कृषी प्रधान देश में दिवाली और छठ पुजा

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कृषी प्रधान देश में दिवाली और छठ पुजा

दिवाली और छठ पुजा साक्षात मौजुद प्राकृति पर्व त्योहार के रुप में बारह माह इस कृषी प्रधान देश में मनाई जाती है|जो सिधे प्राकृति से जुड़ी हुई उस सत्य की पुजा है जो वैज्ञानिक प्रमाणित है|क्योंकि दिपावली पुजा के दिन होने वाली धान धन अन्न की पुजा और छठ पुजा के दिन होने वाली सूर्य की पुजा दोनो ही साक्षात प्राकृति की पुजा है|जिस प्राकृती से उपजा अन्न और प्राकृति सूर्य के रुप में अग्नि के बिना किसी भी धर्म के भक्त इस धरती में मौजुद नही रह सकता|बल्कि दिवाली और छठ पुजा के अलावे भी इस कृषी प्रधान देश में बारह माह प्राकृतीक पर्व त्योहार मनाई जाती है|जिसदिन प्राकृति की पुजा करने वाले इस देश के नागरिक सुख शांती और समृद्धी की कामना करते हुए बिना कोई छुवा छुत भेदभाव के मिल जुलकर आपस में खुशियो का मेला लगाकर नाचते गाते भी हैं|जिस प्राकृति की पुजा करने के लिए किसी भी धर्म जात और भेदभाव का पाबंदी नही है|लेकिन जब से प्राकृति पर्व त्योहारो की खुशियाँ मनाने वाली इस धरती में छुवा छुत की नजर लगी है,तब से लेकर अबतक इस देश के प्राकृति पर्व त्योहारो में ही नही बल्कि इस देश और इस देश के मुलनिवासियो में ढोंग पाखंड की ऐसी छुवा छुत नजर लग गई है,आज प्राकृति पर्व त्योहारो में गरिबी भुखमरी की वजह से भी खुशियो का मेला कम लगती है|हलांकि फिर भी क्या गरिब क्या अमिर प्राकृति के प्रति प्रेम हो तो बिना धन खर्च किये भी प्राकृती की पुजा बिना मंदिर मस्जिद और चर्च गए ही अन्न और सुर्य के साथ साथ पेड़ पौधा पत्थर की पुजा फूल जल से भी हो जाती है|क्योंकि प्राकृति की पुजा करने का अधिकार सृष्टी के जिव निर्जिव सबको है|जिस प्राकृति पर्व त्योहार मनाने को लेकर जिन लोगो को भी जलन होती है,वे खुद भी प्राकृति का महत्व को अच्छी तरह से जानते हैं|और जो लोग प्राकृति पुजा और प्राकृति प्रेम करने वालो को प्राकृति से दुर ले जाने के लिए प्राकृति पुजा को ढोंग पाखंड बतलाते हैं वे दरसल अपनी ढोंग पाखंड का धँधा में बड़ौतरी करने के लिए प्राकृति प्रेम में कमी लाने कि फंदा लगाते हैं|जिसमे फंसाकर धिरे धिरे प्राकृति पर्व त्योहारो को ढोंग पाखंड कहकर अप्राकृति मार्ग कि ओर ले जाना सुरु कर देते हैं|जिनको पता होनी चाहिए कि प्राकृति में मौजुद पत्थर शिव लिंग योनी की पुजा साक्षात प्राकृति की पुजा है|जिस भगवान के बारे में अपनी सत्य ज्ञान बांटते हुए मैं फिर सभी धर्मो में मौजुद अमिर गरिब सबका आदर करते हुए यह साफ कर देना चाहता हुँ कि मैं उन सभी वैज्ञानिक प्रमाणित सत्य को मानता हुँ,जो प्राकृति से जुड़े हुए इस मान्यता को मानते हैं कि बिना प्राकृति के इंसान ही नही बल्कि ये सारी सृष्टी एक पल भी कायम नही रह सकती|जिस सत्य मान्यता को सारे धर्मो ने माना है कि सारे धर्मो के भक्त और पुजा स्थल साक्षात प्राकृति के बिच मौजुद हैं|

