साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान पुजा को ढोंग कहने वाले ढोंगी पाखंडियो का अदृश्य ईश्वर और अदृश्य स्वर्ग नर्क के बारे में क्या विचार है ?

साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान पुजा को ढोंग कहने वाले ढोंगी पाखंडियो का अदृश्य ईश्वर और अदृश्य स्वर्ग नर्क के बारे में क्या विचार है ? 

सत्य का प्रतिक शिव लिंग पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाले हो सके तो कभी विज्ञान द्वारा कथित उस अदृश्य स्वर्ग के बारे में भी पता कर लें जिसकी कामना मंदिर मस्जिद और चर्च वगैरा में आँख मुँदकर की जाती है | उन्हे पता चल जायेगा कि अदृश्य स्वर्ग की मान्यता सिर्फ आस्था और विश्वास पर अधारित है | जिसका अबतक कोई भी प्रमाण नही कि मरने वाले अपने जिवन में किए गए कर्मो और कुकर्मो के अनुसार ही आत्मा के रुप में इस सृष्टी से बाहर किसी और जगह स्वर्ग या नर्क में चला जाता हैं | अथवा मरने के बाद स्वर्ग या नर्क यात्रा होती है | जबकि साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान के बारे में विज्ञान को भी पता है कि प्रयोगिक और प्रमाणित तौर पर प्रकृति रचना ढोंग पाखंड है कि स्वर्ग नर्क की रचना ढोंग पाखंड है | क्योंकि स्वर्ग नर्क की प्रमाणिकता पर विज्ञान ही नही बल्कि स्वर्ग नर्क पर यकिन करने वाले भी अपनी रोजमरा जिवन में उतने यकिन नही करते हैं जितने कि उन्हे प्रकृति भगवान की गोद में ही स्वर्ग मौजुद है इस बात पर ज्यादे यकिन है | क्योंकि यदि वे ज्यादे यकिन अदृश्य स्वर्ग नर्क में करते तो निश्चित तौर पर उन्हे आँख मुँदकर स्वर्ग की कामना करने की कभी आवश्यकता ही नही पड़ती , बल्कि स्वर्ग की यात्रा करने अथवा स्वर्गवासी होने के लिए चिंता करने या डरने के बजाय हर पल स्वर्गवासी होने के लिए उतावले होते | न कि प्रकृति भगवान की गोद में रोजमरा जिवन चलती रहे इसके लिए सबसे अधिक चिंता करके हर रोज हवा पानी लेते रहते | बल्कि अदृश्य स्वर्ग नर्क कि कल्पना करने वाले ने भी चिंता करते हुए स्वर्ग नर्क में प्रकृति भगवान की रचना हवा पानी आग वगैरा को मान्यता दिया है | जो यदि सत्य नही है कि स्वर्ग नर्क में प्रकृति रचना हवा पानी अग्नि वगैरा मौजुद नही है तो निश्चित तौर पर स्वर्ग नर्क की कल्पना करना भी साक्षात मौजुद प्रकृति भगवान के विपरित है | क्योंकि यदि स्वर्ग नर्क प्रकृति में मौजुद नही है , अथवा प्रकृति से बाहर है , तो वह प्रकृति और विज्ञान के लिए निश्चित तौर पर अमान्य है | और यह बात भी अमान्य है कि प्रकृति द्वारा निर्मित शरिर आत्मा की वजह से ही चलता फिरता है | और आत्मा किसी की मौत होने के बाद स्वर्ग या नर्क चला जाता है | और यदि शरिर को आत्मा चला रहा होता है तो फिर इंसान में मौजुद भोजन और हवश की भुख शरिर को होती है कि आत्मा को ? और शरिर की मौत आखिर कब होती है ? शरिर से आत्मा के निकलने पर कि प्राकृतिक