21 मई 2001 को The Times of india अखबार में छपी डीएनए रिपोर्ट और पिंक क्रांती की रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादियो के मन में पशु नारी और शुद्र ताड़न के अधिकारी क्यों आया होगा ?

21 मई 2001 को The Times of india अखबार में छपी डीएनए रिपोर्ट और पिंक क्रांती की रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादियो के मन में पशु नारी और शुद्र ताड़न के अधिकारी क्यों आया होगा ?


हिन्दु पुजा में प्रकृति से जुड़ी सत्य का प्रतिक पत्थर शिव लिंग योनी और नदी कुँवा तलाव पेड़ पौधा भूमि पत्थर वगैरा की पुजा की जाती है | जो कि बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर भी की जाती है | जो प्रकृति भगवान साक्षात इसी दुनियाँ में मौजुद है | जिसकी पुजा को बिना पंडित के पुजा करते हुए ग्राम शहर दोनो जगह प्रयोगिक रुप से सबसे अधिक देखे जा सकते हैं | जिसमे प्रकृति हवा पानी आग सुर्य वगैरा को वायुदेव जलदेव अग्निदेव सुर्यदेव वगैरा देवो का नाम जोड़कर मनुवादि अपने ढोंग पाखंड नशा का व्यापार को ज्यादे से ज्यादे फैलाने की कोशिष में लगे हुए हैं | जिसके लिए इस कृषि प्रधान देश में जहाँ जहाँ पर भी किसी प्रकृति से जुड़ी पुजा स्थल या प्रकृति से जुड़ी परंपरा मिलती है  , उससे देवताओ का नाम जोड़कर ढोंग पाखंड नशे का विस्तार करना जारी है | यही वजह है कि जंगल झाड़ में भी जहाँ पर भी प्रकृति से जुड़ी पुजा स्थल मिलती है , जैसे की सत्य का प्रतिक शिव लिंग योनी प्रकृति पत्थर के रुप में जहाँ कहीं पर भी सबसे अधिक संख्या में पुजा जाता है  , वहाँ पर शिव लिंग योनी की आड़ में लगातार देव मंदिर बनते चले गए हैं | क्योंकि जितना चड़ावा उतना लाभ को देखते हुए कथित उच्च जाति के पुजारी वहाँ पर अपने पुर्वजो का नाम जोड़कर पुजा कराना और दान के रुप में धन बटोरना सुरु कर देते हैं | जबकि हिन्दु पुजा मनुवादियो के लापता पुर्वज देवो की पुजा नही है | बल्कि हिन्दु पुजा सृष्टी के कण कण में साक्षात मौजुद उस प्रकृति भगवान की पुजा है , जिसकी पुजा प्रकृति में ही मौजुद जल फुल चड़ाकर प्रकृति भगवान के प्रति अपना विश्वास प्रकट की जा सकती है | जिस तरह की पुजा ही इस देश के मुलनिवासी हजारो सालो से शांती पुर्वक करते आ रहे हैं | जिसका प्रमाणित प्राचिन अवशेष हजारो साल पुरानी प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति की खुदाई में भी मिली है | जहाँ पर कोई भी गुमनाम लापता देवता मंदिर नही मिले हैं | और न ही कोई मस्जिद और चर्च मिले हैं | क्योंकि ये सब बाद में इस देश में बनने सुरु हुए हैं | वैसे मुस्लिम और ईसाई धर्म का तो जन्म भी बहुत बाद में हुआ है | जिसके बाद ही मुस्लिम और ईसाई धर्म के प्रचारक इस देश में प्रवेश किए हैं | जिन विदेशो में जन्म लेने वाले धर्मो को अपनाने से यदि वाकई में सबसे अधिक अमन प्रेम सुख शांती आ जाती तो फिर तो बाईबल पढ़कर हली लुईया हली लुईया यीशु के नाम बड़बड़ाते हुए गोरे  पुरी दुनियाँ के कई देशो को गुलाम कभी नही करते , और न ही देशो को गुलाम करके लुटपाट शोषन अत्याचार करते | बल्कि ईसाई धर्म को अपनाकर गोरे बारह माह चर्च में प्रवेश करके यीशु के मुर्ति या फोटो के सामने हलि लुईया हली लुईया करते हुए इस देश में प्रवेश करने से पहले ही यह समझ जाते की अमन प्रेम सुख शांती किसी को गुलाम करने से नही आती है | क्योंकि यीशु ने अजादी प्रेम बांटने के लिए कहा था गुलाम करने के लिए नही | हलांकि निश्चित तौर पर सभी गोरे उस समय भी देश गुलाम करके राज करने के पक्षधर नही होंगे | सिर्फ चंद प्रतिशत गोरो ने ही गुलाम करके राज करने का फैशला को यीशु के अजादी प्रेम से भी ज्यादा जरुरी समझा होगा | जैसे की चंद प्रतिशत कथित