A slave can be a person of any religion, not only a Hindu is a slave


गुलाम किसी भी धर्म का व्यक्ति हो सकता है, सिर्फ हिन्दू ही गुलाम नहीं होता

Khoj123,india


कहीं पर देख सुन रहा था , जिसमे एक व्यक्ती इस देश के शोषित  हिंदूओ के बारे में अपनी सुझाव दे रहा था कि इस देश का हिंदू गुलाम है | जिसे अपना हिंदू धर्म बदलकर आजाद होना चाहिए | जो व्यक्ती मुमकिन है वह भी पहले हिंदू रहा होगा , पर मनुवादीयो के चलते  उसने अपना हिंदू धर्म बदलकर कोई दुसरा धर्म अपना लिया होगा | क्योंकि मनुवादियो का इस देश में ही नही बल्कि इस देश का हिंदू धर्म में भी कब्जा है | गोरो से आजादी मिलने के बाद मनुवादियो द्वारा इस देश की सत्ता में कब्जा होना कोई नई बात नही है | मनुवादियो ने तो इस देश को गोरो से भी पहले और गोरो से भी कहीं ज्यादे समय से गुलाम करके शासन किया है | जिसके चलते स्वभाविक भी है कि आज भी जबकि गोरो से यह देश आजाद होकर आजाद भारत का संविधान भी लागू है , फिर भी अल्पसंख्यक मनुवादि इस देश के लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो के उच्च पदो में अपनी बहुसंख्यक दबदबा बनाए हुए हैं | बल्कि हिंदू धर्म में तो कब्जा करके उन्होने खुदको जन्म से ही हिंदू पंडित घोषित कर रखा है | जिसके चलते मनुवादी छोड़कर कोई भी दुसरा हिंदू पंडित नही बन सकता | और यदि मनुवादियो से अधुरी आजादी मिलने के बाद अब इस देश के मुलनिवासी थोड़े बहुत हिंदू पूजा स्थलो में पूजारी अथवा पंडित बने दिख जाएंगे तो वह सिर्फ दिखावे के लिए पंडित हैं | मनुवादियो के लिए वे शूद्र ही हैं | क्योंकि मनुवादि हिंदू धर्मग्रंथ नही बल्कि अपने पूर्वजो के द्वारा रची मनुस्मृति को सबसे खास धर्म ग्रंथ मानता है | जो मनुस्मृति वैसे तो मूल हिंदू धर्म ग्रंथ नही है , बल्कि गुलाम भारत का संविधान है , पर मनुवादि मनुस्मृति को ही हिंदू धर्म का सबसे अधिक खास धर्म ग्रंथ मानकर खुदको खास हिंदू भी कहता है | जबकि खास हिंदू वह है जो किसी को गुलाम नही बनाता , और न ही किसी के साथ छुवाछूत करता है | क्योंकि हिंदू धर्म किसी को गुलाम करना और छुवाछूत करना नही सिखलाता | और न ही हिंदू धर्म यह कहता है कि कोई जन्म से ही हिंदू पंडित कहलाएगा | छुवाछूत करना सिखलाता तो हिंदू धर्म में मिल जुलकर मनाए जानेवाला होली दीवाली और मकर संक्रांती जैसे पर्व त्योहार नही होते | जो पर्व त्योहार छुवाछूत और गुलाम बनाने वालो के लिए नही बना है | और न ही वर्ण व्यवस्था जन्म से उच्च निच भेदभाव करने के लिए बना है | क्या इस देश में लोकतंत्र के सभी प्रमुख स्तंभ जन्म से उच्च निच पद में बैठने के लिए बना है ? उसी तरह वर्ण व्यवस्था