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शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

दरसल हिन्दु धर्म की बुराई इस देश के मुलनिवासियो को अपना धर्म परिवर्तन कराने के लिए सोची समझी रणनिती के तहत किया जा रहा है

दरसल हिन्दु धर्म की बुराई इस देश के मुलनिवासियो को अपना धर्म परिवर्तन कराने के लिए सोची समझी रणनिती के तहत किया जा रहा है 

इसलिए भी इस देश के खासकर उन मुलनिवासियो को हिन्दु धर्म का बुराई सुनते पढ़ते और देखते समय धर्म परिवर्तन करने से पहले एकबार इस बारे में विचार जरुर कर लेनी चाहिए कि जिन मनुवादियो के द्वारा ढोंग पाखंड और छुवा छुत करके हिन्दु धर्म की बुराई करने का अवसर दिया जा रहा है , उन मनुवादियो का डीएनए यहूदियो से क्यों मिलता है | बल्कि यहूदियो के पूर्वज और मुस्लिम तथा ईसाई धर्म को जन्म देने वालो का पूर्वज भी एक माने जाते हैं | क्योंकि अब्राहम को यहूदी, मुस्लिम और ईसाई ये तीनो धर्मों के लोग अपना पितामह मानते हैं | जिन तीनो धर्मो में अपना धर्म परिवर्तन करके जाने वाले इस देश के मुलनिवासी अपना पितामह किसे मानते हैं ? क्योंकि इन तीनो धर्मो का जन्म इस देश में नही हुआ है | और जहाँ पर भी हुआ है वहाँ के मुलनिवासियो ने ही यहूदि ईसाई और मुस्लिम धर्म को जन्म दिया है | जिनके डीएनए से इस देश के मुलनिवासियो का डीएनए नही मिलता है | बल्कि यहूदियो का डीएनए से इस देश में बाहर से आए मनुवादियो का डीएनए जरुर मिलता है | वह भी सिर्फ मनुवादियो के परिवार में मौजुद पुरुषो का डीएनए यहूदियो से मिलता है | जिन यहूदियो के मूल पूर्वज अब्राहम माने जाते हैं | जो कि मुस्लिम और ईसाई के भी मूल पूर्वज माने जाते हैं | बल्कि तीनो धर्मो के अवतार भी आदम से लेकर मूसा तक एक ही माने जाते हैं | जिन तीनो धर्मो का संगम स्थल विदेश में मौजुद जेरुशलम है | जो कि यहूदियो का मातृभूमि , ईसाईयो का कर्मभूमि और मुस्लिमो के लिए भी जेरुशलम खास माना जाता है | चूँकि मुस्लिमो का ऐसा मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने स्वर्ग प्रस्थान जेरुशलम से ही किया था | इसलिए जेरुशलम यहूदि ईसाई और मुस्लिम तिनो धर्मो का सबसे खास स्थल है | जिन तीनो धर्मो के मुल पुर्वज अब्राहम माने जाते हैं | फिर भी दुनियाँ में सबसे अधिक धार्मिक खुन खराबा वाद विवाद इन्ही तीन धर्मो के बिच सैकड़ो हजारो सालो से चल रहा है | जो आपसी खुन खराबा विवाद आजतक भी नही सुलझा है | बल्कि आपस में खुन खराबा विवाद करते करते हिन्दुस्तान में भी घुसकर और अपने धर्मो से इस देश के मुलनिवासियो को भी जोड़कर उन्हे भी आपसी खुन खराबा विवाद में शामिल करना जारी हैं | जिस आपसी खुन खराबा विवाद के आग में जो कि हजारो सालो से इन तीनो धर्मो के बिच लगी हुई है , उसमे घी डालने का काम यहूदि डीएनए के ही मनुवादि खुदको कट्टर हिन्दु कहकर करते आ रहे हैं | जो कि स्वभाविक भी है | क्योंकि बाहर से प्रवेश करने वाले मनुवादियो और बाहर से प्रवेश करने वाले धर्मो के आपसी विवाद की वजह से ही तो इस देश के मुलनिवासी आपस में बंटकर कभी नही खत्म होनेवाली खुन खराबा विवाद में खुदको भी शामिल करते जा रहे हैं | जबकि इस कृषि प्रधान देश में मनुवादियो और कई धर्मो के प्रवेश करने से पहले कोई भी धार्मिक विवाद और छुवा छुत शोषन अत्याचार , गुलाम दास दासी बनने जैसी बुरे हालात कभी नही थे | यू ही इस देश को विश्वगुरु नही कहा जाता है ! तब इस देश के मुलनिवासी बिना कोई धार्मिक खुन खराबा