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गुरुवार, 16 जनवरी 2020

न्यायालय पर कभी जज बनकर गोरे देश गुलाम करके न्याय करते थे

न्यायालय पर कभी जज बनकर गोरे देश गुलाम जैसा न्याय करते थे
न्यायालय,khoj123,भेदभाव,शोषण,अत्याचार


अक्सर जब कभी भी न्याय की बाते होती है तो यही लिखा मिल जायेगा कि सत्यमेव जयते , अथवा सत्य की जीत होती है | शिव को सत्य के रुप में पुजा जाता है | जो कृषि में सहयोग करने वाले बैल में बैठे या फिर खुले आसमान के निचे योग में लिन रहते हैं | जिससे न्याय पाने के लिए ग्रामीण शहरी दोनो ही आसानी से संपर्क कर सकते हैं | जैसे की ग्रामीण पंचायत से संपर्क किया जा सकता है , गोरो का बनाया न्यायालय से नही ! जिस न्यायालय का भविष्य नही है ,बल्कि न्यायालय को तो तुरंत बंद करके करोड़ो केश को पंचायत को अपडेट करके सौंप देनी चाहिए | बल्कि संविधान की रक्षा और उसे ठीक से लागू करने की भी जिम्मेवारी पंचायत को ही सौंप देनी चाहिए | शहरी वार्ड पार्षद के पास भी पंचायत व्यवस्था लागू होनी चाहिए | ताकि गरिब अमिर दोनो के लिए न्याय उसके घर आंगन के पास मिले अथवा उसके लिए न्याय दौड़ धुप बिल्कुल मानो मुफ्त और आसान हो | जो अभी के न्यायालय में उपर स्तर की कोर्ट तो क्या सबसे निचले स्तर की कोर्ट के लिए भी गरिबो के लिए तो मानो किसी निजि अस्पताल का चक्कर काटने से भी ज्यादे दुःखदाई है | जिस दुःख के बारे में उन लोगो को क्या पता जो एसी कमरो में और एसी गाड़ी में बैठकर न्यायालय को पंचायत से बेहत्तर बतलाते हैं | मैं खाप पंचायत की बात नही कर रहा हूँ , बल्कि उस हजारो साल का अनुभव युक्त ग्रामीण पंचायत की बात कर रहा हूँ जिसकी मान्यता को संविधान भी मानता है | रही बात वर्तमान में मौजुद न्यायालय की तो वह तो सिर्फ सैकड़ो साल का अनुभव गोरो के द्वारा बनाई गई न्यायालय है | जहाँ पर कभी जज बनकर गोरे देश गुलाम जैसा न्याय करते थे | उसी तरह आज मनुवादि भी ज्यादेतर किस तरह न्यायालय पर बैठकर हक अधिकारो को लुटकर भेदभाव शोषण अत्याचार कर रहे हैं , जिसकी झांकी कम से कम शोषित दुःखी पिड़ितो द्वारा एकबार जरुर देख पढ़ लिया जाय | और इस जानकारी को हो सके तो कम से कम दस लोगो तक जरुर पहुँचाया जाय | अथवा ज्ञान बांटा जाय | क्योंकि ज्ञान बांटने से बड़ता है और छिपाने से घटता है |
 पुर्व लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा की रिपोर्ट 2000 ई० को :-
(1) दिल्ली में कुल जज 27 जिसमे
ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(2) पटना में कुल जज 32
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
(3) इलाहाबाद में कुल जज 49 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(4) आंध्रप्रदेश में कुल जज 31 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(5) गुवाहाटी  में कुल जज 15 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
(6) गुजरात में कुल जज 33 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )
(7) केरल में कुल जज 24
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(8) चेन्नई में कुल जज 36 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
(9) जम्मू कश्मीर में कुल जज 12 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )
(10) कर्णाटक में कुल जज 34
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(11) उड़िसा में कुल -13 जज जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
(12) पंजाब-हरियाणा में कुल 26 जज
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय - 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
(13) कलकत्ता में कुल जज 37 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(14) हिमांचल प्रदेश में कुल जज 6
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(15) राजस्थान में कुल जज 24
जिसमे से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 24 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(16)मध्यप्रदेश में कुल जज 30 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 30 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(17) सिक्किम में कुल जज 2
जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
(18) मुंबई  में कुल जज 50 जिसमे ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )
कुल मिलाकर 481 जज में से ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय 426 जज , जबकि OBC के 35 जज ,SC के 15 जज ,ST के 5 जज शामिल हैं!

बुधवार, 15 जनवरी 2020

मकर संक्रांति का पर्व त्योहार क्या यूरेशिया से आए मनुवादियों की देन है ?

मकर संक्रांति का पर्व त्योहार क्या यूरेशिया से आए मनुवादियों की देन है ?

मकर संक्रांति   (खिचड़ी,पौष संक्रांति,  मकर संक्रमण,पोंगल,उत्तरायण,लोहड़ी,बिहु,शिशुर सेंक्रांत इत्यादि) जैसे पर्व त्योहारो

बारह राशि और नौ ग्रहो अथवा प्राकृतिक अधारित हिन्दू कलैंडर और उसके अनुसार मनाई जानेवाली मकर संक्रांति 
(खिचड़ी,पौष संक्रांति,
मकर संक्रमण,पोंगल,उत्तरायण,लोहड़ी,बिहु,शिशुर सेंक्रांत इत्यादि) जैसे पर्व त्योहारो को इस देश के मुलनिवासी क्या नही मना रहे हैं ? जिसे यूरेशिया से आए मनुवादियों की खोज आविष्कार बताने वालो को सत्य बुद्धी मिले इसकी कामना करता हूँ ! जिनकी बुद्धी में यदि मनुवादियों का संक्रमण हो गया है तो सूर्य का संक्रमण मकर में होने के साथ ही उनकी बुद्धी में शुभ लाभ हो ! खासकर उन लोगो को जिनके पास उच्च ज्ञान की डिग्री होते हुए भी अबतक भी यह ज्ञान प्राप्त नही हुआ है , या फिर मनुवादियो का संक्रमन उनका दिमाक न सह पाने की वजह से उनकी बुद्धी में परिवर्तन हो गया है ! जिनकी बुद्धी वापस आए और वे फिर से यह जान सके कि मनुवादियों की खोज और आविष्कार हिन्दू कलैंडर मनुवादियों की रचना और खोज आविष्कार नही है , बल्कि इस देश के मुल निवासियों की खुदकी खोज आविष्कार रचना है | न कि यूरेशिया से आए मनुवादियो की रचना है | और वैसे भी हिन्दू कलैंडर , अंग्रेजी कलैंडर से कहीं ज्यादे पुराना है | बल्कि अंग्रेजी कलैंडर दरसल हिन्दू कलैंडर का ही कॉपी करके उसमे कुछ बदलाव करके अपडेट किया गया है | अंग्रेजी कलैंडर रचना करते समय नौ महिना का एक साल पहले किया गया , फिर हिन्दू कलैंडर का कॉपी करके उसे बारह महिना का एक साल किया गया | जाहिर है हिन्दू कलैंडर अनुसार मनाई जानेवाली पर्व त्योहार यूरेशिया से आए मनुवादियों की खोज आविष्कार रचना नही है | हाँ चूँकि मनुवादि जब इस देश में प्रवेश करके हिन्दू कलैंडर और हिन्दू पर्व त्योहार की प्राकृति अधारित ज्ञान समझ नही पाये , जो कि स्वभाविक था क्योंकि एक तो उस समय उनकी बुद्धी प्राकृति भूगोल के बारे में उतनी नही थी जितना की हिन्दू कलैंडर , हिन्दू पर्व त्योहारो की रचना खोज आविष्कार और सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों की थी | और दुसरा उसे खुदकी रचना और खोज आविष्कार बतलाने के लिए उसमे बदलाव करना मनुवादियों के लिए खुदको उच्च बतलाने के लिए जरुरी था | जिसके लिए उन्होने अपनी अप्राकृति बुद्धी अनुसार प्राकृति पर अधारित हिन्दू कलैंडर और उसके अनुसार मनाई जानेवाली हिन्दू पर्व त्योहारो में अप्राकृति ढोंग पाखंड की मिलावट और छेड़छाड़ किया | जो मिलावट आज भी जारी है , क्योंकि अभी भी मनुवादियों का दबदबा सत्ता समेत लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो और हिन्दू धर्म में भी कायम है | जिस दबदबा से छुटकारा पाने के लिए अजादी का संघर्ष आंदोलन जारी है | जो अजादी जबतक मिल नही जाती तबतक प्राकृतिक और विज्ञान अधारित हिन्दू धर्म ढोंग पाखंड का धर्म है कहकर मजाक उड़ाना जारी रहेगा | पर जिसदिन मनुवादियों से अजादी मिल जायेगी उसदिन हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाने वालो को भी सत्य पता चल जायेगा कि हिन्दू धर्म क्या है और मुल हिन्दू कौन है | क्योंकि अंतिम में जीत उस सत्य की होती है जिसकी पुजा हिन्दू उस शिव के रुप में भी करता है , जिसके साथ भी कथित मनुवादियों के पुर्वज देवो ने भेदभाव किया था | और यदि मनुवादि खुदको आसमान से जमिन में किसी एलियन की तरह उतरने वाले देव का वंसज मानते हैं तो मैं खुदको जमिन से जुड़े शिव का अंश मानता हूँ !

