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बुधवार, 17 जुलाई 2019

मनुवादि अपना किमती समय और मेहनत को मनुस्मृति सोच को सही साबित करने में बर्बाद कर रहे हैं



मनुवादि बेहत्तर शासक बनने की काबिल बनने की कोशिष करने के बजाय झुठी शान बरकरार रखने के लिए चुनाव घोटाला जैसे सिर्फ चिटिंग करने में ही अपना किमती समय और मेहनत को बर्बाद कर रहे हैं | 

इस देश के मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो उनके लिए मनुवादियो द्वारा खोदा गया गढा मनुवादि के लिए कब्र साबित होगी | क्योंकि मनुवादि अपनी मनुस्मृती सोच से जितना ज्यादे इस देश के कृषि सभ्यता संस्कृति और इस देश के मुलनिवासियो को मिटाने की कोशिष करेंगे उतना ही मनुवादियो के द्वारा खोदा गया गढा उनके खुदके लिए कब्र बनते जायेगी | दरसल मनुवादि असल में कभी मूल रुप से सुधरना ही नही चाहते हैं | जिसके चलते अच्छा शासन चलाने के लिए मनुवादि कभी काबिल होने की कोशिष ही नही कर रहे हैं | सिर्फ चिटिंग करने में ही अपना किमती समय और मेहनत को बर्बाद कर रहे हैं | जिसके चलते मनुवादि सरकार को प्रजा और देश सेवा करने का बेहत्तर मौका बार बार मिलने के बावजूद भी हर बार सत्ता सम्हालते ही मानो वही भारी बजट की फ्लॉप फिल्म रुप की रानी चोरो  का राजा नई कॉपी के साथ चल रही होती है | जैसे की कांग्रेस का आधुनिक भारत का नया कॉपी भाजपा का शाईनिंग इंडिया डीजिटल इंडिया नारा देकर वही गरिबी भुखमरी शोषन अत्याचार नजारा चारो तरफ मौजुद  है | जिस बात पर जिसको भी यकिन न आए उसे धारावी जैसे विश्व प्रसिद्ध झुगी झोपड़ियो या फिर किसी दुर दराज गांव जहाँ पर सड़क बिजली पहुँची ही नही है , बल्कि विश्व प्रसिद्ध दस से भी अधिक बड़ी नदियो का इस प्राकृत समृद्ध कृषि प्रधान देश में भी पिने  का पानी तक के लिए भी तरसना पड़ रहा है , वैसी जगह में ले जाकर सारी अमिरी सुख सुविधाओ में पाबंदी लगाकर किसी संघर्ष कर रहे नागरिक के घर में मानो मेहमान बनाकर कम से कम एक सप्ताह छोड़ दो | एक सप्ताह तक यदि वह अभावग्रस्त बदहाली अवस्था से संघर्ष करते हुए जिन्दा रहा तो निश्चित तौर पर अमिरी सुख सुविधाओ को भोगते हुए आधुनिक भारत डीजिटल इंडिया बड़बड़ाने वालो को वह खुद भी गाली देगा | जिन बड़बड़ाने वालो का सुख सुविधाओ से युक्त जिवन को गरिब बीपीएल तो गरिबी भुखमरी जिवन जिते हुए वर्तमान के समय में कभी भोग नही सकते पर कम से कम मनुवादि सरकार इतनी काबिल बनने की कोशिष तो करती की प्रजा को गरिबी भुखमरी दलदल से बाहर निकालती ! जो काबलियत मनुवादियो के पास कभी आयेगी ही नही | क्योंकि इसके लिए मनुवादियो को सबसे पहले अपनी मनुस्मृति सोच की कमजोरी और गुनाह को स्वीकारना होगा ! जो हिम्मत वे मूल रुप से कभी कर नही सकते | क्योंकि ऐसा करने से उनकी झुठी शान जो चली जायेगी ! जैसे की कई देशो के अजाद होने पर गोरो की झुठी शान चली गई थी | पर मेरे विचार से समझदार गोरे आज अपने किए कुकर्मो की माफी मांगकर अंदर से बहुत बड़ा बोझ कम होते महसुश करते होंगे | और साथ साथ कहीं न कहीं इंसानियत के नाते माफी मांगने पर खुदको गर्व भी महसूश करते होंगे | जिस तरह का गर्व मनुवादि भी करेंगे यदि वाकई में वे भी कभी झुठी शान को मल मुत्र की तरह त्यागकर सुधरने लगेंगे ! चंद मनुवादियो के सुधरने से मनुवादि सरकार की सोच में सुधार नही होनेवाला है | क्योंकि मेरे ख्याल से जबतक मनुस्मृती को अपना आदर्श मानकर भेदभाव करना और चिटिंग करना  ज्यादेतर मनुवादि नही छोड़ेंगे तबतक मनुवादि कभी सुधर ही नही सकते ! जिनकी मनुस्मृती सोच की वजह से इस देश के ज्यादेतर मुलनिवासि लंबे समय से कितने ज्यादे शोषन अत्याचार किये जा रहे हैं , और इससे उनकी जिवन में क्या कुछ हानि हो रही