हिंदू धर्म और विज्ञान
हिंदू धर्म और विज्ञान
Hindu religion and science
hindoo dharm aur vigyaan
प्रकृति भगवान की पूजा कोई आस्था और विश्वाश नही बल्कि प्रमाणित विज्ञान है | क्योंकि जिस तरह प्रकृति की कृपा से इंसान का जन्म होना प्रमाणित विज्ञान है , उसी तरह प्रकृति भगवान की पूजा भी प्रमाणित विज्ञान है | और सृष्टी चलाने वाली शक्ति कोई लापता वापता नही हैं , बल्कि वह साक्षात प्रकृति के रुप में हमारे बिच बल्कि हमारे भितर भी हवा पानी वगैरा के रुप में मौजुद है | जो किसी भी वस्तु के रुप में ढल सकता है | इसलिए वह कण कण में पंचतत्व के रुप में भी मौजुद है | जिसे कोई भष्मासुर बनकर न समाप्त कर सकता है , और न कोई भष्मासुर बिना प्रकृति के जन्म या मर भी सकता है ! क्योंकि विज्ञान प्रमाणित है कि प्रकृति हवा पानी वगैरा यदि न हो तो सृष्टी का वजूद ही नही रहेगा | तब न कोई इंसान माता पिता बन पायेगा , और न ही वह किसी का औलाद बन पायेगा | बल्कि जब सृष्टी ही नही रहेगा तो इंसान तो क्या कोई भी प्राणी नही रहेगा | जो कि विज्ञान प्रमाणित है कि इंसान ही नही बल्कि इस धरती का कोई भी प्राणी पंचतत्व से जन्म लेकर अपनी जिवन यात्रा पुरी करके वापस पंचतत्व में ही विलिन हो जाता है | न कि वह मरने के बाद गायब होकर दुसरी दुनियाँ में चला जाता है | बल्कि वह इसी दुनियाँ में सिर्फ अपना रुप बदल बदलकर मौजुद रहता है | जिसके बारे में वेद पुराणो में भी जानकारी मौजुद है |जिस सत्य को झुठ मानने वाला इंसान दुनियाँ का वह ढोंगी पाखंडी है , जो अपनी रोजमरा जिवन में जिन्दा रहने के लिए अन्न जल हवा पानी तो इसी दुनियाँ में साक्षात मौजुद प्रकृति का लेता है , पर यह नही मानता कि उसकी साँसे प्रकृति की प्राण वायु से चल रही है | बल्कि मानव निर्मित सारे धर्मो के चमत्कारी अवतार कहलाने वाले भी हवा पानी की वजह से ही जन्म लिये थे , और सारी जिवन प्रकृति हवा पानी लेकर मरे भी , न कि वे सारी जिवन कोई लापता और अदृश्य ताकत के द्वारा भेजे गए किसी चमत्कारी अप्रकृति हवा पानी को लेते रहे और छोड़ते रहे | और अगर मान भी लेते हैं कि जन्म लेने और मरने के लिये जो हवा पानी लेने और छोड़ने कि प्रक्रिया चलती है , वह हवा पानी प्रकृति दुनियाँ से बाहर किसी दुसरी दुनियाँ में मौजुद कोई अदृश्य शक्ती ही भेजता है , जो हवा पानी उसके अंदर मौजुद नही है , क्योंकि वह प्रकृति से नही बना है | बल्कि प्रकृति सिर्फ इस सृष्टी अथवा इंसान के साथ साथ बाकि जिवो के अंदर ही मौजुद है , तो फिर उस कथित अदृश्य शक्ती के अंदर प्रकृति हवा पानी कहाँ से आया यदि जिस प्रकृति की पुजा हिंदू धर्म में की जाती है उस प्रकृति से नही आया ? क्योंकि बिना हवा के वह कैसे बाते करता अवतारो को अपना संदेश देने के लिये ? कथित उस अदृश्य शक्ती के अंदर हवा पानी कहीं तो मौजुद होगा जहाँ से उसे अदृश्य शक्ती द्वारा बात करते समय इस्तेमाल किया गया , जैसे कि कोई डॉक्टर के पास यदि दवा मौजुद होती है , या फिर कोई वैज्ञानिक के पास कोई तकनिक मौजुद होती है , तो भले वह अपने शरिर के अंदर से दवा नही लाता पर उसे वह प्रमाणित तौर पर कहीं से तो जरुर लाया या खोजा हुआ रहता है ! और वह कहीं निश्चित रुप से सभी को पता है कि प्रकृति है | क्योंकि प्रकृति भगवान में वह सबकुछ मौजुद है , जिसकी खोज सत्य की खोज के रुप में विज्ञान द्वारा