उच्च जाति के कहलाने वाले लोग मनुस्मृती को अब भी अपना आदर्श मानकर ढोंग पाखंड छुवा छुत शोषन अत्याचार को जारी रखते हुए इस देश की शासन व्यवस्था और हिन्दु वेद पुराणो को हाईजेक किए हुए हैं | क्योंकि हाईजेक करने वाले भी मुठीभर लोग होते हैं , जो अपने से कहीं अधिक अबादी को बंधक बनाए हुए रहते हैं | जाहिर सी बात है मुठिभर ढोंगी पाखंडी चाहे जिस धर्म को अपनाएँ या जिस धर्म में रहें , किसी भी धर्म में उनकी भ्रष्ट बुद्धी को कोई फर्क पड़नेवाला नही है | मुस्लिम धर्म में भी बहुत सारे आतंकवादी तब थे , और अब भी मौजुद हैं , जो बारह माह मस्जिद जाकर अमन प्रेम कायम करने की कुरान सुबह शाम पढ़कर भी पुरी दुनियाँ में आतंक फैलाने का कुकर्मो में लगे रहते हैं | जिनकी नपाक मांसिकता को मुस्लिम धर्म तो क्या कोई भी धर्म नही बदल सकती | और न ही मनुवादियो की मनुस्मृती छुवा छुत मांसिकता को हिन्दु धर्म में हजारो सालो से हिन्दु पुजारी बनाकर भी बदला जा सकता है | बल्कि ढोंगि पाखंडि चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , वे मानो चोर चोर मौसेरा भाई की तरह आपस में ही मिले हुए रहते हैं | क्योंकि मुलता आतंकवादी और ढोंगी पाखंडी आपस में मिलकर ही ढोंग पाखंड और दंगा फसाद जैसे आतंक का विस्तार करते हैं | जैसे कि जब इस देश में बाहर से आए मुसलमानो के द्वारा मुस्लिम शासन स्थापित की गई थी , उस समय मुस्लिम धर्म में ही मौजुद मुठीभर आतंकियो ने खुदको सबसे बड़ा धार्मिक और अमन चैन कायम करने वाला बतलाकर जजिया कर का आतंक इस देश के मुलनिवासियो में लगाना सुरु किया था | जो मुस्लिम शासक मनुवादियो से जजिया कर क्यों नही लेते थे ? क्योंकि ढोंगी पाखंडी मनुवादि भी आतंकी मुठीभर मुस्लिम शासको की तरह ही विदेशी मुल के थे | इसलिए मनुवादियो से जजिया कर नही लिया जा रहा था | जैसे की बाहर से आकर इस कृषि प्रधान देश को गुलाम करने वाले कबिलई मुठिभर गोरो को भी मनुवादियो ने यह समझाने कि बहुत कोशिष किया था कि गोरो की तरह ही चूँकि मनुवादि भी विदेशी हैं , इसलिए  विदेशी मुल के मनुवादियो को भी शोषन अत्याचार करने के लिए अपनी शासन में विशेष भागीदार बनाया जाय | क्योंकि मनुवादियो की गुलाम करने वाली कबिलई पुरुष झुंड गोरो से भी बहुत पहले हजारो साल पहले ही इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से इस देश की शासन व्यवस्था में कब्जा करके , और इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर मनुस्मृती लागू करके , छुवा छुत शोषन अत्याचार करना सुरु किया है | जिन मनुवादियो को शोषन अत्याचार करने का अनुभव गोरो से ज्यादे समय का है | क्योंकि खुदको हिन्दु कहकर गर्व करने वाले मनुवादि इस सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती में प्रवेश करके इस देश के मुलनिवासियों को गुलाम दास दासी बनाने वाले संभवता पहले विदेशी हैं | जिसके बाद ही गोरो के जैसा विदेशी मुल के कई कबिलई टोली इस देश में प्रवेश किए हैं | जिन्हे तब मोटी मोटी धार्मिक किताब पढ़कर भी मानो यह ज्ञान मौजुद नही थी कि किसी देश को गुलाम करने से अमन प्रेम सुख शांती और समृद्धी कायम नही होती है | क्योंकि इतिहास गवाह है कि हर रोज नमाज पढ़ने वाले तब के मुस्लिम शासक भी जब इस देश के मुलनिवासियो से जजिया कर ले रहे थे , उस समय यहूदि डीएनए के मनुवादियो से जजिया कर नही लिया जा रहा था | और इतिहास इस बात का भी गवाह है कि दुसरो के देश में कब्जा करके जजिया कर लेने वाले मुस्लिम शासक न्याय और अमन प्रेम कायम कर रहे थे कि अन्याय करने वालो को अपने शासन में खास भागिदार बनाकर , और विशेष छुट देकर  शोषित पिड़ितो पर बेईमानीपुर्ण राज कर रहे थे ! जबकि मुसलमान का मतलब जिसका इमान हर हालत में कायम हो माना