कांग्रेस भाजपा दोनो ही पार्टी !
कांग्रेस भाजपा दोनो ही पार्टी !
सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला इस कृषि प्रधान देश को 1947 ई० में गोरो से अजादी मिलने के बाद नेहरु को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया था | जिसके बाद आधुनिक भारत गरिबी हटाओ का नारा देकर कांग्रेस सरकार साठ सालो से भी अधिक समय तक शासन की | जिसके बाद कांग्रेस का ही अपडेट भाजपा पार्टी शाईनिंग इंडिया , डीजिटल इंडिया का नारा देकर एक दशक से भी अधिक समय तक शासन कर चुकी है | बल्कि अब भी शासन कर रही है | जिन दोनो ही पार्टियो का देश के सबसे अधिक राज्यो में भी शासन है | पर दोनो ही पार्टी अपने शासन के दौरान ऐसा कोई कार्य अबतक करके नही दिखला सकी है , जिससे की इस देश की गरिबी भुखमरी मिट सके | फिर भी मीडिया के सामने भाषन अश्वाशन बड़बड़ाते समय दोनो ही पार्टियो को सायद यही लगता होगा कि मानो उनके शासनकाल में सभी नागरिक गरिब बीपीएल कार्ड से कंकड़ पत्थर मिला अन्नाज खाना छोड़कर अब हर रोज बासमती खाना सुरु कर दिए हैं | मानो आधुनिक शाईनिंग डीजिटल इंडिया की मनुवादि सरकार आने के बाद गरिबी भुखमरी सचमुच में हटाई जा चूकि है | और सभी के पास प्रधान सेवको की तरह ही सरकारी गाड़ी बंगला जैसी डीजिटल सुख सुविधा और महंगी महंगी सुट बुट उपलब्ध हो गई हैं | तभी तो दुनियाँ के नजर में अपनी झुठी शान दिखाने के लिए झुगी झोपड़ी और फुटपाथो में अपना जिवन बसर कर रही जनता की गरिबी भुखमरी को अपने प्रचार बैनरो और अन्य माध्यम से छिपाने की बार बार कोशिष होती रहती है | बल्कि गरिबी हटाओ भाषन अश्वाशन देकर गरिबो का घर उजाड़कर गरिबो को ही हटाने की खतरनाक प्रक्रिया चल रही है | जिसके चलते हर रोज अनगिनत मौते गरिबी भुखमरी से लगातार हो रही है | जिसे नजरअंदाज करके सिर्फ भाषन अश्वासन दिया जा रहा है | गरिबी भुखमरी हटाने की दिखावटी योजनायें चल रही है | मानो बिड़ी सिगरेट का उद्योग लगाकर सिर्फ दिखावे के लिए एक दो कैंसर का अस्पताल खोला जा रहा है | क्योंकि असल में इस प्राकृति समृद्ध कृषि प्रधान देश की धन संपदा और जनता के पैसो से देश के प्रधान सेवक , उनके मंत्रियो और उच्च अधिकारियो वगैरा सेवको के लिए मानो मजदुरी के रुप में हजारो लाखो की अमिरी तनख्वा समेत गाड़ी बंगला और अन्य भी कई सरकारी सुख सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है , पर उसी देश की धन संपदा से करोड़ो जनता मालिको के लिए सेवा के नाम से रोजमरा जिवन की मुलभुत जरुरी चीजे जैसे अन्न जल रोटी कपड़ा और मकान वगैरा भी जरुरत के मुताबिक सरकार द्वारा उपलब्ध नही कराई जा रही है | भले वर्तमान के प्रधान सेवक शपथ लेने के बाद दिनभर में एक दर्जन नये कपड़े बदल रहे हो , और खास सरकारी सुख सुविधा समेत एक दर्जन से अधिक गाड़ी और रक्षको की किमती सुरक्षा ले रहे हो , पर गोरो के शासन जाने के बाद आई साठ साल से भी अधिक समय तक आधुनिक भारत गरिबी हटाओ का नारा देनेवाली कांग्रेस शासन और फिर शाईनिंग डीजिटल इंडिया नारा देनेवाली भाजपा के भी एक दशक से भी अधिक का शासन में आज भी करोड़ो ऐसे मुलनिवासी जनता मालिक हैं , जिनके लिए कांग्रेस भाजपा दोनो ही एक सिक्के के अलग अलग दो पहलू दरसल मनुवादि शासन में एक जोड़ा नया कपड़ा और एक साईकल खरिदते समय भी अपने भुखे पेट की तरफ देखकर सोचना पड़ता है | भले क्यों न वे उस सोने की चिड़ियाँ के जनता मालिक कहलाते हो जहाँ पर हजारो सालो से न जाने कितने भुखे नंगे कबिलई टोलियाँ इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करके