इंसान भीम का पुत्र नरभक्षी दानव कैसे पैदा हुआ


इंसान भीम का पुत्र नरभक्षी दानव कैसे पैदा हुआ

राक्षसों ने युद्ध जीतने के बाद, क्या उन्होंने वास्तव में देवों के शरीर खाए और बाकी को सुखाया ताकि बाद में खा सके ?

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(raakshason ne yuddh jeetane ke baad, kya unhonne vaastav mein devon ke shareer khae aur baakee ko sukhaaya?)


मनुवादी बेकार में अपना किमती समय उस झुठी शान को बरकरार रखने के लिए बर्बाद कर रहे हैं , जिसे भविष्य में उनकी नई जागरुक पिड़ी कभी भी यह स्वीकारने वाली नही है कि मनुस्मृति बुद्धी का विकाश किमती शान है , जिसे पिड़ी दर पिड़ी अपने पूर्वजो की आधुनिक सत्य बुद्धी बल समझकर आगे ले जाया जाय | बजाय इसके कि भेदभाव शोषण अत्याचार करने वाले मनुवादियों को जिते जी खुद ही माफी मांगकर कान पकड़कर उठक बैठक करके आज के बाद भेदभाव शोषण अत्याचार फिर कभी नही करेंगे और न ही झुठी ज्ञान प्रवचन करके ढोंग पाखंड फैलायेंगे यह वचन खुदसे लेना चाहिए | क्योंकि विकाश का समयचक्र अनुसार सचमुच का विकाश प्रक्रिया में विकसित पिड़ी उन संस्कारो को अपनाती है , जिसे बहुसंख्यक अबादी विद्यालयो में प्रमाणित सत्य ज्ञान के रुप में अपनाती है | भले वे धार्मिक पुस्तको की पुजा पाठ ज्ञान को अपने विद्यालयो में नही पढ़ते हैं , पर उन जानकारियों को जरुर पढ़ते लिखते हैं , जिसका रिस्ता मानवता और पर्यावरण से जुड़ा हुआ रहता है | जिसे सभी धर्मो के साथ साथ नास्तिक लोग भी पढ़ते लिखते हैं | जिसका ज्ञान सभी इंसानो को जरुर लेते रहना चाहिए | क्योंकि इंसानो का भविष्य इंसानियत और पर्यावरण कायम करना है | न कि भुतकाल में पिच्छे लौटकर वापस परजिवी जानवर बन जाना है | जिस तरह का परजिवी जानवरपन  अब भी अल्पसंख्यक इंसानो में मौजुद है | जैसे कि किसी को गुलाम बनाना , छुवा छुत करना , लुटमार करना , परजिवी जानवरपन ही तो है | जिस तरह के जानवरपन को विकसित सोच मानने वाले लोगो की अबादी कम है , लेकिन भी वे छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से दुसरो का नोच चुसकर ही तो जिवन गुजारा करने के लिए लुटमार गुलाम बनाना जैसे कुकर्मो को अबतक करते आ रहे हैं | जिस तरह के पाप करने वालो की नई पिड़ी जैसे जैसे सच्चाई और प्रकृति विज्ञान प्रमाणित रास्तो में चलकर इंसानियत को ज्यादे महत्व देगी वैसे वैसे अपने पुर्वजो की जानवरपन को आधुनिक उच्च विकाश कहकर वापस नही अपनाने वाली है | और उनके भितर का जानवरपन को हटाने के लिए सत्यबुद्धी ज्ञान का विकाश होना जरुरी है , न कि मनुस्मृति ज्ञान लेकर छुवा छुत बुद्धी का विकाश होना जरुरी है | सत्यबुद्धी का विकाश ज्ञान ही तो इंसानी बुद्धी का मुल विकाश है , जो की हजारो सालो का वेद पुराणो में भी मौजुद है | जिसमे मनुवादीयों ने छेड़छाड़ और मिलावट करके अपनी मनुस्मृति बुद्धी की मिलावट कर दिया है | जैसे की वेद पुराणो में अप्रकृति सोच की मिलावट करके किमती हिरे मोती सोने चाँदी इत्यादि आभुषणो से लदे इस देश के मुलनिवासियों के पुर्वजो को बड़े बड़े दांतोवाला नर भक्षी और अपने पुर्वजो को भगवान बताकर मनुवादीयों ने अपनी अविकसित भ्रष्ट बुद्धी का परिचय खुद दिया है | क्योंकि हजारो साल पहले किमती आभुषणो से इस देश के मुलनिवासि लदे रहते थे इसका मतलब साफ है कि वे समृद्ध थे | जो कि सोने चाँदी के बर्तनो में खाना भी खाते थे न कि युद्ध जितने के बाद मनुवादीयों के पुर्वज देवो को मारकर सोने चाँदी के बर्तनो में बिरियानी और कोरमा बनाकर खाते थे | जो यदि खाते तो देव और असुरो के बिच कई युद्ध हुए हैं , जिसमे ज्यादेतर युद्ध असुर दानवो ने जिते हैं | बल्कि असुर दानवो ने तो देवो को  कैद करके लगातार छोड़ भी दिया है , न कि किसी मांस की दुकान में कैद बोयलर मुर्गा मुर्गी की तरह उन्हे जबरजस्ती गर्दन पकड़कर कैदखाना से निकालने के बाद उसे काटकर चमड़ी उतारकर पिस पिस करके सोने की बर्तन में पकाकर चट कर गये हैं | जाहिर है यदि दानव असुर नर भक्षी होते तो निश्चित तौर पर युद्ध जितने के बाद जितने