Like the string of a kite, one day the string of everyone's life is also cut



पतंग की डोर की तरह एक दिन सबके जीवन का भी डोर कट जाता है


पतंग की डोर की तरह एक दिन सबके जीवन का भी डोर कट जाता है

इस दुनियाँ में इंसान ही नही बल्कि सूर्य चाँद तारो को भी एकदिन प्रकृति में ही विलिन होकर अलग नया रुप धारन करना है | फिर भी इंसान अपने जिवित रहने तक खुदको धरती का सबसे श्रेष्ट प्राणी मानकर भी जिवित रहने के लिए अपने ही तरह के दुसरे प्राणी को आखिर क्यों गुलाम बनाता है ? हलांकि सभी इंसान जिवित रहने के लिए किसी को गुलाम बनाने की निच सोच को नही अपनाते हैं | बल्कि अभी के समय में तो मुमकिन है सिर्फ कथित मनुवादी कहलाने वाले इंसान ही इस धरती में इंसानियत कायम करने के मामले में सबसे अविकसित मांसिकता वाला इंसान बचा है | जो कि अबतक भी खुदको जिन्दा रखने के लिए किसी को गुलाम बनाने की सोच रखता है | बाकि सभी इंसान किसी को गुलाम बनाने की गंदी सोच से बाहर निकल चूके हैं | क्योंकि इंसानियत विकास की सफर में वे उस सोच से बाहर निकल चूके हैं , जिसमे की इंसान किसी दुसरे इंसान को गुलाम बनाकर दुसरो के हक अधिकारो पर कब्जा जमाकर किसी परजिवी की तरह पलता है | जिस तरह का परजिवि इंसान वे लोग होते हैं जो कि दुसरो के हक अधिकारो को छिन या कब्जा जमाकर पल रहे होते हैं | जिसमे सबसे खतरनाक परजिवी वह इंसान होता है , जो कि गुलाम बनाता है | क्योंकि धरती का सबसे श्रेष्ट प्राणी का दर्जा जिस इंसान को खुद इंसानो के द्वारा ही दिया गया है , उसी प्राणी के योनी से जन्म लेकर जो इंसान किसी दुसरे इंसान को गुलाम बनाकर खुदको महान और सबसे उच्च कहता है , वह दरसल अपने ही प्रकार का प्राणी इंसान को गुलाम बनाकर इस धरती का परजिवियो में सबसे उच्च परजिवी खुदको साबित करता है | जिसे तो जिस योनी से वह पैदा लिया है , उसी योनी से निकलने वाली चूलुभर मुत में डुब मरना चाहिए | या तो फिर वापस उसी योनी में प्रवेश करके जन्म लेने का आवेदन भगवान को फिर से भरकर देने के बाद उसे दुबारा किसी सुवर के पिछवाड़े से पैदा लेने का आवेदन करना चाहिए | जो की मुमकिन नही है , क्योंकि यह प्राकृति नियम के विरुद्ध है |


 हलांकि मनुवादि जैसे लोग तो प्राकृति नियम को भी नही मानते हुए उल्टा सोच रखकर किसी पिछवाड़े से जन्म होने की प्रक्रिया तो क्या वे तो किसी पुरुष के मुँह कान नाक से भी बच्चा जन्म होने जैसी बातो में विश्वास करते हैं | वे भगवान से अप्राकृति जगहो से पैदा होने की आवेदन अपने मन में करते रहे हैं | तभी तो मनुवादियो की सोच अनुसार पुरुष ब्रह्मा के मुँह बांह जंघा और चरण जैसे अलग अलग अंगो में नौ महिना गर्भ ठहरने के बाद उच्च निच जाति का बच्चा पैदा हुआ है , मनुवादि इस तरह की अप्राकृति बातो को भी सत्य मानते हैं | साथ साथ यह भी मानते हैं कि उच्च निच जाति का इंसान पैदा तो लिया है एक ही पुरुष के शरिर से पर वह अलग अलग जाति का है | मानो ब्रह्मा के सारे अंग अलग अलग जाति का है | मुँह बाजु जंघा अलग है , और चरण अलग है | बल्कि मनुवादियो की माने तो ब्रह्मा का चरण अछुत है , जहाँ से निच जाति पैदा लिया है | क्योंकि यदि मनुवादि सोच अनुसार ब्रह्मा का चरण अछुत नही रहता तो वहाँ से निच जाति कैसे पैदा लेता | 


हलांकि जब एक ही ब्रह्मा का औलाद ब्राह्मण और शूद्र है फिर दोनो का DNA अलग अलग क्यों है 


