मनुवादी शासन में बजट कैसा रहता है ?

मनुवादी शासन में बजट कैसा रहता है ?

khoj123,बजट2020

मनुस्मृति सोच के अनुसार उच्च जाति छोड़कर बाकि किसी को धन रखने का अधिकार नही है | मनुवादी के लिए धन लक्ष्मी का मतलब वह नारी नही जिसके लिये ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी सोच से मनुवादियों ने नारी को भी दासी बनाकर अपने वंशवृक्ष को बड़ा किया है | इसलिए नारी यदि मनुवादी शासन में बजट मंत्री भी बने तो भी वह मनुवादियों की उस सोच के विरुद्ध बजट कभी नही बना सकती जिससे की मुलनिवासियों की गरिबी भुखमरी समाप्त होकर मनुवादियों के जेब खाली होता चला जाय और अमिरी गरिबी के बिच जो बड़ी खाई पैदा हो गया है वह भरकर संतुलित हो जाय | याद रहे धन लक्ष्मी धन लक्ष्मी कहकर मनुवादि सबसे अधिक धन का मालिक बन गया है , न कि नारी का | क्योंकि नारी यदि मनुवादियों के लिए धन लक्ष्मी होती तो आज मनुवादी अल्पसंख्यक और इस देश के मुलनिवासी बहुसंख्यक नही होते | बल्कि यदि धर्म के नाम से देश का बंटवारा न होता तो जनसंख्या के मामले में दुसरा स्थान नही सिधे चीन से भी आगे अथवा पहला स्थान होगा | जो अभी भी है यदि इस देश से अलग हुए देश वापस एक हो जाय | यकिन न हो तो इस देश से अलग हुए सभी देशो की जनसंख्या को जोड़कर पता कर लिया जाय की चीन से अधिक जनसंख्या होती है कि नही ? जिस जनसंख्या में बहुसंख्यक अबादी कोई विदेशी डीएनए नही है | बल्कि अलग हुए सभी देशो के बहुसंख्यक अबादी के नागरिको के रगो में भी उस सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाने वाला सागर जैसा विशाल कृषि प्रधान देश का dna दौड़ रहा है , जिसने न जाने कितने घुमकड़ कबिलई को अपने भितर समा लिया है | जिन कबिलई में चूँकि बांटो और राज करो की सोच से प्रवेश करने वाले कबिलई भी प्रवेश किये हैं जिनकी वजह से यह विशाल सागर जैसा देश धर्म के नाम से खंड खंड हो रहा है | क्योंकि कृषी प्रधान सोच की मुलनिवासी सत्ता जाने के बाद कबिलई सोच से ही देश का शासन तब से चल रहा है जबसे इस देश में मुलनिवासियों की सत्ता कायम हो इसकी संघर्ष आंदोलन चल रहा है | मनुवादी कबिलई ही तो है जिनका डीएनए जिन यहूदियो से मिला है वे कबिलई ही तो हैं | जिस यहूदियों का दो कबिला था जिसमे से एक अपनी घुमकड़ जिवनशैली को स्थिरता प्रदान करने के लिये समझदारी से इजराईल में स्थिर होने की कोशिश किया और पुरी दुनियाँ के यहूदियो को वहाँ पर वापस बसाया गया | पर ध्यान रहे दुसरा कबिला लापता है | अभी जो दिन रात अस्थिरता की आग जो लगी हुई है उस बिच स्थिर होने की पुरी कोशिष में लगा हुआ है वह तो छोटा पहला कबिला है | यहूदियो का बड़ा कबिला तो अब भी उनके लिये लापता है | जो कबिला पुरब की ओर आया था ऐसा जानकाबांटा जाता है | इसलिए पुरब में आया यहूदियो का बड़ा कबिला मनुवादी कबिला हो सकता है | क्योंकि मनुवादियों का डीएनए यहूदियो से मिल गया है | और जहाँ तक मुझे पता है मनुवादियों की जनसंख्या यहूदियो से ज्यादा भी है | निश्चित तौर पर यदि मनुवादि कबिला बड़ा कबिला है तो इस कृषि प्रधान देश में हिन्दू का नकाब लगाकर स्थिर होने की कोशिष में लगा हुआ कबिला वही दुसरा कबिला है जो यहूदियों का लापता