मांसिक बिमारी भी अनुवांसिक हो सकती है

मांसिक बिमारी भी अनुवांसिक हो सकती है इसका ऐतिहासिक प्रमाण मनुवादियो की छुवा छुत करने की बिमारी ने साबित कर दिया है

जिस छुवा छुत बिमारी को छुड़वाने के लिए हजारो सालो से मानो किसी खतरनाक ड्रक्स नशा छुड़वाने की तरह मनुवादियो का मांसिक इलाज चल रहा है | छुवा छुत करने वाले मनुवादियो को इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियो ने हजारो सालो से अपने सर पर गू तक ढोना स्वीकार करके मानो किसी गंभिर से भी गंभिर बिमारी से ग्रसित मरिज की सेवा करके उसके ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं | अपने सर में गू तक ढोकर  इस देश के मुलनिवासियो ने छुवा छुत करने वाले मनुवादियो के सर में देश का ताज भी पहनाकर छुवा छुत को छोड़ने का अवसर दिया है | लेकिन भी मनुवादि अवसर का सही लाभ आजतक नही उठा पाये हैं | जितना अवसर गोरो को भी नही मिला था |  इस सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कहलाने वाला सागर जैसा विशाल कृषि प्रधान देश में लंबे समय तक  शासन करके भी मनुवादि आजतक छुवा छुवा छुत मांसिकता से ग्रसित हैं | क्योंकि किसी ड्रक्स से भी खतरनाक नशा छुवा छुत बिमारी का इलाज अबतक नही निकल पाई हैं | जिस बिमारी से ग्रसित होने की वजह से आज भी मनुवादियो को जब भी मौका मिलता है तो वे उच्च से उच्च पदो में भी बैठकर भेदभाव शोषन अत्याचार करना नही छोड़ पाते हैं | जिसे प्रकृति द्वारा जन्म से ही मिली छुवा छुत की अनुवांसिक मांसिक बिमारी कहा जा सकता है | जो प्राकृतिक तौर पर पिड़ि दर पिड़ी बहुत लंबे समय तक कायम रहती है | जिसकी वजह से ऐसे अनुवांसिक छुवा छुत करने की बिमारी से ग्रसित बच्चो का जन्म होना मनुवादियो के घरो में हजारो सालो बाद भी अबतक नही रुका है | जन्म से ही उच्च जाति होने की गंदी मांसिकता मनुवादियो के दिमाक में जबतक रहेगी तबतक मनुवादियो के परिवार में सायद ही कोई बच्चा जन्म लेगा जिसे छुवा छुत करने की अनुवांसिक बिमारी होने की कोई संभावना ही नही होगी | मांसिक बिमारी भी अनुवांसिक हो सकती है इसका ऐतिहासिक प्रमाण मनुवादियो की छुवा छुत करने की बिमारी ने साबित कर दिया है | जो मांसिक बिमारी हजारो साल बाद भी आजतक ठीक नही हुआ है | मनुवादियो के द्वारा सिर्फ भेदभाव शोषन अत्याचार करने की इतिहास पिड़ि दर पिड़ी अपडेट होती चली जा रही है  | जो दरसल मनुवादियो की अनुवांसिक छुवा छुत की बिमारी पिड़ी दर पिड़ी सिर्फ ट्रांसफर हो रही है | जिस छुवा छुत बिमारी का इतिहास को प्रयोगिक तौर पर अपडेट करने वाले मनुवादी सोच ही हैं | 
जिस गंदी सोच को समाप्त करने के लिए आजतक कोई पोलियो टीका जैसी कोई ऐसी खोज नही हो पाई है की छुवा छुत करने की अनुवांसिक बिमारी को समाप्त करने का टिकाकरन अभियान चलाया जा सके | जिसके चलते मनुवादियो के शासन में आज भी छुवा छुत शोषन अत्याचार अपडेट होना जारी है  | जिन मनुवादियो की भेदभाव शासन की वजह से ही इस देश के करोड़ो मुलनिवासी चाहे वे जिस धर्म से जुड़े हुए हो , ज्यादेतर गरिब बीपीएल और बेघर जिवन जिने को मजबूर हैं | जो स्वभाविक है , क्योंकि  मनुस्मृति में शोषन अत्याचार करने की विधि जिस तरह से रची गई है , उसके अनुसार कथित उच्च जातियो को ही जन्म से धनवान होने का खास अधिकार प्राप्त है | और साथ साथ कथित उच्च जातियो द्वारा अपनी प्रजा को दास बनाकर और छुवा छुत विधि का पालन करके अपनी खास सेवा कराने के लिए विधिमंडल में शोषन करने वाला शासक बने रहना है | जिसे मनुवादि अपना जन्मसिद्ध अधिकार भी मानते हैं | जैसे कि वे जन्म से उच्च जाति कहलाते हैं | और चूँकि मनुवादि अबतक मनुस्मृति को पुरी तरह से नही त्याग पाये हैं , इसलिए मनुस्मृती भष्म होकर भी उसका भुत मनुवादियो के भितर समाया हुआ है | जिसके चलते मनुवादियो के शासन में कथित उच्च जातियो द्वारा सबसे अधिक धनवान बने रहना , और इस देश के मुलनिवासियो के घरो में गरिबी भुखमरी कायम रहना स्वभाविक है | नही तो फिर इतिहास गवाह है कि इस देश के मुलनिवासियो के पुर्वज हजारो साल पहले भी सिंधु घाटी सभ्यता संस्कृती जैसी