हिन्दू मुस्लिम को लड़ाने वाला मनुवादी दरसल हिन्दू ही नही हैं
हिन्दू मुस्लिम को लड़ाने वाला मनुवादी दरसल हिन्दू ही नही हैं
हिन्दू कलैंडर अनुसार इस देश में जो बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाई जाती है उसे हिन्दू पर्व त्योहार कहा जाता है | और इन प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मनाने वाले लोग मुल हिन्दू हैं | क्योंकि इस सच्चाई पर किसी को भी एतराज नही होनी चाहिए कि इस देश के मुलनिवासियो ने ही इस देश की मुल सभ्यता संस्कृति और प्राकृतिक पर्व त्योहारो को अबतक सागर की तरह स्थिर करके रखा हुआ है | जिन्हे हिन्दू कहा जाता है , न कि मनुवादियो ने इस देश की सभ्यता संस्कृति और प्राकृति पर्व त्योहारो को अबतक स्थिर करके रखा हुआ है | जो बारह माह मनाये जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहार मनुवादियो के द्वारा इस देश में प्रवेश करने से पहले भी मनाई जाती थी | जिन प्राकृतिक पर्व त्योहारो के बारे में जिन लोगो को नही पता वे चाहे तो पुरे हिन्दुस्तान में घुम घुमकर पता कर ले कि उन पर्व त्योहारो को क्या मनुवादियो ने बाहर से इस देश में लाया है ? और यदि हिन्दू कलैंडर के अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मनाने वाले दलित आदिवासी पिछड़ी मुल हिन्दू नही हैं तो फिर बाकि धर्मो में मौजुद दलित आदिवासी पिछड़ी उस दुसरे धर्म के कैसे हुए जिसे वे अपना धर्म बतलाते हैं ? क्योंकि उन्हे भी तो पता है कि वे दलित आदिवासी और पिछड़ी हैं | जाहिर है वे यही जवाब देंगे कि उन्होने अपना धर्म परिवर्तन करके उस धर्म को अपना लिया है ! और जब वे अपना धर्म परिवर्तन करके दुसरे धर्मो को अपना लिया है तो निश्चित तौर पर वे किसी धर्म में पहले से मौजुद थे | जैसे कि आज भी उनके ही डीएनए के ज्यादेतर दलित आदिवासी और पिछड़ी मौजुद हैं | और यदि दुसरे धर्मो में जानेवाले दलित आदिवासी और पिछड़ी मुलनिवासी लोग अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मनाते हुए ही इस देश में पुजा पाठ करते थे तो जाहिर है वे भी हिन्दू धर्म में ही मौजुद होंगे | क्योंकि हिन्दू कलैंडर के अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार इस देश में तब से मनाई जा रही है जब इस देश में कोई दुसरा धर्म मौजुद ही नही था | क्योंकि बुद्ध और महावीर भी अंबेकर की तरह हिन्दू परिवार में जन्म लेकर हिन्दू धर्म में मौजुद अप्राकृति ढोंग पाखंड का विरोध किया था , न कि प्राकृति में मौजुद उस सत्य का विरोध किया था जिसकी तलाश उन्होने भी किया है | जिस सत्य की पुजा हिन्दू करता है | जिसमे मनुवादियो ने ढोंग पाखंड और छुवा छुत का संक्रमण कर दिया है | जो बात अपना हिन्दू धर्म परिवर्तन करने वालो को जरुर पता होनी चाहिए कि छुवा छुत ढोंग पाखंड मनुवादियो द्वारा दिए गए हैं | मुल हिन्दू छुवा छुत नही करता | जैसे की अंबेडकर भी हिन्दू धर्म में रहते कभी भी छुवा छुत नही किए | और न कोई अन्य मुलनिवासी हिन्दू छुवा छुत करता है | जो मुल हिन्दू प्राकृति की पुजा करके कोई छुवा छुत और ढोंग पाखंड नही करता है | बल्कि साक्षात मौजुद उस सत्य प्राकृति की पुजा करता है , जिसपर सारे धर्मो के लोग ही नही पुरी दुनियाँ टिकी हुई है | जिस प्रमाणित साक्षात सत्य की पुजा करनेवाला हिन्दू धर्म में ढोंग पाखंड और छुवा छुत का संक्रमण मनुवादियो ने किया है | जिस छुवा छुत और ढोंग पाखंड का विरोध करते हुए बौद्ध और जैन