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शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

साक्षात प्रकृति भगवान की सच्चाई अनंत काल से स्थिर कायम है | जिसे कोई नही बदल सकता , भले चाहे जितना धर्म बदल ले

साक्षात प्रकृति भगवान की सच्चाई अनंत काल से स्थिर कायम है | जिसे कोई नही बदल सकता , भले चाहे जितना धर्म बदल ले

नशा से भी ज्यादे खतरनाक ढोंग पाखंड का नशा है , जिससे मुक्ती अपना धर्म बदलकर कभी नही होनेवाला है | क्योंकि जिस तरह दारु बीड़ि सिगरेट देश के सभी शहरो और ग्रामो में अपना पहुँच बना ली है , उसी तरह ढोंग पाखंड का नशा भी साक्षात मौजुद देश दुनियाँ में सभी जगह अपनी मौजुदगी बेहरुबिया बनकर बना चुका है | झाड़ु मारकर या मंत्र फुककर बिमारी ठीक करने का दावा करने वाले ढोंगी पाखंडी सिर्फ हिन्दु धर्म में मौजुद नही हैं कि इस धर्म से उस धर्म में जाने से सारी समस्याओं का समाधान अपना धर्म बदलने से हो जायेगा | क्योंकि ढोंगी पाखंडी सभी धर्मो में ढोंग पाखंड समस्या पैदा करने में लगे हुए हैं |  जिसके बारे में जानकर न तो नशा मुक्त होने के लिए सभी नागरिको को देश दुनियाँ को छोड़नी चाहिए , और न ही ढोंगि पाखंडियो से छुटकारा पाने के लिए किसी को अपने धर्म को छोड़नी चाहिए ! बल्कि ढोंग पाखंड का नशा जो कि सभी धर्मो में अपना पहुँच बना ली है , उस ढोंग पाखंड मिलावट को धर्म से बाहर करनी चाहिए | जैसे कि यदि किसी धान गेहूँ की खेती में अफीम की मिलावट हो रही है तो धान गेहूँ की खेती में जो अफीम की मिलावट हुई है , उसे हटाकर वापस धान गेहूँ की खेती होनी चाहिए | क्योंकि चाहे दारु बिड़ी सिगरेट का नशा हो या फिर ढोंग पाखंड का नशा हो , दोनो तरह की नशे से मुक्ती अपना खेत या फिर देश को ही छोड़ देने से नही होगा | और न ही कब्जा धारियो द्वारा दारु का भट्ठी लगाये जाने से बंजर हुई उपजाउ जमिन को छोड़ देने से जमिन उपजाउ हो जायेगी | हलांकि जमिन के मामले में तो इस देश के मुलनिवासी अपने ही देश के जमिन में सबसे अधिक विस्थापित हो रहे हैं , पर धर्म के मामले में वे अपना धर्म परिवर्तन करके जिन धर्मो कि ओर सबसे अधिक विस्थापित हो रहे हैं , या अपना धर्म छोड़कर दुसरे धर्मो की तरफ जा रहे हैं , उनमे से यहूदि मुस्लिम और ईसाई धर्म विदेशो में पैदा हुए हैं | जिसका मुख्यालय विदेशो में है | जहाँ से पुरी दुनियाँ में धर्म का प्रचार प्रसार करके , और लाखो करोड़ो लोगो को अपने धर्मो से जोड़कर धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए धिरे धिरे लगभग सभी देशो में धार्मिक प्रचार प्रसार ब्रांच खोले गए हैं | जहाँ से भक्तो द्वारा दान किया हुआ करोड़ो अरबो विदेश में मौजुद मुख्यालय में जाता है | जो धर्म इस देश में बहुत बाद में प्रवेश किए हैं | जैसे की यहूदि डीएनए के मनुवादि भी इस देश में बाद में प्रवेश करके हिन्दु बने हैं | जिसके बाद धिरे धिरे लाखो मंदिर हिन्दु भगवान पुजा के नाम से बनाकर उसके अंदर अपने