भी दिन रात होती रहती है | जिसकी सत्यता को कोई चाहे तो खुद ही साक्षात प्रमाणित प्रयोग भी कर सकता है अपनी नाक मुँह को बंद करके | निश्चित तौर पर जैसे ही किसी के द्वारा कथित अदृश्य शक्ती में अति विश्वास करके प्रकृति प्राण वायु रोकी जायेगी तो उसे कोई अदृश्य शक्ती अलग से कोई प्राण वायु प्रदान करने नही आयेंगे | क्योंकि सच्चाई यही है कि प्राण वायु इसी प्रकृति में मौजुद है , और यही प्रकृति में प्राणी भी मौजुद है | कोई भी प्राणी प्रकृति से बाहर की दुनियाँ से नही आता | बल्कि यदि कहीं एलियन भी मौजुद है तो इसी प्रकृति दुनियाँ में और इसी प्रकृति कृपा की वजह से ही मौजुद है | जिन सभी प्राणियों को प्रकृति ही जिवन प्रदान कर रहा है यही सत्य है | जिस साक्षात प्रमाणित सत्य की पूजा प्रकृति भगवान की पुजा है | जिस प्रकृति की प्रमाणिकता को विज्ञान भी सत्य मानता है | जिस विज्ञान की प्रमाणिकता और वजूद भी प्रकृति पर ही निर्भर है | जाहिर है कथित किसी अदृश्य शक्ती जो की खुद ही प्रकृति ध्वनि आवाज अथवा वेद की कृपा से बातचीत करता है , जो बात खुद उसकी अवाज सुनने की दावा करने वाले इंसानो के द्वारा ही सैकड़ो हजारो साल पहले कही गयी है | जिनके द्वारा ही यह भी दावा किया गया है कि किसी काल्पनिक फिल्म मिस्टर इंडिया की तरह वह गायब होकर अपनी आवाज के द्वारा अपने बारे में बतलाने वाले की चमत्कार से ही इस सृष्टी में जिवन मौजुद है | बल्कि गायब होकर बातचीत करने वाला कथित चमत्कारी शक्ती भी यदि सचमुच में कई इंसानो को अलग अलग समय में अलग अलग कई विवादित संदेश और विचार विभिन्न माध्यमो के जरिये प्रदान करके कई धर्म पुस्तक लिखवाया है , तो भी वह विज्ञान प्रमाणित इसी प्रकृति की कृपा से इसी प्रकृति में ही मौजुद है | चूँकि विज्ञान प्रमाणित है कि कोई भी बिना प्रकृति की कृपा से बातचीत नही कर सकता | इसलिए निश्चित तौर पर कथित अदृश्य शक्ती द्वारा सृष्टी का संचालन करना और गायब होकर इंसानो से बातचीत करके अपनी संदेश के रुप में धार्मिक पुस्तक लिखवाना यह सब घटना और बाते दरसल उन इंसानो का ही खुदकी उपज है , जो सैकड़ो हजारो साल पहले प्रकृति विज्ञान से ज्यादा चमत्कारो में विश्वास करते थे | जिनके लिये तब भुकंप ज्वालामुखी सुनामी वगैरा प्रकृति घटना भी किसी अदृश्य शक्ती का चमत्कार ही लगता था | जिसे नई पिड़ी धिरे धिरे अपनी खोज के जरिये साबित करता जा रहा है कि जिसे वे चमत्कार मानते थे वह दरसल प्रमाणित प्रकृति विज्ञान है | जिस प्रकृति विज्ञान के शक्तियो और गुणो को जहाँ नई पिड़ी खोजने में दिन रात लगा रहता है , तो दुसरी तरफ प्रकृति से ज्यादा कथित अदृश्य शक्ती को महत्व देनेवाले लोग कथित उस चमत्कारी अदृश्य शक्ती को खोजते रहते हैं , जिसका अता पता लापता है | जिसके चलते उसकी खोज ही कई मानव निर्मित ऐसे कई धर्मो को जन्म दिया है , जिसकी धार्मिक पुस्तको में लिखी बातो को दुसरे धर्म विवादित मानकर सभी अपने अपने धर्म को सबसे सही मानते हैं | कथित अदृश्य शक्ती को खोजते खोजते अबतक कई मानव निर्मित धर्मो को जन्म दिया गया पर फिर भी अबतक किसी भी धर्म के द्वारा उस अदृश्य शक्ती का पता नही लगाया जा सका है , जिसके पास सभी धर्मो के भक्त जाकर पुछ सके की इन कई धर्मो में कौन सा एक धर्म सभी इंसानो को अपनाना चाहिए ? ताकि आपस में कई विवाद के चलते खुन खराबा और धर्म