जाता है , जो इमान क्या जजिया कर लेते समय खुदको मुस्लिम धर्म का सच्चा भक्त बतलाने वाले लुटपाट शोषन अन्याय अत्याचार आतंक फैलाने वाले शासको का कायम थी | जैसे की हजारो साल पहले खुदको यहूदि धर्म का भक्त कहने वालो ने यीशु को सुली पर चड़ाकर क्या मुसा का अजादी प्रेम कायम कर रहे थे | और सैकड़ो साल पहले बाईबल पढ़कर चर्च जाकर हली लुईया हली लुईया कहकर कई देशो को गुलाम करने वाले ईशाई शासक क्या यीशु का अजादी प्रेम बांट रहे थे ? जाहिर है यहूदि ईसाई और मुस्लिम धर्म को भी अपनाने से यदि सबसे अधिक अमन प्रेम सुख शांती पुरी दुनियाँ में आ जाती तो फिर तो अरब में सैकड़ो हजारो सालो से कभी नही बुझने वाली नफरत और अशांती की आग उनके खुदके ही घर में खुदके द्वारा नही लगाई जाती , और न ही अबतक लगी होती | क्योंकि यहूदि मुस्लिम और ईसाई तीनो धर्म एक दुसरे में ढोंग पाखंड और अनेको अपराध को स्वीकारते हैं | नही स्वीकारते तो क्या वे आपस में लड़ने के बजाय एक दुसरे में विलय यह सोच समझकर नही कर लेते कि अब्राहम यहूदी मुसलमान और ईसाई तीनो धर्मो के आपस में लड़ने वालो के जब पितामह माने जाते हैं, और आदम से लेकर अब्राहम व अब्राहम से लेकर मूसा तक यहूदी, ईसाई और इस्लाम सभी के पैगम्बर एक हैं , फिर भी क्यों  सैकड़ो हजारो सालो से आपस में ही इतना लड़ झगड़ रहे हैं ?जिन्हे बार बार फिर से कोई अवतार आपस में लड़ते झगड़ते मरते मारते समय इनके बिच जाकर किस धर्म का हो सवाल का जवाब देते समय यह समझाने आनेवाले नही हैं कि अगर आप यहूदि हो तो यीशु समझकर सुली पर चड़ा दो , और यदि ईसाई हो तो यीशु को सुली पर चड़ाने वाला यहूदि समझकर खत्म कर दो | और यदि यहूदि हो तो मुसलमान समझकर मार डालो | रही बात इस देश के हिन्दुओ की तो बाहर से आनेवाले मनुवादियो का ढोंग पाखंड छुवा छुत के साथ साथ बाहर से ही आने वाले यहूदि ईसाई मुस्लिम धर्म के आने से पहले इस देश के मुलनिवासियो के बिच आपस में ही धार्मिक दंगा फसाद और आतंकवाद नाम की कोई आग लगी ही नही थी | जो आग बाहर से लाई गई है , जैसे की छुवा छुत गुलाम दास दासी समस्या बाहर से लाई गई है | दंगा फसाद जैसे डर भय और आतंक बाहरी डीएनए के लोगो द्वारा ही फैलाई गई है | जिन समस्याओ के चलते सैकड़ौ हजारो सालो तक जो अन्याय अत्याचार हुआ है उससे देश ही नही बल्कि पुरी दुनियाँ अबतक भी सुख शांती और समृद्धी के रुप में स्थिर नही हो पाया है | जिसके कारन हर साल आज भी कितनी तबाही होती है , और उस तबाही में कितने जान माल का नुकसान करने वाले हथियार बनाये जा रहे हैं , इसका इतिहास भी दर्ज होता जा रहा है | जाहिर है इस देश में भी सबसे अधिक बर्बादी और अशांती बाहरी मुल के लोगो द्वारा दिया गया है | जैसे कि गोरे बाहरी , मनुवादि बाहरी और अन्य भी कई कबिलई लुटेरे जो बाहर से आकर ढोंग पाखंड छुवा छुत शोषन अत्याचार और आतंक फैलाके इस देश और इस देश के मुलनिवासियो को बर्बाद करने का कुकर्म किया हैं | जिनके द्वारा शासन करके इस कृषि प्रधान देश को सैकड़ो हजारो सालो से सबसे अधिक बर्बादी और अशांती दिया गया है | जिनके आने से पहले के हालात और उनके आने के बाद का हालात ऐतिहासिक रुप से साक्षी है कि कौन ज्यादे बेहत्तर हालात प्रयोगिक रुप से मानी जायेगी | बल्कि इस देश में बाद में जन्मे जैन और बौद्ध धर्म में भी भेदभाव और बहुत से आपसी विवाद बाहरी कबिलई लुटेरी सोच की वजह से ही उत्पन हुई है | जो सब न होकर सोने की चिड़ियाँ बिना कोई बाहरी संक्रमण के अपडेट लगातार अबतक भी यदि अपनी मुलता सागर जैसे स्थिर कृषि सभ्यता संस्कृति के द्वारा होती रहती , तो आज यह देश कबका फिर से खुदको सोने कि चिड़ियाँ और विश्वगुरु अपडेट करके फिर से पुरी दुनियाँ में सुख शांती और समृद्धी जिवन जिने की कृषि