंड प्रभाव मौजुद है | जिस तरह की समस्या और धार्मिक वाद विवाद इस देश में प्रवेश करने से पहले इस देश ही नही बल्कि उन सभी देशो में भी मौजुद नही थी जहाँ के मुलनिवासी सबसे पहले मुलता प्राकृतिक पुजा ही करते थे | जिस समय हिन्दु धर्म समेत कोई भी धर्म किसी के भी जुबान में मौजुद नही थी | सबके लिए एक ही प्राकृति भगवान की पुजा बिना वाद विवाद के की जाती थी | क्योंकि सभी इंसानो के लिए विज्ञान द्वारा भी प्रमाणित एक सुर्य की रौशनी और जिवन की सुरुवात के लिए हवा पानी मिट्टी वगैरा एक है | भले उसे अलग अलग भाषाओ में अलग अलग नाम से जाना जाता हो , पर सबके लिए साक्षात प्रकृति भगवान द्वारा निर्मित हवा पानी वगैरा का मतलब एक है | जिस साक्षात एक प्राकृतिक की पुजा बिना कोई वाद विवाद दंगा फसाद के मिल जुलकर सुख शांती से किये जाते थे | जैसे कि इस देश के मुलनिवासी आज भी बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार और पुजा पाठ करके आपस में मिल जुलकर मनाते हैं | जो पहले भी खुशियो का मेला लगाकर सुखी से रह रहे थे | जिस प्राकृतिक पर्व त्योहार में भी मनुवादियो और बाहर से आने वाले अन्य विदेशि मुल के ढोंगी पाखंडियो के द्वारा मिलावट और छेड़छाड़ करने की कोशिष हो रही है | दरसल मनुवादियो द्वारा हिन्दु धर्म में ढोंग पाखंड की मिलावट अपने फायदे के लिए किया गया है | जिन मनुवादियो ने ही अपने फायदे के लिए अपने पुर्वज गुमनाम और लापता कथित स्वर्ग के वासी देवताओ की पुजा को हिन्दु पुजा में मिलाया है | जो नही करते तो मनुवादि खुदको जन्म से हिन्दु पुजारी आरक्षित नही कर पाते | ये सब दरसल अपने फायदे के लिए ही ढोंग पाखंड का व्यापार को किसी नशे की व्यापार की तरह चलाने के लिए की गई है | जिस ढोंग पाखंड को हिन्दु धर्म से निकाल बाहर करनी चाहिए | न कि हिन्दु धर्म से खुदको ही निकाल बाहर करनी चाहिए | जो न होने से मनुवादियो को फायदा ही फायदा और इस देश के मुलनिवासियो को लगातार हानि ही हो रहा है | जैसे कि यदि हम गोरो को देश से बाहर करने के बजाय खुदको ही देश से बाहर कर देते तो सबसे अधिक लाभ गोरो को होता न कि इस देश के लोगो को होता ? उसी तरह यदि गोरो से अजादी मिलने के बाद यह देश अब फिर से मनुवादियो द्वारा गुलाम हो गया है , तो क्या हमे गुलाम करने वालो से खुदको अजाद करने के लिए अपना देश छोड़ देनी चाहिए | यह कहकर कि इस देश में गुलाम करने और दास दासी बनाने , छुवा छुत ढोंग पाखंड की मिलावट करने वाले लोग रहते हैं | जिन्हे इस देश की  सत्ता और अपने मूल सभ्यता संस्कृति बल्कि पुरा देश को सौंपकर क्या दुसरे देशो में विस्थापित हो जानी चाहिए ? जैसे कि इस देश के लाखो करोड़ो मुलनिवासी हिन्दु धर्म छोड़कर दुसरे धर्मो में चले गए हैं | जिनको अपने पुर्वजो का धर्म को छोड़ने से पहले मनुवादियो के द्वारा ढोंग पाखंड और छुवा छुत शोषन अत्याचार किए जाने की वजह से मन में जरुर ये ख्याल आया होगा कि जिस धर्म के पुजारी मनुस्मृती रचना करने वाले हो वह हिन्दु धर्म इस देश के मुलनिवासियो का हो ही नही सकता है ! बल्कि इस देश में बाहर से प्रवेश करने वाले मनुवादियो का ही हो सकता है | जबकि सच्चाई ये है कि मनुवादि खुदको इस देश में प्रवेश करने के बाद ही गर्व से हिन्दु कहने लगे हैं | जैसे कि अन्य भी विदेशी मुल के लोग जिनके पुर्वज इस देश में बाहर से आए थे , वे भी यदि इस समय इस देश में मौजुद होंगे तो खुदको गर्व से हिन्दुस्तानी कहना ही पसंद करेंगे | रही बात हिन्दु धर्म में बहुत सारे ढोंग पाखंड और छुवा छुत क्यों मौजुद है , तो वह तो मनुवादियो द्वारा छेड़छाड़ और मिलावट ढोंग पाखंड और छुवा छुत की मौजुदगी है , न कि इस देश के मुल हिन्दुओ द्वारा छुवा छुत किया जाता है | जिसके बारे में बहुत सी जानकारी मनुवादियो द्वारा छिपाया जाता रहा है | जैसे कि यहूदि डीएनए के मनुवादि अपना धर्म परिवर्तन करके कट्टर हिन्दू कब बने इस जानकारी को भी मनुवादियो ने अबतक छिपाकर रखने की कोशिष कीया है | जिसके लिए मनुवादि मीडिया में कभी भी यह चर्चा नही होती है कि यहूदि डीएनए के मनुवादि हिन्दु कब बने और मुस्लिम शासक द्वारा उनसे जजिया कर किसलिए नही लिया जाता था | जो जजिया कर इस देश के मुल हिन्दुओ से लिया जाता था जो कि मनुवादि नही हैं | क्योंकि हिन्दु शब्द सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति से आया है | जिसका निर्माण इस देश के उन मुलनिवासियो ने किया है , जिनका डीएनए मनुवादियो से नही मिलता है | बल्कि मनुवादियो के परिवार में मौजुद नारी का भी डीएनए इस देश के मुलनिवासियो से मिलता है | जो बात एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से साबित भी हो चुका है | जिसके बारे में 21 मई 2001 को The Times of india अंग्रेजी अखबार में खबर छापी गयी थी | जिस जानकारी को भी छुपाने के लिए मनुवादियो ने इस देश की राष्ट्रीय भाषा हिन्दी और इस देश के किसी भी क्षेत्रीय भाषा में इस जानकारी को नही छापी गयी थी , ताकि इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासियो से इस खास जानकारी को छुपाया जा सके | जो ज्ञान छुपाने की हुनर मनुवादियो में कुट कुटकर भरी हुई है | जिसके चलते ही तो उन्होने हिन्दु धर्म के वेद पुराणो पर कब्जा जमाकर पहले तो उन्होने वेद पुराण ज्ञान पर पाबंदी लगाया , उसके बाद भी जो मुलनिवासी अपने पुर्वजो के द्वारा हासिल किए गए वेद पुराणो की ज्ञान को हासिल किया उसके साथ मनुवादियो ने क्रुरता पुर्वक सजा देने का अमानवीय अपराध किया | जिसके बारे में जानकारी रामराज के बारे में भी जानने पर मिलता है जब राम ने शंभुक की हत्या सिर्फ इसलिये कर दिया था क्योंकि उसने रोक के बावजुद भी वेद ज्ञान प्राप्त कर लिया था | क्योंकि मनुस्मृति लागू करके वेद सुनने बोलने पर रोक लगाकर मनुवादियो ने यह नियम कानून बनाया था कि इस देश के मुलनिवासी वेद सुने तो कान में गर्म लोहा पिघलाकर डाला जाय , और वेद बोले तो उसका जीभ काटा जाय , जिस तरह के अनगिनत क्रुर नियम कानून मनुवादियो ने मनुवादी राजा बनकर अपने मनुस्मृती संविधान को लागू करके शंभुक प्रजा का शोषन अत्याचार के जरिये  अपनी सेवा और आरती उतरवाने की ढोंग पाखंड इस देश में सुरु किया है | जिसके बाद ढोंग पाखंड छुवा छुत को मानने वाला हिन्दू धर्म है ये साबित करने के लिए उन्होने घर के भेदियो की सहायता से वेद पुराणो में मिलावट और छेड़छाड़ करने की कुकर्म भी सुरु किया है | जो आज भी जारी है , क्योंकि आज भी इस देश में मनुवादि सत्ता घर के भेदियो की वजह से ही कायम होकर घर के भेदियो के ही समर्थन से वेद पुराणो के साथ साथ अजाद भारत का संविधान में भी मिलावट और छेड़छाड़ होना निश्चित होकर जारी है | जो कार्य अल्पसंख्यक मनुवादि बहुसंख्यक मुलनिवासी जो विभिन्न धर्मो में बंटे हुए हैं , उनके बिच मौजुद घर के भेदियो की सहायता के बिना कर ही नही सकते | जैसे कि यदि आज मुलनिवासि एकजुट हो जाय और घर के भेदि भी मुलनिवासियो का साथ देना छोड़कर अपने घर को बचाने में जुट जाय तो मनुवादि सत्ता ईवीएम मशिन छेड़छाड़ करके भी किसी भी किमत पर कायम नही हो पायेगी | क्योंकि सिर्फ आरक्षित सिटो पर ही तो इतने सांसद इस देश के मुलनिवासी चुनकर आते हैं , कि आरक्षण के रहते हुए ईवीएम मशिन से भि छेड़छाड़ करके मनुवादि सत्ता कभी कायम नही हो सकती | लेकिन भी यह सब कुछ जानते हुए मनुवीदी दबदबा कायम पार्टी को ही सबसे अधिक वोट क्यों पड़ती है ? हलांकि मेरा मानना है कि गोरो का शासन समाप्त होने के बाद आई मनुवादी शासन में अबतक जितने भी लोकसभा चुनाव हुए हैं , वह इमानदारी से नही बल्कि मनुवादियो द्वारा लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो का नेतृत्व करते हुए बेईमानी से हुए हैं | जैसे की 2019 ई० का लोकसभा चुनाव भी बेईमानी से हुए हैं | क्योंकि मनुवादी कभी नही चाहते कि उनका देवराज शासन समाप्त हो जाय और इस देश के मुलनिवासि बलि दानव का शासन फिर से स्थापित हो जाय | जिसमे मनुवादियो को फिर से अपनी मनुवादी शासन बेईमानी से लाने और इस देश के मुलनिवासियो को छल कपट से वापस बंधक बनाने के लिए कटोरा धरकर बलिराज दानव से दान पुण्य के रुप में भिख मांगनी पड़े | और भिख मिलने पर मौका देखकर छल कपट से वापस बंधक बनाकर इस देश की धन संपदा से मानो लंगटा लुचा कुबेर सबसे उच्चा धन्ना बनकर झुठी शान की उच्च जिवन वापस चल पड़े | जैसे की गोरो का शासन समाप्त होने के बाद गाँधी के नेतृत्व में भी मानो गाँधी ने नये युग का वामन बनकर अंबेडकर के आगे हाथ फैलाकर मनुवादियो को सबसे उच्चा बनाने के लिए वापस मनुवादियो की शासन स्थापित कर दिया है | वैसे गाँधी के बाद कथित उच्च जातियो की दबदबा वाली मनुवादि पार्टी भी इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासियो से मानो हाथ में कटोरा लिए वोट की भिख ही तो मांगती आ रही हैं | बाकि पार्टियाँ तो अपने मुलनिवासी वोटरो से खुदकी शासन वापस स्थापित करने के लिए वोट मांग रही है | जिन्हे न चुनकर मनुवादि पार्टी को ही बार बार सबसे अधिक वोट देकर छल कपट की मनुवादि सरकार बनाकर आधुनिक भारत शाईनिंग इंडिया डीजिटल इंडिया झुठी उच्च शान की जिवन कायम होती चली गई है | जिस तरह की परिस्थिती अथवा मनुवादियो की झुठी शान की उच्च जिवन फिलहाल तबतक रहेगी जबतक की इस देश में मुलनिवासियो की सत्ता वापस स्थापित नही हो जाती | तबतक मनुवादियो की शासन को आनेवाली इस देश की नई पिड़ी अँधकारयुग ही मानेगी | जिस युग में सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाने वाला कृषि प्रधान देश में आधी अबादी बीपीएल और आधी अबादी अशिक्षित जिवन जिने को मजबूर है | और यदि वाकई में मनुवादि सबसे बेहत्तर शासन चला रहे हैं यह सोचकर इस देश के मुलनिवासियो द्वारा ही मनुवादियो का शासन को दोहराने में बार बार भारी तादार में वोट दिया जा रहा है तो निश्चित तौर पर उन्हे भी भविष्य में इस बात पर पुरा यकिन हो जायेगा कि लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो की दबदबा कायम रहने की वजह से ही इस कृषी प्रधान देश को गोरो से अजादी मिलने के बाद भी घोर बदहाली का दिन देखना पड़ रहा है | जिस बदहाली को स्वीकार न किए जाने की वजह से ही तो वर्तमान में मनुवादि शासन को बार बार चुनकर दरसल इस देश के उन मुलनिवासियो द्वारा अपने ही पाँव में बार बार कुल्हाड़ी मारा जा रहा है जो कि मनुवादि सरकार को वोच कर रहे हैं | जिससे मनुवादियो के जिवन में खुशहाली और इस देश के मुलनिवासियो के जिवन में सबसे अधिक गरिबी और भुखमरी के साथ साथ शोषन अत्याचार और असुरक्षा मौजुद है | हलांकि वर्तमान में मनुवादियो के जिवन में भी असली खुशियाली मौजुद है कि नही यह तो उनकी आनेवाली नई पिड़ी तय करेगी | जैसे की अभी गोरो की नई पिड़ी तय कर रही है कि गोरो द्वारा कई देशो को गुलाम करके और करोड़ो लोगो का शोषन अत्याचार करके खुशहाली जिवन थी की वर्तमान में खुशहाली जिवन है | जिन गोरो से अजादी तो कई दशक पहले ही मिल चुकी है पर मनुवादियो के शोषन अत्याचार से अजादी आखिर कब मिलेगी ? वह भी तब जबकि इतने सारे लोकसभा सीट अजाद भारत का संविधान द्वारा आरक्षित है कि एक झटके में मनुवादियो की शासन से अजादी मिल सकती है | बल्कि मुलनिवासी सत्ता कायम होने के बाद जिस तरह सरकारी नौकरी में पिछड़ो को भी आरक्षण दिया गया , उसी तरह आरक्षण कोटा को बड़ाकर संसद में भी पिछड़ो को आरक्षण मिलनी चाहिए | बल्कि उससे भी बड़कर आरक्षण इस देश के मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , जिनके मूल पुर्वज मनुवादियो के शोषण अत्याचार से हजारो सालो से छुटकारा पाने के लिए संघर्ष किए हैं , उन सभी को आरक्षण मिलने का अधिकार प्राप्त होनी चाहिए | क्योंकि इस देश के मुलनिवासी जो चाहे इस समय जिस धर्म में मौजुद हैं , सभी के पुर्वज और डीएनए एक हैं | जो मनुवादियो के द्वारा इस देश में प्रवेश करने से पहले देवताओ की पुजा नही बल्कि बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाकर सृष्टी के कण कण में मौजुद उस साक्षात प्राकृतिक की पुजा करते थे , जिससे सारे धर्मो के भक्तो की जिवन मरन साक्षात प्रमाणित तौर पर जुड़े रहने के साथ साथ सारी सृष्टी प्रमाणित तौर पर कायम है | जो प्राकृतिक पुजा परंपरा आज भी इस कृषि प्रधान देश में कायम है | जिसे बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार के रुप में देखा जा सकता है | बस हिन्दु धर्म को पुरी तरह से मनुवादि धर्म बनाने के लिए हिन्दु धर्म में मौजुद बारह माह मनाई जाने वाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो में भी मनुवादियो के द्वारा मिलावट और छेड़छाड़ किया जाना जारी है | क्योंकि जैसा कि इससे पहले बताया कि मनुवादियो ने अपने पुर्वज लापता या स्वर्गवासी देवो की पुजा करने की परंपरा और छुवा छुत तो मनुस्मृती रचना करके वेद पुराणो में मिलावट और छेड़छाड़ करके जोर जबरजस्ती सुरु किया है | जो जोर जबरजस्ती परंपरा मनुवादियो की सत्ता रहने तक चलेगी | जो मनुवादि सत्ता समाप्ती के बाद सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का हिन्दु धर्म क्या है , पुरी दुनियाँ ठीक से समझ पायेगी | जिससे पहले हिन्दु धर्म इसी तरह मनुवादियो को कट्टर हिन्दु कहकर बदनाम होता रहेगा जैसा कि हजारो सालो से बदनाम होता आ रहा है | क्योंकि हजारो सालो से अबतक मनुवादियो की सत्ता से पुरी अजादी नही मिली है | पर बदनाम करने वाले यह बात हमेशा याद रखे कि अंबेडकर भी हिन्दु थे , और हिन्दु रहकर ही मनुवादियो के शोषन अत्याचार जड़ को सबसे अधिक उखाड़ फैंकने  की कोशिष मजबुती से किये थे | जिन्होने सारे वेद पुराण भी पढ़े थे , और वेद पुराण ज्ञान मंदिरो में प्रवेश कराने का संघर्ष भी किये थे | जहाँ पर मनुवादियो ने खुदको जन्म से ही उच्च विद्वान पंडित घोषित करके कब्जा जमाया हुआ है | जिनको करारा जवाब अंबेडकर ने वेद पुराणो का ज्ञान हासिल करने के साथ साथ हिन्दु रहकर ही देश विदेश में मनुवादियो से भी ज्यादा उच्च ज्ञान डिग्री हासिल करके दिये | और बाद में हिन्दु रहते भारत का संविधान रचना भी किया | न की अपना हिन्दु धर्म बदलकर उन्होने ये सारी कामयाबी हासिल किये थे | जिन्हे मेरे विचार से अपने मुलनिवासि पुर्वजो के हिन्दु धर्म से निकलने के बजाय अंतिम तक डटे रहकर मनुवादियो के द्वारा मिलावट किये गए वेद पुराणो में मौजुद मनुवादियो के ढोंग पाखंड छुवा छुत को निकाल बाहर करना चाहिए था | जैसा कि उन्होने हिन्दु रहते मनुस्मृती को जलाकर छुवा छुत और ढोंग पाखंड मिटाने का प्रयाश किया था | न कि सारे वेद पुराणो को जलाया था | जिसमे मनुस्मृति सोच की मिलावट की गयी है | क्योंकि ढोंग पाखंड और छुवा छुत करना हिन्दु धर्म के वेद पुराण नही सिखलाता है | बल्कि ढोंग पाखंड और छुवा छुत करना मनुस्मृती सिखलाता है | जिस मनुस्मृति में मौजुद ढोंग पाखंड और छुवा छुत की मिलावट हिन्दु वेद पुराणो में भी की गई है | जिस मनुस्मृती को अंबेडकर ने जलाकर भारत का संविधान रचना हिन्दु धर्म में रहते हुए किया है | अंबेडकर हिन्दु रहते कभी नही छुवा छुत ढोंग पाखंड किये | क्योंकि ढोंग पाखंड छुवा छुत मनुवादि करते हैं , जो असली हिन्दु नही हैं | जिनका डीएनए यहूदियो से मिलता है |  हम कह सकते हैं  असली हिन्दु अंबेडकर ने भारत का संविधान रचना किया है | जो दुसरे धर्म में रहते तो सायद भारत का संविधान रचना नही कर पाते | और न ही मनुवादियो को इतना झटका दे पाते | जैसे की अंबेडकर ने हिन्दु रहते छुवा छुत ढोंग पाखंड के खिलाफ आंदोलन चलाते हुए मनुस्मृति को जलाकर भारत का रचना किये | जिस भारत का संविधान रचना करने वाले अंबेडकर कभी भी ढोंग पाखंड और छुवा छुत किये थे क्या ? बल्कि अंबेडकर ने तो सारे वेद पुराण का ज्ञान लेते हुए देश और विदेश में भी उच्च डिग्री भी हासिल किया है | जाहिर है इस देश के मुलनिवासियो को हजारो साल पहले दास दासी बनाकर और खुदको कट्टर हिन्दु कहकर मनुवादियो ने वेद पुराणो में अपनी मनुस्मृती सोच की मिलावट किया है | इसलिए हिन्दु धर्म ढोंग पाखंड से भरा लगता है | जो ढोंग पाखंड और छुवा छुत बाहर से आए मनुवादियो द्वारा रची गई है | जैसे की इस देश की कृषि में भी बहुत सी खराबी बाहरी मिलावट की वजह से आ गई है | जिस बाहरी मिलावट से क्या हम यह मान लेंगे की इस कृषि प्रधान देश में कृषी उन बाहरी कबिलई लोगो की देन है , जिन्होने इस देश के मुलनिवासियो को गुलाम और दास दासी बनाकर शोषन अत्याचार किया है ?