द्वारा शरिर की रचना से साँस रुकने पर ? और यदि सही जवाब में भोजन और हवश की भुख आत्मा को होती है , तो फिर तो सिर्फ एक दुसरे को समर्पित प्रेमी प्रेमिका और वैवाहिक जोड़ी मरने के बाद दुसरे जन्म में अपना अपना शरिर छोड़कर किसी दुसरे शरिर से मिलन करते होंगे | क्योंकि यदि मरने के बाद आत्मा किसी दुसरे शरिर को धारन करके दुसरा जन्म लेता होगा तो निश्चित तौर पर मरने के बाद का शरिर दुसरा होगा | यानि भोजन और हवश की इच्छा आत्मा को होती है शरिर को नही ! शरिर तो सिर्फ आत्मा द्वारा इस्तेमाल हो रहा होता है | जिसके नष्ट होने के बाद उसके अंदर मौजुद आत्मा किसी दुसरे शरिर में प्रवेश करके भोजन और हवश की भुख मिटाना शरिर बदल बदलकर जारी रखता है | यानी भुख मिटाने का आनंद आत्मा लेता है शरिर नही ! फिर ये क्यों कहा जाता है कि पेट अथवा शरिरर को भुख लगा है | हिन्दु धर्म  मान्यता अनुसार तो किसी प्राणी के मरने के बाद शरिर सिर्फ अपना रंग रुप बदलकर पुराना शरिर ही नया शरिर धारन करता है | न कि कोई मरने के बाद इस दुनियाँ से ही गायब होकर किसी दुसरी दुनियाँ में आत्मा के रुप में जाकर वापस इसी दुनियाँ में आकर किसी दुसरे शरिर में प्रवेश करके नया जन्म लेता है | और उसके बाद किसी दुसरे शरिर से मिलन करता है | जिस बात को प्रकृति सत्य नही मानता | क्योंकि प्रकृति भगवान की कृपा से इस दुनियाँ में जन्म लेने वाला इंसान चाहे जिससे भी विनती कर ले , प्रकृति सत्य यही है कि यदि वह प्रकृति की कृपा से इसी दुनियाँ में जन्म लिया है , तो वह कोई दुसरी दुनियाँ में अपने प्रकृति निर्मित तन मन को किसी भी चमत्कार द्वारा इस दुनियाँ से बाहर किसी दुसरी अदृष्य दुनियाँ में विस्थापित नही कर सकता | बल्कि उसका पुराना शरिर का ही अंश नया रंग रुप लेकर नया जन्म लेगा | जैसे कि सृष्टी में मौजुद ग्रह तारे वगैरा अपना उम्र पुरा कर लेने के बाद नष्ट होकर वापस नये रंग रुप धारन करते हैं | न कि हर रोज नये नये ग्रह तारे वगैरा इस सृष्टी में किसी दुसरी दुनियाँ से आ रहे हैं | क्योंकि यह सृष्टी प्रकृति भगवान के द्वारा निर्मित है , और उसी के द्वारा स्थिर कायम भी है | जिस प्रकृति भगवान के बारे में पुरी जानकारी किसी के भी द्वारा हासिल कर पाना नामुमकिन है | और प्रकृति भगवान जो कि हम सब में भी मौजुद है , उसके बारे में पुरी तरह से बिना जाने समझे सत्य शिव लिंग योनी पुजा को ढोंग पाखंड कहना खुदको प्रकृति के बारे में सबकुछ जानने वाला ऐसा चमत्कारी ज्ञानी होने का दावा करना है , जिसे प्रकृति में मौजुद सारे रहस्यो के बारे में पता हो | जबकि आजतक ऐसा कोई भी प्राणी नही जन्मा जो कि एक मच्छड़ तक की प्रकृति रचना के बारे में भी जान सके और खुद मच्छड़ की रचना कर सके | बल्कि प्रकृति भगवान जो कि पत्थर के रुप में भी साक्षात मौजुद है , उसकी पुजा को ढोंग पाखंड कहने वाला इंसान अभी तो प्राकृति में मौजुद ग्रह पृथ्वी के बारे में