सभ्यता संस्कृती का अपडेट ज्ञान प्रयोगिक रुप से बांट रहा होता | और पुरी दुनियाँ में वाकई में सुख शांती और समृद्धी कायम अबतक हो चूकि रहती | चारो तरफ गरिबी भुखमरी और खुन खराबा आतंक का माहौल नही होता | जिसपर जिनको विश्वास न हो उनके भितर यदि हिन्दुस्तान में पहले की तरह मुलनिवासी सत्ता वापस कायम होने समय तक की प्राण मौजुद हो तो इंतजार कर लें अब के हालात सही हैं कि मुलनिवासी सत्ता कायम होने के बाद का हालात सही होंगे पता चल जायेगा ! बल्कि वर्तमान में जो पुरी दुनियाँ हजारो परमाणु बमो के उपर बैठकर मानवता को मानव बम बनाने की तनाव और लड़ाई हालात से गुजर रहा है वह भी दुर होगी | जैसे कि अगर इस देश में बाहरी मुल के लोगो के द्वारा शासन के बजाय मुलनिवासी सत्ता हमेशा कायम रहती तो वर्तमान में मौजुद धर्म और छुवा छुत गोरा काला भेदभाव के नाम से लड़ाई और तनाव हालात कभी नही बनते | यानि इस देश में बाहरी मुल के लोगो की सत्ता कायम होने के बाद से ही पुरी दुनियाँ में भी सबसे अधिक बुरे हालात बने हैं | जैसे कि हिन्दु धर्म में मौजुद विदेशी मुल के मनुवादियो के द्वारा संक्रमित होने के बाद ही पुरी दुनियाँ में गुलाम और दास दासी बनाने वाली शक्तियाँ हावी हुई है | जिसके बाद हिन्दु धर्म में ढोंग पाखंड और छुवा छुत भेदभाव प्रवेश की तरह ही सभी धर्मो में ढोंग पाखंड और भेदभाव मांसिकता का बुरा प्रभाव पडना सुरु हुआ है | जिसके खिलाफ ही तो मुसा , यीशु और मोहम्मद पैगंबर ने  कड़ा संघर्ष किया था | फिर भी वे अपने रहते उनके नाम से बने धर्मो को कभी नही इतना पवित्र और विश्वसनीय कर पाये कि उसे अपनाने वाला इंसान किसी को गुलाम दास दासी बनाने वाला धार्मिक भक्त कभी भी न बन सके | और यीशु को सुली पर चड़ाने वाला धार्मिक भक्त भी न बन सके | बल्कि आतंक फैलाने वाला धार्मिक भक्त भी कभी न बन सके | जिस तरह के मांसिकता वाले लोगो को सुधारने और उनके द्वारा गुलाम करके या आतंक फैलाकर इंसानियत को लहु लुहान किए हुए जख्मो को ठीक करने के लिए ही तो यहूदि मुस्लिम ईसाई अलग अलग तीन धर्म के मुसा यीशु और मोहम्मद पैगंबर जन्मे थे , लेकिन भी जख्मो को पुरी तरह से वे ठीक नही कर सके | तभी तो मुसा यीशु और मोहम्मद पैगंबर को मानने वाले तीनो धर्मो के बिच आपसी लड़ाई अबतक भी जारी है | क्योंकि जाहिर सी बात है इन तीनो के नाम से बने तीनो धर्मो में भी ढोंगी पाखंडी मौजुद हैं | जो ढोंगी पाखंडी मजबुती से प्रवेश करके मजबुती से अपना मौजुदगी दर्ज नही करते तो इन तीनो के नाम से बनी तीनो धर्मो के बिच हजारो सालो से आपसी लड़ाई क्यों अबतक धार्मिक वाद विवाद होकर कायम रहती ? यीशु को सुली पर चड़ाने वाले मजबूती से यहूदि धर्म में अपना मौजुदगी दर्ज करके क्यों गुलाम दास दासी बनाते थे , मुसा जिस महल को छोड़कर गुलामो के साथ मिलकर अजादी के लिए संघर्ष किये थे उन महलो में रहने वाले भी गुलाम दास दासी बनाते थे | मोहम्मद पैगंबर ने जिनके खिलाफ अजादी संघर्ष किया था वे लोग भी गुलाम दास दासी बनाते थे | गुलाम दास दासी बनाने और शोषन अत्याचार करने वालो ने कोई न कोई धर्म में मजबुती से अपना मौजुदगी दर्ज करके ही खुदको सबसे बड़ा धार्मिक घोषित करके बड़ा बड़ा कुकर्म और पाप किया है | जैसे की अखंड सोने की चिड़ियाँ को धर्म के नाम से खंड खंड करके खुन की नदियाँ बहाने और बहवाने वाले भी खुदको किसी न किसी धर्म से जोड़कर ही समय समय पर भारत पाकिस्तन युद्ध के नाम से खुन बहवाते रहते हैं | जो तनाव और आतंक इस कृषि प्रधान देश में पहले मौजुद नही थी | क्योंकि चाहे बाहर से आए यहूदि मुस्लिम ईसाई धर्म हो या फिर इस देश में ही बाद में जन्मे बौद्ध जैन वगैरा धर्म ही क्यों न हो , इनमे से एक भी धर्म ऐसा मौजुद नही है , जिसपर कोई वाद