भी विरोधियो को बंधक बनाते थे , उन्हे युद्ध के मैदान में ही मौत के घाट उतारकर वहीं पकाकर खाते और बाकियो को अपने साथ ले जाकर पूरे परिवार समाज के साथ सार्वजनिक तौर पर जीत की खुशी में मिल बांटकर पार्टी मनाते | जहाँ पर उनकी बोटी बोटी करके सोने की कटोरा और थालियो में परोसकर खाया जाता | बल्कि बचे खुचे को भी सुखाकर रोटी की तरह सालोभर अचार की तरह खाते रहते | क्योंकि जबतक देवो की बुरी नजर असुरो में रहती तबतक प्रत्येक देव असुर संग्राम में मांस का का भंडारन किया जाता | युद्ध जितने के बाद मानो सालोभर खाने पिने का इंतजाम हो जाता | जैसे कि अच्छी फसल पैदावर होने पर किसान उसे खेतो से काटकर ट्रेक्टरो और बैल गाड़ियों में भर भरकर ले जाने के बाद सुखाकर अन्न भंडार करने के बाद सालोभर भोजन की व्यवस्था करते हैं | जाहिर है असुर दानव चूँकि नरभक्षी नही थे इसलिए एक भी युद्ध में ऐसी भंडारन करने और हारे या कैद हुए देवो का बिरयानी व कोरमा बनाकर खाने के बारे में जानकारी वेद पुराणो में मौजुद नही है | और यदि दुसरे माध्यम से है भी तो वह मनुवादीयों के द्वारा मिलावट और छेड़छाड़ करके बाद में झुठा ज्ञान बांटना सुरु किया गया है | जिसे सत्य समझकर लंबे समय तक विश्वास करना जारी इसलिए रहा क्योंकि मनुवादीयों ने वेद पुराणो में भी कब्जा करके इस देश के मुलनिवासियों को वेद पुराणो में मौजुद अपने पुर्वजो के इतिहास को ठीक से कभी समझ ही नही सके और मनुवादीयों के मिलावटी अप्रकृति बातो को सत्य मानकर अपने ही पुर्वजो को सबसे बड़ा शैतान समझने लगे | लेकिन आजकल नई पिड़ी अब धिरे धिरे इस बात को समझने लगी है कि वेद पुराणो में शैतान लुटने वाले लुटेरे हैं की जिनका धन संपदा बल्कि राज्य में कब्जा करके जान माल दोनो लुटा गया है वे हैं ? आज यदि कोई इंसान एक किलो का भी किमती सोने चाँदी हिरे मोती का जेवर पहनता है तो उसे देखकर कोई भी व्यक्ती तुरंत समझ जाता है कि किमती जेवरो से लदा हुआ व्यक्ती समृद्ध परिवार से है | जिसके पास खाने पिने की कोई कमी नही है | न कि किमती जेवरो से लदा होने के बावजुद भी उसके पास इतनी भुखमरी है कि कुछ नही तो वह मानव भक्षन करके गुजारा करने लगे | वह भी इतनी विकसित सभ्यता संस्कृति का निर्माण करके बड़ी बड़ी महलो में रहकर मानव भक्षण करते थे असुर दानव यह विचार विकृत बुद्धी का ही नतिजा है , जिसमे सुधार होना अब भी जारी है | बल्कि हकिकत में तो हजारो साल पहले नंगा पुंगा भुखड़ घुमकड़ जिवन जिने वाले कबिलई मनुवादी ये सब मुर्दाखोरी करते होंगे | क्योंकि उन्हे तब खेती करना और समाज परिवार के साथ रहना नही आता था | तभी तो उनके साथ कोई महिला नही आई है | और जिसके कारन यूरेशिया से आए मनुवादी इस देश की महिलाओं से ही अपना वंशवृक्ष बड़ाये हैं | जो कि dna प्रयोग से साबित भी हो चुका है | जिस dna प्रयोग के बारे में प्रमाणित सच्चाई जानकर अब तो सौ प्रतिशत यकिन के साथ कहा जा सकता है कि मनुवादीयों द्वारा अपनी अविकसित भ्रष्ठ बुद्धी का इस्तेमाल करके वेद पुराणो में मिलावट किया गया है | जिस मनुस्मृति वायरस को अपने भितर से हटाकर मनुवादीयो को उस सत्यबुद्धी ज्ञान को लेना चाहिए , जिससे की मानवता और पर्यावरण का विकाश होता है | जो प्रकृति ज्ञान वेद पुराणो में भरे पड़े हैं | बस उसमे से मनुवादी मिलावट की हुई वायरस को हटाकर या नजर अंदाज करके प्रकृति विज्ञान दृष्टी से समझना होगा | क्योंकि वेद पुराण में दरसल हजारो साल पहले खोजा गया प्रमाणित ज्ञान के तमाम विषयो का भंडार है | जिसे इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासियों द्वारा लंबे समय से अलग अलग समय में खोजकर इकठा किया गया है | और चूँकि हजारो साल पहले लिखाई पढ़ाई मौजुद नही थी , इसलिए सुरुवात में वेद (आवाज,ध्वनि) अथवा मुँह से निकली बोली से ही ज्ञान बांटा जाता था | जो की मुँह से बोलकर और कान से सुनकर मन की मेमोरी में स्टोर किया जाता था | जैसे कि आज भी इंसानो के मन में अनेको जानकारी बोल सुनकर स्टोर किया जाता है | जिससे कि वह अपनी रोजमरा जिवन के बारे में बहुत कुछ जानते