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रविवार, 17 नवंबर 2019

मनुवादियो की मनुस्मृति को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले मुलनिवासियो के विचारो को वैचारिक आतंकवाद कहने वाले रामदेव

 मनुवादियो की मनुस्मृति को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले मुलनिवासियो के विचारो को वैचारिक आतंकवाद कहने वाले रामदेव
वैचारिक आतंक रामदेव
वैचारिक आतंक रामदेव
रामदेव

मनुवादियो की मनुस्मृति को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना करने वाले मुलनिवासियो के विचारो को वैचारिक आतंकवाद कहने वाले रामदेव को क्या यह पता है कि इस सुख शांती और समृद्धी कायम कृषि प्रधान देश में छुवा छुत उच्च निच का वैचारिक आतंक किन लोगो ने फैला रखा है ? और अगर नही पता तो दलित आदिवासी पिछड़ी डीएनए के ही होने के नाते उन्हे भी यह बात जरुर पता होनी चाहिए कि इस देश में बाहर से आकर मनुवादियो ने मनुस्मृति रचना करके हजारो सालो से छुवा छुत शोषन अत्याचार का वैचारिक आतंक किस तरह से कायम किया हुआ है | किस तरह जन्म से ही उच्च निच विचारो से हजारो सालो से वैचारिक आतंक कायम किया हुआ है ? जिस वैचारिक आतंक का ही तो विरोध करके अंबेडकर ने मनुस्मृती को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना किया है |
रामदेव
रामदेव


जिस अजाद भारत का संविधान को रामदेव सही मानता है कि मनुस्मृति को सही मानता है ? हलांकि मनुवादियो के भितर जबतक भष्म मनुस्मृति का भुत वैचारिक आतंक के रुप में कायम रहेगी तबतक अजाद भारत का संविधान लागू होकर भी इस देश और इस देश के मुलनिवासियो को पुरी अजादी नही मिलने वाली है | जिसके चलते मनुवादि आज भी छुवा छुत का वैचारिक आतंक कायम किये हुए हैं | बल्कि वैचारिक आतंक के साथ साथ मनुस्मृति लागू करके वेद सुनने पर गर्म पिघला लोहा कान में डालना , वेद उच्चारण करने पर जीभ काटना , अँगुठा काटना जैसे हिंसक आतंक भी कायम थी | जिस मनुस्मृति को लागू करने की सपने मनुवादि आज भी देखता रहता है , जिसके चलते कभी वह संविधान को जलाता है तो कभी अंबेडकर की मूर्ति को तोड़ता है | बल्कि कहीं कहीं यह भी देखने सुनने और पढ़ने को मिलता है कि मनुवादि इस देश के मुलनिवासियो को निच शुद्र अच्छुत कहकर मार पिटकर आज भी किस तरह से लहू लुहान कर रहे हैं | 

जिन मनुवादियो का डीएनए से बाबा रामदेव का और साथ साथ दलित आदिवासियो और मदर इंडिया का भी डीएनए नही मिलता है | जो बात विश्व स्तरीय डीएनए प्रयोग से साबित भी हो चुका है | फिर भी बाबा रामदेव इस देश के मुलनिवासियो के विचारो को वैचारिक आतंकवाद और खुदको बाहर से आनेवाले देवो का वंशज और राम का वंशज कहकर कैसे गर्व कर रहे हैं ? क्या वे खुदको राम और देवो का वंशज कहकर यह साबित करना चाहते हैं कि उनके पिता का डीएनए उस ब्रह्मण क्षत्रीय या वैश्य लोगो के डीएनए से मिलता है , जिन्होने इस देश में प्रवेश करके हजारो सालो से छुवा छुत का वैचारिक आतंकवाद कायम किया हुआ है ? या फिर उस मुलनिवासी दलित आदिवासी या पिछड़ी से मिलता है जो कि छुवा छुत आतंक से अजादी पाने का संघर्ष हजारो सालो से कर रहे हैं ? जिस संघर्ष को वैचारिक आतंक कहने वाला बाबा रामदेव का डीएनए ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य से नही बल्कि दलित आदिवासी पिछड़ी से मिलता है | जिस बात को बाबा रामदेव माने या न माने पर विज्ञान द्वारा भी अब जग जाहिर हो चुका है कि मनुवादियो का डीएनए और इस देश के मुलनिवासियो का डीएनए अलग है , जैसा कि गोरो का डीएनए और इस देश के मुलनिवासियो का डीएनए अलग है | जाहिर है यदि रामदेव पिछड़ी जाती से आते हैं तो निश्चित तौर पर रामदेव का डीएनए भी पिछड़ी से ही मिलता है | 