विवाद और अविश्वास मौजुद न हो | लेकिन भी बार बार हिन्दु धर्म को यहूदि डिएनए के मनुवादियो का मुल धर्म कहकर बदनाम किया जाता है | जिस धर्म की बुराई ऐसी की जाती है जैसे मानो इस धर्म के मुल हिन्दुओ ने ही पुरी दुनियाँ को गुलाम और दास दासी बनाने जैसा सबसे बड़ा कुकर्म और पाप किया है | दास दासी और गुलाम बनाना सबसे बड़ा पाप और कुकर्म इसलिए क्योंकि पुरी दुनियाँ अबतक भी गुलामी से मिली बर्बादि से उभर नही पायी है | तभी तो आज भी पुरी दुनियाँ में सबसे अधिक अबादी गरिबी भुखमरी से छुटकारा पाने के लिए संघर्ष कर रही है | वह भी ज्यादेतर उन देशो में जहाँ पर सबसे अधिक प्रकृति समृद्धी है | क्योंकि आज भी उन देशो में विदेशी मुल के ऐसे बहुत से परजिवी समृद्धी चुसने में लगे हुए हैं जिनके पुर्वज भी कभी वही सब किया करते थे | जिनको सहयोग हमेशा की तरह घर के भेदियो द्वारा ही मिल रहा है | जैसे कि इस कृषी प्रधान देश में भी मनुवादियो द्वारा अबतक भी शोषन अत्याचार कायम रखने में घर के भेदियो द्वारा ही सहयोग मिल रहा है | मनुवादि खुदको हिन्दु कहने पर गर्व करते हैं और इस देश के बहुत से मुलनिवासी हिन्दु धर्म को मनुवादियो का मुल धर्म कहकर अपना धर्म परिवर्तन करने में लगे हुए हैं | जबकि सच्चाई ये है कि मनुवादि मुल हिन्दु दरसल है ही नही ! और न ही मनुवादियो के लापता पुर्वज देव पुजा मुल हिन्दु पुजा है | बल्कि हिन्दु भगवान पुजा साक्षात प्रकृति पुजा है | जिस प्रकृति भगवान से सभी धर्म के भक्त ही नही बल्कि नास्तिक और कोई अन्य प्राणी भी खुदको दुर कभी भी नही कर सकते | जिस प्रकृति से जुड़ी प्रकृति पर्व त्योहार बारह माह मनाई जाती है | इसलिए इस देश के वैसे मुलनिवासी जो अपना हिन्दु धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्म में जा चुके हैं , या जाने की सोच रहे हैं वे यदि अपने मन में मनुवादियो के ढोंग पाखंड छुवा छुत शोषन अत्याचार से नफरत करने के बजाय मुल हिन्दु धर्म के पर्व त्योहार प्राकृतिक भगवान पुजा के प्रति नफरत रखकर अपना धर्म परिवर्तन करके या करने की सोचकर यदि यह सोच रहे हैं कि वे जिस धर्म को सबसे बेहत्तर मानते हैं , वहाँ पर सबसे सुधार होता है तो मुल हिन्दु धर्म से नफरत करने वाले मुल हिन्दु धर्म से नफरत करने से पहले विश्व में मौजुद सारे धर्मो में मौजुद बुराई के बारे में नाप तौल जरुर कर लें कि भेदभाव मांसिकता गुलाम और दास दासी बनाने वाले मांसिकता के लोग कहाँ पर सबसे अधिक मौजुदगी दर्ज करते आ रहे हैं | और किस धर्म में सबसे अधिक खुदकी पैदा की हुई गुलाम दास दासी बनाने वाली बुराई मौजुद हैं , वहाँ पर क्या सबसे अधिक न्याय और सुख शांती कायम है ? जबकि इस देश और इस देश के मुल हिन्दुओ ने आजतक किसी भी देश को गुलाम नही बनाया है | और न ही इस देश के मुलनिवासी जो इस समय चाहे जिस धर्म में मौजुद हैं , वे कभी छुवा छुत जैसे भेदभाव हिन्दु धर्म परिवर्तन करके भी और बिना धर्म परिवर्तन किये भी किये हैं | जो सब इस देश में यहूदि डीएनए के मनुवादि करते हैं , जो मुल हिन्दु नही हैं | बल्कि इस देश में जबतक मुलनिवासी सत्ता कायम नही हो जाती तबतक भविष्य में भी इस देश के मुलनिवासी चाहे जिस भी धर्म में जायेंगे या फिर हिन्दु धर्म में ही मौजुद क्यों न रहेंगे , उनके साथ भेदभाव शोषन अत्याचार होता रहेगा | क्योंकि ढोंगी पाखंडी और शोषन अत्याचार करने वाले इस देश के मुलनिवासियो की सत्ता जाने और हिन्दु धर्म में मनुवादियो के प्रवेश करने के बाद ही अपनी मौजुदगी मजबुती से सभी धर्मो में दर्ज कराते आ रहे हैं | यह जानकारी खुद सभी धर्मो के धर्म ग्रंथो में ही मौजुद है | जिस तरह की जानकारी में भी यह जानकारी मिलती है की ढोंग पाखंड छुवा छुत की मांसिकता इस देश में बाहरी