दरसल उच्च निच छुवाछूत जैसे भेदभाव सोच मनुवादियो की मन में ही नही मानो DNA में ही घर बना लिया है | ढोंगी पाखंडी अँधविश्वास में डुबे मनुवादि का वश चले तो वह अपनी ढोंग पाखंड सोच से हिंदू वेद पुराणो के साथ मिलावट और छेड़छाड़ करके इनके द्वारा ब्रेनवाश हुए लोगो के बिच यह साबित कर दे कि किसी पुरुष के मुँह बाजु चरण आँख कान समेत शरिर के सभी अलग अलग अंगो में अलग अलग DNA मौजुद रहता है | जो की अप्राकृतिक सोच है कि एक ही प्राणी के अलग अलग अंगो में अलग अलग DNA भी मौजुद रह सकता है | जिस अप्राकृतिक सोच के चलते वह वर्ण व्यवस्था के बारे में अबतक यही झुठ बांटते आ रहा है कि एक ही ब्रह्मा के अलग अलग अंगो से जन्मे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र अलग अलग DNA के औलाद पैदा लिए हैं | जबकि वर्ण व्यवस्था में दी गई जानकारी में ब्रह्मा कोई नर नारी नही है | और न ही वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र कोई नर नारी का बच्चा को कहा गया है | जैसे कि शासन व्यवस्था में मंत्री अधिकारी पुलिस वगैरा कोई उच्च निच जाति नही बल्कि पद है | जिस पद को अपनी काबलियत अनुसार नागरिक प्राप्त कर सकता है | जैसा कि प्राप्त करता भी है | क्या कोई दलित आदिवासी पिछड़ी मंत्री अधिकारी पुलिस सैनिक वगैरा नही बनता है | बिल्कुल बनता है , क्योंकि यह सब पद है , न कि यह सब जन्म से उच्च निच जाति है | वर्ण व्यवस्था भी तब के समय में विकसित किया हुआ शासन व्यवस्था की तरह ही काम करता था | जिसमे ब्राह्मण शिक्षक ,क्षत्रिय रक्षक , वैश्य आर्थिक से सबंधित पद है | जिस वर्ण व्यवस्था में इस देश के मुलनिवासियो को शूद्र घोषित करके मनुवादियो ने दरसल अपनी निच मांसिकता को परिभाषित किया है कि वे लोग किस तरह की गुलाम प्रजा अपने शासन के दौरान देखना चाहते हैं | जो सिर्फ उनकी दिन रात सेवा करने का काम करे | बल्कि मनुवादियो ने वर्ण व्यवस्था को अपनी विकृत सोच से मनुस्मृति रचना करके मानो बच्चा पैदा होने की व्यवस्था के रुप में गलत अपडेट कर रखा है | उनके मुताबिक तो सारे हिंदू वेद पुराणो में मौजुद ज्ञान प्राकृति विज्ञान नही बल्कि अप्राकृतिक सिद्धांत अथवा चमत्कार पर आधारित है | जिसके चलते वह अबतक हिंदू धर्म का ठिकेदार बनकर मनुस्मृति की रचना करने के बाद हिंदू वेद पुराणो के बारे में यह असत्य ज्ञान बांटते आया है कि ब्रह्मा के मुँह छाती जंघा और चरणो से अलग अलग जाति का इंसान पैदा हुआ है | वह भी एक ही पुरुष के अलग अलग अंगो से अलग अलग DNA लेकर पैदा हुआ है | जिसकी माने तो छाती में अलग DNA होता है , जंघा में अलग DNA होता है , और चरण में अलग DNA होता है | तभी तो एक ही ब्रह्मा से जन्मे कथित ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इनका DNA अलग अलग है | जबकि DNA रिपोर्ट तो यह कहता है कि बाप का DNA उसके सभी औलादो में एक ही होता है | फिर DNA रिपोर्ट अनुसार ब्राह्मण का अलग DNA और शूद्र का अलग DNA कैसे है | जबकि कथित मनुवादियो की माने तो उच्च निच दोनो ही जाति के लोग एक ही ब्रह्मा के शरिर से जन्म लिए हैं | इसका सही जवाब वेद पुराणो को मनुवादियो की दृष्टी से नही बल्कि प्राकृतिक विज्ञान की दृष्टि से समझने बुझने से सत्य पता चल जाएगा कि वेद पुराण में मौजुद ब्रह्मा विष्णु महेश भगवान को आखिर पुरे सृष्टी का पालनहार क्यों बतलाया गया है ? क्योंकि हिंदू वेद पुराण दरसल प्रकृति विज्ञान सत्य पर आधारित है | जिसमे मौजुद जानकारी साक्षात मौजुद प्रकृति विज्ञान पर आधारित है | 


