मनुवाद से आजादी पाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासी दरसल उस शुतुरमुर्ग की तरह हैं , जो आँधी आने पर अपना सर रेत में घुसा लेता है

मनुवाद से आजादी पाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासी दरसल उस शुतुरमुर्ग की तरह हैं , जो आँधी आने पर अपना सर रेत में घुसा लेता है


khoj123,धर्म परिवर्तन हिन्दू


मनुवादियों की जुल्म से अजादी पाने के लिए हिन्दू धर्म छोड़कर दुसरे धर्मो में जानेवाले इस देश के मुलनिवासी दरसल वैसे शरणार्थी की तरह  हैं , जो अपने ही देश में रह रहे दुसरे धर्मो के घरो में यह सोचकर शरण लेते या ले रहे हैं कि वहाँ पर जाकर उनके साथ अपमानित और लहु लुहान जुल्म होना बंद हो जायेगा | जो बात यदि सत्य होती तो धर्म परिवर्तन करने के बाद उनपर कभी भी हमले नही होते और न ही कभी धर्म के नाम से मार काट होती | बल्कि धर्म परिवर्तन के बाद उनकी जिवन में सुख शांती और समृद्धी आ जाती | दुसरे देशो में शरण लेने वाले शरणार्थी तो मुलता अपने देश में मौजुद शोषण अत्याचार करने वालो के जुल्म से छुटकारा पाने के लिये दुसरे देशो में शरण लेते हैं , पर अपने ही देश में रहकर धर्म परिवर्तन करके अपने ही देश में मौजुद मनुवादियों की जुल्म से अजादी मिल जायेगी ऐसे झुठे उम्मिद करने वाले मुलनिवासी कहीं ये तो नही सोचते हैं कि मानो मनुवादियो द्वारा गुलाम देश में वे धर्म परिवर्तन करके मनुवादियों के जुल्म से अजादी पा लेंगे | जो यदि वे वाकई में सोचते हैं तो निश्चित रुप से वे उस शुतुरमुर्ग की तरह हैं , जो आँधी आने पर अपना सर रेत में घुसा लेता है | क्योंकि मनुवादियो द्वारा शोषण अत्याचार की आँधी चल रही है और उस बिच अपना धर्म परिवर्तन करके ये समझ लेना की अब मनुवादियो से अजादी मिल गयी है इस बात में कितनी सच्चाई है ? क्या यह मान लिया जाय कि मनुवादियो की गुलामी से अजादी पाने के लिये अपना धर्म परिवर्तन करने वाले मुलनिवासी मनुवादियों के खिलाफ अब कोई संघर्ष आंदोलन ही नही कर रहे हैं क्योंकि धर्म परिवर्तन करने से उन्हे मनुवादियों से अजादी मिल गयी है ? जो अजादी संघर्ष और आंदोलन सिर्फ धर्म परिवर्तन करने से पहले कर रहे थे | जैसे कि जो मुलनिवासी अब भी अपना हिन्दू धर्म को परिवर्तन नही किये हैं वे मनुवादियों के जुल्मो से अजादी पाने के लिये अपमानित और लहु लुहान होकर अब भी संघर्ष आंदोलन कर रहे हैं | क्या वाकई में धर्म परिवर्तन करने के बाद मनुवादी से अजादी मिल जाती है | और यदि वाकई में सिर्फ वही मुलनिवासी मनुवादियो के खिलाफ अजादी लड़ाई मैदान में जमे हुए हैं , जिन्होने चाहे जितनी शोषण अत्याचार की आँधी आए उससे डटकर संघर्ष कर रहे हैं तो क्या बाकि सब मनुवादियों द्वारा अपमानित और लहुलुहान होने से बचने के लिए मैदान छोड़ दिये हैं ? या फिर शुतुरमुर्ग की तरह अपना सर रेत में घुसा लिये हैं ! क्या ईसाई धर्म को मानने वाले विदेशी गोरो से भी अजादी पाने के लिये अपना धर्म परिवर्तन किया जाता था ? बाहर से आए सुरुवात के मुस्लिम शासक तो दुसरे धर्मो के लोगो से जजिया कर लेते थे | जो इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू मानकर जजिया कर तो लेते थे पर वे मनुवादियों से जजिया कर नही लेते थे | बल्कि हिन्दूओं को वे मनुवादियो का गुलाम मानते थे | और हम सबको पता है कि मनुवादियो का गुलाम कौन था या है | जजिया कर धार्मिक कर है , जो बाहर से आए सुरुवात के मुस्लिम शासको द्वारा दुसरे धर्मो के लोगो से ली जाती थी | अपना धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम बने इस देश के मुलनिवासियों द्वारा नही ली जाती थी | हलांकि कुछ मनुवादियों का कहना है कि जजिया कर ब्रह्मणो से इसलिए नही लिया जाता था क्योंकि वे आर्थिक रुप से सक्षम नही थे और दान दक्षिणा से अपना जिवन गुजारा करते थे | जिनके तर्को में कितनी सच्चाई है यह तो वर्तमान के खुद ब्रह्मण परिवारो में मौजुद बहुत से ऐसे सदस्य ही पुरी सच्चाई बतला सकते हैं जो विदेशी बैंको में भी गुप्त खाता खोलकर दिन रात धन बटोरने में लगे हुए हैं | और पहले के भी ब्रह्मण जो सोमनाथ जैसे मंदिरो का पुजारी हुआ करते थे , वे भी पुरी सच्चाई जानते थे कि वे आर्थिक रुप से कितने सक्षम थे | उस समय सोमनाथ जैसे मंदिरो के पुजारी धनवान थे कि उन पुजारियों से छुवा छुत का शिकार होने वाले इस देश के वे मुलनिवासी धनवान थे , जिनके हक अधिकारो को हजारो सालो से छिना और कब्जा किया गया है ! जैसे की बाहर से आनेवाले मनुवादियों द्वारा इस देश में कब्जा करके हिन्दू धर्म का ठिकेदार बनने के बाद वेद पुराणो का ज्ञान लेने का हक अधिकार छिना जाता रहा है | इस देश के मुलनिवासियों को मनुवादियो द्वारा वेद पुराण ज्ञान लेने से रोका जाता रहा है | जबकि इस देश के मुलनिवासियों ने हिन्दू वेद पुराणो की रचना किया है | हिन्दू वेद पुराणो के रचनाकार मुल हिन्दू हैं कि ढोंग पाखंड छुवा छुत का रचनाकर मुल हिन्दू हैं | जाहिर है मुल हिन्दू इस देश के मुलनिवासी हैं , जो बारह माह प्राकृति पर्व त्योहारो को मनाता है | न कि मनुवादि मुल हिन्दू हैं | मनुवादि तो मुलता देव पुजा करता है | न कि वह प्राकृति पुजा और प्राकृति पर्व त्योहार मनाता है | हाँ हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में कब्जा करके अथवा हिन्दू धर्म का ठिकेदार बनके वेद पुराणो में छेड़छाड़ और मिलावट करके अपनी देवता पुजा को हिन्दू पुजा साबित करने में वह जरुर हजारो सालो से लगा हुआ है | जिसके लिये वह हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को देवता पुजा करने वाला पर्व त्योहार साबित करने की कोशिष में लंबे समय से लगा हुआ है | ताकि वह झुठ को सत्य साबित करके हिन्दू धर्म , हिन्दू पर्व त्योहार और हिन्दू पुजा दरसल मनुवादियों के पुर्वज देवताओ की पुजा है | जबकि असल में हिन्दू पुजा प्राकृति पुजा है | जो साक्षात विज्ञान और प्राकृति अधारित मान्यता है | न की मनुवादियो की अप्राकृति ढोंग पाखंड मान्यता है | इसलिए जब भी कोई व्यक्ती जो चाहे जिस धर्म से जुड़ा हुआ है , वह यदि इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी को हिन्दू नही बल्कि मनुवादियो को हिन्दू कहता है तो उन्हे पहले सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति के बारे में