भी जन्म से उच्च निच भेदभाव के लिए नही बना है | जिसे दरसल मनुवादियो ने अपनी मनुवादि मांशिकता से संक्रमित करके वर्ण व्यवस्था को कर्म से नही बल्कि जन्म से घोषित करके उसका गलत उपयोग किया है | जैसे की वे वर्तमान में भी लोकतंत्र के सभी प्रमुख स्तंभो का गलत उपयोग करके अपनी दबदबा बनाए हुए हैं | जिनका वश चले तो मनुस्मृति को अपडेट करके और उसे फिर से लागू करके लोकतंत्र के सभी प्रमुख स्तंभो को भी जन्म से मात्र खुदके लिए घोषित कर देंगे | जैसे की वर्ण व्यवस्था को  मनुवादियो ने खुदके लिए घोषित किया था , जब उन्होने इस देश को पुरी तरह से गुलाम करके गुलाम भारत का संविधान मनुस्मृति कभी पूरी तरह से लागू किया था | जिसके लागू होने के बाद सिर्फ ब्राह्मण का बच्चा ही हिंदू पंडित बन सकता था | यहाँ तक की मनुस्मृति लागू होने के बाद मनुवादियो ने खुदको जिस ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य वर्ण का जन्म से घोषित किया उन तीनो वर्णो में मौजुद क्षत्रिय और वैश्य भी हिंदू पंडित नही बन सकता था | और इस देश का मुलनिवासि जिसे की मनुवादियो ने गुलाम भारत का संविधान मनुस्मृति लागू करके निच अथवा शूद्र घोषित किया हुआ है , वह तो हिंदू पंडित तो दुर हिंदू पूजा स्थलो में भी प्रवेश नही कर सकते थे | और न ही वे हिंदू वेद पुराण ज्ञान ले सकते थे | जिस तरह की निचता हिंदू धर्म में तब से प्रवेश किया है , जबसे मनुवादीयो का इस देश में प्रवेश करके इस देश की सत्ता ही नही बल्कि इस देश का हिंदू धर्म में भी कब्जा हुआ है | जो कब्जा मनुवादीयो ने जाहिर है अपना देश और अपना धर्म न होने की वजह से किया है | ताकि दुसरे का देश और दुसरे का स्थापित किया गया धर्म को कब्जा करके उसे खुदका देश और खुदका धर्म बना सके | जैसे कि कोई जमिन कब्जाधारी किसी और का जमिन को कब्जा करके उसे अपना बनाने में लगा रहता है | जिसके बाद वह यह कहता फिरता है कि वह जमिन उसका है | हलांकि चूँकि जमिन खरिद बिक्री की जा सकती है , इसलिए यदि कब्जाधारी यह साबित कर दे की वह जमिन उसने खरिदी है , तो लोग उस जमिन का मालिक उसे ही स्वीकार लेते हैं | पर देश और धर्म तो खरिदी और बेची नही जा सकती है | फिर यूरेशिया से आकर इस देश को गुलाम बनाने वाले मनुवादीयो का यह देश कैसे हुआ , और इस देश का हिंदू धर्म में यूरेशिया से आए मनुवादि खास धर्मगुरु कैसे बना ? क्योंकि मनुवादीयो ने इस देश को गुलाम बनाकर इस देश का हिंदू धर्म में भी कब्जा किया हुआ है | कब्जा करने के बाद उन्होने इस देश में मनुस्मृती लागू किया , और इस देश का हिंदू धर्म में भी कब्जा करके हिंदू वेद पुराणो में मिलावट और छेड़छाड़ किया है | 