जिस प्राकृति पुजा को मैं सत्य शिव की पुजा के रुप में भी मानता हुँ|जिसे देव असुर दानव सभी मानते हैं|जिसने आम के पेड़ में बबूल उगना जैसे अप्राकृति अथवा अधर्म करने पर ब्रह्मा को भी सजा देकर सत्य न्याय स्थापित किया था|जो सबके अंदर और बाहर भी कण कण में मौजुद हैं|जाहिर है प्राकृति पत्थर रुप में भी सत्य शिव लिंग योनी की पुजा करना साक्षात चारो ओर मौजुद प्राकृति भगवान पुजा करना है|जिसे ढोंग पाखंड कहना दरसल अहंकार या फिर अप्राकृति जैसे अज्ञान में डुबकर बारह माह प्राकृती पुजा के रुप में मानने वाले करोड़ो लोगो को ढोंग पाखंड में डुबे हुए बताना है|जिन प्राकृती पर्व त्योहारो में ही दिवाली और छठ पुजा करोड़ो लोगो द्वारा प्राकृती की पुजा करते हुए सुख शांती और समृद्धीे की कामना करते हुए मनाई जाती है|जिसे ढोंग पाखंड कहना खुदके भितर मौजुद प्राण वायु को ढोंग पाखंड कहना है|जिसे कोई धर्म का भक्त अपने भितर से प्राण वायु को बाहर करके प्राकृती को ढोंग पाखंड कहकर प्रमाणित करके दिखला दे कि प्राकृती की वजह से वह इस सृष्टी में मौजुद नही है|बल्कि  वह प्राण वायु छोड़ने के बाद इस प्राकृती से ही गायब होकर दुसरी दुनियाँ में चला जायेगा ये सत्य साबित करके दिखला दे यदि वह प्राकृती पुजा को ढोंग पाखंड मानता है|जो प्राकृती पुजा को ढोंग पाखंड बड़बड़ाते हुए कभी शमशान या कब्रिस्तान में जाकर किसी की लाश को देख ले कि पंचतत्व में मिलकर वह प्राकृती में ही विलिन हुआ है कि प्राकृति से बाहर कहीं और विलिन हो गया है?उसे साक्षात सत्य के बारे में पता चल जायेगा कि प्राकृति और वैज्ञानिक प्रमाणित प्राण वायु छोड़ने के बाद कोई कहीं प्राकृती से बाहर गायब नही हुआ है|जो पंचतत्व में विलिन होकर नया रुप धारन करेगा या कर चुका है|जिस प्राकृति के हीे बिच सत्य शिव योग में लिन रहते हैं|न कि वे इस प्राकृती से बाहर इंद्रदेव की तरह किसी स्वर्ग नर्क अथवा अप्राकृति अदृश्य दुनियाँ में रहते हैं|जिसके बिच मौजुद प्राकृति पुजा को ढोंग पाखंड कहना किसी भस्मासुर के द्वारा सत्य शिव द्वारा प्राकृति वरदान पाकर सत्य शिव के हि पिच्छे पड़कर साक्षात प्राकृति को भष्म करने के चक्कर में नाच नाचकर एकदिन खुदको ही समाप्त करके वापस उसी प्राकृती पंचतत्व में विलिन होना है,जिसे ढोंग पाखंड कहकर कभी खुदको प्राकृति से भी ज्यादे ताकतवर बुद्धीमान और चमत्कारी साबित करने कि कोशिष करना है|जो कि कोई भी धर्म का भक्त अपनी सत्यबुद्धी के रहते हुए कतई नही कहेगा,क्योंकि प्राकृति जिव निर्जिव पहाड़ पर्वत जल जंगल पेड़ पौधा जिव जंतु पत्थर मुर्ती फोटो और मंदिर मस्जिद चर्च और सभी भक्तो के अंदर भी मौजुद है|जिस प्राकृति का अप्राकृति होने अथवा विनाश होने पर सभी धर्मो के लोग समेत नास्तिक लोग भी चिंतित होने लगते हैं| लेकिन भी कोई यदि प्राकृती पुजा को ढोंग पाखंड कहता है तो समझो वह जिस थाली में प्राकृति अन्न जल पकवान खाया पिया और प्राण वायु लिया है,उसी थाली में छेद करता है|जबकि वह ढोंग पाखंड बड़बड़ाते समय भी प्राण वायु ले रहा होता है|जो न लेने पर कोई इंसान जन्म लेना तो दुर किसी के भितर से प्राण वायु भी बाहर नही निकल सकता|जो प्राकृति वैज्ञानिक सत्य प्रमाणित है|

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