और पहचानते हुए वर्तमान भुत भविष्य के बारे में भी जानकारी तय करते हैं | और कौन क्या है , इसे भी सही से जान पाते हैं | मसलन आज के आधुनिक मानव के दिमाक में दोस्त रिस्तेदार , परिवार समाज वगैरा की जानकारी दिमाक में स्टोर होता रहता है | जैसे की इंसान बचपन में ही माँ पिताजी बोलना सुरु करके रिस्तो को अपने दिमाक में स्टोर करना सुरु कर देता है |बल्कि आज तो कम्प्यूटर किताब कॉपी वगैरा में भी अब ये सब जानकारी स्टोर रहता है | जो कि हजारो साल पहले जब लिखाई पढ़ाई और कम्प्यूटर वगैरा की  खोज नही हुई थी , उस समय सारा इतिहास भुगोल नागरिक और विज्ञान वगैरा कई विषय की ज्ञान इंसान अपने मन में स्टोर करके रखता था | जिसे वह अपनी मुँह की बोली अथवा वेद से बांटता था और ज्ञान लेने के लिए कान से सुनकर स्टोर करता था | जिस जानकारी को इस देश के मुलनिवासियों को कान द्वारा लेने और मुँह द्वारा बांटने पर मनुवादीयो द्वारा रोक लगा दी गई थी | जैसे की मनुवादि आज भी यदि सचमुच में मनुस्मृति को अपडेट करके उसे लागु कर दे तो कथित उच्च जाति छोड़ बाकि सभी को विद्यालयो में ज्ञान लेना मना हो जायेगा | लेकिन चूँकि अभी का ज्ञान लेने और बांटने का माध्यम समय के साथ अपडेट हो चुका है , और साथ साथ बहुत कुछ मनुवादीयों के खिलाफ अपडेट हो चुका है | नही तो आज भी छुवा छुत करने और कान में गर्म लोहा डालने व जीभ काटने वाले मनुवादि खुदको जन्म से विद्वान पंडित फिर से संवैधानिक तौर पर घोषित करके सबको अनपढ़ बनाने की प्रक्रिया चलाने लग जाते | जैसे कि मनुवादियों ने हजारो साल पहले इस देश के मुलनिवासियों को वेद ज्ञान से वंचित करने के लिये मनुस्मृति लागु करके वेद बोलना और सुनना मना किया था | जिसके लिए मनुवादीयों द्वारा छल कपट और घर के भेदियों की सहायता से सबसे पहले तो इस कृषि प्रधान देश की सत्ता में कब्जा किया , उसके बाद घर के भेदियो की सहायता से मनुस्मृति रचना करने के बाद उसे लागु करके इस देश के मुलनिवासियों को जन्म से शुद्र और खुदको जन्म से उच्च घोषित किया | जिसके बाद ही इस देश के मुलनिवासियों को शुद्र कहकर वेद ज्ञान लेने और बांटने पर  रोक लगा दी गई थी | वेद ज्ञान का मंदिर जो कि उस समय विद्यालय हुआ करता था , वहाँ पर मनुवादियों ने वेद पाठ करने के साथ साथ अपने पुर्वजो की मूर्ति स्थापित करके उसकी पुजा करना भी सुरु कर दिया था , जो कि आज भी पुजा और पाठ दोनो ही जारी है | बल्कि अब तो विज्ञान की सहायता लेकर लॉउडस्पीकर के जरिये पुजा पाठ सुबह शाम लाखो मंदिरो से सभी धर्मो के लोगो को सुनाया जाना जारी है | जिस तरह की विज्ञान सहायता दुसरे धर्म भी ले रहे हैं | जैसे कि हिंदू मंदिरो में लिया जा रहा है | जिन वेद पाठ होने वाले हिंदू मंदिरो में यूरेशिया से आए मनुवादीयों द्वारा इस देश के मुलनिवासियों को प्रवेश वर्जित कर कर दिया गया था | जो की आज भी कहीं कहीं मंदिरो में शुद्र का प्रवेश मना है का बोर्ड लगा मिल जाता है | क्योंकि आज भी मनुवादियों द्वारा छुवा छुत भेदभाव करना समाप्त नही हुआ है | हलांकि वर्तमान के छुवा छुत नियम कानून को उस तरह का संवैधानिक अधिकार प्राप्त नही है , जैसा की कभी मनुस्मृति लागु होने पर प्राप्त था | जिस समय मुलनिवासियों द्वारा वेद सुनने पर कान में गर्म पिघला लोहा डालने और वेद बोलने पर जीभ काटने जैसा क्रुर नियम कानून  लागु कर दिया गया था | जो नियम कानून मनुवादियों पर लागू नही होता था | अथवा उनके द्वारा वेद सुनने या बोलने पर मनुवादीयों के कान में गर्म पिघला लोहा नही डाला जाता था , और न ही उनका जीभ काटा जाता था  | बल्कि जीभ काटने और गर्म लोहा डालने वाले अपराधियो अथवा ऐतिहासिक पापियो को लाड प्यार देकर शैतान बनने के लिये प्रेरित किया जाता था | ये सब क्रुरता सिर्फ इस देश के मुलनिवासियों को शुद्र निच घोषित करके दास दासी बनाकर शोषण अत्याचार किया जाने लगा था | ताकि वेद ज्ञान लेने और बांटने पर रोक लगाकर इस देश के मुलनिवासियों का बुद्धी विकाश रुक जाय और वह कभी खुदको अजाद कराने के लिए संघर्ष करने के बारे में सोचे ही नही , और