भी पुरी जानकारी नही जुटा पाया है | और न ही पृथ्वी से बाहर मौजुद एलियन के बारे में भी जानकारी ठीक ठीक जुटा पाया है | हाँ उसी इंसान ने ही जब वह बिजली जलाना , टी०वी० चलाना , रेल चलाना , मोबाईल कम्प्यूटर वगैरा चलाना नही जानता था उस समय अलग अलग कई धर्म ग्रंथो की रचना करके उसमे सारी सृष्टी को ही रचने वाले अदृश्य ताकत के बारे में हजारो साल पहले प्रकृति द्वारा विकसित तन मन से कल्पना करके अलग अलग जानकारी उपलब्ध कराने का दावा जरुर कर दिया है | जो दावा यदि वर्तमान के इंसान करे तो निश्चित तौर पर उसे ढोंगी पाखंडी कहकर उसके द्वारा कही बातो पर यकिन ही नही किया जायेगा | वैसे पहले भी जो दावा किया गया है उसपर कभी भी न खत्म होनेवाला विवाद है | क्योंकि धर्म ग्रंथ में बतलाई गई जानकारी पुर्ण रुप से सत्य है इसपर सभी धर्मो के बिच विवाद है | जिसके चलते निश्चित तौर पर इंसान द्वारा पैदा किया धर्म में मौजुद सत्य को सभी धर्मो के आस्तिको के साथ साथ नास्तिक भी सौ प्रतिशत सत्य मानकर अपना लेंगे ऐसा समय कभी नही आनेवाला है | क्योंकि कौन सा धर्मग्रंथ में लिखी गई सारी जानकारी पुर्ण सत्य है जिसपर सभी इंसान यकिन कर ले इसपर ही तो मुल धार्मिक विवाद है | जिसके चलते जिसको जिसपर विश्वास होने लगती है उसे स्वीकार करने के लिए ही तो धर्म बदलने की प्रक्रिया भी चलती रहती है | जो कभी समाप्त ही नही होगी जबतक की इस सृष्टी की रचना करने वाले यदि गायब होकर इस सृष्टी को वाकई में चला रहे होंगे तो सारी विवादो को समाप्त करने के लिए वे खुद आकर हो सके तो सारी दुनियाँ की मीडिया बल्कि सारी सृष्टी के एलियन और दुसरे प्राणी के सामने प्रेस वर्ता करके अपने बारे में खास जानकारी के रुप में ऐसी खुदकी ऑडियो विडियो बल्कि लिखित पुस्तक भी खुद जारी कर दे जिसपर सौ प्रतिशत सभी धर्मो समेत नास्तिक लोग भी यकिन कर लें कि कौंन सबके द्वारा स्वीकार किये जानेवाला सत्य है | जैसे कि सभी धर्मो के लोग साक्षात मौजुद हवा पानी को अलग अलग भाषा में जल ही जिवन है सौ प्रतिशत स्वीकार करते हैं | और सभी एक ही हवा पानी को जानते हैं | जिसपर कोई विवाद भी नही कि वह हवा पानी नही कुछ और है | क्योंकि प्रकृति भगवान अनंतकाल से साक्षात मौजुद होकर अपनी प्रमाणिकता आस्तिक और नास्तिक दोनो को दे रहे हैं | जिस तरह की एक सत्य एक प्रमाणित ज्ञान मान्यता न होकर फिलहाल तो किसी इंसान द्वारा कई अलग अलग ऐसे धर्म पुस्तक की रचना जरुर कर लिया गया है , जिसपर सभी धर्म में सत्यता को लेकर कई विवाद है | जैसे कि सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति के मुलनिवासियो ने प्रकृति भगवान पुजा करते हुए उसके बारे में जिस वेद पुराण की रचना किया है उसपर भी कई विवाद है | जिसमे बाद में मनुवादियो के द्वारा मिलावट और छेड़छाड़ करके प्रकृति भगवान पुजा को देवता पुजा के रुप में परिवर्तित करने की कोशिष किया गया है | प्रकृति हवा