कबिला  है | जो सायद कबिलई झुंड बनाकर घुमकड़ जिवन बिताते हुए सोने की चिड़ियाँ में पर प्रवेश करके इस देश की सभ्यता संस्कृती और समृद्धी से इतना प्रभावित हुआ कि खुदको कृषि प्रधान देश का हिन्दू कहने पर गर्व करने लगा है | लेकिन चूँकि कबिलई का हुनर कृषी प्रधान देश को चलाने की नही है | इसलिए मनुवादी सत्ता में जमिन से जुड़ा हुआ कृषि प्रधान शासन नही चल रहा है | क्योंकि मनुवादियों को हल चलाना ही नही आता है तो वे क्या कृषि प्रधान देश को ठीक से चला पायेंगे | जिसके चलते उनकी कबिलई सोच की सत्ता में ऐसी कबिलई बजट होती है , जिसमे कृषि को खास महत्व नही दिया जाता है | क्योंकि वे कबिलई नेतृत्व बेहतर कर सकते हैं | इसलिए तो वे कबिलई देशो की तरह इस सागर जैसा विशाल कृषि प्रधान देश को भी छोटे छोटे टुकड़ो में बांट रहे हैं | पर चूँकि सागर बंटकर भी अपना सागर पहचान नही खोता है , इसलिए यह कृषि प्रधान देश धर्म के नाम से कई टुकड़ो में बंटकर भी कई कबिलई देशो के बराबर इस देश के कई राज्य भी बंटने पर भी बड़े होते हैं | जिन बंटे हुए सभी देशो और राज्यो को यदि वापस जोड़ा जाय और तमाम उपलब्धियों को भी वापस जोड़ा जाय तो आज भी यह देश शैतान सिकंदर को जिस तरह सिर्फ एक राज्य का ही राजा ने धुल चटाकर हाफ मडर करके वापस लौटने को मजबूर किया था , और शैतान सिकंदर तब की राजधानी पाटलिपुत्र महुँचने से पहले किनारे से हि निकल गया था , उसी तरह यदि अभी भी कोई विश्व लुटेरा न० 1 बनने की सपने शैतान सिकंदर की तरह ही देखता होगा तो उसे भी धुल चाटना होगा यदि इस देश की मुलनिवासी सत्ता वापस कायम हो जायेगी | जो जबतक कायम नही होगी तबतक कबिलई बजट बनती रहेगी और इस देश का किसान कर्ज में डुबता चला जायेगा | किसानो की बुरी स्थिती को ठीक करने के लिए सरकारी खजाने में धन नही है कहकर धन्ना कुबेरो की महंगी महंगी भोग विलाशी स्थिति को और अधिक भोगविलाशी अपडेट करने के लिये धन्ना कुबेरो की स्थिति ठीक करनी है और सरकारी खजाना खाली है कहकर उन्हे भर भरकर माफी और छुट बजट में मिलती रहेगी | क्योंकि जैसा कि मैने बतलाया मनुवादि सोच कृषि सोच नही है | जिन मनुवादियो के पुर्वज तो मनुस्मृति लागु करके खुदको जन्म से कथित उच्च जाति और बाकियो को निच घोषित करके निच जातियो के पास धन मौजुद न हो ऐसा नियम कानून बनाये थे | जो नियम कानून तो खैर अब मनुस्मृति को भष्म किये जाने के बाद अजाद भारत का संविधान लागू होकर नही बनाये जा सकते हैं , पर चूँकि मनुवादियों की मनुस्मृति सोच अब भी कायम है , इसलिए जबतक मनुस्मृति सोच से मनुवादी सत्ता कायम रहेगी तबतक मनुवादि ज्यादे से ज्यादे प्रयाश यही करते रहेंगे कि इस देश के मुलनिवासी के पक्ष में बजट न हो , और ज्यादे से ज्यादे लाभ मनुवादियों को ही होता रहे | ताकि मुलनिवासियों की ज्यादे से ज्यादे अबादी गरिबी भुखमरी का जिवन जीता रहे | जिनसे गरिबी हटाओ का नारा लगवाकर वोट लेना भी जारी रहे | पर गरिबी हटाओ सरकार चुनाकर आए तो मनुवादी गरिबी हटाने के बजाय धन्ना कुबेरो को सरकारी धन भर भरकर लुटाता रहे | जिस तरह की बजट बनाने के लिये इस देश के उन मुलनिवासियों को ही इस्तेमाल किया जा रहा है , जिन्हे या तो लालच समा गया है या फिर उनको