जन्म से ही खुदको सिर्फ मनुवादीयों का सेवक बनने के ही काबिल समझे | बल्कि रामराज में तो वेद ज्ञान हासिल करने पर राजा राम ने शोषित पिड़ित प्रजा शंभुक की हत्या तक कर दिया था | क्योंकि प्रजा शंभुक ने मनुस्मृति अनुसार शुद्र और निच होते हुए भी चोरी छिपे वेद ज्ञान हासिल कर लिया था | जो रामराज में शुद्र निच कहलाने वाले इस देश के मुलनिवासियों को वेद ज्ञान लेना और बांटना मना था | जिस रामराज को पुरी दुनियाँ का सबसे आदर्श शासन बतलाकर मनुवादीयों द्वारा बार बार यह प्रचारित किया जाता है की रामराज सबसे बेहत्तर शासन था | जिसे सभी शासको को अपना आदर्श मानना चाहिए और अपनी प्रजा का सेवा करना छोड़कर सरयू नदी में डुब मरना चाहिए | जिसे मनवाने के लिए रामराज को अपना सबसे बेहत्तर शासन और राजा राम को सबसे बेहत्तर शासक मानने वालो द्वारा ही तो हजारो करोड़़ का भव्य राम मंदिर का निर्माण कराने का प्रक्रिया चारो ओर गरिबी भुखमरी और बेरोजगारी में भी धिरे धिरे आगे बड़ाया जाना जारी है | जिसका निर्माण प्रक्रिया लॉकडाउन में भी जारी था , भले लॉकडाउन में हजारो लाखो लोग बेघर और बेरोजगार हो गए हो , जिनकी जिवन बदहाल से और अधिक बदहाल हो गया हो पर राम मंदिर जरुर बने इसकी प्रक्रिया लॉकडाउन में भी जारी रहा है | जिस राम मंदिर का निर्माण यह कहकर किया जा रहा है की शंभुक की हत्या करने वाला राम हिंदू धर्म का सबसे आदर्श भगवान है | वह आदर्श भगवान जिसके रामराज में उसकी पत्नी सीता अग्नि परीक्षा पास होने के बावजुद भी राजा राम द्वारा उसे गर्भवती अवस्था में भी खुंखार बाघ भालु के बिच घने जंगल भेज दिया गया था | जो बाद में इतनी दुःखी हुई कि रोते रोते जिते जी धरती में समा गई | बल्कि रामराज में खुद राजा राम भी अपने ही शासन में इतना दुःखी हुआ की अपनी प्रजा की सेवा करना छोड़कर जीते जी सरयू नदी में समा गया | रामराज में खुद राजा राम रानी सीता और उनके दो बच्चे लव कुश को एक साथ हसी खुशी रहने का कभी नसीब ही नही हुआ | जिस संकट से सबका संकट मोचन कहलाने वाला हनुमान भी अपना सबसे बड़ा आदर्श राम सीता को इतने बड़े संकट से नही निकाल सका तो क्या हनुमान और राम भरोस से इस देश दुनियाँ में रामराज लाकर सुख शांती और समृद्धी आयेगी और सबकी संकट दुर होगी | बल्कि इस देश में तो सबसे खराब हालात जब रहता है , उस समय राम भरोसे शासन चल रहा है कहा जाता है | जैसे की गोरो से अजादी मिलने के बाद से लेकर अबतक भी तो इस देश का शासन राम भरोसे चल रहा कहा जाता है | जिसके चलते राम को अपना आदर्श मानने वाले शासक द्वारा राम भरोसे शासन करते हुए सरयू नदी में डुबे राम को विशेष याद करने के लिए भी राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है | जिस राम भरोसे शासन का मतलब यही होता होगा कि राम भरोसे रहना सबसे बुरे दिन चल रहे होते हैं | जिस बुरे दिनो में शंभुक प्रजा को सिर्फ यह अश्वासन मिलता रहता है कि गरिबी भुखमरी हटेगी और अच्छे दिन आयेंगे | जो बुरे दिन अच्छे दिन में तभी बदलते होंगे जब राम भरोसे के बजाय असुर दानव भरोसे का शासन स्थापित होता होगा | तभी तो असुर दानवो के शासन को इतना समृद्ध कहा जाता है कि वहाँ की प्रजा किमती सोने चाँदी हिरे मोती वगैरा जेवरो से भी लदे रहते थे और महलो में भी रहते थे | जिन महलो में सोने चाँदी के बर्तनो में खाना पकता था और खाया जाता था | जिसके बारे में वैसे तो अनेको उदाहरन भरे पड़े हैं पर उनमे से इस समय मैं दो उदाहरन देना चाहूँगा एक रामायण में बतलाया गया माली सुमाली और माल्यवान  का राज्य लंका की , जिसके बारे में बतलाया जाता है कि लंका में सोने की महले तक हुआ करती थी | और दुसरा उदाहरन महाभारत में बतलाया गया जरासंघ के राज्य की  जिसके राज्य में भी इतनी सुख शांती और समृद्धी थी की पांडव और कृष्ण के द्वारा लाख जोर जबरजस्ती कोशिष करने के बावजुद भी जरासंघ युद्ध लड़ने से यह कहते हुए इंकार करता रहा कि युद्ध से किसी का भला नही होगा और बेकार में अशांती फैलेगी , उससे तो अच्छा यदि तुमलोगो को धन संपदा की कमी है तो बिना युद्ध किये जितना चाहे