विकसित गणतंत्र और ग्राम में रहा करते थे | और अपनी हजारो हुनर जिसे मनुवादियो ने हजारो जाति के रुप में बांटा है , उस हुनर के जरिये इस कृषि प्रधान देश की गणतंत्र व्यवस्था में सुख शांती और समृद्धी कायम थी | जिस  समृद्धी से न जाने कितने देशो के विकसित सभ्यताएँ और अनगिनत कबिलई लुटेरो की टोलियाँ भी आर्कषित हुआ करते थे | बल्कि आज भी यदि इस देश में थोड़ी बहुत आर्कषन है तो उन्ही हजारो हुनरो द्वारा विकसित की गई कृषि सभ्यता संस्कृति और देश की प्राकृति समृद्धी की वजह से है | न कि मनुवादियो की छुवा छुत हुनरो की वजह से विदेशी पर्यटन आर्कषित होते हैं |  हलांकि आर्कषित होने वाले पर्यटन के साथ साथ  चूँकि कुछ कबिलई लुटेरे भी रुप बदलकर ढोंगी पाखंटी और ठग वगैरा बनकर किसी गंदे नाले की तरह इस विशाल सागर देश में समाते रहे हैं |  क्योंकि इतिहास गवाह है कि हजारो सालो से यह कृषि प्रधान देश बहुत से कबिलई लुटेरो को मानो किसी सागर कि तरह निगलते आ रहा है | लेकिन भी इस देश की स्थिर कृषि सभ्यता संस्कृती अबतक कायम है | वैसे कबिलई लुटेरो की लुटपाट भी विभिन्न अपडेट के बाद आज भी पुरी दुनियाँ में कायम है | यू ही इस प्राकृति समृद्ध देश के साथ साथ अन्य भी कई प्राकृति समृद्ध देशो में गरिबी भुखमरी पिड़ि दर पिड़ी अबतक समाप्त होने का नाम नही ले रहा है | क्योंकि ऐसे प्राकृति समृद्ध देश कबिलई लुटेरो की नजर में हजारो सालो से किसी लॉट्री से कम नही है | जिसकी वजह से दुनियाँ की तमाम प्राचिन कृषि सभ्यता संस्कृति कबिलई लुटेरो की वजह से ही बर्बाद होती रही है | जैसे की इस देश की प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता की बर्बादी भी कबिलई लुटेरो द्वारा ही हुआ होगा | जिसके बारे में सिंधु घाटी की खुदाई में मिली एक योग मुदरा में बैठे योगी को शिकारी जानवर का हमला होते मूर्ति बनाकर बतलाया गया है | जिसे देखकर साफ पता चलता है कि इस देश और इस देश के मुलनिवासियो की सुख शांती और समृद्धी तप योग को कबिलई लुटेरो ने भंग किया है | जिन कबिलई लुटेरो ने ही इस देश और इस देश के मुलनिवासियो को गरिबी भुखमरी का संक्रमण दिया है | जाहिर है इस कृषि प्रधान देश को बाहर से ज्यादेतर बर्बादी ही मिली है | जैसे की बाहर से आए मनुवादियो ने इस देश और इस देश के मुलनिवासियो को सबसे अधिक बर्बाद किया है | जो मनुवादि इस देश में प्रवेश करने से पहले दरसल कृषि सभ्यता संस्कृति सुख शांती और समृद्धी के बारे में कुछ जानते ही नही थे | जिन्होने ही इस देश में प्रवेश करके छुवा छुत करना सुरु किया | या क्या पता यहाँ पर प्रवेश से पहले भी कहीं और भी छुवा छुत मुँह मारकर आ रहे होंगे | हलांकि यहाँ पर प्रवेश करने से पहले उनकी जिस तरह की भुखड़ घुमकड़ हालत रही होगी वैसी हालत में वे छुवा छुत शासन चलाना तो दुर कपड़ा पहनना भी नही जानते होंगे | पर चूँकि जो इंसान शिकारी और लुटेरी परजिवी मांसिकता से कभी बाहर नही निकल पाया है , दरसल वैसा इंसान ही सबसे अधिक अन्याय अत्याचारी बना रहता है | जिसके भितर ही शोषन अत्याचार करने की कबिलई लुटेरी हुनर सबसे अधिक भरी हुई होती है | क्योंकि रोजमरा जिवन में वह मूल रुप से समाजिक प्राणी के बजाय उस परजिवी प्राणी का गुण को ही अपना आदर्श मानकर पलता है , जो ज्यादेतर दुसरो का खुन चुसना सिखाता है | जैसे की परजिवी मच्छड़ खटमल और जू दुसरे का खुन चुसकर पल रहे होते हैं | जाहिर है इस कृषि प्रधान देश में कृषि सभ्यता सुख शांती और समृद्धी कायम फिर से कैसे होगी इस बारे में जानकारी अपना हक अधिकारो को चुसवाने वाले इस देश के मुलनिवासियो से बेहत्तर हक अधिकार को चुसने वाले परजिवी सोच के प्राणी कभी जान ही नही सकते | सिवाय इसके कि उन्हे इस बात की जानकारी ज्यादे है कि दुसरो की हक अधिकारो को चुसकर शोषन अत्याचार कैसे किया जा सकता है ? जिस शोषण अत्याचार करने की हुनर में सबसे बड़ी उदाहरन मनुस्मृती मास्टर डिग्री है | जिस डिग्री को अपना आदर्श मानने वाले गरिब बीपीएल की सेवा करने की जिम्मेवारी ठीक से कभी निभा ही नही सकते |

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