जैसे की वेद पुराण में मौजुद हवा पानी अग्नि सूर्य चाँद नदी वगैरा प्रकृति है , न की लिंग योनी वाले देवी देवता 


जैसा कि मनुवादि हवा को पवनदेव सूर्य को सूर्यदेव अग्नि को अग्निदेव वगैरा बताकर अबतक यह ज्ञान बांटते आ रहे हैं कि ये सभी लिंग योनी वाले देवी देवता हैं | जो की इस धरती में इंसानो से संभोग करने के लिए लिंग लहराते हुए विचरन भी करते हैं | और इंसानो के साथ संभोग करके अपना औलाद भी पैदा करते हैं | क्योंकि मनुवादियो की माने तो सूर्य चाँद मंगल बुद्ध वृहस्पति शुक्र वगैरा सभी ग्रहो के पास बिल्कुल इंसानो जैसा ही लिंग मौजुद है | और मनुवादियो द्वारा वे इंसानो से संभोग करते हुए भी बतलाये जाते हैं | जैसा कि वे यह बतलाते हैं कि सूर्य से कुंती ने संभोग करके कर्ण को कुँवारी समय ही जन्म दी थी | जिसके चलते कुंती ने परिवार समाज की डर से एकदिन का शिशु कर्ण को नदी में बहा दिया था | वह भी यह बतलाया जाता है कि कर्ण अपनी माँ के गर्भ में नौ महिना पलकर जन्म नही लिया था , बल्कि एकदिन में ही जन्म हुआ था | सूर्यदेव ने कुंवारी कुंती के साथ संभोग किया और कर्ण का जन्म उसी समय हो गया था | जिस तरह की अप्रकृति बातो में विश्वास करके कोई अँधभक्त कोई अप्रकृति संभोग करके एकदिन में ही माता पिता बनने की कोशिष कभी भी न करें !


यहाँ पर गौर करने वाली बात यह है कि मनुवादियो की माने तो सूर्य चाँद हवा नदी पेड़ पौधा अग्नि ब्रह्मा वगैरा जो कि हिंदू वेद पुराणो में प्रकृति के अलग अलग रुप के बारे में बतलाया गया है , वे सभी इंसानो की तरह लिंग योनी लेकर पैदा लेने वाले पुरुष स्त्री रुप में भी इस धरती में विचरन करते हैं | जो की इंसानो की तरह और इंसानो से संभोग भी करते हैं | और उनके पास भी इंसानो की ही तरह हाथ पैर मुँह नाक कान लिंग योनी वगैरा मौजुद रहता है | जिसके चलते जाहिर है कि मनुवादियो की माने तो ब्रह्मा ने अपने शरिर से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के रुप में इंसानो को जन्म दिया है | जो सभी ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य व शूद्र एक ही ब्रह्मा के औलाद हैं | यानी इस जानकारी के अनुसार एक ही ब्रह्मा के औलाद होने का मतलब साफ है कि प्रकृति विज्ञान अनुसार ब्रह्मा द्वारा जन्माये गए सभी औलादो में एक ही DNA मौजुद रहना चाहिए था | बल्कि DNA तो एक बाप से उसके बच्चे में ही नही , बल्कि बच्चे का बच्चे में भी एक ही DNA सफर पिड़ि दर पिड़ि तय करता चला जाता है | जो सफर चाहे क्यों न दादा परदादा से भी पहले से चला आ रहा हो | परदादा से दादा और फिर दादा से बाप फिर बाप से बच्चे सभी के अंदर एक ही DNA हमेशा स्थिर मौजुद रहता है | चाहे क्यों न परदादा दादा और उसके बाद बाप बेटा सभी अलग अलग धर्म को मानते हो , पर प्रकृति विज्ञान अनुसार इन सबका DNA एक ही होता है |


 दरसल मनुवादी चूँकि असल में ढोंगी पाखंडी लोग हैं इसलिए अबतक भी उन्हे यह समझ में नही आया है कि हिंदू वेद पुराण में मौजुद सूर्य पूजा , अग्नि पूजा , अन्न जल पूजा वगैरा कोई लिंग योनी वाले देवी देवताओ की पूजा नही बल्कि प्रकृति पूजा है |