जाननी समझनी चाहिए फिर उन्हे यह बतानी चाहिए कि सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति से जुड़ी पहचान इस देश के मुलनिवासियों की है कि यूरेशियन डीएनए के मनुवादियों की है | क्योंकि जिन्हे सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति से जुड़ी मुल पहचान इस देश के मुलनिवासियों की है ये बात समझ में आती है तो निश्चित तौर पर उन्हे ये बात भी समझ में आ जायेगी कि इस देश के मुलनिवासियों को ही विदेशी लोगो ने हिन्दू कहा है , न कि बाहर से आए मनुवादियों को हिन्दू कहा है | और जिनका मानना है कि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराण यहाँ तक की संस्कृत भाषा भी विदेशी है , ऐसे झुठ फैलाने वाले मुलनिवासियों की बुद्धी मेरे विचार से तो मनुवाद से अजादी पाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करने के बाद भी मनुवादियों से अजादी अबतक क्यों नही मिली है इस सवाल का जवाब जिस धर्म में गये हैं उनसे अबतक भी नही मिल पाने की वजह से अति तनाव झेल नही पाने की वजह से उनकी बुद्धी बिमार संक्रमित और भ्रष्ट हो गयी है | जिससे पहले उनकी बुद्धी ज्यादे बेहतर थी | और वे हिन्दू धर्म में रहकर मनुवादियों के खिलाफ मजबुती से लड़ रहे थे | पर जैसे ही उन्होने अपना धर्म परिवर्तन करने के बारे में सोचना सुरु किया या फिर धर्म परिवर्तन किया उनकी बुद्धी बिमार संक्रमित और भ्रष्ट होनी सुरु हो गयी | जिसके बाद तो उन्हे यह भ्रम लगातार होना सुरु हो गया कि अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले वे हिन्दू धर्म के खिलाफ मजबुती से लड़ रहे थे ! मैं धर्म परिवर्तन करने वाले ऐसे मुलनिवासियों को भ्रष्ट बिमार और संक्रमित बुद्धी नही कह रहा हूँ जो कि गंगा जमुना तहजीब की बाते करके अपनी मुलनिवासी एकता को धर्म परिवर्तन करके भी मुलनिवासी हिन्दूओ को बिना ताना मारे कायम रखे हुए हैं | बल्कि उन्हे कह रहा हूँ जो खुदको सबसे विद्वान और हुनरमंद समझकर अहंकार में चुर होकर हिन्दू और हिन्दू धर्म को दिन रात मानो गाली देने में लगे हुए हैं | जो अपनी बुद्धी को संक्रमित भ्रष्ट बिमार करके इस देश के मुलनिवासी हिन्दूओ को दिन रात गाली देकर और अपमान करके बुद्धी नही है , हुनर नही है , तुम बुद्धी बल से मनुवादियो के आगे कमजोर हो इसलिए तुम्हे अपने पिछवाड़े की टटी पोछाकर फैकने वाली पत्थर की तरह मनुवादि इस्तेमाल करके फैंक देते हैं लगातार कहते रहते हैं | जिन्हे दिन रात गाली देते और अपमान करते हुए कम से कम इस बात का तो ध्यान रखनी चाहिए कि अंबेडकर भी तबतक हिन्दु ही थे जबतक कि वे धर्म परिवर्तन नही किये थे ! जिन्होने हिन्दू रहते देश विदेश में मनुवादियों से भी अधिक कई उच्च डिग्री हासिल किया और मनुस्मृति को जलाकर अजाद भारत का संविधान व हिन्दू कोड बिल रचना भी किया | न कि वे धर्म परिवर्तन करके इससे भी ज्यादे उपलब्धि हासिल किये हैं | जो सब जानने के बाद भी मुलनिवासी हिन्दू को टटी पोंछाकर फैंक देने वाली पत्थर जैसा ताना देना तर्क संगत लगती है क्या ? क्या अंबेडकर जब हिन्दू रहकर सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल कर रहे थे उस समय भी दुसरे धर्मो में जाकर गंगा जमुना तहजीब को नही मानने वाले लोग उन्हे भी इसी तरह के ताना देते थे ? खासकर जिनको लगता होगा कि बाहर से आकर ढोंग पाखंड और छुवा छुत करने वाले मनुवादि मुल हिन्दू हैं | जबकि उन्हे पता होना चाहिए कि विदेशी मुल का मनुवादी जबतक खुदको हिन्दू कहने में गर्व महसुश करता रहेगा तबतक वह ताकतवर और शासक है | जो बात मनुवादि अच्छी तरह से जानता है | जिसे यह भी कहा जा सकता है कि खुदकी झुठी शान को बचाये रखने के लिये हिन्दू धर्म उनके लिए सबसे अच्छी पसंद है | और वैसे भी अलग अलग समय में इंसानो द्वारा पैदा किया बहुत सारे धर्मो में इंसान किसी भी धर्म को अपना सकता है | किसी को यहूदि धर्म पसंद है , किसी को मुस्लिम धर्म तो किसी को ईसाई धर्म पसंद है | किसी को बौद्ध धर्म पसंद है , तो किसी को जैन धर्म पसंद है | उसी तरह इस देश में बाहर से आए मनुवादियों को हिन्दू धर्म पसंद है | जो मनुवादि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो के रचनाकार नही बल्कि उसमे प्रवेश करके छोड़छाड़ मिलावट और अपनी ढोंग पाखंड छुवा छुत सोच के मुताबिक किया है | इसलिए निश्चित तौर पर बाहर से आने वाले मनुवादीयो की कब्जे से छुटकारा पाने के बाद ही हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में मौजुद साक्षात प्राकृति पुजा की सच्चाई पुरी दुनियाँ के सामने आयेगी | जिससे पहले तो मनुवादि बहुतो के बुद्धी को ब्रेनवाश करके यह मनवाने में कामयाब होते रहेंगे कि देव पुजा ही हिन्दू धर्म है | हलांकि हम जैसो के द्वारा सत्य ज्ञान बांटने से हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में ढोंग पाखंड छुवा छुत की मिलावट करने वालो की बहुत सी पोल खुलते जा रही है | जिस सत्य ज्ञान में कमी न आए इसके लिए यह मंथन भी जारी है कि कब्जा करने के लिए मनुवादि खुदको हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो का तो ठिकेदार जन्म से बना लिये हैं , पर वे हिन्दू धर्म को कितना मानते हैं ये उनकी अपनी मान्यता है कि वे हिन्दू पुजा का मतलब देव पुजा मानते हैं कि प्राकृति पुजा मानते हैं | और चूँकि मनुवादि मानो हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो का ठिकेदार खुदको बना रखा है , इसलिए जबतक मनुवादि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो का ठिकेदार बना रहेगा , तबतक हिन्दू धर्म क्या है , और हिन्दू धर्म को मानने वाले मुल हिन्दू कौन है , इसके बारे में अधुरी जानकारी बंटते रहेगी | मसलन देव पुजा को मुल हिन्दू पुजा कहकर मुल हिन्दू देव को अपना पुर्वज मानने वाले मनुवादियों को मुल हिन्दू कहकर इस देश के मुलनिवासी जो कि मुल हिन्दू है , उसे इस देश का दलित आदिवासी पिछडी हिन्दू नही है यह झुठ बतलाने वालो की तादार बड़ते रहेगी | जो स्वभाविक है , क्योंकि छुवा छुत करनेवाला मुल हिन्दू है कि छुवा छुत का शिकार होनेवाला दलित आदिवासी पिछड़ी मुल हिन्दू है ? इस सवाल का पुर्ण सत्य जवाब  तब दिया जा सकेगा उन लोगो को जो की इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी को हिन्दू