न कि शंभुक के साथ भेदभाव करने वाले क्षत्रिय राम और भेदभाव करके एकलव्य से अँगुठा मांगने वाले द्रोणाचार्य से मिलता है | और जब राम और द्रोणाचार्य के डीएनए  से नही मिलता है तो निश्चित तौर पर राम का आधुनिक वंशज रामदेव नही बल्कि वे लोग हैं जिनको मनुस्मृति में उच्च जाति घोषित किया गया है | जिन ब्रह्मण वैश्य और क्षत्रियो के पुर्वज उन देवो को कहा जाता है जिनका राजा वह इंद्रदेव है जो उपर स्वर्ग से निचे धरती में उतरकर अहिल्या का बलात्कार किया था |

जिसे अहिल्या के पति गौतम ने इंद्रदेव को हजार योनी घुंघरु की तरह टांगकर जिवन बसर करने का श्राप दिया था | जिन देवो को रामदेव बार बार अपना पुर्वज और इस देश के मुलनिवासियो के विचारो को वैचारिक आतंक इसलिए भी सायद कह रहा है , क्योंकि उसने अपने नाम से राम और देव को जोड़ रखा है | जिस नाम के साथ यादव भी जोड़कर बाबा रामदेव को हमेशा यह याद करने की कोशिष करते रहना चाहिए कि बाबा रामदेव के भी रगो में उन लोगो का ही डीएनए दौड़ रहा है जिनके साथ आज भी मनुवादि भारी भेदभाव शोषन अत्याचार करते हैं |

मनुवादि गोरो की तरह विदेशी मुल के हैं लेकिन भी चूँकि उनकी दबदबा इस देश की सत्ता समेत लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कायम है , इसलिए अजाद भारत का संविधान लागू होने के बावजूद भी निश्चित होकर शोषन अत्याचार कर रहे हैं | क्योंकि उन्हे पता है कि मनुवादि सत्ता कायम की वजह से उनके डीएनए के लोग लोकतंत्र के बाकि भी प्रमुख स्तंभो में अपनी दबदबा कायम किये हुए हैं | जिसकी झांकी भी देख लिया जाय |

नही तो मनुवादियो को यह भी पता है कि सत्ता छिनाने के बाद मनुवादियो की स्थिति क्या होनेवाली है ! जिसे छिने जाने से बचाने के लिए ही तो रामदेव जैसे लोगो को मानो बलि का बकरा बनाकर इस्तेमाल किया जा रहा है | जिन लोगो को इस्तेमाल करने के बावजुद भी कभी न कभी तो मनुवादियो की सत्ता भविष्य में निश्चित तौर पर चली जायेगी | जैसे की गोरो की सत्ता चली गई | हलांकि मनुवादि विचारो से आतंक फैलाकर इतने गिरे हुए लोग हैं कि दान देने वालो को ही कंगाल बनाने के लिए फिर से दुसरो के हक अधिकारो को जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद करके सबकुछ फिर से लुट लेने की कोशिष फिर से करेंगे | जैसे की वेद पुराणो में भी बतलाया गया है कि जब देवो के हाथो से बलि दानव ने अपनी सत्ता वापस ले लिया तो अपनी झुठी शान को वापस बरकरार रखने के लिए किस तरह  देवो ने वामन के माध्यम से कटोरा लेकर उस बलि दानव से दान मांगकर बलि दानव को कैद करके सत्ता वापस लुट लिया था |