पुर्वज देवताओ का मुर्ति बिठाकर मानो खुदको जन्म से हिन्दु धर्म के पुजारी आरक्षित घोषित कर लिए हैं | जिन मनुवादियो के आने से पहले मानो इस देश के मुलनिवासी बिना मनुवादियो के पुजा पाठ ही नही करते थे ! बल्कि जहाँ जहाँ मनुवादि पुजा करने नही जाते हैं , वहाँ वहाँ कोई पुजा पाठ ही नही होती है | जो बात वैसा ही है जैसे कि मानो इस देश में गोरो के आने से पहले कोई पढ़ाई ही नही होती थी | और गोरो के आने के बाद ही इस देश के लोग खुदको शिक्षित करना सुरु किए हैं | फिर नालंदा विश्व विद्यालय , विक्रमशिला विश्व विद्यालय और तक्षशिला वगैरा विश्व विद्यालयो में हजारो साल पहले पुरे विश्व से जो लोग आते थे वे क्या मनुस्मृति का ज्ञान लेने आते थे ? जिन विश्व विद्यालयो से भी ज्यादे विश्व चर्चित विद्यालय गोरो के आने से लेकर अबतक बने हैं क्या ? क्योंकि सच्चाई ये है कि इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले जब मनुवादि खेती करना भी नही जानते थे , उस समय इस कृषि प्रधान देश में विकसित सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति और गणतंत्र का निर्माण कबका हो चुका था | बल्कि मनुवादि जब इस देश में कबिलई पुरुष झुंड बनाकर प्रवेश किये थे , उस समय मनुवादियो के पुर्वज संभवता सिर्फ मदिरा पिना पशु लुटपाट पशु चोरी करके पशु यज्ञ कराना जानते होंगे | जिसके बारे में वेद पुराण भी भरे पड़े हैं कि किस तरह देवो के राजा इंद्रदेव इस देश में अपने पुरुष झुंड के साथ प्रवेश करके कृषी में साथ देने वाले पशुओ की चोरी करने के बाद पशु यज्ञ कराके मदिरापान और बोटी नोचवाते थे , न कि पशु यज्ञ करने वालो से रोटी के लिए खेती करवाते थे | जिस इंद्रदेव के वंसज मनुवादियो के वर्तमान शासन में भी तो यह कृषि प्रधान देश पुरे विश्व में पिंक क्रांती प्रधान हो गया है | और पुरे विश्व में खेती से ज्यादे बोटी उत्पादन में आगे हो गया है | क्योंकि मनुवादियो के पुर्वज देवो और खुद वर्तमान के मनुवादि भी मुलता कृषि से जुड़े हुए लोग नही हैं | इसलिए तो उन्होने ढोंग पाखंड नशे कि व्यापार को भी इस कृषि प्रधान देश की सभ्यता संस्कृती में मिलावट करके हिन्दु धर्म को अपना ढोंग पाखंड धर्म साबित करने कि कोशिष किया है | जिसके चलते शिक्षा में ध्यान न देकर अबतक भी आधी अबादी को अशिक्षित रखा गया है | मनुवादियो का कब्जा गणतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में होने के बाद शिक्षा क्षेत्र में विश्वगुरु कहलाने वाला यह कृषि प्रधान देश विश्व के दो सौ विश्व विद्यालयो में भी अपनी मौजुदगी अबतक दर्ज नही करा पाया है | जबकि मनुवादियो द्वारा इस देश में प्रवेश करने से बहुत पहले ही इस कृषि प्रधान देश में सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती और गणतंत्र का निर्माण कबका हो चुका था | जिस सिंधु से ही हिन्दु शब्द आया है | जिस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण इस देश के मुलनिवासी द्वारा करने