हिंदू धर्म छुवाछूत और ढोंग पाखंड नही सिखलाता , बल्कि हिंदू धर्म में छुवाछूत और ढोंग पाखंड मनुवादियो के द्वारा दिया हुआ है


इस देश का मुलनिवासि हिंदू खुदको उच्च जाति का बताकर छुवाछूत क्यों नही करता है ? क्यों सिर्फ मनुवादि ही खुदको जन्म से उच्च जाति का मानकर इस देश के मुलनिवासियो के साथ छुवाछूत करता है ? क्यों मनुवादि इस देश के मुलनिवासियो को निच अथवा शूद्र और खुदको उच्च ब्राह्मण क्षत्रिय व वैश्य कहता है ? जबकि हिंदू धर्म में होली दीवाली और मकर संक्रांती जैसे खास ऐसे हिंदू पर्व त्योहार मनाए जाते हैं , जिसमे उच्च निच छुवाछूत मानकर कोई भी हिंदू इन पर्व त्योहारो को मिल जुलकर कभी नही मना सकता | जो पर्व त्योहार हिंदूओ के लिए खास माने जाते हैं |  जिसे पुरी दुनियाँ जानती है | जो दुनियाँ क्या यह मानती है कि हिंदू धर्म का यह मिल जुलकर मनाए जानेवाले पर्व त्योहार छुवाछूत करने वाले मना सकते हैं | बिल्कुल नही , क्योंकि छुवाछूत करने वाला व्यक्ती कभी भी मिल जुलकर इस तरह का पर्व त्योहारो को कभी नही मना सकता | और खासकर वेद बोलने पर जीभ काटने और सुनने पर कान में गर्म पिघला लोहा व शीषा डालनेवाला मनुवादी होली और दीवाली जैसे पर्व त्योहार तो कभी मना ही नही सकता , भले क्यों न वह खुदको हिंदू कहकर खुदको जन्म से हिंदू पंडित मानता हो | क्योंकि सच्चाई तो यही है कि मनुवादियो के पूर्वज इस देश में आकर खुदको हिंदू धर्म का खास ठिकेदार बनाकर मिल जुलकर होली दीवाली मनाना तो दुर इस तरह के कोई भी ऐसे पर्व त्योहार कभी मनाते नही होंगे जिसे की मिल जुलकर मनाया जाता है | उन्होने यह पर्व त्योहार मिल जुलकर मनाना पहली बार तब सुरु किया होगा जब छुवाछूत को गलत मानकर उनके अंदर भी कहीं न कहीं मिल जुलकर रहने और आपस में भाईचारा बाटने की सोच इस कृषि प्रधान देश में लंबे समय से रहकर धीरे धीरे विकसित हो गया होगा | क्योंकि अच्छे संगत से अच्छे संस्कार और बुरे संगत से भ्रष्ठ संस्कार विकसित होते हैं | जिसके चलते इस कषि प्रधान देश में बाहर से आए लुटेरे कबिलई से बहुत से बुरे संस्कारो का भी प्रभाव इस देश और इस देश का धर्म में भी पड़ा है | साथ साथ बाहर से आए लुटेरे कबिलई में भी इस देश का अच्छे संस्कारो का प्रभाव पड़ा है | जैसे कि यूरेशिया से आए मनुवादियो के परिवार में अब बहुत से  लोग मिल जाएंगे जो की छुवाछूत को नही मानते , और खुदको हिंदू बताकर मिल जुलकर होली दीवाली भी मनाते हैं | जबकि मनुवादियो के संस्कारो में मूल रुप से गुलाम बनाना और छुवाछूत करना है | जो संस्कार उन्हे उनके खास संस्कारी ग्रंथ मनुस्मृति से मिलता है | जिसे ही वे अपने बच्चो को सिखलाते हैं | जिसके चलते पिड़ी दर पिड़ी हजारो सालो से अबतक भी छुवाछूत संस्कार मनुवादियो में देखा जा सकता है | जो की हिंदू धर्म द्वारा बतलाया गया संस्कार नही है | दरसल हिंदू धर्म में मनुवादियो ने अपना भ्रष्ठ संस्कार हिंदू वेद पुराणो में मिलावट और छेड़छाड़ करके छुवाछूत व ढोंग पाखंड संक्रमित किया है |


हिंदू धर्म छुवाछूत करना नही सिखलाता , और न ही हिंदू धर्म यह बतलाता कि किसी को गुलाम बनाया जाए  