है , इसके बारे में किसी मनुवादि को बिना किसी के जाने शोषित पिड़ित बतलाकर उन मंदिरो में प्रवेश कराओ जहाँ पर शुद्रो का प्रवेश मना है बोर्ड लगा हुआ है | जिसके बावजुद भी मनुवादियो को कोई फर्क न पड़े तो उन्हे कम से कम एक सप्ताह के लिए सर में दुसरो का मैला ढोने को कहो ! सिर्फ शोषित पिड़ित परिवारो के यहाँ जाकर खाना खाने या फिर दिखावे के लिए अपना खुदकी मल मुत्र साफ करने से मनुस्मृती सोच की भ्रष्ट बुद्धी में सुधार नही होने वाला है | हलांकि मनुवादियो का अबतक न सुधरने का बहुत बड़ा ऐतिहासिक कारन भी यह है कि मनुवादियो के पुर्वज जहाँ से भी इस देश में प्रवेश किये थे , वहाँ पर अब मनुवादियो की नई पिड़ी कभी नही जाना चाहेगा | और वैसे भी अब मनुवादियो के द्वारा अपने मूल स्थान को छोड़कर भटकते हुए इस देश में प्रवेश किये इतना ज्यादे समय हो चूका है कि मनुवादियो को उनके पूर्वजो की मूल स्थान पर अब वहाँ के उनके अपने डीएनए के लोग भी एक ही डीएनए और एक ही पूर्वजो के वंसज होते हुए भी मुल रुप से कभी स्वीकार ही नही करेंगे | क्योंकि गोरो को तो उनके मूल स्थान में आसानी से इसलिए भी स्वीकार किया गया था , क्योंकि वे अपना और अपने परिवारिक पेट की जुगाड़ में समृद्ध देशो को गुलाम करने की लुट यात्रा में निकले थे , और कई देशो को गुलाम करके लुटपाट करके धन भी भेजते रहते थे | बल्कि समय समय पर लुट का माल पहुँचाने के बहाने मिल भी आते होंगे | इसलिए बाद में घर वापसी करते हुए वापस अपने डीएनए के ही परिवार के पास लौट भी गए | पर मनुवादि तो बिना परिवार के ही कबिलई पुरुष झुंड बनाकर पशु लुटपाट चोरी करते हुए इस कृषि प्रधान देश में प्रवेश किये थे | जिसके बारे में जानकारी ऋग्वेद में भी मौजुद है | हलांकि इस देश में प्रवेश करने के बाद छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से मनुवादि शासन स्थापित होने के बाद वेद पुराणो में मनुवादियो द्वारा चिटिंग करके खुदके लाभ के अनुसार भारी छेड़छाड़ और मिलावट किया गया है | जैसे कि गोरे इस देश में छल कपट और फूट डालो और राज करो की नीति से सत्ता स्थापित करने के बाद इस देश की सभ्यता संस्कृती और इतिहास के साथ भारी छेड़छाड़ और मिलावट करने की कोशिष किए हैं | जिस तरह की कोशिष मनुवादि भी हजारो सालो से करते आ रहे हैं | पर चूँकि यह विशाल सागर देश और इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासी जो चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , उनके रगो में वही एक डीएनए दौड़ रहा है जो गोरो के भी भ्रष्ट बुद्धी को इंसानियत का पाठ पढ़ाकर किसी के साथ शोषन अत्याचार न करने का बुद्धी दिया और मनुवादियो को भी हजारो सालो से छुवा छुत छोड़ने की बुद्धी विभिन्न माध्यमो से अबतक बांट रहा है | जिस बुद्धी बांटने वाले इस देश को यू ही विश्वगुरु नही कहा गया है | जाहिर है मनुस्मृति सोच की बुद्धी यहाँ की कृषि सभ्यता संस्कृती और प्राचिन इतिहास को चाहे जितना मिटाने या फिर छेड़छाड़ करने की कोशिष करे पर जिस तरह किसी सागर को पुरी दुनियाँ के नदि नाले कभी नही मिटा सकते , बल्कि खुद ही विशाल सागर में समाकर मिट जाते हैं , उसी तरह मनुवादि भी खुद ही इस देश की कृषि सभ्यता संस्कृति में समाते हुए धिरे धिरे खुदको या खुदकी कबिलई मनुवादि सोच को ही ही मिटा रहे हैं | जिस प्रक्रिया में भले हजारो साल का समय लग रहा हो पर सच्चाई यही है कि मनुवादि जितना ज्यादे इस देश के कृषि सभ्यता संस्कृति और इस देश के मुलनिवासियो को मिटाने की कोशिष करेंगे उतना ही मनुवादियो के द्वारा खोदा गया गढा उनके खुदके लिए कब्र बनते जायेगी | क्योंकि मनुवादियो को हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि उनके वंशवृक्ष को बड़ा