मुल के लोगो द्वारा लाई गई है | वह भी मुसा यीशु और मोहम्मद पैगंबर जैसे बाहरी नही जिन्होने गुलाम और दास दासी बनाने वालो के खिलाफ खुद मजबुती से लड़ाई लड़े हैं | बाहरी में वैसे बाहरी जो इनके नाम से अमन चैन प्रेम कायम करने का धार्मिक ग्रंथ हाथ में धरके गुलाम दास दासी बनाने के लिए पुरी दुनियाँ घुमते रहते हैं | जैसे कि हली लुईया हली लुईया यीशु के नाम कहकर गुलाम बनाने वाले गोरे बल्कि खुदको हिन्दु कहकर इस देश के मुल हिन्दुओ को दास दासी बनाने वाले मनुवादि भी बाहरी जिनका डीएनए भी इस देश के मुलनिवासियो से नही मिलता है | और रोमराज का नीरो व यूनानराज का सिकंदर भी बाहरी जिनका भी डीएनए इस देश के मुलनिवासियो से नही मिलता है | जिस तरह के विदेशी मूल के कबिलई इस देश या फिर दुनियाँ के किसी भी कोने में प्रवेश किए हो वहाँ पर प्रवेश करके और अपने बुरे संगत से घर का भेदी पैदा करके उनकी सहायता से देश दुनियाँ के मुलनिवासियो को आपस में बांटकर फुट डालो और राज करो की नीति से गुलाम और दास दासी बनाकर लंबे समय तक भेदभाव शोषन अत्याचार किया है | जैसे कि इस देश को गुलाम करने के बाद गोरे गेट में ये लिखते थे कि अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है | उसी तरह मनुवादि भी खुदको हिन्दु बनाकर और वेद पुराणो में कब्जा करके वेद पुराण ज्ञान मंदिरो के अंदर अपने पुर्वजो की भी मूर्ति स्थापित करके उसकी आरती उतारते हुए बाहर ये लिखते हैं कि अंदर शुद्रो का प्रवेश मना है | बल्कि वर्तमान में भी यदि मनुवादियो का मनुस्मृती रचना देश में किसी नियम कानून व संविधान की तरह लागू हो जाय तो क्या पता मनुवादि इंडिया गेट में ही लिख दे कि इस देश में शुद्रो का प्रवेश मना है | जो अपने मनुस्मृती को अपडेट करके अपने पुर्वजो के मुर्तियो के साथ साथ बिजली देवता और इंटरनेट देवता नया देवता नाम का भी मुर्ति मिलावट करके अपने पुर्वजो के नाम से पुजा स्थलो में बिठाकर यह नियम कानून भी बना दे कि इंटरनेटदेव और बिजलीदेव के बारे में जानकारी लेना उच्च जाति छोड़ बाकि सभी के लिए मना है | क्योंकि बिजलीदेव और इंटरनेटदेव उनके पुर्वज हैं | हलांकि मिलावट में भी चूँकि सत्य ज्ञान मौजुद रहती है जो अब भी है , इसलिए मनुवादियो के द्वारा वेद पुराण में मौजुद ज्ञान का सागर जो कि इस देश के मुलनिवासियो के द्वारा रचा गया है , उसे न लेने देने के लिए ही तो ढोंग पाखंड की मिलावट करते रहने के लिए ही तो वेद पुराण ज्ञान मंदिरो में प्रवेश इस देश के मुलनिवासियो के लिए वर्जित की जाती थी | जहाँ पर कब्जा करके मनुवादियो ने खुदको जन्म से विद्वान पंडित घोषित करके इस देश के मुलनिवासियो को वेद पुराण ज्ञान मंदिरो में प्रवेश मना कर दिया था | जिस वेद पुराण की रचना करके ही तो इस देश के मुलनिवासी पत्थर पहाड़ पर्वत हवा पानी सुर्य नदी वगैरा के रुप में प्रकृति भगवान की पुजा करते हैं , और  बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाकर हजारो सालो से खुशियाँ भी मनाते आ रहे हैं | जिसके बारे में बल्कि इतिहास समेत तमाम ज्ञान का सागर में प्राकृतिक ज्ञान और अपने पुर्वजो के द्वारा हासिल की गई बहुत से अनमोल ज्ञान की डुबकी लगाना क्या मनुवादियो का ढोंग पाखंड हासिल करना कहलायेगा ? मनुवादि तो बाद में वेद पुराण ज्ञान में हवा को वायुदेव सुर्य को सुर्यदेव ढोंग पाखंड की मिलावट करके वेद पुराण ज्ञान मंदिरो में प्रवेश निषेद नियम कानून बनाया है | जैसे कि यदि वर्तमान में भी मनुवादि लोग शिक्षा में मिलावट करके विद्यालयो में देव पुजा पाठ कराकर इस देश के मुलनिवासियो का प्रवेश मना कर देंगे तो क्या शिक्षा ढोंग पाखंड अथवा मनुवादियो की हो जायेगी | बिल्कुल नही बल्कि मुलनिवासी सत्ता स्थापित के बाद