किसी को गुलाम बनाना और छुवाछूत करना हिंदू संस्कार नही है | तभी तो आजतक इस देश के मुलनिवासि कभी भी किसी देश को गुलाम नही बनाए | यह संस्कार तो बाहर से आए मनुवादियो जैसे कबिलई लुटेरो का है | जिसे मनुवादियो ने इस देश और इस देश के हिंदू धर्म में संक्रमित किया है |  और मनुवादियो द्वारा हिंदू धर्म में किया गया मिलावट और छेड़छाड़ को मुल हिंदू ज्ञान मानने वाले इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं | वैसे तो सभी मूल हिंदू मनुवादियो के संक्रमण से पिड़ित है , पर सबसे अधिक पिड़ित वे लोग हैं , जिसे यह अँधविश्वास होने लगता है कि मूल हिंदू मनुवादि है , और छुवाछूत व ढोंग पाखंड हिंदू धर्म का मूल सिद्धांत है | जिसके चलते ही इस देश का मुलनिवासि हिंदूओ में मनुवादियो द्वारा सबसे अधिक संक्रमित होकर अपने ही हिंदू धर्म का बुराई करके अपना हिंदू धर्म बदलते मिल जाएंगे | क्योंकि उनको मनुवादियो के द्वारा दिया संक्रमण से इतना अधिक बुरा प्रभाव पड़ जाता है कि वे यह समझने लगते हैं कि हिंदू धर्म मनुवादियो का है | खैर तो वे इस देश को भी मनुवादियो का देश है कहकर वे अपना देश नही बदले और यहीं पर डटे रहे | हलांकि यहीं पर डटे रहकर भी उन्हे मनुवादियो का संक्रमण सबसे अधिक बुरा प्रभाव डालते हुए अब भी यह देखने को मिल जाता है कि वे अब भी हिंदू धर्म को मनुवादियो का धर्म बताकर अपने जैसा ही धर्म बदलवाने में लगे रहते हैं | जो कि बाकि हिंदूओ को भी उसके जैसा अपना धर्म बदलकर दुसरे धर्म में चले जाने के लिए बड़बड़ाते रहते हैं | हलांकि वे ऐसा अपना धर्म बदलकर जिस धर्म को अपनाए रहते हैं , वे उस धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए भी करते हैं | जिसके लिए वे अपनाए गए अपने नए धर्म के बारे में तारिफ करते हुए अपने पूर्वजो के द्वारा स्थापित हिंदू धर्म के बारे में यह कहते फिरते हैं कि हिंदू धर्म में छुवाछूत ढोंग पाखंड मौजुद है | हिंदू धर्म मनुवादियो का धर्म है | यानी उनकी माने तो हिंदू वेद पुराण और होली दीवाली मकर संक्रांती जैसे हिंदू पर्व त्योहारो को मनुवादी इस देश में यूरेशिया से लाए हैं | यह सब उनके पूर्वजो का दिया हुआ नही है | इसलिए वे यह कहते फिरते हैं कि मनुवादीयो का धर्म और पर्व त्योहार छोड़ देना चाहिए | जबकि भितर से उन्हे भी पता है कि मनुवादी मूल हिंदू नही है , और न ही हिंदू धर्म और हिंदू वेद पुराण व होली दीवाली मकर संक्रांती मनुवादियो द्वारा यूरेशिया से लाया गया है | जबकि यह बात DNA प्रमाणित भी हो चूका है कि मनुवादी यूरेशिया से आया है | जो मनुवादी यूरेशिया से आकर इस देश को गुलाम बनाया है | और यदि कोई भी व्यक्ती इस देश को मनुवादियो द्वारा गुलाम मानता है तो वह यह भी जरुर मानता है कि इस देश में रहने वाले गुलाम चाहे क्यों न जिस भी धर्म से जुड़ा हुआ हो , वह गुलाम है | और यदि गोरो से आजादी मिलने के बाद पुरा आजाद है तो सिर्फ मनुवादी है , या तो फिर मनुवादीयो की तरह गुलाम करने की सोच रखने वाले बाहर से आए कबिलई लुटेरे ही मनुवादीयो की तरह आजाद हैं | क्योंकि पुरी दुनियाँ को पता है कि जब कोई देश गुलाम रहता है तो उस देश में मौजुद गुलाम चाहे जिस भी धर्म से जुड़े रहते हैं , वे सभी गुलाम ही कहलाते हैं | न कि कोई गुलाम खुदको यह कहकर आजाद घोषित किया हुआ रहता है कि वह फलाना डिमका धर्म का है , इसलिए वह आजाद है | 