के बाद किस तरह कि विकसित व्यवस्था हजारो साल पहले भी मौजुद थी इसके बारे में वर्तमान में मौजुद जो हजारो जातियाँ हैं , जो दरसल हजारो साल पहले भी मौजुद हजारो हुनर है , जिसके बारे में विस्तार पूर्वक पता करके जाना समझा जा सकता है कि मुवादियो के आने से पहले सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु का पहचान क्या था | जिस विश्व चर्चित कृषि सभ्यता संस्कृति की विकसित व्यवस्था में मनुस्मृति ढोंग पाखंड का संक्रमण होने के बाद ही मनुवादि संभवता अज्ञनता कि वजह से हजारो विकसित हुनरो को हजारो निच जाति और खुदको मनुवादि शासन स्थापित करने वाले कथित उच्च जाति घोषित किया हुआ है | जिन मनुवादियो की उच्च निच जातियो पर अधारित मनुस्मृति व्यवस्था कैसी होती है , उसकी सिर्फ झांकी के तौर पर अब भी मंदिरो के बाहर लगा बोर्ड जिसमे अंदर निच का प्रवेश मना है जो लिखा रहता है उसे पढ़कर जाना समझा जा सकता है | जबकि कृषि सभ्यता संस्कृति पर अधारित आपस में मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाने और आपस में मिल जुलकर ज्ञान बांटने वाली व्यवस्था कैसी होती है इसकी झांकी प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई से भी पता चल चुका है कि हजारो साल पहले भी मनुवादि संभवता कपड़ा पहनना और परिवार समाज के बारे में भी जब नही जानते थे उस समय भी इस कृषि प्रधान देश में हजारो विकसित हुनर पर अधारित विकसित व्यवस्था मौजुद थी | जिसका निर्मान करने वाले इस देश के मुल निवासीयो द्वारा ही साक्षात प्रकृति भगवान पुजा और बारह माह साक्षात प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाई जानी सुरु हो चुकि थी | न कि मनुवादियो के पुर्वज कहलाने वाले बेवड़ा इंद्र जैसे बलात्कारी की पुजा की जाती थी | जिसका कथित स्वर्ग में भी कृषि जिवन नही बल्कि मदिरापान और भोग विलास युक्त जिवन चलती है | जिसने विवाहित अहिल्या का बलात्कार छल कपट द्वारा किया था | बल्कि वृत्तासुर की पत्नी तुलसी का मान सम्मान लुटने वाले विष्णुदेव और सरस्वती का मान सम्मान लुटने वाले ब्रह्मादेव जैसे दुसरे गुमनाम देवताओ की भी पुजा नही की जाती थी | इसलिए बलात्कारी इंद्रदेव समेत अन्य भी गुमनाम देवताओ की मुर्ति जिन जिन हिन्दु पुजा स्थलो में मौजुद है , वहाँ पर तो शुद्र का प्रवेश मना है लिखा बोर्ड हटाकर गुमशुदा तलाश केंद्र का बोर्ड लगनी चाहिए थी | क्योंकि इस प्राकृतिक समृद्ध कृषि प्रधान देश के मुलनिवासी बारह माह कण कण में साक्षात मौजुद प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाकर प्राकृति की पुजा तब भी करते थे , जब गुमनाम लापता देवता और मनुवादि इस देश में प्रवेश भी नही किए थे | जो असल हिन्दु पुजा है , और इस देश के मुलनिवासी असल हिन्दु हैं | जिनके पुर्वज प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति में भी साक्षात प्रकृति भगवान की ही पुजा करते थे | जिसके लिए किसी मनुवादि पुजारी की जरुरत नही होती