नही है और मनुवादी मुल हिन्दू हैं , यह ज्ञान बांटते रहते हैं जब हिन्दू वेद पुराणो में मौजुद हिन्दू पुजा का पुर्ण सत्य पुरी तरह से सामने आयेगी | जो पुरी तरह से सामने तब आयेगी जब मनुवादि हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो की ठिकेदारी से मुक्त होकर इस देश के मुलनिवासियो द्वारा हिन्दू वेद पुराणो में की गई मिलावट और छेड़छाड़ में सुधार की जायेगी | बल्कि वह सुधार होना बहुत पहले सुरु भी हो चुका है | जिस सुधार को हिन्दू धर्म के विरुद्ध में सुधार नही बल्कि मनुवादियों द्वारा मिलावट और छेड़छाड़ किया गया ढोंग पाखंड मान्यताओ में सुधार कहा जा सकता है | जैसा की मैने इससे पहले बतलाया कि हवा पानी अग्नि सुर्य वगैरा को प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से देख समझकर हिन्दू वेद पुरीणो में मौजुद प्राकृति और हिन्दू ज्ञान को जाना समझा जाय | और साथ ही बारह माह हिन्दू कलैंडर के अनुसार मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को भी प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा जाय , न कि देव पुजा समझा जाय | कुछ नासमझ लोग प्राकृति पुजा इस देश के आदिवासी करते हैं यह समझाने कि कोशिष इस उदारन से देते रहते हैं कि आदिवासी जंगलो में रहते हैं , और प्राकृति से ही जो कुछ मिल जाता है , उसी से अपना जिवन यापन करते हैं इसलिए वे प्राकृति को ही अपना सबकुछ मानकर उसकी पुजा करते हैं ! जिनके कहने का मतलब क्या यह है कि आदिवासी हमेशा से जंगलो में रहते आ रहे हैं , और प्राकृति पुजा सिर्फ आदिवासी ही करता है ? दलित पिछड़ी नही करता है | फिर प्राकृति सुर्य की छठ पुजा जैसे प्राकृतिक पर्व त्योहार जो कि हिन्दू धर्म में बारह माह मनाई जाती है , वह क्या मनुवादियो की देव पुजा है ? जबकि डीएनए रिपोर्ट भी आ चूकि है कि इस देश के मुलनिवासी दलित आदिवासी पिछड़ी और कथित उच्च जाती के कहलाने वालो के परिवार में मौजुद महिलायें भी इस देश के मुलनिवासी हैं , जिनके पुर्वज एक हैं | जो प्राकृति की पुजा सुरु से करते आ रहे हैं | अलग तो मनुवादि हैं जिनका डीएनए यूरेशियन डीएनए है | जाहिर है जब हिन्दू धर्म को मनुवादियों की देव पुजा न समझकर प्राकृति पुजा समझने की जानकारी जिसदिन सबको मिल जायेगी उसदिन हिन्दू धर्म क्या है ? सबको समझ में आ जायेगा और तब सायद मनुवादियों को भी इस सवाल का जवाब अच्छी तरह से मिल जायेगा कि हिन्दू वेद पुराणो में भगवान पुजा का मतलब क्या होता है ? जो जवाब जबतक नही मिलता तबतक इस देश के वे सभी मुलनिवासी मनुवादि और धर्म परिवर्तन करके ताना व गाली देनेवाले ब्रेनवाश भ्रष्ट और बिमार बुद्धी वालो से भी संक्रमन होने से बचे ! क्योंकि इन दोनो को ही हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो में मौजुद प्राकृति ज्ञान के बारे में समझ नही है | जिसके चलते दोनो ही हिन्दू धर्म और हिन्दू वेद पुराणो को अप्राकृति तरिके से समझने में लगे रहते हैं ! और उसे ही सत्य मानकर यह संक्रमण फैलाते रहते हैं कि हिन्दू पुजा का मतलब देव पुजा होता है |


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