मनुवादी बहला फुसलाकर लालच देकर गांड़ मारने के लिए किस तरह के जिवन जी रहे लोगो को खोज रहे होते हैं

मनुवादी बहला फुसलाकर लालच देकर गांड़ मारने के लिए किस तरह के जिवन जी रहे लोगो को खोज रहे होते हैं
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मनुवादियों का तारिफ करने वाले और अपने ही डीएनए के लोगो को बेवकुफ और जाहिल बताने वाले भी तो मनुवादीयों का चाटुकार बनकर उन्हे लाभ पहुँचा रहे होते हैं | क्योंकि मनुवादी का तारीफ करने वालो को मनुवादियों की ही तरह चतुर और बुद्धीवाला बनने की इच्छा जरुर मन में होती होगी यह विचार करके कि मनुवादियों द्वारा अपनी चतुराई और बुद्धीमानी से जिन अनपढ़ गंवार लोगो का शोषण अत्याचार किया जाता है , वैसा कभी नही बनना है | जिस तरह का विचार करके  घर का भेदी बनने में देर नही लगता है तथाकथित उनके अनुसार उच्च चतुर और बुद्धी वाले लोगो की गलत संगत में आकर | वैसे चतुर और उच्च बुद्धीवाले लोग जिनके रचे मनुस्मृति जैसे संविधान को पुरी दुनियाँ की कोई भी सरकार लागु करना तो दुर उसकी चर्चा भी नही करना चाहेगी | यकिन न आये तो कभी किसी देश की सरकार अपने संसद में यह चर्चा कराये कि मनुस्मृती के बुद्धी ज्ञान के मुताबिक प्रजा सेवा करना कैसा सेवा रहेगा ? रामराज की बड़ाई तो सिर्फ मनुवादी या फिर ब्रेनवाश मनुवादी भक्त करते हैं | जो यदि राम के आदर्शो में सचमुच में चले तो उनको भी अपने परिवार के साथ सुख शांती जिवन जिने का परिवार समाज अवसर नही बल्कि सबसे बेहत्तर जिवन सिर्फ दिखावे की प्रचार प्रसार करके जिते जी नदी में डुबने का अवसर प्राप्त हो सकता है | और उनकी पत्नी को भी जीते जी धरती में समाना पड़ सकता है | जो सच्चाई रामराज के बारे में जिनको नही पता वे पहले रामराज की भेदभाव शंभुक हत्या , सीता द्वारा अति दुःखी होकर रोते बिलकते जिते जी धरती में समाना , बल्कि राम द्वारा भी अपनी प्रजा को छोड़कर जीते जी नदी में डुबना जैसी रामराज घटना के बारे में पता कर लें , जिन्हे सायद ये सब पता ही नही है या फिर वे बहुत बड़ी गलतफेमी का शिकार हैं की राम सीता लव कुश और शंभुक प्रजा रामराज में सबसे सुखी जिवन जिकर हसते गाते हुए रामलीला समाप्त हुआ था | या फिर रामराज रामराज और हरे राम हरे राम वगैरा रटवाकर उनके दिमाक को इतना ब्रेनवाश कर दिया गया है कि वे किसी गुलाम से भी ज्यादा गुलाम बने हुए हैं , रटवाने वाले उन लोगो का जो मुल हिन्दू भी नही हैं | बल्कि उनका डीएनए यहूदियों से मिलता है | जिन मनुवादीयों द्वारा होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार मनाते हुए हिन्दू धर्म कब अपनाया गया यह जानकारी उनके रचे मनुस्मृति में भी दर्ज नही मिलता है | क्योंकि सच्चाई तो यही है कि छुवा छुत करने वाले मनुवादियों ने न तो मुल हिन्दूओं के द्वारा आपस में मिल जुलकर बिना भेदभाव के होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार मनाते हुए खुशियों का मेला लगाना आजतक खुदको हिन्दू कहते हुए भी सीखा है , और न ये छुवा छुत करने वाले कबिलई लोग मुल हिन्दूओं की तरह कभी कृषि प्रधान सेवा भी कर सकते हैं |