मंगलवार, 7 जनवरी 2020

स्लमडॉग मिलियनेयर (Slumdog Millionaire) फिल्म में आँख अँधा करके भिख मंगवाने वालो की तरह इतने भी मत गिरो की चूलूभर मूत में डुब मरो

स्लमडॉग मिलियनेयर (Slumdog Millionaire) फिल्म में आँख अँधा करके भिख मंगवाने वालो की तरह इतने भी मत गिरो की चूलूभर मूत में डुब मरो !
Khoj123, धर्म परिवर्तन , हिन्दू


गरिबी और भुख से बड़ा दुःख नही जैसे मुल समस्या के रहते हुए भी उस समस्या का समाधान करने के बजाय स्लमडॉग मिलियनेयर (Slumdog Millionaire) फिल्म में आँख अँधा करके भिख मंगवाने वालो की तरह धर्म के नाम से फिर कोई देश मंगवाने और धर्म के नाम से वोट मंगवाने के लिए मुझ जैसे मुलनिवासियों की नजर में इतने भी मत गिरो की चूलूभर मूत में डुब मरो ! या फिर क्या  इस देश के sc,st,obc कोई धर्म को वाकई में नही मानता है ? हम मुलनिवासी अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले नास्तिक होते हैं क्या जो दुसरे धर्मो के लोग अपने धर्म में लाने के लिए यह भ्रम फैला रहे हैं कि इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी किसी धर्म को मानता ही नही है | फिर अंबेडकर द्वारा रचना किया गया हिन्दू कोड बिल क्या सिर्फ मनुवादियों पर लागू होती है ? क्या कहना चाहते हैं वे लोग जो होली दिवाली जैसे हिन्दू पर्व त्योहार मनाने वाले sc,st,obc को किसी भी धर्म का नही बता रहे हैं ? दरसल मनुवादि शासन हो या फिर चाहे कोई दुसरा शासन , जिनको जनता की सेवा करना और अन्न रोटी कपड़ा और मकान जैसी मुलभुत जरुरत पुरी करना नही सिर्फ धर्म और जात के नाम से वोट लेना और धर्म परिवर्तन कराकर खुब सारा दान लेकर खुदकी सेवा बेहत्तर तरिके से कैसे हो ऐसी सोच में विकाश करना आता है , तो समझो वह इंसानियत अथवा विकसित इंसान बनना ही नही चाहता है | क्योंकि ऐसी सोच के लोग दरसल परजिवी और शिकारी सोच को ही बेहत्तर मानकर उसी सोच को ही विकसित करते रहना चाहते हैं | गरिबी भुखमरी जैसे मुल समस्या समाप्त होकर इंसानियत कायम हो ऐसी बुद्धी बल का विकाश ही नही करना चाहते हैं | ऐसे लोग उन गोरो से कहीं अधिक अविकसित मांसिकता को अपना आदर्श मानने वाले लोग हैं , जिन गोरो को सिर्फ दो सौ सालो तक इस देश को गुलाम करने के बाद इंसानियत की समझ विकसित हो गई थी | और उन्होने इस देश के मुलनिवासियों को ही नही बल्कि दुनियाँ के कई गुलाम देशो को अजाद करना स्वीकार कर लिया था | जो लोग आज अपने गलती पर माफी मांगते हुए शर्मिंदा होकर अपने किये पर पछताते हैं कि उन्होने कभी इतने सारे देशो को गुलाम किया था | लेकिन दुनियाँ में अब भी ऐसे शैतान बुद्धी वालो की गैंग मौजुद है , जिनकी बुद्धी का इंसानियत विकाश अबतक भी नही हुआ है | जिनमे कुछ गैंग गोरो की भी है जो देश को अजाद करने के बाद भी देश में अपनी प्रतिनिधि चुनकर विदेशो में बैठकर वसुली कर रहे हैं | ऐसे लोग शिकारी और परजिवी बुद्धी को ही विकसित कर रहे हैं | जिससे पुरी दुनियाँ से गरिबी भुखमरी जैसी मुल समस्या समाप्त होना तो दुर इस प्राकृति खनिज संपदा से समृद्ध देश से भी नही समाप्त होगी , चाहे जितने हजार साल और लगे इस तरह के गैंग का ये दावा करते रहने कि उनके सरन में आओगे तो सुख ही सुख मौजुद मिलेगी ! जिसके बाद सिर्फ अपनी सेवा कैसे बेहत्तर रुप से हो सके उसी का ही विकाश करने में लग जाते हैं | जिस तरह का गैंग इस देश में भी मौजुद है | जो इस देश और इस देश के मुलनिवासियों का बेहत्तर सेवा नही बल्कि खुदकी भेदभाव युक्त सेवा और पुजा कराते रहना चाहते हैं | बल्कि वर्तमान में भी भेदभाव युक्त सेवा और पुजा करा रहे हैं | जिनकी शिकारी और परजिवी सोच को जो भी इंसान अपना आदर्श मानेगा निश्चित तौर पर उनकी तरह शिकारी और परजिवी सोच वाला इंसान बनना चाहेगा | एक इंसान दुसरे इंसान के साथ इस तरह की परजिवी और शिकारी सोच रखे उसको ही मैं सबसे अविकसित इंसान मुल रुप से मानता हूँ | जिससे भुख से बड़ा कोई दुःख नही समस्या का समाप्त करना तो क्या शांती और प्रेम भी कायम होना मुमकिन नही है | जिस परजिवी और शिकारी सोच में इंसानियत का विकाश के बजाय इंसानियत का विनाश होता है | जिस तरह की सोच की शासन दुनियाँ में जहाँ कहीं भी मौजुद है , या रहेगी वहाँ पर गरिबी भुखमरी रहना तो मानो अनिवार्य है , पर भ्रष्टाचार और अपराध का बोलबाला बड़ता ही चला जायेगा | बल्कि भेदभाव करके गुलाम और दास दासी बनाने का मुल भावना में भी बड़ौतरी होती रहेगी | जिसे सुख शांती और समृद्धी शासन कोई भी बुद्धीमान इंसान कभी नही मानेगा | क्योंकि सुख शांती और समृद्धी शासन वह है , जहाँ पर प्रजा की सेवा बेहत्तर तरिके से तो होती ही है , पर देश का भी विकाश ऐसा होता है कि विश्व के कोने कोने से लोग वहाँ पर यह ज्ञान लेने आते हैं कि ऐसा सुख शांती और समृद्धी गरिबी भुखमरी मुक्त शासन कैसे मुमकिन हो पाता है | जिस तरह का सुख शांती इस देश में तब रही होगी , जब यह देश सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाता था | जिस शासन को मैं न तो मनुवादियों का शासन मानता हूँ , और न ही सुख शांती प्रदान करने की अश्वासन देकर धर्म परिवर्तन कराने वाले बौद्धो का शासन मानता हूँ | और न ही अमन प्रेम कायम करने का अश्वासन देकर धर्म परिवर्तन कराने वाले मुस्लिम और ईसाई का शासन मानता हूँ | बल्कि वह शासन काल मैं तब के शासन को मानता हूँ , जब इस देश में न तो छुवा छुत करने वाले मनुवादियों का शासन कायम था , और न ही किसी धर्म के नाम से शासन कायम था | बल्कि इस देश में जब सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु शासन था , उस समय किसी धर्म का लफड़ा ही मौजुद नही था | क्योंकि सबसे बड़ा लफड़ा तो विदेशी हमलावरो के आने और बहुत सारे धर्मो के नाम से शासन स्थापित होने के बाद सुरु हुआ है | जैसे कि ईसाई धर्म के गोरो के समय में गुलामी का लफड़ा , मुस्लिम धर्म के शासको के समय में भी भारी अशांती और खुनी हिंसा लफड़ा , और बौद्धो के शासन के समय में भी मनुवादि और बौद्धो के बिच में हिंसक गैंगवार का लफड़ा | ऐसा खुन खराबा लफड़ा कि अपने अपने धर्म की सत्ता स्थापित करने के लिए कभी इतिहास में सर काटकर फुटबॉल खेलने से लेकर सर कटवाकर उसे नारियल की तरह पत्थरो में फोड़ने की घटना भरे पड़े हैं | धर्म के नाम से सत्ता स्थापित करके सिर्फ लफड़ा ही लफड़ा बड़ा है | अभी भी धर्म के नाम से श्रीलंका पाकिस्तान जैसे देश बनने के बाद लफड़ा ही लफड़ा कायम है | धर्म के नाम से कई राष्ट्र बनने के बाद सोने की चिड़ियाँ का जो टुकड़ा बचा है , उस टुकड़े को हिन्दू राष्ट्र मनुवादि बनायेंगे यह लफड़ा भी जारी है | हलांकि जब मनुवादियों का दबदबा गोरो के जाने के बाद कायम हो ही गई है , तो हिन्दू राष्ट्र तो वैसे भी अभी भी कायम है , यदि मनुवादि ही मुल हिन्दू हैं | यकिन न आए तो जबसे धर्म के नाम से किसी राष्ट्र का निर्माण होने की परंपरा सुरु हुआ है , तब से उदाहरन के तौर पर श्रीलंका को बौद्ध राष्ट्र या पाकिस्तान को मुस्लिम राष्ट्र नही है , ये साबित करके दिखलाये वे लोग जिन्हे लगता है कि जिस धर्म की दबदबा रहती है , उसी का धर्म के नाम से राष्ट्र नही कहलाता है | जैसे कि अरब में दबदबा मुस्लिमो का है तो वह मुस्लिम राष्ट्र है , इंगलैंड में ईसाई का दबदबा है तो वह ईसाई राष्ट्र है , उसी तरह इजराईल में यहूदियों का दबदबा है तो यहूदि राष्ट्र है | वैसे ही इसी देश से अलग हुए राष्ट्र बनने वाला श्रीलंका में बौद्धो का दबदबा है तो वह अब बौद्ध राष्ट्र है , और इसी देश से अलग हुआ पाकिस्तान में मुस्लिमो का दबदबा है तो मुस्लिम राष्ट्र कहलाता है ! उसी तरह हिन्दुस्तान में हिन्दू कहलाने वाले मनुवादियों का दबदबा है तो हिन्दू राष्ट्र है ! इसमे नया क्या हो रहा रहा है जो हिन्दू राष्ट्र बनाने का साजिश हो रहा है यह बड़बड़ाकर भांग खाये बंदर की तरह उछल कुद की जा रही है ! और अगर उछलनी ही है तो यह देश हिन्दू राष्ट्र नही है यह साबित करके पाकिस्तान और श्रीलंका आखिर कैसे किसी धर्म के नाम से अलग होकर बौद्ध राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र बन गया इस सवाल का जवाब खोजने के बाद उछल कुद किया जाय यह आवाज बुलंद करके कि हिन्दुस्तान में यदि सभी धर्मो की अबादी काफी संख्या में अब भी मौजुद है , और हिन्दुस्तान में सभी धर्मो के लोगो को सुरु से ही रहने की इजाजत रही है , फिर धर्म के नाम से मुस्लिम राष्ट्र और बौद्ध राष्ट्र बनाने का फैशला बौद्ध धर्म और मुस्लिम धर्म क विचारको ने आखिर कैसे स्वीकार किया ? क्या उन्हे धर्म के नाम से राष्ट्र बनाना बेहत्तर सोच अथवा आर्य मार्ग लगता है ? और यदि लगता है तो फिर धर्म के नाम से हिन्दू राष्ट्र भी उन्हे बेहत्तर मार्ग लगता होगा | और अगर बेहत्तर मार्ग नही है तो फिर तो निश्चित तौर पर मुस्लिम और बौद्ध विचारको ने बौद्ध और मुस्लिम राष्ट्र का निर्माण करने वाला मार्ग चुनकर गलत मार्ग अपना लिया है | जिस तरह का गलत मार्ग वर्तमान में मनुवादि बतला रहे हैं इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने को लेकर दरसल मनुस्मृति लागू करने के लिए जो न तो हिन्दूओं की धर्मग्रंथ है और न ही मनुवादी सत्ता हिन्दूओ की दबदबा कायम सत्ता है ! क्योंकि मुल रुप से मनुवादि हिन्दू ही नही हैं ! मुल हिन्दू तो इस देश के मुलनिवासियों को कहा गया है जो धर्म के नाम से राष्ट्र बनाने की सोच को कभी बड़ावा ही नही दिये हैं | क्योंकि हिन्दू तो भौगोलिक और जिवनशैली के आधार पर इस देश के मुलनिवासियों को कहा गया है | न कि हिन्दू यूरेशिया से आए हुए यहूदि डीएनए वाले मनुवादियो के लिए कहा गया है | दरसल हिन्दू मुखौटा लगाकर हिन्दूओ की बहुसंख्यक अबादी को आगे करके मनुवादी राष्ट्र बनाना चाहते हैं | जो कभी होली दिवाली जैसे हिन्दू पर्व त्योहार मनाने वाले इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू मानने से इंकार कर रहे थे | जैसे की आजकल अपने धर्मो में लाने के लिए कुछ धर्म के प्रचार प्रसार करने वाले मनुवादियों की ही तरह इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू मानने से इंकार कर रहे हैं | जिनको यह बात जरुर पता होना चाहिए कि यदि पुजा पाठ धारन करना ही धर्म है , तो हिन्दूओ ने प्राकृति की पुजा को भगवान पुजा धारन बहुत पहले से किया हुआ है | और साथ साथ हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली होली और दिवाली जैसे अनेको पर्व त्योहार भी मनाते हैं | जिस होली दिवाली जैसे प्राकृति पर्व त्योहार मनाते हुए प्राकृति भगवान की पुजा को ही यदि विदेशियो द्वारा हिन्दू नाम दे दिया गया है तो इसमे दुसरे धर्मो को परेशानी क्यों हो रही है ? और यदि मुल हिन्दू कौन इस बात पर विवाद है तो जिन विदेशी लोगो ने हिन्दू शब्द दिया है , उन्ही के नई पिड़ी से हिन्दू मुद्दे पर सवाल पुच्छा जाय कि उनके पुर्वजो ने हिन्दू दरसल सिन्धु के किनारे रहने वाले लोगो को कहा है कि युरेशिया से आनेवाले मनुवादियों को कहा है ? जिस बारे में सवाल करके हिन्दू मनुवादि है इस बात पर ही अड़े रहने वालो के लिए तो फिर से विदेशियों द्वारा हिन्दू पहचान के बारे में जानकारी इकठा करके ज्ञान बांटना मानो मेरे लिए अब गिली भुसा में फुँक मारकर उसे जलाने की कोशिष से भी ज्यादे मुश्किल लग रही है | जिस तरह की मुश्किल फुँक मारने में लंबे समय से लगा हुआ हूँ | जिसमे दिन रात फुँक मारकर भी सायद ही उतनी कामयाब हासिल कर पा रहा हूँ जिससे की गिली भुषा में सिर्फ धुँवा उठने के बजाय सत्य ज्ञान की अग्नि उनकी बुद्धी में प्रज्वलित हो जाय , जिनकी बुद्धी में यह गिली भुषा भरा हुआ है कि यूरेशिया से आए यहूदि डीएनए के मनुवादि ही मुल हिन्दू हैं | क्योंकि जिन लोगो को देश विदेश की उच्च ज्ञान की डिग्री प्राप्त करके भी अबतक ये बात समझ में नही आ रही है कि प्राचिन फारस अथवा ईरान के लोगो ने सिन्धु को ही हिन्दू कहा है तो उन्हे अब कैसे समझ में आयेगी इस तरह की बहस करने से कि सिन्धु घाटी सभ्यता कृषि संस्कृति में मुल हिन्दू कौन है | या सायद वाकई में समझ में आ जाय कि हिन्दू दरसल सिन्धु के किनारे रहने वाले मुलनिवासियों को ही कहा गया है , न कि यूरेशिया से आनेवाले मनुवादियों को कहा गया है | जो ज्ञान न रहने की वजह से बिना वजह हिन्दू राष्ट्र का विवाद खड़ा किया जा रहा है ! जबकि सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति पहचान के रुप में भौगोलिक और जिवनशैली दृष्टि से हिन्दू राष्ट्र पहले से ही मौजुद है | जहाँ पर सारे धर्मो को रहने का इजाजत है | जिस हिन्दुस्तान में दुनियाँ के सबसे अधिक धर्मो के लोग रहते हैं | हलांकि इजाजत तो जो फलाना डिमका धर्म के नाम से कई राष्ट्र है , वहाँ भी सभी धर्मो के लोगो को रहने की इजाजत है | लेकिन राष्ट्र वह उसी धर्म का क्यों कहलाता है ? क्योंकि जिस धर्म की दबदबा वहाँ कायम रहती है उसी धर्म का राष्ट्र कहलाता है | इसलिए तो इस देश में भारी तादार में sc,st,obc हिन्दूओ को धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है , ताकि जिस धर्म में ज्यादे मुलनिवासी हिन्दू प्रवेश करेंगे उसी धर्म के नाम से यह राष्ट्र बन सकेगा | मसलन यदि ज्यादे से ज्यादे हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम बनेंगे तो यह देश मुस्लिम राष्ट्र बन जायेगा , और यदि ज्यादे से ज्यादे हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बनेंगे तो यह देश बौद्ध राष्ट्र बन जायेगा | उसी तरह ज्यादे हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके ईसाई बनेंगे तो ये ईसाई राष्ट्र बन जायेगा | क्योंकि जिन धर्मो की ज्यादे अबादी होगी उसी धर्म का राष्ट्र बनता चला जायेगा | इसिलिए तो ज्यादे से ज्यादे हिन्दूओ को धर्म परिवर्तन कराने का मानो प्रतियोगिता चल रहा है कि कौन धर्म ज्यादे से ज्यादे हिन्दूओ को अपने धर्म में खिच पाने में कामयाब होगा , और उसके धर्म के नाम से राष्ट्र बनेगा ! यानि यह तय है कि भविष्य में धर्म के नाम से यह देश फिर से खंड खंड होकर किस धर्म के नाम से नया राष्ट्र बनेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि ज्यादे से ज्यादे हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके किस धर्म का एक और नया राष्ट्र बनायेंगे ? क्योंकि हिन्दू छोड़ बाकि धर्मो के लोगो को तो विदेशो से धर्म परिवर्तन कराकर इस देश में लाया नही जा सकता हैं | इसलिए स्वभाविक है सभी धर्मो की नजर हिन्दू धर्म में मौजुद उन sc,st,obc मुलनिवासियों पर ही है | क्योंकि मनुवादियों की सत्ता की वजह से वे इतने अधिक दुःखी पिड़ित हैं कि आसानी से बुरे हालात का फायदा उठाकर धर्म परिवर्तन कराया जा सकता है | जिन्हे तुम हिन्दू नही हो कहकर धर्म परिवर्तन कराकर दुसरे धर्मो में ले जाया जा  सकता है | जबकि इस देश का दलित आदिवासी पिछड़ी मुलनिवासी भी पुजा करता है , और होली दिवाली भी मनाता है , न कि वह नास्तिक है | मैं खुद मुलनिवासी हिन्दू हूँ , और होली दिवाली ही नही बल्कि उन तमाम पर्व त्योहारो को अपने पुर्वजो के द्वारा हजारो सालो से मनाये जाने वाला पर्व त्योहार मानता हूँ , जिसके साथ प्राकृति किसी न किसी रुप में जुड़ी हुई है | जिन्हे मैं यूरेशिया से आए मनुवादियों का देव पुजा पर्व त्योहार नही मानता , और न हि खुदको देव के वंशज बताने वाले मनुवादियों को मैं मुल हिन्दू मानता हूँ | मुल हिन्दू देव को अपना पुर्वज नही मानता | जो अनजाने में यदि मानेगा भी तो अब डीएनए रिपोर्ट से साबित हो चुका है कि देव के वंसजो और इस देश के मुलनिवासियों का डीएनए अलग है | और वैसे भी छुवा छुत करने वाले मनुवादि इस देश के मुलनिवासी को देव का वंसज मानते हैं कि नही भेदभाव से ही पता चल जाता है | वे तो हिन्दू धर्म का ठिकेदार बनकर इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू इसलिए मान रहे हैं , क्योंकि उन्हे आगे करके मनुवादी सत्ता कायम रखने के लिए हिन्दूओ का वोट भी लेना है , और फिर मौका मिलने पर हिन्दू राष्ट्र की आड़ में मनुवादी राष्ट्र भी बनाना है | जैसे कि धर्म परिवर्तन करने वालो को भी यदि मौका मिले तो वे अपने धर्म के नाम से एक और नया राष्ट्र बना लेंगे | जबकि भौगोलिक और जिवनशैली के आधार पर यह देश हजारो सालो से हिन्दू राष्ट्र पहले से ही मौजुद है | इसलिए स्वभाविक है कि अगर मुझसे कोई पुच्छे कि धर्म के नाम से यदि यह राष्ट्र वाकई में कभी बनेगा तो किस धर्म के नाम से बनाना सही होगा तो मैं कहूँगा चूँकि इस देश की भौगोलिक और जिवनशैली पहचान मुल रुप से सिन्धु घाटी कृषि सभ्यता संस्कृती से जुड़ा हुआ है , इसलिए निश्चित रुप से खुदको हिन्दू मानकर हिन्दू राष्ट्र ! जो राष्ट्र मनुवादि सत्ता मुक्त राष्ट्र होगा | बाकि सभी धर्म तो हिन्दूओ को ही धर्म परिवर्तन कराकर अपने धर्म की अबादी बड़ाकर अपने धर्मो के नाम से राष्ट्र बना रहे हैं | जिन्हे मौका मिलने पर आगे भी बनायेंगे ! जैसे कि इस सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाने वाला कृषि प्रधान देश को यदि अरब की तरह मुस्लिम राष्ट्र भी भविष्य में बनाया जायेगा तो निश्चित तौर पर हिन्दूओ को ही धर्म परिवर्तन कराके बनेगा ! और यदि चीन श्रीलंका वगैरा की तरह बौद्ध राष्ट्र भी बनेगा तो भी हिन्दूओं को ही धर्म परिवर्तन कराके बनेगा | उसी तरह ईसाई राष्ट्र भी बनेगा तो भी हिन्दूओ को ही धर्म परिवर्तन कराके बनेगा | जाहिर है अपने अपने धर्म का प्रचार प्रसार करके हिन्दूओ को ही धर्म परिवर्तन कराने का सिलसिला इसलिए जारी है ताकि फिर से कोई अलग से धर्म के नाम से राष्ट्र बनाया जा सके | या तो फिर क्या पता पुरे देश को हि मुस्लिम ईसाई या बौद्ध राष्ट्र बनाने की धर्म परिवर्तन प्रक्रिया चल रही है | जिसके बाद क्या अमन प्रेम सुख शांती आ जायेगी ? या फिर गंदी सोच में परिवर्तन करने से अमन प्रेम सुख शांती और समृद्धी आयेगी ! जिसके बाद ही ये देश फिर से गरिबी भुखमरी मुक्त सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु बन सकेगा !

मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

मनुवाद से आजादी पाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासी दरसल उस शुतुरमुर्ग की तरह हैं , जो आँधी आने पर अपना सर रेत में घुसा लेता है

मनुवाद से आजादी पाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासी दरसल उस शुतुरमुर्ग की तरह हैं , जो आँधी आने पर अपना सर रेत में घुसा लेता है


khoj123,धर्म परिवर्तन हिन्दू


मनुवादियों की जुल्म से अजादी पाने के लिए हिन्दू धर्म छोड़कर दुसरे धर्मो में जानेवाले इस देश के मुलनिवासी दरसल वैसे शरणार्थी की तरह  हैं , जो अपने ही देश में रह रहे दुसरे धर्मो के घरो में यह सोचकर शरण लेते या ले रहे हैं कि वहाँ पर जाकर उनके साथ अपमानित और लहु लुहान जुल्म होना बंद हो जायेगा | जो बात यदि सत्य होती तो धर्म परिवर्तन करने के बाद उनपर कभी भी हमले नही होते और न ही कभी धर्म के नाम से मार काट होती | बल्कि धर्म परिवर्तन के बाद उनकी जिवन में सुख शांती और समृद्धी आ जाती | दुसरे देशो में शरण लेने वाले शरणार्थी तो मुलता अपने देश में मौजुद शोषण अत्याचार करने वालो के जुल्म से छुटकारा पाने के लिये दुसरे देशो में शरण लेते हैं , पर अपने ही देश में रहकर धर्म परिवर्तन करके अपने ही देश में मौजुद मनुवादियों की जुल्म से अजादी मिल जायेगी ऐसे झुठे उम्मिद करने वाले मुलनिवासी कहीं ये तो नही सोचते हैं कि मानो मनुवादियो द्वारा गुलाम देश में वे धर्म परिवर्तन करके मनुवादियों के जुल्म से अजादी पा लेंगे | जो यदि वे वाकई में सोचते हैं तो निश्चित रुप से वे उस शुतुरमुर्ग की तरह हैं , जो आँधी आने पर अपना सर रेत में घुसा लेता है | क्योंकि मनुवादियो द्वारा शोषण अत्याचार की आँधी चल रही है और उस बिच अपना धर्म परिवर्तन करके ये समझ लेना की अब मनुवादियो से अजादी मिल गयी है इस बात में कितनी सच्चाई है ? क्या यह मान लिया जाय कि मनुवादियो की गुलामी से अजादी पाने के लिये अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासी मनुवादियों के खिलाफ अब कोई संघर्ष आंदोलन ही नही कर रहे हैं क्योंकि धर्म परिवर्तन करने से उन्हे मनुवादियों से अजादी मिल गयी है ? जो अजादी संघर्ष और आंदोलन सिर्फ धर्म परिवर्तन करने से पहले कर रहे थे | जैसे कि जो मुलनिवासी अब भी अपना हिन्दू धर्म को परिवर्तन नही किये हैं वे मनुवादियों के जुल्मो से अजादी पाने के लिये अपमानित और लहु लुहान होकर अब भी संघर्ष आंदोलन कर रहे हैं | क्या वाकई में धर्म परिवर्तन करने के बाद मनुवादी से अजादी मिल जाती है | और यदि वाकई में सिर्फ वही मुलनिवासी मनुवादियो के खिलाफ अजादी लड़ाई मैदान में जमे हुए हैं , जिन्होने चाहे जितनी शोषण अत्याचार की आँधी आए उससे डटकर संघर्ष कर रहे हैं तो क्या बाकि सब मनुवादियों द्वारा अपमानित और लहुलुहान होने से बचने के लिए मैदान छोड़ दिये हैं ? या फिर शुतुरमुर्ग की तरह अपना सर रेत में घुसा लिये हैं ! क्या ईसाई धर्म को मानने वाले विदेशी गोरो से भी अजादी पाने के लिये अपना धर्म परिवर्तन किया जाता था ? बाहर से आए सुरुवात के मुस्लिम शासक तो दुसरे धर्मो के लोगो से जजिया कर लेते थे | जो इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू मानकर जजिया कर तो लेते थे पर वे मनुवादियों से जजिया कर नही लेते थे | बल्कि हिन्दूओं को वे मनुवादियो का गुलाम मानते थे | और हम सबको पता है कि मनुवादियो का गुलाम कौन था या है | जजिया कर धार्मिक कर है , जो बाहर से आए सुरुवात के मुस्लिम शासको द्वारा दुसरे धर्मो के लोगो से ली जाती थी | अपना धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम बने इस देश के मुलनिवासियों द्वारा नही ली जाती थी | हलांकि कुछ मनुवादियों का कहना है कि जजिया कर ब्रह्मणो से इसलिए नही लिया जाता था क्योंकि वे आर्थिक रुप से सक्षम नही थे और दान दक्षिणा से अपना जिवन गुजारा करते थे | जिनके तर्को में कितनी सच्चाई है यह तो वर्तमान के खुद ब्रह्मण परिवारो में मौजुद बहुत से ऐसे सदस्य ही पुरी सच्चाई बतला सकते हैं जो विदेशी बैंको में भी गुप्त खाता खोलकर दिन रात धन बटोरने में लगे हुए हैं | और पहले के भी ब्रह्मण जो सोमनाथ जैसे मंदिरो का पुजारी हुआ करते थे , वे भी पुरी सच्चाई जानते थे कि वे आर्थिक रुप से कितने सक्षम थे | उस समय सोमनाथ जैसे मंदिरो के पुजारी धनवान थे कि उन पुजारियों से छुवा छुत का शिकार होने वाले इस देश के वे मुलनिवासी धनवान थे , जिनके हक अधिकारो को हजारो सालो से छिना और कब्जा किया गया है ! जैसे की बाहर से आनेवाले मनुवादियों द्वारा इस देश में कब्जा करके हिन्दू धर्म का ठिकेदार बनने के बाद वेद पुराणो का ज्ञान लेने का हक अधिकार छिना जाता रहा है | इस देश के मुलनिवासियों को मनुवादियो द्वारा वेद पुराण ज्ञान लेने से रोका जाता रहा है | जबकि इस देश के मुलनिवासियों ने हिन्दू वेद पुराणो की रचना किया है | हिन्दू वेद पुराणो के रचनाकार मुल हिन्दू हैं कि ढोंग पाखंड छुवा छुत का रचनाकर मुल हिन्दू हैं | जाहिर है मुल हिन्दू इस देश के मुलनिवासी हैं , जो बारह माह प्राकृति पर्व त्योहारो को मनाता है | न कि मनुवादि मुल हिन्दू हैं | मनुवादि तो मुलता देव पुजा करता है | न कि वह प्राकृति पुजा और प्राकृति पर्व त्योहार मनाता है | हाँ हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में कब्जा करके अथवा हिन्दू धर्म का ठिकेदार बनके वेद पुराणो में छेड़छाड़ और मिलावट करके अपनी देवता पुजा को हिन्दू पुजा साबित करने में वह जरुर हजारो सालो से लगा हुआ है | जिसके लिये वह हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को देवता पुजा करने वाला पर्व त्योहार साबित करने की कोशिष में लंबे समय से लगा हुआ है | ताकि वह झुठ को सत्य साबित करके हिन्दू धर्म , हिन्दू पर्व त्योहार और हिन्दू पुजा दरसल मनुवादियों के पुर्वज देवताओ की पुजा है | जबकि असल में हिन्दू पुजा प्राकृति पुजा है | जो साक्षात विज्ञान और प्राकृति अधारित मान्यता है | न की मनुवादियो की अप्राकृति ढोंग पाखंड मान्यता है | इसलिए जब भी कोई व्यक्ती जो चाहे जिस धर्म से जुड़ा हुआ है , वह यदि इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी को हिन्दू नही बल्कि मनुवादियो को हिन्दू कहता है तो उन्हे पहले सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति के बारे में जाननी समझनी चाहिए फिर उन्हे यह बतानी चाहिए कि सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति से जुड़ी पहचान इस देश के मुलनिवासियों की है कि यूरेशियन डीएनए के मनुवादियों की है | क्योंकि जिन्हे सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति से जुड़ी मुल पहचान इस देश के मुलनिवासियों की है ये बात समझ में आती है तो निश्चित तौर पर उन्हे ये बात भी समझ में आ जायेगी कि इस देश के मुलनिवासियों को ही विदेशी लोगो ने हिन्दू कहा है , न कि बाहर से आए मनुवादियों को हिन्दू कहा है | और जिनका मानना है कि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण यहाँ तक की संस्कृत भाषा भी विदेशी है , ऐसे झुठ फैलाने वाले मुलनिवासियों की बुद्धी मेरे विचार से तो मनुवाद से अजादी पाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करने के बाद भी मनुवादियों से अजादी अबतक क्यों नही मिली है इस सवाल का जवाब जिस धर्म में गये हैं उनसे अबतक भी नही मिल पाने की वजह से अति तनाव झेल नही पाने की वजह से उनकी बुद्धी बिमार संक्रमित और भ्रष्ट हो गयी है | जिससे पहले उनकी बुद्धी ज्यादे बेहतर थी | और वे हिन्दू धर्म में रहकर मनुवादियों के खिलाफ मजबुती से लड़ रहे थे | पर जैसे ही उन्होने अपना धर्म परिवर्तन करने के बारे में सोचना सुरु किया या फिर धर्म परिवर्तन किया उनकी बुद्धी बिमार संक्रमित और भ्रष्ट होनी सुरु हो गयी | जिसके बाद तो उन्हे यह भ्रम लगातार होना सुरु हो गया कि अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले वे हिन्दू धर्म के खिलाफ मजबुती से लड़ रहे थे ! मैं धर्म परिवर्तन करने वाले ऐसे मुलनिवासियों को भ्रष्ट बिमार और संक्रमित बुद्धी नही कह रहा हूँ जो कि गंगा जमुना तहजीब की बाते करके अपनी मुलनिवासी एकता को धर्म परिवर्तन करके भी मुलनिवासी हिन्दूओ को बिना ताना मारे कायम रखे हुए हैं | बल्कि उन्हे कह रहा हूँ जो खुदको सबसे विद्वान और हुनरमंद समझकर अहंकार में चुर होकर हिन्दू और हिन्दू धर्म को दिन रात मानो गाली देने में लगे हुए हैं | जो अपनी बुद्धी को संक्रमित भ्रष्ट बिमार करके इस देश के मुलनिवासी हिन्दूओ को दिन रात गाली देकर और अपमान करके बुद्धी नही है , हुनर नही है , तुम बुद्धी बल से मनुवादियो के आगे कमजोर हो इसलिए तुम्हे अपने पिछवाड़े की टटी पोछाकर फैकने वाली पत्थर की तरह मनुवादि इस्तेमाल करके फैंक देते हैं लगातार कहते रहते हैं | जिन्हे दिन रात गाली देते और अपमान करते हुए कम से कम इस बात का तो ध्यान रखनी चाहिए कि अंबेडकर भी तबतक हिन्दु ही थे जबतक कि वे धर्म परिवर्तन नही किये थे ! जिन्होने हिन्दू रहते देश विदेश में मनुवादियों से भी अधिक कई उच्च डिग्री हासिल किया और मनुस्मृति को जलाकर अजाद भारत का संविधान व हिन्दू कोड बिल रचना भी किया | न कि वे धर्म परिवर्तन करके इससे भी ज्यादे उपलब्धि हासिल किये हैं | जो सब जानने के बाद भी मुलनिवासी हिन्दू को टटी पोंछाकर फैंक देने वाली पत्थर जैसा ताना देना तर्क संगत लगती है क्या ? क्या अंबेडकर जब हिन्दू रहकर सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल कर रहे थे उस समय भी दुसरे धर्मो में जाकर गंगा जमुना तहजीब को नही मानने वाले लोग उन्हे भी इसी तरह के ताना देते थे ? खासकर जिनको लगता होगा कि बाहर से आकर ढोंग पाखंड और छुवा छुत करने वाले मनुवादि मुल हिन्दू हैं | जबकि उन्हे पता होना चाहिए कि विदेशी मुल का मनुवादी जबतक खुदको हिन्दू कहने में गर्व महसुश करता रहेगा तबतक वह ताकतवर और शासक है | जो बात मनुवादि अच्छी तरह से जानता है | जिसे यह भी कहा जा सकता है कि खुदकी झुठी शान को बचाये रखने के लिये हिन्दू धर्म उनके लिए सबसे अच्छी पसंद है | और वैसे भी अलग अलग समय में इंसानो द्वारा पैदा किया बहुत सारे धर्मो में इंसान किसी भी धर्म को अपना सकता है | किसी को यहूदि धर्म पसंद है , किसी को मुस्लिम धर्म तो किसी को ईसाई धर्म पसंद है | किसी को बौद्ध धर्म पसंद है , तो किसी को जैन धर्म पसंद है | उसी तरह इस देश में बाहर से आए मनुवादियों को हिन्दू धर्म पसंद है | जो मनुवादि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो के रचनाकार नही बल्कि उसमे प्रवेश करके छोड़छाड़ मिलावट और अपनी ढोंग पाखंड छुवा छुत सोच के मुताबिक किया है | इसलिए निश्चित तौर पर बाहर से आने वाले मनुवादीयो की कब्जे से छुटकारा पाने के बाद ही हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में मौजुद साक्षात प्राकृति पुजा की सच्चाई पुरी दुनियाँ के सामने आयेगी | जिससे पहले तो मनुवादि बहुतो के बुद्धी को ब्रेनवाश करके यह मनवाने में कामयाब होते रहेंगे कि देव पुजा ही हिन्दू धर्म है | हलांकि हम जैसो के द्वारा सत्य ज्ञान बांटने से हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में ढोंग पाखंड छुवा छुत की मिलावट करने वालो की बहुत सी पोल खुलते जा रही है | जिस सत्य ज्ञान में कमी न आए इसके लिए यह मंथन भी जारी है कि कब्जा करने के लिए मनुवादि खुदको हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो का तो ठिकेदार जन्म से बना लिये हैं , पर वे हिन्दू धर्म को कितना मानते हैं ये उनकी अपनी मान्यता है कि वे हिन्दू पुजा का मतलब देव पुजा मानते हैं कि प्राकृति पुजा मानते हैं | और चूँकि मनुवादि मानो हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो का ठिकेदार खुदको बना रखा है , इसलिए जबतक मनुवादि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो का ठिकेदार बना रहेगा , तबतक हिन्दू धर्म क्या है , और हिन्दू धर्म को मानने वाले मुल हिन्दू कौन है , इसके बारे में अधुरी जानकारी बंटते रहेगी | मसलन देव पुजा को मुल हिन्दू पुजा कहकर मुल हिन्दू देव को अपना पुर्वज मानने वाले मनुवादियों को मुल हिन्दू कहकर इस देश के मुलनिवासी जो कि मुल हिन्दू है , उसे इस देश का दलित आदिवासी पिछडी हिन्दू नही है यह झुठ बतलाने वालो की तादार बड़ते रहेगी | जो स्वभाविक है , क्योंकि छुवा छुत करनेवाला मुल हिन्दू है कि छुवा छुत का शिकार होनेवाला दलित आदिवासी पिछड़ी मुल हिन्दू है ? इस सवाल का पुर्ण सत्य जवाब  तब दिया जा सकेगा उन लोगो को जो की इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी को हिन्दू नही है और मनुवादी मुल हिन्दू हैं , यह ज्ञान बांटते रहते हैं जब हिन्दू वेद पुराणो में मौजुद हिन्दू पुजा का पुर्ण सत्य पुरी तरह से सामने आयेगी | जो पुरी तरह से सामने तब आयेगी जब मनुवादि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो की ठिकेदारी से मुक्त होकर इस देश के मुलनिवासियो द्वारा हिन्दू वेद पुराणो में की गई मिलावट और छेड़छाड़ में सुधार की जायेगी | बल्कि वह सुधार होना बहुत पहले सुरु भी हो चुका है | जिस सुधार को हिन्दू धर्म के विरुद्ध में सुधार नही बल्कि मनुवादियों द्वारा मिलावट और छेड़छाड़ किया गया ढोंग पाखंड मान्यताओ में सुधार कहा जा सकता है | जैसा की मैने इससे पहले बतलाया कि हवा पानी अग्नि सुर्य वगैरा को प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से देख समझकर हिन्दू वेद पुरीणो में मौजुद प्राकृति और हिन्दू ज्ञान को जाना समझा जाय | और साथ ही बारह माह हिन्दू कलैंडर के अनुसार मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को भी प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा जाय , न कि देव पुजा समझा जाय | कुछ नासमझ लोग प्राकृति पुजा इस देश के आदिवासी करते हैं यह समझाने कि कोशिष इस उदारन से देते रहते हैं कि आदिवासी जंगलो में रहते हैं , और प्राकृति से ही जो कुछ मिल जाता है , उसी से अपना जिवन यापन करते हैं इसलिए वे प्राकृति को ही अपना सबकुछ मानकर उसकी पुजा करते हैं ! जिनके कहने का मतलब क्या यह है कि आदिवासी हमेशा से जंगलो में रहते आ रहे हैं , और प्राकृति पुजा सिर्फ आदिवासी ही करता है ? दलित पिछड़ी नही करता है | फिर प्राकृति सुर्य की छठ पुजा जैसे प्राकृतिक पर्व त्योहार जो कि हिन्दू धर्म में बारह माह मनाई जाती है , वह क्या मनुवादियो की देव पुजा है ? जबकि डीएनए रिपोर्ट भी आ चूकि है कि इस देश के मुलनिवासी दलित आदिवासी पिछड़ी और कथित उच्च जाती के कहलाने वालो के परिवार में मौजुद महिलायें भी इस देश के मुलनिवासी हैं , जिनके पुर्वज एक हैं | जो प्राकृति की पुजा सुरु से करते आ रहे हैं | अलग तो मनुवादि हैं जिनका डीएनए यूरेशियन डीएनए है | जाहिर है जब हिन्दू धर्म को मनुवादियों की देव पुजा न समझकर प्राकृति पुजा समझने की जानकारी जिसदिन सबको मिल जायेगी उसदिन हिन्दू धर्म क्या है ? सबको समझ में आ जायेगा और तब सायद मनुवादियों को भी इस सवाल का जवाब अच्छी तरह से मिल जायेगा कि हिन्दू वेद पुराणो में भगवान पुजा का मतलब क्या होता है ? जो जवाब जबतक नही मिलता तबतक इस देश के वे सभी मुलनिवासी मनुवादि और धर्म परिवर्तन करके ताना व गाली देनेवाले ब्रेनवाश भ्रष्ट और बिमार बुद्धी वालो से भी संक्रमन होने से बचे ! क्योंकि इन दोनो को ही हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में मौजुद प्राकृति ज्ञान के बारे में समझ नही है | जिसके चलते दोनो ही हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो को अप्राकृति तरिके से समझने में लगे रहते हैं ! और उसे ही सत्य मानकर यह संक्रमण फैलाते रहते हैं कि हिन्दू पुजा का मतलब देव पुजा होता है |