21 मई 2001 को The Times of india अखबार में छपी डीएनए रिपोर्ट और पिंक क्रांती की रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादियो के मन में पशु नारी और शुद्र ताड़न के अधिकारी क्यों आया होगा ?

21 मई 2001 को The Times of india अखबार में छपी डीएनए रिपोर्ट और पिंक क्रांती की रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादियो के मन में पशु नारी और शुद्र ताड़न के अधिकारी क्यों आया होगा ?


हिन्दु पुजा में प्रकृति से जुड़ी सत्य का प्रतिक पत्थर शिव लिंग योनी और नदी कुँवा तलाव पेड़ पौधा भूमि पत्थर वगैरा की पुजा की जाती है | जो कि बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर भी की जाती है | जो प्रकृति भगवान साक्षात इसी दुनियाँ में मौजुद है | जिसकी पुजा को बिना पंडित के पुजा करते हुए ग्राम शहर दोनो जगह प्रयोगिक रुप से सबसे अधिक देखे जा सकते हैं | जिसमे प्रकृति हवा पानी आग सुर्य वगैरा को वायुदेव जलदेव अग्निदेव सुर्यदेव वगैरा देवो का नाम जोड़कर मनुवादि अपने ढोंग पाखंड नशा का व्यापार को ज्यादे से ज्यादे फैलाने की कोशिष में लगे हुए हैं | जिसके लिए इस कृषि प्रधान देश में जहाँ जहाँ पर भी किसी प्रकृति से जुड़ी पुजा स्थल या प्रकृति से जुड़ी परंपरा मिलती है  , उससे देवताओ का नाम जोड़कर ढोंग पाखंड नशे का विस्तार करना जारी है | यही वजह है कि जंगल झाड़ में भी जहाँ पर भी प्रकृति से जुड़ी पुजा स्थल मिलती है , जैसे की सत्य का प्रतिक शिव लिंग योनी प्रकृति पत्थर के रुप में जहाँ कहीं पर भी सबसे अधिक संख्या में पुजा जाता है  , वहाँ पर शिव लिंग योनी की आड़ में लगातार देव मंदिर बनते चले गए हैं | क्योंकि जितना चड़ावा उतना लाभ को देखते हुए कथित उच्च जाति के पुजारी वहाँ पर अपने पुर्वजो का नाम जोड़कर पुजा कराना और दान के रुप में धन बटोरना सुरु कर देते हैं | जबकि हिन्दु पुजा मनुवादियो के लापता पुर्वज देवो की पुजा नही है | बल्कि हिन्दु पुजा सृष्टी के कण कण में साक्षात मौजुद उस प्रकृति भगवान की पुजा है , जिसकी पुजा प्रकृति में ही मौजुद जल फुल चड़ाकर प्रकृति भगवान के प्रति अपना विश्वास प्रकट की जा सकती है | जिस तरह की पुजा ही इस देश के मुलनिवासी हजारो सालो से शांती पुर्वक करते आ रहे हैं | जिसका प्रमाणित प्राचिन अवशेष हजारो साल पुरानी प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई में भी मिली है | जहाँ पर कोई भी गुमनाम लापता देवता मंदिर नही मिले हैं | और न ही कोई मस्जिद और चर्च मिले हैं | क्योंकि ये सब बाद में इस देश में बनने सुरु हुए हैं | वैसे मुस्लिम और ईसाई धर्म का तो जन्म भी बहुत बाद में हुआ है | जिसके बाद ही मुस्लिम और ईसाई धर्म के प्रचारक इस देश में प्रवेश किए हैं | जिन विदेशो में जन्म लेने वाले धर्मो को अपनाने से यदि वाकई में सबसे अधिक अमन प्रेम सुख शांती आ जाती तो फिर तो बाईबल पढ़कर हली लुईया हली लुईया यीशु के नाम बड़बड़ाते हुए गोरे  पुरी दुनियाँ के कई देशो को गुलाम कभी नही करते , और न ही देशो को गुलाम करके लुटपाट शोषन अत्याचार करते | बल्कि ईसाई धर्म को अपनाकर गोरे बारह माह चर्च में प्रवेश करके यीशु के मुर्ति या फोटो के सामने हलि लुईया हली लुईया करते हुए इस देश में प्रवेश करने से पहले ही यह समझ जाते की अमन प्रेम सुख शांती किसी को गुलाम करने से नही आती है | क्योंकि यीशु ने अजादी प्रेम बांटने के लिए कहा था गुलाम करने के लिए नही | हलांकि निश्चित तौर पर सभी गोरे उस समय भी देश गुलाम करके राज करने के पक्षधर नही होंगे | सिर्फ चंद प्रतिशत गोरो ने ही गुलाम करके राज करने का फैशला को यीशु के अजादी प्रेम से भी ज्यादा जरुरी समझा होगा | जैसे की चंद प्रतिशत कथित उच्च जाति के कहलाने वाले लोग मनुस्मृती को अब भी अपना आदर्श मानकर ढोंग पाखंड छुवा छुत शोषन अत्याचार को जारी रखते हुए इस देश की शासन व्यवस्था और हिन्दु वेद पुराणो को हाईजेक किए हुए हैं | क्योंकि हाईजेक करने वाले भी मुठीभर लोग होते हैं , जो अपने से कहीं अधिक अबादी को बंधक बनाए हुए रहते हैं | जाहिर सी बात है मुठिभर ढोंगी पाखंडी चाहे जिस धर्म को अपनाएँ या जिस धर्म में रहें , किसी भी धर्म में उनकी भ्रष्ट बुद्धी को कोई फर्क पड़नेवाला नही है | मुस्लिम धर्म में भी बहुत सारे आतंकवादी तब थे , और अब भी मौजुद हैं , जो बारह माह मस्जिद जाकर अमन प्रेम कायम करने की कुरान सुबह शाम पढ़कर भी पुरी दुनियाँ में आतंक फैलाने का कुकर्मो में लगे रहते हैं | जिनकी नपाक मांसिकता को मुस्लिम धर्म तो क्या कोई भी धर्म नही बदल सकती | और न ही मनुवादियो की मनुस्मृती छुवा छुत मांसिकता को हिन्दु धर्म में हजारो सालो से हिन्दु पुजारी बनाकर भी बदला जा सकता है | बल्कि ढोंगि पाखंडि चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , वे मानो चोर चोर मौसेरा भाई की तरह आपस में ही मिले हुए रहते हैं | क्योंकि मुलता आतंकवादी और ढोंगी पाखंडी आपस में मिलकर ही ढोंग पाखंड और दंगा फसाद जैसे आतंक का विस्तार करते हैं | जैसे कि जब इस देश में बाहर से आए मुसलमानो के द्वारा मुस्लिम शासन स्थापित की गई थी , उस समय मुस्लिम धर्म में ही मौजुद मुठीभर आतंकियो ने खुदको सबसे बड़ा धार्मिक और अमन चैन कायम करने वाला बतलाकर जजिया कर का आतंक इस देश के मुलनिवासियो में लगाना सुरु किया था | जो मुस्लिम शासक मनुवादियो से जजिया कर क्यों नही लेते थे ? क्योंकि ढोंगी पाखंडी मनुवादि भी आतंकी मुठीभर मुस्लिम शासको की तरह ही विदेशी मुल के थे | इसलिए मनुवादियो से जजिया कर नही लिया जा रहा था | जैसे की बाहर से आकर इस कृषि प्रधान देश को गुलाम करने वाले कबिलई मुठिभर गोरो को भी मनुवादियो ने यह समझाने कि बहुत कोशिष किया था कि गोरो की तरह ही चूँकि मनुवादि भी विदेशी हैं , इसलिए  विदेशी मुल के मनुवादियो को भी शोषन अत्याचार करने के लिए अपनी शासन में विशेष भागीदार बनाया जाय | क्योंकि मनुवादियो की गुलाम करने वाली कबिलई पुरुष झुंड गोरो से भी बहुत पहले हजारो साल पहले ही इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से इस देश की शासन व्यवस्था में कब्जा करके , और इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर मनुस्मृती लागू करके , छुवा छुत शोषन अत्याचार करना सुरु किया है | जिन मनुवादियो को शोषन अत्याचार करने का अनुभव गोरो से ज्यादे समय का है | क्योंकि खुदको हिन्दु कहकर गर्व करने वाले मनुवादि इस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम दास दासी बनाने वाले संभवता पहले विदेशी हैं | जिसके बाद ही गोरो के जैसा विदेशी मुल के कई कबिलई टोली इस देश में प्रवेश किए हैं | जिन्हे तब मोटी मोटी धार्मिक किताब पढ़कर भी मानो यह ज्ञान मौजुद नही थी कि किसी देश को गुलाम करने से अमन प्रेम सुख शांती और समृद्धी कायम नही होती है | क्योंकि इतिहास गवाह है कि हर रोज नमाज पढ़ने वाले तब के मुस्लिम शासक भी जब इस देश के मुलनिवासियो से जजिया कर ले रहे थे , उस समय यहूदि डीएनए के मनुवादियो से जजिया कर नही लिया जा रहा था | और इतिहास इस बात का भी गवाह है कि दुसरो के देश में कब्जा करके जजिया कर लेने वाले मुस्लिम शासक न्याय और अमन प्रेम कायम कर रहे थे कि अन्याय करने वालो को अपने शासन में खास भागिदार बनाकर , और विशेष छुट देकर  शोषित पिड़ितो पर बेईमानीपुर्ण राज कर रहे थे ! जबकि मुसलमान का मतलब जिसका इमान हर हालत में कायम हो माना जाता है , जो इमान क्या जजिया कर लेते समय खुदको मुस्लिम धर्म का सच्चा भक्त बतलाने वाले लुटपाट शोषन अन्याय अत्याचार आतंक फैलाने वाले शासको का कायम थी | जैसे की हजारो साल पहले खुदको यहूदि धर्म का भक्त कहने वालो ने यीशु को सुली पर चड़ाकर क्या मुसा का अजादी प्रेम कायम कर रहे थे | और सैकड़ो साल पहले बाईबल पढ़कर चर्च जाकर हली लुईया हली लुईया कहकर कई देशो को गुलाम करने वाले ईशाई शासक क्या यीशु का अजादी प्रेम बांट रहे थे ? जाहिर है यहूदि ईसाई और मुस्लिम धर्म को भी अपनाने से यदि सबसे अधिक अमन प्रेम सुख शांती पुरी दुनियाँ में आ जाती तो फिर तो अरब में सैकड़ो हजारो सालो से कभी नही बुझने वाली नफरत और अशांती की आग उनके खुदके ही घर में खुदके द्वारा नही लगाई जाती , और न ही अबतक लगी होती | क्योंकि यहूदि मुस्लिम और ईसाई तीनो धर्म एक दुसरे में ढोंग पाखंड और अनेको अपराध को स्वीकारते हैं | नही स्वीकारते तो क्या वे आपस में लड़ने के बजाय एक दुसरे में विलय यह सोच समझकर नही कर लेते कि अब्राहम यहूदी मुसलमान और ईसाई तीनो धर्मो के आपस में लड़ने वालो के जब पितामह माने जाते हैं, और आदम से लेकर अब्राहम व अब्राहम से लेकर मूसा तक यहूदी, ईसाई और इस्लाम सभी के पैगम्बर एक हैं , फिर भी क्यों  सैकड़ो हजारो सालो से आपस में ही इतना लड़ झगड़ रहे हैं ?जिन्हे बार बार फिर से कोई अवतार आपस में लड़ते झगड़ते मरते मारते समय इनके बिच जाकर किस धर्म का हो सवाल का जवाब देते समय यह समझाने आनेवाले नही हैं कि अगर आप यहूदि हो तो यीशु समझकर सुली पर चड़ा दो , और यदि ईसाई हो तो यीशु को सुली पर चड़ाने वाला यहूदि समझकर खत्म कर दो | और यदि यहूदि हो तो मुसलमान समझकर मार डालो | रही बात इस देश के हिन्दुओ की तो बाहर से आनेवाले मनुवादियो का ढोंग पाखंड छुवा छुत के साथ साथ बाहर से ही आने वाले यहूदि ईसाई मुस्लिम धर्म के आने से पहले इस देश के मुलनिवासियो के बिच आपस में ही धार्मिक दंगा फसाद और आतंकवाद नाम की कोई आग लगी ही नही थी | जो आग बाहर से लाई गई है , जैसे की छुवा छुत गुलाम दास दासी समस्या बाहर से लाई गई है | दंगा फसाद जैसे डर भय और आतंक बाहरी डीएनए के लोगो द्वारा ही फैलाई गई है | जिन समस्याओ के चलते सैकड़ौ हजारो सालो तक जो अन्याय अत्याचार हुआ है उससे देश ही नही बल्कि पुरी दुनियाँ अबतक भी सुख शांती और समृद्धी के रुप में स्थिर नही हो पाया है | जिसके कारन हर साल आज भी कितनी तबाही होती है , और उस तबाही में कितने जान माल का नुकसान करने वाले हथियार बनाये जा रहे हैं , इसका इतिहास भी दर्ज होता जा रहा है | जाहिर है इस देश में भी सबसे अधिक बर्बादी और अशांती बाहरी मुल के लोगो द्वारा दिया गया है | जैसे कि गोरे बाहरी , मनुवादि बाहरी और अन्य भी कई कबिलई लुटेरे जो बाहर से आकर ढोंग पाखंड छुवा छुत शोषन अत्याचार और आतंक फैलाके इस देश और इस देश के मुलनिवासियो को बर्बाद करने का कुकर्म किया हैं | जिनके द्वारा शासन करके इस कृषि प्रधान देश को सैकड़ो हजारो सालो से सबसे अधिक बर्बादी और अशांती दिया गया है | जिनके आने से पहले के हालात और उनके आने के बाद का हालात ऐतिहासिक रुप से साक्षी है कि कौन ज्यादे बेहत्तर हालात प्रयोगिक रुप से मानी जायेगी | बल्कि इस देश में बाद में जन्मे जैन और बौद्ध धर्म में भी भेदभाव और बहुत से आपसी विवाद बाहरी कबिलई लुटेरी सोच की वजह से ही उत्पन हुई है | जो सब न होकर सोने की चिड़ियाँ बिना कोई बाहरी संक्रमण के अपडेट लगातार अबतक भी यदि अपनी मुलता सागर जैसे स्थिर कृषि सभ्यता संस्कृति के द्वारा होती रहती , तो आज यह देश कबका फिर से खुदको सोने कि चिड़ियाँ और विश्वगुरु अपडेट करके फिर से पुरी दुनियाँ में सुख शांती और समृद्धी जिवन जिने की कृषि सभ्यता संस्कृती का अपडेट ज्ञान प्रयोगिक रुप से बांट रहा होता | और पुरी दुनियाँ में वाकई में सुख शांती और समृद्धी कायम अबतक हो चूकि रहती | चारो तरफ गरिबी भुखमरी और खुन खराबा आतंक का माहौल नही होता | जिसपर जिनको विश्वास न हो उनके भितर यदि हिन्दुस्तान में पहले की तरह मुलनिवासी सत्ता वापस कायम होने समय तक की प्राण मौजुद हो तो इंतजार कर लें अब के हालात सही हैं कि मुलनिवासी सत्ता कायम होने के बाद का हालात सही होंगे पता चल जायेगा ! बल्कि वर्तमान में जो पुरी दुनियाँ हजारो परमाणु बमो के उपर बैठकर मानवता को मानव बम बनाने की तनाव और लड़ाई हालात से गुजर रहा है वह भी दुर होगी | जैसे कि अगर इस देश में बाहरी मुल के लोगो के द्वारा शासन के बजाय मुलनिवासी सत्ता हमेशा कायम रहती तो वर्तमान में मौजुद धर्म और छुवा छुत गोरा काला भेदभाव के नाम से लड़ाई और तनाव हालात कभी नही बनते | यानि इस देश में बाहरी मुल के लोगो की सत्ता कायम होने के बाद से ही पुरी दुनियाँ में भी सबसे अधिक बुरे हालात बने हैं | जैसे कि हिन्दु धर्म में मौजुद विदेशी मुल के मनुवादियो के द्वारा संक्रमित होने के बाद ही पुरी दुनियाँ में गुलाम और दास दासी बनाने वाली शक्तियाँ हावी हुई है | जिसके बाद हिन्दु धर्म में ढोंग पाखंड और छुवा छुत भेदभाव प्रवेश की तरह ही सभी धर्मो में ढोंग पाखंड और भेदभाव मांसिकता का बुरा प्रभाव पडना सुरु हुआ है | जिसके खिलाफ ही तो मुसा , यीशु और मोहम्मद पैगंबर ने  कड़ा संघर्ष किया था | फिर भी वे अपने रहते उनके नाम से बने धर्मो को कभी नही इतना पवित्र और विश्वसनीय कर पाये कि उसे अपनाने वाला इंसान किसी को गुलाम दास दासी बनाने वाला धार्मिक भक्त कभी भी न बन सके | और यीशु को सुली पर चड़ाने वाला धार्मिक भक्त भी न बन सके | बल्कि आतंक फैलाने वाला धार्मिक भक्त भी कभी न बन सके | जिस तरह के मांसिकता वाले लोगो को सुधारने और उनके द्वारा गुलाम करके या आतंक फैलाकर इंसानियत को लहु लुहान किए हुए जख्मो को ठीक करने के लिए ही तो यहूदि मुस्लिम ईसाई अलग अलग तीन धर्म के मुसा यीशु और मोहम्मद पैगंबर जन्मे थे , लेकिन भी जख्मो को पुरी तरह से वे ठीक नही कर सके | तभी तो मुसा यीशु और मोहम्मद पैगंबर को मानने वाले तीनो धर्मो के बिच आपसी लड़ाई अबतक भी जारी है | क्योंकि जाहिर सी बात है इन तीनो के नाम से बने तीनो धर्मो में भी ढोंगी पाखंडी मौजुद हैं | जो ढोंगी पाखंडी मजबुती से प्रवेश करके मजबुती से अपना मौजुदगी दर्ज नही करते तो इन तीनो के नाम से बनी तीनो धर्मो के बिच हजारो सालो से आपसी लड़ाई क्यों अबतक धार्मिक वाद विवाद होकर कायम रहती ? यीशु को सुली पर चड़ाने वाले मजबूती से यहूदि धर्म में अपना मौजुदगी दर्ज करके क्यों गुलाम दास दासी बनाते थे , मुसा जिस महल को छोड़कर गुलामो के साथ मिलकर अजादी के लिए संघर्ष किये थे उन महलो में रहने वाले भी गुलाम दास दासी बनाते थे | मोहम्मद पैगंबर ने जिनके खिलाफ अजादी संघर्ष किया था वे लोग भी गुलाम दास दासी बनाते थे | गुलाम दास दासी बनाने और शोषन अत्याचार करने वालो ने कोई न कोई धर्म में मजबुती से अपना मौजुदगी दर्ज करके ही खुदको सबसे बड़ा धार्मिक घोषित करके बड़ा बड़ा कुकर्म और पाप किया है | जैसे की अखंड सोने की चिड़ियाँ को धर्म के नाम से खंड खंड करके खुन की नदियाँ बहाने और बहवाने वाले भी खुदको किसी न किसी धर्म से जोड़कर ही समय समय पर भारत पाकिस्तन युद्ध के नाम से खुन बहवाते रहते हैं | जो तनाव और आतंक इस कृषि प्रधान देश में पहले मौजुद नही थी | क्योंकि चाहे बाहर से आए यहूदि मुस्लिम ईसाई धर्म हो या फिर इस देश में ही बाद में जन्मे बौद्ध जैन वगैरा धर्म ही क्यों न हो , इनमे से एक भी धर्म ऐसा मौजुद नही है , जिसपर कोई