पुस्तक में लिखी बातो को लेकर वाद विवाद लड़ाई न हो | जिस तरह के सवालो का जवाब कभी भी कोई अदृश्य शक्ती प्रेसवर्ता करके देने वाले नहीं हैं , भले उनके द्वारा दिया गया संदेश से कई मोटी मोटी पवित्र किताबे लिखने का दावा किया जाता रहा है | जिन किताबो में लिखी गई बाते चाहे ज्ञान विज्ञान की बाते हो या फिर अँधविश्वास की बाते हो , उसे इंसानो ने ही सोच विचारकर रचा है | क्योंकि कथित अदृश्य शक्ती इंसानी दिमाक का ही काल्पनिक उपज है | वह भी उन इंसानो की जिन्होने खुद धार्मिक पुस्तक नही लिखा है | जिनके द्वारा कथित अदृश्य शक्ती से संदेश लेकर किसी दुसरे व्यक्ती से लिखवाया गया है | वह भी वह संदेश जिसमे एक प्रतिशत भी गलत बात नही बतलाया गया है ऐसी दावा किया जाता है | साथ साथ जिसे लिखने में एक भी गलती न हो इसका खास ख्याल रखा गया था इसका भ दावा किया जाता है | जबकि चमत्कारी संदेश दरसल एक ही चमत्कारी शक्ती की होती तो सारे धर्मो की धर्म पुस्तको में उसी प्रकार होती जैसे कि परीक्षा में सारे छात्रो के लिए किसी विषय का सारे प्रश्न पत्र एक ही मुल प्रति के कॉपी सभी परीक्षा देने वाले एक ही विष्य के और एक ही वर्ग के छात्रो के पास रहती हैं | जिसे सारे छात्रो को बांटा जाता है परिक्षा में | क्योंकि वह प्रश्न पत्र सभी छात्रो को एक ही प्रकार के उपलब्ध कराये जाते हैं | जिस तरह से ही सभी धर्मो के इंसानो को एक ही अदृश्य शक्ती से एक ही धर्म पुस्तक लिखवाकर बंटना चाहिए था यदि सभी इंसानो को वाकई में कथित एक ही अदृश्य शक्ती से चमत्कारी संदेश मिला है | पर ऐसा नही हुआ और मानो सारे धर्म अपने अपने अलग अलग ईश्वर का अलग अलग संदेश से अपना अपना अलग अलग विचारो के साथ कई धर्म और कई धर्म पुस्तक बना लिये हैं | और मुमकिन है भविष्य में और भी कई बनते जायेंगे | क्योंकि लगातार भारी तादार में धर्म परिवर्तन होते रहने का मतलब साफ है कि इंसानो को अबतक वह धर्म नही मिला है , जिसपर सारे इंसानो को प्रमाणित तौर पर यकिन होकर सौ प्रतिशत विश्वास के साथ विश्वास में स्थिरता आ जाय | जैसे कि सारे इंसानो को हवा पानी में सौ प्रतिशत विश्वास है कि उसके बगैर कोई भी इंसान जिवित नही रह सकता | जिसके चलते वह हर पल प्राण वायु लेता रहता है | फिर भी बहुत से लोगो का पुर्ण विश्वाश अब भी कायम है कि सबके प्राणो का बागडोर उस अदृश्य चमत्कारी शक्ती के हाथो मौजुद है , जिसने हवा पानी ही नही बल्कि संपुर्ण प्रकृति को ही बनाया है | जिसके बारे में उनकी धार्मिक पुस्तको में जानकारी दी हुई है | जिस जानकारी को उन लोगो ने सुरु में लिखा है , जिन्हे बिजली मोबाईल टी०वी० कंप्यूटर वगैरा का कभी नसिब ही नही हुआ | क्योंकि उनको और उनके समय में मौजुद सभी को इन चीजो की खोज के बारे में पता ही नही था | जो लोग यदि तब के जिवन से इस समय के जिवन में किसी टाईम मशीन से आते तो सायद बिजली इंटरनेट कम्प्यूटर मोबाईल टी०वी० वगैरा भी उन्हे चमत्कारी ही लगती | जिन सबकी खोज बाद में प्रकृति में मौजुद गुणो से ही हुआ है | जिन गुणो को प्रकृति से ही जबतक खोजा नही जाता है उसे चमत्कार माना जाता है | पर जैसे ही वह खोज लीया जाता है तो चमत्कार के बजाय प्रकृति विज्ञान है यह प्रमाणित हो जाता है | और जैसा कि हमे पता है कि प्रकृति में मौजुद गुणो और पदार्थो का उपयोग करके ही इंसान नई नई खोज करने के बाद