रविवार, 29 दिसंबर 2019

आज जो झारखंड सरकार शपथ ली है वह इतिहास रच सकती है यदि वह अपने निश्चय पत्र में किए गए वचनो पर खरा उतरी

आज जो झारखंड सरकार शपथ ली है वह इतिहास रच सकती है यदि वह अपने निश्चय पत्र में किए गए वचनो पर खरा उतरी
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आज के दिन शपथ लेनेवाली झारखंड सरकार यदि अपने निश्चय पत्र में किये गए वचनो को निभाने में कामयाब हुई , तो झारखंड इस देश का पहला राज्य बनेगा , जो गरिबी भुखमरी से पुरी तरह से मुक्त हो जायेगा ! जो खासकर उस राज्य में बिल्कुल मुमकिन है , जहाँ पर पुरी दुनियाँ की सबसे अधिक प्राकृतिक धन संपदा मौजुद है ! और चूँकि निश्चय पत्र में सभी गरिब परिवार को ₹72000/ सालाना यानि ₹6000/ प्रति माह देने का वचन लिया गया है , इसलिए यदि सभी गरिब परिवार को महिने का ₹6000/ मिलेगा तो गरिबी तो वैसे भी समाप्त हो जायेगी | और सभी वृद्ध और विकलांगो को प्रति माह ₹2500/ पेंशन देने का भी निश्चय किया गया है | बल्कि पढ़े लिखे बेरोजगार स्नातको को भी प्रति माह ₹6000/ देने का वचन लिया है | और साथ ही राशन कार्ड धारियो को राशन में सिर्फ चावल गेहूँ ही नही बल्कि तेल साबुन सब्जी चिन्नी चायपत्ती वगैरा जरुरत की चीजे भी देने का वचन दिया है | जिस निश्चय को पुरा किया गया तो निश्चित रुप से कुपोषण भी दुर हो जायेगी | सभी गरिब बेघरो को सिर्फ दो कमरे वाला घर नही बल्कि तीन कमरे वाला घर जिसमे बिजली पानी और घर के अंदर ही शौचालय की भी सुविधा हो , ऐसा घर देने का भी निश्चय लिया गया है | इतना ही नही किसी भी नागरिक को सरकारी दफ्तरो की चक्कर लगाना न पड़े इसके लिये अधिकारी खुद घर जाकर जमिन रसिद वगैरा काटेंगे इसका भी चलन कार्यालय बनाने का वचन लिया गया है | और किसानो की कर्ज फाफी होगी व जिन किसानो की जमिने लेकर वहाँ पर पाँच सालो तक कुछ नही किया गया है ,अथवा जमिन बेकार पड़ा हुआ है , उसे किसानो को वापस की जायेगी इसका भी निश्चय किया गया है | इसके अलावे भी ऐसा ऐसा निश्चय किया गया है कि यदि उसे पुरा किया गया तो झारखंड में कोई भी परिवार गरिबी भुखमरी जिवन जीना तो दुर बेघर और बेरोजगार भी नही रहेगा | जो निश्चय पुरे विश्व में आजतक न तो कोई राज्य ने लिया था , और न ही इतिहास में आजतक किसी देश ने लिया है | जिसके चलते अमेरिका जैसे देश में भी अबतक गरिबी भुखमरी और बेघर की समस्या है | बाकि तो खुद कल्पना किया जा सकता है कि गरिबी भुखमरी पुरी दुनियाँ में किस तरह उस समय भी कायम है , जब इंसान की पहुँच मंगल तक भी हो गयी है | लेकिन गरिबी भुखमरी को पुरी तरह से दुर किया जा सके ऐसा तरक्की आजतक किसी भी देश ने नही किया है | बल्कि गरिबी भुखमरी को आजतक न तो किसी अवतार ने दुर करने का निश्चय कर सका है , और न ही किसी शासक ने गरिबी भुखमरी को दुर कर सका है | हलांकि यह देश जब सोने की चिड़ियाँ वाली समृद्धी हालात में मौजुद थी , उस समय मुमकिन है इस देश में गरिबी भुखमरी नही रही होगी | अभी तो 30-40% नागरिक गरिबी रेखा से भी निचे का जिवन जी रहे हैं | जाहिर है गरिबी में कितने लोग जिवन यापन कर रहे हैं ये खुद ही जाना समझा जा सकता है | दुसरी तरफ इस देश में मुठीभर ऐसे धन्ना कुबेर भी मौजुद हैं , जो पुरी दुनियाँ के सबसे अमिर लोगो कि टॉप 10 लिस्ट में आते हैं | बल्कि कभी तो दुनियाँ का सबसे अमिर परिवार का भी खिताब इस देश के ही किसी धन्ना कुबेर का परिवार को मिल चुका है | जिसके पास दुनियाँ का सबसे महंगा ऐसा महल है , जिसे यदि बेचकर उस रकम से बेघरो के लिये घर बनाया जाय तो पुरे झारखंड में एक भी परिवार बेघर नही रहेगा | इतना महंगा घर सिर्फ एक अमिर परिवार का है | हलांकि उतनी किमत की माफी और छुट भी किसी धन्ना कुबेर को इस आर्थिक बदहाली झेल रहे देश की सरकार देती आ रही है ऐ भी अमिरी इतिहास रचा जा रहा है | खैर आज शपथ ले रही झारखंड की सरकार एक नया इतिहास वाकई में रच सकती है यदि उसने अपने निश्चय को पुरा कर लिया | और चूँकि मेरा मानना है कि गरिबी भुखमरी ही इंसान के जिवन में 90% दुःख देनेवाली समस्या पैदा करती है , इसलिये मैने अपने पोस्ट में बार बार पुरी दुनियाँ से सबसे पहले गरिबी भुखमरी को दुर किया जाय इसपर ज्यादे विचार किया है | जिसे गरिबी भुखमरी देने वाले भ्रष्ट लोग कभी भी दुर नही करना चाहते ये भी कड़वी सच्चाई है | क्योंकि जैसा कि मैने बतलाया कि गरिबी भुखमरी यदि दुर हो गयी तो इंसानो में मौजुद सबसे अधिक दुःख का कारन बनने वाली समस्याओ का अंत हो जायेगा | जिससे पहले चाहे जितना धर्म परिवर्तन करो या सरकार परिवर्तन करो 90% दुःख का अंत कभी नही होगा ! 

बुद्ध ने कहा था दुःख का कारन है ! जो 90% कारन मैं गरिबी भुखमरी को मानता हुँ ! 


बौद्ध धर्म वाले इसपर कितना सहमत होंगे यह तो मैं नही जानता , पर यकिन के साथ कह सकता हूँ कि बौद्ध धर्म तो क्या कोई भी धर्म 90% दुःख को दुर बिना गरिबी भुखमरी दुर करने पर जोर दिये , चाहे पुरी सागर को स्याही बनाकर भी धार्मिक बाते दुःख दुर करने की लिखता और बताता रहे , पर जबतक गरिबी भुखमरी दुर नही कि जायेगी तबतक चाहे इंसान की दुःख दुर करने और सुख शांती प्रेम लाने के लिए हिन्दू , बौद्ध , जैन , मुस्लिम , सिख , ईसाई ,यहूदि वगैरा चाहे जितना धर्म आगे भी और क्यों न बनता चला जाय ,  और चाहे धरती पर जितना अवतार और महात्माओ का जन्म होता रहे , मेरा दावा है कि बिना गरिबी भुखमरी दुर किये अमिर भी इतना दुःखी रहेगा कि दौलतमंद होकर भी दुःखी होकर आत्महत्या तक करने की नौबत उसे आती रहेगी | क्योंकि गरिबी भुखमरी के रहते दुनियाँ में अमिरी मौजुद रहना भी मानो वह श्राप या पाप है , जिसमे गरिबी भुखमरी जिवन जी रहे लोगो की जब गरिबी भुखमरी से मौत होती है , तो अमिरो को वह श्राप और पाप अपनेआप लग जाता है , जिससे उसकी अमिरी को भी इतना सारा दुःख घिर आता है कि कोई अमिर आत्महत्या तक कर डालता है | मानो प्राकृति ने अमिरी गरिबी को लेकर वह श्राप दिया है कि जबतक किसी को गरिबी भुखमरी से मरते हुए देखकर दुनियाँ में अमिर लोग पेटभर खाकर सबसे अधिक धन खर्च करते हुए अपनी अमिरी शान में डुबकर गरिबी भुखमरी से मरते हुए देखता पढ़ता सुनता रहेगा , तबतक अमिरी में लगा श्राप कभी नही मिटेगा | जिसके चलते सबसे अमिर देशो में भी जैसे कि जापान में दुनियाँ की सबसे अधिक आत्महत्या की जाती है | क्या वे सिर्फ गरिबी भुखमरी से आत्महत्या कर रहे हैं ? बिल्कुल नही ! निश्चित रुप से वहाँ भी गरिबी भुखमरी और बेघर समस्या जरुर होगा ! जैसे कि इस देश में और अमेरिका में भी गरिबी भुखमरी और बेघर समस्या मौजुद है | जबकि पुरी दुनियाँ में आर्थिक असंतुलन के चलते मुठीभर लोगो के पास इधना धन जमा हो गया है कि उनकी आनेवाली सात पुस्ते भी यदि बिना कुछ किये भी बेरोजगार और गरिबी भुखमरी जिवन जी रहे लोगो के बिच खुद भी बेरोजगार होकर जिवन जियेगी तो भी वह अमिरी जिवन जिते हुए मरेगी ! लेकिन चूँकि पुरी दुनियाँ में जबतक गरिबी भुखमरी मौजुद है , तबतक ऐसे धन्ना कुबेरो को भी मानो वह श्राप पिच्छा नही छोड़ेगा जिससे की उनके जिवन में भी ऐसे दुःख का अंबार लगता रहेगा , जिससे की अमिर भी दुःखी होकर आत्महत्या तक करता रहेगा | जाहिर है फिर से मैं पुरी दुनियाँ से यही कहुँगा कि गरिबी भुखमरी को दुर करो तो पुरी दुनियाँ से 90% दुःख की समस्याओ का खात्मा हो जायेगा | क्योंकि गरिबी भुखमरी दुर होने के बाद अमिर गरिब की बुद्धी नही बल्कि दुनियाँ के सभी इंसानो की बुद्धी दुःख देनेवाली समस्याओ का समाधान के लिए एकजुट होकर काम करेगी |

खैर आज शपथ लेनेवाली झारखंड सरकार को मेरी सुभकामनाएँ है कि वह अपने निश्चय पत्र पर खरा उतरे ! 


जिसका वचन आज शपथ लेनेवाली झारखंड सरकार ने लिया है | जो सरकार भी यदि जुमला निकला तो मैं खुद भी चाहुँगा की प्रजा अगली चुनाव में जुमलाबाज ठग और झुठे वादे , झुठे निश्चय और वचन लेकर आई आज के दिन शपथ लेनेवाली झारखंड सरकार को भी उखाड़ फैके ! और यदि अपने निश्चय पत्र में किये गए वचन को सरकार पुरा करती है तो 2024 ई० में झारखंड में बनी सरकार को ही पुरे देश की प्रजा देश की सरकार चुनकर इस देश को गरिबी भुखमरी मुक्त करने का निश्चय कर ले | पर चूँकि मुझे पता है कि आजतक किसी भी सरकार में गरिबी भुखमरी को दुर करने की ताकत पैदा नही हो पाई है , इसलिए निश्चित तौर पर आज शपथ लेनेवाली सरकार में भी वह ताकत पैदा नही हो सकेगी , जिससे की वह अपने किये गए निश्चय को पुरा कर सकेगी ! क्योंकि मैं एक काल्पनिक फिल्म अजुबा में बताई गई एक बात से सहमत हूँ कि जिसके हाथो जो होने को होना तय रहता है , उसी के हाथो ही पहले से तय रहता है ! जिसे कोई दुसरा चाहे जितनी कोशिष करे नही कर सकता | जिस फिल्म में एक चमत्कारी तलवार एक दिवार के खंभे पर घुसी रहती है , जिसे सिर्फ वही निकाल सकता था जिसके द्वारा निकलने की तय थी | गरिबी भुखमरी को भी दुर वही करेगा जिसके हाथो पहले से तय है | जो तय किसके हाथो है , उस एक चमत्कारी इंसान की तलास पुरी दुनियाँ के गरिबो को है | जिसे मैं सारे अवतर और महात्मा व महान लोगो से भी ज्यादे बड़कर मानता हूँ ! जिसमे पुरी दुनियाँ की गरिबी भुखमरी दुर करने की चमत्कारी सोच और हुनर मौजुद होगी !