पानी सुर्य वगैरा की पुजा को वायुदेव जलदेव अग्निदेव सुर्यदेव वगैरा नाम देकर मनुवादियो ने प्रकृति भगवान पुजा को देव पुजा साबित करने की कोशिष किया है | जबकि वेद पुराण में दरसल साक्षात प्रकृति भगवान के बारे में और सृष्टी में मौजुद जिवन के बारे में प्रमाणित जानकारी मौजुद है | जैसे की प्रकृति में चारो ओर अनगिनत प्रमाणित सत्य उपलब्ध है | जिसकी खोज करके प्रकृति ज्ञान में दिन प्रतिदिन बड़ौतरी होती रहती है | जिस प्रकृति भगवान के प्रति विश्वास जाहिर करने के लिए कोई भी इंसान भगवान की पुजा अपने घर में भी कर सकता है | क्योंकि प्रकृति भगवान सभी जगह साक्षात मौजुद हैं ! और सबके लिए एक है | जैसे कि सबके लिए हवा पानी और सुर्य की रौशनी एक है | जिसकी रचना करने वाला प्रकृति भगवान के बारे में हम ये नही कह सकते कि साक्षात भगवान कि मौजुदगी इस सृष्टी में किसी न किसी रंग रुप में फलाना जगह नही है | इसलिए वहाँ पर भगवान नही मिलेगा , और उसकी पुजा पत्थर के रुप में खुले आसमान या जंगल झाड़ में मान्य नही होगी , सिर्फ मंदिर मस्जिद चर्च में ही मान्य होगी ! फिर तो जो लोग मंदिर मस्जिद और चर्च कभी गए ही नही हैं , उनके जिवन में भगवान की कृपा कभी आई नही है ! और न ही वे बिना मंदिर मस्जिद और चर्च गए कभी प्रकृतिक भगवान से विनती कर सकते हैं | जैसे की सिंधु घाटी जैसी विकसित सभ्यता संस्कृति सारी दुनियाँ में जहाँ जहाँ पर भी मंदिर मस्जिद चर्च बनने से पहले विकसित हुई है , वहाँ पर मंदिर मस्जिद चर्च बनने से पहले भगवान की कृपा कभी मिली ही नही थी , जहाँ पर मंदिर मस्जिद और चर्च बनने के बाद ही सबसे अधिक कृपा बरस रही है | बल्कि मेरे विचार से तो वहाँ पर प्रकृति भगवान की कृपा मंदिर मस्जिद चर्च बनने से पहले सबसे ज्यादे बरसी है | जिसकी वजह से वहाँ पर हजारो सालो से सबसे अधिक अबादी भी पल रही है | और जिन्हे कम कृपा मिली है वे लोग भी वहाँ पर हजारो सालो से कृपा पाने के लिए खिचे चले आकर पले बड़े हैं | बल्कि कई तो जल्दी जल्दी कृपा पाने की लालच में आकर दुसरो को मिली कृपा को जोर जबरजस्ती कब्जा करने की कोशिष में हजारो सालो से भगवान से मिली कृपा को नष्ट भ्रष्ट करने की कोशिष में लगे हुए हैं | जिसके चलते जहाँ जहाँ पर भी प्रकृति भगवान की कृपा सबसे अधिक बरसी है , वहाँ वहाँ सबसे अधिक लुट मार छिना झपटी भी हुए हैं , जो कि अबतक भी हो रही हैं | जिससे प्रकृति भगवान नाराज हए हैं , जिसकी नराजगी पुरी दुनियाँ में देखी जा सकती है | जिसकी नराजगी की अंतिम सीमा के बारे में सारे धर्मो में चर्चा की गई है कि जब अति हो जायेगी तो उस समय प्रकृति भगवान सारे मंदिर मस्जिद समेत सारे भक्तो को बल्कि इस पृथ्वी को ही मानो रिसाईकल करने के लिए नष्ट कर देंगे | और उनकी नष्ट हुई अवशोषो से नया जिवन सृजन करेंगे | जैसे की अब भी जो इंसान मरता है , उसकी अवशेष से ही फिर से नई जिवन का सृजन होता है | सिर्फ पुराना से