अपनी जिवन को आधुनिक अपडेट करता चला जा रहा है | और आगे भी करता रहेगा | जिस तरह की आधुनिक अपडेट करने की जिन इंसानो में तब बुद्धी विकसित नही हुई थी , वे सारे ब्रह्मांड अथवा प्रकृति की रचना करने वाले के बारे में बता रहे थे | जिस बात पर कोई डॉक्टर या वैज्ञानिक क्या यकिन के साथ कह सकते हैं कि इंसान का शरिर जिस प्रकृति द्वारा संचालित हो रहा है , उस प्रकृति को भी बनाने वाला कोई ऐसी चमत्कारी शक्ती है , जो अदृश्य होकर तब के इंसानो से उनकी ही भाषा में बातचीत किया है | जैसा कि इतिहास बतलाता है कि कई धर्म के धार्मिक पुस्तक को किसी इंसान के द्वारा ही तब लिखा गया बतलाया जाता है , जब किसी इंसान को कोई अदृश्य शक्ति गायब होकर उसी इंसान के भाषा में बातचीत करके वह संदेश दिया है , जिसका पालन करके सभी इंसान सुखमई जिवन जी सकते हैं ऐसा दावा किया गया है | जो बात यदि सत्य होती तो धर्म परिवर्तन करने का दौर कभी नही चलता | और सभी अपने अपने धर्म को मानते हुए पुरी दुनियाँ में अबतक सुख शांती समृद्धी आ गयी होती | क्योंकि इंसानो द्वारा कई धर्मो का जन्म हुए सैकड़ो हजारो साल बित चुके हैं | और साथ साथ इंसानो द्वारा ही लाखो छोटे बड़े और कई तो हजारो करोड़ के भव्य मंदिर मस्जिद और चर्च वगैरा पुजा स्थलो का निर्माण करके उसके अंदर जाकर अपने दुःखो को दुर करने का सिलसिला पिड़ि दर पिड़ी सैकड़ो हजारो सालो से जारी है | और साथ साथ लाखो करोड़ो या सायद अरबो धार्मिक पुस्तक वगैरा को पढ़कर कथित अदृश्य शक्ति के बारे में भी विस्तार पुर्वक जानने की प्रक्रिया भी जारी है | जिस अदृश्य शक्ति के बारे में प्राचिन काल के खास अवतरित माने जाने वाले इंसान सबसे पहले जाने थे , जिनका दावा है कि वे उससे बातचीत भी किये थे | जिस बातचीत के जरिये ही उन्होने पवित्र पुस्तक बनाये हैं ? जिसके बारे में विश्वास है कि पुस्तक में मौजुद जानकारी को देने वाले के पास प्रकृति में मौजुद इंसान समेत सारे जिव जंतुओ को एक झटके में बनाने और बिगाड़ने की क्षमता मौजुद है | लेकिन अपने भक्तो को खुदको दिखाने की क्षमता तब भी नही थी और आज भी नही है | सिर्फ अपनी आवाज द्वारा इंसानो के द्वारा ही विकसित की हुई भाषा में बातचीत करने की क्षमता है | वह भी उस जमाने में बातचीत हुआ था बतलाया जाता है , जब इंसानो के पास मोबाईल भी नही होती थी | जिन बातो पर यदि यकिन नही किया जाय तो न कोई ऑडियो विडियो प्रमाण है और न ही कोई गवाह जिवित मौजुद है | सिर्फ विश्वास और आस्था पर पिड़ी दर पिड़ी यह माना जाता आ रहा है कि सचमुच में पुरी दुनियाँ बनाने वाले ने ही धार्मिक पुस्तको में लिखी गई सभी बातो को लिखवाया है | जिस संदेश के बारे में उससे पहले न तो लिखने वाले को कुछ पता था और न ही संदेश सुनने वाले को पता था | पर जैसे ही उस चमत्कारी आवाज से जो संदेश मिला वह सब चमत्कारिक रुप से बिना भुलाये बिना गलती हुए संदेश सुनने वाले को अपने आप याद होकर लिखने वाले से बिना एक भी गलती किए लिखवाता चला गया | और अंत में वह धार्मिक पुस्तक के रुप में परिवर्तित हो गया | किसी इंसान को कविता रटने में भी समय लगता है , और दो चार पेज लिखते समय भी कई बार गलती होती है , पर मोटी मोटी धर्म पुस्तक बनते समय न तो एक भी संदेश भुलकर छुट गई और न ही लिखते समय एक भी गलती हुई है , ऐसा सभी धर्मो के धर्म पुस्तको को रचने