मनुस्मृति को जलाकर भारत का संविधान रचना करना वैचारिक आतंक है कि मनुस्मृति रचना करना वैचारिक आतंक है ?

मनुस्मृति को जलाकर भारत का संविधान रचना करना वैचारिक आतंक है कि मनुस्मृति रचना करना वैचारिक आतंक है ?

रामदेव ने जिन शोषित पिड़ितो के लिए वैचारिक आतंक जैसे विवादित बयान दिया है , उन लोगो का डीएनए और रामदेव का डीएनए एक है |



जो प्रमाणित बात रामदेव को जरुर पता होनी चाहिए | क्योंकि रामदेव ने अपने आगे राम और देव जोड़कर सायद यह सोच लिया हो कि उसका डीएनए राम और देव से मिलता है | इसलिए सायद बार बार राम और देव को अपना पुर्वज कहते रहता है | जबकि उसे यह पता होना चाहिए की अपना और अपने पुर्वजो का डीएनए एक होता है | और जैसा कि विश्व स्तरीय डीएनए रिपोर्ट से यह बात साबित हो चुका है कि दलित आदिवासी और पिछड़ी जाति का डीएनए और ब्रह्मण वैश्य क्षत्रिय जाति का डीएनए अलग है | और रामदेव पिछड़ि जाति से आता है | 



राम पिछड़ी जाति का नही था कि रामदेव राम को अपना पुर्वज मानकर अपने ही डीएनए के लोगो को वैचारिक आतंकी कहे |



जबकि वैचारिक आतंक असल में छुवा छुत उच्च निच भेदभाव करके वेद सुनने पर कान में गर्म पिघला लोहा डालना , वेद का उच्चारण करने पर जिभ काटना , गले में थुक हांडी टांगना , कमर में झाड़ू टांगना , अँगुठा काटना जैसे मनुवादि विचार है | जिस अन्याय अत्याचार से अजादी पाने का संघर्ष रामदेव के लिए आतंक है | बल्कि रामराज में तो शंभुक की हत्या तक राम द्वारा इसलिए कर दिया गया था , क्योंकि मनुस्मृति अनुसार शंभुक शुद्र जाति का था | जिसके लिए रामराज में वेद ज्ञान लेना ऐसा अपराध था जिसकी सजा मौत थी | जिस रामराज को सबसे श्रेष्ट शासन माना जाता है | जिस समय यदि रामदेव भी वर्तमान की तरह शुद्र जाति का होकर वेद ज्ञान लेता तो निश्चित तौर पर उसे भी शुद्र होते हुए भी वेद ज्ञान लेने की सजा दी जाती | क्योंकि वह उच्च जाति का नही है | रामराज में शंभुक प्रजा के साथ अन्याय अत्याचार तो होता ही था , पर राजा राम ने तो अपनी पत्नी रानी सीता को भी बिना गलती के सजा देना नही छोड़ा और अग्नि परीक्षा पास करने के बावजुद भी उसे गर्भवती अवस्था में ही घने जंगल में भेज दिया गया था | जहाँ पर रानी सीता ने लव कुश को जन्म दी थी | जिस सीता का दुःख यही नही थमा और वह आगे रामराज में ही इतनी दुःखी हुई की रोते रोते जीते जी धरती में समा गयी | 



हलांकि राजा राम भी बाद में अपनी प्रजा को छोड़कर जीते जी सरयू नदी में समा गया था | जिस तरह से कथित सबसे श्रेष्ट रामलीला का समापन हुआ था | राम का महल में खुद राम सीता लव कुश भी कभी परिवार समेत रह नही सके और न ही सुखी रह सके तो भव्य राम मंदिर बनाने के बाद राम को अपना आदर्श मानने वाले वे लोग क्या सुखी रह पायेंगे जिन्हे वैचारिक आतंक कहकर आतंकित किया जा रहा है | 



जिसके बजाय रामदेव को अपने ही डीएनए के शोषित पिड़ित गरिबो के लिए , बल्कि सबके लिए अन्न जल रोटी कपड़ा मकान बिजली सड़क विद्यालय अस्पताल वगैरा मूल जरुरत को पुरा कराने का बयान देनी चाहिए | जिन जरुरतो को पुरा किया जा सके ऐसे सेवा का निर्माण करने से प्रजा सचमुच में सुखी होगी न कि भव्य मंदिर निर्माण करने और वैचारिक आतंक जैसे विवादित बयान देने से होगी | 



क्योंकि आखिर इन मूल जरुरत का इंतजाम कब होगी ? दरसल ऐसे ही सवालो का जवाब प्रजा अपने शासक से न पुछ सके इसलिए रामदेव जैसे लोगो को विवादित बयान दिलवाकर दुःखी प्रजा का ध्यान भटकाया जा रहा है |



जिससे शोषित पिड़ित प्रजा का ध्यान और अधिक भटकाया न जा सके इसके लिए मेरी इस पोस्ट को ज्यादे से ज्यादे लोगो को शेयर जरुर करें | खासकर दलित आदिवासी पिछड़ी चाहे जिस धर्म में मौजुद हो , चूँकि धर्म बदलने से डीएनए नही बदलता , और जैसा कि सबको पता है कि जिनके लिए वैचारिक आतंक बयान दिया गया है उन सबका डीएनए एक है | चाहे वे जिस धर्म को अपनाये हुए हैं | बल्कि रामदेव का भी डीएनए उन लोगो से मिलता है जिनके लिए रामदेव ने वैचारिक आतंक विवादित बयान दिया है | जो बयान दरसल मनुवादियो द्वारा रामदेव को ब्रेनवाश करके दिलवाया गया है |



इसलिए सबको एकजुट होकर रामदेव के विवादित बयानो का विरोध करना जरुरी है ! और हाँ अगर यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसके बदले कुछ नही सिर्फ मुमकिन हो तो अपने दोस्त और करिबियो में से दस लोगो को शेयर जरुर करें ! क्योंकि ज्ञान बांटने से बड़ता है , और छिपाने से घटता है | और अगर इस ज्ञान को बांटने के बजाय छिपा दीया गया तो समझो मनुवादियो का वैचारिक आतंक उन लोगो की नजरो से जरुर छिप जायेगी जिन्हे मनुस्मृति वैचारिक आतंक के बारे में नही पता  | जबकि शोषित पिड़ितो को वैचारिक आतंक विवादित बयान को फैलाकर शोषित पिड़ित समाज में चारो तरफ पीड़ा और अपमान और अधिक फैल जायेगी | "धन्यवाद " !

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