शिक्षा में मिलावट की गई बुराई को हटाकर शिक्षा में सुधार किया जायेगा | न कि शिक्षा मनुवादियो की है यह कहकर पढ़ना लिखना छोड़ देंगे वे सभी लोग जिनको शिक्षा में मिलावट पुरी शिक्षा ही मनुवादियो की लगती है | जैसे की हिन्दु धर्म में मनुवादियो के ढोंग पाखंड मिलावट को पुरा हिन्दु धर्म ही मनुवादि ढोंगी पाखंडियो की है , और मनुवादि कट्टर हिन्दु हैं , कहकर लंबे समय से हिन्दु धर्म का बदनाम और मजाक उड़ाया जा रहा है | जिसके चलते भारी भेदभाव शोषन अत्याचार का शिकार होने वाले इस देश के अनगिनत मुलनिवासि अपने हिन्दु धर्म को मनुवादियो को सौंपकर ऐसे जा रहे हैं , जैसे वेद पुराण में सिर्फ मनुवादियो के द्वारा रचे ढोंग पाखंड ही मौजुद है | जिसके अलावे और कुछ ज्ञान है ही नही | मानो बाहर से संभवता बिना कपड़ो के और बिना कृषी ज्ञान के बल्कि बिना परिवार सामाज के नंगा पुंगा प्रवेश करने वाले मनुवादियो के पास प्राकृति और इस कृषि प्रधान देश के बारे में बल्कि सारी सृष्टि रचना के बारे में जानकारी इस देश में प्रवेश से पहले ही मौजुद थी | फिर तो मनुवादि अपने डीएनए के जिन अपनो को छोड़कर इस देश में आकर हिन्दु बने हैं , उनके पास भी हिन्दु वेद पुराण मौजुद होनी चाहिए थी | बल्कि उनको भी खुदको कट्टर हिन्दु कहनी चाहिए थी | क्योंकि मनुवादियो के पुर्वजो की कबिलई टोली पुरी की पुरी तो इस कृषी प्रधान देश में प्रवेश नही किए होंगे | जैसे की गोरो की कबिलई टोली पुरी की पुरी इस देश में प्रवेश नही की थी | और अगर विदेशी मुल के मनुवादि असली हिन्दु हैं , तो फिर विदेशो में मौजुद मनुवादियो के ही डीएनए के लोग भी खुदको हिन्दु क्यों नही कहते हैं ? क्योंकि मनुवादियो के बारे में जो भी जानता और मानता है कि मनुवादि विदेशी मुल के हैं , वह यह जानकारी कैसे पचा पायेगा कि कट्टर हिन्दु मनुवादि और उनके पुर्वज देवता इसी देश में आने के बाद वेद पुराण रचे और हिन्दु धर्म की सारी जानकारी इकठा करके इस देश के मुलनिवासियो को हिन्दु बनाकर उनके साथ छुवा शोषन अत्याचार करना सुरु किया | जबकि पुरी दुनियाँ जानती है कि इस कृषि प्रधान देश जहाँ की  प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण , परिवार समाज गणतंत्र का निर्माण मनुवादियो के प्रवेश से बहुत पहले ही इस देश के मुलनिवासियो द्वारा हो चुकि थी | जो निर्माण जिन मुलनिवासियो द्वारा किया गया है , उनको तो इस देश में मनुवादियो और गोरो के प्रवेश से पहले मानो हिन्दु वेद पुराणो के बारे में कुछ आती ही नही थी ! हजारो साल पहले सिर्फ हजारो विकसित हुनर के साथ कृषि सभ्यता संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती की निर्माण करना आती थी | जिन्हे मनुवादियो ने जो की संभवता इस देश की हजारो हुनरो की नासमझ अथवा अज्ञानता की वजह से मनुवादियो द्वारा सत्ता और वेद पुराणो पर कब्जा करने के बाद जाति कह दिया गया है | उसी तरह चूँकि मनुवादि मनुस्मृती रचना करके और उसे अपना आदर्श भी मानकर  खुदको अप्रकृति तरिके से पैदा और अप्रकृति ढोंग पाखंड का ज्ञानी भी साबित किए हुए हैं , इसलिए संभवता प्राकृतिक की नासमझ होने की वजह से ही मनुवादियो ने वेद पुराण में मौजुद साक्षात प्राकृतिक और बहुत सारी अनमोल प्रमाणित ज्ञान का भंडर जो कि वेद पुराण में इस देश के मुलनिवासियो द्वारा रचे गए हैं , उन वेद पुराणो को मनुवादि सत्ता स्थापित होने के बाद कब्जा करके अपनी अप्रकृति ज्ञान से भरी भ्रष्ट मनुस्मृती बुद्धी की जरिये वेद पुराण को अपने ढोंग पाखंड हुनर के अनुसार अपडेट किया है | जैसे की वर्तमान में भी जिस किसी भी अज्ञानी या पढ़ा लिखा भष्मासुर को भी यदि डॉक्टर इंजिनियर का सही मतलब समझ में नही आयेगा तो उसे डॉक्टर और इंजियर जाती कहकर उस हुनर को