वाद विवाद और अविश्वास मौजुद न हो | लेकिन भी बार बार हिन्दु धर्म को यहूदि डिएनए के मनुवादियो का मुल धर्म कहकर बदनाम किया जाता है | जिस धर्म की बुराई ऐसी की जाती है जैसे मानो इस धर्म के मुल हिन्दुओ ने ही पुरी दुनियाँ को गुलाम और दास दासी बनाने जैसा सबसे बड़ा कुकर्म और पाप किया है | दास दासी और गुलाम बनाना सबसे बड़ा पाप और कुकर्म इसलिए क्योंकि पुरी दुनियाँ अबतक भी गुलामी से मिली बर्बादि से उभर नही पायी है | तभी तो आज भी पुरी दुनियाँ में सबसे अधिक अबादी गरिबी भुखमरी से छुटकारा पाने के लिए संघर्ष कर रही है | वह भी ज्यादेतर उन देशो में जहाँ पर सबसे अधिक प्रकृति समृद्धी है | क्योंकि आज भी उन देशो में विदेशी मुल के ऐसे बहुत से परजिवी समृद्धी चुसने में लगे हुए हैं जिनके पुर्वज भी कभी वही सब किया करते थे | जिनको सहयोग हमेशा की तरह घर के भेदियो द्वारा ही मिल रहा है | जैसे कि इस कृषी प्रधान देश में भी मनुवादियो द्वारा अबतक भी शोषन अत्याचार कायम रखने में घर के भेदियो द्वारा ही सहयोग मिल रहा है | मनुवादि खुदको हिन्दु कहने पर गर्व करते हैं और इस देश के बहुत से मुलनिवासी हिन्दु धर्म को मनुवादियो का मुल धर्म कहकर अपना धर्म परिवर्तन करने में लगे हुए हैं | जबकि सच्चाई ये है कि मनुवादि मुल हिन्दु दरसल है ही नही ! और न ही मनुवादियो के लापता पुर्वज देव पुजा मुल हिन्दु पुजा है | बल्कि हिन्दु भगवान पुजा साक्षात प्रकृति पुजा है | जिस प्रकृति भगवान से सभी धर्म के भक्त ही नही बल्कि नास्तिक और कोई अन्य प्राणी भी खुदको दुर कभी भी नही कर सकते | जिस प्रकृति से जुड़ी प्रकृति पर्व त्योहार बारह माह मनाई जाती है | इसलिए इस देश के वैसे मुलनिवासी जो अपना हिन्दु धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्म में जा चुके हैं , या जाने की सोच रहे हैं वे यदि अपने मन में मनुवादियो के ढोंग पाखंड छुवा छुत शोषन अत्याचार से नफरत करने के बजाय मुल हिन्दु धर्म के पर्व त्योहार प्राकृतिक भगवान पुजा के प्रति नफरत रखकर अपना धर्म परिवर्तन करके या करने की सोचकर यदि यह सोच रहे हैं कि वे जिस धर्म को सबसे बेहत्तर मानते हैं , वहाँ पर सबसे सुधार होता है तो मुल हिन्दु धर्म से नफरत करने वाले मुल हिन्दु धर्म से नफरत करने से पहले विश्व में मौजुद सारे धर्मो में मौजुद बुराई के बारे में नाप तौल जरुर कर लें कि भेदभाव मांसिकता गुलाम और दास दासी बनाने वाले मांसिकता के लोग कहाँ पर सबसे अधिक मौजुदगी दर्ज करते आ रहे हैं | और किस धर्म में सबसे अधिक खुदकी पैदा की हुई गुलाम दास दासी बनाने वाली बुराई मौजुद हैं , वहाँ पर क्या सबसे अधिक न्याय और सुख शांती कायम है ? जबकि इस देश और इस देश के मुल हिन्दुओ ने आजतक किसी भी देश को गुलाम नही बनाया है | और न ही इस देश के मुलनिवासी जो इस समय चाहे जिस धर्म में मौजुद हैं , वे कभी छुवा छुत जैसे भेदभाव हिन्दु धर्म परिवर्तन करके भी और बिना धर्म परिवर्तन किये भी किये हैं | जो सब इस देश में यहूदि डीएनए के मनुवादि करते हैं , जो मुल हिन्दु नही हैं | बल्कि इस देश में जबतक मुलनिवासी सत्ता कायम नही हो जाती तबतक भविष्य में भी इस देश के मुलनिवासी चाहे जिस भी धर्म में जायेंगे या फिर हिन्दु धर्म में ही मौजुद क्यों न रहेंगे , उनके साथ भेदभाव शोषन अत्याचार होता रहेगा | क्योंकि ढोंगी पाखंडी और शोषन अत्याचार करने वाले इस देश के मुलनिवासियो की सत्ता जाने और हिन्दु धर्म में मनुवादियो के प्रवेश करने के बाद ही अपनी मौजुदगी मजबुती से सभी धर्मो में दर्ज कराते आ रहे हैं | यह जानकारी खुद सभी धर्मो के धर्म ग्रंथो में ही मौजुद है | जिस तरह की जानकारी में भी यह जानकारी मिलती है की ढोंग पाखंड छुवा छुत की मांसिकता इस देश में बाहरी मुल के लोगो द्वारा लाई गई है | वह भी मुसा यीशु और मोहम्मद पैगंबर जैसे बाहरी नही जिन्होने गुलाम और दास दासी बनाने वालो के खिलाफ खुद मजबुती से लड़ाई लड़े हैं | बाहरी में वैसे बाहरी जो इनके नाम से अमन चैन प्रेम कायम करने का धार्मिक ग्रंथ हाथ में धरके गुलाम दास दासी बनाने के लिए पुरी दुनियाँ घुमते रहते हैं | जैसे कि हली लुईया हली लुईया यीशु के नाम कहकर गुलाम बनाने वाले गोरे बल्कि खुदको हिन्दु कहकर इस देश के मुल हिन्दुओ को दास दासी बनाने वाले मनुवादि भी बाहरी जिनका डीएनए भी इस देश के मुलनिवासियो से नही मिलता है | और रोमराज का नीरो व यूनानराज का सिकंदर भी बाहरी जिनका भी डीएनए इस देश के मुलनिवासियो से नही मिलता है | जिस तरह के विदेशी मूल के कबिलई इस देश या फिर दुनियाँ के किसी भी कोने में प्रवेश किए हो वहाँ पर प्रवेश करके और अपने बुरे संगत से घर का भेदी पैदा करके उनकी सहायता से देश दुनियाँ के मुलनिवासियो को आपस में बांटकर फुट डालो और राज करो की नीति से गुलाम और दास दासी बनाकर लंबे समय तक भेदभाव शोषन अत्याचार किया है | जैसे कि इस देश को गुलाम करने के बाद गोरे गेट में ये लिखते थे कि अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है | उसी तरह मनुवादि भी खुदको हिन्दु बनाकर और वेद पुराणो में कब्जा करके वेद पुराण ज्ञान मंदिरो के अंदर अपने पुर्वजो की भी मूर्ति स्थापित करके उसकी आरती उतारते हुए बाहर ये लिखते हैं कि अंदर शुद्रो का प्रवेश मना है | बल्कि वर्तमान में भी यदि मनुवादियो का मनुस्मृती रचना देश में किसी नियम कानून व संविधान की तरह लागू हो जाय तो क्या पता मनुवादि इंडिया गेट में ही लिख दे कि इस देश में शुद्रो का प्रवेश मना है | जो अपने मनुस्मृती को अपडेट करके अपने पुर्वजो के मुर्तियो के साथ साथ बिजली देवता और इंटरनेट देवता नया देवता नाम का भी मुर्ति मिलावट करके अपने पुर्वजो के नाम से पुजा स्थलो में बिठाकर यह नियम कानून भी बना दे कि इंटरनेटदेव और बिजलीदेव के बारे में जानकारी लेना उच्च जाति छोड़ बाकि सभी के लिए मना है | क्योंकि बिजलीदेव और इंटरनेटदेव उनके पुर्वज हैं | हलांकि मिलावट में भी चूँकि सत्य ज्ञान मौजुद रहती है जो अब भी है , इसलिए मनुवादियो के द्वारा वेद पुराण में मौजुद ज्ञान का सागर जो कि इस देश के मुलनिवासियो के द्वारा रचा गया है , उसे न लेने देने के लिए ही तो ढोंग पाखंड की मिलावट करते रहने के लिए ही तो वेद पुराण ज्ञान मंदिरो में प्रवेश इस देश के मुलनिवासियो के लिए वर्जित की जाती थी | जहाँ पर कब्जा करके मनुवादियो ने खुदको जन्म से विद्वान पंडित घोषित करके इस देश के मुलनिवासियो को वेद पुराण ज्ञान मंदिरो में प्रवेश मना कर दिया था | जिस वेद पुराण की रचना करके ही तो इस देश के मुलनिवासी पत्थर पहाड़ पर्वत हवा पानी सुर्य नदी वगैरा के रुप में प्रकृति भगवान की पुजा करते हैं , और  बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर हजारो सालो से खुशियाँ भी मनाते आ रहे हैं | जिसके बारे में बल्कि इतिहास समेत तमाम ज्ञान का सागर में प्राकृतिक ज्ञान और अपने पुर्वजो के द्वारा हासिल की गई बहुत से अनमोल ज्ञान की डुबकी लगाना क्या मनुवादियो का ढोंग पाखंड हासिल करना कहलायेगा ? मनुवादि तो बाद में वेद पुराण ज्ञान में हवा को वायुदेव सुर्य को सुर्यदेव ढोंग पाखंड की मिलावट करके वेद पुराण ज्ञान मंदिरो में प्रवेश निषेद नियम कानून बनाया है | जैसे कि यदि वर्तमान में भी मनुवादि लोग शिक्षा में मिलावट करके विद्यालयो में देव पुजा पाठ कराकर इस देश के मुलनिवासियो का प्रवेश मना कर देंगे तो क्या शिक्षा ढोंग पाखंड अथवा मनुवादियो की हो जायेगी | बिल्कुल नही बल्कि मुलनिवासी सत्ता स्थापित के बाद शिक्षा में मिलावट की गई बुराई को हटाकर शिक्षा में सुधार किया जायेगा | न कि शिक्षा मनुवादियो की है यह कहकर पढ़ना लिखना छोड़ देंगे वे सभी लोग जिनको शिक्षा में मिलावट पुरी शिक्षा ही मनुवादियो की लगती है | जैसे की हिन्दु धर्म में मनुवादियो के ढोंग पाखंड मिलावट को पुरा हिन्दु धर्म ही मनुवादि ढोंगी पाखंडियो की है , और मनुवादि कट्टर हिन्दु हैं , कहकर लंबे समय से हिन्दु धर्म का बदनाम और मजाक उड़ाया जा रहा है | जिसके चलते भारी भेदभाव शोषन अत्याचार का शिकार होने वाले इस देश के अनगिनत मुलनिवासि अपने हिन्दु धर्म को मनुवादियो को सौंपकर ऐसे जा रहे हैं , जैसे वेद पुराण में सिर्फ मनुवादियो के द्वारा रचे ढोंग पाखंड ही मौजुद है | जिसके अलावे और कुछ ज्ञान है ही नही | मानो बाहर से संभवता बिना कपड़ो के और बिना कृषी ज्ञान के बल्कि बिना परिवार सामाज के नंगा पुंगा प्रवेश करने वाले मनुवादियो के पास प्राकृति और इस कृषि प्रधान देश के बारे में बल्कि सारी सृष्टि रचना के बारे में जानकारी इस देश में प्रवेश से पहले ही मौजुद थी | फिर तो मनुवादि अपने डीएनए के जिन अपनो को छोड़कर इस देश में आकर हिन्दु बने हैं , उनके पास भी हिन्दु वेद पुराण मौजुद होनी चाहिए थी | बल्कि उनको भी खुदको कट्टर हिन्दु कहनी चाहिए थी | क्योंकि मनुवादियो के पुर्वजो की कबिलई टोली पुरी की पुरी तो इस कृषी प्रधान देश में प्रवेश नही किए होंगे | जैसे की गोरो की कबिलई टोली पुरी की पुरी इस देश में प्रवेश नही की थी | और अगर विदेशी मुल के मनुवादि असली हिन्दु हैं , तो फिर विदेशो में मौजुद मनुवादियो के ही डीएनए के लोग भी खुदको हिन्दु क्यों नही कहते हैं ? क्योंकि मनुवादियो के बारे में जो भी जानता और मानता है कि मनुवादि विदेशी मुल के हैं , वह यह जानकारी कैसे पचा पायेगा कि कट्टर हिन्दु मनुवादि और उनके पुर्वज देवता इसी देश में आने के बाद वेद पुराण रचे और हिन्दु धर्म की सारी जानकारी इकठा करके इस देश के मुलनिवासियो को हिन्दु बनाकर उनके साथ छुवा शोषन अत्याचार करना सुरु किया | जबकि पुरी दुनियाँ जानती है कि इस कृषि प्रधान देश जहाँ की  प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण , परिवार समाज गणतंत्र का निर्माण मनुवादियो के प्रवेश से बहुत पहले ही इस देश के मुलनिवासियो द्वारा हो चुकि थी | जो निर्माण जिन मुलनिवासियो द्वारा किया गया है , उनको तो इस देश में मनुवादियो और गोरो के प्रवेश से पहले मानो हिन्दु वेद पुराणो के बारे में कुछ आती ही नही थी ! हजारो साल पहले सिर्फ हजारो विकसित हुनर के साथ कृषि सभ्यता संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती की निर्माण करना आती थी | जिन्हे मनुवादियो ने जो की संभवता इस देश की हजारो हुनरो की नासमझ अथवा अज्ञानता की वजह से मनुवादियो द्वारा सत्ता और वेद पुराणो पर कब्जा करने के बाद जाति कह दिया गया है | उसी तरह चूँकि मनुवादि मनुस्मृती रचना करके और उसे अपना आदर्श भी मानकर  खुदको अप्रकृति तरिके से पैदा और अप्रकृति ढोंग पाखंड का ज्ञानी भी साबित किए हुए हैं , इसलिए संभवता प्राकृतिक की नासमझ होने की वजह से ही मनुवादियो ने वेद पुराण में मौजुद साक्षात प्राकृतिक और बहुत सारी अनमोल प्रमाणित ज्ञान का भंडर जो कि वेद पुराण में इस देश के मुलनिवासियो द्वारा रचे गए हैं , उन वेद पुराणो को मनुवादि सत्ता स्थापित होने के बाद कब्जा करके अपनी अप्रकृति ज्ञान से भरी भ्रष्ट मनुस्मृती बुद्धी की जरिये वेद पुराण को अपने ढोंग पाखंड हुनर के अनुसार अपडेट किया है | जैसे की वर्तमान में भी जिस किसी भी अज्ञानी या पढ़ा लिखा भष्मासुर को भी यदि डॉक्टर इंजिनियर का सही मतलब समझ में नही आयेगा तो उसे डॉक्टर और इंजियर जाती कहकर उस हुनर को जानने वालो को जन्म से डॉक्टर और इंजिनियर जाती का घोषित कर दिया जाता | जब उनके द्वारा शिक्षा प्रणाली में कब्जा करके शिक्षा अपडेट की जाती | जिन हजारो जातियो जो की हजारो साल पहले ही विकसित कि गई सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति में मौजुद मुलनिवासियो के द्वारा अपनाये जाने वाला हजारो हुनर है , उसे मनुवादियो द्वारा मनुस्मृति रचना करके हजारो जाति घोषित कर दिया गया है | उसी तरह तब के विकसित गणतंत्र में मौजुद शासन व्यवस्था में शिक्षा व्यवस्था , रक्षा व्यवस्था और अर्थ व्यवस्था तीन मानो गणतंत्र के प्रमुख स्तंभ थे , जिस विकसित गणतंत्र में मौजुद शासन व्यवस्था पर कब्जा करके मनुवादियो ने खुदको उच्च ज्ञान बांटने वाला ब्रह्मण , रक्षा करने वाला क्षत्रिय और धनवान वैश्य के रुप में जन्म से मनुस्मृति रचना करने वाले उच्च विद्वान पंडित जन्म से अँगुठा काटने जीभ काटने गर्म पिघला लोहा कान में डालने वाला वीर रक्षक और अपने मुल पुर्वजो की भुमि को छोड़कर दुसरे का शासन व्यवस्था में पलने वाला धन्ना कुबेर घोषित किये हुए है | जिस शासन व्यवस्था में गोरो की तरह विदेशी डीएनए के मनुवादियो का कब्जा रहते हुए इस देश की मुल सत्ता को हासिल करने से पहले इस देश के करोड़ो मुलनिवासी दुसरे धर्मो को अपनाकर क्या सबसे अधिक अमन प्रेम सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे हैं ? बल्कि इस कृषी प्रधान देश में जब हिन्दु धर्म के अलावे कोई दुसरा धर्म मौजुद ही नही था , और मनुवादियो की भी मौजुदगी नही थी , निश्चित तौर पर उस समय ही यहाँ के मुलनिवासी सबसे अधिक अमन प्रेम सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे थे | तब हिन्दु धर्म में ऐसे ढोंग पाखंड मौजुद नही थे | क्योंकि मनुवादियो का प्रवेश के बाद ही तो हिन्दु धर्म में छुवा छुत और ढोंग पाखंड की सुरुवात हुई हैं | जब मनुवादियो ने या तो पहले से ही छुवा छुत का आविष्कार करके इस देश में प्रवेश किए और मनुस्मृती की रचना करके विधि पुर्वक छुवा छुत जैसे शोषन अत्याचार करना सुरु किया  किया | या फिर क्या पता यहाँ प्रवेश करने के बाद ही अपना देश और अपने परिवार के लोग न होने की वजह से उनकी बुद्धी भ्रष्ट हुई और उन्होने उसी भ्रष्ट बुद्धी से मनुस्मृती की रचना करके ढोंग पाखंड छुवा छुत की सुरुवात की | जिससे पहले ढोंग पाखंड छुवा छुत न कर रहे हो | जिसकी सुरुवात इस देश में प्रवेश करने के बाद किया हो | क्योंकि गुलाम और दास दासी बनाने वाले अपने ही देश को गुलाम और अपने ही परिवार में मौजुद सदस्यो के साथ छुवा छुत कभी नही करते हैं | जैसे कि इस देश को गुलाम करने वाले गोरे विदेशी थे , जो कि अपने देश और अपने परिवार के सदस्यो को गुलाम नही बनाये थे | जो गेट पर इंडियन और कुत्तो का प्रवेश मना है लिखते थे | जैसे की मनुवादि गेट में शुद्रो का प्रवेश मना है लिखते हैं | और फिर एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से साबित भी हो चुका है कि मनुवादि विदेशी मुल के हैं | जिनका डीएनए इस देश के मुलनिवासियो के साथ नही मिलता है | बल्कि  मनुवादियो के परिवार में मौजुद महिलाओ का भी डीएनए मनुवादियो से नही बल्कि इस देश के मुलनिवासियो से मिलता है | यानि " ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी " यह श्लोक क्यों लिखा गया था इसका भी जवाब डीएनए रिपोर्ट से मिल गया है | जो कि 21 मई 2001 को The Times of india अखबार में छापी गयी थी | जिसपर छपी डीएनए रिपोर्ट और पिंक क्रांती की रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादियो के मन में पशु नारी और शुद्र ताड़न के अधिकारी क्यों आया होगा ? 

साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान पुजा को ढोंग कहने वाले ढोंगी पाखंडियो का अदृश्य ईश्वर और अदृश्य स्वर्ग नर्क के बारे में क्या विचार है ?

साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान पुजा को ढोंग कहने वाले ढोंगी पाखंडियो का अदृश्य ईश्वर और अदृश्य स्वर्ग नर्क के बारे में क्या विचार है ? 

सत्य का प्रतिक शिव लिंग पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाले हो सके तो कभी विज्ञान द्वारा कथित उस अदृश्य स्वर्ग के बारे में भी पता कर लें जिसकी कामना मंदिर मस्जिद और चर्च वगैरा में आँख मुँदकर की जाती है | उन्हे पता चल जायेगा कि अदृश्य स्वर्ग की मान्यता सिर्फ आस्था और विश्वास पर अधारित है | जिसका अबतक कोई भी प्रमाण नही कि मरने वाले अपने जिवन में किए गए कर्मो और कुकर्मो के अनुसार ही आत्मा के रुप में इस सृष्टी से बाहर किसी और जगह स्वर्ग या नर्क में चला जाता हैं | अथवा मरने के बाद स्वर्ग या नर्क यात्रा होती है | जबकि साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान के बारे में विज्ञान को भी पता है कि प्रयोगिक और प्रमाणित तौर पर प्रकृति रचना ढोंग पाखंड है कि स्वर्ग नर्क की रचना ढोंग पाखंड है | क्योंकि स्वर्ग नर्क की प्रमाणिकता पर विज्ञान ही नही बल्कि स्वर्ग नर्क पर यकिन करने वाले भी अपनी रोजमरा जिवन में उतने यकिन नही करते हैं जितने कि उन्हे प्रकृति भगवान की गोद में ही स्वर्ग मौजुद है इस बात पर ज्यादे यकिन है | क्योंकि यदि वे ज्यादे यकिन अदृश्य स्वर्ग नर्क में करते तो निश्चित तौर पर उन्हे आँख मुँदकर स्वर्ग की कामना करने की कभी आवश्यकता ही नही पड़ती , बल्कि स्वर्ग की यात्रा करने अथवा स्वर्गवासी होने के लिए चिंता करने या डरने के बजाय हर पल स्वर्गवासी होने के लिए उतावले होते | न कि प्रकृति भगवान की गोद में रोजमरा जिवन चलती रहे इसके लिए सबसे अधिक चिंता करके हर रोज हवा पानी लेते रहते | बल्कि अदृश्य स्वर्ग नर्क कि कल्पना करने वाले ने भी चिंता करते हुए स्वर्ग नर्क में प्रकृति भगवान की रचना हवा पानी आग वगैरा को मान्यता दिया है | जो यदि सत्य नही है कि स्वर्ग नर्क में प्रकृति रचना हवा पानी अग्नि वगैरा मौजुद नही है तो निश्चित तौर पर स्वर्ग नर्क की कल्पना करना भी साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान के विपरित है | क्योंकि यदि स्वर्ग नर्क प्रकृति में मौजुद नही है , अथवा प्रकृति से बाहर है , तो वह प्रकृति और विज्ञान के लिए निश्चित तौर पर अमान्य है | और यह बात भी अमान्य है कि प्रकृति द्वारा निर्मित शरिर आत्मा की वजह से ही चलता फिरता है | और आत्मा किसी की मौत होने के बाद स्वर्ग या नर्क चला जाता है | और यदि शरिर को आत्मा चला रहा होता है तो फिर इंसान में मौजुद भोजन और हवश की भुख शरिर को होती है कि आत्मा को ? और शरिर की मौत आखिर कब होती है ? शरिर से आत्मा के निकलने पर कि प्राकृतिक द्वारा शरिर की रचना से साँस रुकने पर ? और यदि सही जवाब में भोजन और हवश की भुख आत्मा को होती है , तो फिर तो सिर्फ एक दुसरे को समर्पित प्रेमी प्रेमिका और वैवाहिक जोड़ी मरने के बाद दुसरे जन्म में अपना अपना शरिर छोड़कर किसी दुसरे शरिर से मिलन करते होंगे | क्योंकि यदि मरने के बाद आत्मा किसी दुसरे शरिर को धारन करके दुसरा जन्म लेता होगा तो निश्चित तौर पर मरने के बाद का शरिर दुसरा होगा | यानि भोजन और हवश की इच्छा आत्मा को होती है शरिर को नही ! शरिर तो सिर्फ आत्मा द्वारा इस्तेमाल हो रहा होता है | जिसके नष्ट होने के बाद उसके अंदर मौजुद आत्मा किसी दुसरे शरिर में प्रवेश करके भोजन और हवश की भुख मिटाना शरिर बदल बदलकर जारी रखता है | यानी भुख मिटाने का आनंद आत्मा लेता है शरिर नही ! फिर ये क्यों कहा जाता है कि पेट अथवा शरिरर को भुख लगा है | हिन्दु धर्म  मान्यता अनुसार तो किसी प्राणी के मरने के बाद शरिर सिर्फ अपना रंग रुप बदलकर पुराना शरिर ही नया शरिर धारन करता है | न कि कोई मरने के बाद इस दुनियाँ से ही गायब होकर किसी दुसरी दुनियाँ में आत्मा के रुप में जाकर वापस इसी दुनियाँ में आकर किसी दुसरे शरिर में प्रवेश करके नया जन्म लेता है | और उसके बाद किसी दुसरे शरिर से मिलन करता है | जिस बात को प्रकृति सत्य नही मानता | क्योंकि प्रकृति भगवान की कृपा से इस दुनियाँ में जन्म लेने वाला इंसान चाहे जिससे भी विनती कर ले , प्रकृति सत्य यही है कि यदि वह प्रकृति की कृपा से इसी दुनियाँ में जन्म लिया है , तो वह कोई दुसरी दुनियाँ में अपने प्रकृति निर्मित तन मन को किसी भी चमत्कार द्वारा इस दुनियाँ से बाहर किसी दुसरी अदृष्य दुनियाँ में विस्थापित नही कर सकता | बल्कि उसका पुराना शरिर का ही अंश नया रंग रुप लेकर नया जन्म लेगा | जैसे कि सृष्टी में मौजुद ग्रह तारे वगैरा अपना उम्र पुरा कर लेने के बाद नष्ट होकर वापस नये रंग रुप धारन करते हैं | न कि हर रोज नये नये ग्रह तारे वगैरा इस सृष्टी में किसी दुसरी दुनियाँ से आ रहे हैं | क्योंकि यह सृष्टी प्रकृति भगवान के द्वारा निर्मित है , और उसी के द्वारा स्थिर कायम भी है | जिस प्रकृति भगवान के बारे में पुरी जानकारी किसी के भी द्वारा हासिल कर पाना नामुमकिन है | और प्रकृति भगवान जो कि हम सब में भी मौजुद है , उसके बारे में पुरी तरह से बिना जाने समझे सत्य शिव लिंग योनी पुजा को ढोंग पाखंड कहना खुदको प्रकृति के बारे में सबकुछ जानने वाला ऐसा चमत्कारी ज्ञानी होने का दावा करना है , जिसे प्रकृति में मौजुद सारे रहस्यो के बारे में पता हो | जबकि आजतक ऐसा कोई भी प्राणी नही जन्मा जो कि एक मच्छड़ तक की प्रकृति रचना के बारे में भी जान सके और खुद मच्छड़ की रचना कर सके | बल्कि प्रकृति भगवान जो कि पत्थर के रुप में भी साक्षात मौजुद है , उसकी पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाला इंसान अभी तो प्राकृति में मौजुद ग्रह पृथ्वी के बारे में भी पुरी जानकारी नही जुटा पाया है | और न ही पृथ्वी से बाहर मौजुद एलियन के बारे में भी जानकारी ठीक ठीक जुटा पाया है | हाँ उसी इंसान ने ही जब वह बिजली जलाना , टी०वी० चलाना , रेल चलाना , मोबाईल कम्प्यूटर वगैरा चलाना नही जानता था उस समय अलग अलग कई धर्म ग्रंथो की रचना करके उसमे सारी सृष्टी को ही रचने वाले अदृश्य ताकत के बारे में हजारो साल पहले प्रकृति द्वारा विकसित तन मन से कल्पना करके अलग अलग जानकारी उपलब्ध कराने का दावा जरुर कर दिया है | जो दावा यदि वर्तमान के इंसान करे तो निश्चित तौर पर उसे ढोंगी पाखंडी कहकर उसके द्वारा कही बातो पर यकिन ही नही किया जायेगा | वैसे पहले भी जो दावा किया गया है उसपर कभी भी न खत्म होनेवाला विवाद है | क्योंकि धर्म ग्रंथ में बतलाई गई जानकारी पुर्ण रुप से सत्य है इसपर सभी धर्मो के बिच विवाद है | जिसके चलते निश्चित तौर पर इंसान द्वारा पैदा किया धर्म में मौजुद सत्य को सभी धर्मो के आस्तिको के साथ साथ नास्तिक भी सौ प्रतिशत सत्य मानकर अपना लेंगे ऐसा समय कभी नही आनेवाला है | क्योंकि कौन सा धर्मग्रंथ में लिखी गई सारी जानकारी पुर्ण सत्य है जिसपर सभी इंसान यकिन कर ले इसपर ही तो मुल धार्मिक विवाद है | जिसके चलते जिसको जिसपर विश्वास होने लगती है उसे स्वीकार करने के लिए ही तो धर्म बदलने की प्रक्रिया भी चलती रहती है | जो कभी समाप्त ही नही होगी जबतक की इस सृष्टी की रचना करने वाले यदि गायब होकर इस सृष्टी को वाकई में चला रहे होंगे तो सारी विवादो को समाप्त करने के लिए वे खुद आकर हो सके तो सारी दुनियाँ की मीडिया बल्कि सारी सृष्टी के एलियन और दुसरे प्राणी के सामने प्रेस वर्ता करके अपने बारे में खास जानकारी के रुप में ऐसी खुदकी ऑडियो विडियो बल्कि लिखित पुस्तक भी खुद जारी कर दे जिसपर सौ प्रतिशत सभी धर्मो समेत नास्तिक लोग भी यकिन कर लें कि कौंन सबके द्वारा स्वीकार किये जानेवाला सत्य है | जैसे कि सभी धर्मो के लोग साक्षात मौजुद हवा पानी को अलग अलग भाषा में जल ही जिवन है सौ प्रतिशत स्वीकार करते हैं | और सभी एक ही हवा पानी को जानते हैं | जिसपर कोई विवाद भी नही कि वह हवा पानी नही कुछ और है | क्योंकि प्रकृति भगवान अनंतकाल से साक्षात मौजुद होकर अपनी प्रमाणिकता आस्तिक और नास्तिक दोनो को दे रहे हैं | जिस तरह की एक सत्य एक प्रमाणित ज्ञान मान्यता न होकर फिलहाल तो किसी इंसान द्वारा कई अलग अलग ऐसे धर्म पुस्तक की रचना जरुर कर लिया गया है , जिसपर सभी धर्म में सत्यता को लेकर कई विवाद है | जैसे कि सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति के मुलनिवासियो ने प्रकृति भगवान पुजा करते हुए उसके बारे में जिस वेद पुराण की रचना किया है उसपर भी कई विवाद है | जिसमे बाद में मनुवादियो के द्वारा मिलावट और छेड़छाड़ करके प्रकृति भगवान पुजा को देवता पुजा के रुप में परिवर्तित करने की कोशिष किया गया है | प्रकृति हवा पानी सुर्य वगैरा की पुजा को वायुदेव जलदेव अग्निदेव सुर्यदेव वगैरा नाम देकर मनुवादियो ने प्रकृति भगवान पुजा को देव पुजा साबित करने की कोशिष किया है | जबकि वेद पुराण में दरसल साक्षात प्रकृति भगवान के बारे में और सृष्टी में मौजुद जिवन के बारे में प्रमाणित जानकारी मौजुद है | जैसे की प्रकृति में चारो ओर अनगिनत प्रमाणित सत्य उपलब्ध है | जिसकी खोज करके प्रकृति ज्ञान में दिन प्रतिदिन बड़ौतरी होती रहती है | जिस प्रकृति भगवान के प्रति विश्वास जाहिर करने के लिए कोई भी इंसान भगवान की पुजा अपने घर में भी कर सकता है | क्योंकि प्रकृति भगवान सभी जगह साक्षात मौजुद हैं ! और सबके लिए एक है | जैसे कि सबके लिए हवा पानी और सुर्य की रौशनी एक है | जिसकी रचना करने वाला प्रकृति भगवान के बारे में हम ये नही कह सकते कि साक्षात भगवान कि मौजुदगी इस सृष्टी में किसी न किसी रंग रुप में फलाना जगह नही है | इसलिए वहाँ पर भगवान नही मिलेगा , और उसकी पुजा पत्थर के रुप में खुले आसमान या जंगल झाड़ में मान्य नही होगी , सिर्फ मंदिर मस्जिद चर्च में ही मान्य होगी ! फिर तो जो लोग मंदिर मस्जिद और चर्च कभी गए ही नही हैं , उनके जिवन में भगवान की कृपा कभी आई नही है ! और न ही वे बिना मंदिर मस्जिद और चर्च गए कभी प्रकृतिक भगवान से विनती कर सकते हैं | जैसे की सिंधु घाटी जैसी विकसित सभ्यता संस्कृति सारी दुनियाँ में जहाँ जहाँ पर भी मंदिर मस्जिद चर्च बनने से पहले विकसित हुई है , वहाँ पर मंदिर मस्जिद चर्च बनने से पहले भगवान की कृपा कभी मिली ही नही थी , जहाँ पर मंदिर मस्जिद और चर्च बनने के बाद ही सबसे अधिक कृपा बरस रही है | बल्कि मेरे विचार से तो वहाँ पर प्रकृति भगवान की कृपा मंदिर मस्जिद चर्च बनने से पहले सबसे ज्यादे बरसी है | जिसकी वजह से वहाँ पर हजारो सालो से सबसे अधिक अबादी भी पल रही है | और जिन्हे कम कृपा मिली है वे लोग भी वहाँ पर हजारो सालो से कृपा पाने के लिए खिचे चले आकर पले बड़े हैं | बल्कि कई तो जल्दी जल्दी कृपा पाने की लालच में आकर दुसरो को मिली कृपा को जोर जबरजस्ती कब्जा करने की कोशिष में हजारो सालो से भगवान से मिली कृपा को नष्ट भ्रष्ट करने की कोशिष में लगे हुए हैं | जिसके चलते जहाँ जहाँ पर भी प्रकृति भगवान की कृपा सबसे अधिक बरसी है , वहाँ वहाँ सबसे अधिक लुट मार छिना झपटी भी हुए हैं , जो कि अबतक भी हो रही हैं | जिससे प्रकृति भगवान नाराज हए हैं , जिसकी नराजगी पुरी दुनियाँ में देखी जा सकती है | जिसकी नराजगी की अंतिम सीमा के बारे में सारे धर्मो में चर्चा की गई है कि जब अति हो जायेगी तो उस समय प्रकृति भगवान सारे मंदिर मस्जिद समेत सारे भक्तो को बल्कि इस पृथ्वी को ही मानो रिसाईकल करने के लिए नष्ट कर देंगे | और उनकी नष्ट हुई अवशोषो से नया जिवन सृजन करेंगे | जैसे की अब भी जो इंसान मरता है , उसकी अवशेष से ही फिर से नई जिवन का सृजन होता है | सिर्फ पुराना से नया रंग रुप तन मन बदलता रहता है | न कि इंसान  मरने के बाद नया जन्म लेने के लिए गायब होकर कहीं दुसरी दुनियाँ में चला जाता है | जो यदि सचमुच में चला जाता तो उसकी लाश को लोग इसी दुनियाँ में क्यों दफनाते या जलाकर इसी दुनियाँ में उसके अवशेष को रखते या प्रकृति निर्मित पानी में दहाते  ? बल्कि मरने के बाद उसके करिबी उसपर कोई ध्यान ही नही देते यह कहकर कि अब वह इस दुनियाँ में नही बल्कि किसी दुसरी दुनियाँ में सुरक्षित रहने चला गया है | जिस दुनियाँ में अबतक मरे सभी इंसान बल्कि सायद दुसरे प्राणी भी अपनी मौजुदगी दर्ज करके , वहाँ पर नया शरिर अपनाकर वर्तमान में मौजुद इस दुनियाँ की अबादी से भी ज्यादा अबादी बस चुकी है | जो आगे भी इस दुनियाँ से जाकर दुसरी दुनियाँ में बसते ही जा रही है | फिर क्यों कब्र में जाकर मोमबत्ती अगरबत्ती जलाकर या फुल चड़ाकर या फिर यू ही जाकर उसकी इसी दुनियाँ में रहने का प्रमाण देते रहते हैं ? बल्कि उसकी लाश की सुरक्षा व्यवस्था भी करते रहते हैं | जो यदि किसी दुसरी दुनियाँ में जा चुका है , तो फिर इस दुनियाँ में उसकी चिंता करने और उसकी सुरक्षा के लिए ताला लगाने की क्या जरुरत है | अगर स्वर्ग नर्क वाकई में किसी दुसरी दुनियाँ में मौजुद है , तो फिर स्वर्ग की कामना करने वाले स्वर्ग सुख इस दुनियाँ में तलाशने के बजाय सिधे स्वर्ग वाशी क्यों नही हो जाते हैं | क्यों स्वर्ग वाशी न होने के लिए दिन रात न जाने क्या क्या नही करते हैं ! सिर्फ कहने सुनने देखने दिखाने को तो बहुत कुछ उदाहरन मिलती है कि फलाना स्वर्ग वासी हो गया , पर सच्चाई यही है कि वह स्वर्ग वासी होना कभी चाहता ही नही था | जिसके लिए वह अंतिम तक न मरने की कोशिष करता रहा | क्योंकि सच्चाई यही है कि इस दुनियाँ में जन्म लेने वाले बहुत कम लोग हैं , जो मानो न के बराबर हैं , जो कि सचमुच में अपनी इच्छा से स्वर्ग वासी होना चाहते हैं | क्योंकि भले क्यों न वे दिन रात स्वर्ग की कामना करते रहते हो , पर सच्चाई यही है कि स्वर्गवासी होने के बारे में सिर्फ सुनकर भी डर और मातम का माहौल बन जाता है | यकिन न आए तो किसी से कभी एक पल के लिए एक झुठ कहकर देखो की उसका करिबी जिसके सुख के लिए वह दिन रात कामना करता रहता है , जो कि उसी के द्वारा ही यह भी माना जाता है कि स्वर्ग से ज्यादा सुख और कहीं पर भी नही है , उस स्वर्ग का वासी हो गया | अथवा किसी के स्वर्ग वासी होने की एक झुठ एक पल के लिए कहकर देखो , दुसरी दुनियाँ का अदृश्य स्वर्ग नर्क में कितनी सच्चाई है | और प्रकृति भगवान की बनाई हुई साक्षात इस स्वर्ग नर्क दुनियाँ में कितनी सच्चाई है | जिसे बनाने वाले प्रकृति भगवान के बगैर प्रयोगिक तौर पर कोई भी इंसान जिवित रहना तो दुर जन्म भी नही ले सकता | जिसे पुजने के लिए किसी पुजारी या फिर मंदिर मस्जिद चर्च की भी जरुरत नही होती है |

साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाले दरसल असली ढोंगी पाखंडी हैं

साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाले दरसल असली ढोंगी पाखंडी हैं 

प्रकृति में साक्षात मौजुद सत्य का प्रतिक पत्थर शिव लिंग योनी पूजा के बारे में कुछ ढोंगी पाखंडी लोग यह गलत ज्ञान बांटने में लगे हुए हैं कि सत्य शिव लिंग योनी की पुजा ढोंग पाखंड अथवा गलत है | जो अपने माता पिता की लिंग योनी को भी सायद ढोंग पाखंड मानते होंगे | जिनके लिए तो सिर्फ अदृश्य माय बाप जैसे की मनुवादियो के पुर्वज लापता देवो का पुजा पाठ करना सही है | जो किसी को न दिखाई देते हैं , न सुनाई देते हैं , और न ही सभी इंसानो को उसके साक्षात मौजुद होने पर विश्वास है | जिसकी प्रमाणिकता विद्यालय में सायद ही किसी विषय पर पढ़ाई जाती है | जिस तरह कि अदृश्य अप्रकृति शक्ती द्वारा सृष्टी का सृजन और संचालन मान्यता को न मानने वाले करोड़ो लोग हैं , जिन्हे नास्तिक भी कहा जाता है | और साथ साथ आस्तिक कहे जाने वाले इंसानो द्वारा भी पैदा किया गया इतने सारे आपस में वाद विवाद करते अलग अलग बने कई धर्म भी हैं , जो दुसरे धर्मो के मान्यताओ को पुर्ण रुप से स्वीकार नही करते हैं  | जिसके चलते सभी धर्मो के धर्मग्रंथो की सत्यता पर विवाद होता रहता है | क्योंकि अलग अलग धर्मो के आस्तिक भक्त अपने धर्म ग्रंथो में लिखी गयी बातो को तो सौ प्रतिशत सत्य मानते हैं , लेकिन दुसरे धर्मो के धर्मग्रंथो में अनगिनत गलतियाँ निकालते रहते हैं | जिसके चलते धर्म ग्रंथो में लिखी गई सत्यता को लेकर आपस में इतने सारे वाद विवाद होती रहती है कि आये दिन खुन खराबा दंगा फसाद की भी नौबत आती रहती है | जो खुन खराबा कभी भी समाप्त नही होनेवाली है , जबतक की सभी इंसान एक धर्म और एक पुजा स्थल को एक साथ अपना न लें | जो कि सभी धर्मो का विलय होना नामुमकिन है | क्योंकि एक दुसरे को पसंद नापंद करके धर्म परिवर्तन करने का सिलसिला आये दिन वाद विवाद की वजह से बड़ते ही जा रही है | बल्कि वाद विवादो और अलग अलग कई मान्यताओ के द्वारा आपस में खुब सारी मतभेद होने के कारन धर्म के नाम से कितने सारे देश भी बंटते और बनते जा रहे हैं | क्योंकि सभी धर्म खुदको दुसरे धर्म से अलग समझते हैं | जिसके चलते सबका पुजा स्थल भी अलग अलग होता है | मानो सबके पुजा स्थलो में कोई अलग अलग अदृश्य ताकत अपने अपने भक्तो में कृपा बरसाने आते हैं | चर्च में जाकर अदृश्य खुदा की पुजा नही हो सकती , और मस्जिद में जाकर अदृश्य गॉड और मनुवादियो के पुर्वज कहे जानेवाले अदृश्य देवताओ की पुजा नही हो सकती | जबकि साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की पुजा पत्थर के रुप में खुले आसमान या जंगल झाड़ वगैरा में भी हो सकती है | जो पत्थर मंदिर मस्जिद चर्च ही नही बल्कि पुरे सृष्टि में साक्षात मौजुद है | जिसकी पुजा एलियन भी कर सकते हैं , चाहे वे सृष्टी के जिस कोने में मौजुद हो | क्योंकि प्रकृति भगवान सब जगह मौजुद है , और सबके लिए एक हैं | जैसे की प्रकृति हवा पानी सबके लिए एक है | जिस प्रकृति भगवान का ही एक रुप सत्य का प्रतिक शिव लिंग योनी पत्थर के रुप में पुजा होती है | जिस सत्य शिव लिंग योनी की पुजा को ढोंग पाखंड कहने वालो के लिए अदृश्य ताकत की पुजा ढोंग पाखंड नही लगती है | जिनके लिए तो मानो प्रकृति भगवान द्वारा किसी की रचना करना ही ढोंग पाखंड अथवा गलत है |वैसे में तो प्रकृति भगवान द्वारा रचित इंसान ही नही बल्कि जिव निर्जिव सभी की रचना ढोंग पाखंड है ! जिस प्रकृति भगवान की रचना के बारे में सत्य जानकारी जुटाने के लिए नई नई खोज करने में विज्ञान भी दिन रात लगा हुआ है | जिसमे प्रकृति में मौजुद रहस्यो के बारे में नई नई खोज के रुप में सफलता भी मिल रही है | फिर भी इंसान तो क्या सृष्टी में मौजुद कोई भी प्राणी प्रकृति के सारे रहस्यो को पुरी तरह से जान सके ऐसा चमत्कार चाहे जितने धर्मो का उदय हो जाय , कभी नही होनेवाला है | क्योंकि प्रकृति भगवान के सारे चमत्कारी रहस्यो को जानने वाला प्राणी आजतक न तो कोई जन्म लिया है , और न ही कभी लेगा | जो प्रकृति भगवान साक्षात हर पल ढोंगि पाखंडियो को भी बिना कोई बातचीत किए ही हवा पानी वगैरा देकर पाल पोस रहा है | जिस सत्य की पुजा को ढोंग पाखंड कहना दरसल जिस थाली में प्रकृति भगवान का खाया जा रहा है , उसी पर छेद करना है | क्योंकि हिन्दु धर्म में सत्य शिव लिंग योनी की पुजा दरसल साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की पुजा है | जो कि पत्थर के अलावे पेड़ पौधा अन्न जल मिट्टी के रुप में भी होती है | जिसकी सच्चाई साक्षात चारो ओर मौजुद है | जिसके बारे में जिन लोगो द्वारा यह कहा जाता है कि पत्थर मिट्टी पेड़ पौधा न बोल सकता है , और न सुन सकता है , उसकी पुजा अँधविश्वास और ढोंग पाखंड के सिवा कुछ नही , उनको तो जो बोल सुन बल्कि दिखाई भी नही देता है , उसकी पुजा ज्यादे ढोंग पाखंड और अँधविश्वास लगनी चाहिए थी ! या फिर वैसे लोग अपने पुजा स्थल मंदिर मस्जिद चर्च वगैरा में आँख मुँदकर जिसे बिना देखे बिना सुने और बातचीत किए सर झुकाकर आशीर्वाद मांगने जाते हैं , वह क्या वहाँ पर अपने भक्तो पर कृपा बरसाते समय बोल सुन और दिखता भी है ? दरसल ऐसे लोग प्राकृति की कृपा से जन्म लेकर और हवा पानी भोजन वगैरा लेकर उसी प्राकृति भगवान जो की साक्षात मौजुद सत्य का प्रतिक पत्थर शिव लिंग योनी के रुप में भी पुजा जाता है , उसको तो ढोंग पाखंड कहते हैं , पर उसी प्रकृति भगवान के द्वारा होनेवाली जन्म मरन प्रक्रिया को सत्य जरुर स्वीकारते हैं | और जो लोग नही स्वीकारते हैं , ऐसे लोगो को तो प्रकृति भगवान द्वारा रचना की गई किसी भी चीज को सत्य स्वीकार नही करनी चाहिए थी | जैसे कि उन्हे तो यह भी स्वीकार नही करनी चाहिए थी कि उनके भितर मौजुद सारे अंग और सृष्टी में मौजुद ग्रह तारे चाँद पृथ्वी वगैरा प्रकृति भगवान के द्वारा निर्मित की गई है | बल्कि उन्हे तो अपनी जन्म को भी प्रकृति भगवान की कृपा न मानकर ये स्वीकार करनी चाहिए कि उनका जन्म बिना प्रकृति भगवान की कृपा लिए अथवा बिना माता पिता के प्रकृति निर्मित लिंग योनी के ही अचानक से किसी अदृश्य माता पिता द्वारा अप्रकृति विधि द्वारा हुआ हैं | जैसे की मनुस्मृति में अप्रकृतिक जन्म के बारे में लिखा गया है | बल्कि उन्हे तो यह भी मान लेनी चाहिए कि उनके अंदर प्रकृति भगवान द्वारा रचना की हुई कोई अंग मौजुद है ही नही | जबकि सारी दुनियाँ जानती है की प्रकृति भगवान की रचना इंसान के भितर हर अंग में मौजुद है | बल्कि प्रकृति भगवान सृष्टी के कण कण में मौजुद हैं  | सृष्टी में ऐसा कोई जगह नही जहाँ पर भगवान की पहुँच नही है | जिसके चलते ही तो हिन्दु मान्यता अनुसार यह ज्ञान बांटा जाता है कि भगवान की मौजुदगी सबके अंदर होती है | जिस प्रकृति भगवान की मौजुदगी पत्थर के रुप में भी साक्षात मौजुद है | जो विज्ञान द्वारा प्रमाणित भी है कि बिना पत्थर के न तो पृथ्वी का वजूद एक पल भी कायम रह पायेगी , और न ही बिना पत्थर के सृष्टी की कल्पना करना भी मुमकिन हो पायेगी | यकिन न आए तो विज्ञान और कोई अन्य प्रमाणित सत्य ज्ञान माध्यम से पता करके कोई देख ले | बल्कि प्रकृति भगवान की प्रमाणिकता पर नास्तिक भी विश्वास करते हैं कि प्रकृति की वजह से ही वे जिवित हैं | भले वे साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की पुजा नही करते हैं | और फिर विश्वास पर तो सारी दुनियाँ और सारे धर्म भी कायम है |