हिन्दू मुस्लिम को लड़ाने वाला मनुवादी दरसल हिन्दू ही नही हैं

हिन्दू मुस्लिम को लड़ाने वाला मनुवादी दरसल हिन्दू ही नही हैं
khoj123,हिन्दू


हिन्दू कलैंडर अनुसार इस देश में जो बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाई जाती है उसे हिन्दू पर्व त्योहार कहा जाता है | और इन प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मनाने वाले लोग मुल हिन्दू हैं | क्योंकि इस सच्चाई पर किसी को भी एतराज नही होनी चाहिए कि इस देश के मुलनिवासियो ने ही इस देश की मुल सभ्यता संस्कृति और प्राकृतिक पर्व त्योहारो को अबतक सागर की तरह स्थिर करके रखा हुआ है | जिन्हे हिन्दू कहा जाता है , न कि मनुवादियो ने इस देश की सभ्यता संस्कृति और प्राकृति पर्व त्योहारो को अबतक स्थिर करके रखा हुआ है | जो बारह माह मनाये जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहार मनुवादियो के द्वारा इस देश में प्रवेश करने से पहले भी मनाई जाती थी | जिन प्राकृतिक पर्व त्योहारो के बारे में जिन लोगो को नही पता वे चाहे तो पुरे हिन्दुस्तान में घुम घुमकर पता कर ले कि उन पर्व त्योहारो को क्या मनुवादियो ने बाहर से इस देश में लाया है ? और यदि हिन्दू कलैंडर के अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मनाने वाले दलित आदिवासी पिछड़ी मुल हिन्दू नही हैं तो फिर बाकि धर्मो में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी उस दुसरे धर्म के कैसे हुए जिसे वे अपना धर्म बतलाते हैं ? क्योंकि उन्हे भी तो पता है कि वे दलित आदिवासी और पिछड़ी हैं | जाहिर है वे यही जवाब देंगे कि उन्होने अपना धर्म परिवर्तन करके उस धर्म को अपना लिया है ! और जब वे अपना धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्मो को अपना लिया है तो निश्चित तौर पर वे किसी धर्म में पहले से मौजुद थे | जैसे कि आज भी उनके ही डीएनए के ज्यादेतर दलित आदिवासी और पिछड़ी मौजुद हैं | और यदि दुसरे धर्मो में जानेवाले दलित आदिवासी और पिछड़ी मुलनिवासी लोग अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मनाते हुए ही इस देश में पुजा पाठ करते थे तो जाहिर है वे भी हिन्दू धर्म में ही मौजुद होंगे | क्योंकि हिन्दू कलैंडर के अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार इस देश में तब से मनाई जा रही है जब इस देश में कोई दुसरा धर्म मौजुद ही नही था | क्योंकि बुद्ध और महावीर भी अंबेकर की तरह हिन्दू परिवार में जन्म लेकर हिन्दू धर्म में मौजुद अप्राकृति ढोंग पाखंड का विरोध किया था , न कि प्राकृति में मौजुद उस सत्य का विरोध किया था जिसकी तलाश उन्होने भी किया है | जिस सत्य की पुजा हिन्दू करता है | जिसमे मनुवादियो ने ढोंग पाखंड और छुवा छुत का संक्रमण कर दिया है | जो बात अपना हिन्दू धर्म परिवर्तन करने वालो को जरुर पता होनी चाहिए कि छुवा छुत ढोंग पाखंड मनुवादियो द्वारा दिए गए हैं | मुल हिन्दू छुवा छुत नही करता | जैसे की अंबेडकर भी हिन्दू धर्म में रहते कभी भी छुवा छुत नही किए | और न कोई अन्य मुलनिवासी हिन्दू छुवा छुत करता है | जो मुल हिन्दू प्राकृति की पुजा करके कोई छुवा छुत और ढोंग पाखंड नही करता है | बल्कि साक्षात मौजुद उस सत्य प्राकृति की पुजा करता है , जिसपर सारे धर्मो के लोग ही नही पुरी दुनियाँ टिकी हुई है | जिस प्रमाणित साक्षात सत्य की पुजा करनेवाला हिन्दू धर्म में ढोंग पाखंड और छुवा छुत का संक्रमण मनुवादियो ने किया है |  जिस छुवा छुत और ढोंग पाखंड का विरोध करते हुए बौद्ध और जैन धर्म को जन्म दिया गया है | छुवा छुत और ढोंग पाखंड का विरोध करने वाले बुद्ध और महावीर के नाम से ही बौद्ध और जैन धर्म को बाकि सभी धर्मो के लोग जानते हैं | जिस बुद्ध और महावीर का जन्म से पहले भी यदि इस देश में किसी की पुजा की जाती रही है तो वह प्राकृति की पुजा की जाति रही है | जिसके बाद ही बुद्ध और महावीर का मंदिर बनाकर उनकी मूर्ति पुजा की सुरुवात हुई है | जिससे पहले बुद्ध और महावीर के परिवार में मौजुद लोग किसकी पुजा करते थे ? क्या वे बुद्ध और महावीर के जन्म से पहले भी बुद्ध और महावीर की ही पुजा करते थे ? मनुवादि भी ब्रह्मा विष्णु इंद्रदेव और राम हनुमान वगैरा के जन्म से पहले किसकी पुजा करते थे ? बल्कि इस देश के वे मुलनिवासी जो अपना धर्म परिवर्तन करके अब दुसरे धर्मो के मुताबिक पुजा पाठ करते हैं वे भी क्या यह नही जानते कि अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले वे किसकी पुजा करते थे ? और वे किसे धारन किये हुए अथवा किस धर्म में मौजुद थे ! जैसे की अंबेडकर भी अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले हिन्दू धर्म में मौजुद थे | जिसके चलते ही तो उन्होने हिन्दू रहते हिन्दू कोड बिल भी लाया और हिन्दू मंदिरो में प्रवेश करने का आंदोलन भी चलाया | क्योंकि हिन्दू रहते हिन्दुओ द्वारा भेदभाव करते हुए हिन्दू मंदिरो में प्रवेश करने न दिया जाना दुनियाँ के किसी भी इंसान को जिसके पास थोड़ी बहुत भी यदि बुद्धी होगी तो ये सोचने के लिए मजबुर करेगा कि भेदभाव करके अन्याय अत्याचार हो रहा है | और फिर मनुवादियो ने तो खुदको जन्म से ही हिन्दू धर्म का पुजारी घोषित करके हिन्दू वेद पुराणो में मानो अपनी मनुवादि सत्ता कायम करने के बाद मनुस्मृति लागू करके जोर जबरजस्ती कब्जा करके हिन्दू वेद पुराणो का ज्ञान लेना और हिन्दू मंदिरो में प्रवेश करना मना करके रखा हुआ था | जो आज भी मनुवादियो द्वारा छुवा छुत करते हुए कई मंदिरो में इस देश के मुल हिन्दुओ को प्रवेश मना है | मनुवादियो द्वारा उच्च निच भेदभाव करके मंदिरो में शुद्रो का प्रवेश मना है बोर्ड गोरो की गुलामी के समय भी लगा हुआ रहता था | इसलिए तो गोरो की गुलामी में भी भेदभाव के खिलाफ आंदोलन चलती रहती थी |  जिसके चलते अंबेडकर ने गोरो से अजादी मिलने से बहुत पहले ही मनुस्मृति को जलाया था | जिस तरह के आंदोलन अब भी चल रहे हैं | जो आंदोलन चलाने वाले मुल हिन्दू हैं | न कि उनका कोई धर्म ही नही है और वे हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाते हुए पुजा करने वाले सभी मुलनिवासी नास्तिक हैं | जिन मुल हिन्दुओ द्वारा हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो के खिलाफ क्या वे खुदके ही खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं ! असल में हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाने और प्राकृति पुजा पाठ करने वाले इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों का कोई धर्म नही है ऐसा इसलिए भी कहा जाता है ताकि उन्हे दुसरे धर्म के नाम से भ्रमित करके धर्म परिवर्तित कराया जा सके | जिसके लिए ही तो लार टपकता रहता है उन लालची लोगो का जिनको इस देश के मुल हिन्दुओ को हिन्दू नही है कहते हुए सिर्फ इस बात से मतलब रहता है कि किसी तरह बस मनुवादियो द्वारा शोषण अत्याचार का शिकार मुल हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके उनके साथ हो लें ! और उनका धर्म के नाम से चलने वाला धँधा में दिन दोगुणी रात चौगुणी बड़ौतरी हो | जिनमे बहुत से वैसे मुलमिवासी भी हैं जो हिन्दू धर्म को मनुवादियो का धर्म समझकर दुसरे धर्मो में जाकर सायद अब पराया धर्म महसुश करते हुए अपने ही डीएनए के मुल हिन्दुओ की प्राकृति पर्व त्योहारो से जलते हैं | क्योंकि हिन्दू सभ्यता संस्कृति में रहकर उन्होने जिस  धर्म को अपनाया है वहाँ पर इतनी सारी पर्व त्योहार मौजुद नही हैं जितने कि हिन्दू धर्म में मौजुद हैं | जो कि निश्चित तौर पर इतने सारे पर्व त्योहार इस देश में मनुवादियो और दुसरे गुलाम और दास बनाने वाले विदेशी कबिला का प्रवेश से पहले  सबसे अधिक सुख शांती और समृद्धी  लानेवाली उत्सव हुआ करती होगी | जिन बारह माह मनाये जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मनाने वाले इस देश के मुलनिवासी मुल हिन्दू हैं | न कि मुल हिन्दू छुवा छुत करने वाले मनुवादि हैं | जिन छुवा छुत करने वाले मनुवादियो के द्वारा बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहारो को जन्म नही दिया गया है | इतनी तो जानकारी कम से कम उन लोगो को जरुर होनी चाहिए जो मनुवादियो के ढोंग पाखंड और छुवा छुत के खिलाफ अपनी भड़ास निकालने के लिए इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी को हिन्दू नही हैं कहकर यह झुठ बोलते रहते हैं कि हिन्दू धर्म मनुवादियों का है | जिन लोगो में चाहे जो कोई भी हो उन्हे हिन्दू धर्म के बारे में जानकारी वैसा हि है जैसे कि यदि गोरे अंग्रेज इस देश को गुलाम करने के बाद हिन्दू धर्म का ठिकेदार बनकर हिन्दू वेद पुराणो में मिलावट और छेड़छाड़ करके अपनी ढोंग पाखंड और छुवा छुत