गुलाम किसी विशेष धर्म का व्यक्ती को नही बनाया जाता



हिंदू धर्म के लोग ही गुलाम बनाए जाते हैं , यह कहना मांशिक विकृति का ही नतिजा है | वह भी यह जानते हुए कि इस देश ही नही बल्कि किसी भी देश में गुलाम किसी भी धर्म का व्यक्ती हो सकता है , न कि सिर्फ शोषित पिड़ित हिंदू गुलाम है | और फिर इस देश के मुलनिवासि जो अब चाहे जिस भी धर्म में मौजुद हो , उन्हे यह बात कभी नही भुलनी चाहिए कि शूद्र ये मनुवादि अपने गुलामो को मानते हैं | और गुलाम किसी भी धर्म का व्यक्ती हो सकता है | न कि इस देश में सिर्फ शोषित पिड़ित हिंदू ही मनुवादियो का गुलाम है | और बाकि सभी धर्म के लोग आजाद हैं | वे यदि आजाद होते तो लोकतंत्र के चारो स्तंभो में मैं गुलाम हिंदू नही हूँ कहकर मनुवादियो की तरह ही सबसे अधिक काबिज होते | जबकि लोकतंत्र के चारो स्तंभो में मनुवादि अपना दबदबा बनाए हुए हैं | क्यों नही बाकि लोग इस देश के शासन हो या फिर लोकतंत्र के बाकि सभी खास स्तंभो के उच्च पद हो , उसमे सबसे अधिक काबिज हैं ? क्योंकि मनुवादीयो ने इस देश को गुलाम बनाया हुआ है | जिन मनुवादियो का ही खास पार्टी है कांग्रेस भाजपा | एक खास पक्ष तो दुसरा खास विपक्ष , ताकि दोनो मिलकर आजाद भारत का संविधान लागू रहते भी अपने गुलामो की नजर और दुनियाँ की नजर में भी मनुवादि शासन को संवैधानिक रुप से कायम रखने के लिए पक्ष विपक्ष की झुठी बहस करके दोनो पलड़े को अपने कब्जे में किए रहे | जिन दोनो ही पार्टियो की मुल भितरी मांसिकता इस देश के मुलनिवासियो को हमेशा गुलाम बनाए रखना है | हलांकि बाहरी मन से दोनो ही पार्टी प्रत्येक चुनाव में हमेशा यह कहते रहती है कि उसके शासन में इस कृषि प्रधान देश और इस देश के किसानो का बेहत्तर भला होगा | जिस कथनी की सच्चाई उनके द्वारा सत्ता में लंबे समय से बैठने के बाद कितना बेहत्तर भला और विकाश हुआ है , यह तो इसी बात से ही पता चल जाता है कि गोरो से आजादी मिले हुए इस देश के नागरिको का औसतन उम्र अथवा 70 साल से भी अधिक का समय बित चुका है , और आजाद भारत का संविधान भी लागू है , लेकिन भी आजतक इस देशो को गोरो से आजादी मिलने के बाद भी गुलामी का माहौल कायम है | आज भी मनुवादियो द्वारा शोषण अत्याचार जारी है | गोरो से आजादी मिलते समय इस देश में जितनी आबादी मौजुद थी , उससे भी कहीं आबादी आज भी गरिबी भुखमरी रेखा से भी निचे अथवा बीपीएल जिवन यापन कर रही है  | इस देश के 99% से भी अधिक  के पास जितना धन मौजुद नही है , उससे कहीं अधिक धन सिर्फ 1% से भी कम आबादी के पास मौजुद है | एक तरफ बहुसंख्यक आबादी गरिबी भुखमरी से मर रहा है तो दुसरी तरफ मुठीभर लोग अति खा खाकर मर रहे हैं | ऐसा असंतुलन क्यों कायम है ? क्योंकि गुलामी कायम है | जिसके चलते यह देश सोने की चिड़िया कहलाते और आजाद भारत का संविधान लागू हुए कई दशक बित जाने के बावजुद भी गरिब देशो में गिना जाता है | क्योंकि इस देश को अबतक पुरी आजादी नही मिली है | 


एक गुलाम करने वाले से आजादी मिला तो दुसरा गुलाम करने वाला इस देश की सत्ता में काबिज हो गया है


गोरो से आजादी मिलने के बाद इस देश की सत्ता में 50-60 साल कांग्रेस तो 10 साल से अधिक समय तक भाजपा का शासन रहा है | जो भाजपा अब भी सत्ता में काबिज  है | जो 2014 ई० में यह कहकर भारी बहुमत से सत्ता में काबिज हुआ की कांग्रेस को 60 साल का अवसर दिया गया , भाजपा को सिर्फ 60 महिना का अवसर दिया जाय ! जबकि 2014 ई० से पहले भी भाजपा का शाईनिंग इंडिया सरकार को अवसर मिल चुका था , जो की अब शाईनिंग इंडिया के बाद डीजिटल इंडिया भाजपा सरकार को भी 60 महिना का अवसर देकर दुबारा भारी बहुमत से फिर से 60 महिना का अवसर मिलकर अब भी भाजपा सत्ता पर काबिज है | इस देश की सत्ता में कांग्रेस के बाद भाजपा आने से क्या भारी बदलाव आ गया ? या फिर अब भी गरिबी भुखमरी उसी तरह कायम है , जैसे कि आधुनिक भारत और गरिबी हटाओ की बाते करके भी कांग्रेस 50-60 सालो तक सत्ता में बैठे रहने के बाद भी कायम थी | जाहिर है यह इसी तरह कायम रहेगी , क्योंकि गोरो से आजादी मिलने के बाद मूल रुप से इस देश में मनुवादी सत्ता कायम है | और जैसा की इतिहास गवाह है कि गुलाम करने वाले कभी भी सत्ता में अपने गुलामो को हावि होने नही देते | जैसे की गोरे भी जब इस देश को गुलाम बनाए थे तो इस देश की सत्ता में अपने गुलामो को हावि कभी नही होने दे रहे थे | वे तो इस देश को गुलाम करके भी जज बनकर अपनी गुलामो से न्याय करने का दावा करते थे | 


