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शनिवार, 20 जुलाई 2019

छोड़ो कल की बाते कल की बात पुरानी कहकर अपने पुर्वजो की मुल भूमि को सायद याद ही नही रखना चाहते हैं !


मनुवादि छोड़ो कल की बाते कल की बात पुरानी कहकर अपने पुर्वजो की मुल भूमि को सायद याद ही नही रखना चाहते हैं ! 

कबिलई मनुवादि अपनी कबिलई सोच की सत्ता स्थापित करके सागर जैसा स्थिर कृषि सभ्यता संस्कृति और इतिहास को और इस देश के मुलनिवासियो को  भले चाहे जितना मिटाने की कोशिष कर लें , लेकिन वे खुद ही अपने खोदे हुए गढे में गिरकर मिट जाएँगे | जैसे कि इससे पहले भी इस देश की स्थिर कृषि सभ्यता संस्कृति को खत्म करने का सपना देखने वाले कई अन्य घुमकड़ कबिले मिटाने के लिए आए और खुद ही मिट गए | उनकी मिटाने की कोशिषे हमेशा नकाम होते आई है | क्योंकि जबतक हरी भरी प्राकृतिक जल जंगल पहाड़ पर्वत नदी तलाव वगैरा की मौजुदगी इस पृथ्वी पर बनी रहेगी तबतक प्राकृति पर निर्भर इस देश की कृषि सभ्यता संस्कृति और प्राकृति की पुजा पर्व त्योहार कभी नही खत्म होनेवाली है | बल्कि खुद कबिलई मनुवादि भी प्राकृति से जुड़ा कृषि करना सिखकर ही तो घुमकड़ शिकारी और कबिलई लुटपाट जिवन को छोड़कर स्थिर गणतंत्र का शासक बन पाये हैं | जो इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश करने से पहले घुमकड़ कबिलई पशु लुटपाट या फिर शिकारी जिवन जी रहे थे | क्योंकि तब उनके पास इतने बड़े देश की कोई सत्ता तो दुर परिवारिक सत्ता भी मौजुद नही थी | जो बात एक विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से साबित भी हो चुका है कि मनुवादि इस देश में पुरुष झुंड बनाकर प्रवेश किये थे | जिनके साथ में कोई महिला नही थी | और पुरुष झुंड में प्रवेश करने वाले मनुवादि पुरुष पुरुष मिलकर अप्राकृतिक संभोग के जरिये कोई परिवार तो नही बसा सकते हैं | क्योंकि विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट में ये बात साबित हो चुका है कि उनके परिवार में मौजुद महिला का डीएनए इस देश के मुलनिवासियो से मिलता है | मनुवादि के परिवार में मौजुद सिर्फ पुरुषो का डीएनए विदेशियो से मिलता है | अथवा मनुवादियो का परिवारिक जिवन की सुरुवात इस देश में प्रवेश करने के बाद हुई है | जिससे पहले न तो उन्हे परिवार समाज और गणतंत्र के बारे में पता था , और न ही कृषी के बारे में पता था | हलांकि मनुवादि पुरुष ब्रह्मा के मुँह छाती जाँघ वगैरा से अप्राकृतिक रुप से पैदा लिए हैं ऐसी बाते अपने मनुस्मृति में बतलाये हैं | बल्कि मनुस्मृति में भी भले पुरुष ब्रह्मा के मुँह छाती जँघा वगैरा से पैदा होने की बाते मनुवादियो द्वारा रचना की गई है , पर फिर भी पुरुष ब्रह्मा से मनुवादियो का पैदा होते समय भी सरस्वती लक्ष्मी तुलसी और अन्य नारी की मौजुदगी उस समय भी थी यह भी बतलाई जाती है | जिन नारियो से मनुवादि जन्म ही नही लिये बल्कि पुरुष ब्रह्मा से जन्म लिये यह मनुस्मृति में बतलाया गया है | जिस मनुस्मृति को अंबेडकर ने जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करके उसे लागू भी किया गया है | जिस अजाद भारत का संविधान से यह देश और इस देश की सरकार चलती है | और चूँकि यह देश कृषी प्रधान देश है , और यहाँ की बहुसंख्यक अबादी कृषि पर निर्भर है , साथ साथ यहाँ पर बारह माह मनाये जाने वाली प्राकृतिक पर्व त्योहार भी कृषि सभ्यता संस्कृती का ही अटूट अंग है | इसलिए इस देश की कृषि सभ्यता संस्कृति को मिटाने वाले बाहर से आए कबिलई खुद मिट जायेंगे पर यहाँ की कृषि सभ्यता संस्कृति नही मिटेगी | मानो कबिलई मनुवादियो के द्वारा खोदा गया गढा मनुवादियो की असल पहचान का कब्र बन जायेगी | क्योंकि मनुवादियो को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि उनके दिमाक में दरसल दुसरो के लिए गढा खोदते खोदते अपने ही पूर्वजो की मूल कबिलई विरासत को धिरे धिरे पुरी तरह से मिटाने की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है | क्योंकि जहाँ से मनुवादियो के पूर्वज आए थे उसके बारे में मानो कोई भी जानकारी मनुवादियो के पास मौजुद नही है | या तो फिर वे अब उस जानकारी को छोड़ो कल की बाते कल की बात पुरानी कहकर अपने पुर्वजो की मुल भूमि को सायद याद ही नही रखना चाहते हैं ! 

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