धर्म को जन्म दिया गया है | छुवा छुत और ढोंग पाखंड का विरोध करने वाले बुद्ध और महावीर के नाम से ही बौद्ध और जैन धर्म को बाकि सभी धर्मो के लोग जानते हैं | जिस बुद्ध और महावीर का जन्म से पहले भी यदि इस देश में किसी की पुजा की जाती रही है तो वह प्राकृति की पुजा की जाति रही है | जिसके बाद ही बुद्ध और महावीर का मंदिर बनाकर उनकी मूर्ति पुजा की सुरुवात हुई है | जिससे पहले बुद्ध और महावीर के परिवार में मौजुद लोग किसकी पुजा करते थे ? क्या वे बुद्ध और महावीर के जन्म से पहले भी बुद्ध और महावीर की ही पुजा करते थे ? मनुवादि भी ब्रह्मा विष्णु इंद्रदेव और राम हनुमान वगैरा के जन्म से पहले किसकी पुजा करते थे ? बल्कि इस देश के वे मुलनिवासी जो अपना धर्म परिवर्तन करके अब दुसरे धर्मो के मुताबिक पुजा पाठ करते हैं वे भी क्या यह नही जानते कि अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले वे किसकी पुजा करते थे ? और वे किसे धारन किये हुए अथवा किस धर्म में मौजुद थे ! जैसे की अंबेडकर भी अपना धर्म परिवर्तन करने से पहले हिन्दू धर्म में मौजुद थे | जिसके चलते ही तो उन्होने हिन्दू रहते हिन्दू कोड बिल भी लाया और हिन्दू मंदिरो में प्रवेश करने का आंदोलन भी चलाया | क्योंकि हिन्दू रहते हिन्दुओ द्वारा भेदभाव करते हुए हिन्दू मंदिरो में प्रवेश करने न दिया जाना दुनियाँ के किसी भी इंसान को जिसके पास थोड़ी बहुत भी यदि बुद्धी होगी तो ये सोचने के लिए मजबुर करेगा कि भेदभाव करके अन्याय अत्याचार हो रहा है | और फिर मनुवादियो ने तो खुदको जन्म से ही हिन्दू धर्म का पुजारी घोषित करके हिन्दू वेद पुराणो में मानो अपनी मनुवादि सत्ता कायम करने के बाद मनुस्मृति लागू करके जोर जबरजस्ती कब्जा करके हिन्दू वेद पुराणो का ज्ञान लेना और हिन्दू मंदिरो में प्रवेश करना मना करके रखा हुआ था | जो आज भी मनुवादियो द्वारा छुवा छुत करते हुए कई मंदिरो में इस देश के मुल हिन्दुओ को प्रवेश मना है | मनुवादियो द्वारा उच्च निच भेदभाव करके मंदिरो में शुद्रो का प्रवेश मना है बोर्ड गोरो की गुलामी के समय भी लगा हुआ रहता था | इसलिए तो गोरो की गुलामी में भी भेदभाव के खिलाफ आंदोलन चलती रहती थी | जिसके चलते अंबेडकर ने गोरो से अजादी मिलने से बहुत पहले ही मनुस्मृति को जलाया था | जिस तरह के आंदोलन अब भी चल रहे हैं | जो आंदोलन चलाने वाले मुल हिन्दू हैं | न कि उनका कोई धर्म ही नही है और वे हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाते हुए पुजा करने वाले सभी मुलनिवासी नास्तिक हैं | जिन मुल हिन्दुओ द्वारा हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो के खिलाफ क्या वे खुदके ही खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं ! असल में हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह प्राकृतिक पर्व त्योहार मनाने और प्राकृति पुजा पाठ करने वाले इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों का कोई धर्म नही है ऐसा इसलिए भी कहा जाता है ताकि उन्हे दुसरे धर्म के नाम से भ्रमित करके धर्म परिवर्तित कराया जा सके | जिसके लिए ही तो लार टपकता रहता है उन लालची लोगो का जिनको इस देश के मुल हिन्दुओ को हिन्दू नही है कहते हुए सिर्फ इस बात से मतलब रहता है कि किसी तरह बस मनुवादियो द्वारा शोषण अत्याचार का शिकार मुल हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके उनके साथ हो लें ! और उनका धर्म के