freedom,अपना धर्म या अपना देश बदलने से आजादी नही मिलती
अपना धर्म या अपना देश बदलने से आजादी नही मिलती
सबसे पहले तो मैं अपने बारे में यह बता दूं की मनुवादियो को वोट करने वालो को मैं आजादी के लिए संघर्ष कर रहा वीर नायक नही मानता | और मनुवादियो से आजादी पाने के लिए जो लोग भी मनुवादियो को वोट न करके मनुवादियो से आजादी पाने के लिए अपने क्षमता अनुसार योगदान देकर जिस हालत में भी जिवन संघर्ष कर रहे हैं , वे चाहे कितना ही गरिब या अमिर हो उन्हे मैं आजादी का वीर नायक मानता हूँ | क्योंकि मुझे पता है कि इस कृषि प्रधान देश को गुलाम बनाने वाले कबिलई मनुवादि इस देश और इस देश के मुलनिवासियो का बेहत्तर भला कभी कर ही नही सकते | क्योंकि यदि गुलामी से किसी का सबसे बेहत्तर भला होता तो कोई भी गुलाम देश कभी भी आजाद होना नही चाहता | और जैसा कि हमे पता है कि यह देश सिर्फ गोरो से ही गुलाम नही हुआ है , बल्कि मनुवादियो से भी गुलाम हुआ है | गोरो से जब यह देश गुलाम था तो गोरो से आजादी मिलने से पहले इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो के बारे में ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक ने अपनी मनुवादि मांसिकता का इजहार करते हुए कहा था कि ये लोग विधिमंडल में जाकर क्या हल चलाएंगे ? जिसका प्रयोगिक नतीजा आजाद भारत का संविधान लागू होने के इतने दशक बित जाने के बाद सामने है कि गोरो से आजादी मिलने के बाद लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में मनुवादियो ने किस तरह भेदभाव दबदबा बना रखा है | जिनकी भेदभाव सोच से जाहिर हो जाता है कि कबिलई मनुवादि इस कृषि प्रधान देश का भला कभी कर ही नही सकते | भले ही क्यों न वे खुदको गोरो से आजादी मिलते ही सत्ता पर बैठकर बार बार यह कहते रहते हो कि वे इस देश का आधुनिक विकाश , डीजिटल विकाश कर रहे हैं |
क्योंकि हमे यह बात कभी नही भुलना चाहिए की मनुवादी इस देश को गुलाम बनाकर शासन कर रहे हैं | और मनुवादीयो की गुलाम शासन में इस देश के गुलामो का बेहत्तर भला होगा यह सोचना बहुत बड़ी मुर्खता है | और जो गुलाम लोग मनुवादियो को अपनी वोट से सरकार चुन रहे हैं , वे खुदको आजादी संघर्ष इतिहास में बहुत बड़ा मुर्ख दर्ज कर रहे हैं | क्योंकि गुलाम बनाने वाला मनुवादि अपने गुलामो का बेहत्तर भला कभी नही कर सकता | और न ही वे इस देश के मुलनिवासियो के साथ बेहत्तर न्याय कर सकते हैं | क्योंकि कोई अपने मन से भला करना चाहेगा तब तो करेगा ! और वह भी वे मनुवादि जिसके मन में सेवा नही भेदभाव का गंदगी हजारो सालो से भरा पड़ा हो | जिसके पास शोषण अत्याचार जैसे बड़े अपराध करने का हजारो सालो का अनुभव रहा है | जिस अनुभव को अपडेट करने का पिड़ि दर पिड़ि इनका इतिहास भी रहा है | तभी तो उच्च निच भेदभाव जैसे बड़े अपराध हजारो साल बाद अबतक भी बरकरार है | जितना लंबा समय का अनुभव गोरो के पास भी नही था , जब वे इस देश को गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार जैसे बड़े अपराध कर रहे थे | जो अब सायद ही किसी गेट में यह लिखते होंगे कि अंदर कुत्तो और भारतीयो का प्रवेश मना है | जो कि इस देश को गुलाम करके गेट में लिखते थे कि अंदर कुत्तो और भारतीयो का प्रवेश मना है | जिन गोरो से आजादी मिलते ही इस देश में वापस उन मनुवादियो