नया रंग रुप तन मन बदलता रहता है | न कि इंसान  मरने के बाद नया जन्म लेने के लिए गायब होकर कहीं दुसरी दुनियाँ में चला जाता है | जो यदि सचमुच में चला जाता तो उसकी लाश को लोग इसी दुनियाँ में क्यों दफनाते या जलाकर इसी दुनियाँ में उसके अवशेष को रखते या प्रकृति निर्मित पानी में दहाते  ? बल्कि मरने के बाद उसके करिबी उसपर कोई ध्यान ही नही देते यह कहकर कि अब वह इस दुनियाँ में नही बल्कि किसी दुसरी दुनियाँ में सुरक्षित रहने चला गया है | जिस दुनियाँ में अबतक मरे सभी इंसान बल्कि सायद दुसरे प्राणी भी अपनी मौजुदगी दर्ज करके , वहाँ पर नया शरिर अपनाकर वर्तमान में मौजुद इस दुनियाँ की अबादी से भी ज्यादा अबादी बस चुकी है | जो आगे भी इस दुनियाँ से जाकर दुसरी दुनियाँ में बसते ही जा रही है | फिर क्यों कब्र में जाकर मोमबत्ती अगरबत्ती जलाकर या फुल चड़ाकर या फिर यू ही जाकर उसकी इसी दुनियाँ में रहने का प्रमाण देते रहते हैं ? बल्कि उसकी लाश की सुरक्षा व्यवस्था भी करते रहते हैं | जो यदि किसी दुसरी दुनियाँ में जा चुका है , तो फिर इस दुनियाँ में उसकी चिंता करने और उसकी सुरक्षा के लिए ताला लगाने की क्या जरुरत है | अगर स्वर्ग नर्क वाकई में किसी दुसरी दुनियाँ में मौजुद है , तो फिर स्वर्ग की कामना करने वाले स्वर्ग सुख इस दुनियाँ में तलाशने के बजाय सिधे स्वर्ग वाशी क्यों नही हो जाते हैं | क्यों स्वर्ग वाशी न होने के लिए दिन रात न जाने क्या क्या नही करते हैं ! सिर्फ कहने सुनने देखने दिखाने को तो बहुत कुछ उदाहरन मिलती है कि फलाना स्वर्ग वासी हो गया , पर सच्चाई यही है कि वह स्वर्ग वासी होना कभी चाहता ही नही था | जिसके लिए वह अंतिम तक न मरने की कोशिष करता रहा | क्योंकि सच्चाई यही है कि इस दुनियाँ में जन्म लेने वाले बहुत कम लोग हैं , जो मानो न के बराबर हैं , जो कि सचमुच में अपनी इच्छा से स्वर्ग वासी होना चाहते हैं | क्योंकि भले क्यों न वे दिन रात स्वर्ग की कामना करते रहते हो , पर सच्चाई यही है कि स्वर्गवासी होने के बारे में सिर्फ सुनकर भी डर और मातम का माहौल बन जाता है | यकिन न आए तो किसी से कभी एक पल के लिए एक झुठ कहकर देखो की उसका करिबी जिसके सुख के लिए वह दिन रात कामना करता रहता है , जो कि उसी के द्वारा ही यह भी माना जाता है कि स्वर्ग से ज्यादा सुख और कहीं पर भी नही है , उस स्वर्ग का वासी हो गया | अथवा किसी के स्वर्ग वासी होने की एक झुठ एक पल के लिए कहकर देखो , दुसरी दुनियाँ का अदृश्य स्वर्ग नर्क में कितनी सच्चाई है | और प्रकृति भगवान की बनाई हुई साक्षात इस स्वर्ग नर्क दुनियाँ में कितनी सच्चाई है | जिसे बनाने वाले प्रकृति भगवान के बगैर प्रयोगिक तौर पर कोई भी इंसान जिवित रहना तो दुर जन्म भी नही ले सकता | जिसे पुजने के लिए किसी पुजारी या फिर मंदिर मस्जिद चर्च की भी जरुरत नही होती है |

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