वाद विवाद और उच्च निच छुवा छुत ढोंग पाखंड के आपस में मिल जुलकर सुख शांती और समृद्धी जिवन जी रहे थे | जो आज कई धर्मो और जातियो में बंटकर आपस में ही लड़ मर रहे हैं | जो स्वभाविक है , क्योंकि आपस में लड़ने मरने वाले लोगो की आपसी खुन खराबा कभी न सुलझने वाला विवाद में खुदको भी शामिल जो कर लिये हैं | जाहिर है सिंधु से जुड़ा शब्द हिन्दु बाहर से आए उन कबिलई मनुवादियो का नही है जिनका डीएनए यहूदियो से मिलता है | जिस बात पर इस देश के मुलनिवासी जिन्होने अपना धर्म परिवर्तन किया है , या करने की सोच रहे हैं , वे पहले गंभिरता पूर्वक विचार जरुर करें तब मनुवादियो को कट्टर हिन्दु कहें | क्योंकि जो यहूदि अपना मातृभूमि जेरुशलम को मानते हैं , उन यहूदियो का डीएनए से ही मनुवादियो का डीएनए मिलता है | हलांकि इस देश के मुलनिवासियो का ही डीएनए की नारी से परिवारिक रिस्ता जोड़ने वाले मनुवादि अपना मातृभूमि इस देश को मानते हैं , इसलिए यहूदियो और मनुवादियो की मातृभूमि अलग अलग होना स्वभाविक है | क्योंकि विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से यह बात साबित हो चुका है कि यहूदि डीएनए के ही विदेशी मनुवादि सिर्फ पुरुष झुंड बनाकर  हजारो साल पहले इस देश में प्रवेश तो किए थे , पर उसके बाद इस देश की नारी के साथ रिस्ता जोड़कर और इस देश को भारत माता और वंदे मातरम् कहकर इस धरती को अपना मातृभूमि कहना भी सुरु किया है | हलांकि उसी माता के साथ ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी कहना भी सुरु करके उसके साथ छुवा छुत शोषन अत्याचार करना भी सुरु किया | जो भी स्वभाविक है , क्योंकि भारत माता के डीएनए से मनुवादियो का डीएनए नही मिलता है | और वैसे भी बाहर से आनेवाले विदेशि पुरुषो द्वारा इस देश की महिला से परिवार बसाने के बाद जन्मे मनुवादियो का डीएनए इस देश के मुलनिवासियो का डीएनए से मेल कैसे खा सकता है ? हलांकि विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट आने से पहले भी इस देश के मुलनिवासी बल्कि पुरी दुनियाँ जानती थी कि इस देश के मुलनिवासियो को दास दासी बनाकर छुवा छुत शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादि इस देश के मुलनिवासी नही हैं | जैसे कि इस देश को गुलाम करने वाले गोरे इस देश के मुलनिवासी नही थे | जिन गोरो की तरह मनुवादि भी भेदभाव करते हैं | जो मनुवादि दरसल हिन्दु चादर ओड़कर और असली हिन्दु खुदको घोषित करके इस देश के मुलनिवासियो को उसी तरह खदेड़ना चाहते हैं , जैसे कि वेद पुराणो में कब्जा करके और उसमे अपनी मनुस्मृति बुद्धी से भारी मिलावट करके असली हिन्दुओ को उनके अपने ही हिन्दु धर्म से खदेड़ रहे हैं | बजाय इसके की शोषन अत्याचार करने वाले मनुवादियो के छुवा छुत और ढोंग पाखंड मान्यता को ही हिन्दु धर्म से यह कहकर खदेड़ना चाहिए की हिन्दु धर्म छुवा छुत करना ढोंग पाखंड करना नही सिखाता है | क्योंकि जिन मुलनिवासियो ने अपनी हिन्दु पहचान देकर और इस देश में मनुवादियो को गोद लेकर हजारो सालो से अपने सर में मैला तक ढोकर विदेशी मुल के मनुवादियो के सर में समय समय पर सत्ता ताज भी पहनाया है , उसी मुलनिवासियो के साथ मनुवादियो द्वारा छुवा छुत ढोंग पाखंड शोषन अत्याचार  अबतक भी करते रहना , और मानो जिस थाली में खाये उसी में छेद करके खुदको कट्टर हिन्दु भी घोषित करना , यह तो मनुस्मृति सोच ही सिखलाती है | इस देश के मुल हिन्दु जो आपस में मिल जुलकर खुशियो का मेला लगाकर बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाते हैं , वे कभी भी आपस में छुवा छुत नही करते हैं | जिन मुलनिवासियो के साथ मनुवादि पहले शोषन अत्याचार करना छोड़े | या तो फिर खुदको हिन्दु कहना छोड़ दें और मनुस्मृति को अपना पवित्र धार्मिक ग्रंथ मानकर छुवा छुत ढोंग पाखंड  को अपना मुल आदर्श मानने वाला अलग से कोई मनुवादि धर्म बना ले ! जिस मनुस्मृती को ही अपना आदर्श मानकर बुद्धी भ्रष्ट करके मनुवादियो द्वारा इस देश के वेद पुराणो में भी ढोंग पाखंड और छुवा छुत की मिलावट की गई है | वेद पुराणो में मनुस्मृति सोच की मिलावट करके , और इस हिन्द देश के असली हिन्दुओ के साथ छुवा छुत ढोंग पाखंड करके , लंबे समय से धर्म परिवर्तन करने का गंदा माहौल बनाया जाता आ रहा हैं | जो दरसल मनुवादियो के साजिश का बहुत बड़ा छल कपट फूट डालो कबिलई शिकारी नीति है | जिस कबिलई शिकारी सोच से मनुवादी इस कृषि प्रधान देश में हजारो साल तक रहने के बावजुद भी अबतक परजिवी सोच से खुदको बाहर नही निकाल पाये हैं | जिसके चलते ही तो मनुवादि खुदको हिन्दु धर्म का भगवान घोषित करके मरने के बाद भी खुदकी पुजा कराने की ढोंग पाखंड रचना करके हिन्दु धर्म को बदनाम कर रहे हैं | हिन्दु धर्म जिन देवताओ की वजह से ज्यादे बदनाम है उन लापता या फिर स्वर्ग का वासी देवताओ को दरसल सिर्फ मनुवादि अपना पूर्वज मानते हैं | जिनकी आरती उतारकर पुजा कराने का विचार वेद पुराणो में मिलावट करने वाले मनुवादियो की है | क्योंकि इस देश के मुलनिवासि जो असली हिन्दु हैं , वे मूल रुप से भेदभाव करने वाले मनुवादियो की पुजा नही बल्कि मूल रुप से बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाकर उस साक्षात प्रकृति भगवान की पुजा करते हैं , जिससे सबका जिवन मरन जुड़ा हुआ है | जैसे कि सत्य का प्रतिक शिव लिंग योनी के रुप में जिस पत्थर की पुजा हिन्दु धर्म में होती है वह प्राकृति के कण कण में साक्षात मौजुद हैं | बल्कि खुद सभी धर्मो के भक्तो में भी प्रकृति साक्षात मौजुद है | जिसके बगैर कोई धर्म और धर्म भक्त ही नही बल्कि जिव निर्जिव का भी मौजुदगी नामुमकिन है | जिस प्रकृति भगवान के बारे में ज्ञान देने वाले वेद पुराण यह नही सिखलाता कि मनुवादि छोड़ कोई दुसरा वेद सुने तो उसके कान में गर्म लोहा पिघलाकर डाल दो | और वेद बोले तो उसका जीभ काट दो | जो सब बाते मनुस्मृति रचना करने वाले मनुवादियो की भ्रष्ट बुद्धी ही सिखलाती है | जिसकी मिलावट उन वेद पुराणो में की गई है , जिसकी रचना इस देश के मुलनिवासियो ने किया है | वेद पुराण अथवा जो सुनाई दे वेद ध्वनि और जो दिखाई दे पुराण | जिसे बाद में लिखाई पढ़ाई की सुरुवात होने के बाद वेद पुराणो की रचना लिखित की गई है | जिस समय ही वेद पुराणो में भारी मिलावट की गई है | जिस मिलावट की वजह से साक्षात प्रकृति भगवान की पुजा को अदृश्य और लापता देवता पुजा बतलाकर हिन्दु धर्म को मनुवादियो का धर्म बतलाया जा रहा है | हलांकि हिन्दु धर्म को मनुवादियो का धर्म बतलाकर बुराई करने वालो को यह बात कभी नही भुलनी चाहिए कि दुनियाँ का कोई भी धर्म खुदको ये साबित नही कर सकता कि उसमे एक भी बुराई और भेदभाव मिलावट मौजुद नही है | जो यदि नही होती तो सायद सभी धर्मो के धार्मिक विषयो को आपसी भाईचारे और सुख शांती जिवन जिने की ज्ञान बड़ाने के लिए विद्यालयो और महाविद्यालयो में पढ़ाई जाती | जैसे कि बाकि विषय पढ़ाई जाती है | 

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