संक्रमण देकर हिन्दू धर्म को अपनी सोच से दुनियाँ के सामने परोसते तो ये इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू नही हैं कहने वाले लोग गोरो को भी मुल हिन्दू कहकर इस देश के मुलनिवासियों को यह झुठ ज्ञान बांटकर भ्रमित करते कि आप हिन्दू नही हो ! क्योंकि मनुवादि गोरो की तरह विदेशी मुल के लोग हैं यह बात साबित हो चुका है | जो इस देश में इतने सारे प्राकृति पर्व त्योहारो और हिन्दू वेद पुराणो को जन्म देना तो दुर इस देश में प्रवेश करके परिवार समाज को भी जन्म नही दिया है | जिसका प्रमाण एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से पुरी दुनियाँ को मिल चुका है कि सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण और हिन्दू वेद पुराणो की रचना करने वाले इस देश के मुलनिवासियों का डीएनए से मनुवादियों का डीएनए नही मिलता है | बल्कि मनुवादियो का डीएनए यूरेशियन डीएनए से मिलता है | जिन्होने सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति और हिन्दू वेद पुराणो की रचना नही किया है | जैसे कि मनुवादियो का डीएनए जिन यहूदियो का डीएनए से मिलता है , उन यहूदियो ने इस देश की सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति और हिन्दू वेद पुराणो की रचना नही किया है | बल्कि इस कृषि प्रधान देश में मौजुद परिवार समाज और गणतंत्र का निर्माण भी मनुवादियों ने नही किया है | क्योंकि मनुवादियों के परिवार में मौजुद महिलाओ का एम डीएनए और इस देश के मुलनिवासियों के परिवार में मौजुद महिलाओ का एम डीएनए एक है | अथवा मनुवादियों के परिवार में मौजुद सिर्फ पुरुषो का डीएनए यूरेशियन लोगो के डीएनए से मिलता है | जिसका मतलब साफ है कि मनुवादि सिर्फ पुरुष इस देश में आये हैं | जिन्होने इस देश के परिवार समाज से अपना परिवारिक रिस्ता जोड़कर ही अपना आगे का वंशवृक्ष बड़ा करने के बाद भेदभाव करना सुरु किया है | रही बात यहूदि डीएनए का मनुवादि इस देश में प्रवेश करके हिन्दू कैसे हो गया तो ये बात खुद मनुवादियों से हि पुच्छा जाय कि उन्होने सिन्धु पहचान से जुड़ा हिन्दू धर्म को कब अपनाया है | और यह भी पुच्छा जाय कि हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह जो प्राकृतिक पर्व त्योहार इस देश के मुलनिवासियों द्वारा खुशियों का मेला लगाकर आपस में जोड़ाकर नाच गान करते हुए बिना छुवा छुत के मनाई जाती है , उन पर्व त्योहारो में छुवा छुत करने वाले मनुवादि मेला में कैसे भाग लेते हैं , और पकवान परसाद वगैरा मिल जुलकर खान पान कैसे करते हैं ? खासकर तब जबकि भिड़ में वे लोग मौजुद हों जिनसे छुवा जाने में मनुवादियों का शरिर अपवित्र हो जाता है | खैर संभवता पुरुष झुंड बनाकर इस देश में प्रवेश करने के बाद चूँकि मनुवादियों ने इस देश के परिवार समाज और गणतंत्र से रिस्ता जोड़ लिया है , इसलिए उन्होने हिन्दू धर्म से भी छुवा छुत का रिस्ता जोड़ लिया है | हलांकि मनुवादि खुदको हिन्दू जरुर कहता है , पर वह मुल रुप से हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को नही मनाता और न ही वह प्राकृति की पुजा करता है | क्योंकि वह तो मुल रुप से अपने पुर्वज देवो की पुजा करता और कराता है | जिसके आधार पर मुल हिन्दू पर्व त्योहार नही मनाई जाती है | क्योंकि हिन्दू कलैंडर अनुसार इस कृषि प्रधान देश में बारह माह जो प्राकृतिक पर्व त्योहारो के रुप में उत्सव मनाई जाती है वह कोई देवताओ की पुजा उत्सव नही है | हाँ हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मसलन सुर्य हवा पानी पेड़ पौधा पहाड़ पर्वत अन्न धरती वगैरा प्राकृति पुजा को सुर्य देवता पुजा वगैरा का उत्सव में परिवर्तित करके देवता पुजा घोषित करने की कोशिष जरुर जारी है | पर उनकी कोशिष वैसा ही है जैसे कि शैतान सिकंदर समेत और भी कई विदेशी लुटेरो द्वारा इस में प्रवेश करके इस देश की मुल हिन्दू सभ्यता संस्कृति को मिटाने की कोशिष हजारो सालो से होती रही है | उसी तरह हिन्दू पर्व त्योहारो की मुल पहचान को भी मनुवादि चाहे हजारो सालो तक और भी मिटाने की कोशिष क्यों न कर लें वे कभी भी इस देश में हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह मानाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहारो की मुल पहचान को सूर्य देवता और अन्न देवता कहकर नही मिटा सकते | जैसे कि सिन्धू को हिन्दू और इंडु कहने से इस देश की सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति की पहचान नही मिटती है | हिन्दू पुजा स्थलो में यदि सूर्य और अन्न वगैरा प्राकृति की पुजा की जाती है तो उन पुजा स्थलो की पुजारी बनकर मनुवादि हिन्दू पुजा को सूर्य देव और अन्न देव पुजा कहकर यदि उन हिन्दू पुजा स्थलो में इस देश के मुलनिवासियों को प्रवेश करने से रोकते हैं तो निश्चित तौर पर मनुवादियों द्वारा उन पुजा स्थलो में जोर जबरजस्ती कब्जा करके खुदको हिन्दू बताकर ढोंग पाखंड भेदभाव होती है , जो कि हिन्दू धर्म की सभ्यता संस्कृति नही है | क्योंकि हिन्दू दरसल सिन्धु नदी के किनारे जो सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण इस देश के मुलनिवासिसों ने हजारो साल पहले किया है , उसकी पहचान और उसके नाम को पुरे विश्व में हजारो साल पहले से ही पुरे विश्व के लोग जानते हैं , इसलिए बाहर से आनेवाले विदेशियों ने ही सिन्धु पहचान को अपनी अपनी भाषा बोली के मुताबिक इस सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों को सिन्धु पहचान से हिन्दू नाम दिया है | जिसे दुसरी भाषा में सिन्धु नदी के किनारे अपनी सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वालो को मुल हिन्दुस्तानी कहा जा सकता है | जिन्हे कभी मनुवादियों का गुलाम भी कहा जाता रहा है | बल्कि अभी भी तो मुल हिन्दू अपने ही धर्म में गुलाम हैं | जैसे कि कभी गोरो से भी अपने ही देश में गुलाम थे | जिनसे अजादी पाने के लिये क्या देश छोड़ना ज्यादा जरुरी था कि अपने देश को अजाद करने के लिए अपने ही देश की मिट्टी से जुड़कर अजादी संघर्ष करना ज्यादे बेहत्तर है | जैसे कि मनुवादियों से अजादी पाने के लिये अपना हिन्दू धर्म को मनुवादियो का धर्म कहकर छोड़ना जरुरी नही है | क्योंकि यदि मनुवाद से अजादी अपना हिन्दू धर्म को छोड़कर मिल जाता तो वह अपना धर्म परिवर्तन करने के बाद मनुवादियो के शोषण अत्याचार से अजादी पाने की संघर्ष में कभी भी भाग नही लेता | जिसे प्रयोगिक रुप से देखनी हो तो मनुवादियो के खिलाफ हो रहे आंदोलन संघर्ष में कभी पता कर लिया जाय कि अपना हिन्दू धर्म को परिवर्तन करने वाले लोग शामिल होते हैं कि नही होते हैं ? जो स्वभाविक है क्योंकि सिन्धु को फारस और अरब के लोगो ने अपने भाषा बोली के अनुसार यदि हिन्दू कहा है तो इससे सिन्धु मनुवादियो की नही हो जाती है | और यदि अरब और फारस के लोगो की भाषा बोली में स का उच्चारण ह होता है तो वे सिन्धु को ही हिन्दू कहें हैं | न कि सिन्धु पहचान उनकी दी हुई है | सिन्धु को हिन्दू अपनी भाषा बोली से सिन्धु को उन्होने हिन्दू कहा है | जैसे की यूनान के लोगो ने अपनी भाषा बोली के मुताबिक सिन्धु को इंडु कहा है | सिन्धु नदी को पश्चिम से आए हुए कबिलई ने इंडस नदी कहा इसलिए जाहिर है इंडस से इस देश का नाम इंडिया हो गया | और फारस अरब के लोगो की भाषा बोली में सिन्धु से हिन्दुस्तान हो गया | जाहिर है सिन्धु से हिन्दू और इंडू दो शब्द विदेशियो द्वारा दिया गया है | लेकिन दोनो का मतलब एक है | जैसे कि सभी को पता है कि सिन्धु नदी और इंडस नदी एक है | सिर्फ अलग अलग भाषा बोली की वजह से एक नाम का अलग अलग कई नाम हो जाते हैं | लेकिन उसकी मुल पहचान वही है जो वह है | जैसे कि चीन को कोई चाईना कहता है तो कोई रुस को रशिया | जिससे रुस और चीन की मुल पहचान अलग नही हो जाती ! उसी तरह इंडिया और हिन्दुस्तान की पहचान सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति की पहचान से जुड़ा हुआ है | न कि विदेशी मुल के मनुवादियो की पहचान से हिन्दू पहचान जुड़ा हुआ है | क्योंकि सिन्धु पहचान से ही हिन्दू धर्म की पहचान जुड़ा हुआ है | जो हिन्दू शब्द यदि विदेशियो ने दिया है यह इतिहास दर्ज है तो यह इतिहास भी दर्ज जरुर है कि हिन्दू पहचान को विदेशियो ने किनको दिया है ? अबतक समझने वालो को समझ आ गया होगा कि हिन्दू और इंडु पहचान सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति के निर्माता इस देश के मुलनिवासियों को दिया गया है | रही बात मनुवादियों की मुल पहचान तो फिर क्या है ? तो इस सवाल का जवाब मनुवादि जिस यूरेशिया से आये हैं , वहाँ जाकर खोजा जाय ! वैसे बहुत से मनुवादियों ने अपनी मुल पहचान को खोजने का प्रयाश समय समय पर जरुर किया है ! 