जानने वालो को जन्म से डॉक्टर और इंजिनियर जाती का घोषित कर दिया जाता | जब उनके द्वारा शिक्षा प्रणाली में कब्जा करके शिक्षा अपडेट की जाती | जिन हजारो जातियो जो की हजारो साल पहले ही विकसित कि गई सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति में मौजुद मुलनिवासियो के द्वारा अपनाये जाने वाला हजारो हुनर है , उसे मनुवादियो द्वारा मनुस्मृति रचना करके हजारो जाति घोषित कर दिया गया है | उसी तरह तब के विकसित गणतंत्र में मौजुद शासन व्यवस्था में शिक्षा व्यवस्था , रक्षा व्यवस्था और अर्थ व्यवस्था तीन मानो गणतंत्र के प्रमुख स्तंभ थे , जिस विकसित गणतंत्र में मौजुद शासन व्यवस्था पर कब्जा करके मनुवादियो ने खुदको उच्च ज्ञान बांटने वाला ब्रह्मण , रक्षा करने वाला क्षत्रिय और धनवान वैश्य के रुप में जन्म से मनुस्मृति रचना करने वाले उच्च विद्वान पंडित जन्म से अँगुठा काटने जीभ काटने गर्म पिघला लोहा कान में डालने वाला वीर रक्षक और अपने मुल पुर्वजो की भुमि को छोड़कर दुसरे का शासन व्यवस्था में पलने वाला धन्ना कुबेर घोषित किये हुए है | जिस शासन व्यवस्था में गोरो की तरह विदेशी डीएनए के मनुवादियो का कब्जा रहते हुए इस देश की मुल सत्ता को हासिल करने से पहले इस देश के करोड़ो मुलनिवासी दुसरे धर्मो को अपनाकर क्या सबसे अधिक अमन प्रेम सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे हैं ? बल्कि इस कृषी प्रधान देश में जब हिन्दु धर्म के अलावे कोई दुसरा धर्म मौजुद ही नही था , और मनुवादियो की भी मौजुदगी नही थी , निश्चित तौर पर उस समय ही यहाँ के मुलनिवासी सबसे अधिक अमन प्रेम सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे थे | तब हिन्दु धर्म में ऐसे ढोंग पाखंड मौजुद नही थे | क्योंकि मनुवादियो का प्रवेश के बाद ही तो हिन्दु धर्म में छुवा छुत और ढोंग पाखंड की सुरुवात हुई हैं | जब मनुवादियो ने या तो पहले से ही छुवा छुत का आविष्कार करके इस देश में प्रवेश किए और मनुस्मृती की रचना करके विधि पुर्वक छुवा छुत जैसे शोषन अत्याचार करना सुरु किया  किया | या फिर क्या पता यहाँ प्रवेश करने के बाद ही अपना देश और अपने परिवार के लोग न होने की वजह से उनकी बुद्धी भ्रष्ट हुई और उन्होने उसी भ्रष्ट बुद्धी से मनुस्मृती की रचना करके ढोंग पाखंड छुवा छुत की सुरुवात की | जिससे पहले ढोंग पाखंड छुवा छुत न कर रहे हो | जिसकी सुरुवात इस देश में प्रवेश करने के बाद किया हो | क्योंकि गुलाम और दास दासी बनाने वाले अपने ही देश को गुलाम और अपने ही परिवार में मौजुद सदस्यो के साथ छुवा छुत कभी नही करते हैं | जैसे कि इस देश को गुलाम करने वाले गोरे विदेशी थे , जो कि अपने देश और अपने परिवार के सदस्यो को गुलाम नही बनाये थे | जो गेट पर इंडियन और कुत्तो का प्रवेश मना है लिखते थे | जैसे की मनुवादि गेट में शुद्रो का प्रवेश मना है लिखते हैं | और फिर एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से साबित भी हो चुका है कि मनुवादि विदेशी मुल के हैं | जिनका डीएनए इस देश के मुलनिवासियो के साथ नही मिलता है | बल्कि  मनुवादियो के परिवार में मौजुद महिलाओ का भी डीएनए मनुवादियो से नही बल्कि इस देश के मुलनिवासियो से मिलता है | यानि " ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी " यह श्लोक क्यों लिखा गया था इसका भी जवाब डीएनए रिपोर्ट से मिल गया है | जो कि 21 मई 2001 को The Times of india अखबार में छापी गयी थी | जिसपर छपी डीएनए रिपोर्ट और पिंक क्रांती की रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है कि मनुवादियो के मन में पशु नारी और शुद्र ताड़न के अधिकारी क्यों आया होगा ? 

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