की सत्ता स्थापित हो गया है , जिनके पूर्वज कभी मनुस्मृति लागू करके इस देश के मुलनिवासियो को शूद्र घोषित करके गेट में लिखते थे कि अंदर निच अथवा शूद्र का प्रवेश मना है | जो गंदी भेदभाव सोच अब भी मनुवादियो के अंदर मौजुद है | भले क्यों न मनुवादि कितना ही सुबह शाम कोई भी साबुन शैंपु से नहाता हो या हर समय नहा धोकर नया नया किमती कपड़ा वगैरा बदलता हो , पर आज भी उसके भितर भेदभाव गंदगी का अंबार लगा हुआ है | जो की किसी सड़ी गली बेकार पड़ा कुड़ा कचड़ा गंदगी से भी ज्यादे खतरनाक होता है | क्योंकि कुड़ा कचड़ा गंदगी से होनेवाली बिमारी का तो इलाज संभव है , पर मनुवादियो के भितर मन में मौजुद गंदगी से होनेवाली छुवाछूत बिमारी का इलाज संभव नही है | जिससे सिर्फ दुरी बनाया जा सकता है | जिसके लिए सबसे पहले जरुरी है मनुवादियो से खुदको आजाद करना | तब जाकर मनुवादियो के भितर मौजुद गंदगी से होनेवाली छुवाछूत जैसे बिमारी से हमेशा के लिए दुर रहा जा सकता है | जैसे की गोरो से आजादी पाने के बाद गोरो से होनेवाली गुलामी बिमारी से हमेशा के लिए दुरी बन गया है | जो दुरी बिना आजादी पाए बिल्कुल मुमकिन नही था | चाहे इसके लिए कितना ही बुद्धी बल का प्रमाण पत्र इकठा कर लिया जाय या फिर कितनी ही बार अपना धर्म बदल लिया जाय | बल्कि क्यों न इस देश में गुलामी कायम है यह सोचकर अपना देश ही बदलकर किसी आजाद देश में चले जाए , गुलामी वहाँ भी पिछा नही छोड़ेगा यदि गुलाम करने वाले की पहुँच वहाँ भी मौजुद है | और आज के समय में ही यदि देखा जाय तो मनुवादियो की पहूँच दुनियाँ के किस देश में नही है ! वे सभी जगह मौजुद हैं | विकसित देशो में तो मनुवादियो की दिलचस्पी ज्यादे रहती है | और फिर इस देश को पुरी आजादी मिले बगैर चाहे इस देश के मुलनिवासि जिस धर्म में रहे या फिर जिस देश में रहे , वह मनुवादियो की छुवाछूत बिमारी से पुरी तरह कभी भी आजाद नही है | क्योंकि मनुवादि अपने गुलामो से छुवाछूत करते हैं | और अपना गुलाम वे इस देश के मुलनिवासियो को मानते हैं , चाहे वे जिस धर्म को मानते हो या फिर जिस देश में रहते हो | मनुवादियो के लिए इस देश का सभी मुलनिवासि तबतक गुलाम ही है , जबतक कि यह देश मनुवादियो से पुरी तरह आजाद नही हो जाता | और जैसा कि बतलाया कि आजादी देश या अपना धर्म बदलने से नही मिलती है | मिलती तो गोरो से जो लोग भी गुलाम बनाए गए थे वे सभी अपनी आजादी पाने के लिए अपना धर्म ही क्यों नही बदल डालते |
धर्म बदलने या देश बदलने से आजादी नही मिलती
और जो लोग यह प्रचार प्रसार करते हैं की मनुवादियो से आजादी पाना है तो अपना मनुवादी धर्म बदलो वे दरसल भ्रम फैलाकर धर्म बदलवाने के लिए अपने धर्म की दलाली कर रहे हैं | जो दलाली करने का संस्कार उन्हे उन धर्म के ठेकेदारो से मिलता है , जिनके लिए धर्म का धँधा सबसे बड़ा धँधा है | जिनको लगता है कि इस देश के मुलनिवासि हो या फिर किसी भी देश के मुलनिवासि हो उनकी जिवन से सारे दुःख उनके धर्म को अपनाकर दुर हो जाएगा | जो धर्म के दलाल क्या यह साबित कर सकते हैं कि अपना धर्म बदलकर कोई गुलाम आजाद हो जाता है | और फिर यदि वे अपना धर्म बदलकर गुलामी से ही सिर्फ आजाद नही बल्कि सारे दुःख तकलीफो से सचमुच आजाद हो जाता हैं , तो फिर वे क्यों नही धर्म के दलाल अपनी सारी दुःख तकलीफ से आजाद