जो की सबके लिए बराबर है , न कि अमेरिका में अलग सूर्य उगता है , और भारत में अलग सूर्य उगता है | बल्कि अलग से एक और सूर्य उगता भी तो वह सबके लिए उगता | क्योंकि प्रकृति सबके लिए है , न कि हवा पानी पर सिर्फ मनुवादीयो का अधिकार है कि वह अन्न जल की पूजा में यह कहकर रोक लगाये कि अन्न देवता , जल देवी की पूजा करना शूद्र के लिए मना है | हाँ यदि मनुवादी अपने पूर्वजो का नाम किसी प्रकृति से जुड़े नाम जैसे की प्रकृति हवा पर पवनदेव और सूर्य पर सूर्यदेव रखकर अपने पूर्वजो की मूर्ति मंदिरो में स्थापित करके उसकी पूजा करने से मना करे तो उसे वैसे भी मनुवादियो के उन पूर्वजो की पूजा कभी भी नही करनी चाहिए जो की इस देश में प्रवेश करके यहाँ के मुलनिवासियो के साथ लुटपाट भी करते रहे हैं , और गुलाम बनाकर शोषण अत्याचार भी करते रहे हैं | जिनकी पूजा करना मतलब गुलाम बनाने वालो की पूजा करना | याद रखना भगवान पूजा किसी मनुवादियो के पूर्वजो की पूजा नही है | मनुवादियो के पूर्वज तो लिंग योनी वाले इंसान ही थे , जो कि इंसान से ही संभोग करके अपना वंशवृक्ष बड़ाकर इंसानो की तरह ही जन्म लेकर मृत्यु को प्राप्त कर गए | जो अब जिवित नही हैं इस धरती में विचरन करने के लिए | मौजुद होते तो उनकी निर्जिव मूर्तियो और काल्पनिक तस्वीरो की पूजा नही होती | बल्कि मनुवादि अपने पूर्वजो को प्रेसवर्ता में बुलाकर पुरी दुनियाँ के सामने प्रमाणित करते कि उनके पूर्वज ही चमत्कारी देवी देवता हैं , जो कि पुरी दुनियाँ को चलाते हैं , जिनकी पूजा सारे धर्म के लोग करें |


दुनियाँ में बहुत सारे लोग भगवान या ईश्वर नाम रखे मिल जाएंगे तो क्या लोग उनकी पूजा करते हैं ? 


बिल्कुल नही , जैसे कि सूर्य पूजा हवा पानी और अन्न वगैरा पूजा किसी लिंग योनी वाले देवी  देवताओ की पूजा नही बल्कि प्रकृति पूजा है | जिस प्रकृति की कृपा से सभी की जिवन चल रहा है | जो प्रकृति न हो तो न कोई धर्म रहेगा और न ही कोई धर्म को मानने वाले लोग रहेंगे | मंदिर मस्जिद चर्च वगैरा तो वैसे भी पहले नही थे , जिसे इंसानो ने ईट पत्थर बालू वगैरा से बनाया है | वह भी प्रकृति की ही कृपा से प्रकृति में मौजुद पदार्थो से | जिसे इंसान अपने भितर से पैदा नही करता बल्कि कोई खोज या बनाता भी है तो वह प्रकृति में ही पहले से मौजुद पंचतत्वो को अलग रुप या नाम प्रदान करता है | इंसान द्वारा अलग से प्रकृति से अलग कोई अलग दुनियाँ पैदा कभी भी नही किया जा सकता | हाँ सिर्फ वह प्रकृति से अलग दुनियाँ की कल्पना अलग अलग तरिके से जरुर कर सकता है | जैसे कि वह हजारो सालो से प्रकृति से अलग किसी दुसरी दुनियाँ में स्वर्ग नर्क की बाते करता भी आ रहा है | पर उसकी काल्पनिक सोच में वही बाते सत्य साबित हो सकती है जो की प्रकृति में मौजुद है | जैसे कि यदि इंसानो द्वारा सोची गयी स्वर्ग नर्क यदि वाकई में मौजुद होगी तो वह प्रकृति में ही मौजुद होगी | और वहाँ मौजुद सारी व्यवस्था प्रकृति विज्ञान द्वारा प्रमाणित होगी तब जाकर वह सत्य साबित होगी | नही तो फिर इसी तरह सिर्फ कल्पना में ही लोग स्वर्ग नर्क की बातो पर विश्वास करके यह सोचते रहेंगे कि इंसान मरने के बाद स्वर्ग नर्क चला जाता है ! जबकि हिंदू धर्म के मुताबिक असल में वह प्रकृति पंचतत्व से जन्म लेकर मरने के बाद वापस पंचतत्व में ही विलिन हो जाता है , दुसरा रुप धारन करने के लिए | बल्कि इंसान ही नही सूर्य चाँद तारो को भी एकदिन प्रकृति में ही विलिन होकर अलग नया रुप धारन करना पड़ता है | जो की प्रकृति की प्रमाणित सच्चाई है , न कि कोई कल्पना है ! मरे हुए इंसान को चाहो दफन करो या जलाओ या फिर चाहे किसी भी विधि से अंतिम संस्कार करो वह वापस प्रकृति पंचतत्व में ही विलिन होता है |

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