वालो द्वारा ही बतलाया जाता है | बल्कि सौ प्रतिषत दावा किया गया है | लेकिन भी चमत्कारी संदेश को लेकर सभी धर्मो में अनेको विवाद मौजुद है | जिस तरह के विवाद की वजह से ही धर्मो के पवित्र माने गए कई ग्रंथ पिछले से अच्छा सोचकर बनते चले गए हैं | जिनमे लिखे संदेशो को अदृश्य शक्ती के मुँह से निकली वह सत्य बाते माना जाता है , जिसमे अब एक प्रतिशत भी बदलाव नही किये जा सकते हैं | बावजुद इसके कि उसपर सारे धर्मो का अनेको मतभेद है | अथवा जिनका मतभेद है वे लोग उसमे बताई गई कई बातो को झुठ और ढोंग पाखंड अँधविश्वास मानकर विश्वास नही करते हैं | सरल भाषा में जाने तो बहुत से धर्मो के धार्मिक पवित्र पुस्तक में मौजुद ज्ञान इतना विवादित है कि बहुत से लोग तो उस पुस्तक को लंबे समय तक सत्य मानने के बाद उससे संतुष्ठ न होकर अचानक से दुसरे धर्मो को अपनाकर उससे दुरी बना लेते हैं | फिर सवाल उठता है उन पुस्तको में लिखी गई ज्ञान शिक्षित हो रहे छात्रो को ज्यादे सत्य बुद्धी प्रदान करता है कि प्रकृति में मौजुद ज्ञान विज्ञान की पुस्तके ज्यादे सत्य बुद्धी प्रदान करता है ? जिस सवाल का जवाब एक तरफ तो इतने सारे धर्म और उन धर्मो के पवित्र पुस्तको में मौजुद ज्ञान पर अनेको विवाद तो दुसरी तरफ प्रकृति में मौजुद ज्ञान पर सबकी आपसी सहमति से साफ पता चलता है कि कौन ज्यादे सत्य बुद्धी प्रदान करता है ! वैसे हिंदू धर्म में सत्य की पूजा भी भगवान की पूजा माना जाता है | लेकिन चूँकि यूरेशिया से आए कबिलई मनुवादीयों ने छल कपट और घर के भेदियो की सहायता से इस कृषि प्रधान देश को गुलाम बनाकर मनुस्मृति लागू करके हिंदू वेद पुराणो में अपनी मनुवादी सोच की अप्रकृति ज्ञान की मिलावट कर दिया है , इसलिए अब प्रकृति पुजा के साथ साथ मनुवादीयों के पुर्वज देवो की भी पुजा हिंदू भगवान कहकर होता है | जो देव अप्रकृति तरिके से मुँह नाक कान वगैरा से पैदा होते हुए भी बतलाये जाते हैं | जिसके चलते हिंदू धर्म और हिंदू वेद पुराण भी ढोंग पाखंड और अँधविश्वास को लेकर विवादित हो गए हैं | हलांकि ढोंग पाखंड और अँधविश्वास से ज्यादा विवाद हिन्दु धर्म में छुवा छुत भेदभाव शोषण अत्याचार करने को लेकर है | कथित देवो और उनके वंसज जो जन्म से खुदको उच्च विद्वान पंडित घोषित करके मानो जन्म से आरक्षित घोषित करने वाला पुजारी बने हुए हैं , उनके द्वारा इस देश के मुलनिवासियों के साथ भारी भेदभाव छुवा छुत शोषण अत्याचार करने को लेकर लंबा इतिहास रहा है | जिससे जाहिर है चूँकि कथित जन्म से खुदको उच्च जाति घोषित करके हिन्दु धर्म का पुजारी बनकर मानो यहूदि DNA का मनुवादी यूरेशिया से आकर इस देश का हिन्दु धर्म का ठिकेदार बना हुआ है , इसलिए इस देश के बहुत से मुल हिंदू देव पुजा को मुल हिंदू पुजा और छुवा छुत को हिंदूओं की मानो कभी खत्म न होनेवाली शोषण अन्याय अत्याचार का सिलसिला समझकर अपने पुर्वजो का धर्म परिवर्तन करके दुसरे देशो में पैदा हुए धर्मो को भी इस उम्मीद से अपना रहे हैं कि उन धर्मो में कोई भेदभाव नही होता है , और कोई विवाद भी नही है | जबकि उन्हे पता होना चाहिए कि दुनियाँ का कोई भी मानव निर्मित धर्म अबतक जन्म ही नही लिया है जिसके अंदर कोई विवाद ही न हो ! रही बात हिंदू धर्म में विवाद की तो हिंदू धर्म तो मुलता अभी ज्यादेतर तो मनुवादीयों के मन मुताबिक संचालित हो रहा है | जो लोग खुदको जन्म से हिंदू धर्म का धार्मिक पंडित घोषित किये हुए हैं | जबकि कथित जन्म से खुदको धार्मिक पंडित घोषित करने वालो का डी० एन० ए० जन्म से यहूदि धर्म के लोगो से क्यों मिलता है इस सवाल का जवाब उनके पास मौजुद नही है | जिसके चलते इस सवाल का जवाब देने के लिए वे सार्वजनिक कभी भी बहस नही करते हैं | जाहिर है हिंदू धर्म में विवाद यूरेशिया से आए उन कबिलई मनुवादीयों ने दिया है , जिनका DNA कबिलई यहूदियो से मिलता है |