करने वाली नारी के भी रगो में किस शोषित पिड़ित का डीएनए दौड़ रहा है | और मनुवादि जिसे निच और शुद्र जाति घोषित जिसे किए हैं , जो चाहे जिस धर्म को अपनाकर संघर्ष कर रहा हो , उससे कथित उच्च जातियो के घरो में मौजूद शोषित पिड़ित डीएनए का ही नारी द्वारा किसी शोषित पिड़ित पुरुष से रिस्ता जोड़ने की प्रक्रिया में बड़ौतरी क्यों हो रही है | जो दरसल अपने ही डीएनए के घर वापसी हो रही है | क्योंकि कथित उच्च जाति के मनुवादि भले खुदको हिन्दु कहने में गर्व करके और वेद पुराणो से खुदको जोड़कर सुबह शाम भारत माता भारत माता रटा मार रहे हो , पर रटा मारते समय उसे यह बात कभी नही भुलनी चाहिए कि उस भारत माता के रगो में किसका डीएनए दौड़ रहा है ! उसी भारत माता का डीएनए दौड़ रहा है जो कि शोषित पिड़ित मुलनिवासियो के घरो में भी मौजुद है | जिसका डीएनए इस देश के मुलनिवासियो से मिलता है न कि मनुस्मृति रचना करने वाले मनुवादियो से मिलता है | जो बात एक विश्व स्तरीय डीएनए प्रयोग से साबित भी हो चूका है | जिसके बारे में 21 मई 2001 को The Times of india अंग्रेजी अखबार में खबर छपी थी | जिसे देश की राष्ट्रीय भाषा हिन्दी और किसी भी राज्य की क्षेत्रीय भाषा में इसलिए नही छापी गई थी , ताकि इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासियो से इस बहुत बड़ी जानकारी को छुपाया जा सके | पर चूँकि सिर्फ मनुवादि ही अंग्रेजी नही जानते हैं , बल्कि इस देश के मुलनिवासियो ने तो मनुवादियो से भी ज्यादे उच्च डिग्री अंग्रेजी में भी हासिल कीए हुए हैं | और इस देश का अजाद भारत का संविधान तक अंबेडकर द्वारा अंग्रेजी में ही लिखा गया है | इसलिए जाहिर है मनुवादि मीडिया द्वारा सच्चाई को छुपाने का बहुत प्रयाश करने के बावजुद भी यह जानकारी मुलनिवासियो को मिलना स्वभाविक है | हलांकि अब भी ज्यादेतर मुलनिवासी इस बात से अनजान ही हैं कि मनुवादियो का डीएनए विदेशियो से मिलता है | और मनुवादियो के परिवार में मौजुद नारी का डीएनए शोषित पिड़ित इस देश के मुलनिवासियो के घरो में मौजुद नारी से ही मिलता है | जिस अनजाने में ही उच्च जाती की नारी और निच जाती का पुरुष शब्द बार बार सुनने को अक्सर मिलते रहता है | जो स्वभाविक है क्योंकि जिस तरह कोई गोरे अंग्रेजो से रिस्ता जोड़कर उसके औलाद गोरे कहलायेंगे कि काले इस तरह की चर्चा होने लगेगी , उसी तरह ही कथित उच्च जातियो से रिस्ता जोड़कर उसके औलाद निच हैं कि उच्च यह विवाद अक्सर होता रहता है | खासकर मनुवादियो और मनुस्मृति के बारे में जानकर भी उच्च जाति कहलाने वाली झुठी शान के भुखे लोगो को उच्च सुनने में अच्छा भी लगता होगा इसलिए इस देश के मुलनिवासियो जिनके साथ मनुवादियो ने खुद ही हजारो सालो से छुवा छुत शोषन अत्याचार जैसे सबसे बड़ी निच हरकत करने के बावजुद भी खुदको जन्म से उच्च होने का मानो आरक्षित घोषित किया हुआ है | हलांकि डीएनए प्रयोग से भी हजारो साल पहले यह जानकारी मौजुद कराई जा चूकि है कि मनुवादि के पुर्वज पुरुष झुंड में इस देश में प्रवेश किए थे न कि उनके साथ कोई उनके जैसा विदेशी मूल की नारी थी | जैसे कि तुलसी रामायण में ढोल , गंवार , शूद्र , पशु , नारी सकल ताड़न के अधिकारी लिखकर यह उदाहरन दिया जा चूका है कि विदेशी मुल का मनुवादि परिवार में मौजुद सिर्फ पुरुष विदेशी मुल के हैं | क्योंकि मनुवादि इस देश में पुरुष झुंड बनाकर प्रवेश किए थे | जिनके साथ कोई नारी नही थी | जिसके चलते उन्होने मनुस्मृति रचना करते समय भी खुदको नारी योनी से पैदा होने के बजाय पुरुष के अंगो से पैदा हुआ बतलाना और  ढोल , गंवार , शूद्र , पशु , नारी सकल ताड़न के अधिकारी लिखना जरुरी समझा |

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