धन संपदा मांगकर ले जाओ | जाहिर है दैत्य दानव असुर समृद्ध थे न की देवो को खाकर मुर्दाखोर जिवन जिते थे | क्योंकि जिसने राम रावण को इंसान जिवन दिया है उसी ने दैत्य असुर दानव को भी इंसान जन्म दिया है | तभी तो दोनो पारिवारिक रिस्ता भी जोड़ते थे | बल्कि प्रकृति भगवान ने बाकि भी सभी प्राणियों को इस धरती में जन्म होने का नसीब प्रदान किया है | जिस प्रकृति भगवान के भरोसे ही तो पुरी दुनियाँ कायम है , न कि किसी इंसान के भरोसे दुनियाँ कायम है | यह बात इसलिए फिर से बार बार दोहरा रहा हूँ , क्योंकि मनुवादि अपने पुर्वजो को दुनियाँ चलाने वाले चमत्कारी भगवान बतलाते आ रहे हैं | वे देव भगवान जो आज इस धरती पर विचरन करने के लिए एक भी जिवित नही हैं | कथित भगवान राम भी अपनी नेतृत्व में जिवित रहते रामराज की सुख शांती और समृद्धी को कायम नही कर सके तो क्या वे सरयू नदी में डुबने के बाद उसकी काल्पनिक मूर्ति शंभुक मुलनिवासियों की सुख शांती और समृद्धी कायम करेगी ! लेकिन भी राम को हिंदू धर्म का भगवान बतलाकर उसकी अलग अलग चेहरे में मौजुद काल्पनिक मूर्ती की आरती उतारी जाती है | जबकि यदि बाबा अंबेडकर द्वारा हिन्दू कोड बिल की रचना करते समय मनुवादीयों को हिंदू ही नही माना जाता तो रामराज को हिन्दूराज कहना तो दुर खुदको हिन्दूओं का धर्मगुरु बताकर मुल हिंदूओं से छुवाछुत करने वालो की मनुवादी सरकार ही फिर कभी कायम नही होती ! क्योंकि यूरेशिया से आए मनुवादीयों के अंदर यहूदि डीएनए मौजुद है | जो कि DNA रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है | जिन मनुवादियों के डीएनए से इस देश के मुलनिवासियों का डीएनए नही मिलता है | और जैसा की पुरी दुनियाँ जानती है कि बारह माह प्रकृति पर्व त्योहार मनाते हुए प्रकृति भगवान की पुजा इस देश के मुलनिवासी हजारो सालो से करते आ रहे हैं | न कि यूरेशिया से आए यहूदि डीएनए का मनुवादी बारह माह मनाई जानेवाली प्रकृति पर्व त्योहार और प्रकृति भगवान पुजा करने की परंपरा को अपने साथ लाया है | फिर भी धर्म के नाम से भारत पाकिस्तान का बंटवारा करते समय मनुवादी खुदको हिन्दू बताकर भारत का शासक बन गए हैं | जबकि हिंदू कोड बिल की रचना करने वाले बाबा अंबेडकर समेत बहुसंख्यक मुलनिवासि मुल हिंदू होते हुए भी इस देश की सत्ता से वंचित रह गए | जो कपटी सोच मनुवादी दरसल उस मनुवादी सत्ता को हासिल करने के लिए किया था , जिसे वह गोरो द्वारा देश गुलाम के बाद खो चुका था | जाहिर है गोरो से अजादी मिलने के बाद मनुवादी को तो अजादी हासिल हो गया है पर इस देश के मुलनिवासियों को एक गुलाम करने वाले से अजादी मिलने के बाद दुसरे गुलाम करने वाले मनुवादीयों ने अपनी गुलामी जंजिरो में वापस जकड़ लिया है | क्योंकि गोरो का शासन समाप्ती के बाद मनुवादीयों का सत्ता फिर से कायम हो गया है | जो मनुवादी सत्ता आजतक भी कायम है | क्योंकि यहूदि डीएनए का मनुवादी द्वारा हिंदू धर्म की ठिकेदारी लेने से बहुसंख्यक हिन्दू का साथ मनुवादी को हासिल हो गया है | जबकि असल में या तो यहूदि डीएनए का मनुवादी ही होली दिवाली और मकर संक्राति जैसे हिन्दू पर्व त्योहार मनाने वाला मुल हिन्दू है , जो पर्व त्योहार यूरेशिया से लाए गए हैं ,या फिर इस देश के मुलनिवासी ही मुल हिन्दू है | जिनके द्वारा ही इस कृषि प्रधान देश में मौजुद बारह माह मनाई जानेवाली प्रकृति पर्व त्योहारो और इस देश के अनगिनत भाषा बोलियो वगैरा को विकसित किया गया है | और जैसा की हमे पता है कि हिंदू परिवार में ही अंबेडकर जैसे मुलनिवासियों का भी जन्म हुआ है | जिन्होने कभी भी छुवा छुत भेदभाव नही किया है | क्योंकि हिंदू धर्म में छुवा छुत नही होता है | जो यदि होता तो हिंदू होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार मनाते समय एक दुसरे से गले मिलने नाचने गाने जैसी खुशियों का मेला मिल जुलकर मनाना तो दुर एक दुसरे से छुवा न जाय इसके लिए ऐसी पर्व त्योहार कभी मनाते ही नही ! जो पर्व त्योहार छुवा छुत करने वाले मनुवादीयों की नही है | क्योंकि वे तो होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे पर्व त्योहार मनाने वाले इस देश के मुलनिवासियों से छुवाछुत करते हैं | इसलिए जाहिर है इस देश के मुलनिवासियों से छुवाछुत करने वाले मनुवादी मुल हिंदू नही हैं | बल्कि मुल हिंदू इस देश के मुलनिवासी हैं | जैसे की बाबा अंबेडकर मुल हिंदू परिवार में जन्मे थे | जिन्होने हिन्दू रहते ही वह ऐतिहासिक मुकाम भी हासिल किया है , जो सायद वे यदि बौद्ध धर्म में रहते तो नही कर पाते | उन्होने हिन्दू रहते देश विदेश में तीस से अधिक उच्च डिग्री हासिल किया और हिंदू वेद पुराण भी पढ़े है | जितनी उच्च डिग्री सायद खुदको जन्म से विद्वान पंडित कहनेवाला किसी भी मनुवादी के पास आजतक हासिल नही हुआ है | और न ही ये कहने वाले झुठे और पाखंडी उन घर के भेदियो ने कभी इतनी कामयाबी हासिल किया है जो यह कहते फिरते हैं कि " हिंदू परिवार में जन्म लेने वाला मुलनिवासी कभी कामयाब नही हो सकता " | बल्कि मैं तो कहता हूँ ऐसी बाते करके मुल हिंदूओ को बरगलाने वाला घर के भेदी जबतक अपने घर का विनाश करने के लिए दुश्मनो से मिलते रहेंगे तबतक सुख शांती और समृद्धी कायम सत्ता को वापस लाने में सबसे बड़ी रुकावट घर के भेदी ही बनते रहेंगे | जिन घर के भेदियों की वजह से ही तो आजतक भी मनुवादी सत्ता कायम है | जिन घर के भेदियो को यह मालुम रहना चाहिए कि अंबेडकर ने हिन्दू रहते भेदभाव के खिलाफ आंदोलन चलाकर मनुस्मृति को जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना जैसे ऐतिहासिक बड़ी कामयाबी हिन्दु रहते ही हासिल किया है | जिस संविधान के लागु होने के बावजुद भी मनुवादीयों का हौशला आज भी शोषण अत्याचार करने के प्रति कायम है | क्योंकि अजाद भारत का संविधान की सुरक्षा और उसे ठीक से लागु करने की जिम्मेवारी जिस न्यायालय को दिया गया है , वहाँ पर भी भष्म मनुस्मृति का भुत बसेरा है | जिसके चलते मनुवादीयों का भेदभाव हौशला बुलंद है | यही वजह है कि मनुवादी शासन में आज भी इस देश में भेदभाव शोषण अत्याचार खुले आम होता है | बल्कि अल्पसंख्यक मनुवादीयों द्वारा इस देश के बहुसंख्यक मुलनिवासियों को नंगा करके मारा पिटा जाता है | जिस तरह की पिटाई जिसदिन मनुवादीयों की भी होने लगेगी उसदिन समझो मनुवादीयों को सायद धिरे धिरे यह समझ आने लगेगा की गुलामी हमेशा कायम नही रहती है | क्योंकि मनुवादीयों को यह बात समझनी चाहिए की सभी मुलनिवासि उनकी पिटाई खाकर भविष्य में छोड़ो कल की बाते कल की बात पुरानी गाना गाकर अपने पुर्वजो के साथ हुए शोषण अत्याचार को भुलने वाले नही हैं | जाहिर है जिसदिन अजादी मिलती है , उसदिन गुलाम करने वालो के द्वारा किये गए शोषण अत्याचार करने की सजा शोषण अत्याचार करने वालो की नई पिड़ी को भुगतनी पड़ती है | भले अपने पुर्वजो के द्वारा किये गए कुकर्मो की माफी मांगकर भुगतनी पड़ती है | जिस प्रक्रिया को इतिहास दोहराये उससे पहले गोरो की तरह अल्पसंख्यक होकर बहुसंख्यको को गुलाम करने वाले मनुवादियों को जिते जी खुद ही माफी मांगकर कान पकड़कर उठक बैठक करके आज के बाद भेदभाव शोषण अत्याचार नही करेंगे वचन खुदसे ले लेना चाहिए | न कि झुठी शान में अपने उन पुर्वजो की आरती उतारते रहना चाहिए , जिन्होने इस देश के मुलनिवासियों को ज्ञान से वंचित करने के लिए यह नियम कानून बनाया था कि शुद्र यदि वेद सुने तो उसके कान में गर्म पिघला लोहा डाल दो और वेद का उच्चारण करे तो  उसका जीभ काट दो ! जिस तरह के नियम कानून उस मनुस्मृति में भरे पड़े हैं , जिसे बाबा अंबेडकर ने जलाकर अजाद भारत का संविधान रचना किया था | जिसके चलते अंबेडकर को आज शोषित पिड़ितो का मसिहा तक भी कहा जाता है | जिस तरह की कामयाबी इतिहास रचने में उसके साथ मनुवादी जन्म से लेकर बुढ़ापा तक भारी भेदभाव करके भी नही रोक पाये | बल्कि मेरा तो मानना है यदि अंबेडकर जब हिन्दू कोड बिल की रचना कर रहे थे उस समय ही यदि वे मनुवादीयों को हिन्दू नही मानकर इस देश के मुलनिवासियों के लिए ही सिर्फ हिन्दू कोड बिल बनाते तो आज मनुवादी इस देश के शासक कभी नही बन पाते | हिंदू के साथ छुवाछुत करने वाले यहूदि