नाम से चलने वाला धँधा में दिन दोगुणी रात चौगुणी बड़ौतरी हो | जिनमे बहुत से वैसे मुलमिवासी भी हैं जो हिन्दू धर्म को मनुवादियो का धर्म समझकर दुसरे धर्मो में जाकर सायद अब पराया धर्म महसुश करते हुए अपने ही डीएनए के मुल हिन्दुओ की प्राकृति पर्व त्योहारो से जलते हैं | क्योंकि हिन्दू सभ्यता संस्कृति में रहकर उन्होने जिस धर्म को अपनाया है वहाँ पर इतनी सारी पर्व त्योहार मौजुद नही हैं जितने कि हिन्दू धर्म में मौजुद हैं | जो कि निश्चित तौर पर इतने सारे पर्व त्योहार इस देश में मनुवादियो और दुसरे गुलाम और दास बनाने वाले विदेशी कबिला का प्रवेश से पहले सबसे अधिक सुख शांती और समृद्धी लानेवाली उत्सव हुआ करती होगी | जिन बारह माह मनाये जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मनाने वाले इस देश के मुलनिवासी मुल हिन्दू हैं | न कि मुल हिन्दू छुवा छुत करने वाले मनुवादि हैं | जिन छुवा छुत करने वाले मनुवादियो के द्वारा बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहारो को जन्म नही दिया गया है | इतनी तो जानकारी कम से कम उन लोगो को जरुर होनी चाहिए जो मनुवादियो के ढोंग पाखंड और छुवा छुत के खिलाफ अपनी भड़ास निकालने के लिए इस देश के दलित आदिवासी पिछड़ी को हिन्दू नही हैं कहकर यह झुठ बोलते रहते हैं कि हिन्दू धर्म मनुवादियों का है | जिन लोगो में चाहे जो कोई भी हो उन्हे हिन्दू धर्म के बारे में जानकारी वैसा हि है जैसे कि यदि गोरे अंग्रेज इस देश को गुलाम करने के बाद हिन्दू धर्म का ठिकेदार बनकर हिन्दू वेद पुराणो में मिलावट और छेड़छाड़ करके अपनी ढोंग पाखंड और छुवा छुत संक्रमण देकर हिन्दू धर्म को अपनी सोच से दुनियाँ के सामने परोसते तो ये इस देश के मुलनिवासियों को हिन्दू नही हैं कहने वाले लोग गोरो को भी मुल हिन्दू कहकर इस देश के मुलनिवासियों को यह झुठ ज्ञान बांटकर भ्रमित करते कि आप हिन्दू नही हो ! क्योंकि मनुवादि गोरो की तरह विदेशी मुल के लोग हैं यह बात साबित हो चुका है | जो इस देश में इतने सारे प्राकृति पर्व त्योहारो और हिन्दू वेद पुराणो को जन्म देना तो दुर इस देश में प्रवेश करके परिवार समाज को भी जन्म नही दिया है | जिसका प्रमाण एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से पुरी दुनियाँ को मिल चुका है कि सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण और हिन्दू वेद पुराणो की रचना करने वाले इस देश के मुलनिवासियों का डीएनए से मनुवादियों का डीएनए नही मिलता है | बल्कि मनुवादियो का डीएनए यूरेशियन डीएनए से मिलता है | जिन्होने सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति और हिन्दू वेद पुराणो की रचना नही किया है | जैसे कि मनुवादियो का डीएनए जिन यहूदियो का डीएनए से मिलता है , उन यहूदियो ने इस देश की सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति और हिन्दू वेद पुराणो की रचना नही किया है | बल्कि इस कृषि प्रधान देश में मौजुद परिवार समाज और गणतंत्र का निर्माण भी मनुवादियों ने नही किया है | क्योंकि मनुवादियों के परिवार में मौजुद महिलाओ का एम डीएनए और इस देश के मुलनिवासियों के परिवार में मौजुद महिलाओ का एम डीएनए एक है | अथवा मनुवादियों के परिवार में मौजुद सिर्फ पुरुषो का डीएनए यूरेशियन लोगो के डीएनए से मिलता है | जिसका मतलब साफ है कि मनुवादि सिर्फ पुरुष इस देश में आये हैं | जिन्होने इस देश के परिवार समाज से अपना परिवारिक रिस्ता