हलांकि चाहे क्यों न सारे धर्मो में अपनी अपनी आस्था और विश्वाश अनुसार सबको जिवन प्रदान करने वाले का अपनी अपनी भाषा बोली अनुसार भी अलग अलग नाम रखकर अनेको विवाद होता रहता है , पर यह सत्य बात बिना कोई प्रयोगिक विवाद के सभी धर्मो के लोग मानते हैं की एक ही प्रकृति सबके लिए मौजुद है | जिस प्रकृति में ही मौजुद हवा पानी के बगैर कोई भी धर्म के भक्त जिवित नही रह सकता , चाहे क्यों न वह सारे धर्मो के पुजा स्थलो में रोज कई बार माथा टेकता हो | जिसके बावजुद भी सभी धर्मो के भक्तो की खोज पुरी नही हो पाती है उस सत्य की जिसे सब एक झटके में मान लें की यही है वह शक्ती जिसे सारी सृष्टी का जिवनदाता के रुप में सारे धर्म के भक्त तलाश रहे थे सिवाय विज्ञान प्रमाणित प्रकृति के | जिस साक्षात मौजुद प्रकृति को तलाशने की जरुरत नही है | क्योंकि वह हमारे चारो ओर कण कण में मौजुद है | जिससे सबकी जिवन का डोर बंधा हुआ है | इसलिए जाहिर है चाहे किसी वैज्ञानिक या डॉक्टर शिक्षक की खोज हो या फिर किसी इंसान के लापता होने पर उसकी खोज हो , दरसल यदि सबकी जिवन को संचालन करने वाला सचमुच में प्रमाणित तौर पर मौजुद है तो वह साक्षात प्रकृति के रुप में यहीं पर ही साक्षात प्रमाणित मौजुद हैं | न कि किसी दुसरी दुनियाँ में मौजुद हैं | बल्कि मरे हुए पति पत्नी और स्वर्ग नर्क की दुनियाँ भी इसी प्रकृति में ही मौजुद हैं | न कि मरने के बाद दफन करके या जलाकर किसी दुसरी दुनियाँ में जाकर उन्हे खोजा जाता है | क्योंकि सत्य की खोज उस झुठ की खोज नही है , जिसकी प्रकृति में कोई वजुद और मौजुदगी ही न हो | और जो झुठ है वह सिर्फ भ्रम और अँधविश्वाश के तौर पर मौजुद रहता है | जिसे प्रमाणित तौर पर मौजुद कभी माना ही नही जा सकता | जैसे कि यदि कोई यह झुठ बोलता है कि सेब संतरा खाकर किसी इंसान ने बिना अँडाणु शुक्राणु के इंसान को जन्म दिया है तो वह झुठ प्रमाणित मौजुद कभी माना ही नही जायेगा | और यदि वाकई में कोई सेब संतरा द्वारा सचमुच में इंसान को जन्म दिया है यह बात किसी दिन सच प्रमाणित हो गया , और वाकई में महिलायें सिर्फ सेब संतरा खाकर माँ बनने लगी , उसदिन हिंदू प्रकृति भगवान पूजा मान्यता अनुसार तब धर्म का विनाश हो जायेगा | क्योंकि हिंदू धर्म अनुसार चूँकि कर्म ही सबका धर्म है , जो कि प्रकृति को धारन किया हुआ है | उस प्रकृति कर्म को धारन न करके यदि कोई जिव हो या निर्जिव अप्रकृति को जिसदिन धारन कर लेता है तो उसका धर्म भ्रष्ठ अथवा विनाश हो जाता है | और जैसा कि हिंदू वेद पुराणो में बतलाया गया है कि जब जब धर्म का विनाश होता है तो धर्म को फिर से स्थापित प्रकृति भगवान करते हैं | जो अधर्म का नाश करके फिर से धर्म को स्थापित करके अथवा सेब संतरा से इंसान का जन्म अप्रकृति प्रक्रिया का विनाश करके वापस किसी नर नारी के अंडाणु शुक्राणु से इंसान