डीएनए के मनुवादीयों को हिंदू नही माना जाता तो निश्चित तौर पर भारत पाकिस्तान का बंटवारा करते समय ही इस देश की सत्ता इस देश के मुलनिवासियों को प्राप्त हो जाती  | जिसके बाद मनुवादी इस देश का शासक कभी भी दुबारा नही बन पाते |  क्योंकि मनुवादी के पास यदि इस देश की सत्ता मौजुद है तो वह खुदको हिन्दू कहकर मौजुद है | जिस बात के लिए कोई मुझसे लिखवा ले या फिर किसी सार्वजनिक मंच से खुली चैलेंज कर ले कि यदि मनुवादी या तो खुदको हिन्दू मानने से इंकार कर दे या फिर वह दुसरा धर्म अपना ले और उसके बाद चुनाव लड़े तो मनुवादी सरकार क्या कभी बन पायेगी ? निश्चित तौर पर ऐसा होने पर ज्यादेतर हिन्दू उसे वोट ही नही देंगे और मनुवादी सरकार तो क्या सांसद सीट भी सायद बड़ी मुश्किल से जीत पायेगा | जैसे की बाकि धर्म की सरकार इस देश में कभी भी नही बन पाती है | क्योंकि उनकी अबादी अल्पसंख्यक है | जैसे की मनुवादियों की है | पर चूँकि अल्पसंख्यक मनुवादी खुदको बहुसंख्यक हिन्दू का चादर ओड़े हुए है , इसलिए धर्म के नाम से बहुसंख्यक हिन्दूओं की वोट से मनुवादी सरकार बहुमत से चुनी जाती है | जो सरकार यदि चुनाव मशिन के जरिये छेड़छाड़ से भी यदि बन रही होगी तो भी ज्यादेतर हिन्दू सांसद ही मनुवादी सरकार बनने में मदत कर रहे हैं | बाकि धर्म के लोग न तो ज्यादे सांसद बन सकते और न ही ज्यादे संख्या में वोट कर सकते हैं | जैसे कि धर्म के नाम से इस देश का बंटवारा करने के बाद एक अलग देश बना पाकिस्तान में हिन्दू सरकार बनना मुमकिन नही है | क्योंकि धार्मिक दृष्टी से वहाँ पर मुस्लिम अबादी ज्यादे है , और हिंदू अल्पसंख्यक हैं | जिसके चलते स्वभाविक है कि उस देश में मुस्लिम सांसद ही ज्यादे होंगे | हलांकि इस देश को सभी धर्मो को बराबर हक अधिकार देनेवाला देश कहा जाता है जो कि दरसल सफेद झुठ है | खासकर तब जबकि पुरी दुनियाँ जानती है कि इस देश से धर्म के नाम से कई अलग देश बन चुके हैं | क्योंकि उन धर्मो को पता था कि यदि वे खुदको अलग नही करते तो मनुवादी खुदको बहुसंख्यक हिन्दू बताकर इस देश का शासक उसी तरह बने रहते जैसा की अभी मुलनिवासियों का हक अधिकारो पर कब्जा करके बने हुए हैं | जिसकी पिछवाड़े से सत्ता अभी भी एक झटके में खिसक जायेगी यदि मनुवादी खुदको हिन्दू कहना छोड़ दे |  या फिर इस देश के मुलनिवासी ही उसे हिंदू मानने से इनकार करके उसके हाथो से सत्ता ही नही बल्कि वेद पुराण और हिन्दू मंदिरो में मौजुद पुजारी का जन्म से मिला अधिकार यह कहकर छिन लें कि जिसके अंदर यहूदि का डीएनए मौजुद है , वह इस देश का मुल हिन्दु पुजारी हो ही नही सकता | जैसे की कोई हिंदू यहूदि या मुस्लिम पुजा स्थलो का पुजारी नही हो सकता | जिसे सत्य साबित करने के लिए जरुरत पड़े तो अंतराष्ट्रीय विद्वानो की मंच पर इस बात पर बहस भी हो कि होली दिवाली और मकर संक्रांति जैसे हिन्दू पर्व त्योहार मनाने वाले इस देश का मुल हिन्दू कौन है , यूरेशिया से आए मनुवादी की इस देश के मुलनिवासि ? और मनुवादीयों के पुर्वज देवता पुजा मुल हिन्दू भगवान पुजा है कि प्राकृति पुजा मुल हिन्दू भगवान की पुजा है ? जिस बात का फैशला होते ही मनुवादि यहूदि का बिछड़ा हुआ वह दुसरा कबिला साबित हो जायेगा जो कि पश्चिम से पुरब की ओर आकर गायब हो गया है |  जाहिर है उसे न तो धरती ने निगल लिया है और न ही आसमान ने निगला है | और न ही उसे कोई ब्लेकहोल ने निगल लिया है | बल्कि वह इसी पृथ्वी में ही मौजुद है | जिस कबिला को वर्तमान के यहूदि कबिला से ज्यादे बड़ा बतलाया जाता है | और मनुवादी कबिला जनसंख्या के अनुसार यहूदि कबिला से ज्यादे बड़ा है यह बात सबको पता है | वैसे बहुत से मनुवादीयों ने हिन्दू कोड बिल का यह कहकर विरोध किया था कि हिन्दू कोड बिल से मुस्लिमो को क्यों नही जोड़ा गया है ? जो सवाल करना स्वभाविक था , क्योंकि हिन्दू सभ्यता संस्कृति से मनुवादीयों का आचरण संतुलित रुप से मेल नही खाता है | जैसे कि मनुवादी द्वारा जो खुदको हिंदू मानकर भी इस देश के मुल हिन्दूओं से छुवाछुत भेदभाव करता है , वह उसकी उस गैर हिन्दू