जोड़कर ही अपना आगे का वंशवृक्ष बड़ा करने के बाद भेदभाव करना सुरु किया है | रही बात यहूदि डीएनए का मनुवादि इस देश में प्रवेश करके हिन्दू कैसे हो गया तो ये बात खुद मनुवादियों से हि पुच्छा जाय कि उन्होने सिन्धु पहचान से जुड़ा हिन्दू धर्म को कब अपनाया है | और यह भी पुच्छा जाय कि हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह जो प्राकृतिक पर्व त्योहार इस देश के मुलनिवासियों द्वारा खुशियों का मेला लगाकर आपस में जोड़ाकर नाच गान करते हुए बिना छुवा छुत के मनाई जाती है , उन पर्व त्योहारो में छुवा छुत करने वाले मनुवादि मेला में कैसे भाग लेते हैं , और पकवान परसाद वगैरा मिल जुलकर खान पान कैसे करते हैं ? खासकर तब जबकि भिड़ में वे लोग मौजुद हों जिनसे छुवा जाने में मनुवादियों का शरिर अपवित्र हो जाता है | खैर संभवता पुरुष झुंड बनाकर इस देश में प्रवेश करने के बाद चूँकि मनुवादियों ने इस देश के परिवार समाज और गणतंत्र से रिस्ता जोड़ लिया है , इसलिए उन्होने हिन्दू धर्म से भी छुवा छुत का रिस्ता जोड़ लिया है | हलांकि मनुवादि खुदको हिन्दू जरुर कहता है , पर वह मुल रुप से हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को नही मनाता और न ही वह प्राकृति की पुजा करता है | क्योंकि वह तो मुल रुप से अपने पुर्वज देवो की पुजा करता और कराता है | जिसके आधार पर मुल हिन्दू पर्व त्योहार नही मनाई जाती है | क्योंकि हिन्दू कलैंडर अनुसार इस कृषि प्रधान देश में बारह माह जो प्राकृतिक पर्व त्योहारो के रुप में उत्सव मनाई जाती है वह कोई देवताओ की पुजा उत्सव नही है | हाँ हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह माह मनाई जानेवाली प्राकृतिक पर्व त्योहारो को मसलन सुर्य हवा पानी पेड़ पौधा पहाड़ पर्वत अन्न धरती वगैरा प्राकृति पुजा को सुर्य देवता पुजा वगैरा का उत्सव में परिवर्तित करके देवता पुजा घोषित करने की कोशिष जरुर जारी है | पर उनकी कोशिष वैसा ही है जैसे कि शैतान सिकंदर समेत और भी कई विदेशी लुटेरो द्वारा इस में प्रवेश करके इस देश की मुल हिन्दू सभ्यता संस्कृति को मिटाने की कोशिष हजारो सालो से होती रही है | उसी तरह हिन्दू पर्व त्योहारो की मुल पहचान को भी मनुवादि चाहे हजारो सालो तक और भी मिटाने की कोशिष क्यों न कर लें वे कभी भी इस देश में हिन्दू कलैंडर अनुसार बारह मानाई जानेवाली प्राकृति पर्व त्योहारो की मुल पहचान को सूर्य देवता और अन्न देवता कहकर नही मिटा सकते | जैसे कि सिन्धू को हिन्दू और इंडु कहने से इस देश की सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति की पहचान नही मिटती है | हिन्दू पुजा स्थलो में यदि सूर्य और अन्न वगैरा प्राकृति की पुजा की जाती है तो उन पुजा स्थलो की पुजारी बनकर मनुवादि हिन्दू पुजा को सूर्य देव और अन्न देव पुजा कहकर यदि उन हिन्दू पुजा स्थलो में इस देश के मुलनिवासियों को प्रवेश करने से रोकते हैं तो निश्चित तौर पर मनुवादियों द्वारा उन पुजा स्थलो में जोर जबरजस्ती कब्जा करके खुदको हिन्दू बताकर ढोंग पाखंड भेदभाव होती है , जो कि हिन्दू धर्म की सभ्यता संस्कृति नही है | क्योंकि हिन्दू दरसल सिन्धु नदी के किनारे जो सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण इस देश के मुलनिवासिसों ने हजारो साल पहले किया है , उसकी पहचान और उसके नाम को पुरे विश्व में हजारो साल पहले से ही पुरे विश्व के लोग जानते हैं , इसलिए बाहर से आनेवाले