साक्षात प्रकृति भगवान की सच्चाई अनंत काल से स्थिर कायम है | जिसे कोई नही बदल सकता , भले चाहे जितना धर्म बदल ले

साक्षात प्रकृति भगवान की सच्चाई अनंत काल से स्थिर कायम है | जिसे कोई नही बदल सकता , भले चाहे जितना धर्म बदल ले

नशा से भी ज्यादे खतरनाक ढोंग पाखंड का नशा है , जिससे मुक्ती अपना धर्म बदलकर कभी नही होनेवाला है | क्योंकि जिस तरह दारु बीड़ि सिगरेट देश के सभी शहरो और ग्रामो में अपना पहुँच बना ली है , उसी तरह ढोंग पाखंड का नशा भी साक्षात मौजुद देश दुनियाँ में सभी जगह अपनी मौजुदगी बेहरुबिया बनकर बना चुका है | झाड़ु मारकर या मंत्र फुककर बिमारी ठीक करने का दावा करने वाले ढोंगी पाखंडी सिर्फ हिन्दु धर्म में मौजुद नही हैं कि इस धर्म से उस धर्म में जाने से सारी समस्याओं का समाधान अपना धर्म बदलने से हो जायेगा | क्योंकि ढोंगी पाखंडी सभी धर्मो में ढोंग पाखंड समस्या पैदा करने में लगे हुए हैं |  जिसके बारे में जानकर न तो नशा मुक्त होने के लिए सभी नागरिको को देश दुनियाँ को छोड़नी चाहिए , और न ही ढोंगि पाखंडियो से छुटकारा पाने के लिए किसी को अपने धर्म को छोड़नी चाहिए ! बल्कि ढोंग पाखंड का नशा जो कि सभी धर्मो में अपना पहुँच बना ली है , उस ढोंग पाखंड मिलावट को धर्म से बाहर करनी चाहिए | जैसे कि यदि किसी धान गेहूँ की खेती में अफीम की मिलावट हो रही है तो धान गेहूँ की खेती में जो अफीम की मिलावट हुई है , उसे हटाकर वापस धान गेहूँ की खेती होनी चाहिए | क्योंकि चाहे दारु बिड़ी सिगरेट का नशा हो या फिर ढोंग पाखंड का नशा हो , दोनो तरह की नशे से मुक्ती अपना खेत या फिर देश को ही छोड़ देने से नही होगा | और न ही कब्जा धारियो द्वारा दारु का भट्ठी लगाये जाने से बंजर हुई उपजाउ जमिन को छोड़ देने से जमिन उपजाउ हो जायेगी | हलांकि जमिन के मामले में तो इस देश के मुलनिवासी अपने ही देश के जमिन में सबसे अधिक विस्थापित हो रहे हैं , पर धर्म के मामले में वे अपना धर्म परिवर्तन करके जिन धर्मो कि ओर सबसे अधिक विस्थापित हो रहे हैं , या अपना धर्म छोड़कर दुसरे धर्मो की तरफ जा रहे हैं , उनमे से यहूदि मुस्लिम और ईसाई धर्म विदेशो में पैदा हुए हैं | जिसका मुख्यालय विदेशो में है | जहाँ से पुरी दुनियाँ में धर्म का प्रचार प्रसार करके , और लाखो करोड़ो लोगो को अपने धर्मो से जोड़कर धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए धिरे धिरे लगभग सभी देशो में धार्मिक प्रचार प्रसार ब्रांच खोले गए हैं | जहाँ से भक्तो द्वारा दान किया हुआ करोड़ो अरबो विदेश में मौजुद मुख्यालय में जाता है | जो धर्म इस देश में बहुत बाद में प्रवेश किए हैं | जैसे की यहूदि डीएनए के मनुवादि भी इस देश में बाद में प्रवेश करके हिन्दु बने हैं | जिसके बाद धिरे धिरे लाखो मंदिर हिन्दु भगवान पुजा के नाम से बनाकर उसके अंदर अपने पुर्वज देवताओ का मुर्ति बिठाकर मानो खुदको जन्म से हिन्दु धर्म के पुजारी आरक्षित घोषित कर लिए हैं | जिन मनुवादियो के आने से पहले मानो इस देश के मुलनिवासी बिना मनुवादियो के पुजा पाठ ही नही करते थे ! बल्कि जहाँ जहाँ मनुवादि पुजा करने नही जाते हैं , वहाँ वहाँ कोई पुजा पाठ ही नही होती है | जो बात वैसा ही है जैसे कि मानो इस देश में गोरो के आने से पहले कोई पढ़ाई ही नही होती थी | और गोरो के आने के बाद ही इस देश के लोग खुदको शिक्षित करना सुरु किए हैं | फिर नालंदा विश्व विद्यालय , विक्रमशिला विश्व विद्यालय और तक्षशिला वगैरा विश्व विद्यालयो में हजारो साल पहले पुरे विश्व से जो लोग आते थे वे क्या मनुस्मृति का ज्ञान लेने आते थे ? जिन विश्व विद्यालयो से भी ज्यादे विश्व चर्चित विद्यालय गोरो के आने से लेकर अबतक बने हैं क्या ? क्योंकि सच्चाई ये है कि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले जब मनुवादि खेती करना भी नही जानते थे , उस समय इस कृषि प्रधान देश में विकसित सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति और गणतंत्र का निर्माण कबका हो चुका था | बल्कि मनुवादि जब इस देश में कबिलई पुरुष झुंड बनाकर प्रवेश किये थे , उस समय मनुवादियो के पुर्वज संभवता सिर्फ मदिरा पिना पशु लुटपाट पशु चोरी करके पशु यज्ञ कराना जानते होंगे | जिसके बारे में वेद पुराण भी भरे पड़े हैं कि किस तरह देवो के राजा इंद्रदेव इस देश में अपने पुरुष झुंड के साथ प्रवेश करके कृषी में साथ देने वाले पशुओ की चोरी करने के बाद पशु यज्ञ कराके मदिरापान और बोटी नोचवाते थे , न कि पशु यज्ञ करने वालो से रोटी के लिए खेती करवाते थे | जिस इंद्रदेव के वंसज मनुवादियो के वर्तमान शासन में भी तो यह कृषि प्रधान देश पुरे विश्व में पिंक क्रांती प्रधान हो गया है | और पुरे विश्व में खेती से ज्यादे बोटी उत्पादन में आगे हो गया है | क्योंकि मनुवादियो के पुर्वज देवो और खुद वर्तमान के मनुवादि भी मुलता कृषि से जुड़े हुए लोग नही हैं | इसलिए तो उन्होने ढोंग पाखंड नशे कि व्यापार को भी इस कृषि प्रधान देश की सभ्यता संस्कृती में मिलावट करके हिन्दु धर्म को अपना ढोंग पाखंड धर्म साबित करने कि कोशिष किया है | जिसके चलते शिक्षा में ध्यान न देकर अबतक भी आधी अबादी को अशिक्षित रखा गया है | मनुवादियो का कब्जा गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में होने के बाद शिक्षा क्षेत्र में विश्वगुरु कहलाने वाला यह कृषि प्रधान देश विश्व के दो सौ विश्व विद्यालयो में भी अपनी मौजुदगी अबतक दर्ज नही करा पाया है | जबकि मनुवादियो द्वारा इस देश में प्रवेश करने से बहुत पहले ही इस कृषि प्रधान देश में सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती और गणतंत्र का निर्माण कबका हो चुका था | जिस सिंधु से ही हिन्दु शब्द आया है | जिस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण इस देश के मुलनिवासी द्वारा करने के बाद किस तरह कि विकसित व्यवस्था हजारो साल पहले भी मौजुद थी इसके बारे में वर्तमान में मौजुद जो हजारो जातियाँ हैं , जो दरसल हजारो साल पहले भी मौजुद हजारो हुनर है , जिसके बारे में विस्तार पूर्वक पता करके जाना समझा जा सकता है कि मुवादियो के आने से पहले सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु का पहचान क्या था | जिस विश्व चर्चित कृषि सभ्यता संस्कृति की विकसित व्यवस्था में मनुस्मृति ढोंग पाखंड का संक्रमण होने के बाद ही मनुवादि संभवता अज्ञनता कि वजह से हजारो विकसित हुनरो को हजारो निच जाति और खुदको मनुवादि शासन स्थापित करने वाले कथित उच्च जाति घोषित किया हुआ है | जिन मनुवादियो की उच्च निच जातियो पर अधारित मनुस्मृति व्यवस्था कैसी होती है , उसकी सिर्फ झांकी के तौर पर अब भी मंदिरो के बाहर लगा बोर्ड जिसमे अंदर निच का प्रवेश मना है जो लिखा रहता है उसे पढ़कर जाना समझा जा सकता है | जबकि कृषि सभ्यता संस्कृति पर अधारित आपस में मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाने और आपस में मिल जुलकर ज्ञान बांटने वाली व्यवस्था कैसी होती है इसकी झांकी प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई से भी पता चल चुका है कि हजारो साल पहले भी मनुवादि संभवता कपड़ा पहनना और परिवार समाज के बारे में भी जब नही जानते थे उस समय भी इस कृषि प्रधान देश में हजारो विकसित हुनर पर अधारित विकसित व्यवस्था मौजुद थी | जिसका निर्मान करने वाले इस देश के मुल निवासीयो द्वारा ही साक्षात प्रकृति भगवान पुजा और बारह माह साक्षात प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाई जानी सुरु हो चुकि थी | न कि मनुवादियो के पुर्वज कहलाने वाले बेवड़ा इंद्र जैसे बलात्कारी की पुजा की जाती थी | जिसका कथित स्वर्ग में भी कृषि जिवन नही बल्कि मदिरापान और भोग विलास युक्त जिवन चलती है | जिसने विवाहित अहिल्या का बलात्कार छल कपट द्वारा किया था | बल्कि वृत्तासुर की पत्नी तुलसी का मान सम्मान लुटने वाले विष्णुदेव और सरस्वती का मान सम्मान लुटने वाले ब्रह्मादेव जैसे दुसरे गुमनाम देवताओ की भी पुजा नही की जाती थी | इसलिए बलात्कारी इंद्रदेव समेत अन्य भी गुमनाम देवताओ की मुर्ति जिन जिन हिन्दु पुजा स्थलो में मौजुद है , वहाँ पर तो शुद्र का प्रवेश मना है लिखा बोर्ड हटाकर गुमशुदा तलाश केंद्र का बोर्ड लगनी चाहिए थी | क्योंकि इस प्राकृतिक समृद्ध कृषि प्रधान देश के मुलनिवासी बारह माह कण कण में साक्षात मौजुद प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाकर प्राकृति की पुजा तब भी करते थे , जब गुमनाम लापता देवता और मनुवादि इस देश में प्रवेश भी नही किए थे | जो असल हिन्दु पुजा है , और इस देश के मुलनिवासी असल हिन्दु हैं | जिनके पुर्वज प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति में भी साक्षात प्रकृति भगवान की ही पुजा करते थे | जिसके लिए किसी मनुवादि पुजारी की जरुरत नही होती थी | बल्कि आज भी इस कृषि प्रधान देश में बहुत सारे प्रकृति पर्व त्योहार मनाये जाते हैं , जिसे मनाते समय कथित किसी जन्म से उच्च जाति के आरक्षित पंडित की जरुरत नही होती है | इसलिए इस कृषि प्रधान देश में आज भी ग्राम और शहर दोनो जगह सबसे अधिक पुजा स्थल ऐसे हैं , जहाँ पर किसी कथित उच्च जाति के पुजारी की जरुरत नही होती है | क्योंकि हिन्दु पुजा साक्षात उस भगवान प्रकृति की पुजा है , जो की जिव निर्जिव बल्कि सृष्टी के कण कण में मौजुद है | जिसके साक्षात प्रमाणित सत्य जिवन मरन संसार चारो ओर मौजुद है | जिस साक्षात सत्य के आगे कोई भी इंसान माथा टेककर उसके प्रती विश्वास जाहिर कर सकता है कि प्रकृति कृपा से ही वह इस दुनियाँ में जन्मा है , और प्रकृति की कृपा से ही वह एक एक साँस ले रहा है | जो कोई मनुवादि ढोंग पाखंड , कल्पना और कथा नही बल्कि ऐसी सच्चाई है , जिसे कोई भी इंसान यह कहकर इंकार नही कर सकता कि वह बिना प्रकृति भगवान की कृपा लिए सिर्फ मंदिर मस्जिद जाकर पुजा पाठ करके जिन्दगी जी रहा है , या जी सकता है | बल्कि सच्चाई ये है कि प्रकृति की कृपा से ही मंदिर मस्जिद और चर्च भी बने हैं | जिस साक्षात प्रकृति भगवान से सारी सृष्टी कायम है | जिसे कोई भी गलत साबित नही कर सकता | क्योंकि भले अलग अलग इंसान अपने अपने अलग अलग मन से हिन्दु धर्म में की जाने वाली प्रकृति भगवान पुजा के बारे में जो कुछ भी सोचता समझता है , पर सच्चाई यही है कि प्रकृति भगवान की वजह से ही सबकी रोजमरा जिवन मरन तय होती है | और चारो ओर साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की वजह से ही सभी धर्मो के भक्त ही नही बल्कि सारी सृष्टी में मौजुद जिव निर्जिव सभी अपनी मौजुदगी दर्ज किए हुए हैं | जाहिर है यदि कोई प्रकृति की कृपा से ही जन्मा किसी इंसान की बातो में विश्वाश करके किसी की पुजा उसे बिना देखे और उसकी अवाज बिना सुने कर सकता है , तो फिर सारे इंसान ही नही बल्कि सारे संसार को पालते पोसते साक्षात अपनी आँखो से देख और कानो से सुनकर भी कोई साक्षात प्रकृति भगवान की पुजा क्यों नही कर सकता ? जबकि आस्तिक नास्तिक दोनो को ही इस सच्चाई से इंकार नही कि साक्षात प्रमाणित जिवन मरन प्रकृति भगवान की वजह से ही मुमकिन है | जिसे इंकार करके कोई हवा पानी लेना छोड़ दे तो एक पल भी टिक नही पायेगा | क्योंकि बिना प्रकृति भगवान के जिना मरना नामुमकिन है | जिसे मुमकिन बताने वाले ही तो असल ढोंगी पाखंडी लोग हैं | जिनकी झुठी बाते कभी भी सत्य साबित नही होगी | बल्कि जिस दिन ढोंगी पाखंडियो की झुठी बाते सत्य हो जायेगी उसदिन ऐसे ढोंगी पाखंडियो की मौजुदगी ही नही रहेगी इस सृष्टी में | क्योंकि तब प्रकृति भगवान झुठ साबित हो जायेगा कि उसके द्वारा जिवन मरन तय होती है | जिसके द्वारा इतनी खुबसुरती से जिव निर्जिव सबकी रचना होती है कि इंसान या कोई भी प्राणी चाहे जितना बुद्धीमान हो जाय , प्रकृति भगवान की तरह जिव निर्जिव पेड़ पौधा वगैरा की रचना कभी नही कर सकता | जो यदि नकल करके या ज्ञान हासिल करके प्रकृति भगवान की तरह रचना करना चाहेगा तो भी प्रकृति भगवान की तरह न तो कोई प्राणी की रचना कर पायेगा और न ही पेड़ पौधा वगैरा का | जिन सबमे भी प्रकृति भगवान खुद कण कण में मौजुद हैं | यू ही उसके द्वारा जिव निर्जिव की रचना इतनी खुबसुरती से नही हुई है | जिस तरह की रचना प्रकृति भगवान के द्वारा अनंत काल से होती चली आ रही है , और उसी के द्वारा रंग रुप बदलने के लिए विनाश करने की भी प्रक्रिया होती रहती है | जैसे कि जन्म के बाद पुराना रंग रुप बदलने के लिए मरन की प्रक्रिया | जो की प्रकृति भगवान के द्वारा चलती रहती है , जिसकी सच्चाई अनंत काल से स्थिर कायम है | जिसे कोई नही बदल सकता भले चाहे जितना धर्म बदल ले या फिर अपना शरिर बदल ले | क्योंकि शिर्फ साक्षात शरिर में बुद्धी बल नही होती है | बल्कि सबसे अधिक बुद्धी बल और चमत्कारी गुण भी प्रकृति भगवान में ही मौजुद है | जो की अनंतकाल से अमर भी है | जिसके चमत्कारी गुण से ही तो यह सृष्टी कायम है | जिसकी पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाले असली ढोंगी पाखंडी तो अपने शरिर में मौजुद ढोंग पाखंड बुद्धी बल से चंद सौ साल भी कायम नही रह पाते हैं | लेकिन भी आत्मविश्वास के साथ अनंतकाल से अमर प्रकृति भगवान को निर्जिव और ढोंग पाखंड कहकर हिन्दु पुजा को गलत साबित करने पर सारी जिवन बिता देते हैं | लेकिन प्रकृति भगवान उन्हे भी उनकी मौत के बाद उनके बुद्धी बल वाला शरिर को अपने गोद में लेकर वापस उन्हे नया शरिर में परिवर्तित करके इसी प्रकृति भगवान द्वारा रचित दुनियाँ में फिर से नया जिवन देती है | जैसे कि बाकियो को भी देती है | न कि किसी के मरने के बाद वह गायब होकर किसी दुसरी दुनियाँ में अदृश्य नर्क या फिर स्वर्ग जिवन जिने चला जाता है | और उसके बाद वापस इस दुनियाँ में आता है | जैसे मानो कोई कैदी अदृश्य दुनियाँ में मौजुद जेल से छुटकर या फिर कोई विवाहित जोड़ी हनिमून मनाकर धरती में वापस आता है | बल्कि वह किसी बारिस बुंद की तरह वाष्पित होकर धरती पर वापस आकर नदी नाला तालाव कुँवा वगैरा अलग अलग रंग रुप धारन करने के बाद फिर से वाष्पित होकर इसी प्रकृति भगवान द्वारा रचित दुनियाँ में ही नया जन्म लेता है | अथवा किसी की मौत होने के बाद इसी प्रकृति भगवान के द्वारा रचित दुनियाँ में ही विलय होकर वापस नया जन्म लेने के लिए इसी प्रकृति भगवान रचित दुनियाँ में ही आना है | प्रकृति भगवान को ढोंग पाखंड कहने वाले असल ढोंगी पाखंडियो की बुद्धी बल भी इसी प्रकृति भगवान रचित दुनियाँ में ही विलय होगी | न कि वे प्रकृति भगवान को ढोंग पाखंड साबित करने के लिए अपने मृत शरिर को ढोंग पाखंड द्वारा प्रकृति से गायब करके दिखला देंगे | क्योंकि सजा काटने वाला जेल भी इसी दुनियाँ में होती है , और हनिमून मनाने वाला जगह भी इसी दुनियाँ में मौजुद होती है |