खुदको समृद्ध किये हैं | जिसमे लंगटा लुचा से सबसे उच्चा बनने वाले वह मनुवादि कबिला भी एक हैं , जिनके पूर्वज संभवता हजारो साल पहले भुखे नंगे बिना कपड़ो के इस कृषि प्रधान देश में पुरुष झुंड बनाकर प्रवेश करके कपड़ा पहनना भी सिखे होंगे और कृषि करना भी ! बल्कि इस देश में प्रवेश करने से पहले उन्हे परिवार समाज और लोकतंत्र के बारे में भी पता नही होगा | तभी तो एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट अनुसार इस देश में रह रहे मनुवादियो के परिवार में मौजुद महिलाओ का डीएनए भी इस देश के मुलनिवासियो के डीएनए से मिलता है | यानी मनुवादि अपन परिवारिक वंशवृक्ष बड़ा करना भी इस देश में आकर सिखे हैं | नही तो फिर उससे पहले का वंश इतिहास कौन किसका औलाद था वेद पुराण में भी जिक्र नही है | जिस कड़वी सच्चाई को छिपाने के लिए मनुवादि बाद में यह ढोंग पाखंड रचे होंगे कि उनके पुर्वज नारी योनी के बजाय पुरुष मुँह छाती जाँघ नाक कान वगैरा से पैदा हुए हैं | क्योंकि मनुवादियो के पास परिवारिक और समाजिक इतिहास इस देश में प्रवेश करने के बाद ही दर्ज हुआ है | जिससे पहले का इतिहास मनुवादियो को नही पता | जिनके पास आज इस कृषि प्रधान देश की सबसे अधिक दौलत मौजुद है | जिनकी उधार की अमिरी भी यहीं पर पैदा हुई है | जिनमे से ज्यादेतर मनुवादि तो आज भी न के बराबर खेतो में दिखते हैं | क्योंकि कृषि के बजाय उनके भितर कबिलई मनुवादि सोच जो मौजुद है | जिसकी वजह से ब्रह्मण बाल गंगाधर तिलक ने कभी अपनी मनुवादि सोच को जग जाहिर करते हुए गोरो के शासन में ही अपना विचार व्यक्त किया था कि तेली, तंबोली, कुंभट, खाती, कूर्मी , पाटीदार, ये सब विधिमंडल में जाकर क्या हल चलायेंगे ? जिसे सायद लगता होगा कि मनुस्मृति रचना करके विधि द्वारा छुवा छुत करने वाले मनुवादियो के लिए ही विधिमंडल में रहने से प्रजा की बेहत्तर सेवा होती है | जबकी यदि मनुस्मृती विधि से बेहत्तर सेवा होती तो फिर बाबा अंबेडकर को मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करने की क्या आवश्यकता पड़ती ? गोरो से अजादी मिलने के बाद मनुस्मृती को ही लागू कर दी जाती ! पर ऐसा नही हुआ क्योंकि गोरो से भी पहले इस देश के मुलनिवासी जिन मनुवादियो द्वारा शोषन अत्याचार किये जा रहे हैं उनसे यह देश ज्यादे समय से शोषित पिड़ित है | जिन छुवा छुत करने वाले कबिलई मनुवादियो का दबदबा वर्तमान में भी लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम है | जिसके चलते इस कृषि प्रधान देश और इस देश के ज्यादेतर मुलनिवासियो की बुरी हालत होना स्वभाविक है | क्योंकि सच्चाई तो यही है कि छुवा छुत करने वाले आजतक भी अपनी मनुस्मृती सोच को मल मूत्र की तरह पुरी तरह से त्याग नही पाये हैं | और न कभी पुरी तरह से त्याग पायेंगे | जैसे की एक काल्पनिक फिल्म पिकू में , फिल्म का पात्र अपने पुरी जिवन में खुलकर मल मूत्र त्याग नही पाया था | और पुरी जिवन उस बिमारी का इलाज खोजता रहा | जिसका इलाज फिल्म समाप्ती तक भी कोई नही कर सका था | और अँतिम में जब उसे खुलकर मल मुत्र हुआ तो वह आगे कि जिवन नही जी सका | क्योंकि खुलकर मल मूत्र होने के बाद वह मर चूका था | जो मनोरंजन करने वाली एक काल्पनिक फिल्म थी , पर मनुवादियो की छुवा छुत बिमारी का असली इतिहास मनोरंजन नही भेदभाव का दर्शन करा रही है | जिस छुवा छुत बिमारी का इलाज करने अबतक न जाने कितने डॉक्टर आए और चले गए पर आजतक मनुवादि छुवा छुत बिमारी दुर नही हुई है |
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