का जन्म प्रक्रिया का दुबारा सृजन करते हैं | जो की फिलहाल तो नारी अंडाणु और नर शुक्राणु से ही इंसान जन्म होकर चूँकि प्रकृति धर्म कायम है , इसलिए सेब संतरा से इंसान का जन्म हुआ यह बतलाने की फिलहाल किसी को भी जरुरत नही है | हाँ यदि कभी वाकई में मान लेते हैं सेब संतरा से अप्रकृति रुप से इंसान का जन्म हुआ होगा या फिर मुँह कान नाक वगैरा से इंसान का जन्म अप्रकृति तरिके से हुआ होगा जैसा की मनुवादी वेद पुराणो में छेड़छाड़ और मिलावट करके बतलाते आ रहे हैं , तो भी जैसा की वेद पुराणो में ही बतलाया गया है कि धर्म का विनाश होने से प्रकृति भगवान अप्रकृति गड़बड़ियों का नाश करके फिर से वापस धर्म का स्थापना करते हैं | तभि तो अब मुँह नाक कान वगैरा से अप्रकृति तरिके से जन्म किसी भी इंसानो का नही होता है | और यदि कहीं कहीं अप्रकृति घटना होकर अधर्म हो भी रहा है तो उसमे सुधार करने के लिये प्रकृति भगवान निश्चित रुप से हमेशा लगे हुए रहते हैं | न कि भगवान का मतलब कोई लिंग योनी वाला इंसान को कहा गया है जो धर्म को स्थापित करने आता है | क्योंकि जो खुद ही प्रकृति की कृपा से इंसान रुप में इंसान का लिंग योनी वगैरा लेकर जन्म लेता है और मरता भी है वह क्या सारी सृष्टी को संचालित करेगा ! वह तो पुरा पृथ्वी के इंसानो को भी संचालित नही कर सकता | जिसके चलते वह इंसानो की तरह ही सिमित क्षेत्रो में शासन करता है यह बात उसके बारे में बतलाया गया है | और यदि किसी लिंग योनी से युक्त इंसान या फिर बिना लिंग योनी के भी इंसान को ही यदि भगवान मानकर पुजा करनी है तो सभी इंसान को सारी सृष्टी को संचालित करने वाली शक्ती के रुप में पुजा करने पर भी एतराज नही होनी चाहिए | क्योंकि सबके भितर भगवान मौजुद है यह बात लगभग वैसे सभी धर्म के लोग मानते हैं , जिनका धर्म कहता है कि सभी इंसानो में उस परमात्मा का अंश आत्मा मौजुद है , जो सारी सृष्टि का संचालन कर रहा है | और जाहिर है विश्वास और आस्था अनुसार यदि सभी इंसानो के अंदर परमात्मा का अंश आत्मा मौजुद है , तो आत्मा वाले सभी इंसान पुजा के लायक हुए | जैसे की हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि सभी प्राणियों के अंदर प्रकृति भगवान पंचतत्व के रुप में मौजुद है | बल्कि निर्जिव पत्थर के अंदर भी हवा पानी के रुप में प्रकृति भगवान मौजुद है | तो क्या हमे उस पत्थर के बारे में ये मानने में अज्ञानता होगी की जिवन प्रदान करने वाला प्रकृति अंश उस पत्थर में भी मौजुद है | जिस तरह के तर्क देते समय बहुत से लोग यह गलती निकालेंगे कि फिर तो चोर गुंडे और बलात्कारियों में भी भगवान मौजुद हैं | क्योंकि उनके अंदर भी प्रकृति अंश मौजुद है | जिनको जवाब उनके ही द्वारा खुद मिल जायेगा यदि वे खुद अपने भितर झांककर पुच्छेंगे कि उनके अंदर बुराई है कि नही है ? और यदि है तो उनके अंदर उनके ही विश्वास के अनुसार परमात्मा का अंश आत्मा मौजुद है कि नही है ? और यदि है तो फिर उनको समझ जाना चाहिए कि किसी भी प्राणी के अंदर आत्मा मौजुद है | बल्कि हिंदू धर्म तो यह बतलाता है कि प्रकृति भगवान जिव निर्जिव सबमे मौजुद है | जैसा कि यह माना जाता है कि परमात्मा भला इंसान और अपराधी इंसान दोनो में ही आत्मा अंश के रुप में मौजुद है | जिसके चलते पशु पक्षी पेड़ पौधा पहाड़ पर्वत नदी वगैरा की पुजा भी हिंदू धर्म में होती