लगता है चूँकि मनुवादी सत्ता कभी जायेगी ही नही इसलिए बाकि मुलनिवासियों को गरिबी भुखमरी में मरने दो कम से कम खुद तो खा पीकर मरो | जिन्हे खा पीकर मरना ही है तो मनुवादियों की सरकार में चुनाकर खा पीकर मरने की जरुरत क्यों किसी मुलनिवासी पार्टी में ही खा पीकर मरे या फिर खुदकी पार्टी बनाकर खा पीकर मरे | क्योंकि गोरो की सत्ता चली गयी तो ये मनुवादी तो गोरो के हाथो से अपने हाथो में सत्ता लेने के लिये गोरो से अकेले लड़ ही नही पाते थे | बल्कि गोरे तो मनुवादियों को भी काला इंडियन कहकर पिटते कुचलते थे | जैसा का उन्होने कथित उच्च जाति के गाँधी को रेल से बाहर फैंक दिया था | सिर्फ इसलिए क्योंकि गाँधी ने गोरो की बराबरी का रेल टिकट लेकर गोरो की तरह सुट बुट पहनकर बिना भेदभाव के रेल सफर गोरो के साथ बैठकर करना कोई बड़ी बात नही है यह सोचकर गोरो से बराबरी सफर करने की सोच लिया था | जो बराबरी सफर सायद इसलिए करने को सोचा होगा क्योंकि उन्हे लगा होगा कि वे तो कथित उच्च जाति के हैं निच जाति के नही हैं , निच जाति तो इस देश के मुलनिवासी हैं , जिनके साथ हजारो सालो से छुवा छुत होता आ रहा है | पर चूँकि गोरे अपने शासन के दौरान छुवा छुत करने वाली कथित उच्च जाति के साथ भी भेदभाव कर रहे थे | जाहिर है गोरो का शासन यदि अब होती तो वे मनुवादियो को भी गुलाम बनाकर रखते यदि इस देश के मुलनिवासियों का साथ लेकर मनुवादी लोग वापस अपनी मनुवादी सत्ता कायम नही करते | रही बात फिर मुलनिवासियों का क्या होता तो इस देश के मुलनिवासीयों को तो गोरो से भी पहले मनुवादियों ने दास दासी बनाकर शोषण अत्याचार करते आ रहे हैं | जिससे अजादी पाने के लिये हजारो सालो से अजादी संघर्ष चल रही है जिस बिच गोरे भी गुलाम करने आ गए थे | जिनसे अधुरी अजादी तो मिल गयी पर पुरी अजादी का संघर्ष अब भी मनुवादियों के खिलाफ चल रही है | जो शोषण अत्याचार गुलामी एक झटके में समाप्त हो सकती है यदि जिन मुलनिवासियों को घर का भेदि बनाकर मनुवादी राज कर रहे हैं वे सभी मुलनिवासी भी मनुवादीयों का साथ देना छोड़ दें | जो न तो मनुवादीयों के पार्टी से चुनाव लड़े और न ही उन्हे वोट दे | मनुवादी पार्टी चुनाव ही नही जितेगी तो मनुवादी सत्ता वापस कायम कैसे होगी ? क्योंकि यदी चुनाव घोटाला भी करके चुनाव जीता जा रहा है जो की हो ही रहा है यह मैं भी मानता हूँ , तो भी चुनाव घोटाला करके भी कम से कम आरक्षित सीट में  मनुवादी कैसे चुनाव घोटाला करेंगे जब वे वहाँ से चुनाव ही नही लड़ सकते ! जिन सीटो से वे घर का भेदी तैयार करके CAA जैसे मनुवादी भेदभाव सोच का नियम कानून बनाया जा रहा है | क्या लगता है संसद में मनुवादीयों की सांसद अबादी इतना है कि वे ऐसे कानून को बिना मुलनिवासी सांसद के पास कर लेंगे ? और तो और मनुवादियों ने तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे पदो पर भी अपना मन मुताबिक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बैठाने में भी कोई कसर नही छोड़ा है | जो मुलनिवासी यदि सभी मिलके caa जैसे जितने भी फैशले लियो जाते हैं उसका विरोध करके अब मनुवादियों का साथ कभी नही देंगे कहकर कान पकड़ ले तो मनुवादी सत्ता एक झटके में चली जायेगी | 