मनुवादी भी अपने गुलामो से न्याय करने का दावा करते रहते हैं 


इतिहास गवाह है कि मनुवादियो ने इस देश के मुलनिवासियो को गुलाम बनाकर क्या क्या कुकर्म किए हैं | और अब भी शोषण , अन्याय अत्याचार कर रहे हैं ! बल्कि जब यह देश गोरो द्वारा गुलाम था उस समय भी मनुवादी अन्याय अत्याचार ही कर रहे थे | न कि इस देश के मुलनिवासियो का भला कर रहे थे |  जिनके मन में तब भी पाप था , जबकि वे गोरो से आजादी पाने के लिए इस देश के मुलनिवासियो का विशेष सहायता ले रहे थे | एक तरफ इस देश का मुलनिवासि बाहर से आए गोरो और मनुवादियो से पुरी आजादी पाने का संघर्ष कर रहा था , तो मनुवादी अपनी आजादी लड़ाई यह कहते हुए लड़ रहे थे कि " तेली , तंबोली , कुंभट , खाती , कूर्मी और पाटीदार विधिमंडल में जाकर क्या हल चलाएंगे ? क्योंकि मनुवादियो को यह डर सता रहा था कि गोरो से आजादी मिलने के बाद इस देश का मुलनिवासि सत्ता में न बैठ जाए ! और इस कृषि प्रधान देश में इस देश के मुलनिवासियो द्वारा सत्ता में बैठने का मतलब साफ था कि कबिलई सोच के बजाय कृषि सोच को बड़ावा मिलना | जबकी मनुवादियो की सोच सुरु से ही कृषि छोड़ कबिलई सोच की ओर ही प्रमुखता रहा है | जिसके चलते कबिलई गोरो से जब यह देश आजाद हुआ तो दुसरा कबिलई मनुवादि इस देश की सत्ता में बैठकर आधुनिक भारत शाईनिंग इंडिया डीजिटल इंडिया विकाश के नाम से कृषि का विनाश करना सुरु किया | क्योंकि कबिलई मनुवादियो की माने तो देश का विकाश कृषि का विनाश करके ही बेहत्तर होता है | जिसके चलते उन्होने किसानो की उपजाउ जमिन को छिनकर बंजर करना सुरु किया | जिस प्रकार की सोच मनुवादि इसलिए रखता है क्योंकि वह अब भी अपनी कबिलई मांशिकता से बाहर नही निकला है | जबकि वह इस कृषि प्रधान देश में हजारो सालो से रह रहा है | हलांकि यह सब स्वभाविक भी है , क्योंकि मनुवादियो को जन्म के बाद जैसे ही यह पता चलता है कि उसके पूर्वज इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो को गुलाम बनाए हुए हैं , वैसे ही उनको अपने पूर्वजो की मूल मांशिकता के बारे में पता चल जाता है | जिसे जो भी मनुवादि परिवार के बच्चे अपना आदर्श मानकर अपने पूर्वजो की तरह परजीवि जिवन जिने के बारे में सोचते हैं वे निश्चित तौर पर यही सोचकर अपनी विकसित जिवन जिने के बारे में सोचना सुरु कर देते हैं कि विकाश का मतलब सागर जैसा स्थिर कृषि नही बल्कि घुमकड़ कबिलई जिवन है | ऐसा वह इसलिए भी सोचता है , क्योंकि वह इस कृषि प्रधान देश में बाहर से आया कबिलई लुटेरा है , जो कि इस देश में आकर इस देश के मुलनिवासियो को हजारो सालो से गुलाम बनाकर उन्हे शूद्र घोषित किया हुआ है | इसलिए वह इस देश के मुलनिवासियो को सत्ता में काबिज होते कभी भी देखना नही चाहता है | क्योंकि गुलाम बनाने वाला कभी भी अपने गुलामो को शासक बनते देखना नही चाहता | क्योंकि गुलाम यदि शासक बन गया तो वह कभी भी गुलाम करने वाले की सेवा शूद्र बनकर नही करेगा | और गुलाम शूद्र बनकर सेवा नही करेगा तो मनुवादि खुदको कभी यह नही समझ पाएगा कि वह सबसे उच्च है | क्योंकि उसके लिए सबसे उच्च बनने का मूल जरिया सत्ता है | जिसे खोकर वह अपनी सारी वह उच्चता खो देगा जिससे की वह खुदको जन्म से ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य भी कहता है | लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो पर कायम अपनी दबदबा तो वह खोयेगा ही पर सबसे बड़ी तो वह अपनी उस झुठी शान को खो देगा जिससे कि वह गुलाम करने वाला होते हुए भी सबसे उच्च बना बैठा है | जो उच्चता उससे छिन जाएगी यह बात बाल गंगाधर तिलक को पता था | जिसके चलते उसने इस देश के मुलनिवासियो को विधिमंडल में प्रवेश न करने देने के लिए गोरो की शासन के समय ही अपनी मनुवादि मांशिकता रखते हुए यह कहा कि " तेली , तंबोली , कुंभट , खाती , कूर्मी और पाटीदार विधिमंडल में जाकर क्या हल चलाएंगे ? 