देवो का दानवो से एक दर्जन से अधिक बार संग्राम हो चूका है | और साथ साथ देव दानवो के बिच सागर मंथन भी हुआ है | जिसे फिलहाल सत्य इतिहास मानने पर विवाद है | क्योंकि इस देश में हजारो साल पहले मनुवादि सत्ता स्थापित होने के बाद वेद पुराणो के साथ छेड़छाड़ करके मनुवादियो द्वारा ढोंग पाखंड और अँधविश्वास की मिलावट करके वेद पुराणो को इतना विवादित बना दिया गया है कि वेद पुराणो में बतलाई गई बातो को ढोंग पाखंड तक कह दिया जाता है  | हलांकि फिर भी उसी वेद पुराण में मौजुद योग प्रकृति विज्ञान ज्ञान तो विवादित नही है |

 जिसको रामदेव वाकई में प्रमाणित सत्य मानता हैं तो रामदेव को यह बात माननी ही होगी कि बाबा रामदेव के पुर्वज ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य से नही बल्कि दलित आदिवासी और पिछड़ी से आते हैं | जो कि इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासी हैं , न कि बाहर से आने वाले ब्रह्मण क्षत्रिय और वैश्य , जिन्होने खुदको उच्च जाति और इस देश के मुलनिवासियो को निच जाति शुद्र अच्छुत घोषित कर रखा है | रामदेव को क्या यह कहते हुए वाकई में सत्य वचन लगेगा कि उनके पुर्वज ही इस देश के मुलनिवासियो के साथ छुवा छुत करते आ रहे हैं ?

या फिर वाकई में रामदेव को पता ही नही कि मनुवादियो द्वारा छुवा छुत वाकई में कभी हुआ या हो रहा है ! जिस छुवा छुत के चलते ही तो आज भी मंदिरो में कहीं कहीं शुद्रो अच्छुतो निचो का प्रवेश मना है लिखा मिल जाता है | जो वे लिख सकते हैं क्योंकि उनके रगो में उन लोगो का डीएनए दौड़ रहा है जिन्होने इस देश में बाहर से आकर इस देश के मुलनिवासियो का शोषन अत्याचार किया और कर रहे हैं | जैसे कि कभी गोरे बाहर से आकर किये थे , जो गेट में ये लिखते थे कि अंदर कुत्तो और इंडियनो का प्रवेश मना है | जो आज कुत्तो और इंडियनो को गोद में लेकर चाटते रहते हैं | जैसा कि कभी आनेवाला समय में जब मनुवादियो को भी सत्यबुद्धी प्राप्त होगी और यह देश पुरी तरह से आजाद हो जायेगा तो मनुवादि भी छुवा छुत जिससे करते हैं , उसका तलवा चाटेंगे उनके जैसे ऐसी सत्यबुद्धी प्राप्त करने के लिए जिससे की मनुस्मृति के बजाय अजाद भारत का संविधान रचना कर सके | जो सत्यबुद्धी अबतक इस देश के मुलनिवासियो द्वारा अपने सर में मैला ढोकर लंबे समय तक मनुवादियो के सर में देश का ताज तक देकर अथवा बार बार देश का शासक बनाने के बावजुद भी अबतक सत्यबुद्धी नही आई है | वैसे हजारो साल पहले भी इस देश के मुलनिवासियो ने मनुवादियो को उस समय अपने सर से तख्तो ताज तक दे दिया था जब मनुवादि हाथ में कटोरा लेकर रहने के लिए आसरा मांग रहे थे | जिस समय इस देश के मुलनिवासी शासक बलि राजा ने मनुवादियो को अपने सर से तख्तो ताज तक दान में दे दिया था |