होने के बाद खुशी से उछल कुद करते हुए आजाद भारत का सत्ता अपने हाथो प्राप्त कर लेते हैं ? आजाद भारत का संविधान लागू है ! उनके मुताबिक तो मनुवादि तो सिर्फ शोषित पिड़ित हिंदू को गुलाम बनाए हुए हैं , जो कि अपना धर्म बिना बदले गरिबी भुखमरी बेरोजगारी जैसे सारी दुःख तकलीफो से घिरकर आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं | जैसा की कभी अंबेडकर ने भी अपना धर्म बिना बदले संघर्ष किया था | जिन्होने अपना धर्म बिना बदले देश विदेश में कई उच्च डिग्री भी हासिल किया और आजाद भारत का संविधान रचना भी किया | क्या बिना धर्म बदले आजादी के लिए संघर्ष करने का उनका योगदान इतिहास में कोई मायने नही रखता है | बल्कि मैं तो कहूँगा बिना अपना धर्म बदले आजादी के लिए संघर्ष करने वाले अंबेडकर का योगदान कहीं ज्यादे बड़ा है | इतना बड़ा कि धर्म बदलने के बाद का अंबेडकर और धर्म बदलने से पहले का अंबेडकर का आजादी संघर्ष में योगदान इतिहास के भी पन्नो में किसी सागर और छोटा तालाव जितना अंतर लगता है | जिसपर विश्वास न हो तो अंबेडकर के बारे में इतिहास खोलकर कभी फिर से तुलना कर लिया जाय कि इतिहास पढ़ते समय कोई व्यक्ती किस अंबेडकर के बारे में ज्यादे जानकारी लेता रहता है | अपना धर्म बदलकर संघर्ष करने वाले अंबेडकर के बारे में की अपना धर्म बदले बगैर आजादी के लिए जिवन संघर्ष करने वाले अंबेडकर के बारे में ?
और जैसा कि इस देश के सभी मुलनिवासियो जो चाहे जिस देश में भी रहते हो , या फिर जिस धर्म में मौजुद हो , उन सबको पता है कि इस देश को मनुवादियो से पुरी आजादी आजतक भी नही मिला है | जिसके चलते आज भी इस देश के कई जगह यह लिखा हुआ मिल जाएगा कि अंदर शूद्र का प्रवेश मना है | जहाँ पर कोई मुलनिवासि क्या यह कहकर प्रवेश करने में कामयाब हो जाएगा कि पहले मैं शूद्र था पर अब मैने अपना धर्म बदल लिया है , इसलिए मुझे भी उच्च मानकर प्रवेश करने दिया जाए ! बल्कि ब्राह्मण बाल गंगाधर की मौजुदगी यदि आज के समय में भी रहता तो मनुवादियो की तरफ से वह जरुर यह खास आवाज उठाता कि " इस देश के मुलनिवासियो को गुलाम बनाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है , इसलिए संसद के बाहर गेट में लिखा रहना चाहिए कि अंदर किसानो का प्रवेश मना है | गुलाम लोग शासक नही बन सकते | " जो लिखने के बाद क्या जो मुलनिवासि अपना धर्म बदलकर दुसरे धर्म अपना लिए हैं , उनके लिए मनुवादि विशेष छूट प्रदान करके सिर्फ अपना धर्म न बदलने वाले मुलनिवासियो को ही संसद में प्रवेश करने नही दिया जाता ? क्योंकि हमे यह नही भुलनी चाहिए की गोरो से आजादी मिलने के बाद इस कृषि प्रधान देश में आजाद भारत का संविधान लागू होने के बावजुद भी भेदभाव शोषण अत्याचार जैसे अपराध आखिर क्यों जारी है | क्योंकि आज भी हमे मनुवादियो से पुरी आजादी नही मिली है | जो पुरी आजादी हमे मनुवादियो को वोट करने से तो कम से कम सौ प्रतिशत नही मिलने वाली है | इसलिए मनुवादियो को वोट करने वालो को मैं आजादी के लिए संघर्ष कर रहा वीर नायक नही मानता | और न ही मैं उन्हे भी आजादी का वीर नायक मानता हूँ जो धर्म का दलाल बनकर मुलनिवासियो के बिच यह भ्रम फैलाते रहते हैं कि तुम अपना धर्म बदलोगे तो मनुवादियो से आजाद हो जाओगे !
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