अब तो कांग्रेस पार्टी जो भी मनुवादी पार्टी है वह वापस 2024 ई०  में भाजपा के हाथ से सत्ता अपने हाथ में लेने की सपने देखना सुरु कर दी है |

khoj123,बजट2020

 जिसके लिये उसने तमाम राज्यों के मजबुत क्षेत्रीय पार्टियों को भाजपा को हराना है और वापस गरिबी हटाओ शासन कायम करना है बरगलाकर दरसल अपनी मनुवादी सोच से समझौता करते हुए रैली प्रदर्शन भाजपा के विरोध में ऐसी कर रही है जैसे उसकी जब शासन कायम होगी तो मुलनिवासियों का शासन कायम हो जायेगी | जो कांग्रेस लगभग साठ सालो की गरिबी हटाओ और आधुनिक भारत का नारा देकर राज की लेकिन अब भी करिब तीस चालीस करोड़ लोग गरिबी रेखा से भी निचे की जिवन जी रहे हैं , जिसे देख सुन पढ़कर क्या लगता है मनुवादी कांग्रेस इस देश की मुलनिवासी पार्टी है जिसने आजतक एक भी दलित को प्रधानमंत्री नही बनाया है | बल्कि कांग्रेस ने तो सुरुवात में ही सभी राज्यों का मुख्यमंत्री ब्रह्मणो को बनाया था | मुलनिवासी पार्टी होती तो ये कदम उठती क्या ? बिल्कुल नही कांग्रेस भाजपा दोनो ही मनुवादी पार्टी है | जिन पार्टियों को न वोट दिया जाय और न ही उन पार्टियों से चुनाव लड़ा जाय | तभी जाकर मनुवादीयों से आमने सामने की लड़ाई होगी अन्यथा आपस में ही लड़कर देश में सरकार मनुवादियों की ही बनती रहेगी | जैसे की गोरे भी आपस में लड़ाकर राज कर रहे थे | जिनकी भी अबादी देश की अबादी से 15% भी नही होगी पर वे पुरे देश के साथ साथ कई और देशो को भी गुलाम बनाये हुए थे आपस में लड़ाकर !  मनुवादी भी उसी फुट डालकर राज करो की नीति को ही अपनाता है | जो कबिलई की फेवरेट नीति है | जिसका तोड़ एकजुट होकर फुट डालने वाले की हाथो से सत्ता वापस लेकर मुलनिवासी सत्ता कायम होनी चाहिए | ताकि वापस उस तरह की सुख शांती और समृद्धी शासन कायम हो सके जब न कोई मुलनिवासी दास बनाया जाता था और न ही गुलाम | क्योंकि तब न तो ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़न के अधिकारी सोच रखने वाले मनुवादियों का शासन था और न ही कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है गेट पर लिखने वाले गोरो का शासन था | क्योंकि तब मुलनिवासी शासन कायम था | जो अभी नही है |  जिस मुलनिवासी सत्ता के बारे में जिन मुलनिवासियों को अब भी भ्रम कायम है वे मुलनिवासी शासन कायम नही है इसकी झांकी निचे दी गयी है उसे जानकर ही समझ लें मनुवादी शासन में किस तरह की भेदभाव सोच से न्याय भी कायम होता है | 
पुर्व लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा जो की ST से आते हैं , जिस ST को भी अबतक प्रधानमंत्री नही बनाया गया है | उसी ST परिवार में जन्मे कड़िया मुंडा की रिपोर्ट 2000 ई०
जिसमे सबसे पहले देश की राजधानी दिल्ली से ही सुरुवात की जाय!
(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC जात के 35 जज ,SC जात के 15 जज ,ST जात के 5 जज शामिल हैं!

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