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

मैं 52% ओबीसी हूँ के बजाय 85% मूलनिवासी हूँ कहकर अपनी अवाज सुनानी चाहिए थी

मैं 52% ओबीसी हूँ के बजाय 85% मूलनिवासी हूँ कहकर अपनी अवाज सुनानी चाहिए थी
khoj123 sc,st,obc


न कि ST,SC,OBC जिन सबका DNA एक है , जिससे मनुवादियो का DNA नही मिलता है ,


 वे सभी अपनी अपनी जनसंख्या बताकर अपनी अलग अलग मांग करते हुए मनुवादियो को फुट डालो और राज करो की नीति अपनाने का मौका इसी तरह देते रहें ! बल्कि दिया जा रहा है ! नही तो 15% कथित उच्च जाति के लोगो की पार्टी को 30-40% का वोट कैसे मिलती है ? जाहिर है आधी वोट बंटे हुए SC,ST,OBC और इन्ही में से जिन्होने अपना धर्म परिवर्तन करके बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक कहे जाते हैं , उनके वोट द्वारा ही कथित उच्च जाति की अबादी 15% होते हुए भी उनकी पार्टी को 30-40% वोट मिल रही है ! जो जबतक पड़ती रहेगी तबतक इस तरह के अन्याय अत्याचार होते रहेंगे ! जिससे मुक्त होना है तो SC,ST,OBC और इन्ही में जिन्होने अपना धर्म परिवर्तन करके बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक कहे जाते हैं , वे सभी एकजुट होकर मन में ये संकल्प ले लें कि जो पार्टी कथित उच्च जाति के दबदबा से चल रही है , उसे अपना वोट न करें और न ही उस पार्टी से चुनाव लड़ें ! फिर देखें सरकार किसकी बनती है ,15% कथित उच्च जातियो का या फिर 85% उन मुलनिवासियों का जिनका DNA एक है ! जिसे यदि गंभिरता से नही लिया गया तो निश्चित तौर पर अपने ही पाँव में कुल्हाड़ी मारकर आगे भी मनुवादि शासन बरकरार रहेगी ही !

The chains of slavery

 The chains of slavery The chains of slavery The dignity of those who were sent by America in chains is visible, but not the chains of slave...