आचरण को प्रमाणित करता है | जिस आचरण को कोई भी मुल हिन्दू कभी भी अपने पुर्वजो से हासिल नही किया है | उसे तो मनुवादी ही अपने उन पुर्वजो से हासिल किया है , जिन्होने मनुस्मृति लागु करके उच्च निच छुवाछुत भेदभाव जैसे भ्रष्ट आचरण सुरु किया है | जिस तरह का भ्रष्ट आचरण को हजारो साल बाद भी मनुवादी अबतक पुरी तरह से अपने रोजमरा जिवन में छोड़ नही पाया है तो क्या हिन्दू धर्म के उन मुल भावनाओं और विश्वासो को समझ पायेगा जो की मुलता साक्षात प्राकृति और मानवता से जुड़ी हुई है | खासकर तब भी जबकि मनुवादी खुदको यदि देव कहता है तो अपनी पत्नी को देव दासी कहकर कई जगह तो नारी योनी को उसने नर्क का द्वार तक कहा है | और ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी श्लोक को कौन नही जानता है ? जिस श्लोक के जरिये मनुवादी यह बतलाने की कोशिष किया है कि वह छोड़ बाकि सब ताड़न के अधिकारी हैं | क्योंकि मनुवादी तो जन्म से खुदको उच्च मानता है | जिसे जन्म से ही ताड़न की जरुरत नही होती है | जिस तरह की गंदी सोच वाली मांसिक विकृती को दुर करने के लिए भी इस कृषि प्रधान देश के मुलनिवासि अपने सर में मैला तक ढोकर मनुवादियों को अपना सर का ताज देकर मानो मनुवादीयों को अपने सर में चड़ाकर पुरी दुनिया का विनाश करने वाला उस जहर को शिव की तरह पी रखा है , जो मनुवादी यदि सिर्फ इस देश के मुलनिवासियों को शुद्र निच न मानकर पुरी दुनियाँ के लोगो को निच शुद्र घोषित करते तो आज मनुवादी पुरी दुनियाँ के लोगो का वैसा ही शोषण अत्याचार कर रहे होते जैसा कि वह इस देश के मुलनिवासियों के साथ हजारो सालो से कर रहा है | जिस मनुवादी को इस देश के मुलनिवासी हजारो सालो से झेलते हुए उन्हे हिन्दू पुजारी के रुप में भी झेलते हुए यह झुठी उम्मीद भी लगाये हुए है कि कभी तो छुवा छुत करने वाले सभी मनुवादीयों को इंसानियत की समझ आयेगी | जिस लंबे इंतजार में अपने सर में मल मूत्र तक उठाने की प्रक्रिया को जारी रखे हुए है , इस उम्मिद पर की सायद जिस तरह किसी शिशु को पैंट में शुशु पोटी करते और अपने आप को धुलवाते हुए एकदिन समय के साथ नहाना धोना और कपड़ा पहनना आ जाता है , उसी तरह मनुवादीयों को भी कभी तो समय के साथ यह समझ में आ जायेगी कि मानवता और पर्यावरण की मुल भावनाओं से किस तरह से इस देश का हिंदू बिना कोई भेदभाव के जुड़े हुए हैं हजारो सालो से | जो बारह माह हिन्दू कलैंडर अनुसार बिना कोई भेदभाव के प्राकृति पर्व त्योहार मनाकर मिल जुलकर खुशियों का मेला लगाते हैं , न की हिंदू धर्म छुवाछुत भेदभाव करने सिखाता है | क्योंकि मुल हिंदू वह मनुवादी नही है की मनुस्मृति रचना करके भेदभाव शोषण अत्याचार करें | जिस हिंदू के रचे वेद पुराण में कब्जा करके ही तो मनुवादीयों ने खुदको हिन्दू धर्म का पुजारी घोषित किया हुआ है | जिसके लिए पहले तो उन्होने इस देश की सत्ता को छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से हासिल किया , उसके बाद सत्ता पावर का गलत उपयोग करके हिंदू वेद पुराणो में मिलावट किया गया | जिसके बाद उन्होने हिंदू धर्म में भगवान पुजा को देव पुजा साबित करने की कोशिष किया है | पर चूँकि मनुवादी अपनी छुवाछुत आचरण अबतक भी नही छोड़ पाया है , इसलिए उसकी छुवाछुत आचरण के बारे में जानकर पुरी दुनियाँ यह बात अच्छी तरह से समझ सकती है कि छुवाछुत करने वाले मनुवादी होली दीवाली और मकर संक्रांति जैसे आपसी मेलजोल का पर्व त्योहार मुल हिंदू भावना से कभी मनाते ही नही होंगे जबतक की वे खुदको छुवा छुत न करने वाला हिंदू नही बनाये होंगे | जिन्होने इस कृषि प्रधान देश की सत्ता में काबिज होकर खुदको हिंदू बनाकर खुदको हिंदू धर्म का पुजारी भी बनाया हुआ है | और धर्म के नाम से भारत पाकिस्तान बंटवारा होते समय खुदको हिंदूओं का शासक भी बनाया हुआ है | जबकि उसके अंदर यहूदि डीएनए दौड़ रहा है यह बात डीएनए रिपोर्ट से प्रमाणित हो चुका है | इसलिए जिस तरह यहूदि लोग हिंदू नही हैं उसी तरह यहूदि DNA का मनुवादी भी हिंदू नही है |

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