जिसका सबसे साक्षात उदाहरन गोरो का शासन समाप्ती के बाद आई लेटेस्ट वर्जन आधुनिक शाईनिंग डीजीटल अपडेट


वर्तमान की मनुवादी शासन कायम में भी लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में अल्पसंख्यक मनुवादीयों द्वारा बहुसंख्यक कब्जा जमाकर भी अपना देश और प्रजा सेवा किस तरह से कर रहे हैं , इसकी सच्चाई पुरी दुनियाँ के सामने मौजुद है | जो लोग वर्तमान के समय में भी पुरे यूरोप से भी अधिक अबादी को गरिबी रेखा से भी निचे की जिवन प्रदान करने की सेवा अपने खास करिबियों को छप्पन भोग कराकर धन का अंबार लुटाकर गरिबी को ढककर कर रहे हैं | क्योंकि ये खास करिबी इनकी झुठी शान को बड़ाने में खास मदत करते हैं | जिन झुठी शान में डुबे हुए कथित उच्च लोगो की पुजा तक हिन्दू भगवान कहकर हो रही है | जिससे ज्यादे सुधरने का मौका और क्या मिल सकता है मनुवादियों को | जिनकी पुजा होते हुए देख सुन और पढ़कर इस देश के मुलनिवासी चाहे जिस भी धर्म में मौजुद हो वे अपना धर्म परिवर्तन करके अपने अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए किसका धर्म सबसे अच्छा और कौन धर्म सबसे खराब बहस करके आपस में ही न लड़ें | यह जानते हुए कि पुरी दुनियाँ में किसी का धर्म सबसे अच्छा नही है | और सभी धर्मो में दुसरे धर्मो के लोगो के लिए बहुत सारी बुराई और खराबी मौजुद है | जो न होती तो सभी धर्मो के लोग सभी धर्मो के धर्म पुस्तको को किसी छात्र की तरह भारी बस्ता में भरकर अपने अपने पुजा स्थलो में उसकी पढ़ाई यह सोचकर करते रहते कि इन सबकी ज्ञान लेना और उसे अमल में लाना सभी धर्मो में उतना ही जरुरी है जितना की अपने अपने धर्मो की धर्म पुस्तको की ज्ञान जरुरी है | क्योंकि अपनी अपनी आस्था और विश्वास के मुताबिक सभी धर्मो को इंसानो ने ही बनाया है | जिनमे से कोई भी धर्म ऐसा नही जिसपर विश्वास करके सभी इंसान उसे अपना लेंगे कि उसे सिधे उसने भेजा है जिसकी पुजा अभी और पहले भी अलग अलग धर्म बनाकर अलग अलग पुजा स्थल मंदिर मस्जिद चर्च बनाकर होती है | जिसके बावजुद भी यह धर्म सबसे अच्छा वह धर्म सबसे खराब बहस करके आपस में लड़ने मरने से अच्छा है सभी धर्मो में मौजुद शोषित पिड़ित मुलनिवासी लंबे समय से शोषण अत्याचार करने वाले मनुवादियों का सत्ता समाप्त करने में एकजुट होकर इस बारे में बहस करें कि जो मुलनिवासी मनुवादी सत्ता कायम रहने में अबतक भी मनुवादीयों का साथ देना नही छोड़ पा रहे हैं | जो चाहे जिस भी धर्म में मौजुद हो वे मनुवादीयों का साथ देना छोड़ दें ! खासकर वे मुलनिवासी जिनको आयेदिन मनुवादीयों का तलवा चाटने वाले चाटुकार बंदर कहकर उनके खिलाफ तेज बहस चलने लगी है | और उनके खिलाफ तेज बहस होनी भी चाहिए , क्योंकि