मंगलवार, 6 अगस्त 2019

साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की पुजा हिन्दु धर्म में की जाती है , न कि मनुवादियो के पूर्वज देवो की पुजा की जाती है

साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की पुजा हिन्दु धर्म में की जाती है , न कि मनुवादियो के पूर्वज देवो की पुजा की जाती है 


दरसल मनुवादियो द्वारा हिन्दु धर्म के वेद पुराणो में ढोंग पाखंड का मिलावट करके खतरनाक नशे की व्यापार की तरह ही ढोंग पाखंड का व्यापार चल रहा हैं | जिसके चलते मनुवादियो के द्वारा बुरी तरह से शिकार होने वाले अँधविश्वास में डुबे पिड़ित लोग , ढोंग पाखंड नशा को अपने नश नश में इतनी गहराई तक उतार चुके हैं , कि वे इस कृषि प्रधान देश की प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति के नाम से ही जुड़ा हिन्दु धर्म को , इस देश के मुलनिवासियो का धर्म न बताकर , ढोंगी पाखंडियो का असली धर्म कहकर , कट्टर मनुवादियो को कट्टर हिन्दु बताकर ,  तेज बुखार में बार बार बड़बड़ाने के जैसा , अंड संड बड़बड़ाते हुए यह चर्चा कर रहे हैं , कि दुसरो के देश में गोद लिए गए मनुवादि ही असली कट्टर हिन्दु हैं | मनुवादियो के पुर्वज देव ही हिन्दु धर्म में सारी सृष्टी की रचना करने वाले भगवान , अथवा सबके पालनहार हैं | बल्कि ढोंग पाखंड का नशा मुक्त होने के लिए दुसरे धर्मो में जाने वालो द्वारा भी यहूदि डीएनए के मनुवादियो को असली कट्टर हिन्दु कहकर हिन्दु धर्म का पालनहार उन देवताओ को कहना अब भी जारी हैं , जो दरसल दुसरो के देश में गोद लिए गए विदेशी मुल के घुमकड़ कबिलई हैं | जिनका डीएनए इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो के डीएनए से नही मिलता है | बल्कि उन कबिलई विदेशियो से मिलता है जो अपना मातृभूमि इस देश को नही , बल्कि कोई और देश को मानते हैं | जो स्वभाविक भी है , क्योंकि इस देश के मुलनिवासियो के साथ छुवा छुत शोषन अत्याचार करने वाला इस देश का मुल निवासी हो ही नही सकता | वैसे चूँकि इस देश के द्वारा गोद लिए गए मनुवादियो के परिवार में मौजुद नारी और इस देश के मुलनिवासियो के घर में मौजुद नारी का पुर्वज एक है , जो कि एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से साबित भी हो चूका है , इसलिए यदि हजारो सालो तक इस देश के मुलनिवासियो का शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादियो की मातृभूमि यह देश है यह मान भी लिया जाय , तो भी मनुवादियो की पितृभूमि कौन है इसकी जानकारी भी तो मनुवादियो को देनी चाहिए थी | जैसे की इस देश को गुलाम करके सैकड़ो सालो तक शोषन अत्याचार करने वाले गोरे यदि इस देश को छोड़कर जाने के बजाय आज इस देश में ही बसे होते तो भी अपने मुल देश के बारे में जरुर बतलाते और स्वीकारते भी कि वे इस देश में प्रवेश करने से पहले न तो मुल रुप से हिन्दु थे , और न ही यहाँ पर उनका पहले शासन व अधिकार था | जो न बताकर मनुवादि सिर्फ बार बार एक ही रट्ट लगाये हुए हैं कि यहाँ पर राम जन्मभूमि है | राम का जन्म इस देश में ही हुआ था | वैसे में तो राम ही नही बल्कि कई गोरे भी इस देश में ही जन्म लिये होंगे या ले रहे होंगे , जिनका जन्मभूमि भी यह देश ही है | यकिन न आए तो इतिहास पलटकर जानकारी इकठा कर लिया जाय कि देश गुलाम करने वाले गोरो में कौन कौन इस देश में जन्मे थे या जन्मे हैं , जिनका डीएनए विदेशी मुल का है ? कई गोरो की जन्मभूमि इस देश की भूमि ही निकलेगी | वैसे इस देश के अनगिनत मुलवासि भी विदेशी भूमि में जन्म लिये हैं या ले रहे हैं , तो क्या उनकी नई पिड़ी सभी कल को यह हमारी जन्मभूमि है कहकर वहाँ के मुलनिवासियो के हक अधिकारो को छिनकर उनका शोषन अत्याचार करेंगे | यह इतिहास पढ़ते हुए कि उनके अपने खुदके पुर्वजो और उनके ही डीएनए के लोगो के साथ इस कृषि प्रधान देश में गोरो और मनुवादियो ने किस तरह का शोषन अत्याचार किया है ! जिस तरह का शोषन अत्याचार को कभी भी इतिहास नही भुलेगी | हलांकि गोरो के नई पिड़ी द्वारा अब यह स्वीकार करके माफी भी मांगी जा रही है कि उनके पुर्वजो द्वारा इस देश को गुलाम करके शोषन अत्याचार और लुटपाट करके बहुत बड़ी ऐतिहासिक गलती की गयी थी | जिस तरह की ऐतिहासिक गलती गोरो से भी पहले मनुवादियो ने हजारो साल पहले ही इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर छुवा छुत शोषन अत्याचार करके किया है | जिसके बारे में वेद पुराण सहित लिखित इतिहास भी भरे पड़े हैं जो सभी साक्षी है कि मनुवादि बाहर से आकर इस देश में प्रवेश करके किस तरह से छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से सत्ता में कब्जा करके संभवता सबसे पहले शोषन अत्याचार सुरु किये हैं | जो विदेशी मुल के मनुवादि इस देश के हिन्दु धर्म में प्रवेश करने के बाद अपने पुर्वज देवो की मुर्ति पुजा कराकर दरसल खुदकी पुजा कराने की ढोंग पाखंड की सुरुवात भी संभवता सबसे पहले ही किए हैं | जो अपने पुर्वज देवो को सृष्टी का पालनहार और रचनाकार बताकर हिन्दु धर्म में ढोंग पाखंड नशे का मिलावट करके और मुल हिन्दुओ के पिठ पिच्छे छुरा घोंपकर अपने पुर्वजो की पुजा कराकर नशे की व्यापार की तरह ढोंग पाखंड का व्यापार फल फुल रहा है | जिस व्यापार में दिन प्रतिदिन बड़ौतरी भी हुई है | अहिल्या का बलात्कार करने वाले इंद्रदेव और तुलसी का भी मान सम्मान लुटने वाले विष्णुदेव व सरस्वती का मान सम्मान लुटने वाले ब्रह्मादेव की मुर्ती पुजा यह कहकर कराई जा रही है कि हिन्दु धर्म में देव पुजा होती है | जिन देवो को अपना मुल पुर्वज मानने वाले मनुवादियो की मूल भुमि इस देश में प्रवेश करने से पहले कहाँ थी यह सवाल पुछने पर ये बतलाई जाती है कि उनके मुल पुर्वज देव जिन्हे वे सृष्टी के रचनाकार और पालनहार बतलाते हैं , वे मुलता उपर उस अदृश्य स्वर्ग का वासी हैं , जहाँ का वासी होना सायद ही कोई मनुवादी खुद चाहेगा | भले कथित स्वर्ग का देवता पुजा करके बार बार स्वर्ग की कामना की जा रही हो | क्योंकि वाकई में देवो का मुल देश के बारे में आजतक पता नही चला है कि इस देश में प्रवेश करने से पहले वे किस देश की प्रजा का पालनहार थे ? और वे कबसे सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति के कट्टर हिन्दु हुए ? क्योंकि वेद पुराणो में भी देवो के बारे में मुलता दुसरो के राज्यो को कब्जा करके प्रजा से अपनी पुजा करवाने और लुटपाट करने के बारे में जानकारी भरे पड़े हैं | हो सकता है देव वाकई में किसी एलियन की तरह इस पृथ्वी में उतरकर इस देश में प्रवेश करके मनुवादियो को जन्म दिए हो ! क्योंकि खुद मनुवादि ही हजारो सालो से पिड़ी दर पिड़ी यह ज्ञान बांटते आ रहे हैं कि देवो का राजा इंद्रदेव मुलता निचे धरती पर नही बल्कि उपर स्वर्ग में शासन करते हैं | धरती में तो दानव राक्षस और असुरो के राज्यो पर कब्जा करने आते हैं | बल्कि राक्षस दानव और असुर भी राजा इंद्रदेव के सिंघासन को हिलाने उपर स्वर्ग में जाते हैं | और सारे देवो के साथ साथ इंद्रदेव भी त्राहीमान त्राहीमान करते हुए सबसे सुखमई कहलाने वाला स्वर्ग वासी जिवन को छोड़कर भागते हुए जाने जाते हैं | हलांकि इस बात पर एक प्रतिशत भी सच्चाई नही है कि देव और दानव कभी बिना हवा पानी के इंतजाम किए ही उपर स्वर्ग में आना जाना करते थे | जो सारे देवता अब इस देश ही नही पुरी दुनियाँ से लापता हो चुके हैं | जबकि इस समय का इंसान भी जो की बिजली बल्ब , मोबाईल , टी० वी० , रेडियो कम्प्यूटर वगैरा से युक्त होकर भी चाँद छोड़ आजतक एक भी ग्रह का यात्रा नही कर सका है , उस इंसान से भी हजारो साल पहले जन्मे उस समय के देव दानव उपर आना जाना बिना हवा पानी के करते थे ऐसी खोज हो चुकि थी यह बिल्कुल बकवास बात है | जिस बकवास अनुसार भी चूँकि वर्तमान में लापता देव कभी उस समय स्वर्ग के वासी हुआ करते थे जब इस धरती पर विचरन किया करते थे , इसलिए वेद पुराणो में मिलाई गई ढोंग पाखंड अनुसार भी मनुवादियो के पुर्वजो का मुलनिवासी भुमि यह देश हो ही नही सकती | जिन देवो को मनुवादि ही अपना मुल पुर्वज मानते हैं , जिन्होने मनुस्मृति की रचना करके हजारो सालो तक इस देश के मुलनिवासियो के साथ छुवा छुत शोषन अत्याचार किया है | न कि इस देश के मुलनिवासि छुवा छुत शोषन अत्याचार करने वालो को अपना पुर्वज मानते हैं | जिन कट्टर मनुवादियो को आखिर हिन्दुओ का पालनहार कहकर कट्टर हिन्दु कहने का नशा गंभिर रुप से शिकार हुए पिड़ितो के तन मन से कब उतरेगी | जबकि आज भी यदि मुल रुप से हिन्दु पर्व त्योहार मनाते समय प्रयोगिक तौर पर देखा जाय तो हिन्दु धर्म का असली भगवान वह देवता नही हैं जिनको मनुवादि अपना पुर्वज मानते हैं | क्योंकि आज भी मुल हिन्दु बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाकर साक्षात भगवान की पुजा प्रकृति की पुजा करता है | भले मनुवादियो के द्वारा वेद पुराणो में मिलावट करके अपने गुमनाम लापता पुर्वजो का नाम से प्रकृति सुर्यदेव बारिसदेव हवादेव वगैरा वगैरा जोड़कर खुदको पालनहार घोषित करने की कोषिश किया गया है , जो कि आज भी जारी है | जो दरसल ढोंग पाखंड है , न कि पुज्यनीय है | जैसे कि वर्तमान में यदि कोई मनुवादि बिजली और इंटरनेट के नाम से भी बिजलीदेव और इंटरनेटदेव नाम का नया देवता जोड़कर वेद पुराणो में मिलावट कर देगा तो क्या उसे हिन्दु पुजा के साक्षात भगवान कही जायेगी ? बल्कि यदि मनुवादि ढोंग पाखंड नशे में डुबोकर ब्रेनवाश करके कही भी जायेगी तो भी मुल हिन्दु धर्म और मुल वेद पुराणो को समझने वाले समझ जायेंगे की प्रकृति से ही विज्ञान द्वारा निर्मित साक्षात इंटरनेट और बिजली का जन्म हुआ है , न कि इंटरनेट और बिजली किसी देव या मनुवादियो के वीर्य से पैदा हुई है | और अगर भविष्य में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करके जिस छेड़छाड़ के बारे में विस्तार पुर्वक जानकारी मनुस्मृति में भरे पड़े हैं , जिनकी मिलावट हिन्दु वेद पुराणो में भी मनुवादियो द्वारा की गई है , उस तरह के ही  कोई अप्रकृति चमत्कार से यदि होगी भी तो वह भी प्रकृति से ही निर्मित वीर्य से होगी | न कि किसी दुसरी अदृश्य गुमनाम अप्रकृति दुनियाँ से आई किसी अदृष्य वीर्य से होगी | क्योंकि साक्षात प्रकृति भगवान के सिवा कोई दुसरी ऐसी ताकत विज्ञान और सभी धार्मिक मान्यता अनुसार भी मौजुद नही है जो बिना प्रकृति के इंसान तो क्या किसी भी प्राणी या निर्जिव को भी पैदा कर दे जिसमे प्रकृति का कोई अंश ही मौजुद न हो ! जाहिर है साक्षात प्रकृति भगवान की पुजा हिन्दु धर्म में की जाती है न कि लापता गुमनाम देवो की पुजा की जाती है |

सोमवार, 5 अगस्त 2019

मुस्लिम शासन में जजिया कर न देने वाले यहूदि डीएनए के मनुवादि , आखिर कब अपना धर्म परिवर्तन करके हिन्दु बने ?