थी | बल्कि आज भी इस कृषि प्रधान देश में बहुत सारे प्रकृति पर्व त्योहार मनाये जाते हैं , जिसे मनाते समय कथित किसी जन्म से उच्च जाति के आरक्षित पंडित की जरुरत नही होती है | इसलिए इस कृषि प्रधान देश में आज भी ग्राम और शहर दोनो जगह सबसे अधिक पुजा स्थल ऐसे हैं , जहाँ पर किसी कथित उच्च जाति के पुजारी की जरुरत नही होती है | क्योंकि हिन्दु पुजा साक्षात उस भगवान प्रकृति की पुजा है , जो की जिव निर्जिव बल्कि सृष्टी के कण कण में मौजुद है | जिसके साक्षात प्रमाणित सत्य जिवन मरन संसार चारो ओर मौजुद है | जिस साक्षात सत्य के आगे कोई भी इंसान माथा टेककर उसके प्रती विश्वास जाहिर कर सकता है कि प्रकृति कृपा से ही वह इस दुनियाँ में जन्मा है , और प्रकृति की कृपा से ही वह एक एक साँस ले रहा है | जो कोई मनुवादि ढोंग पाखंड , कल्पना और कथा नही बल्कि ऐसी सच्चाई है , जिसे कोई भी इंसान यह कहकर इंकार नही कर सकता कि वह बिना प्रकृति भगवान की कृपा लिए सिर्फ मंदिर मस्जिद जाकर पुजा पाठ करके जिन्दगी जी रहा है , या जी सकता है | बल्कि सच्चाई ये है कि प्रकृति की कृपा से ही मंदिर मस्जिद और चर्च भी बने हैं | जिस साक्षात प्रकृति भगवान से सारी सृष्टी कायम है | जिसे कोई भी गलत साबित नही कर सकता | क्योंकि भले अलग अलग इंसान अपने अपने अलग अलग मन से हिन्दु धर्म में की जाने वाली प्रकृति भगवान पुजा के बारे में जो कुछ भी सोचता समझता है , पर सच्चाई यही है कि प्रकृति भगवान की वजह से ही सबकी रोजमरा जिवन मरन तय होती है | और चारो ओर साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान की वजह से ही सभी धर्मो के भक्त ही नही बल्कि सारी सृष्टी में मौजुद जिव निर्जिव सभी अपनी मौजुदगी दर्ज किए हुए हैं | जाहिर है यदि कोई प्रकृति की कृपा से ही जन्मा किसी इंसान की बातो में विश्वाश करके किसी की पुजा उसे बिना देखे और उसकी अवाज बिना सुने कर सकता है , तो फिर सारे इंसान ही नही बल्कि सारे संसार को पालते पोसते साक्षात अपनी आँखो से देख और कानो से सुनकर भी कोई साक्षात प्रकृति भगवान की पुजा क्यों नही कर सकता ? जबकि आस्तिक नास्तिक दोनो को ही इस सच्चाई से इंकार नही कि साक्षात प्रमाणित जिवन मरन प्रकृति भगवान की वजह से ही मुमकिन है | जिसे इंकार करके कोई हवा पानी लेना छोड़ दे तो एक पल भी टिक नही पायेगा | क्योंकि बिना प्रकृति भगवान के जिना मरना नामुमकिन है | जिसे मुमकिन बताने वाले ही तो असल ढोंगी पाखंडी लोग हैं | जिनकी झुठी बाते कभी भी सत्य साबित नही होगी | बल्कि जिस दिन ढोंगी पाखंडियो की झुठी बाते सत्य हो जायेगी उसदिन ऐसे ढोंगी पाखंडियो की मौजुदगी ही नही रहेगी इस सृष्टी में | क्योंकि तब प्रकृति भगवान झुठ साबित हो जायेगा कि उसके द्वारा जिवन मरन तय होती है | जिसके द्वारा इतनी खुबसुरती से जिव निर्जिव सबकी रचना होती है कि इंसान या कोई भी प्राणी चाहे जितना बुद्धीमान हो जाय , प्रकृति भगवान की तरह जिव निर्जिव पेड़ पौधा वगैरा की