जिसके बारे में वेद पुराणो में अप्रमाणित तरिके से चर्चा है | चूँकि मनुवादियो द्वारा तख्तो ताज हासिल होते ही अपने बुद्धी के हिसाब से वेद पुराणो में अप्रकृति रुप से छेड़छाड़ करके भगवान पुजा का मतलब देवो की पुजा बतलाकर मनुवादियो ने खुदको वामन अवतार बताकर और मनुस्मृति रचना करके खुदको जन्म से ही ताकतवर बुद्धीमान और धनवान घोषित करने की कोशिष किया है | जिसमे वे खुदकी पुजा कराने में कामयाब भी रहे हैं | जो कि स्वभाविक भी है | क्योंकि ताकतवर सत्ता के बल पर गुलाम करने वाले जोर जबरजस्ती और ब्रेनवाश करके अपने गुलामो से अपनी पुजा करा सकते हैं | जैसे की रोमराज के समय में भी हुआ करता था | पर मुल रुप से असल में छुवा छुत करने वाले जन्म से विद्वान पंडित अँगुठा काटकर शोषन अत्याचार करने वाले जन्म से रक्षक दुसरो के हक अधिकारो को लुटकर धनवान बनने वाले जन्म से धन्ना क्या वाकई में कहलाने के लायक हो सकते हैं ? यह तो वे लोग ही अच्छी तरह से बतला सकते हैं जिनके पुर्वज और खुद भी छुवा छुत और गुलाम बनाने वालो का कभी शिकार हुए हैं | जिनके साथ छुवा छुत करने वाले मनुवादियो को कभी भी विद्वान रक्षक और धनवान बनने के लायक मुल रुप से माना ही नही जा सकता जबतक कि वे सचमुच में छुवा छुत करना शोषन अत्याचार करना हक अधिकार लुटना बंद नही कर देते | जिसे मनुवादि पुरी तरह से कभी बंद ही नही कर सकते जबतक की सायद उनके हाथो से सत्ता नही चली जाती | क्योंकि मनुवादियो की दबदबा कायम सत्ता मनुवादियो के हाथो जबतक रहेगी तबतक उन्हे झुठी उच्च शान की नशा उनकी भ्रष्टबुद्धी में सत्यबुद्धी आने नही देगी | जैसे की जबतक गोरो के हाथो सत्ता थी तबतक गोरे न्यायालय में जज बनकर भी गुलाम बनाकर अपनी भ्रष्टबुद्धी द्वारा न्याय कायम कर रहे थे | मनुवादि भी छुवा छुत शोषन अत्याचार करके लोकतंत्र के चारो प्रमुख स्तंभो में कब्जा जमाकर अपनी भ्रष्टबुद्धी अनुसार न्याय ही कायम किये हुए हैं | इसलिए तो झुठी शान के लिए अथवा अपनी झुठी शान की नशा इच्छापुर्ति कायम रखने के लिए खुदको जबरजस्ती उच्च घोषित करके अबतक भी कायम किए हुए हैं | क्योंकि मनुवादि झुठी उच्च शान की नशा करते हुए छुवा छुत शोषन अत्याचार और दुसरो का हक अधिकारो को लुटते हुए कभी नही इस लायक बन सकते कि उन्हे पुर्ण अजादी मिलने पर ज्ञान का रक्षक पुजारी , जान का रक्षक क्षत्रिय , और धन का रक्षक धन्ना वैश्य बनाया जा सकेगा | हाँ रामदेव जैसे लोग जिन्हे ये गलतफेमी है कि मनुवादि रामराज लाकर शंभुक प्रजा का भला करनेवाले वंशज हैं | वैसे लोग जरुर ज्ञान का रक्षक जान का रक्षक धन का रक्षक मनुवादियो को बनायेंगे | जाहिर है रामराज को अपना आदर्श मानने वाले शासको द्वारा शंभुक प्रजा का मान सम्मान जान शान को हर रोज खतरा पैदा होना स्वभाविक है | दरसल ऐसे लोग ही मनुवादियो का सबसे बड़ा ऐसे वैचारिक गुलाम हैं जिन्हे पता ही नही कि छुवा छुत शोषन अत्याचार करने वालो से अजादी पाने के लिए वैचारिक संघर्ष करना क्या होता है ! क्योंकि ऐसे लोग मनुवादियो द्वारा वैचारिक गुलाम करके अति ब्रेनवाश कर दिये जाते हैं | जिनको बलि का बकरा बनाकर इतनी ब्रेनवाश की जाती है कि वे सारी जिवन भी यदि अपने भ्रष्ट बुद्धी से मनुवादियो की छुवा छुत शोषन अत्याचार वैचारिक आतंकवाद को समझने की कोशिष करें तो भी अंतिम तक उनकी जय श्री राम कहकर आरती ही उतारते रहेंगे !

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