है | और चूँकि प्रकृति भगवान इंसानो में भी मौजुद रहते हैं , इसलिए बहुत से हिंदू किसी इंसान को भी भगवान मानकर पुजा करते हैं | हलांकि यदि किसी इंसान की भी यदि हिंदू धर्म में पुजा की जाती है तो यह परखकर की जाती है कि उसमे प्रकृति धर्म कायम है कि नही है ? कहीं उसमे अप्रकृति अधर्म कायम तो नही है ? जैसे की पानी तो पीनेवाला साफ पानी और नालीवाला गंदा पानी दोनो में रहता है ,पर पीया उसी को जाता है ,जिसमे प्रकृति धर्म कायम रहता है |
जाहिर है जो धर्म या जो लोग प्रकृति भगवान की पुजा सृष्टी को संचालित करने वाली शक्ती के रुप में नही करते हैं , वे भी चूँकि ये मानते हैं कि सभी इंसानो के अंदर ऐसा आत्मा मौजुद है , जिसका रिस्ता सिधे परमात्मा से जुड़ा हुआ है , जो कि इंसान के मरने के बाद इंसान के शरिर से निकलकर वापस वहीं परमात्मा में विलिन हो जाता है , जहाँ से वह इंसान जन्म के समय शिशु में किसी शुशु कि तरह शरिर में मौजुद रहता है | जैसे की प्रकृति भगवान पुजा में यह मान्यता है कि भगवान कण कण में मौजुद है | बल्कि जिवन तो इंसान के पनपते समय ही किसी दुसरे इंसानो में मौजुद रहता है | जिन इंसानो को बाद में जन्म लेने वाला इंसान का माता पिता कहा जाता है | जिसके कारन भी माता पिता की भी पुजा मान्यता हिंदू धर्म में है | जिसके अंदर अंडाणु शुक्राणु के रुप में उस इंसान का आत्मा पहले से ही मौजुद रहता है , जिसका जन्म भविष्य में होनेवाला रहता है | यानी इंसान के अंदर नया आत्मा का प्रवेश इंसानो के द्वारा संभोग के लिये तैयार शरिर में हो जाता है |
बल्कि अंडाणु शुक्राणु बनने से पहले भी कहीं और रुप में मौजुद रहता है | जो आत्मा चाहे जहाँ पर प्रमाणित मौजुद रहता हो , पर वह प्राकृति में ही मौजुद रहता है | जो आत्मा किसी इंसान के मरने के बाद प्राकृति को छोड़कर वापस यदि परमात्मा में मिल जाता है तो भी वह आत्मा चूँकि परमात्मा का ही अंश है , इसलिये जिसके अंदर भी आत्मा मौजुद है वह इंसान खुदकी भी पुजा कर सकता है | क्योंकि सभी इंसानो के अंदर वह आत्मा मौजुद है , जो उस परमात्मा का ही अंश है | जिसे सृष्टी संचालक के रुप में वे लोग पुजते हैं | और जिनका मानना है कि सृष्टी संचालक प्रकृति नही बल्कि कोई और है , जो किसी दुसरी दुनियाँ में रहता है | फिर उस सृष्टी संचालक से अलग हुआ आत्मा जो सभी जिवित इंसानो में रहता है वह कौन है ? बल्कि आत्मा तो उन मुर्दो में भी रहता है जिसे भटकती आत्मा अथवा भुत चुड़ैल कहकर उसकी पुजा नही बल्कि भुत चुड़ैल से दुर रहने के लिये कई प्रकार का ढोंग पाखंड उपचार किया जाता है | ताकि भटकती आत्मा भटकते हुए सबको डराये या हानि न पहुँचाये | बल्कि वापस वहाँ जा सके जहाँ पर भटकती आत्मा ही नही बल्कि सभी आत्माओं की अबादी बसती है | जहाँ पर अबतक कितने मरे हुए इंसानो की आत्माओ की अबादी बसी होगी इसकी जनगणा कोई नही कर सकता | भले कहने को बहुत से लोगो द्वारा किसी धर्म पुस्तक की रचना करने वाले इंसान के बताये गए बातो के आधार पर यह कह दिया जाता है कि एक एक इंसानो का हिसाब किताब स्वर्ग नर्क में होता है | पर आजतक कोई भी धर्म पुस्तक में ये जानकारी नही उपलब्ध है कि धर्म पुस्तक में मौजुद जानकारी को उपलब्ध कराने तक कितने लोगो का पाप पुण्य हिसाब किताब निपटाया जा चुका है |
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