रचना कभी नही कर सकता | जो यदि नकल करके या ज्ञान हासिल करके प्रकृति भगवान की तरह रचना करना चाहेगा तो भी प्रकृति भगवान की तरह न तो कोई प्राणी की रचना कर पायेगा और न ही पेड़ पौधा वगैरा का | जिन सबमे भी प्रकृति भगवान खुद कण कण में मौजुद हैं | यू ही उसके द्वारा जिव निर्जिव की रचना इतनी खुबसुरती से नही हुई है | जिस तरह की रचना प्रकृति भगवान के द्वारा अनंत काल से होती चली आ रही है , और उसी के द्वारा रंग रुप बदलने के लिए विनाश करने की भी प्रक्रिया होती रहती है | जैसे कि जन्म के बाद पुराना रंग रुप बदलने के लिए मरन की प्रक्रिया | जो की प्रकृति भगवान के द्वारा चलती रहती है , जिसकी सच्चाई अनंत काल से स्थिर कायम है | जिसे कोई नही बदल सकता भले चाहे जितना धर्म बदल ले या फिर अपना शरिर बदल ले | क्योंकि शिर्फ साक्षात शरिर में बुद्धी बल नही होती है | बल्कि सबसे अधिक बुद्धी बल और चमत्कारी गुण भी प्रकृति भगवान में ही मौजुद है | जो की अनंतकाल से अमर भी है | जिसके चमत्कारी गुण से ही तो यह सृष्टी कायम है | जिसकी पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाले असली ढोंगी पाखंडी तो अपने शरिर में मौजुद ढोंग पाखंड बुद्धी बल से चंद सौ साल भी कायम नही रह पाते हैं | लेकिन भी आत्मविश्वास के साथ अनंतकाल से अमर प्रकृति भगवान को निर्जिव और ढोंग पाखंड कहकर हिन्दु पुजा को गलत साबित करने पर सारी जिवन बिता देते हैं | लेकिन प्रकृति भगवान उन्हे भी उनकी मौत के बाद उनके बुद्धी बल वाला शरिर को अपने गोद में लेकर वापस उन्हे नया शरिर में परिवर्तित करके इसी प्रकृति भगवान द्वारा रचित दुनियाँ में फिर से नया जिवन देती है | जैसे कि बाकियो को भी देती है | न कि किसी के मरने के बाद वह गायब होकर किसी दुसरी दुनियाँ में अदृश्य नर्क या फिर स्वर्ग जिवन जिने चला जाता है | और उसके बाद वापस इस दुनियाँ में आता है | जैसे मानो कोई कैदी अदृश्य दुनियाँ में मौजुद जेल से छुटकर या फिर कोई विवाहित जोड़ी हनिमून मनाकर धरती में वापस आता है | बल्कि वह किसी बारिस बुंद की तरह वाष्पित होकर धरती पर वापस आकर नदी नाला तालाव कुँवा वगैरा अलग अलग रंग रुप धारन करने के बाद फिर से वाष्पित होकर इसी प्रकृति भगवान द्वारा रचित दुनियाँ में ही नया जन्म लेता है | अथवा किसी की मौत होने के बाद इसी प्रकृति भगवान के द्वारा रचित दुनियाँ में ही विलय होकर वापस नया जन्म लेने के लिए इसी प्रकृति भगवान रचित दुनियाँ में ही आना है | प्रकृति भगवान को ढोंग पाखंड कहने वाले असल ढोंगी पाखंडियो की बुद्धी बल भी इसी प्रकृति भगवान रचित दुनियाँ में ही विलय होगी | न कि वे प्रकृति भगवान को ढोंग पाखंड साबित करने के लिए अपने मृत शरिर को ढोंग पाखंड द्वारा प्रकृति से गायब करके दिखला देंगे | क्योंकि सजा काटने वाला जेल भी इसी दुनियाँ में होती है , और हनिमून मनाने वाला जगह भी इसी दुनियाँ में मौजुद होती है |

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