मुस्लिम शासन में जजिया कर न देने वाले यहूदि डीएनए के मनुवादि , आखिर कब अपना धर्म परिवर्तन करके हिन्दु बने ?

हिन्दु धर्म परिवर्तन करने और हिन्दु धर्म परिवर्तन करने पर विचार कर रहे मुलनिवासी इसे एकबार जरुर पढ़ें | और साथ साथ इस ज्ञान को बांटकर उन गलतफेमियों को दुर करें , जिनकी वजह से यहूदि डीएनए के मनुवादियो को असली हिन्दु कहा जाता है | जिन मनुवादियो से जजिया कर भी नही लिया जाता था | जो कि मुस्लिम शासन में हिन्दुओ से लिया जाता था | दरसल यहूदि डीएनए के मनुवादि , हजारो साल पहले इस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति अथवा कृषि प्रधान देश में प्रवेश किए , और गोरो की तरह छल कपट फुट डालो राज करने की नीति अपनाकर , और साथ साथ घर के भेदियो की सहायता से , इस देश की सत्ता हासिल करके धिरे धिरे सिंधु से जुड़ा हिन्दु धर्म को भी कब्जा किए | जिसके बाद ही यहूदि डीएनए के मनुवादियो ने हिन्दु वेद पुराणो में मनुस्मृति सोच की मिलावट और छेड़छाड़ किया है | ताकि मुलता कबिलई मनुवादि इस कृषि प्रधान देश में अपनी ढोंग पाखंड का व्यापार को नशे का व्यापार की तरह ही चला सके | साथ साथ इस देश की कृषी सभ्यता संस्कृति और इतिहास के साथ भी लंबे समय से छेड़छाड़ और मिलावट करके अपनी ढोंगी पाखंडी मनुस्मृती सोच का अपडेट करना जारी रख सके | जैसे कि गोरो के द्वारा भी इस देश में प्रवेश करके देश को गुलाम बनाने के बाद लंबे समय तक अपनी सत्ता कायम रखने के लिए इस देश की सभ्यता संस्कृति और इतिहास के साथ बहुत सी छेड़छाड़ किया गया है | क्योंकि लिखित इतिहास के साथ साथ हिन्दु वेद पुराणो में भी प्रकृति भगवान पुजा समेत इस देश की सभ्यता संस्कृति , प्रकृति भुगोल , परिवार समाज , गणतंत्र और इस देश के मुलनिवासियो के बारे में बल्कि बाहर से आने वाले मनुवादियो के बारे में भी बहुत सी जानकारी मौजुद है | जो जानकारी बाहर से आने वाले यहूदि डीएनए के मनुवादियो द्वारा हासिल नही की गई है , बल्कि इस देश के मुलनिवासियो द्वारा हजारो सालो की अपनी खुदके द्वारा इकठा की गई है | क्योंकि जो मनुवादि अपने पुर्वजो की मुल भुमि जहाँ से वे आए थे , उसके बारे में हजारो साल बाद भी अबतक कोई खास जानकारी बता नही सके हैं , वे हजारो साल पहले हिन्दु वेद पुराणो में मौजुद इस देश और प्रकृति भगवान , बल्कि सृष्ठी के बारे में जो ज्ञान मौजुद है , उसके बारे में हजारो साल पहले कृषि से भी अनजान रहने वाले मनुवादि कैसे जान सकते हैं ! वह भी तब जब मनुवादियो के बारे में यह भी संभावना व्यक्त की जाती है कि मनुवादि जब हजारो साल पहले इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश किए थे उस समय वे संभवता कपड़ा पहनना भी नही जानते थे | और न ही परिवार समाज और गणतंत्र के बारे में उन्हे ज्ञान मौजुद था | जो इस देश में प्रवेश करने के बाद इस देश की नारी के साथ रिस्ता जोड़कर देव दासी बनाकर संभवता पहली बार परिवार समाज के बारे में जाना समझा है | जिससे पहले वे किस परिवार समाज में पैदा होकर इस देश में आए और अपने से अलग डीएनए के लोगो से रिस्ता बनाये , इसके बारे में वेद पुराणो में भी जानकारी सायद ही मौजुद है | हाँ वेद पुराणो में मनुवादियो के बारे में यह जानकारी जरुर मौजुद है कि मनुवादि इस देश में बाहर से आकर इस देश के मुलनिवासियो से लड़ाई लड़कर छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से सत्ता पर कब्जा किया है | जैसे की कभी गोरो ने भी अपना पेट पालने के लिए इस सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला कृषि प्रधान देश में पहले तो कुछ कमाई करने के लिए व्यापार करने के नाम से ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए जगह मांगा , उसके बाद मानो भुखे प्यासे गोरो को पेट भरने के लिए जिस थाली में खाने को दिया गया उसी में छेद करके ईस्ट इंडिया कंपनी को लुट इंडिया कंपनी के रुप में अपडेट करके देश को गुलाम बनाया | जिसके बारे में इतिहास मौजुद है कि मुठीभर गोरो ने किस तरह से इस देश को गुलाम बनाया ! जैसे कि मनुवादियो के पुर्वज भी इस देश में कब्जा करते समय मुठीभर ही मौजुद थे | जो अपना वंशवृक्ष को बड़ा इस देश की नारियो से रिस्ता जोड़कर  देव दासी बनाकर किया है | बल्कि वेद पुराणो में तो मनुवादियो के पुर्वज देवो के बारे में ज्यादेतर बार बार असुर दानव राक्षसो से युद्ध हारने के बारे में ही चर्चा मौजुद है | एकबार तो रहने का जगह वगैरा के लिए हाथ में कटोरा लेकर देवो के अवतार माने जाने वाले वामन देवता को बलि दानव सम्राट के सामने भिख मांगते हुए बतलाया गया है | जिस वामन को भी दानव राज बलि सम्राट ने जिस थाली में खाने को दिया गोरो की ही तरह उसने भी उसी में छेद करके देवो ने बलि सम्राट को उनके ही जेल में कैद करके सत्ता पर कब्जा कर लिया | जाहिर है यदि इस देश के मुलनिवासि द्वारा रचे गए वेद पुराणो से मनुवादियो के द्वारा ढोंग पाखंड की मिलावट और छेड़छाड़ को हटा दिया जाय , और उसे उसका असली रुप में वापस लाया जाय तो उसमे साक्षात प्रकृति भगवान के बारे में , और इस देश की कृषी सभ्यता संस्कृति और इतिहास के बारे में विस्तार पुर्वक ज्ञान मौजुद है | जो पिड़ी दर पिड़ी वेद पुराण ज्ञान के रुप में इकठा होते  गई है | क्योंकि तब कोई लिखाई पढ़ाई की सुरुवात नही हुई थी , बल्कि सिर्फ वेद अथवा बोल सुनकर पुराण अथवा देख दिखाकर ज्ञान ली और बांटी जाति थी | जैसे की वर्तमान में भी बहुत सी प्रकृति विज्ञान खोज और बहुत सी अन्य जरुरी जानकारी बोल सुनकर बल्कि अब तो लिखकर भी इकठा होते जा रही है | जो इतिहास में अब लिखित और ऑडियो विडियो रिकॉर्ड में भी दर्ज होते जा रही है , और आगे भी होगी | जिस तरह की ही जानकारियो के साथ छेड़छाड़ और ढोंग पाखंड नशे की मिलावट की गयी है | जिसके बारे में सारांश में बात की जाय तो वेद पुराणो में छेड़छाड़ करके मनुवादियो ने प्रकृतिक भगवान पुजा को अपने पुर्वज देव की पुजा साबित करने के लिए अपने पुर्वजो को सृष्टी का रचनाकार और पालनहार बतलाकर पुज्यनीय और इस देश के मुलनिवासियो के पुर्वजो को दानव राक्षस असुर के रुप में बिलेन बनाने का प्रयाश किया है | क्योंकि गुलाम और दास दासी बनाकर शोषन अत्याचार करने वालो की नजरो में गुलाम और दास दासी बनने वाले बिलेन ही होते हैं | तभि तो वे उनके साथ बर्बता पुर्वक जुल्म अत्याचार करते हैं | जैसे कि मनुवादियो ने इस देश के मुलनिवासियो के साथ किया है | जो कि आजतक भी गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में अपनी ददबदबा कायम रखकर मिली शक्तियो का गलत उपयोग करके भेदभाव शोषन अत्याचार कर रहे हैं | जिस तरह के पापो को छुपाने और अपने कुकर्मो को सही साबित करने के लिए ही तो बार बार ढोंग पाखंड मिलावट की जाती है | ताकि अपने किए कुकर्म और पापो को छुपाकर अपनी पुजा कराने और इस देश के मुलनिवासियो पर राज करने के बाद आई झुठी शान को बरकरार रखा जा सके | जिसके लिए शोषन अत्याचार करने वाले थोड़ी बहुत भलाई का भी कार्य करते रहते हैं , जैसे की देश को गुलाम करने वाले गोरे भी कर रहे थे | हलांकि चूँकि सत्य को भले छल कपट ढोंग पाखंड का सहारा लेकर कुछ समय के लिए छुपाया जा सकता है , पर उसे मिटाया नही जा सकता , इसलिए मिलावट और छेड़छाड़ के बाद भी वेद पुराण और इतिहास में मनुवादियो और उनके पुर्वज देवताओ के द्वारा किये गए बलात्कार और भेदभाव जैसे कुकर्मो की जानकारी भरे पड़े हैं | बल्कि मनुवादियो के द्वारा रचे गए मनुस्मृति में भी मनुवादियों के पापो के बारे में जानकारी भरे पड़े हैं कि किस तरह  मनुवादियो द्वारा खुदको उच्च जाति घोषित करके , हजारो सालो से छुवा छुत ढोंग पाखंड शोषन अत्याचार , इस देश के मुलनिवासियो के साथ क्रुर तरिके से किया गया है | बल्कि अभी भी कथित देव के वंसज मनुवादियो द्वारा पिड़ी दर पिड़ी शोषन अत्याचार का सिलसिला जारी है | आज भी कई जगह ये बोर्ड लगा मिल जायेंगे जहाँ पर ये लिखा रहता है कि अंदर शुद्रो का प्रवेश मना है | जिस तरह की छुवा छुत शोषन अत्याचार करने वालो की पुजा हिन्दु धर्म में कतई नही होती है | जैसे की देश गुलाम करके गेट में कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है लिखने वाले गोरो की पुजा नही होती है | बल्कि हिन्दु धर्म में सृष्टी के कण कण में साक्षात प्रकृति भगवान की पुजा होती है | जिसे पेड़ पौधा पहाड़ पर्वत नदी हवा पानी वगैरा रुप में पुजा जाता है | जिस प्रकृति भगवान से सभी धर्मो के भक्तो समेत सभी नास्तिको की भी जिवन जुड़ी हुई है | जैसे कि हवा पानी बंद होने के बाद किसी भी धर्म के भक्तो के जिवन में जिन्दगी का सफर करना नामुमकिन है , चाहे वे जितनी बार मंदिर मस्जिद और चर्च वगैरा में जाकर दुवा कर ले ! जिस प्रकृति भगवान की पुजा हिन्दु धर्म में होती है | जिससे जुड़े बारह माह मनाई जाने वाली पर्व त्योहारो के बारे में बेहत्तर तरिके से जानकर बल्कि खुदके अंदर भी प्रयोगिक रुप से समझा जा सकता है कि हिन्दु धर्म में मनुवादियो के पुर्वज देवो की पुजा होती है कि प्रकृति भगवान की पुजा होती है | जिस प्रकृति भगवान के बारे में गलत जानकारी देकर अथवा मनुवादियो के पुर्वज देवो की पुजा के रुप में दरसल ढोंग पाखंड नशे का मिलावट करके धिरे धिरे हिन्दु धर्म में कब्जा किया गया है | जिसके बाद ही मनुस्मृती रचना करके और उसे लागू करके मनुवादियो द्वारा इस देश के मुलनिवासियो के साथ शोषन अत्याचार का सिलसिला सुरु हुआ है | जाहिर है यहूदि डीएनए के मनुवादियो के द्वारा शोषन अत्याचार का शिकार होने वाले इस देश के करोड़ो मुलनिवासियो ने अपने पुर्वजो का हिन्दु धर्म को यू ही नही बदला है | जिन मुलनिवासियो ने मनुवादियो के द्वारा किये जा रहे शोषन अत्याचार के चलते अपने पुर्वजो के हिन्दु धर्म को मनुवादियो का धर्म बतलाकर अपना धर्म परिवर्तन किए हैं | दरसल मनुवादियो के द्वारा ढोंग पाखंड करके शोषन अत्याचार करने की वजह से मुल हिन्दु अपना धर्म परिवर्तन कर रहे हैं | मनुवादियो के शोषन अत्याचारो से छुटकारा अपना धर्म परिवर्तन करके मिल जायेगा यह सोचकर अपने हिन्दु धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्मो में जाने का सिलसिला अबतक भी जारी है | जैसे कि कब्जा धारियो द्वारा किसी स्थानिय मुलनिवासी के उपजाउ जमिन पर कब्जा होने के बाद , स्थानिय मुलनिवासियो द्वारा विस्थापित होने का सिलसिला सुरु हो जाती है | जिस कब्जा हुई उपजाउ जमिन पर यदि कोई कब्जाधारी दारु का भट्ठी खोलकर दारु का व्यापार करने लगे तो उस उपजाउ जमिन को यह कहकर नही छोड़ देना चाहिए कि वह जमिन कब्जाधारियो की है | बल्कि उपजाउ जमिन को कब्जाधारियो से मुक्त करके , और दारु का भट्ठी बंद करके वापस हरियाली लानी चाहिए | जो हरियाली ही इस देश और इस देश के मुलनिवासियो के लिए ही नही बल्कि पुरी दुनियाँ के लिये खुशियो की हरियाली लायेगी | जिसे लाने के लिए चाहे क्यों न अनगिनत बार अपनी पुरी जिवन इंसानो द्वारा बनाया अलग अलग कई धर्म परिवर्तन करते रहो , दुनियाँ में कोई धर्म आजतक ऐसा नही बना है जो खुदको ये साबित कर दे की उसी धर्म को एलियन भी अपनाए हुए हैं | हाँ एलियन को भी प्रकृति भगवान के महत्व और जरुरत के बारे में जरुर पता होगा | बल्कि सौ प्रतिशत जरुर पता होगा कि बिना प्रकृति के वे जहाँ भी हैं एक पल भी टिक नही सकते |  जो इस पृथ्वी पर मौजुद इंसानो द्वारा बनाया गया अलग अलग कई धर्मो को बिना अपनाये संभवता इंसानो से भी पहले से ही इस सृष्टी में ही कहीं पर प्रकृति की गोद में जिवन यापन कर रहे हो | हलांकि क्या पता इंसान ही पुरी सृष्टी में एकलौता ऐसा चिराग हो जो एकदिन प्लास्टिक और परमाणु बमो की ढेर में खुदको ही बुझाने के बाद डायनासोर की तरह बहुत सारी रहस्यमय राख छोड़कर लुप्त हो जायेगा |  

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...