इस देश का बेहत्तर विकाश बाहर से आए कबिलई लुटेरे कभी नही कर सकते


यूरेशिया से आए कबिलई मनुवादियो की विकृत मांशिकता अनुसार इस कृषि प्रधान देश का विकास और भला सिर्फ मनुवादि ही कर सकते हैं | किसान भले पुरे देश को अन्न साग सब्जी वगैरा उगाकर खिलाने की मेहनत में दिन रात लगे रहते हैं , पर उनकी मेहनत का मोल जनता सेवा और देश का विकाश में कितना है यह तो गोरो से आजादी पाने और आजाद भारत का संविधान लागू होने के बाद इस देश में स्थापित मनुवादि सरकार के लंबे कार्यकाल को परखकर पता चल जाता है | जिस कार्यकाल के दौरान इस देश के किसानो का कितना भला हुआ यह तो इसे जानकर भी पता चल जाता है कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासि अपने ही देश में अपनी जमिन से बेदखल होकर सबसे अधिक जमिन मनुवादियो के पास क्यों चला गया है ? इस देश का बहुसंख्यक आबादी जो की खेती पर निर्भर है वह मानो जिंदा रहकर अपने ही खेत में गुलाम बनकर बंधुवा मजदुरी करके अपना जिवन यापन कर रहे हैं | जिनमे से यदि कोई मुलनिवासि किसान थोड़े बहुत जमिन का मालिक अब भी है और वह अपने खेत में हरियाली लाकर बेहत्तर फसल उगा भी रहा है तो भी वह अपने खेती से उतना बेहत्तर मुनाफा नही कमा पा रहा है जिससे की यह कहा जा सके कि इस कृषि प्रधान देश का किसान सबसे समृद्ध जिवन यापन कर रहा है |क्योंकि खेत में वह जितना मेहनत करता है उतना मोल कबिलई मनुवादि सत्ता में उसे कभी मिल ही नही सकती | बल्कि बहुत बार तो ये मनुवादि सरकार किसानो के फसलो का दाम लगाना तो दुर खरिदने से भी इंकार कर देती है | जिसके चलते बहुत से फसल सड़को पर फैंककर विरोध प्रदर्शन होता है या तो फिर रखे रखे सड़कर बर्बाद हो जाते हैं | जिसका उचित समय पर उचित मोल न मिलने से किसान एक तो कर्ज में भी डुब जाता है और दुसरा अपनी निजि जिवन में अपने बच्चो का पढ़ाई लिखाई , शादी विवाह वगैरा खर्च के लिए तनाव ग्रस्त हो जाता है | फिर तनाव में बहुत से किसान तो आत्महत्या तक कर लेते हैं | गोरो से आजादी मिलने से लेकर अबतक सरकार की नाकामी की वजह से लाखो किसान आत्महत्या कर चुके हैं | यही बुरी हालत मेहनती मजदूरो का भी है | 