जैसा कि हमे पता है कि घर के भेदि विरोधियों से भी ज्यादे विनाशकारी साबित होते हैं | जिनके बिना मनुवादी सत्ता कायम हो ही नही सकती इसके प्रमाण इतिहास और वेद पुराण में भी भरे पड़े हैं | जिन घर के भेदियों को दरसल झुठी शान का लालच और डर कुट कुटकर भरी हुई रहती है | जिनको सबसे ज्यादे लालच मनुवादीयों की तरह झुठी शान की होती है | जो उन्हे अपने पुर्वजो की मान सम्मान शासन से ज्यादे किमती मनुवादियों के द्वारा किये जा रहे शोषन लगती है | जिसके चलते वे अपने पुर्वजो की सत्ता को प्राप्त करने के बजाय विरोधियों का शोषन कायम रखने में सहयोग करके झुठी शान प्राप्त करने के लिए विरोधियों का तलवा चाटकर या मनुस्मृति रचने वाले मनुवादियों को  चतुर और विद्वान बताकर उनकी बड़ाई करके एक प्रकार से अपने ही DNA के लोगो का शोषण अत्याचार करने की सुपारी दिन रात देते रहते हैं | इसलिए तो अक्सर यह इतिहास दर्ज होता रहता है कि शोषित पिड़ित परिवार में पैदा हुए घर के भेदीयों की वजह से मनुवादियों को सत्ता प्राप्त हुई | बल्कि जो भी लोग मनुवादियों के खिलाफ जानकारी इकठा करके उनके द्वारा किये गए कुकर्मो के बारे में बताकर दिन रात मनुवादियों से अजादी पाना हिन्दू धर्म को छोड़ देने से मिल जायेगी ये झुठ बांटकर मनुवादियों को चतुर और विद्वान बतलाते हैं , ऐसे लोगो में भी बहुत से ऐसे खोटे सिक्के मिल जायेंगे जिनको मनुवादी द्वारा अपने गलत संगत में लाकर उनकी बुद्धी को भ्रष्ट करके मौका मिलते ही मनुवादी संगठन में शामिल करके घर का भेदी बनाकर मनुवादी उनका गांड मारना सुरु कर देते हैं | जिनकी पहचान करनी है तो ऐसे घर के भेदी कौन लोग बन सकते हैं यह जानने के लिए अपने आस पास ऐसे लोगो की पहचान करो जिन्हे झुगी झोपड़ी के लोगो के सुख दुःख में शामिल होते हुए न के बराबर देखा जाता है | या फिर वे गरिबो से दुरी हमेशा बनायें रखते हैं | क्योंकि उन्हे भी मनुवादियों की तरह झुठी शान का जिवन जिते हुए दुःखी पिड़ित गरिब अनपढ़ लोगो के दुःख सुख में शामिल होने से शर्म महसुश होती है | वहीं यदि मनुवादी जैसे शोषण अत्याचार करने वाले लोगो के पास झुठी शान की यदि कालाधन अमिरी भी रहती है तो उनके आस पास बल्कि कई मामलो में तो उनके साथ खाते पिते उठते बैठते ऐसे दिखते हैं , जैसे कि मानो उनके भितर उनका ही डीएनए दौड़ रहा होता है | जबकि वहीं अपने ही डीएनए के परिवार समाज के लोगो को अनपढ़ जाहिल कहकर मजाक उड़ाते हुए दिखते हैं | ऐसे फुटानी करने वाले और अनपढ़ गरिब से दुरी बनाने वाले लोगो को तो कभी भी किसी उच्च नेतृत्व देनी ही नही चाहिए चाहे वे कितना विद्वान और ताकतवर हो | हलांकि सही मायने में ऐसे लोग विद्वान और ताकतवर होते भी नही हैं | जिस तरह के लोगो को ही तो मनुवादी घर का भेदी बनाने के लिए अथवा बहला फुसलाकर लालच देकर गांड़ मारने के लिए खोज रहे होते हैं |

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