विदेशियों ने ही सिन्धु पहचान को अपनी अपनी भाषा बोली के मुताबिक इस सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वाले मुलनिवासियों को सिन्धु पहचान से हिन्दू नाम दिया है | जिसे दुसरी भाषा में सिन्धु नदी के किनारे अपनी सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति का निर्माण करने वालो को मुल हिन्दुस्तानी कहा जा सकता है | जिन्हे कभी मनुवादियों का गुलाम भी कहा जाता रहा है | बल्कि अभी भी तो मुल हिन्दू अपने ही धर्म में गुलाम हैं | जैसे कि कभी गोरो से भी अपने ही देश में गुलाम थे | जिनसे अजादी पाने के लिये क्या देश छोड़ना ज्यादा जरुरी था कि अपने देश को अजाद करने के लिए अपने ही देश की मिट्टी से जुड़कर अजादी संघर्ष करना ज्यादे बेहत्तर है | जैसे कि मनुवादियों से अजादी पाने के लिये अपना हिन्दू धर्म को मनुवादियो का धर्म कहकर छोड़ना जरुरी नही है | क्योंकि यदि मनुवाद से अजादी अपना हिन्दू धर्म को छोड़कर मिल जाता तो वह अपना धर्म परिवर्तन करने के बाद मनुवादियो के शोषण अत्याचार से अजादी पाने की संघर्ष में कभी भी भाग नही लेता | जिसे प्रयोगिक रुप से देखनी हो तो मनुवादियो के खिलाफ हो रहे आंदोलन संघर्ष में कभी पता कर लिया जाय कि अपना हिन्दू धर्म को परिवर्तन करने वाले लोग शामिल होते हैं कि नही होते हैं ? जो स्वभाविक है क्योंकि सिन्धु को फारस और अरब के लोगो ने अपने भाषा बोली के अनुसार यदि हिन्दू कहा है तो इससे सिन्धु मनुवादियो की नही हो जाती है | और यदि अरब और फारस के लोगो की भाषा बोली में स का उच्चारण ह होता है तो वे सिन्धु को ही हिन्दू कहें हैं | न कि सिन्धु पहचान उनकी दी हुई है | सिन्धु को हिन्दू अपनी भाषा बोली से सिन्धु को उन्होने हिन्दू कहा है | जैसे की यूनान के लोगो ने अपनी भाषा बोली के मुताबिक सिन्धु को इंडु कहा है | सिन्धु नदी को पश्चिम से आए हुए कबिलई ने इंडस नदी कहा इसलिए जाहिर है इंडस से इस देश का नाम इंडिया हो गया | और फारस अरब के लोगो की भाषा बोली में सिन्धु से हिन्दुस्तान हो गया | जाहिर है सिन्धु से हिन्दू और इंडू दो शब्द विदेशियो द्वारा दिया गया है | लेकिन दोनो का मतलब एक है | जैसे कि सभी को पता है कि सिन्धु नदी और इंडस नदी एक है | सिर्फ अलग अलग भाषा बोली की वजह से एक नाम का अलग अलग कई नाम हो जाते हैं | लेकिन उसकी मुल पहचान वही है जो वह है | जैसे कि चीन को कोई चाईना कहता है तो कोई रुस को रशिया | जिससे रुस और चीन की मुल पहचान अलग नही हो जाती ! उसी तरह इंडिया और हिन्दुस्तान की पहचान सिन्धु नदी और सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति की पहचान से जुड़ा हुआ है | न कि विदेशी मुल के मनुवादियो की पहचान से हिन्दू पहचान जुड़ा हुआ है | क्योंकि सिन्धु पहचान से ही हिन्दू धर्म की पहचान जुड़ा हुआ है | जो हिन्दू शब्द यदि विदेशियो ने दिया है यह इतिहास दर्ज है तो यह इतिहास भी दर्ज जरुर है कि हिन्दू पहचान को विदेशियो ने किनको दिया है ? अबतक समझने वालो को समझ आ गया होगा कि हिन्दू और इंडु पहचान सिन्धु घाटी सभ्यता संस्कृति के निर्माता इस देश के मुलनिवासियों को दिया गया है | रही बात मनुवादियों की मुल पहचान तो फिर क्या है ? तो इस सवाल का जवाब मनुवादि जिस यूरेशिया से आये हैं , वहाँ जाकर खोजा जाय ! वैसे बहुत से मनुवादियों ने अपनी मुल पहचान को खोजने का प्रयाश समय समय पर जरुर किया है !
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