जिनकी दुःख और पीड़ा को देखते हुए हमे यह बात कभी भी नही भुलनी चाहिए कि मनुवादि यूरेशिया से आए कबिलई हैं | जो मुलता कभी भी खेती और मजदूरी पर अपना जिवन यापन नही करते हैं 


कुछ मनुवादि जमिनदारी जरुर करते आ रहे हैं | जिनके पास देश का सबसे अधिक जमिन भी मौजुद है | जो इस देश के किसानो को उनके अपने ही खेत में बंधुवा मजदूरी कराकर खुदको सबसे बड़ा किसान का बेटा भी कहते हैं | जिन्हे ही लोन और लोन लेने के बाद माफी लाभ भी सबसे अधिक मिलता है | इस देश के मुलनिवासि किसानो को तो अठनी चवनी या फिर कुछ नही मिलता है | जबकि इस कृषि प्रधान देश की आधी से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है | ज्यादेतर किसान अपने खेत में नही बल्कि दुसरो के खेत में मजदुरी करते हैं | क्योंकि उनके पास अपना खेत नही है | ज्यादेतर जमिन और धन भी मनुवादियो के ही पास है | जबकि यदि प्रयोगिक रुप से देखा जाय तो अल्पसंख्यक मनुवादि मुल रुप से खेती पर नही बल्कि इस देश की सत्ता पर निर्भर है | जो जिसदिन जायेगी उनके उच्च जिवन के सभी क्षेत्रो में अँधेरा छा जाएगा | क्योंकि उनके पास जो भी जिवन यापन करने का मूल उच्च हुनर मौजुद है , वह तो मुलता दुसरो के हक अधिकारो को छिनकर अपनी भ्रष्ठ मांशिकता का विकाश करते रहना है | जिस उच्च हुनर में उन्हे सबसे खास अनुभव भी रहा है | जिसके बलबुते ही तो वे लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में सबसे बेहत्तर प्रदर्शन न कर पाने के बावजुद भी चारो स्तंभो में अपनी उच्च दबदबा बनाए हुए हैं | जिन सब जगहो पर उनकी उच्च हुनर की उच्चता उनकी मनुवादि सत्ता पर निर्भर है | यू ही नही  ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक ने अपनी मनुवादि मांसिकता का इजहार करते हुए इस देश के मुलनिवासियो के बारे में कहा था कि ये लोग विधिमंडल में जाकर क्या हल चलाएंगे ? जिनका एक खास नारा " आजादी मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है " जिसमे भी उनकी मनुवादि मांसिकता साफ नजर आता है कि आजादी का जन्मसिद्ध अधिकार वे किन लोगो को देना चाहते थे विधिमंडल में ! ये मनुवादि लोग भले कागज में यह लिखकर विधिमंडल जाते रहे हैं कि मैं भी किसान का औलाद हूँ , पर इनके DNA में कृषि प्रधान सोच नही बल्कि कबिलई प्रधान सोच मौजुद है | जिनसे इस कृषि प्रधान देश का भला कभी नही हो सकता | भला तब होगा जब मनुवादियो से पुरी आजादी मिल जाएगी | जिसके बाद इस देश का मुलनिवासि अपने दुःखो को बेहत्तर तरिके से समझते हुए अपने उन जख्मो में मलहम लगाकर ठीक करेगा जिसे मनुवादि जैसे कबिलई लुटेरे सैकड़ो हजारो सालो से गुलाम बनाकर देते आ रहे हैं | जो कबिलई लुटेरे इस देश के मुलनिवासियो का बेहत्तर भला करेंगे या कर रहे हैं , यह सोचनेवाला व्यक्ती दरसल मनुवादि जैसे मांशिकता को सबसे उच्च मांशिकता मानता है | जो या तो मनुवादि है या तो फिर मनुवादि का अँधभक्त है | जैसे की गोरो का भी बहुत से अँधभक्त थे जो की गोरो का शासन को बेहत्तर मानते थे | जबकि चाहे विदेशी मूल का गोरा हो या फिर विदेशी मूल का मनुवादि हो , दोनो का ही शासन गुलाम शासन है | और गुलामी के बारे में पुरी दुनियाँ यही विचार रखती है कि गुलामी से आजादी पाने के लिए संघर्ष करना चाहिए | न कि गुलाम करने वालो को सरकार बनाकर अपने ही पाँव में कुल्हाड़ी मारने का मुर्खता करनी चाहिए |

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